Shakti Vijaya : Navratri : Dashmi
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Shakti Vijaya : Navratri : Dashmi.
कृण्वन्तो विश्वमार्यम.
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आवरण पृष्ठ. .
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शक्ति विजया : शक्ति रूपेन संस्थिता : शक्ति कोलाज : नैना. डॉ.सुनीता शक्ति प्रिया. |
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फोर स्क्वायर होटल : रांची : समर्थित :आवरण पृष्ठ : विषय सूची : मार्स मिडिया ऐड : नई दिल्ली.
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पत्रिका.
पत्रिका.
अनुभाग.ब्लॉग मैगज़ीन पेज.
हिंदी.
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विषय सूची.
विषय सूची : पृष्ठ :०.
विषय सूची : पृष्ठ :०.
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कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे.प्रारब्ध : विषय सूची : पृष्ठ :०.
सम्पादित. डॉ. सुनीता सीमा शक्ति * प्रिया.
आवरण पृष्ठ :०.
हार्दिक आभार प्रदर्शन : पृष्ठ : ०
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : पृष्ठ : ०.
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : शक्ति लिंक : पृष्ठ : ०.
राधिकाकृष्ण : महाशक्ति : इस्कॉन डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / १.
रुक्मिणीकृष्ण : महाशक्ति : दर्शन दृश्यम : विचार डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / २ .
मीराकृष्ण : महाशक्ति डेस्क : मुक्तेश्वर : नैनीताल. पृष्ठ : ० / ३.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा : पृष्ठ : १.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा लिंक : पृष्ठ : १.
त्रि - शक्ति : दर्शन. पृष्ठ : १ / ०.
त्रिशक्ति : विचार : दृश्यम : पृष्ठ : १ / ० .
त्रिशक्ति : लक्ष्मी डेस्क : सम्यक दृष्टि : कोलकोता : पृष्ठ : १ / १.
त्रिशक्ति : शक्ति डेस्क : सम्यक वाणी : नैनीताल : पृष्ठ : १ / २.
त्रिशक्ति : सरस्वती डेस्क :सम्यक कर्म : जब्बलपुर : पृष्ठ : १ / ३.
महाशक्ति : जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ४.
नव जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ५.
सम्पादकीय : पृष्ठ : २.
सम्पादकीय शक्ति लिंक : पृष्ठ : २ / ०.
आकाश दीप : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : शक्ति : सम्पादकीय : प्रस्तुति. पृष्ठ :४.
सम्पादित. डॉ. सुनीता सीमा शक्ति * प्रिया.
आवरण पृष्ठ :०.
हार्दिक आभार प्रदर्शन : पृष्ठ : ०
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : पृष्ठ : ०.
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : शक्ति लिंक : पृष्ठ : ०.
राधिकाकृष्ण : महाशक्ति : इस्कॉन डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / १.
रुक्मिणीकृष्ण : महाशक्ति : दर्शन दृश्यम : विचार डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / २ .
मीराकृष्ण : महाशक्ति डेस्क : मुक्तेश्वर : नैनीताल. पृष्ठ : ० / ३.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा : पृष्ठ : १.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा लिंक : पृष्ठ : १.
त्रि - शक्ति : दर्शन. पृष्ठ : १ / ०.
त्रिशक्ति : विचार : दृश्यम : पृष्ठ : १ / ० .
त्रिशक्ति : लक्ष्मी डेस्क : सम्यक दृष्टि : कोलकोता : पृष्ठ : १ / १.
त्रिशक्ति : शक्ति डेस्क : सम्यक वाणी : नैनीताल : पृष्ठ : १ / २.
त्रिशक्ति : सरस्वती डेस्क :सम्यक कर्म : जब्बलपुर : पृष्ठ : १ / ३.
महाशक्ति : जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ४.
नव जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ५.
सम्पादकीय : पृष्ठ : २.
सम्पादकीय शक्ति लिंक : पृष्ठ : २ / ०.
आकाश दीप : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : शक्ति : सम्पादकीय : प्रस्तुति. पृष्ठ :४.
विशेषांक : आलेख : धारावाहिक आलेख : पृष्ठ : ५.
ये मेरा गीत : जीवन संगीत : कल भी कोई दोहराएगा : पृष्ठ : ६.
शक्ति विजया : फ़िल्मी कोलाज : पृष्ठ : ७.
शक्ति विजया : कला दीर्घा : रंग बरसे : पृष्ठ : ९.
समाचार : चित्र : विशेष : दृश्य माध्यम : न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११.
शक्ति विजया : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : १२.
ये मेरा गीत : जीवन संगीत : कल भी कोई दोहराएगा : पृष्ठ : ६.
शक्ति विजया : फ़िल्मी कोलाज : पृष्ठ : ७.
शक्ति विजया : कला दीर्घा : रंग बरसे : पृष्ठ : ९.
समाचार : चित्र : विशेष : दृश्य माध्यम : न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११.
शक्ति विजया : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : १२.
चलते चलते : शुभकामनाएं : दिल जो न कह सका : पृष्ठ : १३.
आपने कहा : मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ : १४.
आपने कहा : मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ : १४.
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supporting |
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शक्ति : यात्रा संस्मरण : आलेख : धारावाहिक आलेख : पृष्ठ : ५
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नैनीताल डेस्क.
संपादन.
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शक्ति.शालिनी मानसी कंचन बीना जोशी
नैनीताल डेस्क.
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धारावाहिक यात्रा संस्मरण
: नैनीताल। नैनी झील। नैना देवी : शक्ति नंदा - सुनंदा : पृष्ठ : ५ / ० .
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डॉ.मधुप.
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नैनी झील : नैना देवी : शक्ति. नंदा - सुनंदा. फोटो कोलाज : डॉ. सुनीता मधुप शक्ति प्रिया. * |
शक्ति :विजया:आलेख : पृष्ठ : २.
डॉ.सुनीता मधुप शक्ति * प्रिया.
नैनीताल। नैनी झील। जब कभी हम आए हमने शक्ति के संरक्षण में मनभावन क्षण बिताए। आसक्ति रही है इस पीठ से। मंदिर का शीर्ष ७० , ८० के दशक से ही भूल नहीं पाते है हम। शक्ति सपने में ही आती रही। पुजारी बतला रहें थे सती की वायी आँख यही कही झील के आस पास गिरी थी न ? तब से शक्ति नैना की स्मृति में नैना मंदिर निर्मित बनी। सती हमेशा याद आती है।
२०२४ का साल। गर्मियाँ थी। हम नैनीताल में ही थे। मंदिर परिसर में शक्ति नंदा सुनन्दा की भव्य तस्वीर लगी थी। शक्ति नंदा - सुनंदा के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। हमारी शक्ति सम्पादिका समूह में कई शोधार्थी शक्तियां हैं।
नवीन दा बतला रहें थे इन दिनों नैनीताल में नंदाष्टमी की सभी तैयारियां पूरी होने लगी है। इस सन्दर्भ में शक्ति नंदा सुनन्दा की प्रतिमाएं नयना देवी मंदिर में विराजमान होते ही दर्शन को भक्तों की भीड़ जुटने लगी है और समस्त नैना देवी मंदिर परिसर नंदा सुनंदा मां के जयकारों से गुंजित हो रहा है ।
नंदा - सुनंदा पूजा की परंपरा : शक्ति नंदा - सुनंदा पूजा की परंपरा का ऐतिहासिक पहलू अत्यंत समृद्ध है। मान्यता है कि यह परंपरा कुमाऊं के चंद राजाओं के समय से शुरू हुई। लोकदेवी की आराधना और राज्य की समृद्धि से शुरू यह उत्सव नगर और गांवों की सामूहिक आस्था का पर्व बन गया। याद है आज भी इस पूजा में वही ऐतिहासिक गौरव, झलकता है,जो सदियों पहले लोगों की धार्मिक भावनाओं और सामाजिक एकजुटता को मजबूत करने के लिए प्रारंभ हुआ था।
सूत्रों की माने तो श्री राम सेवक सभा द्वारा आयोजित १२३ वे श्रीनंदा देवी महोत्सव में स्थानीय लोक पारंपरिक कलाकारों द्वारा नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण को भव्य एवं जीवंत रूप दिया गया है। शक्ति नंदा जो हिमालय संस्कृति के साथ शक्ति की देवी से रूप में कुलदेवी की भांति पूजित है। जबकि शक्ति सुनंदा उनकी सहचरी स्वरूप मानी जाती हैं। नंदा-सुनंदा की पूजा स्त्री-शक्ति और बहनत्व का प्रतीक मानी जाती है। इस अवसर पर नगर और ग्रामीण अंचलों से भक्तजन डोला और छंतोली सजाकर मंदिरों में पहुंचते हैं।
सूत्रों की माने तो श्री राम सेवक सभा द्वारा आयोजित १२३ वे श्रीनंदा देवी महोत्सव में स्थानीय लोक पारंपरिक कलाकारों द्वारा नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण को भव्य एवं जीवंत रूप दिया गया है। शक्ति नंदा जो हिमालय संस्कृति के साथ शक्ति की देवी से रूप में कुलदेवी की भांति पूजित है। जबकि शक्ति सुनंदा उनकी सहचरी स्वरूप मानी जाती हैं। नंदा-सुनंदा की पूजा स्त्री-शक्ति और बहनत्व का प्रतीक मानी जाती है। इस अवसर पर नगर और ग्रामीण अंचलों से भक्तजन डोला और छंतोली सजाकर मंदिरों में पहुंचते हैं।
शक्ति. आलेख : नंदा - सुनंदा : गतांक से आगे : १.
शक्ति नंदा : द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री ' महामाया '
डॉ.सुनीता अनुभूति बीना नवीन जोशी
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शक्ति नंदा : द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री ' महामाया '
नंदा-सुनंदा की प्राण प्रतिष्ठा : पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी यह देता है, और उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं व गढ़वाल अंचलों को भी एकाकार करता है। यहीं से प्रेरणा लेकर कुमाऊं के विभिन्न अंचलों में फैले मां नंदा के इस महापर्व ने देश के साथ विदेश में भी अपनी पहचान स्थापित कर ली है।
इस मौके पर मां नंदा सुनंदा के बारे में फैले भ्रम और किंवदंतियों को जान लेना आवश्यक है। विद्वानों के इस बारे में अलग अलग मत हैं, लेकिन इतना तय है कि नंदादेवी, नंदगिरि व नंदाकोट की धरती देवभूमि को एक सूत्र में पिरोने वाली शक्तिस्वरूपा मां नंदा ही हैं। यहां सवाल उठता है कि नंदा महोत्सव के दौरान कदली वृक्ष से बनने वाली एक प्रतिमा तो मां नंदा की है, लेकिन दूसरी प्रतिमा किन की है। सुनंदा, सुनयना अथवा गौरा पार्वती की।
द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री महामाया : एक दंतकथा के अनुसार मां नंदा को द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री महामाया भी बताया जाता है जिसे दुष्ट कंस ने शिला पर पटक दिया था, लेकिन वह अष्टभुजाकार रूप में प्रकट हुई थीं। त्रेता युग में नवदुर्गा रूप में प्रकट हुई माता भी वह ही थी। यही नंद पुत्री महामाया नवदुर्गा कलियुग में चंद वंशीय राजा के घर नंदा रूप में प्रकट हुईं, और उनके जन्म के कुछ समय बाद ही सुनंदा प्रकट हुईं।
राज्यद्रोही षड्यंत्रकारी ने उन्हें कुटिल नीति अपनाकर भैंसे से कुचलवा दिया था।
उन्होंने कदली वृक्ष की ओट में छिपने का प्रयास किया था लेकिन इस बीच एक बकरे ने केले के पत्ते खाकर उन्हें भैंसे के सामने कर दिया था। बाद में यही कन्याएं पुर्नजन्म लेते हुए नंदा-सुनंदा के रूप में अवतरित हुईं और राज्यद्रोहियों के विनाश का कारण बनीं। इसीलिए कहा जाता है कि सुनंदा अब भी चंदवंशीय राजपरिवार के किसी सदस्य के शरीर में प्रकट होती हैं। इस प्रकार दो प्रतिमाओं में एक नंदा और दूसरी सुनंदा हैं। अन्य किंवदंती के अनुसार एक मूर्ति हिमालय क्षेत्र की आराध्य देवी पर्वत पुत्री नंदा एवं दूसरी गौरा पार्वती की हैं।
उन्होंने कदली वृक्ष की ओट में छिपने का प्रयास किया था लेकिन इस बीच एक बकरे ने केले के पत्ते खाकर उन्हें भैंसे के सामने कर दिया था। बाद में यही कन्याएं पुर्नजन्म लेते हुए नंदा-सुनंदा के रूप में अवतरित हुईं और राज्यद्रोहियों के विनाश का कारण बनीं। इसीलिए कहा जाता है कि सुनंदा अब भी चंदवंशीय राजपरिवार के किसी सदस्य के शरीर में प्रकट होती हैं। इस प्रकार दो प्रतिमाओं में एक नंदा और दूसरी सुनंदा हैं। अन्य किंवदंती के अनुसार एक मूर्ति हिमालय क्षेत्र की आराध्य देवी पर्वत पुत्री नंदा एवं दूसरी गौरा पार्वती की हैं।
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गतांक से आगे : / २.
शक्ति :विजया:आलेख : पृष्ठ : २.
डॉ. सुनीता मधुप शक्ति * प्रिया.
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शक्ति नयना की नगरी नैनीताल में देवी नंदा -सुनंदा
की ' लोक जात ' का आयोजन.
शक्ति :विजया:आलेख : पृष्ठ : २.
डॉ. सुनीता मधुप शक्ति * प्रिया.
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शक्ति नयना की नगरी नैनीताल में देवी नंदा -सुनंदा
की ' लोक जात ' का आयोजन.
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नैनीताल झील से सटे नैना देवी मंदिर का परिसर : फोटो कोलाज : शक्ति. विदिशा. |
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शक्ति नैना देवी मंदिर : नैनीताल मेरे जीने का शहर। मेरी आँखों में बसता है। शक्ति नैना देवी मंदिर सदैव मेरे समक्ष होती है। जीवन के समस्त क्रियाओं के अभिकेंद्र में शक्ति हैं। मैं स्वयं मान बैठा हूँ कि मैं एक शक्ति संरक्षित जीव हूँ।
सबेरे के आठ बज रहे थे। आर्य समाज मंदिर से पैदल टहलते हुए ही यहाँ तक चला आया था। धूप अभी तीखी नहीं हुई थी। मंदिर में सैलानी थे ही नहीं। ले दे के स्थानीय लोग ही थे। मैंने चढ़ावे के लिए कुछ प्रसाद ले लिया था। मंदिर में प्रवेश करते ही हनुमान जी दिख गए।
नैनीताल में नैनी झील के ठीक उत्तरी किनारे पर जन आस्था का मंदिर नैना देवी मंदिर स्थित है। सन १८८० में जब भयंकर भूस्खलन नैनीताल में आया था तब यह मंदिर उस प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था। बाद में भक्त जनों और श्रद्धालुओं ने इसे दोबारा बनाया था । यहाँ सती या कहें देवी पार्वती की शक्ति के रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में उनके दो नेत्र वर्त्तमान हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं।
नैनीताल में नैनी झील के ठीक उत्तरी किनारे पर जन आस्था का मंदिर नैना देवी मंदिर स्थित है। सन १८८० में जब भयंकर भूस्खलन नैनीताल में आया था तब यह मंदिर उस प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था। बाद में भक्त जनों और श्रद्धालुओं ने इसे दोबारा बनाया था । यहाँ सती या कहें देवी पार्वती की शक्ति के रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में उनके दो नेत्र वर्त्तमान हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं।
नैनी झील के बारे में माना जाता है जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहें थें तब जहां जहां उनके शरीर के खंडित अंग गिरे वहां वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इसी धार्मिक भावना से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गयी थी।
माँ नयना देवी के मंदिर के देखभाल का जिम्मा अमर उदय ट्रस्ट करती है।
नंदा-सुनंदा की लोक जात का आयोजन : शक्ति नंदा-सुनंदा की लोक जात का आयोजन हर साल शक्ति नैना देवी मंदिर से ही होता है। नंदा देवी मेला के दौरान किया जाता है, जो कुमाऊं क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव है। यह देवी नंदा और उनकी बहन सुनंदा की याद में मनाया जाता है, जिसमें देवी की पालकी ( डोला ) की विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। यह उत्सव १७ वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है और स्थानीय संस्कृति और अर्थव्यवस्था को दर्शाता है।
उत्सव का विवरण नाम : नंदा देवी मेला या नंदा देवी उत्सव के नाम से विदित मूलतः नैनीताल, उत्तराखंड में ही प्रचलित है । प्रारंभ समय सितंबर के महीने में, नंदाष्टमी के दौरान ही होता है । महत्वपूर्ण है यह देवी नंदा और उनकी बहन सुनंदा को समर्पित है, जो इस पहाड़ी क्षेत्र की संरक्षक देवी मानी जाती हैं।
मुख्य आयोजन बतौर देवी नंदा और सुनंदा की डोला ( पालकी ) की शोभायात्रा निकाली जाती है। बांस की खपच्चियों, केले के पेड़, रुई और कपड़े से मां की मूर्ति बनाई जाती है,जो पर्यावरण के अनुकूल होती है।ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इस उत्सव की शुरुआत १७ वीं शताब्दी में चंद राजा द्योत चंद द्वारा नंदा देवी का मंदिर बनवाने के बाद हुई।सांस्कृतिक महत्व यह उत्सव उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की समृद्धि, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण प्रतिबिंब है। यह एक पारंपरिक सांस्कृतिक उत्सव है जो स्थानीय परंपराओं और आस्था को दर्शाता है।
गतांक से आगे : ३ .
नैनीताल :नंदा देवी और नए आयाम.
शक्ति. मीना भारती बीना नवीन जोशी
अपनी पुस्तक कल्चरल हिस्ट्री आफ उत्तराखंड के हवाले से प्रो. रावत ने बताया कि सातवीं शताब्दी में बद्रीनाथ के बामणी गांव से नंदा देवी महोत्सव की शुरूआत हुई, जो फूलों की घाटी के घांघरिया से होते हुए गढ़वाल पहुंची। तब गढ़वाल ५२ गणपतियों ( सूबों ) में बंटा हुआ था। उनमें चांदपुर गढ़ी के शासक कनक पाल सबसे शक्तिशाली थे। उन्होंने ही सबसे पहले गढ़वाल में नंदा देवी महोत्सव शुरू किया। प्रो. रावत बताते हैं कि आज भी बामणी गांव में मां नंदा का महोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
वर्तमान नंदा महोत्सवों के आयोजन के बारे में कहा जाता है कि पहले यह आयोजन चंद वंशीय राजाओं की अल्मोड़ा शाखा द्वारा होता था, किंतु १९३८ में इस वंश के अंतिम राजा आनंद चंद के कोई पुत्र न होने के कारण तब से यह आयोजन इस वंश की काशीपुर शाखा द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसका प्रतिनिधित्व वर्तमान में नैनीताल सांसद केसी सिंह बाबा करते हैं।
नैनीताल की स्थापना के बाद वर्तमान बोट हाउस क्लब के पास नंदा देवी की मूल रूप से स्थापना की गई थी, १८८० में यह मंदिर नगर के विनाशकारी भूस्खलन की चपेट में आकर दब गया, जिसे बाद में वर्तमान नयना देवी मंदिर के रूप में स्थापित किया गया। यहां मूर्ति को स्थापित करने वाले मोती राम शाह ने ही १९०३ में अल्मोड़ा से लाकर नैनीताल में नंदा महोत्सव की शुरुआत की। शुरुआत में यह आयोजन मंदिर समिति द्वारा ही आयोजित होता था।
१९२६ से यह आयोजन नगर की सबसे पुरानी धार्मिक सामाजिक संस्था श्रीराम सेवक सभा को दे दिया गया, जो तभी से लगातार दो दो विश्व युद्धों के दौरान भी बिना रुके सफलता से और नए आयाम स्थापित करते हुए यह आयोजन कर रही है। यहीं से प्रेरणा लेकर अब कुमाऊं के कई अन्य स्थानों पर भी नंदा महोत्सव के आयोजन होने लगे हैं। आज के अन्य ताजा ‘ नवीन समाचार ’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
मां नयना की नगरी में होती है मां नंदा की ‘ लोक जात ’, वर्ष दर वर्ष लगातार समृद्ध हो रहा है नंदा देवी महोत्सव - यहां राज परिवार का नहीं होता आयोजन में दखल, जनता ने ही की शुरुआत, जनता ही बढ़चढ़ कर करती है प्रतिभाग।
प्रदेश में चल रही मां नंदा की ‘ राज जात ’ से इतर मां नयना की नगरी नैनीताल में माता नंदा-सुनंदा की 'लोक जात' का आयोजन किया जाता है। अमूमन १२ वर्षों के अंतराल में आयोजित होने वाली ' लोक जात ' के इतर सरोवरनगरी में १२३ वर्षों से हर वर्ष अनवरत, प्रथम व द्वितीय दो विश्व युद्ध होने के बावजूद बिना किसी व्यवधान के न केवल यह महोत्सव जारी है, वरन हर वर्ष समृद्ध भी होता जा रहा है। बिना राज परिवार द्वारा शुरू किए जनता द्वारा ही शुरू किए गए और जनता की ही सक्रिय भागेदारी से आयोजित होने वाले इस महोत्सव को आयोजक भी मां नंदा की ‘लोक जात’ मानते हैं।
गढ़वाल को एक सूत्र में पिरोने वाली मां नंदा का महोत्सव १९०३ से लगातार बीच में दो विश्व युद्धों के दौरान भी जारी रहते हुऐ १२३ वर्षों से अनवरत जारी है। यहां के बाद ही प्रदेश के अनेक स्थानों पर नंदादेवी महोत्सवा आयोजित हुए हैं, लिहाजा नैनीताल को नंदा महोत्सवों का प्रणेता भी कहा जाता है। सरोवरनगरी में नंदा महोत्सव की शुरुआत नगर के संस्थापकों में शुमार मोती राम शाह ने १९०३ में अल्मोड़ा से लाकर की थी।
वर्तमान नंदा महोत्सवों के आयोजन के बारे में कहा जाता है कि पहले यह आयोजन चंद वंशीय राजाओं की अल्मोड़ा शाखा द्वारा होता था, किंतु १९३८ में इस वंश के अंतिम राजा आनंद चंद के कोई पुत्र न होने के कारण तब से यह आयोजन इस वंश की काशीपुर शाखा द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसका प्रतिनिधित्व वर्तमान में नैनीताल सांसद केसी सिंह बाबा करते हैं।
नैनीताल की स्थापना के बाद वर्तमान बोट हाउस क्लब के पास नंदा देवी की मूल रूप से स्थापना की गई थी, १८८० में यह मंदिर नगर के विनाशकारी भूस्खलन की चपेट में आकर दब गया, जिसे बाद में वर्तमान नयना देवी मंदिर के रूप में स्थापित किया गया। यहां मूर्ति को स्थापित करने वाले मोती राम शाह ने ही १९०३ में अल्मोड़ा से लाकर नैनीताल में नंदा महोत्सव की शुरुआत की। शुरुआत में यह आयोजन मंदिर समिति द्वारा ही आयोजित होता था।
१९२६ से यह आयोजन नगर की सबसे पुरानी धार्मिक सामाजिक संस्था श्रीराम सेवक सभा को दे दिया गया, जो तभी से लगातार दो दो विश्व युद्धों के दौरान भी बिना रुके सफलता से और नए आयाम स्थापित करते हुए यह आयोजन कर रही है। यहीं से प्रेरणा लेकर अब कुमाऊं के कई अन्य स्थानों पर भी नंदा महोत्सव के आयोजन होने लगे हैं। आज के अन्य ताजा ‘ नवीन समाचार ’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
मां नयना की नगरी में होती है मां नंदा की ‘ लोक जात ’, वर्ष दर वर्ष लगातार समृद्ध हो रहा है नंदा देवी महोत्सव - यहां राज परिवार का नहीं होता आयोजन में दखल, जनता ने ही की शुरुआत, जनता ही बढ़चढ़ कर करती है प्रतिभाग।
प्रदेश में चल रही मां नंदा की ‘ राज जात ’ से इतर मां नयना की नगरी नैनीताल में माता नंदा-सुनंदा की 'लोक जात' का आयोजन किया जाता है। अमूमन १२ वर्षों के अंतराल में आयोजित होने वाली ' लोक जात ' के इतर सरोवरनगरी में १२३ वर्षों से हर वर्ष अनवरत, प्रथम व द्वितीय दो विश्व युद्ध होने के बावजूद बिना किसी व्यवधान के न केवल यह महोत्सव जारी है, वरन हर वर्ष समृद्ध भी होता जा रहा है। बिना राज परिवार द्वारा शुरू किए जनता द्वारा ही शुरू किए गए और जनता की ही सक्रिय भागेदारी से आयोजित होने वाले इस महोत्सव को आयोजक भी मां नंदा की ‘लोक जात’ मानते हैं।
गढ़वाल को एक सूत्र में पिरोने वाली मां नंदा का महोत्सव १९०३ से लगातार बीच में दो विश्व युद्धों के दौरान भी जारी रहते हुऐ १२३ वर्षों से अनवरत जारी है। यहां के बाद ही प्रदेश के अनेक स्थानों पर नंदादेवी महोत्सवा आयोजित हुए हैं, लिहाजा नैनीताल को नंदा महोत्सवों का प्रणेता भी कहा जाता है। सरोवरनगरी में नंदा महोत्सव की शुरुआत नगर के संस्थापकों में शुमार मोती राम शाह ने १९०३ में अल्मोड़ा से लाकर की थी।
स्तंभ संपादन : शक्ति. रेनू नीलम रीता तनु.
स्तंभ सज्जा : शक्ति. डॉ.अनु मंजिता सीमा अनुभूति.
गीत लघु फिल्म : संकलन : शक्ति मीना श्रद्धा नैना भारती.
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हिंदी धारावाहिक : यात्रा संस्मरण.पृष्ठ : ५ /२ .
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धारावाहिक यात्रा संस्मरण
डॉ. मधुप
शक्ति. नैना सुनीता प्रिया अनुभूति
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नवरात्रि : नैनीताल और शक्ति नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.
डॉ. मधुप रमण.
©️®️ M.S.Media.
नवरात्रि की शुरुआत : नवरात्रि की शुरुआत होने वाली थी। पितृ पक्ष के कुछ ही दिन शेष रह गए थे। दिल्ली से हमारी पत्रिका के प्रधान संपादक मनीष दा ने फ़िर से मुझे आग्रह किया कि इस साल भी नैनीताल से दशहरे की कवरेज मुझे ही करनी होगी। क्योंकि मैं नैनीताल से प्रारंभ से ही जुड़ा हुआ हूँ वहां के पत्रकारों के संपर्क में हूँ ,और लिखता रहा हूँ इसलिए उन्होंने यह दायित्व मुझे ही सौप दिया।


हालांकि इस बार मैं पश्चिम बंगाल में किसी पहाड़ी जगह सिलीगुड़ी , मिरिक, कलिम्पोंग, कुर्सियांग या दार्जलिंग जैसे इलाक़े से दशहरे की कवरेज करना चाहता था।
पश्चिम बंगाल के दशहरे के बारे में मैंने काफ़ी कुछ सुन रखा था। सोचा था इस बार अपनी आँखों से वहां की धार्मिक ,सांस्कृतिक,आस्थां से परिचित हूँगा। लेकिन मुझसे कहा गया वहां से प्रिया नवरात्रि की कवरेज कर रहीं हैं या करेंगी इसलिए मुझे अपनी मन पसंदीदा जग़ह नैनीताल से ही नवरात्री की कहानी लिखनी होगी।
अतः इसके लिए मुझे तैयार होना होगा। सच कहें बात तो दरअसल में कुछ और थी।
आप इन दिनों प्रशासकीय कार्यों के निमित यूरोप में हो रहे सम्मलेन में शिरक़त करने के लिए दस दिनों के लिए स्विट्ज़र लैंड के दौरे पर थी। और आपकी अनुपस्थिति में नैनीताल में रहना ,भ्रमण करना फिर लिखने जैसे दायित्व को पूरा करना एक बड़ा ही मुश्किल कार्य प्रतीत हो रहा था।
सच ही है ना ? तुम्हारे बिना नैनीताल में कुछेक दिन गुजार लेना कितना मुश्क़िल होगा ,अनु। शायद मैं ही जानता हूँ। संभवतः प्रेत योनि में भटकने जैसा ही मात्र।
लेखन कार्य के लिए शक्ति व परिश्रम चाहिए । मानसिक शांति भी तो जो निहायत ही जरुरी है। मेरी मानसिक शांति ,मेरी शक्ति सब कुछ तुममें तो निहित है ,न। शायद निहित रहता है और युग - युगांतर तक तुम में ही केंद्रित रहेगा। और फिल वक़्त तुम मेरे साथ हो नहीं तो इस कार्य को सफलता पूर्वक कैसे कर पाऊंगा, मैं वही सोच रहा था ? मैं दुविधा की स्थिति में था। लेकिन पत्रकारिता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया था इसलिए इसे भी मुकम्मल करना ही था, इसलिए दृढ़ होना पड़ा । जाने की तैयारी करनी ही पड़ी।
रिपोर्ट,फोटो और कवरेज के लिए इधर उधर भटकना,वो भी आपके सहयोग के बिना कितना दुष्कर कार्य होगा, हैं न अनु ? रात - दिन तुम्हारी यादों की घनी धुंध अपने मनो मस्तिष्क पर छाई रहेंगी। बाक़ी की कल्पनाएं धुंधली धुंधली सी दिखेंगी , ऐसे में मैं लिखने जैसे गुरुतर भार के साथ कितना न्याय कर पाऊंगा यह तो गोलू देवता ही जानेंगे। सच तो यही है न जो कुछ भी मैं लिखता हूँ, वह अंतर्मन के प्रभाव में रहता है। इधर हाल फिलहाल जो भी लिखता रहा ,उसके पीछे की छिपी प्रेरणा शक्ति तो आप ही रहीं हैं न ! शायद एक बजह भी।

कोई अपने घर के रहते मंदिर ,धर्मशाला और गुरुद्धारे में भला रुकता है क्या ,नहीं न ? पागल पंथी ही है, सब यही कहेंगे न ?....
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धारावाहिक यात्रा संस्मरण
धारावाहिक यात्रा संस्मरण
नवरात्रि नैनीताल और शक्ति नैना देवी मंदिर.
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डॉ.मधुप.
शक्ति. नैना सुनीता प्रिया अनुभूति
*
यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.
*
गतांक से आगे : १.
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है
*
कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम
![]() |
ये आसमां ये बादल ये रास्तें ये हवा : डोर्थी सीट : और सिर्फ तुम : कोलाज : नैनीताल : शक्ति प्रिया |
डोर्थी सीट : टिफिन टॉप और सिर्फ तुम : याद है पिछले साल ही जब जून महीने में गया था तभी एक बड़ी सी दरार दिखी थी। तभी थोड़ा थोड़ा डर लगने लगा था। आशंकाएं तब भी हुई थी।
तब क्या मालूम था कि ठीक दो तीन महीने बाद ही लगातार हुई मानसूनी बारिश के कारण. पहाड़ी में दरारें आ जायेंगी , जिससे डोर्थी सीट की संरचनात्मक अखंडता प्रभावित होगी और डोरोथी की सीट का मंच ढह जायेगा । हमारी कितनी यादें जुड़ी थी ?
अगस्त २०२४.पिछले साल की ही तो बात थी। नवीन दा बतला रहें थे भारी मानसूनी बारिश के कारण नैनीताल का लोकप्रिय पर्यटन स्थल डोरोथी की सीट, जिसे टिफिन टॉप भी कहते हैं, भूस्खलन की चपेट में आकर नष्ट हो गया था। तब नैनीताल के एस डी एम साहिब प्रमोद जी से मेरी बातें हुई थी इसे पुनः निर्मित किया जा सकता है या नहीं। उन्होंने कहा था प्रयास तो जारी ही रहेगा , तब छपने के लिए उन्होंने ढ़ेर सारी फोटो भेज दी थी।
यह सुन कर मैं कितना भावुक हो गया था अनु ? हमने कितने क्षण यहाँ बिताये थे अनु तुम्हें तो याद ही होगा। नवीन दा कह रहें थे ,इस घटना में हालाँकि किसी के हताहत होने की सूचना नहीं थी , लेकिन पहाड़ी में दरारें आने से यह संरचना पूर्णतः ढह गई थी।
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है शॉर्ट रील : नैनीताल का यह प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जो २२९० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है,जहाँ शांति ही थी शांति। हमने अपनी मीडिया के लिए कितनी शॉर्ट रील बनायी थी। शेरवुड स्कूल , इसका स्विमिंग पूल, राज भवन का गोल्फ कोर्स सब की क्लिपिंग हमने ली थी। तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है इस गाने की शॉर्ट रील बहुत ही अच्छी बनी थी। महेश दा की कैंटीन में चाय और मैगी भी खायी थी।
इसे ब्रिटिश अधिकारी कर्नल केलेट ने अपनी पत्नी डोरोथी की याद में बनवाया था, जो उनकी पत्नी को प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए एक मंच प्रदान करता था। यह टिफिन टॉप के नाम से भी जाना जाता है और नैनीताल के स्थानीय यहाँ आ कर पिकनिक भी मनाते है। झील के अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। अब तो वहां से झील भी नहीं दिखती है ,अनु। एक बड़ा कोना ही टूट कर गिर गया है।
कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम : देर रात ही हमें दिल्ली से अपने गंतव्य स्थान के लिए निकलना पड़ा। पत्रकारों ,कहानीकारों का जीवन ऐसे ही जोख़िम भरा होता है। कब हमें रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़े ,कहाँ जाना पड़े ,कोई सुनिश्चित नहीं होता । हम आदेश के पालक होते हैं। पल में हम कहाँ होंगे हम भी नहीं जानते है।
कैमरा , लैप टॉप , मोबाइल ,बैटरी, वाई फाई ,चार्जर,आई कार्ड, डेविड कार्ड बगैरह आदि सब मैंने अपने बैग में सुबह रख लिया था। देर दोपहर तक़ ९०२ किलोमीटर की दूरी तय कर हमें नैनीताल पहुंच ही जाना था । सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था।
मेरी सुविधा के लिए ही मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ।
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं। इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी ।
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी।
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था।
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है।
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर।
अगस्त २०२४.पिछले साल की ही तो बात थी। नवीन दा बतला रहें थे भारी मानसूनी बारिश के कारण नैनीताल का लोकप्रिय पर्यटन स्थल डोरोथी की सीट, जिसे टिफिन टॉप भी कहते हैं, भूस्खलन की चपेट में आकर नष्ट हो गया था। तब नैनीताल के एस डी एम साहिब प्रमोद जी से मेरी बातें हुई थी इसे पुनः निर्मित किया जा सकता है या नहीं। उन्होंने कहा था प्रयास तो जारी ही रहेगा , तब छपने के लिए उन्होंने ढ़ेर सारी फोटो भेज दी थी।
यह सुन कर मैं कितना भावुक हो गया था अनु ? हमने कितने क्षण यहाँ बिताये थे अनु तुम्हें तो याद ही होगा। नवीन दा कह रहें थे ,इस घटना में हालाँकि किसी के हताहत होने की सूचना नहीं थी , लेकिन पहाड़ी में दरारें आने से यह संरचना पूर्णतः ढह गई थी।
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है शॉर्ट रील : नैनीताल का यह प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जो २२९० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है,जहाँ शांति ही थी शांति। हमने अपनी मीडिया के लिए कितनी शॉर्ट रील बनायी थी। शेरवुड स्कूल , इसका स्विमिंग पूल, राज भवन का गोल्फ कोर्स सब की क्लिपिंग हमने ली थी। तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है इस गाने की शॉर्ट रील बहुत ही अच्छी बनी थी। महेश दा की कैंटीन में चाय और मैगी भी खायी थी।
इसे ब्रिटिश अधिकारी कर्नल केलेट ने अपनी पत्नी डोरोथी की याद में बनवाया था, जो उनकी पत्नी को प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए एक मंच प्रदान करता था। यह टिफिन टॉप के नाम से भी जाना जाता है और नैनीताल के स्थानीय यहाँ आ कर पिकनिक भी मनाते है। झील के अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। अब तो वहां से झील भी नहीं दिखती है ,अनु। एक बड़ा कोना ही टूट कर गिर गया है।
कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम : देर रात ही हमें दिल्ली से अपने गंतव्य स्थान के लिए निकलना पड़ा। पत्रकारों ,कहानीकारों का जीवन ऐसे ही जोख़िम भरा होता है। कब हमें रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़े ,कहाँ जाना पड़े ,कोई सुनिश्चित नहीं होता । हम आदेश के पालक होते हैं। पल में हम कहाँ होंगे हम भी नहीं जानते है।
कैमरा , लैप टॉप , मोबाइल ,बैटरी, वाई फाई ,चार्जर,आई कार्ड, डेविड कार्ड बगैरह आदि सब मैंने अपने बैग में सुबह रख लिया था। देर दोपहर तक़ ९०२ किलोमीटर की दूरी तय कर हमें नैनीताल पहुंच ही जाना था । सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था।
मेरी सुविधा के लिए ही मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ।
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं। इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी ।
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी।
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था।
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है।
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर।
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अयारपाटा के डोर्थी सीट से दिखती नैनीताल की पहाड़ियां : गवाह है : फोटो महेश. |
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स्तंभ संपादन : शक्ति. रेनू नीलम मानसी श्रद्धा
स्तंभ सज्जा : शक्ति. तनु.मंजिता सीमा अनुभूति.
गीत लघु फिल्म : संकलन : शक्ति. डॉ.अनु मीना माधवी बीना जोशी .
आगे जारी..
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धारावाहिक यात्रा संस्मरण
धारावाहिक यात्रा संस्मरण
नवरात्रि नैनीताल और शक्ति नैना देवी मंदिर.
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डॉ.मधुप.
शक्ति. नैना सुनीता प्रिया अनुभूति
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यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.
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गतांक से आगे : २ .
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है
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कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम
सप्तमी की देर रात ही हमें अपने गंतव्य स्थान के लिए निकलना पड़ा। पत्रकारों ,कहानीकारों का जीवन ऐसे ही जोख़िम भरा होता है। कब हमें रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़े ,कहाँ जाना पड़े ,कोई सुनिश्चित नहीं होता । हम आदेश के पालक होते हैं। पल में हम कहाँ होंगे हम भी नहीं जानते है। कैमरा , लैप टॉप , मोबाइल ,बैटरी, वाई फाई ,चार्जर,आई कार्ड, डेविड कार्ड बगैरह आदि सब मैंने अपने बैग में सुबह रख लिया था। देर दोपहर तक़ ९०२ किलोमीटर की दूरी तय कर हमें नैनीताल पहुंच ही जाना था ।
सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था। मेरी सुविधा के लिए ही मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ।
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं। इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी ।
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी।
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था।
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है।
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर।
सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था। मेरी सुविधा के लिए ही मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ।
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं। इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी ।
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी।
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था।
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है।
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर।
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शक्ति विजया : फ़िल्मी कोलाज : पृष्ठ : ७.
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संपादन
शक्ति नैना डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया
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नफरतों के इस जहां में हमको प्यार की वस्तियां बसानी है : शक्ति कोलाज : नैना डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया |
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इतनी शक्ति हमें देना दाता भूल कर भी कोई भूल हो न : डॉ सुनीताअनीता शक्ति प्रिया |
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शक्ति विजया : कला दीर्घा : रंग बरसे : पृष्ठ : ९.
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संपादन
शक्ति. मंजिता सीमा अनुभूति प्रिया.
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इतनी शक्ति हमें देना शक्ति मन का विश्वास कमजोर हो न : नैना शक्ति माधवी सीमा प्रिया . साभार
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शक्ति विजया : फोटो दीर्घा : कोलाज पृष्ठ : १२.
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संपादन
शक्ति नैना मीना अनुभूति बीना जोशी
नैनीताल डेस्क.
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विसर्जन के साथ गणपति उत्सव का समापन : नालन्दा : शक्ति. डॉ.भावना माधवी सीमा सुनीता. |
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चलते चलते : शुभकामनाएं : दिल जो न कह सका : पृष्ठ : १३.
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शक्ति प्रिया डॉ. सुनीता मीना
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फ़िल्मी तराने : कही ये वो तो नहीं
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English Section.
Shakti.Pooja. Arya.Dr.Rajeev Ranjan. Child Specialist.Biharsharif. supporting
' ॐ श्री गणेशाय नमः '
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ReplyDeleteParvato Ke Dayre : It is a really passionate travelogue story that co relates human feelings with travel experiences of Nainital in a nice way.
ReplyDeleteMy heartiest greetings to the travelogue writer and the Shakti Editorial team for publishing this.
Shakti Suman.Chandigarh.