Jyot Se Jyot Jagate Chalo. Deepawali.
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Jyot Se Jyot Jagate Chalo. Deepawali.
A Complete Cultural Account over Diwali.
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हिंदी अनुभाग. पावापुरी की दीपावली .पृष्ठ ५.१ आलेख
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पावापुरी की दीपावली : जैनियों के लिए महावीर स्वामी के निर्वाण का उत्सव .नालन्दा
आलेख :
डॉ. मधुप रमण / पावापुरी. पिछले दिनों की बात है। महीना अक्टूबर का ही था । महीना के अंतिम दिनों में हमलोग यू हीं स्थानीय जगहों के भ्रमण पर थे। हमारे साथ मेरे मित्र बैंक मैनेजर श्याम थे जो गाड़ी चला रहे थे । सुबह की वेला में अचानक हमलोगों का मन कर गया कि कि दीपावली के पहले पावापुरी चलते हैं। नौ किलोमीटर के फासले तय करने के लिए हमने अपनी गाड़ी पटना - रांची राष्ट्रीय मार्ग की तरफ़ मोड़ दी। बिहारशरीफ़ से आठ, नौ किलोमीटर की दूरी पर ही तो हैं पावापुरी। महावीर स्वामी का निर्वाणस्थल। दीपावली में ही तो देश विदेश के जैनियों की भीड़ हमारे पावापुरी में लगती हैं ना।
हम एकाध घंटे के भीतर ही जल मंदिर पहुंच चुके थे। वहां कुछेक पर्यटक राजस्थान के दिखे। पूछने पर पता चला जैनी ही थे।
झील की सतह पर तिरोहित होते हुए सूरज की किरणें तिर रहीं थी । पानी की सतह पर लालिमा बिखर कर लगभग मिल गयी थी। या कहें पसर गई थी हमलोग नालन्दा अवस्थित कुण्डलपुर से महावीर की जन्म तीर्थ भूमि देख कर लौट रहें थे। और अब २४ वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के निर्वाण स्थल के समीप थे।
तालाब कुछ सौंदर्य विहीन, वीरान ,उजड़ा दिख रहा था । पानी नहीं के बराबर था । घांस पतवार से जल मंदिर का तालाब भरा पड़ा था। कमल की डंटलें पानी से ऊपर दिख रहीं थी। मछलियां तिरती नहीं दिख रहीं थी। अन्यथा बरसात के दिनों में जब तालाब में पानी होता था तो ढ़ेर सारी मछलियां सतह पर दिख जाती थी। बहुत दिनों बाद हम जल मंदिर आए थे।
इतिहास : जैन धर्म मानने वालों के अनुसार २४ वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने इसी स्थल पर निर्वाण प्राप्तकिया था। जैन धर्म के मतालम्बियों के अनुसार २४ वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण स्थल इसी पुरी गांव में हुआ था । ऐसा प्रतीत होता है इस निर्वाण स्थल के मुख्य स्थान से जैन श्रद्धालुओं द्वारा चारों तरफ मिट्टी उठाने का क्रम निरंतर जारी ही रहा जिससे कालांतर में एक तालाब का निर्माण हो गया था। बाद में बीच में छोटा सा मगर आकर्षक मंदिर का निर्माण हो गया। स्वर्ण मंदिर की तरह जल के मध्य बने इस मंदिर को जल मंदिर कहा जाता है। प्रवेश द्वार से ही एक पैदल मार्ग बना हुआ हैं जो तालाब के मध्य में बने एक चबूतरें से जुड़ता हैं। और इसी समतल, आयताकार चबूतरें पर सफ़ेद संगमरमर से बना है महावीर स्वामी का मंदिर।
दिगम्बर जैन मतावादियों के अनुसार इस स्थल पर ही महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था परंतु श्वेतांबर जैन मतावादी पुरी गांव के मंदिर को ही महावीर स्वामी का स्वर्ग आरोहण का स्थल मानते हैं। जल मंदिर के गर्भगृह में ही भगवान महावीर स्वामी के पैर संगमरमर पर अंकित है जो जैन तीर्थयात्रियों के लिए बड़ा ही पूज्य है।
आगे पढ़ें गतांक से.
दीपावली का पवित्र दिवस : जब हम सुबह पावापुरी पहुंचे तो हमने देखा महावीर स्वामी को रथों में विराजमान कर जल मंदिर ले जाने की तैयारी की जा रही थी। यहां आए तब मैने अनुभूत किया भगवान महावीर का निर्वाण महोत्सव या कहें दीपावली पर्व जैन धर्मावलंबियों द्वारा कोरोना प्रोटोकॉल कॉल का पालन करते हुए बड़ी सादगी के साथ मनाया जा रहा था। इस पवित्र कार्यक्रम में लगभग तीन सौ के आसपास या कहें कुछ ज्यादा ही होंगे मुंबई ,गुजरात ,राजस्थान जबलपुर ,इंदौर ,मध्य प्रदेश से जैन धर्मावलंबी श्रद्धालु यहां शामिल होने आए हुए थे।
बताते चले दीपावली पर्व के दिन ही श्री जैन श्वेतांबर भंडार तीर्थ पावापुरी ट्रस्ट द्वारा भगवान महावीर के निर्वाण लड्डू की बोली लगाई जाती है। इस निर्वाण लड्डू की बोली लगाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या आती है।
प्रातः काल से ही मंदिर परिसर के आगे श्रद्धालुओं की भीड़ जमनी शुरू हो गयी थी । लड्डू की बोली की प्रक्रिया २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर के निर्वाण स्थल मंदिर में सुबह ४ बजे से ही लगनी शुरू हो थी । सभी जैन श्रद्धालु रात में जल मंदिर परिसर में निर्वाण जाप करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस लड्डू की बोली लगाकर जो पहला चढ़ावा करते हैं वह अपने आप को धन्य मानते हैं उनका जीवन सफल हो जाता है ।
अंततः हमने देखा के देश के विभिन्न प्रांतों से आए करीब तीन सौ के आसपास इकट्ठे हुए जैन धर्मावलम्बियों में आंध्र प्रदेश के तिलक चंद्र जैन को पावापुरी में ५ लाख की बोली लगाकर लड्डू चढ़ाने का यश प्राप्त हुआ।
आखिर में यह सवाल क्यों मनाते हैं दीपावली जैन धर्मावलम्बी ? जवाब है दीपावली के दिन ही महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था। उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या की रात थी जब भगवान महावीर स्वामी ने अपने शरीर त्यागे थे। महावीर स्वामी ने मोक्ष प्राप्त करने से पहले अपने शिष्यों को आखिर उपदेश दिया था जिसे हम उत्तराध्ययन के नाम से जानते हैं । आधी रात को के नाम से जाना जाता है वहां मौजूद जैन धर्मावलंबी ने दीपक जलाकर रोशनी के लिए खुशियां मनाते हैं और जैन धर्मावलंबी के लिए यह पर्व त्याग और तपस्या का है इसीलिए इस दिवस को उनके त्याग और तपस्या की याद करते हैं मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन करते हुए दीप जलाते हैं.
सह लेखिका. डॉ.भावना
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हमारे जैन तीर्थ - सिद्ध क्षेत्र यात्रा भगवान महावीर की निर्वाण स्थली - पावापुरी.
पटना से यहाॅं की दूरी मात्र ९२ किमी है। संयोग था कि २५४४ वें निर्वाण महोत्सव यानी वर्ष २०१८ की दीपावली पर मुझे इस निर्माण भूमि की यात्रा का अवसर मिला। पटना पोस्टिंग थी तो सपरिवार पावापुरी जाने का प्रोग्राम बन गया। सो सपरिवार निर्वाण मोदक (लड्डू) चढ़ाने का सौभाग्य मिला। वास्तव में यह एक सुखद क्षण था। हम पटना से सवेरे करीब ६ बजे रवाना हुए। डेढ़ घंटे की यात्रा के बाद हमारी गाड़ी पावापुरी थी। यहाॅं सवेरे निर्वाण मोदक चढ़ाकर एक आत्मिक सुख की अनुभूति हुई। हालांकि यहाॅं कमेटी द्वारा दिगम्बर सम्प्रदाय के लड्डू ( मोदक ) चढ़ाने का कार्यक्रम सवेरे ४ बजे ही आरम्भ हो गया था, जिसमें कोठी से रथ यात्रा के साथ प्रभु की सवारी जल मंदिर आई और तत्पश्चात् उषा काल में यहाॅं मोदक चढ़ाया गया। साढ़े ५ बजे भगवान महावीर की अंतिम देशना स्थली पर मोदक चढ़ाया गया और वापस आकर साढ़े छः बजे कोठी मंदिर में मोदक चढ़ाने का कार्यक्रम रहा।
खैर, आज चरण छतरी की छठा कुछ रंगीनियाॅं ली हुई थी। वैसे आम दिनों में नीली-हरी झील और नीले आसमानी कैनवास के बीच श्वेत संगमरमरी ताज को मात देती हुई दिखती है, किंतु निर्वाणोत्सव के उपलक्ष्य में रंगीन चुनरियों से छतरी को दुल्हन की तरह सजाया हुआ था। सभी पिलरों, कंगुरों व मेहराबों पर रंगीन चुनरियाॅं और झल्लर लिपटी थी, जिससे छतरी की छठा देखते ही बनती थी।
जल के बीच पक्षियों का कलरव गूॅंज रहा था तो कहीं पर चिड़ियाॅंऐं, जलमुर्गी, खरीम, छोटा सिल्ली, खटोई, गुरगुर्श, तिदारी आदि विभिन्न प्रजाति के पक्षी पानी के बीच अटखेलियाॅं कर रहे थे। जल मंदिर का यह सरोवर जीवो और जिने दो का संदेश देता प्रतीत हो रहा था। कुछ बच्चे मछलियों को दाना खिलाने का लुत्फ ले रहे थे। झील में कमल के बड़े-बड़े पत्तों के बीच कमल के खिले फूल बेहद सुहावने थे। बेटे अमन और बिटिया अंजलि तो इस सुहावनी प्रकृति में ही खो गऐ। कभी फोटोग्राफी में मशगूल तो कभी पक्षियों की क्रीड़ा में मंत्रमुग्ध थे!
जलमंदिर का निर्माण : जहाॅं तक जल मंदिर की बात है तो इतिहास के अनुसार ५२७ ईसा पूर्व कार्तिक कृष्णा अमावस्या को जैन धर्म में २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की निर्वाण प्राप्ति यहीं हुई थी। इसी भूमि पर देवताओं द्वारा उनका अंतिम संस्कार किया गया, जिसमें अपार श्रृद्धालुओं ने शिरकत की। श्रृद्धा के चलते अनुयायियों ने भगवान की भस्मी को ललाट पर लगाया तो कुछ अपने साथ भी ले गऐ। चुटकी-चुटकी राख (भस्म) उठते-उठते दाह-संस्कार स्थल पर गढ्ढा क्या तालाब बन गया।
बाद में इसी तालाब पर राजा नन्दीवर्धन ने एक सुंदर मंदिर बनवा कर यहाॅं चरण पादुकाऐं स्थापित कराई, जो ‘ जल मंदिर ’ के नाम से जाना गया। दायिनी ओर गौतम गणधर व बांयी ओर सुधर्मा गणधर की चरण पादुकाऐं स्थापित है। इस सरोवर की लम्बाई १४५१ फीट और चैाड़ाई १२३३ फीट है। मुख्य सड़क से जल मंदिर के प्रवेश पर लाल पत्थरों की एक पोल बनी है, जिस पर नौबतखाना भी बना है। यहाॅं से करीब ६०० फुट लम्बा एक पुल है, जिससे इस चरण छतरी तक जाया जाता है। चरण छतरी टापू करीब १०४ वर्ग गज भूमि पर विकसित है।
निर्वाण मोदक चढ़ाने की परम्परा : भगवान महावीर स्वामी के निर्वाणोत्सव के उपलक्ष्य में जैनियों द्वारा प्रातः काल में निर्वाण मोदक चढ़ाने की परम्परा है। बताते हैं कि इसी निर्वाणोत्सव की खुशी में दीपावली मनाने की परम्परा आरम्भ हुई। यहाॅं दरवाजे के ऊपर लगी प्रशस्ति के अनुसार इस मंदिर का जिर्णोद्धार विक्रम संवत १९८६ में कलकत्ता निवासी पूनम चंद जी सेठिया श्वेताम्बर जैन ने करीब सवा लाख रूपये की लागत से करवाया। चरण छतरी के चारों कोनों में एक-एक छोटी छतरी ( देवरिया ) और बनी है, जिनमें सोलह सती जी महाराज, दादा गुरूदेव श्री जिनदत्तसुरी जी, श्री दिपविजय महाराज व ग्यारह गणधरों के चरण स्थापित है।
उल्लेखनीय है कि इस चरण छतरी पर भगवान महावीर स्वामी के २५०० वें निर्वाण महोत्सव के उपलक्ष्य में १३ नवम्बर, १९७४ को २५ पैसे मूल्य के डाक टिकट भी जारी हो चुके है।
देखने लायक अन्य मंदिरें : पावापुरी में दिगम्बर सम्प्रदाय के २ मंदिर है, जबकि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ६ मंदिर है। मुख्य आकर्षण ‘ जल मंदिर ’ है। इसी के सामने श्वेताम्बर सम्प्रदाय का पुराना समवशरण व महावीर स्वामी जिनालय बना है।
जल मंदिर के आगे दादाबाड़ी है। यहाॅं से कुछ ही दूरी पर दिगम्बर सम्प्रदाय का बड़ा मंदिर (कोठी) है। इनके अलावा नया समवशरण गांव वाला मंदिर भी है।
श्री दिगम्बर जैन कोठी - दिगम्बर सम्प्रदाय के लिए खास है। कोठी बड़ी भव्य एवं विशाल है। प्रवेश पर यहाॅं अभी आचार्य विद्यासागरजी महाराज के संयम स्वर्ण महोत्सव के उपलक्ष्य में कीर्ति स्तम्भ का कार्य अंतिम चरण में है। भीतर कोठी में विशाल मानस्तम्भ, शिखरोंयुक्त मंदिर, धर्मशाला, कार्यालय, भोजनशाला व भगवान के भव्य दर्शन है।
मुख्य मंदिर का निर्माण सेठ मोतीचन्द्र खेमचन्द्र शोलापुर वालों ने करवाया। इसकी प्रतिष्ठा वि.सं. १९५० यानी ईस्वी सन् १८९३ में हुई। इसमें भगवान महावीर स्वामी की ३ फीट ऊॅंची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। ऊपर भी दर्शन है। जल मंदिर की भाॅंति ऊपर भगवान महावीर व उनके २ गणधरों के चरण स्थापित है, जो कि भीतर से जल मंदिर की चरण छतरी का अहसास कराते है।
दिगम्बर जैन समवशरण मंदिर - पावापुरी में प्रवेश पर है। इसे पाण्डुकशिला मंदिर भी कहते है। लौटते हुऐ हमने इस मंदिर के दर्शन किए। यहां पाण्डुक शिला के अलावा भगवान महावीर स्वामी का मंदिर है। यहाॅं भगवान की खड़गासन प्रतिमा है, जो कि करीब साढ़े ग्यारह फुट ऊॅची है। यह लाल पाषाण की है। इसकी स्थापना परम पूज्य आर्यिका १०५ ज्ञानमती माताजी के द्वारा बिहार स्टेट दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के निर्देशन में की गई। सड़क किनारे बने इस स्थल में शांति है।
यहाॅं के दर्शन करके गुणावा जो कि करीब २३ किमी के फासले पर है, के दर्शन किऐ जा सकते है। यहाॅं भगवान महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य गौतम गणधर का निर्वाण हुआ। खैर, हमारा प्रोग्राम कुंडलपुर (नालंदा) - राजगीर का था, सो हमारी गाड़ी कुंडलपुर ( २४ किमी ) की ओर बढ़ गई, किंतु जेहन में अभी भी पावापुरी की सुखद अनुभूतियों व जल मंदिर का सुंदर दृश्य तैर रहा था।
अनिल कुमार जैन.
अजमेर ( राजस्थान )
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सज गया दीपावली का बाजार हल्द्वानी नैनीताल में .
दीपावली में नैनादेवी मंदिर ,नैनीताल की सजावट
हल्द्वानी / रवि शंकर शर्मा. दीपावली की आहट के साथ ही लोगों के मन मस्तिष्क तरंगित हो उठे हैं। हल्द्वानी से लेकर रामनगर तथा लालकुआं से लेकर कालाढूंगी क्षेत्र तक के बच्चों, युवा और बुजुर्गों में अभी से विशेष उत्साह देखा जा रहा है। इसका कारण भी है, क्योंकि पिछले साल कोविड संक्रमण के बाद इस बार थोड़ी राहत है। हां हल्द्वानी, रामनगर और नैनीताल आने से पहले दिल्ली व अन्य स्थानों के पर्यटक इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि इन स्थानों के लिए धनतेरस से ही रूट डायवर्जन प्लान लागू हो जाएगा, जो कि धनतेरस तक चलेगा।
दीपावली के लिए इलेक्ट्रॉनिक अप्लायंसेज तथा ज्वेलर्स की दुकानें झालरों की विशेष साज-सज्जा के साथ खरीदारों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। सभी ने डिस्काउंट के बड़े-बड़े होर्डिंग के साथ ही अपने प्रतिष्ठानों के समक्ष बड़े-बड़े बोर्ड लगाकर उन पर 30 से 50% तक की छूट का प्रचार करना शुरू कर दिया है। वहीं कार डीलरों तथा गारमेंट्स उद्योग ने भी विशेष छूट के आफर ग्राहकों के लिए प्रस्तुत किए हैं।
दीयों के साथ ही लक्ष्मी-गणेश समेत अन्य मूर्तियों का बाजार भी शहर के बाहरी क्षेत्रों में पूरी तरह शबाब पर है। वहीं से फुटकर विक्रेता दीपक व मूर्ति आदि लेकर ठेलों के माध्यम से गली- मोहल्लों में चक्कर लगा रहे हैं। पिछले वर्ष कोरोना की महामारी के बाद मिट्टी के सामान के विक्रेताओं में विशेष उत्साह है तथा उन्हें लगता है कि इस बार उनकी दीपावली भी खूब रौनक वाली होगी।
हल्द्वानी में दिवाली की रौनक : फोटो रवि शर्मा .
प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों ने भी बैठक कर पटाखा विक्रेताओं को विशेष निर्देश दिए हैं। पटाखों की बिक्री रामलीला ग्राउंड में तीन दिन तक होगी तथा सख्त नियम-कानूनों का पालन करना होगा। इसी प्रकार दीपावली के दिन भी पटाखे छुड़ाने के लिए समय निर्धारित कर दिया गया है। पर्वों पर शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अमन कमेटियों का गठन किया गया है, जो कि नागरिकों के साथ बैठक कर विशेष हिदायतें दे रहे हैं।
अभी हाल ही में करवाचौथ व अहोई अष्टमी पर्व बड़े धूमधाम और आस्था के साथ मनाने के बाद महिलाएं भी उत्साह से दीपावली का इंतजार कर रही हैं। महिलाएं घरों की सफाई के साथ ही ड्राइंग रूम को भी विशेष रूप से सजाने में लगी हैं। खाने-पीने के सामान की भी तैयारी चल रही है। इस बार कोरोना संक्रमण में कमी होने के कारण मेहमानों की किस प्रकार अगवानी करनी है, इस पर भी डिस्कशन चल रहा है। झालरों व फूलों की मालाओं से घरों की सजावट धनतेरस से शुरू होनी है। धनतेरस पर कौन सी ज्वेलरी अथवा सिक्के खरीदने हैं, इसकी चर्चा महिलाओं में खास है। लोगों के उत्साह को देखते हुए बर्तन बाजार भी मुख्य बाजारों में सज चुके हैं और वहां भी कई प्रकार की छूट देने की घोषणा की गई है। बड़े मॉल व मेगा मार्ट में तो तमाम उत्पादों पर एक सामान फ्री देने के पेम्फलेट वितरित किए जा रहे हैं। तमाम तरह की छूट के मैसेज भी लोगों के मोबाइल पर प्रतिदिन आ रहे हैं।
फल एवं सब्जी बाजार में भी दीपावली निकट आने के साथ ही तेजी देखी जा रही है। फल व सब्जियों के दाम दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। इससे उपभोक्ताओं में मायूसी देखी जा रही है। फिर भी बाजार में तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद लोगों में खास उत्साह और उल्लास देखने में आ रहा है।
हल्द्वानी /
रवि शंकर शर्मा.
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हिंदी अनुभाग. कुमाऊं की दिवाली . पृष्ठ ५.४ आलेख
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सहयोग.
बिन पटाखे , कुमाऊं में ' च्यूड़ा बग्वाल ' के रूप में मनाई जाती थी परंपरागत दीपावली.
बिन पटाखे कुमायूं में च्यूड़ा बग्वाल के रूप में मनाई जाती थी परंपरागत दिवाली.
कुछ दशक पूर्व से ही पटाखों का प्रयोग प्राचीन लोककला ऐपण से होता है माता लक्ष्मी का स्वागत.
डिगारा शैली में बनती है महालक्ष्मी.
नैनीताल / डॉक्टर नवीन जोशी. वक्त के साथ हमारे परंपरा का त्योहार अपना स्वरूप बदलते रहते हैं उनका परंपरागत स्वरूप याद भी नहीं रहता है। आज जहां दीपावली का अर्थ रंग बिरंगी चाइनीस बल्ब की लड़ियों से घरों प्रतिष्ठानों को सजाना है महँगी से महँगी आसमानी कानफोड़ू ध्वनि युक्त आतिशबाजी से अपनी आर्थिक स्थिति का प्रदर्शन करना और अनेक जगह सामाजिक बुराई जुवे को खेल बता कर खेलने और दीपावली से पूर्व धनतेरस पर आभूषणों और गृहस्थी की महँगी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को खरीदने के अवसर रूप में जाना जाता है,ऐसा अतीत में नहीं था।
कुमायूं अंचल में खासकर दीपावली का पर्व मौसमी बदलाव के दौर में बरसात के बाद घरों को साफ सफाई कर गंदगी से मुक्त करने घरों को परंपरागत रंगोली जैसे लोककला ऐपण से सजाने तथा तेल अथवा घी के दीपक को से प्रकाशित करने का अवसर था। मूलत च्यूड़ा बग्वाल के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार पर कुमायूं में बड़ी-बूढ़ी महिलाएं नई पीढ़ी को सिर में नए धान से बने च्यूड़े रखकर आकाश की तरह ऊंची और धरती की तरह चौड़े होने जैसी शुभाशीष देती थी ।
विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद प्रकृति एवं पर्यावरण से जुड़ी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाला पूरा उत्तराखंड प्रदेश और इसका कुमायूं अंचल अतीत में धन-धान्य की दृष्टि से कमतर ही रहा है। यह आजादी के बाद तक अधिसंख्य आबादी दीपावली पर खील बताशे मोमबत्ती और तक से अनजान थी। पटाखे भी यहां बहुत देर से आए बड़े बुजुर्गों के अनुसार गांवों में दीपावली के दीए जलाने के लिए कपास की रूई भी नहीं होती थी अलबत्ता लोग नए खद्दर का कपड़ा लाते थे और उसकी कतरनों को बांटकर दीपक की बत्तियां बनाते थे.
दीपावली से पहले घरों को आज की तरह आधुनिक रंगो एक्रेलिक पेंट या डिस्टेंपर से नहीं कहीं दूर दराज के स्थानों पर मिलने वाली सफेद मिट्टी कमेट से गांवों में ही मिलने वाली बाबीला नाम की घास से बनी झाड़ू से पोता जाता था। इसे घरों को उछीटना कहते थे।
घरों के पाल फर्श गोबर युक्त लाल मिट्टी से दीवारों रोज घिसने का रिवाज़ था। दीपावली पर यह कार्य अधिक वृहद स्तर पर होता था। गैरू की जगह इसी लाल मिट्टी से दीवारों को भी नीचे से करीब आधा फीट की ऊंचाई तक रंगकर बाद में उसे सूखने पर भिगोए चावलों से पीसकर बने सफेद रंग (विस्वार ) से अंगुलियों के पोरों यानी नींबू ,नारंगी आदि की पत्तियों से बसुधारे निकाले जाते थे।
फर्श तथा खासकर द्वारों पर तथा चौकियों पर अलग-अलग विशिष्ट प्रकार के लेखनों से लक्ष्मी चौकी व अन्य आकृतियां अपन के रूप में उकेरी जाती थी जो कि अब प्रिंटेड स्वरूप में विश्व भर में पहचानी जाने लगी है।
द्वार के बाहर आंगन तक विस्वार में हाथों की मुट्ठी बांधकर छाप लगाते हुए माता लक्ष्मी के घर की ओर आते हुए पदचिन्ह इस विश्वास के साथ उकेरे जाते थे कि माता इन्हीं पद चिन्हों पर कदम रखती हुई भीतर को आएगी।
दीपावली के ही महीने कार्तिक मास में द्वितीय बग्वाल मनाने की परंपरा भी थी। इसके तहत इसी दौरान पककर तैयार होने वाले नए धान को भिगोकर एवं भूनकर तक तत्काल घर की ओखल में उठकर च्यूड़े बनाए जाते थे और इन च्यूड़े को बड़ी बुजुर्ग महिलाएं अपनी नई पीढ़ी के पांव छूकर शुरू करते हुए घुटनों एवं कंधों से होते हुए सिर में रखते थे।
साथ में आकाश की तरह ऊंचे और धरती की तरह चौड़े होने तथा इस दिन को हर वर्ष सुख पूर्व जीने की शुभ आशीष देते हुए कहती थी , ' लाख हरयाव लाख बग्वाल अगाश जस उच्च धरती जस चौड़ जी रिया जागि रया यो दिन यो मास भेटने रया '
इसी दौरान गोवर्धन पड़वा पर घरेलू पशुओं को नहला धुला कर उस पर गोलाकार गिलास जैसी वस्तुओं से सफेद बिस्वार के गोल ठप्पे लगाए जाते थे। उनके सींघों को घर के सदस्यों की तरह सम्मान देते हुए तेल से मला जाता था। छोटी दीवाली से बूढ़ी दिवाली तक तीन स्तर पर मनाई जाती है.....
नैनीताल , ३ नवम्बर
डॉक्टर नवीन जोशी.
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ये जो दिए जल रहे हैं.
अनेक अंतहीन इच्छाओं-प्रतीक्षाओं के बीच,
ये जो दिए जल रहे हैं ,
अमावस की घोर अंधियारी रात्रि में,
दीपकों के ज्योत विहस उठें ।
टिमटिमाती लौ में,
हो रहे हैं प्रदीप्त,
आधे -अधूरे स्वप्न उन हाथों के,
जिनका स्पर्श पा ये सांचे में ढले थे।
मलिन स्मित उन अधरों की भी,
जीवनाचाक ने मुस्कान जिनकी ,
अपनी चकरी में घूमा डाली।
इनकी टिमटिमाती लौ में,
प्रदीप्त हो रही है,
द्वार पर बनाई हुई रंगोली की आभा,
जिसमें रमणी ने अपने नेह रंग,
चुटकियों के पोरों से बिखेर दिया,
रंग- आकृति के सौन्दर्य धरा पर।
इनकी टिमटिमाती लौ में,
प्रदीप्त हो रहे हैं,
आस्था के वो बीज,
जिसे माटी की मूरतों में बोकर ,
डगमगाते विश्वास को भी हल के नोक तले दबाकर,
बद्ध करों ने फुसफुसाए हैं प्रार्थना के दो बोल।
इनकी टिमटिमाती लौ में,
प्रदीप्त हो रही हैं,
गौरवपूर्ण अश्रुजल से सींचित,
अमर प्रतीक्षाएँ वीर-वधुओं की ।
तो अनेक अंतहीन प्रतीक्षाएं भी,
जो कई बार छली जाती हैं,
जैसे अभिशप्त हो,
अपूर्णता के लिए,
पर फिर भी खुद को जीवंत रखती हैं,
किसी छद्म विश्वास के साथ।
टिमटिमाते लौ ने समो लिया
उल्लास- हर्ष के प्रकाश को,
तो विषाद-उच्छावास के अंधेरे को भी।
पूर्णता, प्रसन्नता, आमोद ही नहीं,
संघर्ष, व्यथा के भी मौन गीत गाती हैं ये।
विविध जीवनाराग की बाती,
अलग-अलग देहरी पर,
टिमटिमाने का धर्म,
निभा रही हैैं।
रीता रानी.
जमशेदपुर, झारखण्ड.
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Page 7. Photo Gallery.
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Supported by.
दिए जलते हैं दीपावली में : कोलाज विदिशा . बिहारशरीफ़ |
पावापुरी पहुंचे जैन श्रद्धालू : फ़ोटो अनिल कुमार जैन ,अजमेर .दीपावली की पूर्व संध्या ,पावापुरी में : फोटो नमन
|
मिट्टी के दिये जलाते जवान : डॉ. नवीन जोशी नैनीताल. buying jwelleries at branded showroom in Dhanteras : photo Dr. Madhup |
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पेज ८.आस पास.संक्षिप्त समाचार
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कुणाल / यू ए ई. कहते हैं ना सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा । यू ए ई में मैं विगत २ सालों से रह रहा हूं ,व्यस्तता इतनी है कि दम मारने की भी फुर्सत नहीं मिलती है। लेकिन त्योहारों में अपने वतन की याद बहुत आती है। आखिर हम हिंदुस्तानियों के लिए तो मानना पड़ेगा कि हम हिंदुस्तानी बड़े सजीव होते हैं। हमारे दिलों में हमारी परम्पराएं धड़कती हैं। हम दिल से हिदुस्तानी होते है। मैं भारत में झारखण्ड से हूँ। रांची मेरा आशियाना है। अपने घर से बाहर हूँ। परदेश में रहते हुए अपने लोगों की याद बहुत आती है ख़ासकर त्योहारों में तो एक अजीब सा ख़ालीपन घर कर जाता है। घर से बाहर आप अपने वतन की याद करेंगे यह स्वाभाविक ही होगा।
भारत से समय में ढाई घंटा पीछे चलने वाले यू ए ई में दिवाली की शाम कुछ ज्यादा नहीं होती है । दिवाली की शाम भी आम दिनों की तरह ही होती हैं। उन जगहों पर सजावट दिखेगी जहाँ भारतीय रहते हैं।
शाम में ऑफिस से लौटने के पश्चात मैंने अपने पुश्तैनी घर की दिवाली की परंपरा को याद किया ,लक्ष्मी जी की आराधना की , धूपबत्ती दिखाई खुद मिठाई भी खा ली। और आस - पड़ोस में दीपावली की रौनक को देखने के लिए निकल पड़ा जो देखा , मैंने आपको बताला रहा हूँ ।
बालकनी में आप लड़ियों की सजावट भी देख सकते हैं , उनकी बालकनी से सजावट देखने के क्रम में ही आप अनुमान लगा सकते हैं कि वहां कोई न कोई हिंदुस्तानी रहता ही है जो अपनी सभ्यता और संस्कृति से असीम लगाव रखता हैं ,और परदेश में अपनी विरासत को महफ़ूज रखना चाहता है ।
ज्यादा पटाखों के शोर और रौशनी तो नहीं देखी जा सकती है लेकिन हा माल और दुकानों में हैप्पी दिवाली के बोर्डिंग और होर्डिंग्स दिख जाएंगे और वहां पर से आप अपनों के लिए चॉकलेट और स्वीट्स खरीद सकते हैं और गिफ़्ट दे सकते हैं ।
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Page 10 .You Said It.
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It's a great cultural page , every body may enjoy reading this blog page.
ReplyDeleteDipawali a Unique Festival of Lights and an important part of our culture and heritage.
ReplyDeleteThis types of blog post made people Vigilant towards their culture and heritage.
And after reading this post in morning my day has become better.
Thanks a lot 🙏🙏
सुन्दर
ReplyDeleteIt is a good information
ReplyDeleteबहुत सुंदर कवरेज ...
ReplyDeleteपावापुरी आलेख भी जानकारियों से भरा सामयिक आलेख ...
बहुत बहुत बधाई ... 💐🎂🌸💥🎶💐❇️🍬🌿💞💞
It is a too much fabulous cultural page.It is a worth reading page
ReplyDeleteFabulous 🙏🙏
ReplyDeleteIt's a very greatest coverage every body should visit this.
ReplyDeleteIt's a very nice blog sir. You are my inspiration Sir!
ReplyDeleteWish you Happy Diwali
It is nice to read your report as words used and sentiments expressed are testimonies of the level of your cultural taste and love for creative writing.I thanked the whole team for this
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteToo good to be read about festivity and depicting beautifully the heritage of Nalanda
ReplyDeletePawapuri ka alekh bahut hi rochak aur Gyan vardhak hai uske sath hi desh ke bibhinn hisso me diwali ka alag alag andaj mansik yatra sa karwa de rha
ReplyDeleteVery interesting
Very nice
ReplyDeleteIt is a nice worth reading paage
ReplyDeleteIt is a nice worth reading page.Thanks a lot to the team of media house.
ReplyDeleteBhut badiya nice
ReplyDeleteAwesome content
ReplyDeleteNice
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