Shakti Vijaya : Navratri : Dashmi
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Shakti Vijaya : Navratri : Dashmi.
कृण्वन्तो विश्वमार्यम. 
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आवरण पृष्ठ.
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| शक्ति विजया : शक्ति रूपेन संस्थिता : शक्ति कोलाज : नैना. डॉ.सुनीता शक्ति प्रिया. | 
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फोर स्क्वायर होटल : रांची : समर्थित :आवरण पृष्ठ :विषय सूची : मार्स मिडिया ऐड : नई दिल्ली.
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पत्रिका.
पत्रिका.
अनुभाग.ब्लॉग मैगज़ीन पेज. 
हिंदी.
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विषय सूची.
विषय सूची : पृष्ठ :०.
विषय सूची : पृष्ठ :०.
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कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे.प्रारब्ध : विषय सूची : पृष्ठ :०. 
सम्पादित. डॉ. सुनीता सीमा शक्ति * प्रिया.
आवरण पृष्ठ :०.
हार्दिक आभार प्रदर्शन : पृष्ठ : ०
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : पृष्ठ : ०.
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : शक्ति लिंक : पृष्ठ : ०.
राधिकाकृष्ण : महाशक्ति : इस्कॉन डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / १.
रुक्मिणीकृष्ण : महाशक्ति : दर्शन दृश्यम : विचार डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / २ .
मीराकृष्ण : महाशक्ति डेस्क : मुक्तेश्वर : नैनीताल. पृष्ठ : ० / ३.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा : पृष्ठ : १.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा लिंक : पृष्ठ : १.
त्रि - शक्ति : दर्शन. पृष्ठ : १ / ०.
त्रिशक्ति : विचार : दृश्यम : पृष्ठ : १ / ० .
त्रिशक्ति : लक्ष्मी डेस्क : सम्यक दृष्टि : कोलकोता : पृष्ठ : १ / १.
त्रिशक्ति : शक्ति डेस्क : सम्यक वाणी : नैनीताल : पृष्ठ : १ / २.
त्रिशक्ति : सरस्वती डेस्क :सम्यक कर्म : जब्बलपुर : पृष्ठ : १ / ३.
महाशक्ति : जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ४.
नव जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ५.
सम्पादकीय : पृष्ठ : २.
सम्पादकीय शक्ति लिंक : पृष्ठ : २ / ०.
आकाश दीप : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : शक्ति : सम्पादकीय : प्रस्तुति. पृष्ठ :४.
सम्पादित. डॉ. सुनीता सीमा शक्ति * प्रिया.
आवरण पृष्ठ :०.
हार्दिक आभार प्रदर्शन : पृष्ठ : ०
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : पृष्ठ : ०.
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : शक्ति लिंक : पृष्ठ : ०.
राधिकाकृष्ण : महाशक्ति : इस्कॉन डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / १.
रुक्मिणीकृष्ण : महाशक्ति : दर्शन दृश्यम : विचार डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / २ .
मीराकृष्ण : महाशक्ति डेस्क : मुक्तेश्वर : नैनीताल. पृष्ठ : ० / ३.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा : पृष्ठ : १.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा लिंक : पृष्ठ : १.
त्रि - शक्ति : दर्शन. पृष्ठ : १ / ०.
त्रिशक्ति : विचार : दृश्यम : पृष्ठ : १ / ० .
त्रिशक्ति : लक्ष्मी डेस्क : सम्यक दृष्टि : कोलकोता : पृष्ठ : १ / १.
त्रिशक्ति : शक्ति डेस्क : सम्यक वाणी : नैनीताल : पृष्ठ : १ / २.
त्रिशक्ति : सरस्वती डेस्क :सम्यक कर्म : जब्बलपुर : पृष्ठ : १ / ३.
महाशक्ति : जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ४.
नव जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ५.
सम्पादकीय : पृष्ठ : २.
सम्पादकीय शक्ति लिंक : पृष्ठ : २ / ०.
आकाश दीप : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : शक्ति : सम्पादकीय : प्रस्तुति. पृष्ठ :४.
 विशेषांक : आलेख : धारावाहिक आलेख : पृष्ठ : ५. 
ये मेरा गीत : जीवन संगीत : कल भी कोई दोहराएगा : पृष्ठ : ६.
शक्ति विजया : फ़िल्मी कोलाज : पृष्ठ : ७.
शक्ति विजया : कला दीर्घा : रंग बरसे : पृष्ठ : ९.
समाचार : चित्र : विशेष : दृश्य माध्यम : न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११.
शक्ति विजया : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : १२.
ये मेरा गीत : जीवन संगीत : कल भी कोई दोहराएगा : पृष्ठ : ६.
शक्ति विजया : फ़िल्मी कोलाज : पृष्ठ : ७.
शक्ति विजया : कला दीर्घा : रंग बरसे : पृष्ठ : ९.
समाचार : चित्र : विशेष : दृश्य माध्यम : न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११.
शक्ति विजया : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : १२.
चलते चलते : शुभकामनाएं : दिल जो न कह सका : पृष्ठ : १३. 
आपने कहा : मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ : १४.
आपने कहा : मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ : १४.
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हार्दिक आभार प्रदर्शन : पृष्ठ : ०
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हार्दिक आभार प्रदर्शन : पृष्ठ : ० 
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संयोजन. 
शिमला.डेस्क.
नैनीताल डेस्क. 
 इन्द्रप्रस्थ डेस्क.
पाटलिपुत्र डेस्क.
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शक्ति.शालिनी.स्मिता.वनिता. शवनम .
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संयोजिका / मीडिया हाउस ,हम मीडिया परिवार 
की तरफ़ से 
आपके लिए धन्यवाद ज्ञापन 
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पत्रिका के निर्माण / संरक्षण के लिए  
हार्दिक आभार.
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शक्ति.डॉ. ममता 
सह 
आर्य. डॉ. सुनील कुमार.  शिशु रोग विशेषज्ञ 
निदेशक. ममता हॉस्पिटल. बिहार शरीफ़.
समर्थित
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| supporting with | 
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 शक्ति : यात्रा संस्मरण : आलेख : धारावाहिक आलेख : पृष्ठ : ५ 
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नैनीताल डेस्क. 
संपादन. 
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शक्ति.शालिनी मानसी कंचन बीना जोशी 
नैनीताल डेस्क. 
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धारावाहिक यात्रा संस्मरण 
 : नैनीताल।  नैनी झील। नैना देवी : शक्ति नंदा - सुनंदा  : पृष्ठ  : ५  / ० . 
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डॉ.मधुप. 
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| नैनी झील : नैना देवी : शक्ति. नंदा - सुनंदा. फोटो कोलाज : डॉ. सुनीता मधुप शक्ति प्रिया. * | 
शक्ति :विजया:आलेख : पृष्ठ : २. 
डॉ.सुनीता मधुप शक्ति * प्रिया. 
नैनीताल।  नैनी झील। जब कभी हम आए हमने शक्ति के संरक्षण में मनभावन क्षण बिताए। आसक्ति रही है इस पीठ से। मंदिर का शीर्ष ७० , ८०  के दशक से ही भूल नहीं पाते है हम। शक्ति सपने में ही आती रही। पुजारी बतला रहें थे  सती की वायी आँख यही कही झील के आस पास गिरी थी न ? तब से शक्ति नैना की स्मृति में नैना मंदिर निर्मित बनी। सती हमेशा याद आती है। 
२०२४ का साल। गर्मियाँ थी। हम नैनीताल में  ही थे। मंदिर परिसर में शक्ति नंदा सुनन्दा की भव्य तस्वीर लगी थी। शक्ति नंदा - सुनंदा के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। हमारी शक्ति सम्पादिका समूह में कई शोधार्थी शक्तियां  हैं। 
नवीन दा बतला रहें थे इन दिनों नैनीताल  में नंदाष्टमी की सभी तैयारियां पूरी होने लगी है। इस सन्दर्भ में शक्ति  नंदा सुनन्दा की प्रतिमाएं नयना देवी मंदिर में विराजमान होते ही दर्शन को भक्तों की भीड़ जुटने लगी है और समस्त नैना देवी मंदिर परिसर नंदा सुनंदा  मां के जयकारों से गुंजित  हो रहा है ।
नंदा - सुनंदा पूजा की परंपरा : शक्ति नंदा - सुनंदा पूजा की परंपरा का ऐतिहासिक पहलू अत्यंत समृद्ध है। मान्यता है कि यह परंपरा कुमाऊं के चंद राजाओं के समय से शुरू हुई। लोकदेवी की आराधना और राज्य की समृद्धि से शुरू यह उत्सव नगर और गांवों की सामूहिक आस्था का पर्व बन गया। याद है आज भी इस पूजा में वही ऐतिहासिक गौरव,  झलकता है,जो सदियों पहले लोगों की धार्मिक भावनाओं और सामाजिक एकजुटता को मजबूत करने के लिए प्रारंभ हुआ था। 
सूत्रों की माने तो श्री राम सेवक सभा द्वारा आयोजित १२३ वे श्रीनंदा देवी महोत्सव में स्थानीय लोक पारंपरिक कलाकारों द्वारा नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण को भव्य एवं जीवंत रूप दिया गया है। शक्ति नंदा जो हिमालय संस्कृति के साथ शक्ति की देवी से रूप में कुलदेवी की भांति पूजित है। जबकि शक्ति सुनंदा उनकी सहचरी स्वरूप मानी जाती हैं। नंदा-सुनंदा की पूजा स्त्री-शक्ति और बहनत्व का प्रतीक मानी जाती है। इस अवसर पर नगर और ग्रामीण अंचलों से भक्तजन डोला और छंतोली सजाकर मंदिरों में पहुंचते हैं।
सूत्रों की माने तो श्री राम सेवक सभा द्वारा आयोजित १२३ वे श्रीनंदा देवी महोत्सव में स्थानीय लोक पारंपरिक कलाकारों द्वारा नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण को भव्य एवं जीवंत रूप दिया गया है। शक्ति नंदा जो हिमालय संस्कृति के साथ शक्ति की देवी से रूप में कुलदेवी की भांति पूजित है। जबकि शक्ति सुनंदा उनकी सहचरी स्वरूप मानी जाती हैं। नंदा-सुनंदा की पूजा स्त्री-शक्ति और बहनत्व का प्रतीक मानी जाती है। इस अवसर पर नगर और ग्रामीण अंचलों से भक्तजन डोला और छंतोली सजाकर मंदिरों में पहुंचते हैं।
 शक्ति. आलेख : नंदा - सुनंदा : गतांक से आगे : १.
शक्ति  नंदा : द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री  ' महामाया '
डॉ.सुनीता अनुभूति बीना नवीन जोशी
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शक्ति नंदा : द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री  ' महामाया '
नंदा-सुनंदा की प्राण प्रतिष्ठा : पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी यह देता है, और उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं व गढ़वाल अंचलों को भी एकाकार करता है। यहीं से प्रेरणा लेकर कुमाऊं के विभिन्न अंचलों में फैले मां नंदा के इस महापर्व ने देश के साथ विदेश में भी अपनी पहचान स्थापित कर ली है।
इस मौके पर मां नंदा सुनंदा के बारे में फैले भ्रम और किंवदंतियों को जान लेना आवश्यक है। विद्वानों के इस बारे में अलग अलग मत हैं, लेकिन इतना तय है कि नंदादेवी, नंदगिरि व नंदाकोट की धरती देवभूमि को एक सूत्र में पिरोने वाली शक्तिस्वरूपा मां नंदा ही हैं। यहां सवाल उठता है कि नंदा महोत्सव के दौरान कदली वृक्ष से बनने वाली एक प्रतिमा तो मां नंदा की है, लेकिन दूसरी प्रतिमा किन की है। सुनंदा, सुनयना अथवा गौरा पार्वती की।
द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री महामाया : एक दंतकथा के अनुसार मां नंदा को द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री महामाया भी बताया जाता है जिसे दुष्ट कंस ने शिला पर पटक दिया था, लेकिन वह अष्टभुजाकार रूप में प्रकट हुई थीं। त्रेता युग में नवदुर्गा रूप में प्रकट हुई माता भी वह ही थी। यही नंद पुत्री महामाया नवदुर्गा कलियुग में चंद वंशीय राजा के घर नंदा रूप में प्रकट हुईं, और उनके जन्म के कुछ समय बाद ही सुनंदा प्रकट हुईं।
राज्यद्रोही षड्यंत्रकारी  ने उन्हें कुटिल नीति अपनाकर भैंसे से कुचलवा दिया था।
उन्होंने कदली वृक्ष की ओट में छिपने का प्रयास किया था लेकिन इस बीच एक बकरे ने केले के पत्ते खाकर उन्हें भैंसे के सामने कर दिया था। बाद में यही कन्याएं पुर्नजन्म लेते हुए नंदा-सुनंदा के रूप में अवतरित हुईं और राज्यद्रोहियों के विनाश का कारण बनीं। इसीलिए कहा जाता है कि सुनंदा अब भी चंदवंशीय राजपरिवार के किसी सदस्य के शरीर में प्रकट होती हैं। इस प्रकार दो प्रतिमाओं में एक नंदा और दूसरी सुनंदा हैं। अन्य किंवदंती के अनुसार एक मूर्ति हिमालय क्षेत्र की आराध्य देवी पर्वत पुत्री नंदा एवं दूसरी गौरा पार्वती की हैं।
उन्होंने कदली वृक्ष की ओट में छिपने का प्रयास किया था लेकिन इस बीच एक बकरे ने केले के पत्ते खाकर उन्हें भैंसे के सामने कर दिया था। बाद में यही कन्याएं पुर्नजन्म लेते हुए नंदा-सुनंदा के रूप में अवतरित हुईं और राज्यद्रोहियों के विनाश का कारण बनीं। इसीलिए कहा जाता है कि सुनंदा अब भी चंदवंशीय राजपरिवार के किसी सदस्य के शरीर में प्रकट होती हैं। इस प्रकार दो प्रतिमाओं में एक नंदा और दूसरी सुनंदा हैं। अन्य किंवदंती के अनुसार एक मूर्ति हिमालय क्षेत्र की आराध्य देवी पर्वत पुत्री नंदा एवं दूसरी गौरा पार्वती की हैं।
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गतांक से आगे : / २. 
शक्ति :विजया:आलेख : पृष्ठ : २.
डॉ. सुनीता मधुप शक्ति * प्रिया.
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शक्ति नयना की नगरी नैनीताल में देवी नंदा -सुनंदा
की ' लोक जात ' का आयोजन.
शक्ति :विजया:आलेख : पृष्ठ : २.
डॉ. सुनीता मधुप शक्ति * प्रिया.
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शक्ति नयना की नगरी नैनीताल में देवी नंदा -सुनंदा
की ' लोक जात ' का आयोजन.
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| नैनीताल झील से सटे नैना देवी मंदिर का परिसर : फोटो कोलाज : शक्ति. विदिशा. | 
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शक्ति नैना देवी मंदिर : नैनीताल मेरे जीने का शहर। मेरी आँखों में बसता है। शक्ति नैना देवी मंदिर सदैव मेरे समक्ष होती है। जीवन के समस्त क्रियाओं के अभिकेंद्र में शक्ति हैं। मैं स्वयं मान बैठा हूँ कि मैं एक शक्ति संरक्षित जीव हूँ। 
सबेरे के आठ बज रहे थे। आर्य समाज मंदिर से पैदल टहलते हुए ही यहाँ तक चला आया था। धूप अभी तीखी नहीं हुई थी। मंदिर में सैलानी थे ही नहीं। ले दे के स्थानीय लोग ही थे। मैंने चढ़ावे के लिए कुछ प्रसाद ले लिया था। मंदिर में प्रवेश करते ही हनुमान जी दिख गए। 
नैनीताल में नैनी झील के ठीक उत्तरी किनारे पर जन आस्था का मंदिर नैना देवी मंदिर स्थित है। सन १८८० में जब भयंकर भूस्खलन नैनीताल में आया था तब यह मंदिर उस प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था। बाद में भक्त जनों और श्रद्धालुओं ने इसे दोबारा बनाया था । यहाँ सती या कहें देवी पार्वती की शक्ति के रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में उनके दो नेत्र वर्त्तमान हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं।
नैनीताल में नैनी झील के ठीक उत्तरी किनारे पर जन आस्था का मंदिर नैना देवी मंदिर स्थित है। सन १८८० में जब भयंकर भूस्खलन नैनीताल में आया था तब यह मंदिर उस प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था। बाद में भक्त जनों और श्रद्धालुओं ने इसे दोबारा बनाया था । यहाँ सती या कहें देवी पार्वती की शक्ति के रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में उनके दो नेत्र वर्त्तमान हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं।
नैनी झील के बारे में माना जाता है जब शिव सती  की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहें थें  तब जहां जहां उनके शरीर के खंडित अंग गिरे  वहां वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इसी धार्मिक भावना से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गयी थी। 
माँ नयना देवी के मंदिर के देखभाल का जिम्मा अमर उदय ट्रस्ट करती है। 
नंदा-सुनंदा की लोक जात का आयोजन : शक्ति नंदा-सुनंदा की लोक जात का आयोजन हर साल शक्ति नैना देवी मंदिर से ही होता है। नंदा देवी मेला के दौरान किया जाता है, जो कुमाऊं क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव है। यह देवी नंदा और उनकी बहन सुनंदा की याद में मनाया जाता है, जिसमें देवी की पालकी ( डोला ) की विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। यह उत्सव १७ वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है और स्थानीय संस्कृति और अर्थव्यवस्था को दर्शाता है। 
उत्सव का विवरण नाम : नंदा देवी मेला या नंदा देवी उत्सव के नाम से विदित मूलतः  नैनीताल, उत्तराखंड में ही प्रचलित है ।  प्रारंभ समय सितंबर के महीने में, नंदाष्टमी के दौरान ही होता है । महत्वपूर्ण है  यह देवी नंदा और उनकी बहन सुनंदा को समर्पित है, जो इस पहाड़ी क्षेत्र की संरक्षक देवी मानी जाती हैं। 
मुख्य आयोजन बतौर  देवी नंदा और सुनंदा की डोला ( पालकी ) की शोभायात्रा निकाली जाती है। बांस की खपच्चियों, केले के पेड़, रुई और कपड़े से मां की मूर्ति बनाई जाती है,जो पर्यावरण के अनुकूल होती है।ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इस उत्सव की शुरुआत १७ वीं शताब्दी में चंद राजा द्योत चंद द्वारा नंदा देवी का मंदिर बनवाने के बाद हुई।सांस्कृतिक महत्व यह उत्सव उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की समृद्धि, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण प्रतिबिंब है। यह एक पारंपरिक सांस्कृतिक उत्सव है जो स्थानीय परंपराओं और आस्था को दर्शाता है।
   गतांक से आगे : ३ . 
नैनीताल :नंदा देवी और नए आयाम.
शक्ति. मीना भारती बीना नवीन जोशी
अपनी पुस्तक कल्चरल हिस्ट्री आफ उत्तराखंड के हवाले से प्रो. रावत ने बताया कि सातवीं शताब्दी में बद्रीनाथ के बामणी गांव से नंदा देवी महोत्सव की शुरूआत हुई, जो फूलों की घाटी के घांघरिया से होते हुए गढ़वाल पहुंची। तब गढ़वाल ५२ गणपतियों ( सूबों ) में बंटा हुआ था। उनमें चांदपुर गढ़ी के शासक कनक पाल सबसे शक्तिशाली थे। उन्होंने ही सबसे पहले गढ़वाल में नंदा देवी महोत्सव शुरू किया। प्रो. रावत बताते हैं कि आज भी बामणी गांव में मां नंदा का महोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
वर्तमान नंदा महोत्सवों के आयोजन के बारे में कहा जाता है कि पहले यह आयोजन चंद वंशीय राजाओं की अल्मोड़ा शाखा द्वारा होता था, किंतु १९३८ में इस वंश के अंतिम राजा आनंद चंद के कोई पुत्र न होने के कारण तब से यह आयोजन इस वंश की काशीपुर शाखा द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसका प्रतिनिधित्व वर्तमान में नैनीताल सांसद केसी सिंह बाबा करते हैं।
नैनीताल की स्थापना के बाद वर्तमान बोट हाउस क्लब के पास नंदा देवी की मूल रूप से स्थापना की गई थी, १८८० में यह मंदिर नगर के विनाशकारी भूस्खलन की चपेट में आकर दब गया, जिसे बाद में वर्तमान नयना देवी मंदिर के रूप में स्थापित किया गया। यहां मूर्ति को स्थापित करने वाले मोती राम शाह ने ही १९०३ में अल्मोड़ा से लाकर नैनीताल में नंदा महोत्सव की शुरुआत की। शुरुआत में यह आयोजन मंदिर समिति द्वारा ही आयोजित होता था।
१९२६ से यह आयोजन नगर की सबसे पुरानी धार्मिक सामाजिक संस्था श्रीराम सेवक सभा को दे दिया गया, जो तभी से लगातार दो दो विश्व युद्धों के दौरान भी बिना रुके सफलता से और नए आयाम स्थापित करते हुए यह आयोजन कर रही है। यहीं से प्रेरणा लेकर अब कुमाऊं के कई अन्य स्थानों पर भी नंदा महोत्सव के आयोजन होने लगे हैं। आज के अन्य ताजा ‘ नवीन समाचार ’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
मां नयना की नगरी में होती है मां नंदा की ‘ लोक जात ’, वर्ष दर वर्ष लगातार समृद्ध हो रहा है नंदा देवी महोत्सव - यहां राज परिवार का नहीं होता आयोजन में दखल, जनता ने ही की शुरुआत, जनता ही बढ़चढ़ कर करती है प्रतिभाग।
प्रदेश में चल रही मां नंदा की ‘ राज जात ’ से इतर मां नयना की नगरी नैनीताल में माता नंदा-सुनंदा की 'लोक जात' का आयोजन किया जाता है। अमूमन १२ वर्षों के अंतराल में आयोजित होने वाली ' लोक जात ' के इतर सरोवरनगरी में १२३ वर्षों से हर वर्ष अनवरत, प्रथम व द्वितीय दो विश्व युद्ध होने के बावजूद बिना किसी व्यवधान के न केवल यह महोत्सव जारी है, वरन हर वर्ष समृद्ध भी होता जा रहा है। बिना राज परिवार द्वारा शुरू किए जनता द्वारा ही शुरू किए गए और जनता की ही सक्रिय भागेदारी से आयोजित होने वाले इस महोत्सव को आयोजक भी मां नंदा की ‘लोक जात’ मानते हैं।
गढ़वाल को एक सूत्र में पिरोने वाली मां नंदा का महोत्सव १९०३ से लगातार बीच में दो विश्व युद्धों के दौरान भी जारी रहते हुऐ १२३ वर्षों से अनवरत जारी है। यहां के बाद ही प्रदेश के अनेक स्थानों पर नंदादेवी महोत्सवा आयोजित हुए हैं, लिहाजा नैनीताल को नंदा महोत्सवों का प्रणेता भी कहा जाता है। सरोवरनगरी में नंदा महोत्सव की शुरुआत नगर के संस्थापकों में शुमार मोती राम शाह ने १९०३ में अल्मोड़ा से लाकर की थी।
वर्तमान नंदा महोत्सवों के आयोजन के बारे में कहा जाता है कि पहले यह आयोजन चंद वंशीय राजाओं की अल्मोड़ा शाखा द्वारा होता था, किंतु १९३८ में इस वंश के अंतिम राजा आनंद चंद के कोई पुत्र न होने के कारण तब से यह आयोजन इस वंश की काशीपुर शाखा द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसका प्रतिनिधित्व वर्तमान में नैनीताल सांसद केसी सिंह बाबा करते हैं।
नैनीताल की स्थापना के बाद वर्तमान बोट हाउस क्लब के पास नंदा देवी की मूल रूप से स्थापना की गई थी, १८८० में यह मंदिर नगर के विनाशकारी भूस्खलन की चपेट में आकर दब गया, जिसे बाद में वर्तमान नयना देवी मंदिर के रूप में स्थापित किया गया। यहां मूर्ति को स्थापित करने वाले मोती राम शाह ने ही १९०३ में अल्मोड़ा से लाकर नैनीताल में नंदा महोत्सव की शुरुआत की। शुरुआत में यह आयोजन मंदिर समिति द्वारा ही आयोजित होता था।
१९२६ से यह आयोजन नगर की सबसे पुरानी धार्मिक सामाजिक संस्था श्रीराम सेवक सभा को दे दिया गया, जो तभी से लगातार दो दो विश्व युद्धों के दौरान भी बिना रुके सफलता से और नए आयाम स्थापित करते हुए यह आयोजन कर रही है। यहीं से प्रेरणा लेकर अब कुमाऊं के कई अन्य स्थानों पर भी नंदा महोत्सव के आयोजन होने लगे हैं। आज के अन्य ताजा ‘ नवीन समाचार ’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
मां नयना की नगरी में होती है मां नंदा की ‘ लोक जात ’, वर्ष दर वर्ष लगातार समृद्ध हो रहा है नंदा देवी महोत्सव - यहां राज परिवार का नहीं होता आयोजन में दखल, जनता ने ही की शुरुआत, जनता ही बढ़चढ़ कर करती है प्रतिभाग।
प्रदेश में चल रही मां नंदा की ‘ राज जात ’ से इतर मां नयना की नगरी नैनीताल में माता नंदा-सुनंदा की 'लोक जात' का आयोजन किया जाता है। अमूमन १२ वर्षों के अंतराल में आयोजित होने वाली ' लोक जात ' के इतर सरोवरनगरी में १२३ वर्षों से हर वर्ष अनवरत, प्रथम व द्वितीय दो विश्व युद्ध होने के बावजूद बिना किसी व्यवधान के न केवल यह महोत्सव जारी है, वरन हर वर्ष समृद्ध भी होता जा रहा है। बिना राज परिवार द्वारा शुरू किए जनता द्वारा ही शुरू किए गए और जनता की ही सक्रिय भागेदारी से आयोजित होने वाले इस महोत्सव को आयोजक भी मां नंदा की ‘लोक जात’ मानते हैं।
गढ़वाल को एक सूत्र में पिरोने वाली मां नंदा का महोत्सव १९०३ से लगातार बीच में दो विश्व युद्धों के दौरान भी जारी रहते हुऐ १२३ वर्षों से अनवरत जारी है। यहां के बाद ही प्रदेश के अनेक स्थानों पर नंदादेवी महोत्सवा आयोजित हुए हैं, लिहाजा नैनीताल को नंदा महोत्सवों का प्रणेता भी कहा जाता है। सरोवरनगरी में नंदा महोत्सव की शुरुआत नगर के संस्थापकों में शुमार मोती राम शाह ने १९०३ में अल्मोड़ा से लाकर की थी।
स्तंभ संपादन : शक्ति. रेनू नीलम रीता तनु.
स्तंभ सज्जा : शक्ति. डॉ.अनु मंजिता सीमा अनुभूति.
गीत लघु फिल्म : संकलन : शक्ति मीना श्रद्धा नैना भारती.
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हिंदी धारावाहिक : यात्रा संस्मरण.पृष्ठ : ५ /२  .
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धारावाहिक यात्रा संस्मरण 
डॉ. मधुप
शक्ति. नैना सुनीता प्रिया अनुभूति   
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नवरात्रि :  नैनीताल और शक्ति  नैना देवी मंदिर,का दर्शन. 
यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.  
डॉ. मधुप रमण.
©️®️ M.S.Media.
नवरात्रि की शुरुआत : नवरात्रि की शुरुआत होने वाली थी। पितृ पक्ष के कुछ ही दिन शेष रह गए थे। दिल्ली से हमारी पत्रिका के  प्रधान संपादक मनीष दा ने फ़िर से मुझे आग्रह किया कि इस साल भी  नैनीताल से दशहरे की कवरेज मुझे ही करनी होगी। क्योंकि मैं नैनीताल से प्रारंभ से ही जुड़ा हुआ हूँ वहां के पत्रकारों के संपर्क में हूँ ,और लिखता रहा हूँ इसलिए उन्होंने यह दायित्व मुझे ही सौप दिया। 


हालांकि इस बार मैं पश्चिम बंगाल में किसी पहाड़ी जगह सिलीगुड़ी , मिरिक, कलिम्पोंग, कुर्सियांग  या दार्जलिंग जैसे इलाक़े से दशहरे की कवरेज करना चाहता था। 
पश्चिम बंगाल के  दशहरे के बारे में मैंने काफ़ी कुछ सुन रखा था। सोचा था इस बार अपनी आँखों से वहां की धार्मिक ,सांस्कृतिक,आस्थां से परिचित हूँगा। लेकिन मुझसे कहा गया वहां से  प्रिया नवरात्रि की कवरेज कर रहीं हैं या करेंगी इसलिए मुझे अपनी मन पसंदीदा जग़ह  नैनीताल से ही नवरात्री की कहानी लिखनी होगी। 
अतः इसके लिए मुझे तैयार होना होगा। सच कहें बात तो दरअसल में कुछ और थी। 
आप इन दिनों प्रशासकीय कार्यों के निमित यूरोप में हो रहे सम्मलेन में शिरक़त करने  के लिए दस दिनों के लिए स्विट्ज़र लैंड के दौरे पर थी। और आपकी अनुपस्थिति में नैनीताल में रहना ,भ्रमण करना फिर लिखने जैसे दायित्व को पूरा करना एक बड़ा ही मुश्किल कार्य प्रतीत हो रहा था। 
सच ही है ना ? तुम्हारे बिना नैनीताल में कुछेक दिन गुजार लेना कितना मुश्क़िल होगा ,अनु। शायद मैं ही जानता हूँ। संभवतः प्रेत योनि में भटकने जैसा ही मात्र। 
लेखन कार्य के लिए शक्ति व परिश्रम चाहिए । मानसिक शांति भी तो जो निहायत ही जरुरी है। मेरी मानसिक शांति ,मेरी शक्ति सब कुछ तुममें तो निहित है ,न। शायद निहित रहता है और युग - युगांतर तक तुम में ही केंद्रित रहेगा। और फिल वक़्त तुम मेरे साथ हो नहीं तो इस कार्य को सफलता पूर्वक कैसे कर पाऊंगा, मैं वही सोच रहा था ? मैं दुविधा की स्थिति में था। लेकिन पत्रकारिता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया था इसलिए इसे भी मुकम्मल करना ही था, इसलिए दृढ़ होना पड़ा । जाने की तैयारी करनी ही पड़ी। 
रिपोर्ट,फोटो  और कवरेज के लिए इधर उधर भटकना,वो भी आपके सहयोग के बिना कितना दुष्कर कार्य होगा, हैं न अनु ? रात - दिन तुम्हारी यादों की घनी धुंध अपने मनो मस्तिष्क पर छाई  रहेंगी। बाक़ी की कल्पनाएं धुंधली धुंधली सी दिखेंगी , ऐसे में मैं लिखने जैसे गुरुतर भार के साथ कितना न्याय कर पाऊंगा यह तो गोलू देवता ही जानेंगे। सच तो यही है न जो कुछ भी मैं लिखता हूँ, वह अंतर्मन के प्रभाव में रहता है।  इधर हाल फिलहाल जो भी लिखता रहा ,उसके पीछे की छिपी प्रेरणा शक्ति तो आप ही रहीं   हैं  न ! शायद एक बजह भी। 
 आपने फ़ोन पर मुझे सख़्त हिदायत दे दी थी कि मुझे अयारपाटा वाले बंगले में ही ठहरना है,आपके नए बंगले में। लेकिन मैंने मन ही मन में निश्चित कर लिया था कि मैं वहां नहीं ठहरूंगा। मल्ली ताल के आर्य समाज मंदिर में ही रुकूंगा क्योंकि शायद थोड़े पल के लिए आपकी यादों के घने सायों से बाहर निकलने की नाकामयाब कोशिश क़ामयाब हो जाए.....और मन चित शांत कर लिख सकें। इस सन्दर्भ में मैंने अपने संपादक मित्र  नवीन दा से बातें कर भी ली थी। वह जाकर वहां कमरा ठीक कर देंगे। मैं यह भी भली भांति जानता था इस लिए गए आत्म निर्णय से आप हमसे बेहद नाराज़ होंगी। लेकिन कुछ कहेंगी भी नहीं यह भी मैं जानता ही हूँ।
आपने फ़ोन पर मुझे सख़्त हिदायत दे दी थी कि मुझे अयारपाटा वाले बंगले में ही ठहरना है,आपके नए बंगले में। लेकिन मैंने मन ही मन में निश्चित कर लिया था कि मैं वहां नहीं ठहरूंगा। मल्ली ताल के आर्य समाज मंदिर में ही रुकूंगा क्योंकि शायद थोड़े पल के लिए आपकी यादों के घने सायों से बाहर निकलने की नाकामयाब कोशिश क़ामयाब हो जाए.....और मन चित शांत कर लिख सकें। इस सन्दर्भ में मैंने अपने संपादक मित्र  नवीन दा से बातें कर भी ली थी। वह जाकर वहां कमरा ठीक कर देंगे। मैं यह भी भली भांति जानता था इस लिए गए आत्म निर्णय से आप हमसे बेहद नाराज़ होंगी। लेकिन कुछ कहेंगी भी नहीं यह भी मैं जानता ही हूँ। कोई अपने घर के रहते मंदिर ,धर्मशाला और गुरुद्धारे में भला रुकता है क्या ,नहीं न ? पागल पंथी ही है, सब यही कहेंगे न ?....
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धारावाहिक यात्रा संस्मरण
धारावाहिक यात्रा संस्मरण
नवरात्रि  नैनीताल और शक्ति नैना देवी मंदिर.
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डॉ.मधुप.
शक्ति. नैना सुनीता प्रिया अनुभूति   
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यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार. 
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गतांक से आगे : १. 
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है 
*
कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम 
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| ये आसमां ये बादल ये रास्तें ये हवा : डोर्थी सीट : और सिर्फ तुम : कोलाज : नैनीताल : शक्ति प्रिया | 
डोर्थी सीट : टिफिन टॉप और सिर्फ तुम  : याद है पिछले साल ही जब जून महीने में गया था तभी एक बड़ी सी दरार दिखी थी। तभी थोड़ा थोड़ा डर लगने लगा था। आशंकाएं तब भी हुई थी। 
तब क्या मालूम था कि ठीक दो तीन महीने बाद ही लगातार हुई मानसूनी बारिश के कारण. पहाड़ी में दरारें आ जायेंगी , जिससे डोर्थी सीट की संरचनात्मक अखंडता प्रभावित होगी और डोरोथी की सीट का मंच ढह जायेगा । हमारी कितनी यादें जुड़ी थी ?
अगस्त २०२४.पिछले साल की ही तो बात थी। नवीन दा बतला रहें थे भारी मानसूनी बारिश के कारण नैनीताल का लोकप्रिय पर्यटन स्थल डोरोथी की सीट, जिसे टिफिन टॉप भी कहते हैं, भूस्खलन की चपेट में आकर नष्ट हो गया था। तब नैनीताल के एस डी एम साहिब प्रमोद जी से मेरी बातें हुई थी इसे पुनः निर्मित किया जा सकता है या नहीं। उन्होंने कहा था प्रयास तो जारी ही रहेगा , तब छपने के लिए उन्होंने ढ़ेर सारी फोटो भेज दी थी।
यह सुन कर मैं कितना भावुक हो गया था अनु ? हमने कितने क्षण यहाँ बिताये थे अनु तुम्हें तो याद ही होगा। नवीन दा कह रहें थे ,इस घटना में हालाँकि किसी के हताहत होने की सूचना नहीं थी , लेकिन पहाड़ी में दरारें आने से यह संरचना पूर्णतः ढह गई थी।
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है शॉर्ट रील : नैनीताल का यह प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जो २२९० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है,जहाँ शांति ही थी शांति। हमने अपनी मीडिया के लिए कितनी शॉर्ट रील बनायी थी। शेरवुड स्कूल , इसका स्विमिंग पूल, राज भवन का गोल्फ कोर्स सब की क्लिपिंग हमने ली थी। तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है इस गाने की शॉर्ट रील बहुत ही अच्छी बनी थी। महेश दा की कैंटीन में चाय और मैगी भी खायी थी।
इसे ब्रिटिश अधिकारी कर्नल केलेट ने अपनी पत्नी डोरोथी की याद में बनवाया था, जो उनकी पत्नी को प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए एक मंच प्रदान करता था। यह टिफिन टॉप के नाम से भी जाना जाता है और नैनीताल के स्थानीय यहाँ आ कर पिकनिक भी मनाते है। झील के अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। अब तो वहां से झील भी नहीं दिखती है ,अनु। एक बड़ा कोना ही टूट कर गिर गया है।
कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम : देर रात ही हमें दिल्ली से अपने गंतव्य स्थान के लिए निकलना पड़ा। पत्रकारों ,कहानीकारों का जीवन ऐसे ही जोख़िम भरा होता है। कब हमें रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़े ,कहाँ जाना पड़े ,कोई सुनिश्चित नहीं होता । हम आदेश के पालक होते हैं। पल में हम कहाँ होंगे हम भी नहीं जानते है।
कैमरा , लैप टॉप , मोबाइल ,बैटरी, वाई फाई ,चार्जर,आई कार्ड, डेविड कार्ड बगैरह आदि सब मैंने अपने बैग में सुबह रख लिया था। देर दोपहर तक़ ९०२ किलोमीटर की दूरी तय कर हमें नैनीताल पहुंच ही जाना था । सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था।
मेरी सुविधा के लिए ही मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ।
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं। इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी ।
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी।
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था।
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है।
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर।
अगस्त २०२४.पिछले साल की ही तो बात थी। नवीन दा बतला रहें थे भारी मानसूनी बारिश के कारण नैनीताल का लोकप्रिय पर्यटन स्थल डोरोथी की सीट, जिसे टिफिन टॉप भी कहते हैं, भूस्खलन की चपेट में आकर नष्ट हो गया था। तब नैनीताल के एस डी एम साहिब प्रमोद जी से मेरी बातें हुई थी इसे पुनः निर्मित किया जा सकता है या नहीं। उन्होंने कहा था प्रयास तो जारी ही रहेगा , तब छपने के लिए उन्होंने ढ़ेर सारी फोटो भेज दी थी।
यह सुन कर मैं कितना भावुक हो गया था अनु ? हमने कितने क्षण यहाँ बिताये थे अनु तुम्हें तो याद ही होगा। नवीन दा कह रहें थे ,इस घटना में हालाँकि किसी के हताहत होने की सूचना नहीं थी , लेकिन पहाड़ी में दरारें आने से यह संरचना पूर्णतः ढह गई थी।
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है शॉर्ट रील : नैनीताल का यह प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जो २२९० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है,जहाँ शांति ही थी शांति। हमने अपनी मीडिया के लिए कितनी शॉर्ट रील बनायी थी। शेरवुड स्कूल , इसका स्विमिंग पूल, राज भवन का गोल्फ कोर्स सब की क्लिपिंग हमने ली थी। तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है इस गाने की शॉर्ट रील बहुत ही अच्छी बनी थी। महेश दा की कैंटीन में चाय और मैगी भी खायी थी।
इसे ब्रिटिश अधिकारी कर्नल केलेट ने अपनी पत्नी डोरोथी की याद में बनवाया था, जो उनकी पत्नी को प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए एक मंच प्रदान करता था। यह टिफिन टॉप के नाम से भी जाना जाता है और नैनीताल के स्थानीय यहाँ आ कर पिकनिक भी मनाते है। झील के अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। अब तो वहां से झील भी नहीं दिखती है ,अनु। एक बड़ा कोना ही टूट कर गिर गया है।
कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम : देर रात ही हमें दिल्ली से अपने गंतव्य स्थान के लिए निकलना पड़ा। पत्रकारों ,कहानीकारों का जीवन ऐसे ही जोख़िम भरा होता है। कब हमें रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़े ,कहाँ जाना पड़े ,कोई सुनिश्चित नहीं होता । हम आदेश के पालक होते हैं। पल में हम कहाँ होंगे हम भी नहीं जानते है।
कैमरा , लैप टॉप , मोबाइल ,बैटरी, वाई फाई ,चार्जर,आई कार्ड, डेविड कार्ड बगैरह आदि सब मैंने अपने बैग में सुबह रख लिया था। देर दोपहर तक़ ९०२ किलोमीटर की दूरी तय कर हमें नैनीताल पहुंच ही जाना था । सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था।
मेरी सुविधा के लिए ही मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ।
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं। इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी ।
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी।
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था।
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है।
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर।
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| अयारपाटा के डोर्थी सीट से दिखती नैनीताल की पहाड़ियां : गवाह है : फोटो महेश. | 
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धारावाहिक यात्रा संस्मरण
धारावाहिक यात्रा संस्मरण
नवरात्रि  नैनीताल और शक्ति नैना देवी मंदिर.
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डॉ.मधुप.
शक्ति. नैना सुनीता प्रिया अनुभूति   
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यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार. 
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गतांक से आगे : २. 
सप्तमी : शक्ति पाषाण देवी : नैनी झील. 
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कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम. 
नवीन दा बतला रहे थे नैनीताल में दुर्गा पूजा महोत्सव की तैयारियां चल रही हैं, जिसमें साफ-सफाई, लाइटिंग, मोबाइल टॉयलेट, यातायात नियंत्रण और शांति व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन, पुलिस और विभागों को निर्देश दिए गए हैं. यह धार्मिक और पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण शहर अपनी धार्मिक और पर्यटन नगरी की पहचान को मजबूत करते हुए इस आयोजन को भव्य रूप में मनाता है हमेशा की तरह इस साल भी बजरी वाले मैदान में ही रावण दहन की व्यवस्था की गई है। हम सभी शक्ति के आगमन की प्रतिक्षा में ही है। यह उत्सव देवी दुर्गा के कैलाश पर्वत से अपने मायके लौटने का प्रतीक है और पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। 
शक्ति महोत्सव के दौरान विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ, जैसे कलात्मक पंडालों का निर्माण और देवी दुर्गा की सुंदर मूर्तियों की स्थापना शामिल है.लोग नए कपड़े पहनते हैं, पारंपरिक भोजन और मिठाइयों का आनंद लेते हैं.उत्सव के दौरान नृत्य, नाटक, राम लीला और संगीत जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। शक्ति पीठ नैना की सरोवर नगरी में शक्ति पूजा की विशेष धूम होती है। 
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| फोटो : शक्ति अनु | 
सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था। मेरी सुविधा के लिए ही मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ।
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं। इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी ।
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी।
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था।
सामने वायी तरफ़ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है।
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर।
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हिंदी धारावाहिक : यात्रा संस्मरण. 
गतांक से आगे : ३ .
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सप्तमी , महाष्टमी के दिन मैं कैसे भूल सकता हूँ ? 
शक्ति स्वरूपा लाल सुर्ख साड़ी,
तुमने कभी मुझे बतलाया था नैनीताल का पाषाण देवी मंदिर आस्था और चमत्कार का अद्भुत केंद्र है. नैनी झील के किनारे स्थित ठण्डी सड़क से सटे यह मंदिर शक्ति  दुर्गा के नौ स्वरूपों का अद्वितीय स्थल है, जहाँ सब की अभिलाषा पूरी हो सकती है ...पंडित जी महाराज बतला रहें थे आज सप्तमी अष्टमी दोनों की मिश्रित तिथि है। कल शाम तक़ अष्टमी तिथि रहेगी ....ये हिंदी महीने की तिथि गणना कभी समझ में नहीं आयी..... अनु !
महाष्टमी : आज की तरह ही एक साल पूर्व भी  नवरात्रि अष्टमी महागौरी की तिथि थी।आपने सुबह  सबेरे चाय की प्याली देते समय यह बतला दिया था कि आज हमें माँ पाषाण देवी के दर्शन करने हेतु जाना है। आप अष्टमी का व्रत भी रखेंगी।
मैंने यह तय कर लिया था कि मैं नहा धोकर पूरी तरह से तैयार मिलूंगा ताकि आप की पूजा,आराधना में तनिक भी विलंब ना हो सके और आप नियमित समय से पूजा कर सके । 
याद है अनु  हम कितना समयबद्ध थे। प्रातः ८ बजे तक हम तैयार भी हो गए थे।
यहीं तो शाश्वत प्रेम हैं न, अनु.....? बिन बोले सम्यक मार्ग ,सम्यक कर्म की ओर हम सभी प्रवृत हो। है ना ....! 
माल रोड पर लम्बा जाम लगा हुआ था, और मेरी गाड़ी कतार में खड़ी थी। मुझे शायद इसकी तनिक फ़िक्र भी नहीं थी ,मैं तो कहीं और खोया हुआ था । अतीत में ,ये वही पल दो पल की हमारी तुम्हारी यादें हैं जो मेरे जीवन भर की अर्जित सम्पत्ति है। 
महाष्टमी के दिन मैं कैसे भूल सकता हूँ ? शक्ति स्वरूपा लाल सुर्ख साड़ी,पैरों में आलता लगाए, पीली चुनरी और हल्के आभूषण के श्रृंगार में आप दिव्य रूप में जैसे मां की शक्ति का प्रतीक ही दिख रही थी।शांति  स्वरूपा भी। 
सच कहें तो मुझे शांति और शक्ति दोनों अधिकाधिक चाहिए था ,है न। शांति लिखने मात्र के लिए और शक्ति स्वास्थ्य के लिए। ये दोनों चीजें ही अहम हैं हमारे लिए। मन अशांत हो तो लिख नहीं पाता हूँ। सब ख़ुशी व्यर्थ रहती है । शक्ति नहीं है तो जीवन आश्रित और निरर्थक हो जाता है ,किसी शरणार्थी की भांति । 
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| नैनी झील ,ठंढी सड़क और माँ पाषाण देवी मंदिर : फोटो कोलाज : शक्ति डॉ सुनीता शक्ति प्रिया अनुभूति | 
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| फोटो : शक्ति अनु | 
सच में मुझे रामलीला की भीड़ भी दिखी थी मल्ली ताल में। निर्माण कार्य प्रगति पर था इसलिए आम लोगों को काफ़ी परेशानी हो रही थी। 
मुझे याद आया प्रत्यक्ष था कि ५०० मीटर की दूरी तक हमें पैदल ही चलना था क्योंकि इधर ठंडी सड़क पर कोई रिक्शा आदि नहीं चलता है । हम बड़े आराम से कदम बढ़ा रहे थे,ताकि बातें भी होती रहें, कहानी भी बयां होती रहे। 
हाथ में पूजा की थाली लिए ठंडी सड़क पर चलते हुए आपने माता पाषाण देवी के बारे में बतलाना शुरू कर दिया था। मैं जिज्ञासु बना आपकी बातों को बड़ा एकाग्रता से ध्यान पूर्वक सुन रहा था।
हाथ में पूजा की थाली लिए ठंडी सड़क पर चलते हुए आपने माता पाषाण देवी के बारे में बतलाना शुरू कर दिया था। मैं जिज्ञासु बना आपकी बातों को बड़ा एकाग्रता से ध्यान पूर्वक सुन रहा था।
जानते है, ......' नैनी झील के किनारे पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में शक्ति भगवती विराजमान हैं। मंदिर में माता की प्राकृतिक रूप से मूर्ती स्थापित है और माना जाता है कि यहां देवी शक्ति  साक्षात रूप से वास करती हैं। 
आगे तुम बता रही थी , ' मंदिर की एक विशेषता ये भी है यहां आप देवी  भगवती के पूरे नौ रूपों के दर्शन कर सकते हैं। यहां आने वाले हर चर्म रोगी को अपनी बीमारी से छुटकारा मिलता है। यही नहीं, अगर किसी को भी हकलेपन की समस्या है, वो भी पाषाण देवी दूर कर देती है।.....सुन रहें है ना ? '
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| ठंढी सड़क और पाषाण देवी प्रवेश द्वार : नैनीताल फोटो : साभार | 
मां पाषाण देवी : शक्ति पीठें  '..माता  की भक्ति में ही अपरंपार शक्ति है। मां तो सती का रूप ही है। आपको भी ज्ञात है कि माँ पार्वती की देह से अलग होकर उनके अंग जहाँ - जहां गिरे वहां शक्तिपीठें निर्मित होती चली गईं। प्रतीत होता है माता पार्वती के नयन नैनीताल में गिरे थे और उनसे निःसृत होती आंसुओं की धारा से नैनी झील का निर्माण हुआ था । .....क्योंकि दिखने इस झील की आकृति ही आँख जैसी ही हैं। '
'.....याद है आपको ...जब हम चाइना पीक गए थे तो वहां से नीचे झील देखी थी ,तो यह झील माँ की आँखों जैसी दिख रही थी । .....दिख रही थी न ?'
'.....याद है आपको ...जब हम चाइना पीक गए थे तो वहां से नीचे झील देखी थी ,तो यह झील माँ की आँखों जैसी दिख रही थी । .....दिख रही थी न ?'
' ...इस झील के किनारे ही मल्लीताल में माता नैना देवी का मंदिर है जो आपने देखा ही है। और ठीक उस जगह से ही तल्लीताल की तरफ जाने के लिए ठंडी सड़क आरम्भ होती है। ...हमलोग तो मंदिर कितनी दफ़ा गए है,गए है न ....?
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पाषाण देवी : लघु फिल्म : शक्ति. बीना नवीन जोशी.
पाषाण देवी : लघु फिल्म : शक्ति. बीना नवीन जोशी.
निदेशिका सम्पादिका : शक्ति बीना नवीन जोशी : नवीन समाचार : नैनीताल : 
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हिंदी धारावाहिक : यात्रा संस्मरण. 
गतांक से आगे : ४  .
नैनीताल, शक्ति पीठ नैना देवी मंदिर,का दर्शन. मल्ली ताल 
गतांक से आगे. ४ . झील के उस पार,तल्लीताल :. 
आज आश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी की तिथि थी। सिद्धिदात्री  का दिन था। आर्य समाज मंदिर से सुबह सबेरे ही मैं नहा धो कर माता के दर्शन के लिए निकल गया था। सोचा पहले माता के दर्शन के बाद कुछ काम करूँगा। 
इस मंदिर परिसर में तो हम कितनी बार आ चुके थे अनु ..? ...है ना ! यही कोई चार पांच बार ..
शक्ति नैना देवी मंदिर : सबेरे के आठ बज रहे थे। धूप अभी तीखी नहीं हुई थी। मंदिर में सैलानी थे ही नहीं। ले दे के स्थानीय लोग ही थे। मैंने चढ़ावे के लिए कुछ प्रसाद ले लिया था। मंदिर में प्रवेश करते ही हनुमान जी दिख गए। 
नैनीताल में नैनी झील के ठीक उत्तरी किनारे पर जन आस्था का मंदिर नैना देवी मंदिर स्थित है। सन १८८० में जब भयंकर भूस्खलन  नैनीताल में आया था तब यह मंदिर उस प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था। बाद में भक्त जनों और श्रद्धालुओं ने इसे दोबारा बनाया था । यहाँ सती या कहें माता पार्वती की शक्ति के रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में उनके दो नेत्र वर्त्तमान हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। 
नैनी झील के बारे में माना जाता है जब शिव सती  की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहें  थें  तब जहां जहां उनके शरीर के खंडित अंग गिरे  वहां वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इसी धार्मिक भावना से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गयी थी। 
माँ नयना देवी के मंदिर के देखभाल का जिम्मा अमर उदय ट्रस्ट करती है। 
पौराणिक गाथा : वही है जो हमने कई बार सुनी है। जब शिव सती के जले अंग को लेकर की कैलाश पर्वत की तरफ जा रहें थे तो उनके भीतर बैराग्य भाव  उमड़ पड़ा था। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कंधे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया था तो देव गण चिंतित हो गए थे। ऐसी स्थिति में सती के शरीर को खंडित किया गया। अतएव जहां जहां पर सती के शरीर के विभिन्न अंग गिरे वहां वहां पर शक्तिपीठों के निर्माण हो गए। यहां पर नैनीताल में सती  के नयन  गिरे थे इसलिए यह स्थान नैनीताल हो गया। वहीं पर नैना देवी के रूप में उमा अर्थात नंदा देवी का स्थान हो गया आज का नैनीताल वही स्थान है जहां पर उस देवी के नयन  गिरे थे। नैनों  से बहते अश्रुधार ने यहाँ ताल का रूप ले लिया था इसलिए यह ताल नैनीताल कहलाया। तब से निरंतर यहां पर शिव - पार्वती की पूजा नैना देवी के रूप में की जाती है। 
अन्य मंदिर : नैना देवी जो मुख्य मंदिर है इसके अलावह यहाँ भैरव ,माँ संतोषी ,नवग्रह ,राधा कृष्ण ,भगवान शिव, बजरंग वली का मंदिर तथा, दशावतार कक्ष भी बने हुए हैं । मंदिर से सटे नैना देवी का धर्मशाला भी हैं जहाँ भक्त गण ठहर भी सकते हैं। 
इसके लाल टिन वाली छत देखते ही मुझे राजेश खन्ना ,तथा आशा पारेख अभिनीत  फ़िल्म कटी पतंग याद आ गयी थी जिसमें पूजा करने के लिए दोनों यहाँ आते हैं। तब उसी फ़िल्म में मैंने नैना देवी मंदिर को पहली बार सिल्वर स्क्रीन में देखा था। इसके बाद तो न जाने कितनी बार देखा। जब कभी भी मैं नैनीताल आता आप मुझे यहाँ दर्शन के लिए ले ही आती थी। 
पंडित जी ने कुछ फूल दे कर प्रसाद मुझे वापस कर दिया था। नैना देवी के दर्शन के बाद मैंने परिसर में अन्य देवी देवताओं के भी दर्शन किए। लेकिन न जाने क्यों मुझे यह बार बार लगता रहा जैसे तुम मेरे साथ हो ...और  मंदिर की परिक्रमा साथ कर रही हो ...
मंदिर परिसर में कई धागें और कई चुनरियाँ बंधी मिली थी जो लोगों ने अपने मन्नतों के लिए बाँधी थी । अरमानों के धागें, मनोकामनाओं की अनगिनित चुनरियाँ ,है न ,अनु । इनमें से दो तीन तो आपकी भी होंगी ही न ?
याद है ,मैंने एक बार इन धागों के बारें में आपसे पूछा भी था तो आप हंस कर टाल गयी थी... ' क्या करेंगे जान कर ? ,...जिस दिन आपकी हमारी मनोकामना पूरी होगी आप भी जान ही लेंगे ......। 
फ़िर एक बार बिना पूछे ही बतला दिया था ... ' ..कुछ नहीं ...बस आपके साथ जनम जनम का साथ चाहती हूँ ....'
तब मैंने कहा भी था ...' आख़िर मुझमें क्या है ,अनु ...मैं तो बस एक साधारण इंसान हूँ ...तुच्छ प्राणी मात्र हूँ ...
'.... साधारण नहीं ..बहुत कुछ है आप में ..! ..कितना ख़्याल रखते है ,मेरा ...सब का.. ! ..सच कहें ... तो लोग ठीक से समझ ही न पाए आपको ....!
'..सही तो है ... क्या लोग समझ पाए मुझे ...नहीं न ..? ' , स्वयं की तरह व्यक्तिवादी होने की बजह से मैं अन्य से अपने लिए शांति ,धैर्य और सत्य के अन्वेषण की ही बात करता हूँ न ...? 
तुमसे ही तो मैंने जीने की कला सीखी  है , तुम अक़्सर मुझे समझाते रहती थी,  ' ...किसी नतीजें पर पहुँचने से पहले ....रुक जाओ ,ठहर जाओ ,समझ लो ..सत्य जान लो ,अपनों से संवाद कर लो ..सारी समस्याएं निराकृत हो जाएंगी ..शीघ्रता मत करो ..। 
सच में तुम्हारे बिना कितना अकेला हूँ , मैं ..भाव से ...संवाद से ..अस्तित्व से ..व्यक्तित्व से। एकदम सा अधूरा ..अपूर्ण...। 
तुम्हारी अनुपस्थिति में आज उदासी के बादल फ़िर से मेरे मन में घनीभूत हो गए थे। जैसे मेरी ऑंखें कब की बरस जाएंगी। 
उदास होते हुए मैं मंदिर से सटे रेलिंग के किनारे झील को देखने सरक आया था कि झील के मध्य में तैरती हुई नौकाओं को देख कर मुझे फिर से कुछ याद आ गया.....  
सच कहें तो झील के बीच में तुम्हें ही तलाश कर रहा था ,अनु । तुम्हारे लिए, तुम्हारी तलाश में पहाड़ियों में चिर निरंतर से भटकती हुई आत्मा ही बन गया हूं ना मैं ? हैं ना। 
तुम्हें याद हैं ना ,अनु इसी झील के किनारे इसी मंदिर परिसर में वापस लौटने के क्रम में तुमने मेरी सूखी हाथों को अपनी बर्फ़ जैसी कनकनी देने वाली नर्म हथेली से स्पर्श कर कहा था , ' ....ऐसा करते है नाव किराये पर ले लेते है ...और यही से तल्ली ताल चलते है...।' 
झील के उस पार,तल्लीताल :ऐसा कह कर तुम अपनी बच्चों वाली ज़िद ले कर बोट में बैठ गयी थी,है ना ? 
 क्या करता,मुझे भी तुम्हारा साथ देने के लिए तुम्हारे लिए नाव में बैठना पड़ा था। नाव वाले से तुमने चप्पू भी ले लिए थे या कहें छीन ही लिया था और हम सभी नाव खेते हुए झील के बीचोबीच पहुंच गए थे। पानी से कितना डर लग रहा था। हमदोनों में से कोई भी तैरना नहीं जानता था। सामने ठंढी सड़क पर स्थानीय लोग आ जा रहें थे। बाहर वाले शायद कम ही होंगे।
क्या करता,मुझे भी तुम्हारा साथ देने के लिए तुम्हारे लिए नाव में बैठना पड़ा था। नाव वाले से तुमने चप्पू भी ले लिए थे या कहें छीन ही लिया था और हम सभी नाव खेते हुए झील के बीचोबीच पहुंच गए थे। पानी से कितना डर लग रहा था। हमदोनों में से कोई भी तैरना नहीं जानता था। सामने ठंढी सड़क पर स्थानीय लोग आ जा रहें थे। बाहर वाले शायद कम ही होंगे। गोलू देवता मंदिर की तरफ़ देखते हुए न जाने तुम इतना भावुक क्यों हो गयी थी ..' इस झील में मैं डूब कर मर जाऊं ...और आप मेरी आँखों के सामने हो तो समझूंगी जीना सार्थक हो गया है ... भला  तुम कैसी बहकी बहकी बातें कर रही थी ,अनु । 
भगवान न करें ऐसा हो जाए। गोलू देवता का आशीर्वाद सब के ऊपर हो। सभी लोग सुखी रहें और निरोग भी। पहाड़ी लोगों के आराध्य देव है गोलू देवता। तुम भी तो अतीव विश्वास करती हो ना। तब संध्या  आरती का वक़्त हो रहा था ...न ? 
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लिखी हैं मैंने चिट्ठी : गोलू देवता को 
शॉर्ट रील : शक्ति प्रिया मीना सुनीता मानसी 
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हिंदी धारावाहिक : यात्रा संस्मरण. 
 नैनीताल और शक्ति नैना देवी मंदिर, 
बजरी वाला मैदान : रावण दहन 
आखिरी क़िस्त .गतांक से आगे.५ .विजयादशमी. 
*
डॉ.मधुप.
शक्ति. नैना सुनीता प्रिया अनुभूति.   
*
यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार. 
*
आज विजयादशमी की तिथि थी। महानवमी के बाद पूरे देश में असत्य पर सत्य की विजय का पर्व दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन भगवान श्रीराम ने दशानन रावण का वध किया था ,तभी से इस दिवस को समस्त भारत में विजयादशमी के पर्व बतौर मनाया जाता है। 
नवरात्रि समाप्त हो चुकी थी। आज दशमी का पर्व था। लोगों से मिलकर उनके साथ की गई बातचीत के आधार पर ख़ास कर आज की विशेष रिपोर्टिंग कर मुझे लौटना भी था।  सामान बगैरह मैंने पूर्व में ही बांध लिया था। मल्लीताल के फ्लैटस एवं तल्लीताल बस स्टैंड के पास में रावण तथा उसके कुल के पुतले दहन की तैयारी की जा चुकी थी। तल्लीताल में चूंकि जगह ज्यादा नहीं थी इसलिए रावण के पुतले को छोटा आकार ही दिया गया था। 
मल्लीताल के बजरी वाले मैदान में इसकी पूरी तैयारी प्रशासन ने कर ली थी। चूँकि यह मैदान बड़ा था मेरे आर्य समाज मंदिर के समीप था तो शाम सवा सात बजे की रिपोर्टिंग कर लौट भी सकता था। हल्द्वानी लौटने के लिए कार का इंतजाम हो चुका था। इसलिए कोई हड़बड़ी या चिंता वाली बात नहीं थी। हमें महज़ समयबद्ध रहना था। 
हम विजयादशमी पर्व के निहित संदेश पर अब भी हम गौर कर ले। इस त्योहार का यह संदेश हमारे समक्ष है ,इसे देने का प्रयास इसके निमित इसलिए किया गया है कि व्यक्ति के द्वारा किए गए हज़ार महान कर्मों के उपर उसके पाप भारी पड़ जाते हैं। और उसका पतन आरम्भ हो जाता है। इसलिए हमें अधर्म से बचना चाहिए। और धर्म के रास्ते में आने वाली हर रुकावट व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा है, पर उस संघर्ष के आगे जीत भी है जैसे राम की हुई थी ।
हर युग में राम और रावण जैसे लोग होते हैं। सतयुग में थे कलयुग में तो भरे पड़े हैं। यहाँ सीता भी बदनाम हो जाती हैं।  सीता पर उंगली उठाने वाले लोग भी बहुतेरे हैं । कल्पना कीजिए सीता पर भी प्रश्न  उठ गए तो हम और आप कहाँ है । कैकई - मंथरा, शबरी - केवट , विभीषण , कुंभकर्ण ,जटायु , सूर्पनखा जैसे लोग हमारे आस पास ही मौजूद रहते  हैं। हमारा जीवन एक रंगमंच के समान है जहां हर मानव को अपना किरदार मिला हुआ है।  ईमानदारी से अच्छें क़िरदार निभाने का अवसर मिला है जिसे बड़ी शिद्दत से निभाने का प्रयास कीजिए। सच के लिए खड़े हो जाए। 
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| फोटो : शक्ति अनु | 
धीरे धीरे भीड़ हटने लगी थी। मैं भी आर्य समाज मंदिर लौट चुका था। अब लौटने की बारी थी। मैंने नवीन दा को दिल से आभार प्रगट करते हुए घर लौटने की सूचना दे दी थी। 
वहाँ से वापसी का सफ़र : समय गतिशील था। आठ बजे के आस पास मेरी गाड़ी काठ गोदाम लौट रही थी। नौ बजे वहाँ से वापसी की ट्रेन थी। तुम्हारी यादों के साथ ही इस भागमभागी में मैंने अपना कार्य  भलीभांति पूरा कर लिया था।
अब सिर्फ़ तुम : मेरे मानस पटल के एक कोने में जैसे तुम शक्ति स्वरूपा हो कर हर समय उपस्थित रही थी, और मुझे जैसे निर्देशित करती  रही थी । ...इतना सब कुछ तुम्हारे बिना , लेकिन बिना किसी बाधा के  समस्त कार्य का संपन्न हो जाना ,अनु .. आश्चर्य ही था न। बोलो न ... सच कहें ....प्रतीत हो रहा था जैसे कोई दिव्य शक्ति काम कर रही हो ...
आप हरदिन अपनी प्रशासकीय व्यस्तता के बाबजूद  भी स्विट्जरलैंड से नित्य दिन टेलीफ़ोन,मोबाइल  से मेरे बारें में पूछती रहीं थी ,स्वास्थ्य के बारें में जानकारी लेती रही। हिदायत देती रहीं।  
इस भावना के लिए मैं तुम्हारे लिए क्या कहूं ...कौन से शब्द दूँ ,समझ नहीं पाता हूँ। ..शून्य में खो जाता हूँ। सोचता हूँ ...आभार प्रगट करूँ ..या आँखें बंद कर मान लूँ कि यही शाश्वत  प्रेम है। एक दूसरे को समझ लेना ,वक़्त बेवक़्त ख़्याल रखना ही तो अमर प्रेम है ....
समय पर मैं काठ गोदाम पहुँच चुका था। ...ट्रेन खुल चुकी थी, समय पर ही। अब आगे का सफ़र जारी था वापसी का .... इति शुभ । 
नैनीताल से रावण दहन की डॉ. मधुप सह डॉ.नवीन जोशी की वीडियो न्यूज़ रिपोर्ट पूर्व 
स्तंभ संपादन : शक्ति. रेनू मानसी कंचन श्रद्धा
स्तंभ सज्जा : शक्ति. तनु.मंजिता सीमा अनुभूति.
गीत लघु फिल्म : संकलन : शक्ति. डॉ.अनु मीना माधवी बीना जोशी .
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ये मेरा गीत : जीवन संगीत : कल भी कोई दोहराएगा : विजया शक्ति : तराने : पृष्ठ : ६. 
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संपादन 
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शक्ति प्रिया  मीना श्रद्धा शबनम 
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शक्ति प्रार्थना 
फिल्म : अंकुश.१९८६  
सितारे : निशा सिंह नाना पाटेकर मदन जैन 
गाना : इतनी शक्ति हमें देना दाता 
मन का विश्वास कमजोर हो न 
गीत : अभिलाष. संगीत : कुलदीप सिंह. गायिका : पुष्पा पगधरे सुषमा श्रेष्ठा 
गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं
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फिल्म : बत्ती गुल मीटर चालू. २०१८  
सितारे : शाहिद कपूर.श्रद्धा कपूर. 
गाना : मन पावन हो गंगा में डूबे  नहाय 
मन रावण जो लहरों में क्यों न बहाय 
गीत : सिद्दार्थ गरिमा संगीत : सचेत परम्परा. गायक : अर्जित सिंह 
गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं 
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विजया  शक्ति  : फ़िल्मी कोलाज : पृष्ठ : ७.
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संपादन 
शक्ति नैना डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया.
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| पावन जो गंगा में नहाए मन रावण जो तुमने लहरों में बहाए : नैना डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया. | 
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| नफरतों के इस जहां में हमको प्यार की वस्तियां बसानी है : शक्ति कोलाज : नैना डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया | 
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| इतनी शक्ति हमें देना दाता भूल कर भी कोई भूल हो न : डॉ.सुनीता अनीता शक्ति प्रिया | 
शक्ति विजया : कला कृति  दीर्घा : पृष्ठ : ९.
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संपादन
शक्ति. मंजिता सीमा अनुभूति प्रिया. 
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| लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल : इस्कॉन मुंबई : चयन : शक्ति प्रिया मीना सेजल अनुभूति. | 
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| दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें : शक्ति : कलाकृति : डॉ.सुनीता शक्ति नैना प्रिया. 
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समाचार : चित्र : विशेष : दृश्य माध्यम : न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११. 
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सम्पादिका 
डॉ  सुनीता रेनू शक्ति प्रिया 
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भाविकाएँ 
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कोई राम मिले तो 
तुम मुझे बतलाना 
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रावण के दर्द को 
मैं तब समझ पाया 
जब रावण ने मुझसे पूछा 
हर साल विजया दशमी को 
पूरी भीड़ लेकर 
मुझे जलाने चले आते हो 
क्या इस जन समूह में किसी में राम को पाते हो 
पाते हो तो तुम मुझे बतलाना 
फिर मुझे  उसके हाथों से ख़ुशी पूर्वक जलाना 
डॉ. मधुप 
*
नन्ही शक्तियों के अधिकारों के लिए मनाये डॉटर्स डे.
*
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दृश्यम : बेटी दिवस : शॉर्ट रील : शक्ति. रेनू शब्द मुखर |  | 
| नन्ही शक्तियां : विदिशा ऐशान्या छवि | 
लेकिन विकसित देशों में बेटी दिवस, बेटी होने और बेटी के पालन-पोषण की खुशी और आश्चर्य का जश्न मनाने का दिन है। कैसे मनाएँ: पिताओं को बेटियों को डेट पर ले जाना चाहिए, चाहे पार्क में हों या खाने पर। माताओं को प्रोत्साहन और ज्ञान के शब्द साझा करने चाहिए।
हर बिटिया के लिए  डॉटर्स डे पर आज डॉटर्स डे पर, बिटिया के लिए एक छोटी सी दुआ कहना चाहती हूँ - कि तेरी दुनिया हमेशा फूलों से भरी रहे, कदमों में सफलता के दीप जलें, और चेहरे पर हर पल मुस्कान खिली रहे। बिटिया सिर्फ एक बच्ची नहीं, एक सपना है,एक उम्मीद है, जो प्यार और संघर्ष की सबसे सुंदर गाथा है। और आज मैं यही प्रार्थना करती हूँ - कि हर बिटिया की ज़िन्दगी में कभी कोई अँधेरा न आए, सिर्फ रोशनी, प्यार और स्नेह ही उसके साथ रहे। और मैं तो यही चाहूंगी कि हर  बेटी के किस्मत में रोशनी प्यार और स्नेह उसके साथ हो
स्तंभ संपादन 
शक्ति शालिनी सीमा प्रीति अनुभूति  
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समाचार : चित्र : दिन विशेष : दृश्य माध्यम : न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११.  
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संपादन 
शक्ति. शालिनी रेनू प्रिया मीना 
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दिन विशेष : ८ अक्टूबर 
भारतीय वायु सेना दिवस. की शुभकामनायें 
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दिन विशेष : ४ अक्टूबर 
विश्व पशु कल्याण दिवस 
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सोलह शृंगार है हिंदी
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जैसे हम सब के माथे पर 
लगी हो कुमकुम बिंदी 
वैसे ही सब भाषाओं  के उपर  
सोलह शृंगार है हिंदी 
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 हम सभी देव शक्ति मीडिया परिवार की 
तरफ़ से १४ सितम्बर हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर 
अनंत शिव शक्ति शुभकामनायें 
*
शक्ति विजया : फोटो दीर्घा : कोलाज  पृष्ठ : १२.
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संपादन 
शक्ति नैना मीना अनुभूति बीना जोशी 
नैनीताल डेस्क. 
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|  | 
| विसर्जन के साथ गणपति उत्सव का समापन : नालन्दा : शक्ति. डॉ.भावना माधवी सीमा सुनीता. | 
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चलते चलते : शुभकामनाएं : दिल जो न कह सका : पृष्ठ : १३. 
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संपादन
शक्ति प्रिया डॉ. सुनीता मीना अनुभूति 
*
⭐
शुभकामनाएं : जन्म दिन की. 
३ अक्टूबर. 
शक्ति अवतरण दिवस.
                                                                                                                                                               *
शक्ति. इं.मधुलिका कर्ण 
संरक्षिका.आई टी. 
संयुक्त मीडिया एम एस वेब ब्लॉग मैगज़ीन पेज 
बैंगलोर. 
*
को उनके जन्म दिन :  शक्ति अवतरण दिवस ३ अक्टूबर  के मनभावन पावन अवसर पर  
'हम ' एकीकृत  देव शक्ति ' मीडिया ' परिवार की तरफ़ से  ढ़ेर सारी प्यार भरी
'अनंत ' ' शिव शक्ति ' शुभकामनाएं '
*
⭐
शुभकामनाएं : जन्म दिन की. 
२९. सितम्बर 
शक्ति अवतरण दिवस.
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 वेब ब्लॉग मैगज़ीन पेज महाशक्ति मीडिया
फोटो. शॉर्ट रील सम्पादिका. 
ठाणे.महाराष्ट्र 
*
को उनके जन्म दिन :  शक्ति अवतरण दिवस २९  सितम्बर के मनभावन पावन अवसर पर  
' हम ' एकीकृत देव शक्ति ' मीडिया ' परिवार की तरफ़ से ढ़ेर सारी प्यार भरी
'अनंत ' ' शिव शक्ति ' शुभकामनाएं '
' हम ' एकीकृत देव शक्ति ' मीडिया ' परिवार की तरफ़ से ढ़ेर सारी प्यार भरी
'अनंत ' ' शिव शक्ति ' शुभकामनाएं '
*
शुभकामनाएं : जन्म दिन की. 
२७. सितम्बर
शक्ति अवतरण दिवस.
सम्पादिका. 
नागपुर. महाराष्ट्र
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हमारे वेब ब्लॉग मैगज़ीन पेज महाशक्ति मीडिया की 
फोटो ' सम्पादिका '
फोटो ' सम्पादिका '
को उनके जन्म दिन :  शक्ति अवतरण दिवस २७ सितम्बर के मनभावन पावन अवसर पर  
' हम ' एकीकृत देव शक्ति ' मीडिया ' परिवार की तरफ़ से ढ़ेर सारी प्यार भरी
'अनंत ' ' शिव शक्ति ' शुभकामनाएं '
' हम ' एकीकृत देव शक्ति ' मीडिया ' परिवार की तरफ़ से ढ़ेर सारी प्यार भरी
'अनंत ' ' शिव शक्ति ' शुभकामनाएं '
*
 शुभकामनाएं : जन्म दिन की. 
२३. सितम्बर
 शक्ति अवतरण दिवस.
*
बंगलोर. 
प्रेरणा शक्ति.तनु सर्वाधिकारी.
 * 
हमारे वेब ब्लॉग मैगज़ीन पेज महा शक्ति मीडिया की
निर्भीक,संवाद पूर्ण, संरक्षण दायिनी, प्रेरणा शक्ति ' सम्पादिका '
को उनके जन्म दिन : शक्ति अवतरण दिवस २३ सितम्बर के मनभावन पावन अवसर पर
'हम ' एकीकृत देव शक्ति ' मीडिया ' परिवार की तरफ़ से ढ़ेर सारी प्यार भरी
'अनंत ' ' शिव शक्ति ' शुभकामनाएं '
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को उनके जन्म दिन : शक्ति अवतरण दिवस २३ सितम्बर के मनभावन पावन अवसर पर
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'अनंत ' ' शिव शक्ति ' शुभकामनाएं '
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आ रहे प्रकाश पर्व : दीपावली की हमारी हार्दिक अनंत शिव शक्ति शुभकामनायें 
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दिल जो न कह सका : पृष्ठ : १३. 
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डॉ सुनीता शक्ति प्रिया अनुभूति 
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तुम्हारे लिए 
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फ़िल्मी तराने : कही ये वो तो नहीं 
शॉर्ट रील : फिल्मी तराने : साभार 
तुम जो मिल गए हो तो ये लगता है 
कि जहाँ मिल गया है 
मुंबई / बारिश / मेरिन ड्राइव और मेरी यादें 
 चयन : शक्ति प्रिया मीना श्रद्धा अनुभूति*
लिखे जो ख़त तुझे जो तेरी याद में : शॉर्ट रील : 
 शक्ति प्रिया मीना श्रद्धा अनुभूति : नैनीताल डेस्क 
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साथी तेरे नाम एक दिन : जीवन कर जायेंगे 
फ़िल्म देवदास : पारो और चंद्र मुखी की पहली मुलाक़ात 
राधा ने यही पूछा था एक दिन रूठ कर श्याम से 
*
English Section.
Shakti.Pooja. Arya.Dr.Rajeev Ranjan. Child Specialist.Biharsharif. supporting 
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| * Shakti.Dr. Rashi : Gynecologist : Muzaffarpur. Bihar  *  English Section. ⭐ * Contents Page : English. Cover Page : 0. Contents Page : 1. Shakti Editorial Page : 2. Shakti Vibes  English Page : 3 Shakti Editorial Writeups : 4.  Short Reel : News : Special : English : Page : 5. Shakti Photo Gallery : English : Page : 6.  Shakti : Kriti Art  Link :  English :  Page : 7  Days Special : English : Page : 8. You Said It : Page : 9 * -------- Shakti Editorial : English Page : 2. --------- * --------- Shakti Editorial  : Page : 2 ------------ Editor :  Shakti Manjita Seema Priya Tanu Sarvadhikari. * 
  A Celebration of Faith, Culture & Togetherness Puja Fervor 2025  * a Divine Shakti Article *by * Ashok Karan. Hindustan Times ( Patna. Ranchi ) Ex.Staff Photographer Public Agenda Ex.Photo Editor :New Delhi Present : Photo Editor M.S Media Blog Magazine Page Free Lance. * Photo & Text : Ashok Karan. *  
 Durga Puja with spiritual energy, cultural pride : Durga Puja has once again transformed the city into a vibrant tapestry of faith, devotion, and festivity. From early morning rituals to late-night pandal hopping, the atmosphere is alive with spiritual energy, cultural pride, and collective joy. This year, pandals across the city have drawn massive crowds — families, children, and elders alike — dressed in colorful new attire, immersing themselves in the festive spirit. Law and order personnel and volunteers are working tirelessly to manage the surging crowds, ensuring everyone experiences the celebration safely. Several Shakti pandals stood out this season for their unique themes  : Durga Puja symbolizes the eternal triumph of good over evil, as Goddess Durga defeats Mahishasura. The festival is marked by elaborately themed pandals, dazzling LED illuminations, devotional music, and soul-stirring beats of dhak and conches. The celebrations are further enriched by cultural performances, dances like Garba in some regions, and the irresistible aroma of festive food. Several pandals have stood out this season with their unique themes and artistry. Harmu Bazaar, Garikhana, and Bakri Bazaar have recreated iconic structures. including a replica of Angkor Wat, the world’s largest Hindu temple in Cambodia. Meanwhile, Rajasthan Mitra Mandal has chosen an inspiring theme around the value of education. Each pandal not only entertains but also carries a positive social message. Trishakti : Goddess Durga with Saraswati, Lakshmi :   The idols of Goddess Durga and her divine entourage — Saraswati, Lakshmi, Ganesha, and Kartikeya — are a sight to behold. Painstakingly sculpted by artisans, many from West Bengal, the idols radiate lifelike expressions, making devotees feel as if Ma Durga herself is conversing with them. Importantly, many artisans are now using eco-friendly materials like bamboo, coir, clay, and cloth, adding a sustainable touch to the festival. On Maha Shasthi, priests at Durga Bari performed rituals to mark the formal beginning of the puja. By evening, the Goddess was adorned in vibrant new attire, her idol decorated with traditional artistry, signaling the start of days filled with devotion and festivities. Kolkata’s Durga Puja a UNESCO Intangible Cultural Heritage : Kolkata’s Durga Puja has already been recognized as a UNESCO Intangible Cultural Heritage, and its influence resonates across other regions too. Digital innovations, themed artistry, and cultural vibrancy are making pandals not just centers of worship but also hubs of creativity and community spirit. The pleasant Sunday weather only added to the enthusiasm, with thousands thronging the streets and pandals. The rhythmic beats of dhak, the blowing of conches, and the joyful dancing of devotees created an atmosphere of pure euphoria. Volunteers and police personnel guided the crowds with dedication, ensuring a smooth and safe celebration. The festival also brought a boost to local businesses. Street vendors, auto-rickshaw drivers, and food sellers enjoyed brisk trade as people indulged in mouth-watering treats — from Tikki Chaat and Samosa Chaat to Litti Chokha, Pav Bhaji, and more. Truly, Durga Puja is as much about shared meals and laughter as it is about faith and devotion. The state capital is now fully immersed in puja fervor — its streets bathed in colorful lights, its people bound together in celebration, and its spirit soaring high in devotion. Text & Photos: Ashok Karan Column Editor : Shakti Anubhuti Madhavee Tanu Shahina  Decorative : Shakti Naina Manjita Seema Shweta.  
 Jharkhand are filled with color, rhythm, and joy Today :  The streets of Jharkhand are filled with color, rhythm, and joy as young boys and girls, draped in vibrant red, white, green, and yellow traditional attire, celebrate Karma Puja (Karam Festival) with immense enthusiasm.
This age-old festival, rooted deeply in Jharkhand’s tribal culture, is dedicated to Karam Devta – the God of strength, youth, and vitality. It is a festival of brothers and sisters, symbolizing prosperity, fertility, and the eternal bond of family. Falling on the 11th day of the lunar month of Bhadra, it also marks the harvest season, making it both cultural and agrarian in essence.
Rituals & Traditions
* Youth venture into forests to collect wood, fruits, and flowers.
* Karam tree branches are brought to the village and planted at the center of celebration.
* Sisters observe fasts for the well-being of their brothers.
* Jawa seeds are planted and nurtured, later used in rituals.
* Villages echo with the sounds of Mandar, Dhol, and flute as people sing and dance in harmony.
A Festival of Brothers & Sisters : One of the most emotional aspects of Karma Puja is the bond between brothers and sisters. Married sisters, residing in their in-laws’ homes, eagerly await their brothers to bring them back to their parents’ home. Songs like “Parlai Bhado Mas, Laglak Naihar ke Aas, Kabe Aitak Bhaiya Layu Nihar” beautifully reflect this longing, adding depth and emotion to the celebration.
Even in difficult weather and overflowing rivers, brothers never fail to reach their sisters—showing the unbreakable bond nurtured by this festival. Women, adorned in red-and-white attire with Karam flowers tucked in their hair, dance gracefully in groups, symbolizing unity, love, and devotion.
Nature is the True Deity : Unlike many other festivals, Karma Puja has no idols or grand temples. Instead, nature itself is worshipped—the earth, sun, seeds, and Karam tree are at the heart of devotion. This makes the festival not just cultural, but also ecological, highlighting the belief that “God is Nature.”
Folklore of Karma & Dharma : Legend speaks of two brothers—Karma and Dharma. When Dharma once insulted Karma, he faced endless hardships. On advice from an old woman, he worshipped the Karam God with sprouted seeds of wheat, barley, grams, moong, and urad. His penance and fasting pleased Karma Devta, who forgave him, teaching generations the importance of respect, balance, and harmony with nature.
Celebration Across States While most popular in Jharkhand, Karma Puja is also celebrated in Bihar (Magadh region), West Bengal, and Chhattisgarh, especially among tribal communities like the Oraon, Munda, and Baiga. Everywhere, it is observed with vibrant dances, drum beats, and heartfelt prayers for prosperity.
This festival is not just about rituals; it is about heritage, identity, and the inseparable bond between people and nature.
Pictures: Text & Photos by – Ashok Karan and Shashti Ranjan * Column : Editing : Shakti. Dr.Bhwana Shahina  Rashmi  Sujata. Decorative : Shakti Er.Snigdha.Bani Madhvee Sangeeta. -------- Shakti Vibes : English Page : 3. --------- * Times Media Powered  Mahalaxmi Desk.Kolkotta. * * Effort of the Day. * Today's effort brings  Tomorrow's success in your life  * The Secret  Success. * The Secret of your success is determined by  your hard work and strong focus on your goal  *  Conscience Indeed  conscience lays inside us  that justifies our deeds what we do . * Preparation Journey Courage * Believe in your preparation , trust your journey, and ace your exams with courage *   Silence  & Success * Work hard in Silence  Let the Success be your Noise  * Doing best forgetting the rest. * Don't stress Do  your best Forget the rest. * No One No one likes you No one is like you * Love what you do The only way to do great work is love what you do  * Every ' failure ' is just another ' step ' closer  to a ' win '...never stop trying  *  Your Behaviour & Talent  * Talent takes you to the top  but  Your behaviour decides how long you stay there  * Education Pain and Outcomes. * Education is like sharpening a pencil. It is painful,but it is necessary for the best possible outcomes and results. * -------- Shakti Photo Gallery : English Page : 6. --------- Editor  Shakti Dr.Sunita Madhvee Seema Priya  Desk Darjeeling. * 
 Parvato Ke Dayre : It is a really passionate travelogue story that co relates human feelings with travel experiences of Nainital in a nice way. My heartiest greetings to the travelogue writer and the Shakti Editorial team for publishing this. Shakti Suman.Chandigarh. * | 









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' ॐ श्री गणेशाय नमः '
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Nainital is a must visit place for every nature lover.Trust me,you will never regret it.No, planning needed for this trip go and enjoy the nature,lets get lost in the nature.Shakti Shahina Naaz
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ReplyDeleteShakti: Shahina Naaz principal Soghra high school.
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