Abhi To Jee Le Jara : 2022

  

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Abhi To Jee Le Jara. 
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Morning / Evening Post. Page 0.
Morning 🌻 Post.
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कविता. 
गांधी होना आसान नहीं होता. 

  
किसी की जान ले लेना,
 किसी समस्या का समाधान नहीं होता।
 किसी के मारने के पहले ,
अपनी आत्मा को मारना पड़ता है ।
जो खुद विचारों की मौत मरा हो,
 किसी और को क्या दे पाता है ?
लड़नी होती है जंग विचारों की,
 सामने से हो रहे वारों की ,
और यह सब कुछ जानना,
 इतना आसान नहीं होता।
 गांधी बनना आसान नहीं होता ।। १ 
हर सिक्के के पहलू दो होते हैं ,
किसी एक को देखकर,
 पूरी कहानी का अंदाजा लगाना,
 बुद्धिमानों का काम नहीं होता ,
क्या खोया क्या पाया हमने ?
वक्त  सब सामने लाता जाता है ,
कर गुजरने के बाद जब होश आता है,
 तब क्या खोया हमने,
 इंसान समझ पाता है।



 सच को पहचानना आसान नहीं होता ।
गांधी बनना आसान नहीं होता।। २ 
उम्मीदों की कश्ती ,
जब डूब रही होती है।
 इंसान खुद में ही डूबता-उतराता होता है ,
लड़ रहा होता है,
 अपने  विचारों की लड़ाई,
 सामने वाले को फिर,
 वह कुछ समझा नहीं पाता है। 
विचारों की बोई फसल ,
जब पक कर तैयार हो जाती है,
 पता चलता है तब उसको,
 फसल में नई बीज के भी दानें हैं, 
सोचता है इंसान तब शिद्दत से,
 बोया था मैंने  तो बीज गेहूं का,
चना फिर कैसे उग आया है ?
प्रकृति की तरह इंसान का भी,
मस्तिष्क बहुत ही उर्वर है,
विचारों की खेती में नित नए फूल खिलते हैं,
पर उन्हीं फूलों के बीच,
कब शूल पनप आता है ?
समझ पाता है इंसान जब तक,
तूफ़ान आ के लौट भी जाता है।
फैसला कर पाना आसान नहीं होता,
गांधी बनना आसान नहीं होता।। ३ 

                 -  नीलम पांडेय
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युवा दिवस पर विशेष. 

काकड़ीघाट : नैनीताल जनपद जहाँ स्वामी विवेकानंद को ज्ञान प्राप्त हुआ था . 

मंदिर - कसारदेवी अल्मोड़ा जहाँ  वह ध्यान और साधना करते थे. फोटो साभार 

नैनीताल, १२ जनवरी २०२२  देश के विचारवान युवाओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी आदि अनेकानेक लोगों के आदर्श स्वामी विवेकानंद ने  ११ सितंबर १८९३ को शिकागो (अमेरिका ) में आयोजित धर्म संसद में अपने संबोधन-‘ मेरे अमेरिका वासी भाइयों  और बहनों ....’ से शुरू कर विश्व  को चमत्कृत कर दिया था।  
काकड़ीघाट : नैनीताल जनपद का वो चिन्हित स्थान है
काकड़ीघाट : नैनीताल जनपद

जहाँ स्वामी विवेकानंद को ज्ञान प्राप्त हुआ था। स्वामी विवेकानंद का नैनीताल -कुमाऊं - उत्तराखंड से गहरा एवं पुराना संबंध रहा है। वस्तुतः यहीं उनके ‘ बोधगया ’ कहे जाने वाले काकड़ीघाट धाम में ‘ बोधिवृक्ष ’ सदृश पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ‘ समूचे ब्रह्मांड को एक अणु में दिखाने वाला ’ ज्ञान प्राप्त हुआ था और इस पुण्यधरा ने उन्हें एक साधारण कमउम्र साधु नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद और फिर राजर्षि विवेकानंद बनते हुए भी देखा था । 
उस दौर में सपेरों के देश माने जाने वाले भारत को दुनिया के समक्ष आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रवर्तित करने वाले युगदृष्टा राजर्षि विवेकानंद को आध्यात्मिक ज्ञान नैनीताल जनपद के काकड़ीघाट नाम के स्थान पर प्राप्त हुआ था। 
यानी सही मायनों में बालक नरेंद्र के राजर्षि विवेकानंद बनने की यात्रा देवभूमि के इसी स्थान से प्रारंभ हुई थी, और काकड़ी घाट ही उनका बोध गया था। यहीं उनके अवचेतन शरीर में अजीब सी सिंहरन हुई, और
विवेकानंद
वह वहीं ‘
बोधि वृक्ष ’ सरीखे पीपल का पेड़ के नीचे ध्यान लगा कर बैठ गए थे । इस बात का जिक्र करते हुए  बाद में स्वामी जी ने कहा था, यहां ( काकड़ीघाट ) उन्हें पूरे ब्रह्मांड के एक अणु में दर्शन हुए थे । यही वह ज्ञान था जिसे ११ सितंबर १८९३ को शिकागो में आयोजित धर्म संसद में स्वामी जी ने पूरी दुनिया के समक्ष रखकर विश्व को चमत्कृत करते हुए देश का मानवर्धन किया था । सम्भवतः स्वामी जी को अपने मंत्र उत्तिष्ठ जागृत प्राप्यवरान्निबोधत् ’ के प्रथम शब्द ‘ उत्तिष्ठ ’ की प्रेरणा भी अल्मोड़ा में ही मिली थी। उन्होंने हिन्दी में अपना पहला भाषण राजकीय इण्टर कालेज अल्मोड़ा में दिया था। 
स्वामी विवेकानंद व देवभूमि का संबंध तीन चरणों यानी उनके नरेंद्र होने से लेकर स्वामी विवेकानंद और फिर राजर्षि विवेकानंद बनने तक का था। वह चार बार देवभूमि आए थे । 
पहली आध्यात्मिक यात्रा : उनकी पहली आध्यात्मिक यात्रा अगस्त १८९० में एक सामान्य साधु नरेंद्र के रूप में हुई। गुरु भाई अखंडानंद के साथ नैनीताल में प्रसन्न भट्टाचार्य के घर पर छह दिन रूककर वे अल्मोड़ा की तरफ़ चल पड़े। जनपद के काकड़ीघाट में एक पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें यह आत्मज्ञान प्राप्त हुआ कि कैसे समूचा ब्रह्मांड एक अणु में समाया हुआ है ? 
स्वामीजी ने उस दिन की अनुभूति की बात बांग्ला में लिखी, ' आमार जीवनेर एकटा मस्त समस्या आमि महाधामे फेले दिये गेलुम !’ यानी ‘ आज मेरे जीवन की एक बहुत गूढ़ समस्या का समाधान इस महा धाम में प्राप्त हो गया है !’ यहां से आगे चलते हुए वह अल्मोड़ा की ओर बढ़े थे । कहते हैं कि अल्मोड़ा से पूर्व वर्तमान मुस्लिम कब्रिस्तान करबला के पास खड़ी चढ़ाई चढ़ने व भूख-प्यास के कारण उन्हें मूर्छा भी आ गई थी । वहां एक मुस्लिम फकीर ने उन्हें ककड़ी ( पहाड़ी खीरा ) खिलाकर ठीक किया। 
दूसरी यात्रा :  इस बात का जिक्र स्वामी जी ने शिकागो से लौटकर मई १८९७ में दूसरी बार अल्मोड़ा आने पर किया। अल्मोड़ा में वह लाला बद्रीश शाह के आतिथ्य में रहे। यह स्वामी विवेकानंद का राजर्षि के रूप में नया अवतार था। 
इस मौके पर हिंदी के  प्रसिद्ध छायावादी प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत ने कविता लिखी थी : 
मां अल्मोड़े में आऐ थे जब राजर्षि विवेकानंद, 
तब मग में मखमल बिछवाया था, 
दीपावली थी अति उमंग. '
स्वामी जी अल्मोड़ा से आगे चंपावत जिले के मायावती आश्रम भी गए थे, जहां आज भी स्वामी जी का प्रचुर साहित्य संग्रहित  है। 
अल्मोड़ा में स्वामी जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम से मठ व कुटीर आज भी मौजूद है। बाद में उनके भाषणों का संग्रह ' कोलंबो से अल्मोड़ा तक ' नाम से प्रकाशित हुआ था। यहां काकड़ीघाट में आज भी उन्हें ज्ञान प्रदान कराने वाला वह बोधि वृक्ष सरीखा पीपल का पेड़ तथा आश्रम आज भी मौजूद है। तीसरी यात्रा : वहीं १८९८ में की गई अपनी तीसरी यात्रा के दौरान अल्मोड़ा में उन्होंने अपनी मद्रास से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘ प्रबुद्ध भारत ' का प्रकाशन मायावती आश्रम से करने का निर्णय लिया था।अल्मोड़ा के मुख्य नगर से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित दुर्गा के मंदिर - कसारदेवी की गुफा में वह ध्यान और साधना करते थे। देवलधार और स्याही देवी भी उनके प्रिय स्थल थे। उन्होने यहां कई दिनों तक एक शिला पर बैठ कर साधना की। 

गतांक से आगे १.

अद्वैत आश्रम मायावती अल्मोड़ा : फोटो साभार.
 
स्वामी विवेकानंद के उत्तरांचल यात्रा के चार चरण : 
पहली बार अगस्त से सितम्बर साल १८९० में आए जब वे एक अज्ञात सन्यासी नरेंद्र के रूप में यहाँ जाने गए। 
दूसरी बार स्वामी विवेकानंद मई से अगस्त महीने में १८९७ जब वे दक्षिण से उत्तर की यात्रा के बाद आए थे। 
तीसरी बार मई से जून १८९८ के वर्ष  जब वे कश्मीर हिमालय की यात्रा के क्रम में यहाँ आए थे। 
चौथी बार दिसंबर से जनवरी १९०१ को उत्तराखंड आए  जब वे अद्वैत आश्रम मायावती की यात्रा पर थे। 
११ सितंबर, १८९३ को शिकागो (अमेरिका ) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद का भाषण का अंश  : अमेरिका के बहनों  और भाइयों , आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। 
मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी, जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी।
मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयों , मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है ; और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है -' जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।

११ सितंबर, १८९३. शिकागो (अमेरिका ) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद : फोटो साभार.
 
"वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है – ' जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें,आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं। 'सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से, और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा। 

डॉ. नवीन जोशी.नैनीताल 
@ नवीन समाचार, 

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साभार.ये पर्वतों के दायरें, नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक.अंक १०.
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बारा पत्थर से डोर्थी सीट तक़ की एक मनपसंद चहलकदमी. 
हम तुम एक जंगल से गुजरे..

नैनीताल के पास की वादियों में बादल : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

हम अक्सर माल रोड पर टहलते हुए या झील के किनारे बैठे हुए राज भवन की ओर जाने वाली सड़क को देखते रहते थे। अक्सर वहाँ उस सड़क पर गाड़ियां सरकती रेंगती नज़र आती ही रहती थी। सोचता था कब उस ओर चलेंगे ? उसी के आस पास ही तो डोरोथी सीट है ना ? तुमने बताया था, बड़ी अच्छी जग़ह है। 
घूमने लायक। पहले बारा पत्थर ,पहुंचना होता है इसके बाद, लवर्स पॉइंटखुरपा ताल, लैंड्स एन्डडोर्थी सीट, ये सभी दर्शनीय चीजें उधर ही देखने को मिलती है,न अनु। 
२२९२ मीटर ऊंचाई वाली इस पहाड़ की चोटी से आसपास की सुन्दर फैली पर्वत श्रृंखलाएं और हरी भरी वादियां का अत्यंत सुंदर नजारा दिखाई देता है। यहां की सबसे ऊंची चोटी है इसलिए यहाँ  के लोग इसे टिफिन टॉप भी कहते हैं । बजरी वाले मैदान से बारा पत्थर तक़ हमलोग पैदल ही चले गए थे। 
पाश्चात्य शैली में बनी हाई कोर्ट की बिल्डिंग भी रास्तें में मिली थी । क़रीब आधे घंटे के बाद हम बारा पत्थर पहुंच चुके थे। घोड़ों वालों की वहां भीड़ लगी थी। शायद यह जग़ह किसी बड़े पत्थर और उस पर की जाने वाली क्लाइम्बिंग की बजह से प्रसिद्ध रही होंगी। देखा भी था कुछ पर्यटक चिकने समतल पत्थर पर चढ़ने उतरने का प्रयास कर रहें थे। 
लवर्स पॉइंट : इसके पास ही लवर्स पॉइंट है । वहां पर्यटकों का हुजूम लगा था। लेकिन बड़ी जोख़िम वाली जग़ह थी यह। कुछ नहीं बस एक नुकीली चट्टान निकली हुई थी लोग वहां फोटो खिचा रहें थे। पता नहीं कैसे यह लवर्स पॉइंट बनी ,समझ नहीं पा रहा था । और उसके पीछे एक गहरी खाई नज़र आती है। थोड़ा चुके नहीं कि जान गयी। 

 लवर्स पॉइंट  के पास  लगा वहां पर्यटकों का हुजूम : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

नवीन दा बतला रहें थे इसलिए अब तो यह जग़ह लवर्स पॉइंट कहां ? अब तो यह सुसाइड पॉइंट हो गयी हैं याद है हमने भी स्मृति वश एक दो फोटो खिचाई थी। अभी भी तुमने बड़ी जतन से किताबों के पन्नों के बीच सहेज कर रखा है। 
कहा था , '.. मेरे जीवन भर की पूंजी है। गवाऊंगी नहीं। ' 
मुझे याद है राह चलते तुमने लवर्स पॉइंट के बारे और भी कुछ बातें  कही थी,  
' ...जानते है प्रेम में असफ़ल हुए हताश लोग यहीं से कूद कर जान दे देते थे। ...न जाने कितने लोगों ने आशिक़ी में जान गवाएं है आप को बतला नहीं सकती ....'
मुझे याद है वहीं किसी गाइड ने दाहिनी तरफ़ एक दूर दिख रहें पहाड़ी पर एक बंगला दिख रहा था जिसके बारे में उसने बतलाया था कि यह बंगला फिल्म अभिनेत्री नेपाल की निवासिनी मनीषा कोइराला का है। सच्चाई क्या है यह तो नवीन दा ही बतलायेंगे। 
खुरपा ताल पॉइंट : लैंड्स एन्ड, के रास्तें में ही खुर्पा ताल पॉइंट मिलता है ,स्वच्छ पानी की झील घोड़े के खुरपे की आकार में दिखती है । हमें याद है लैंड्स एन्ड से भी यह खुरपा ताल दिखती है लेकिन थोड़ी दूर से ।
बारा पत्थर से थोड़ी दूर आगे बढ़ते ही फिर से एकदम से जमीन यहीं ख़त्म हो जाती है। तभी तुमने नीचे की तरफ़ इशारा करते हुए बतलाया था, ' देखिए ! घोड़े के खुरपा आकार की नीली झील है ना ,बहुत खूबसूरत है ,चलेंगे वहां ? ...'
एकदम से सामने एक झील दिखने लगती है एकदम पास में ही। 

खुरपा ताल पॉइंट : बारा पत्थर :फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

मुझे याद है मैंने अपने कैमरे से तुम्हारी एक सुन्दर तस्वीर खींची थी। 
यहां बादलों से भरी गहरी खाई के किनारे खड़े होकर ऐसा आभास होता है मानो हम धरती का अंतिम छोर पर हो। इसलिए तो इसे लैंड्स एन्ड की संज्ञा दी गयी है ,न । यहां पहुंचने के लिए मात्र थोड़ी दूर ही चलना पड़ा था । नीचे दिखती सांप जैसी सड़क कई बार चक्कर खाते हुए  गुम हो गयी थी। 
उपर से काफ़ी गति से दौड़ती हुई गाड़ियां खिलौने की भांति प्रतीत हो रहीं थी। शायद यह रास्तां दिल्ली को जाता है। 
बारा पत्थर : से ही हम लोग लैंड्स एन्ड तथा डोर्थी सीट के लिए जाते है। घोड़े वाले बोल भाव में चतुर है खूब मोल भाव करते रहते है। इसलिए इनसे रेट तय कर ही बारा पत्थर से लैंड्स एन्ड, जाने के लिए  आगे के लिए घोड़े किराए पर लिया जा सकते हैं। लेकिन हमने तय कर लिया था कि पैदल ही लैंड्स एन्ड होते हुए डोर्थी सीट के लिए जाएंगे। 
घुड़ सबारी के शौकीनों के लिए करने के लिए यह सर्वोत्तम जग़ह  है। थोड़े दूर घने जंगलों में चलने मात्र से फ़िल्म निर्माता राकेश रौशन निर्देशित कोई मिल गया फिल्म की शूटिंग और लोकेशंस की याद आ गयी, जिसमें इस फिल्म के मशहूर गाने कोई मिल गया की कुछेक सीन शूट्स हुए है। याद है हम तुम एक घने जंगल से गुजर रहें थे। बहुत देर तक कोई नहीं मिलता तो थोड़ी सी घबड़ाहट भी होती थी कही हम घने जंगल के भूल भुलैया में गुम न हो जाए। गुलदारों का भी कभी कभी डर सताने लगता था ।
निर्माता निर्देशक राकेश रोशन ने नैनीताल के बैक ग्राउंड में कुछेक दृश्यों की शूटिंग कर कनाडा की खूबसूरत वादियों को अपने कैमरे में क़ैद किया था। जिसमें मल्लीताल लेक व्यू सेंट जोन्स स्कूल राजभवन तथा लैंड एन्ड के रास्ते में आने वाले ब्रिटिश कालीन इमारतों को उन्होंने ख़ूबसूरती से फ़िल्माया था। सर्वाधिक शूट्स सेंट जोन्स स्कूल में किये गए थे।

गतांक से आगे १.

लैंड्स एन्ड से : दिखता खुरपा ताल  फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

लैंड्स एन्ड : हमलोग पौन घंटा लगा था जब हम लैंड्स एन्ड पहुंच चुके थे। बड़ी खूबसूरत जगह थी। सामने ऊपर से बादल का एक टुकड़ा नीचे उतर रहा था। यहाँ से भी खुरपा ताल दिख रहा था। समतल जग़ह थी किनारे में पत्थर भी थे जहाँ हमलोग काफ़ी देर तक बैठे भी थे,ना ?
नैनीताल की दिलक़श जग़ह है। यहाँ से वादियों का अद्भुत  सौंदर्य दिखता है। बारह पत्थर से कुछ दूर आगे चलते हुए आप को एक समतल जग़ह मिलेगी जहां जमीन ख़त्म होती प्रतीत होगी। यहां से भी खुरपा ताल दिखता है बादलों के झुण्ड अक्सर यहाँ नीचे घाटियों में डेरा जमाए रहते हैं। पहाड़ों से उतरती रोशनी की  छाया प्रति छाया में शौकिया फोटोग्राफर के लिए  लैंडस एन्ड एक पसंदीदा पड़ाव हैं। बारा पत्थर में आपको घोड़े वाले भी मिल जायेंगे ,लेकिन चहलक़दमी का लुफ्त ही कुछ अलग़ है। 
यही हमारी मुलाक़ात अमित से हुई थी जो एक शौकिया फोटोग्राफर है उनकी एक छोटी दूकान भी है। फोटोग्राफी से लगाव रखने वाले उनसे अपनी स्मृति बतौर खिचवाई फ़ोटो  रख सकते है। आज भी अमित हमसे जुड़े हुए हैं। 

डोर्थी सीट से दिखता नैनीताल का दृश्य : फोटो डॉ.नवीन जोशी. 

डोर्थी सीट : लैंड्स एन्ड  में थोड़े समय व्यतीत करने के पश्चात हम डोर्थी सीट के लिए पैदल ही बढ़ गए जबकि हमारे साथ के कुछ और लोग घोड़े पर थे। 
मुझे १९९८ वर्ष की एक रोचक बातचीत याद आ गयी जब हम पहली दफ़ा नैनीताल आये थे। नीचे से उपर चढ़ाई के लिए चढ़ते हुए ही हमारे साथ कुछ स्थानीय भी हो लिए थे। कुछ दूर चलने के बाद ही उन्होंने मेरा ध्यान आकृष्ट किया ,  ' ...सर , झील दिख रही है ..? '
मैने कहा ,'...हा ...दिख रही है .एकदम पास में ही तो है '
सही , क्या आप झील में पत्थर फेंक सकते है ..?  उसने पूछा तो मैंने कहा ...' हां .. क्यों नहीं ..झील में पत्थर तो पहुंचा ही सकता हूं। ' 
' कोशिश कर के देख लीजिए ..'
मैने एक छोटा सा पत्थर उठा कर बड़ी वेग से झील की तरफ़ फेंका ..लेकिन वह झील में न गिरकर न जाने कहाँ हवा में गोल गोल घूमता हुआ गुम हो गया। एकाध बार मैंने कोशिश और भी की लेकिन नाकामयाब रहा । 
तब न जाने वे साथ चलते हुए गुरु बन कर मुझे विज्ञान की बातें समझाते रहे। तब हम लोग डोर्थी सीट के लिए ही जा रहे थे ना ? अयारपाटा के जंगल से ऊपर हमलोग जब टिफ़िन टॉप पर पहुंचे थे तब हमें वहां से नैनीताल का ३६० डिग्री तक़ देखने का  व्यू मिला था। पहली दफ़ा पूरे शहर को देखना कितना अच्छा लगा था।  

गतांक से आगे २ .

  नैनीताल के अयारपाटा हिल्स  की सबसे ऊंची चोटी टिफिन टॉप, हम और तुम : फोटो डॉ. नवीन जोशी.

टिफिन टॉप  नैनीताल के अयारपाटा हिल्स  की सबसे ऊंची चोटी ही टिफिन टॉप कहलाती है जिसे डोर्थी  सीट के नाम से भी जाना जाता है। शहर से मात्र ४ किलोमीटर की दूरी पर २२९२ मीटर की ऊंचाई स्थित इस टिफिन टॉप  का नाम कैसे पड़ा यह भी हमने जानकारी हासिल करने की कोशिश की। 
हमें  यहाँ के स्थानीय महेश सुनाथा जो डोर्थी सीट के बाजू में ही यहाँ चाय कॉफी की स्टॉल लगाते है से ढ़ेर सारी बातें की। 
उन्होंने बतलाया कि शायद टिफिन टॉप  नाम इसलिए पड़ा कि डोर्थी सीट  की ढलानों पर यहां के लोग अक्सर आकर सुस्ताते थे अपना टिफिन खाते थे इसलिए यह नाम प्रचलन में आ गया होगा । ' 
चेरी, ओक, देवदारों  से घिरे इस टिफ़िन टॉप की शोभा अप्रतिम है ,आप भी न भुला पाए। हवा एकदम से आपको छूते रहेगी। नीचे माल रोड तक़ पसरी झील दिखेगी। 
आगे तुमने बताया था , ' डोर्थी  सीट नाम क्यों पड़ा यह नहीं जानेंगे क्या ?
क्यों नहीं , अनु ! आप बताए ....
'...जानते है इस जगह का नाम डोर्थी सीट इसलिए भी पड़ा  कि यहाँ के आर्मी ऑफिसर कर्नल जे पी केलेट ने  अपनी पत्नी डोर्थी केलेट को १९३६ के  वायुयान दुर्घटना में खो दिया था उनके साथ उनके बच्चें भी थे। तो अपनी अजीज पत्नी की स्मृति में ग़मज़दा कर्नल साहेब ने सीट का निर्माण किया था। लोग उन्हें याद भी करने यहाँ आते है। .....'
...एक बात मैं आपसे पूछूं   ? आप भी अपनी पत्नी की स्मृति में उनके लिए  कुछ  बनाएंगे ..क्या 
यह कैसा सवाल था ,अनु ? ...अभी तो जिंदगी शुरु भी नहीं हुई थी ...अभी से मरने की बात ....
क्यों ..अभी तो पूरी जिंदगी पड़ी है .....न ?
मैंने हँसते हुए कहा , '..हम तो मरने के बाद नहीं ...जीते जी ही ...नैनीताल में घर बनाने की बात करते है..यदि भगवान ने चाहा तो.... '
सच ...! ' तुमने हँसते हुए मेरी तरफ़ देखा  ...मैं कहीं और देख रहा था। 
' ...सच,....अनु ! ....प्रभु की कृपा रही तो तेरे घर के सामने ही एक घर बनाऊंगा... '
शायद तुम कह रही थी , ' ..जब मेरा घर है ही ..तो मेरे घर के सामने ही दूसरे घर बनाने की क्या जरुरत ?
अनुत्तरित होता हुए मैं नीचे उतरने लगा था। नीचे कहीं घाटियों में  फिल्म कटी पतंग का गाना ये  शाम मस्तानी बज रहा था जो  ऊपर तक सुनाई भी दे रहा था। 
पास ही में महेश सुनाथा जी का टी काफ़ी का स्टॉल था। और हम कैसे भूल सकते हैं कि हमने वहां बहुत ही स्वादिष्ट चाय और कॉफी भी पी थी। 
और जो कुछ भी तुमने टिफ़िन में लाया था शायद गाजर का हलवा और मूली के पराठे। वह भी हमदोनों ने साथ ही खाए थे। ....' है ना , अनु तुम तो पाक कला में भी अच्छी खासी निपुण हो । 
अभी भी महेश सुनाथा जी से बातें होती रहती है। बहुत देर तक वहां रहने के बाद हम अयारपाटा के जंगल वाले रास्तें से नीचे उतर गए थे। 

डॉ . मधुप रमण 

©️®️
मीडिया फ़ीचर डेस्क. 

Courtesy.

our wishing to you all for a very happy New Year 2022.


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Feature Section.
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Section C. Page 3. Photo of the Week
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powered by.
snowfall at Auli present day : photo Subodh Rana.


An eye catching scene of sun rising at Sajnekhali in Sunderban : photo Kamlendu.


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Section D. Page 4 / 0. Editor's Desk.
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Capt. Ajay Swarup.

GOOD BYE 2021, WELCOME 2022. WE LEARN FROM PAST, LIVE IN PRESENT AND PREPARE OURSELVES FOR FUTURE.


The humanity saw disaster during the last one year. It has had both positive & negative effects. It is said that whatever you give comes back to you. We played around with nature in the name of development, advancement, industrialization etc. The forests took the greatest brunt of this all. 
Urbanization affected the rural areas. Rather than having the green forests we have the concrete forests. We were only thinking of the advancement of the present era putting the future in jeopardy. As a result we see various natural disasters - Tsunami, Earthquakes, floods, droughts etc. Hygiene was given low priority. 
Resulting in us facing various deadly diseases – COVID and its numerous variants. Everything that happens also has positive effects.
Due to the pandemic; lockdowns and work from home were imposed all over, resulting in the families staying and celebrating festivals together supporting each other. Hygiene has also been given top priority. People are becoming more conscious about health issues.

let the dawn come to our life.
  
Let us take a pledge together to continue our endeavour towards protecting the environment and maintain sustainable development keeping hygiene at top priority.

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Section E. Page 5 / 0. English .
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supported by.
our heartiest wishes to all for the happy new year 2022

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 Poem. Page 5 /1 
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Accompaniment's Denouement


Many days remained silent,
Without any conversations,
Many times a single heart broke,
Without any intervention.


Many hours passed, eyes filled with tears,
When I ran through a dreadful fear,
But all the time he stayed with me,
Like my shadow and my cheer.


His company gave me a beautiful glow,
Which long time back it went slow,
Out of my hand and under my pillow,
Where I have hidden all my sorrow.


Many a times misunderstandings grew,
Where I found myself to be true,
Whom I trust ? was my heart,
Who broke? it was my trust.


Many times he refused me,
When I found myself very alone,
Many times he consoled me,
When he found I was wrong.
Thank you lord for being with me.

Priya .
Darjeeling
 
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हिंदी अनुभाग.गद्य पद्य संग्रह .पृष्ठ .६ .   
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wishing you a very happy healthy New Year 2022.

पद्य संग्रह पृष्ठ. ६ / १.

सीपिकाएँ.

चित्र कला : विदिशा 

 
कन्चन पन्त.
नैनीताल.  

मैं तुझे फिर मिलूंगी.... 

मैं तुझे फिर मिलूंगी....
तेरे अधरों पर खिलती हंसी बनकर,
तेरे अट्टहास से मिलती ख़ुशी बनकर,
तेरी चमकती आँखों के झरोखों से.
झांकती मैं ,झांककर छुप जाती
मैं तुझे फिर मिलूंगी.....
छोटी सी तेरी आँखों के बड़े बड़े सपनों में,
कभी राही बनकर कभी तेरे अपनों में,
तेरी ऐनक की एक कोर पर बैठी मैं,
सब कुछ तेरे संग देखा करूंगी,
मैं तुझे फिर मिलूंगी.....
तेरे हाथों की लकीरों में छुपकर कहीं,
तेरे भविष्य से रूबरू होने का सौभाग्य पाकर,
तेरे आज में तेरे कल में घुलती रहूंगी,
जब चाहे तेरी हथेली से झांककर तुझे मिलती रहूंगी,
मैं तुझे फिर मिलूंगी.....
सूरज की पहली किरण बनकर,
तेरी सुबह को खुशनुमा बनाती मैं,
चन्दा की चांदनी बन फिर,
तेरी नींद को सुकून दे जाती मैं ,
क्षितिज के एक छोर पर तुझे मिलूंगी मैं,
मैं तुझे फिर मिलूंगी.....
एक अनछुई सी याद बनकर,
तेरे जेहन में आती रहूंगी हर पल,
एक अनकही सी बात बनकर,
तुझसे बतियाती रहूंगी हर पल,
तेरे ख्यालों में,तेरे हर विचार में,
अनपुछे सवालों में, जीत में , हार में,
मैं तुझे फिर मिलूंगी.....
          मैं तुझे फिर मिलूंगी.....          
                                                                    पंक्तियाँ तुम्हारे लिए से साभार 
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पद्य संग्रह पृष्ठ.६ / २.  
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ग़जल. 
डॉ.आर.के.दूबे.
संपादक.  
ये दिल और उनकी निगाहें ना होती. 

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पद्य संग्रह पृष्ठ.६ / ३.  
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सीपिकाएँ. 

ख़ुद हारते मुझे जिताने को.


पापा से पहली यारी है,
घर पे मम्मी पे भारी है,
ज़िद सारी पूरी खुद करते,
और कहते बिटिया प्यारी है.

तो अब शौक की बारी है,
नोंक-झोंक बिन खारी है,
ख़ुद हारते मुझे जिताने को,
और कहते बिटिया प्यारी है.

पसंद एक सी सारी है,
बेटी पापा की दुलारी है,
मेरी जली रोटी मीठी कहते,
और कहते बिटिया प्यारी है.

कभी रूठने की तैयारी है,
या ख़ुश करने की बारी है,
दोनों में माहिर दोनों है,
और कहते बिटिया प्यारी है.


मानसी पंत. 
नैनीताल. 
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पद्य संग्रह पृष्ठ.६ / ४.  
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 हिंदी अनुभाग.गद्य संग्रह.पृष्ठ..यात्रा संस्मरण.  
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सहयोग. 
यात्रा संस्मरण.पृष्ठ.७ / १ 

पांडू खोली अल्मोड़ा का एक बर्फ़ानी कस्वां. 


अल्मोड़ा / अभिमन्युरात में ही तापमान अधिक गिर गया था भीतर कमरे में भी हड्डी कंपाने वाली ठंढी लग रही थी। मध्य रात्रि में बर्फ के फाहें गिरने शुरू हो गए थे। पीली बल्ब की रौशनी में दूधिया बर्फ़ के फाहों का गिरना देखना मन को भा रहा था। एकाएक जैसे बर्फ़ की बारिश में पूरा प्रदेश समा गया। 
सुबह उठा तो आश्रम के चारों तरफ़ बर्फ़ ही बर्फ़ बिखरा पड़ा था। और मुझे इस विषम परिवेश में ही 
स्न्नान ध्यान करना था। यहां चारों तरफ और प्रकृति की अद्भुत मनोरम छटा बिखरी पड़ी थी। जो लोग बर्फ़ बारी देखना चाहते हैं अपनी यात्रा अल्मोड़ा के पांडू खोली के लिए सुनिश्चित कर सकते है उन्हें पछताना नहीं पड़ेगा। 
आप सभी को मैं बताते चलूँ कि अभी मैं वर्तमान में महान हिमालय के नीचे मध्य हिमालय के बीच में रह रहा हूं लगभग १०००० फीट की ऊंचाई पर  और यह स्थल  ऋषि मुनियों  की तपोस्थली भी रही है। एवं दिव्य जड़ी बूटी भी यहां काफी मात्रा में पाई जाती है अतएव हम इसे देवभूमि की भी संज्ञा दे सकते है अभी मैं योग की शिक्षा ग्रहण करने और चिंतन मनन  करने के चलते ही यहां पर आया हूं। 
स्वर्गापुरी पांडू खोलीइस जगह का नाम स्वर्गापुरी पांडू खोली है ,जहाँ पांडवों ने अज्ञात वास बिताया था। यह महाभारत कालीन से ही ऋषि मुनियों के लिए चर्चित तपोस्थली रही है नाम से ही प्रतीत होता है खोली ,जहाँ पांडवों का निवास रहा हो  इसलिए यह जग़ह पांडू खोली कहलायी   अल्मोड़ा के दूनागिरी पहाड़ में यह पांडू खोली की गुफाएं पाई जाती है जो अल्मोड़ा के १५१० मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित पर्वतीय स्थल द्वारहाट और चौखुटियाँ के मध्य हैं। 
कैसे पहुंचे : इस अनुपम स्थल तक पहुंचने के लिए आपको नजदीकी रेलवे स्टेशन काठ गोदाम या फिर हवाई अड्डा पंत नगर पहुंचना होगा।  इसके बाद अल्मोड़ा शहर पहुँच जाये। 

आश्रम के आस पास बिखरे पड़े बर्फ़ : फोटो अभिमन्यु.

बलवंत गिरी महाराज का  समाधि स्थलदर्शनीय स्थल में वर्तमान में यहां पर बलवंत गिरी महाराज का  समाधि स्थल तथा  साधना स्थल  है जहां अखंड अग्नि हमेशा जलती रहती है। यहां पर साधक लोग बैठकर प्रतिदिन साधना तथा चिंतन मनन करते रहते हैं। प्रतिदिन सुबह पानी बर्फ में लगभग तब्दील हो ही जाता है। और पहले की तरह बर्फ रात में अमूमन पड़ता  ही रहता  है। लेकिन कल से मौसम बहुत खराब हो चुका है और आसमां से बर्फ भी लगातार गिर रही है।  खास कर रात में तापमान के अधिक और गिरने से बर्फ़बारी और भी तेज़ हो गयी है  
योग और प्राणायामयोग और प्राणायाम  का हमारे जीवन में अत्यंत महत्व है। यह वीडियो और फोटो मैं  इसलिए साझा कर रहा हूं जिसमें मैं आपको बता सकूँ की योग और प्राणायाम के माध्यम से दुर्गम इलाके में भी जीवन कैसे जिया जा सकता है ? किसी प्रकार के नशा और ना ही अनावश्यक रूप से अभक्षय पदार्थ के  सेवन करने की आवश्यकता महसूस होती है   साधना के बल पर जिसमें योग और परिणाम ध्यान निहित होते हैं उसके माध्यम से आप और हम अपना जीवन सरलता से जी सकते हैं हम सब के लिए उज्जवल भविष्य सिद्ध है , हमारे पास सद्बुद्धि होगी यही साधना का लक्ष्य होता है  

मीडिया फ़ीचर डेस्क. 
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यात्रा संस्मरण. पृष्ठ.७ / २.
 
रमणीय स्थानों में एक है नीब करौरी बाबा कैंची धाम,नैनीताल.
  


देवभूमि के ऐसे ही रमणीय स्थानों में २० वीं सदी के महानतम संतों दिव्य पुरुषों में शुमार बाबा नीब करौरी महाराज का कैंची धाम है, जहां अकेले हर वर्ष इसके स्थापना दिवस १५ जून को ही लाखों सैलानी जुटते हैं। बाबा की हनुमान जी के प्रति अगाध आस्था थी, और उनके भक्त उनमें भी हनुमान जी की ही छवि देखते हैं, और उन्हें हनुमान का अवतार मानते हैं। बाबा के भक्तों का मानना है कि बाबा उनकी रक्षा करते हैं, और साक्षात दर्शन देकर मनोकामनाऐं पूरी करते हैं यहां सच्चे दिल से आने वाला भक्त कभी खाली नहीं लौटता। यहां बाबा की मूर्ति देखकर ऐसे लगता है जैसे वह भक्तों से साक्षात बातें कर रहे हों।कैंची धाम : कैंची धाम उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटक स्थल नैनीताल से मात्र १८ किमी की दूरी पर अल्मोड़ा रानीखेत मार्ग पर देश दुनिया में विरले ही मिलने वाली उत्तरवाहिनी क्षिप्रा नदी के तट पर तकरीबन कैंची के आकार के दोहरे ‘ हेयर पिन बैण्ड पर स्थित है। आस पास का दृश्य अत्यंत मनोरम है। 
चीड़ देवदारों से घीरे यह पहाड़ी नदी जब सुस्त गति से उत्तर दिशा की ओर बढ़ती है। 

कैंची आश्रम के पास का सौंदर्य : फोटो मीडिया फ़ीचर डेस्क. 

रोचक कथा : बाबा के कैंची आने की कथा भी बड़ी रोचक है मंदिर के करीब रहने वाले पूर्णानंद तिवारी  के अनुसार १९४२ में एक रात्रि खुफिया डांठ नाम के निर्जन स्थान पर एक कंबल ओढ़े व्यक्ति ने कथित भूत के डर से भय मुक्त कराया, और २० वर्ष बाद लौटने की बात कही। 
वादे के अनुसार १९६२ में वह रानीखेत से नैनीताल लौटते समय कैंची में रुके और सड़क किनारे के पैराफिट पर बैठ गए और पूर्णानंद को बुलाया। कहा जाता है कि इससे पूर्व सोमवारी बाबा इस स्थान पर भी धूनी रमाते थे, जबकि उनका मूल स्थान पास ही स्थित काकड़ीघाट में कोसी नदी किनारे था। सोमवारी बाबा के बारे में प्रसिद्ध था कि एक बार भण्डारे में प्रसाद बनाने के लिए घी खत्म हो गया। इस पर बाबा ने भक्तों से निकटवर्ती नदी से एक कनस्तर जल मंगवा लिया, जो कढ़ाई में डालते ही घी हो गया। तब तक निकटवर्ती भवाले से घी का कनस्तर गया। बाबा ने उसे वापस नदी में उड़ेल दिया। लेकिन यह क्या, वह घी पानी बन नदी में समाहित हो गया। 
इधर जब नीब करौरी बाबा कैंची से गुजरे तो उन्हें कुछ देवी सिंहरन सी हुई, इस पर उन्होंने १९६२ में यहाँ आश्रम की स्थापना की। बाद में १५  जून १९७३  को यहां विंध्यवासिनी और ठीक एक साल बाद मां वैष्णों देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। १९६४  से मन्दिर का स्थापना दिवस समारोह अनवरत १५ जून को मनाया जा रहा है.

गतांक से आगे १ .

सन्त परंपरा की अनूठी मिसाल है कैंची धाम : यूं कैंची के निकटवर्ती मुक्तेश्वर क्षेत्र का पाण्डवकालीन इतिहास रहा है, बाद के दौर में यह स्थान सप्त ऋषियों तिगड़ी बाबानान्तिन बाबालाहिड़ी बाबापायलट
करौरी बाबा 
बाबा,
 हैड़ाखान बाबासोमवारी गिरि बाबा व नीब करौरी बाबा आदि की तपस्थली रहा। 
कहते हैं कि कैंचीधाम में पहले सोमवारी बाबा साधना में लीन रहे। कहते हैं कि सोमबारी बाबा के भक्त नींब करौरी बाबा रानीखेत जाते समय यहां ठहरे थी, इसी दौरान प्रेरणा होने पर उन्होंने यहां रात्रि विश्राम की इच्छा जताई, और १९६२ में यहां आश्रम की स्थापना की गई। 
गत दिनों यह मन्दिर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दिनों में बराक ओबामा का हनुमान प्रेम उजागर होने के बाद बाबा के भक्तों द्वारा ओबामा की विजय के लिए यहाँ किऐ गऐ अनुष्ठान के कारण भी चर्चा में आया था।
बाबा का जन्म आगरा के निकट फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर में जमींदार घराने में मार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि को हुआ था। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मणदास शर्मा था।  इस नाम से उत्तर प्रदेश के जिला फर्रुखाबाद में एक रेलवे स्टेशन है। 
कथाएं बाबा के लिए : कहते हैं कि एक बार छापामार दस्ते ने बाबा को टिकट न होने के कारण इस स्थान पर ट्रेन से उतार दिया लेकिन यह क्या, बाबा के उतरने के बाद ट्रेन लाख प्रयत्नों के बावजूद यहां से चल नहीं सकी बाद में रेलकर्मियों ने बाबा की महिमा जान उन्हें आदर सहित वापस ट्रेन में बैठाया जिसके बाद बाबा के ‘चल’ कहने मात्र पर ही ट्रेन चल पड़ी थी । 
तभी से इस स्थान पर रेलवे का छोटा स्टेशन बना और इस स्टेशन का नाम लक्ष्मणदास पुरी पड़ा। कहते हैं कि फर्रुखाबाद जिले के नीब करौरी गाँव में ही वह सर्वप्रथम साधू के रूप में दिखाई दिए थे, इसलिए उन्हें नीब करौरी बाबा कहा गया, हालांकि उनके नाम का अपभ्रंश ‘ नीम करोली ’ नाम भी प्रसिद्ध हुआ। 
एक अन्य किंवदंती के अनुसार नैनीताल के निकट अंजनी मंदिर में बहुत पहले कोई सिद्ध पुरुष आये थे, और उन्होंने कहा था कि एक दिन यहाँ अंजनी का पुत्र आएगा। 

नैनीताल स्थित उत्तरवाहिनी क्षिप्रा नदी के किनारे कैंची आश्रम का दृश्य : फोटो डॉ.सुनीता.

१९४४ - ४५ में बाबा के चरण पद यहाँ पड़े तो लागों ने सिद्ध पुरुष के बचनों को सत्य माना इस स्थान को तभी से हनुमानगढ़ी कहा गया, बाद में बाबा ने ही यहाँ अपना पहला आश्रम बनाया, इसके बाद निकटवर्ती
भूमियाधार सहित वृन्दावन, लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, बद्रीनाथ, हनुमानचट्टी आदि स्थानों में कुल २२ आश्रम स्थापित किये। 
महाप्रयाण : कहते हैं कि बाबा जी ९ सितम्बर १९७३  को कैंची से आगरा के लिए लौटे थे, जिसके दो दिन बाद ही समय बाद इसी वर्ष अनन्त चतुर्दशी के दिन ११  सितम्बर को वृन्दावन में उन्होंने महाप्रयाण किया। 
अंत मैं आपसे भी यही  कहूंगा कि आप जब कभी नैनीताल आए तो नीम करौली बाबा का दर्शन जरूर करें पता नहीं कब बाबा की कृपा आप पर भी हो जाए और आपकी  इच्छा पूरी हो जाए। 









डॉ. नवीन जोशी 
नैनीताल. 

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 पृष्ठ.८.शुभकामनाएं नए साल की .    
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wishing you a very happy healthy New Year 2022.

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Credits.Page.9 
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Patron.
D.S.P. ( Retd.) Raj Kumar Karan.
D.S.P. ( Retd.) Vijay Shankar
Dr. Shibli Nomani . D.S.P. Biharsharif.
Vinod Kumar. D.S.P. Biharsharif.
Dr. Raj Kishore Prasad. Sr. Consultant Orthopaedician.
Col. Satish Kumar Sinha. Retd. Hyderabad.
Anoop Kumar Sinha. Entrepreneur. New Delhi.
Dr. Prashant. Health Officer Gujrat.
Dr. Bhwana. Prof. Department of Geography.
Dr. Suniti Sinha. M.B.B.S. M.S.( OBS Gyn.)
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Legal Umbrella.
Sarsij Naynam (Advocate. High Court New Delhi)
Rajnish Kumar (Advocate. Patna High Court)
Ravi Raman ( Advocate)
Dinesh Kumar ( Advocate)
Sushil Kumar ( Advocate)
Seema Kumari ( Advocate)
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Clips Editors. 
Manvendra Kumar. Live India News 24.
Kumar Saurabh. Public Vibe
Er. Shiv Kumar. Reporter. India TV 
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Stringers. Abroad
 Shilpi Lal.USA.
Rishi Kishore. Canada.
Kunal Sinha. Kubait.
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Visitors.
Kumar Aashish. S.P. Kishanganj
Satya Prakash Mishra. S.P
Anil Kumar Jain. Colummnist. Ajmer
Anshima Singh. Educationist.
Dr. Shyam Narayan. MD. Physician
Dr. Ajay Kumar. Eye Specialist.
Dr. Faizal. M.B.B.S. Health Officer.
Dr. Arvind Kumar. Prof. HOD Botany. TNV Bhagalpur.
Dr. Tejpal Singh. Prof. Nainital.
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Photo Gallery.Page.10. 
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 Editor.
@ Ashok Karan.


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unforgettable moment.
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beauty of a famous hill station Auli : Punit Mumbai.

a child enjoying snow skiing at Auli : photo Punit Mumbai.

a scenic beauty of Auli Joshi Math : photo Punit. Mumbai

औली के दिलक़श नजारें : फोटो सुबोध राणा. 

present snowfall at evening in Mussoorie : photo Sunil Arora.

our patron Chiranjeev Nath Sinha. A.D.S.P Lucknow. receiving a memento from Hon'ble Chief Minister Yogi


a fresh snowfall at Shimla : photo Archana Phull.

present snowfall at morning in Nainital : photo Navin Joshi.


sun setting at Darjeeling : photo Priya.


todays view of the Mall in Mussoorie : photo Sunil Arora.

 Mussoorie at present : photo Sunil Arora.

snow view from Camel's Back Mussoorie : photo Sunil Arora.


Kuwait City at New Year Celebration : photo Kunal  
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Page11.Video News Clipping.
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a news report of snowfall from Mussoorie Hills : Sunil Arora.

a news report from Auli Hills : Subodh Rana

Report from Girnar Hills, Junagarh Gujarat : Dr. Prashant.

a snowfall report from Shimla : Archana Phull.

A street Singer performance news clipping at Naina Devi Mandir. Dr. Navin. 
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Page11.News Clipping.
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औली के नजारें  फ़ोटो  सुबोध राणा.

औली / सुबोध राणा. उत्तराखंड का जन्नत समझे  जाने वाला २९०९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित चमोली जिले की प्रसिद्ध सैरग़ाह औली विश्व में  अपनी नैसर्गिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं जहाँ लगातार पिछले दो तीन दिनों से लगातार बर्फबारी हो रही है। और फ़िलहाल मैं औली में ही हूँ। 
मैं अपने  जिम कॉर्बेट से ऋषभ तोमर एवं उनकी वाइफ की प्री वेडिंग की  शूटिंग के लिए मैं यहाँ आया था । आकर लगता हैं जैसे हम सभी जन्नत में पहुंच गए हैं। मेरे साथ  शहर दर शहर से आए सैलानियों की काफ़ी तादाद है। लोग औली की ओर रवाना हो रहे हैं या कहें आ रहें हैं। सैलानी राजस्थान , दिल्ली , हरियाणा, पंजाब और देहरादून तथा आसपास के सभी क्षेत्रों से यहाँ की बर्फवारी का आनंद लेने के लिए पहुंच रहें  हैं। 
पूछने पर अपनी वाइफ के साथ अपनी प्री वेडिंग की  शूटिंग के लिए इस बर्फबारी में रामनगर से आए एक सैलानी ऋषभ तोमर ने कहा कि, ' वह अत्यंत प्रसन्न हैं। वह रामनगर के जिम कॉर्बेट से अपनी वाइफ के साथ अपनी प्री वेडिंग की  शूटिंग के लिए यहाँ औली आए हुए हैं। थोड़ा  कोविड को लेकर चिंता थी लेकिन यहाँ  कोरोना गाइड लाइन्स नियमों की कड़ी सुरक्षा को देखकर अच्छा लगा। यहाँ  कोविड प्रोटोकॉल को पालन करने के भी  कड़े इंतजामात  किए गए हैं। यह हम सबों के लिए एक अच्छी बात है। '  और यहां के अन्य टूरिस्ट जॉन ने बातचीत के सिलसिले में बतलाया कि, यहां पर सैलानियों के लिए उचित व्यवस्था की है , खाने पीने से लेकर रहने तक कि यहां पर यथेष्ट  व्यवस्था है। जैसे कि पर्याप्त संख्या में  पर्यटकों के लिए गेस्ट हाउस , होटल , रूम्स , कैंप उपलब्ध हैं। आप पूरे इत्मीनान के साथ  बर्फबारी का आनंद उठा सकते हैं।  
मैंने देखा रोप वे की चेयर कार लिफ़्ट की सेवा भी निरंतर जारी थी । 

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Page13.You Said it.आपने कहा.
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आपने कहा.१ 


 हो हर्ष नया उत्कर्ष नया.

हो हर्ष नया उत्कर्ष नया, हर सपने का स्पर्श नया,
भारत मां के हर वासी का, नित नया रहे ये वर्ष नया.

माथे माँ की बिंदी भी, और साथ पिता का बना रहे,
नित शीश तान कर भारत भी, दुश्मन के आगे तना रहे.

हर निर्धन को रोटी मिले, और दुखयारी को धोती हो,
सत्ता में बैठे कांप उठें, जब कहीं आंख कोई रोती हो.

भाई से भाई लड़े नहीं, मज़हब की कभी लड़ाई न हो,
जो लाचार गरीब रहें, उनको भी मुफ्त दवाई हो.

बच्चों का हित जो बना सकें, चहुंओर वही विद्यालय हों,
संस्कार उन्हें भी मिले वही, कि बंद सभी वृद्धालय हों.

©️®️ अनुपम चौहान. 🖋️ 
संपादक, समर सलिल पत्रिका. लखनऊ
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आपने कहा.२ 
 
हँसते गाते वर्ष बीत जाए.


मंगलमय हो ,यह नववर्ष, 
उम्मीदों का हो चरमोत्कर्ष ,
आशा के अनगिनत दीप जलाकर ,
नववर्ष मनाएं ,नववर्ष मनाएं.



बीते साल की कड़वाहट मिटाकर ,
 दिल पर से कुछ बोझ हटाकर ,
थोड़ा हंस के और मुस्कुराकर,
बगिया में सुन्दर फूल खिलाएं ,
नववर्ष मनाएं ,नववर्ष मनाएं. 
रहें स्वस्थ और खिलखिलाएं,
हो पूरी आपकी हर कामनाएं,
ईश्वर भी ऐसी कृपा बरसाए,
हँसते गाते वर्ष बीत जाए,
नववर्ष मनाएं , नववर्ष मनाएं.

नीलम पांडेय.
वाराणसी.
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देखें आपने कहा.३ 
 

अंधेरे घरों में रौशनी का इन्तजाम करते हैं.

आओ मिलकर कुछ नया आगाज करते हैं,
अंधेरे घरों में रौशनी का इन्तजाम करते हैं.

जो गया है जमीनें गारत पर फना होना है,
जो जिन्दा हैं उनके जीने का सामान करतें हैं.
 
गुजरते वक्त की भी आदमी की तरह अहमियत है,
जो नया आता है तो उसका भी इस्तकबाल करते हैं.

वक्त भी इन्सानों  की तरह फितरत बदलता रहता है,
जो वक्त सामने खड़ा है * अनीश उसी के साथ चलते हैं.

अरूण सिन्हा,
दुमका, झारखण्ड.





Comments

  1. It always remains a worth reading blog page. Thanks a lot to the team of editors of this blog page.

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  3. It's a very interesting and beautiful blog magazine page.
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  4. A true information about Swami Vivekananda.

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  6. कुंदन की कविता कुंदन- सा सा भाव।वाह भाई वाह । बहुत अच्छा।

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  7. My words don' t be enough....They make me think deep about every thing.such writing inspire me, most refreshing Thanx a lot for sending me..

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  8. Too good,nicely reports are compiled.

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