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सम्पादकीय : शक्ति आलेख : गद्य पद्य संग्रह.
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लेखिका.
.कवयित्री.विचारक.
शक्ति. डॉ. रेणु .
रांची.
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आवरण पृष्ठ : ०
विषय सूची : पृष्ठ : २
सम्पादकीय :शक्ति आलेख गद्य: संग्रह पृष्ठ : पृष्ठ : ३
सम्पादकीय :शक्ति आलेख पद्य : संग्रह पृष्ठ : पृष्ठ : ४
सम्पादकीय :शक्ति विचार : संग्रह पृष्ठ : पृष्ठ : ५
आपने कहा पृष्ठ : ६

कोलकाता का आध्यात्मिक रत्न: मंत्रमुग्ध करने वाला दक्षिणेश्वर काली मंदिर पृष्ठ : ३ / २

यात्रा लेख : शक्ति. डॉ. रेणु .रांची.
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अद्भुत वास्तुशिल्प का अप्रतिम उदाहरण : दक्षिणेश्वर काली मंदिर : फोटो : अशोक करन.
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दक्षिणेश्वर काली मंदिर : कोलकाता में एक शोध के दौरान, मुझे भव्य दक्षिणेश्वर काली मंदिर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हुगली नदी के किनारे पर फैला यह अद्भुत वास्तुशिल्प न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि भक्ति, साहस और समृद्ध इतिहास का प्रमाण है।
५१ आदि शक्तिपीठों में से एक : माना जाता है कि यह ५१ आदि शक्तिपीठों में से एक है। यह वह स्थान है जहां सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था। यहां भक्त शक्ति के करुणामयी रूप - दक्षिणा काली - की आराधना करते हैं और भैरव को नकुलेश्वर महादेव के रूप में पूजते हैं।
सभी के लिए आकर्षक अनुभव दक्षिणेश्वर काली मंदिर की ऊर्जा वास्तव में मंत्रमुग्ध करने वाली है। चाहे आप आशीर्वाद के लिए भक्त हों या इतिहास और वास्तुकला की सराहना करने वाले यात्री, यह स्थल एक अनूठा और समृद्ध अनुभव प्रदान करता है।
मंदिर का निर्माण : यह मंदिर १८५५ में रानी रासमणि द्वारा बनवाया गया था, जो साधारण पृष्ठभूमि से उठकर एक महान महिला बनीं। उनके माता-पिता मछुआरे थे । यह मंदिर माँ काली के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। अपने जाति से जुड़े सामाजिक चुनौतियों के बावजूद, रानी रासमणि एक सफल व्यवसायी, समाज सुधारक और कोलकाता की महानतम परोपकारी महिलाओं में से एक बन गईं।मंदिर की महत्ता इसकी वास्तुकला से कहीं अधिक है।
रामकृष्ण परमहंस और माँ शारदा देवी : यह १९ वीं सदी के बंगाल के दो प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों - रामकृष्ण परमहंस और माँ शारदा देवी - के जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है। रामकृष्ण, जो स्वामी विवेकानंद के गुरु थे,ने २० वर्ष की उम्र में यहां लगभग ३० वर्षों तक पुजारी के रूप में सेवा की। इस जुड़ाव ने मंदिर की आध्यात्मिक आभा को और बढ़ा दिया।
अपनी यात्रा की योजना बनाएं : यह मंदिर कोलकाता आने वाले हर व्यक्ति के लिए अवश्य देखने योग्य है। यहां आपकी यात्रा के लिए कुछ अतिरिक्त विवरण दिए गए हैं:
स्थान : दक्षिणेश्वर, उत्तर २४ परगना जिला, पश्चिम बंगाल
खुलने का समय : आमतौर पर सुबह ६ बजे से विशिष्ट समय के लिए आधिकारिक वेबसाइट अवश्य जांचें।
कैसे पहुंचे : फेरी, मेट्रो, बस या लोकल ट्रेन से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
रोचक तथ्य : २०१४ में फिल्म ' गुंडे ' का एक गाना इस मंदिर परिसर में फिल्माया गया था।आइए इस धरोहर को जीवित रखें दक्षिणेश्वर काली मंदिर इतिहास, आध्यात्मिकता और वास्तुशिल्प उत्कृष्टता का खजाना है। के साथ अपने अनुभव साझा करके हम इस विरासत को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित कर सकते हैं।
तस्वीरें : अशोक करण.
कोलकोता डेस्क : स्तंभ संपादन : सज्जा : शक्ति माधवी सीमा रश्मि वाणी
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खिलते हैं सहजन के फूल: शक्ति आलेख : मुझे भी कुछ कहना हैं : गद्य: पृष्ठ : ३ / १
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सहजन के फूल: एक मौसमी आनंद : जैसे-जैसे सर्दी समाप्त होती है और पतझड़ अपनी जगह बनाता है, गर्मियों का आगमन भी दूर नहीं होता। इस बदलाव का एक निश्चित संकेत है - सहजन के फूलों का प्रचुर मात्रा में खिलना। आज सुबह, जब मैं अपनी बालकनी में बैठी थी , हल्की धूप का आनंद लेते हुए चाय की चुस्की ले रही थी , तभी मेरी नजर सहजन के खिलते हुए फूलों पर पड़ी, जो सुनहरी धूप में दमक रहे थे। यह दृश्य इतना आकर्षक था कि मैं तुरंत अपना 400mm ज़ूम लेंस वाला कैमरा उठायी और इन ताज़ा खिले फूलों को अलग-अलग कोणों से कैद कर लिया। नतीजा ? प्रकृति की खूबसूरती को दर्शाने वाली कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
सहजन के फूलों का जादू : हिंदी में सहजन के फूल के नाम से प्रसिद्ध ये ड्रमस्टिक फूल न केवल देखने में सुंदर होते हैं बल्कि खाने में भी बेहद स्वादिष्ट होते हैं। भारतीय पारंपरिक व्यंजनों में इनका उपयोग विशेष रूप से पकौड़ों और सब्जियों में किया जाता है। आलू और सहजन के फूल की सब्जी एक बेहद स्वादिष्ट व्यंजन है, जिसे कई लोग बड़े चाव से खाते हैं। सहजन का पेड़, जिसे ‘चमत्कारी वृक्ष’ भी कहा जाता है, पूरी तरह से खाद्य होता है—इसके फूल, पत्ते, फल, और यहां तक कि जड़ें भी सदियों से औषधीय और पोषण संबंधी गुणों के लिए उपयोग में लाई जाती हैं। सहजन के फूलों का आनंद लेने का एक लोकप्रिय तरीका है 'थोरन' नामक दक्षिण भारतीय व्यंजन। इसमें फूलों को मिर्च, मसालों, प्याज और बेसन के साथ मिलाकर तल कर स्वादिष्ट स्नैक तैयार किया जाता है। एक अन्य लोकप्रिय विधि में इन फूलों को सुखाकर हर्बल चाय के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जो अपने स्वास्थ्यवर्धक गुणों के लिए जानी जाती है।

सहजन के फूल बनाने की विधि: सहजन के फूलों को अच्छी तरह धोकर धूल और गंदगी साफ करें।फूलों और प्याज को बारीक काट लें।एक पैन में तेल गरम करें।कटे हुए प्याज डालें और सुनहरा होने तक भूनें।कटे हुए सहजन के फूल डालें और मध्यम आंच पर एक मिनट तक भूनें, जब तक वे नरम न हो जाएं।पौष्टिकता और औषधीय गुण सहजन के पेड़ के खाने योग्य भागों में इसकी पत्तियां, तने, हरी फलियां, सुगंधित फूल, बीज और जड़ें शामिल हैं। ये सभी पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजनों में उपयोग किए जा सकते हैं। हालांकि, सहजन के फूलों का अत्यधिक सेवन कभी-कभी पोषक तत्वों के अवशोषण को प्रभावित कर सकता है, जिससे गुर्दे की पथरी या यकृत और गुर्दों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यह प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए संतुलित मात्रा में ही इनका सेवन करना उचित होता है।
बचपन की यादें : बचपन से ही, मुझे वह स्वादिष्ट सहजन की फली की सब्जी बहुत पसंद थी, जिसे मेरी माँ हर साल पतझड़ में ताज़ी हरी फली से बनाती थीं। वह स्वाद आज भी मेरी यादों में बसा हुआ है। लंबी सहजन की फलियों का उपयोग दक्षिण एशियाई व्यंजनों में खूब किया जाता है, जहाँ इसे सरसों, टमाटर, लहसुन, जीरा, हल्दी और मिर्च पाउडर के साथ पकाया जाता है। इसे चावल या रोटी के साथ खाने का स्वाद अविस्मरणीय होता है।
कुछ लाजवाब सहजन फूलों की रेसिपी: सर्वश्रेष्ठ सहजन फूल भारतीय रेसिपी सहजन फूल नारियल के दूध के साथहेब्बर्स किचन सहजन फूल रेसिपी सहजन फूल की सब्जीतो दोस्तों, जैसे ही सहजन के फूलों का मौसम शुरू हो रहा है, यह सही समय है कि आप भी अपनी रसोई में इनका प्रयोग करें। अलग-अलग रेसिपी आज़माएँ और इनके अद्भुत स्वाद का आनंद लें !
छाया चित्र : अशोक करन.
पूर्व छायाकार : हिंदुस्तान टाइम्स. पटना. रांची.
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सम्पादकीय : शक्ति आलेख : मुझे भी कुछ कहना हैं : गद्य: संग्रह पृष्ठ : ३ / ०
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पंखों की तकरार: मैना पक्षियों की नोकझोंक.फिर भी मैत्री ही.
शक्ति. डॉ. रेणु . रांची.
कल्पना कीजिए कि आप अपनी बालकनी में एक शांत दोपहर का आनंद ले रहे हैं, तभी अचानक ऊपर से एक ज़ोरदार बहस सुनाई देती है यह शोर आपके पड़ोसियों का नहीं, बल्कि दो लड़ते हुए मैना पक्षियों का है!
उनकी तीखी चहचहाहट ने मेरी जिज्ञासा जगा दी, और एक फोटोग्राफर की नज़र से देखते हुए, अपना कैमरा मैंने उठाई और इस पक्षी संघर्ष को शानदार ढंग से कैद की। हाई-ज़ूम लेंस ने पृष्ठभूमि को धुंधला कर दिया, जिससे पूरा ध्यान इन जोशीले पक्षियों पर केंद्रित हो गया .लेकिन आखिर ऐसी गरमागरम बहस की वजह क्या थी ? जब मैंने ध्यान से देखा, तो कारण स्पष्ट हो गए।
झगड़े की वजहें:
क्षेत्र की रक्षा : इंसानों की तरह मैना भी प्रजनन के मौसम में अपने घोंसले की रक्षा करने के लिए आक्रामक हो जाते हैं।
भोजन की होड़ : कभी कभी बस कुछेक टुकड़ों की खातिर भी इन पक्षियों के बीच झगड़ा छिड़ सकता है, खासकर जब भोजन की उपलब्धता कम होप्रेम त्रिकोण: साथी पाने की होड़ में नर मैना बेहद आक्रामक हो सकते हैं और अपनी संभावित साथी की सुरक्षा के लिए दूसरों से भिड़ जाते हैं।
झगड़े से आगे:
सामाजिकता : इनकी तकरार देखने में चाहे कितनी भी मज़ेदार लगे, लेकिन मैना सामाजिक पक्षी होते हैं। आमतौर पर, ये झुंड में भोजन की तलाश करते हैं।
हालांकि, इनकी सामाजिकता का एक अंधेरा पक्ष भी है —प्रजनन के मौसम में नर मैना बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लेते हैं, जिससे अन्य देशी पक्षियों के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं।मैना की खासियतें: यह मध्यम आकार के पक्षी विभिन्न रंगों में पाए जाते हैं,जिनमें से कुछ के सिर पीले होते हैं। इनकी संवाद कुशलता अद्भुत होती है।
ये खरखराहट, चीख, सीटी और यहाँ तक कि गुर्राने जैसी ध्वनियाँ भी निकाल सकते हैं,दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश झगड़े केवल दो पक्षियों के बीच होते हैं, जबकि उनके साथी किनारे पर खड़े होकर शोर मचाते रहते हैं ।
मैना: मैत्री की प्रतीक : एक अनोखा पक्षी अपनी प्रतिस्पर्धी प्रवृत्ति के बावजूद, जब किसी बड़े शिकारी का खतरा होता है, तो मैना अपने मतभेद भूलकर मिलकर रक्षा करती हैं,ये बुद्धिमान पक्षी पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और खतरा भांपते ही अपने साथियों को सचेत कर देते हैं।अंधविश्वास से दोस्ती तक: ऐसा माना जाता है कि अकेली मैना दिखना अशुभ होता है, जबकि दो मैना दिखना सौभाग्य का प्रतीक होता है।
यह उनकी सामाजिक प्रवृत्ति को दर्शाता है। मैना इंसानों के साथ भी गहरी मित्रता बना सकती हैं और कुछ प्रजातियाँ इंसानों की तरह बोलने की कला भी सीख सकती हैं।झगड़े से आगे: मेरी ली गई तस्वीर, जिसका शीर्षक "गंभीर बहस" है, मैना के झगड़े की सजीव झलक प्रस्तुत करती है ये पक्षी केवल झगड़ालू नहीं, बल्कि बुद्धिमान और सामाजिक जीव हैं, जिनकी अपनी अनूठी कहानी है।
छाया चित्र : अशोक करन.
पूर्व छायाकार : हिंदुस्तान टाइम्स. पटना. रांची.
पृष्ठ आलेख संपादन : डॉ. सुनीता शक्ति शालिनी प्रिया.
पृष्ठ आलेख सज्जा : शक्ति अनीता सीमा अनुभूति मंजिता.
Excellent bahut achche
ReplyDeleteExcellent knowledgeable write up
ReplyDeleteBeautiful photos with incredible write-ups.
ReplyDeleteExcellent, Very good information about above subject
ReplyDeleteप्रशंसनीय लेख
ReplyDeleteVery nicely elaborated writeups with attractive and catchy photos. Keep it up Shakti team.
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