Sampadkiye : Shakti : Alekh : Dhai Akshar Prem Ka : Radhika Krishna : Dr. Sunita Madhup Shakti* Priya.
Page 0.
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Shakti : Cover Page
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सम्पादकीय : शक्ति आलेख : गद्य पद्य : दृश्यम : लघु फिल्म : विचार संग्रह.
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व्यंग्य चित्रकार.साहित्यकार.विचारक.
यू टूबर.ब्लॉगर.
नैनीताल. दार्जलिंग.
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आवरण पृष्ठ : ० विदिशा.
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विषय सूची : पृष्ठ : १.
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आवरण पृष्ठ : ०
विषय सूची : पृष्ठ : ०
सुबह और शाम : पृष्ठ : ०
सम्पादकीय : पृष्ठ : १.
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.काव्यांजलि : पद्य संग्रह : राधा कृष्ण : पृष्ठ : २
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.वीथिका : राधा कृष्ण : पृष्ठ : ३
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : धारावाहिक : पृष्ठ : ४
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : विचार धारा : पृष्ठ : ५ .
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : दृश्यम : पृष्ठ : ६ .
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : लघु फिल्में : पृष्ठ : ७.
मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : ८.
उसने कहा था : शॉर्ट रील : संदेशें आते हैं : पृष्ठ : ९.
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एम. एस. मीडिया. प्रस्तुति.
महाशक्ति * मीडिया प्रस्तुति.
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शक्ति नैना देवी डेस्क
नैनीताल. प्रादुर्भाव वर्ष : १९७६.
संस्थापना वर्ष : १९९८. महीना : जुलाई. दिवस :४.
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सुबह और शाम : मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ : ०
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ढ़ाई अक्षर प्रेम का : दिव्य शब्द चित्र : विचार : : पृष्ठ : ५ /०.
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शक्ति. डॉ.सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया.दार्जलिंग डेस्क.
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महाशक्ति राधिका कृष्ण : जीवन दर्शन.
@M.S.Media.
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वो सब देख रहा है ,न
लेकिन हम किसी का बुरा न करें ये हमारा धर्म है
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मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : ८ .
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मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का : लघु फिल्में :
प्यार किया तेरी यादों से बिन फेरे हम तेरे
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महाशक्ति * मीडिया प्रस्तुति.
सम्पादकीय : सम्पादकीय : पृष्ठ : १
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सम्पादकीय शक्ति * आलेख
राधिका कृष्ण. GIF
ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
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पृष्ठ : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
*शक्ति.सम्पादिका *.
शक्ति. डॉ. नूतन शालिनी नीलम रेनू.
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पृष्ठ सज्जा : पृष्ठ : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
*शक्ति.सम्पादिका *.
शक्ति.अनुभूति सुष्मिता मंजिता सीमा
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पृष्ठ सज्जा : पृष्ठ : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
कार्यकारी सम्पादिका *.
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पृष्ठ सज्जा :
पृष्ठ : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
पृष्ठ संरक्षण *
शक्ति. रश्मि श्रीवास्तवा.आई पी एस.
श्री चिरंजीव नाथ सिन्हा.आई पी एस.
श्री विशाल कुमार.सिविल जज.
शक्ति. सीमा कुमारी.डिप्टी चीफ लीगल एड डिफेंस काउंसिल.
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पृष्ठ सज्जा :
पृष्ठ : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.
पृष्ठ निर्माण * सहयोग.
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मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.काव्यांजलि : पद्य संग्रह : राधा कृष्ण : पृष्ठ : २.
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शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया .
संपादन
कविता : संपादन शक्ति. शालिनी माधवी रेनू मीना. नैनीताल डेस्क.
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा तनु सुष्मिता.
शक्ति.
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भाविकाएँ
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श्री राधिका कृष्ण सदा सहायते
*
भाविकाएँ : भक्ति
*
जीवन भर साथ निभाने की बात की है
अगर तो
सम्यक वाणी ,आस्था, प्रेम ,सहिष्णुता
की कभी भी आस नहीं छोड़ते,
श्री हरि : राम : कृष्ण ही शिव है
मेरी जीवन अनंत शक्ति हैं
थामा है अगर हाथ तो कभी साथ नहीं छोड़ते
त्रि - शक्ति मय हैं हम
मत भूलिए संकट की वेला में ही होते
त्रि - शक्ति पूर्ण
श्री राधिकाकृष्ण सदा सहायते.
@ डॉ सुनीता मधुप शक्ति प्रिया
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लघु कविता. प्रेम के सात रंग. पृष्ठ : २.
शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया .
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अति लघु कवितायें.
पहली.
समर्पण.
तुम्हारी,
लरजती आँखों की
उठती गिरती पलकों में
हमेशा मैंने केवल
' हां ' ही देखा.
' न ' कहाँ था ?
बोलो न ?
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दूसरी लघु कविता.
साहस.
डॉ. मधुप.
फोटो : साभार
घर छोड़ा,
द्वार छोड़ा,
नाता तोड़ा,
आप से जोड़ा.
लो रंग गयी तेरे श्याम रंग में,
बनकर मीरा बावली हो गयी मैं,
लो मैं तेरे वास्तें,
सब छोड़ के
आ गयी मैं.
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तीसरी लघु कविता.
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ख़ामोशी.
डॉ. मधुप.
ज्यादा कुछ कहा नहीं
कुछ ज़्यादा सुना नहीं,
हमने पढ़ी सिर्फ़,
नैनों की भाषा,
और क़िताबें दिल की,
नैनों की भाषा.
जैसे पूरे हो गए,
सारे,अनकहें अरमान,
धरा पर ही, जैसे
झुक गया हो आसमान.
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चौथी लघु कविता.
साथ.
साथ.
रहें वो हमारे साथ
ता ज़िन्दगी
हमसफ़र बन कर,
फिर भी शिकायत रहीं
ताउम्र उनको,
ता ज़िन्दगी
हमसफ़र बन कर,
फिर भी शिकायत रहीं
ताउम्र उनको,
कि हम कहाँ उनके साथ थे ?
अब तुम ही बतलाओ,न ?
हम कहाँ थे
और किसके साथ थे ?
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पांचवी लघु कविता.
डॉ. मधुप.
ख़्याल.
परवाह इतनी
तुम्हारी
कि खुद का वजूद
तुम्हारी
कि खुद का वजूद
भी याद नहीं
हर पल,
बस एक ही,
तुम्हारा ख़्याल
तुम्हारे लिए,
कि तुम कहीं भी रहो
ख़ुश रहो.
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डॉ. मधुप.
छठवीं लघु कविता.
समझ.
स्वर हमारे,
शब्द तुम्हारे,
दृष्टि हमारी
दृश्य तुम्हारे,
वहीं सुनना है,हमें
जो सुनाओ तुम,
जीत आपकी हो,
हमेशा.
देखो न !
हम तो
तुम्हारे लिए ही ,
सिर्फ़ तुमसे
हम ही हारे.
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सातवीं लघु कविता.
विश्वास.
दिन के उजाले में,
देखना,
वो तुम्हारा ध्रुब तारा
दिखेगा नहीं.
घबड़ाना नहीं,
जब कभी शाम होगी,
फिर रात भी होगी,
तुम्हारे मन के क्षितिज में,
वो तेरे आस का
तारा
सितारा
मिलेगा वहीं,
स्थिर,उसी दिशा में,
चमकता हुआ,
दिशा बतलाता हुआ,
था, है और रहेगा,
सिर्फ तुम्हारे लिए.
.
पुनः सम्पादित
प्रिया : दार्जलिंग.
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कविता : संपादन शक्ति. शालिनी माधवी रेनू मीना. नैनीताल डेस्क.
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा तनु सुष्मिता. शिमला डेस्क.
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मुझे भी कुछ कहना है : ढ़ाई अक्षर प्रेम का.वीथिका : पृष्ठ : ३.
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आलेख : शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप शक्ति* प्रिया.दार्जलिंग डेस्क.
वीथिका : संपादन शक्ति. शालिनी माधवी रेनू कंचन. नैनीताल डेस्क.
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा तनु अनुभूति. शिमला डेस्क.
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ढ़ाई अक्षर प्रेम का.वीथिका : पृष्ठ : ३.
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जीने की राह : आपबीती : से साभार : जब भी यह दिल उदास होता है. शोर . पेज : ३ / २.
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डॉ. मधुप.
आज कल शोर-गुल के प्रति बड़ी संवेदनशीलता हो गयी है। चिर शांति चाहता हूँ। अपने देश और हिमालय की गोद में बसे गांव याद आते है। शहर की भीड़ -भाड़, हॉर्न बजाती गाड़ियों का आना -जाना, तेज आवाज़ें और इससे जनित शोर से मुझे उम्र के इस पड़ाव में अब परेशानी होने लगी है। यह भी एक प्रकार का प्रदूषण ही है। मुझे मनोज कुमार की १९७२ में निर्मित फिल्म शोर की याद आने लगती है जिसमें शोर की बजह से नायक के बच्चें की श्रवण शक्ति चली जाती है ।
मुझे लगता है तेज बोलना और उसे सुनना भी परेशानी को ही जन्म ही देता है। न जाने क्यों ऐसा लगता है कुछ आवाज़ तीखी हो कर हम तक पहुंच रही हैं। आवाजें कुछ तेज़ होती हुई कानों तक पहुँचती है,कोई तेज से बोल रहा होता है तो बड़ी घड़बड़ाहट सी होती है। अनुभूति ठीक नहीं होती। हालात ऐसे है कि बात करने से बचने लगा हूँ। बमुश्किल किसी से बातें हो पाती है।
वार्तालाप की शैली : हमारी शैली क्या हो ? हमारे तौर तरीक़े कैसे हो ? हम उस पहाड़ी सलीके की बात करते है जिसमें दो पहाड़ी के बीच होते हुए वार्तालाप को भी मैनें सुना है आवाज़ें बहुत ही मध्यम होती है। इस तरह की पार्श्व से गुजरता व्यक्ति भी तनिक सुन नहीं पाता है। सुनना अच्छा भी लगता है। यह शिष्ट प्रतीत होता है। अतः भीड़ - भाड़, समूह में बात करने से बचे।
मेरी आवाज़ भी थोड़ी तेज ही है लेकिन मैंने अपने इजाद किए गए नए तरीक़े से दो या तीन से ही बात करने का माध्यम ढूंढ निकाला है। अहसास ठीक ही है। फिर अकस्मात दो के मध्य होने वाले विवाद , मतान्तर से उपजे नकारात्मक भावों का मनो मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ने पाता है। फिर वाणी तो संयमित होनी ही चाहिए ,सम्यक साथ के लिए तो प्रयत्न शील होना ही चाहिए ।
व्यक्तिवादी होने की शैली : एक बेहतर विकल्प है। व्यक्तिवादी होने की वज़ह से अधिक से अधिक दो या तीन से ही ,थोड़ा भीड़ से अलग हट कर मैनें बात करने की एक नयी पृथक सहज शैली खोज निकाली है। इससे बात की निजता के गोपनीयता भी होती है। जिससे आप बात करना चाहते है उसके लिए आप दोनों एक दूसरे के प्रति केंद्रित भी होते है। सबसे महत्वपूर्ण स्वर भी मध्यम होता है। तथा सामने वाला आपकी बात को ध्यान पूर्वक सुनता भी है। शायद यहां शिष्टता भी होती है। अपना कर देखें अच्छा लगेगा। विवाद हो तो तुरंत वहां से हट कर अपनी तरफ से मौन हो जाए। एक अच्छे, विवेक शील श्रोता बनने की चेष्टा करें। संदर्भित गाना है।
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संदर्भित गाना.
फिल्म : सीमा.१९७१.
गाना : जब भी यह दिल उदास होता है.
सितारे : कबीर वेदी. सिम्मी ग्रेवाल.राकेश रोशन.भारती
गीत : गुलज़ार. संगीत : शंकर जयकिशन.गायक : रफ़ी. शारदा.
गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
बसंत और फ़लसफ़ा प्यार का. आलेख.: पृष्ठ : ३ /१
डॉ.मधुप रमण.
बड़े अच्छे लगते है..ये धरती..ये नदियां..ये रैना और तुम.
प्रेम एक सम्यक सोच है जो सम्यक कर्म के लिए प्रेरित करता है। यह अनमोल , पवित्र विचारधाराओं का संकलन है जो हम सभी के अन्तः मन में यथा समय अनुसार सदैव पनपता रहता है। यथार्थ है कि इसके लिए कोई सीमा नहीं होती। न जाति का, न जन्म का , न उम्र का। यह शाश्वत है। सम्यक कर्म, सम्यक सोच तथा सम्यक भावना ही मुझे प्रेम की अनुभूति करवाती है। तत्पश्चात मैं पर हित के लिए प्रेरित होता हूँ। मैं अन्तःमन के वारिधि में उठने वाले मन की वर्चियों के लिए सबसे ज्यादा सम्यक साथ को ही इसके मूल में पाता हूँ।
इसलिए मैंने सदैव ईश्वर से प्रार्थना की है मुझे इस धरा के सर्वश्रेष्ठ कारक तत्वों के संपर्क में रहने का अवसर प्रदान करों । मैं व्यक्तिवादी हूँ सामाजिक नहीं। सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों से निर्मित समाज की मैं कल्पना करता हूँ।
मुझे प्यार है प्रकृति से, ईश्वर की बनाई गयी कृति से,मानव की कलाकृति से। मुझे हर तरफ़ अच्छी दिखने वाली खूबसूरत चीजों से प्यार है। बुद्ध के अष्टांगिक सम्यक मार्ग में विश्वास रखने वाला एक साधारण प्राणी हूँ। सम्यक कर्म, सम्यक सोच तथा सम्यक भावना में विश्वास रखता हूँ। प्यार एक सकारात्मक सोच है जहां भावना के भीतर रचनात्मक संसार के लिए आप संवेदनशील होते हैं। यह वो पल हैं जब सब कुछ बड़े अच्छे लगने लगते हैं।
साल १९७६ में फ़िल्म निर्माता शक्ति सामंत,तथा बंगाली निर्देशक तरुण मजूमदार निर्देशित एक उम्दा फ़िल्म आयी थी बालिका बधू जिसमें सचिन और नवोदिता रजनी शर्मा अभिनय करते दिखे थे। इस फिल्म में किशोर कुमार के पुत्र अमित कुमार का गाया हुआ का एक गाना बहुत ही लोकप्रिय और कर्णप्रिय हुआ था।मुझे हर पल याद आता है, वह गाना था। तब के बिनाका गीत माला में भी ख़ूब बजता था '...बड़े अच्छे लगते है..,ये धरती ये नदियां ये रैना और तुम...इस गाने की सार्थकता,मैं अपनी एकांत,अनबूझी जिंदगी के फ़लक में खोजता हूँ। कभी भीड़ से घिरे लेकिन अपने अकेलपन की इस तन्हाई में अक़्सर मेरे दिल में ये ख्याल आता है कि मुझे भी बड़े अच्छे लगते है ...
ये धरती जो किंचित मेरी हो,प्रकृति तथा पर्यावरण प्रेमी होने की बजह से शायद कहीं किसी हिमाचल की पहाड़ी स्थित चम्बे दा गांव में हो। या फिर नैनीताल की पहाड़ियों में जहां बादल झूम के चलते हुए जमीन को चूमते हुए चलते हो।
जहां शोर और संस्कृति में प्रदूषण नाम की चीज न हो। लगाव हो ,सादगी हो ,समर्पण हो,अपने भारतीय संस्कार हो,छल प्रपंच की लेश मात्र जग़ह न हो। जहां सीधे साधे लोग बसते हो। ये नदियां निःसंदेह हिमालय की गोद से निःसृत होती, बल खाती नदियों यथा गंगा ,यमुना,तिस्ता, रावी,ब्यास ,झेलम ,चिनाब ,तथा सतलुज, दरियां का पानी भी मन को खूब भाता है। हमने अपने विविध भारतीय लोक संस्कृति को पनपते देखा। जोड़ने वाली इसके पानी में ही प्यार,समर्पण ,जन हित का भाव है, हमारी सहिष्णु , सनातनी देव सभ्यता की झलक हैं,गति है । सदियों से ये नदियां हमारी सभ्यता संस्कृति की पर्याय रहीं है को सींचती आयी है.....
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तुम्हारे लिए. आपबीती : ट्वीट ऑफ़ द डे पृष्ठ : ३ / ० .
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एम. एस. मिडिया.
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तुम्हारे लिए. आपबीती : ना में हां : है ना ?
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ना कहें या न। एक ही है। कहते है न , जिसने ना में जीना सीख लिया उसने सही में इस दुनियां में हां में रहना सीख लिया। गैरों,या कहें दूसरों से ना सुनने के तो हम आदी हो सकते हैं। हम ज्यादा प्रभावित भी होते नहीं। क्योंकि दिल से नहीं लेते है। लेकिन अपनों से एकदम से सपाट न सुनना अस्थिर कर देता है।आदतन ना की लय जिंदगी के हाँ की लत को झकझोर देती ही हैं। सपनों का यथार्थ धरातल यही है।
हम सबों को अपनों से जो हां की सुंनने की जो आदत होती है उनके न से परेशानी हो सकती है।
मगर भूले नहीं यहीं जीवन है। आप न के लिए भी तैयार रहें।आप यह मान के चलें कि आपने सही समझते हुए ही प्रयास किया,और कहा। जवाब न का मिला। याद रखें अपने सही सुझाव दिया। नहीं सामने आया। कोई बात नहीं। भूल जाए उस न को। फिर कभी फिर सही। गीता का सार ही समझ लें..शायद जो हुआ वो सही था।
दोनों की अलग अलग अपेक्षाएं हो सकती हैं। स्वाभाविक हो कि उनकी अपेक्षाएं में आपकी उपेक्षा हो गयी हो। उनका अपना भी कुछ नजरियां हो सकता है। सोच भी अपने हिसाब से ही। दूसरी तरफ भी जा कर सोचें। लेकिन हम दोनों पक्षों की तरफ से सोचें तो हमें शीघ्र हाँ सुनने और जवाबकर्ता की तरफ़ से न कहने की क्या जल्दबाजी नहीं होती है ? होती है न ।
शायद इससे बचा जा सकता है। देखते है ,सोचते है .. जैसे उत्तर की संभावनाओं में भी देर से होने वाले न या कहें हाँ की खूबसूरती ही छिपी हो सकती है।
क्या संभव जो कब, किस समय उसने जो ' न ' कहा वह आपके हाँ में ही तब्दील हो जाए ...और आप को उनके ना में ही इस जीवन का हाँ ढूंढना है।
हालांकि शीघ्रता में ' ना ' कहने वाले भी कभी सोचते है, पछताते भी है, विचार भी करते है कि कहीं हमने सुनने कहने में जल्दबाजी तो नहीं कर दी। ऐसी परिस्थिति में फैसले बदले भी जा सकते हैं। सही जीने के माने भी यही हैं।
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तुम्हारे लिए. आपबीती : संवाद* विहीनता .
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संवाद एक अहम चीज है। इसे सदैव मेरे अपनों के लिए जारी रखें। संवाद विहीनता की स्थिति कभी भी न आने दें। रोज की बातचीत से संबंधों में मधुरिमा आती है। अच्छी बातों के लिए प्रशंसा करना भी संवाद

त्योहारों के लिए की गई शुभकामनाएं, जन्म दिन के लिए कहे गए शब्द आपके लिए अमृत वचन है। संकोच न करें बेहद अपनों के लिए तो आप इतना तो कह सकते ही है न ?
अपने परखे, विश्वसनीय, समझे सुलझे सम्बन्घों के लिए संवाद संचार माध्यम को कहीं से भी बाधित न होने दें चाहे वो फ़ोन कॉल्स हो या फिर व्हाट्स अप का माध्यम. यदि आपने कोई कॉल मिस्ड किया तो कोई बात नहीं समय होने पर प्रत्युत्तर जरूर देना चाहिए.
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तुम्हारे लिए. आपबीती : सर्वप्रिय * कैसा हो. निज ,मधुर , विश्वस्त और सम्यक बोलने वाला
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वो जो आप के सकारात्मक कार्य के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रसंशा करता हो और आपकी गलतियों को व्यक्तिगत तौर से निहायत ही अपनेपन और एकांत में समझाता हो, सुधार के लिए सुझाव देता हो, समझ लेना वह तुम्हारे हृदय में रहता है। तुम्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ इंसान मिल गया। और तब अपने आप को भाग्यशाली समझें।
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तुम्हारे लिए. आपबीती : सचेत, संयमित, संतुलित, सचेष्ट और संवेदनशील द्वैत सम्बन्ध.
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सबसे पहले अपने नेक और बेहतर रिश्तों
पर भरोसा रखें। बेहतर लोगों के साथ जुड़ें। गहराई से देखने मात्र समाज में या कहें आम जीवन में सगे - संबंधियों, अपने पराए के साथ किए गए आचरण से ही व्यक्ति विशेष का अंदाजा बड़ी सुगमता से लगाया जा सकता है। स्वयं की देखी, कही सुनी,समझी बातों पर ही केवल यकीन करें। सदैव सच की ख़ोज में रहें। रिश्तें वैसे ही बनाए जो भरोसे के लायक हो सुख दुःख से समभाव में आपका साथ दे सकें । क्रोध को आपसी संबंधों में स्थान न लेने दें। अफ़वाहों पर ध्यान न दें। परस्पर के पसंद नापसंद का ख़्याल रखें। अपने विश्वसनीय स्वयं के अर्जित परखे हुए संबंधों के लिए सदैव, आश्वश्त रहें। शांत, निर्भीक, एकाकी तथा विवेकशील बनें। अपने द्वैत संबंधों को लेकर हमेशा सचेत, संयमित, संतुलित, सचेष्ट और संवेदनशील रहें आपके सम्बन्ध निर्विवादतः सदैव संरक्षित रहेंगें। ऐसा मेरा मानना है।

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तुम्हारे लिए. आपबीती : रक्षा : विश्वास, आस्था और आत्मशक्ति .
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आस्था और विश्वास स्वयं की बात होती है. याद है मैंने नारी शक्ति यथार्थ आपको शक्ति स्वरूपा माना है, कभी
कहा भी है। और आपमें अटूट विश्वास रखता हूँ। मैं समझता हूँ मैं केवल आपका शरणार्थी हूँ मात्र। आप मुझे जैसे रखो। आप शक्ति बन कर सदैव साथ भी रहीं। रक्षा का कारण बनी। जब भी मैं संकट में रहा, कुछ चीजें भूल गया, मैंने अपनी त्रि -शक्तियों यथा लक्ष्मी , शक्ति और सरस्वती को याद किया। भूली चीजें मिल गयी और आश्चर्य..मैं रक्षित हुआ..मेरे संकट दूर भी हो गए। विश्वास यहाँ आस्था का है, और शायद संयोग का भी। शायद जब कभी भी अकेले सफ़र के लिए निकलता हूँ तो मेरे रास्तें की सुरक्षा आप त्रि शक्तियां कर रहीं होती हैं ऐसा मेरा मानना है । आप मेरी रक्षाकवच हैं मेरे एकाकीपन की यह मेरी अनुभूति है।

आगे भी जारी..
वीथिका : संपादन शक्ति. शालिनी माधवी रेनू कंचन. नैनीताल डेस्क.
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा तनु अनुभूति. शिमला डेस्क.
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स्वर्णिका ज्वेलर्स. करुणाबाग.सोहसराय.बिहार शरीफ़.समर्थित. ![]()
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जिन्दगी के फलसफे को अल्फाजों में बेहतरीन तरीके से ढालने के लिए
ReplyDeleteहार्दिक बधाईयां।
लेखनी की धार रहे बरकरार।
शुभकामनाएं।
धन्यवाद।
अरुण कुमार सिन्हा,
रसिकपुर,दुमका, झारखण्ड।
Amit Kumar ...I read this blog finally I realize it ...it's good for society
ReplyDeleteAdbhut creation.Adbhut creation.
ReplyDeleteAmezing creation.
ReplyDelete