Hindi : Mathe Ki Bindi


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Hindi : Mathe Ki Bindi.
कृण्वन्तो विश्वमार्यम. 
In association with.
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Hindi : Mathe Ki Bindi.
*

 
आवरण पृष्ठ. ० 
*
प्रस्तुति : त्रिशक्ति. 

फोर स्क्वायर होटल : रांची : समर्थित : आवरण पृष्ठ : विषय सूची :मार्स मिडिया ऐड : नई दिल्ली.

*
पत्रिका / अनुभाग.
ब्लॉग मैगज़ीन पेज.
हिंदी.

विषय सूची.
आवरण पृष्ठ : ०.
विषय सूची : पृष्ठ :०.
शक्ति विचार धारा : पृष्ठ : १.
सम्पादकीय : पृष्ठ : २.
सम्पादकीय : शक्ति गद्य संग्रहआलेख : तारे जमीन पर : पृष्ठ ::३.
सम्पादकीय : शक्ति पद्य संग्रह आलेख : आकाश दीप : पृष्ठ :४.
हिंदी माथे की बिंदी : शक्ति फोटो दीर्घा : पृष्ठ :५.
 हिंदी माथे की बिंदी : शक्ति कला दीर्घा : पृष्ठ ६.
हिंदी माथे की बिंदी : शक्ति :समाचार दृश्यम : पृष्ठ :७.
हिंदी माथे की बिंदी : शक्ति : लघु फिल्में : दृश्यम : पृष्ठ :८.
आपने कहा : दिन विशेष : पृष्ठ :९.

*
हम सभी ' देव शक्ति ' मीडिया परिवार की
तरफ़ से १४ सितम्बर हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर
अनंत शिव शक्ति शुभकामनायें
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हिंदी बिंदी शक्ति विचार : पृष्ठ : ०
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मान सम्मान की तुम्हारी शक्ति 
भाल दिव्य पर सजी मैं बिंदी
रच बस लूँ तेरे सुन्दर भावों में 
मन की भाषा मैं प्यारी तेरी हिंदी
डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया
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सम्पादकीय : शक्ति : प्रस्तुति. पृष्ठ : २.
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संपादन
*
*.
प्रधान सम्पादिका


शक्ति. शालिनी रेनू नीलम.
जयपुर डेस्क
*
कार्यकारी सम्पादिका
*

डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया
दार्जलिंग डेस्क
*
सहायक कार्यकारी सम्पादिका
*

शक्ति.
मानसी सीमा डॉ.अनु
नैनीताल डेस्क.


*

शक्ति : पूजा  आर्य डॉ राजीव रंजन : शिशु रोग विशेषज्ञ .भैंसासुर रांची रोड. बिहार शरीफ.समर्थित
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सम्पादकीय : शक्ति. गद्य संग्रहआलेख : तारे जमीन पर : पृष्ठ :३.
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संपादन.
शक्ति.रीता क्षमा प्रीति

शक्ति. समूह आलेख : ०
हिंदी अपनाये : अंग्रेजियत से दूर हो जाए.
*
शक्ति. डॉ. सुनीता शालिनी रेनू ' शब्दमुखर '

हिंदी अपनाये : अंग्रेजियत से दूर हो जाए : हिंदी अपनाये। अंग्रेजियत से दूर हो जाए।हिंदी हमारी सभ्यता है संस्कृति है। भारतीय मानसिकता अब भी अंग्रेजियत की गुलाम है। हमें इससे निकलना पड़ेगा। हम अभी भी दूसरों को प्रभावित करने के लिए आम जीवन में अंग्रेजी का प्रयोग करते है। शर्तिया दूसरे भी आपके भाव प्रदर्शन से प्रभावित होते हैं। यह सही है। शुद्ध हिंदी भी बोलना, लिखना पढ़ना मुश्किल है जनाब। बोल के देखिए। रस है। भावना है। लगाव है।
त्रि शक्ति : डॉ. सुनीता रेनु शालिनी 
भारत वर्ष में हिंदी दिवस, जो हर साल १४ सितंबर को मनाया जाता है, भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाने की याद में आयोजित किया जाता है. इसकी शुरुआत १९५३ में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर हुई थी, जिसके बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस दिन को राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. इस दिन को मनाने का उद्देश्य हिंदी भाषा को बढ़ावा देना, उसे सम्मान देना और उसकी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ना है.
हिंदी दिवस मनाने का हमसबों का एकमात्र उद्देश्य भाषा का सम्मान हिंदी को भारतीय गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में अपनाने का स्मरण करना और उसका सम्मान करना.
सांस्कृतिक जुड़ाव के निमित मातृभाषा में सोचने, लिखने और गर्व महसूस करने से सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करना होगा हम सबों को.
प्रचार-प्रसार हिंदी भाषा को भारत के हर क्षेत्र में प्रसारित करने और उसे विश्व स्तर पर एक प्रमुख भाषा के रूप में प्रस्तुत करने के लिए जागरूकता पैदा करना होगा।
हिंदी कमजोरों की भाषा नहीं हैं : शक्ति शालिनी. जिसे कमजोर माना जाता है अक्सर उसी का दिवस भी मनाया जाता है। उदाहरणतया: हिंदी दिवस, बालिका दिवस, अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस, मजदूर दिवस, बेटी दिवस इत्यादि।
डॉ मधुप : कला : मयंक 
शक्ति व सामर्थ्य से परिपूर्ण माने जाने वाले लोगों को कोई दिवस नही मनाया जाता। क्या पुरुष दिवस, बेटा दिवस, अमीर दिवस, अंग्रेजी दिवस मनाया जाता है? नही ना ! यही तो विडम्बना है; जिन कमजोर वर्ग के लिए 365 दिन कार्य होना चाहिए, उन्हें एक ही दिन उत्सव मनाकर निपटा दिया जाता है। यूँ कहिए कि यह उनके लिए किसी सांत्वना पुरस्कार से कम नही, जिसकी प्रतीक्षा वो ३६४ दिन बड़ी बेसब्री से करते हैं।
हिंदी मेरी साँसों की लय है, रेनू ' शब्दमुखर '. मेरे शब्दों की पहचान है, मेरे अस्तित्व की धड़कन है, और मेरी आत्मा का सम्मान है। २७ वर्षों से जब-जब मैंने कलम उठाई, हिंदी ने ही मुझे अभिव्यक्ति दी, कभी आंसुओं को शब्द बना दिया, तो कभी हृदय की वेदना को गीत।
हिंदी ने ही सिखाया- कैसे सरलता में गहराई होती है,कैसे मिट्टी से जुड़कर आकाश छूते हैं। आज हिंदी दिवस पर, मैं हृदय से यही कामना करती हूँ- हम सब अपने हर संवाद, हर लेखनी, हर विचार में हिंदी की आत्मा को जिंदा रखें। क्योंकि हिंदी केवल भाषा नहीं,यह हमारी जड़ों की शक्ति और हमारे भविष्य की रोशनी है। आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
*
स्तंभ संपादन : शक्ति. रीता प्रीति क्षमा 
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा स्वाति. 



शक्ति. आलेख : १

*
शक्ति. रेनू शब्दमुखर
जयपुर 
प्रधान सम्पादिका : एम एस मीडिया ब्लॉग मैगज़ीन 

लघु कथा : हिंदी है हम 
*
कालेज के प्रांगण में चहल-पहल थी। दोस्तों के बीच बहस छिड़ी आजकल तो अंग्रेजी ही सब कुछ है,हिंदी में बात करोगे तो लोग हंसेंगे, अजय ने ठहाका लगाया।
रवि भी मुस्कुराया, ' सही कह रहे हो, हिंदी में तो कोई फ्यूचर नहीं। '
उसी शाम रवि अपने गांव पहुंचा। उसकी दादी गंभीर रूप से अस्वस्थ थीं। डॉक्टर ने दवा की पर्ची दी, पूरा विवरण अंग्रेजी में। दादी ने कांपते हाथों से पर्ची रवि को थमाते हुए पूछा, ' बेटा, ये दवा कब लेनी है? '
रवि चुप रह गया। उसे पर्ची समझने में दिक्कत हो रही थी। अंग्रेजी जानने का गर्व उस क्षण बेमानी हो गया।
दादी ने धीमे स्वर में कहा, ' बेटा, अंग्रेजी जरूरी है, पर अपनी भाषा से रिश्ता मत तोड़ना। पेड़ अगर जड़ों से कट जाए तो कितना भी हरा-भरा क्यों न हो, सूखने में देर नहीं लगती।'
रवि की आंखों में आत्मग्लानि उतर आई। उसी रात उसने सोशल मीडिया पर लिखा -
'हिंदी दिवस पर संकल्प लें कि हम अपनी भाषा का मान बढ़ाएंगे। यह सिर्फ भाषा नहीं, हमारी पहचान है। अगले दिन कॉलेज में रवि मंच पर हिंदी कविता पढ़ रहा था- ' हिंदी छोड़ोगे, तो खुद को छोड़ दोगे। '
तालियों की गूंज ने उसे एहसास दिलाया भाषा का कर्ज आज से चुकाना शुरू हुआ है।
*
स्तंभ संपादन : शक्ति. रीता प्रीति क्षमा 
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा स्वाति.  




शक्ति आलेख : २


' हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तां हमारा '

*


कवि.लेखक  : मुकेश ठाकुर. 
शक्ति : पल्लवी. 

हिंदी सिर्फ भाषा नहीं ज्ञान है, विज्ञान है, समझ है, संस्कार है :  भावों का निर्झर झरना है, जो अविरल बहता रहता है। असीमित शब्दों का गुलदस्ता है, जो विभिन्न भारतीय भाषाओं के शब्दों को स्वयं में समेटे हुए है। हम कह सकते हैं कि हिंदी अथाह सागर है, जिसमें सारी भाषाओं के शब्द मिलकर एक हो जाते हैं। हमारे हृदयगत  सारे भाव हिंदी भाषा में शब्दबद्ध हो  जीवंत और सार्थक हो जाते हैं।
आज हिंदी दिवस है। हम सभी हिंदी प्रेमियों के लिए स्वर्णिम दिन। जिस प्रकार बच्चों का लगाव अपनी मॉं से होता है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का लगाव अपनी मातृभाषा हिंदी से है। हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो संपूर्ण राष्ट्र को एक स्नेह सूत्र में बॉंधती है। अपना वतन, अपना चमन, अपनी धरती, अपनी भाषा की बात ही निराली है। वस्तुत: हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो ' निज भाषा' कहलाने के सर्वथा  उपयुक्त है।
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल.... आधुनिक हिंदी के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र की इन पंक्तियों को अक्षरशः  चरितार्थ करते हुए हम सभी हिंदी प्रेमी जन हिंदी के गौरवशाली इतिहास का सिंहावलोकन अवश्य करें।
हिंदी का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से प्रारंभ होता है। उससे पहले इस आर्य भाषा का स्वरूप क्या था, यह सब कल्पना का विषय बना हुआ है , कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। वैदिक भाषा ही प्राचीनतम हिंदी है। इस भाषा का यह दुर्भाग्य है कि युग - युग से इसका नाम परिवर्तित होता रहा है। कभी वैदिक, कभी संस्कृत , कभी प्राकृत, कभी अपभ्रंश और अब हिंदी। लोगों ने उनके परिवर्तित रूप के प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक रूप तो बताए किंतु उनका नाम नहीं बदला। वैदिक और संस्कृत हिंदी के प्राचीन रूप है, पाली , प्राकृत और अपभ्रंश उसके मध्यकालीन रूप और हिंदी उन्हीं सबका वर्तमान रूप है।
हिंद' नाम भी वस्तुत: सिंधु का प्रतिरूप है :  हिंदी का नामकरण भी बड़ा विचित्र है। हम सभी जानते हैं कि संस्कृति के विकास से ही भाषा विकसित होती है और संस्कृति के ह्रास से भाषा का भी ह्रास हो जाता है। हिंदी संस्कृत की उत्तराधिकारिणी है। हिंदी की वर्णमाला भी वही है जो संस्कृत की है। उच्चारण भी वही है जो संस्कृत का है। हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है जो ब्राह्मी का विकसित रूप है। प्रायः सभी भाषा शास्त्रियों ने हिंदी नाम का संबंध मूलतः संस्कृत शब्द ' सिंधु ' से माना है। यह शब्द नदी विशेष का वाचक था। हमारे देश का 'हिंद' नाम भी वस्तुत: सिंधु का प्रतिरूप है।
हिंदी साहित्य की सभी विधाओं का अभिकेंद्र : आज सांस्कृतिक दृष्टि से हिंदी भारत की किसी आधुनिक भाषा से कम नहीं है। हिंदी साहित्य इतना अधिक समृद्ध हो चुका है कि विश्व स्तर पर इसकी गणना समुन्नत साहित्य में की जाती है। साहित्य की सभी विधाओं-  काव्य, नाटक, एकांकी, उपन्यास , कहानी, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, निबंध, आलोचना आदि के प्रकाशन की शक्ति हिंदी में है । वस्तुतः हिंदी जीवित भाषा है। जब किसी भाषा को समस्त राष्ट्र की भाषा मान लिया जाता है तब यह राष्ट्रभाषा कहलाती है । इसी प्रकार जब कोई भाषा समग्र रूप से संपूर्ण राष्ट्र के विचार - विनिमय का माध्यम बन जाती है तो वह राष्ट्रभाषा के पद को प्राप्त होती है। हिंदी भारत भूमि से उत्पन्न भारत की राष्ट्रभाषा है क्योंकि यह संपूर्ण राष्ट्र के विचार-  विनिमय  का माध्यम है।
आइए, हम सभी इस दृढ़ संकल्प के साथ हिंदी दिवस मनाऍं कि आने वाले भविष्य में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में सांवैधानिक मान्यता दिलवाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे.....
*
स्तंभ संपादन : शक्ति. रीता प्रीति क्षमा 
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा स्वाति  


शक्ति आलेख : ३
*
हिन्दी पखवाड़ा के क्रम में 
निज भाषा उन्नति कहे सब भाषा की मूल. 
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*
*
अरुण कुमार. 
विचारक.कवि.लेखक: 
शक्ति : आरती. 

नयी दिशा और धारा : हमारी हिंदी : केवल कविताएं और साहित्य सृजन से हिन्दी का स्वरूप विराट और वैश्विक नहीं होगा,नये चिन्तन,नये आयाम,नयी दिशा और धारा देनी होगी तभी हिन्दी आधार वाली और धारदार होगी और इसके बीज घर में बच्चों के संस्कार में बोने होंगे कि वे आरम्भिक काल से ही हिन्दी की महत्ता, उपयोगिता और उपादेयता को समझ सकें।
हमारा ये भी कहना नहीं हैं कि वे अंग्रेजी या अन्य क्षेत्रीय भाषाएं न सीखें न पढ़ें न लिखें परन्तु अभिव्यक्ति का माध्यम हिन्दी को बनाएं कि हिन्दी हमारी मातृसत्तात्मक सभ्यता और संस्कृति है। यह सही है कि जो जिस क्षेत्र में निवास करते हैं,उनकी श्रेष्ठ अभिव्यक्ति वहां की क्षेत्रीय भाषा ही हो सकती है परन्तु जब सारे देश की बात होगी तो लोग हिन्दी ही अच्छी तरह बोल और समझ सकते है और इससे हमारी राष्ट्रीय पहचान भी बनती है।
हिन्दी हमारी मातृसत्तात्मक सभ्यता और संस्कृति : घर में बच्चों को सरस सहज ग्राह्य बाल साहित्य पढ़ने की आदत लगाएं कि कोई हिन्दी भाषी या क्षेत्रीय भाषा भाषी उन भाषाओं में तो निष्णात हो सकते हैं, अंग्रेजी के बड़े विद्वान भी हो सकते हैं पर वे शेक्सपियर, वर्ड्सवर्थ,किट्स,शेली टेनिसन आदि नहीं हो सकते हैं और एक यूरोपीय हिन्दी का विद्वान तो हो सकता है पर वह कालीदास, कबीर,तुलसी,सुर, भारतेन्दु, प्रेमचन्द आदि नहीं हो सकता है। इसलिए निजता की रक्षा करना हम ही अपने बच्चों को सीखा सकते हैं।
अंग्रेजी वैश्विक भाषा है, कोई दो राय नहीं लेकिन चीन,जापान, कोरिया जैसे स्वदेशी भाषा में ही विकसित और सशक्त हुए हैं। हां, तकनीकी शब्दावली के लिए अंग्रेजी हमारी विवशता हो सकती है पर इस दिशा में भी शोध और अनुसंधान हो रहे हैं कि उनके सहज और सरल विकल्प हिन्दी में खोजे जाएं और उन्हें व्यवहार में लाया जाए।
जो भरा नहीं है भावों से : इस देश में इसी देश की सभ्यता संस्कृति और राष्ट्रभाषा से ऐसा मजाक किया गया जिसपर कभी किसी की नजर नहीं गयी या गयी भी तो किसी ने उसे गंभीरता से नहीं लिया जो हमारे पतनोन्मुख होने के कारण बनें। किसी भी देश में साहित्य, विज्ञान, भौतिक, शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विकास आदि एक प्रवाहमान प्रक्रिया है, विकास कमोबेश होते रहते हैं पर जिनके कंधों पर इन सबके दायित्व होते हैं, अपेक्षाकृत उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। हम बगैर नाम लिए ही कहना चाहेंगे कि आज जिन बड़े बड़े नेताओं, राजनेताओं,शीर्ष पर बैठे लोगों को हम उद्धृत करते हैं उनकी अधिकांश रचनाएं अंग्रेजी में हैं जिनके अनुवाद आज हम हिन्दी में पढ़ते हैं। आप गुप्त जी की रचना स्वदेश को याद करें,

जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं 
वह हृदय नहीं पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं 

और स्वदेश क्या है, मातृभूमि और मातृभूमि जुड़ी हुई है मातृसत्तात्मक सभ्यता, संस्कृति और मातृभाषा से जिसके लिए पराधीन भारत से लेकर स्वतंत्र भारत में बड़े बड़े नारे दिए गए परन्तु जीवन शैली कभी देशज नहीं हो सका, हां,दो चार अपवाद हो सकते हैं।
आजादी के बाद से किसी भी सरकार ने इस विषय पर ध्यान नहीं दिया कि वैश्विक स्तर की तरह यहां उच्च कोटि के हिन्दी साहित्य को सस्ते दरों पर प्रकाशित करवाकर जन जन तक पहुंचाया जा सके ताकि हर अच्छा और सच्चा हिन्दुस्तानी अपनी सभ्यता, संस्कृति और साहित्य से परिचित हो सके। 
आज जितने बड़े बड़े प्रकाशक हैं,वे हिन्दी साहित्य का प्रचार प्रसार करने के लिए, व्यवसाय करने के लिए हैं और करें भी क्यों नहीं कि उन्होंने पूंजी लगाई है। 
निज भाषा उन्नति कहे सब भाषा की मूल  : आज कितने हिन्दी भाषा भाषियों के घर में भारतीय आध्यात्मिक और दर्शन से सम्बंधित ग्रन्थ उपलब्ध हैं, कितने घरों में वैदिक, औपनिषदिक, षट्दर्शन आदि से सम्बन्धित ग्रन्थ देखे जा सकते हैं, हिन्दी साहित्य के उच्च कोटि के काव्य,उपन्यास,नाटक इतिहास, दर्शन, संस्मरण,आदि की इतनी कीमत है कि किसी गरीब के घर की महीने भर की उसमें सब्जियां आ सकती है। हम सिर्फ हिन्दी के साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों को छोड़ दें तो इस  दिवस के लिए कुछ नहीं बच जाएगा। आज भी न्यायालयों की बहस सुनवाई और फैसले अंग्रेजी में बदस्तूर जारी हैं जो आम जन की पहूंच से बाहर है और यही वजह है कि हिन्दी दिवस एक औपचारिक दिवस बन कर रह गया है। कुछ हिन्दी प्रेमी और साहित्यजीवी एक पखवाड़े तक इसे जिन्दा रखते हैं और फिर अगले साल का इन्तजार करते हैं।
हम यह भी नहीं कहना चाहते हैं कि हिन्दी की सेवा नहीं हो रही है, प्रचार प्रसार नहीं हो रहा है। हर वर्ष हजारों पुस्तकें छप रही हैं,कवि सम्मेलनों के आयोजन भी हो रहे हैं परन्तु फिर भी हिन्दी घर घर नहीं पहूंच रही है जिस पर परिचर्चा करने की जरूरत है। 
भारतेंदु जी ने कहा भी था, निज भाषा उन्नति कहे सब भाषा की मूल निजता को जगाने की जरूरत है कि स्वदेश हमारे हृदय में जीवित रहे और यही किसी भी जीवित राष्ट्र की अस्मिता और अस्तित्व की पहचान है। आपमें से बहुतों ने जिस समय सोवियत संघ था,उसका एक प्रकाशन संस्थान था,ताश पब्लिकेशन्स,जो सस्ते से सस्ते दरों पर साम्यवादी साहित्य के साथ साथ हर वर्ग के हर विषय की उच्च कोटि की किताबें प्रकाशित करता था जो सोवियत संघ के पतन के बाद खत्म हो गया।अब आप कहेंगे कि एन बी टी तो हमारे यहां है तो जरा उनके प्रकाशित पुस्तकों के मुल्य देख लें तो समझ में आ जाएगा कि हम आज भी साहित्य सर्जना के क्षेत्र में अभिरुचि क्यों खोते जा रहे हैं। 
हिन्दी को शीर्ष पर रखें : हो सकता है कि उस समय के आर्थिक बाजार की तुलना में आज चीजें महंगी हुई हैं तो सरकारें क्या कर रही है,इस पर भी मंथन करने की जरूरत है। जितने भी सरकारी साहित्य संस्थान हैं सब पर सियासत का कब्जा है,ऐसा भी नहीं है कि वहां अच्छे लोग नहीं हैं परन्तु वहां भी न्यायप्रिय व्यवस्था का अभाव है। पुस्तकें भी पिक एंड चूज की शिकार होती हैं,ऐसी समीक्षा और टिप्पणियां आती रही हैं। जितनी बड़ी बड़ी हिन्दी पत्रिकाएं हैं, वहां भी ऐसा ही खेल चलता रहता है। साहित्य में आज जितने सियासत हो रहे हैं उतनी सियासत तो सियासत में भी नहीं होती है।
अब समय है कि सबको केन्द्र और राज्य सरकारों का ध्यान इधर आकृष्ट कराते रहना होगा कि सरकारें हिन्दी को लोकप्रिय और जनभाषा बनाने की दिशा में गंभीरता से विचार करें ताकि अच्छी किताबें सस्ती दरों पर सबको उपलब्ध हो सके,लोग खरीदें और पढ़ें। 
हमें भी घर में हिन्दी पढ़ने लिखने सीखने और बोलने की आदत बच्चों में लगाने की लागातार कोशिश करनी चाहिए। अंग्रेजी के साथ साथ अपने देश की इच्छानुसार क्षेत्रीय भाषा का भी ज्ञान हासिल करने की कोशिश करें परन्तु हिन्दी को शीर्ष पर रखें।
*
स्तंभ संपादन : शक्ति. रीता प्रीति क्षमा 
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा स्वाति  

*
* लीवर. पेट. आंत. रोग विशेषज्ञ. शक्ति. डॉ.कृतिका. आर्य. डॉ.वैभव राज :किवा गैस्ट्रो सेंटर : पटना : बिहारशरीफ : समर्थित.
*
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सम्पादकीय : शक्ति पद्य संग्रह आलेख : आकाश दीप : पृष्ठ :४
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संपादन
शक्ति. शालिनी रेनू मीना.
*
*
एम एस मीडिया शक्ति : प्रस्तुति
*
भाविकाएँ.१
*
शक्ति. शालिनी.
*
हिंदी आज पुकारती...
शक्ति भारती... कैसे उतारूँ तेरी आरती


फोटो : शक्ति : भारती : हंस वाहिनी.
*
ढूंढ रही अस्तित्व देश में,
हिंदी आज पुकारती...
शक्ति भारती... कैसे उतारूँ तेरी आरती

कोई कहे मैं सुता तुम्हारी,
माथे की तेरे बिंदी हूँ।
अंग्रेजी परदेश से आकर,
कहती सदा मैं चिंदी हूँ।
चीख-पुकार सुने ना कोई.
अंग्रेजी ललकारती...
शक्ति भारती... कैसे उतारूँ तेरी आरती

देवनागरी लिपि से निकली,
सभी विधा को तृप्त किया,
साहित्य जगत में हुई श्रेष्ठ मैं,
भारत माँ को दृप्त किया।
हिंदी दिवस पर मान के ख़ातिर,
हिंदी रही चिग्घाड़ती...
शक्ति भारती... कैसे उतारूँ तेरी आरती

सभी लगे हैं मुझे बचाने,
तेरे सुत जो प्यारे हैं।
हिंदी के संवर्धन ख़ातिर,
तन-मन-धन सब वारे हैं।
वीरांगना बन आई शालिनी.
सौम्य, स्वभाव जो धारती...
शक्ति भारती... कैसे उतारूँ तेरी आरती

शक्ति शालिनी
कवयित्री: प्रधान सम्पादिका
*
प्रथम मिडिया शक्ति प्रस्तुति
*

भाविकाएँ : २.
*
हिंदी
मत समझ लेना बिंदी चिन्दी
*

मान सम्मान की तुम्हारी शक्ति 
भाल दिव्य पर सजी मैं बिंदी
रच बस लूँ तेरे सुन्दर भावों में 
मन की भाषा मैं प्यारी तेरी हिंदी
तुम्हारे लिए नई नवेली जैसी
कर अपना सोलह शृंगार
सबकी की प्यारी मनभावन रचना
कहानी कविता स्वप्निल संसार
कुमकुमऔर माथे की बिंदी
, ऐसी वैसी मत समझ लेना बिंदी चिन्दी

*
शक्ति. प्रिया डॉ.मधुप सुनीता. 
*
सज्जा : सीमा अनुभूति तनु 
*

लघु कविता.


 *
शक्ति रेनू शब्द मुखर
कवयित्री: प्रधान सम्पादिका
*
कल रात मेरे सपने में हिंदी आई
*
कल रात मेरे सपने में हिंदी आई
अपनी पीड़ा कुछ इस तरह बताई
 क्यों सब ने अंग्रेजी की रीत अपनाई 
अपने ही जहां में मैं हुई पराई
 हर कोई कर रहा मुझे उपेक्षित
यह सुन मेरी आंख ग्लानि से भर आई
 सोचा घर-घर जाकर करूं प्रचार 
क्यों ना अपने विद्यालय से ही शुरु करूँ
 मन में आया यह नेक विचार
बच्चों में प्रेरणा जगाऊ
 कोमल मन में में हिंदी को बसाऊं 
 सांस्कृतिक एकता की है
प्रतीक उनको मैं बताऊं
मानवीय गुणों से ओतप्रोत


 वह मजबूत जरिया है
 प्रेम का मीठा दरिया है
ज्ञान की देवी है यह
  दुनिया को जोड़े आपस में
मैं उस को गले लगाऊँ
बाहे सदा अपनी उसके लिए ही फैलाऊँ
हिंदी हमारी आशा है
 हिंदी सर्वप्रिय भाषा है
आजादी की लड़ाई लड़ी
 जिसमें वह भी हिंदी है 
आजादी दिलाई जिसने वह भी हिंदी ही है
नादान नहीं थे हिंदी के पुरोधा हरिश्चंद्र
  कवि मतिराम नहीं थे बुद्धि से हीन
 दिन रात कलम चलाकर
हिंदी में ही कृति स्चा करते थे महान 
 हिंदी मेरी शान है, यह गुणों की खान है
सच बताऊं हर भारतवासी की पहचान है
जातीयता संकीर्णता से परे
अनेकता में एकता का सूत्र महान है
    इसका करूं कहां तक गुणगान
मेरे लब न ले विराम
है राष्ट्रीयता की आत्मा ये
हिंदी जन्नत की गंगा है।
यह माध्यम स्वाधीन देश का
जिसका ध्वजा तिरंगा है।
*

शक्ति. प्रिया डॉ.सुनीता. 
*
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आपने कहा : दिन विशेष : पृष्ठ :९.
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Comments

  1. Shree Ganeshay Namah
    Keep moving on : my wishes to the editorial team
    Shakti Suman. Chandigarh

    ReplyDelete
  2. Shakti Shalini : Shakti Chief Editor : Thanks a lot. Really it's so beautiful ❤️

    ReplyDelete
  3. Your unique insight and creativity benefit whole team tremendously.Shakti Shahina Naaz

    ReplyDelete

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