Sampadkiye : Shakti : Alekh : Coordinator * Shalini
Page 0.
@M.S.Media.
©️®️Shakti's Project.
Culture Visheshank.
In Association with.
A & M Media.
Pratham Media.
Times Media.
Shakti : Cover Page.
Disclaimer*.
All Heads are Honorary.
Joining Social Media Site Page with only the Fundamental Rights & Duties under Right to Expression
for the patriotic theme Sare Jahan Se Achchha Hindustan Hamara.
⭐
सम्पादकीय : शक्ति आलेख : गद्य पद्य संग्रह.
⭐
लेखिका.कवयित्री.
संयोजिका.कवयित्री.विचारक.
संयोजिका.ब्लॉग मैगज़ीन पेज.
शक्ति.शालिनी
उत्तर प्रदेश.
------------
सम्पादकीय : शक्ति : लघु फ़िल्में : दिल क्या करें : कृति संग्रह.आजकल : झरोखा : पृष्ठ :०
------------
संपादन.
संपादन : डॉ.सुनीता सीमा मीना शक्ति*शालिनी प्रिया .
नैनीताल. डेस्क.
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. अनुभूति मंजिता
शिमला डेस्क.
⭐
टाइम्स मीडिया शक्ति प्रस्तुति
शक्ति.खुशी : देहरादून : शॉर्ट रील. साभार.
जानू न मैं तो जानू न रूठे रूठे पिया को मनाना
मैं तो सजन की हो ही चुकी हूँ क्यों न हुए मेरे ?
नैना मेरे रंग भरे सपने तो सजाने लगे
*
एम. एस. मीडिया. शक्ति प्रस्तुति साभार.
शक्ति.खुशी : देहरादून : शॉर्ट रील. साभार.
मोहब्बत.
मोहब्बत जो करते है वो मोहब्बत जताते नहीं
धड़कनें अपने दिल की कभी किसी को सुनाते नहीं
प्रथम मीडिया. शक्ति * प्रस्तुति : साभार.
शक्ति.खुशी : देहरादून : शॉर्ट रील. साभार.
वो हैं जरा ख़फ़ा ख़फ़ा
वो हैं जरा ख़फ़ा ख़फ़ा तो नैन यूँ चुराए हैं
न बोल दूँ तो क्या कहूँ वो हंस के बुलाए हैं
*
----------
सम्पादकीय : शक्ति आलेख : अनुगूंज : पद्य : कृति संग्रह.आजकल : झरोखा : पृष्ठ : ०
--------------
संयोजिका.
शक्ति. शालिनी.
*
उपवन को चहकाते फूल.
गजरा, माला, साज-सजावट, सभी काम में आते फूल
इंद्रधनुष सी छटा बिखेरे, मन को खूब लुभाते फूल .
हर मौसम में तरह-तरह के, डाली पर इठलाते फूल,
मन्द पवन में अठखेली कर, तितली को भरमाने फूल.
ईश्वर के चरणों में झुककर, अपना मान बढ़ाते फूल,
लिपट शहीदों की अर्थी से, धन्य धन्य हो जाते फूल.
खुशबू ये बिखराते फूल, सबके मन को भाते फूल.
कितने सुंदर कितने प्यारे,
शक्ति शालिनी कवयित्री
*
लघु कविता.
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली.
प्रेम के पुष्प पग-पग बिछाती चली,
नित्य करती सृजन गीत गाती चली।
पत्थरों को रिझाने की आदत मेरी,
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली।।
ख़्वाब में आज उनसे मिली ही नही,
मन की कलियां हमारे खिली ही नही।
उधड़े रिश्तों की तुरपाई करती रही,
जाने क्यों अब तलक ये सिली ही नही।
काव्य का अंश बनकर मैं आयी यहाँ,
स्वसृजित धुन मधुर गुनगुनाती चली।
पत्थरों को रिझाने की आदत मेरी,
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली।।
सांझ की रिक्तिमा का अंधेरा बनी।
दुःख का कारण बहुत ही घनेरा बनी।
सुख का सूरज हुआ मैं प्रकाशित हुई,
फिर मैं सुन्दर, सुनहरी, सवेरा बनी।।
नफ़रत-ए-दौर में प्रेम-दीपक जला,
मैं करामात सबको दिखाती चली।
पत्थरों को रिझाने की आदत मेरी,
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली।।
दोष गिनती रही उंगलियों पर मगर,
दोष तुम ही बताते तो मिलता सुकूँ।
तुमने रोका नही, तुमने टोका नही,
काश तुम ही बताते कहाँ मैं रुकूँ।।
ख़्वाब बेरंग थे इक जमाने से जो,
मनपसंद रंग उनको दिलाती चली।
पत्थरों को रिझाने की आदत मेरी,
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली।।
शक्ति.शालिनी.
कवयित्री
फगुआ गीत.
फगुआ गीत. १ / ६
नैन से नैन मिलाके सावंरिया
रंग डारी मोरी कोरी चुनरिया
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
नैन से नैन मिलाके सावंरिया
रंग डारी मोरी कोरी चुनरिया
मोहे इंद्रधनुष सी बनायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे
सतरंगी सजनवा मन भायो.
गोरे-गोरे गालों पे रंग लगाया
छोड़ा न कहीं अंग-अंग लगाया
मोहे पोर-पोर ही भिगायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो.
मोहे पिया इतना ना सताओ
मैंने कहा रंग धीरे लगाओ
पिया तनिक तरस नही खायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे
सतरंगी सजनवा मन भायो.
पिय को मेरे रंग लाल पसन्द है
खूब खेले होली गुलाल पसन्द है
होली में रास रचायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे
सतरंगी सजनवा मन भायो.
पकड़े पिया मोहे भर अकवारी
फाड़ी चुनर और भिगाई मोरी साड़ी
होली में धूम मचायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे
सतरंगी सजनवा मन भायो.
*
------------
सम्पादकीय : शक्ति आलेख : अनुगूंज : गद्य - पद्य : कृति : मंजूषा : पृष्ठ : १
----------
*
शक्ति. शालिनी. कवयित्री.
------------
सम्पादकीय : शक्ति आलेख : पद्य संग्रह. पृष्ठ : १
----------
लघु कविता.
संयोजिका.
शक्ति. शालिनी.
*
लघु कविता.
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली.
प्रेम के पुष्प पग-पग बिछाती चली,
नित्य करती सृजन गीत गाती चली।
पत्थरों को रिझाने की आदत मेरी,
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली।।
ख़्वाब में आज उनसे मिली ही नही,
मन की कलियां हमारे खिली ही नही।
उधड़े रिश्तों की तुरपाई करती रही,
जाने क्यों अब तलक ये सिली ही नही।
काव्य का अंश बनकर मैं आयी यहाँ,
स्वसृजित धुन मधुर गुनगुनाती चली।
पत्थरों को रिझाने की आदत मेरी,
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली।।
सांझ की रिक्तिमा का अंधेरा बनी।
दुःख का कारण बहुत ही घनेरा बनी।
सुख का सूरज हुआ मैं प्रकाशित हुई,
फिर मैं सुन्दर, सुनहरी, सवेरा बनी।।
नफ़रत-ए-दौर में प्रेम-दीपक जला,
मैं करामात सबको दिखाती चली।
पत्थरों को रिझाने की आदत मेरी,
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली।।
दोष गिनती रही उंगलियों पर मगर,
दोष तुम ही बताते तो मिलता सुकूँ।
तुमने रोका नही, तुमने टोका नही,
काश तुम ही बताते कहाँ मैं रुकूँ।।
ख़्वाब बेरंग थे इक जमाने से जो,
मनपसंद रंग उनको दिलाती चली।
पत्थरों को रिझाने की आदत मेरी,
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली।।
शक्ति.शालिनी.
कवयित्री
----------
फगुआ गीत. १ / ६
नैन से नैन मिलाके सावंरिया
रंग डारी मोरी कोरी चुनरिया
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
नैन से नैन मिलाके सावंरिया
रंग डारी मोरी कोरी चुनरिया
मोहे इंद्रधनुष सी बनायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे
सतरंगी सजनवा मन भायो.
गोरे-गोरे गालों पे रंग लगाया
छोड़ा न कहीं अंग-अंग लगाया
मोहे पोर-पोर ही भिगायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो.
मोहे पिया इतना ना सताओ
मैंने कहा रंग धीरे लगाओ
पिया तनिक तरस नही खायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे
सतरंगी सजनवा मन भायो.
पिय को मेरे रंग लाल पसन्द है
खूब खेले होली गुलाल पसन्द है
होली में रास रचायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे
सतरंगी सजनवा मन भायो.
पकड़े पिया मोहे भर अकवारी
फाड़ी चुनर और भिगाई मोरी साड़ी
होली में धूम मचायो रे,
सतरंगी सजनवा मन भायो
बहुरंगी बलमुआ मन भायो रे
सतरंगी सजनवा मन भायो.
शक्ति. शालिनी. कवयित्री
---------
लघु कविता १ / ५
तपती रही लौ सी रात्रि भर,
*
तपती रही लौ सी रात्रि भर,
बनकर सुन्दर सी एक दीया.
फोटो : शालिनी : सम्पादित : विदिशा
हो दीप्तिमान प्रकाश किया,
ना कोई भी प्रतिदान लिया.
तपती रही लौ सी रात्रि भर,
बनकर सुन्दर सी एक दीया.
किसने मेरा श्रृंगार किया ?
कुछ तेल दीए में डार दिया !
अग्नि ने मुझे सँवार दिया,
जल उठी मैं बनकर एक दीया.
लक्ष्मी स्वरूप मैं एक दीया,
हर चौखट पर हूँ बनी पिया.
तपती रही लौ सी रात्रि भर,
बनकर सुन्दर सी एक दीया.
संग दीपावली मैं आती रही,
आह्लादित हो मुस्काती रही.
मैं मलय पवन की आहट से,
सकुचाती रही, शरमाती रही.
जगमग ये धरा-आकाश किया,
सम्पूर्ण जगत में प्रकाश किया.
तपती रही लौ सी रात्रि भर,
बनकर सुन्दर सी एक दीया.
सम्पादिका कवयित्री
शालिनी राय
नैनीताल डेस्क
-------------
क्षणिकाएं : लघु कविता १ / ४
अंधेरे का प्रकाश
प्रकाश का अस्तित्व,
अंधेरे की स्याह रात से,
सुख की मिले अनुभूति गर
विषाद लाया हर्ष हो.
संघर्ष से पीछे हटे तो,
मोल क्या जीवन का है !
जीवन वही यथार्थ है,
जिसमें भरा संघर्ष हो....
....
सम्पादिका कवयित्री
शालिनी रॉय
नैनीताल डेस्क

*
लघु कविता १ / ३
प्रेम को समझा कलंकित, प्रेम है अपराध कैसे ?
पाप का हो हिसाब कैसे, पुण्य पर प्रतिवाद कैसे,
प्रेम को समझा कलंकित, प्रेम है अपराध कैसे ?
जगत में है प्रेम शास्वत, पूजा और यह प्रार्थना है,
जग नही समझा कभी प्रिय, प्रेम ही आराधना है।
आहत हुई यह भावनाएं, अब करें संवाद कैसे,
प्रेम को समझा कलंकित, प्रेम है अपराध कैसे ?
मन हुआ है अधीर इतना, पीर में हो धीर कैसे,
कलम की हूँ सारथी फिर व्यथा की जंजीर कैसे ?
देखो जर्जर हो गया यह, स्वप्न का प्रासाद कैसे,
प्रेम को समझा कलंकित, प्रेम है अपराध कैसे ?
कर्म को ही धर्म समझा, मर्म हम ना जान पाए।
प्रिय तुम्हारे नेह में अपमान ना पहचान पाए।
प्रेम से अब पृथक हो ख़ुद को करें आज़ाद कैसे,
प्रेम को समझा कलंकित, प्रेम है अपराध कैसे !
सत्य परिलक्षित हुआ तो हृदय भी हुआ विछिप्त।
बुझ उठी लौ प्रेम की जो आत्मा करती थी दीप्त।
छोड़कर हैं चल पड़े पर नित्य ये अवसाद कैसे !
प्रेम को समझा कलंकित, प्रेम है अपराध कैसे !
स्तंभ : संपादन : डॉ. सुनीता रीता शक्ति * प्रिया.
पृष्ठ : सज्जा : शक्ति अनुभूति
*
---------
लघु कविता १ / ४.
रुत आई बसंती बहार,
संयोजिका. कवयित्री. शालिनी.
⭐
रुत आई बसंती बहार,
रुत आई बसंती बहार,
बयार बहुरंगी बहे
देखो टूटे ना नेहिया की तार,
बयार बहुरंगी बहे,
मह-मह महकेला,
फूल-फुलवरिया,
आसमान छाए काहे,
काली रे बदरिया,
मनवा बसन्त भइल,
पिरितिया में तोहरे,
कुहुक उठी रे हमरे,
मन की कोइलिया.
बनल रहे सनेहिया हमार,
बयार बहुरंगी बहे,
देखो टूटे ना
नेहिया की तार,
बयार बहुरंगी बहे.
रुत आई बसंती बहार,
बयार बहुरंगी बहे,
देखो टूटे ना नेहिया की तार,
बयार बहुरंगी बहे.
चहक-चहक नाचे,
मन के मयूरवा,
रात भर चाँदनी,
निहारेला चकोरवा,
विरह में तोहरे,
जिनिगिया ई पतझड़,
हमरे जिनिगिया में,
तोहइँ अंजोरवा.
अब तोहइँ बसन्त हमार,
बयार बहुरंगी बहे,
देखो टूटे ना नेहिया की तार,
बयार बहुरंगी बहे.
रुत आई बसंती बहार,
बयार बहुरंगी बहे,
देखो टूटे ना नेहिया की तार,
बयार बहुरंगी बहे.
संपादन : शक्ति. डॉ.सुनीता शक्ति* प्रिया
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. अनुभूति मंजिता
शिमला डेस्क.
⭐
-------
शक्ति शालिनी
@ महाकुंभ.२०२५
--------
लघु कविता : लघु कविता १ /५
गंगा, यमुना, सरस्वती.
प्रयागराज में भीड़ लगी,
भक्तों की आई टोली है।
गंगा, यमुना, सरस्वती की
संगम ही हमजोली है।।
हर हर गंगे बोल रहे सब,
महाकुंभ का मेला है।
नागा, संत, साधु, औघड़,
जनमानस का रेला है।।
अद्भुत दृश्य मनोहारी यह,
मस्तक सबके चंदन है।
प्रयागराज के महाकुंभ में,
सबका ही अभिनन्दन है।।
गुंजायमान नभ हो उठा,
जय श्रीराम जयकारा है।
नौका विहार, स्नान, भजन में,
डूबा जगत यह सारा है।
सायंआरती दृश्य अलौकिक,
दीपों का यह महासागर।
त्रिवेणी है पुण्यस्थली,
पुण्य कमाओ यहाँ आकर।।
मस्त मलंग साधु सन्यासी,
हाथ लिए सब चिलम है।
बेच रहे रुद्राक्ष, रत्न सब,
मोती, माणिक्य, नीलम है।।
चिमटा, लाठी हाथ लिए
सब घूम रहे यहाँ नागा है।
जगह-जगह यह धूनी रमाए,
भस्म शरीर पर लागा है।
शतक एक चौंवालीस वर्ष पे
महाकुंभ यह आया है।
अद्भुत, भव्य, दिव्य दृश्य,
देख जगत हर्षाया है।।
गंगा यमुुना सरस्वती का,
अतिपावन यह संगम है।।
पुण्य अर्जित करे यहाँ सब,
मानव रूप जो जंगम है।।
रात्रि दृश्य मनोहारी यहाँ,
जगमग तारों जैसी है।
भाई-बहनों आकर देखो,
मत पूछो यह कैसी है?
तेरह अखाड़े किये स्थापित,
आदि शंकराचार्य ने,
शैव, वैष्णव और उदासीन,
बांटे अन्य आचार्य ने।।
यज्ञ-हवन के कुंड बने हैं,
गंगा-यमुना के तट पर,
औघड़ की जमघट है लागी,
यहाँ बने हर मरघट पर।।
संतों का अनमोल प्रवाह,
आस्था का अद्भुत प्रवास।
शाही स्नान का बड़ा महत्व,
रचता धर्म नया इतिहास।।
दूर-दूर से भक्त हैं आये,
यह संगम अति पावन है।
ढोल, मजीरे, डमरू बजते,
दृश्य बड़ा मनभावन है।
भक्तों का लगा है तांता,
पुण्यस्थली 'संगम' है।
अंतःकरण शुद्ध करे सब,
करते योग विहंगम हैं।।
कुंभ मेला है एक सन्देश,
प्रेम, एकता, धर्म विशेष।
आओ मिलकर दृढ़ शपथ लें
मानवधर्म रहे ना शेष।।
*
--------
सांवली सुन्दर भोली बाला. लघु कविता १ /६
सांवली सुन्दर भोली बाला.
@ महाकुंभ.२०२५
ईश्वर रंग अद्भुत भर डाला
सांवली सुन्दर भोली बाला,
मनमोहिनी यह पावन लागे,
सुन्दर दृग मनभावन लागे.
अतिसुन्दर मुस्कान तुम्हारी
तुम कुटिया की राजकुमारी,
कजरारे अति प्यारे लोचन,
अपलक हो, करें विमोचन.
अधर रसीले मय का प्याला,
जैसे हो कोई हो मधुशाला.
निश्छल यह अतिसुन्दर नैन,
निरख जिसे सब पावे चैन,
ईश्वर की यह कृति निराली,
देख जिसे दुनिया मतवाली.
दृष्टि तुम्हारी नयन कटारी,
तुम पर मिटती दुनिया सारी,
अद्भुत चक्षु दिखे कजरारे,
कितने हिय हैं तुम पर हारे.
सुन्दर, सुकोमल, सुकुमारी,
तुम मंदिर की प्रेम पुजारी,
ईश्वर रंग अद्भुत भर डाला,
सांवली सुन्दर भोली बाला.
शक्ति शालिनी
@ महाकुंभ.२०२५
-------
©️®️Shakti's Project.
⭐
सम्पादकीय शक्ति आलेख : पृष्ठ संपादन.
नैनीताल डेस्क
जमशेदपुर.
⭐
------------
सम्पादकीय : शक्ति आलेख : गद्य संग्रह. पृष्ठ : २
-----------
⭐
-------
नमामि गंगे : शक्ति विचार धारा : पृष्ठ : ३
-----------
ए. एंड. एम. प्रस्तुति
--------------
शिमला डेस्क.
संपादन..
------------
दिल क्या करें : लघु फिल्में : प्रस्तुति : पृष्ठ : ४ .
-----------
संपादन.
संपादन : डॉ.सुनीता सीमा मीना शक्ति*शालिनी प्रिया .
नैनीताल. डेस्क.
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. अनुभूति मंजिता
शिमला डेस्क.
⭐
शक्ति. खुशी : देहरादून : शॉर्ट रील.
*
बड़ी खूबसूरत शिकायत है ये
मगर सोचिये क्या शराफ़त है ये
*
हमने देखी है इन आँखों की महकती खुशबू
मिले न तुम तो हम घबरायें मिले तो आँख चुराए.
आप की नजरों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे.
कितना प्यारा वादा है इन मतवाली आँखों का
तू मुझे आजमाने की कोशिश न कर
*
©️®️ M.S.Media.
©️®️ M.S.Media.
------------
आप ने कहा : पृष्ठ : ६ .
-----------
संपादन
Nice
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविताएं लिखी गई हैं।
ReplyDeleteहोली की सुंदर कविता हम सभी के जीवन में उल्लास भर देती है!
ReplyDelete