Dev Deepawali : 3

 


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कृण्वन्तो विश्वमार्यम.
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आवरण पृष्ठ. ०

Dev Deepawali Celebration at Dhashashwameg Ghat Varanasi. photo Rashmi

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देव दीपावली पर्व  ३. 
Dev Deepawali : 3   
A Complete Heritage  Account over Culture  & Festival.
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Volume 2 .Section.A.Page.0.Cover Page.
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पृष्ठ. ० आवरण पृष्ठ.मंगलकामनायें .  
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कृण्वन्तो 
विश्वमार्यम.
हम सभी टीम मीडिया सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाने चले.
गर्व से कहें कि हम 
भारतीय हैं. 

Team Media.
  
देव दीपावली की मंगलकामनाएं.  
 

अनुक्रम.

आवरण : पृष्ठ ०. सुबह और शाम.  
आज का आभार : आज का सुविचार. 
आज की : कृति :  तस्वीर : पाती : 
सम्पादकीय : पृष्ठ १. पृष्ठ २. 
  पृष्ठ ३ .फोटो दीर्घा. आज कल. 
पृष्ठ ४. फोटो दीर्घा. बीते दिनों की. 
पृष्ठ ५.कला दीर्घा 
पृष्ठ ६. सीपियाँ   
पृष्ठ ७ .संस्मरण न्यूज़ रिपोर्टिंग :  कल आज और कल.
पृष्ठ ८ . व्यंग्य चित्र  आज कल : मधुप 
पृष्ठ ९ . अनुभाग अंग्रेजी
पृष्ठ १० .में देखें  मंजूषा : दिल से तुमने कहा.

 
सहयोग. 
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देखें सुबह और शाम.पृष्ठ ०.
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supporting. 

संस्मरण. 
बीते दिनों की. 


डॉ. मधुप रमण.
स्वतंत्र व्यंग्य चित्रकार ,पत्रकार ,यूटूबर ,ब्लॉगर. 
शोधार्थी लेखक. नैनीताल.
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बिहारशरीफ़ की देव दीपावली  : और वाराणसी की यादें.  

बिहार शरीफ़ शहर की एक शाम : फोटो विदिशा. 

साल २०१४ का था। मास कार्तिक शुक्ल पक्ष का। स्थान  बिहारशरीफ़ स्मार्ट सिटी के धनेश्ववर घाट मंदिर परिसर तालाब के आसपास का। वहां कुछ लोग इकठ्ठे हुए थे। शाम  का वक़्त रहा होगा। उन दिनों मंदिर परिसर तालाब की काया पलट नहीं हुई थी। परिसर तालाब में आधा - अधूरा अंधेरा ही पसरा हुआ था। मुहल्ला धनेश्वर घाट के निवासी अधिवक्ता रवि रमण , सीमा सिन्हा ,ग्रामीण बैंक कर्मी रणजीत कुमार सिन्हा , गायत्री परिवार के अभिमन्यु तथा स्थानीय संजय आदि कुछ लोग वहाँ  इकठ्ठे हो गए थे। पार्श्व में कोई गाना बज रहा था , गंगा मैया में जब तक ये पानी रहे ....
अमावस की दिवाली ख़त्म हो चुकी थी जिसे हमलोग मनाते हैं।  बिहार का लोक छठ पर्व भी संपन्न हो चुका था। शुक्ल पक्ष चल रहा था। चाँद अपने पूर्ण अस्तित्व की प्राप्ति की ओर था। अब देवों की दीपावली पर ही चर्चा हो रही थी जो हर कार्तिक पूर्णिमा को पूरे देश में मनाई जाती है । 
मुझे याद है इस पावस  दिन गुरु पूर्णिमा का भी होता है और सिख लोग गुरु नानक जयंती को बतौर प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं । लोग हरिद्वार तथा वाराणसी की गंगा की मचलती हुई लहरों में प्रवाहित किए जाने वाले दीप दानों से अच्छे खासे प्रभावित थे। चाह रहे थे कुछ वैसा बिहारशरीफ में भी हो। बातों ही बातों में वे लोग किसी निर्णय पर पहुंच रहे थे। रूपरेखा तैयार हो रही थी। 
सपने  देखने की शुरुआत : किसी ने सही कहा है जीने के लिए सपने देखने ज़रूरी है। लेकिन उस सपनों को मूर्त रूप देने के लिए कुछ अपनों के साथ प्रयत्नशील भी रहना होगा, कदाचित शांत भाव से ,असीम धैर्य रखते हुए मौन तरीकों के जरिए। तय हुआ इस साल वाराणसी के तर्ज़ पर बिहारशरीफ़ के धनेश्वरघाट तालाब परिसर में देव दीपावली मनाने की तैयारी की जाएगी।  

गतांक से आगे : १.

२०१४, मास कार्तिक शुक्ल पक्ष दिवस का वह यादगार क्षण

देव दीपावली के अंतर्गत वर्ष २०१८ में गंगा आरती का आयोजन : कोलाज विदिशा. 

वह यादगार क्षण : आख़िर वर्ष २०१४, मास कार्तिक शुक्ल पक्ष , दिवस का वह यादगार क्षण भी समीप 
आ ही गया। सुबह हो भी चुकी थी । तिमिर हट चुका था । पूरब में लाली पसर चुकी थी। बिहार शरीफ देव दीपावली आयोजन समिति के सदस्यगण जाग चुके थे । इस पहले आयोजन  में आयोजन समिति के संरक्षक,  अधिवक्ता रवि रमण, रणजीत कुमार सिन्हा, संजय कुमार, अधिवक्ता सीमा कुमारी
बालेश्वर प्रसाद, सुनील कुमार ,संजय कुमार,गायत्री परिवार से जुड़े अभिमन्यु तथा अन्य सदस्यगण ने मुहल्ले के रहने वाले अन्य सदस्यों ने इस परम्परा की शुरुआत करने की तैयारी कर ली थी। 
दुपहर की तैयारी : दोपहर होते - होते आयोजन समिति के लोग इकठ्ठे होने लगे थे। शाम के पहले तालाब की सीढ़ियों पर दीये सजा दिए गए। कार्यकर्ताओं ने दीयों में बाती भी रख दी थी। उनमें आस्था के तेल भर भी दिए गए थे। भजन - कीर्तन गाने वाले भी कुछ लोग इकठ्ठे हो ही गए थे। शाम होने को थी। दिवस का अवसान समीप ही था। बस कुछ पल में ही विश्वास के दीये  रौशन होने शेष थे। 
कहना मात्र यह है कि इस अवसर पर काशी की तर्ज़ पर ही इस छोटे से शहर बिहार शरीफ़ में भी दीये  जलने थे, सांस्कृतिक आयोजन के निमित स्थानीय लोगों के द्वारा भजन का भी गायन - वादन होना था ,जो याद करने योग्य हो सके । शाम होने की कगार पर थी। 
जोत से जोत जगाते चलो : संध्या होते ही गणपति वन्दना, गायत्री मन्त्र के ओम के दिव्य उच्चारण  के पश्चात गंगा आरती शुरू हो गयी थी । इसके बाद दीप प्रज्ज्वलित होना था। पार्श्व में गंगा तेरा पानी अमृत का गाना भोपू पर बज रहा था। यहाँ तो गंगा नहीं थी इसलिए प्रतीकात्मक जल श्रोतों में इस पवित्र तालाब को गंगा मान कर ही पूजा होनी थी। थोड़े समय के बाद जोत से जोत जगाते चलो की धुन के साथ ही दीप जलाने का कार्य आरम्भ हो गया था । प्रेम और स्नेह के मिट्टी के कई दीये  जल उठे। भक्तिभाव में प्रेम की गंगा बहने लगी। 
वैदिक मंत्रोच्चारण के बाद मधुर - मधुर मेरे दीपक  जल  , जलकर पथ आलोकित करने लगे थे । उनके कतार में जलने की तैयारी पूरी हो चुकी थी। शनैः- शनैः स्वेच्छा से कुछेक और लोग भी तालाब परिसर में जुट गए थे। उन लोगों ने भी  दीप जला कर अँधियारा हटाया और  बिहार शरीफ़ के धनेश्वर घाट स्थित तालाब के गलियारे आलोकित हो गए थे । तिमिर हट चुका था। माहौल भक्तिपूर्ण हो गया था । 

शाम वाराणसी के  गंगा घाटों की अतुलनीय शोभा : फोटो रश्मि सिन्हा 

देव दीपावली की दैविक रीत  : देव दीपावली की दैविक रीत है,भगवान उस दिन काशी के अस्सी घाटों पर अवतरित होते हैं। हम मानव कार्तिक अमावस की रात दीपोत्सव मनाते है तो देवों की दीपावली कार्तिक पूर्णिमा को होती हैं।  इस विशेष दिन काशी के घाटों की अतुलनीय शोभा विश्व विख्यात है सर्वत्र चर्चित है। गुरु पूर्णिमा  या कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन यहां की सजावट भी देखते ही बनती हैं। 
विश्व ज्ञान की धरती नालंदा के जिला मुख्यालय बिहार शरीफ़ में भी कमो वेश यही दृश्य था। वैसी ही शोभा थी। तालाब की शोभा अतुलनीय थी। इस बार यह आयोजन बिना अच्छी खासी भीड़भाड़ के बिहार शरीफ़,स्थित धनेश्वर घाट देव दीपावली आयोजन समिति ने देव दीपोत्सव का कार्यक्रम सदस्यीय  स्तर पर ही सपन्न करने का निर्णय लिया जो सफलता पूर्वक पूर्ण भी हो चुका था। सब जुड़े सदस्य गण अति प्रसन्न थे ,उनकी मंशा जो पूरी हुई थी। तय हो गया था इस गौरवमयी परम्परा का निर्वहन प्रत्येक साल किया जाएगा। 
फ़िर तो इसके बाद कई सालों से बिहार शरीफ़, स्थित धनेश्वर घाट तालाब में भी काशी के तर्ज़ पर कार्तिक पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा  के पवित्र दिन को भी पर देव दीपावली मनाने की एक अभूतपूर्व परंपरा बनी ही रही है। लोग साल दर साल उसी उत्साह से भाग लेते रहें हैं। 
अख़बारों की सुर्खियां बनी : बिहार शरीफ
की यह देव दीपावली : मुझे याद है दैनिक भास्कर के ब्यूरो चीफ मेरे छोटे भाई जैसे सुजीत कुमार सिन्हा ने इस दिव्य आरती की इस ख़बर को अपने शहर के लोकप्रिय दैनिक दैनिक भास्कर में बिहारशरीफ़ के पृष्ठ पर प्रमुखता से छापा था। और अन्य अख़बारों यथा हिंदुस्तान दैनिक, दैनिक जागरण ,प्रभात ख़बर , सन्मार्ग ,दैनिक आज, ने भी इस देव दीपावली के आयोजन के निमित की गई गंगा आरती को विशेष जग़ह दी थी। चूंकि मैं भी एक मीडिया कर्मी रहा हूँ ,एक स्वतंत्र व्यंग्य चित्रकार की हैसियत से मैंने अपने कैरियर की शुरुआत ८० - ९० के दशक में की थी। विभिन्न दैनिक अख़बारों यथा 
आज ,आर्यावर्त, रांची एक्सप्रेस, कौमी तंजीम , इंकलाब ,संगम ( उर्दू  दैनिक ),पाटलिपुत्र टाइम्स, प्रभात ख़बर, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, और पत्र पत्रिकाओं यथा दिल्ली से प्रकाशित बाल भारती ,पटना से प्रकाशित प्रतियोगिता किरण, आनंद  पत्रिका  में यदा कदा छपता रहता था, इसलिए मीडिया कर्मियों के मध्य हल्की पहचान भी बना चुकी थी । 
तब दैनिक हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ निरंजन की वजह से बिहारशरीफ़ के दैनिक हिंदुस्तान की पृष्ठ पर कार्टून कॉलम में हर दिन जग़ह मिल रही थी। शायद इस वजह से भी मेरे सह कर्मी , मीडिया कर्मी बंधुओं ने इस ख़बर को प्रमुखता से छापा था। इसके लिए मैं तहे दिल से उन सबों का आभारी होता हूँ। लोकल टी वी चैनल पर भी यह न्यूज़ दिखता रहा था जिसे मैं अभी तक़ नहीं भूला हूँ। प्रेस की,इससे जुड़े कर्मियों की  एकता सच में अत्यंत सराहनीय होती है। आख़िर हम फोर्थ स्टेट जो ठहरे ......

Dev Deepawali Biharsharif News Clipping. M.S.Media Presentation.


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गतांक से आगे : २ में 
बिहारशरीफ़ ,गंगा आरती,एक नाचती हुई लड़की,और एक इत्तफ़ाक  ?
पुनः सम्पादित : प्रिया दार्जलिंग. 

गंगा आरती ,एक नाचती हुई लड़की,और एक इत्तफ़ाक  : कोलाज : विदिशा. 

कल अचानक कॉरिडोर में चलते हुए डी ए वी में मुझे एक छोटी सी बच्ची मिल गयी 
मैंने उसकी तरफ देखा। मैंने याद करने की कोशिश की। लगा मैंने कहीं उसे देखा है ,तभी याद आया गंगा आरती में ..एक नाचती हुई लड़की ... गुलाबी फ्रॉक में मंच पर नृत्य कर रही थी ।  
मैंने उससे पूछा,  '  ... उस दिन गंगा आरती में तुम ही थी न ...? नाच रही थी... ?
हँसते हुए उसने सर हिलाया , .' जी ...' 
एक छोटी सी बच्ची ,प्यारी सी बच्ची। मैं कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पहले बिहार शरीफ़ धनेश्वर घाट तालाब परिसर में हुई गंगा आरती को याद करने लगा था ।  
बिहारशरीफ देवदीपावली, गंगा आरती के साल २०१४ का सफ़र २०२२ तक़ पहुंच चुका था। इस बार भी गंगा आरती कार्तिक पूर्णिमा को ही होनी थी लेकिन चूँकि  नवम्बर को ग्रहण लगना था। इसलिए पूर्णिमा के एक दिन पूर्व अर्थात ७ नवम्बर को यह आयोजन होना था। सभी जगह सूतक लगने की वजह से गंगा आरती कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पूर्व कर दी गयी थी। शीघ्र ही  ड्यूटी से लौट कर मैं मंदिर परिसर तालाब की तरफ़ बढ़ गया था।  कुछेक लोग आने वाले थे। मैंने उन्हें गंगा आरती में इस आयोजन देखने के लिए बुलाया भी  था। लेकिन नहीं आए।   
यही जीवन है। जीना है तो सुख से ज्यादा दुःख को याद करें। भीड़ से अलग हटकर अकेलेपन को याद करें। उम्मीदें  हद से ज्यादा न हो .... तकलीफ़ देंगी। यही फलसफा है जीने का ...। 
याद कर रहा था। यही थी वह छोटी सी बच्ची ...न ? जो हर गाने, हर भजन में अपने नृत्य से संगत कर रही थी।  लगातार हर गाने पर नाच रही थी। बिना थके हुए ,और बहुत देर तक नाचती रही थी ...। 
उसकी माँ भी उसके साथ थी। बोलने लगी वह पूरे समय तक नाचेगी। और सच उसने किया भी। किसने भेजा था उसे ? वह स्वयं आयी थी ..या फिर ... कोई संयोग ....
एक दिन गुज़र गया। बात आयी गयी। फिर अचानक उस किरदार का मिलना क्या इत्तिफ़ाक नहीं था मेरे जीवन का ?  ...उसका  हमसे बातें करना  ?  था भी ,नहीं भी। यहीं  कहीं अनायास  चलते हुए वह मिल गयी थी । 
मैंने जब कल चलते हुए कॉरिडोर में उससे पूछा था , ' ...किस क्लास  में पढ़ती हो ...?
उस नन्हीं  बच्ची का जवाब था,  '....  वन ए में...'
' ...क्या नाम है ? '  , मैंने पूछा तो उसने कहा , ' ..सोनाली..'
मैंने गले में लटकता हुआ उसका आई. डी. कार्ड देखा। पता लिखा था, प्रोफ़ेसर कॉलोनी ...पड़ोस में ही होने की वज़ह से वह यहाँ आयी थी। मैंने जिज्ञासा से पूछा  ' ...आपको डांस कौन सिखाता है ...? 
' ....मेरी मैडम ....'
' ....कौन मैडम ....क्या नाम है ..?
' ....मेरी क्लास टीचर ... रंजीता ....' 
मैं उसकी तरफ़ अपलक देखता रहा। थोड़ी ही देर में वह अपने क्लास की तरफ़ चली गयी। और मेरे लिए कहानी में लिखने के लिए एक इत्तफ़ाक  का सिरा फिर से वह छोड़ गयी । क्या उसका इस तरह मिलना एक इत्तफ़ाक नहीं था, मेरे लिए  ? है  न ? 
इतनी कम उम्र में मैंने उसके नाचने के ज़ज्बें और तरीके  को गौर से देखा तो उसके हुनर का गुमान हुआ। वह नृत्य के क्षेत्र में अच्छा कर सकती है। 
इधर हालिया एकाध सालों से आजकल मेरी जिन्दगी में अजीब इत्तफ़ाक  हो रहा है। मेरी स्मृति तेज़ी से गुम हो रही हैं या कहें मैं कहीं खो रहा हूँ ।  शायद मैं यहाँ मन - मस्तिष्क से रहता नहीं। पहले भी नहीं रहता था।चाहतें पूरी हो रहीं हैं ,शायद । सपनों के महल की तामीर भी हो रहीं हैं, शायद ।
कह सकते है ऐसे भी हम कल्पनाजीवी कलमकार लोग वर्तमान में रहते ही कहाँ है ? हमारी दुनियां तो अलग ही होती है ,एकाकी ,सबसे इतर।   
इसलिए रखी चीजें मिलती नहीं। और दो दिनों के बाद सुरक्षित मिल जातीं  हैं । दुर्घटना हो सकती थी लेकिन हुई नहीं। मैं भुला रहा हूँ या ज़िंदगी मुझे भूल रही है ,पता नहीं । उम्र का असर है  या फिर कह सकते हैं हम कहानीकारों की ज़िंदगी ऐसी ही होती है। दुआओं के सहारे ही ज़िंदगी  जा रही है। जैसे दया और भीख में मिली जिंदगी जी रहा हूँ। कह नहीं सकता। 
लेकिन इधर कुछ तो है, जो मेरे साथ अप्रत्याशित घटित हो रहा है। कोई तो है जो मेरे साथ है एक अदृश्य शक्ति बन कर जो अनदेखे तौर पर, अनजाने ही सही मगर मेरी छाया  बन कर रक्षा कर रहीं  हैं । बिगड़े काम बन रहें हैं। समय का पालन हो रहा है। यह मेरी जिंदगी का वहम है ,मेरी सोच या फ़िर कोई हर दिन जिंदगी का घटने वाला इत्तफ़ाक  ही सही ?  बता नहीं सकता। 

 बनारस की संस्कृति को जीने की क़ामयाब कोशिश : कोलाज : विदिशा 

सुबह  और शाम : याद करने लगा गुरु पूर्णिमा का दिन। या कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन के एक दिन पहले यहां की सजावट भी देखते ही बन रही थी । सुबह कब की हो भी चुकी थी। अंधकार हट चुका था। बिहार शरीफ देव दीपावली से जुड़े लोग सुबह से अपने - अपने काम में लग गए थे । कहना मात्र यह है कि इस बार फिर से  बनारस की संस्कृति को जीने की क़ामयाब कोशिश करनी थी। काशी की तर्ज़ पर ही इस छोटे से शहर बिहार शरीफ़ में भी सांस्कृतिक आयोजन के निमित फिर से भजन का भी गायन - वादन होना था जो स्मरणीय  होता है। 
विनय जी वही हमारे प्रिय अभिनेता नवीन निश्चल अभिनीत फ़िल्म गंगा तेरा पानी अमृत का अति लोकप्रिय फ़रमायशी गाना गंगा तेरा पानी अमृत  गा रहें थे। 
तब देर संध्या बनारस से आए पंडितों यथा आचार्य दीपक शास्त्री ,पंडित संतोष पांडे ,पंडित राकेश प्यासी ,पंडित प्रवेंद्र तिवारी ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ आयोजन समिति के सदस्यों  के द्वारा जलश्रोतों की विधिवत पूजा आरम्भ करवाई। तत्पश्चात गंगा आरती संपन्न हुई ।
रात होने की कगार पर थी। मधुर - मधुर दीपक मेरे जल, जल - जल कर मेरे पथ आलोकित करने के लिए लोग आतुर थे । उन दीयों के जलने की  तैयारी हो चुकी थी । शनैः - शनैः स्वेच्छा से कुछेक लोग तालाब परिसर में जुटने लगे थे, दीप जलने मात्र से  बिहार शरीफ़ के धनेश्वर घाट स्थित तालाब के गलियारे को जो आलोकित होना था, माहौल भक्ति पूर्ण हो गया था। एक लड़की को आकाश दीया जलाते हुए देखा ,अच्छी लगी  थी। 
मैं तालाब की सीढ़ियों पर टहल रहा था, पथ आलोकित हो चुका था। ...लेकिन फ़िर थोड़ी सी ऊंचाई पर मध्यम अँधेरा वैसा ही पसरा हुआ था ...


गंगा आरती ,एक नाचती हुई लड़की,और एक इत्तफ़ाक : न्यूज़ रिपोर्टिंग : ड़ॉ. मधुप. 

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गतांक से आगे : ३.अंतिम क़िस्त  
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देव दीपावली  : और वाराणसी की यादें. 

देव दीपावली के दिन सुबह - ए - बनारस : फोटो : नीलम पांडेय.
  
बिहार शरीफ़ की गंगा आरती से वाराणसी की देव दीपावली स्वतः याद आ जाती है। यहाँ के  लोगों ने काशी की नक़ल करने की कोशिश की थी। बहुत तो नहीं आंशिक रूप में सफल भी हुए थे। २०१४ के बाद इस शहर की देव दीपावली विशेष चर्चा में तब आयी जब सन २०१६ जिले के  एस.पी.  इस घटना के साक्षी बनें।
पूरी घटना ,रीत तक अपनी भागीदारी और उपस्थिति बनाई रखी। मुझे याद है तब बिहारशरीफ़ नगर निगम के मेयर भी वहाँ मौजूद थे। उस साल गंगा आरती खूब चर्चें में आयी थी। 
तब से २०२२ तक का सफर निरंतर उत्तरोत्तर विकास का ही रहा। धीरे धीरे इस गंगा आरती में आस पास की सहभागिता बढ़ती ही रही। दो चार लोगों के अकेले का प्रयास अब जन समूह का सार्थक प्रयास बनता जा रहा था। 
साल २०२२ में  डी ए वी स्कूल की वन में पढ़ने वाली उस नन्हीं बच्ची सोनाली की स्वतः,स्फूर्त भागीदारी बिहार शरीफ़ गंगा आरती से जुड़ी यादों की कई एक सुनहरी कड़ियों  में से एक विशेष कड़ी बन जाएंगी, मैं ऐसा सोचता हूँ। सोचा था उसके स्कूल में नृत्य सीखने की कलात्मक भाव भंगिमा की छोटी सी वीडियो क्लिपिंग भी दिखलाता लेकिन वीडिओ नहीं उपलब्ध होने की वज़ह से  बहुत दिनों से इंतजार में रुके ठहरे हुए इस पोस्ट को आगे  बढ़ाते हुए समाप्ति की तरफ़ ले जाता हूँ ।  
इस साल देखने से यह प्रतीत हो रहा था कि बिहार शरीफ़ स्मार्ट सिटी बनने की राह पर कदम बढ़ा चुका है। तालाब परिसर एकदम से नए लुक में दिख रहा था। 
देव  दीपावली ,गंगा आरती की चर्चा होती है तो काशी की गंगा आरती आप ही याद आ ही जाएगी । 
काशी दर्शन : मैं पहली दफ़ा काशी १९८९ में आया था। हरिश्चंद्र घाट , दरभंगा घाट ,दशाश्वमेध घाट से राज घाट तक की काशी नाव से देखी थी। मणिकर्णिका घाट में निरंतर जलते हुए शव भी देखे थे। तब पहली दफा ही काशी अच्छी लगी थी। लगा था काश यहाँ कोई अपना यहाँ होता ? 
काशी की माया देखिए भोले ने मन की इच्छा पूरी कर दी  थी। आज अपनी सगी बहन काशी में ही रहती है। तब से काशी छ सात बार जा चुका हूँ। गंगा आरती भी कई बार देखी है। जब भी जाता हूँ दशाश्वमेध घाट दरभंगा घाट में घंटों बैठा रहता हूँ। और सोचता रहता हूँ राम तेरी गंगा कहाँ से मैली हुई ? हमने तो पहाड़ में गंगा को निर्मल ही कर रखा है ,न ? हरिद्वार तक तो गंगा का पानी अमृत ही है न ? अपने लिए तो उत्तर काशी में बहता पानी नहीं ...मानो तो गंगा माँ ही है न ? 
याद करता हूँ वाराणसी से ही देव दीपावली  शुरू हुई या कहें देव दीपावली की  बजह से वाराणसी या कहें  काशी विशेष चर्चा में आ गयी । देव दीपावली के अवसर पर काशी  के घाटों पर अनगिनत दीप जलते हैं  जिसे दूरदर्शन के माध्यम से असंख्य लोग देखते पूरे विश्व में देखते है। और  शिव की नगरी काशी कार्तिक मास कैसे निखर सवर जाती  है आप कल्पना कर सकते हैं । 
उल्लेखनीय है काशी में  गंगा नदी के किनारे जो रास्ते बने हुए हैं वह  रविदास घाट से लेकर राजघाट तक जाते हैं। उन रास्तों से लगे काशी के अस्सी से भी अधिक घाटों पर ही आखिर तक वहाँ करोड़ों  असंख्य दिये जलाकर गंगा नदी की श्रद्धा के साथ पूजा  की जाती है और गंगा को माँ का सम्मान दिया जाता है।
देव दीवाली की परम्परा की शुरुआत सबसे पहले वाराणसी के पंचगंगा घाट १९१५ में हजारों  दिये जलाकर की गयी थी। प्राचीन परम्परा और संस्कृति में आधुनिकता की  शुरुआत कर काशी ने विश्वस्तर पर एक नये अध्याय का पृष्ठ खोला था। 
कालांतर में  यह विश्वविख्यात आयोजन लोगों को आकर्षित करने लगा । देवताओं के इस उत्सव में हम सभी परस्पर सहभागी होते हैं - काशी, काशी के घाट, काशी के लोग। देवताओं का उत्सव देव दीवाली, जिसे काशीवासियों ने आपसी सामाजिक सहयोग से महोत्सव में परिवर्तित कर विश्वप्रसिद्ध कर दिया। 
असंख्य दीपकों और झालरों की रोशनी से रविदास घाट से लेकर आदि केशव घाट व वरुणा नदी के तट एवं घाटों पर स्थित देवालय, महल, भवन, मठ-आश्रम दीपों से जगमगा उठते हैं | गंगा के पानी में झिलमिलाते दिए इसे देव सरिता में तब्दील कर देती है। इस बार ही आगे भी काशी में कदाचित जलते असंख्य मिट्टी के दीयों  से काशी की महिमा व सौंदर्य सर्वत्र चारों दिशाओं में फैल जाएंगी ऐसी उम्मीद है। 
इति शुभ। 
डॉ. मधुप रमण.

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आज का आभार / सहयोग .पृष्ठ ०. 
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निर्माण / संरक्षण. 


.डॉ. अमरदीप नारायण. 
हड्डी,नस रोग विशेषज्ञ.नालंदा
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डॉ.सुनील कुमार. शिशु रोग विशेषज्ञ.नालंदा. 
डॉ. अविनाश सत्यम. स्त्री रोग विशेषज्ञ. 
डॉ.अजय कुमार. नेत्र रोग विशेषज्ञ.
.डॉ.राजीव रंजन. शिशु रोग विशेषज्ञ. 

supporting 

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आज की बात . जीवन सुरभि. पृष्ठ ०. 
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संपादन.


निशि सिन्हा.  
पूर्व आकाश वाणी, उद्घोषिका
--------------

जीवन से बड़ा कोई पाठशाला नहीं
  अनुभव से बड़ा कोई ज्ञान नहीं
       और परिस्थितियों से बड़ा कोई शिक्षक नहीं.
✍️
ज़िन्दगी की आजमाइश सबसे
    कठिन इम्तिहान होती है, इसके हर पायदान पर कठिन सवाल होते हैं,
  उन सवालों के हल ढूँढना सबसे
    बड़ी चुनौती होती है...   
  ✍️   
 
पूनम सिन्हा .वाराणसी    




ये जीवन है. इस जीवन का.
 

उदासी ..बैचैनी ..घुटन ...तन्हाई 
उफ्फ़ ये ख़्वाहिशें मुझे कहाँ ले आई ..?

शालिनी नाथ 
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आज की पाँती . पृष्ठ ०. 
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संपादन.


कंचन पंत. नैनीताल.
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एक अति लघु कविता. 
तलाश.


ग़र यकीन न हो तो, 
बिछड़ कर देख लो,हमसे  
तुम मिलोगे जरूर सबसे,
मगर हमारी ही तलाश में. 
ग़र यकीन.....

अज्ञात 
---------
कहीं खो जायेंगे.


बहुत ख़ामोशी से कहीं खो जायेंगे, 
फिर लौट के नहीं आएंगे, 
तुम देते रहोगे आवाज़
और हम चुपके से सो जायेंगे. 
जब चले जायेंगे. 
तो याद बहुत आयेंगे,
फिर ढूंढना ,तलाशना हमें, 
फिर हम लौट के कभी नहीं आएंगे. 

राहत इंदौरी. शायर. 


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वसीयत.
लघु कविता.

पाषाण देवी : फोटो डॉ.मधुप  

चिनार, 
देवदार, 
वो नैना देवी,
पाषाण देवी, 
 वो नैनी झील
जो देखी मैंने, 
तेरी आँखों में.    
पहाड़ी पर 
एक छोटा सा घर,
और एक सपनों का शहर,

नैनी झील : फोटो मानसी 

वो कहानियां
वो किस्सें
वो लिखी कविताएं
वो क्षणिकाएं, 
लो आज मैं ये  
वसीयत करता हूँ, 
मैं मुकम्मल कर सकूं 
 वो सपनें  
जो देखे मैंने 
अपने, 
लिखी जो कहानियां 
जिस कलम से, 


सब कुछ , 
हाँ सब कुछ,
लो आज 
ये कलम,
वो सारे सपनें,  
मैं तेरे हवाले करता हूँ,  

फोटो : डॉ मधुप 


 मैं आज ये  
वसीयत करता हूँ. 

डॉ.मधुप.  
©️®️ M.S.Media.
पुनः सम्पादित : प्रिया दार्जलिंग 
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चल ख़ुसरो घर आपने.
 लघु कविता.

फोटो : डॉ. मधुप 

ये अंधें,बहरें, और गूंगों का 
शहर है ,जनाब
किससे, 
कितनी, 
कैसी
क्यों,काहे की  
उम्मीद  करते हो ?
किसके देखनेसुनने 
और बोलने, समझने  की तुम 
बात सही करते हो.   
 रहना नहीं मेरे लिए तो
यह देश वीराना है,
चल ख़ुसरो घर आपने,
लौट के वापस, 
अपने घर ( पहाड़ ) ही तो जाना है. 

डॉ.मधुप.  
©️®️ M.S.Media.
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ग्रहण. 

 
सुख है, 
तो क्यों भूलते हो  ? 
कि दुःख भी है. 
कल पूर्णिमा थी,  
तो आज उम्मीदों पर ग्रहण, 
लगना तय ही था. 
यह तो होना ही था,
ठहर जाओ,
रुक जाओ
उस जलती हुई मोमबत्ती को देखो, 
और सोचो
किसी कारण उलटी पड़ी है, 
मगर लौ तो उसकी, 
सीधीजली खड़ी  है, 
है न ?, 


डॉ.मधुप.  
©️®️ M.S.Media.



supporting 
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पृष्ठ.०  आज की : कृति.
Art of the Day. 
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संपादन.

 
सुमन. नई दिल्ली. 

हिमालय की गोद में : एक कृति. 

गांव ,गंगा और गाय : कृति प्रवीण सैनी. मुज़फ्फरनगर. नई दिल्ली   


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आज का गीत : जीवन संगीत.पृष्ठ ०. 
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संपादन.

 
प्रिया 
दार्जलिंग.
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जोत से जोत जगाते चलो 
प्रेम की गंगा बहाते चलो.

संत ज्ञानेश्वर फिल्म के गाने सुनने के लिए नीचे दिए यह लिंक दबाएं.. 
 

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पृष्ठ.० आज की : तस्वीर. 
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संपादन.
 
वनिता. 

mountains calling me with stretching their arms : photo : Gopal. Nepal.

our blog page editor celebrating Dev Deepawali : photo Renu Shabdmukhar. 

Shishganj Gurudwara and Guru Parv : Photo Ranjana. Nai Delhi.  
Varanasi Devdeepwali arial View from Ramnagar : courtesy Photo
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दीये  जलते हैं : दीपावली ३. 
 

Diye jalte Hain. Dev Deepawali. 3
A Complete Heritage  Account over Culture  & Festival.
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Volume 2 .Section.A.Page.0.Cover Page.
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सम्पादकीय : पृष्ठ १.



 

प्रधान संपादक. 
डॉ. मनीष कुमार सिन्हा. 
नई दिल्ली. 


वरिष्ठ संपादक.

 
डॉ. आर. के. दुबे.

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सहायक संपादक 
 रेनू शब्दमुखर. जयपुर.
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प्रेम कभी मरता नहीं.

फोटो : साभार    

प्रेम कभी मरता नहीं, 
बस रूप बदलता है.
वो देखो हँसती हुई नन्हीं कोपलों को, 
ओस की ताज़गी देती बूंद को, 
खिलखिलाते हुए बच्चे की,  
निश्छल मुस्कान को ,
उसके भोलेपन को, 
उगते हुए विश्वास को, 
फैलती हुई उसकी जड़ों को, 
उफनते हुए अहसास को, 

फोटो : तनुश्री सान्याल.   

थमते हुए तूफान को, 
और इनसे सबसे ऊपर, 
मन के ज्वार को, 
जो प्रेम को स्वीकारता है, 
और मन का स्वीकारना, 
जैसे क्षितिज का धरती से, 
निस्वार्थ पाक प्यार करना,

फोटो : डॉ.मधुप   
 
सूरज का गहन तिमिर में 
डूबी धरा पर, 
आलोक की किरणों को फैला, 
नई स्फूर्ति से पूरित करना, 
तो चाँद का चांदनी फैला, 
इस धरा को प्रेम की 
शीतलता से सिक्त कर, 
प्रेम के नव निर्मित श्रृंगार से, 
अभिहित करना 
सब प्रेम के ही रूप है. 

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संयोजिका. 


नीलम पांडेय. 
वाराणसी. 
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लघु कविता 
वजूद.


साभार : फोटो 

 जिम्मेदारियों तले दबी बेजुबान स्त्री,
 संबंधों के दायरे में ख़ुद को समेटती -सी.
सबके भीतर अपना वजूद तलाशती,
आज भी तन्हा और अकेली है.  
 जानते थे जब तक दूर से ही तुमको,
दिल में लेकर डोला करते थे.
करीब से देखा है जबसे,
  अब तुम्हारी तरफ देखना भी, 
पसंद नहीं  करते हैं.
लिए फिरते हैं कई चेहरें  
लोग आजकल,
जिन्हें समय - समय पर बदल लिया करते हैं.
 कड़ी मेहनत से बीज बोता है कोई और,
अकसर फसल, दूसरे  काट लिया करते हैं.
अपना किरदार उम्दा लगता है उनको,
गोया गलतियां ढूंढ लिया करते हैं.
       
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फोटो एडिटर. 


अशोक कर्ण.  
भूत पूर्व फोटोग्राफर. हिंदुस्तान दैनिक. पटना - रांची.
भूत पूर्व फोटो एडिटर 
पब्लिक एजेंडा .नई दिल्ली. 
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कार्यकारी  संपादक.


पूनम सिन्हा.
स्वतंत्र लेखिका. वाराणसी.
राजेश रंजन वर्मा. 
स्वतंत्र लेखक, पटना. हिंदुस्तान हिंदी  दैनिक
रीता रानी.जमशेदपुर. 
रंजना. स्वतंत्र लेखिका.नई दिल्ली.   
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अतिथि संपादक.

सुमन. नई दिल्ली.  
मधुलिका कर्ण.बंगलोर
अनुभूति सिन्हा. शिमला. 
प्रियादार्जलिंग. 
नमिता. रानीखेत. 
कंचन पंत.नैनीताल.
रंजीता. वीरगंज. नेपाल  
डॉ.अनुपम अंजलि. रांची.
  स्मिता वनितापटना   
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संवाददाता विशेष.


    शिल्पी. अमेरिका.
मीरा. अमेरिका.
     ऋषि किशोर.कनाडा. 
      कुणाल. यू. ए. इ.     
  अविरल. जापान. 

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संपादक. मंडल 


डॉ. रंजना.
डॉ. रूप कला प्रसाद 
डॉ. अर्चना.कोलकोता  
रवि शंकर शर्मा .संपादक, नैनीताल. 
डॉ. नवीन जोशी,संपादक, नैनीताल.
मनोज पांडे, संपादक, नैनीताल.  
अनुपम चौहान. संपादक. समर सलिल. लखनऊ.   
डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह, रायपुर. 
डॉ. प्रशांत, बड़ौदा. गुजरात.  
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विधि सलाहकार.
सरसिज नयनम अधिवक्ता,उच्च न्यायालय ) नई दिल्ली. 
रजनीश कुमार ( अधिवक्ता,उच्च न्यायालय ) पटना. 
सुशील कुमार ( विशेष लोक अभियोजक. पाक्सो. )
रवि रमण  ( वरिष्ठ अधिवक्ता )


सीमा कुमारी (अधिवक्ता )
दिनेश कुमार (वरिष्ठ अधिवक्ता )
विदिशा. 
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संरक्षण. 
 चिरंजीव नाथ सिन्हा, ए.डी.सी.पी. लखनऊ.  
राज कुमार कर्ण, डी. एस. पी. ( सेवानिवृत  ).पटना
विजय शंकर,  डी. एस. पी. ( सेवानिवृत  ).पटना 
डॉ. मो. शिब्ली नोमानी. डी. एस. पी. नालंदा 
कर्नल  सतीश कुमार सिन्हा ( सेवानिवृत ) हैदराबाद.
कैप्टन अजय  स्वरुप, देहरादून , इंडियन नेवी सेवानिवृत ).
डॉ. आर. के. प्रसाद , ( ऑर्थोपेडिशयन ) पटना.
अनूप कुमार सिन्हा, ( उद्योगपति ) नई  दिल्ली.
डॉ. प्रशांत. बड़ोदा  
डॉ. तेज़ पाल सिंह ,नैनीताल ( व्याख्याता ) 
डॉ. भावना, ( व्याख्याता )

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पृष्ठ का निर्माण आज से ही :  देव दीपावली विशेषांक .एक बेहतरीन शुरुआत
कृप्या स्नेह बनाए रखें. 
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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / 
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supporting
लेख.अनुभाग,
संपादक.
 
राजेश रंजन वर्मा 
स्वतंत्र लेखक, हिंदुस्तान. 
©️®️ M.S.Media.
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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ३    
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संस्मरण.
 


 रंजना. नई दिल्ली.
स्वतंत्र लेखिका : हिदुस्तान दैनिक 

दिल्ली ,गुरुद्वारा , कार्तिक पूर्णिमा और मेरी बचपन की यादें.. 

दिल्ली में गुरु पर्व की तस्वीरें : कोलाज : रंजना. 


गुरु पर्व : तकरीबन बीस वर्षों से दिल्ली में रहने के बाद भी पटना की यादें धुमिल नहीं हुई है । खासकर पर्व त्यौहार के मौसम में । अब त्योहार अपने अंतिम पड़ाव पर है । कार्तिक पूर्णिमा आ गया । दिल्ली में कार्तिक पूर्णिमा एक उत्सव की तरह मनाया जाता है । इस माह को बहुत ही पवित्र मानते हैं सिख समुदाय के लोग भी। 
सिखों के पहले गुरु नानक देव तथा सिख धर्म के संस्थापक की जयंती को प्रकाश पर्व या गुरुपरब कहा जाता है। हर वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। इस दिन गुरूद्वारे को लड़ियों और बल्बों से सजाया जाता है। शब्द व कीर्तन होते है। लंगर का प्रबंध होता है। दिल्ली में शीश गंज गुरुद्वारे की सजावट देखने लायक होती है। 
गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को पाकिस्तान में स्थित श्री ननकाना साहिब में हुआ था। गुरु नानक देव की जयंती को गुरु पर्व और प्रकाश पर्व के रूप में मनाई जाती है। उनके लिए गुरु नानक जयंती होने की वजह से यह पूर्णिमा गुरु पर्व बतौर मनाया जाता है। शीश गंज गुरूद्वारे को देखते ही पटना साहिब गुरु गोविन्द साहिब याद आ जाते थे।  
बचपन की यादों में कार्तिक पूर्णिमा : हमारे यहां बिहार में कार्तिक स्नान का एक  खास महत्व रहा है । यदि अपना बचपन याद करु तो, मुझे आज भी भलीभांति याद है जब कार्तिक पूर्णिमा आने वाला होता था मेरे घर में आंगतुको की संख्या बढ़ जाती थी । गंगा किनारे बसे होने के कारण गांव से रिश्तेदार व आसपास के गांव से उनके रिश्तेदार सभी बड़े हक़ से पटना आ धमकते थे । तब के लोग बहुत ही  आत्मीय व नजदीक  होते थे। ‌उनको  सामने वाले पर हक जमाना आता था बेहिचक । कोई मेहमानवाजी की चिंता नहीं ना ही नफासत की।  ज़मीन में जगह मिल जाए वहां कुछ बिछाया और सो गए ।
ऐसे लोगों के बीच हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन मैं अपने दादा जी और दादी को लेकर बदरघाट जाया करती थी । वैसे तो जब भी दादी दादा पटना आते गंगा स्नान करने जरुर जाते थे ‌। 
याद है कतकी पुनिया यही कहती थी मेरी दादी। वैसे वो आजीवन लहसुन प्याज नहीं खाती थी , लेकिन हर साल इस महीने घर में किसी को भी यह सब खाने को नहीं मिलता था । बदरघाट मुझे लगता था तब कि पटना के सभी घाटों में सबसे बड़ा और बढ़िया घाट यही हैं । शायद इसलिए भी कि तब दुर्गा विसर्जन सबसे पहले बदरघाट में ही होता था । बड़ी देवी जी वही विसर्जित होती थी ।
मैं जहां रहती थी वहां से बदरघाट की दुरी डेढ़ से दो किलोमीटर तो रहा ही होगा और तब के जमाने में गाड़ी बहुत दूर की बात थी । दो पहिया वाहन  ही होते थे किन्तु पैदल ही चलना पसंद करते थे । मैं दादा जी से आजादी की कहानी , जिन्ना और नेहरू की बातें सुनती थी। 

गतांक से आगे : १.
शबद ,कीर्तन , गुरुग्रंथ साहिब का पाठ के बाद लंगर.

शबद ,कीर्तन , गुरुग्रंथ साहिब का पाठ के बाद लंगर : फोटो रंजना. 

जबरन पांच की  डुबकी : भीड़ इतनी की ओहह । फिर भी दादी मुझे लेकर गया गंगा जी में घुस जाती थी। मजा आता था पानी में लेकिन डुबकी लगाने में डरती थी । दादी के आगे डर क्या ? जबरन पांच डुबकी लगाना ही है । फिर सुर्य के तरफ मुंह करके  मंत्र पढ़ती थी । कुल मिलाकर कर धूप दीप  पूजा पाठ दान दक्षिणा देकर घर की तरफ वापसी । हां रास्ते में पटनदेवी मंदिर और फिर मीना बाजार से जलेबी भी ... 
फर्क है आज की पुर्णिमा स्नान में  मुझे नहीं मालूम अब बदरघाट की क्या स्थिति है या  ' कतिकी पुनिया ' किस तरह मनाया जाता है ?
प्रभातफेरी की समझ
: गंगा स्नान के अतिरिक्त एक और यादें हैं पटना सिटी की जो कि तब बहुत समझ में नहीं आता था।  हां आज समझ  गई हूं । तब जिसे हम जुलूस समझते थे दरअसल वह प्रभातफेरी होता था । गुरु गोविन्द सिंह जी के जन्म स्थान से चलकर गायघाट के गुरुद्वारा तक ढोल बाजे के साथ नगर कीर्तन  सुर्योदय के पहले ही शुरू हो जाता था । हालांकि इस प्रभातफेरी की समझ सिर्फ सिख समुदाय को ही थी बाकी सड़क किनारे लोग दर्शक ही होते थे ।
दिल्ली शीश गंज का गुरुद्वारा : आज इस प्रभातफेरी का महत्व समझ में आने लगा है ।यह सिखों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण  होता है । दिल्ली शीश गंज से निकल कर बंगला साहिब और फिर बाकी के गुरुद्वारों में। और साल सिख प्रबंधन कमेटी और सरकार मिलकर रुट  निर्धारित करते हैं । बड़ी बड़ी गाड़ियों में चलने वाले लोग भी पैदल चल पड़ते हैं इस नगर कीर्तन में । सिख लडके लडकियों कुछ कुछ टुकड़ियां युद्ध कौशल का भी प्रदर्शन करती है । जिस निर्धारित रास्ते से कीर्तन करते हुए लोग निकलते हैं उस रास्ते में जगह जगह स्टाल लगाकर खाना पानी,स्नैक्स  कोल्डड्रिंक आदि की भरपूर व्यवस्था रहती है । इस में सिर्फ सिख समुदाय के लोग ही नहीं हर समुदाय से लोग शामिल होते हैं ।
नगर कीर्तन का समापन गुरुद्वारा में ही होता है। शबद कीर्तन, गुरुग्रंथ साहिब का पाठ के बाद लंगर ।
सिख धर्म की स्थापना हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए हुआ था हम सभी जानते हैं पर सबसे बड़ी खासियत इस पंथ की यही रहीं हैं कि यहां गुरुद्वारा में  आने वाले सब एक समान है । बड़ी बड़ी महंगी गाड़ियों से उतर कर लंगर में रोटी के लिए हाथ फैला देते हैं । जोड़ा घर यानी जुते चप्पल रखने की जगह पर सेवा देते हैं ।यह सब छोटे छोटे बच्चों को भी सिखाते हैं ।
कुरीतियों और  अहम से ऊपर उठना । कार्तिक मास में ही सिखों के गुरु का जन्म हुआ था । इसलिए यह मास खास है ।हर घर में देव दीपावली मनाई जाती है जिस तरह हम दीपावली पर घर में लाइटें लगातें है वो लोग एकादशी से पूर्णिमा तक लाइटें लगातें है , दीये जलाते हैं । सुखमनी पाठ ,सबद करते हैं । इन कुछ सालों में हमने भी सीख लिया है सिखों के गुरु पर्व को हम कैसे मनाते है।   

रंजना, नई दिल्ली . 

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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / २   
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 हिंदी अनुभाग .पृष्ठ .१ / २ . देव दीपावली काशी के घाटों पर.मेरी यादें   
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नीलम पांडेय / वाराणसी.

काशीवासियों का देव महोत्सव ' देव दीपावली '

नीलम पांडेय
हर-हर गंगे.. हर-हर महादेव..काशी विश्वनाथ गंगे, माता पार्वती संगे .. के जयघोष  के बीच आस्था, भक्ति और विश्वास की अद्भुत त्रिवेणी में डूबकी मारती काशी ! इस अभूतपूर्व दृश्य को कैमरे में संजोते सैलानी.. सब कुछ शब्दों में समेट पाना निःसंदेह असंभव-सा जान पड़ता है आज। 
धार्मिक और सांस्कृतिक  काशी विश्वनाथ और उत्तरवाहिनी गंगा की नगरी काशी का विश्वप्रसिद्ध ऐतिहासिक महोत्सव -'' देव दीपावली " कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि त्रिपुरासुर के आतंक  से त्रस्त देवताओं की विनती पर इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया और देवताओं को मुक्ति प्रदान कर त्रिपुरारी  कहलाए। प्रसन्न देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर अपनी खुशी प्रकट  की। दीपोत्सव के इस पावन त्योहार को तब से मनाए जाने की परंपरा है। काशी में दीपोत्सव मनाए जाने के पीछे ऐसी मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश पर रोक लगा रखी थी । कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिव वेश बदल कर गंगा नदी में स्नान करने पहुंच गए जिसकी सूचना राजा को मिल गई और तब उसने प्रतिबंध हटा लिया था । 

गंगा आरती की  दिव्य मनमोहक झांकी अविस्मरणीय अनुभव : फोटो रश्मि वाराणसी 

लाखों की संख्या में जग - मग करते मिट्टी के दीयों से सजे काशी के घाटों की छटा देखने वालो की संख्या लाखों में होती है। आज काशी में मौजूद होना मेरे लिए अद्भुत अनुभव है। फोटोज़ में कुछ लम्हों को समेटने की कोशिश कर रहे हैं। सच में देवताओं को काशी की धरती पर उतरते देखने जैसा अनुभव है ये।भोर में आस्था की पतित पावनी गंगा  के जल में डुबकी लगता जन सैलाब, काशी की गलियों - सड़कों पर दौड़ता लोगों का कारवां दिन-भर थमने को तैयार नहीं था कि तब तक अस्ताचलगामी सूर्य ने दीपदान करने की कामना को पर लगा दिया। दीपों की ना टूटनेवाली कतार संत रविदास घाट से लेकर राजघाट और वरुणा तक पहुंच चुकी थी। गंगा आरती की  दिव्य मनमोहक झांकी अविस्मरणीय अनुभव है। इस अवसर पर शास्त्रीय गायन की  संस्कृतिक परंपरा  काशी को अलग पहचान दिलाती है।
काशी विश्वनाथ मंदिरकाशी हिंदू विश्वविद्यालयमानस मंदिरसंकट मोचन मंदिरउत्तरवाहिनी गंगा, अनवरत जल रही मणिकर्णिका की चिताग्निदशाश्वमेध समेत  अस्सी घाटों वाली काशी को भूलना असंभव है। 
जग - मग करते मिट्टी के दीयों से सजे काशी के घाटों की छटा : फोटो रश्मि वाराणसी 

.
गतांक से आगे १ पढ़े.

केवल धार्मिक पहलू ही लोगों को  काशी खींच के लाती हो ऐसी बात नहीं स्वास्थ्य लाभ के लिए भी काशी के गंगा तट अपना विशेष महत्व रखते हैं। यह सत्यापित हो चुका है कि गंगा के जल से छन- छन के गंगा के घाटों पर आती सूर्य की किरणें कई असाध्य रोगियों को भला चंगा करने का सामर्थ्य रखती है। मुक्ति की चाह में काशी के मुक्ति धाम में जीवन के अंतिम दिनों को व्यतीत करते लोगों की आस्था और विश्वास देख आंखें भर आती हैं तो वहीं मनिकर्णिका की अखंड ज्योति में पंचतत्व में समाती ये नश्वर जीवन लीला अंतर्ज्ञान की आंखें खोल देती हैं। निःसंदेह काशी एक तरफ जीवंत करती है तो दूसरी तरफ आपको आध्यात्म के उस धरातल पर भी ले आती है जहां पर पहुंच के चिंतन और मनन की ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने का अवसर भी है। 
कोई  कभी भूखा नहीं सोता  : जीवन की दौड़ में शामिल लोगों का कारवां मुक्ति की ओर अग्रसर है। काशी कभी नहीं थकती ना थकाती है। यहां आकर आपको यह पता चलता है कि यहां से आप गंगा का जल अन्यत्र नहीं ले जा सकते क्योंकि काशी शिव की नगरी है। शिव ने अपने त्रिशूल पर काशी को उठा रखा है, आप धरती के किसी अन्य भाग में यहां की मिट्टी से बने पात्र और गंगा का जल नहीं ले जा सकते। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि काशी क्षेत्र में रहने वाला कोई जीव कभी भूखा नहीं सोता। यहां की कचौड़ी गली की खुशबू, पहलवान की लस्सी, मिठाईयां, चाट भंडार, घाटों की मसाला चाय - लिस्ट काफी लंबी है आप काशी आए बिना काशी की पढ़ जान तो सकते हैं पर महसूस नहीं कर सकते।

देव दीपावली के दिन की गंगा आरती : बनारस 

गतांक से आगे २  पढ़े

काशी के घाटों की गंगा आरती की परम्परा प्रकृति से जोड़ती है,नदी का जीवनदायिनी जल भी मां की तरह ही हमारे अस्तित्व के लिए  है ।मां जन्मदात्री है तो गंगा जीवनदात्री। गंगा को मां का स्थान देना हमारी कृतज्ञता है प्रकृति के लिए और यहीं से हमारी धार्मिक संस्कृति अलग पहचान रखती है और दुनियाभर के लोगों को अपनी ओर खींचती है।बस थोड़ी कमी है जो चिंता का विषय भी है गंगा तथा हर जीवनदायिनी नदियों की शुचिताऔर स्वच्छता को बनाए रखना हमने अब तक नहीं सीखा। जीवन के अंतिम दिनों को विश्राम देने वाली काशी जन्म - मरण के बंधन से मुक्त करने वाली मोक्षदायिनी है।

देव दीपावली के दिन काशी में आतिशबाजी का नजारा : फोटो नीलम पांडेय 

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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / १  
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कार्तिक पूर्णिमा स्नान पर्व आस्था का जन सैलाब.
आलेख : राजेश रंजन वर्मा.
 
महावत का हाथी स्नान सोनपुर मेले में : फोटो अशोक कर्ण 

कार्तिक पूर्णिमा स्नान पर्व : प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा स्नान पर्व आस्था का जन सैलाब लेकर आता है  इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु स्नानार्थियों की भीड़ अपनी चरमसीमा पर होती है। पावन नदियों में स्नान एवं पूजा - पाठ का नजा़रा अवलोकनीय होता है। श्रद्धालुगण आस्था की सारी सीमाएँ लांघकर सावन के मेघ की तरह लाखों की संख्या में उमड़ पड़ते हैं।  पावन नदी घाटों पर तिल रखने की भी जगह नहीं होती। भजन- कीर्तन एवं भक्ति गीतों से सारा वातावरण गुंजायमान रहता है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित सोनपुर ( बिहार ) का हरिहर क्षेत्र मेला ऐसा ही अहसास कराता है। इस अवसर पर भृगु क्षेत्र 
बलिया ), वराह क्षेत्र ( नेपाल ) पुष्कर क्षेत्र ( अजमेर, राजस्थान ) एवं हरिहर क्षेत्र ( सोनपुर एवं हाजीपुर ) में लगने वाले मेले की पहचान सिर्फ धार्मिक मेले के रूप में ही नहीं होती बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी है।  ये मेले वस्तुत: धार्मिक मेले के साथ - साथ लोक सांस्कृतिक पहचान भी स्थापित करती है | यहाँ लोक सांस्कृतिक विरासत की झलक पाने के लिए न सिर्फ आसपास के इलाकों से बल्कि देश - विदेश से भी पर्यटक आते हैं। 
बचपन की यादें  : मुझे याद है बचपन के उन दिनों की जब हम वैशाली जिले के बिदुपुर गाँव से शहर हाजीपुर में गंगा - गंडक के पावन संगम तट ' कौनहारा घाट ' पर पावन स्नान एवं हरिहर क्षेत्र में पूजा - पाठ के लिए विशेष रूप से आते थे। भीड़ में धक्का खाकर चलने का आनंद ही कुछ और था।  संगम तट पहुँचकर सारी थकान मानो मिट - सी जाती थी।  असीम कोलाहल के साथ - साथ अपूर्व शुकुन का भी अनुभव होता था। यह मेरा गृह - क्षेत्र है फिर भी यह मेला प्रतिवर्ष कुछ न  कुछ नया अहसास अवश्य कराता था। 
कौनहारा घाट  :  पौराणिक कथाओं के अनुसार यह स्थल गज ( हाथी ) एवं ग्राह ( मगरमच्छ ) की लड़ाई के लिए लोक प्रसिद्ध है।  लोक प्रचलित कथा के अनुसार एक बार गज इस घाट पर स्नान कर रहा था. तभी ग्राह ने आकर उसका पैर पकड़ लिया। गज और ग्राह के बीच संघर्ष कई दिनों तक चलता रहा।  स्थानीय लोग पूछते रहे कि कौन हारा।  गज हारा या ग्राह। अंत में गज ने आर्तनाद करते हुए भगवान विष्णु का स्मरण किया। आर्तनाद सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और सुदर्शन चक्र चलाकर ग्राह से गज का उद्धार किया। यह तट 'कौनहारा' और यह स्थल ' गजेंद्र मोक्ष ' स्थल के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु पावन स्नान के पश्चात गजेंद्र मोक्ष मंदिर में जल अर्पित करते हैं। इसी प्रकार कौनहारा घाट के ठीक उस पार अर्थात सोनपुर ( सारण ) में हरिहर क्षेत्र का सुप्रसिद्ध प्राचीन हरिहर क्षेत्र मंदिर है इस अवसर पर यह मंदिर श्रद्धालुओं की भक्ति से गुलज़ार रहता है।  इस मंदिर में हरि 
( विष्णु ) एवं हर ( शिव ) की समान प्राण - प्रतिष्ठा स्थापित है। ऐसा माना जाता है कि हरिहर क्षेत्र के इस स्थल पर वैष्णव एवं शैव सम्प्रदाय के मध्य कई वर्षों तक निरंतर संघर्ष होता रहा।  अंततः दोनों सम्प्रदायों के मध्य समझौता हुआ।  तब हरिहर क्षेत्र मंदिर की स्थापना हुई। कालांतर में टिकारी महाराज ने इस क्षेत्र एवं मंदिर के महत्त्व को समझते हुए इसका विकास किया एवं श्रद्धालुओं को ठहरने के लिए धर्मशाला आदि भी बनवाया।  यह मंदिर सालों भर श्रद्धालुओं से गुलज़ार रहता है। कार्तिक पूर्णिमा मेले के अवसर पर तो यहाँ तिल रखने की भी जगह नहीं होती।  

गतांक से आगे १ पढ़े.

सोनपुर मेले में अनेक प्रकार के पशु - पक्षियों की खरीद दारी : फोटो अशोक कर्ण. 

एशिया का  सबसे बड़े पशु मेला :  हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले को छत्तर मेले के नाम से भी जाना जाता है। यह लोक प्रचलित नाम है।  क्षेत्र या क्षेत्रीय मेला होने के कारण ही यह आम बोलचाल की भाषा में यह ' छत्तर मेलाकहलाया। स्थानीय ग्रामीणों में आज भी यह छत्तर मेला के नाम से ही प्रचलित है।  यह एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में  पहचाना  जाता है। 
इस मेले का विस्तार तब मुख्य रूप से हाजीपुर के इलाके में ही हुआ करता था।  आज भी  हाजीपुर के कई मुहल्ले का नामकरण मेले की पृष्ठभूमि पर आधारित है। जैसे मीनापुर में मीना बाजार ,जौहरी बाज़ार में जौहरियों का मेला, हथसारगंज में हाथियों का, घोरसार  में ज़ंगी घोड़ों का मेला , बागमल्ली में बाग - बगीचों का।  अब यह मेला सिमटकर सोनपुर ( सारण ) के निर्धारित मेला क्षेत्र तक रह गया है। 
सोनपुर मेला क्षेत्र के अन्तर्गत ही अनेक प्रकार के पशु -पक्षियों ,थियेटर, मीना बाजार, इत्यादि के लिए अलग -अलग स्थान निर्धारित किये गये है।  
बीच की दूरी : हाजीपुर और सोनपुर के बीच की दूरी महज़ एक किलोमीटर है। अंग्रेजी शासनकाल में सर रीवर्स टामसन ने सन १८८५ ई. में गंडक ( नारायणी ) नदी के ऊपर एक पुल बनवाया था जिसके द्वारा हाजीपुर एवं सोनपुर को एक दूसरे से जोड़ कर आवागमन को सुगम किया गया। अब तो इस नदी के ऊपर नये पुल भी बन गए हैं।  पूर्व - मध्य रेलवे द्वारा यह मेला क्षेत्र सीधा जुड़ा हुआ है। 
मेले का इतिहास : इस मेले का इतिहास बड़ा ही पुराना है।  मुजफ्फरपुर गज़ेटियर एवं अन्य संदर्भ ग्रंथों से ऐसी जानकारी मिलती है कि चन्द्रगुप्त मौर्य (३४० ई. पूर्व) के समय से ही यह मेला लगता चला आ रहा है।  कुछ शोधकर्ताओं ने तो इस मेले का आरंभ उत्तर वैदिक काल से माना है। 
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला यह मेला उस समय भी धार्मिक आस्था के साथ - साथ एक वृहत् पशु मेले के रूप में ख्यात था। मौर्य शासक यहाँ से ज़ंगी  हाथी और घोड़े खरीदने आते थे।  
मुगल शासन काल में अकबर के सेनापति मान सिंह भी यहाँ कई दिनों तक ठहरकर ज़ंगी हाथी और घोड़ों की खरीददारी की थी। गंडक नदी के तट पर सेनापति मान सिंह का बनवाया बाग एवं दक्षिणमुखी शिव - पार्वती जी का मंदिर आज भी देखा जा सकता है। 
वीर कुंवर सिंह ने भी इस मेले से ज़ंगी घोड़े की खरीद कर इसका मान बढ़ाया था। अंग्रेज यात्री मार्क सैंड ने तो अपनी यात्रा -वृतांत  में कोणार्क ( उड़ीसा ) से सोनपुर ( सारण ) तक की अपनी यात्रा का वर्णन किया है | उसने कोणार्क से सोनपुर तक की यात्रा हाथी पर सवार होकर की थी ,ऐसा उल्लेख मिलता है।

गतांक से आगे २ पढ़े.

पशुओं का बाज़ार : के लिए प्रसिद्ध यह मेला : फोटो अशोक कर्ण.
 
विविधता अपने नये आयाम : विगत दो वर्षो के अंतराल पर आयोजित हो रहे हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में विविधता अपने नये आयाम के साथ एक बार फिर से पूरे जोश और उत्साह के साथ दिखाई दे रहा है।  यों तो इस मेले में परम्परागत मेले से अलग दिखने की सुगबुगाहट कुछ वर्ष पहले ही आरंभ हो चुकी थी।  अब मेला आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप के साथ - साथ व्यापारिक रूप भी लेने लगा है।  अब मेले में सुनाई देने लगा है बाज़ारवाद का शोर और दिखाई देने लगी है उपभोक्तावादी संस्कृति की झलक | इस मेले में सुई से लेकर तलवार तक चूहा से लेकर ऊॅंट तक देखने को मिलता है। पशु- पक्षियों की खरीद- बिक्री पर प्रतिबंध के पश्चात् मेले में उपभोक्तावादी वस्तुओं, सुख- सुविधाओं के सामान,नये-नये परिधान, अत्याधुनिक संयंत्र ,नये माॅडल की गाड़ियों के एक्सपो आदि का बाज़ार गर्म है।  यहाँ कश्मीर  ,पंजाब ,हरियाणा से लाये गये  वस्त्र,विशेष रूप से ऊनी वस्त्रों की बिक्री सर्वाधिक होती है।  विशुद्ध पश्मीना कश्मीरी शाॅल की माॅंग सर्वाधिक रहती है।  
प्रदर्शनियों के लिए प्रसिद्ध : इस मेले में गंडक परियोजना,गंगा परियोजना, मतस्य परियोजना , हस्त शिल्प,कृषि विभाग, पुलिस अनुसंधान, रेलवे,एवं कई अन्य एवं नये - नये विभागों की प्रदर्शनियों के साथ - साथ कम्प्यूटर,रोबोट, सुरक्षा के अत्याधुनिक उपकरण से संबंधित प्रदर्शनी  लोगों को विशेष आकर्षित कर रही है।  परम्परागत खेलों में नौकायन, राष्ट्रीय दंगल प्रतियोगिता, पशु दौड़ प्रतियोगिता, बाइक राइडिंग  झूले,तरह-तरह के जादू के खेलों की जगह वाटर स्कीइंग, वाटर सर्फिंग,एयर बैलूनिंग एवं अनेक प्रकार के जोखिम भरे नये खेलों का इस बार समावेश हो गया है।  मेले में मनोरंजन के नये-नये खेलों का महत्व बढता ही जा रहा है। 
बिहार सरकार कला एवं संस्कृति विभाग की पहल : बिहार सरकार कला एवं संस्कृति विभाग की ओर से बनाया गया सांस्कृतिक मंच मुखिया जी का चौपाल, कठपुतली नृत्य राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लोक कलाकारों द्वारा गायन-वादन, शास्त्रीय संगीतज्ञों द्वारा गायन-वादन, कथा वाचकों, भजन- कीर्तन मंडली, साहित्यकारों से सरकारी मेले के आयोजन ( इक्कीस दिनों ) तक सजा रहता है। इस बार भजन गायक चंदन दास की गायिकी ने सबका मन मोह लिया।  वही दूसरी ओर  कानपुर, लखनऊ, आगरा, कोलकाता से आए हुए थिएटर आमलोगों के मनोरंजन का केंद्र बनता है | कभी यहाँ के थियेटर्स में गुलाब बाई, जयश्रीटी- मीनाश्रीटी जैसी फिल्म नृत्यांगना अपनी कला का प्रदर्शन करने आती थी।  अब यह सस्ते कलाकारों द्वारा अश्लील प्रदर्शन का केंद्र बनकर रह गया है। 
पशुओं का बाज़ार : पशुओं में हाथी बाज़ार, घोड़ा बाज़ार, ऊँट बाज़ार, बकरी बाज़ार, कुत्ता बाज़ार, बैल बाज़ार, गाय बाज़ार आकर्षण के केन्द्र बनते हैं।   ये हरियाणा, पंजाब उत्तर प्रदेश एवं अन्य राज्यों से भी लाये जाते हैं।  चिड़ियाघर  मेले के आकर्षण का एक खास केन्द्र है जो बच्चों के साथ -साथ बड़ों को भी स्वभाविक रूप से आकर्षित करता है।  इस चिड़िया घर में लविंग बर्ड, लाल मोहन तोता,हीरामन तोता, हुम्मन एवं लक्की कबूतर विलैती चूहा, शुतुरमुर्ग,विशेष आकर्षण के  केन्द्र बनते हैं। 
पिछले कई वर्षों से विदेशी सैलानियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।  उनके लिए नदी के तट पर एवं नदी के मध्य सूखे भू-भाग पर पर्यटक- ग्राम बनाये जाते रहे हैं।  विदेशी पर्यटक यहाँ की संस्कृति को करीब से जानने के लिए कई दिनों तक यहाँ ठहरते और परम्परागत खेलों का भरपुर आनंद लेते देखे जाते हैं |
वस्तुत: करोड़ों रुपये का व्यवसाय करने वाला यह मेला अपनी ग्रामीण वैविध्यता के साथ- साथ समय के अनुसार बदलता जा रहा है।  आवश्यकता है इसे भारतीय मेला विकास प्राधिकरण से जोड़कर कायाकल्प करने की। 

 

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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ० 
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 ख़ुशी.
जोशी मठ / चमोली. 

देव भूमि हरिद्वार में कार्तिक पूर्णिमा के दिन माँ हर हर गंगे में देव स्नान.

ऋषिकेश से गुजरती हुई गंगा की अनुपम छटा. कोलाज विदिशा. 

जोशी मठ / ख़ुशी।  मैं उन दिनों जोशी मठ में थी। केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई कर रही थी। बाबूजी डिफेन्स में थे। उनकी पोस्टिंग उन दिनों जोशी मठ में ही थी। मैं अपने बचपन की यादों को अभी तक़ संजोए रखना चाहती हूँ मेरा मन बार बार जोशी मठ ,आदि गुरु शंकराचार्य के निवास जोशी मठ की तरफ़ ही चल जाता है । शायद ही मैं कभी भूला पाऊं ?
उन दिनों कार्तिक पूर्णिमा के दिन जोशी मठ के पास ही बहती पवित्र अलक नंदा और उसकी सहायक नदियों डूबकी लगाने के लिए बहुत भीड़ होती थी। चाहे उत्तर हो या दक्षिण सभी जग़ह हिन्दू धर्म की आस्थाएं वैसे ही अक्षुण्ण रहती हैं। 
२०२० का  साल, अम्मा बाबूजी ने सुनिश्चित किया कि इस बार इसबार कार्तिक पूर्णिमा देवभूमि  हरिद्वार में गंगा स्न्नान करेंगे। 
जोशी मठ से निकलते हुए अलकनन्दा : आपको बता दे जोशी मठ से निकलते हुए अलकनन्दा देव प्रयाग में भगीरथी के साथ मिलती है तब से देवसरिता  कहलाती है और गंगा के नाम से भी जाना जाती है। मेरे पास ही चारों पवित्र धामों में से एक  धाम बद्रीनाथ अवस्थित है । 
कार्तिक पूर्णिमा और हरिद्वार : कार्तिक पूर्णिमा के दिन हरिद्वार में लाखों श्रद्धालु गंगा की पूजा अर्चना एवं गंगा स्नान के लिए नित्त वर्ष आते हैं। श्रद्धालु स्नान के बाद दीपदान एवं दान कर कर पुण्य कमाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह सब दानकुनी करने से मन को शांति और ईश्वर की प्राप्ति होती है। श्रद्धालुओं का स्थान पर आकर से लेकर दोपहर तक चलता रहता है और संध्या गंगा आरती के वक्त यह भीड़ लाखों में उभर कर आती है। जहां एक तरफ लाखों की भीड़ गंगा के दर्शन मात्र को व्याकुल होते हैं वहीं दूसरी ओर पुलिस वालों का जिम्मा और भी बढ़ जाता है। उभरती भीड़ को संभालना पुलिसकर्मियों के लिए असंभव सा प्रतीक होता है। श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से शुरू होती है शाम तक चलती ही रहती है।कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के दौरान मेला क्षेत्र में चप्पे-चप्पे पर पुलिस के जवान तैनात रहते हैं। प्रमुख चौराहों और गंगा घाटों पर पुलिस तैनात रहती है।  गंगा के घाटों पर भक्ति श्रद्धा एवं आस्था का अनुभव संगम होता दिखाई पड़ता है। 
गतांक से आगे १ पढ़े.

इंटरनेट से साभार लिए फोटो से बने जोशीमठ श्रीनगर का दृश्य : कोलाज विदिशा. 

कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान हेतु हरिद्वार और घर की वापसी हेतु जोशीमठ से हमारी यात्रा प्रारंभ हुई। पहले हमें हरिद्वार तक जाना था इसके बाद की यात्रा घर लौटने की थी । जोशीमठ से हरिद्वार तक का रास्ता पूरे दिन भर का होता है जहां सुबह यदि ४ बजे घर बस पकड़ी जाए तो शाम के ७ - ८  बज ही जाते हैं। हम लोगों ने भी अपनी यूनिट की बस पकड़ी और निकल पड़े हरिद्वार के लिए। 
हरिद्वार के किसी मुख्य होटल में हम लोगों ने अपनी रात विदाई। और अगले दिन हरिद्वार एवं ऋषिकेश भ्रमण करने का निश्चय किया। थकान के कारण रात्रि में तो हम जरा भी भ्रमण कर नहीं पाए, या कहें  ठीक से घूम नहीं पाए। 
कार्तिक पूर्णिमा का दिन : अगली सुबह कार्तिक पूर्णिमा का दिन था। जैसा कि हर कोई जानता है पूर्णिमा के दिन हरिद्वार में आस पास के शहरों से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ हर की पौड़ी के सामने इकठ्ठी हो जाती हैं । तो वहीं दूसरी ओर बाजारों  में अलग ही धूम मची होती है। सच कहें तो मेला जैसा ही दृश्य दिखता है। हरिद्वार के रंग बिरंगे मेले में  तरह - तरह के सामान, मिठाइयां, पकवान, कपड़े ,खिलौने आदि सब कुछ मिल रहे होते हैं।हम लोगों ने तय किया कि हरिद्वार आ ही गए हैं तो क्यों ना कार्तिक पूर्णिमा स्नान का आनंद ले ले इसलिए हम लोगों ने माता गंगा में स्नान का निर्णय किया और फिर तय किया कि उसके बाद कहीं और घूमा जाएगा । 

हर की पौड़ी ,हरिद्वार , संध्या आरती के समय श्रद्धालुओं की भीड़ :  छायाचित्र डॉ सुनीता.
 
पूर्णिमा का स्नान :  स्नान का निर्णय तो हमें आसानी से कर लिया परंतु लाखों की भीड़ में स्नान कर लेना और करवाना  बिल्कुल भी आसान नहीं था। हर कोई व्याकुल था गंगा स्नान के लिए, और हर किसी को डूबकी लगाने की जल्दी थी। जिस प्रकार की भीड़ वहां जमा हो गयी थी उसे अगर कोई पर्वत की ऊंचाई से देखता तो उसे ऐसा लगेगा कि  लाखों-करोड़ों चिड़ियाँ आपस में जमीन पर दानें के लिए लड़ रही हो । 
हरिद्वार में गंगा नदी बहुत ज़्यादा तो गहरी नहीं है मगर पानी का वेग अत्यधिक होता है। 
एक तो लाखों की भीड़, ऊपर धक्का मुक्की से नदी घाटों में खो जाने का डर था।  गंगा नदी में स्नान कर पाना हमारे लिए असंभव सा ही प्रतीत होने लगा था, क्योंकि हमारे परिवार में ३ बच्चें भी थे और हम उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे । 
ऐसी नाजुक स्थिति को देखकर पापा ने कहा, ' ...छोड़ो हम किसी और दिन मां गंगा का आशीर्वाद ले लेंगे।' 
परंतु मेरी मां बहुत ही धैर्य और हिम्मत वाली है, उन्होंने कहा, ' ...नहीं आज हम आए हैं तो आज आशीर्वाद लेकर ही जाएंगे। आज हम गंगा स्नान करके ही जाएंगे ....।' 
उनकी दृढ़ता के आगे आखिर पापा झुक ही गए। जैसे तैसे हम सभी घाट के नजदीक पहुंच गए।  और हम पांचों ने घाट की सीढ़ियों पर थोड़ा नीचे उतर कर स्नान किया और हर हर गंगे कर डुबकी लगाई। माता गंगे का मन से आशीर्वाद लिया। सचमुच सुनने में जितना आसान लगता है ,निभाने , करने में उतना ही कठिन प्रतीत हो रहा था। क्योंकि पानी अत्यंत ठंढा था हम ज्यादा देर तक स्नान नहीं कर सकते थे । 

मानो तो मैं गंगा माँ हूँ ना मानो तो बहता पानी : फोटो डॉ.सुनीता.  

ऋषिकेश भ्रमण : उसी दिन की रात को हमारी  वापसी की ट्रेन थी। तब तक के लिए यह निश्चय किया गया कि क्यों ना दिन भर हरिद्वार भ्रमण किया जाए। चूँकि हरिद्वार और ऋषिकेश में ज्यादा दूरी नहीं है मात्र घंटे का फासला है हम लोगों ने निश्चय किया कि हरिद्वार घूमने के बाद ऋषिकेश का मुख्य बाजार घुमा जाए। तो शीघ्र ही  हरिद्वार की यात्रा के बाद हम लोग ऋषिकेश के लिए निकल पड़े।  और वहां पहुंच कर हमने लक्ष्मण झूला, राम झूला ,लोकल बाजार इत्यादि जगहों का भ्रमण का आनंद लिया। 
वापसी : हमारी ट्रेन का समय रात १० बजे के आस पास था। बाद तो हम लोग वापस हरिद्वार आए अपने होटल में गए और वहां से चेक आउट करके हरिद्वार स्टेशन के लिए निकल पड़े। यहां पर जोशीमठ से हरिद्वार की यात्रा तो हमारी खत्म हो गई थी। परंतु हरिद्वार से अपने घर वापसी की यात्रा शुरू हो गई। हरिद्वार और ऋषिकेश दोनों ही बहुत ही मनभावन जगह है यहां घूमने हेतु अत्यंत सारी जगहें हैं जैसे , नीलकंठ पर्वत , गीता आश्रम , मुनि की रेती , हर की पौड़ी, वहां शाम की गंगा आरती , माता मनसा देवी का मंदिर, चंडी देवी मंदिर, कनखल ,नील धारा ,शांति कुंज ,राजाजी राष्ट्रीय पार्क, इत्यादि। 
इसीलिए सच कहा गया है- ' हरि का द्वार हो या हरिद्वार हो दोनों जगह सिर्फ भाग्यशाली व्यक्ति ही पहुंच पाते हैं। '
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पुनः संपादन /. लेखन. विदिशा 
©️®️ M.S.Media.
 

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पृष्ठ ३ .फोटो दीर्घा. आज कल. 
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संपादन.


तनुश्री सान्याल / नैनीताल . 

Shabd kirtan, Gurugranth Sahib, Langar : photo Ranjana.

Shishganj Durudwara Delhi  at Guru Nanak Jayanti : photo Ranjana
a child performing non stopping dance at Devdeepawli Biharsharif : photo Dr. Madhup.
Blog co - ordinator Nilam Pandey celebrating Dev Deepawali : photo Nivedita. Varanasi

different angles of Ganga Aarti : photo : Dr. Madhup. 

A decorative Rangoli in Devdeepavali over Varanasi Ghat : Photo : Dr. Rajesh Pathak.
a baby, a singer performing in Devdeepawali : photo : Vidisha.

Devdeepawali celebration at Biharshairf, Nalanda. photo Vidisha.
burning of diyes at Varanasi Ramnagar : courtesy Photo.
Varanasi Devdeepwali View from Ramnagar : collage : Rashmi.
Varanasi Devdeepwali arial View from Ramnagar : courtesy Photo
Dev Deepawali at Dassahmegh Ghat : Courtesy Photo.

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पृष्ठ ४. फोटो दीर्घा. देव दीपावली. बीते दिनों की. 
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संपादन.


रंजीता. बीरगंजनेपाल. 

Dev Deepawali began at Biharsharif  in 2014. collage Vidisha

S.P, Nalanda,Mayor witnessing the event Devdeepawali 2016. collage : Vidisha

a holy bathe at Ganga Ghat Varanasi on Dev Deepawali. photo Neelam Pandey.
Dev Deepawali  celebration at Biharsharif Dhaneshwar Ghat : photo Dr. Madhup

Dhaneshwar Ghat Talab : burning diyas at Dev Deepawali 2021. Photo Dr. Madhup
Dashshamegh Ghat Kashi witnessing Dev Deepawali Ganga Aarati on Kartik Purnima. Photo Dr. Madhup
On Kartik Purnima Dev Deepawali Ganga Aaarti at Banaras. Photo Dr. Madhup
decorative burning diyas on the occasion of Dev deepawali Varanasi  : photo Dr. Rajesh.
snow clad mountain view from Auli : photo : Arushi.
present snowfall at Mana Gao, Badrinath : photo Arushi Auli
Melody Queen Shreya Ghoshal performing in USA : photo Meera Roychowhury
lady lighting the diyas on the occasion of  Dev Deepawali at Banaras  : Photo Vidisha.

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पृष्ठ ५.
कला दीर्घा 
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संपादन.
अनुभूति सिन्हा.शिमला.

samyak marg ki talash.: art : Praveen Saini. Muzaffarnagar.
Man Kyu Bhatka Re : Art : Praveen Saini : Muzzafarnagar.
Sapne Apne Man Ke : Art : Praveen Saini : Muzaffarnagar

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पृष्ठ ६.सीपियाँ.   
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संपादन.
   डॉ.
भावना. 
 

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श्रम सुन्दरियां.

 फोटो : साभार 

देखा है,
श्रम सुन्दरियों को...
सिर पर गेरुआ ईंट रखे
बलखाती कमर से
सीढ़ियों पर चढ़ते हुए,
बनती इमारतों के.
रंग काला पर, 
अप्रतिम सौंदर्य की छटा,
उनके सपाट मुखड़े को,
अद्भुत आभा से सजाती.
सीमेंट और ईंट की धूल
से सज्जित चेहरा,
किसी भी आभिजात्य

फोटो : साभार 

स्त्री के सौंदर्य को मात देती.
बिना किसी मिलावट के, 
चेहरे की पवित्रता,
एक- एक लकीरों से स्पष्ट होती.
कहीं कोई छलावा नहीं,
ना किसी से प्रतिस्पर्धा...
वो तो बस अपनों को सँवारने
की लगन में लगीं ....
ईंट ढोती ....
श्रम सुंदरियाँ.
कितना सुकून है उनके चेहरे पर
जीवन से भरपूर.. 
कैसे रह लेती हैं वो...
बिना किसी से ईर्ष्या किये,
दोपहर भोजन के समय, 
खिलखलाती धूप सी उनकी हँसी
खिल उठती है ...
उन्हीं अधबनी इमारतों में
और खिलखिला उठता है 
पूरा वातावरण.
कितनी सन्तुष्टि से खाती हैं ,
दाल - भात और एक टुकड़ा प्याज़...
फाइव स्टार के व्यंजन को 
चुनौती देता...
मन लालायित हो जाता है,
उस स्वाद को पाने को...
कभी -कभी तो दूध पिलाती बच्चे को लिए

फोटो : साभार 

श्रम करती ये मज़दूरिने
अचंभित कर जाती हैं,
इतनी इच्छा-शक्ति ,
इतना दृढ़-संकल्प ,
ऐसी अद्भुत क्षमता,
ईश्वर ने ये कैसी रचना की है ?
अद्भुत,
अकल्पनीय,
अविश्वसनीय,
ईंट ढोती ये श्रम -सुंदरियाँ.



पूनम सिन्हा 
कार्यकारी  संपादक.
वाराणसी. 

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पृष्ठ ७  . समाचार अनुभाग : 
न्यूज़ रिपोर्टिंग 
कल आज और कल.
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संपादन. 
स्मिता.
न्यूज़ एंकर.
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देव दीपावली : बिहार शरीफ़ न्यूज़ रिपोर्टिंग  

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बिहार शरीफ़ स्थित धनेश्वर घाट तालाब  में 
गंगा आरती देव दीपावली ,मनाने की एक अभूतपूर्व परंपरा.

डॉ. मधुप रमण. 


बिहार शरीफ़ स्थित धनेश्वर घाट तालाव में गंगा आरती : देव दीपावली : फोटो : डॉ मधुप 

पूर्व का साल : याद आ गया पूर्व का साल। देव दीपावली  की शाम। एक साल में ही कोरोना की वजह से बहुत कुछ बदल चुका था। हालांकि इस साल  कोरोना की समाप्ति के बाद इस सांस्कृतिक परंपरा का बेहतर तरीक़े निर्वहन किया जाना था। बाद में भी सांस्कृतिक परम्पराएं अक्षुण्ण ही रहेंगी यह विश्वास है। 
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा स्नान पर्व आस्था का जन सैलाब लेकर आता है। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु स्नानार्थियों की भीड़ अपनी चरमसीमा पर होती है। पावन नदियों में स्नान एवं पूजा पाठ का नजा़रा अवलोकनीय होता है। श्रद्धालुगण आस्था की सारी सीमाएँ लांघकर सावन के मेघ की तरह लाखों की संख्या में उमड़ पड़ते हैं।  पावन नदी घाटों पर तिल रखने की भी जगह नहीं होती। भजन - कीर्तन एवं भक्ति गीतों से सारा वातावरण गुंजायमान रहता है।
दैविक रीत : देव दीपावली की दैविक रीत है, भगवान उस दिन काशी के अस्सी घाटों पर अवतरित होते हैं।  हम मानव कार्तिक अमावस की रात दीपोत्सव मनाते है ,तो देवों की दीपावली कार्तिक पूर्णिमा को होती हैं। इस विशेष दिन काशी के घाटों की अतुलनीय शोभा विश्व विख्यात है सर्वत्र चर्चित है। 
बिहार शरीफ देव दीपावली : कई सालों से बिहार शरीफ़, स्थित धनेश्वर घाट तालाब में भी काशी के तर्ज़ पर कार्तिक पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा  के पवित्र दिन को भी पर देव दीपावली मनाने की एक अभूतपूर्व परंपरा रही है। 
सुबह  और शाम : गुरु पूर्णिमा या कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन के एक दिन पहले यहां की सजावट भी देखते ही बनती है । क्योंकि ८ नवम्बर को ग्रहण लगना था। इसलिए पूर्णिमा के एक दिन पूर्व यह आयोजन होना था। सुबह कब की हो भी चुकी थी। तिमिर हट चुका था। बिहार शरीफ देव दीपावली के सदस्य गण जाग चुके थे । कहना मात्र यह है कि इस अवसर पर काशी की तर्ज़ पर ही इस छोटे से शहर बिहार शरीफ़ में भी सांस्कृतिक आयोजन के निमित भजन का भी गायन - वादन होना था जो याद करने योग्य होता है। 
शाम होने की कगार पर थी । मधुर - मधुर दीपक मेरे जल, जल - जल कर मेरे पथ आलोकित कर। उन दीयों के जलने की  तैयारी हो चुकी थी । शनैः - शनैः स्वेच्छा से कुछेक लोग तालाब परिसर में जुटने लगे थे ,दीप जलने मात्र से  बिहार शरीफ़ के धनेश्वर घाट स्थित तालाब के गलियारे को जो आलोकित होना था, माहौल भक्ति पूर्ण हो गया था। 

जलते दिए देव दीपावली के : फोटो अभिमन्यु 

बनारस की शोभा : विश्व ज्ञान की धरती नालंदा के जिला मुख्यालय बिहार शरीफ़ में भी कमोवेश यही दृश्य था जैसा बनारस में होता है । वैसी ही शोभा थी। तालाब की काया इस साल पलट चुकी थी। देखने से यह प्रतीत हो रहा था कि बिहार शरीफ़ स्मार्ट सिटी बनने की राह पर कदम बढ़ा चुका है। शाम होते ही भजन कीर्तन की आवाज़ें आने लगीं । आमंत्रित गायक अपने - अपने फ़न आज़माने लगे। गंगा तेरा पानी अमृत फ़िल्म  का  गाना गा कर स्थानीय गायक विनय कुमार ने सबका मन मोह लिया  तो अधिवक्ता सीमा कुमारी के भजन में लोक आकर्षण था। 
तब देर संध्या बनारस से आए पंडितों यथा आचार्य दीपक शास्त्री ,पंडित संतोष पांडे ,पंडित राकेश प्यासी ,पंडित प्रवेंद्र तिवारी ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ आयोजन समिति के सदस्यों अधिवक्ता रवि रमण, पूर्व बार्ड पार्षद परमेश्वर महतो, वर्तमान बार्ड पार्षद रीना महतो  तथा प्रोफेसर आशुतोष शरण के द्वारा जल श्रोतों की विधिवत पूजा आरम्भ करवाई। तत्पश्चात गंगा आरती संपन्न हुई । इस घटना के साक्षी रणजीत कुमार सिन्हा ,सीमा सिन्हा, संजय कुमार ,अभिमन्यु आदि अन्य उपस्थित श्रद्धालुगण  रहें । 
दीए जलते हैं : इसके बाद धनेश्वर घाट तालाब की सीढ़ियों पर रखे दीयों  को प्रकाशित करने का कार्य शुरू किया गया। वहां उपस्थित तमाम आए श्रद्धालुओं ने घाटों पर सजाए गए अपनी अपनी  आस्था के दीप जलाएं। सर्वत्र जोत से जोत जलाने की अद्भुत परम्परा में प्रेम की गंगा बहाते चलो का मनोभाव सबके भीतर जैसे उमड़ पड़ा था। भक्ति में पूजा के उपरांत आम लोगों के बीच प्रसाद का भी वितरण किया गया । 
८ नवम्बर का  ग्रहण : बताते चले इस धनेश्वर घाट तालाब परिसर में नवम्बर को ग्रहण लगने की वजह से कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पूर्व नवम्बर को ही गंगा आरती का आयोजन किया गया था। इस दिन हुए देव दीपावली के आयोजन के उपलक्ष्य पर देव दीपावली आयोजन समिति के सदस्य वरीय अधिवक्ता रवि रमण ,प्रोफ़ेसर आशुतोष शरण, पूर्व बार्ड कमिश्नर परमेश्वर महतो, गोल इंस्टिट्यूट के संचालक संजय कुमार तथा आर्य समाजी अभिमन्यु ने भक्तिभाव से अपने - अपने दीप जलाकर गंगा का  करते हुए गंगा की आरती की तथा  जल श्रोतों को अक्षुण्ण , साफ़ - सुथरा बनाये रखने का संकल्प भी लिया जो जल संरक्षण के निहित सन्देश को लेकर महत्वपूर्ण है । 
इस बार भी यह आयोजन भीड़भाड़ के साथ बिहार शरीफ़, स्थित धनेश्वर घाट देव दीपावली आयोजन समिति ने देवदीपोत्सव का कार्यक्रम सदस्यीय  स्तर पर ही सपन्न कराने का निर्णय लिया जो सफलतापूर्वक पूर्ण भी हुआ । 



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पुस्तक समीक्षा : 
तूणीर ,क़तरा क़तरा कहानियाँ. लेखक. चिरंजीव  नाथ सिन्हा ( ए. एस. पी. )
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डॉ. मधुप.  
 
पुस्तक समीक्षा : 
तूणीर, क़तरा क़तरा कहानियाँ  हमारे ब्लॉग मैगज़ीन के सरंक्षक चिरंजीव नाथ सिन्हा जो लखनऊ में बतौर ए.एस.पी. कार्यरत हैं के द्वारा लिखी गयी किताब है जिसमें उनके द्वारा लिखी कहानियां संकलित है । यह हमारे मीडिआ परिवार के लिए गर्व की बात हैं कि उनका सरंक्षण हमारी पत्रिका के लिए सतत मिलता रहा। हम सभी उनको उनकी नव प्रकाशित तूणीर ,क़तरा क़तरा कहानियाँ के संकलन क़िताब के लिए बधाई देते हैं और इस बात की सराहना करते है कि प्रशासनिक दायित्व निभाने के साथ साथ उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में भी अपनी लेखनी की आजमाइश की यह क़ाबिले तारीफ़ है। पढ़ने योग्य कहानियां लिखी यह ध्यान देने योग्य है। उनकी यह पुस्तक ऑन लाइन अमेजॉन पर भी उपलब्ध है। तो मेरी समझ में आस पास घटित कहानियों को अनुभूत करने के लिए यह पुस्तक पढ़ी जा सकती है। 
चिरंजीव नाथ सिन्हा इस ब्लॉग मैगज़ीन पेज के लिए यदा कदा भी लिखते रहें हैं। हमसे बात करते हुए वह कहते हैं,मुझसे भी रोजमर्रा की जिंदगी में कई कहानियां टकराती रहती है। कभी रास्ते में आते जाते तो, कभी बच्चों के स्कूल में ,तो कभी ऑफिस में तो कभी पार्क में। ध्यान से ढूंढिए तो हर आम जगह एक खास कहानी करवट ले रही होती है हमारे आस पास। "


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देव दीपावली : वाराणसी न्यूज़ रिपोर्टिंग  

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Dev Deepawali Kashi News Clipping. M.S.Media Presentation.


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पृष्ठ ८ . व्यंग्य चित्र  आज कल : मधुप
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©️®️ M.S.Media.
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पृष्ठ ९ . अनुभाग अंग्रेजी   
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Page 9 : English Section.

Editors' Group.


Dr. R. K. Dubey.
 Senior Editor.
Dr. Roop Kala Prasad. Patna
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Assistant Editors

Priya.
Darjling.
Dr. Amit Kumar Sinha.Patna.
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Executive Editors.
Seema Dhawan. West Bengal.
Maya Upadhaya. Ranchi.

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Page : 9 / 0  : Post of the Day.
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DEV DIPAWALI :
CONJUGATION  OF PHYSICALMETAPHYSICAL WORLD.
 Senior Editor 
Dr. R. K. Dubey.
victory of Lord Shiva over the demon Tripurasur. : courtesy photo net

It goes without saying that it is a risky undertaking to tackle such a great  theme of the discussion over celebration of Dev Dipawali within limited words & lines or pages as it evolves various questions such as - what is it, how is it different from Dipawali, why is it celebrated and on which day, what do we do on the day etc. However an endeavour has been made to provide a satisfactory explanation to the discussion over celebration of Dev Dipawali within limited space.
Dipawali is celebrated on Kartik Amawasya to mark the victory of Ram over Ravana and His return to Ayodhya from His Exile whereas Dev Dipawali is celebrated on kartik purnima to mark the victory of Lord Shiva over the demon Tripurasur. It is believed that on the day special worship is offered to Tulsi and lord Shaligraam, Lord Vishnu incarnated in the form of fish after getting up from His deep slumber. It isn't only related to the followers of Sanatan Dharma rather it is also related to Sikhism as it was the day which proved to be the gong which announced the birth of Guru Nanak Dev Ji.
It is believed that the demon Tripurasur was defeated and finished by Lord Shiva in Kashi (Varanasi)and thus the deities were set free from the tortures of Tripurasur.
So the deities celebrated Dipawali in Kashi to mark the occasion on the day of Kartik Purnima.

illumination of the Ghats of the Ganga by lighting diyas : photo Nivedita

The celebration of Dev Dipawali witnesses the illumination of the Ghats of the Ganga and the water surface of the pious river by lighting diyas (earthen lamps) and  candles lacs in number. It appears that the deities have descended from the paradise on the earth in Kashi. The lighting of diyas on the bankof river is considered to be of immense importance on the day of celebration of Dev Dipawali. This is why on the Day the river bank of Varanasi gets illuminated with dazzling and twinkling lights of diyas and candles like the stars in the sky. The population on Ghats reaches to millions. Ganga Arati is also performed at present.The panoramic view of the pious event is tried to be captured in the cameras of the spectators.
The discussion comes to conclusion that the celebration of Dipawali on Kartik Amawasya is related to human beings and Dev Dipawali on Kartik Purnima or Tripurari purnima is related to deities of paradise but celebrated on earth in Kashi (Varanasi) This suggests the conjugation of physical and metaphysical world in Dev Dipawali celebration. 

Dr. R. K. Dubey.
Senior Editor 

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Page : 9 /1 : Thought of the Day.
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Seema Dhawan.
West Bengal.

 
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" Before learning anything understand why you are learning it."
" The best way to gain self - confidence is to do what you are afraid to do "
' You cannot change your future,but you can change your habits will change your future.'
' Keep yourself busy learning good things
so that you must not get the time for wasting on useless things.'

'A little progress each day adds up to big results.
Think good so that you can do good even if you don't want.'

'Self - believe and hard work will always earn your success.
Let your faith be bigger than your fears.'
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Page : 9 /2 : Rhymes of the Day.
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Deepawali.
Binding with love and care.


photo : Dr. Madhup

The colours of light, 
filled with joy bright,
Is called Deepawali with delight,
To demolish the evil and be the power,
Of happiness and joy filled with cheer.

The superior festive of every year,
Is the Deepawali made to cheer,
Joining the bond of relations,
Making every one near and dear.

photo : Dr. Madhup

The flourishing of lights with colours, 
brings a smile to meet with flowers,
Decorating each house with rangoli,
Making the festive full of cheer.

A festive inviting the brotherhood,
Binding with love and care,
Is only the Deepawali that meets,
The power of one sister to another.

photo : Dr. Madhup

Lets unite together,
A new bond of relation, 
Join to cherish the moment,
With superiority of the lord,
Over the evil and the fear.

Best wishes forever to last,
This Deepawali bringing a blast,
Over all the happiness to the magizine readers,
Hopping to rejoice with every class.

photo : Dr. Madhup

Happy Deepawali.
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Page : 9 /2 : Editorial.
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Cultural Report of the bygone days. Patna.
Ashok Karan. Ex Staff Photographer Hindustan Times. Patna / Ranchi.


The Sonpur Mela in a HT photographer's eyes.

Patna / CR : Being a staff phtographer of Hindustan Times, Patna edition I used to go to Sonpur every year and shot the Sonpur in different  angles. So naturally
my eyes are of my camera and my descriptions are my clicked photos. 

sadhu displaying his skill a prospective buyer : photo Ashok Karan.

Sonpur is a small city and sub-division in the Indian state of Bihar, situated on the banks of sacred river Gandak (Narayani) and the Ganges River in Saran district. Once
 this city was famous for longest railway platform. Its fair which is very much popular, vibrant and colorful fair held on Kartik Poornima (full moon) day on the confluence river Ganga and Gandak about 20 kms across Ganga river North of Patna, the convergences of these sacred river regarded as holy site among the Hindus. Basically it is peasant fair and people from far off places even offshore countries come to see it. But now the distant shortened due to new rail and Road Bridge came up from Digha in Patna to Sonpur directly. It is also popularly known as Harihar Kshetra Mela. Its main attraction is the biggest cattle fair, which consists of elephants, cows, buffalos, birds and puppies of different species, horses and many more. This fair lasts fifteen days to a month in duration.
As per folklore Chandragupta Maurya (340-297 BCE) bought elephants and horses across the river Ganges  for trading and it attracted traders from far off places of Central Asia and it is still continuing. Previously this fair was celebrated in Hajipur across the river Gandak and 3Kms east of Sonpur and the puja was performed at the temple of Harihar Nath in Sonpur, but  it is Moughal Emperor Aurangzeb who shifted the fair from Hajipur to Sonpur. There is belief that the Harihar Nath temple was built by Lord Rama. So the sentiments of Hindus are with this fair. But the temple which stands today is built by Raja Ram Narain a very popular and influential person during Moughal period.
Folklore : There is very popular folklore about the fight of Gaj (elephant) and Grah (crocodile) which was ended by the help of Lord Vishnu after killing the Crocodile. This fair also attracts youngsters from villages and surrounding areas to see the performance of nautch girls in different theaters and for ladies buying different and colorful bangles, utilities etc.
As I lived in Patna so this fair always attracted me and I used to go there with my photographer friends by motorcycles very early in the morning to catch the early morning oblations of the devotees and the rising sun. Later for convenience I stayed in hotels in Hajipur and use to walk across the Gandak Bridge in the very early morning to catch the scene of rising sun which makes very attractive picture. Early morning picture always considered photographers delight. There is complete dearth of accommodations in Sonpur, so I use to stay at hotels in Hajipur during the periods. 
Bihar Government also provides beautiful accommodations in the midst of fair but I found those always full. Now the time is nearby for this colorful fair, I hope it will again attract many tourists but with a caution of pandemic this year.

Ashok Karan
Ex. Photo Editor 
The Publice Agenda. New Delhi

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Page : 9 / 3 : News of the Day.
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Kartik Purnima Celebrated with religious fervor and traditional enthusiasm.

Ranchi / CR. Kartik Purnima was celebrated across Jharkhand with a great deal of  dedication born of devotion .This is an auspicious day in accordance with Hindu mythology. 
It is celebrated on the fifteenth Lunar day in the month of Kartik.  A story is associated with this day. As per this ,there were three demons named Taraksha, Vidyunmali and Viryavanal. They were in war with God. They spread terror and anarchy all around. When Lord Shiva came to know about this ,he got enraged  and killed demons with one arrow. A state of peace and prosperity spread all around with the killing of demons. 
Lord Shiva was lauded amid chanting of religious mantras . On the whole ,this month heralds the beginning of festivals. All the districts of Jharkhand appeared to be filled with religious temper and festive warmth. Braving  cold wind , people took holy dips  in the Swarnrekha. Making a pray for health,peace and amity among loved ones,people took part in religious assembly organised on the pious occasion of Kartik Purnima. 
a holy dip : photo  Dr.Amit.
At state capital,ladies clad in colourful sarees carrying sweets,fruits and other carefully prepared materials were seen invoking God. The Crowd was not like those of previous 2 years due to Covid _19. Devotees followed social distancing. Police personal deputed at some ghats were seen managing their work very nicely.No laxity was noticed in observation of norms passed in 
view of pandemic. 
At Ramgarh ,devotees took holy dip at the river Damodar. There was a fair like situation  with several hawkers hawking their sweets and toys. Children were full of festivity .Least bothered about prevailing danger of pandemic, they were elated at    the colorful sight present all around. More or less, the same spirit of joy mingled faith was in sight  at other parts of  Jharkhand .
At Jamshedpur, all the ghats associated with religious rituals were  witnessed a huge  throng of people .They took holy dip and  worshipped God .in addition to this , the Sikh communities
across states celebrated Guru Purnima. Special prayers were organised at Gurudwaras. On the whole , the day remained quite memorable like previous ones due to  fraternity, love and joy associated with  it.

Dr. Amit Kumar Sinha. 
Ranchi.
Columnist.
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Page : 9 / 3 : Cartoon of the Day.
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Editor 


Maya Upadhaya.
Ranchi.


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पृष्ठ १०. मंजूषा :आपने कहा. मन की कही.
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You Said It.
संकलित / सम्पादित. 


सुनीता रंजीता.
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रिश्तों का एहसास. मन की कही.१ .


रिश्तों का एहसास. मन की कही.२.
 

रिश्तों का एहसास. मन की कही.३.


रिश्तों का एहसास. मन की कही.४.




 

Comments

  1. Your picture gallery is getting adorable day by day... Awesome work.

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  2. वाह, बहुत अच्छे!!

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  3. Amazing work & Very informative digital page with a lot of creative ideas...
    -Hursh

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  4. 'बीते दिनों का' डाॅ. मधुप रमण का संस्मरण और नीलम पांडेय का आलेख अच्छा लगा |

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