आस्था की नगरी , हरिद्वार.
|
हरिद्वार,बद्रीनाथ धाम की यात्रा के समय की तस्वीर. कोलाज़ विदिशा
|
हरिद्वार : हरिद्वार
हरि के गृह तक पहुंचने का द्वार है। साधु, संतों सन्यासियों की जमातों के चलते हमें यह बारबार प्रतीत होगा कि कहीं हम मठों के शहर में तो नहीं आ गए है ? यह चारों धामों की प्रवेश नगरी है अतः इस नगरी की सांस्कृतिक तथा धार्मिक महत्ता अत्यंत है । यही से हम चार धाम यथा गंगोत्री ,यमनोत्री ,बद्रीनाथ तथा केदारनाथ की यात्रा के लिए अपनी यात्रा शुरू कर सकते है शायद इसलिए हरिद्वार में सालों भर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है।
सन १९९८ का वर्ष था। मेरी तत्कालीन उत्तर प्रदेश राज्य की पहली यात्रा थी। हम एक समूह में हरिद्वार जा रहें थे जब हरिद्वार जाने के लिए हमने वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से वाराणसी - देहरादून ट्रेन पकड़ी थी।
हमारी सभ्यता और संस्कृति : हरिद्वार की इस पहली यात्रा के लिए मैं विशेषतः अत्यंत आहलादित था। मुझे याद है जब मैंने पहली बार गंगा की दुग्ध धवल मचलती हुई धारा को हर की पौड़ी में स्पर्श किया था , तब न जाने कौन कौन से भाव हृदय में तरंगित हो रहें थे। वो प्रातःकालीन वेला थी जिसे मैं कदापि नहीं भूल सकता हूं। तुरंत छू कर हाथ हटाना पड़ा था क्योंकि पानी हद से ज़्यादा ठंढा था। सोचता हूँ माँ गंगे हमारी आर्यावर्त की सभ्यता की पोषक रही गंगा यमुनी तहजीब की साक्षी रही।
भागती हुई भीड़ में सरकते हुए लोगों का वहां अम्बार था। मैं अकेला यायावर हर की पौड़ी पर खड़ा हो कर
|
कवि विद्यापति |
यही सोच रहा था कि यदि यह देवसरिता नहीं होती तो हमारी सभ्यता और संस्कृति ही नहीं होती। हरिद्वार के प्रति मेरा लगाव इस तरह असीमित है कि मेरे शब्द कम होंगे इसके विवरण के लिए । कवि विद्यापति की तरह हमें भी कभी कभी निर्मल गंगे को शुद्ध और पवित्र बनाए नहीं रखने का अपराध बोध भी सताता है।
मुझे वहां के साधु ,संत , भिखमंगे भी अत्यंत भाग्यशाली प्रतीत होते है कि वे यहाँ रहते हैं। इसके बाद तो मेरी हरिद्वार यात्रा सदैव होती ही रही। हर हर गंगे, मैं तुम्हें नमन करता हूं कि तू अपनी इस अतुलनीय भारतीय संस्कृति की जननी है। पालने पोषने वाली है । तू नहीं होती तो यह आर्यावर्त नहीं होता।
मुक्ति दायिनी ,पतित पावनी गंगा के दर्शन : सन २०१० का साल। तब उत्तराखंड का निर्माण हुए भी आठ साल बीत चुके थे। १९९८ के बारह साल बाद फिर हम हरिद्वार आये थे। २९ मई को हरिद्वार पहुंचते ही हमने वही चिरपरिचित धर्मशाला नरसिंह भवन में जहां हम ठहरा करते थे ,जो हर की पौड़ी के समीप ही है , एक रात के लिए आश्रय ले लिया था । यह भवन दरअसल एक धर्मशाला है जहां होटल से भी रहने खाने की अच्छी और सस्ती व्यवस्था है। आप इसे आज़मा सकते है। शाम होते ही गंगा दर्शन के लिए हम सभी प्रस्थित हो गए।
और शाम होते ही हर की पौड़ी में मुक्ति दायिनी , पतित पावनी गंगा के दर्शन के लिए विभिन्न प्रांतों से आये असंख्य लोग वहां पहुंचे चुके थें । और उनलोगों ने मूलतः घाट की सीढ़ियों पर ही डेरा जमा लिया था। स्नान घाट के रूप में प्रसिद्ध रहे हर की पौड़ी हरिद्वार का अति प्रमुख स्थल है जहां प्रति बारह साल के बाद कुम्भ के मेले तथा छह साल के बाद अर्धकुम्भ के मेले लगते हैं।
|
हर की पौड़ी ,हरिद्वार। संध्या आरती के समय श्रद्धालुओं की भीड़। छायाचित्र डॉ सुनीता
|
|
डॉ. मधुप |
हर की पौड़ी - हरिद्वार के सबसे महत्वपूर्ण घाटों में से एक है हर की पौड़ी। सभ्यता संस्कृति के संरक्षण के लिए जरुरत के अनुसार इन घाटों से गंगा की कृत्रिम धाराएं इस तरफ मोड़ी गयी है। अन्यथा मानों तो मैं गंगा माँ हूं की मूल नील धाराएं तो थोड़ा हट कर शहर से बहती हैं । यहाँ की संध्या गंगा आरती की शोभा अप्रतिम है। देखने योग्य है। वर्णनातीत है। सम्पूर्ण भारत के विभिन्न प्रदेशों की सभ्यता संस्कृति की एकतागत झलक देखनी हो यहाँ आ जायें। शाम होते ही जय गंगे माँ की आरती की स्वरलहरी पर्यटकों को अनायास ही गंगा घाटों की तरफ़ खींच लेती हैं। पूरा घाट स्थानीय ,बाहरी श्रद्धालुओं,पर्यटकों,से पट जाता है। अन्यथा संध्या काल में देर होने के पश्चात तो यहाँ तिल रखने मात्र की भी जग़ह नहीं मिल पाती है। जय गंगे माँ की आरती की घड़ी आ जाती हैं। लोगों की नियंत्रित भीड़ घाटों में जमा होने लगती हैं। घड़ी ,घंट ,शंख आदि बजने लगते हैं। पंडितों के आरती के स्वर वातावरण में गूंजने लगते है। दोनों में असंख्य दियें जला कर पूजा की सामग्री साथ नदी की जल धाराओं में छोड़ दिए जाते हैं। विश्वास के ये अनगिनत दिए अवशिष्ट बन कर नदियों में प्रवाहित कर दिए जाते हैं। हममें से हर किसी की कोशिश होती हैं कि इन नदियों के किनारे ही पंच तत्त्वों में विलीन हो जाते तो मुक्ति मिल जाती । काश हम इससे बच सकते तो हमारी नदियां भी लन्दन के टेम्स जैसी साफ़ सुथरी होती। लेकिन कर्मकांड में अतीव विश्वास रखने बाले लोग यहाँ के साधु,संतों और पंडों से ज़रा होशियार ही रहें ,नहीं तो इस जन्म मरण ,इहलोक परलोक ,पाप पुण्य के जटिल प्रश्नों और उनकी समस्याओं के निवारण के चक्कर में आप अपनी आर्थिक हानि ही कर बैठेंगे। याद रहें सम्यक सोच ,सम्यक दर्शन व सम्यक कर्म ही सम्यक धर्म है।
सनातनी वैदिक संस्कृति बाले इस पौराणिक शहर में निरामिष लोगों के लिए खाने पीने की कहीं भी कमी महसूस नहीं होगी। फल फूल ,दूध दही ,से परिपूर्ण इस नगरी में लस्सी शर्वत ,मेवे, मिठाईयां खाने के शौक़ीन लोग यहाँ घाटों के पास मौज़ूद ढ़ेर सारे रेस्टुरेंट ,ढाबों ,होटल ,खोमचे वालों से अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी नाश्ता ,लंच, डिनर आदि ले सकतें हैं।
----------------------------------
आस्था की नगरी हरिद्वार। गतांक से आगे १.
हर की पौड़ी स्नान घाट में गंगा का मंदिर ,मानसिंह की छतरी , बिरला टावर दर्शनीय है। सच कहें तो मुझे हरिद्वार घाटों, मंदिरों का शहर ही लगता है तथा यहाँ के रहने वाले अधिकाधिक लोग पण्डें ही जान पड़ते हैं ।
|
संध्या गंगा आरती के समय विभिन्न संस्कृतियों का हर की पौड़ी में समागम। कोलाज विदिशा। |
मनसा देवी मंदिर : बिलवा पर्वत पर स्थित हरिद्वार का यह मंदिर सबसे प्रमुख मंदिर है जहाँ हम रोपवे के जरिए पहुंच सकते है। पैदल मार्ग भी बना है। हरिद्वार आने वाले अधिकाधिक पर्यटक देवी माँ मनसा का आशीर्वाद पाने हेतू यहाँ अवश्य जाते हैं । इस मंदिर परिसर के पास से ही पूरे हरिद्वार शहर का मनोहारी व प्राकृतिक दृश्य दिखता है। यही से गंगा नदी की बल खाती पतली धाराएं नहर की शक्ल में मुड़ती हुई हर की पौड़ी की तरफ भी दिखतीं हैं जो आगे चल कर गंगा की मुख्य धारा में समाहित हो जाती हैं। हरिद्वार की प्राकृतिक सुषमा निहारनी हो तो मनसा देवी ज़रूर जाएं।
ब्यूटी पॉइंट : मनसा देवी मार्ग में ही ब्यूटी पॉइंट है जहाँ से पूरे शहर का अवलोकन किया जा सकता है।
दक्ष महादेव मंदिर : हरिद्वार का अत्यंत प्राचीन मंदिर है जहाँ धार्मिक प्रवृति के लोग जाना अत्यधिक पसंद करते है। मैने वहां बहुत सारे भक्तों एवं श्रद्धालुओं को बकरें की आवाज़ निकाल कर भगवान भोले को प्रसन्न करते हुए तथा दक्ष प्रजापति को चिढ़ाते हुए देखा।
कनखल में माँ सती का अग्निकुंड भी है. जहां उन्होंने अपने पिता के घर में अपने स्वामी त्रिपुरारि,भोले का अपमान सहन न करने की स्थिति में स्वयं को अग्निकुंड के हवाले कर भस्म कर लिया था।
चंडी देवी : गंगा के दुसरे किनारे नील पर्वत के शीर्ष पर माँ चंडी को समर्पित यह दूसरा मंदिर है जहाँ पर्यटक रोपवे के जरिये जाना पसंद करते है। इतिहास यह है कि इसका निर्माण जम्मू काश्मीर के नृप सुचात सिंह ने सन १९२९ में करवाया था।
नील धारा : हरिद्वार में बहने बाली गंगा की समझी हुई यह अबिरल,शुद्ध एवं पारदर्शी धारा है जो शहर के पार्श्व में बहती है। हालांकि पूरी शुद्धता की बात अब हम नहीं करते हैं, किसी ज़माने में शुद्धता ही वो पैमाना रही होगी जिसकी वजह से इसे नील धारा का नाम दिया गया होगा। नील धारा एक पक्षी विहार भी है जहाँ मौसम के रूख को बदलते ही यहाँ बेशुमार प्रवासी पंछियों का डेरा भी देखा जा सकता है।
गुरु कुल कांगड़ी : मुख्य शहर हरिद्वार से लगभग ३ किलोमीटर दूर विश्वविद्यालय की स्थापना आर्य समाज के जनक, स्वामी दयानन्द के परम शिष्य स्वामी श्रद्धानन्द ने मुंशी राम के सहयोग से की थी। उनका यह प्रयास दृष्टव्य है ,सराहनीय है कि हम अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति पर आधारित वैदिक व हिंदी शिक्षा को कैसे संरक्षित व प्रचारित करें। नगर से ढाई किलोमीटर दूर आप यह भी स्थान देख सकते है। पतंजलि योग पीठ : आज योग गुरु बाबा रामदेव के अथक प्रयासों से भारतीय योग तथा आयुर्वेद का डंका समस्त विश्व में बज रहा है। सम्पूर्ण देश विदेश में पतंजलि के विभिन्न स्वदेशी उत्पादों की अत्यधिक बिक्री व लोकप्रियता की वज़ह से यहाँ आने बाले पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी है जो पतंजलि पीठ जाना भी पसंद करतें है।
भारत माता मंदिर : एक अनोखी जग़ह है इस मंदिर में विभिन्न धर्मों के संतों एवं देश के प्रमुख लोगों की मूर्तियां स्थापित है।
शांति कुंज : हरिद्वार से ६ किलोमीटर दूर हरिद्वार -ऋषिकेश मार्ग में गायत्री परिवार से सम्बंधित लोगों के लिए यह जगह स्वयं सिद्ध पवित्र मंदिर स्थल है जहाँ एकाध दो घंटा व्यतीत करना आनंददायी होगा।
राजाजी नेशनल पार्क : जो लोग जंगल सफारी के शौक़ीन हैं उनके लिए ८२० किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले देहरादून, पौड़ी गढ़वाल और हरिद्वार जिले की शिवालिक पहाड़ियों की तराई में स्थित भारत की एक प्रसिद्ध सैंचुरी - पार्क है जिसे भारत सरकार ने टाइगर संरक्षित वन घोषित कर रखा है। यह पार्क शहर से १० किलोमीटर की दूरी रखता है। यहां लोग मोगली बन कर वन में घूमने का अतिरेक आनंद उठा सकते है । जहाँ चीला जैसे रमणीक स्थल भी है ।
----------------------------------
आस्था की नगरी हरिद्वार। गतांक से आगे २ .
|
ऋषिकेश से गुजरती हुई गंगा की अनुपम छटा। कोलाज विदिशा।
|
चीला : राजाजी सैंचुरी में ही प्रकृति प्रेमियों के लिए एक मनोरम पिकनिक स्थल है जो शहर से ८ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है।
मसूरी : यदि आप हरिद्वार में रहते हुए एक दिवसीय पर्यटन के लिए १०० किलोमीटर की परिधि में घूमने का मन बना रहे है तो आप पहाड़ों की रानी मसूरी भी देख सकते है।
ऋषिकेश : भी इसी तरह हरिद्वार का जुड़वाँ शहर ही है। पार्श्व में है। जहां से आप गंगा को उतरते हुए आप मैदानी इलाके में देखेंगे।
|
बंदरों के आतंक |
हरिद्वार और बंदर : हरिद्वार घूमते समय हमने यह बात जेहन में ताज़ी रखी थी कि यहाँ बंदरों की तादाद अत्यधिक है। संभल कर रहना होगा। खिड़कियों में जालियाँ लगी हुई है। कपड़े तथा खाने पीने का सामान भूल कर भी खुले में मत छोड़ें नहीं तो माता जानकी के दूत कब आपको असहाय कर देंगे पता भी नहीं चलेगा। हरिद्वार स्टेशन पर ही हमने इन समझदार बंदरों को नलके की टोटी से पानी पी कर नल को बंद करतें हुए भी देखा था। सच ही है आदमी से जानवर ज़्यादा समझदार है। आसपास की जगहों को घूमने के पश्चात शाम के समय हम पुनः हर की पौड़ी में थे। सोचा कल हमें सुबह ही बद्रीनाथधाम के लिए निकलना था तो क्यों नहीं माँ गंगे का पुनः दर्शन कर ले ।वही पगलाती हुई भीड़। मेरी समझ में सदैव से हरिद्वार पुलिस प्रशासन के लिए प्रत्येक दिन हर की पौड़ी में होने वाली गंगा आरती के वक्त भीड़ की व्यवस्था और उसे संभालना एक चुनौती सिद्ध होती होगी। प्राचीन श्री गंगा मंदिर स्थल से पंड़ितों -पुरोहितों के 'जय गंगे माँ ' भजन के मंत्रोंच्चारण के साथ ही शाम की आरती शुरू हो चुकी थी।
|
जय गंगे माँ ' भजन के मंत्रोंच्चारण के साथ ही शाम की आरती : कोलाज विदिशा |
जलते हुए आस्था के असंख्य दियें और फिर से मन में उठते कई अनुतरित सवाल : गंगा आरती के समय से ही आस्था के कई जलते हुए असंख्य दीप पत्तों से बने दोनों में रख कर गंगा में प्रवाहित कियें जा रहें थे। तेज़ बहते हुए दियों से गंगा की लहरें पटी पड़ी थी। रोजाना न जाने हम अपनी आस्थावश कितना मनों टन कूड़ा कचड़ा गंगा में प्रवाहित कर देतें हैं, हमें मालूम भी नहीं होता है। कभी दियों की शक्ल में तो कभी यज्ञ आहूति आदि कार्यों में प्रयुक्त नाना विविध सामग्रियों के रुप में।हम कभी भी व्यक्तिगत तौर से प्रवाहित किये गए दियों एवं फेंके गये अवशिष्ठों को सामूहिक रूप में नहीं समझ पाते हैं। हर की पौड़ी में शाम के वक्त गंगा आरती में भाग लेना कितना पावन व मनभावन होता यहाँ भाग लेने वाला हर दर्शनार्थी श्रद्धालु भक्त ही जानता है । गंगा हमारे लिए सभ्यता संस्कृति दायिनी रही है। एकदम माँ के समान मोक्षदायिनी और सुख देने वाली यह भी हम अच्छी तरह से जानते हैं । काश हमने उनके रखरखाव में थोड़ी सचेतता बरती होती तथा उनके अस्तित्व के लिए यथोचित सम्मान दिया होता तो अबतक गंगा कितनी निर्मल हो गयी होती। मंगल कामना के लिए लोगों द्वारा गंगा में प्रवाहित किए जाने वाले असंख्य दीपदानों को लेकर मेरा सुविचारित मत है ,अच्छा होता यदि हम गंगा सफाई अभियान के प्रति आस्थावान हो कर टनों कूड़ा कचड़ा बहाने से बचते , तो अब तक गंगा कितनी स्वच्छ हो गयी होती । मेरी समझ में झिलमिलाते हुए ये दीप किंचित काल्पनिक हों ,मन में जलें तो अच्छा हो। कम से कम नमामि गंगे के लिए हम अपनी श्रद्धा रखते हुए गंगा को शुद्ध रख कर अनावश्यक प्रदूषित होने से तो बचा सकते है। सब की अपनी अपनी समझदारी है। सामने पार्श्व में खड़ी मनसा देवी की पहाड़ी स्थित ब्यूटी पाइंट से हरिद्वार एवं सदानीरा गंगा नदी की विभाजित धाराओं के बहने के मनोहारी दृश्यों का अवलोकन करना सदैव ही अच्छा लगा है न। थोड़े घंटे हर की पौड़ी मैं व्यतीत कर के बाद बाहर ही कुछ खाकर हम नरसिंह धर्मशाला लौट
|
नेशनल पार्क |
आये थे।
कब जाए : प्रायोजित टुअर्स की यदि हम बात करें तो मेरी समझ में हरिद्वार घूमने के लिए सब से अच्छा समय अप्रैल से जून तक व सितंबर व अक्तूबर तक का है। नवंबर से मार्च तक यहां पर ठंड होती है,अप्रैल से जून का महीना सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इस समय आप अपनी इच्छा अनुसार बद्रीनाथ , केदारनाथ ,गंगोत्री तथा यमनोत्री की भी यात्रा आप सुरक्षित व सुगमता पूर्वक कर सकते है।
कैसे पहुंचे :
रेल मार्ग यहां के लिए दिल्ली ,मुंबई,लखनऊ,वाराणसी,कलकत्ता,चंडीगढ़,अमृतसर,पटना आदि बहुत से स्थानों से सीधी रेल सेवाएं उपलब्ध हैं। मुंबई देहरादून एक्सप्रेस ,उज्जैन दिल्ली एक्सप्रेस, नई दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस , दिल्ली देहरादून ( मसूरी ) एक्सप्रेस,वाराणसी देहरादून एक्सप्रेस, हावड़ा देहरादून एक्सप्रेस , श्री गंगानगर हरिद्वार लिंक एक्सप्रेस,उपासना एक्सप्रेस आदि कुछ प्रमुख रेल सेवाएं हैं जो भारत के महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ती हैं।
सड़क मार्ग हरिद्वार सड़क मार्ग द्वारा देश के प्रायः सभी नगरों से जुड़ा है . दिल्ली , चंडीगढ़ , जयपुर , जोधपुर , अजमेर,आगरा ,शिमला ,देहरादून , ऋषिकेश , मुरादाबाद ,नैनीताल ,मसूरी ,मथुरा ,अलीगढ़ व देश के अन्य नगरों के लिए सीधी बस सेवाएं उपलब्ध हैं। मसूरी ,केदारनाथ ,बदरीनाथ व दिल्ली के लिए यहां से सीधी टैक्सी सुविधायें भी उपलब्ध हैं।
वायु मार्ग के लिए आपको देहरादून के जॉली ग्रांट के हवाई अडडे का ही प्रयोग करना होगा। शहरों से हरिद्वार की दूरी कि जहाँ तक बात करें तो हरिद्वार से प्रमुख नगरों यथा नैनीताल से ३८६ किलोमीटर ,मसूरी से ९० किलोमीटर ,ऋषिकेश से २४ किलोमीटर, आगरा से ३८६ किलोमीटर, बदरीनाथ से ३२१ किलोमीटर, जयपुर से ४८० किलोमीटर ,केदारनाथ से २५० किलोमीटर, चेन्नई से २३६८ किलोमीटर,अहमदाबाद से ११८४ .८ ,बेंगलुरु से २३३५.८ किलोमीटर ,मुम्बई से १६६०.८ किलोमीटर ,दिल्ली से २०० किलोमीटर,लखनऊ से ५००.७ किलोमीटर तथा पटना से १०४१.८ किलोमीटर की दूरी अनुमानित हैं।
कहा रुकें : हरिद्वार में ढ़ेर सारे होटल्स हैं जिनमें उत्तम क्लासिक रेजीडेंसी ज्वालापुर रोड, मानसरोवर अपर रोड , तीर्थ सुभाष घाट, सुविधा डीलक्स श्रवण नाथ नगर, विनायक डीलक्स सूर्या कॉप्लेक्स रानीपुर मोड़, मध्यम हिमगिरी ज्वालापुर रोड , मिडटाउन अपर रोड,आरती रेलवे रोड , विष्णु घाट,अशोक जस्सा राम रोड, कैलाश डीलक्स शिव मूर्ति के पास , शिवा बाईपास रोड, गंगा निहार जस्सा राम रोड,अजंता श्रवणनाथ नगर, साधारण आकाश कोतवाली के सामने, मद्रास श्रवणनाथ नगर ,मयूर सब्जी मंडी ,पनामा जस्सा राम रोड, होलीडे इन श्रवणनाथ नगर, आदि आपकी जानकारी के लिए दे रहा हूं जिनका आप लाभ उठा सकते हैं।
साधारण धर्मशालाएं जयपुरिया,रामघाट।राम कुमार सेवा सदन ,भोमगौडा।जयराम आश्रम ,भीमगौडा।गुजराती ,श्रवणनाथ नगर। गुजरांवाला भवन, श्रवणनाथ नगर। पंजाब सिंध ,भीमगौडा के पास ,नरसिंह भवन अपर रोड, , कर्नाटक भल्ला रोड ,सिंध पंचायती, रेलवे रोड, सेठ खुशीराम अपर रोड, देवी बाई सिंधी भोलागिरी रोड,बिरला हाउस विरला रोड आदि स्थानों में आपको मिल जाएंगी जिनका किराया ३०० से ५०० रुपे के आस पास होगा ।
खानेपीने के प्रमुख स्थल : हरिद्वार में खानेपीने के प्रमुख स्थल सर्वत्र बिखरे पड़े हैं। चिंता की कोई बात नहीं है। आप जहाँ कहीं भी जायेंगे आपको अच्छे रेस्टोरेंट तथा होटल मिल ही जायेंगे। तथापि आप कुछेक पते जैसे होटल स्वाद ,सूर्या कांप्लेक्स ,मथुरा वाला मोती बाजार, चोटी वाला रेलवे रोड ,मोहन पूरी वाला हर को पैड्डी, शिवालिक ललता राव,जैन चाट भंडार गली चाट वाली, आहार पुल रेलवे रोड , महेश टिक्की वाला चित्रा टाकीज के सामने ,गुरुनानक रेलवे स्टेशन के सामने ,बीकानेर मिष्ठान ज्वालापुर रोड आदि को अपने दिमाग में स्मृत कर सकतें हैं। कितना दिन रुकें मेरे हिसाब से हरिद्वार दो से तीन दिनों में अच्छी तरह से घूमा जा सकता है। इसके अतिरिक्त आप एक दो पृथक दिन ऋषिकेश तथा मसूरी के लिए निकाल सकते हैं।
डॉ. मधुप रमण
जरूर देखें। जरूरी लिंक।
हरिद्वार। मानो तो गंगा माँ हूँ वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं।
----------------------------------
उत्तराखंड. ट्रेकिंग. पृष्ठ ५ / ३ .
---------------------------------
|
अलसुबह दिखते केदारकंठ के हिम शिखर : फ़ोटो डॉ.प्रशांत |
ट्रेकिंग की शुरुआत करें केदारकंठ शिखर से.
केदारकंठ / डॉ . प्रशांत. मुझे याद है यह मेरी पहली ट्रेकिंग थी । हमने जाड़े का समय ही चुना था क्योंकि हम ठंढ, बर्फवारी तथा अतिरेक रोमांच का एहसास करना चाहते थे । जीवन में ट्रेकिंग का जुनून मुझमें
|
डॉ .प्रशांत. |
बचपन से रहा। मैं बहुत रोमांचित था। हम सभी भारत के विभिन्न जगहों से देहरादून पहुंच चुके थे। पटना से नरेंद्र , रायपुर से शैलेन्द्र सिंह मेरे साथ थे। ट्रेकिंग बेहतर तरीक़े से हो आरामदायक हो इसलिए हमलोगों ने इंडिया हाईक की सेवाएं लेने की सोच ली थी। मैं एक पेशे से डॉक्टर हूँ इसलिए मेरे साथी कहीं ज़्यादा इत्मीनान में थे क्योंकि उन्हें चिकित्सक की सेवा मुफ़्त में ही मिल रहीं थी ।
देहरादून रेलवे स्टेशन पर इंडिया हाईक ने अपनी टैक्सी उपलब्ध कर रखी थी। हमें मसूरी होते हुए सांकरी बेस कैम्प तक पहुंचना था। बता दें कम खर्चें पसंद करने वाले उत्तराखंड परिवहन की सेवाएं भी ले सकते है। केदार कंठ पहुंचने के लिए पर्यटकों को सबसे पहले राज्य की राजधानी देहरादून पहुंचना होता है , रेल मार्ग या हवाई मार्ग से देहरादून तक पहुंचने की सुविधा है।
देहरादून के बाद सांकरी गांव पहुंचने के लिए मात्र मोटर मार्ग से ही लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। देहरादून से बेस कैंप सांकरी तक मोटर मार्ग की दूरी लगभग १९० किलोमीटर की है। देहरादून से सांकरी तक पहुंचने के लिए पर्याप्त मात्रा में टैक्सी और सार्वजनिक गाड़ियां उपलब्ध रहती है । केदार कंठ का ट्रैक लगभग १८ किलोमीटर का है जिसे तय करने में सामान्य ट्रैकर को लगभग ४ से ५ दिन लग ही जाते हैं। केदार का ट्रेक सांकरी गांव से शुरू होता है सामान्यतः नए ट्रैकर्स के लिए केदार कंठ का ट्रैक शुरूआती और आसान भी माना जाता है , फिर भी ट्रैकर्स को पूरी , उचित सुरक्षा सामग्री के साथ इस ट्रैक पर आना चाहिए। सांकरी गांव से केदारकंठ की ओर बढ़ने पर यह ट्रेक और भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन मुश्किल होने के साथ ही नए - नए दृश्य और पर्वत श्रृंखलाओं का नजारा ट्रैक में रोमांच का जबरदस्त अहसास करवाता ही रहता है। बताते चलें कि केदारकंठ से हिमालय की चोटियों को स्पष्ट देखा जा सकता है जिसमें यमुनोत्री ,गंगोत्री ,स्वर्गारोहिणी और हिमालय की अन्य चोटियां शामिल है।
|
सांकरी : केदारकंठ शिखर बेस कैम्प फ़ोटो इंटरनेट से साभार. |
सांकरी बेस कैम्प : हम शाम तक सांकरी पहुंच चुके थे। पहले कभी यह छोटा गांव था। आज यहाँ तमाम सारी सुख सुविधा मौजूद है। ढ़ेर सारे रिसोर्ट्स , होटल, लॉज , गेस्ट रूम्स दिखते है।
क्रमशः जारी .......
सह लेखक
डॉ.मधुप रमण
डॉ.शैलेन्द्र सिंह
----------------------------------
Art Gallery. Page 6. Uttrakhand.
---------------------------------
I found many interesting things about Uttarakhand in this blog.
ReplyDeleteI am thankful to you because you have also given some knowledge about every picture that was also very satisfying.
Informative
ReplyDeleteIn this blog there is too much interesting things of uttarakhand in this blog.... Thank you very much sir for uploading this....
ReplyDeleteऐसे ही लिखते रहिए👍
ReplyDeleteA very nice page of travelougue,thanks to writers and editors.
ReplyDeleteIt is very helpful and fruitful for the knowledge of the students.
ReplyDeleteNice Updation.
ReplyDeletePicturesque description of Uttarakhand visualises the place before one's eyes.The travelogue is interesting and enchanting.Congratulations to Dr Raman.
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteReally got a great knowledge about uttarakhand, happy to know such things about this place , a great work is done by the writers and editors.
ReplyDelete