मुझे भी कुछ कहना है.काव्यांजलि.

 

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कृण्वन्तो विश्वमार्यम. 
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मुझे भी कुछ कहना है.
काव्यांजलि.  
Mujhe Bhi Kuchh Kehna Hain : Kavyanjali.
A Complete Cultural Literary Account over Poem & Poetesses.
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Volume 1.Section.A.Page.0.Cover Page.
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पृष्ठ. ० देखें आवरण पृष्ठ.

मुझे भी कुछ कहना है. कोलाज : विदिशा 
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पृष्ठ.० आवरण पृष्ठ.मंगलकामनायें.  
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कृण्वन्तो 
विश्वमार्यम.
हम सभी टीम मीडिया सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाने चले.
गर्व से कहें कि हम 
भारतीय हैं. 

Team Media.
  

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आवरण : पृष्ठ ०.
मंगलकामनायें : पृष्ठ ०. 
सुबह और शाम में पढ़ें. न जाने क्यूँ. पृष्ठ ०.
आज का सुविचार : संकलन : पृष्ठ ०. 
आज की : कृति : पृष्ठ ०.
आज की : तस्वीर : पृष्ठ ०.
आज की : पाती : पृष्ठ ०.
सम्पादकीय : पृष्ठ १. 
विषय सूची. पहली, दूसरी, तीसरी, कविता
 पृष्ठ २. ग़ज़ल संग्रह
  पृष्ठ ३.काव्यांजलि.कविता संग्रह.
पृष्ठ ४.लघु कविता  संग्रह.
 पद्य : पृष्ठ ५.१.
पद्य : पृष्ठ ५.२.
पद्य : पृष्ठ ५.३.
पद्य : पृष्ठ ५.४.
द्य : पृष्ठ ६.सीपिकाएं,ग़जल. कविता.
कला दीर्घा : पृष्ठ ७. चित्र
फ़ोटो दीर्घा : पृष्ठ ९.छाया चित्र.  
समीक्षा : पृष्ठ.१०.
व्यंग्य चित्र : पृष्ठ ११. 
 सीपियाँ : आपने कहा : पृष्ठ १२.
मंजूषा  : पृष्ठ १३. कही : अनकही 


supporting.

आपकी सुविधा के लिए  

देखें सुबह और शाम : पृष्ठ ०. 
की पोस्ट में भी उपलब्ध  
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 न जाने क्यूँ.
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कहीं ये वो तो नहीं. 

साभार : फोटो 

सुन तेरी वो 
भोली सी प्यारी सी मुस्कान
मुझको अनवरत देखती हुई 
बड़ी बड़ी गोल निश्छल आँखें
मुख पर जुन्हाई सी हंसी, 
मुझे जिंदगी से शिकायत 
नहीं करने देती, 
और मेरा सारा दर्द सोखकर, 
तेरे सुनहरे भविष्य के लिए सहज हो, 
तेरे साथ बीते लम्हें को, 
जो मेरी हर साँस में अटका है, 

फोटो : रेनू. 

जिसके बिन अधूरापन लगता है. 
पर जी लेती हूँ, 
तेरे बिना
वो क्या है ना ? 
तेरी याद है जो, 
बेधड़क आकर खामोश कर देती है, 
और बस मेरे लिए
एक लम्बा इंतजार
सुनने को बेकरार
तेरी आहट
इंतजार ...इंतजार. 

रेनू शब्दमुखर.
जयपुर.
----------
बचपन.
 
साभार : फोटो 

जाने कहां गए वो दिन
यादों का कारवां,
वो रेत के घरौंदे
वो सपनों का घर,
रंग-बिरंगी तितलियां
नींद उड़ाते दोपहर .
मस्ती भरे दिन समेटे, 

साभार : फोटो 

सुनहरी यादों का सफर,
गर हो सकता उड़ के पहुंच जाते, 
फिर से वहीं पर,
ये कहां आ गए हम
ख़ुद से ही बेखबर,
जाने कहां गए वो दिन
वो लोग,वो शहर !

नीलम पांडेय.
वाराणसी. 

-----------

माँ.


फोटो : साभार 

तू तो अद्भुत है,
तेरा कोई जवाब नहीं, 
माँ तो तू है ही,
तू समय पर पिता भी
बन जाती है माँ, 
तू तो अद्भुत है
बच्चों के लिए न जाने
क्या क्या कर जाती है ?
ईश्वर आत्मा परमात्मा तो,
किताबों में पढ़ी लिखी बातें है,
पर तू तो इस मृण्मय संसार में, 
जीवित परमात्मा है,
चैतन्य आत्मा है, 
जिसकी अनुभूति सबको जीवन,
पर्यन्त होती रहती है
ठीक वैसै ही जैसे
प्रतीत्यसमुत्पाद का दर्शन 
अनवरत अबाध चलता रहता है,
तेरा भी संसार हर अनुकूल, 
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी,
अबाध गति से चलता ही रहता है,
अपने बच्चों की छोटी-छोटी, 
ख्वाइशों से लेकर बड़ी बड़ी, 
चाँद सितारों को लाने की बातों, 
पर भी ना नहीं करती है ,माँ 
यकीनन तू अद्भुत है,
तू कभी थकती भी नहीं है,
तेरे अन्दर बाहर की सारी पीडाएँ,
बच्चों के चेहरे की हँसी से,
धुलकर बह जाती है, 
जैसे अरुणोदय के साथ तमस,
तिरोहित हो जाता है,
टुकड़े टुकड़े में बँट कर जीती,
है पर टुटती भी नहीं है,
कभी न सह पाने के कारण, 
टूट भी जाती है तो,
भीतरी तपिश की गर्मी से, 
सोने की तरह जुड़ भी जाती है माँ 
तू तो अद्भुत है, 
बच्चों के लिए क्या क्या 
नहीं कर जाती है ?

अरूण अनीश  
@ रसिकपुर दुमका झारखण्ड

   ------------   
हो ली.
 

 जिस दिन से खेली 
मैंने तेरे साथ होली, 
उस दिन से ही तो 
मैं तेरे साथ हो ली.   
©️®️
डॉ.मधुप.
-----------
खुशी. 

फोटो : अभिमन्यु 

कभी बारिश, 
तो कभी हिमपात,
कहीं भूस्खलन, 
तो कहीं दरक गयी चट्टानें,
हम है खोजते
पहाड़ों में मौसम गर्मियों के 



©️®️
  डॉ.मधुप. 
-------------

बेटी दिवस 
के उपलक्ष पर  
कविता. 


नीलम पांडेय.
वाराणसी. 


--------------
ग़ज़ल.

न समझेंगे वो तो और फिर कौन सुनेगा.



दर्द का सैलाब है बस  अश्कों में बहेगा
न समझेंगे वो तो और फिर कौन सुनेगा।

 वक्त को रोकने की मत करना हिमाकत
वक्त है  जनाब  किसके रोके ये रूकेगा।

हमदर्द बनना बस अफसानों की बाते हैं
साहिल के पहुँचने तक भला कौन चलेगा ?

छोटी सी जिंदगी में खुशी है,गम भी बड़े हैं
मौसम की तरह कभी वक्त तो बदलेगा।

सजदे में झुकता रहा * अनीश दर बदर
कोई तो मुर्शिद होगा जो उसकी सुनेगा।


अरूण अनीश.
दुमका, झारखण्ड. 

अर्थ : मुर्शिद  - चाहने वाला. 

----------
ग़ज़ल

डॉ. आर. के. दुबे.
संपादक. 

जान से हम जाते रहे आते रहे तुम.
 
अर्थ . क़ासिद : संदेशवाहक. 

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©️®️
M.S. Media
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पृष्ठ ३. में भी देखें कविता  संग्रह. में 
साझा करें 

Page 0
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आज का 
सुविचार.
 पृष्ठ ०.
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साभार फोटो .

संकलन. 


सीमा धवन. पश्चिम बंगाल. 
---------- 
" आपको शुरू करने के लिए महान होने की जरुरत नहीं लेकिन आपको महान बनने के लिए शुरुआत करनी होगी..." 

"...उस व्यक्ति को हराना बहुत ही मुश्क़िल है जो कभी भी उम्मीद नहीं छोड़ता." 
" ...सीखना जीवन की सर्वश्रेष्ठ कलाओं में से एक है,इस अवसर को गवाएं नहीं.."
"...आपके सीखने की कला के भीतर सबसे अच्छी बात यह होती है
कि कोई दूसरा इसे छीन नहीं सकता.." 

'..एक महान दोस्त बनने के लिए शुक्रिया. '
'..Thanks for Bee -
ing a Great Friend..'
...जो आप कर सकते हैं उसमें देर न करें..
 

"....एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारों बार ठोकर खाने के बाद ही होता है ..."
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आज की तस्वीर.पृष्ठ ०.
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सिक्किम की वादियां : फोटो शशांक शेखर 
तारें जमीन पर : फोटो महेश सुनाथा,नैनीताल 

शीतला खेत,रानी खेत से दिखता हिमालय : फोटो नमिता.
------------------
आज की कला कृति. पृष्ठ ०
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बारिश की धुंध में सिमटी लैंप पोस्ट की रोशनी : कृति नीकू 



 
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देखें पृष्ठ ०.आज की पातीकविता  
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रेनू शब्दमुखर.
जयपुर.
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मुझे भी कुछ कहना है. हिंदी पत्रिका.
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काव्यांजलि.
अपने अन्तर्मन का साहित्य.
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भावनाओं की अटूट कड़ी, यादों के सुनहरें पन्नें. अंक १. 
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©️®️
M.S. Media.
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वह शब्द कहाँ से लाऊँ.
कविता. 

 
जब सोचा कि 
तुम पर लिखूं एक कविता, 
तो लगा कि वह शब्द कहाँ से लाऊँ, 
तुम्हारे प्यार, दुलार और परवाह को 
जो तुम्हें और तुम्हारी पाक चाहत को, 
वर्णित कर सकें.

फोटो : साभार 

शब्दों में बयां कैसे करूं,
फिर ख्याल आया कि 
तुम तो स्वयं कविता की सी 
निर्मल हो सुलझी हुई 
और अलंकृत हो, 
प्रीत के असंख्य मोतियों सी 
उज्जवल हो. 
 बस इतना ही सुनना, 
मेरी हो सिर्फ़ मेरी ही रहना, 
ख़ूबसूरत पाक प्रेमबेल बन 
मुझ पर छाई रहना. 

फोटो : साभार 

मेरी जिंदगी को पारस बनाए रखना, 
निशब्द हूँ तुम्हारे प्रेम के आगे, 
बस इतना सा ही कहूं कि 
मेरी जीने की उम्मीद हो, 
मेरे आकाश का विस्तार हो तुम, 
रात की आख़िरी सोच और 

फोटो : साभार 

भोर की पहली याद हो तुम. 
तुमसे ही दिन की ऊर्जा मिले 
वही रात की चांदनी की शीतलता हो 
तुम सुन रही हो ना !
जीवन के हर मोड़ पर लड़खड़ाते हुए विश्वास का 
संबल बन मुझे संभाल लेना, 
उम्मीद हमेशा बरक़रार रहे, 
जीवन के रंग तेरे संग चटख़दार रहे .

कविता गुरु ग्राम ,नव समाचार में प्रकाशित .

©️®️ रेनू शब्दमुखर.
जयपुर.
-----------------------------------
प्रथम मीडिया. 
एम.एस.मीडिया.
ए.एंड.एम. मीडिया. 
के सौजन्य से. 
-----------------------------------



समर्पित 
निर्मला सिन्हा ,एम. ए. हिंदी ,पटना विश्वविद्यालय 
प्रधानाध्यापिका, हरनौत प्रोजेक्ट स्कूल.   
गीता  सिन्हा. एम. ए. द्वय हिंदी ,संस्कृत. पटना विश्वविद्यालय 
पूर्व शिक्षिका.टेल्को ,जमशेदपुर.
----------------------------------------------------------

पृष्ठ १. में देखें
सम्पादकीय.
आभार : सहयोग.
 

 
पहली कविता. कही - अनकही.
अतिथि संपादक
 

मानसी पंत .
कंचन पंत 
नैनीताल 


---------------- 
क्या लाया, क्या ले जाएगा.
---------------- 


क्या लाया, क्या ले जाएगा


कल फिर सब कुछ ख़त्म ,
और खाली सा होगा .
सीधा - साधा नर ,
लुच्चा मवाली सा होगा.
अस्थिर मनोबल ,
फिर स्थिरता को तरसेगा, 
लहूलुहान मेघ ,
ज्वाला बन कर बरसेगा,
द्वापर कथाएं फिर 
कलयुग का जाल होगी .
सीता भी बेबस सी,
राधा बेहाल होगी .
भाई - भाई को काटता ,
ख़ुद के टुकड़ें बेच खाएगा ,
ख़ाक हो गया दिल सबका ,
क्या लाया ,क्या ले जाएगा ?
 


मानसी पंत.
नैनीताल, की कलम से. 
©️®️ 
--------------------  
प्रधान संपादक. 
डॉ. मनीष कुमार सिन्हा. 
नई दिल्ली. 

सहायक संपादक 
 रेनू शब्दमुखर. जयपुर.
डॉ. आर. के. दुबे.



 संपादक. मंडल 

रवि शंकर शर्मा .संपादक , नैनीताल. 
डॉ. नवीन जोशी , नैनीताल.
अनुपम चौहान. संपादक. समर सलिल. लखनऊ.   
डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह , रायपुर. 
सेवा निवृत्त  अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक,वन विभाग, छत्तीसगढ़.
डॉ. प्रशांत , बड़ौदा. गुजरात.  
रीता रानी : जमशेदपुर. 
डॉ. शारदा सिन्हा , पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष ,नालंदा महिला कॉलेज.
डॉ. रूप कला प्रसाद ,प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग. 
डॉ. रंजना, स्त्री रोग विशेषज्ञ.


संयोजिका 
नीलम पांडेय.
वाराणसी. 

 
-------------
फोटो संपादक. 


अशोक कर्ण. पूर्व  फोटो एडीटर ( एजेंडा ,नईदिल्ली ),
छायाकार, हिंदुस्तान टाइम्स ( पटना ,रांची संस्करण )
-----------------------------------


विधि सलाहकार.
सरसिज नयनम ( अधिवक्ता, नई दिल्ली , कोर्ट )
रजनीश कुमार सिन्हा ( अधिवक्ता उच्च न्यायलय )
सुशील कुमार ( विशेष लोक अभियोजक. पाक्सो. )
रवि रमण  ( वरिष्ठ अधिवक्ता )
सीमा कुमारी  ( अधिवक्ता )
दिनेश कुमार ( वरिष्ठ अधिवक्ता )
--------------------

 

सरंक्षक.
चिरंजीव नाथ सिन्हा, ( ए.डी.सी.पी.) लखनऊ.  
राज कुमार कर्ण  ( सेवानिवृत डी. एस. पी. ).पटना 
डॉ. मो. शिब्ली नोमानी. डी. एस. पी. नालंदा 
कर्नल  सतीश कुमार सिन्हा ( सेवानिवृत ) हैदराबाद.
कैप्टन अजय  स्वरुप, देहरादून , इंडियन नेवी  सेवानिवृत ). 
डॉ. आर. के. प्रसाद , ( ऑर्थोपेडिशयन ) पटना.
अनूप कुमार सिन्हा, ( उद्योगपति ) नई  दिल्ली. 
डॉ. भावना, ( व्याख्याता )
---------------
सम्पादकीय.
पहली कविता. कही - अनकही 
. कविताओं की पहली शुरुआत 
------------ 
एक यथार्थवादी कविता 
पृष्ठ का निर्माण आज से ही : काव्यांजलि.एक बेहतरीन शुरुआत
कृप्या स्नेह बनाए रखें. 
-----------------------------------------

पृष्ठ २. में देखें ग़ज़ल संग्रह. 


डॉ. आर. के. दुबे
.
संपादक 
ग़ज़ल / २ /१ /० 

टुकड़े हौसलों के जोड़ने में लगे हम.
 



मज़कुरा - वृतांत. 
तबील - लम्बा -चौड़ा. हयात -जीवन. 

-----------------------------------------

ग़ज़ल / २  /२. 


अनीश. 
दुमका,झारखण्ड. 

.ताउम्र सबके जज्बात ओ एहसास का कद्र करते रहें है हम.

साभार : फ़ोटो 

 
हम आपकी महफ़िलों के काबिल हैं ऐसा हमने कब कहा है
हम जहाँ हैं वही सहर होगा ऐसा हमने कब कहा है

ताउम्र सबके जज्बात ओ एहसास का कद्र करते रहें है हम
उतनी ही शिद्दत से आप भी चाहो ऐसा हमने कब कहा है

फ़लकबोसा वजूद हमारा भी था कभी,महफ़िलें आबाद थी
महफ़िलें न सजेगी हमारे बगैर ऐसा हमने कब कहा है

मोख्तसर सी बात है के वक्त कब किसका हुआ है
एक सां ही वक्त रहेगा अनीश, ऐसा हमने कब कहा है।।

अर्थ : सहर - सवेरा. फ़लकबोसा - किसी चीज़ को चूमना. मोख्तसर - संक्षेप 

अनीश. दुमका.झारखण्ड. 

-------------
ग़ज़ल.

अजीब शख्स है जीने देता है, न मरने देता है.


अनीश.
दुमका,झारखण्ड. 

वो मोहब्बत करता और नफरत भी करता है,
अजीब शख्स है जीने देता है, न मरने देता है।

उसकी फितरत को गहराइयों से जानता रहा हूँ, 
जज़्बात ओ एहसास का इस्तेमाल करता है।

फोटो : साभार 

दरिया बदस्तूर अपनी रवानी में बहता रहता है,
अपने वजूद के साथ किनारों को भी भूल जाता है।

दरिया को नहीं पर उसकी मंजिल सबको पता है,
आखिर समन्दर के आगोश में गुम हो जाता है।

है अनीश परेशां बहुत इस हकीकत को जान कर 
इन्सां अपनी मजबूरियों में क्या से क्या हो जाता है।

अनीश. दुमका,झारखण्ड.
 
-----------------------------------------

 पृष्ठ ३. काव्यांजलि. कविता संग्रह 
पृष्ठ ३/१ : न जाने क्यूँ. रेनू शब्दमुखर. जयपुर
पृष्ठ ३/२ : उदगार. नीलम पांडेय 
पृष्ठ ३/३ : मुझे भी कुछ कहना है. डॉ.मधुप. 
पृष्ठ ३/४ : अभिव्यक्ति.रंजना  . 
पृष्ठ ३/५  : अभिकल्प .राजेश रंजन . 



सहयोग 
-------------

पृष्ठ ३/१ : न जाने क्यूँ. 
रेनू शब्दमुखर. जयपुर


तुम होते तो ऐसा होता.


रेनू शब्दमुखर.
जयपुर

फोटो : साभार 

सोचती हूं 
अक्सर मुझ में नाजुक मन ,
ले एहसासों का बसेरा ,
तुमको पाने को, 
सहसा दौड़ता हुआ ,
तुम्हारी उम्मीदों का संस्पर्श पाकर, 
मेरी जिंदगी को, 
अहा जिंदगी करता हुआ, 
अपनी अनुभूतियों को, 
जज्बातों के धागों में पिरो कर, 
मुझ पर अपनी यादों का डेरा डाल, 

फोटो : विदिशा 

प्रफुल्लित करता है. 
और मेरा कोमल संवेदनशील मन
तेरी संवेदना की मिठास पाकर, 
वही फिर प्यार की चादर ओढ़, 
फिर से खो जाता है, 
नित नव उम्मीदों का, 
ताना - बाना बुनते हुए, 
कि तुम होते तो ऐसा होता, 
तुम होते तो हम यह करते, 
बस मेरे अल्फ़ाज़ ये सोच, 
अपने में ही सिमटते हुए लगते हैं 

©️®️
M.S. Media.
रिश्ते. 

फोटो : डॉ.सुनीता. 

जो गहन रिश्ते होते हैं, 
वो अटूट होते हैं, 
दुनियाँ की बातों से परे, 
वे संवेदना के तले पलते हैं.
ये तेरी ये मेरी, ये कह दिया ,
वो कह दिया ,
कोई फ़र्क नहीं पड़ता, 
उनकी पकड़ मजबूत होती है। 
बरगद के झूलों से दृढ़ता लिए, 

फोटो : साभार.

कितनी ही विकट हवाएं
विकराल रुख अपनाएं, 
आंधी तूफान भी ले आये, 
उनका ज़ोर नहीं चलता, 
बशर्ते रिश्ते की पकड़ दोनों ओर से,
 दृढ़ता के आँचल में, 
प्यार के चंदोबे में मजबूती से, 
दुनियाँ की आँख मिचौली
से अवगत हो, 
विश्वास के तले, 
अटूट रिश्ते की डोर थामे हो। 
और हाँ एक बात संवाद बना रहे। 
©️®️ रेनू शब्दमुखर. 
जयपुर.

कविता गुरु ग्राम ,नव समाचार में प्रकाशित .

---------------------

वह शब्द कहाँ से लाऊँ.
कविता. 

 
जब सोचा कि 
तुम पर लिखूं एक कविता, 
तो लगा कि वह शब्द कहाँ से लाऊँ, 
तुम्हारे प्यार, दुलार और परवाह को 
जो तुम्हें और तुम्हारी पाक चाहत को, 
वर्णित कर सकें.

फोटो : साभार 

शब्दों में बयां कैसे करूं,
फिर ख्याल आया कि 
तुम तो स्वयं कविता की सी 
निर्मल हो सुलझी हुई 
और अलंकृत हो, 
प्रीत के असंख्य मोतियों सी 
उज्जवल हो. 
 बस इतना ही सुनना, 
मेरी हो सिर्फ़ मेरी ही रहना, 
ख़ूबसूरत पाक प्रेमबेल बन 
मुझ पर छाई रहना. 

फोटो : साभार 

मेरी जिंदगी को पारस बनाए रखना, 
निशब्द हूँ तुम्हारे प्रेम के आगे, 
बस इतना सा ही कहूं कि 
मेरी जीने की उम्मीद हो, 
मेरे आकाश का विस्तार हो तुम, 
रात की आख़िरी सोच और 

फोटो : साभार 

भोर की पहली याद हो तुम. 
तुमसे ही दिन की ऊर्जा मिले 
वही रात की चांदनी की शीतलता हो 
तुम सुन रही हो ना !
जीवन के हर मोड़ पर लड़खड़ाते हुए विश्वास का 
संबल बन मुझे संभाल लेना, 
उम्मीद हमेशा बरक़रार रहे, 
जीवन के रंग तेरे संग चटख़दार रहे .

कविता गुरु ग्राम ,नव समाचार में प्रकाशित .

©️®️ रेनू शब्दमुखर.
जयपुर.
----------
पृष्ठ ३/२ : उदगार. नीलम पांडेय 

नीलम पांडेय.
वाराणसी. 


' कविता क्या है ?'

कुछ अनकही
कुछ अनजाना - सा,
भावनाओं की दरिया में,
शब्दों का यूं बहते जाना.
वेदना से हो व्याकुल,
सारी रात सो नहीं पाना,
शब्द बनके, फिर पीड़ा का,



 बस..यूं ही बहते - बिखरते जाना.
तन्हाई की रजनी में , 
उम्मीदों की चांदनी तले,
 आहट सुन बेगानी-सी, 
दरवाजे तक दौड़ लगाना.
सृष्टि को व्याकुल करनेवाली,
 प्रेम और पीड़ा का संगम, 
अद्भुत और निराला है.
भावनाओं में रंगे शब्दों का, 
है स्पर्श दिल को छूनेवाला ,
कान्हा की बंशी की धुन-सा, 
सबको बेसुध करने वाला है.

----------

" हर घर तिरंगा "

साभार 

आज़ादी के जश्न में डूबा हुआ है,
क्या शहर क्या गांव !
गूंज उठा है, हर दिशा में,
नारा जय हिन्द, जय भारत का।
हर्षित है हर भारतवासी,
 है लहरा रहा तिरंगा प्यारा।
भर के ताक़त केसरिया की , 
सच की सफेदी से जगमग ,
और ओढ़ हरियाली की चादर
झूम उठी है धरती, गा रहा गगन ,
वन्दे मातरम् ! वन्दे मातरम्  !
 मां भारती के सब हैं संतान ,
क्या हिंदू और क्या मुसलमान ,
रखेंगे हम तिरंगे का मान, 
देख रही दुनिया, जश्ने आजादी को,
मन रहा हर घर तिरंगा अभियान 

-------------

सफर

ओ मन !
 कब समझोगे ?
सपनों की दुनिया !
चाहे हो कितनी ही प्यारी ,
 बंद मुट्ठी की धूप है ।
महसूस करोगे जब ,
तब नहीं पछताओगे।
 मन पर किसका बस चला है ?
 जो चाहा किसको कब मिला है ?

फोटो : साभार 

 इस सफर में तुम्हें कब, कहां ,
 कितनी दूर तक जाना है ?
नहीं पता किसी को भी,
 तुम कैसे पता लगाओगे ?
अरे ! यह जीवन ही है सपना ,
 सुख - दुख से सुरभित।
है इसका हर कोना
 फिर इसमें, 
क्या पाना ?
 क्या खोना ?
मीठे सपनों की इस दुनिया में ,
 जब जीवन के गीत गुनगुनाओगे।
 सबसे परे फिर,
एक नया सवेरा पाओगे।
----------
 
" अनुत्तरित "

अभी कुछ समय पहले,
गरमा-गरम बहस जारी थी,
प्रश्न था -
भूख और बेरोजगारी का मुद्दा,
कितना प्रासंगिक है ?
है या नही ?
संसद से सड़क का फासला,
क्या खत्म हो चुका है आज ?
याद किए जा रही हूं,
पैसेंजर ट्रेन की यात्रा के लम्हों को।

फ़ोटो : साभार 

मैले कुचैले कपड़ों में लदी,
दर्जन भर बच्चों से घिरी,
गंदे बालों वाली उस महिला को।
अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों में,
कचरे की ढेर फैलाए आसपास,
 बेखबर सो रही थी जो।
लिपटा हुआ था छोटा-सा बच्चा,
जिस्म से जिसके,
भूख मिटाने की जंग जारी थी।
बाकी बच्चे कुछ सहमी,
 ललचाई नज़रों से देख लेते थे।
 हर आने जाने वाले खोमचे वालों को, 
थे जिनकी हाथों में खाने के सामान।
भीड़ के बीच,

फ़ोटो : साभार 

 काम पे पहुँचने की जल्दी थी, 
भूख और बेरोजगारी के मुद्दे पर,
ख़ुद को जवाब दे नहीं पाती हूं।
जल्दी से मुंह पर मास्क लगाकर,
देखने लगती हूं खिड़की से बाहर।
सोचने लगी हूं बड़ी शिद्दत से,
क्या यही है, सपनों का भारत ?
शायद, जवाब नहीं है मेरे पास।
प्रश्न अनुत्तरित है !
---------

 
 नीलम पांडेय.
वाराणसी. 

बस यूं ही.

फोटो : साभार 

कैसे हो ?,
पूछ लिया था मैने ,
बस कुछ यूं ही.
आप बताओ ?
 जवाब दिया था उसने.
और,
 तपाक से बोल दिया मैंने,
बिना देर लगाए.
अपने दिल से जानिए,
 पराए दिल का हाल !
और ,
फिर आगे का सफर,
कुछ यूं तय हुआ,
कि रहने लगे हम दोनों ही,
इक दूसरे के दिल में ।
लगने लगा ,
जैसे सदियों से,
रहते थे ,
इक दूसरे के दिल में.
और,
पता इतनी देर से चला !
--------
हिंदी दिवस



नीलम पांडेय.
वाराणसी. 

भारत की स्वर्णिम गाथा हिंदी 
जन जन की भाषा हिंदी 



संयोजिका 
ब्लॉग पत्रिका
मुझे भी कुछ कहना है.काव्यांजलि. 
नीलम पांडेय.
वाराणसी.
©️®️
--------------

पृष्ठ ३/३ : मुझे भी कुछ कहना है. 
डॉ.मधुप. 
 कविता संग्रह.



-------------

  मुझे भी कुछ कहना है. 
डॉ.मधुप. 

हो ली.
 

जब से खेली 
मैंने तेरे साथ होली, 
उस दिन से ही तो 
मैं तेरे साथ हो ली.   
©️®️
डॉ.मधुप. 

---------
यादें. 

फोटो : डॉ. मधुप 

 मेरी तो याद ही 
चली गयी है  ,
सब कुछ 
तेरी याद करने में,
अब तो आलम यह है कि,
अपने घर भी पहुँचते  हैं  
गैरों से  
खुद का 
नाम पता पूछकर. 
-----------------

फ़लसफ़ा.


मुझसे नाराज़ है जिंदगी , 
अक्सर यह सवाल पूछती है , 
 कभी तुमने मुझसे यह भी 
कहा था, 
'..जुदा नहीं होंगे तो 
 मिलेंगे कैसे ..? '

फोटो : साभार 

मिलेंगे कब ?
अब तुम ही बताओ
जुदा तो हम कब के हो गए,
क्या ऐसा नहीं लगता ? 
कि मिले  बिछड़े हुए  
हमें सदियों  हो गए. 

©️®️
डॉ.मधुप.
--------

एकाकीपन.

फोटो : डॉ. मधुप .नैनीताल 

तुम कह सकते हो, 
क्योंकि  कोई न कोई तुम्हारे पास है, 
मैं कह नहीं सकता,
क्योंकि मेरे पास, 
कोई है भी नहीं.
फ़िर कहाँ रही मेरी आदत भी ऐसी ? 
वैसे भी कल ,
रात की बारिश में, 
दूर कहीं पहाड़ी के शीर्ष से, 
न जाने कब,   
 नीचे सूनी वादियों में गिर कर, 
देवदारों के बीच, 
किसी पहाड़ी नदी 
रावी के किनारे, 
चम्बे दा गांव में, 
रास्तें का पत्थर क्यों बना दिया गया  ?
मैं चाह कर भी कुछ कह नहीं सकता ,
तुम्हें  आवाज़ दे नहीं सकता 
और तुम ?
मुझ तक़ पहुंच नहीं सकते,  है न ! 


©️®️
डॉ.मधुप 
-----------

संभावनाएं.


 साभार : फोटो 

इस जीवन के 
रंग मंच में, 
एक क़िरदार की भूमिका को, 
अदा करते हुए , तुम्हारे लिए, 
सब के लिए, 
खुशी तलाश करते हुए, 
अपने लिए, 
इस खेल तमाशे में,  
कहीं ऐसा न हो जाए , 

फोटो : डॉ.मधुप.

दूर तलक पसरा हुआ  सन्नाटा  
अपने भीतर की कभी 
न हटने वाली  
 ख़ामोशी  
 धीरे धीरे लोग चले जाए , 
एक एक करके  
अँधेरे और 
सिर्फ़ तन्हाइयों में 
मेरा साया ही  
मेरे लिए 
साथ  शेष रह जाए. 

©️®️
डॉ.मधुप. 
पुनः सम्पादित : प्रिया दार्जलिंग 
फ़िर से देखें और खोले 
----------


©️®️
डॉ.मधुप.
-----------
 धुंध 

फोटो : डॉ.मधुप  

किसी अनजाने सफ़र में ,
अनदेखी  मंजिल  के लिए, 
घने जंगलों से गुजरते हुए  
मीलों देवदारों के दरम्यान  
अकेले चलते हुए भी, 
जब कोई उम्मीद की किरण न दिखे , 
तो डर लगता है,
सोचते है ठहरे
या वापिस लौट जाए, 
मगर कैसे ?
रास्तें तो कब के भुला गए  ?
  निशान  जो  लौटने के थे   
  न जाने कब कैसे मिट गए    ?
अब  पसर गयी है सामने,

फोटो : डॉ.मधुप 

सिर्फ़ धुंध की चादर,
इस तन्हाई में, 
हम सच कहें,
घंटों चलते हुए,  
 हम तो किसी साए के लिए तरस गए.  
अब शाम की धूप,
जिंदगी की  देहरी पर है,
हो सकता है, 
इस अँधेरी रात में ही,
मंजिल से पहले 
टूटते गिरते चिनारों के पत्तें 
के साथ  ही चुपचाप फ़ना  हो जाएंगे, 
इस जनम में न सही, 
लगता है 
बाक़ी के काम 
 अगले जनम में ही शायद कर पाएंगे.  


©️®️
डॉ.मधुप.
-------
इतिहास. 


फोटो : डॉ मधुप 

तुम्हारे सुनहरे कल के लिए, 
लो मैं अपना आज दे जाता हूँ, 
ये भी सच है कि,
इस जहां से  मैं 
कल चला जाऊंगा ही, 
सच है यह भी मगर , कि  इस 
हास - परिहास में ही, 
तुम्हारी यादों के,  
सुनहरे पन्नों में, 
इतिहास बन जाऊंगा. 
और तुम मुझे
यूं ही भुला न पाओगे  
क्योंकि मैं कई बार ,
हर  दिल से, 
पढ़ी जाने वाली,
तुम्हारी हमारी, 
कही अनकही 
सब की 
प्रेम कहानी बन जाऊंगा.


©️®️
डॉ.मधुप.

फ़िर से संपादित, प्रिया. दार्जलिंग 


----------------------

सत्यमेव जयते. 

 अभिमन्यु आज के,
आज भी  देखते हैं, 
अपने जीवन संघर्ष में 
चारों ओर, 



न कृष्ण हैं, 
न अर्जुन हैं,
इस युद्ध स्थल में , 
न  कोई अपना है, 
न सगा  हैं. 
सामने असत्य है, 
कुचक्र है, 
एक बार फ़िर से
 शत्रु बड़ा विकट है.  
सत्य की लड़ाई में 
अभिमन्यु फिर से चक्रव्यूह 
 में  घिर गए है 
चारों ओर शत्रु बड़े बड़े हैं, 
निराशा का तिमिर हो, 
या आशा का प्रभात हो, 
तभी तो   
अभिमन्यु नितांत 
अकेले ही  निहत्थे खड़े है.
हमारे समक्ष, 
प्रश्न हो यक्ष, 
कि क्या अभिमन्यु सबसे हार कर 
मृत्यु शैया पर पड़े हो, 
या विजयी हो कर 
सत्यमेव जयते की तरह 
सब के सामने खड़े हो.
 


©️®️
डॉ.मधुप.

पुनः सम्पादित : प्रिया दार्जलिंग 
फ़िर से देखें और खोले 
---------
ख़्वाब. 


प्रिया 
दार्जलिंग. 
 
 ठहरे से रुके कदम,
तेरी ओर न जाने क्यों  
 बार बार चले ?
दूरी न रही अब कोई  
ठहरी सी जमीं
लगती नहीं 
पर फासले न जाने कैसे 
अब कम होने लगे, 
लगता तो नहीं था ,

फोटो : साभार 

जिंदगी इतनी ख़ूबसूरत है, 
फूल खिलने लगे अरमानों  के, 
 ख़्वाब भी रंग बदलने लगे,  
आसमां को देखती हूँ ,
उन चाँद सितारों में भी देखती हूँ मैं तुम्हें,  
सपनों में खोए हो जैसे, 
तुम मुझे नज़र आने लगे, 
अब तन्हाईयां  और खामोशियाँ, 
ही अच्छी लगने लगी, 
रह रह कर आप  हमसे, 
जो बातें करने लगे. 
©️®️
M.S. Media.
---------- 

पृष्ठ ३/४: अभिव्यक्ति.रंजना . 

डर.

रंजना.
नई दिल्ली.
पूर्व संवाददाता ( हिंदुस्तान )
  
समस्या न मेरा है
न तुम्हारा है, 
नफ़रत न तुम से है, 
न तुम्हारे आराध्य से. 
तुम्हे नफ़रत कुर्सी वाले से है, 
मुझे डर जिन्दगी से है, 
तुम मनमर्जियां  कर सकते हो, 
हम तो डर डर कर जी रहे हैं. 
करता करूं यह डर एक  
विषाणु से है, 


बस अदृश्य और ताक़तवर विषाणु 
पता न कब समा जाए और, 
सांसे थमने लगे, 
सांसे भी सिर्फ़ अपनी नहीं ,
अपने साथ साथ ,
हर हाथ बढ़ाने वाले की भी ,
अब कैसे निकालू डर को ,
तुम कर लो अपनी मनमर्जिया
मैं निकालना तो चाहती हूं, 
अपने भीतर के डर को भी, 
लेकिन मजबूर हूँ, 
सरकारी फरमान है, 
जो जहाँ है वहीं रहेगा. 
------------

प्रकृति. 

फोटो : महेश,नैनीताल  

प्रकृति ही तय करती है, 
कब कौन सा बीज फुटेगा,
कब कोपल निकलेगा ? 
पौधा से पेड़ , 
पेड़ से फलदार, 
फिर पतझड़
फिर फलों के मंजर, 
यह चक्र प्रकृति के हाथों में है, 
हर बीज पौधा 
नहीं बनता, तो हर पेड़ फल नहीं देता, 
यह भी प्रकृति का नियम है, 
ठीक वैसे ही, 
इंसानी जिंदगी , 
का कमान भी 
प्रकृति के हाथ में है, 
नई पीढ़ी के पनपने, 
और पुरानी पीढ़ी के जाने का क्रम, 
चलता रहता है, 
फिर डर काहे का, 
जो आया है, 
वो  जाएगा


रंजना 
नई दिल्ली. 
लेखिका, हिंदुस्तान दैनिक. 
-----------

पृष्ठ ३/५  : अभिकल्प .राजेश रंजन . 

चट्टानें.

राजेश रंजन वर्मा. 
स्वतंत्र लेखक, हिंदुस्तान दैनिक.
 
परत- दर- परत बनतीं हैं चट्टानें, 
आपदाओं से संघर्ष करतीं हैं चट्टानें. 
जब प्रकृति का प्रहार पड़ता है, 
तब फट पड़तीं हैं, 
मानों सीना चीर  कर कहतीं हों, 
देख लो, इस पार से उस पार तक, 
संदेह की छाया नहीं, 


चिंता की लकीर नहीं . 
ये चट्टानें टूट सकती हैं, 
मगर, बिखरती नहीं. 
संघर्ष करतीं हैं, सहती है, 
मगर, आहें भरती नहीं
परत - दर- परत बनती हैं चट्टानें, 
आपदाओं से संघर्ष करती हैं चट्टानें. 
-------

कौन गाता है

फोटो : साभार 


कौन गाता है ? 
वह जो पथ विहीन है 
या जो पथगामी है.
मधुर स्वर किसके फूटते ? 
वह जो हॅंसता है 
या जो हॅंस सकता नहीं.
रागिनी, चाह में छिपी है,
या आह में.
कौन बता सकता है ? 
कौन समझा सकता है,
इस जीव - रहस्य को ? 
कौन गाता है  ? 
जिनके फड़कते होठ होते,
या जिनकी भीगी पलकें होतीं.
क्या,वह गाता
जिनके सिर पर ताज़ 
और हाथ में साज़ होता ?
या वह गाता,
 जिनकी आहें ही आवाज़ होती.

 राजेश रंजन वर्मा
------------
 
दरम्यान.
एक प्रेरक राष्ट्र कविता 


रीता रानी. 
जमशेदपुर. 
 
अवगत ही नहीं सत्य से, स्वीकारती भी हूँ , 
स्वतंत्रता बहुमूल्य नहीं,अपितु अमूल्य है।
पर क्या पता है उन्हें ,बारूद से उड़ा गए,
जो वीर सैनिकों से भरे बस को कुचक्रधारी बन,
ऐसे कितने दिग्भ्रमित स्वप्नों का मायाजाल बुन ,
राष्ट्र की संप्रभुता को ही दांव पर लगा गए।

साभार 

स्वतंत्रता दुष्प्राप्य ही नहीं, दुसाध्य भी थी,
ऐतिहासिक तथ्य को जानती हूं, मानती भी हूं।
पर क्या पता है उन्हें ,सत्ता की खींचतान में,
जो जनसेवा तो क्या जन शब्द की, 
आत्मा को ही अपने पाँवों तले दबा गए।

साभार 

अशफाक,भगत,चंद्रशेखर के आत्मोसर्ग का ,
श्रवण ही नहीं , वंदन भी करती हूं।
पर क्या पता है उन्हें ,
जो ओढ़ उत्तरदायित्व पद का ,
भ्रष्टाचार के पंकिल से ही नहा गए।
सीमेंट की बोरियां तो क्या ,
निर्धनों तक पहुंचने वाली 
धोती, दवाइयों ,रोटियों को भी ,
अपनी जेबों में दबा गए।

साभार 

अंग्रेजों के कोड़ों से माटी जो रक्तिम हुई थी,
किशोर शरीर का लोथड़ा गिरा था जहां,
नमती हूं, गुनती हूं उसे।
पर "भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह "
क्या पता है उन्हें यह सब,जो ऐसे नारे लगा गए ।

साभार 

बसते हैं नेताजी मेरे हृदय में -इस उद्घोष पर,
वीर रमनी का वक्ष ही काट कर रख देने वाले,
जल्लाद अंग्रेजों के समक्ष खड़ी उस,
 वीरंगना की शक्ति ,निष्ठा  ,साहस की गाथा,
जानकर स्तब्ध हूं, स्तंभित हूं मैं।
पर क्या पता है उन्हें यह सब,
जो वस्त्र चीर,तेजाब फेंक किसी वनिता पर
अपनी घृणित मानसिकता का तमस फैला गए।

साभार 

आजादी बड़ा पुण्य प्रसू है, अमृत फल है यह राष्ट्र वृक्ष का,
सहज उपलब्ध नहीं था यह, परिणाम मिला हमें उत्कट संघर्ष का ,
फिर कैसे शुचिकर लगे पोषण, भ्रष्टाचार , अवसरवाद, मूल्यविहिनता , राष्ट्रविखंडन का।
संस्कृति की शुभ परम्परा को संचित करनी ही होगी,
आशा, विश्वास, कर्तव्यपरायणता की सुगंधि हवा में भरनी ही होगी।

फोटो : विदिशा  

सुखद स्वप्नों की लालिमा अंबर पर फैली है तब - त ब,
किसी नन्हें हाथ ने थाम राष्ट्रध्वज ,भारत माता की जय बोला है जब -जब
जब - जब विक्रम और अभिमन्यु की जांबाजी में प्रताप का कौशल बोलता है,
जब-जब चंद्रयान से लेकर युद्धक विमान तक स्त्री हाथों में डोलता है,
जब -जब रतन टाटा जैसा उद्यमी या दशरथ मांझी जैसा सामान्य जन,
दधीची बन अपने उद्यात भावों को जन सेवा में घोलता है,
जब -जब शिक्षक,श्रमिक,चिकित्सक,कृषक का, 
प्रत्येक स्वेदबिन्दू श्रमबीज बन जयहिंद बोलता है।


जरूर पढ़ें 
रीता रानी
जमशेदपुर, झारखंड.


-----------
सीपियाँ.
पृष्ठ ४. लघु कविता  संग्रह.
------------
©️®️
डॉ.मधुप.
लघु कविता. 
 
उम्मीद.

साभार : फ़ोटो 

चलते रहे, 
दिनों  रात , 
मीलों , 
फासलें तय होते रहें 
इस उम्मीद में, 
समझते रहे, 
समझाते रहे, ख़ुद को  


कि ए जिंदगी !
बस अगले मोड़ तक़, 
तू चलते चल, 
शायद वहाँ सुकून होगा. 
..मगर शायद नहीं... 
--------

अर्थ.


सपने 
कब हुए हैं अपने ?
देखें तब टूटें, 
न देखें, 
तो सोचते है, 
ऐसी जिंदगी 
के क्या है मायने ?

-----------------

तलाश. 

फोटो : अभिमन्यु 

कभी बारिश , 
तो कभी हिमपात ,
कहीं भूस्खलन, 
तो कहीं दरक गयी चट्टानें ,
हम है खोजते
पहाड़ों में  मौसम गर्मियों के 



©️®️
डॉ.मधुप.
---------------

लघु कविता.

समर्पण 

फोटो : डॉ. मधुप. 

मेरी जिंदगी की 
हर  ख़ुशी, 
तेरी हंसी बन जाए,
क्या हो जो , 
तेरी हर बात में 
मेरी हा हो,
और  
 मेरी हर बात में,
तेरी ना हो जाए. 
©️®️
डॉ.मधुप.
-----------

एहसास.
 
साभार 
 
जरूरत नहीं है न ?
कभी कुछ बोलने की ,शायद,
गर अल्फ़ाज़ कभी 
कम पड़ जाए  
तुम्हारे पास ,
और तुम बोलना भी न चाहो, 
तो  कोई बात नहीं.
मेरी मानो तो,
मौन हो जाओ,
पढ़ लेने दो, 
उन आँखों को ही, 
उन आँखों की भाषा,  
बोल लेने दो,  
उन उनींदी आँखों को ही, केवल 
मुझे भी कुछ कहना है.  


©️®️
डॉ.मधुप.
-----------------
' ना समझ ' 


©️®️
डॉ.मधुप.

ना - हा से ही जिंदगी शुरू हुई थी, 
 हा  - ना पर ही ख़त्म हो जाएंगी, 
ना हा के इस फ़लसफ़े को,
न समझ पाए हम ताउम्र,   
ना तुम  मेरी  ना  को ही समझ पाए, 
न हम तेरी हा को, 
 समझ पाए. 

.------------

' बंदिशें.'  

फोटो : साभार 

समाज में ,
हैं ना की खींची हुई 
कई लक्ष्मण रेखाएं,
रिवाज़ों की, 
  रस्मों  की,
या बेड़ियाँ फिर 
लोक लिहाज़ों की ,     
लोग क्या कहेंगे का डर ?
फ़िर ऐसे में  
 तुम जी लो, 
या  हम जी ले,
या तो फ़िर लोग ही जी ले, 
 लोग कहेंगे ,कुछ तो
लोगों का तो काम है कहना.  

पुनः सम्पादित : प्रिया दार्जलिंग 
फ़िर से देखें और खोले 
----------
अलग - अलग 

दिखा सच में भीड़ का ,
हिस्सा है वो,  
लोगों ने भी ऐसा कहा,
मगर कैसे ?
न तो वह इस शहर का है, 
न उसकी फ़ितरत यहाँ के, 

फोटो : साभार

लोगों जैसी हैं ,
आदतें अलग, 
सलीका अलग, 
अनजाना
अनदेखा, 
परिचित,
बूझा सा.  

©️®️
डॉ.मधुप.
------------

क्षमा. 

फोटो : साभार 

सूली पर चढ़ाने से पहले ,  
पैरों , दोनों हाथों में,
कीलें ठोक दिए  जाने के बाद,  
फ़िर सबके सामने  
जब उसकी आत्मा में 
आखिरी कील ठोकी गयी, 
तो अश्रुपूरित आँखों से तब 
उसने कहा ,
परम पिता से 
क्षमा प्रार्थी हूँ ,
तुम्हारे लिए, 
उसके लिए, 
सबके लिए, 

फोटो : साभार 

मुझे दुःख है, 
कि मुझे मालूम ही नहीं हुआ 
कैसे मैंने 
तुम्हें दुःख दिया ?
अब और मारने की 
तुम्हें जरुरत नहीं, 
मैं  तो कब का मर चुका हूँ ?   
तुम्हारे मारने से पहले ही.

©️®️
डॉ.मधुप.
पुनः सम्पादित : प्रिया दार्जलिंग 
फ़िर से देखें और खोले 
----------
धरोहर.


मेरे पास 
क्या अपने हैं ?
लगता तो है 
केवल सपने हैं, 
कभी भी, मेरे पास 
ना दिखने वाला भीतर की पहेली 
जैसा अनकहा सच है, 
समय है, 
शब्द है, 
संस्कार है,
छोड़ इसके 
कुछ और नहीं है 
मेरे पास. 
तुम्हारे पास 
क्या है ?
बोलो ना ! 

फोटो : साभार 

-----------

बंधन.
 
तय कर रखी हैं, 
तुम लोगों  ने, 
अपनी ,मेरी, सब की सीमाएं,
 
फोटो : साभार 
  
 कहने की, सीमा
सुनने की ,सीमा  
कुछ करने की ,सीमा 
ना  करने  की, सीमा
हँसने ,की ,सीमा 
रोने, की सीमा.   
©️®️
डॉ.मधुप.

-------------
फ़ोटो दीर्घा : पृष्ठ ९.छाया चित्र. 
--------------

भाई बहन के अटूट रिश्ते का अनमोल बंधन : कैलिफोर्निया रक्षा बंधन : फोटो अविधा 
भाई बहन के अटूट रिश्ते का अनमोल बंधन : रक्षा बंधन : फोटो सिद्धांत
मेरी  शान तिरंगा है : फोटो हर्ष. नालंदा
हमारी शान ,हमारी जान तिरंगा हैं : फ़ोटो रेनू शब्द मुखर.जयपुर
--------------
मंजूषा  : पृष्ठ ११.काव्यांजलि.संकलन. सुबह और शाम 
----------------
-------------
पृष्ठ १२.आपने कहा. 
--------------   



संकलन : वनिता 
---------------
आपने कहा. १ 
'...जो आप कर सकते हैं उसमें देर न करें..  '
आपने कहा.
 ' कड़ी मेहनत और असफलता से सीखने का परिणाम है ..'
आपने कहा. '
...सार्थक मौन हमेशा अर्थहीन शब्दों से बेहतर होता है ..'
आपने कहा.  '..सफलता सबसे पहले दिमाग में हासिल की जाती है तत्पश्चात  पूरी दुनियाँ पर..'
आपने कहा.  '....एक लक्ष्य चुनना और उस पर ही स्थिर रहना सब कुछ बदल देता है...' 
 
---------
  पृष्ठ १३. 
 मन की कही : अनकही 
--------------
संकलन : संपादन.
 

सुनीता
रंजीता. 
--------------
मन की कही : अनकही ०. 


मन की कही : अनकही १. 


मन की कही : अनकही २.
  

मन की कही : अनकही.३ 


मन की कही : 
अनकही.४  


मन की कही : 
अनकही.५.
 

 


                          तुम एक क़तरें ग़म 
से घबरा गए 
जबकि हम तो छोड़ आए 
सब 
अपनी गलियां 
अपनी दुनियां 
अपने शहर को सहर में ही
इस  
 


Comments

  1. भावपूर्ण रचना रेणु जी 👌👌

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  2. शानदार कविता, उम्दा किस्म की प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  3. काव्यांजलि.एक बेहतरीन शुरुआत

    ReplyDelete
  4. "अनकही" सच के क़रीब 👌👌

    ReplyDelete
  5. बेहतरीन ग़ज़ल 👌👌👌👍

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  6. एकाकीपन 👌👌 काव्य लेखन की उर्वर भूमि 👍

    ReplyDelete
  7. काव्यांजलि......भोर की ताजगी👌🌅😍

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  8. ठंड के लिहाफ ओढ़े, खुद से खुद की बाते करते,
    हम खोजते ही रहते है, सर्दिया वर्फ़ीली पहाड़ो के।

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  9. भावनाओं को शब्दों में पिरोने से बनी विचारों की माला है...काव्यांजलि👌👌👌

    ReplyDelete
  10. 👍Kavita Safar sabko bahut achchi lagi

    ReplyDelete
  11. काव्यांजलि के साथ तलाश.... जिंदगी के "दरम्यान"…. "संभावनाओं"की.... वंदे मातरम् 🇮🇳👌👌👌

    ReplyDelete
  12. साहित्यिक कुंभ डुबकी लगाने के लिए उपयुक्त है, मैदान छोड़ के मत भागिए... आपकी स्नेहपूर्ण उपस्थिति अमूल्य योगदान है 🙏👍🇮🇳

    ReplyDelete
  13. मधुर यादों के बीच गुजरता "इतिहास".....👌

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