Talk of the Day : Religion & Spirituality
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Talk of the Day : Religion & Spirituality of Our Town.
A Complete Account over Religion & Spritiuality News .
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आवरण : पृष्ठ ०.
संपादन : विदिशा.
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परमार्थ के लिए देश हित में
महा शक्ति अधिकृत, त्रि - शक्ति, विकसित और समर्थित .
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त्रि - शक्ति : प्रस्तुति. पृष्ठ : ० / ० .
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त्रिशक्ति डेस्क / नैनीताल
संस्थापना वर्ष : १९७८. महीना : जुलाई. दिवस : ४.
त्रिशक्ति डेस्क / नैनीताल
संपादन
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संपादन
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त्रि - शक्ति : विचार : धारा
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नसीहतें
' नसीहतें ' और घर की ' मुसीबतें ' जिन्हें याद रहती हैं
वे कभी ग़लत ' रास्तें ' पर नहीं जाते
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सन्मार्ग
महाशक्तियों के निर्दिष्ट ' सत्यम ' ' शिवम् ' ' सुंदरम ' के ' सन्मार्ग ' पर चलना ही
व्यक्ति विशेष का ' नैतिक ', ' सामाजिक ', 'आध्यात्मिक ' ध्येय होना चाहिए
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त्रि - शक्ति : दर्शन . पृष्ठ : ० / १ .
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लक्ष्मी / शक्ति / सरस्वती.
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जीवन सार संग्रह : पृष्ठ : ०.
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त्रिशक्ति : सम्यक वाणी : महालक्ष्मी : मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ : ० / १
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प्रादुर्भाव वर्ष : १९७९.
महा लक्ष्मी : डेस्क : कोलकोता :
संस्थापना वर्ष : २००३. महीना : जून. दिवस : २
संपादन : ' शक्ति ' सीमा सिंह.
संपादन / संकलन.
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आगे बढ़ने वाला ' व्यक्ति ' किसी के लिए ' बाधा ' नहीं बनता
' बाधा ' बनने वाला कभी ' आगे ' नहीं बढ़ता
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"...त्रिशक्तियाँ हम सबों को इतनी महाशक्ति देना कि हम एक दूसरे पर अटूट भरोसा
रखते हुए एक दूसरे को दी गयी प्रतिज्ञाओं को निभाते रहें.."
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"....जिद चाहिए जीतने के लिए
हारने के लिए तो एक डर ही काफी है...."
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"...निर्भीकता से संवाद कायम करते रहने मात्र से ही..
आपके जीवन की समस्याएं निराकृत होती रहेंगी ..."
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त्रिशक्ति : सम्यक दृष्टि : महा शक्ति : नैनीताल डेस्क : पृष्ठ : ० / २.
प्रादुर्भाव वर्ष : १९७६.
नैना देवी डेस्क / नैनीताल.
संस्थापना वर्ष : १९९८. महीना : जुलाई. दिवस : ४.
संपादन. ' शक्ति ' रंजीता.
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संकलन / संपादन.
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' शक्ति ' रंजीता
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शब्द चित्र : महाभारत
श्री कृष्ण : ' सत्य ' और ' धर्म ' के पक्ष में ' सदैव ' खड़े रहें
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अपने ' जीवन ' में स्वयं से अर्जित ' धैर्य ' ही है जो अपनी ' जिन्दगी ' की ' किताब ' के
हर पन्ने को बांध कर रखता है
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सार्वजानिक रूप से बिना ' सोचे - समझे ' बोलने का ' अफ़सोस ' तो मुझे ता उम्र रहा
लेकिन मौन रहने का कभी भी मलाल नहीं रहा क्योंकि इससे किसी मेरे अपने का दिल कभी नहीं टुटा
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"..धैर्य होना अत्यंत आवश्यक है माली यदि किसी पेड़ को
सौ घड़े पानी से भी सीचें तब भी फल तो मौसम आने पर ही लगेगा.."
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"...नेकी जिंदगी को कभी हारने नहीं देती,
बल्कि खुशियों से जीने का बेहतरीन तरीका बताती है..."
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"...हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ
जब भी मिलेंगे एक दूसरे से, अंदाज पुराना ही होगा .."
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"..पवित्र मन से कोई भी प्रभु को पा सकता है,
और जहां मन की पवित्रता है वहां माध्यम की क्या आवश्यकता ?.."
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" ..आपकी सम्यक वाणी में ही त्रि - शक्तियां रहती हैं..
इसी वाणी से ही अधर्म के विरुद्ध लड़ने के लिए कर्म फल का निर्धारण करते रहें.."
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."..आपकी ज्यादा निंदा करने वाले लगभग वो ही लोग होते है
जिन लोगों का का कभी आपने निस्वार्थ अच्छा किया होता है... "
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त्रिशक्ति : सम्यक आचरण : महा सरस्वती : नर्मदा डेस्क : पृष्ठ : ० / ३.
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प्रादुर्भाव वर्ष : १९८२.
महा सरस्वती : नर्मदा डेस्क : जब्बलपुर.
संस्थापना वर्ष : १९८९. महीना : सितम्बर. दिवस : ९.
संपादन :' शक्ति ' अनीता. जब्बलपुर.
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संकलन / संपादन.
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शक्ति ' अनीता '.
जब्बलपुर.
शब्द चित्र विचार
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नव शक्ति : सम्यक संकल्प . शिमला डेस्क : पृष्ठ : ० / ४ .
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संस्थापना वर्ष : १९९९. महीना : जनवरी . दिवस : ५
श्यामली : डेस्क : शिमला
शक्ति
संपादन
रेनू अनुभूति नीलम
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नव शक्ति : दिव्य दर्शन : पृष्ठ : ० / ४ / ० .
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नवशक्ति. शब्द चित्र : विचार : शिमला : डेस्क : पृष्ठ : ० / ४ / १ .
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विषय सूची : पृष्ठ. १ . ----------------
हिंदी समाचार अनुभाग.
प्रकृति, प्रेम, धर्म,अध्यात्म और सन्यास.
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आवरण पृष्ठ : पृष्ठ ०. संपादन. विदिशा.
त्रि - शक्ति : जीवन सार संग्रह : पृष्ठ : ० .
त्रि - शक्ति : विचार : प्रस्तुति. पृष्ठ : ० / ० .
सम्यक दर्शन : महालक्ष्मी डेस्क : पृष्ठ : ० / १ .
सम्यक कर्म : शक्ति डेस्क : पृष्ठ : ० / २ .
सम्यक ज्ञान : महासरस्वती डेस्क : पृष्ठ : ० / ३ .
नव शक्ति : सम्यक संकल्प . शिमला. डेस्क : पृष्ठ : ० / ४ .
सम्यक कर्म. महा शक्ति : नैनीताल डेस्क : पृष्ठ : ० / ५.
विषय सूची : पृष्ठ. १ .
संपादकीय : पृष्ठ : २.
आज का गीत : जीवन संगीत : पृष्ठ ३ .
आज का समाचार : धर्म ,अध्यात्म और सन्यास : पृष्ठ ४.
मेरी अनुभूति मेरी शक्ति : कोलाज : पृष्ठ : ५
कल का समाचार : पृष्ठ ५ .
फोटो दीर्घा : अतुलनीय भारत : पृष्ठ ६ .संपादन.
कला दीर्घा : पृष्ठ ७.संपादन.
दृश्य माध्यम : पृष्ठ : ८
दृश्य माध्यम : शक्ति : लघु फिल्में : विज़ुअल्स : पृष्ठ : ९
मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ : १०
सहयोग.
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संपादकीय : पृष्ठ : २.
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सहयोग व स्व इच्छा की कड़ी.
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प्रधान संपादक
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प्रधान संपादक
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रेनू ' अनुभूति ' नीलम.
नव शक्ति. श्यामली डेस्क. शिमला.
संस्थापना वर्ष : १९९९. महीना : जनवरी. दिवस : ५.
नव शक्ति. श्यामली डेस्क. शिमला.
संस्थापना वर्ष : १९९९. महीना : जनवरी. दिवस : ५.
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कार्यकारी संपादक
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डॉ. सुनीता रंजीता प्रिया
महाशक्ति डेस्क. नैनीताल
संस्थापना वर्ष : १९९९. महीना : जनवरी. दिवस : ६ .
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कार्यकारी सहायक संपादक
सीमा वाणी अनीता
कोलकोता डेस्क
संस्थापना वर्ष : १९९९. महीना : जून. दिवस : २ .
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संयोजिका
मीडिया हाउस.
वनिता. शिमला
वरिष्ठ सम्पादिका
डॉ. मीरा श्रीवास्तवा
पूना
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अतिथि संपादक
नैनीताल
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स्थानीय संपादक
स्थानीय संपादक
भारती मीना
नैनीताल.
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कला संपादक
अनुभूति सिन्हा
शिमला
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संयोजिका.
वनिता
शिमला.
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व्यवस्थापक.
प्रधान संपादक
डॉ. मनीष कुमार सिन्हा.
चेयर मैन : इ.डी.आर.एफ / नई दिल्ली.
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दिग्दर्शक ⭐ मंडल.
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रवि शंकर शर्मा. संपादक.नैनीताल.
डॉ.नवीन जोशी.संपादक.नैनीताल.
मनोज पांडेय.संपादक.नैनीताल.
अनुपम चौहान.संपादक.लखनऊ .
डॉ.शैलेन्द्र कुमार सिंह.लेखक.रायपुर.
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सम्पादकीय लेख : जीने की राह : तुम्हारे लिए : २ / ० .
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संकलन / संपादन.
डॉ. सुनीता रंजीता.
नैनीताल डेस्क.
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जीने की राह : २/२/० : रिमझिम गिरे सावन ..?
डॉ. मधुप.
सावन का महीना था । पवन शोर कर रहा था । शाम का वक़्त था। सुबह से ही रुक रुक कर बारिश हो ही रही थी। रिमझिम गिरे सावन में कभी झमाझम तो कभी बारिश की फुहार हो रही थी।
कब की शाम हो चुकी थी। घने काले बादल क्षितिज़ में मंडरा रहें थे। कीचड़, रोड़ की माली हालत देखने लायक थी। शायद कोई परीक्षा खत्म हुई थी। रोड़ पर ढ़ेर सारे लोग खड़े कुछेक गाड़ियों का ताता लगा हुआ था। हाई वे पर कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था। नुक्कड़ पर ही जाम की स्थिति हो गयी थी।
इस उम्र में अकेले मोटर साइकिल चलाते हुए जाना भी वो भी शाम के वक़्त आसान नहीं था। घर के लिए प्रस्थान करते हुए हम सभी अपने परिवार की भांति ही एक दूसरे का ख़्याल कर लेते ही हैं कि सब सुरक्षित ढंग से प्रस्थित हो। सावधानी पूर्वक आने जाने के तौर तरीक़े भी देख ही लेते हैं। आगे गाड़ियों का काफ़िला लगा हुआ था। जाम से ज्यादा इस बात से डर लग रहा था कि कहीं बारिश में फँस न जाए। अपने पास कोई रेन कोट भी नहीं था। मोबाइल भी भींग सकता था। बीच में कहीं कोई रैन बसेरा भी नहीं था।
तभी आत्म शक्ति ने ही रास्ता दिखलाया। सहृदय भाई थोड़ा पीछे हटे तो पार्श्व से एक संकीर्ण रास्ता मिल गया। जो ख़ुद पीछे रह कर साधु की तरह दूसरों के लिए रास्ता बनाते हो उनके लिए साधु वाद बनता है।अपनों को छोड़ कर जैसे सीमा पर अकस्मात जा रहें प्रहरी की तरह हमें आगे बढ़ना ही पड़ा।
बड़ी धैर्य के साथ काफिले में बढ़ता गया। हम उबड़ खाबड़ रास्ते से हम आगे तो बढ़ रहें थे लेकिन मेरे अपने कहीं पीछे ही छूट चुके थे। चिंता बनी हुई थी सब के सकुशल घर पहुंचने की।
उम्मीद है सभी अपने सुरक्षित मकाम तक पहुंच ही चुके होंगे। हम सभी रक्षित हो। कभी कभी हम बड़ी घुटन सी महसूस करते है कि आप चाह कर अपने लोगों को कुशल क्षेम जानने हेतू भी फोन नहीं लगा सकते।
क्योंकि आप और हम किस तरीके, किस भाव से भावनाओं को ले रहें हैं मालूम नहीं। हमारी सोचें संकीर्ण हो गयी हैं। और यदि कहीं इसकी चर्चा पिछड़ी ,दकियानूसी समाज के सामने हो गयी तो समझें फ़जीहत तय ही है।
कभी कभी हम जरुरी फोन कॉल्स उठाते भी नहीं ..तो कभी कॉल का जवाब देना भी आवश्यक नहीं समझते ..सच कहें कहीं कुछ छूटता है..
और हमारी सबसे बड़ी कमजोरी होती है कि हम खुद के ही बेहतर हमराज़ नहीं बन पाते हैं। कभी अपने भीतर ही सब राज छुपा कर देखें बड़ा अच्छा लगता है...
डॉ. मधुप.
क्रमशः जारी
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संपादकीय लेख : फलसफा : अध्यात्म : पृष्ठ : २.१
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संपादन.
डॉ.सुनीता रंजीता.
नैनीताल डेस्क
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जीने की राह : क्या सत्य के लिए मौन रहना उचित है ..?
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डॉ.मधुप.
कृष्ण अग्नि सुता द्रौपदी को प्यार से सखी कहते थे। उनकी सहायता के लिए सदैव प्रयत्न शील रहते थे।
पांचाली का भी कृष्ण से असीम स्नेह था। सुदर्शन चक्र की वजह से रक्तरंजित हुई स्वयं माधव की ऊंगलियों को द्रौपदी ने अपने चीर के टुकड़ें से बांध कर रक्षित किया था। जिस प्यार भरे रख रखाव, स्नेहिल सम्बन्ध की रक्षां मधुसूदन ने कौरवों की सभा में की थी।
उस दिन भी आकाश में अपनी दिनचर्या के लिए सूरज अपनी वैसी ही ऊर्जा व शक्ति के साथ अभ्युदित हुआ था । दोपहर होते होते अकस्मात कहीं से असत्य के घने बादल आ जाते है । अपरीक्षित सत्य को अपने घेरे में लेने की भरसक कोशिश भी करते हैं। तत्क्षण सफल भी हो जाते हैं । कुछ पल के बाद सूरज के गोले में ध्यान पूर्वक देखने से कुछ काले धब्बें नजर भी आने लगते है.. अंतर मन पूछता है अपनी आत्म शक्ति से इस प्रकाश युक्त गोले में काले अंधेरें क्यों ...? यह कैसे हुआ...बताएं ...?
पांचाली |
आप ( त्रिशक्तियाँ ) बताएं क्या वो मौन उचित था ? क्या संसार के सत्य की मर्यादा के लिए शब्दों की उद्घोषणाएं होनी चाहिए थी ..या नहीं..? खड्ग उठने चाहिए थे या नहीं ? अपने भीतर की आत्म शक्तियां कहती है..शब्द होने चाहिए थे। स्वयं का विरोध दर्ज होना ही चाहिए था।
पांचाली के रक्षक थे माधव । योगी राज कृष्ण सदैव धर्म और सत्य के साथ ही अकेले ही खड़े रहें। पांचाली उन्हें ह्रदय से अत्यंत स्नेह करती थी। इसलिए उन्हें प्यार से सखि कहती थी।
आत्म शक्तियां ( त्रिशक्तियाँ ) जानती है कुछ पल के लिए असत्य के घने अंधियारे में सत्य का सूरज ढक भी जाता है ...लेकिन सूरज अंततः उस ऊर्जा के साथ आकाश में उग आता है । ...
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संपादकीय लेख : फलसफा : अध्यात्म : पृष्ठ : २.३.
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संपादन.
डॉ.सुनीता रंजीता.
नैनीताल डेस्क
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जीने की राह : सफलता का मूल मन्त्र हैं त्रिशक्तियों का संतुलन..?
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डॉ.मधुप.
महिषासुर मर्दिनी : शक्ति स्वरूपा : फोटो : डॉ.सुनीता रंजीता.नैनीताल |
जीवन कैसे सफल हो... ? ", मैंने पूछा शक्ति से
तो अंतर मन की शक्ति ने कहा, " अपने भीतर की त्रिशक्तियों में सामंजस्य, संतुलन कायम रखने और उनसे निर्भीकता से संवाद कायम करते रहने मात्र से ही.. आपके जीवन की समस्याएं निराकृत होती रहेंगी "
प्रश्न था , " जीवन की समस्याएं कैसे निराकृत होगी ? और ये त्रिशक्तियाँ कौन हैं..."
उत्तर था, " तुम्हारा ऐश्वर्य, मान ,सम्मान और सम्पदा जिसके लिए तुम प्रयत्नशील हो जिसे आप लक्ष्मी मानते है ..जो मेरा ही एक स्वरुप है ....तथा जिसके लिए हर प्राणी अपने जीवन का उद्देश्य रखता है...संघर्ष करता है ..उनसे सानिध्य बनाए रखें ... "
उनकी वाणी थी , " हम सब में से सबसे महत्वपूर्ण है ..हमारी दूसरी स्वरूपा ..ज्ञान, बुद्धि ,धैर्य , विवेक, वाणी की प्रतीक शक्ति.. जिसे हम सरस्वती समझते है , उसे सिद्ध करें । ध्यान दें वह कभी भी रूठने न पाए..... बुद्धि ,धैर्य , विवेक से ही सब हल निकल जाएंगे। "
"... वह एक ऐसी अपूर्व शक्ति है जो तुम्हें निरंतर ...सम्यक साथ, सम्यक दर्शन, सम्यक दर्शन तथा सम्यक कर्म की तरफ प्रवृत करेंगी...."
अंत की जिज्ञासा थी , " अब आप अपना प्रयोजन बतलाएं..आप किस तरह मानव जीवन के लिए हितकारी साबित होगी ..?
उन्होंने कहा , " मैं ही सत्य ,न्याय, धर्म, मानव तथा देवों की रक्षार्थ धरा पर अवतरित हुई। अनियंत्रित दुष्टों, खलों , पापियों और असुरों के पाप कर्मों से धरा जब कभी भी दुष्प्रभावित होगी ..देवता त्राहिमाम का सन्देश देंगे तब मैं ही संगठित हो कर ..शक्ति स्वरूपा बन कर इन असुरों का संहार करूंगी ... "
" ..समझ लें..मैं जीवन की अंतिम कभी न सुलझने वाली समस्या का अंतिम समाधान हूँ .. "
मेरे अंतिम शब्द थे , " ...जी .. तथास्तु ! "
इति शुभ
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अन्य के संपादकीय लेख : अध्यात्म : पृष्ठ : ३ .
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रुक्मिणी , राधा और श्री कृष्ण : अध्यात्म लेख : ३ / ०
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सोसल मिडिया से साभार.
उनके ह्रदय में तो सदैव मेरा ही वास होता है..! |
एक दिन रुक्मणी ने भोजन के बाद, श्री कृष्ण को दूध पीने को दिया। दूध ज्यादा गरम होने के कारण श्री कृष्ण के हृदय में लगा और उनके श्रीमुख से निकला- " हे राधे ! "
सुनते ही रुक्मणी बोलीं- प्रभु ! ऐसा क्या है राधा जी में, जो आपकी हर सांस पर उनका ही नाम होता है ? मैं भी तो आपसे अपार प्रेम करती हूं... फिर भी, आप हमें नहीं पुकारते ?
श्री कृष्ण ने कहा - देवी ! आप कभी राधा से मिली हैं ? और मंद मंद मुस्काने लगे...
अगले दिन रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंचीं। राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा... और, उनके मुख पर तेज होने कारण उसने सोचा कि ये ही राधाजी हैं और उनके चरण छुने लगीं।
तभी वो बोली - आप कौन हैं ? तब रुक्मणी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया...
तब वो बोली- मैं तो राधा जी की दासी हूं। राधाजी तो सात द्वार के बाद आपको मिलेंगी। रुक्मणी ने सातों द्वार पार किये... और, हर द्वार पर एक से एक सुन्दर और तेजवान दासी को देख सोच रही थी कि अगर उनकी दासियां इतनी रूपवान हैं... तो, राधारानी स्वयं कैसी होंगी ?
सोचते हुए राधाजी के कक्ष में पहुंचीं... कक्ष में राधा जी को देखा- अत्यंत रूपवान तेजस्वी जिसका मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था। रुक्मणी सहसा ही उनके चरणों में गिर पड़ीं... पर, ये क्या राधा जी के पूरे शरीर पर तो छाले पड़े हुए हैं !
रुक्मणी ने पूछा - देवी आपके शरीर पे ये छाले कैसे ?
तब राधा जी ने कहा - देवी ! कल आपने कृष्णजी को जो दूध दिया... वो ज्यादा गरम था ! जिससे उनके ह्रदय पर छाले पड गए... और, उनके ह्रदय में तो सदैव मेरा ही वास होता है..!
पृष्ठ सज्जा : प्रिया.
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प्रेम भक्ति है , निष्ठा है , त्याग है ,समर्पण है. पृष्ठ : ३ / १.
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चर्चा प्रेम की हो और श्री राधे कृष्ण की बात न हो तो वह प्रेम हो ही नहीं सकता है। इनके प्रेम में एक साथ लौकिकता और अलौकिकता, भौतिकता और आध्यात्मिकता का बोध होता है। इस प्रेमानुभूति का एक छोटा सा प्रसंग सुनाना चाहता हूँ ।
एक बार श्री कृष्ण सर की वेदना से पीड़ित थे। कोई औषधि कारगर नहीं हो रही थी। नारद जी को आभास होते ही वहाँ पहुँच गए, नमन किया और कुशलक्षेम जानना चाहा। देवकीनन्दन की बात सुनते ही नारद जी द्रवित होकर बोल उठते हैं, हे केशव, आप कहें तो मैं अपने हृदय के रक्त से लेपन करके इस वेदना को खत्म कर सकता हूँ ।
इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि, हे देवर्षि, अगर कोई भक्त मुझे चरणोदक ( चरणामृत / चरण धोया जल ) पीला दे तो मैं स्वस्थ हो जाउँगा।
नारद जी पहले रुक्मिणी जी के पास आते हैं और उनकी व्यथा कथा कहते हैं। तब रुक्मिणी जी कहती हैं कि, हे देवर्षि, यह अपराध, यह पाप हमसे नहीं हो सकता है। मै महापाप की भागी नहीं बन सकती हूँ, आप कोई अन्य उपाय कीजिए।
नारद जी तब राधा जी के पास आते हैं और उन्हें भी अवगत कराते हैं। राधा जी ने कुछ न कहा और एक सुन्दर पात्र में जल भर कर ले आयीं और अपने दोनों श्री चरणों को उसमें डुबो कर पात्र नारद जी को थमाते हुए कहा कि, हे देवर्षि, मैं भले ही नरक गामिनी बनुँ, रौरव नरक जाउँ, महापाप का भागी बनुँ पर आप शीघ्रताशीघ्र जाकर मेरे कन्हैया की वेदना को ठीक करने का काम करें। मैं जन्म जन्मान्तर तक आपका उपकार मानूंगी। प्रेम भक्ति निष्ठा तो रुक्मिणी जी के हृदय में भी श्री कृष्ण के प्रति था पर वे तर्क में पड़ गयी। राधा जी इस तर्क में न पड़कर * वेदनाहरण को ही मूल समझा। जब प्रेम अपने चरम पर पहुँचता है, उद्दात्त हो जाता है तो अद्वैत हो जाता है, एकात्म हो जाता है। प्रेम और भक्ति को समझने के लिए प्रेम को नहीं उसके मर्म को समझना होगा। यही प्रेम का अंतिम सत्य है। यही प्रेम है। जय जय श्री राधेकृष्ण। श्री राधा मोहन शरणम्।
अरूण सिन्हा.
दुमका, झारखण्ड.
सनातन धर्म में भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है.
सनातन धर्म में भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है। हर किसी पूजा आदि की विधि में सर्वप्रथम गणेश की ही वंदना की जाती है। वहीं श्री गणेश आदि सनातन धर्म के प्रमुख आदिपंच देवों में भी शामिल हैं। अन्य भगवानों की तरह ही श्री गणेश जी का भी हर साल एक प्रमुख त्योहार गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है, वहीं इस दौरान श्री गणेशजी का गणेश उत्सव १० दिनों तक पूरे देश में जगह जगह मनाया जा रहा है। ऐसे में आज हम आपको देश के प्रमुख गणेश मंदिरों में से एक अष्ठविनायक मंदिर के बारे में बता रहे हैं।
दरअलस पुणे के विभिन्न इलाकों में श्री गणेशजी के आठ मंदिर हैं, इन्हें अष्टविनायक कहा जाता है। इन मंदिरों को स्वयंभू मंदिर भी कहा जाता है। स्वयंभू का अर्थ है कि यहां भगवान स्वयं प्रकट हुए थे, यानि किसी ने उनकी प्रतिमा बना कर स्थापित नहीं की थी। इन मंदिरों का जिक्र विभिन्न पुराणों जैसे गणेश और मुद्गल पुराण में भी किया गया है। ये मंदिर अत्यंत प्राचीन हैं और इनका ऐतिहासिक महत्व भी है। इन मंदिरों की दर्शन यात्रा को अष्टविनायक तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है।
अष्टविनायक मंदिर के संबंध में मान्यता है कि तीर्थगणेश के ये आठ पवित्र मंदिर स्वयं उत्पन्न और जागृत हैं। धार्मिक नियमों से तीर्थयात्रा शुरू की जानी चाहिए। यात्रा निकट मोरगांव से शुरू कर और वहीं समाप्त होनी चाहिए। पूरी यात्रा ६५४ किलोमीटर की होती है। पुराणों व धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीब्रह्माजी ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में श्रीगणेश विभिन्न रूपों मे अवतरित होंगे। सतयुग में विनायक, त्रेता युग में मयूरेश्वर, द्वापर युग में गजानन व कलयुग में धूम्रकेतु नाम से अवतार लेंगे। भगवान श्रीगणेश के आठों शक्तिपीठ महाराष्ट्र में ही हैं। ऐसी मान्यता है कि दैत्य प्रवृतियों के उन्मूलन के लिए ये ईश्वरीय अवतार हैं।
----------------- आकाश दीप : क्षणिकाएं : पद्ध संग्रह पृष्ठ ४ . -------------- संपादन. ⭐ मानसी पंत. नैनीताल. ---------- बहुरूपिये. चेहरे पर चेहरा लगाए घूम रहें हैं बहुरूपिये साथ में मुखौटा लगाए हुए. झूठ,फ़रेब, अफवाहों का बाज़ार गर्म कर अमन पसंद लोगों का सकून लूटने के लिए. ------------ डॉ. मधुप. "...उठिए, जागिए, मुस्कुराइए और प्रभु को धन्यवाद दीजिए कि हम और आप स्वस्थ हैं, और अपनों के साथ हैं..." ⭐ " ...एक उम्र वो थी... जब जादू पर भी यकीन था एक उम्र यह भी है की हकीकत पर भी शक है...." लघु कविता. पहाड़ - से वे दिन, मेरे जीवन की तमाम रातें मेरी कविताओं में कैद रही, याद है जब लिखी थी पहली बार कविता, बस आह निकली थी उदास मन से एकांत के वे कई वर्ष दर्ज़ हैं मेरी कविताओं में सुख - दुःख की परिभाषा लिये किस मुँह से मैं कहूँ कवि खुद को मेरी कविता मुझे इजाज़त नहीं देतीं. पहाड़ - से वे दिन, ट्रैफिक में फँसे होने सा लगता, रात रोज नया ठिकाना ढूंढती, और छोड़ देती मुझ अनाड़ी को अकेली, कुछ पन्ने मिलते जिसे, टोहते - टोहते हो जाता भोर. मैं खुश होती अपने हाथों की सुगंध को, कागज़ पे उतार कर, मुझे याद है उन दिनों , नहीं करती थी कोई काम , नहीं सुनती थी संगीत , नहीं पढ़ती थी कोई किताबें, नहीं थिरकती थी घुंघरू की आवाज़ पर , बस बतियाती थी गौरैया से, जो मेरा परिचय मुझ से कराती, चीं-चीं करती आती , और कंधों को देर तक सहलाती थी, मेरे कमरे की उदासी, खिड़कियों से आने वाली लताएँ जानतीं हैं, उसके कई पत्ते जले हैं , मेरे आँसुओं की बूँद से , गुनाहगार हैं हम इस पृथ्वी के, जो रोज रोते हैं, थोड़ी-थोड़ी सी बात पे. दिव्या श्री. ----------------- तेरे ख्यालों में ही रहें. न झिझक गयी, ना कभी मेरे कदम बढ़े. तुझे चाहते हुए भी, सीमित हदों में रहें. हा ये हुआ कि हम, तेरी यादों में ही रहें. दिल की छटपटाहट, कहती तोड़ दें बंधन. कि ऐसे कब तलक, तेरे ख्यालों में ही रहें. सोचती बढ़ा दूँ कदम, फिर सोचती कि, हम तुम दुनियाँ, के अजीब सवालों में न रहें. सुमन दुबे. फेस बुक से साभार ------------ आपकी अदालत. मैं सब जीत कर भी हार जाऊंगा, अंतरआत्मा की अदालत में अपनी आत्मशक्तियों द्वारा जब, दोषी ठहरा दिया जाऊंगा. आज देखो दुनियाँ की, चल रही है, अदालत में ही मेरे ख़िलाफ़ गवाही, दुष्ट जनों की मुझे गलत ठहराने के लिए. मेरा जीतना, मेरा हारना, निर्भर हो गया है, त्रि - शक्ति, तुम्हारे उपर, हम से बोलना. बिना डरे, सहमे सत्य और धर्म की रक्षार्थ , अब तो चुप नहीं रहना, कुछ तो शक्ति ,बोलना. डॉ. मधुप. पुनः सम्पादित : प्रिया. दार्जलिंग. ------------ रेनू शब्द मुखर जयपुर . तुमको आना ही होगा. साभार हे पालनहार ! जगत के राखनहार ! हे कान्हा ! हे बंसीधर ! तुझे आना ही होगा , पापों से जलती धरा को, अपनी शीतलता से मुक्त करने, हे पुरुषोत्तम ! हे विश्वरूप ! तुमको आना ही होगा. साभार. आज गली गली में शोर है , जिधर देखो उधर भ्रष्टाचार का ज़ोर है, बेटी असहाय पांचाली बन , रक्षा की गुहार लगाती है, क्या उसकी कारुणिक पुकार, तुम्हारा दिल नहीं भेद पाती है , उस मासूम की लाज बचाने, तुमको आना ही होगा.
आज चारों ओर यमराज अपनी दहकती आँखों से विराजते हैं इन कलयुगी कंसों से बचाने हे कान्हा ! तुझे आना ही होगा , अपने भक्तों के कष्टों को हरने, फैली स्वार्थ भरी कट्टरता को मिटाने एक दूसरे के बीच खाई को पाटने , हे दयानिधि ! हे ज्ञानेश्वर ! तुझे आना ही होगा साभार मैत्री की राह बताने सबको सुमार्ग पर लाने सौभाग्य मनुज का बचाने हे ज्योतिरादित्य ! हे वासुदेव ! तुमको आना ही होगा , हर आंख बेबस हो , राह तेरी ही तकती है फंसे कालचक्र से मुक्त करने इस जग मंदिर में रक्षक बन हे परम पुरुष ! हे सर्वपालक ! तुमको आना ही होगा. साक्षी है इतिहास यहाँ सनातन हो तुम जहाँ समाज में फैली विद्रूपता को मिटाने सहस्त्रपात के रूप में हे मुरारी ! त्रिविक्रम ! हे वासुदेव ! हे सुमेघ ! स्वर्गपति ! हे उपेंद्र ! फिर से आना ही होगा तुझे आना ही होगा. ----------------- आज का गीत : जीवन संगीत : पृष्ठ ५ . ------------------- -------------- फिल्म : मुगले आजम.१९६०. सितारे : दिलीप कुमार. मधुबाला. गाना : मोहे पनघट पे नन्द लाल छेड़ गयो रे गीत : शकील बदायूनी. संगीत : नौशाद. गायिका : लता. गाना सुनने देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. ----------------- फिल्म : गीत गाता चल. १९७५. सितारे : सचिन, सारिका. गाना : श्याम तेरी वंशी को बजने से काम. गीत : रविंद्र जैन. संगीत : रविंद्र जैन. गायक : आरती मुखर्जी, जसपाल सिंह. ------------ फिल्म : गुड्डी .१९७१. सितारे : धर्मेंद्र .जया. गाना : हमको मन की शक्ति देना. गीत : गुलज़ार. संगीत : बसंत देसाई. गायिका : वाणी जयराम . ---------------- आज का समाचार : पिटारा : धर्म : अध्यात्म : त्योहार और सन्यास : पृष्ठ : ६ . ----------------- हिंदी .अनुभाग. संपादन. डॉ. सुनीता रंजीता प्रिया. नैनीताल डेस्क. ---------------- ओक ग्रोव मसूरी : स्कूल में मनाया गया : हरेला महोत्सव. मसूरी : डॉ. अतुल सक्सेना.
मसूरी : संवाद सूत्र : डॉ अतुल सक्सेना. जुलाई उत्तर रेलवे द्वारा संचालित ओक ग्रोव आवासीय विद्यालय मसूरी में विद्यालय के छात्रों,स्काउट गाइड के द्वारा लोक पर्व हरेला के तहत ' और ओक ' नाम पर पौधे लगाये गए। इस मौके पर विभिन्न प्रजातियों के पौधों का वृक्षारोपण किया गया। इस अवसर पर विधालके प्रधानाचार्य श्री नरेश कुमार ने कहा कि ' और ओक ' परियोजना के तहत स्कूल के विभिन्न पहाड़ी ढलानो और परिसर में सिल्वर ओक, बांज और देवदार के लगभग १७० पौधे रोपे गए। श्री नरेश कुमार द्वारा बच्चो को हरेला पर्व के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई उन्होने कहा कि हम सभी को अपने घरों के आसपास पौधे लगाने के साथ उनके संरक्षण के लिये काम करने का आह्वान किया। उन्होने कहा कि मसूरी को हरा भरा रखने के लिए पौधे भी लगाए जा रहे है।परन्तु लगाये गए पौधो की देखभाल करना भी हम सब की जिम्मेदारी है। उन्होने कहा कि हरेला प्रकृति से जुड़ा पर्व है। चातुर्मास में हर तरफ हरियाली। प्रकृति में अद्भुत निखार व मन में अथाह उल्लास होता है। चातुर्मास की वर्षा पर्वतीय क्षेत्रों की फसल के लिए उपयोगी होने से किसान हरेला को बहुत महत्व देते हैं।इस समय धान, मडुवा, भट व मक्का की फसल तेजी से बढ़ने लगती है। उन्होंने पर्यावरण के संरक्षण के लिए वृक्षों की घटती संख्या देखते हुए बच्चों को वृक्षारोपण के महत्व को बताते हुए प्रत्येक बच्चे को एक वृक्ष अवश्य लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि प्रकृति की ओर मुड़ने का समय आ गया है, इसके लिए पेड़ लगाओ और पर्यावरण बचाओ। उन्होने कहा कि हरेला पर्व हमें पर्यावरण से जोड़ता है। पर्यावरण का संरक्षण उत्तराखंड की संस्कृति में रहा है। उन्होंने कहा कि जीवन बचाने के लिए पौधरोपण जितना जरूरी है। उतना ही जरूरी इनका संरक्षण भी है। यदि हम पर्यावरण संरक्षण के लिए सजग नहीं रहेंगे तो पृथ्वी पर जीवन का बचना बहुत मुश्किल हो जायेगा।इस अवसर पर सविता, कुसुम काम्बोज, आर.के. नागपाल, धैया नागपाल, विपुल रावत, अतुल कुमार सक्सेना, नीरू कुशवाह, विजय सैनी, अर्चना शंकर, १२७ टीए बटालियन के जवान, स्कूल के तीनों विंग के कर्मचारी और छात्र-छात्राएं मौजूद थे। संवाद सूत्र : फोटो / समाचार संकलन मसूरी : डॉ अतुल सक्सेना. ----------- धम / समा / रा / ज / ०२ ज्ञान विहार जयपुर ने हर्षोल्लास से मनाया वसंत पंचमी का पर्व. संवाद सूत्र : दिनांक १४ फरवरी मालवीय नगर डी ब्लॉक स्थित ज्ञान विहार स्कूल में आज विशेष प्रार्थना सभा 'बसंत पंचमी' आयोजित की गई। सर्वप्रथम प्रिंसिपल राकेश उपाध्याय ने मां सरस्वती को पुष्प अर्पण कर दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम की शुरुआत कर सभी को प्रकृति के नव सृजन और विद्या तथा ज्ञान के पर्व बसंत पंचमी की शुभकामनाएं दी। तत्पश्चात सभी शिक्षकगण ने ज्ञान की देवी माँ सरस्वती को पुष्प अर्पित किए। वसंत पंचमी या श्री पंचमी हिन्दू त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से भारत, बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। हिंदी विभागाध्यक्ष रेनू शब्दमुखर प्रकृति का वैभव दर्शाते हुए 'रे सखी मनभावन बसंत आया ' सुंदर कविता सुनाकर सारा माहौल बासंती बना दिया छात्रा अस्मिता घीया द्वारा बसंत पंचमी की ज्ञानवर्धक जानकारी दी गई। इसी अवसर पर पूरे वर्ष भर विभिन्न गतिविधियों में अव्वल रहे विद्यार्थियों को प्रधानाचार्य राकेश उपाध्याय द्वारा पुरस्कृत किया गया। अंत में सभी को प्रसाद वितरित किया गया। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता। जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं। आमों के पेड़ों पर मांजर (बौर) आ जाता और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं । भर-भर कर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा उत्सव मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। रेनू शब्दमुखर.जयपुर ----------- अध्यात्म / समा / उ / ज / ०२ संपादक : ख़बर सच है. नैनीताल. स्पष्ट ,संतुलित, संयमित तथा मृदुभाषी बनें. समाचार संकलन : मनोज कुमार पांडेय.नैनीताल.
गढीनेगी। श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर, प्रेमावतार, युगदृष्टा एवं भारत के महान सुप्रसिद्ध संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने यहाँ श्री हरि कृपा धाम आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि यथासंभव व्यर्थ के उलझाव व टकराव से सदैव बचने की कोशिश करें। संसार में किसी को छोटा तथा हीन समझकर कभी तिरस्कार ना करें। महानता के कार्य करें,लेकिन स्वयं को महान ना समझे। जिसमें जितना अधिक बड़प्पन आता है वह उतना ही विनम्र व सरल हो जाता है। अभिमान चाहे रूप, धन, ताकत, वैभव, जाति, पद आदि का कोई भी क्यों ना हो प्रभु प्राप्ति में सर्वाधिक बाधक है। मधुमक्खी की तरह गुण ग्राहक बनो। हर स्थान, घटना, क्रिया या परिस्थिति से कोई शिक्षा या प्रेरणा लें। दोष दूसरों के नहीं अपने देखें और सुधारें। प्रतिष्ठा के विरुद्ध कोई कार्य न करने का प्रयास करें। प्रिय सत्य ही सदैव बोलें। विचार करें कि आखिर ईश्वर ने हमारे आंख, कान, हाथ, पैर इत्यादि शरीर के अंगों को दो भागों में विभाजित क्यों किया? तथा जीभ एक ही क्यों रखी ? वाणी का सर्वाधिक महत्व है इससे शत्रुता को प्रेम में व प्रेम को शत्रुता में बदला जा सकता है। यह आदर भी व अनादर भी करा सकती है। स्पष्ट ,संतुलित, संयमित तथा मृदुभाषी बनें। --------------- कल का समाचार : धरम, करम, अध्यात्म और सन्यास. पृष्ठ ७ . --------------- --------------- फोटो दीर्घा : अतुलनीय भारत : पृष्ठ : ७ . ---------------- |
प्रकृति , प्रेम : अध्यात्म और सन्यास.
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संपादन.
कंचन पंत.
नैनीताल.
भद्र राज टेम्पल मसूरी से प्रकृति,प्रेम ,अध्यात्म और सन्यास के दर्शन : फोटो : आशा. मसूरी. |
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आज की कला कृति : कला दीर्घा : पृष्ठ ८ .
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संपादन.
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अनुभूति सिन्हा.
शिमला.
प्रेम में एक साथ लौकिकता और अलौकिकता, भौतिकता और आध्यात्मिकता का बोध. |
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दृश्य माध्यम : शक्ति : लघु फिल्में : विज़ुअल्स : पृष्ठ : ९
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संपादन / त्रिशक्ति.
सीमा रंजीता अनीता.
नैनीताल
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शक्ति यात्रा लघु फिल्में
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चैनल : तुम्हारे लिए : यात्रा विशेष
शक्ति यात्रा लघु फिल्में : निर्माण : डॉ. मधुप
दिल ढूंढता है फ़िर वही फुरसत के रात दिन को
यूट्यूब लिंक : नीचे दिए गए लिंक को दवाएं
यात्रा : शक्ति : तुंग नाथ मंदिर ( शिव ) : चौपटा : उत्तराखंड.
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मुझे भी कुछ कहना है. पृष्ठ : १०
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जया : मन बड़ा चंचल है इसे मैं किसे समझाऊं
चित्रलेखा : जीवन रहते शांति क्यों नहीं.
मेरी अभिलाषा : डॉ. मधुप.
"... मेरी आत्म शक्ति ! यदि हो सके तो तू मेरे ' सम्यक जीवन ' के लिए इसी तरह ..
सिर्फ ' सम्यक दर्शन ' के निमित ' सम्यक साथ ' की तलाश पूरी करते रहना ... "
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पुनीत शर्मा : महाराष्ट्र : की प्रस्तुति.
एक विदेशी महिला द्वारा बजाया गया धुन : एक प्यार का नगमा है
गाना सुनने देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. -------------
English Section. Page : 8.
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Ganesh Chaturthi started by Tilak in Maharashtra now became the festival of all : photo Nalanda. ------------- English Section. Editorial Page : 10 . ------------- Tri - Shakti Powered, Processed & Promoted.In Association with Nav Shakti. |
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It is a nice beginning mixed with religion based on humanity and love
ReplyDeleteValuable writing.
ReplyDeleteNice. Gaagar me sagar.
ReplyDeleteMarvellous too good to visit this page
ReplyDeleteIt is too good to visit the Blog Magazine page of:Talk of the day:Religion& Spirituality .
ReplyDeleteNice page
ReplyDeleteVery nicely written and explained about our religion and spirituality.
ReplyDeleteI like this page so much. (Rima shah from Vadodara)
ReplyDeleteThe song given in Aj Ka Geet Jeevan Sangeet is too inspirational, thanks to media team.
ReplyDeleteIt's a nice page.
ReplyDeleteVery nice page
ReplyDeleteInteresting, Appealing, spirituality is the peace of mind
ReplyDeleteVery nice page
ReplyDeleteIt is an amazing page. Thank you media team
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