वो जब याद आये , पिता अर्थात संस्कारों के जनक.

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वो जब याद आये.स्मृति लेख


श्रद्धांजलि साल २०२२  आवरण पृष्ठ.
बिहारशरीफ /  डॉ मधुप रमण.  साल २०२२ आ गया। उनकी फोटो मेरी आँखों के सामने टंगी है। उनके गुजरे हुए भी ३ साल भी हो गए ऐसा लगता है  कि किसी विशेष दिन अपने पिता को नहीं हर दिन याद कर लेना चाहिए। उनके द्वारा बताए गए सन्मार्ग का आवलंबन करने के लिए। कहीं न कहीं कोई अच्छी बातें परम पिता में होती ही है जिसे हमें स्मृत रखना है। बड़ी हैरत होती है एक बार मन से परम पिता को याद कर लेने  मात्र से ही आम जीवन में आती हुई  कठिनाईयां दूर होती रहीं हैं । मानों या न मानों मगर यह सच है। 

आपकी स्मृति में श्रद्धा के दो फूल डॉ.प्रशांत : फोटो मीडिआ.
इस बार की सही व सांकेतिक प्रार्थना सभा में शामिल होने वाले मेरे साथी पत्रकार प्रशांत सिंह , स्थानीय पत्रकार मनोज वेदी,तथा अपने तरीक़े से स्वरांजलि देने वाले ब्यूरो चीफ  दैनिक भास्कर, बिहार शरीफ,सुजीत कुमार, विशाल ब्यूरो चीफ, दैनिक जागरण, बिहारशरीफ़ ,तथा गुजरात से आए डॉ.प्रशांत शामिल थे जिनके लिए मैं आभार रखता हूँ । अपने भीतर के तिमिर हटाने मात्र के लिए हमने मोमबत्तियां जलाई और उन्हें याद किया।  
डॉ.मधुप रमण.
कार्टूनिस्ट , ब्लॉगर.  

प्रधान संपादक 
डॉ. मनीष कुमार सिन्हा 
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कार्यकारी संपादक.
 

डॉ. आर. के. दुबे.

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सहायक संपादक 
डॉ रूप कला प्रसाद .
डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह. 
सेवा निवृत्त  अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक,वन विभाग, छत्तीसगढ़.
डॉ. आर. के. दुबे.
डॉ. मधुप रमण.
नीलम पांडेय.
फोटो संपादक 


अशोक कर्ण. पूर्व  फोटो एडीटर ( एजेंडा ,नईदिल्ली ),
छायाकार, हिंदुस्तान टाइम्स ( पटना ,रांची संस्करण ) 
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पृष्ठ सज्जा : इ. सुरभि , सिद्धांत. बंगलोर  

तेरी मेरी यादें . 

संस्मरण लेख. तेरी मेरी यादें . 
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प्रथम मीडिया. 
एम.एस.मीडिया.
ए.एंड.एम. मीडिया
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पृष्ठ.१. हिंदी अनुभाग.गद्य स्मृति लेख 
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वो जब याद आये.
तेरी मेरी यादें. पृष्ठ.१ 
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के सौजन्य से  
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वो जब याद आये .स्मृति लेख.तेरी मेरी यादें .१ 
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कब कब याद करें अपने पिता को ,पुण्यतिथि पर या उनके जन्म दिवस पर या फिर उनकी अच्छाईओं को अपने सम्पूर्ण जीवन में।

दुःख भंजन प्रसाद .
साल २०२१ : की प्रार्थना सभा में मुझे पुनः मानवीय, दैविक प्रार्थना याद आ गया। हे प्रभु,मेरी दृष्टि सम्यक हो ,मेरा कर्म सम्यक हो मेरे विचार सम्यक हो। आज बाबूजी फिर से याद आ गए। उनकी पुण्यतिथि ही आज उनकी याद करने का सबब बना । बल्कि आज क्या हम उन्हें प्रत्येक दिन याद करते है। 
एक यक्ष प्रश्न है मेरे मन में। क्या  पिता जीवित हो तो उन्हें उनके जन्म दिवस पर याद किया जाए ? या जिनके पिता इस दुनिया में न हो तो उन्हें पुण्यतिथि पर याद मात्र कर लिया जाए। कदापि नहीं। अगर हो सकें तो उनके सद्गुणों को जीवनपर्यन्त याद रखें। उनके आदर्शों को अपने जीते जी जीने की कोशिश करें।
क्षमा प्रार्थी हूं कुछ सोच कर कि अभी बहुत सारे कार्य पितृ ऋण के शेष ही रह गये। कुछ आधा अधूरा न रह जाये यह कहते हुए कि अपने अपने पिता के जीते जी उनकी सेवा भाव पूरी ही कर लें। यह हमारे उपर है क्या करें क्या न करें  ?  क्या लें और क्या छोड़े ? मैं क्या याद करूं  क्या भूलूं समझ नहीं पा रहा  हूं। 
फ़क़ीरआना  अंदाज :  इस साल २०२१ में अपने पिता का मस्तमौलापन याद आ गया वो भी मेरी दादी का कहा हुआ। शुरू से मेरे पिता फ़क़ीर तबियत के रहे कभी संग्रह के पीछे नहीं रहे। जानते थे सब कुछ यहीं छूट जाएगा। अपने पराये सब के लिए उनकी मदद के लिए हाथ बढ़ाया। अपनी माँ को बिना बताए बचपन में अपने घर से चावल दाल ला कर दुकानियाँ वाली चाची को दे देना ,ग़रीब गुरबा  को कई तरीक़े से मदद करना ,अपने फुफेरे भाई मोहन के लिए सदैव आर्थिक मदद के लिए तैयार रहना उनकी फ़ितरत थी । मुझे याद है इसके लिए हमारे घर में झगड़े भी होते थे। 
उनका मानना था सब कुछ तो यहीं छोड़ जाना हैं। हालाँकि मैं अपने स्वभाव से उनसे विपरीत हूं संग्रह करने वाला और कंजूस प्रवृति का। लेकिन सच तो यहीं है ना कि महल चौबारें सब यहीं छूट जाते हैं और शेष रह जाती है उनके किये गए सुकर्मों की गाथाएं। 
उनकी स्मृति मात्र से राजकपूर अभिनीत फ़िल्म तीसरी क़सम का गाना ' सजन रे झूठ मत बोलो ..' स्वतः याद आ जाता है। उनका पसदींदा गाना सुनने व देखने के लिए  
नीचे दिए गए यूट्यूब लिंक को मात्र दबाए। 



परम पिता को भावभीनी श्रद्धांजलि। भूली बिसरी यादें 

पिता शब्द की व्याख्या  अपने आप में ही परम है। स्वयं या बच्चें के भीतर के आदर्शों के जनक होते हैं पिता। अनुशासन की कठोर पाठशाला होते हैं,पिता। हमारे भीतर नियमानुसार जीवन यापन करने की कठोर व्यवहारिक शिक्षा देते हैं। गलती करने पर दंड के सख्त प्रावधान भी करते हैं,पिता। किस लिए  ताकि हम सभी अपने जीवन का हर संभव सर्वांगीण व्यवहारिक मानवीय विकास कर सकें। मूलतः पितृ ,पिता या जनक शब्द के लिए मैं शत-शत नमन करता हूं। आज मैं बस इतना ही कहूंगा कि पिताजी आप में मौजूद तमाम अच्छाइयों को हम अपने भीतर ग्रहण करें यही हमारी आपके लिए सही श्रद्धांजलि होगी।
पिता अर्थात जनक। वह जो हमारे संस्कारों को जन्म देता है। वह जो अपने सीधेपन,साधुपन,गंवई अंदाज में हमारा मार्गदर्शक होतें  हैं । सरल हो जटिल हो,कुछ भी हो वह पिता ही हैं । सबकों अपने पिता पर गर्व ही होता है। मुझे भी अपने पिता पर गर्व  है।
चंडासी ग्राम
जीवन वृत्त
 
साल १९३४ के  भूकंप के समय डॉक्टर मातादीन प्रसाद राजेश्वरी देवी के घर में आप की पैदाइश  चंडासी ग्राम में हुई। बाल्यकाल अवस्था में ही पिता का साथ छूटा तो घर में अपने अभिभावक समान बहनोई अयोध्या प्रसाद एवं अपने अग्रज अलख  देव नारायण लाल की देखरेख में आपका जैसे-तैसे पालन हुआ। गरीबी और तंगी की हालत में आपने हुसैनपुर से मैट्रिक की परीक्षा पास की तो ग्रेजुएशन की पढ़ाई पटना के कॉमर्स कॉलेज से पूरी की। कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद आप शिक्षा विभाग में बमुश्किल क्लर्क पद पर बहाल हुए। 
लेकिन जब तक आगे सरकारी नौकरी की पूरी खुद्दारी से की। नौकरी में भी ईमानदारी को अपना धर्म बनाये रखा। विदुषी महिला निर्मला सिन्हा के साथ विवाह उपरांत आपके जीवन चक्र में तेजी से बदलाव आया। सन १९९६ के बाद आप सरकारी सेवा से  सेवानिवृत्त हुए और समाज सेवा में मनोयोग से लग गए। आप १९९६ में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद आपने स्वयं को मोहल्ले के चतुर्दिक विकास के लिए समर्पित कर दिया  था। मुहल्लें में सड़क निर्माण,विद्युत आपूर्ति, साफ सफाई के लिए सदैव तत्पर दिखे।  पूर्व वार्ड पार्षद श्री परमेश्वर महतो एवं मोहल्ले वासी कभी नहीं आपको भुला पाते हैं। 
दैनिक भास्कर १७ /०५ /२०१९। पेज १७ 
देहावसान  बताते चलें वयोवृद्ध ८५ वर्षीय दुःख भंजन प्रसाद जो विगत कई सालों से अल्जाइमर आदि कई बीमारियों से पीड़ित थे , परिवार के भरसक कोशिशों के बावजूद अपने निवास स्थान पर दिनांक ५  मई २०१९  को अपने जीवन के अंतिम बेला में अंतिम सांस ली थी। अपने पीछे शोक संतप्त परिवार में पत्नी दो पुत्र एक पुत्री को अकेला छोड़कर उस दुनिया के लिए प्रस्थान कर गए जहां से लौटकर कोई वापस नहीं आता है।
भूली विसरी यादों में मैं उन्हें उनके बांसुरी वादन के लिए बहुत याद करता हूं ,काश मैंने उनकी कुछ धुनें रिकॉर्ड करके रखी होती तो मेरे यूट्यूब के लिए काम आ जाती। तब शायद मैं अपने पिता के लिए कुछ कर पाता। याद करने के लिए तो बहुत कुछ हैं। सिराहने टंगे फोटो से बात करते हुए तो एक साल हो गए।ठीक मई महीने की ५ तारीख़ को ही न पिता जी ने अपना पार्थिव शरीर त्यागा था।
पिता वह होते हैं जो हौसला अफजाई करते है। पिता बे फरिश्ते हैं जो खुद तो जलते हैं मगर अपने बच्चों के लिए छांव रखते हैं। पिता जब दुखी होते हैं तो मां की तरह नहीं रोते हैं और यह भी सच है कि भीतर ही भीतर रोते है। पिता से बेहतर कोई मार्गदर्शक नहीं होता क्योंकि हर बच्चा अपने मां-बाप से कुछ न कुछ सीखता ही है। हमने भी कुछ सीखा है अपने पिता से संयम,धीरज और असत्य ना बोलना क्योंकि वह अक्सर कहा करते थे सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है।
संगीत का शौक उन्हें सेवा निवृति के बाद हुआ। घर के कोने में पड़े हारमोनियम के हवा में बजते सुर अभी भी गूँजतें रहते हैं। हालिया उन्हें श्रद्धांजलि देने के क्रम में  हमारे अग्रज रवि रमण ने उन्हें दिल से याद करने की भरसक कोशिश की है।
फलसफा ज़िंदगी का :  शरीर मृत हो जाता है।आत्मा नहीं। आत्मा क्या है ? आत्म का बोध ,आत्म का ज्ञान। काया तो नष्ट हो जाती ही है, मगर छाया नहीं। और छाया होती है,आपके द्वारा किए गए कृत्यों की छाया जो स्थायी हैं। शाश्वत है। अमिट है।अतः आप अपने जीवन का लक्ष्य ही ऐसा होना चाहियें कि आप कुछ ऐसा कर जाएं कि लोग आपको स्मृत करें विस्मृत नहीं।
आप यहाँ वही छोड़ जाते है जो आप कुछ कर जाते हैं।आप के मानवीय गुण ,आपकी आदतें,आपका व्यव्हार जो हम सबों के लिए अनुकरणीय हो जाते हैं।आप अपनी ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा और अपने सीधेपन के लिए पूरे समाज में याद किए जाएंगे ऐसा हमारा विश्वास है। 
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वो जब याद आये .तेरी मेरी यादें .२  
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अपनी पारिवारिक  जिम्मेदारियों को   सलीके से निभाया। स्वयं कष्ट सहे 

नई दिल्ली / डॉ मनीष कुमार सिन्हा.  
वो जब याद आये बहुत याद आये  पिता शीर्षक के अंतर्गत अपने पिता जो साल २०२१  अप्रैल १९ को दुनियां को अलविदा कह गए के बारें में वह कहते है उनके प्रति अतीव सम्मान है। उनके संस्कारों को अपने भीतर समाहित करने की चेष्टा करता हूं। 
आगे की याद में अपनी स्मृतियों को लिपिबद्ध करते हुए कहते है मेरे पिता सीधे साधे रहे है। कभी दिखावा नहीं किया। अपनी पारिवारिक  जिम्मेदारियों को   सलीके से निभाया। स्वयं कष्ट सहे लेकिन दूसरों को स्वयं की पीड़ा का एहसास नहीं होने दिया। ऐसे थे मेरे पिता। 
आप हम सबों के परिवार वालों तथा मध्य दुनियां वालों के समक्ष सदैव अपने स्पष्टवादी
विचारधारा,उच्चसंस्कारों, सम्यक कर्म,अपनी सम्यक सोच व सम्यक दृष्टि के लिए याद किए जायेंगे। आप अत्यंत अल्पभाषी ,स्वाभिमानी किस्म के पृथक व्यक्ति थे ,आपने कभी किसी से कुछ माँगा नहीं सदैव दूसरों को दिया ही।आप जैसे गाँधी वादी विचार धारा के लोग भला अब कहाँ रहते हैं ? 
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वो जब याद आये .तेरी मेरी यादें. ३   
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भरत जैसे  भाई सदृश्य ,आप एक  निर्लिप्त साधु की भांति थे एक हंसमुख इंसान....
राम शंकर / बंगलोर .

 नरेश प्रसाद कर्ण.
 
राम शंकर / बंगलोर . अपने पिता  नरेश प्रसाद कर्ण. को स्मृत करते हुए  कहते है जिन्होंने  पिछले साल २०२० में इस अपने नश्वर शरीर व भौतिक संसार का परित्याग कर दिया था , ' शरीर नश्वर है,यादें कभी मरती नहीं हैं. मेरा शत शत नमन है, आपको.आप एक अत्यंत अनुशासित ,जीवंत और संवेदनशील व्यक्ति रहे. मैंने  कभी आपके जीवन शैली में भगवान राम को भी कमो वेश उतरते हुए देखा है .यह सच है,आपको न भूल पाएंगे हम.' शरीर नश्वर है,यादें कभी मरती नहीं हैं.'
आगे भावुक होते हुए वह कहते हैं , ' भरत जैसे  भाई सदृश्य ,आप एक  निर्लिप्त साधु की भांति थे एक हंसमुख इंसान, जिसे  कभी भी संसारिक सुख समृद्धि अपनी ओर सर्वदा आकृष्ट नहीं कर सकी. मैंने ऐसे कई एक प्रमाण,देखा है सुना है,तथा पाया भी है. आप मेरी स्मृति में शेष हैं अमिट हैं .आप एक मुक़म्मल इंसान  रहें हैं. इस क्षणभंगुर जीवन के विस्तार में  आपने एक अच्छे पुत्र,पिता,पति,अभिभावक एवं  दोस्त की सही,स्वाभाविक,आदर्श भूमिका निभाई .' 
पिता साई के परम अनुयायी रहे,उन्हें याद आता है पिता हर वर्ष साई के दरबार जाते थे , ' आप साई के 

 
 
अनुयायी और भक्त रहें ,..हम जीते हैं क्योंकि हमें जीना है। आम प्रचलन या कहें सामान्य     अर्थों  में जीना इसी का नाम है। लेकिन इस अनमोल जीवन में हम कुछ ऐसा विशेष करें       कि जाने के बाद भी कुछ शेष रह जाएं। कुछ इस तरह प्रयासरत रहें कि कृति ,और कीर्ति     बनी रहें। जीवन के उद्देश्य,ज्ञान  प्राप्त करने,चिर स्थायी होने,का सही मार्ग वही है जिसे       बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग में तथा सम्राट अशोक ने सही धर्म की व्याख्या कल्याणकारी कार्यों     के करने में की है । कोशिश हो कि व्यवहार,आचरण में कर्मठता,शुद्धता तथा,कोमलता हो,
 

.....आपने सर्वथा यही कोशिश की,और इस उम्मीद में कि आप इतिहास बन जाएं यह कामना है मेरी । आपकी अच्छाइयों को ग्रहण करू इस आशीर्वाद के लिए आकांक्षी हूँ मैं .'
इसलिए  बड़े भाई की कुछ पंक्तियाँ हैं...... आपके जीवन भावों को दर्शाने के लिए 
'...गर किसी की शिकायत बची है हम से
तो शिकायत करो मुझसे.
पूरे ज़माने की शिकायत तो मैं सुन न सका ख़ुदा,
इल्तिज़ा थी,गर मिल जाते जिंदगी के दो दिन और भी
तो शायद,कोई और भी,
ग़मज़दा न होता इस जहां में हमीं  से....

उनके पसंदीदा गीत सुनने के लिए यूट्यूब लिंक को दवायें
तुम्हारे लिए.  

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वो जब याद आये .तेरी मेरी यादें. ४    
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आज जो कुछ भी  मैं  हूं अपने पिता की बजह से ही हूं....
ले. कर्नल  रोहित विकास. / पुणे .

के. डी. 
ले .कर्नल  रोहित 

ले. कर्नल  
रोहित विकास. / पुणे .  हमसे बात करते हुए बतलाते है हमने,माँ बाबूजी मेरे परिवार ने  बड़ी कठिनाईआं  झेली है। हमारे पिता 
कनकेश्वर दयाल मल्दहियर एच इ सी धुर्वा रांची के स्कूल ,में गणित के शिक्षक थे।आमदनी बहुत ही सीमित थी। खर्चें ज़्यादा थे। आगे की  पढ़ाई कैसे होगी 
यह भी एक चिंता का विषय ही था। परिश्रम ही हमारी एकमात्र पूँजी थी। हमारे साथ पढ़ाई में मेरे पिता बड़ी मेहनत करते थे। उनकी देख रेख में लगातार की गयी मेरी मेहनत से मैंने पुणे आर्म्ड फ़ोर्स मेडिकल कॉलेज  में प्रथम प्रयास में ही दाखिला लेने में मैंने सफलता पाई। 
डॉक्टर बनने के पश्चात् मैंने अपने पिता जो शुगर के मरीज़ रहे  को सुरक्षित और बचाने की भरसक कोशिश की दस पंद्रह सालों तक़ सफ़ल भी रहा। लेकिन आख़िरकार साल २०१९ फ़रवरी  में हम सब को छोड़ कर दूसरी दुनियां के प्रस्थान कर गए जहाँ से कोई लौट कर आता नहीं हैं। 


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पृष्ठ.२. हिंदी अनुभाग. पद्य 
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वो जब याद आये .तेरी मेरी यादें.    
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लहरों का शोर. 


ह्रदय में छुपाये रतन, 
बाहर लहरों का शोर लिए .
देखा है सागर को हर बार 
नम आँखों से होंठ सीये . 
अमृत कलश छुपाये, 
हलाहल भी जो पचा ले .
अशांत लहरों को खींच तट से ,
जो ,वापस अपने पास बुला ले .
बोझ के तले दबा रहे, 
और मर्यादा को भी बचा ले .
उसी के हाथों फिर विधाता ,
सृष्टि का आदि और अंत करा ले .
सीमा के अंदर रहकर भी , 
कैसे ,कोई असीम बन जाए .
सागर की अनगिनत लहरें ,
हर मानव को यहीं समझाए .


( स्वयं के पिता की स्मृति में
जो २०२१ में इस दुनियां को  छोड़ गए  )
नीलम पांडेय.

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पृष्ठ.३.हिंदी अनुभाग.समाचार 
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अख़बारों की कतरनों में बाबू जी.
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श्रद्धांजलि साल २०२२
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बिहारशरीफ /  डॉ मधुप रमण. साल २०२२ आ गया। उनकी फोटो मेरी आँखों के सामने टंगी है। उनके गुजरे हुए भी ३ साल भी हो गए थे । ऐसा लगता है  कि किसी विशेष दिन अपने पिता को नहीं हर दिन  याद कर लेना चाहिए। उनके द्वारा बताए गए सन्मार्ग का आवलंबन करने के लिए। कहीं न कहीं कोई अच्छी बातें परम पिता में होती ही है जिसे हमें स्मृत रखना है। 
बड़ी हैरत होती है एक बार मन से परम पिता को याद कर लेने  मात्र से ही आम जीवन में आती हुई  कठिनाईयां दूर होती रहीं हैं । मानों या न मानों मगर यह सच है। 
इस बार की सही व सांकेतिक प्रार्थना सभा में शामिल होने वाले मेरे साथी पत्रकार प्रशांत सिंह ,मनोज वेदी,तथा अपने तरीक़े से स्वरांजलि देने वाले ब्यूरो चीफ  दैनिक भास्कर, बिहार शरीफ ,सुजीत कुमार, विशाल ब्यूरो चीफ,दैनिक जागरण,बिहारशरीफ़ ,तथा गुजरात से आए डॉ.प्रशांत शामिल थे जिनके लिए मैं आभार रखता हूँ । अपने भीतर के तिमिर हटाने मात्र के लिए हमने मोमबत्तियां जलाई और उन्हें याद किया। 
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श्रद्धांजलि साल २०२१ 
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श्रद्धांजलि दिवस पर लोकहित समाज सेवा के लिए याद किए गए दुःख भंजन बाबू 

साल २०२० की  दिंवगत पिता की श्रद्धांजलि सभा में भाग लेते स्वजन 


श्रद्धांजलि  मोहल्ला धनेश्वर घाट निवासी अधिवक्ता रवि रमन एवं जिले के संघर्ष शील  व्यंग्य  चित्रकार,यूट्यूबर डॉ मधुप रमण ने आज संयुक्त रूप से अपने निवास स्थान में दिनांक ५ मई २०२० को अपने दिवंगत पिता श्री दुख भंजन प्रसाद की स्मृति में सांकेतिक प्रतीकात्मक श्रद्धांजलि सभा रखी जिसमें अपने परिवार जनों के अलावा अपने परायें,जाने अनजाने कई गणमान्य व्यक्तियों यथा 
दैनिक भास्कर ६ /५/२०। पेज १४। बुधबार
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डॉक्टर,इंजीनियर,पत्रकार ने लॉक डाउन की इस विषम परिस्थिति में दूर रहकर अपने अपने घरों से ही उन्हें याद करते हुए सहयोगात्मक एवं भावनात्मक उपस्थिति दर्ज कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी। इस उपलक्ष्य पर परिवार जनों के द्वारा दीप प्रज्वलित करते हुए  श्रद्धा सुमन अर्पित करने के साथ साथ भजन आदि का गायन हुआ। कुछेक दीप एवं मोमबत्ती रौशनी,सर्व कल्याण और उस निहित सन्देश के लिए भी जली जिसमें अद्यतन समय में सभी लोगों के लिए दुःख एवं कष्टों के अंधकार के हरण का भाव समाहित था।दूर बैठें परिजनों और जानने वालों ने सोशल मीडिया के जरिए अपने अपने तरीकें से दिंवगत दुःख भंजन प्रसाद को श्रद्धा के दो शब्द अर्पित किए। उल्लेखनीय तौर पर स्थानीय चैनेल के पत्रकार मनोज बेदी,तथा जिले के उभरते नवोदित गायक प्रसून पाठक ने ऑन लाइन स्वरांजलि देते हुए उन्हें  भावभीनी श्रद्धांजलि दी। आज इस पुण्य तिथि पर उन्हें पुनः लोकहित समाज सेवा के लिए याद किया गया।
छोटे से क्लर्क पद से अपने सरकारी सेवा की शुरुआत करने वाले स्वर्गीय दुःख भंजन प्रसाद अपने अधिकारियों जान पहचान वालों में अपनी ईमानदारी,कर्तव्यनिष्ठा,लगन सहयोगात्मक रवैए के लिए विशेषतः जाने जाते थे। उन्हें समाज में इसके लिए यथेष्ठ सम्मान भी मिलता था। सेवा निवृति के बाद मोहल्ला धनेश्वर घाट समिति के अध्यक्ष के पद पर आसीन होने के पश्चात मुहल्ले के विकास के लिए अपनी सेवाएं अहर्निश ज़ारी रखी जिसे लोग आज और अब भी याद करते हैं।
ज्ञात है ८५ वर्ष की अवस्था में सन ५ मई २०१९ को लंबी बीमारी के पश्चात दुःख भंजन प्रसाद का अपने निवास स्थान पर देहावसान हो गया था । और आपके कुछ कृत्य है जिसकी वजह से आज भी समाज के कई लोग आपको अभी भी याद करते हैं। याद करने के लिए तो बहुत कुछ हैं। सिराहने टंगे फोटो से बात करते हुए तो एक साल हो गए। ठीक मई महीने की ५ तारीख़ को ही न पिता जी ने अपना पार्थिव शरीर त्यागा था।
लेख पिता को समर्पित।
डॉ मधुप रमण ,स्वतंत्र व्यंग्य चित्रकार,यूटूबर
आज का संदर्भित लिंक.
यूट्यूब, तुम्हारे लिए.


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श्रद्धांजलि साल २०२०  
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दैनिक भास्कर १७ /०५ /२०१९। पेज १७ 
साल २०२० : की प्रार्थना सभा में मुझे पुनः मानवीय, दैविक प्रार्थना याद आ गया। हे प्रभु,मेरी दृष्टि सम्यक हो ,मेरा कर्म सम्यक हो मेरे विचार सम्यक हो। आज बाबूजी फिर से याद आ गए। उनकी पुण्यतिथि ही आज उनकी याद करने का सबब बना । बल्कि आज क्या हम उन्हें प्रत्येक दिन याद करते है। 
एक यक्ष प्रश्न है मेरे मन में। क्या  पिता जीवित हो तो उन्हें उनके जन्म दिवस पर याद किया जाए ? या जिनके पिता इस दुनिया में न हो तो उन्हें पुण्यतिथि पर याद मात्र कर लिया जाए। कदापि नहीं। अगर हो सकें तो उनके सद्गुणों को जीवनपर्यन्त याद रखें। उनके आदर्शों को अपने जीते जी जीने की कोशिश करें।
क्षमा प्रार्थी हूं कुछ सोच कर कि अभी बहुत सारे कार्य पितृ ऋण के शेष ही रह गये। कुछ आधा अधूरा न रह जाये यह कहते हुए कि अपने अपने पिता के जीते जी उनकी सेवा भाव पूरी ही कर लें। यह हमारे उपर है क्या करें क्या न करें  ?  क्या लें और क्या छोड़े ? मैं क्या याद करूं  क्या भूलूं समझ नहीं पा रहा  हूं। 



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श्रद्धांजलि साल २०१९   
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जीवन की साँझ : फोटो मीडिआ 

पिता जी देहावसान  हो चुका था।  बताते चलें वयोवृद्ध ८५ वर्षीय दुःख भंजन प्रसाद जो विगत कई सालों से अल्जाइमर आदि कई बीमारियों से पीड़ित थे , परिवार के भरसक कोशिशों के बावजूद अपने निवास स्थान पर दिनांक ५  मई २०१९  को अपने जीवन के अंतिम बेला में अंतिम सांस ली थी। 
रात्रि एकांतिक अवस्था में चोरी चुपके आपने आख़री सांसें ली। किसी ने देखा भी नहीं। अपने पीछे शोक संतप्त परिवार में पत्नी दो पुत्र एक पुत्री को अकेला छोड़कर उस दुनिया के लिए प्रस्थान कर गए जहां से लौटकर कोई वापस नहीं आता है। महा शमशान में जलती चिता के समक्ष  मैं  यहीं सोचता रहा क्या ले गए और क्या छोड़ गए। 
भूली विसरी यादों में मैं उन्हें उनके बांसुरी वादन के लिए बहुत याद करता हूं ,काश मैंने उनकी कुछ धुनें रिकॉर्ड करके रखी होती तो मेरे यूट्यूब के लिए काम आ जाती। तब शायद मैं अपने पिता के लिए कुछ कर पाता। 
पूर्व वार्ड पार्षद श्री परमेश्वर महतो एवं मोहल्ले वासी कभी नहीं आपको भुला पाते हैं। 
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देखें फोटो दीर्घा.पृष्ठ.
सम्पादन : अशोक कर्ण   
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वो जब याद आये, पिता.
अख़बारों की कतरनों में .पृष्ठ.५      
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प्रभात ख़बर /बिहारशरीफ /पेज ३। २८ /७ /२००६। एक छपा वक्तव्य 

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वो जब याद आये,पिता. 
आपने कहा. पृष्ठ ६        
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Er. Ram Shankar / Bangalore.
 

Not an iota of greed or want for anything 
 


He was my inspiration in many many ways . His character is worth emulating . Not an iota of greed or want for anything .Moreover his reliance on nature to keep himself hale and hearty I fondly remember and try to emulate. Two incidents are etched in my memory forever , one when he and I went in the scooty to my village Haripur soon after I passed out of college and the time when we had the blessings of hosting him and Mausi ji at Banaglore he came to my office. It was such a proud moment for me even more than I felt for Maa Babuji. He was very reluctant to go inside and was feeling shy but in my heart I was feeling this office or any other office would be blessed to host such a pure character as his. I simply adore him . He clearly towers above all us and rightly at that.                                                                                        
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सच्ची श्रद्धांजलि उनके बताए हुए  मार्ग पर चलना है और जिंदगी में सेवा करना...... बिभा  सिन्हा , रांची 
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Comments

  1. My heartful tribute to Shree Dhukbhanjan Prasad

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  2. वो सरल स्वभाव के व्यक्ति थे.

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  3. Sadar Pranam . You were my inspiration for your simplicity and good habits . I never saw you speak ill of others and always wore your smile .
    In my book you were and are the torch bearer of good character in our family .

    Your life and how you conducted it will be an inspiration for all of us .

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  4. बहुत बहुत श्रद्धाजंलि। एक सच्चे, सीधे, निष्कपट और भोले शख्सियत को।

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