Incredible Nainital : Parvaton Ke Pedon Par
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कृण्वन्तो विश्वमार्यम.
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Photo Blog Story of : Incredible Nainital.
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Parvaton Ke Pedon Par.
Volume 1. Series 1.
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Page : 2
Editorial Page.
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Assistant Editor.
Dr. R. K. Dubey.
Renu Shabd Mukhar.
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Executive Editor
Dr. Anupam Anjali.
Ravi Shankar Sharma.
Dr. Naveen Joshi.
Manoj Pandey
Dr. Shailendra Kumar Singh. Raipur.
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Coordinator.
Varanasi.
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Photo Editors.
Ashok Karan. Ex Hindustan Times Photographer.
Kamlendu. Kolkatta . ( Free Lance Photographer )
Subodh Rana. Nainital. ( Free Lance Photographer )
Kalindi . Dharamshala. ( Free Lance Photographer )
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Page Making & Design : Er. Snigdha, Siddhant. Bangalore
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सम्पादकीय. पृष्ठ : १.
सौ बार जनम लेंगे.
डॉ. मधुप.
तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं : जितनी खुली बंद आंखों से मैंने नैनीताल को समझा है, देखा है ,महसूस किया है शायद इतनी बारीकियां, नजदीकियां,और ऐसे ताल्लुकात यहां के रहने वाले भी इतना नहीं रखते होंगे। वाकई नैनीताल एक दिलकश सैरग़ाह हैं जिससे हमारा जन्मों का नाता है।
सन १९७८ से मैं नैनीताल को देखता रहा , समझता रहा। सोचा अपने इस सपने के शहर
के दिलचस्प इतिहास को एक सर्वथा नूतन तरीक़े से फोटो ब्लॉग स्टोरी के जरिए आपके साथ साझा करूं जिसे आप यक़ीनन पसंद करेंगे। इस फोटो ब्लॉग स्टोरी के जरिए मैं उन सभी लोगों का आभार प्रगट करता हूँ जो मेरे अपने हैं , तथा मेरे जीवन के सतरंगी सपनों में शामिल है , बसते हैं। वो मेरी सुनहरी यादों का सहारा है , लिखने मात्र के लिए प्रेरणा है। ईश्वर से सदैव मैं उनके साथ रहने की कामना करता हूँ। यह मेरी व्यक्ति गत सोच है ,अपनी बातों को नवीन ,अविष्कृत तरीक़े से कहने ,सुनने की मेरी पसंदीदा ,पहली और सबसे अलहदा शैली है।
मेरे जीने का शहर है नैनीताल : यह सही है कि मैं उत्तराखंड में जन्मा तो नहीं हूं मगर न जाने क्यों लगता है जैसे मेरा पूर्व जन्म का इस शहर से नाता रहा है। नैनीताल से असीम लगाव होने की बजह से मैं कभी कभी कल्पना शील हो जाता हूँ कि शायद सौ बार जन्म लेने के क्रम में एक जन्म मैंने इन कुमायूं की पहाड़ियों में भी लिया होगा।
मेरे जीने का शहर है नैनीताल : यह सही है कि मैं उत्तराखंड में जन्मा तो नहीं हूं मगर न जाने क्यों लगता है जैसे मेरा पूर्व जन्म का इस शहर से नाता रहा है। नैनीताल से असीम लगाव होने की बजह से मैं कभी कभी कल्पना शील हो जाता हूँ कि शायद सौ बार जन्म लेने के क्रम में एक जन्म मैंने इन कुमायूं की पहाड़ियों में भी लिया होगा।
हिन्दू रीति रिवाजों ,धर्म आस्थां के अनुसार हमें चौरासी लाख योनियों से गुजरना होता हैं न। तब जाकर मनुष्य योनि हमें मिलती हैं। इस विश्वास के साथ ही तो हम पुनर्जन्म में भरोसा रखते हैं न ।
ऐसा प्रतीत होता है मेरी अंतरात्मा जैसे नैनीताल की सुरम्य पहाड़ियों में ही रचती बसती है। परदेशी ही सही, लेकिन आज मैं यायावरी के दिनों में नैनीताल प्रवास के दरमियाँ उन दिनों के यादगार क्षणों के पिटारें यक ब यक ही खुल जाते हैं,और उनसे निकली अनमोल यादों की हिस्सेदारी में आपकी भागीदारी सुनिश्चित करता हूं जिसमें इतिहास , पर्यटन,सभ्यता ,संस्कृति की सम्यक अत्यंत उपयोगी व रोचक जानकारियां छिपी होती है जो कभी आपको मुफ़ीद भी लगती है । ऐसी उम्मीद करता हूँ।
१९९८ नैनीताल की यात्रा और मेरी यादें : फोटो भरत |
कल्पना के सात रंग : यह एहसास मेरे दिल में सदैव घर करता है जैसे शहर में फैली दूर तलक पहाड़ी से जैसे कोई सुरीली आवाज अक्सर गूंजती रहती हैं, और मुझे बुलाती रहती हैं ....आज रे परदेशी । परदेशी ही सही, लेकिन आज मैं यायावरी के दिनों में नैनीताल प्रवास के दरमियाँ उन यादगार क्षणों के पिटारें को खोलूंगा और उनसे निकली अनमोल यादों की हिस्सेदारी में आपकी भागीदारी सुनिश्चित करूँगा जिसमें लोग ,लोक इतिहास पर्यटन, सभ्यता ,संस्कृति सम्यक अत्यंत उपयोगी व रोचक जानकारियां छिपी होंगी जो हमेशा आपको अच्छी लगेगी , ऐसी मैं उम्मीद करता हूँ। यह पृष्ठ मेरी जिंदगी का वो कैनवास है जिसमें देखे जाने वाले कल आज और कल की ख़ूबसूरत कल्पना के सात रंग बिखरे पड़े हैं जिन्हें सच में होना है। इस जनम में न सही तो अगले जनम में।
शायद मेरे जीने ,कहने मात्र के उदेश्य के लिए १९६३ में प्रदर्शित हुई फिल्म उस्तादों के उस्ताद में मो. रफ़ी साहेब का गाया हुआ यह अति लोकप्रिय और कर्णप्रिय गाना तुम्हारे लिए काफ़ी होगा '....सौ बार जनम लेंगे सौ बार फ़ना होंगे ...' इसे आप भी देख लीजिए और सुन लीजिए।
फिल्म : उस्तादों के उस्ताद : सौ बार जनम लेंगे सौ बार फ़ना होंगे.
गाना सुनने व देखने के लिए ऊपर के यूट्यूब के लिंक को दवाएं
आख़िरी वसीयत
जीने का फ़लसफ़ा : पहाड़ की परिकल्पना ही क्यों ? पहाड़, वादियां प्रदूषण रहित होते हैं। वहां के लोग सीधे साधे निष्कलुष होते हैं। बेहद अच्छे व मददगार होते है। इसलिए सदैव बेहतर पाने के लिए संघर्ष जारी रखना चाहिए ।
दूसरा धुंध जो पहाड़ों में सदैव व्याप्त होता है। वादियों में पसरा मिलता है ,इसका पर्याय अपने जीवन के रहस्य से भी है। धुंध में, जीने का फ़लसफ़ा सिद्ध हैं इसे सीखना चाहिए । आना जाना निश्चित है। सबको धुंध से निकलते हुए ही धुंध में ही खो जाना है। पहाड़ी ढ़लानों में सदैव व्याप्त धुंधलका तेरी मेरी कहानी का रहस्य मय हिस्सा है। शायद इसलिए मैं किसी ऐसी खुली क़िताब की बात करता हूँ जिसकी लिपि अपनों को छोड़ दूसरों के द्वारा पढ़ी ही न जा सके। अक्सर ऐसे हमसाए की बात करता हूँ जिसके साथ आपने कभी ख़ुशी कभी ग़म की साझेदारी की हो उसे आप अपनी अनमोल विरासत माने। उसे अपने भीतर की पहेली ही रहने दे। साझा न करें। अपने अंतर्मन में अपनों के कई ऐसे ख़ुशियों के राज दफ़न हो, जिससे जीने की बजह बन जाए। जिसे केवल दो ही जान सके,समझ सके। आप आजमा कर देख ले। सदैव यादों के झरोखों में आप मुस्कुराते रहेंगे। आने जाने वालों को दिखे नहीं तो आप सब की चाहत के केन्द्र बने रहेंगे।
आख़िरी वसीयत : इसी धुंध में ही खो जाने के लिए मैंने अपनी जीवन की आख़िरी वसीयत की है जिसे मेरे अपने जाने। मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ हूँ। सनातनी नहीं हूँ। ईसाई धर्म में व्याप्त ,शांति मानवीय सहायता के प्रभाव में हूँ। मेरी आख़िरी वसीयत मेरे जीवन के अंतिम संस्कार से जुड़े हैं । मैं अपने पूरे होश में समझ बूझ कर मेरे अपनों के सामने लिखता हूँ कि मैं अपनी मृत्यु के उपरांत जो हर किसी के लिए सम्भावी ही है, किसी पहाड़ी चर्च के समीप ही देवदारों के मध्य नैनीताल जैसी पहाड़ी जग़ह में ही एकाकीपन में दफ़ना दिया जाऊं जहाँ देवदार , चीड़ तथा चिनार के पेड़ हो । प्रकृति और एकाकीपन मेरी चाहत में हैं। और उस स्थान पर एक देवदार के पेड़ लगा दिया जाए। कुछ इन पंक्तिओं के साथ कि इस आदमी ने इस जनम में अपने कई कार्य अधूरा छोड़ दिया है और उसे पूरा करने के इस आत्मा को इन्ही पहाडियों में फ़िर से शरीर धारण करना है।
पहाड़ी संस्कृति की अभिलाषा : इसी तरह अपने आम जीवन में भी सदैव अच्छे आपको मिलते रहेंगे। सोच समझ कर इस के लिए प्रयास रत रहें। वक़्त की नज़ाक़त को समझे। समय को परखें ,जाने ,समय गतिशील है । संवाद हीनता की स्थिति न होने पाए। लेकिन शब्दों की मर्यादा का भी दिल से ख्याल रखें।अपनों के लिए बहुत सोच समझ कर बोलें। अपने संस्कार उन्नत रखें। किसी की जिंदगी में वह भावुक पल नहीं आए जिससे कि उसे पछताना पड़े। कहते हैं न , रोक लो उनको ,रूठ कर न जाने दो जो दिल से तुम्हारे साथ हैं। तुम्हारे लिए है ,अपने है, या पराए हैं। कालांतर में अपने होंगे तो इसका ध्यान रखें ,उसे सुरक्षित करना व रखना सीखे।
यदि अनजाने तथा आवेश में ग़लती हो भी जाए तो अपनी तरफ़ से भूल मान लेने में कोई हर्ज नहीं। क्षमाशीलता दोनों तरफ़ से हो जानी चाहिए। सज्जन ,साधु सोना के समान ही होते हैं बार बार टूटने पर भी जुड़ जाते हैं।
अपने सबके प्रिय हमराज बने। उनका साथ न छूटे। ग़लतफ़हमी न हो, ध्यान रखें। हो भी तो रुक जाइए, बोलने से पहले ठहर जाइए। निकली हुई वाणी वापस नहीं आती। सामने वाले का दिल व्यर्थ ही उदास न हो जाए , आँखों में आंसुओं का समंदर न उतराने लगे। ठेस लग सकती है। अपनों के सम्मान और उनकी भावनाओं का ख़्याल बेशक़ रखें। व्यर्थ अफ़सोस होगा जब सच सामने होगा।
अगर ऐसा आप के साथ कभी ऐसा हो तो भी धैर्य रख ले। भीड़ से हट कर समय को बीत जाने दें। एकाकी हो कर स्वयं से प्यार करना सीख लीजिए, कल्पना में खो जाए, पसंदीदा गाना सुने। दुःख के बादल छंट जाएंगे जब सामने वाले को अपनी ग़लती की अनुभूति हो ही जायेंगी। यही पहाड़ी लोक जीवन हैं ,संस्कृति हैं, सभ्यता है जिसे हर कोई कहीं भी जी सकता है। यहाँ के लोगों की जीने की यही शैली है जिसे हमें समझना होगा। मेरी मंगल कामना है आप सबों के लिए।
फिर वही याद चली आयी है : अब अंत में चलते चलते नैनीताल के नैनी लेक में फिल्माए गए फ़िल्म कटी पतंग के मुकेश का गाया हुआ वो अति मनभावन गाना ...जिस गली में तेरा घर न हो बालमा .. भी सुन लीजिए जिसे अभिनेता राजेश खन्ना और फ़िल्म अभिनेत्री आशा पारेख पर फ़िल्माया गया था। जिसने मेरे मन और मेरी सोच मेरी भावनाओं को बहुत हद तक़ प्रभावित किया था । पहली बार नैनीताल की प्राकृतिक ख़ूबसूरती मेरे युवा मन को भा गयी,मेरे दिल में घर कर गयी थी।
शेष मुझे नैनीताल से जोड़ने में अनजाने में तब की १९७८ में प्रकाशित होने वाली पत्रिका साप्ताहिक हिंदुस्तान के साहित्यकार हिमांशु जोशी के धारावाहिक उपन्यास ' तुम्हारे लिए ' ने पूरा किया था जिस प्रकाशित धारावाहिक को मैंने सन १९७८ से अभी तक़ आज तक़ सुरक्षित कर रखा है । अल्मोड़ा के विराग शर्मा तथा नैनीताल की अनुमेहा के क़िरदार को, उनकी ख़ूबसूरत प्रेम कहानी को अपनी आस पास की जिंदगी में तलाश करता मैं यहाँ तक़ आया हूँ। एक शायद यही से सीख लेते हुए समय के रहते हमें अच्छे साथ के लिए ... कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना ,या लोग क्या कहेंगे की मानसिकता से ऊपर उठना होगा।
अगर लोग हमें छोड़ न पाए तो हमें ऐसी दुनियाँ छोड़नी होगी जिसमें ऐसे लोग रहते हैं । ऐसे लोग छोड़ने होंगे जो सन्मार्ग की तरफ़ जाने से रोकते हैं। सच मानिए दुनियाँ अच्छी है। अच्छे लोग कम हैं फ़िर भी भरे पड़े हैं। इस गाने की एक पंक्ति है...हा ये रस्में ये कसमें सभी छोड़ कर ... में मेरा दृष्टिकोण सिर्फ़ ,सम्यक विश्वास ,सम्यक कर्म ,सम्यक साथ ,सम्यक विचार और सम्यक दर्शन और सम्यक समाज तक़ ही निहित है जिसके लिए हमें प्रयासरत रहना है ।
नैनीताल की ख़ोज के तहत ही यह फ़ोटो ब्लॉग मेरी यादों की बारात है जिसमें मेरे जीवन ,मेरे संग अपनों की तेरी मेरी कहानी है जो आपको सदैव अच्छी लगेगी। इति शुभ
फ़िल्म कटी पतंग : जिस गली में तेरा घर न हो बालमा
गाना सुनने व देखने के लिए ऊपर के यूट्यूब के लिंक को दवाएं
पुनः सम्पादित और वर्धित. प्रिया ,दार्जलिंग.
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Contents Page 2.
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Episode : 3 / 0. Parvaton Ke Pedon Par
Photos / Collages. Nainital : Photographer's View. Gallery No - 0
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Episode : 3 / 1. Parvaton Ke Pedon Par
Photos / Collages. Nainital : Around Mallital. Gallery No - 1.
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Editing.
Dr. Sunita Sinha.
Nainital.
Sitapoor Hospital, BSNL office : The Mall Nainital |
The Lower & Upper Mall Road collage : Nainital |
Boat House Club Nainital : Collage Vidisha. |
The Mall Road Nainital 2008 : Collage Vidisha. |
Boat House Club Nainital Since 1910 : Naini Lake. |
Musafir Hoon Main Yaron : co travellers collage |
Mallital Lake View : Collage Vidisha. |
The Nanital Lake View from Mallital : Collage |
Nainital Lake View 2008 : Collage |
Nainital Meri Yadon Ka Shahar 2008.Collage ----------------------------- Photo Blog History of : Incredible Nainital. --------------------------------
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Episode : 3 / 2 Photos / Collages. Gallery No - 2
Nainital : Passion Begins for. Nainital in Cinema.
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Koi Mil Gaya ( 2003). Starring Ritiq Roushan Priti Ginta. Film Location Points, Mallital Nainital : Collage Screen Shots.
Anubhuti. Shimla. |
my passion begins for Nanital reading a Story : Tumahre Liye in 1978 by Himanshu Joshi ( Editor, Hindustan) |
Nainital during British time : 1883.courtsey photo internet |
read an epistolary Nainital based love story Tumahre Liye by Himanshu Joshi : being published in 1978 in Hindi Dainik 'Hindustan' |
in a role of Virag Sharma a hero of the Novel Tumahre Liye with Anu Meha. Nainital. ----------------------------------------------- Episode : 3 / 4 . Parvaton Ke Pedon Par Photos / Collages. Nainital : in Traveller's Eyes. Gallery No - 4 . Editing. Mansi Pant Nainital.
Chiranjeev Nath Sinha. A.D.S.P Lucknow. Raj Kumar Karan. D.S.P. ( Retd.) Anil Kumar Jain. Ajmer Col. Satish Kumar Sinha. Retd. Hyderabad. Anoop Kumar Sinha. Entrepreneur. New Delhi. Captain Ajay Swaroop ( Retd. Indian Navy).CBSE Resorce Person. COE Dehradoon Dr. Bhwana. ----------------------------------------------- Episode : 3 / 5 . Parvaton Ke Pedon Par Photos / Collages. Nainital : in M.S. Media. Gallery No - 5 . |
Awesome job 👍🏻👍🏻
ReplyDeleteNainitaal is really wonderful!One feels like staying there.Naini mata Ma
ReplyDeletendir "Mata Rani Darbaar".
Roop Kala
Nice pictures
ReplyDeleteBeautiful pictures after ending this pandemic I will sure visit there
ReplyDeleteBy Neo Aryan
Mind -blowing .Giving a relief from humdrum of daily life.
ReplyDeleteWOOOOOW, Wonderful snaps of Nanital. You really capture fantastic Nanital. Thanks to your vision 👌👌👌🎶🎶🎶☘☘☘☘☘☘
ReplyDeleteIt is a wonderful blog sir,
ReplyDeleteI saw a new version of Nanital on this blog....
Awesome work... Totally facilitated by ur work....
ReplyDeleteKeep uploading blogs... It feels so nice to read ur blogs every morning and evening 😊😊
ReplyDeleteसुंदर संयोजन 👌👌👍
ReplyDeleteReally plausible,
ReplyDeleteAwesome work and salute to you & your team.
-Hursh
Nice
ReplyDeleteFabulous
ReplyDeleteFabulous
ReplyDeleteGood job.
ReplyDelete