आस्था की नगरी ,हरिद्वार.

      
आस्था की नगरी,हरिद्वार। उत्तराखंड यात्रा वृतांत ।
डॉ मधुप रमण ( व्यंग्य चित्रकार ,कवि ,ब्लॉगर )

हरिद्वार,बद्रीनाथ धाम की यात्रा के समय की तस्वीर। कोलाज़ विदिशा 

    हरिद्वार : हरिद्वार  हरि  के गृह  तक  पहुंचने  का द्वार है। साधु,संतों सन्यासियों  की जमातों के चलते हमें यह बारबार प्रतीत होगा कि कहीं हम मठों के शहर में  तो नहीं आ गए है ? यह चारों धामों  की प्रवेश नगरी है अतः इस नगरी की सांस्कृतिक तथा धार्मिक महत्ता अत्यंत है । यही से  हम चार धाम यथा गंगोत्री ,यमनोत्री ,बद्रीनाथ तथा केदारनाथ  की यात्रा के लिए अपनी यात्रा शुरू कर सकते है शायद इसलिए हरिद्वार में सालों भर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है।
     सन १९९८ का वर्ष था। मेरी तत्कालीन  उत्तर प्रदेश राज्य की पहली यात्रा थी। हम एक समूह में हरिद्वार जा रहें  थे । हरिद्वार जाने के लिए हमने  वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से वाराणसी -देहरादून ट्रेन पकड़ी थी। वाराणसी से इसबार हमारी यात्रा के सहयात्री थे  वाराणसी के  डीरेका रेलवे वर्कशॉप  के रेलवे अधिकारी,अरुण कुमार ,नीता  तथा अन्य लोग।  सोच कर अतयंत प्रसन्न हो रहे थे कि हमलोग समिल्लित घर जैसे मौहाल में अपना समय व्यतीत करेंगे और यात्रा का आनंद उठायेंगे  ।
     हरिद्वार की इस पहली यात्रा के लिए मैं विशेषतः अत्यंत आहलादित था। मुझे याद है जब मैंने  पहली बार गंगा की दुग्ध धवल मचलती हुई धारा को हर की पौड़ी में स्पर्श किया था ,तब  न जाने कौन कौन से भाव हृदय में तरंगित हो रहें  थे। वो प्रातःकालीन वेला थी जिसे  मैं कदापि नहीं भूल सकता हूं। तुरंत छू कर हाथ हटाना पड़ा था क्योंकि पानी हद से ज़्यादा ठंढा था। भागती हुई भीड़ में  सरकते हुए लोगों का वहां अम्बार था। मैं अकेला यायावर हर की पौड़ी पर खड़ा हो कर यही सोच रहा था कि यदि यह देवसरिता नहीं होती तो हमारी सभ्यता और संस्कृति ही नहीं होती। हरिद्वार के प्रति मेरा लगाव इस तरह असीमित है कि मेरे शब्द कम होंगे इसके विवरण के लिए । मुझे वहां के साधु ,संत ,भिखमंगे भी अत्यंत भाग्यशाली प्रतीत होते है  कि वे यहाँ रहते हैं। इसके बाद तो मेरी हरिद्वार यात्रा सदैव होती ही रही। हर हर गंगे, मैं  तुम्हें नमन करता हूं कि तू अपनी इस अतुलनीय भारतीय संस्कृति की जननी है। पालने पोषने वाली है । तू नहीं होती तो यह आर्यावर्त नहीं होता।
      सन २०१० का साल। तब उत्तराखंड का निर्माण हुए भी आठ साल बीत चुके थे। १९९८ के बारह साल बाद तथा आज से दस  साल पहले  सन २०१०  में भी  हम हरिद्वार आये थे। उस समय हमारी यह पारिवारिक यात्रा थी। मेरे साथ मेरे माता पिता व  मेरे सहयोगी शिक्षक साथी प्रत्येश थे जो वर्तमान मसूरी रेलवे विद्यालय के शिक्षक है। घूमने के बहुत शौक़ीन है ।  हम उनके बहुत ऋणी है कि उन्होंने पूरी यात्रा में  पुत्र के समान मेरी माँ की देखभाल की थी,उनकी बजह से ही मेरी माँ की हरिद्वार से बद्रीनाथ की यात्रा पूरी हो पाई। रात्रि विश्राम के लिए हम सभी वही नरसिंह धर्मशाला में ठहरे थे। तब हम पांच जनों  की पहली बार बदरीनाथ धाम की यात्रा थी  ।     मुझे याद है उनदिनों हरिद्वार में चार धामों की यात्रा शुरू हो चुकी थी। किसी कारण बश  यातायात के साधनों  की बहुत दिक्कत महसूस हुई थी। तब हमने हरिद्वार की ही रहने बाली डॉ विनीता शर्मा ,और उनके महिला सत्संगी साथियों ,मथुरा की युवा सन्यासिन किरण ,हनुमान  के साथ यात्रा के दौरान गाड़ी में लगने बाले तेल के खर्चों की भागीदारी की थी। हरिद्वार तब भी हम नहीं भूले थे। जब हर की पौड़ी में हमारी मुलाक़ात एकदम से अपरचित कर्नाटक के निवासी पेशे से इंजीनियर से हुई थी। मैं उन्हें आजतक नहीं भुला हूं। आज मैं उन्हें अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उन्हें  याद करना  चाहता हूं कि मेरी आंखे फ़िर से हर की पौड़ी में उन्हें ढूंढ रही है। हर की पौड़ी में मुझे कई कामयाब और नायाब लोग मिले जिनकी मुझे ताउम्र तलाश रहेंगी।
     आगे पुनः २०१३ में बद्रीनाथ ,केदारनाथ ,हेमकुंड ,आने की बात सुनिश्चित हुई तो हमे हरिद्वार फ़िर से आना पड़ा।  हमने फरवरी माह में ही हरिद्वार पहुंचने के लिए टिकट कटा लिए थे । इस बार की हमारी यात्रा इसलिए भी सुखद अनुभूति से पूर्ण थी क्योंकि मेरे बचपन के दोस्त ,डॉ प्रशांत , गुजरात से , हमारे सहयात्री थे । हम खुश और आश्वस्त थे कि स्वास्थ्य खराब होने ,और बीमार होने की दुश्चिंता हमें नहीं सताएगी । एक काबिल डॉक्टर के साथ होने का एहसास हमें दृढ़ ,विश्वस्त,सुखदायी बना रहा था । 
    आस्था की नगरी , हरिद्वार। 29 मई को हरिद्वार पहुंचते ही हमने वही चिरपरिचित धर्मशाला नरसिंह भवन में जो हर की पौड़ी के समीप ही है , एक रात के लिए आश्रय ले  लिया था  । यह भवन दरअसल एक धर्मशाला है जहां होटल से भी रहने खाने की अच्छी और सस्ती व्यवस्था है। आप इसे आज़मा सकते है। शाम होते ही गंगा दर्शन के लिए हम सभी प्रस्थित हो गए।
   और शाम होते ही हर की पौड़ी में मुक्ति दायिनी ,पतित पावनी गंगा के दर्शन के लिए विभिन्न प्रांतों से आये असंख्य लोग वहां  पहुंचे चुके थें । और उनलोगों ने मूलतः घाट की सीढ़ियों पर ही डेरा जमा लिया था। स्नान घाट के रूप में प्रसिद्ध रहे हर की पौड़ी हरिद्वार का अति प्रमुख  स्थल है जहां प्रति बारह साल के बाद कुम्भ के मेले तथा छह साल के बाद अर्धकुम्भ के मेले लगते हैं।
     हर की पौड़ी - हरिद्वार के सबसे महत्वपूर्ण घाटों में से एक है हर की पौड़ी। सभ्यता संस्कृति के संरक्षण के लिए जरुरत के अनुसार इन घाटों से गंगा की कृत्रिम धाराएं इस तरफ मोड़ी गयी है। अन्यथा मानों तो मैं गंगा माँ हूं की मूल नील धाराएं तो थोड़ा हट कर शहर से बहती हैं ।
    यहाँ की संध्या गंगा आरती की शोभा अप्रतिम है। देखने योग्य है।  वर्णनातीत है। सम्पूर्ण भारत के  विभिन्न प्रदेशों की सभ्यता संस्कृति की एकतागत झलक देखनी हो यहाँ आ जायें। शाम होते ही जय गंगे माँ की आरती की स्वरलहरी पर्यटकों को अनायास ही गंगा घाटों की तरफ़ खींच लेती हैं। पूरा घाट स्थानीय
,बाहरी श्रद्धालुओं,पर्यटकों,से पट जाता है। अन्यथा संध्या काल में देर होने के पश्चात तो यहाँ तिल रखने मात्र की भी जग़ह नहीं मिल पाती है।
    लेकिन कर्मकांड में अतीव विश्वास रखने बाले लोग यहाँ के साधु,संतों और पंडों से ज़रा  होशियार ही रहें ,नहीं तो इस जन्म मरण ,इहलोक परलोक ,पाप पुण्य के जटिल प्रश्नों और उनकी समस्याओं के  निवारण  के चक्कर में आप अपनी आर्थिक हानि ही कर बैठेंगे।याद रहें  सम्यक सोच ,सम्यक दर्शन व सम्यक कर्म ही सम्यक धर्म है।
    सनातनी वैदिक संस्कृति बाले इस पौराणिक शहर में निरामिष लोगों के लिए खाने पीने की कहीं भी कमी महसूस नहीं होगी। फल फूल ,दूध दही ,से परिपूर्ण इस नगरी में लस्सी शर्वत ,मेवे, मिठाईयां खाने के शौक़ीन लोग यहाँ घाटों के पास मौज़ूद ढ़ेर सारे रेस्टुरेंट ,ढाबों  ,होटल ,खोमचे वालों से अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी नाश्ता ,लंच, डिनर आदि ले सकतें हैं।


   क्रमशः जारी है । आस्था की नगरी हरिद्वार। गतांक से आगे १।  



हर की पौड़ी ,हरिद्वार। संध्या आरती के समय श्रद्धालुओं की भीड़। छायाचित्र डॉ सुनीता 

    हर की पौड़ी स्नान घाट में गंगा का मंदिर ,मानसिंह की छतरी ,बिरला टावर दर्शनीय है। सच कहें तो मुझे हरिद्वार घाटों ,मंदिरों का शहर ही लगता है तथा यहाँ के रहने वाले अधिकाधिक लोग पण्डें  ही जान पड़ते हैं ।
    मनसा देवी मंदिर -  बिलवा पर्वत पर स्थित हरिद्वार का यह मंदिर सबसे प्रमुख मंदिर  है जहाँ हम रोपवे के जरिए पहुंच सकते है। पैदल मार्ग भी बना है। हरिद्वार आने वाले अधिकाधिक पर्यटक देवी माँ मनसा का आशीर्वाद पाने हेतू यहाँ अवश्य जाते  हैं । इस मंदिर परिसर के पास से ही पूरे हरिद्वार शहर का मनोहारी व प्राकृतिक दृश्य दिखता है। यही से गंगा नदी की बल खाती पतली धाराएं नहर की शक्ल में मुड़ती हुई हर की पौड़ी की तरफ भी दिखतीं हैं जो आगे चल कर गंगा की मुख्य धारा में समाहित हो जाती हैं। हरिद्वार की प्राकृतिक सुषमा निहारनी हो तो मनसा देवी ज़रूर जाएं।
    दक्ष महादेव मंदिर हरिद्वार का  अत्यंत प्राचीन मंदिर है जहाँ धार्मिक प्रवृति के लोग जाना अत्यधिक पसंद करते है। मैने वहां बहुत सारे भक्तों एवं श्रद्धालुओं को बकरें की आवाज़ निकाल कर  भगवान भोले को प्रसन्न करते हुए तथा दक्ष प्रजापति को चिढ़ाते हुए देखा।
   कनखल में माँ सती का अग्निकुंड भी है. जहां उन्होंने अपने  पिता के घर में अपने स्वामी त्रिपुरारि,भोले का अपमान  सहन न करने  की स्थिति में स्वयं को अग्निकुंड  के हवाले कर भस्म कर लिया था।
   ब्यूटी पॉइंट- मनसा देवी मार्ग में ही ब्यूटी पॉइंट है जहाँ से पूरे शहर का अवलोकन किया जा सकता है। 
   चंडी देवी - गंगा के दुसरे किनारे नील पर्वत के शीर्ष पर माँ चंडी को समर्पित यह दूसरा मंदिर है जहाँ पर्यटक रोपवे के जरिये जाना पसंद करते है।  इतिहास यह है कि इसका निर्माण जम्मू काश्मीर के नृप सुचात सिंह ने सन १९२९ में करवाया था।
   नील धारा  हरिद्वार में बहने बाली गंगा की समझी हुई यह अबिरल,शुद्ध  एवं पारदर्शी धारा है जो शहर के पार्श्व में बहती है। हालांकि पूरी शुद्धता की बात अब हम नहीं करते हैं, किसी ज़माने में शुद्धता ही वो पैमाना रही होगी जिसकी  वजह से इसे नील धारा का नाम दिया गया होगा। नील धारा एक पक्षी विहार भी है जहाँ मौसम के रूख को बदलते ही  यहाँ  बेशुमार प्रवासी पंछियों का डेरा भी देखा जा सकता है।
  गुरु कुल कांगड़ी  मुख्य शहर हरिद्वार  से लगभग ३ किलोमीटर दूर  विश्वविद्यालय  की स्थापना आर्य समाज के जनक, स्वामी दयानन्द के परम शिष्य स्वामी श्रद्धानन्द ने  मुंशी राम के सहयोग से की थी। उनका यह प्रयास दृष्टव्य  है ,सराहनीय है  कि हम अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति पर आधारित वैदिक व हिंदी शिक्षा को कैसे संरक्षित व प्रचारित करें।  नगर से ढाई किलोमीटर दूर आप यह भी स्थान देख सकते है।  
 पतंजलि योग पीठ - आज योग गुरु बाबा रामदेव के अथक प्रयासों से भारतीय योग तथा आयुर्वेद का डंका समस्त विश्व में बज रहा है। सम्पूर्ण देश विदेश  में पतंजलि के विभिन्न स्वदेशी उत्पादों  की अत्यधिक बिक्री व लोकप्रियता की वज़ह से यहाँ आने बाले  पर्यटकों  की संख्या भी बढ़ी है जो  पतंजलि पीठ जाना भी पसंद करतें है।
 भारत माता मंदिर - एक अनोखी जग़ह है इस मंदिर में विभिन्न धर्मों के संतों एवं देश के प्रमुख लोगों की मूर्तियां स्थापित है।
 शांति कुंज - हरिद्वार से ६ किलोमीटर दूर हरिद्वार -ऋषिकेश मार्ग  में गायत्री परिवार से सम्बंधित लोगों के लिए यह जगह स्वयं सिद्ध पवित्र मंदिर स्थल है जहाँ एकाध दो घंटा व्यतीत करना आनंददायी होगा।
 राजाजी नेशनल पार्क  जो लोग जंगल सफारी के शौक़ीन हैं उनके लिए ८२० किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले देहरादून,पौड़ी गढ़वाल और हरिद्वार जिले की  शिवालिक पहाड़ियों की तराई में स्थित  भारत की एक प्रसिद्ध  सैंचुरी  -पार्क है जिसे भारत सरकार ने टाइगर संरक्षित वन घोषित कर रखा है। यह पार्क शहर से १० किलोमीटर की दूरी रखता है।  यहां लोग मोगली बन कर वन में घूमने का अतिरेक आनंद उठा सकते है । जहाँ चीला जैसे रमणीक स्थल  भी है. .


   क्रमशः जारी है । आस्था की नगरी हरिद्वार। गतांक से आगे २ 



संध्या गंगा आरती के समय विभिन्न संस्कृतियों का हर की पौड़ी में समागम। कोलाज विदिशा। 
     
    
    चीला  राजाजी सैंचुरी में ही प्रकृति प्रेमियों के लिए एक मनोरम  पिकनिक स्थल है जो शहर से ८ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है।
    मसूरी  यदि आप हरिद्वार में रहते हुए एक दिवसीय पर्यटन के लिए १०० किलोमीटर की परिधि में घूमने का मन बना रहे है तो आप पहाड़ों की रानी मसूरी भी देख सकते है।
   ऋषिकेश भी  इसी तरह हरिद्वार का जुड़वाँ शहर ही है। पार्श्व में है।  जहां से आप गंगा को उतरते हुए आप  मैदानी इलाके में देखेंगे।
    हरिद्वार और बंदर : हरिद्वार घूमते समय हमने यह बात जेहन में ताज़ी रखी थी कि  यहाँ बंदरों की तादाद अत्यधिक है। संभल कर रहना होगा। खिड़कियों में जालियाँ लगी हुई है। कपड़े तथा खाने पीने का सामान भूल कर भी खुले में मत छोड़ें नहीं तो माता जानकी के दूत कब आपको असहाय कर देंगे पता भी नहीं चलेगा। हरिद्वार स्टेशन पर ही हमने इन समझदार बंदरों को नलके की टोटी से पानी पी कर नल को बंद करतें हुए भी देखा था। सच ही है आदमी से जानवर ज़्यादा समझदार है।
   आसपास की जगहों को घूमने के पश्चात शाम के समय हम पुनः हर की पौड़ी में थे। वही पगलाती हुई भीड़। मेरी समझ में सदैव से हरिद्वार पुलिस प्रशासन के लिए प्रत्येक दिन हर की पौड़ी में होने वाली गंगा आरती के वक्त  भीड़ की व्यवस्था और उसे  संभालना एक चुनौती सिद्ध होती होगी।
     प्राचीन श्री गंगा मंदिर स्थल से पंड़ितों -पुरोहितों के 'जय गंगे माँ ' भजन के मंत्रोंच्चारण  के साथ ही  शाम की आरती शुरू हो चुकी थी।
     जलते हुए आस्था के असंख्य दियें  : गंगा आरती के समय ही आस्था के कई जलते हुए असंख्य  दीप पत्तों से बने  दोनों में रख कर गंगा में प्रवाहित कियें  जा रहें थे। तेज़ बहते हुए  दियों से गंगा की लहरें पटी पड़ी थी। रोजाना न जाने हम अपनी आस्थावश कितना मनों टन कूड़ा कचड़ा गंगा में प्रवाहित कर देतें हैं,हमें मालूम भी नहीं होता है। कभी दियों की शक्ल में तो कभी यज्ञ आहूति आदि कार्यों में प्रयुक्त नाना विविध सामग्रियों के रुप में।  हम कभी भी व्यक्तिगत तौर से प्रवाहित  किये गए दियों एवं  फेंके गये अवशिष्ठों  को सामूहिक रूप में नहीं समझ पाते हैं। 
    हर की पौड़ी में शाम के वक्त गंगा आरती में भाग लेना कितना पावन व मनभावन होता यहाँ  भाग लेने वाला हर दर्शनार्थी श्रद्धालु भक्त ही जानता है । गंगा हमारे लिए सभ्यता संस्कृति दायिनी रही है। एकदम माँ के समान मोक्षदायिनी और सुख देने वाली यह भी हम अच्छी तरह से जानते हैं । काश हमने उनके रखरखाव में थोड़ी सचेतता  बरती होती तथा  उनके अस्तित्व के लिए  यथोचित सम्मान दिया होता तो अबतक गंगा कितनी निर्मल हो गयी होती। 
     मंगल कामना के लिए लोगों द्वारा गंगा में प्रवाहित किए जाने वाले असंख्य दीपदानों को लेकर मेरा सुविचारित मत है ,अच्छा होता यदि हम गंगा सफाई अभियान के प्रति आस्थावान हो कर टनों कूड़ा कचड़ा बहाने से बचते , तो अब तक गंगा कितनी स्वच्छ  हो गयी होती ।   
    मेरी समझ में झिलमिलाते हुए ये दीप किंचित काल्पनिक हों ,मन में जलें तो अच्छा हो। कम से कम नमामि गंगे के लिए हम अपनी श्रद्धा रखते हुए गंगा को शुद्ध रख कर अनावश्यक प्रदूषित होने से तो बचा सकते है। सब की अपनी अपनी समझदारी है।
    सामने पार्श्व में खड़ी मनसा देवी की पहाड़ी स्थित ब्यूटी पाइंट से हरिद्वार एवं सदानीरा गंगा नदी की विभाजित धाराओं के बहने के मनोहारी दृश्यों का अवलोकन करना सदैव ही अच्छा लगा  है न। 
   थोड़े घंटे हर की पौड़ी मैं  व्यतीत कर के बाद बाहर ही कुछ खाकर हम नरसिंह धर्मशाला लौट आये थे। कल हमें सुबह ही बद्रीनाथधाम  के लिए निकलना था।
   कब जाए । प्रायोजित टुअर्स की यदि हम बात करें तो मेरी समझ में  हरिद्वार घूमने के लिए सब से अच्छा समय अप्रैल से जून तक व सितंबर व अक्तूबर तक का है। नवंबर से मार्च तक यहां पर ठंड होती है,अप्रैल से जून का महीना सर्वश्रेष्ठ है  क्योंकि इस समय आप अपनी इच्छा अनुसार बद्रीनाथ ,केदरनाथ ,गंगोत्री  तथा यमनोत्री की भी यात्रा आप सुरक्षित व  सुगमता पूर्वक कर सकते है।    
   कैसे पहुंचे - रेल मार्ग यहां के लिए दिल्ली ,मुंबई ,लखनऊ,वाराणसी,कलकत्ता,चंडीगढ़,अमृतसर,पटना आदि बहुत से स्थानों से सीधी रेल सेवाएं उपलब्ध हैं। मुंबई देहरादून एक्सप्रेस ,उज्जैन दिल्ली एक्सप्रेस, नई दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस , दिल्ली  देहरादून ( मसूरी ) एक्सप्रेस,वाराणसीदेहरादून एक्सप्रेस, हावड़ा देहरादून एक्सप्रेस , श्री गंगानगर हरिद्वार  लिंक एक्सप्रेस,उपासना एक्सप्रेस आदि कुछ  प्रमुख रेल सेवाएं हैं जो भारत के महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ती हैं। 
   सड़क मार्ग हरिद्वार सड़क मार्ग द्वारा देश के प्रायः सभी नगरों से जुड़ा है . दिल्ली , चंडीगढ़ , जयपुर , जोधपुर , अजमेर,आगरा ,शिमला ,देहरादून , ऋषिकेश , मुरादाबाद ,नैनीताल ,मसूरी ,मथुरा ,अलीगढ़ व देश के अन्य नगरों के लिए सीधी बस सेवाएं उपलब्ध हैं।  मसूरी ,केदारनाथ ,बदरीनाथ व दिल्ली के लिए  यहां से सीधी टैक्सी सुविधायें भी उपलब्ध हैं . 
   वायु मार्ग के लिए आपको देहरादून के जॉली ग्रांट के हवाई अडडे का ही प्रयोग करना होगा।  
   शहरों से हरिद्वार की  दूरी कि जहाँ तक बात करें तो हरिद्वार से प्रमुख नगरों यथा नैनीताल से-३८६  किलोमीटर ,मसूरी से - ९० किलोमीटर ,ऋषिकेश से - २४ किलोमीटर, आगरा से -३८६  किलोमीटर, बदरीनाथ से - ३२१  किलोमीटर, जयपुर से - ४८० किलोमीटर ,केदारनाथ से  - २५०  किलोमीटर,चेन्नई से २३६८ किलोमीटर,अहमदाबाद से  ११८४ .८ ,बेंगलुरु से २३३५.८ किलोमीटर ,मुम्बई से १६६०.८ किलोमीटर ,दिल्ली से - २०० किलोमीटर,लखनऊ से ५००.७ किलोमीटर तथा पटना से १०४१.८ किलोमीटर  की दूरी अनुमानित हैं।  
    कहा रुकें  हरिद्वार में ढ़ेर सारे होटल्स हैं  जिनमें उत्तम  क्लासिक रेजीडेंसी ज्वालापुर रोड, मानसरोवर  अपर रोड , तीर्थ  सुभाष घाट, सुविधा डीलक्स श्रवण नाथ नगर, विनायक डीलक्स सूर्या कॉप्लेक्स रानीपुर मोड़, मध्यम हिमगिरी ज्वालापुर रोड , मिडटाउन अपर रोड,आरती रेलवे रोड , विष्णु घाट,अशोक जस्सा राम रोड, कैलाश डीलक्स शिव मूर्ति के पास , शिवा  बाईपास रोड, गंगा  निहार जस्सा राम रोड,अजंता  श्रवणनाथ नगर,  साधारण आकाश कोतवाली के सामने, मद्रास श्रवणनाथ नगर ,मयूर सब्जी मंडी ,पनामा  जस्सा राम रोड, होलीडे इन श्रवणनाथ नगर, आदि आपकी जानकारी के लिए दे रहा हूं जिनका आप लाभ उठा सकते हैं।  
  साधारण धर्मशालाएं जयपुरिया,रामघाट।राम कुमार सेवा सदन ,भोमगौडा।जयराम आश्रम ,भीमगौडा।गुजराती ,श्रवणनाथ नगर।  गुजरांवाला भवन, श्रवणनाथ नगर। पंजाब सिंध ,भीमगौडा के पास ,नरसिंह भवन अपर रोड,  , कर्नाटक भल्ला रोड ,सिंध पंचायती, रेलवे रोड, सेठ खुशीराम अपर रोड, देवी बाई सिंधी भोलागिरी रोड,बिरला हाउस विरला रोड आदि स्थानों में आपको मिल जाएंगी जिनका किराया ३०० से ५०० रुपे के आस पास होगा। 
    खानेपीने के प्रमुख स्थल  हरिद्वार में खानेपीने के प्रमुख स्थल सर्वत्र बिखरे पड़े हैं। चिंता की कोई बात नहीं है। आप जहाँ कहीं भी जायेंगे आपको अच्छे रेस्टोरेंट तथा होटल मिल ही जायेंगे। तथापि आप कुछेक  पते जैसे  होटल स्वाद ,सूर्या कांप्लेक्स ,मथुरा वाला मोती बाजार, चोटी वाला रेलवे रोड ,मोहन पूरी वाला हर को पैड्डी, शिवालिक ललता राव,जैन चाट भंडार गली चाट वाली, आहार पुल रेलवे रोड , महेश टिक्की वाला चित्रा टाकीज के  सामने ,गुरुनानक रेलवे स्टेशन के सामने ,बीकानेर मिष्ठान ज्वालापुर रोड आदि को अपने दिमाग में स्मृत कर सकतें हैं।  
   कितना दिन रुकें  मेरे हिसाब से हरिद्वार दो से तीन दिनों में अच्छी तरह से घूमा जा सकता है। इसके अतिरिक्त आप एक दो पृथक दिन ऋषिकेश तथा मसूरी के लिए निकाल सकते हैं। 

 फोटो दीर्घा। 



 जरूर देखें। जरूरी लिंक।  
 हरिद्वार। मानो तो गंगा माँ हूँ वीडियो  देखने के लिए नीचे दिए गए  लिंक को दबाएं। 
 https://youtu.be/n-wjqFjrfL4


वीडियो /फोटो /लेख /कॉपी राइट /सर्वाधिकार सुरक्षित.M.S.Media
















    विशेष आकर्षण आगे के ब्लॉग की झलक बद्रीनाथ यात्रा

    जोशीमठ के गोविंद घाट से बढ़ते हुए हमने घोड़े वालों की कतारें देखी थी तब हम  गोविंद घाट  में थे । फूलों की घाटी ,और हेमकुंड साहिब के नीचे से गुजरते हुए हमारे मन में बलवती इच्छा थी कि काश हम हेमकुंड साहिब के दर्शन कर पाते । तब हल्की बूंदाबांदी हो रही थी । बादल जमीन पर यत्र तत्र बिखरे पड़े थे । जमीन कहां है और बादल कहां है , तब कह पाना मुश्किल था ।       
    शाम के पांच बज रहे होंगे । हमें बदरीनाथ धाम तक पहुंचना था । तब हमें शायद यह भी मालूम था कि तंग , पथरीले खतरनाक रास्तों से गुजरते हुए हमें अभी और भी ऊंचाई पर जाना है । रात के आठ और नौ भी बज जायेंगे । जबकि दूरी मात्र 25 किलोमीटर से ज्यादा की नहीं रही होगी । अत: मन  मसोस कर भीतर ही भीतर दृढ़ संकल्प लिए आगे बढ़ता गया कि अगली बार आया तो गुरू साहेब के दर्शन जरूर करूंगा । बलवती इच्छाओं का ही यह परिणाम ही था कि हेमकुंड साहिब - बदरीनाथ होते हुए केदारनाथ की यात्रा करने का हमें पुनः सुअवसर प्राप्त हो गया

Comments

  1. Very well described. The writer has the knack of very keen observation of any subject which gives magnetic effect to the reader's eyes.

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  2. Great share Uncle. Very well described. While going for a moment one can imagine himself in that palce. ♥️

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