Musafir Hoon Main Yaaron : Travelogue.1.

 Page 1.
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 Musafir Hoon Main Yaaron : Travelogue. 
A Complete Cultural Social Account over Travel, Culture & Society.
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यात्रा विशेषांक.अंक - १

collage : Vidisha.
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Blog Magazine Contents.
Page 3 : Content Page
Page 4 : 
Morning Post :  Jindji Ek Safar Hain. Priya. 
 Page 5 : Yatra Sansmaran  :  Pashan Devi : Dr. Madhup Raman
Page 6 : Yatra Sansmaran : Gateway of Nepal :  Dr. Sunita Sinha.
Page 7 :Yatra Sansmaran : Gangotri Yatra : Namita Singh.
Page 8 : Yatra Sansmaran : Ya Dharti Ke : Rita Rani
Page 9 : 
Yatra Sansmaran : Pokhra :  Avinash Kumar  
Page 10 :  Art Gallery : Manjeet Kaur.
Page 11 :  Photo Gallery : Ashok Karan.
Page 12 :
Chalte Chalte
Page 13
: You Said It 
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Page 2.
Credit. Page.
 


Custodian.
Chiranjeev Nath Sinha. A.D.S.P. Lucknow.
Pankaj Bhatt. S.P. Nainital.
Vijay Shankrar. Retd. Sr. D. S.P.
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Editor in Chief.
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Editors 
in English.

Priya. Darjeeling.
Dr. Roopkala Prasad. Prof. Department of English
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CRs / Writers.
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Priya. Darjeeling
Dr. Amit Kumar Sinha.
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Kumar Saurabh. Public Vibe.
Er. Shiv Kumar. Reporter. India TV 
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Stringers. Abroad
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Rishi Kishore. Canada.
Kunal Sinha. Kubait.
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sharable at. 
Page 3.
Contents. Page.

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Art of the Day.
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Editor in  Art.


Anubhuti Sinha. Shimla. 

Musafir Hoon Main Yaaron : Art : Mayank.
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Photo of the Day 
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Photo Editor.
Ashok Karan. Ex. Photo Editor ( Public Agenda )


Ex. HT Staff Photographer.

an evening at Majhkhali  Ranikhet : photo Namita.
always touching the Sky : Mountain trekking at Nepal : photo Gopal
Today's Darjeeling : photo Priya.

a bird taking off from the Chilka Lake : photo Ashok Karan.

enjoyment at Lakshadweep See beach : photo Rimmi.

Kedar Darshan : photo Shashank Shekhar

available home collection facility.
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Tweet of the Day.
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तेरे सोहबत में सपने सजाने लगे. 
डॉ.आर के दुबे.

. 

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Page 4.

Morning / Evening Post Page.
Morning 🌻 Post.
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ययावरी.
 

प्रिया .
दार्जलिंग .

जिंदगी एक सफ़र है. 

जिंदगी एक सफ़र  है, 
 रुकना पड़ता है जिसे ,कहीं न कहीं .
 ज़माने का लिहाज़ है न ,जिंदगी 
  किसी मोड़ पर किसी मुक़ाम के लिए  ,
अनजाने हमसफ़र के साथ  किसी डगर से  ,
गुजरना पड़ता है ,कहीं न कहीं .
वफ़ा न हो इस दुनियाँ में जहां ,
सिर्फ़ सितम करने वाले हो ,अगर ,
  किसी की दहलीज़ पर हर लम्हा
  उखड़ती साँसों में कई बार 
ज़ार ज़ार, रोना  पड़ता है ,कहीं न कहीं .

फोटो : विदिशा 

दुनियाँ को देखो ,ए  मुसाफ़िर ,
ताउम्र हमें सिर्फ़ भटकते रहना है ,
अनजानी राहों से गुजर कर ,
कभी नीले आसमां के तले ,कहीं न कहीं .
तेरी मेरी कहानी है ,ए जिंदगी ,
एक  दूसरे के अफसानों की ,
इस अनजाने सफ़र में 
आओ मिल कर साथ लिखें , 
हम प्यार के तराने ं, 
अफ़सानें एक दूसरे की 
वफ़ा की ,कहीं न कहीं.

                                                     संपादन  डॉ.मधुप. 
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हिमाचल पर्यटन.

हिमाचल का एक खूबसूरत ,शांत कस्बाई शहर है कसौली. 

कसौली  की वादियों में डूबता सूरज : छाया चित्र डॉ.सुनीता

कसौली :  सच माने तो हमारी खोजी टीम कसौली की गलियों में चहलकदमी करते हुए शायद मनीषा कोइराला  अनिल कपूर अभिनीत फ़िल्म १९४२ लव स्टोरी के लोकेशन्स खोजने ही वहां गयी थी। फ़िल्म जैसा कुछ दृश्य भी मिल जाए। कसौली की गलियों से गुजरते हुए हमें वहां का दृश्य भी कुछ वैसा ही लगा जैसा फिल्मों में दिखा था। अभी ब्रिटिश काल के पगड़ी वाले सिपाही भी दिखने में मिल गए,संकरी गलियां भी दिखी जहाँ से भागते हुए अनिल कपूर दिखे थे । 
हिमाचल का एक शांत कस्बाई शहर है जो चंडीगढ़- कालका के बहुत नजदीक है। बल्कि कहें तो कालका से कसौली की पहाड़ियां गर्मियों में साफ़ दिखती है। जब कभी सर्दियों में बर्फ़ गिरती है तो पंजाब चंडीगढ़ से आये सैलानियों की अच्छी ख़ासी तादाद जमा हो जाती है। 
दूरी : चंडीगढ़ शिमला मार्ग में चंडीगढ़ से ६२ किलोमीटर और कालका से मात्र ३५ किलोमीटर दूर प्रकृति की गोद में ब्रिटानिया काल में बसाया गया यह शहर अभी भी आपको किसी ब्रिटिश कस्बें की याद दिला देगा।
हिमाचल के प्रवेश द्वार परमाणु से प्रवेश करते ही  हमें चीड़ ,देवदार के सिलसिले मिलने शुरू हो जाते हैं । कुछेक घंटे उपरांत ही आप घुमावदार रास्तें तय करते हुए आप कसौली पहुंच जाते हैं । 
पंजाब और चंडीगढ़ रहने वालों के लिए यह तुरंत पहुँचने वाली मनपसंदीदा पर्वतीय सैरगाह है जहां वीक एंड में पहुंचने वाले स्थानीय सैलानिओं की भीड़ अक्सर जमा होती है। 
देखने लायक  : यहां घाटियों की तरफ़ उतरती हुई सड़कें। सडकों के दोनों ओर पुरानी शैली में बनी कॉटेज नुमा घर ,कसौली क्लब ,टी बी सनोटोरियम ,लोअर अपर मॉल रोड ,मंकी पॉइंट है जहां से देवदारों की गंध वाली ताजी हवा के झोकों को अनुभूत किया जा सकता है।  
कसौली की ख़ोज में यहीं पर हिंदुस्तान टाइम्स के सम्पादक रहें देश की चर्चित हस्ती खुशवंत सिंह का बंगला भी आपको दिख जायेगा। ये वही खुशवंत सिंह है जिन्होंने कई किताबें लिखी हैं और 'बुरा मानों या भला ' कॉलम के लिए खुल कर अपनी बेवाक विवादित टिपण्णियों के लिए विशेष कर जाने जाते है।
लव स्टोरी के लोकेशन्स : कसौली बड़ी रमणीक है। एकदम भीड़ भाड़ से हट कर। यहाँ की गलियों में चहलकदमी करते  हुए शायद आपको अनिल कपूर अभिनीत फ़िल्म १९४२ लव स्टोरी के लोकेशन्स जैसा दृश्य भी मिल जाए। अभी भी पगड़ी वाले सिपाही आपको देखने में मिल जायेंगे। 
रहने के लिए : आपको छोटे मध्यम स्तर के होटल्स ,लॉज ,गेस्ट हाउस भी पर्याप्त संख्या में मिल जायेंगे। यहां खाने पीने की भी कोई कमी नहीं हैं तो आप शीत काल में अपना कुछ समय कसौली की वादियों में व्यतीत कर सकते है।   
डॉ. सुनीता सिन्हा.
कसौली, हिमाचल.
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Page 5.
यात्रा संस्मरण. 

supported by a great Social Worker and Philanthropist, Ravi Ranjan.

तल्ली ताल ,ठंडी सड़क, नैनीताल और माँ पाषाण देवी मंदिर,का दर्शन. 
  यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.  
डॉ. मधुप रमण.
©️®️ M.S.Media.
साभार फोटो नेट से. 

२०२१ नवरात्रि के दिन थे। आश्चिन महीने शुक्ल पक्ष षष्टी की तिथि थी।  तब मैं अपनी यात्रा संस्मरण किताब ' ये पर्वतों के दायरें ' प्रकाशन के सिलसिले में प्रकाशक से मिलने हेतु नई दिल्ली आया हुआ था। छतरपुर में मनीष दा के यहाँ हम ठहरे हुए थे। तब यही कोई रात्रि सबा नौ बजे के आस पास तुम्हारा फ़ोन आ गया था....अनु। 
' कहाँ हैं ...आप ? वही चिर परिचित सवाल अधिकार वश। 
' दिल्ली में ...'
'किसलिए ...क्यों ,सब कुछ ठीक है ना , ?  कितनी आधिकारिक पूछताछ थी तुम्हारी ?
हा, सब ठीक है , किताब के प्रकाशन के लिए आया हूँ ...कहिए .....! जितनी मिठास मेरी वाणी में हो सकती थी उतनी मैंने लाने की कोशिश की थी। 
' एक शुभ समाचार देना था ,..आपको ?
' क्या ...बोलिए ,  ? 
'..सालों से नैनीताल में एक घर खरीदने की अभिलाषा थी न आपको । '
'...थी तो ....! ....मेरी जिज्ञासा थोड़ी बढ़ गयी थी. 
'..अब मैं पूरी कर दे रही हूँ ..अयारपाटा,नैनीताल में घर ख़रीद रही हूँ ।' आपने कहा , '  मेरे परिचित का ही है। विजयादशमी को ही गृह प्रवेश करना हैं। इस शुभ मुहूर्त में आपका उपस्थिति निहायत ही जरुरी है। अधिकार के साथ निमंत्रण भेज रही हूं ....आएंगे ना ...?  

नैनीताल की पहाड़ियां 

' वही अयार पाटा न , तल्ली ताल से एक सड़क जो उपर जंगलों के लिए जाती है ...शायद उधर से ही तो राज भवन जाते है ...न ', मुझे कुछ याद आ रहा था 
हा ...' कितने आत्मीय लगाव के शब्द थे तुम्हारे .. अनु ?  कोई भला कैसे टाल सकता था। सुनना तत्क्षण बहुत ही अच्छा लग रहा था । शहद की मिठास होती है तुम्हारी बातों में। 
ह्रदय के भावों की  गहराई से निकलते  हुए .., मैंने कहा था , ' बधाई  हो ! ...अद्भुत  ... प्रसन्नता हुई ! जरूर आऊंगा ...!
सुन कर ही जैसे मुझे असीम ख़ुशी हुई थी ।  बरसों की उसकी नहीं मेरी तमन्ना पूरी हो गयी थी  जैसे। लगा जीवन के कैनवास पर तेरे मेरे सपने अब एक रंग के हो गए थे । 
तुम आगे कह रही थी ,' अब  किसी होटल ..किसी नवीन दा ..के यहाँ आपको नहीं ठहरना है..आप मेरे घर में रुकेंगे। सुन रहें हैं ना ...? 
'..ठीक हैं ...पेइंग गेस्ट बन कर रहेंगे... 
'.....देख लेंगे ...आप आए  तो सही ....नैनीताल की नवरात्रि भी देख लेंगे। अष्टमी के दिन आपको माँ पाषण देवी मंदिर के दर्शन भी करा देंगे और आशीर्वाद भी ले लेंगे । '
'...वही पाषाण देवी ना ? जो तल्ली ताल से ठंढी सड़क जाने वाले रास्ते में है .... '
'...हा ...हा ...वही .पाषाण देवी ..शायद आप नहीं गए हैं । 
तुम्हें हर दिन सुनना बड़ा अच्छा लगता है । तय कर लिया एक दो दिनों के लिए जरूर जाएंगे। यह खुशी तुमसे मिलने की थी, अपने लिए ,तुम्हारे लिए। निश्चित हो गया दिल्ली से नैनीताल कार से ही चल दिए । ३२४ किलोमीटर की दूरी कोई ज्यादा तो नहीं थी ?

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गतांक से आगे.१ 
वापसी 

अयारपाटा नैनीताल के घर में 

सप्तमी की शाम हल्द्वानी, काठगोदाम,ज्योलीकोट,हनुमानगढ़ी होते हुए हम नैनीताल यही कोई पांच बजे पहुंच चुके थे। अकेले और नए होने की बजह से हमने मुरादाबाद,पंत नगर वाले पुराने व परिचित रास्तें का ही प्रयोग किया। 
दिल्ली की उमस वाली गर्मी से ज्योलीकोट से उपर चढ़ते ही राहत मिल गयी थी। चीड़ - देवदारों के अंतहीन सिलसिले से गुजरते हुए एक शरणार्थी की मानो घर वापसी ही हो रही थी। 
गाड़ियों की लम्बी कतारें : शहर प्रवेश करने से पहले गाड़ियों की लम्बी कतारें लगी हुई थी।  शाम के समय तिराहे पर आदतन जाम लगना स्वाभाविक ही था,न ? याद आया हनुमान गढ़ी से लौटते समय अमूमन हम जाम में फंस ही जाते थे। तल्ली ताल प्रवेश करते ही सामने चाइना पीक दिख गयी। झील की सतह पर मल्लीताल से कई पाल वाली नौकाएं तल्ली ताल की तरफ़ आ रही थी। या मध्य में रुकी थी। भीड़ पहले जैसे ही बौराई हुई भागती दिख रही थी। 
बाई तरफ़ मुड़ते ही थोड़ी दूर पर ही चर्च के आगे तुम मुझे इंतजार करते हुए मिल गयी। मेरे मन को भाने  वाली  आसमानी साड़ी में। तुमने शॉल भी ओढ़ रखा था ....सुर्ख लाल रंग का ... शायद मेरा दिया  हुआ ही। क्यों लोग इतना किसी की जिंदगी में शामिल होते है ,अनु !
दिखते मिलते ही प्यार भरे अभिवादन के शिकायत भरी तुमने झिड़की देनी शुरू कर दी थी। 
' यह क्या ..बहुत देर लगा दी ...पता है दो घंटे से प्रतीक्षा कर रही हूँ..
इस प्यार भरी झिड़की के साथ तुम्हारी स्मित मुस्कुराहट को भी मैं देख रहा था। मैंने कहा,धर्मशाला के पास से भंयकर जाम लगा था। 
' ...घर पर माँ बाबूजी कब से इंतजार कर रहें हैं..? 'आगे  तुम  कुछ ही कह रही थी, ...अगर आप इजाज़त दे तो ...अब गाड़ी मैं चलाऊंगी ...पहाड़ी रास्तें हैं न ...? आप से बेहतर  कार ड्राइव करुँगी ... मुझे चलाने दे..
'..अच्छा ! गाड़ी कब से चलाना सीखा ?
' ..आपने ही तो सिखलाया था ...गुरु जी ...दिल्ली में ...भुल गए ...'
'...अरे हा .! . सही में भुल गया था ' , यह कहते हुए मैं थोड़ा सरक गया था। ड्राइविंग वाली सीट पर तुम बैठ गयी थी। और बायीं हांथों से विंड स्क्रीन पर लगे प्रेस वाले स्टीकर को तुमने अपने नर्म हाथों से हल्के से साफ़ किया था और गाड़ी स्टार्ट कर दी थी। पल भर में गाड़ी ने थोड़ी रफ़्तार पकड़ी और हम नैनी झील की सतह से उपर पहुंच गए थे।
सिर्फ तुम : शाम ढल ही रहीं थी। पीली रोशनी अब ऊपर चोटियों  पर स्थिर हो गयी थी। पहाड़ भी अब पहले जैसे नहीं रहें थे। इनका भी दोहन होना शुरू हो गया है। पेड़ कटते गए,मकान बनते गए । मॉल रोड से लगे होटल्स,लॉज,टिन वाले तिरछे मकान ऊपर से दिखने में स्याह लग रहें थें । उधर छाया की माया जो थी। 
सोच रहा था तुम मेरे लिए क्या हो ? माया या छाया।  सच कहें तो मेरे मन की छाया जिसने कभी भी अंधेरें में भी मेरा साथ नहीं छोड़ा....! 
चाइना पीक से सटी पहाड़ियों  के पीछे सूरज कहीं छुप रहा था। वादियों में नीचे रोशनी भी कहीं डूब ही रही थी। ठंढी हवाएं अब कहीं अधिक शोख हो गयी थी। 

नैनीताल की ख़ूबसूरत वादियां : क्लिप.महेश सुनाथा.नैनीताल 

अकस्मात् कभी आए बादलों के टुकड़ें में झील कहीं ओझल हो रही थी। सामने ड्राइविंग सीट वाली खिड़की से बहती हवा के झोंकों  से तुम्हारे  चेहरें पर बिखरी लटों से रह रह कर तुम्हें परेशानी हो रही थी। तुम्हें बार बार उन बिखरी जुल्फों को धैर्य पूर्वक समेटना पड़ रहा था। 
तुमने जिस कुशलता से गाड़ी चलाई मैं तो मुरीद हो गया। कुछेक पल में ही हम अयारपाटा के बंगले में पहुंच चुके थे। इधर कुछ अतिरिक्त शांति थी। ठंड भी ज्यादा। चीड़ देवदार के पेड़ जो  अधिक थे। 
अतिथि  देवो भवः सीट से उतरते ही कार का दरवाजा खोलते हुए आपने दिल से  स्वागत करते हुए हमारी अगवानी की , ' शुभ स्वागतम ,आप का ...जो पधारे ...! यहाँ आकर आप ने  मुझ पर ढ़ेर सारी इनायत की ..इसके लिए शुक्रिया ... आपके अपने ही घर में आप  का मैं  स्वागत करती हूँ। 
सच में दो मंजिला कॉटेज नुमा बंगला बहुत ही खूबसूरत था। धीरे से मेरा हाथ पकड़े हुए  बरामदे की तरफ़ ले जाते हुए तुमने मुझसे कहा , ' आपके लिए मैंने ऊपर वादियों  की तरफ़ खुलने वाली खिड़की वाले कमरे
में रहने का इंतजाम किया है ..लेखक है ना ...कहानी ,कविताएं , ब्लॉग जो चाहे लिख़ते रहें .... !
इतना ख्याल ,इतना प्यार।  इतना अंतहीन समर्पण से भरा समर्थन सिर्फ प्यार में ही हो सकता है ,न । सम्मोहन में जैसे  वशीभूत हो गया था ,मैं। 
क्या कभी ऐसा नहीं लगता ,अनु कि भावनाओं के सैलाब आने से शब्दों के बांध  जैसे कब के टूट जाते हैं ? हम मौन टकटकी लगा कर शून्य में कुछ खोजने की कोशिश करने लगते है। 
कैसे संभाल पाएंगे हम इतना सब कुछ ? अतिथि देवो भवः के अनमोल भाव ,यह सभी पहाड़ की अनमोल धरोहर है ,न । कितने भावुक है आप लोग ,कहीं भी किसी की  कल्पना से परे ? मैं मौन होकर यहीं सोच रहा था पहाड़ी संस्कृति में रचे बसे लोग इतने देव तुल्य कैसे हो गए ? 
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गतांक से आगे. २.
माँ पाषाण देवी मंदिर की ओर.  


माँ पाषाण देवी मंदिर, नैनीताल : फोटो डॉ.नवीन जोशी 
 
महाष्टमी : कल नवरात्रि अष्टमी महागौरी की तिथि थी। आपने सुबह सबेरे चाय की प्याली देते समय यह बतला दिया था कि आज हमें माँ पाषाण देवी के दर्शन करने हेतु जाना है। आप अष्टमी का व्रत भी रखेंगी।
मां पाषाण देवी के दर्शन के बाद ही कुछ फल का आहार लेंगी। दिन भर उपवास में बीतेगा। 
मैंने यह तय कर लिया था कि मैं नहा धोकर पूरी तरह से तैयार मिलूंगा ताकि आप की पूजा,आराधना में तनिक भी विलंब ना हो सके और आप नियमित समय से पूजा कर सके । 
संस्कारों,परंपराओं के नियंता : मैंने ऐसा कहीं सुन रखा था कि कुमाउनी ब्राह्मण उत्तर भारत के श्रेष्ठ ब्राह्मणों में आते हैं। उनके संपर्क,संसर्ग तथा संस्कारों के अनुयायी होने मात्र से ही इस जन्म के विकार नष्ट हो जाते हैं। इसलिए तो मैंने 
आप को अपने जीवन के संस्कारों,परंपराओं का नियंता बना दिया था। किंचित आप के सानिध्य में आने मात्र से ही स्वयं के जाने अनजाने में किए गए पाप कर्मों से मुक्ति पा सके, और कुछ तो अपने जीवन का विकार धूल जाए। जीवन का लक्ष्य फलीभूत हो सके,इसलिए आपकी बातों का अक्षरशः पालन करता हूँ ।
समृद्ध,उदार और महानतम  हिन्दी संस्कृति : आप भी इतने दिनों मेरे साथ रहते हुए जान गई थी कि मैं समृद्ध,उदार और महानतम हिन्दी संस्कृति का समर्थक हूँ। 
साथ ही साथ कबीरपंथी विचारधारा का अनुयायी भी,मानवीय मूल्यों वाले सभ्यता,संस्कृति धर्म का पोषक हूँ। किसी भी धर्म की कट्टरता का हिमायती नहीं हूँ। हम समयबद्ध थे। प्रातः ८ बजे तक हम तैयार भी हो गए थे। 
आपने कभी भी अपनी विचार धाराएं थोपी नहीं और मैंने कभी अपने मन की की नहीं। 
यहीं तो शाश्वत प्रेम हैं न,अनु.....? बिन बोले सम्यक मार्ग की ओर हम सभी प्रवृत हो। है ना ....! 
शक्ति स्वरूपा लाल सुर्ख साड़ी,पैरों में आलता लगाए,पीली चुनरी और हल्के आभूषण के श्रृंगार में आप दिव्य रूप में जैसे मां की शक्ति का प्रतीक ही दिख रही थी।
पूजा की थाली,चढ़ाई जाने वाली दूध की बनी आवश्यक सामग्री आदि लेकर घर से चलते हुए हम तल्लीताल स्टैंड तक पहुंच गए थे। और वहां तक मैंने खुद ही गाड़ी चलाई थी। तल्लीताल के बस स्टैंड में कार को खड़ी करते हुए हम ठंडी सड़क की तरफ पैदल ही बढ़ गए थे। मुझे मालूम था पाषाण देवी का मंदिर यही कहीं झील के मध्य में ही स्थित है। 

पत्थरों में उभरी माँ पाषाण देवी की प्रतिमा : फोटो डॉ.नवीन जोशी  

आगे बढ़ते हुए तुम कह रही थी, '..जानते हैं ...तल्लीताल मल्लीताल में इन दिनों नवरात्रि के अवसर पर रामलीला का जबरदस्त आयोजन होता है जिसे देखने के लिए स्थानीय लोगों की काफी भीड़ जमा होती है...' 
मुझे भी थोड़ी जानकारी अपने मित्र संपादक नवीन दा के अखबारों, पोर्टल न्यूज़ के जरिए मिल ही जाती है।यह हम सभी पत्रकारों,लेखकों,संपादक बंधुओं के बीच एक अच्छी बात है कि अपनी सभ्यता और संस्कृति गत जानकारी रखने निमित हम कहानियां ,लेखों और आलेखों का आदान प्रदान कर,अपनी समझ  की साझेदारी करते है एवं बुद्धिजीवी होने का संकेत देते हैं। 
प्रत्यक्ष था कि ५०० मीटर की दूरी तक हमें पैदल ही चलना था क्योंकि इधर ठंडी सड़क पर कोई रिक्शा आदि नहीं चलता है । हम बड़े आराम से कदम बढ़ा रहे थे,ताकि बातें भी होती रहें,कहानी भी बयां होती रहे। 
हाथ में पूजा की थाली लिए ठंडी  सड़क पर चलते हुए आपने माता पाषाण देवी के बारे में बतलाना शुरू कर दिया था। मैं जिज्ञासु बना आपकी बातों को बड़ा एकाग्रता से ध्यान पूर्वक सुन रहा था। 
मां पाषाण देवी : शक्ति पीठें  '..माता  की भक्ति में ही अपरंपार शक्ति है। मां तो सती का रूप ही है। आपको भी ज्ञात है कि माँ पार्वती की देह से अलग होकर उनके अंग जहाँ - जहां गिरे वहां शक्तिपीठें निर्मित होती चली गईं। प्रतीत होता है माता पार्वती के नयन नैनीताल में गिरे थे और उनसे निःसृत होती आंसुओं की धारा से नैनी झील का निर्माण हुआ था । .....क्योंकि दिखने इस झील की आकृति ही आँख जैसी ही हैं। '
'.....याद है आपको ...जब हम चाइना पीक गए थे तो वहां से नीचे झील देखी थी ,तो यह झील माँ की आँखों जैसी दिख रही थी । .....दिख रही थी  न ?' 
मैंने हा में सर हिला कर अपनी सहमति जताई थी ,' ...सच में '
' ...इस झील के किनारे ही मल्लीताल में माता नैना देवी का मंदिर है जो आपने देखा ही है। और ठीक उस जगह से ही तल्लीताल की तरफ जाने के लिए ठंडी सड़क आरम्भ होती है। ...हमलोग तो मंदिर कितनी दफ़ा गए है,गए है न ? ' 

ठंडी  सड़क, मैं और नैनीताल की मेरी यादें : कोलाज विदिशा 

मैंने याद करने की कोशिश कि,... ' यही कोई तीन चार बार। '  
'...हम उस तरफ़ मल्ली ताल से भी आ सकते है और तल्लीताल से भी जा सकते है ...'
' ....आपको बताए यहां के लोग कहते है कि इस अयारपाटा की पहाड़ी के दक्षिण - पूर्वी तल पर ही माता क़े अंग से ह्रदय और अन्य हिस्से यथा पाषाण आदि भी गिरे थे जिससे उस स्थान पर पाषाणदेवी का मंदिर बना है.....। '
'....पाषाणदेवी के इस मंदिर में देवी माँ की पूजा शिला में उभरी एक आकृति के रूप में की जाती है। ..आकार में विशाल इस शिला में आप ध्यान से देखेंगे तो देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों के  दर्शन भी होंगे...।'
हम झील के किनारे थे। कुछ पाल वाली नौकाएं एकदम क़रीब से गुजर रही थी।   
' ... सच में यह एक अद्वितीय,अनोखी चट्टान है,अपने मन की आस्था की। माना जाता कि इस चट्टान पर माँ का मुख दिखाई देता है तो उनके पैर नीचे झील में डूबे हुए हैं। हम कह सकते है कि पाषाण देवी का मंदिर नैनीताल का सबसे पुराना मंदिर था। '
जन आस्था : '.....इस मंदिर में आसपास के गाँवों के पशुपालक लोग माँ को दूध से बने पदार्थ और मट्ठा चढ़ाया करते थे।ग्रामीणों में पाषाण देवी का आज भी वही स्वरुप पूज्यनीय माना जाता है। मान्यता है कि पाषाण देवी के मुख को स्पर्श किये हुए जल को लगाने से त्वचा रोगों से तो मुक्ति मिलती ही है, प्रेतात्माओं के पाश से निकलने की राह भी खुलती है।'
'....अगर मैं भी आपसे प्रेम की बाधा में पागल हो गयी,प्रेत बन गयी तो मुझे भी मुक्ति के लिए पाषाण देवी के पास ही ले आइएगा, सुन रहें है, न ...? '
सोचने लगा...' पता नहीं हमदोनों में से पहले कौन पागल होगा,कौन जानता है ? 
तुम्हारे इस सवाल का भला मैं क्या जवाब देता ? भावनाओं के शिखर पर समाज और बंदिशों के थपेड़े में बमुश्किल संभलते हुए किसकी स्मृति दोष में चली जाएंगी...किसे पता .....! 

पाषाण देवी , नैनी झील का दृश्य : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

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गतांक से आगे.३.
माँ का दर्शन.


पाषाण देवी के परिसर में श्रद्धालू : फोटो डॉ.नवीन जोशी .
 
एक अखंड दिव्य ज्योति : आप कह रही थी, '... नव दुर्गा रूपी शिला के नीचे एक गुफा है कहते है इसके अंदर नागों का वास है। मंदिर की स्थापना के काल  से ही यहाँ एक अखंड दिव्य ज्योति प्रज्जवलित रहती है। मैं आपको दिखलाऊंगी भी। देवी को चढ़ाए जाने वाले श्रृंगार को उनके वस्त्रों की भी प्रचलित मान्यता है। 
जन श्रुति यह भी है कि  माता दुर्गा को चढ़ाए जाने वाले अभिमंत्रित जल को प्रत्येक दस दिन में एक बार निकाला जाता है और उसे प्रयोग में लाने से हकलाहट दूर होती है। और अन्य ऐसी ही व्याधियों के रोगियों को औषधि के रूप में यह जल सेवन के लिए दिया जाता है। 
  
किसी शोधार्थी  की तरह आप मंदिर के इतिहास और उससे जुड़ी आस्था के बारे में बतला रही थी। आखिर ...तुम्हें इतनी जानकारी कहाँ से हासिल हुई, अनु ,?'
तो तुमने हँसते हुए कहा ,'  ... आपकी शिष्या जो हूँ ...आखिर आपके शोध ,लेख ,कहानियों  के लिए मुझे जानकारियां तो इकट्ठी करनी ही होंगी ,न। '
तभी अचानक तुम्हारे पैरों के नीचे न जाने कहाँ से एक बजरी आ गया। या तुमने मेरी तरफ बात करते हुए नीचे देखा नहीं। तुम लड़खड़ाने लगी थी,असुंतलित होकर कहीं गिर न जाओ, इसके पहले ही मैंने तुम्हारी बाँहें पकड़ ली थी,और आप संभल गयी थी । 
मैंने पूछा , ' कंकड़ था ...गिर ही जाती ....कहीं चोट तो नहीं लगी...?
'...नहीं ..आप है न ..! ...गिरने थोड़े ही देंगे ? '
'...इतना विश्वास मुझ पर ! क्या यह ठीक है ? ' मैं सोचने लगा था।
'...सच कहूं ...भगवान से भी ज्यादा ....' , तुमने धीरे से कहा था । 
पाषाण देवी के दर्शन :
 थोड़े क्षण उपरांत हम मंदिर परिसर में थे। यही कोई नौ बज रहा था। पहाड़ों के लिए यह सुबह ही थी। यहाँ लोग देर से ही उठते है। 
कुछेक लोग ही थे। शायद दिन ढ़लते भीड़ बढ़नी शुरू हो जाए। हमें मिलाकर यही कोई दस बारह लोग ही थे। 
मंदिर के पुरोहित ने पाषाण देवी माँ का दर्शन करवाया। भीतर सब कुछ वैसा ही मिला जैसा आपने बतलाया था ..नवदुर्गा ..अखंड ज्योति ...नाग ..प्रतिध्वनि उत्पन्न करने वाली गुफाएं। सब कुछ वैसा ही था,आपने बताया था और अभी हम सामने देख रहें थे। दर्शन के पश्चात हमने पुजारी से प्रसाद ग्रहण किया। मैंने देखा आपने अभिमंत्रित जल मंदिर भी सहेज कर एक शीशी में रख ली थी। शायद कभी किसी की व्याधि में ही काम आ जाए। 
मंदिर से निकलते हुए आपने बताया, '...जानते है परिसर में निर्मित हनुमान प्रतिमा और शिवलिंग बाद में स्थापित किया गया है । यही बात मंदिर के समीप स्थित गोलू देवता के बारे में भी सत्य मानी जाती है। लोकमान्यता के अलावा यदि आप पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्यों की मानते है  तो नैनीताल का पाषाण देवी मंदिर उत्तराखण्ड के सबसे पुराने शिला - शक्तिपीठों में से एक है. 

ये दिल और उनकी निगाहों के साए : ठंडी  सड़क नैनीताल की मेरी यादें :  फोटो भरत 

घर वापसी के लिए हम तल्ली ताल की तरफ़ बढ़ गए थे। आप थक चुकी थी और मेरे सहारे वश चल पा रही थी। जब किसी जाने अनजाने सफर की मंजिल में हमसफ़र कोई मेरे अपने शामिल हो तो वक़्त का गुमान ही नहीं होता है। उनकी निगाहों के साएं में राहें लम्बी होती जाए तो बेहतर ...!
दूर कहीं वहीदा रहमान और कमल जीत अभिनीत फिल्म शगुन फिल्म  का बजता हुआ यह गाना ...पर्वतों के पेड़ों पर शाम का वसेरा है हमें सुनाई दे रहा था। और मैं कहीं अपनी तुम्हारी सुनहरी यादों में खो गया था। 
'..गाना सुन रहें हैं ,ना ? '...तुमने जैसे जानने की कोशिश की। 
'..हा ..सुन रहा हूँ 
'....इसी ठंडी सड़क पर ही यह गाना फिल्माया गया था। ....जानते हैं न ?'
' हा ..!' ...मैं गाने की धुन और इसके दृश्य में खो गया था..और आप मेरे पहलू में ...थोड़ी और भी करीब आ गयी थी ....झील से सरकते पल भर के लिए आए धुएं के बादल में  हम दोनों खो गए थे....। 

फिल्म शगुन में ठंडी सड़क से दिखते मॉल रोड नैनीताल के नजारें 

नैनीताल ,ठंडी सड़क की तरफ से नज़ारे देखने के लिए नीचे दिए गए फिल्म के गाने का लिंक 

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गतांक से आगे.४.
विजयादशमी की तिथि और  गृह प्रवेश. 

 : एक बंगला बने न्यारा : कोलाज विदिशा 

विजयादशमी की तिथि : शारदीय नवरात्र में  विजयादशमी की तिथि थी। कहते है यह दिन अति शुभ होता है किसी भी शुभ कार्य को किया जा सकता है। आपने इस दिन ही गृह प्रवेश का  शुभ मुहूर्त रखा था। आपकी आग्रह पर मैंने हल्द्वानी - नैनीताल में रहने वाले अपने कुछ परिचितों को,यथा  प्रेस से जुड़े अख़बार नवीसों,छायाकारों,मित्रों को निमंत्रण भेज दिया था। ले दे के कुछेक दो तीन ही लोग थे। नवीन समाचार के संपादक नवीन दा, शौकिया छायाकार अमित कुमार, हल्द्वानी के स्तंभकार रवि शर्मा, और मनोज पांडे। इतने लोग ही न मेरी जान पहचान के थे ? लेकिन गृह प्रवेश की पूजा में सिर्फ नवीन दा ही आए थे। 
मल्लीताल आर्य समाज मंदिर के कुछ लोग भी मेरी जान पहचान के थे अतः मैंने उन्हें भी बुलावा भेज दिया था। 
पूजा के विधि विधान : प्रातः काल आठ बजे से ही विधि विधान आरम्भ हो गए। आर्य समाज की वैदिक रीति से गायत्री मंत्रोंच्चारण के साथ हवन आदि का कार्य एकाध घंटे में संपन्न हो गया। हम सभी उसमें शामिल हुए। हरे रंग की बॉडर वाली पीले रंग की साड़ी में हवन आदि कर्म करते हुए एक सही गृह स्वामिनी लग रही थी। माथे की लाल बिंदी हवन की प्रज्जवलित अग्नि में और भी सुर्ख लग रही थी। शायद बंगाल में सेवा के सिलसिले में बहुत दिनों तक रहने की बजह से आपके परिधान और श्रृंगार में बंगाल का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। अमूमन ऐसे मौके पर आप परिधान में साड़ी पहनना अधिक पसंद करती है।   
गृह प्रवेश की रस्में : यह बड़ी शुभ घड़ी थी जब गृह प्रवेश के क्षण चावल के कणों वाले भरे कलश को जैसे ही आपने अपने नर्म पैरों से मात्र धकेला तो तंदुल के नन्हें असंख्य कण फ़र्श पर बिखर गए थे। अपने परिजनों से आशीर्वाद लेने के बाद आहिस्ता कदमों से चलते हुए सबके हार्दिक अभिवादन के बीच आपने गृह स्वामिनी होने के अधिकार को हासिल किया था ।  
सबों के लिए प्रीति भोज का भी आयोजन था। अपराह्न चार बजे तक हम इन सभी चीजों से फ़राग़त पा चुके थे। 
गृह प्रवेश की रस्में : 

शाम की तफ़रीह और डोर्थी सीट : सुस्ता लेने के बाद आपने कहा, ' ... चलिए डोर्थी सीट से घूम आते है। शाम की तफ़रीह भी हो जाएंगी।' चूँकि अयारपाटा की पहाड़ी के साथ ही डोर्थी सीट थी इसलिए शाम बिताने हेतु हम चल दिए।
रास्ते तय करते समय मैंने धीरे से कहा,तुमसे , ' अगर इजाजत हो तो कुछ बोलूं  ...'
' बोलिये...' 
' कल वापस जाना चाहता हूँ ..दिल्ली ...अनुमति है...  !'
जैसे मैंने  खुशी के मौके पर तुम्हें गम का फ़साना सुना  दिया था ! 
' कल ..! कल तो कदापि नहीं ...एक अति आवश्यक काम है ...उसे पूरा करना है ..?
' क्या काम है,अनु ....?
' बतलाऊँगी ...' यह कह कर तुमने अकस्मात् ही अपना चेहरा दूसरी तरफ़ घुमा लिया था । शायद कुछ छुपाने के लिए। अंतर्मन की फैली उदासी,या फिर आँखों की नमी..या फिर कुछ और भी  जिससे शायद मैं आपके भावों को  पढ़ न सकूं ? 
' क्या थोड़े दिन और रुक नहीं  सकते ...? ' तुमने फिर कहा ,मुझसे।  
' आप बताएं ...क्या ऐसे ही बिना काम के यहां रुकना लाजमी है  ?...वहां काम भी शेष तो पड़ा है ,है न ?'
' हूँ ..वो तो हैं। ' तुमने भी सहमति में अपना सर हिलाया।  
इसके बाद जितनी देर हम डोर्थी सीट पर रहें तुम  खामोश ही रहीं। मन बहलाने के लिए मैं न जाने क्या क्या कहता रहा ,बोलता रहा। लेकिन तुम कहीं  अपने ख्यालों में गुम ही रही। धीरे से मेरे कंधे पर अपने सर टिकाएं आप केवल हा हूँ ही करती रहीं। 
मैंने डोर्थी सीट के पास की महेश सुनाथा टी स्टाल के यहाँ से चाय लाकर भी दी थी, तुमने चाय ली तो सही लेकिन कितने अनमने ढंग से पी ,मैंने देखा था । तुम तो कुछ और ही ,कहीं और ही सोच रही थी। 
उस दिन डोर्थी सीट की पहाड़ियों के पीछे से निकलता हुआ चाँद कितना उदास था, अनु। फीका फीका सा,अपनी आभा खोए हुए। 

टिफिन टॉप से निकलता चाँद और डोर्थी सीट की मेरी यादें : फोटो डॉ.नवीन जोशी 

तुम एक पहेली : हम देर शाम तक वही थे। जैसे आज की रात  तुम चाँद को डूबने की इजाजत ही देना नहीं चाहती थी। लेकिन क्या कभी ऐसा हो सका है ..समय तो गतिमान है न  ...? घर लौटे रात के नौ बज चुके थे। 
 '..मैं बस अभी आती हूँ। आप अपने कमरे में जाए...., '  यह कह कर आप जीने से उपर जाने लगी।  
कमरे में जाकर लाइट ऑन करने के पश्चात मैं खिड़की के पास चला आया था। बिखरे सामानों को देखने लगा। कल मुझे जाना था। बाहर बरामदे  में चाँद की उदास फीकी रोशनी बिखरी पड़ी थी। 
तभी एक फाइल लेकर आप कमरे में दाखिल हुई.. और कोने में लगे गोल मेज पर आपने एक ब्लू रंग की फाइल रख दी। फाइल से फिर ढ़ेर सारे कागज़ात निकाल कर टेबल पर रख दिए। 
' क्या हैं..., ?'  मैंने पूछा।   
' कुछ है ... जरुरी कागजात ...आपको ..दिखाना है । ' 
अभी तक सबकुछ मेरी समझ से परे था पहेली जैसा ही । 
आपने कहा , .' कुछ कागज़ात है .. आप खुद ही पढ़ लीजिये ..शायद आपके काम की ..है ! ' यह कहते हुए तुमने ब्लू रंग की पूरी फाइल ही मुझे दे दी थी। 
मैं ध्यान से पन्नें पलट कर देखने लगा पढ़ भी रहा था।  ...किसी घर की रजिस्ट्री के काग़जात थे। शायद इस घर के ही ...  बतौर क्रेता ख़रीददारी  में आपने मेरा और अपना नाम डाल  रखा था ...यह सब क्या है  ? ...एकदम मेरी कल्पना से कोसों दूर। शायद इस जनम में तो मैं सोच भी नहीं सकता था। कभी न सोची  गयी किसी पहेली के हल की तरह।  
तुम कह रही थी , ' ...मैंने यह घर हमदोनों के नाम ली है...,..कल रजिस्ट्री होनी है ...इसलिए आपका रुकना जरुरी है,इसलिए मैंने आपको कल के लिए रोका है । 
आप कह रही थी आगे भी.... 
'....बहुत दिन से सोच रही थी मुझे कुछ देना है आपको। ...आप मेरे गुरु जो ठहरे .. यह आपकी मेहनत ही है न ? जो  ...मैं इस मुकाम पर हूँ  ...आपने तो ही मुझे इस लायक बनाया है।  ठीक कह रही हूँ न ?
....याद आ गए वे दिन जब मैं दिल्ली  में रह कर मैं मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई भी कर रहा था  साथ ही साथ सिविल सेवा सर्विसेज़ प्रतियोगिता के लिए तैयारी भी कर रहा था। हमने इसके लिए कोचिंग में दाखिला भी ले रखा था। उन दिनों आप भी  दिल्ली में ही रह कर लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी कर रही थी। तब  हम कोचिंग के क्लासेज में ही मिले थे पहली पहली बार। आप नैनीताल से थी । हमने बड़ी मेहनत की थी।  साथ की पढ़ाई में दिन रात एक कर दिया था ...और आपने एक दो प्रयास में ही तब  लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठा मूलक परीक्षा निकाल ली थी। ऊँचे पद पर स्थापित हो गयी थी। आप हमसे कहीं ज्यादा जहीन निकली थी।   
आप कह रही थी , ' .सच्ची ..आप न होते तो मैं परीक्षा में क्या सफल होती ..... कदापि नहीं ... इस नाते तो
मेरा हक़  बनता है न ....कि आपको कुछ भेंट करूँ ....बतौर गुरु दक्षिणा ही सही ...इस  रूप में ही समझ कर मेरी भेंट को स्वीकार कर लीजियेगा  ... करेंगे न ? ,..सुन रहें है न ?
सुन तो मैं रहा ही था। ह्रदय के बने अंतरंग संबंधों का इतना बड़ा दायित्व ? भावनाओं का इतना विशाल  ऋण .. भला मैं कैसे चुका पाऊंगा ताउम्र । आसमान के तमाम तारें जैसे जमीं पर आ गए थे। सपनों के महल की तामीर जो बन रही थी। 
मैंने पूछा, ' ..कितना लगा ? ' मेरा तात्पर्य इस घर को खरीदने में लगी राशि से था। 
' छोड़िए उसे ...' आपने कह कर टाल दिया था। 
' फिर भी...यूँ ही जानने के लिए ... आप बताए ...तो सही ...मैं भी अपने हिस्से की राशि कुछ देना चाहता हूँ...।'
' कुछ देना ही चाहते है ..न ....कुछ भी  ...?  तो हो सके  मुझे आप अपना अनमोल समय ही दे दीजिये... ...मुझे बस आपका साथ चाहिए  ..और कुछ भी नहीं ....देंगे आप ...? ....बहुत अकेली रह चुकी हूँ ...मैं ..अब नहीं रह सकती। ' जैसे कुछ मांगने के लिए आपने मेरी दोनों हथेलियां अपने हाथों में ले ली थी।   
और मैं अनुत्तरित हो गया था । भला इस भावुक सवाल का क्या जवाब हो सकता था ,अनु ? हा ही न ?
न तो कहीं था भी नहीं मेरे भीतर,कभी रहा ही नहीं । तुम्हारे लिए तो इस जनम में क्या सौ जन्म में भी सिर्फ हा ही होगा न।  यही चिर सत्य है ,था और रहेगा भी। 

नैनीताल से दिखती हिमालय की चोटियां : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 


चौदहवीं का चाँद : ...सामने देवदार के पेड़ से छिपा दशमी का चाँद फिर से निकल आया था। प्रकाश कुछ ज्यादा हुआ तो बाहर खिड़की से आती छिजती रोशनी तुम्हारे चेहरे पर उतरने लगी थी । तुम मेरे साथ खड़ी थी मेरे कंधे से अपना सर टिका कर। खूबसूरत सा छोटा चेहरा, हथेलियों में समाने लायक ,घनी जुल्फें, झील सी गहरी आँखें ...मगर थोड़ी उदास ...नींद से बोझिल ....
बाहर भले ही दशमी का चाँद निकला था मगर तुम तो मेरे लिए चौदहवीं का चाँद ही थी ....अनु ...! एकदम से सफ़ेद ...पाक ,..बेदाग...। 
मेरी सांसें, मेरी आस मेरे जीवन की डोर ...सब कुछ तो मैंने तुम्हें ही सौप रखा था ...न ? हर जनम के लिए ..सिर्फ तुम्हारे लिए ....! 
 
पल भर में बदलते हैं मौसम के नजारें : डोर्थी सीट.महेश सुनाथा 

©️®️ M.S.Media.
इति शुभ 
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Page 6.
 सहयोग. 


डॉ.सुनीता.

गेट वे ऑफ़ नेपाल , बीरगंज , परदेश में अपने घर जैसा शहर है. 
यात्रा संस्मरण. 
गेट वे ऑफ़ इंडिया : फोटो नेट से साभार 


बीरगंज / यात्रा संस्मरण. २००७ का साल था। मैं नेपाल की यात्रा पर थी। यह मेरी पहली विदेश यात्रा थी। इस परदेश की यात्रा में हमारे साथ दरभंगा बिहार से कुछ लोग साथ थे।  अब कि डॉ. राशि और डॉ. रत्निका तब हमारे साथ थी। हम सभी नेपाल की यात्रा पर थे। चूँकि भारतीय होने के नाते नेपाल भ्रमण के लिए हमें बीजा की आवश्यकता नहीं थी, हमलोग काठमांडू ,पोखरा,भ्रमण के बाद रक्सौल लौट रहें थे। हम तो कहेंगे अगर परदेश घूमना हो अपनी सभ्यता संस्कृति वाला हिन्दू पड़ोसी राष्ट्र नेपाल भ्रमण करें। अपना घर ही लगेगा। सीधे साधे,गोरखा,भूटिया,नेपाली कांचा और कांची बड़े अच्छे लगेंगे,जो सिर्फ़ प्यार की ही भाषा समझते हैं।
नेपाली टैक्सी ने बीरगंज शहर के बस अड्डे तक़ ला के छोड़ दिया। सोचा समय शेष है जितना हो सकता है बीर गंज घूम लेते है। रिक्शा लिया साथ हम दोनों निकल पड़े। मुझे याद है थोड़ी दूर चलने पर एक टॉवर मिला था। तुम तो नहीं भूले होंगे न ? कि हमने किसी मुस्लिम के दूकान से तीन चार कैलकुलेटर खरीदें थे। एक बात तो दीगर लगी थी कि नेपाल एक ग़रीब राष्ट्र ही दिखा जो मूलतः हमारे पारस्परिक सामाजिक ,आर्थिक संबंधों पर टिका हैं। उस समय तो सड़कें ख़स्ता हाल ही दिखी थी। लेकिन यकीनन लोग बेहद अच्छे हैं। लोगों ने ऐसा कहा था या सुना था लौटते समय बीरगंज से ख़रीदारी करना चीज़ें सस्ती मिलती हैं। शायद मिली भी। 
बीरगंज जो मूलतः भारतीय मूल के  रहने वाले मधेशी प्रांत में पड़ता है। और यह शहर  नेपाल में काठमांडू से १३५ किलोमीटर दक्षिण की तरफ भारत के बिहार प्रांत पूर्वी चम्पारण के  रक्सौल का एक जुड़वा शहर है जो भारतीय सीमा के बिहार प्रांत से जुड़ा हुआ यह एक तरह से  पटना से नेपाल जाने के रास्ते में यह एंट्री पॉइंट है जिसे हम नेपाल के लिए गेट वे भी कह सकते है। बीरगंज नेपाल का एक दक्षिण सीमावर्ती शहर है जिसकी सीमा बिहार में पूर्वी चंपारण के रक्सौल शहर से मिलती जुलती है। नेपाल में सड़क मार्ग से प्रवेश करने का यह प्रमुख रास्ता है। यदि आप पटना या कोलकाता की तरफ से आ रहें  हो तो यह सबसे निर्वाध तथा सुगम मार्ग है। बीरगंज नारायणी अंचल  के परसा जिले में पड़ता है यह नेपाल - भारत व्यापार का प्रमुख नाका भी है या माने तो बीरगंज नेपाल का दूसरा या कहें तीसरा बड़ा शहर  है काठमांडू , विराट नगर के बाद ।
क्रमशः जारी... 
डॉ. सुनीता सिन्हा / नेपाल

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नमिता सिंह.रानीखेत 

....तुझे बुलाए ये मेरी बांहें गंगोत्री. यात्रा वृतांत

पर्वत के उस पार : सुबह पौ फटते ही मैंने देखा कि प्रकृति की खूबसूरती चारों ओर फैल रही थी। कभी सूरज का बादलों से झांकना ,कभी बादलों में छुप जाना,कभी कलिंदी पर्वत से बर्फ की चोटियों का दिखना।
हम इन सुंदर दृश्यों का आनंद ही ले रहे थे कि, तभी हमारे ड्राइवर भैया ने आवाज लगा दी। हम कमरे से निकलकर आलू पराठा नाश्ता कर यमुनोत्री माता को प्रणाम कर अपनी गाड़ी में बैठ गंगोत्री मैया के दर्शन के लिए निकल पड़े। गाड़ी का पहिया तेज़ी से घूमने लगा और ऊंचे - नीचे पहाड़ियों के बीच से होती हुई गाड़ी अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगी थी। 
पड़ावों के पार : हम सब जानकी चट्टीहनुमान चट्टी, रणाचट्टीपालीखरादीगंगानीछटांगाड़डालगांवधरासू बैंड तथा, ज्ञानसू होते हुए उत्तरकाशी पहुंच गए थे। 
शाम के  बज चुके थे, उत्तरकाशी में रुक कर हमने विश्वनाथ भोले बाबा का दर्शन किया। याद है दशहरे का समय था। बड़े से मैदान में मेला लगा हुआ था। कस्तूरी ,रुद्राक्ष और तरह-तरह के जंगली फूल और वस्तुओं को देख कभी खरीदने का जी करें। तो कभी लगे कि ठगे तो न जाएंगे ,यही देखते हुए हम मंदिर के प्रांगण में पहुंच गए। 
नचिकेता को मृत्यु के रहस्य : शिव का रूप देखा तो मैं आश्चर्यचकित हो गई भागीरथी के किनारे मंदिर का निर्माण था । सामने ही एक विशालकाय त्रिशूल था, मान्यता है, कि नाग के ऊपर त्रिशूल स्थापित है । उसे हाथ की छोटी उंगली से छू दी जाए तो वह हिलने लगेगा। बातों ही बातों में पता चला कि यही वह स्थान है, जहां यमराज ने धरती पर उतर कर नचिकेता को मृत्यु के रहस्य को समझाया था। ठंडी - ठंडी हवाएं चल रही थी । शाम का वक्त था, महिलाएं भोले बाबा के प्रांगण में बैठ भजन गाकर बाबा को रिझाने की कोशिश में लगी हुई थी ।
भोले की नगरी से जाने की तो इच्छा नहीं थी, फिर भी समय का अभाव था । हम जब अपनी गाड़ी में बैठे और १०  से १५ किलोमीटर आगे बढ़े, तभी हमारी गाड़ी  को विराम लग  गई ।
भागीरथी नदी के सामने एक विशालकाय होटल के सामने हमारी गाड़ी रुकी , खुली हवा में बैठ चाय पीने के बाद थकान का तो कुछ पता ही नहीं चला सामने कल-कल करती चट्टानों पर से गंगा मैया की धारा के धीरे-धीरे ,तेज रूप को गिरते देखते बनती थी .....

गतांक से आगे. १
 
संग संग चले गंगा की लहरें : फोटो नमिता सिंह

हमारे संग संग चले गंगा की धारा : रात के बाद सुबह का इंतजार होने लगा ,ड्राइवर भैया ने पहले ही रात चेतावनी दे दी थी ,कि कल सुबह ही कपड़े लेकर गंगोत्री दर्शन के लिए निकल जाना है, हम सब भी आदेश का पालन कर सुबह - सुबह अपने कपड़े समेट चाय पी कर निकल पड़े रास्ते के दृश्यों को देखते बनता था । शांत सुंदर सड़क गाड़ी में बजता मधुर संगीत और खिड़की से ठंडी हवा के झोंके ,कभी गाड़ी के मुड़ने पर सेब के बाग , तो कभी चीड़ के सुंदर पेड़ ,तो कभी ऊंची - ऊंची ,डरावनी पर्वत श्रृंखलाओं  के बीच से भागरथी की  पतली धारा देखते बन रही थी । अनायास, ये सब देख मन के कोने से यह बात निकल ही पड़ती ,कि ईश्वर की कलाकृति का जवाब नहीं। पूरे समय मैं कैमरे में दृश्य को कैद करने में लगी रही। कुछ कैमरे में  कैद होती गई कुछ आगे बढ़ती गई।  
गाड़ी भटवाड़ी ,झाला होते हुए अचानक रुक जाती है । 
आवाज आती है , ' मैडम जाइए स्नान कर आइए ' ,
मैंने पूछा , ' क्यों भाई ? ....तो पता चला कि यह  गंगनानी है । 
गंगनानी गर्म पानी का कुंड : यहां के कुंड में सर्वप्रथम स्नान किया जाता है । यह गर्म पानी का कुंड है ,गाड़ी से उतरने  के बाद हमने कुंड के प्रांगण में प्रवेश किया, भक्ति भावना रोम- रोम में प्रवेश करने लगी ,चारों तरफ भक्ति के गीत बज रहें  थे । हमने भी वहां स्नान किया और जब मंदिर में दर्शन को आगे बढ़े  तो एक साधु से भेंट हुई। 
अद्वितीय स्थान ,शक्ति से धिरे हुए, चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा का समावेश हो रहा था। हमने भी उनके दर्शन कर कुंड की कथा को सुना, तो पता चला कि परशुराम जी के पिता जमदग्नि ऋषि के तपस्या से खुश होकर ईश्वर ने कहा कि आप जो  रोज गंगोत्री से जल  ला कर पूजन करते हैं ,अब आप के स्थान पर ही गंगा की धारा आएगी । इस तरह वहां एक पतली सी धारा के रूप में गंगा मैया का जल कुंड में आने लगा, पानी में सल्फर की मात्रा के कारण पानी गर्म रहता है । लोगों की मान्यता है , कि पहली डुबकी यहां अनिवार्य है ।भारतवर्ष ऋषि-मुनियों का तपस्थली है । यहां की सुंदरता और विविधताओं का क्या कहना इस तरह हम सब पूजा अर्चना कर वापस गाड़ी में आकर गंगोत्री की तरफ बढ़ने लगे । 

गतांक से आगे.२ 

हर हर गंगे माँ हर हर गंगे : फोटो नमिता सिंह 
 
चीड़  के घने जंगल : थोड़ी देर में हमें चीड़ के घने जंगल और आईटीबीपी के क्षेत्र नजर आने लगे। तब मैं समझ गई कि अब हम गंगोत्री के नजदीक है,क्योंकि उसके बाद ही चीन की सीमाएं शुरू हो जाती हैं। गाड़ी चेक पोस्ट पर रुकी,गाड़ियों की भीड़ देखकर यह समझ आ गया कि मैं अपने गंतव्य पर पहुंच गई हूं।
चेकपोस्ट से 
 किलोमीटर चलने पर भागीरथी की कलकल धारा, दूर पहाड़ों से सफेद दूध की तरह दिख रही थी। 
पवित्र स्नान : हम सब जल्दी-जल्दी घाट पर गंगा मैया के चर- कमलों को छूने के लिए बढ़ने लगे थे । जैसे ही गंगा के जल में डुबकी लगाई वैसे ही रोम - रोम में बिजली कौंध गई। बर्फीली पानी को सहन करना बड़ा मुश्किल हो रहा था । हमने जल लेने के लिए जो डिब्बा खरीदा था, उसी डिब्बे से जल निकालकर मैं स्नान करने लगी ,तत्पश्चात गंगा की आरती और पूजन कर गंगोत्री मैया के पूजन के लिए मंदिर प्रांगण में प्रवेश करने के लिए हम सब पंक्ति बंध हो गए। 
मंदिर गंगोत्री का : भव्य सफेद संगमरमर से बनी मंदिर सूर्य की रोशनी में चमचमा रही थी । माता के मंदिर को गोरखाओं के सेनापति अमर सिंह थापा द्वारा १८ वीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस मंदिर का पुनरुद्धार जयपुर के राजा माधव सिंह द्वितीय ने की थी। इस नदी का नाम महान तपस्वी भागीरथी के नाम पर पड़ा जिनके अनुरोध से गंगा मैया धरती पर आई थी ,जो उत्तरकाशी से होते हुए देवप्रयाग तक पहुंचती है । वहां भागीरथी, बद्रीनाथ से बहती आती हुई अलकनंदा केदारनाथ से निःसृत  होती मंदाकिनी, के साथ मिलती  है। दोनों का साथ इस  संगम स्थल पर होता है। और फिर यहाँ से गंगा कहलाती हुई यह देवसरिता ,ऋषिकेश,हरिद्वार के रास्तें  मैदानी इलाके में बढ़ने लगती है। 
हम गंगोत्री दर्शन के बाद अब मुसाफ़िर हूँ मैं यारों के अन्तर्गत हम चार धाम के तीसरे पड़ाव की ओर बढ़ते हैं। वह पड़ाव हमारे बद्रीनाथ धाम की होती है मैं इस यात्रा संस्मरण के साथ मिलती हूँ अगले अंक में।

नमिता सिंह.
रानीखेत. 


Page 8
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पृष्ठ ८. 
यात्रा संस्मरण.

रीता रानी. 

या धरती के ज़ख्मों पे मरहम रख दे ,या मेरा दिल पत्थर कर दे, या अल्लाह , कतिल शिफा़ई

फोटो नेट से साभार 
 
स्वरों के आरोह-अवरोह : ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से पटरी पर दौड़ी चली जा रही थी,सभी यात्री मशगूल।सामने दो युवतियां और उनकी माएं मोबाइल पर लूडो खेलने में आनंदमग्न थीं। बगल के कंपार्टमेंट में एक किशोर अपनी सहोदरा और दूसरी समवयस्क सहयात्री के साथ गिटार के तारों को छेड़ते हुए नए गीतों के स्वरों के आरोह-अवरोह से वातावरण को लयबद्ध कर रहा था । 
परंतु पृथक रुचि का स्वामी मेरा ह्रदय, संगीत प्रेमी होने के बावजूद उन स्वर लहरियों से आबद्ध न हो पाया था। अपने स्वप्रेम में केंद्रित मैं प्रकृति से मौन संभाषण में लगी हुई थी, द्वय चक्षु  दृष्टिभ्रम से उत्पन्न चलाएमान दृश्यों को ज्यों अपने कोटरो  में बंद कर लेना चाहते थें। यह अवलोकन निस्पृह मानस को  वितरागी कर रहा था ,तभी एक मधुर स्वरलहरी श्रवण तंत्रिकाओं से आकर टकरा उठी, सुनना बड़ा सुखद लगा ।
मन को मिला सुख दृगो में उत्सुकता की तरंगों को जन्म देने लगा-कौन है? किसकी इतनी मधुर , सुरीली सी आवाज है ? गीत के बोल मैं पहचान रही थी-भाषा शुद्ध रूप में बांग्ला थी। सार्वजनिक स्थान की शिष्टता का पालन करते हुए लोग भला कहां ऐसे गाते हैं ट्रेन में -ऐसे ही दो चार प्रश्नों से उलझी हुई मैं अपनी जगह बदलकर आई तटस्थता को थोड़ा तोड़ना चाह रही थी कि दूसरे कंपार्टमेंट में ऊपर वाली सीट पर नजर गई।

एक स्त्री मलीन कपड़ों में : फोटो रीता रानी 

एक स्त्री मलीन कपड़ों में, छोटे-छोटे बाल, कंबल लपेटे अन्य यात्रियों से थोड़ी अलग सी दिख रही थी। एक पल की दृष्टि ने ही इतना तो ग्रहण कर लिया कि वहां कुछ असामान्य तो है। थोड़ी देर बाद वह महिला एक अन्य महिला के साथ शौचालय की ओर जाती दिखीं। मन के पास अब तो और भी प्रश्न थें-कौन है यह, किन लोगों के साथ है, कहां जा रही है, सुरक्षित तो है न? साथ वाली महिला एक लघु स्मित के साथ पास से गुजर गईं - पौरुषिक वेशभूषा, दृढ़ व्यक्तित्व की आभा से युक्त। तीन लोगों का समूह था इनका जिसमें एक पुरुष सदस्य की भी उपस्थिति थी।
भारतीय रेलवे का समाज शास्त्र : भारतीय रेलवे से बढ़िया समाजशास्त्र  का अध्याय कोई हो ही नहीं सकता। कुछ किलोमीटरों  और घंटों का सान्निध्य-धीरे धीरे सबके एकांतिक व्यक्तित्व के घेरे को तोड़ने लगता है; चर्चा- परिचर्चाएं,सहयोग, मुस्कान ---कितने ही रंग बिखरने लगते हैं। 
इन्हीं रंगों के बीच ज्ञात हुआ कि वह महिला गुमशुदावस्था में उदयपुर के  एक एनजीओ को मिली थी, जिसने उदयपुर पुलिस से संपर्क स्थापित कर, उसके घर वालों की पहचान कर, सकुशल घर वापसी की उसकी व्यवस्था की है। जितनी छोटी पंक्तियों में समेटकर यह प्रक्रिया लिखी गई है वास्तव में इतनी छोटी यह प्रक्रिया है नहीं---समझा जा सकता है।
मेरे सामने राजस्थान पुलिस के दो हेड कांस्टेबल बैठे हुए थें-एक महिला और एक पुरुष। दोनों बड़े ही समर्पित भाव से दिमागी रूप से विक्षिप्त उस महिला की देखरेख कर रहे थे। 
कथा बड़ी ही कारुणिक है-नवीन स्वपनों और श्रम की तलाश में निकली यह युवती मुंबई में सामूहिक शारीरिक दुराचार का शिकार होती है,यंत्रणा झेलने के बाद वह उदयपुर की ओर भागती है,वहां भी एक ऑटो वाले के द्वारा दुराचार किए जाने का प्रयत्न करने पर उसके सिर पर पत्थर मार कर उसके सारे कागजात लेकर भाग खड़ी होती है ....अपने गांव पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर,जो खड़गपुर से लगभग ३५  किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है ,से मुंबई और उसके बाद उदयपुर तक की यात्रा में शारीरिक यंत्रणाओं का शिकार होते-होते अपना मानसिक संतुलन खो चुकी है। सच कहूं तो ऐसी कितनी पृष्ठभूमि हमारी बॉलीवुड की घिसी -पिटी फिल्मों की कहानियों में दिखती है ...जिनसे उत्पन्न होने वाली ऊब इन कहानियों की समाप्ति के पहले ही मुझ तक आ जाया करती थीं लेकिन अभी तो वास्तविकता है , निरीह मनोरचना नहीं।
गतांक से आगे.१
अब मुझको तो दीवाना कर दे, जिंदगी, ऐ जिंदगी

स्त्री हूं मैं...जो कहानियां फिल्मी लगती थीं, वे अपने नग्न और भयावह रूप में सामने पसरी हैं। स्त्री शरीर की कीमत तय होती है बाजारों में और इस बाजार में पुरुष ही नहीं खुद स्त्रियां भी संलिप्त हैं। शोषण ऐसा,
 कि "अब मुझको तो दीवाना कर दे, जिंदगी, ऐ जिंदगी "

शरीर की तय होती क़ीमत : फोटो नेट से साभार 

घरेलू हिंसा और मानसिक असंतुष्टि, कार्यालयी मैला, समाज का लिंग विशेष के प्रति दोहरापन ,शारीरिक शोषण... के घने अंधियारों के बीच स्त्री शरीर के क्रय- विक्रय की पंकीली नहीं अपितु दलदली भूमिवाला बियाबान टापू, जहाँ प्राणवायु भी अपने कितने अल्प प्रतिशत में उपलब्ध है पता नहीं, की उपस्थिति की कल्पना मात्र ही आत्मा को सिहरा दे रही है। नारी कई बार तेरा परिचय सिर्फ तेरी काया ही क्यों है? तेरा शरीर तेरे लिए ही आजाब क्यों है? नारी सशक्तिकरण की परिभाषा को इन प्रश्नों के उत्तर में  ढूंढे जाने की आवश्यकता है।
समाज के गहरे अंधेरों के बीच कुछ संस्थाएं लाइट हाउस की तरह काम कर रही हैं, कुछ लोग सच में मानवता का भार अपने कंधों पर उठाए खड़े हैं ।पुरुष कर्मी ने बताया कि लॉकडाउन के गत २ सालों में वह कम से कम २० राज्यों की यात्रा कर चुका है, गुमशुदा लोगों को उनके घर तक पहुंचाने के क्रम में। सभी कर्मी इस ड्यूटी को लेना भी नहीं चाहते, क्योंकि  घर छोड़कर यात्राएं करनी पड़ती हैं और कई बार तो टिकट भी ढंग की बोगियों में प्राप्त होने की बात कौन करे, आरक्षित सीट तक नहीं मिलती --और अगर पीड़ित मानसिक रूप से बीमार हो,तो उसको उसके गंतव्य तक पहुंचाना कितना दुष्कर होगा , यह महज कल्पना करके भी समझा जा सकता है। 
हमारी बॉगी में पीड़िता थी, वह भी बार-बार बीड़ी पीने की मांग कर रही थी---चलती ट्रेन में उसकी इस मांग को कभी पूरा करना और कभी उसे बहला-फुसलाकर रखना, तेज आवाज में उसके धाराप्रवाह बोलते जाने या गीत गाने पर यात्रियों की सुविधा को ध्यान रखते हुए उसे संयमित करना----इतना सहज नहीं था। 
मैंने बातचीत के क्रम में उन्हें यह चिंता करते हुए भी देखा कि उसके घर पहुंचने पर पता नहीं वास्तविक स्थिति क्या होगी,इसके आगे का उसका भविष्य क्या होगा? पुलिस की भ्रष्टाचार से ओतप्रोत पूर्वाग्रही छवि के विपरीत इस छवि को दिल से नमन करने की इच्छा हुई। सचमुच जीवन तू श्वेत और श्याम दोनों है।आज की तारीख में जनजातीय श्रम निवेश का केंद्र बनकर उभरा उदयपुर, का यह एनजीओ विशेष भी न केवल ऐसी महिलाओं को सहारा देता है, बल्कि अवांछित संतानों की भी देखरेख करता है, उनकी पढ़ाई लिखाई और यहां तक की शादी - विवाह की भी व्यवस्था करता है। दुनिया शायद ऐसे ही पुनीत शक्तियों की धुरी पर घूम रही है।

रीता रानी. 
जमशेदपुर 

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पृष्ठ.९.यात्रा संस्मरण .
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नेपाल की एक दिलकश जगह है पोखरा.

अल्ट्रा फ्लाइट के जरिए पूरे  पोखरा के नजारें : फ़ोटो अविनाश  

अविनाश कुमार / नेपाल. संवाद सूत्र. मुझे याद है जब मैं पंछी की तरह गगन में उड़ रहा था तो मेरी जिंदगी का कभी न भूलने वाला रोमांच रहा था। काफी दिनों से घर में कैद रहते हुए मुझे घुटन महसूस हो रही थी। सालों से इस कोरोना की बजह से मैं  घर में जैसे क़ैद हो कर रह गया था। हालात ही ऐसे थे कि सुरक्षित जी लेने मात्र की सोच ही काफ़ी थी। फिर भी आख़िरकार सोचने की हिम्मत जुटा ली कि  कहीं बाहर घूमने चलता है । जब संकल्प ले लिया तो रास्तें भी निकल ही आए। 
मैंने इसके निमित ४-५ दिनों  की छुट्टी भी ऑफिस से ली । और नेपाल स्थित पोखरा  घूमने के लिए निकल गया। जानकारियां हासिल की और पता भी  कर लिया था कि काठमांडू के बाद पोखरा ही घूमने के लिए सर्वोत्तम जग़ह है। तय हो गया कि पोखरा ही चलेंगे। काठमांडू पहुंचने  के बाद हमलोगों ने वहां के स्थानीय नेपाली लोगों के साथ मिल बैठ कर बात की।
कैसे पहुंचे : उन्होंने बताया कि नेपाल में पोखरा ही घूमने के लिए सबसे बढ़िया व उत्तम जगह है और हम लोग पोखरा  घूमने के लिए निकल पड़े । कुछेक  से  घंटे बाद हम सभी काठमांडू से चलते हुए
तक़रीबन २०० किलोमीटर की दूरी तय करते हुए हम नेपाल के दूसरे बड़े शहर पोखरा पहुंच चुके थे 
जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई ८२२ मीटर थी ।
पटना ,लखनऊ ,दिल्ली से काठमांडू की नियमित विमान सेवाएं हैं हम पोखरा के लिए सड़क मार्ग का भी प्रयोग कर सकते हैं ।  
यह शहर पश्चिम में  गण्डकी अंचल के कास्की जिला में स्थित है । वहां का मनभावन प्राकृतिक दृश्य  इतना ही खूबसूरत है  कि हम लोगों को यत्र तत्र  घूमने में काफी सुखद अनुभूति हुई थी । 
पहवा झील : के चारों तरफ़ ही पोखरा शहर बसा हुआ है। याद करते है एक बड़ी , शांत व डरावनी झील थी जहां  हम लोगों को घूमने में काफी आनंद आया था । यह वही गहरी झील है जहाँ कभी नौका दौड़ की प्रतियोगिताएं भी आयोजित करवाई जाती हैं  ।  हमने पोखरा झील में  नौका विहार  के लिए १६०० भारतीय रुपए ख़र्च कर एक नाव किराए पर ली।  
झीलों का शहर : पोखरा. फोटो इंटरनेट से साभार 
झील में लगभग 
१ घंटे के लिए वोटिंग  करते हुए काफी दूर तक गए। बड़ी 
विशालकाय  झील थी यह।काफ़ी बड़े क्षेत्रफल में फैली हुई थी  इस झील की लंबाई लगभग  किलोमीटर के जैसी थी।  
ताल बराही मंदिर : झील के मध्य  में एक बहुत खूबसूरत सा मंदिर भी बना हुआ था  जो दो मंजिला था  जहाँ  हम लोगों ने परिक्रमा कर  मंदिर में पूजा भी की थी । यह एक हिन्दू मंदिर है जो मां दुर्गा ( बराही ) को समर्पित है अतः हिन्दू भक्त गण इस मंदिर के दर्शन करने जरुर आते है ।  
रोमांच से भरा हवाई सफ़र : फिर हम लोगों ने सोचा कि अल्ट्रा फ्लाइट के जरिए पूरे पोखरा को ही देख लेते है। हमें आनन्द मिश्रित डर भी सता रहा था। फ़िर भी हम तो कहेंगे कि आप जब कभी भी पोखरा जाए तो अल्ट्रा फ्लाइट की हवाई यात्रा अवश्य करें। चूँकि हम लोगों के  पास समय ज्यादा नहीं था इसीलिए हम लोगों ने तय किया कि पोखरा आसमान से ही देख लेते है। कम समय में पूरी यात्रा हो जाएगी। फिर हम लोग शीघ्रता से पार्श्व में बने एयरपोर्ट तक गए, और वहां से हम लोगों  ने जरूरी टिकट हासिल किए और अल्ट्रा लाइट हवाई यान पर सवार होने के लिए के लिए आगे बढ़े।  जब हम बादलों के मध्य थे , ऊंचाई बढ़ती गयी थी तब उपर से नीचे का इतना सुंदर नजारा था कि बता नहीं सकता। उपर से नीचे देखने में पोखरा अत्यंत खुबसूरत लग रहा था।  पसरी झील उपर से सिमटी हुई कटोरे में दिख रही थी। लगभग मैंने १५ मिनट तक हवा में परिभ्रमण किया पंछियों की भांति उड़ान लेते रहे । बताते चले मुझे इस  अल्ट्रा फ्लाइट के लिए  १९००० भारतीय रुपए ख़र्च करने पड़े थे। बड़ा महंगा शौक था यह। १५ मिनट की उड़ान के बाद हम फ़िर से आसमां से  ज़मीन पर लौट आये थे। कभी भी न भूलने वाला रोमांचक हवाई सफ़र था यह। अभी भी मैं रह रह कर याद करता हूँ। मैं चाहूंगा अन्य भी जब कभी  छुट्टी लेकर नेपाल जाए , तो एक बार पोखरा घूमने जाएं यदि आप ख़र्च उठा सकते है तो पंछी बन कर हवा में ज़रूर उड़े ।
 
मीडिया फीचर डेस्क 

Page 10 
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  देखें पृष्ठ.१०. कला दीर्घा : चित्र  
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सम्पादन : प्रवीण सैनी.
मुज़फ्फरनगर. 

ये पर्वतों के दायरें : कला : मंजीत कौर. नई दिल्ली. 
खिलते हैं फूल यहाँ : कृति मंजीत कौर.नयी दिल्ली .

दुर्गा :  कलाकृति मंजीत कौर.नई दिल्ली 

हनुमान की भक्ति : कला मंजीत कौर .नई दिल्ली 

मंजिलें  अपनी ज़गह है रास्तें अपनी ज़गह : कला मयंक.मुज़फ्फरनगर.


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देखें फोटो दीर्घा.पृष्ठ .११
सम्पादन : अशोक कर्ण   
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रानीखेत में ढ़लती शाम  : फोटो नमिता सिंह 
मैं और डोर्थी सीट नैनीताल से जुड़ी से मेरी यादें : फोटो डॉ.नवीन जोशी  
लक्षद्वीप के सागर के किनारे : फोटो रिम्मी 
लक्ष्यद्वीप में सागर के किनारे : फोटो रिम्मी  

supporting 

रानीखेत से दिखती हिमालय की श्रृंखलाएं : फोटो नमिता सिंह 
हिमालय से ऊँचा मेरा हौसला : फोटो गोपाल.नेपाल
कोवलम बीच केरल : फोटो सोनिया 
पहलगाम की हसीं वादियां : फोटो साजू 
बादलों का वादियों में उतरना : फोटो सुमन.सोलन.
ये बादल झूम के चल : फोटो सुमन.सोलन. 
आगरा : ताजमहल के दीदार : फोटो भावना 
मेरे सपने देखने ताजमहल के : फोटो भावना 

केदार नाथ में भोले का दर्शन : फ़ोटो शशांक शेखर 

श्रीनगर : टूलिप गार्डन :फोटो डॉ आर के दुबे 
काश्मीर की वादियों में चेरी के पेड़ : फोटो डॉ आर के दुबे. 


सोनमर्ग ग्लेशियर के समीप : फोटो विदिशा. 

आर के बीच , विशाखापत्तनम : फोटो प्रसन्ना झा. 

मेरे शहर विशाखापत्तनम की शाम : फोटो प्रसन्ना झा 

पुणे में ढ़लती शाम : फोटो रिम्मी 
पहलगाम की दिलकश वादियाँ  : फोटो विदिशा 



 Page 12.travel in brief    
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चलते चलते. पृष्ठ.१२ /१  
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' making us to feel the beauty and warmth of it : Darjeeling.' says Priya

beauty and warmth of Darjeeling : photo Priya.

Darjeeling / Priya.The dreams are long but the ways to visit the beautiful station is very short. The rays of the sun is hitting the high hills with colourful boundaries making us to feel the warmth of it.
The crowded city with the beautiful dresses and the charming faces of the people is showing the great effect of attraction in the eyes of the queen of the hill Darjeeling. The vendors  are busy for the source of pulling the customers in and around and are showing the glow of their faces. The street is filled with the tourist from different corner of the world. The musical horn of the vehicles and the musical instruments played by the people around is making the way filled with peace and joy. The right moment and the right thoughts of creativity in the mind of the people is giving a way for a lot to visit the high hills of Darjeeling  today.

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चलते चलते. यादें. पृष्ठ.१२ /२.
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काशी विश्वनाथ गंगे, माता पार्वती संगे. 

काशी की अनोखी शोभा : फोटो नीलम पांडेय. 

अद्भुत काशी। पल पल रंग बदलती काशी....सुबह  गंगा में डुबकी लगाती काशी.. सारे दिन सड़कों की दौड़ लगाती काशी...संध्या गंगा आरती उतारती काशी....अन्नपूर्णा की नगरी काशी......सुख की नींद सुलाती काशी ......मोक्षदायिनी काशी। काशी का हर रंग अनोखा है, अद्वितीय है,आकर्षक है। जन्म से जीवन की ओर, जीवन से विश्राम की ओर, विश्राम से मोक्ष की ओर ले जाने वाली काशी।काशी विश्वनाथ की नगरी, तुलसी के मानस की रचना स्थली  काशी। 
मालवीय जी का विश्वस्तरीय बी.एच .यू., सारे  दिन भटकाती गलियां, बनारसी साड़ी, कचौड़ी की खुशबू, पहलवान की लस्सी, काशी की चाट,गंगा घाट की मसाला चाय, एक तरफ मस्जिद की अजान तो दूसरी तरफ हर हर.... महादेव हर हर गंगे ! 
काशी की धूल है मोक्षदायिनी तो.. पापमोचक है गंगाजल ,अनंत विश्राम की ओर ले जाने वाला मुक्ति धाम.. मणिकार्णिका घाट। जीवन का हर रंग समेटे काशी को समझने के लिए काशी आना और काशी की नज़र से काशी को समझना जरूरी है.. " काशी विश्वनाथ गंगे, माता पार्वती संगे "।
काशी में गुजरा हर लम्हा मुझे याद दिलाता रहता है कि हर हाल में चलते रहने का नाम जीवन है। गतिशीलता के बाद अनंत विश्राम। हृदय में स्थित जीवात्मा को परमात्मा को जोड़ने की कला सीखना ही मोक्ष प्राप्त करना है और काशी इस अनंत विश्राम की ओर जाने वाले रास्ते को सुगम बना देती है।
नीलम पांडेय. 
वाराणसी. 
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देखें चलते चलतेपृष्ठ.१२ / ३ .
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८०००  फीट की ऊंचाई पर  कुओं का जल से भरे होना हर किसी को अचंभित करता है

दूर कहीं क्षितिज में डूबता सूरज : फोटो अभिमन्यु. 

हि.स./ अभिमन्यु . हमलोग साधना के छठवें  चरण में अति दुर्गम ट्रैक  पिनाकेश्वर महादेव एवं भरतकोट की यात्रा के लिए निकले थे जो १ दिन में ही समाप्त हुआ । हमलोगों ने पाण्डुखोली से ट्रेकिंग आरम्भ की और हमें भरत कोट होते हुए हमें वृद्ध पिनाथ मंदिर पहुंचना था। यह अति दुर्गम ट्रेक था। हमें जंगल के वीरान रास्ते से जाना था। यह ट्रैक लगभग १८ किलोमीटर पैदल का था। अति दुर्गम खतरनाक रास्ते से हो कर  एवं जंगली जानवरों के बीच से हम साधकों को गुजारना पड़ा था। इस यात्रा के बीच हमलोगों को विषम परिस्थितियों के बीच रहना पड़ा था। तथापि प्रकृति के साथ  में रहना अत्यंत सुखद रहा । साथ में खाना, जल एवं पूजा की सामग्री सभी २५ से ३० किलो का वजन लेकर  यात्रा पूरी हुई। दोनों जगह हमलोगों ने रुद्राभिषेक एवं यज्ञ का कार्यक्रम भी संपन्न करवाया  


इस यात्रा में अपने गुरु भाई रजनीश एवं आश्रम प्रबंधन से जुड़े हुए समय दानी सौरभ थापा ने तक़रीबन १८  किलोमीटर की दुर्गम ट्रैकिंग यात्रा संपन्न करवाई । यह दोनों क्षेत्र दोनों ऋषियों  की तपस्थली एवं भगवान शिव की स्थली रही है । यहां भी विकसित रूप से सारी क्रियाएं रात्रि में संपन्न होती रहती है जिसका हम लोगों ने अनुभव किया । बता दें पाण्डुखोली की गुफाएं अल्मोड़ा जिला स्थित दूनागिरी की पहाड़ी में अवस्थित हैं जो द्वारहाट से  २७ किलोमीटर दूर ठहरती हैं। दूनागिरी की पहाड़ी में बाबा जी की गुफाओं तक द्वारहाट से  शेयर्ड टैक्सी के जरिए आराम से पहुंचा जा सकता है। और फिर हम यदि हिम्मत करें थोड़ी ऊंचाई पर ट्रेकिंग कर पांडव खोली गुफा तक पहुंच सकते है। 
पिनकेश्वर महादेव मंदिर विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल कौसानी से करीब  किलोमीटर की दूरी पर पिनाथ  पर्वत पर स्थित कुमाऊं  का प्रसिद्ध शिव मंदिर है। हमलोग वृद्ध पिनाथ से भी पिनाकेश्वर मंदिर की तरफ़ जा सकते हैं। 
समुद्र सतह से २७०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित  पिनाकेश्वरमंदिर बागेश्वर तथा अल्मोड़ा जिला की सीमा में पड़ता है। ऊँची चोटी पर बना यह मंदिर अत्यंत रमणीक है। धर्मशिला से मंदिर तक ३६५  पौराणिक सीढ़ियां बनी हुई है। यह मंदिर यहां पर खोदे गए तीनों कुओं के लिए भी जाना जाता है क्योंकि यह हमेशा जल से भरे होते हैं। समुद्र तल से लगभग ८०००  फीट की ऊंचाई पर इन कुओं का जल से भरे होना हर किसी को अचंभित करता है इनको से मंदिरों के उपयोग के लिए पानी की आपूर्ति की जाती है। 
इस मंदिर से क्षेत्र की कत्यूर,बोरौर  और गेवाड़  घाटी के लगभग २००  से अधिक गांवों के लोगों की अगाध
श्रद्धा व गहरी आस्था जुड़ी रही है। मंदिर की खोज  
कुमाऊं के चंद राजवंश के महाराजाधिराज लाल बहादुर ने वर्ष १४५४  ने की थी जब वह इस स्थान पर आखेट के लिए आए थे उन्होंने ही इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और भक्तों के आने-जाने की सुविधा के लिए सीढ़ियों का निर्माण करवाया था। 
मीडिया फीचर डेस्क 
नई दिल्ली. 
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आपने कहा. पृष्ठ.१३ /१  
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An Untold Real Short Story. Priya. Darjeeling
I was never true to u,

I meet a man in a hospital. He came with an accident. He was admitted and was given an oxygen cylinder to save his last breathe. 
He said some last words to his wife " I am sorry., I made you undergo with lots of sadness and pain...I was never true to u, I just hoped you a wife for my family as their in laws, but never loved you as my wife. You were right to judge me and even you tried hard to change me, but I never did. I m sorry for hurting you...I am sorry for blaming you untold stories...I am sorry." . 
The wife closed her eyes and said..." I would have been happy if you just changed yourself from dishonest to an honest man".
The man closed his eyes with pain n sadness.
So dear readers...always be honest with your wives...a wife will not demand you for jwelleries, a big house nor a comfortable life, she will be happy if you are honest with her. ".

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Comments

  1. Gangotri yatra vritant ki samikasha kare

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  2. It is a fabulous page worth reading for all

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  3. Thandi sarak pasan devi ki yatra ka ek accha vritant

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  4. आपकी लेखनी में उपन्यास की झलक आती है काफी अच्छा लगा इस लेख में ऐसा महसूस हो रहा था कि 2 लोगों के बीच की वार्ताएं चल रही है और शायद आपने उसी इसी ढंग से प्रस्तुत भी किया है कि आप के भाव और जो दूसरे पक्ष के वार्ता भाव को दर्शाया गया है काफी अच्छा हुआ धन्यवाद सर

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  5. यह पर्वतों के दायरे में आपने जो दो लोगों के बीच की वार्ता को प्रस्तुत किया है वह मनमोहक है इससे पढ़ने वाले की जागरूकता और बढ़ते जा रही है । है प्रस्तुति काफी अच्छी है और बिल्कुल ऐसा लग रहा है मानो कि हम कोई पुस्तक पढ़ रहे हैं ,और पुस्तक में मुझे बार-बार शिवानी की यादें आ रही हैं क्योंकि हमारी शिवानी ने भी कुमाऊँ अल्मोड़ा का बहुत ही विस्तृत वर्णन किया था ।

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  6. वाह! बेहद सारगर्भित हिंदी गद्य साहित्य की झलकियां दिखाई पड़ती है। जहाँ एक ओर स्मरणीय यात्रा वृत्तांत है तो दूसरी ओर रमणीय स्थलों की सभ्यता एवं संस्कृति की चर्चा। आप सभी उत्तरोत्तर इसी तरह अपने महत्त्वपूर्णअनुभवों को साझा करते रहें। लेखक एवं सम्पादक महोदय को हृदय से बधाई। 🙏🏻

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  7. AGAR AAP EN JAGHON PAR NAHI GAYE HAIN TO ESE JARUR PADHEN

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  8. One of the best travelogues so far I have read related to Nainital.

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  9. अपने मत को किस तरह से व्यक्त करूं समझ में नहीं आ रहा है ,क्योंकि आपके इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद ऐसा महसूस हो रहा है कि लेखक ने अपने दिल की बातों को बड़े ही अनोखे अंदाज में कह डाला है ,प्रकृति और प्रेम दोनों के बंधनों को दिखाते हुए इसे और भी रोचक बना दिया गया है जिससे कि पढ़ने वाले की जागरूकता और बढ़ जाती है, कि इसके बाद और क्या होगा ?

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. My hearty thanks to all who posted comments in the blog box

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  10. ईश्वर के प्रेम और मनुष्य के प्रेम को इस कहानी में इतने अच्छे ढंग से दर्शाया गया है कि कभी कहानी को पढ़कर मन रोमांचित हो जाता है और कभी श्रद्धा पूर्वक सिर झुक जाता है

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  11. आपकी मन की भावनाएं यह दर्शाती हैं कि आप एक बहुत ही सज्जन और दिलवाले व्यक्ति आपकी लिखी हुई यह उपन्यास प्रकृति और प्रेम दोनों को उजागर करती है और मन में हमेशा इस भाव को लाती है कि आगे क्या होगा क्योंकि आपने इसमें कहानी को मोड़ दिया है और उस मोड में हर पल इस बात को दर्शाया है कि आगे आप क्या सोच रहे हैं और किसके बारे में सोच रहे हैं आप की कहानी प्रकृति और प्रेम दोनों के बीच ही धुरी बनाकर चली है

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  12. It is a too nice page for everyone

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  13. पढ़ कर बहुत अच्छा लगा,लेखन में मन के उद्गार का प्राकट्य पाठक को विह्वल करता है.
    प्रस्तुति अत्यंत सराहनीय है.

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  14. बहुत सुंदर लेख घर बैठे सभी जगह का दर्शन करने का आनंद दिलाता है

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  15. It is a nice page

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  16. It is a nice page

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