Sampadkiye : Shakti : Alekh : Dhai Akshar Prem Ka : Radhika Krishna : Dr. Sunita Madhup Shakti* Priya.

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Shakti : Cover Page
   सम्पादकीय : शक्ति आलेख : गद्य पद्य : दृश्यम : लघु फिल्म : विचार संग्रह. 

व्यंग्य चित्रकार.साहित्यकार.विचारक. 
यू टूबर.ब्लॉगर. 



डॉ.सुनीता मधुप
शक्ति* प्रिया.
नैनीताल. दार्जलिंग. 
*
आवरण पृष्ठ : ० विदिशा. 

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विषय सूची : पृष्ठ : १.  
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 आवरण पृष्ठ : ० 
 विषय सूची : पृष्ठ : ० 
सुबह और शाम :  पृष्ठ : ० 
सम्पादकीय : पृष्ठ : १.  
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.काव्यांजलि : पद्य संग्रह : राधा कृष्ण : पृष्ठ : २ 
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.वीथिका : राधा कृष्ण : पृष्ठ : ३ 
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : धारावाहिक  : पृष्ठ : ४  
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : विचार धारा : पृष्ठ : ५  .
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : दृश्यम  : पृष्ठ : ६  .
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : लघु फिल्में : पृष्ठ : ७.
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : फोटो दीर्घा  : पृष्ठ : ८.
उसने कहा था : शॉर्ट रील : संदेशें आते हैं : पृष्ठ : ९. 

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एम. एस. मीडिया. प्रस्तुति. 
महाशक्ति * मीडिया प्रस्तुति. 

शक्ति नैना देवी डेस्क 
नैनीताल. प्रादुर्भाव वर्ष : १९७६. 
संस्थापना वर्ष : १९९८. महीना : जुलाई. दिवस :४.

सुबह और शाम : मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ : ० 
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ढ़ाई अक्षर प्रेम का : दिव्य शब्द चित्र  : विचार : : पृष्ठ : ५ /०.
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शक्ति. डॉ.सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया.दार्जलिंग डेस्क. 
*
महाशक्ति राधिका कृष्ण :  जीवन दर्शन.
@M.S.Media.
*
वो सब देख रहा है ,न


कोई हमारा बुरा करे ये उसका कर्म है
लेकिन हम किसी का बुरा न करें ये हमारा धर्म है

*
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : फोटो दीर्घा  : पृष्ठ : ८ .


अस्सी : वाराणसी : काशी 
और मेरी यादें : १९९२ : फोटो. कोलाज डॉ. सुनीता मधुप शक्ति प्रिया
 

मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : लघु फिल्में : 
प्यार किया तेरी यादों से बिन फेरे हम तेरे 

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महाशक्ति * मीडिया प्रस्तुति. 
सम्पादकीय : सम्पादकीय : पृष्ठ : १
*
सम्पादकीय शक्ति * आलेख 
राधिका कृष्ण. GIF
ढ़ाई अक्षर प्रेम का.

  
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 पृष्ठ : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
*शक्ति.सम्पादिका *.
शक्ति. डॉ. नूतन शालिनी नीलम रेनू.  

 


देहरादून. काशी. जयपुर.
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   पृष्ठ सज्जा : पृष्ठ : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
*शक्ति.सम्पादिका *.
शक्ति.अनुभूति सुष्मिता मंजिता सीमा 
*


शिमला चंडीगढ़ कोलकोता.  
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 पृष्ठ सज्जा : पृष्ठ : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
 कार्यकारी सम्पादिका *.
*

*
शक्ति.मीना तनु माधवी कंचन. 
मुक्तेश्वर. बंगलोर. नैनीताल.
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 पृष्ठ सज्जा : 
पृष्ठ : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
पृष्ठ संरक्षण * 


शक्ति. रश्मि श्रीवास्तवा.आई पी एस. 
श्री चिरंजीव नाथ सिन्हा.आई पी एस. 
श्री विशाल कुमार.सिविल जज.
शक्ति. सीमा कुमारी.डिप्टी चीफ लीगल एड डिफेंस काउंसिल. 
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 पृष्ठ सज्जा : 
पृष्ठ : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
पृष्ठ निर्माण * सहयोग.
*
पत्रिका के निर्माण / संरक्षण के लिए  
हार्दिक आभार 
*
डॉ. सुनील कुमार सिन्हा. 
शिशु रोग विशेषज्ञ. ममता हॉस्पिटल.  
बिहार शरीफ / नालंदा.

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मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.काव्यांजलि : पद्य संग्रह : राधा कृष्ण : पृष्ठ : २. 
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शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया .
संपादन
कविता : संपादन शक्ति. शालिनी माधवी रेनू  मीना.  नैनीताल डेस्क. 
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा तनु सुष्मिता.  
शक्ति. 

*
भाविकाएँ
*
श्री राधिका कृष्ण सदा सहायते 
*
भाविकाएँ : भक्ति 
*

फोटो : श्री कृष्ण : राधा : मीरा 

  जीवन भर साथ निभाने  की बात की है 
अगर तो 
सम्यक वाणी ,आस्था, प्रेम ,सहिष्णुता 
की कभी भी आस नहीं छोड़ते, 
श्री हरि  : राम : कृष्ण ही शिव है
मेरी जीवन अनंत शक्ति हैं 
थामा है अगर हाथ तो कभी साथ नहीं छोड़ते 
त्रि - शक्ति मय हैं हम 
मत भूलिए  संकट की वेला में ही होते 
त्रि - शक्ति पूर्ण 
श्री राधिकाकृष्ण सदा सहायते.

@ डॉ सुनीता मधुप शक्ति प्रिया 
 

लघु कविता. प्रेम के सात रंग. पृष्ठ : २. 
शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया . 

 अति लघु कवितायें. 

पहली. 
 समर्पण. 


 तुम्हारी, 
 लरजती आँखों की 
 उठती गिरती पलकों में 
 हमेशा मैंने केवल 
' हां ' ही देखा. 
 ' न ' कहाँ था ? 
बोलो न ? 

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दूसरी लघु कविता.
साहस.
डॉ. मधुप. 


फोटो : साभार 

घर छोड़ा,
द्वार छोड़ा, 
नाता तोड़ा, 
 आप से जोड़ा. 
लो रंग गयी तेरे श्याम रंग में, 
बनकर  मीरा बावली हो गयी मैं,
लो मैं तेरे वास्तें, 
सब छोड़ के 
आ गयी मैं. 

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तीसरी लघु कविता. 
ख़ामोशी.
डॉ. मधुप. 


ज्यादा कुछ कहा नहीं 
कुछ ज़्यादा सुना नहीं, 
हमने पढ़ी सिर्फ़,  
नैनों की भाषा, 
और क़िताबें दिल की, 

नैनों की भाषा. 
जैसे  पूरे हो गए, 
सारे,अनकहें अरमान,
 धरा पर ही, जैसे
झुक गया हो आसमान. 
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चौथी लघु कविता.
साथ.

रहें वो हमारे साथ
ता ज़िन्दगी
हमसफ़र बन कर,
फिर भी शिकायत रहीं
ताउम्र उनको,
कि हम कहाँ उनके साथ थे ?
अब तुम ही बतलाओ,न ?
हम कहाँ थे
और किसके साथ थे ?
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पांचवी लघु कविता.
डॉ. मधुप. 

ख़्याल.

परवाह इतनी
तुम्हारी
कि खुद का वजूद
भी याद नहीं
हर पल,
बस एक ही,
तुम्हारा ख़्याल
तुम्हारे लिए,
कि तुम कहीं भी रहो
ख़ुश रहो.
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डॉ. मधुप. 

छठवीं लघु कविता.

समझ. 

 
स्वर हमारे, 
शब्द तुम्हारे,
दृष्टि हमारी 
दृश्य तुम्हारे, 
वहीं सुनना है,हमें  
जो सुनाओ तुम,
जीत आपकी हो,
हमेशा.   
देखो न !
हम तो 
तुम्हारे लिए ही , 
सिर्फ़ तुमसे 
हम ही हारे.  
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सातवीं लघु कविता.

विश्वास.



दिन के उजाले में, 
देखना, 
वो तुम्हारा ध्रुब तारा 
दिखेगा नहीं.
 घबड़ाना नहीं,
जब कभी शाम होगी, 
फिर रात भी होगी, 
तुम्हारे मन के क्षितिज में, 


वो तेरे आस का 
तारा
सितारा  
मिलेगा वहीं,
स्थिर,उसी दिशा में,
चमकता हुआ, 
दिशा बतलाता हुआ,
था, है और रहेगा,   
सिर्फ तुम्हारे लिए. 
.    
पुनः सम्पादित
प्रिया : दार्जलिंग.

*
कविता : संपादन शक्ति. शालिनी माधवी रेनू  मीना. नैनीताल डेस्क. 
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा तनु सुष्मिता. शिमला डेस्क. 
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मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.वीथिका : पृष्ठ : ३.
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आलेख : शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया.दार्जलिंग डेस्क. 
वीथिका : संपादन शक्ति. शालिनी माधवी रेनू कंचन.  नैनीताल डेस्क. 
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा तनु अनुभूति. शिमला डेस्क. 
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ढ़ाई अक्षर प्रेम का.वीथिका : पृष्ठ : ३.
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जीने की राह : आपबीती : से साभार : जब भी यह दिल उदास होता है.  शोर .  पेज : ३  / २.
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डॉ. मधुप.

आज कल शोर-गुल के प्रति बड़ी संवेदनशीलता हो गयी है। चिर शांति चाहता हूँ। अपने देश और  हिमालय की गोद में बसे गांव याद आते है। शहर की भीड़ -भाड़, हॉर्न बजाती गाड़ियों का आना -जाना, तेज आवाज़ें और इससे जनित शोर से मुझे उम्र के इस पड़ाव में अब परेशानी होने लगी है। यह भी एक प्रकार का प्रदूषण ही है। मुझे मनोज कुमार की १९७२ में निर्मित फिल्म शोर की  याद आने लगती है जिसमें शोर की बजह से नायक के बच्चें की श्रवण शक्ति चली जाती है । 
मुझे लगता है तेज बोलना और उसे सुनना भी परेशानी को ही जन्म ही देता है। न जाने क्यों ऐसा लगता है कुछ आवाज़ तीखी हो कर हम तक पहुंच रही हैं। आवाजें कुछ तेज़ होती हुई कानों तक पहुँचती है,कोई तेज से बोल रहा होता है तो बड़ी घड़बड़ाहट सी होती है। अनुभूति ठीक नहीं होती। हालात ऐसे है कि बात करने से बचने लगा हूँ। बमुश्किल किसी से बातें हो पाती है। 
वार्तालाप की शैली : हमारी शैली क्या हो ? हमारे तौर तरीक़े कैसे हो ? हम उस पहाड़ी सलीके की बात करते है जिसमें दो पहाड़ी के बीच होते हुए वार्तालाप को भी मैनें सुना है आवाज़ें बहुत ही मध्यम होती है। इस तरह की पार्श्व से गुजरता व्यक्ति भी तनिक सुन नहीं पाता है। सुनना अच्छा भी लगता है। यह शिष्ट प्रतीत होता है। अतः भीड़ भाड़, समूह में बात करने से बचे।     
मेरी आवाज़ भी थोड़ी तेज ही है लेकिन मैंने अपने इजाद किए गए नए तरीक़े से दो या तीन से ही बात करने का माध्यम ढूंढ निकाला है। अहसास ठीक ही है। फिर अकस्मात दो के मध्य होने वाले विवाद , मतान्तर से उपजे नकारात्मक भावों का मनो मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ने पाता है। फिर वाणी तो संयमित होनी ही चाहिए ,सम्यक साथ के लिए तो प्रयत्न शील होना ही चाहिए । 
व्यक्तिवादी होने की शैली : एक बेहतर विकल्प है। व्यक्तिवादी होने की वज़ह से अधिक से अधिक दो या तीन से ही ,थोड़ा भीड़ से अलग हट कर  मैनें बात करने की एक नयी पृथक सहज शैली खोज निकाली है। इससे बात की निजता के गोपनीयता भी होती है। जिससे आप बात करना चाहते है उसके लिए आप दोनों एक दूसरे के प्रति केंद्रित भी होते है। सबसे महत्वपूर्ण स्वर भी मध्यम होता है। तथा सामने वाला आपकी बात को ध्यान पूर्वक सुनता भी है। शायद यहां शिष्टता भी होती है। अपना कर देखें अच्छा लगेगा।  विवाद हो तो तुरंत वहां से हट कर अपनी तरफ से मौन हो जाए। एक अच्छे, विवेक शील  श्रोता बनने की चेष्टा करें। संदर्भित गाना है। 
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संदर्भित गाना.
फिल्म : सीमा.१९७१.
गाना : जब भी यह दिल उदास होता है. 
सितारे : कबीर वेदी. सिम्मी ग्रेवाल.राकेश रोशन.भारती  
गीत : गुलज़ार. संगीत : शंकर जयकिशन.गायक : रफ़ी. शारदा. 
  

गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. 



 बसंत और फ़लसफ़ा प्यार का. आलेख.: पृष्ठ : ३ /१  
 डॉ.मधुप रमण.

बड़े अच्छे लगते है..ये धरती..ये नदियां..ये रैना और तुम. 

बड़े अच्छे लगते है.... ,ये धरती,ये नदियां, ये रैना और तुम.....

प्रेम एक सम्यक सोच है जो सम्यक कर्म के लिए प्रेरित करता है। यह अनमोल , पवित्र विचारधाराओं का संकलन  है जो हम सभी के अन्तः मन में  यथा समय अनुसार सदैव पनपता रहता है। यथार्थ है कि इसके लिए कोई सीमा नहीं होती। न जाति का, न जन्म का , न उम्र का। यह शाश्वत है। सम्यक कर्मसम्यक सोच तथा सम्यक भावना ही मुझे प्रेम की अनुभूति करवाती है। तत्पश्चात मैं पर हित के लिए प्रेरित होता हूँ। मैं अन्तःमन के वारिधि में उठने वाले मन की वर्चियों के लिए सबसे ज्यादा सम्यक साथ को ही इसके मूल में पाता हूँ। 
इसलिए मैंने सदैव ईश्वर से प्रार्थना की है मुझे इस धरा के सर्वश्रेष्ठ कारक तत्वों के संपर्क में रहने का अवसर प्रदान करों । मैं व्यक्तिवादी हूँ सामाजिक नहीं। सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों से निर्मित समाज की मैं कल्पना करता हूँ। 
मुझे प्यार है प्रकृति से, ईश्वर की बनाई गयी कृति से,मानव की कलाकृति से। मुझे हर तरफ़ अच्छी दिखने वाली खूबसूरत चीजों से प्यार है। बुद्ध के अष्टांगिक सम्यक मार्ग में विश्वास रखने वाला एक साधारण प्राणी हूँ। सम्यक कर्म, सम्यक सोच तथा सम्यक भावना में विश्वास रखता हूँ। प्यार एक सकारात्मक सोच है जहां भावना के भीतर रचनात्मक संसार के लिए आप संवेदनशील होते हैं। यह वो पल हैं जब सब कुछ बड़े अच्छे लगने लगते हैं।
साल १९७६ में  फ़िल्म निर्माता शक्ति सामंत,तथा बंगाली निर्देशक तरुण मजूमदार निर्देशित एक उम्दा फ़िल्म आयी थी बालिका बधू जिसमें सचिन और नवोदिता रजनी शर्मा अभिनय करते दिखे थे। इस फिल्म में  किशोर कुमार के पुत्र अमित कुमार का गाया हुआ का एक गाना बहुत ही लोकप्रिय और कर्णप्रिय हुआ था।
मुझे हर पल याद आता है, वह गाना था। 
तब के बिनाका गीत माला में भी ख़ूब बजता था '...बड़े अच्छे लगते है..,ये धरती ये नदियां ये रैना और तुम...इस गाने की सार्थकता,मैं अपनी एकांत,अनबूझी जिंदगी के फ़लक में खोजता हूँ। कभी भीड़ से घिरे लेकिन अपने अकेलपन की इस तन्हाई में अक़्सर मेरे दिल में ये ख्याल आता है कि मुझे भी बड़े अच्छे लगते है ...
ये धरती जो किंचित मेरी हो,प्रकृति तथा पर्यावरण प्रेमी होने की बजह से शायद कहीं किसी हिमाचल की पहाड़ी स्थित चम्बे दा गांव में हो। या फिर नैनीताल की पहाड़ियों में जहां बादल झूम के चलते हुए जमीन को चूमते हुए चलते हो। 
जहां शोर और संस्कृति में प्रदूषण नाम की चीज न हो। लगाव हो ,सादगी हो ,समर्पण हो,अपने भारतीय संस्कार हो,छल प्रपंच की लेश मात्र जग़ह न हो। जहां सीधे साधे लोग बसते हो। ये नदियां निःसंदेह हिमालय की गोद से निःसृत होती, बल खाती नदियों यथा गंगा ,यमुना,तिस्तारावी,ब्यास ,झेलम ,चिनाब ,तथा सतलुज, दरियां  का पानी भी मन को खूब भाता है। हमने अपने विविध भारतीय लोक संस्कृति को पनपते देखा। जोड़ने वाली इसके पानी में ही प्यार,समर्पण ,जन हित का भाव है, हमारी सहिष्णु , सनातनी देव सभ्यता की झलक हैं,गति है । सदियों से ये नदियां हमारी सभ्यता संस्कृति की पर्याय रहीं है को सींचती आयी है.....
*

संदर्भित गीत.
डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया  
फिल्म : बालिका बधू.
१९७६. 
सितारें : सचिन .रजनी शर्मा.
गाना : बड़े अच्छे लगते हैं 
गीत :  आंनद बख़्शी संगीत : आर. डी. वर्मन.  गायक : अमित कुमार   
गाना सुनने व देखने के लिए दिए गए नीचे लिंक को दवाएं 
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पढ़े गतांक से आगे. १.   
फ़लसफ़ा प्यार का तुम क्या जानो..


प्रेम शब्द ही व्यापक है। संकुचित नहीं किया जा सकता है। सकारात्मक सोच ही प्रेम है और यह बिना बाधा के जन्म लेता है । सोचें , भला कौन रोक सकता है आप को आपकी कल्पना में उड़ान भरने से। कोई तो नहीं न ? 
कौन जान सकता है कि आप इस पल क्या सोच रहें हैं, अगले पल क्या सोचेंगे ? चोरी चोरी तो कुछ भी अपने ह्रदय में  ,कोई भी , किसी के लिए भी ख़्याल जन्म ले सकता हैं न । आप सब के साथ रहते हुए भी कहीं और होते हैं। भीड़ में अकेले होते हैं। कभी हंसते है तो कभी पल भर में कुछ ख़्याल कर उदास हो जाते है। कह सकते है कि आप हद से ज्यादा भावुक है और दिल है कि मानता नहीं। आप किसी के लिए निरंतर कुछ अच्छा करने के लिए विवश हो जाते हैं। यहीं प्रेम है। हा यहीं प्रेम है 
जो हर किसी के मन में मन के भीतर बतौर अनकही कहानी की तरह राज बनकर उसकी मौत के साथ दफ़न हो जाता है। 
अंतर्मन में पनपने वाला एक मधुर एहसास है जो जीवन के अवसाद और निराशा के सूने रेगिस्तान में मरुद्यान की भांति आहिस्ता आहिस्ता विकसित होता है । आपके जीवन से कष्टों का निवारण करता है। आपको ख़ुश रखता है। 
यदि आप लेखक,कवि, फ़िल्मकार और कलाकार है तो आपमें रचनात्मक प्रवृतियां जन्म लेंगी। काल ,उम्र, जीवन की सीमा से परे मेरे एकाकी जीवन में यह अहसास मुझे प्रारंभ से पेंटिंग,कविता,कहानी तथा लेखन ,फोटोग्राफी तथा यात्रा वृतांत से जुड़ी छोटी छोटी फिल्म के निर्माण के लिए प्रेरित करता रहा । इसका सीधा सम्बन्ध अच्छा लगने से ही है जो कभी भी हुआ,किसी के साथ हुआ, किसी समय हुआ। मैं अपनी रचनात्मक प्रवृतियों के लिए तहे दिल से उनलोगों के लिए हार्दिक आभार प्रगट करता हूँ जिनके लिए मैं लिखता रहा हूँ । 
मेरा नाम जोकर : सन १९७० में एक फ़िल्म आयी थी। मेरा नाम जोकर। फ़लसफ़ा प्यार का समझना है तो यह फ़िल्म जरुर देखें। यकीन करें हम में से हर किसी की कहानी कहीं न कहीं इससे मिलती जुलती जरूर दिखेगी। बशर्तें हम इस हकीक़त को चोरी चुपके दिल से स्वीकारें। सच लगेगा प्यार हुआ एक बार ही नहीं ,सौ बार हुआ। क्योंकि इस फ़िल्म की नायिका की फ़लसफ़ा की तरह ' जुदा नहीं होंगे तो फिर मिलेंगे कैसे राजू ? हम मिलते रहे बिछड़ते रहे। हर किसी को कोई कभी न कभी बड़े अच्छे लगते है के मीठे एहसास को दिल में संजोए मिला ही है।
शय से प्यार हैं : 
मैंने यह भली भांति अनुभूत किया हैं कि मुझे संसार की हर ख़ूबसूरत दिखने वाली शय से प्यार हैं। हर नेक काम करने वाले बन्दों से इश्क़ हैं। ये पेड़,ये पौधे,ये पत्तें ,ये चेहरें, ये हवाएं मुझे बेहद अच्छे लगते हैं । कभी कभी तो ऐसा लगता है ये जो मन की सीमा रेखा है उसके परे भी मन दौड़ने लगता है। या फिर कहें समाज की बनाई गयी बंदिशें हैं को मन तोड़ने लगता हैं। क्या आपको ऐसा नहीं लगता है कि उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म,हर रिवाजों को ठुकरा दे ? मन में स्वयं से जानू ना ,समझू ना जैसे कई सवाल भी खड़े होने लगते हैं। क्या ऐसे वक़्त हालात हमारे वश में होते है। नहीं ना ? लेकिन इन भावों को हम इसे संकुचित और संकीर्ण नहीं कह सकते । 
बड़े अच्छे लगते है : हमें इसके बाद सब बड़े अच्छे लगने लगते है। क्योंकि सम्यक दृष्टिकोण,सम्यक कर्म के लिए मन उतावला होने लगता है। प्यार या प्रेम एक अजन्मा ,अमरणशील एहसास है जो दिमाग से नहीं दिल से पैदा होता है। प्यार अनेक भावनाओं का संगम हैं जिनमें अलग विचारों का समावेश होता है। प्रेम स्नेह से लेकर खुशी की ओर धीरे-धीरे अग्रसर करता है। या एक मजबूत आकर्षण और निजी जुड़ाव  की भावना है जो सब कुछ भूल कर उसके साथ जाने को प्रेरित करती है। शब्दों से परे एक दिली एहसास है जिसे दिल से महसूस किया जा सकता है तथा जिसके बिना हमें अपना जीवन निरर्थक लगता है और हम मृतप्राय हो जाते हैं। और यह एहसास तो हर किसी के दिल में १९७०  में आयी राज कपूर की निर्देशित और
अभिनीत फ़िल्म मेरा नाम जोकर के हर दिल अजीज क़िरदार राजू की तरह ही जिन्दा हैं जो ईमानदारी से हर किसी के साथ दिल से जुड़ा भी, परिस्थिति वश जुदा भी हो गया। माया मेम साब की छाया में तो यह बाल मन हर वक़्त खोया रहा। अक्सर अतीत में जाने कहाँ गए वो दिन की याद करता हूँ और भविष्य के ताने बाने में न जाने आने वाला दिन कैसा होगा सोचता रहता हूँ ? क्योंकि क्या हमसबों को लगता नहीं कि आज फिर जीने की तमन्ना अभी भी शेष है ? यह अनकहा सच  है कि हमारे जीवन के फ़साने में अफ़साने की ग़हरी धुंध है जिसमें हम सभी को फ़ना हो जाना है। लेकिन मेरी भी यह अभिलाषा है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मैं सौ बार जनम लूँ। 
इति शुभ. 
डॉ.मधुप रमण. 
कार्टूनिस्ट, यूटूबर,ब्लॉगर,स्वतंत्र कवि - लेखक.

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संदर्भित. गाना 
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संदर्भित. गाना 
फिल्म : उस्तादों के उस्ताद .
१९७६. 
सितारें : प्रदीप कुमार. शकीला .
गाना : सौ बार जनम लेंगे.  
गीत : असद भोपाली. संगीत : रवि. गायक : रफ़ी    
Simply Press the below given link. 

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तुम्हारे लिए. आपबीती : ट्वीट ऑफ़ द डे  पृष्ठ : ३ / ० . 
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एम. एस. मिडिया.  
 

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तुम्हारे लिए. आपबीती : ना में  हां :   है  ना ?  
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ना कहें या न।  एक ही है। कहते है न , जिसने ना में जीना सीख लिया उसने सही में इस दुनियां में हां में रहना सीख लिया। गैरों,या कहें दूसरों से ना सुनने के तो हम आदी हो सकते हैं। हम ज्यादा प्रभावित भी होते नहीं। क्योंकि दिल से नहीं लेते है। लेकिन अपनों से एकदम से सपाट न सुनना अस्थिर कर देता है।आदतन ना की लय जिंदगी के हाँ की लत को झकझोर देती ही हैं। सपनों का यथार्थ धरातल यही है। 
हम सबों को अपनों से जो हां की सुंनने की जो आदत होती है उनके न से परेशानी हो सकती है।
मगर भूले नहीं यहीं जीवन है। आप न के लिए भी तैयार रहें।आप यह मान के चलें कि आपने सही समझते हुए ही प्रयास किया,और कहा। जवाब न का मिला। याद रखें अपने सही सुझाव दिया। नहीं सामने आया। कोई बात नहीं। भूल जाए उस  को। फिर कभी फिर सही। गीता का सार ही समझ लें..शायद जो हुआ वो सही था। 
दोनों की अलग अलग अपेक्षाएं हो सकती हैं। स्वाभाविक हो कि उनकी अपेक्षाएं में आपकी उपेक्षा हो गयी हो। उनका अपना भी कुछ नजरियां हो सकता है। सोच भी अपने हिसाब से ही। दूसरी तरफ भी जा कर सोचें। लेकिन हम दोनों पक्षों की तरफ से सोचें तो हमें शीघ्र हाँ सुनने और जवाबकर्ता की तरफ़ से न कहने की क्या जल्दबाजी नहीं होती है ? होती है न । 
शायद इससे बचा जा सकता है। देखते है ,सोचते है .. जैसे उत्तर की संभावनाओं में भी देर से होने वाले न या कहें हाँ की खूबसूरती ही छिपी हो सकती है। 
क्या संभव जो कब, किस समय उसने जो ' न ' कहा वह आपके हाँ में ही तब्दील हो जाए ...और आप को उनके ना में ही इस जीवन का हाँ ढूंढना है।
हालांकि शीघ्रता में ' ना ' कहने वाले भी कभी सोचते है, पछताते भी है, विचार भी करते है कि कहीं हमने सुनने कहने में जल्दबाजी तो नहीं कर दी। ऐसी परिस्थिति में फैसले बदले भी जा सकते हैं। सही जीने के माने भी यही हैं। 

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तुम्हारे लिए. आपबीती : संवाद*  विहीनता 
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संवाद एक अहम चीज है। इसे सदैव मेरे अपनों के लिए जारी रखें। संवाद विहीनता की स्थिति कभी भी न आने दें।  रोज की बातचीत से संबंधों में  मधुरिमा आती  है। अच्छी बातों के लिए प्रशंसा करना भी संवाद
क़ायम करना ही होता है। याद रहे जिंदगी फलसफा के साथ हक़ीक़त में भी जी जाती  है। यह हमें  सरसता के साथ जोड़ता है। निहायत ही अपनों के लिए संवाद बनाए रखने में कभी भी अहम नहीं रखना चाहिए  कि बात चीत का दायित्व सामने वाले पर ही है । अपनों के लिए सबको कभी कभी अपनी तरफ़ से पहल जारी ही रखनी चाहिए। यदि आपने संबंधों को परख लिया है, द्वैत संबंधों में गहरी सूझ बूझ है तो खूब बातें करें। समय निकालेंकहीं पर्यटन के लिए आप बाहर पहाड़ों या मनभावन जगहों के सैर के लिए जा सकते हैं। इससे जीवन की नीरसता से आप बाहर निकलेंगें  रचनात्मक पहलुओं के लिए किए गए संवाद के निमित  आप व्हाट्स अपफेस बुकब्लॉग पेज के माध्यम से आपस में  डिजिटल सहयोग कर सकते हैं। 
त्योहारों के लिए की गई शुभकामनाएं, जन्म दिन के लिए कहे गए शब्द आपके लिए अमृत वचन है। संकोच न करें बेहद अपनों के लिए तो आप इतना तो कह सकते ही  है न ?
अपने परखे, विश्वसनीय, समझे सुलझे सम्बन्घों के लिए संवाद संचार माध्यम को कहीं से भी बाधित न होने दें चाहे वो फ़ोन कॉल्स हो या फिर  व्हाट्स अप का माध्यमयदि आपने कोई कॉल मिस्ड किया तो कोई बात नहीं समय होने पर प्रत्युत्तर जरूर देना चाहिए.  

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तुम्हारे लिए. आपबीती : सर्वप्रिय * कैसा हो. निज ,मधुर , विश्वस्त और सम्यक बोलने वाला 
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सबसे अच्छा मित्र, प्रिय, दिल से वह है जो आपका सबसे बेहतर  हमराज हो और आप दोनों एक दूसरें में अटूट विश्वास रखते हो। हालांकि अपने जज्वात अपने भीतर ही रखने चाहिए क्योंकि जो भी बातें आप कह देतें हैं वो आपके अधिकार में नहीं रह जाता है। इसलिए सोच समझ कर ही अपनी बातें कहनी चाहिए। वह जो आपके प्रेम और भावनाओं का अनमोल संरक्षक हो,आपकी निजता का बेहद ख़्याल रखता हो आपके मान - सम्मान के लिए पल प्रति पल सचेत हो।आपके - उसके बुरे वक़्त में आपस के हर राज को अपने सीने में दफ़न कर लेता हो। यकीन मानिए आपके लिए वो एक बेहतर इंसान है निश्चित ही वह आपसे बेइंतहां इज्जत और मुहब्बत करता हैं। गलती से अपनी जिंदगी से उसे कभी जाने मत दीजिए। 
वो जो आप के सकारात्मक कार्य के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रसंशा करता हो और आपकी गलतियों को व्यक्तिगत तौर से निहायत ही अपनेपन और एकांत में समझाता हो, सुधार के लिए सुझाव देता हो, समझ लेना वह तुम्हारे हृदय में रहता है। तुम्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ इंसान मिल गया। और तब अपने आप को भाग्यशाली समझें।
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तुम्हारे लिए. आपबीती : सचेतसंयमितसंतुलित, सचेष्ट और संवेदनशील द्वैत सम्बन्ध.
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सबसे पहले अपने नेक और बेहतर रिश्तों पर भरोसा रखें। बेहतर लोगों के साथ जुड़ें। गहराई से देखने मात्र समाज में या कहें आम जीवन में सगे - संबंधियों, अपने पराए के साथ  किए गए आचरण से ही व्यक्ति विशेष का अंदाजा बड़ी सुगमता से लगाया जा सकता है। स्वयं की देखी, कही सुनी,समझी  बातों पर ही केवल यकीन करें। सदैव सच की ख़ोज में रहें। रिश्तें वैसे ही बनाए जो भरोसे के लायक हो सुख दुःख से समभाव में आपका साथ दे सकें । क्रोध को आपसी संबंधों में स्थान न लेने दें। अफ़वाहों पर ध्यान न दें। परस्पर के पसंद नापसंद का ख़्याल रखें। अपने विश्वसनीय स्वयं के अर्जित परखे हुए संबंधों के लिए सदैव, आश्वश्त रहें। शांत, निर्भीक, एकाकी तथा  विवेकशील बनें। अपने द्वैत संबंधों को लेकर हमेशा सचेतसंयमितसंतुलित, सचेष्ट और संवेदनशील रहें आपके सम्बन्ध निर्विवादतः सदैव संरक्षित रहेंगें। ऐसा मेरा मानना है।  

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तुम्हारे लिए. आपबीती : रक्षा : विश्वास, आस्था और आत्मशक्ति . 
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आस्था और विश्वास स्वयं की बात होती है. याद है मैंने नारी शक्ति यथार्थ आपको शक्ति स्वरूपा माना है, कभी कहा भी है। और आपमें अटूट विश्वास रखता हूँ। मैं समझता हूँ मैं केवल आपका शरणार्थी हूँ मात्र। आप मुझे जैसे रखो। आप शक्ति बन कर सदैव साथ भी रहीं। रक्षा का कारण बनी। जब भी मैं संकट में रहा, कुछ चीजें भूल गया, मैंने अपनी त्रि -शक्तियों यथा लक्ष्मी , शक्ति और सरस्वती को याद किया। भूली चीजें मिल गयी और आश्चर्य..मैं रक्षित हुआ..मेरे संकट दूर भी हो गए। विश्वास यहाँ आस्था का है, और शायद संयोग का भी। शायद जब कभी भी अकेले सफ़र के लिए निकलता हूँ तो मेरे रास्तें की सुरक्षा आप त्रि शक्तियां कर रहीं होती हैं ऐसा मेरा मानना है । आप मेरी रक्षाकवच हैं मेरे एकाकीपन की यह मेरी अनुभूति है। 

आगे भी जारी.. 

वीथिका : संपादन शक्ति. शालिनी माधवी रेनू कंचन.  नैनीताल डेस्क. 
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा तनु अनुभूति. शिमला डेस्क. 

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 ढ़ाई अक्षर प्रेम का : यही वो जग़ह है : धारावाहिक विशेषांक : पृष्ठ : ४
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यही वो जग़ह है यही वो फ़िजा है : यही पर कभी आप हमसे मिले थे
आलेख : शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया.दार्जलिंग डेस्क. 
वीथिका : संपादन शक्ति. मीना शालिनी मानसी कंचन.नैनीताल डेस्क. 
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा तनु अनुभूति. शिमला डेस्क. 
संपादन 




शक्ति : मीना शालिनी मानसी कंचन
नैनीताल डेस्क .

डॉ. मधुप रमण. ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३. धारावाहिक. अंक १०  से साभार ली गयी.
मुक्तेश्वर. यात्रा संस्मरण 

यही वो जग़ह है यही वो फ़िजा है : यही पर कभी आप हमसे मिले थे
आ जा रे परदेशी ....मैं तो कब से खड़ी इस पार कि ......फोटो : शक्ति : मीना सिंह
दो कदम तुम भी चलो दो कदम हम भी चलें : पिछले साल २०२४ में गर्मियों के दिन थे। मैदानी इलाके में गर्मियों की छुटियाँ हो चुकी थी। हर साल की भांति मेरी यायावरी जारी थी, सुनिश्चित ही थी । जीवन के इस अंतहीन सफ़र के हमख्याल ,एकाकी हमराही थे पॉवर ग्रीड के सेवानिवृत अधिकारी सुनील कुमार। एक भले सहिष्णु इंसान है, समझौतावादी । अभी तक़ के सबसे अच्छे सहयात्रियों में से एक। क्या आपको नहीं लगता जीवन ही समझौते की पटरी पर दौड़ती है ,दो कदम तुम भी चलो दो कदम हम भी चलें। सम्यक साथ का सफर वर्तमान में कट ही जायेगा।
चल अकेला चल अकेला : सफ़र की शुरुआत तो हम चार को करनी थी, किसी कारणवश मेरे हमनवी शक्ति सम्पादिका तथा सुनीता - वनिता ने साथ छोड़ दिया था। यह तो एक इत्तफाक ही था उन दिनों हमारी प्रधान शक्ति सम्पादिका रेनू शब्द मुखर, जयपुर से अपनी साहित्यिक गतिविधियों को लेकर हल्द्वानी,नैनीताल की यात्रा पर ही थी। हम तो एक से भले दो ही रह गए थे।
फ़िल्म सम्बन्ध के गीत कार प्रदीप का लिखा हुआ यह गाना चल अकेला चल अकेला मेरे पूर्ण दिखने वाले मेरे एकाकी जीवन का संगीत हो चुका है।
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला, गुरू रविंद्र की पंक्तियों को हमें चाहे अनचाहे में गुनगुनाना ही पड़ता हैं !
भूल गया सब कुछ : अपने गॉंव जैसे नैनीताल जाने की उत्कट आकांक्षा सदैव ही रहती है। घर वापसी किसे अच्छी नहीं लगती। कुछ लिखने , ढूंढ़ने का काम शेष ही था।
पुनः, भवाली, कैंची धाम,अल्मोड़ा, रानीखेत, मजखाली,खुरपा ताल, रामगढ़ एवं मुक्तेश्वर की घुमक्कड़ी करनी थी। १९५८ में प्रदर्शित हुई, विमल रॉय निर्मित दिलीप कुमार, बैजंती माला, प्राण अभिनीत पुरानी फिल्म मधुमती, विवाह सहित अन्य फिल्मों के लोकेशंस तलाशने थे। ख़ोज करनी थी और लिखना था। बताते चले मधुमती के निर्माण के सिलसिले में फिल्म के निर्माता निर्देशक विमल रॉय अक्सर मुक्तेश्वर आया करते थे।
मुझे याद है मुक्तेश्वर की यह मेरी तीसरी यात्रा थी,और सच कहें तो यह यात्रा कल्पना और सपनों से भरी साबित हुई। बतौर एक ब्लॉगर, लेखक मैं यह यात्रा संस्मरण कैसे भूला सकता हूँ ?
आ जा रे परदेशी ....मैं तो कब से खड़ी इस पार कि ...अखियाँ थक गयी पंथ निहार... यथार्थ में कोई दूर पहाड़ी के मध्य हम सब की राहें ही तक रहा था। जीवन यात्रा में सम्यक ' जन ' का सम्यक ' साथ ' मिल जाए यह ईश्वर की ही असीम अनुकम्पा ही समझ लें ।
मुक्तेश्वर : उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह एक पहाड़ी क्षेत्र है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और हरियाली के लिए जाना जाता है। मुक्तेश्वर समुद्र तल से लगभग २२८५ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और हिमालय पर्वतमाला के अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। मुक्तेश्वर एक शांत और सुकून भरा स्थान है, जो शहर के शोर-शराबे से दूर प्रकृति के करीब समय बिताने के लिए आदर्श है। खेल गतिविधियाँ में ट्रेकिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, कैंपिंग फोटोग्राफी के लिए मुक्तेश्वर एक पर्यटन के लिए मनोरम जग़ह हैं
कैसे पहुंचे : सड़क मार्ग : मुक्तेश्वर बरेली , मुरादाबाद , नैनीताल, भीमताल और अल्मोड़ा से सड़क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ले दे के सड़कें ही अंत तक साथ देती हैं।
निकटतम रेलवे स्टेशन : हल्द्वानी - काठगोदाम है, जो मुक्तेश्वर से लगभग ६२ किमी दूर है। यहाँ तक़ आने के बाद आपको पहाड़ी रास्तें का ही सफ़र जारी रखना पड़ेगा। यह रेलवे स्टेशन देश भर के विभिन्न शहरों जैसे लखनऊ, कोलकाता और दिल्ली से जुड़ा हुआ है। मुक्तेश्वर पहुँचने के लिए आप काठगोदाम रेलवे स्टेशन से आसानी से टैक्सी या बस ले सकते हैं।
निकटतम हवाई अड्डा : हवाई मार्ग से आने वालों के लिए पंतनगर निकटतम हवाई अड्डा है, जो लगभग ९४ किमी दूर है।

संदर्भित यात्रा गीत.
नैनीताल के परिदृश्य में फिल्माई गई
फिल्म : मधुमती.१९५८.


फिल्म : मधुमती.
१९५८.
गाना : आ जा रे परदेशी.
सितारे : दिलीप कुमार बैजंती माला प्राण
गीत : शैलेन्द्र. संगीत : सलिल चौधरी. गायिका ; लता
गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं.

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प्रारंभ : सुहाना सफ़र और ये मौसम ...
गतांक से आगे : १.
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अभिनेता दिलीप कुमार, 
नैनीताल और यह गाना : सुहाना सफ़र और ये मौसम.

चलते चलते मिल गया था कोई : बरेली हम समय पर पहुंच चुके थे। अब लखनऊ काठगोदाम मेल पकड़नी थी। गाड़ी आने में अभी तनिक देर थी। अत्यंत भद्र रहे सहयात्री सुनील जी के सलाह पर हम स्टेशन के ही वेटिंग हॉल में आराम फरमाने चले गए।  स्टेशन पर ही मिलते ,बोलने के क्रम में बरेली ,काश गंज के एकदम से अज़नबी शॉर्ट रील मेकर फैजान मिल गए।  उन्होंने ही मुझे पहली दफ़ा इंस्टा ग्राम पर शॉर्ट रील बनाना सिखाया , इसके लिए मैं उनका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। और मैं मानता हूँ जिंदगी के हर फन में कुछ न कुछ सीखने के लिए हमें किसी न किसी का शागिर्द बनना ही चाहिए। 
लखनऊ काठगोदाम मेल सही समय पर आई। और हम हल्द्वानी काठगोदाम सुबह सबेरे नौ बजे तक पहुंच चुके थे। थोड़ी देर फोटो शूट करने के बाद हमने स्टेशन से बाहर ट्रैवलर जीप  ले ली थी। तब कोई नैनीताल जाने का यही किराया १०० रूपये देने पड़े थे। यह हमारी नैनीताल - भुवाली - रामगढ़ की चौथी या पांचवी यात्रा थी। सच कहें तो नैनीताल हमारे लिए कोई गांव जैसा ही है। 
प्रकृति ; पहाड़ : प्रेम : जोली कोट से ही चढ़ाई शुरू हो जाती है । पहाडियां भी। मुझे याद है हल्द्वानी मुख्य शहर से थोड़ा आगे एक रास्ता कटता हुआ भीमताल भुवाली होते हुए नैनीताल जाता है । थोड़ा लम्बा पड़ता है। जोली कोट वाला रास्ता सक्षिप्त पड़ता है,इसलिए अधिकतर लोग जोली कोट वाले रास्तें का प्रयोग ज्यादा करते है । हालांकि भीमताल के रास्ते गुजरते , ठहरते हुए आप समय और ख़र्च दोनों बचा सकते हैं। 
प्रकृति ; पहाड़ : प्रेम और अध्यात्म मेरे जीवन का मूल मंत्र हो चुका हैं। प्रेम से अध्यात्म की तलाश मैं बैरागी की भांति हिमालय की श्रृंखलाओं में ही करता हूँ। सुख शांति, सम्यक साथ की तलाश में , बंधन रहित जीने की अभिलाषा ने मुझे आवारा बना दिया है। पहाड़ ,बादल धुंध जैसे मेरी जिंदगी का फ़साना बन गए हैं। जैसे शिव कैलाश मानसरोवर की तरफ अग्रसर होते हैं  किसी अनजानी सुख ,शांति और आत्मिक शक्ति की तलाश में...... !
नैनीताल ,कुमायूं की पहाड़ियां  और यह गाना : सुहाना सफ़र और ये मौसम ....एकाकी रहना , एकाकी फिल्में देखना ,समय व्यतीत करना मुझे बचपन से अच्छा लगता है। शायद यह मेरा शगल है मेरी आदत भी । ना जाने मैंने कितनी फिल्में अकेले ही देखी है। प्रकृति ,खूबसूरती , एकाकीपन से मेरा जन्मों का नाता रहा है। न जाने क्यों पहाड़ , झील ,वादियां, धुंध, चीड़ ,देवदार   की कल्पनाशीलता मेरे जीवनचित्र  के कैनवास के विषय तथा उनमें भरे जाने वाले शोख़ व चटकीले रंग रहें है। यह फ़िल्म पुनर्जन्म पर आधारित थी इसलिए मुझे यह फ़िल्म देखनी थी । काफ़ी अच्छी लगी थी। क्योंकि मैं भी सौ बार जन्म लेने में विश्वास करता हूं। ड्राइवर से मैंने मधुमती का गाना सुहाना सफ़र और ये मौसम .... बजाने को कहा ....
सुहाना सफ़र और ये मौसम .... मेरा यह बहुत ही पसंदीदा  गाना रहा हैं  क्योंकि यह घूमने के दरमियाँ गाया गया है। दिलक़श खूबसूरत अंदाज में फिल्माया गया यह एक गाना है । इस गाने में  दिलीप कुमार  एक मुसाफ़िर की तरह पहाड़ी वादियों में देवदारों चीड़ के मध्य गाना गाते हुए नज़र आते है। उनकी आवाज़ पहाड़ियों से टकरा कर प्रतिध्वनित होती रहती है। वह बल खाती नदियों , चीड़ और देवदारों से भरे पहाड़ों के मध्य गाने के अंतरा को पूरा करते है। 
पता नहीं मुझे बार बार ऐसा क्यों लगता था कि ये पहाड़ी वादियां नैनीताल के आस पास की होनी चाहिए थी । और यह मेरे दिल की कही थी मेरे दिल में 
कभी कभी यह ख्याल रह रह न जाने क्यों आ रहा था। क्योंकि दृश्य ही ऐसा कुछ मनभावन था, देखा हुआ, समझा हुआ । बचपन से ही न जाने क्यों नैनीताल और कुमायूं की पहाड़ियां से मेरी आसक्ति इतनी क्यों है ? मैं नैनीताल तीन चार दफ़ा आ चुका हूँ। मैंने बड़ी बारीकी से नैनीताल की पहाड़ियां देखी है। भ्रमण किया है। मुक्तेश्वर का भ्रमण किया है। देखी गयी सभी जगहें याद आने लगी थी। 
दिल करे रुक जा : है ये कहीं पर यहीं : क्या देखें ? 
रामगढ़  : नैनीताल मुक्तेश्वर मार्ग में ही भवाली से १४ किलोमीटर दूर १७८९ मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है रामगढ़ जो फलों के बागीचे के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसने अपनी खूबसूरती से कभी प्रकृति प्रेमी कवि गुरु  रविंद्रनाथ तथा महादेवी वर्मा को प्रभावित किया था। 
भगवान शिव मुक्तेश्वर मंदिर : मुझे याद है यहाँ के मुख्य आकर्षण में : हमने कई बार देख रखा था। वह था मुक्तेश्वर मंदिर : यह ३५० साल पुराना भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। मंदिर तक पहुँचने के लिए खड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है, लेकिन यहां से हिमालय की चोटियों का मनोरम दृश्य देखने को मिलता है।
यहां पहाड़ी के शीर्ष पर भगवान शिव के नाम पर बने मंदिर से ही मुक्तेश्वर शहर का नाम मिला। कहते है यहां भोले से मन की मांगी गई मुरादें  पूरी होती है।  शिव के  मंदिर  से नयनाभिराम प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन किया जा सकता है। 
चौली की जाली : यह एक चट्टानी संरचना है, जो एडवेंचर प्रेमियों और फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए आदर्श स्थान है। यहां से घाटियों और पहाड़ों का दृश्य बेहद आकर्षक होता है। यहाँ प्रेम से जुड़ी कुछ गाथाएं भी हैं। पुनः देखना था
जंगल सफारी और ट्रेकिंग : क्षेत्र के घने जंगलों में ट्रेकिंग और वन्यजीव देखने का मौका मिलता है।
तेंदुए, भालू, और विभिन्न प्रकार के पक्षी यहां पाए जाते हैं।
एप्पल गार्डन और स्थानीय उत्पाद : मुक्तेश्वर अपने सेब के बागानों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ स्थानीय जैविक उत्पाद जैसे शहद और जड़ी-बूटियाँ भी मिलती हैं।

सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीन
संदर्भित यात्रा गीत.
गतांक से आगे : १.
नैनीताल के परिदृश्य में फिल्माई गई


फिल्म : मधुमती.१९५८.
गाना : सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीन....
सितारे : दिलीप कुमार. बैजंती माला. प्राण.
गीत : शैलेन्द्र. संगीत : सलिल चौधरी. गायिका ; लता
गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं.

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डॉ. मधुप रमण. ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३. धारावाहिक. अंक १०  से साभार ली गयी.
यात्रा संस्मरण : गतांक से आगे : २.
भवाली : घोडा खाल : फिल्म मधुमती के सेट्स  : एक दिखती झील , वादियाँ मेरा दामन
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आ जा रे मैं तो कब से खड़ी इस पार अँखियाँ पंथ निहार : कोलाज : डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया अनुभूति. 
 
आर्य समाज मंदिर से उस दिन हम तीन सुबह आठ बजे निकल गये थे। भीड़ नहीं थी। आर्य समाज मंदिर में ठहरे  हमारे साथ लखनऊ के छायाकार कमल भी साथ थे। नैनीताल एक ख़ोज में हम फिर से भुवाली, मुक्तेश्वर जाने वाले थे। कुछेक मिनटों में ही हम मल्लीताल से तल्ली ताल पहुंच गए थे। टैक्सी ली और ५० रूपये किराया दे कर एकाध घंटे में ही भुवाली पहुंच गए थे ।
भवाली : भवाली समुद्र तल से १७०६ मीटर की ऊंचाई पर तथा नैनीताल से ११ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । चूँकि नैनीताल में फ्लैट्स बनने बंद हो गए हैं तब से भवाली का महत्त्व बढ़ गया है। हमें रिहायशी मकान भी देखना था। हम दोनों अपने लिए एक सस्ते रहने के लायक आशियाने की तलाश कर रहें थे।
पर्वतीय भवन निर्माणी संस्थानों में प्रसिद्ध माउंटेन एक्सल्टेर, शिखर हाइट्स के भी हमने कई फ्लैट्स देखें। भवाली में धीरे धीरे कंक्रीट के जंगल बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा हैं।
स्थानीय अभय सिंह ने प्राइवेट फ्लैट्स दिखलाने के क्रम में ही पूरी भवाली दिखा दी थी। हमें कुछ विचारधीन फ्लैट्स पसंद भी आए थे। दाम भी ठीक ही थे। हम उनके लिए हम आभार प्रगट करते हैं।
यह स्थान नैनीताल को नजदीकी पर्यटक स्थलों यथा कैंची धाम ,अल्मोड़ा, रानीखेत ,भीम ताल , घोड़ा खाल, से जोड़ने हेतु एक जंक्शन का कार्य करता है। अतः सड़क मार्ग के लिए यह एक महत्व पूर्ण पहाड़ी कस्वां हैं। मुझे भुवाली सुविधा जनक लगा। यहाँ होटल्स आदि सब कुछ है।
भवाली टी.वी. सैनेटोरियम :भवाली अपनी प्राकृतिक सुंदरता एवं पहाडी फल मण्डी के रूप में जाना जाता है । भवाली की पहचान यहॉ पर स्थित ब्रिटिश कालीन टी.वी. सैनेटोरियम से भी होती है। यह अस्पताल सन् १९१२ में खोला गया था । यहाँ कमला नेहरू इलाज के लिए लाई गयी थी।
हमारे सहयात्री सुनील बहुत ज्यादा उत्साहित थे। उनकी नैनीताल की पहली यात्रा थी। हम जब भी भुवाली अल्मोड़ा पहुंचते हैं तो हम १९५७ - ५८ के आस पास मधुमती के सेट्स याद आने लगता हैं।
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मैं, मेरे हमसफ़र, घोड़ाखाल का मंदिर, ख़ूबसूरत नज़ारे : मधुमती की तलाश. छाया चित्र : शक्ति

घोड़ाखाल ,रामगढ़ ,मुक्तेश्वर की गलियों  की हमने खाक़ छानने  की भी सोची क्योंकि इन जगहों की चर्चा फिल्म में हुई थी और हमें जग़ह देखनी थी। स्थानीय लोगों से खूब बातें की। उनसे जितनी हो सकी जानकारियाँ इकट्ठी की। सेट्स देखना था। सभ्यता समझनी थी ,और मंदिर आदि की भी तलाश करनी थी। सच कहें तो हमने इस बार पूरी भवाली ही छान डाली। 
घोड़ाखाल : मधुमती का सेट्स : भवाली से पांच किलोमीटर दूर एक छोटा सा सुन्दर पहाड़ी गांव है जो उत्तराखंड में न्यायी देवता गोलू देवता के लिए जाना जाता है । महिलाएं ठीक वैसी वेशभूषा पहाड़ी घाघरा-पिछौड़ा व गले में हंसुली, पहनी हुई  दिखी जैसे फिल्म मधुमती में  मधुमती दिखी थी। 
पता नहीं क्यों नीचे घाटियों में देखने पर सभी जग़ह फिल्म दिलीप कुमार,बैजंती माला अभिनीत मधुमती के ही लोकेशंस और सेट्स नज़र आ रहे थे लेकिन वह पूजा स्थल नहीं दिखा जहां वैजयंती माला या मधुमती अपनी मन्नत मांगने आई थी ।  जहां उनके चढ़ाए गए फूल जमीन पर गिर गए थे। 
घोड़ाखाल का प्रसिद्ध सैनिक स्कूल : देखने के क्रम में  घोड़ाखाल का प्रसिद्ध सैनिक स्कूल भी मिल गया था, जिसकी मैंने कई फोटो भी शूट्स किए थे। 
अभय जी बतला रहें थे यहाँ पर भी कुछ शूटिंग्स हुई थी। मैंने स्वयं भी देखा था कि घोड़ा  खाल से मधुमती की चर्चित किसी झील शायद भीम ताल ही यहाँ से स्पष्ट दिख रही थी। 
फिल्म मधुमती में किसी तूफानी रात में आनंद ( दिलीप कुमार ) वीराने हवेली में रुके थे। अपने पूर्व जन्म की याद करते हुए उन्हें किसी झील की स्मृति होती है। 
स्थानीय लोगों ने बतलाया था कि यह हवेली आज  घोड़ा खाल अवस्थित सैनिक स्कूल ही है जहाँ से कोई एक झील निश्चित ही भीम ताल ही दिखती है। 
घोड़ाखाल :  गोलू देवता के मंदिर थोड़े समय के लिए अभय जी से मैंने कहा ज़रा दर्शन कर आता हूँ। तेज़ी से मैंने सीढियाँ चढ़नी शुरू कर दी थी। मंदिर की ख़ोज हुई तो यहां हमें गोलू देवता के मंदिर ही मिले जहाँ घंटियों ही घंटियां बंधी थी। शायद मनोकामना पूर्ण होने के लिए लोगों ने बांधी थी। इसलिए इसे घंटियों के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।...... 
यह मंदिर, भवाली से पांच किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर, सैनिक स्कूल घोड़ाखाल के ऊपर एक पहाड़ी पर बना है, इस मंदिर में हज़ारों घंटियां हैं। इस मंदिर में सफ़ेद घोड़े पर पगड़ी पहने गोलू देवता की मूर्ति है। इस मंदिर में लोग अपनी मनोकामनाएं कागज़ पर लिखकर टांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर लोग घंटियां चढ़ाते हैं। इस मंदिर में नवरात्रों के दौरान काफ़ी भीड़ रहती है...


डॉ. मधुप रमण.
लेखक, फ़िल्म समीक्षक. 
नैनीताल डेस्क. 
स्तंभ सज्जा : संपादन : डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया. 
स्तंभ सज्जा : शक्ति. सीमा अनुभूति मीना सिंह. 
क्रमशः जारी.


*

स्वर्णिका ज्वेलर्स. करुणाबाग.सोहसराय.बिहार शरीफ़.समर्थित.


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मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का :  विचार धारा : पृष्ठ : ५ .
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शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया.दार्जलिंग डेस्क. 

शक्ति नैना देवी डेस्क 
नैनीताल. प्रादुर्भाव वर्ष : १९७६. 
संस्थापना वर्ष : १९९८. महीना : जुलाई. दिवस : ४. 
एम. एस. मीडिया. प्रस्तुति. 
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मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : दिव्य शब्द चित्र  : विचार : : पृष्ठ : ५ /०.
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शक्ति. डॉ.सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया.दार्जलिंग डेस्क. 
*
महाशक्ति राधिका कृष्ण :  जीवन दर्शन.
@M.S.Media.
*
वो सब देख रहा है ,न

*
कोई हमारा बुरा करे ये उसका कर्म है
लेकिन हम किसी का बुरा न करें ये हमारा धर्म है
*
बेजान पतंग भी उड़ सकती है. 


शर्त बस इतनी सी है कि डोर सही हाथों में होनी चाहिए 


सब सुन रहा है न ?



*
खुशियां

खुशियां ही वो चीज हैं जो दुनियाँ के किसी भी ' बाज़ार ' में
नहीं सिर्फ़ ' मन ' के भीतर मिलती हैं
*
©️®️शक्ति. डॉ.सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया

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मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : लघु फिल्में : : विचार : पृष्ठ : ५ / १ .
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विषय 
प्रेम : प्रकृति : पहाड़ : उत्तम पुरुष : अध्यात्म : सन्यास : पुनः निर्माण : पुनर्जन्म  

*
शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया.दार्जलिंग डेस्क.


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मुझे भी कुछ कहना है : प्रेम : लघु फिल्में : साभार
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साभार : ख़ुशी ; उत्तराखंड : शॉर्ट रील :
*
कल रहे न रहें मौसम ये प्यार का
कल रुके या न रुके डोला बहार का
चार पल मिले जो आज प्यार में गुजार दे
खिलते हैं गुल यहाँ खिल के बिखरने को
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कोई भी हो ,मेरा है तू , ए मेरे हमदम
गम मिले खुशी मिले कही रहें कैसे रहें बिछड़ेंगे न हम


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दिल क्या करें : सुन्दर साथ हो मंजिलों की कमी तो नहीं.


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मुझे भी कुछ कहना है : प्रकृति : पहाड़ :लघु फिल्में 
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 चलते चलते : प्रिया : दार्जलिंग : लोकेशंस : नैनीताल. 

 : तुम मिल सको तो मिल लेना 
तुम कुछ कह सको तो कह  देना 
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कुछ कहो तो कहा नहीं जाता 
दर्दे दिल का सहा नहीं जाता. 
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मुझे भी कुछ कहना है : उत्तम पुरुष : लघु फिल्में
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उसने कहा था : फिल्म : कभी कभी : 
अमिताभ : राखी : कितनी अच्छी नज़्म लिखी है. 


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मुझे भी कुछ कहना है : अध्यात्म लघु फिल्में
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साभार : फिल्म विवाह : लोकेशंस :
घोड़ा खाल. मंदिर नैनीताल.
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शॉर्ट रील : मिलेंगे होंगे राधा कृष्ण यहीं कही किसी वन में
प्रेम माधुरी उनकी वसी है पवन में
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राधिका कृष्ण दर्शन.दिव्य दृश्यम : लघु फिल्म. 

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 श्री कृष्ण की आठ प्रिय जीवन दायिनी शक्तियां. 
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मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : दिव्य शब्द विचार : पृष्ठ : ५ / २.
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विचार शक्ति. प्रस्तुति : डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया.दार्जलिंग डेस्क. 
 शब्द विचार : संपादन : डॉ नूतन भारती दया बीना जोशी.नैनीताल डेस्क.  


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ढ़ाई अक्षर प्रेम का : दिव्य शब्द विचार : 
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कोई जिद्दी था जिद छोड़ कर चला गया 

 
अच्छे लोग. को भूल जाना नामुमक़िन.
@  डॉ. सुनीता शक्ति* प्रिया 


दिव्य शब्द विचार शक्ति : सोचो मत.


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दिव्य शब्द विचार शक्ति : सच्चाई का रास्ता.
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उसने कहा था : शॉर्ट रील : संदेशें आते हैं : चलते चलते : पृष्ठ : ८. 
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संपादन शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया.दार्जलिंग डेस्क.
संकलन :शक्ति.मीना शबनम अनुभूति. नैनीताल डेस्क.  
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पूजा : शॉर्ट रील : बेहद खास है 


उसने कहा था : शॉर्ट रील :
मैं चलता हूँ मुझे चेहरा तुम्हारा याद रहता है : अदीम हाशमी. 
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मेरी अनुभूति : मेरी शक्ति : दिल पुकारे : आ रे आ रे : कोलाज : पृष्ठ : ९  
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संपादन.
 शक्ति : मीना सीमा 
शबनम शक्ति शालिनी प्रिया रश्मि अनुभूति . 


किसी राह में किसी मोड़ पर कहीं चल न देना तू छोड़ कर मेरे हमसफ़र : डॉ.सुनीता मधुप शक्ति प्रिया .
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Comments

  1. जिन्दगी के फलसफे को अल्फाजों में बेहतरीन तरीके से ढालने के लिए
    हार्दिक बधाईयां।
    लेखनी की धार रहे बरकरार।
    शुभकामनाएं।
    धन्यवाद।
    अरुण कुमार सिन्हा,
    रसिकपुर,दुमका, झारखण्ड।

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  2. Amit Kumar ...I read this blog finally I realize it ...it's good for society

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