Shakti Vijaya : Navratri : Dashmi

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  Shakti Project.
Shakti Vijaya : Navratri : Dashmi.
कृण्वन्तो विश्वमार्यम. 
In association with.
A & M Media.
Pratham Media.
Times Media.
Presentation.
Blog Address : msmedia4you.blogspot.com
email : m.s.media.presentation@ gmail.com.
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 Theme Address.
*
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आवरण पृष्ठ. .


शक्ति विजया : शक्ति रूपेन संस्थिता : शक्ति कोलाज :
नैना. डॉ.सुनीता शक्ति प्रिया.

फोर स्क्वायर होटल : रांची : समर्थित :आवरण पृष्ठ : विषय सूची : मार्स मिडिया ऐड : नई दिल्ली.
*

*
पत्रिका.
अनुभाग.ब्लॉग मैगज़ीन पेज.
हिंदी.

विषय सूची.
विषय सूची : पृष्ठ :०.

कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे.प्रारब्ध : विषय सूची : पृष्ठ :०.
सम्पादित. डॉ. सुनीता सीमा शक्ति * प्रिया.
आवरण पृष्ठ :०.
हार्दिक आभार प्रदर्शन : पृष्ठ : ०
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : पृष्ठ : ०.
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : शक्ति लिंक : पृष्ठ : ०.
राधिकाकृष्ण : महाशक्ति : इस्कॉन डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / १.
रुक्मिणीकृष्ण : महाशक्ति : दर्शन दृश्यम : विचार डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / २ .
मीराकृष्ण : महाशक्ति डेस्क : मुक्तेश्वर : नैनीताल. पृष्ठ : ० / ३.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा : पृष्ठ : १.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा लिंक : पृष्ठ : १.
त्रि - शक्ति : दर्शन. पृष्ठ : १ / ०.
त्रिशक्ति : विचार : दृश्यम : पृष्ठ : १ / ० .
त्रिशक्ति : लक्ष्मी डेस्क : सम्यक दृष्टि : कोलकोता : पृष्ठ : १ / १.
त्रिशक्ति : शक्ति डेस्क : सम्यक वाणी : नैनीताल : पृष्ठ : १ / २.
त्रिशक्ति : सरस्वती डेस्क :सम्यक कर्म : जब्बलपुर : पृष्ठ : १ / ३.
महाशक्ति : जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ४.
नव जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ५.
सम्पादकीय : पृष्ठ : २.
सम्पादकीय शक्ति लिंक : पृष्ठ : २ / ०.
आकाश दीप : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : शक्ति : सम्पादकीय : प्रस्तुति. पृष्ठ :४.
 विशेषांक : आलेख : धारावाहिक आलेख : पृष्ठ : ५. 
ये मेरा गीत : जीवन संगीत : कल भी कोई दोहराएगा : पृष्ठ : ६.
शक्ति विजया : फ़िल्मी कोलाज : पृष्ठ : ७.
शक्ति विजया : कला दीर्घा : रंग बरसे : पृष्ठ : ९.
समाचार : चित्र : विशेष : दृश्य माध्यम : न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११.
शक्ति विजया : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : १२.
चलते चलते : शुभकामनाएं : दिल जो न कह सका : पृष्ठ : १३.
आपने कहा : मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ : १४.

supporting

*
स्वर्णिका ज्वेलर्स : निदेशिका.शक्ति तनु रजत.सोहसराय.बिहार शरीफ.समर्थित.
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 राधिका कृष्ण रुक्मिणी  मीरा : दर्शन : पृष्ठ : ०.
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 नैनीताल डेस्क. मुक्तेश्वर.
*
संपादन.
 शक्ति* नैना.डॉ.सुनीता मीना प्रिया. 

*

राधिका : कृष्ण : रुक्मिणी : मीरा : दर्शन : लिंक : पृष्ठ : ०. 
अद्यतन देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवायें 

*
महाशक्ति .मीडिया.शक्ति. 
प्रस्तुति. 

*
शक्ति विजया विचार
*
मुन्ना लाल महेश लाल आर्य एंड संस ज्वेलर्स समर्थित
*


*
शक्ति : विचार धारा : शब्द चित्र : पृष्ठ :० 

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*
महाशक्ति. नैना देवी डेस्क. 
नैनीताल. प्रादुर्भाव वर्ष : १९७६. 
संस्थापना वर्ष : १९९८. महीना : जुलाई. दिवस : ४.
*
सम्पादित. 
शक्ति नैना डॉ..सुनीता शक्ति* प्रिया.

*
एम.एस.मीडिया.शक्ति. 
प्रस्तुति. 

*
ये जीवन है इस जीवन का :


फोटो : शिव शक्ति : डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया 

*
जिंदगी जमीन ज़मीर 
*

फोटो : साभार  शक्ति अनु 


जीने  के लिए अपनी ' मिट्टी ', ' हवा ' ,' जमीन ' अपने लोग, ज़मीर ही चाहिए   
बरना संगमरमर के तराशे महलों में जी नहीं लगता अपना 

*
गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दुबारा 
*
खोई हुई चीज अक्सर सुंदर लगती हैं
जैसे वक्त, बचपन और जवानी 
*
साथ  मार्गदर्शन और अंधेरे.
*
' साथ ' और ' मार्गदर्शन ' अगर सही हो,
तो छोटे से ' दिए ' का ' प्रकाश ' भी
अँधेरे में ' सूरज ' का काम कर जाता है

समय और शिक्षक. 

*
' समय ' और ' शिक्षक ' दोनों ही सिखाते है 
अंतर इतना ही है शिक्षक सिखाकर ' इम्तिहान ' लेते  हैं 
तो समय ' इम्तिहान ' लेकर सिखाता है

*

' परेशान ' अनदेखा  हैरान 

*
जानते हुए ना किसी को ' परेशान ' कीजिए,
ना किसी को ' हैरान ' कीजिए,
कोई लाख ' गलत ' भी बोले वहां से हटिए 
बस मुस्कुरा कर ' अनदेखा ' कर दीजिए

*
इंतजार : फिक्र : मेरे अपने  
*

फोटो : साभार : शक्ति अनु 
*
इंतजार सिर्फ मेरे अपनों का ही करना है ,
जिन्हें आपकी फ़िक्र है और जो आपके हर एक लम्हें की कीमत पता हो

*
यह संसार कागज़ की पुड़िया,
बूँद पड़े घुल जाना है

*
 ' महाश्मशान ' काशी में आकर देखा तो यहां 
उन रसूख वालों की राख भी बिखरी पड़ी थी 
जो कभी कहा करते थे, हमारे बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता है
*
फिसलता वही है जो चलता है

*
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ़्ल ( बच्चा ) क्या गिरे जो घुटनों के बल चले।

*
कौन है धनवान : लक्ष्मी नारायण 

*
' धनवान ' वो नही होता, जिसकी तिजोरी हीरे जेवरात 
से भरी हो , बल्कि असल में धनवान तो वो होता है, जो अपने भीतर 
सम्यक ' साथ ', ' कर्म ' और वाणी रखता है 
जिसकी जिंदगी में, खूबसूरत,भावुक,संवेदनशील,सदैव   
रिश्तें निभाने वालों  की कमी नही होती है ... !



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सम्पादकीय : पृष्ठ : २.
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संरक्षण शक्ति
*


शक्ति. रश्मि श्रीवास्तवा.भा.पु.से. शक्ति. अपूर्वा.भा.प्र.से.
शक्ति.साक्षी कुमारी.भा.पु.से.
शक्ति.जसिका सिंह. अधिवक्ता
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संपादकीय शक्ति समूह.
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प्रधान शक्ति संपादिका.


*
शक्ति : शालिनी रेनू नीलम 'अनुभूति '
नव शक्ति. श्यामली डेस्क.शिमला.
संस्थापना वर्ष : १९९९. महीना :जनवरी. दिवस :५.


शक्ति. कार्यकारी सम्पादिका.


*
शक्ति. डॉ.सुनीता शक्ति* प्रिया.
नैना देवी.नैनीताल डेस्क.
प्रादुर्भाव वर्ष : १९७०.
संस्थापना वर्ष : १९९६. महीना : जनवरी : दिवस : ६.

सहायक.कार्यकारी.
शक्ति.संपादिका.
शक्ति.डॉ.अर्चना सीमा वाणी अनीता.
कोलकोता डेस्क.
संस्थापना वर्ष : १९९९.महीना : जून. दिवस :२.
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कला : सम्पादिका. 
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शक्ति. मंजिता सोनी स्मिता शबनम.
*
दृश्यम :फोटो 
सम्पादिका 
*

शक्ति. डॉ. अनु मीना नैना श्रद्धा
नैनीताल डेस्क.
*
*
शक्ति:आर्य अतुल : मुन्नालाल महेश लाल आर्य एंड संस ज्वेलर्स.रांची रोड बिहार शरीफ.समर्थित
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आकाश दीप : आत्म शक्ति : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
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संपादन.
*
संपादन
शिमला डेस्क.


शक्ति. रेनू अनुभूति शालिनी मानसी.
*
आकाश दीप : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
*
ग़ज़ल.


शक्ति : फोटो

बहारें जब भी आर्ती खिज़ा के बाद आती हैं,

हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं,
चिरागों से हुई गलती तो सारे लोग कहते हैं।

बहुत आसां तो लगता है किसी को चोट पहुंचाना
मगर उसको खुशी देने में लम्बे अरसे लगते हैं।

बहारों की नंजर में फूल कांटे तो बराबर हैं
मुहब्बात क्या करेंगे दोस्त जो दुश्मन समझाते है।

बहारें जब भी आर्ती खिज़ा के बाद आती हैं,
समझ में बात ये आई उनको जो अक़्ल रखते हैं।

अशांति मन की हो तो ये उजाले भी डराते हैं,
बशर शांति से रातों में भी राहें खोज सकते हैं

इंसा का मोल तो उसके तबीयत से ही होता है
तभी दिल पल में कोई जीत कोई हार पड़ते हैं।

यहाँ हर शख्स बैचनी के आलम में ही जीता है
मयस्सर हो खुशी केसे सभी चिंता में रहते हैं।



डॉ.आर के दुबे.
गीत कार. गजल कार.

*
भाविकाएँ.
शक्ति. शालिनी.
*
लघु कविता : १
*
स्त्री अनमोल कृति.

फोटो : शक्ति

विचार कर,
रोम-रोम में पवित्र प्रेम भर,
गढ़ डाला उस ईश्वर ने उत्कृष्ट,
'एक अनमोल कृति' 
और वो है ' स्त्री '
चाहती है वह
थोड़ा स्नेह,
और थोड़ा सम्मान,
और देती है,
प्रेम का प्रतिदान.
क्योंकि अथाह प्रेम देना,
है उसकी नियति जो बनाती है उसे,
संसार की सबसे सुन्दरतम 'अनमोल कृति'
*
और मन धुंआ - धुंआ सा है.
लघु कविता : २
*

फोटो : शालिनी
*
एक अज़ीब सी बेचैनी है,
और मन धुंआ-धुंआ सा है.
न जाने ये कैसी कश्मकश है,
न जाने क्या हुआ सा है ?
अधूरी सी कोई आरजू है,
न जाने कैसी ख़्वाहिश है ?
तेरी उल्फ़त का असर है ये,
या कुछ बद्दुआ सा है...
एक अज़ीब सी बेचैनी है,
और मन धुंआ-धुंआ सा है.

*

शक्ति. शालिनी.
कवयित्री लेखिका.प्रधान सम्पादिका
एम एस मीडिया ब्लॉग मैगज़ीन
*
पृष्ठ सज्जा : शक्ति प्रिया मंजिता सीमा अनुभूति
*

ए एंड एम मीडिया प्रस्तुति
आकाश दीप : विजया : पद्य संग्रह : रेनू : पृष्ठ : ३.
*
भाविकाएँ. १
*
यूँ ही साथ चलते चलते

फोटो : साभार : शक्ति अनु
कई बरस हुए यूँ ही साथ चलते-चलते, स्नेह के हर रंग में डूबते - पलते। तुम्हारी हंसी में सजती हर सुबह, मेरी बातों में बसी हर वो वजह। हमारी राहें भी होती सदा साथ-साथ , हर कदम में बस एक होती नई आस । संग ये सफ़र बेमिसाल यूँ ही गुजरे , जैसे दिलों में प्रेम का ही ख्याल उभरे । मगर आज कुछ अलग सा है एहसास, मानो ना मानो कोई राह चुन रहे हो खास। बरसो का ये साथ अनमोल खजाना, तुम्हारी परवाह में बसता है हर अफसाना। जाओ,जहाँ जाना है तुम्हें मगर जान लो, साँसे बसती है तुममें यूँ ही सदा, तुम्हारा अक्स मेरे दिल में सदा रहेगा। मिलो चाहे न मिलो रहोगे रहोगे मुझमें ही सदा। *
शक्ति.रेनू शब्दमुखर ११ सितम्बर २०२५
*
पृष्ठ सज्जा संपादन:
शक्ति प्रिया तनु मंजिता सीमा
*
भाविकाएँ. २
सबसे भरोसेमंद पुरुष हो तुम
.


अपनों से आहत हुई स्त्री
तुम्हारे कंधे पर सर
रखकर मौन हो जाये
तब जान ले संसार कि
उस स्त्री के लिए
सबसे भरोसेमंद पुरुष हो तुम।
उसकी आँखों की नीरवता में,
उसके दिल की दरारों में,
तुम्हारी मूक समझ,
तुम्हारी सहानुभूति,
एक उजियारा बनकर फूट पड़ती है।
जब उसकी पीड़ा की ध्वनि,
तुम्हारे सीने में समा जाती है,
और उसके आँसू की हर बूंद,
तुम्हारे धैर्य की धरती पर गिरती है,
तब जान ले
संसार के सबसे
भरोसेमंद पुरुष हो तुम।


फोटो : शक्ति शबनम

उसके टूटे ख्वाबों के टुकड़े,
तुम्हारे हाथों में संभलते हैं,
उसके मौन के सागर में,
तुम्हारे शब्द उसे किनारा देते हैं।
जब उसकी जख्मी आत्मा को,
तुम्हारे स्पर्श से आराम मिलता है,
और उसकी खोई हुई हिम्मत,
तुम्हारे साथ से फिर जगती है,
तब जान ले संसार के सबसे भरोसेमंद पुरुष हो तुम।
उसके जीवन की राह पर,
तुम्हारा साथ एक प्रकाश है,
जो हर अंधेरे को मिटा देता है,
और हर भय को दूर कर देता है

शक्ति. रेनू शब्द मुखर
कवयित्री लेखिका.प्रधान सम्पादिका
एम एस मीडिया ब्लॉग मैगज़ीन

*
मेरे मन की सर्व शक्ति हो तुम
*
फोटो : साभार : शक्ति

मेरे सपने
मेरे अपने
मेरे मन की सर्व शक्ति हो तुम,
मेरे नव जीवन के
नव निर्माण की भक्ति हो तुम.
हो प्रेमपूर्ण सुन्दर
भविष्य का निर्माण फिर
असत्य ,भय औरअसुरों का संहार
फिर डरें नहीं,थमें नहीं,


साभार : फोटो :
शक्ति. रेखा.देहरादून.
*
हो मधुर सम्भाषण
की बस थोड़ी सी पहल
अपनों के साथ,
हो वैसी ही पुराने सन्मार्ग पर टहल
देख लेंगे इस जनम में ही ,आप
विश्वामित्र की तरह
विश्व के मित्रों का
इस धरा पर
एक नई धरा का
निर्माण फिर.
*

डॉ.मधुप. 
*पृष्ठ सज्जा : संपादन 
शक्ति. डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया अनुभूति.  

*
* लीवर. पेट. आंत. रोग विशेषज्ञ. शक्ति. डॉ.कृतिका. आर्य. डॉ.वैभव राज :किवा गैस्ट्रो सेंटर : पटना : बिहारशरीफ : समर्थित.
*
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तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : शक्ति : सम्पादकीय : प्रस्तुति. पृष्ठ :४.
----------
संपादन
*

*
वाराणसी डेस्क.
शक्ति नीलम अनुभूति शालिनी प्रीति.

*
*
यादें न जाए बीते दिनों की : शक्ति आलेख :३
शक्ति रेनू शब्दमुखर.
प्रधान सम्पादिका
*
सह लेखन डॉ.सुनीता शक्ति * प्रिया
' कभी खोकर भी पाया है, कभी पाकर भी खोया है ,

वर्ष १९६३। एक फिल्म आयी थी दिल एक मंदिर। एक पुराने हिंदी गाने का बड़ा ही मशहूर बोल है, जिसे राजेंद्र कुमार पर फिल्माया गया था। यह गीत फिल्म राजेंद्र कुमार , राज कुमार मीना कुमारी अभिनीत फिल्म दिल एक मंदिर का है, जिसमें यह पक्तियां .....याद ना जाए, बीते दिनों की, जाके ना आए वो दिन, दिल क्यों बुलाए उन्हें .....हम नहीं भुलाये । याद ना जाए बीते दिनों की अक्सर हम बीते दिनों की ओर लौट जाते हैं।
सवाल है आख़िर दिल क्यों अतीत में लौट जाना चाहता है। क्यों भूली यादों को याद करना चाहता है ? ना जाने, भूली दास्ताँ और बीते दिनों की याद इस तरह से क्यों आती है ? यह गाना बीते हुए दिनों की यादों और भूली हुई यादों से जुड़े भावनात्मक दर्द को व्यक्त करता है.
यादों की तारीख़ जीवन की यात्रा में कुछ पड़ाव ऐसे आते हैं, जो सिर्फ़ कैलेंडर की एक तारीख़ भर नहीं होते, बल्कि हमारी धड़कनों का हिस्सा बन जाते हैं। समय की सुइयाँ चाहे कितनी भी आगे क्यों न बढ़ जाएँ, कुछ पल अपनी जगह पर स्थिर हो जाते हैं। वे न मिटते हैं, न धुंधले पड़ते हैं। कहते हैं - ' यादें कभी बूढ़ी नहीं होतीं, वे हमेशा अपनी ताजगी के साथ लौट आती हैं '। ऐसा ही रिश्ता होता है उन खास दिनों से, जो कभी खोने का दर्द देते हैं तो कभी पाने की खुशी का एहसास कराते हैं। कुछ तारीख़ें हमारे जीवन में पत्थर पर लिखी लकीरों की तरह होती हैं। हर साल जब वही दिन लौटकर आता है, तो हम फिर से उन पलों में जी उठते हैं। आंखें कभी नम होती हैं, तो कभी मुस्कान बिखर जाती है। यही जीवन का अद्भुत संगम है-आंसू और हंसी का, खोने और पाने का। यादें दरअसल हमारी पूँजी हैं। ये हमें बार-बार यह एहसास कराती हैं कि हम कौन हैं, कहाँ से आए हैं और किस राह पर चल रहे हैं। ये स्मृतियाँ हमें मज़बूत भी बनाती हैं और संवेदनशील भी। वे हमें सिखाती हैं कि बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता, लेकिन उसका असर हमें जीवनभर दिशा देता रहता है। इसलिए जब भी कोई ऐसी तारीख़ सामने आती है, जो दिल में बसी हुई है, तो उसे बोझ न मानें। वह तारीख़ आपके जीवन की कहानी का वह अध्याय है, जिसमें आपकी आत्मा की धड़कनें दर्ज हैं। जीवन की दौड़ में बहुत कुछ पीछे छूट जाता है, लेकिन स्मृतियों की यह पोटली हमेशा हमारे साथ चलती रहती है। और यही हमें इंसान बनाए रखती है। यही तो है ज़िंदगी-यादों के धागों से बुना एक अनमोल तोहफ़ा।'

स्तंभ संपादन : शक्ति. माधवी शालिनी तनु नीलम
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मीना सीमा मंजिता अनुभूति. 



शक्ति आलेख : २
शब्दों की चोट जिंदगी भर की ख़ामोशी : पृष्ठ :४ / २ .

*
अल्फ़ाज़ : ख़ामोशी : खूबसूरती : कोलाज : नैना डॉ.सुनीता शक्ति प्रिया
*
कहना आसान है भूल जाना, लेकिन सुनने वाले के लिए नामुमकिन
शक्ति. रेनु शब्दमुखर.

 

शब्दों की चोट तलवार से भी गहरी : शब्दों की चोट तलवार से भी गहरी होती है, बस फर्क इतना है कि इसमें खून नहीं निकलता। हमारे समाज में यह कहावत आम है- ' रात गई, बात गई।' लोग कहते हैं, बातें भूल जाओ, गिले-शिकवे छोड़ दो। पर क्या सच में ऐसा होता है? क्या दिल इतनी आसानी से भूल जाता है. जितनी आसानी से जुयान कह देती है? नहीं सच्चाई यह है कि कुछ बातें ऐसी होती है जो वक्त के साथ फीकी नहीं पड़ती। वे जख्म बनकर हमारे मन में रह जाती - है और हर बार दर्द देती हैं।
कभी गौर किया है? लोग जब गुस्से में होते हैं, वे एक झटके में रिश्तों को बुनियाद हिला देते हैं। गुस्से के उन कुछ सेकण्ड में वे ऐसे शब्द उछाल देते हैं. जी सामने वाले की आत्सा तक की चौर जाते हैं। और फिर जब गुस्सा ठंड़ा ही जाता है, वहीं लोग ऐसे बर्ताव करते हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो ।
दिल कोई कप्यूटर नहीं कि एक क्लिक में डिलीट हो जाए। दिल की लगी चोट मिटती नहीं, बस छुप जाती है। समय घाव का भर देता है, पर निशान नहीं मिटाता। और यह निशान हर बार याद दिलाता है कि किसी ने कमी केसा व्यवहार किया था।
रिश्ते गुस्से से नहीं ,गुस्से में निकले शब्दों से टूटते है : मेरा अपना अनुभव कहता है रिश्ते गुस्से से नहीं ,गुस्से में निकले शब्दों से टूटते है। गुस्सा जाना स्वाभाविक है, पर गुस्से में किसी का सम्मान तोड़ देला, यह अस्वाभाविक है।
कहते हैं-'समय सब ठीक कर देता है।' सच तो यह है कि समय सिर्फ दर्द को सहने की आदत डालता है। जख्म भर सकता है, लेकिन दिल की गहराइयों में बनी दरारें कभी नहीं मिटती।
क्योंकि रात गई बात गयी सिर्फ कहावत है,हकीकत नहीं : और जब-जब हम उन लम्हों को याद करते हैं, दिल फिर से. लहुलुहान हो उठता है। तो क्यों न हम गुस्से में बोलने से पहले एक पल ठहर जाए? सोचे- क्या जो हम कहने जा रहे है, उसका असर किसी की आत्मा तक नहीं पहुंचेगा? एक पल की झुंझलाहट, सामने वाले की पूरी जिदगी का बोझ बन सकती है।
गुस्से में निकले शब्द पिघलते नहीं, वे पत्थर बनकर दिल पर हमेशा के लिए रखे रह जाते हैं। याद रखिए ज़ख्म तलवार से ही नहीं जुवान से भी लगते हैं। फर्क बस इतना है कि इनसे खून नहीं निकलता पर दिन हमेशा लहूलुहान रहता है
अगली बार जब गुस्सा आए तो जुबान खोलने से पहले दिल खोल कर सोचिए क्योंकि रात गई बात गयी सिर्फ कहावत है,हकीकत नहीं
*
स्तंभ संपादन : शक्ति. माधवी शालिनी तनु नीलम
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मीना सीमा मंजिता अनुभूति. 


*
शक्ति आलेख : अमरप्रेम. पृष्ठ :४ / १
कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना
*

*
शक्ति. रेनू शब्द मुखर.
सह लेखन व संपादन .डॉ सुनीता शक्ति प्रिया.
*
प्रेम के प्रीतम आकाश में उड़ान भरती एक स्त्री अमृता.


विद्रोह की भाषा में लिखा प्रेम. अमृता प्रीतम. साभार फोटो : शक्ति कोलाज

३१ अगस्त का दिन. हमारे लिए शक्ति मूलांक का दिन था. अमृता प्रीतम का जन्म दिन है .साहित्य के आकाश पर चमकते उस सितारे का स्मरण कराता है, जिसने न केवल शब्दों को अर्थ दिया,बल्कि जीवन को भी एक नई दिशा दी। अमृता प्रीतम - एक ऐसा नाम जिसने स्त्री की चुप्पी को आवाज़ दी, जिसने समाज की जंजीरों को तोड़कर प्रेम को नई परिभाषा दी।
अमृता का जीवन सिर्फ़ एक लेखिका का जीवन नहीं था; यह एक स्त्री के भीतर उठे विद्रोह और आत्मसम्मान की गाथा थी। विभाजन के दर्द से लेकर स्त्री की स्वतंत्रता तक, उनकी कलम हर उस मुद्दे पर चली, जिस पर समाज मौन था। उनकी कविता आज भी विभाजन की त्रासदी की गवाही देती है, और उनकी आत्मकथा ‘ रसीदी टिकट ’ स्त्री की आत्मिक मुक्ति का दस्तावेज़ है।
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना का अर्थ है कि समाज में लोग हमेशा बातें करते रहेंगे, चाहे आप कुछ भी करें. आप चाहे स्वयं को जिए या फिर समाज को . यह एक प्रसिद्ध पंक्ति है जो किशोर कुमार के गाए गायक अमर प्रेम फिल्म के एक गाने से ली गई है और इसका मतलब है कि लोगों की आलोचना करने की आदत होती है, इसलिए उनकी परवाह न करें और बेकार की बातों में अपना समय बर्बाद न करें.
इस पंक्ति का संदर्भ: यह गाना जीवन के उतार-चढ़ावों और लोगों की बातों के प्रभाव को दर्शाता है. यह पंक्ति एक सामान्य कहावत या मुहावरे के रूप में भी प्रयोग की जाती है, जिसका अर्थ है कि समाज में कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से सही नहीं होता है और हर किसी की कोई न कोई आलोचना करता है, इसलिए उनकी बातों को नज़रअंदाज़ करना चाहिए.
इस पंक्ति का उपयोग : यह पंक्ति अक्सर तब कही जाती है, जब कोई व्यक्ति किसी की आलोचना से निराश हो या किसी काम को करने से पहले लोगों के सोचने या बोलने की चिंता करता हो. इसका उद्देश्य लोगों को उनकी चिंता छोड़कर अपने दिल की सुनने और अपने रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करना है.
विद्रोह की भाषा में लिखा प्रेम. : परंतु अमृता को केवल उनकी साहित्यिक शक्ति से नहीं, उनके प्रेम से भी याद किया जाता है। उन्होंने यह साबित किया कि सच्चा प्रेम स्वामित्व नहीं होता, सच्चा प्रेम बंधन नहीं बनाता- वह आत्मा को उड़ान देता है। इमरोज़ के साथ उनका रिश्ता प्रेम का वह आयाम है, जहाँ न सामाजिक बंधन है, न अधिकार की दीवारें। यह रिश्ता बताता है कि प्रेम तब ही सार्थक है जब वह सम्मान, स्वतंत्रता और सृजन की प्रेरणा बने।
आज के समय में, जब रिश्ते तात्कालिक और दिखावे के बोझ तले दबते जा रहे हैं, अमृता की सोच हमें झकझोरती है। वह कहती हैं-' प्रेम वह नहीं जो हमें एक पिंजरे में क़ैद करे, प्रेम वह है जो हमारी रूह को आकाश दे'।
स्त्री को केवल देह नहीं, विचार समझो : समाज के लिए यह संदेश उतना ही जरूरी है जितना पहले था - स्त्री को केवल देह नहीं, विचार समझो; रिश्तों को केवल अधिकार नहीं, सम्मान दो। अमृता ने प्रेम को पवित्र बनाया क्योंकि उन्होंने प्रेम को साहस और आत्मसम्मान से जोड़ा। उन्होंने स्त्री को यह विश्वास दिलाया कि वह अपनी शर्तों पर जी सकती है। यही चेतना आज हमें अपने रिश्तों, अपने विचारों में लानी होगी।
अंत में मैं यही कहूंगी कि- अमृता प्रीतम का जन्मदिन हमें यह याद दिलाता है कि कलम सिर्फ़ शब्द नहीं लिखती, वह समाज को नई सोच देती है। और प्रेम? प्रेम वह नहीं जो सिर्फ़ कहानियों में हो, प्रेम वह है जो हमें बेहतर इंसान बना दे।
आज के रिश्तों में अगर अमृता की वह गहराई और इमरोज़ का वह धैर्य आ जाए, तो शायद प्रेम फिर से सार्थक हो जाए।



स्तंभ संपादन : शक्ति मानसी शालिनी तनु नीलम
पृष्ठ सज्जा : शक्ति मीना सीमा मंजिता अनुभूति. 


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 शक्ति : यात्रा संस्मरण : आलेख : धारावाहिक आलेख : पृष्ठ : ५ 
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नैनीताल डेस्क. 
संपादन. 
*
शक्ति.शालिनी मानसी कंचन बीना जोशी 
नैनीताल डेस्क. 

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धारावाहिक यात्रा संस्मरण 
: नैनीताल। नैनी झील। नैना देवी : शक्ति नंदा - सुनंदा : पृष्ठ  : ५  / ० . 
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डॉ.मधुप.

नैनी झील : नैना देवी : शक्ति. नंदा - सुनंदा. फोटो कोलाज : डॉ. सुनीता मधुप शक्ति प्रिया. 
*
शक्ति :विजया:आलेख : पृष्ठ : २. 
डॉ.सुनीता मधुप शक्ति * प्रिया. 

नैनीताल। नैनी झील। जब कभी हम आए हमने शक्ति के संरक्षण में मनभावन क्षण बिताए। आसक्ति रही है इस पीठ से। मंदिर का शीर्ष ७० , ८० के दशक से ही भूल नहीं पाते है हम। शक्ति सपने में ही आती रही। पुजारी बतला रहें थे सती की वायी आँख यही कही झील के आस पास गिरी थी न ? तब से शक्ति नैना की स्मृति में नैना मंदिर निर्मित बनी। सती हमेशा याद आती है।
२०२४ का साल। गर्मियाँ थी। हम नैनीताल में ही थे। मंदिर परिसर में शक्ति नंदा सुनन्दा की भव्य तस्वीर लगी थी। शक्ति नंदा - सुनंदा के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। हमारी शक्ति सम्पादिका समूह में कई शोधार्थी शक्तियां हैं।
नवीन दा बतला रहें थे इन दिनों नैनीताल में नंदाष्टमी की सभी तैयारियां पूरी होने लगी है। इस सन्दर्भ में शक्ति नंदा सुनन्दा की प्रतिमाएं नयना देवी मंदिर में विराजमान होते ही दर्शन को भक्तों की भीड़ जुटने लगी है और समस्त नैना देवी मंदिर परिसर नंदा सुनंदा मां के जयकारों से गुंजित हो रहा है ।
नंदा - सुनंदा पूजा की परंपरा : शक्ति नंदा - सुनंदा पूजा की परंपरा का ऐतिहासिक पहलू अत्यंत समृद्ध है। मान्यता है कि यह परंपरा कुमाऊं के चंद राजाओं के समय से शुरू हुई। लोकदेवी की आराधना और राज्य की समृद्धि से शुरू यह उत्सव नगर और गांवों की सामूहिक आस्था का पर्व बन गया। याद है आज भी इस पूजा में वही ऐतिहासिक गौरव, झलकता है,जो सदियों पहले लोगों की धार्मिक भावनाओं और सामाजिक एकजुटता को मजबूत करने के लिए प्रारंभ हुआ था।
सूत्रों की माने तो श्री राम सेवक सभा द्वारा आयोजित १२३ वे श्रीनंदा देवी महोत्सव में स्थानीय लोक पारंपरिक कलाकारों द्वारा नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण को भव्य एवं जीवंत रूप दिया गया है। शक्ति नंदा जो हिमालय संस्कृति के साथ शक्ति की देवी से रूप में कुलदेवी की भांति पूजित है। जबकि शक्ति सुनंदा उनकी सहचरी स्वरूप मानी जाती हैं। नंदा-सुनंदा की पूजा स्त्री-शक्ति और बहनत्व का प्रतीक मानी जाती है। इस अवसर पर नगर और ग्रामीण अंचलों से भक्तजन डोला और छंतोली सजाकर मंदिरों में पहुंचते हैं।


शक्ति. आलेख : नंदा - सुनंदा : गतांक से आगे : १.
शक्ति नंदा : द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री ' महामाया '
डॉ.सुनीता अनुभूति बीना नवीन जोशी
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शक्ति नंदा : उत्तराखंड की विजय देवी : फोटो : डॉ. सुनीता अनुभूति बीना नवीन जोशी

शक्ति नंदा : द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री ' महामाया '

एक शताब्दी से अधिक पुराना, १२३ वें वर्ष में आयोजित हो रहा सरोवरनगरी का नंदा महोत्सव लगातार समृद्ध हो रहा है। पिछली शताब्दी और इधर तेजी से आ रहे सांस्कृतिक शून्यता की ओर जाते दौर में भी यह महोत्सव न केवल अपनी पहचान कायम रखने में सफल रहा है, वरन इसने सर्वधर्म संभाव की मिशाल भी पेश की है। हम यहां बताना चाहते हैं कि आप बुधवार सुबह पांच बजे से अपने प्रिय एवं भरोसेमंद ‘ नवीन समाचार ’ पर भी माता नंदा-सुनंदा की प्राण प्रतिष्ठा एवं दर्शनों के ‘लाइव दर्शन’ कर सकेंगे। इसके लिए सुबह से आप ‘ नवीन समाचार ’ पर जुड़ सकते हैं।
नंदा-सुनंदा की प्राण प्रतिष्ठा : पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी यह देता है, और उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं व गढ़वाल अंचलों को भी एकाकार करता है। यहीं से प्रेरणा लेकर कुमाऊं के विभिन्न अंचलों में फैले मां नंदा के इस महापर्व ने देश के साथ विदेश में भी अपनी पहचान स्थापित कर ली है।
इस मौके पर मां नंदा सुनंदा के बारे में फैले भ्रम और किंवदंतियों को जान लेना आवश्यक है। विद्वानों के इस बारे में अलग अलग मत हैं, लेकिन इतना तय है कि नंदादेवी, नंदगिरि व नंदाकोट की धरती देवभूमि को एक सूत्र में पिरोने वाली शक्तिस्वरूपा मां नंदा ही हैं। यहां सवाल उठता है कि नंदा महोत्सव के दौरान कदली वृक्ष से बनने वाली एक प्रतिमा तो मां नंदा की है, लेकिन दूसरी प्रतिमा किन की है। सुनंदा, सुनयना अथवा गौरा पार्वती की।
द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री महामाया : एक दंतकथा के अनुसार मां नंदा को द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री महामाया भी बताया जाता है जिसे दुष्ट कंस ने शिला पर पटक दिया था, लेकिन वह अष्टभुजाकार रूप में प्रकट हुई थीं। त्रेता युग में नवदुर्गा रूप में प्रकट हुई माता भी वह ही थी। यही नंद पुत्री महामाया नवदुर्गा कलियुग में चंद वंशीय राजा के घर नंदा रूप में प्रकट हुईं, और उनके जन्म के कुछ समय बाद ही सुनंदा प्रकट हुईं।
राज्यद्रोही षड्यंत्रकारी ने उन्हें कुटिल नीति अपनाकर भैंसे से कुचलवा दिया था।
उन्होंने कदली वृक्ष की ओट में छिपने का प्रयास किया था लेकिन इस बीच एक बकरे ने केले के पत्ते खाकर उन्हें भैंसे के सामने कर दिया था। बाद में यही कन्याएं पुर्नजन्म लेते हुए नंदा-सुनंदा के रूप में अवतरित हुईं और राज्यद्रोहियों के विनाश का कारण बनीं। इसीलिए कहा जाता है कि सुनंदा अब भी चंदवंशीय राजपरिवार के किसी सदस्य के शरीर में प्रकट होती हैं। इस प्रकार दो प्रतिमाओं में एक नंदा और दूसरी सुनंदा हैं। अन्य किंवदंती के अनुसार एक मूर्ति हिमालय क्षेत्र की आराध्य देवी पर्वत पुत्री नंदा एवं दूसरी गौरा पार्वती की हैं।
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गतांक से आगे : / २.
शक्ति :विजया:आलेख : पृष्ठ : २.
डॉ. सुनीता मधुप शक्ति * प्रिया.
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शक्ति नयना की नगरी नैनीताल में देवी नंदा -सुनंदा
की ' लोक जात ' का आयोजन.

नैनीताल झील से सटे नैना देवी मंदिर का परिसर : फोटो कोलाज : शक्ति. विदिशा.
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शक्ति नैना देवी मंदिर : नैनीताल मेरे जीने का शहर। मेरी आँखों में बसता है। शक्ति नैना देवी मंदिर सदैव मेरे समक्ष होती है। जीवन के समस्त क्रियाओं के अभिकेंद्र में शक्ति हैं। मैं स्वयं मान बैठा हूँ कि मैं एक शक्ति संरक्षित जीव हूँ।
सबेरे के आठ बज रहे थे। आर्य समाज मंदिर से पैदल टहलते हुए ही यहाँ तक चला आया था। धूप अभी तीखी नहीं हुई थी। मंदिर में सैलानी थे ही नहीं। ले दे के स्थानीय लोग ही थे। मैंने चढ़ावे के लिए कुछ प्रसाद ले लिया था। मंदिर में प्रवेश करते ही हनुमान जी दिख गए।
नैनीताल में नैनी झील के ठीक उत्तरी किनारे पर जन आस्था का मंदिर नैना देवी मंदिर स्थित है। सन १८८० में जब भयंकर भूस्खलन नैनीताल में आया था तब यह मंदिर उस प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था। बाद में भक्त जनों और श्रद्धालुओं ने इसे दोबारा बनाया था । यहाँ सती या कहें देवी पार्वती की शक्ति के रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में उनके दो नेत्र वर्त्तमान हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं।
नैनी झील के बारे में माना जाता है जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहें थें तब जहां जहां उनके शरीर के खंडित अंग गिरे वहां वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इसी धार्मिक भावना से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गयी थी।
माँ नयना देवी के मंदिर के देखभाल का जिम्मा अमर उदय ट्रस्ट करती है।
नंदा-सुनंदा की लोक जात का आयोजन : शक्ति नंदा-सुनंदा की लोक जात का आयोजन हर साल शक्ति नैना देवी मंदिर से ही होता है। नंदा देवी मेला के दौरान किया जाता है, जो कुमाऊं क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव है। यह देवी नंदा और उनकी बहन सुनंदा की याद में मनाया जाता है, जिसमें देवी की पालकी ( डोला ) की विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। यह उत्सव १७ वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है और स्थानीय संस्कृति और अर्थव्यवस्था को दर्शाता है।
उत्सव का विवरण नाम : नंदा देवी मेला या नंदा देवी उत्सव के नाम से विदित मूलतः नैनीताल, उत्तराखंड में ही प्रचलित है । प्रारंभ समय सितंबर के महीने में, नंदाष्टमी के दौरान ही होता है । महत्वपूर्ण है यह देवी नंदा और उनकी बहन सुनंदा को समर्पित है, जो इस पहाड़ी क्षेत्र की संरक्षक देवी मानी जाती हैं।
मुख्य आयोजन बतौर देवी नंदा और सुनंदा की डोला ( पालकी ) की शोभायात्रा निकाली जाती है। बांस की खपच्चियों, केले के पेड़, रुई और कपड़े से मां की मूर्ति बनाई जाती है,जो पर्यावरण के अनुकूल होती है।ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इस उत्सव की शुरुआत १७ वीं शताब्दी में चंद राजा द्योत चंद द्वारा नंदा देवी का मंदिर बनवाने के बाद हुई।सांस्कृतिक महत्व यह उत्सव उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की समृद्धि, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण प्रतिबिंब है। यह एक पारंपरिक सांस्कृतिक उत्सव है जो स्थानीय परंपराओं और आस्था को दर्शाता है।



गतांक से आगे : ३ .

नैनीताल :नंदा देवी और नए आयाम.

शक्ति. मीना भारती बीना नवीन जोशी


नंदा सुनन्दा महोत्सव : नैनीताल: जन आस्था का सैलाब : फोटो : शक्ति. भारती. नैनीताल. 

अपनी पुस्तक कल्चरल हिस्ट्री आफ उत्तराखंड के हवाले से प्रो. रावत ने बताया कि सातवीं शताब्दी में बद्रीनाथ के बामणी गांव से नंदा देवी महोत्सव की शुरूआत हुई, जो फूलों की घाटी के घांघरिया से होते हुए गढ़वाल पहुंची। तब गढ़वाल ५२ गणपतियों ( सूबों ) में बंटा हुआ था। उनमें चांदपुर गढ़ी के शासक कनक पाल सबसे शक्तिशाली थे। उन्होंने ही सबसे पहले गढ़वाल में नंदा देवी महोत्सव शुरू किया। प्रो. रावत बताते हैं कि आज भी बामणी गांव में मां नंदा का महोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
वर्तमान नंदा महोत्सवों के आयोजन के बारे में कहा जाता है कि पहले यह आयोजन चंद वंशीय राजाओं की अल्मोड़ा शाखा द्वारा होता था, किंतु १९३८ में इस वंश के अंतिम राजा आनंद चंद के कोई पुत्र न होने के कारण तब से यह आयोजन इस वंश की काशीपुर शाखा द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसका प्रतिनिधित्व वर्तमान में नैनीताल सांसद केसी सिंह बाबा करते हैं।
नैनीताल की स्थापना के बाद वर्तमान बोट हाउस क्लब के पास नंदा देवी की मूल रूप से स्थापना की गई थी, १८८० में यह मंदिर नगर के विनाशकारी भूस्खलन की चपेट में आकर दब गया, जिसे बाद में वर्तमान नयना देवी मंदिर के रूप में स्थापित किया गया। यहां मूर्ति को स्थापित करने वाले मोती राम शाह ने ही १९०३ में अल्मोड़ा से लाकर नैनीताल में नंदा महोत्सव की शुरुआत की। शुरुआत में यह आयोजन मंदिर समिति द्वारा ही आयोजित होता था।
१९२६ से यह आयोजन नगर की सबसे पुरानी धार्मिक सामाजिक संस्था श्रीराम सेवक सभा को दे दिया गया, जो तभी से लगातार दो दो विश्व युद्धों के दौरान भी बिना रुके सफलता से और नए आयाम स्थापित करते हुए यह आयोजन कर रही है। यहीं से प्रेरणा लेकर अब कुमाऊं के कई अन्य स्थानों पर भी नंदा महोत्सव के आयोजन होने लगे हैं। आज के अन्य ताजा ‘ नवीन समाचार ’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
मां नयना की नगरी में होती है मां नंदा की ‘ लोक जात ’, वर्ष दर वर्ष लगातार समृद्ध हो रहा है नंदा देवी महोत्सव - यहां राज परिवार का नहीं होता आयोजन में दखल, जनता ने ही की शुरुआत, जनता ही बढ़चढ़ कर करती है प्रतिभाग।
प्रदेश में चल रही मां नंदा की ‘ राज जात ’ से इतर मां नयना की नगरी नैनीताल में माता नंदा-सुनंदा की 'लोक जात' का आयोजन किया जाता है। अमूमन १२ वर्षों के अंतराल में आयोजित होने वाली ' लोक जात ' के इतर सरोवरनगरी में १२३ वर्षों से हर वर्ष अनवरत, प्रथम व द्वितीय दो विश्व युद्ध होने के बावजूद बिना किसी व्यवधान के न केवल यह महोत्सव जारी है, वरन हर वर्ष समृद्ध भी होता जा रहा है। बिना राज परिवार द्वारा शुरू किए जनता द्वारा ही शुरू किए गए और जनता की ही सक्रिय भागेदारी से आयोजित होने वाले इस महोत्सव को आयोजक भी मां नंदा की ‘लोक जात’ मानते हैं।
गढ़वाल को एक सूत्र में पिरोने वाली मां नंदा का महोत्सव १९०३ से लगातार बीच में दो विश्व युद्धों के दौरान भी जारी रहते हुऐ १२३ वर्षों से अनवरत जारी है। यहां के बाद ही प्रदेश के अनेक स्थानों पर नंदादेवी महोत्सवा आयोजित हुए हैं, लिहाजा नैनीताल को नंदा महोत्सवों का प्रणेता भी कहा जाता है। सरोवरनगरी में नंदा महोत्सव की शुरुआत नगर के संस्थापकों में शुमार मोती राम शाह ने १९०३ में अल्मोड़ा से लाकर की थी।

स्तंभ संपादन : शक्ति. रेनू नीलम रीता तनु.
स्तंभ सज्जा : शक्ति. डॉ.अनु मंजिता सीमा अनुभूति.
गीत लघु फिल्म : संकलन : शक्ति मीना श्रद्धा नैना भारती.
supporting

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स्वर्णिका ज्वेलर्स : निदेशिका.शक्ति तनु रजत.सोहसराय.बिहार शरीफ.समर्थित.
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हिंदी धारावाहिक : यात्रा संस्मरण.पृष्ठ : ५ /२ .
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धारावाहिक यात्रा संस्मरण 
डॉ. मधुप
शक्ति. नैना सुनीता प्रिया अनुभूति
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नवरात्रि : नैनीताल और शक्ति नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.

यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार. कोलाज  : नैना शक्ति डॉ सुनीता शक्ति प्रिया  

डॉ. मधुप रमण.
©️®️ M.S.Media.

इस बार सितम्बर महीने में ही नवरात शुरू हो रहा था। सितम्बर महीने में ही शक्ति नंदा-सुनंदा की लोक जात का आयोजन हर साल की भांति इस बार भी शक्ति नैना देवी मंदिर में हुआ । नंदा देवी मेला गढ़वाल, कुमाऊं क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव है। यह देवी नंदा और उनकी बहन सुनंदा की याद में मनाया जाता है, जिसमें देवी की पालकी ( डोला ) की विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। यह उत्सव १७ वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है और स्थानीय संस्कृति और अर्थव्यवस्था को दर्शाता है।
नवरात्रि की शुरुआत : नवरात्रि की शुरुआत होने वाली थी। पितृ पक्ष के कुछ ही दिन शेष रह गए थे। दिल्ली से हमारी पत्रिका के प्रधान संपादक मनीष दा ने फ़िर से मुझे आग्रह किया कि इस साल भी नैनीताल से दशहरे की कवरेज मुझे ही करनी होगी। क्योंकि मैं नैनीताल से प्रारंभ से ही जुड़ा हुआ हूँ वहां के पत्रकारों के संपर्क में हूँ ,और लिखता रहा हूँ इसलिए उन्होंने यह दायित्व मुझे ही सौप दिया।
हालांकि इस बार मैं पश्चिम बंगाल में किसी पहाड़ी जगह सिलीगुड़ी , मिरिक, कलिम्पोंग, कुर्सियांग या दार्जलिंग जैसे इलाक़े से दशहरे की कवरेज करना चाहता था। पश्चिम बंगाल के दशहरे के बारे में मैंने काफ़ी कुछ सुन रखा था। सोचा था इस बार अपनी आँखों से वहां की धार्मिक ,सांस्कृतिक,आस्थां से परिचित हूँगा। लेकिन मुझसे कहा गया वहां से प्रिया नवरात्रि की कवरेज कर रहीं हैं या करेंगी इसलिए मुझे अपनी मन पसंदीदा जग़ह नैनीताल से ही नवरात्री की कहानी लिखनी होगी।
अतः इसके लिए मुझे तैयार होना होगा। सच कहें बात तो दरअसल में कुछ और थी। आप इन दिनों प्रशासकीय कार्यों के निमित यूरोप में हो रहे सम्मलेन में शिरक़त करने के लिए दस दिनों के लिए स्विट्ज़र लैंड के दौरे पर थी। और आपकी अनुपस्थिति में नैनीताल में रहना ,भ्रमण करना फिर लिखने जैसे दायित्व को पूरा करना एक बड़ा ही मुश्किल कार्य प्रतीत हो रहा था। सच ही है ना ? तुम्हारे बिना नैनीताल में कुछेक दिन गुजार लेना कितना मुश्क़िल होगा ,अनु। शायद मैं ही जानता हूँ। संभवतः प्रेत योनि में भटकने जैसा ही मात्र। लेखन कार्य के लिए शक्ति व परिश्रम चाहिए । मानसिक शांति भी तो जो निहायत ही जरुरी है। मेरी मानसिक शांति ,मेरी शक्ति सब कुछ तुममें तो निहित है ,न। शायद निहित रहता है और युग - युगांतर तक तुम में ही केंद्रित रहेगा। और फिल वक़्त तुम मेरे साथ हो नहीं तो इस कार्य को सफलता पूर्वक कैसे कर पाऊंगा, मैं वही सोच रहा था ? मैं दुविधा की स्थिति में था। लेकिन पत्रकारिता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया था इसलिए इसे भी मुकम्मल करना ही था, इसलिए दृढ़ होना पड़ा । जाने की तैयारी करनी ही पड़ी। रिपोर्ट,फोटो और कवरेज के लिए इधर उधर भटकना,वो भी आपके सहयोग के बिना कितना दुष्कर कार्य होगा, हैं न अनु ? रात - दिन तुम्हारी यादों की घनी धुंध अपने मनो मस्तिष्क पर छाई रहेंगी। बाक़ी की कल्पनाएं धुंधली धुंधली सी दिखेंगी , ऐसे में मैं लिखने जैसे गुरुतर भार के साथ कितना न्याय कर पाऊंगा यह तो गोलू देवता ही जानेंगे। सच तो यही है न जो कुछ भी मैं लिखता हूँ, वह अंतर्मन के प्रभाव में रहता है। इधर हाल फिलहाल जो भी लिखता रहा ,उसके पीछे की छिपी प्रेरणा शक्ति तो आप ही रहीं हैं न ! शायद एक बजह भी।
आपने फ़ोन पर मुझे सख़्त हिदायत दे दी थी कि मुझे अयारपाटा वाले बंगले में ही ठहरना है,आपके नए बंगले में। लेकिन मैंने मन ही मन में निश्चित कर लिया था कि मैं वहां नहीं ठहरूंगा। मल्ली ताल के आर्य समाज मंदिर में ही रुकूंगा क्योंकि शायद थोड़े पल के लिए आपकी यादों के घने सायों से बाहर निकलने की नाकामयाब कोशिश क़ामयाब हो जाए.....और मन चित शांत कर लिख सकें। इस सन्दर्भ में मैंने अपने संपादक मित्र नवीन दा से बातें कर भी ली थी। वह जाकर वहां कमरा ठीक कर देंगे। मैं यह भी भली भांति जानता था इस लिए गए आत्म निर्णय से आप हमसे बेहद नाराज़ होंगी। लेकिन कुछ कहेंगी भी नहीं यह भी मैं जानता ही हूँ।
कोई अपने घर के रहते मंदिर ,धर्मशाला और गुरुद्धारे में भला रुकता है क्या ,नहीं न ? पागल पंथी ही है, सब यही कहेंगे न ?....

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धारावाहिक यात्रा संस्मरण
नवरात्रि नैनीताल और शक्ति नैना देवी मंदिर.
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डॉ.मधुप.
शक्ति. नैना सुनीता प्रिया अनुभूति
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यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.
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गतांक से आगे : १.
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है
*
कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम


ये आसमां ये बादल ये रास्तें ये हवा : डोर्थी सीट : और सिर्फ तुम : कोलाज : नैनीताल :
शक्ति प्रिया 

डोर्थी सीट : टिफिन टॉप और सिर्फ तुम  : याद है पिछले साल ही जब जून महीने में गया था तभी एक बड़ी सी दरार दिखी थी। तभी थोड़ा थोड़ा डर लगने लगा था। आशंकाएं तब भी हुई थी।
तब क्या मालूम था कि ठीक दो तीन महीने बाद ही लगातार हुई मानसूनी बारिश के कारण. पहाड़ी में दरारें आ जायेंगी , जिससे डोर्थी सीट की संरचनात्मक अखंडता प्रभावित होगी और डोरोथी की सीट का मंच ढह जायेगा । हमारी कितनी यादें जुड़ी थी ?
अगस्त २०२४.पिछले साल की ही तो बात थी। नवीन दा बतला रहें थे भारी मानसूनी बारिश के कारण नैनीताल का लोकप्रिय पर्यटन स्थल डोरोथी की सीट, जिसे टिफिन टॉप भी कहते हैं, भूस्खलन की चपेट में आकर नष्ट हो गया था। तब नैनीताल के एस डी एम साहिब प्रमोद जी से मेरी बातें हुई थी इसे पुनः निर्मित किया जा सकता है या नहीं। उन्होंने कहा था प्रयास तो जारी ही रहेगा , तब छपने के लिए उन्होंने ढ़ेर सारी फोटो भेज दी थी।
यह सुन कर मैं कितना भावुक हो गया था अनु ? हमने कितने क्षण यहाँ बिताये थे अनु तुम्हें तो याद ही होगा। नवीन दा कह रहें थे ,इस घटना में हालाँकि किसी के हताहत होने की सूचना नहीं थी , लेकिन पहाड़ी में दरारें आने से यह संरचना पूर्णतः ढह गई थी।
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है शॉर्ट रील : नैनीताल का यह प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जो २२९० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है,जहाँ शांति ही थी शांति। हमने अपनी मीडिया के लिए कितनी शॉर्ट रील बनायी थी। शेरवुड स्कूल , इसका स्विमिंग पूल, राज भवन का गोल्फ कोर्स सब की क्लिपिंग हमने ली थी। तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है इस गाने की शॉर्ट रील बहुत ही अच्छी बनी थी। महेश दा की कैंटीन में चाय और मैगी भी खायी थी।
इसे ब्रिटिश अधिकारी कर्नल केलेट ने अपनी पत्नी डोरोथी की याद में बनवाया था, जो उनकी पत्नी को प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए एक मंच प्रदान करता था। यह टिफिन टॉप के नाम से भी जाना जाता है और नैनीताल के स्थानीय यहाँ आ कर पिकनिक भी मनाते है। झील के अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। अब तो वहां से झील भी नहीं दिखती है ,अनु। एक बड़ा कोना ही टूट कर गिर गया है।
कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम : देर रात ही हमें दिल्ली से अपने गंतव्य स्थान के लिए निकलना पड़ा। पत्रकारों ,कहानीकारों का जीवन ऐसे ही जोख़िम भरा होता है। कब हमें रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़े ,कहाँ जाना पड़े ,कोई सुनिश्चित नहीं होता । हम आदेश के पालक होते हैं। पल में हम कहाँ होंगे हम भी नहीं जानते है।
कैमरा , लैप टॉप , मोबाइल ,बैटरी, वाई फाई ,चार्जर,आई कार्ड, डेविड कार्ड बगैरह आदि सब मैंने अपने बैग में सुबह रख लिया था। देर दोपहर तक़ ९०२ किलोमीटर की दूरी तय कर हमें नैनीताल पहुंच ही जाना था । सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था।
मेरी सुविधा के लिए ही मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ।
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं। इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी ।
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी।
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था।
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है।
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर।

अयारपाटा के डोर्थी सीट से दिखती नैनीताल की पहाड़ियां : गवाह है : फोटो महेश.

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स्तंभ संपादन : शक्ति. रेनू नीलम मानसी श्रद्धा
स्तंभ सज्जा : शक्ति. तनु.मंजिता सीमा अनुभूति.
गीत लघु फिल्म : संकलन : शक्ति. डॉ.अनु मीना माधवी बीना जोशी .
आगे जारी..

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धारावाहिक यात्रा संस्मरण
नवरात्रि नैनीताल और शक्ति नैना देवी मंदिर.
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डॉ.मधुप.
शक्ति. नैना सुनीता प्रिया अनुभूति
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यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.
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गतांक से आगे : २ .
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है
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कहानीकारों का जीवन : जीवन चलने का नाम

सप्तमी की देर रात ही हमें अपने गंतव्य स्थान के लिए निकलना पड़ा। पत्रकारों ,कहानीकारों का जीवन ऐसे ही जोख़िम भरा होता है। कब हमें रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़े ,कहाँ जाना पड़े ,कोई सुनिश्चित नहीं होता । हम आदेश के पालक होते हैं। पल में हम कहाँ होंगे हम भी नहीं जानते है। कैमरा , लैप टॉप , मोबाइल ,बैटरी, वाई फाई ,चार्जर,आई कार्ड, डेविड कार्ड बगैरह आदि सब मैंने अपने बैग में सुबह रख लिया था। देर दोपहर तक़ ९०२ किलोमीटर की दूरी तय कर हमें नैनीताल पहुंच ही जाना था ।
सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था। मेरी सुविधा के लिए ही मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ।
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं। इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी ।
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी।
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था।
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है।
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर।




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शक्ति विजया : फ़िल्मी कोलाज : पृष्ठ : ७.
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संपादन
शक्ति नैना डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया 


नफरतों के इस जहां में हमको प्यार की वस्तियां बसानी है : शक्ति कोलाज : नैना डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया
  

इतनी शक्ति हमें देना दाता भूल कर भी कोई भूल हो न : डॉ सुनीताअनीता शक्ति प्रिया 

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शक्ति विजया : कला दीर्घा : रंग बरसे : पृष्ठ : ९.
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संपादन
शक्ति. मंजिता सीमा अनुभूति प्रिया.
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इतनी शक्ति हमें देना शक्ति मन का विश्वास कमजोर हो न : नैना शक्ति माधवी सीमा प्रिया . साभार
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शक्ति विजया : फोटो दीर्घा : कोलाज पृष्ठ : १२.
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संपादन
शक्ति नैना मीना अनुभूति बीना जोशी
नैनीताल डेस्क.

गंगा : काशी: शिव: शक्ति विंध्यवासिनी : दर्शन : फोटो साभार : शक्ति रितु : कोलाज : महाशक्ति 
विसर्जन के साथ गणपति उत्सव का समापन : नालन्दा : शक्ति. डॉ.भावना माधवी सीमा सुनीता.
 

शक्ति यात्रा : गंगा : विंद्याचल शक्ति की आराधना : 
साभार :फोटो :शक्ति रितु : कोलाज : शक्ति 

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चलते चलते : शुभकामनाएं : दिल जो न कह सका : पृष्ठ : १३.
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शक्ति प्रिया डॉ. सुनीता मीना
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फ़िल्मी तराने : कही ये वो तो नहीं



साभार : शक्ति : मृगनयनी : तेरी बिंदिया रे


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English Section.
Shakti.Pooja. Arya.Dr.Rajeev Ranjan. Child Specialist.Biharsharif. supporting 



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Shakti Editorial : English Page : 2.
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Shakti Editorial : Page : 2
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Chief Editor.
Bengaluru* Desk.


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Shakti : Prof. Dr. Roop Kala Prasad.
Shakti : Prof. Dr. Bhwana
Shakti : Tanushree Sarvadhikari.
Shakti : Baisakhi.
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Executive Editor 
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Editor :
Shakti Manjita Seema Priya Tanu Sarvadhikari.
Shakti.Pooja.Arya.Dr.Rajeev Ranjan.Child Specialist.Biharsharif.supporting

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Shakti Editorial : Write up : Page 2/0
My Teacher : a Friend Philosopher and Guide for me
Dr. Sunita Shakti Priya Seema.
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Shaktis Celebrating Teacher's Day in Dav : Collage : Photo  Shakti* Priya.Dr. Sunita Seema Anshima Singh
*
In India, Teacher's Day is celebrated on September 5th, marking the birth anniversary of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan, a renowned philosopher, statesman, and former President of India....
With all enthusiasm the entire teaching community and faculty celebrates teacher's day throughout the world specially in India.
Teacher's Day ! Really we need a teacher. And 5th of September is a very special day to remember, appreciate and honor the hard work and dedication of teachers that shaped the valuable future. I have a respect for those including my teacher students,kids and above all divine powers that guide me in a very different way.
I remember my beloved power, teacher, and my mentor that insists me to be the unique.I keep striving it still in my life.I become a free lance cartoonist,writer and a blogger due to her proper guidelines. I used to very happy while sharing my
published cartoons to my mentor power.
Like others we remain also very grateful to the persons who have made a significant impact differently on my life. I decided to do something anew.Your teaching has helped me grow and learn in ways I never thought possible in my life.
I come here with some ideas for Teacher's Day wishes that remain in our mind. My beloved power, teacher,my mentor : First of all I wish a very Happy Teacher's Day to all the amazing educators linked with me and us out there ! their patience, guidance, and support make a huge difference in students' lives."
I always assume that my teacher should be alike Shree Krishna that always protect the good ones in our life.He removes the darkness lying in the mind sets of like Arjuna.
We are really thankful to you all for being an inspiration and a role model in our life.You're not only just a teacher, you're indeed a mentor and a friend for me forever in my life that keeps guiding me on and on. They feel free to modify us to fit our personal style and relationship with others.
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Column Editor : Shakti Anubhuti Madhavee Tanu Shahina
Decorative : Shakti Naina Manjita Seema Farheen.
Karma Puja :
A Celebration of Nature, Brotherhood & Sisterhood.
*
a Divine Shakti Article *by
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Ashok Karan.
Hindustan Times ( Patna. Ranchi ) Ex.Staff Photographer
Public Agenda Ex.Photo Editor :New Delhi
Present : Photo Editor M.S Media Blog Magazine Page
Free Lance.
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Photo & Text : Ashok Karan.
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Photo : Young boys and girls dancing during Karma Puja celebrations in Ranchi
Jharkhand are filled with color, rhythm, and joy Today : The streets of Jharkhand are filled with color, rhythm, and joy as young boys and girls, draped in vibrant red, white, green, and yellow traditional attire, celebrate Karma Puja (Karam Festival) with immense enthusiasm. This age-old festival, rooted deeply in Jharkhand’s tribal culture, is dedicated to Karam Devta – the God of strength, youth, and vitality. It is a festival of brothers and sisters, symbolizing prosperity, fertility, and the eternal bond of family. Falling on the 11th day of the lunar month of Bhadra, it also marks the harvest season, making it both cultural and agrarian in essence. Rituals & Traditions * Youth venture into forests to collect wood, fruits, and flowers. * Karam tree branches are brought to the village and planted at the center of celebration. * Sisters observe fasts for the well-being of their brothers. * Jawa seeds are planted and nurtured, later used in rituals. * Villages echo with the sounds of Mandar, Dhol, and flute as people sing and dance in harmony. A Festival of Brothers & Sisters : One of the most emotional aspects of Karma Puja is the bond between brothers and sisters. Married sisters, residing in their in-laws’ homes, eagerly await their brothers to bring them back to their parents’ home. Songs like “Parlai Bhado Mas, Laglak Naihar ke Aas, Kabe Aitak Bhaiya Layu Nihar” beautifully reflect this longing, adding depth and emotion to the celebration. Even in difficult weather and overflowing rivers, brothers never fail to reach their sisters—showing the unbreakable bond nurtured by this festival. Women, adorned in red-and-white attire with Karam flowers tucked in their hair, dance gracefully in groups, symbolizing unity, love, and devotion. Nature is the True Deity : Unlike many other festivals, Karma Puja has no idols or grand temples. Instead, nature itself is worshipped—the earth, sun, seeds, and Karam tree are at the heart of devotion. This makes the festival not just cultural, but also ecological, highlighting the belief that “God is Nature.” Folklore of Karma & Dharma : Legend speaks of two brothers—Karma and Dharma. When Dharma once insulted Karma, he faced endless hardships. On advice from an old woman, he worshipped the Karam God with sprouted seeds of wheat, barley, grams, moong, and urad. His penance and fasting pleased Karma Devta, who forgave him, teaching generations the importance of respect, balance, and harmony with nature. Celebration Across States While most popular in Jharkhand, Karma Puja is also celebrated in Bihar (Magadh region), West Bengal, and Chhattisgarh, especially among tribal communities like the Oraon, Munda, and Baiga. Everywhere, it is observed with vibrant dances, drum beats, and heartfelt prayers for prosperity. This festival is not just about rituals; it is about heritage, identity, and the inseparable bond between people and nature. Pictures: Text & Photos by – Ashok Karan and Shashti Ranjan
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Column : Editing : Shakti. Dr.Bhwana Shahina Rashmi Sujata.
Decorative : Shakti Er.Snigdha.Bani Madhvee Sangeeta.

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Shakti Vibes : English Page : 3.
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Times Media Powered
Mahalaxmi Desk.Kolkotta.
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Editor.
Shakti.
Seema Soni.Naina* Priya
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Preparation Journey Courage

Believe in your preparation , trust your journey,
and ace your exams with courage
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Silence & Success
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Work hard in Silence
Let the Success be your Noise
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Doing best forgetting the rest.

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Don't stress Do your best
Forget the rest.
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No One
No one likes you
No one is like you
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Love what you do
The only way to do great work is love what you do
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Every ' failure ' is just another ' step ' closer
to a ' win '...never stop trying
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Your Behaviour & Talent
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Talent takes you to the top but
Your behaviour decides how long you stay there
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Education Pain and Outcomes.
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Education is like sharpening a pencil.
It is painful,but it is necessary for the best possible outcomes and results.
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Shakti Photo Gallery : English Page : 4.
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Editor
Shakti Dr.Sunita Madhvee Preety Shailly
Desk Mumbai.
Ganpati Bappa Moriya, it's a promise of your return. photo Shakti.Dr.Sunita Preeti Shailly Ram Krishna
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Comments

  1. ' ॐ श्री गणेशाय नमः '

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  6. Parvato Ke Dayre : It is a really passionate travelogue story that co relates human feelings with travel experiences of Nainital in a nice way.
    My heartiest greetings to the travelogue writer and the Shakti Editorial team for publishing this.
    Shakti Suman.Chandigarh.

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