बचपन.भूली यादों की कड़ी. बाल हिंदी पत्रिका.
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प्रारब्ध : पृष्ठ : ०
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बचपन. हिंदी पत्रिका.
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अंक १.आवरण फोटो : पृष्ठ ०
बचपन : कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन : कोलाज : शक्ति : विदिशा. नई दिल्ली. -------------- आवरण फोटो : विषय सूची : प्रारब्ध : पृष्ठ : ० ----------------- संपादन शक्ति. अनीता / जब्बलपुर. विषय सूची देखें |
----------------- सम्पादकीय : पृष्ठ : २ |
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प्रधान संपादक
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रेनू ' अनुभूति ' नीलम.
नव शक्ति. श्यामली डेस्क. शिमला.
संस्थापना वर्ष : १९९९. महीना : जनवरी. दिवस : ५.
नव शक्ति. श्यामली डेस्क. शिमला.
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डॉ. सुनीता रंजीता प्रिया
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स्थानीय संपादक.
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चिरंजीव नाथ सिन्हा.
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दिग्दर्शक / मंडल.
रवि शंकर शर्मा. संपादक. दैनिक भास्कर.नैनीताल.
अनुपम चौहान.संपादक.समर सलिल.लख़नऊ.
डॉ. नवीन जोशी.संपादक. नवीन समाचार .नैनीताल.
मनोज कुमार पांडेय.संपादक.ख़बर सच है.नैनीताल.
अनिल लढ़ा .संपादक. टूलिप टुडे.राजस्थान.
डॉ.आर. के. दुबे. लेखक ,संपादक.नई दिल्ली.
रंजना : स्तंभ कार स्वतंत्र लेखिका. हिंदुस्तान.नई दिल्ली.
अशोक कर्ण : फोटो संपादक. पब्लिक एजेंडा. नई दिल्ली.
डॉ. मीरा श्रीवास्तवा / पूना.
रीता रानी : जमशेदपुर.
नमिता सिंह :रानीखेत.
सम्पादकीय : पृष्ठ : २
विशेषांक संपादक
अंशिमा सिंह
शिक्षा विद : इतिहासकार
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नन्हीं कलम से.
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पृष्ठ २.
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सम्पादकीय : नन्ही कलम से : सुबह और शाम. पृष्ठ २.
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जाने कहाँ गए वो दिन.मैं भूल नहीं सकती औली को
जाने कहाँ गए वो दिन : पृष्ठ ६./१
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लेखिका.ख़ुशी.
जोशी मठ,उत्तराखंड.ख़ुशी / जोशी मठ. उत्तराखंड को स्वर्ग का दूसरा नाम भी दिया जा सकता है। उसी राज्य में स्थित है चमोली जिला जोशी मठ नामक एक जगह जो कि देवभूमि और पर्यटन के लिए जानी जाती है। इस मनमोहक जगह में स्थित हैं औली जहाँ मैंने अपने जीवन के अनमोल कभी भी न भूलने वाले क्षण ४ से ५ साल बिताए हैं। जिसे मैं भूल नहीं सकती वे हमारी यादों के सुनहरे पन्नें हैं । जिसके दौरान मैंने अपनी ४ से लेकर ७ तक कक्षा तक की पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय जोशीमठ में की हैं।
केंद्रीय विद्यालय से उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि देश के हर राज्य में स्थित है। मैंने जिस केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई की हैं वह उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल औली के आस पास हैं। औली जो अपनी सुंदरता, बर्फ से ढके पहाड़ों और स्कीइंग के लिए मशहूर है देश विदेश से पयर्टक शीत ऋतु में औली के ख़ूबसूरत नजारें देखने आते हैं ।
जब शुरु-शुरु बार मैं स्कूल में गई तो बहुत डरी हुई थी क्योंकि ना मैं किसी को जानती थी, ना पहचानती थी। सब कुछ नया नया सा था। नई जगह, नए लोग, नई वेशभूषा। पर जैसे-जैसे मैं इन सब को पहचानने लगी पता चला कि शिक्षक ना केवल किताबी ज्ञान देते हैं बल्कि कई ऐसी अच्छी चीजों के बारे में बताते हैं जो जीवन में चलकर आगे बहुत उपयोगी साबित होने वाली है। इन दौरान स्कूल पर कई प्रतियोगिताएं व आयोजन हुए जिससे मैंने बढ़ चढ़कर भाग लिया। और इस का पूरा श्रेय मेरे शिक्षकों और मित्रों को जाता है। शायद यही वजह है कि मैं आज अपनी क्लास को लीड करने की काबिलियत रखती हूं।
अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगी कि मैं शायद जहां भी रहूं इस जगह उत्तराखंड के लिए विशेषतः औली के लिए मेरे दिल में लगाव सदैव रहेगा। शायद कभी ख़त्म नहीं होगा। शायद दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाए।
मैं चाहूंगी कि मैं उत्तराखंड दोबारा जाऊं, केवी को दोबारा देखूं अपने शिक्षकों से दोबारा मुलाकात करुं अपने स्कूल, अपने शिक्षक को, अपने प्रिय मित्रों और अपने प्रधानाचार्य श्री मयंक शर्मा से। अपनी अंग्रेजी की शिक्षिका शिल्पा मैम भी बहुत याद आती हैं। इन सबों की स्मृतियाँ मैंने दिल में संजोये रखा हैं बहुत बहुत याद करती हूं वे पल ,वे क्षण । जाने कहाँ गए वो दिन.
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दिव्य भविष्यवाणी : : आज कल : राशि : नक्षत्र तारे सितारें : पृष्ठ ३.
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नन्हीं कलम से. यात्रा संस्मरण : सम्पादकीय : बाल साहित्य : पृष्ठ ६.
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वाराणसी
जाने कहाँ गए वो दिन. मैं भूल नहीं सकती औली को
पृष्ठ ६./१
ख़ुशी.
जोशी मठ,उत्तराखंड.ख़ुशी / जोशी मठ. उत्तराखंड को स्वर्ग का दूसरा नाम भी दिया जा सकता है। उसी राज्य में स्थित है चमोली जिला जोशी मठ नामक एक जगह जो कि देवभूमि और पर्यटन के लिए जानी जाती है। इस मनमोहक जगह में स्थित हैं औली जहाँ मैंने अपने जीवन के अनमोल कभी भी न भूलने वाले क्षण ४ से ५ साल बिताए हैं। जिसे मैं भूल नहीं सकती वे हमारी यादों के सुनहरे पन्नें हैं । जिसके दौरान मैंने अपनी ४ से लेकर ७ तक कक्षा तक की पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय जोशीमठ में की हैं।
केंद्रीय विद्यालय से उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि देश के हर राज्य में स्थित है। मैंने जिस केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई की हैं वह उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल औली के आस पास हैं। औली जो अपनी सुंदरता, बर्फ से ढके पहाड़ों और स्कीइंग के लिए मशहूर है देश विदेश से पयर्टक शीत ऋतु में औली के ख़ूबसूरत नजारें देखने आते हैं ।
जब शुरु-शुरु बार मैं स्कूल में गई तो बहुत डरी हुई थी क्योंकि ना मैं किसी को जानती थी, ना पहचानती थी। सब कुछ नया नया सा था। नई जगह, नए लोग, नई वेशभूषा। पर जैसे-जैसे मैं इन सब को पहचानने लगी पता चला कि शिक्षक ना केवल किताबी ज्ञान देते हैं बल्कि कई ऐसी अच्छी चीजों के बारे में बताते हैं जो जीवन में चलकर आगे बहुत उपयोगी साबित होने वाली है। इन दौरान स्कूल पर कई प्रतियोगिताएं व आयोजन हुए जिससे मैंने बढ़ चढ़कर भाग लिया। और इस का पूरा श्रेय मेरे शिक्षकों और मित्रों को जाता है। शायद यही वजह है कि मैं आज अपनी क्लास को लीड करने की काबिलियत रखती हूं।
अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगी कि मैं शायद जहां भी रहूं इस जगह उत्तराखंड के लिए विशेषतः औली
के लिए मेरे दिल में लगाव सदैव रहेगा। शायद कभी ख़त्म नहीं होगा। शायद दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाए।
मैं चाहूंगी कि मैं उत्तराखंड दोबारा जाऊं, केवी को दोबारा देखूं अपने शिक्षकों से दोबारा मुलाकात करुं । मैं अपने स्कूल, अपने शिक्षक को, अपने प्रिय मित्रों और अपने प्रधानाचार्य श्री मयंक शर्मा से। अपनी अंग्रेजी की शिक्षिका शिल्पा मैम भी बहुत याद आती हैं। इन सबों की स्मृतियाँ मैंने दिल में संजोये रखा हैं बहुत बहुत याद करती हूं वे पल ,वे क्षण । जाने कहाँ गए वो दिन.
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नैनीताल : यात्रा संस्मरण : नन्ही कलम से : सोनाक्षी. पृष्ठ ६ / २
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नैनी झील : तल्ली ताल में नौका विहार : फोटो : .प्रभा कांत .चौधरी : जाने कहाँ गए वो दिन |
सहयोग.
नैनीताल यात्रा संस्मरण : किसी भी हिल स्टेशन के लिए यह मेरी पहली यात्रा. नैनीताल पहाड़ों पर बसा एक बहुत ही सुंदर पहाड़ी शहर है। सालों भर यहाँ बहुत सारे पर्यटक घूमने के लिए आते हैं और यहाँ की कभी न भूलने वाली यादें अपने साथ वापस ले जाते हैं । नैनीताल में घूमने के लिए बहुत सी जगहें हैं और यहाँ के मौसम की तो बात ही कुछ और है। इस साल गर्मी की छुट्टियों में मुझे भी अपने पूरे परिवार के साथ नैनीताल जाने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ । मैं नैनीताल जाने के लिए बहुत ही उत्सुक और खुश थी। किसी भी हिल स्टेशन के लिए यह मेरी पहली यात्रा थी। और आखिर वह दिन आ ही गया जब मेरा नैनीताल जाने का सपना साकार होने वाला था। सबसे पहले हम सभी लखनऊ पहुंचे और रात में ही रोड ट्रांसपोर्ट की गाड़ी पकड़ कर सुबह काठगोदाम पहुंच चुके थे। काठगोदाम से टैक्सी ले कर एक डेढ़ घंटे में नैनीताल पहुँच गए थे। सरोवर नगरी पहुंच मुझे बहुत ही आनंद का अनुभव हो रहा था। नैनी झील में नौका विहार : सबसे पहले मैं और मेरा परिवार नैनी झील के पास घूमने गए। वहाँ पर नौका विहार करने के लिए बहुत से लोग मौजूद थे । वहाँ नौका विहार के लिए प्रति नाव टिकट का दर २१० रुपए था जिसमें आप तल्लीताल से झील की आधी दूरी तय कर सकते हैं। मैंने भी अपने पूरे परिवार के साथ नौका विहार का आनंद लिया । नौका विहार करते समय नैनीताल की ठंडी हवाएँ हमसे टकरा रही थी जो बहुत ही आनंद का अनुभूति दे रही थी । नौका विहार करते समय हमने नैनी झील में बहुत सारी मछलियाँ भी देखीं। झील इतनी सारी मछलियाँ को तैरता देखकर मुझे अतिरेक आंनद आया। नैना देवी मंदिर : नौका विहार करने के बाद हम नैना देवी मंदिर परिसर में गए जो झील के किनारे मल्ली ताल में हैं। लाल रंग में रंगी इस मंदिर की शोभा दूर से ही दिख जाती है। रात में पीले निऑन बल्बों से इसकी सजावट देखते ही बनती है। कहा जाता है कि नैना देवी मंदिर एक शक्ति पीठ मंदिर है जहाँ अक्सर भक्तों का ताता लगा रहता हैं । पौराणिक कथाओं के अनुसार , देवी सती ने उनके पिता दक्षेश्वर ( राजा दक्ष ) द्वारा किए यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे व्रह्मण्ड का चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को ५१ भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की आँखें ( नैना ) इस स्थान पर गिरी थीं। नैना देवी का मंदिर उस स्थान पर बनाया गया है जहाँ देवी की आँखें गिरी थीं। आप चाइना पीक से झील को देखें तो झील की आकृति आँख जैसी दिखेंगी। अन्य जगहें : नैना देवी मंदिर में देवी नैना के दर्शन करने के बाद हम और भी कई जगह गए जैसे नैनीताल का चिड़ियाघर ,गोलू देवता मंदिर ,आदि । नैनीताल आस पास घूमने की बहुत सारी जगहें हैं यथा ,घोड़ा खाल का गोलू देवता मंदिर ,भीम ताल ,सात ताल और नौकुचिआ ताल आदि। भीम ताल नैनीताल की सबसे बड़ी ताल है। सच कहें में मुझे नैनीताल घूमने में अत्यंत आनंद आया और मुझे यह यात्रा हमेशा याद रहेगी ,ऐसा लगता है। लेखिका : सोनाक्षी. स्तम्भ संपादन / नैनीताल डेस्क डॉ. सुनीता रंजीता प्रिया ---------------------------------- हिंदी अनुभाग. गद्य : पृष्ठ ७ . ---------------------------------सहयोग.
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एक जवान की आपबीती.
दीपक |
जम्मू कश्मीर / डोडा.' यही कोई फ़रवरी का महीना था। दो हजार का वर्ष। पहले सप्ताह के ही शुरुआती दिन थे। ठण्ड अभी ख़त्म नहीं हुई थी। स्याह रात की शुरुआत होने वाली थी। सन २००० में मैंने सी.आर.पी.फ. की बेसिक ट्रेनिंग पूरी की थी। और यह हमारी पहली पोस्टिंग जम्मू कश्मीर के डोडा जिले में थी। हम तेईस साल भी पूरे नहीं कर पाए थे। हम नए रंगरूट के लिए देश प्रेम की खातिर कुछ भी कर सकने का जज्बा नस नस में भरा पड़ा था । अभी तक रह रह कर उस ख़ौफ़नाक दृश्य को मैं नहीं भुला पाता हूँ जब आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में मेरा मौत से साक्षात्कार हुआ था। बमुश्किल जान बची थी तब गोली जैसे सांसों को छू कर निकल ही गयी थी । सच कहे तो हम जवान हर वक़्त सर से कफ़न बांधे हुए ही होते है क्योंकि हमारी वर्दी उनकी निगाहों में होती है हम उनसे सावधान होते हुए हर पल आसन्न खतरे के करीब होते है। कब किसके जीवन की पतंग कट जाएं कोई बता नहीं सकता। ' कई बार हम किसी मिशन के लिए जाते तो पूरे शरीर में होते है लेकिन हम में से कोई बदनसीब टुकड़े टुकड़े में लौट रहा होता है। कुछ याद करते हुए दीपक सिहर जाते है और बोलते हुए हमें कहीं न कहीं पुलवामा की याद दिला देते है।
उन दिनों खबरिया से हमें गुप्त सूचना मिली थी कि आस पास के रिहायशी इलाक़े में कुछेक आतंकवादी डेरा जमाये हुए है या कहे छिपे बैठे है । हमें सतर्क और मिशन के लिए तैयार रहने को कह दिया गया था। आपरेशन का समय देर रात्रि तय किया गया था।
सी.आर.पी.एफ. की इकीसवीं वटालियन को जम्मू कश्मीर पुलिस के साथ इस मिशन पर लगाया गया था। हमारे साथ थे उत्तराखंड के हवलदार नायक हिमाल सिंह डोंगरा। मैं चूंकि नया रंगरूट था इसलिए मुझमें ज्यादा ही उत्साह था। उस भयानक काली रात की मुठभेड़ में जोश में मैं कुछ अधिक लापरवाह भी हो गया था।
'रात गयी लगभग इग्यारह बजे के आस पास मिशन शुरू किया गया। आगे बढ़ते हुए मुझे भान भी नहीं रहा कि मैं आतंक वादियों के फायरिंग रेंज में आ गया हूँ। भीतर से फायरिंग यक ब यक और भी तेज़ हो गयी। यदि क्षण भर में हमारे नायक उत्तराखण्ड के हिमाल सिंह डोंगरा ने मुझे जमीन पर गिरा न दिया होता तो कब की कोई गोली हमें लील गयी होती।
हम कुछेक मिनट तक जमीन पर लेटे रहें और रेंगते रेंगते उनकी फायरिंग रेंज से बाहर आए। यदि हिमाल सिंह डोंगरा साथ नहीं होते तो हम आपके सामने नहीं होते हम यह कहते हुए सी.आर.पी.एफ के सब इंस्पेक्टर दीपक भावुक हो जाते है और यह मानते है कि जीवन में सफल होने के लिए जोश के साथ साथ होश की भी जरुरत होती है। हमें जीना लिखा था लेकिन यह भी अनुभूत सत्य है जीवन में सफल होने के लिए अनुभव की आवश्यकता भी निहायत जरुरी है। हालाँकि हम लोगों ने आतंकियों को ढेर लगा दिया था जिसमें हवलदार नायक उत्तराखंड के हवलदार नायक हिमाल सिंह डोंगरा के द्वारा दी सुरक्षा कवच मेरे लिए पुनर्जन्म जैसी घटना सिद्ध हुई थी। मैं ताउम्र उनका आभारी रहूंगा। '
नालंदा के नूरसराय में जन्में मातृ भूमि की सेवा करने के बाद बिहार शरीफ़ में बुद्धा सैनिक ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना करने की बात करने पर सी.आर.पी.एफ के कमांडों दीपक कुमार ने कहा कि, ' मैं चाहता हूं कि युवा देश समाज की रक्षा के निमित पुलिस और आर्मी फ़ोर्स ज्वाइन करे और मैं उन्हें प्रशिक्षित करने का काम करुं। ताकि वो देश की सेवा करे और परिवार समाज के सजग प्रहरी बने यही मेरे जीवन एकमात्र पुनीत लक्ष्य है, और मैं इस कार्य में वर्षों से प्रयासरत हूं '
आगे दीपक कहते है आर्थिक रूप से कमजोर तबके के अभ्यर्थियों के लिए वह अपने बुद्धा सैनिक ट्रेनिंग सेंटर में उनके शुल्क में कटौती का भी प्रावधान रखते हुए समाज सेवा के लिए तत्पर दिखेंगे।
डॉ.सुनीता सिन्हा.
लेखन जवान दीपक
की आप बीती पर आधारित.
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पृष्ठ ७.२ गद्य : लघु कथा .
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बदलती हवा :
डॉ.रंजना.
मुझे शुरू से ही पढ़ने का शौक रहा है पर गाँव में ल़डकियों के पढ़ने की कोई सुविधा नहीं थी I पिताजी छोटे किसान थे I इकलौती बेटी होने के कारण मैं उनकी बड़ी दुलारी थी, ये अलग बात थी कि माँ को वंश ना होने का मलाल था I उनके दुःख को बुआ जी यदा कदा बढ़ाती रहतीं I आठवीं तक तो सब ठीक ही रहा पर नौवीं दसवीं के लिए घर में कोहराम मच गया I पर मेरी जिद्द ने सबको झुका दिया, वैसे भी पिताजी मेरी तरफ थे I रोज़ मुझे साइकिल पर बिठाकर स्कूल पहुंचाते और लाते I
एक दिन सरपंच काका ने टोक कर कहा , ' क्यूँ रे हरिया ..?,..खेती किसानी छोड़ बेटी को कलेक्टर बनाने चला है. देख ज़माना ठीक नही कुछ ऐसी वैसी बात हो गई तो पूरे गाँव में मुँह छुपाता फिरेगा, अबकी लगन में सुगिया के हाथ पीले कर दे ,समझा..! '
पर पिताजी को न उनकी बात माननी थी ना मानी l वो और मैं बस ताने सुनते l इसी बीच मैंने इन्टर की परीक्षा पास कर ली l मैं जानती थी के मेरे हालात ऐसे नहीं के मैं किसी कोचिंग का सहारा लेती अलबत्ता कुछ किताबों की ज़रूरत थी जो महँगी थी ,पिताजी के क्षमता से कहीं बाहर I
पर जैसे वो शुरू से बिन कहे मुझे समझ लेते वैसे इस बार भी किताबें घर आ गई पर दोनों बैल बाहर चले गए I उस रात माँ पिताजी में खूब जोर का घमासान हुआ I बुआ जी भी आग को हवा देने में कोई कसर न छोड़ी I
खैर मेरी मेहनत और पिताजी की तपस्या रंग लाई, मेरा दाखिला शहर के अच्छे मेडिकल कॉलेज में हो गया I राहें बहुत आसान तो नहीं रहीं, कुछ जमीन के टुकड़े बिके तो कभी माँ के जान से भी प्यारे जेवर गिरवी रखे गए I समय पंख लगाकर उड़ता गया और मैं सुगिया से डॉक्टर सुगंधा बन गई l
सुबह घर के बरामदे में बड़ी भीड़ लगी थी I पिताजी कभी किसी को पानी पूछते तो किसी को गुड़ की डली देते l
सरपंच काका बोले, ' देख ! हरिया तेरी बेटी हम सब की बेटी है, उसने पूरे इलाके में गांव का नाम रोशन किया है I हम सब की एक ही विनती है, मैं गाँव में एक अस्पताल बनाना चाहता हूं,सुगंधा बिटिया को बोलो हमारी बिनती स्वीकार कर अस्पताल चलाए I '
मैंने कहा, '.. मुझे स्वीकार है पर मेरी शर्त है कि अस्पताल का नाम हरिओम अस्पताल होगा I '
सारी भीड़ डॉ सुगंधा की जयकार कर रही थी और हरिया की आंखें नम थी बरसों बाद उसे याद आया उसका असली नाम तो हरिओम है..........
डॉ.रंजना.
स्त्री रोग विशेषज्ञ.
संपादिका / ब्लॉग.
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अब पढ़ें पृष्ठ ७.३ गद्य : यात्रा वृतांत.
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डॉ. मधुप |
यात्रा वृतांत : लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान.
लेखक. डॉ.मधुप रमण.
लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान, आज के इस यात्रा वृतांत में हम लोग आपको ऐसे कोई कोल्ड डेजर्ट की तस्वीर देंगे जिसके अंतर्गत मरुद्यान,बालू के छोटे छोटे रेतीले टीले उड़ते हुए धुल के उड़ते गर्द गुब्बार, कैमलस बैक राइड तथा श्योक एवं नुब्रा वैली का दिलचस्प जानकारियां होंगी, जिसे आप जानना,सुनना और देखना पसंद करेंगे.
क्योंकि इस ब्लॉग में नुब्रा - श्योक घाटी से जुड़ी यथा कहां घूमे ,कहां रहें ,क्या खाए, सम्बंधित कुछ न कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें हैं . यादगार कहानियां हैं,मजेदार किस्सें हैं जिसे आपको जरूर जानना चाहिए.
और जब कभी भीआप लदाख जाएंगे जहाँ आपके जाने के निमित यह उपलब्ध जानकारी आप के लिए
मददगार ही साबित होंगी,यह मेरा मानना है .
साल २०१९ का था। जून के महीने में हम सभी लेह - लद्दाख में थे। सोनमर्ग , जोजिला पास तथा कारगिल के ठंढ़े इलाक़े से गुजरते हुए लेह लद्दाख भी पहुंचना डर मिश्रित रोमांच के अनुभवों को समेटने जैसा ही था। भारत - पाकिस्तान की सीमाओं पर अभी शांति ही थी। फिर भी मेरे अपनों के साथ जोख़िम भरा सफ़र कहीं न कहीं मुझे डरा ही रहा था। फ़िर भी हम रुकें कहाँ। जीवन चलने का ही तो नाम हैं ना।
सिंधु घाट ,हमारे सहयात्री और लद्दाख के ठंढे रेगिस्तान |
लद्दाख :अमूमन यह क्षेत्र शुष्क होने के कारण वनस्पति विहीन है,यहां जानवरों के चलने के लिए कहीं कहींपर ही घास एवं छोटी छोटी झाड़ियां मिलती है घाटी में सरपत विलो एवं पॉपलर से भरे उपवन देखे जा सकते हैं.
ग्रीष्म ऋतु में सेब , खुबानी एवं अखरोट जैसे फलों,के पेड़ पल्लवित होते हैं. लद्दाख में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां नजर आती हैं, इनमें रॉबिन, रेड स्टार्ट , तिब्बती स्नोकोक, रेवेन यहां हूप पाए जाने वाले सामान्य
पक्षी है.
लद्दाख के पशुओं में जंगली बकरी, जंगली भेड़ एवं याक विशेष प्रकार के कुत्तें आदि पाले जाते हैं,इन
पशुओं को दूध मांस खाल प्राप्त करने के लिए पालें जातें हैं .लद्दाख एक उच्च अक्षांशीय मरुस्थल है क्योंकि
हिमालय मानसून को रोक देता है पानी का मुख्य स्रोत सर्दियों में हुई बर्फबारी है.
पिछले दस साल पूर्व २०१० में आई बाढ़ के कारण असामान्य बारिश और पिघलते ग्लेशियर हैं जिसके लिये निश्चित ही ग्लोबल वार्मिंग ही कारण है यायावरी के पहले दिन ही यहां वहां कम वनस्पतियों से घिरे नंगी
पहाड़ों और लद्दाख के स्थानीय के दर्शनीय स्थलों को हमने पहले ही दिन भ्रमण कर लिया था.
शांति स्तूप: अब हम शांति स्तूप देख लेने के बाद हम लद्दाख से बाहर जाने की सोच रहें थे , दूसरे दिन
स्थानीय गाइड के अनुसार हमें नुब्रा - श्योक वैली और पेगांग लेक घूमने जाना था।आपको बता दें यदि आप लोग लद्दाख से बाहर श्योक और पेंगांग लेक घूमने का मन बनाते हैं तो,आपको लद्दाख में ही लद्दाख से बाहर घूमने की परमिट भी लेनी होगी,इसके लिए आप स्वयं पर भरोसा कर सकते हैं या खुद से ऑनलाइन आवेदन देने के लिए प्रयास कर सकते है।
लेह शहर में शांति स्तूप : फोटो स्टैंज़िन |
गतांक से आगे : १
चंस्पा की पहाड़ी पर सफ़ेद रंग के बने इस स्तूप को जब हम तारों भरी रात में देखना मुझे आज भी याद हैं ,हमने इसकी कई तस्वीरें भी ली हैं। जहाँ हम ठहरे हुए थे यह स्तूप एकदम पास में ही था। और अन्य स्तूप की भांति इस स्तूप के भीतर बुद्ध की अस्थियां भी रखी हैं शायद इन अस्थियों को १४ वें दलाई लामा ने रखवाई थी । हमने सुबह सुबह ही लद्दाख छोड़ दिया था। शहर छोड़ने से पूर्व ऑक्सीजन की दो सिलेंडर ले ली गयी थी, क्योंकि हमें बतलाया गया था कि खारदुंगला पास के पास ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और हमें ऑक्सीजन लेने की आवश्यकता पड़ जाएंगी।
जीरो पॉइंट : हम लद्दाख के बाद हम लोग थोड़े अंतराल के बाद हम जीरो पॉइंट पहुंच चुके थे जहां से नीचे देखने में नीचे की घाटियों में शहर पसरा पड़ा दिख रहा था। दरअसल घाटियों के ऊपर ज़ीरो पॉइंट से हमारी खड़ी गाड़ी के नीचे छोटे छोटे दिखने वाले लदाख के एक या दो मंजिला घर स्पष्टतः अपनी जग़ह पर बड़े हीथे। हम ऊंचाई पर जो थे।
खारदुंगला पास : कुछेक घंटे उपरांत हम खारदुंगला पास पहुंच चुके थे जिसकी हम लगातार चर्चा कररहें थे।यहां बर्फ़ ही बर्फ़ थी। हम काफ़ी ऊंचाई पर थे। मौसम काफी सर्द था। हवाएं तेज चल रही थी। सही में इतनी ऊंचाई पर हमें वहां ठंडी में ऑक्सीजन की कमी से हमारे यूनिट के कुछ साथियों को उल्टी सर दर्द तथा सांस लेने में कठिनाई महसूस होने भी लगी थी ,लेकिन कुछ ने इस विषम परिस्थिति में भी अपने आप को अनुकूल कर लिया था। तो हम में से कुछेक ने बर्फ में मस्ती करने की आदत नहीं छोड़ी थी। मैं गाड़ी में बैठा असहज महसूस करता हुआ ऑक्सीजन ले रहा था मेरी समझ में हमसभी को स्वयं की सुविधा के लिएऑक्सीजन की एक दो सिलेंडर ले ही लेनी चाहिए। हम लोग खारदुंगला पास के बर्फ़िस्तान में कुछ समय व्यतीत कर लेने के बाद और दुनिया के सबसे ऊंचा समझे जाने वाले हाईएस्ट मोटरेबल पास से धीरे धीरे नुब्रा वैली के मैदान में नीचे उतरने लगे थे।
ठंडी सर्द हवाओं के बीच ऑक्सीजन की कमी वाले ५३५९ मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है यह खारदुंगला पास ,जहां हम चाह कर भी ज्यादा मौज मस्ती नहीं कर सकते थे। क्योंकि इससे हमारे यूनिट के सदस्यों की तबीयत माउंटेन सिकनेस की वजह से खराब होने लगी थी। बाद में हम सबों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भी ऑक्सीजन एवं दवाएं लेनी पड़ी थी। प्राइमरी एवं स्वास्थ्य केंद्र में दवाईआं आदि लेने के पश्चात् हम सभी कुछ बेहतर हुए थे । लेकिन कुछेक ने गाड़ी में बैठना ही उचित समझा क्योंकि उनकी तबीयत ठीक नहीं थी,जैसे जैसे हम ऊंचाई से नीचे आते गए हमारे स्वास्थ्य में उत्तरोत्तर सुधार होता गया।दरअसल ये हायर एल्टीट्यूड में होने वाली बीमारी की शिकायत थी जो हमें हो रही थी।
गतांक से आगे : २. दिस्कित मोनेस्ट्री
खुश्क और चट्टानी आसमान इलाके वाले लद्दाख की जलवायु अत्यंत ठंडी है इस वजह से यहां वनस्पतियां बहुत ही सीमित मात्रा में दिखती है,जब गर्मियों का मौसम होता है,बर्फ़ पिघलती है बर्फ पिघलने से घाटियां जब नमी युक्त हो जाती है तो रोज,जंगली गुलाब और विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों से कहीं कहीं ग्रीष्म ऋतु में भर जाती हैं।
दिस्कित मोनेस्ट्री : नुब्रा घाटी एक तीन भुजाओं वाली घाटी है जो लद्दाख घाटी के उत्तर-पूर्व में स्थित है,यह श्योक और नुब्रा नदियों के संगम से बनी है। श्योक नदी उत्तर पश्चिम की ओर बहती है और नुब्रा नदी एक न्यूनकोण बनाते हुए इसमें उत्तर-उत्तर पश्चिम से आ कर मिलती है। नुब्रा की केन्द्रीय बस्ती दिस्कित की दूरी लेह से १५० किलो मीटर है। हमें याद हैं दिस्कित मोनेस्टरी तभी रास्तें में दिखा था । आप भी जान ले नुब्रा वैली की तरफ़ बढ़ते हुए जब रास्तें में बुद्ध की ऊँची मूर्ति दिख जाए तो समझ लें आप दिस्कित गांव के आस पास हैं।
मुख्य मार्ग से हटकर दिस्कित मठ या दिस्कित गोम्पा गांव का मुख्य आकर्षण है।इसे नुब्रा घाटी के सबसे बड़े और सबसे पुराने बौद्ध मठों में से एक माना जाता है। दिस्कित मठ को १४ वीं सदी में त्सोंग खपा के एक शिष्य चंग्ज़ेम त्सेराब जंगपो द्वारा स्थापित किया गया था। इस गोम्पा में मैत्रेय बुद्ध कि मूर्ति, चित्रकारी और नगाड़ा प्रतिष्ठापित हैं।
नुब्रा वैली : नीचे की घाटियों के मध्य बहती अविरल धारा के साथ साथ ही श्रीनगर लद्दाख के राजमार्ग पर हमारी गाड़ी तेजी से सरपट दौड़ते हुए अपने लक्ष्य को छू रही थी। थोड़े समय के बाद दूर कहीं उड़ते गर्द गुब्बार में दूर एक दो कूबड़ वाले ऊंट अस्पष्टतः दिखने लगे थे। शायद दूर कहीं दूर एक दो कूबड़ वाले ऊंटों के चलने से आसमान में एक बार गर्द गुब्बार भी उड़ रहा था। रास्तें में सड़कों के किनारे दूर से एक दो कूबड़ वाले ऊंट आते भी दिख रहें थे।
नुब्रा वैली की तरफ़ बढ़ते हुए हमें सामने ज्यादातर एक या दो मंजिले मकान ही दिखे जिसमें अनजाने में हमें लेह - लद्दाख की सभ्यता संस्कृति से हमें झलक मिल रही थी। कुछ मिनटों के पश्चात जिस स्थान पर हम आ चुके थे वह नुब्रा वैली ही थी।
नुब्रा वैली सामने रेत का समंदर ,बालू के छोटे छोटे टीले था। ऊंट इधर उधर जा रहें थे। पर्यटकों और उनकी गाड़ियां कतारों में खड़ी दिख रही थी, हमने कल्पना भी नहीं की थी ताकि हम बर्फ से घिरे पहाड़ों के बीच बालू के टीलों पर चहलक़दमी करते हुए हमें इतने सारे लोग मिल जाएंगे। राजस्थान ,पंजाब ,बिहार ,उत्तरप्रदेश ,मध्यप्रदेश ,कर्नाटक ,तमिलनाडु और न जाने कहां कहां से ढेर सारे पर्यटक नुब्रा वैली के सौंदर्य को देखने पहुंच चुके थे। हममें से कुछ ऊंटों की सवारी लेने के लिए आगे बढ़ गए तो कुछ अपनी मस्ती में इधर घूमने लगे थे। मैं इधर-उधर घूमता हुए ,लोगों से बातचीत करने के क्रम में नुब्रा की संस्कृति के बारें में शोध करने लगा था,
गतांक से आगे : ३. बर्फ़ के रेगिस्तान
बर्फ जमी पहाड़ियों की तलहटी में ठंडे रेगिस्तान के बारे में सुनना तत्पश्चात देखना हमारे लिए इस जीवन में अत्यंत उत्सुकतामिश्रित सुखद अनुभव था तथा आश्चर्य से भरा हुआ भी। विस्तृत रेतीली ठंडे रेगिस्तान में बहती हुई स्वच्छ कल कल धारा हमें ओएसिस की याद दिला रही थी। पानी इतना ठंडा था कि आप कुछ एक सेकंड में से ज्यादा तो रख नहीं पाएंगे।
ज्यादा तो नहीं मगर थोड़ी बहुत बनस्पत्तियां हमें नुब्रा वैली में भी दिख रही थी। मैंने सम्पूर्ण लद्दाख भ्रमण के दरमियान नुब्रा श्योक वैली घूमने के सिलसिले में मैंने एक बात भली भांति समझी कि नुब्रा एक अत्यंत नमी रहित एक ठंडा रेगिस्तान वाली जग़ह है। यहां राजस्थान राजस्थान के टीले जैसी ही संस्कृति है जहां आवाजाही के लिए रेगिस्तान के जहाज समझे जाने वाले ऊंटों की ही भरमार है। और इसकी सवारी के लिए आपको पैसे खर्च करने होंगे यह भी तय है ।
देश विदेश से आए पर्यटकों से मैंने उनकी अनुभूति के बारें में बतियाते हुए मुझे ऐसा लगा कि हमारा भारतवर्ष सही में विभिन्नताओं में एकता का देश है, जिसकी विशाल सभ्यता संस्कृति पर हम भारतीयों को असीम गर्व होता है।
मेरा मानना है कि यदि भारत को एक करना है तो खुद में पर्यटन की आदत डालें और घूमते हुए अन्य लोगों के साथ उनसे अपनापन और एकता का रिश्ता कायम करें जिससे भारत जुड़ेगा ही। हमने नुब्रा में सहरा की याद दिलाने वाले के लिए रहने के लिए कई एक टेंट भी देखे जिसमें पर्यटक होंगे । इनकी अधिकता अक्सर थार के रेगिस्तानी भूभागों में देखी जा सकती है पता नहीं क्यों नुब्रा श्योक में रहते हुए मुझे बार-बार राजस्थान की याद आ रही थी।
नुब्रा की रेगिस्तानी आबोहबा : फोटो कमलेन्दु |
नुब्रा में कैमल राइड का मजा जरूर लेते हुए रेगिस्तानी आबोहबा का आनंद ले। कहीं कहीं पर लद्दाख के नुब्रा वैली में आने जाने वाले पर्यटक के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी अति मनभावन आयोजन होता है जिसके देखने का आनंद आप पर्यटक ले सकते है।
रात्रि में घर जैसे एहसास वाले होटल में ठहरे और दूसरे दिन ही सुबह सुबह ही पेंगांग लेक के लिए निकल जाये। आपके जेहन में पेंगांग लेक की यादें भी रह जाएगी यह मेरा मानना है। सरसराती ठंडी हवाओं के बीच,शुद्ध पोषक ,सुस्वादु लजीज व्यंजनों के साथ साथ से जुड़ी यादें हमें कभी नहीं भूलती हैं,यह एक अद्भुत से माने जाने वाले लामाओं के शहर लद्दाख और इससे जुड़े कई एक छोटे छोटे शहर,कस्बों की कहानी है ,जिसे हम आगे भी जारी रखेंगे ...।
गतांक से आगे : ४. घर सांचो
घर सांचो : शाम में घूमने के पश्चात हम पहले से ही एकदम घर जैसी अनुभूति रखने वाले होटल साँचों में विश्रामित हुए। इसके मालिक मैनेजर कर्मचारियों का व्यवहार स्वभाव देव तुल्य था अत्यंत सरल तथा अपने जैसा था।
अतिथि देवो भवः का भाव यहाँ के प्रत्येक निवासियों में देखा जा सकता हैं, जो सराहनीय है। होटल सोलर एनर्जी, गर्म पानी से युक्त था आप चाहें तो यहां भी आ कर रुक सकते है। हमने घर जैसे एहसास रखने वाले होटल में ठहरने का १ दिन का किराया तक़रीबन हज़ार रुपया अदा किया था।
कितने दिन : एक महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको नुब्रा पेगांग लेक घूमने के लिए चार दिन का समय निश्चित कर सकते हैं जिससे आपका पूरा पर्यटन संपूर्ण हो सकेगा। रात में नुब्रा में सोते हुए दूसरे दिन अहले सुबह से पैंगांग लेक से घूम कर शाम तक आप लद्दाख वापस भी जा सकते है। लेकिन मुझे भी कुछ कहना हैं ट्रैफिक जाम ,लैंडस्लाइड आदि बातों को आप को मद्देनजर रखते हुए हमें एक दिन बचा कर रखना होगा।
भाग मिल्खा भाग फिल्म के शूटिंग का स्थल : और भी बहुत कुछ है जो हम नहीं देख पाए खराब मौसम की वजह से उसकी भी हम चर्चा करेंगे जिससे आपको कोई भी जानकारी अधूरी न मिलने पाए। अगर जब कभी भी अगली बार आएंगे तो हम शायद अन्य जगहों को भी देख सकेंगे ,यह सोच कर हमने अपनी यात्रा जारी रखी है ,रात्रि विश्राम के बाद रास्ते में हमने भाग मिल्खा भाग फिल्म के शूटिंग का स्थल भी देखा जहां फिल्म का एक लम्बा भाग यहीं शूट किया गया था। यह जानकारी हमें हमारे ड्राइवर ने दी थी।
हमने भगवान को याद करने के साथ साथ हमने बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन को भी याद किया जिसके प्रयासों से हमें यह मार्ग सदैव खुला हुआ मिलता है।
इति शुभ.
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गद्य तारे जमीन पर : आलेख .पृष्ठ ७.४.
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संपादन.
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नमिता.
रानीखेत.
नाटय रूपांतरण
वजीर खान और साहिबजादों के मध्य संवाद
सरहिंद के क़िले का दृश्य। साल १७०४ का । २६ दिसंबर का महीना। ख़ालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोविंद सिंह और मुगलों के बीच वर्चस्व की लड़ाई जारी थी। आनंदपुरसाहब क़िले पर कब्जे के लिए संग्राम छिड़ा हुआ था। दुर्भाग्यवश गुरु गोविंद सिंह के पुत्र साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह अपनी क़िले छोड़ने के बाद दादी मां गुजरी के साथ सिरसा नदी के पास अपने परिवार से पृथक हो गए थे।
उन्हें सरहिंद के मुगल गवर्नर वजीर खान के द्वारा बंदी बना लिया जाता है । दोनों साहिबजादों को वजीर खान के दरबार में प्रस्तुत किया जाना था। दोनों बच्चे फतेह सिंह और जोरावर सिंह सरहिंद के वजीर के सामने प्रस्तुत किए जाते हैं दोनों लेकिन दोनों निडर बच्चें तनिक भी भयभीत नहीं दिखते हैं
वज़ीर खान : यही हैं वो दोनों गुरु गोविंद सिंह के साहबजादे ...!
सैनिक : जी हुजूर !
वजीर खान : तुम्हीं हो काफिर गोविन्द के बेटें ... क्या नाम है तुम्हारा ?
जोरावर सिंह : मैं जोरावर सिंह और .....मेरा छोटा भाई साहब ज्यादा फतेह सिंह...
वज़ीर खान : अपनी जान की खैरियत चाहते हो तो मासूम बच्चों ..मेरी मानो इस्लाम कबूल कर लो..
जोरावर सिंह : कदापि नहीं, हम इस्लाम को स्वीकार कभी नहीं करेंगे। हमारा धर्म हमें प्राणों से भी प्यारा हैं।
वजीर खान : मेरी बात मान लो। हम तुम्हें दौलत भी देंगें और तुम्हारी शादी हूर परियों से भी करवा देंगे।
जोरावर सिंह : हम स्वर्ग भी मंजूर नहीं हैं।
बजीर खान जल्लादों को दोनों को जिंदा दीवारों के बीच में चुनवाने का आदेश देता हैं। दीवारें उठाने जाने का काम शुरू कर दिया जाता है। जब दीवार दोनों बच्चों की छाती तक पहुँचती हैं तो वज़ीर एक बार और कोशिश करता है।
वजीर खान : अभी भी वक़्त है बच्चों ...अपनी जान व्यर्थ में क्यों गवातें हो ? मेरी मानों अभी भी इस्लाम कबूल कर लो.
दोनों बच्चें : हमें मरना कबूल हैं लेकिन इस्लाम कबूल नहीं हैं।
दीवार उठाने का काम जारी रखा जाता है। दोनों ने अपने धर्म की रक्षा अपने प्राणों की बलि दे दी। यह भी सच है कि उन्होंने सर दिया लेकिन शर नहीं। पर्दा गिरता है
निशि सिन्हा.
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लघु कविता
२६ ०७ २०२४ : कारगिल दिवस
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कारगिल के शूरवीर
रेनू शब्दमुखर
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कविता
डोलपात और पिट्टों के साथी.
( कहाँ गया वह बचपन.)
कहाँ गया वह बचपन,
जब खेलता था मन,
ऑंख-मिचौनी और गिल्ली-डंडे,
कबड्डी और चिक्कों की भी,
लगती थी बाजी.
डोलपात और पिट्टों के भी,
थे कई नये साथी.
लड़के थे दौड़ लगाते और धूम मचाते,
लड़कियाँ गुड्डे - गुड़ियों की थी ब्याह रचातीं,
फिर आया क्रिकेट और फुटबॉल का दौर,
जमकर लगा बाॅल स्पर्धाओं का होड़,
बदल गया ज़माना,
थम गया अतीत का वह शोर.
अब आया कंप्यूटर व इंटरनेट का युग,
कैंडी-क्रश, पब्जी, फोर्ट नाइट और काउन्टर स्ट्राइक,
कब्जा किया मस्तिष्क पर भारी,
होते हैं अब भी वे खेल,
पर न जाने,
बालमन की वो मस्तियाॅं,
वो किलकारियां, कहाँ खो गईं ?
बचपन क्यों खामोश हो गया ?
वो शरारतें और वाक् - पन,
न जाने क्यों मदहोश हो गया.
तब माँ थी कहती ,
भागो मत दौड़ो मत,
गिर जाओगे.
अब माॅं कहती,
दौड़ो और भागो,
तभी जीवन में कुछ पाओगे.
राजेश रंजन वर्मा
स्वतंत्र लेखक, हिंदुस्तान.
©️®️ M.S.Media.
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रंजना. नई दिल्ली.
स्वतंत्र लेखिका : हिदुस्तान दैनिक
बच्चों को शोर मचाने दो.
आज बच्चों को शोर मचाने दो,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे,
ख़ामोश ज़िंदगी बिताएँगे,
हम - तुम जैसे बन जाएँगे.
गेंदों से तोड़ने दो शीशें,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे ,
दिल तोड़ेंगे या ख़ुद टूट जाएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे.
बोलने दो बेहिसाब इन्हें
कल जब ये बड़े हो जाएँगे
इनके भी होंठ सिल जाएँगे
हम-तुम जैसे बन जाएँगे.
दोस्तों संग छुट्टियों मनाने दो,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे,
दोस्ती- छुट्टी को तरस जाएँगे,
हम -तुम जैसे बन जाएँगे.
भरने दो इन्हें सपनों की उड़ान,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे,
पर इनके भी कट जाएँगे,
हम -तुम जैसे बन जाएँगे.
बनाने दो इन्हें काग़ज़ की कश्ती,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे,
ऑफ़िस के काग़ज़ों में खो जाएँगे,
हम - तुम जैसे बन जाएँगे.
खाने दो जो दिल चाहे इनका,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे,
हर दाने की कैलोरी गिनाएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे.
रहने दो आज मासूम इन्हें,
कल जब ये बड़े हो जाएँगे,
ये भी “समझदार” हो जाएँगे,
हम-तुम जैसे बन जाएँगे.
बचपन.
था चांदी सा पलंग मेरा, खिलौना मोतियां उसकी,
वो ऊंचे पेड़ पर चढ़कर, लेना आम की चुस्की .
अखाड़ा कूदना, साथियों संग चल रही कुश्ती,
वो ट्यूबवेल पर नहाना, और अम्मा-बाप की घुड़की .
चवन्नी हांथ में लेकर, भरी बाजार इठलाना,
वो नन्हे पाव से, इस धरा को नापने का दम .
मां की लोरिया सुनकर, सपन की गोद सो जाना,
सुबह उठकर, कटोरा दूध का फिर हांथ में होना .
जरा सा अड़ गया जो, अम्मा का पुचकारना हमको,
अखर जाता है अब भी, किसी का दुत्कारना उनको.
यही बचपन था हमारा, तुम्हें क्या यार बतलाऊं,
चलो फिर से, उसी दुनिया की सैर कर आऊं .
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ये कौन चित्रकार है : कला दीर्घा : नन्हें चितेरें : पृष्ठ ९.
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ये कौन चित्रकार है :
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संपादन : रंजीता. नैनीताल डेस्क
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नृत्य की एक मुद्रा : कृति हर्षा. |
कलमकारी पेंटिंग : नृत्यांगना : कृति नेहा सुमन |
मिथिला . कला कृति : ऐशान्या धवन |
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पृष्ठ १० .फ़ोटो दीर्घा : आज कल : छाया चित्र.
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संपादन.
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प्रिया. दार्जलिंग.
हिमालय की गोद में एक गांव : नीति घाटी : उत्तराखण्ड : फोटो सृष्टि रावत. |
खिलते हैं फूल यहाँ : नीति वैली : उत्तराखंड : फोटो सृष्टि. |
औली : हिमालय की गोद में : फोटो आरुषि : जोशी मठ |
भूखे चूजों में खाने की चाहत : छाया चित्र : अशोक कर्ण |
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पुस्तक समीक्षा : पृष्ठ .११ .
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संपादन
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अनीता / जब्बलपुर
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मानसरोवर की यात्रा.
डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह. लेखक.
सेवा निवृत्त अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक,वन विभाग, छत्तीसगढ़.
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शब्द चित्र : व्यंग्य चित्र. पृष्ठ १२.
गलतियां ढूंढना गलत नहीं बस शुरुआत ख़ुद से होनी चाहिए
व्यंग्य चित्र १. हिंदी.
कार्टून। कोरोना -------------------- सीपियाँ. शब्द चित्र : विचार : ये मेरा गीत : जीवन संगीत : पृष्ठ.१२. ------------- नैनीताल डेस्क संकलन / संपादन. ⭐ डॉ. सुनीता रंजीता. ------------ दृश्यम : भजन मीरा हो गयी मगन वो तो गली गली हरि गुण गाने लगी फ़िल्म : जीने की राह. १९६९. सितारे : जीतेन्द्र. तनूजा. गाना : चंदा को ढूंढने सभी.... तारें निकल पड़ें गीत : आनंद बख्शी संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारे लाल गायक : उषा मंगेशकर. रफ़ी. गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं ----------- फ़िल्म : अँखियों के झरोखें से. १९७८ गाना : बड़े बड़ाई न करें सितारे : सचिन. रंजीता गीत : रविंद्र जैन. संगीत : रविंद्र जैन. गायक : हेमलता. जसपाल सिंह. ⭐ सीपियाँ. ------------ शब्द चित्र : विचार अनमोल बातें : २. -------------------- आपने कहा : आस पास : समाचार मंजूषा : पृष्ठ.१३. ------------- संपादन नई दिल्ली. ⭐ आस पास : समाचार मंजूषा : ११ वीं राष्ट्रीय बीच कबड्डी प्रतियोगिता: बिहार टीम का चयन ट्रायल सम्पन्न.डी ए वी पब्लिक स्कूल : संजय कुमार / नालन्दा नालन्दा / संवाद सूत्र : बिहारशरीफ. बोधगया में ९ से ११ अगस्त २०२४ तक आयोजित होने वाली ११ वीं राष्ट्रीय महिला एवं पुरुष बीच कबड्डी प्रतियोगिता के लिए बिहार की महिला एवं पुरुष टीम का चयन ट्रायल २८ जुलाई २०२४ को डी ए वी पब्लिक स्कूल पावर ग्रिड, बिहारशरीफ में सम्पन्न हुआ। इस ट्रायल में बिहार के विभिन्न जिलों से लगभग ३०० खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। इस ट्रायल के दौरान, अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए ८ बालक और ८ बालिका खिलाड़ियों का चयन किया गया, जो ११ वीं राष्ट्रीय बीच कबड्डी प्रतियोगिता में बिहार का प्रतिनिधित्व करेंगे। इस प्रतियोगिता का आयोजन एमेच्योर इंडियन कबड्डी फेडरेशन द्वारा किया जा रहा है। ट्रायल का उद्घाटन मुख्य अतिथि कुमार विजय सिंह (संयुक्त सचिव, एमेच्योर इंडियन कबड्डी फेडरेशन), बी के पाठक (प्राचार्य, डी ए वी पब्लिक स्कूल ), संयोजक राणा रणजीत सिंह, भावेश कुमार ( N.I.S कोच ), राकेश राज (शारीरिक शिक्षक), यशपाल सिंह ( सचिव, नालंदा कबड्डी), विवेक कुमार ( राष्ट्रीय खिलाड़ी एवं सब मुख्य प्रबंधक, एस.बी.आई. ), दीपक कुमार ( संयुक्त सचिव, नालंदा कबड्डी ), डॉ. लक्ष्मी ऋद्धिका ( फिजियोथैरेपी), डॉ प्रियंक दीपक और कौशल कुमार ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि कुमार विजय सिंह ने खिलाड़ियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह प्रतियोगिता खिलाड़ियों के लिए एक सुनहरा अवसर है ,अपनी प्रतिभा को राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करने का। उन्होंने चयनित खिलाड़ियों को आगामी प्रतियोगिता के लिए तैयारियों में जुट जाने की सलाह दी। ट्रायल के संयोजक राणा रणजीत सिंह ने बताया कि खिलाड़ियों का चयन उनकी खेल कौशल, फिटनेस और प्रदर्शन के आधार पर किया गया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि चयनित खिलाड़ी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन करेंगे और बिहार का नाम रोशन करेंगे। ट्रायल के दौरान खिलाड़ियों की शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए डॉ लक्ष्मी ऋद्धिका और डॉ प्रियंक दीपक ने उन्हें आवश्यक चिकित्सा सुविधा प्रदान की। सचिव नालंदा कबड्डी यशपाल सिंह ने खिलाड़ियों को प्रेरित करते हुए कहा कि मेहनत और दृढ़ संकल्प से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। समाचार संकलन संजय कुमार / नालन्दा ------------ संपादकीय : पृष्ठ २. ⭐ प्रधान संपादक. डॉ.मनीष कुमार सिन्हा. चेयरमैन ( इ.डी.आर एफ़.) नई दिल्ली. संपादक मंडल. ⭐ रवि शंकर शर्मा. संपादक. हल्द्वानी. नैनीताल. डॉ. नवीन जोशी. संपादक. नवीन समाचार. नैनीताल. अनुपम चौहान.संपादक. समर सलिल. लखनऊ. मनोज पांडेय.संपादक ख़बर सच है. हल्द्वानी. नैनीताल. डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह.रायपुर. सेवा निवृत्त अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक,वन विभाग, छत्तीसगढ़. डॉ प्रशांत. बड़ौदा. डॉ. रंजना. स्त्री रोग विशेषज्ञ. अंशिमा सिंह. शिक्षाविद. डॉ. रूप कला प्रसाद ,प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग रंजना. नई दिल्ली. स्वतंत्र लेखिका : हिदुस्तान दैनिक
डॉ. आर.के.दुबे. ---------- सह : संपादिका रेनू शब्दमुखर. जयपुर नीलम पांडेय. वाराणसी. ----------- फोटो एडीटर. ⭐ अशोक करन. पूर्व फोटो एडीटर ( एजेंडा,नई दिल्ली ). छायाकार. हिंदुस्तान टाइम्स ( पटना,रांची संस्करण ). ------------ समर्पित निर्मला सिन्हा , एम.ए.हिंदी ,पटना विश्वविद्यालय. प्रधानाध्यापिका, हरनौत प्रोजेक्ट स्कूल. गीता सिन्हा. एम.ए.द्वय हिंदी,संस्कृत. पटना विश्वविद्यालय पूर्व शिक्षिका. टेल्को,जमशेदपुर. -------------------- कार्यकारी संपादिका. ⭐ डॉ.सुनीता.रंजीता. नैनीताल डेस्क ---------- कला संपादिका. ⭐ अनुभूति सिन्हा.शिमला -------------------- ⭐ सरंक्षक. चिरंजीव नाथ सिन्हा, ( ए.डी.सी.पी.) लखनऊ. राज कुमार कर्ण, डी. एस. पी. ( सेवानिवृत ).पटना बिजय शंकर डी. एस. पी. ( सेवानिवृत ).पटना डॉ. मो. शिब्ली नोमानी. डी. एस. पी. नालंदा कर्नल सतीश कुमार सिन्हा ( सेवानिवृत ) हैदराबाद. कैप्टन अजय स्वरुप, देहरादून , इंडियन नेवी ( सेवानिवृत ). डॉ. आर. के. प्रसाद , ( ऑर्थोपेडिशयन ) पटना. अनूप कुमार सिन्हा, ( उद्योगपति ) नई दिल्ली. डॉ. भावना, ( व्याख्याता ) ------------------- विधि सलाहकार. रवि रमण ( वरिष्ठ अधिवक्ता ) सीमा कुमारी ( अधिवक्ता ) सुशील कुमार ( विशेष लोक अभियोजक. पाक्सो. ) दिनेश कुमार ( वरिष्ठ अधिवक्ता ) विदिशा.
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ReplyDeleteWhile reading it, I was feeling that I'm reading a magazine
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ReplyDeleteएक जवान की आपबीती और यात्रा- वृतांत शीर्षक स्तम्भ ने कश्मीर और लद्दाख की घाटियों में खो जाने को विवश कर दिया |
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