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यादें न जाये बीते दिनों की.
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अभिनेता दिलीप कुमार
आवरण पृष्ठ.०
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आ जा रे परदेशी .....मैं तो कब से खड़ी इस पार.. ----------------विषय सूची. आवरण पृष्ठ : पृष्ठ ०. दिलीप कुमार. आभार पृष्ठ : पृष्ठ १. सम्पादकीय. सुबह और शाम पृष्ठ.१/० आलेख : पृष्ठ २.खंड ०. आ जा रे परदेशी .....मैं तो कब से खड़ी इस पार. डॉ. मधुप रमण. आलेख : पृष्ठ २.खंड १. सुहाना सफ़र और ये मौसम. डॉ. मधुप रमण. आलेख : पृष्ठ २.खंड २. नैनीताल की वादियों में मधुमती फिल्म के तीन गाने. डॉ.नवीन जोशी. आलेख : पृष्ठ २.खंड ३. मिस्टर रे के बंगले की तलाश. डॉ.नवीन जोशी. आलेख : पृष्ठ आलेख : पृष्ठ
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पृष्ठ.१. सम्पादकीय में प्रधान संपादक
डॉ. मनीष कुमार सिन्हा.
नई दिल्ली.
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संपादक मंडल.
कार्यकारी संपादक.
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डॉ. आर. के. दुबे. -----------अन्य
रेनू शब्दमुखर. जयपुर. संपादन रवि शंकर शर्मा. संपादक. हल्द्वानी. डॉ. नवीन जोशी. संपादक. नवीन समाचार. नैनीताल. अनुपम चौहान.संपादक. समर सलिल. लखनऊ. अंशिमा सिंह. शिक्षाविद. डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह. लेखक सेवा निवृत्त अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक,वन विभाग, छत्तीसगढ़. --------------------------------------
फ़िल्म, गाना : रजत पर्दा. लेखक.
डॉ.मधुप रमण. डॉ.नवीन जोशी.
| साझा करें पोस्ट. | सुबह और शाम. पृष्ठ.१/०
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बिमल रॉय और यशोदा आर्या. वो कौन थी .
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जब गेठिया की बेटी बनीं दिलीप कुमार की हीरोइन.
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भुवाली की चीड़ भरी वादियों में उतरे बादल : डॉ.सुनीता |
भवाली / डॉ. नवीन जोशी . फ़िल्म निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है। यहां फ़िल्मकार की कल्पना ,संपादन और आपकी आँखों के भ्रम का जबरदस्त इस्तेमाल होता है। जब आप फिल्में बनती देखेंगे तो आप ऊब
जायेंगे लेकिन जो कुछ भी आपके सामने अंत में रजत परदे पर प्रस्तुत किया जाता है आप ३ घंटे के लिए ही सही किसी दूसरी मायावी दुनियां में खो जाते है।
जब आप किसी फ़िल्म निर्माण के बारे में जानेंगे तो आपको दिखेगा स्टंट तथा जोख़िम भरे सीन को निर्माता निर्देशक डुप्लीकेट पर आज़माते है। ऐसा कुछ फ़िल्म मधुमती में भी हुआ।
स्थानीय निवासी और भीमताल के ब्लॉक प्रमुख डॉ. हरीश बिष्ट ने भी पुराने लोगों से सुनी बातों के आधार पर बताया कि यहां के गांव गेठिया की एक लड़की को कुछ दृश्यों के लिए ही सही, दिलीप कुमार की हीरोइन बनने का मौका मिला था। यह लड़की थी यशोदा आर्या। हुआ यह कि गेठिया सैनिटोरियम के पास चीड़धार में शूटिंग के दौरान एक दृश्य में अभिनेत्री वैजयंती माला को पहाड़ पर दौड़ना था।
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इन्हीं लोगों में से एक है यशोदा आर्या : मध्य में दिलीप कुमार |
लेकिन वैजयंती माला दृश्य के लिए जरूरी तरीके से पहाड़ पर दौड़ नहीं पा रही थी। इस दौरान निर्देशक बिमल रॉय की निगाह पास खड़ी गेठिया गांव की एक बेटी यशोदा आर्या पर पड़ी, जिसे उन्होंने वैजयंती माला की जगह दौड़ाकर सीन शूट किया। पल भर के लिए ही सही जब गेठिया की बेटी यशोदा आर्या को दिलीप कुमार की हीरोइन बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस दौरान दिलीप कुमार ने गांव वालों के साथ फोटो भी खिंचवाई थी, इस फोटो में यशोदा आर्या मौजूद बताई जाती हैं। इसलिए इस फोटो कुछ लोगों ने आज भी सहेज कर रखा है।
हमने गेठिया सैनिटोरियम की बात सुनी थी। चीड़धार जैसी जगह का ज़िक्र था। बड़ी बारीकी से मैंने भवाली देखी थी। दो दफ़ा मैं यहाँ आ चुका हूं। सोचा भवाली के सैनिटोरियम के क़रीब जाकर वहां चीड़धार का मुआयना किया जाए। हमें एक सैनिटोरियम मिला था जो शांत और अत्यंत रमणीक जगह में था। जहां टीवी के रोगियों का इलाज ब्रिटिश ज़माने में होता था। वहां चीड़ और देवदार के अनगिनत पेड़ भी दिखे थे। प्राकृतिक खूबसूरती भी अप्रतिम थी। शायद इसी सैनिटोरियम के आस पास की शूटिंग की जगह रही होगी।
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ब्रिटिश काल में निर्मित भुवाली का टीवी सैनिटोरियम : देवदार : छाया चित्र डॉ सुनीता |
सह लेखक. डॉ मधुप रमण.
लेखक, फ़िल्म समीक्षक.
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पृष्ठ २.आलेख :
हिंदी अनुभाग. फ़िल्म, गाना : रजत पर्दा .
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सौजन्य से.
हिंदी अनुभाग. फ़िल्म , गाना : रजत पर्दा . पृष्ठ २. खंड ० .
आ जा रे परदेशी .....मैं तो कब से खड़ी इस पार .
लोकेशन : सेट्स : फ़िल्म : गाना : मधुमती.
नैनीताल की दिलक़श पहाड़ी वादियां और ' मधुमती ' की यादें , साल २००८ का । जब मैं दूसरी दफ़ा नैनीताल आया था। यायावर की तरह मैं इधर उधर अकेले ही घूम रहा था। जाने अनजाने लोग ही |
डॉ. मधुप |
हमारे साथी होते थे। कहते है न तेरा कोई साथ न दे तो खुद से प्रीत कर ले। हमलोग ऐसा करते भी है। स्वभाव से एकांत प्रिय होते हैं हम जैसे लोग। यूँ ही भटकते भटकते ही ,थोड़ी दूर चलते हुए ही फासले पर नीचे घाटियों में एक पहाड़ी नदी मिल गयी थी। कौन सी नदी थी मालूम नहीं था। थकान दूर करने के लिए मैं वही बैठ गया था। तेज गति से बहता हुआ पानी अत्यधिक शोर कर रहा था। धुंध भी बन रही थी। नन्हें जल कणों से बादल भी बन रहे थे। पानी बहुत ही सर्द था। पहाड़ी रास्तें से कई एक मोड़ से गुजरते हुए यत्र तत्र घाटी में आपको बहुत सारे नदियां व झरनें मिल जायेंगे। सरे राह चलते आते जाते कुछ हसीं जवां लोग भी यकीकन मिल जाएंगे। या तो वे मुसाफ़िर होंगे या फिर स्थायी यहां के रहने वाले। और मुझे भी कोई मिल गया था चलते चलते। मुझे याद है पगडंडियों के रास्तें एक छोटी दूकान दिखी थी। वहां की मालकिन एक अत्यंत संभ्रांत दिखने वाली खूबसूरत महिला थी, नाम अब याद नहीं । उनकी कोई फ्रूट जूस की सरकारी दूकान थी एकदम गांव से दूर । थके हारे पथिक सैलानी की सेवा के लिए उन्होंने एक छोटी सी चाय ,कॉफी ,जूस की दूकान खोल रखी थी, आमदनी के लिए।
मैंने पूछा था .....' आप कहां रहती है ?'
दूर कहीं चोटी की तरफ़ इशारा करते हुए उसने बतलाया ...' पर्वत के उस पार ...'
' इस वियावान जंगल में ....आपको डर नहीं लगता... अकेले में ?' मैंने फ़िर से पूछा था
हँसते हुए बोली ...नहीं ,कभी नहीं। ...हा... जानवरों से यदा कदा डर बना रहता है ...आदमी से तो नहीं। ... रोज पांच छह मील का फासला तय कर आती हूं ....
लगा पहाड़न कितनी भोली , कितनी खूबसूरत , कितनी मेहनतकश होती है। प्रेम भाव से भरी हुई। आतिथ्य भाव से उसने मुझे फ्रूट जूस पीने को दिया। एकदम ताज़ा जूस था। मन तरोताज़ा हो गया था।पैसा देना चाहा तो उन्होंने नहीं लिया ,
कहा ...' आप मेरे मेहमान है ,अतिथि है,आपसे पैसा क्या लेना ? ' मन द्रवित हो चला था।
पहाड़ की चोटी की ओर देखते हुए मैं सोच रहा था तुम्हारा घर पर्वत के उस पार है । ..और हम ठहरे बिना घर के। अभी तो पर्वत के उस पार ... घर बनना शेष हैं न ?
थोड़ी देर बाद मुझे प्रस्थित होना ही पड़ा भरे मन से। मुसाफ़िर जो ठहरा। यहाँ भी मेरे लिए अनुत्तरित सवाल था यहाँ कौन है तेरा मुसाफ़िर जायेगा कहां ? आज भी वो खिला खिला चेहरा मुझे याद आता है।
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तुम्हारे लिए मैं और मेरी तन्हाई. नैनीताल : छाया चित्र मधुप. |
दिलीप कुमार , मधुमती और वो नदी.
... न जाने क्यों आज पहाड़ों में भटकते मुझे स्वयं के अस्तित्व में ' आनंद ' तथा ' मधुमती ' दोनों की याद आ गयी थी। जब से मेरे करीबी संपादक मित्र डॉ नवीन जोशी ने इस बात का खुलासा किया किया कि मधुमती फ़िल्म की शूटिंग यहाँ नैनीताल और इसके आस पास की पहाड़ियों के छह महीने तक चलती रही थी मेरी दिलचस्पी और भी बढ़ गयी थी ।
यहीं वो जग़ह थी ना जहां आप आकर हम से मिले थे ? कभी इस नदी के किनारे आनंद ( दिलीप कुमार ) भी आये थे न ? जब फिल्म मधुमती की शूटिंग हो रही होगी।
चीड़ देवदारों के मध्य गुजरते हुए आनंद थोड़ी देर सुस्ताने के लिए ठहर जाते हैं। अचानक नीचे बहती अल्हड़ नदी से एक सुरीली आवाज़ गूंजती हुई पहाड़ी के शीर्ष तक़ पहुँचती है आ जा रे परदेशी .....मैं तो कब से खड़ी इस पार . कि अंखियाँ थक गयी पंथ निहार।
शायद वह उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी रही होगी। वह अनायास ही उस सुरीली आवाज़ के पीछे खींचते हुए चले जाते है। वह उस गाती हुई अनजानी पहाड़न का पीछा करते है लेकिन कहीं दूर घाटियों के नीचे बलखाती नदी की वेगवती धारा से पनपती धुंध की सफ़ेद चादर में खो जाने वाली वह गाती शोख़ युवती न जाने कहां गुम हो जाती है ?
आनंद सोचने लगते है, ' ....वो कौन थी ? कैसी थी ? कहां से थी ? कहां गुम हो गयी ,उसकी आवाज़ में इतनी कशिश क्यों हैं ? उनके मनोमस्तिष्क कई एक सवाल कौंधने लगते हैं।
वह थी मधुमती पूर्व जन्म में आनंद की प्रेमिका मधुमती।
.....ना जाने क्यों ऐसा लगता है जैसे उनका उससे कई जन्मों का नाता है .... मधुमती की तलाश में भटक रहे होते है मधुमती के नायक आनन्द या कहें दिलीप कुमार। ' शायद मिलने बिछड़ने तक़ सौ बार जनम लेंगे , सौ बार फ़ना होंगे ......
यह थी उस गाने की पृष्ठ्भूमि।
गाना : फ़िल्म मधुमती. आ जा रे परदेशी .....
डॉ मधुप रमण.
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हिंदी अनुभाग. फ़िल्म , गाना : रजत पर्दा . पृष्ठ २.खंड १ .
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अभिनेता दिलीप कुमार , नैनीताल और यह गाना : सुहाना सफ़र और ये मौसम.
फ़िल्म , गाना : रजत पर्दा . सौजन्य से.
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सुहाना सफ़र .....और ये मौसम हसीन. नैनीताल की वादियां.
लोकेशन : सेट्स : फ़िल्म : गाना : मधुमती.
अभिनेता दिलीप कुमार ( १९२२ - १९२१ ) आज ७ जुलाई २०२१ को इस जहां को अलविदा कह कर चले गए। अब उन्हें कोई भी आज पुरानी राहों से आवाज़ नहीं दे पाएगा। शायद एक पुराने शुरूआती युग का अंत हो गया है । यक़ीनन सिल्वर स्क्रीन के वे पहले सुपर स्टार थे जिनकी आम पहचान फ़िल्म अंदाज ( १९४९ ) में मशहूर फिल्म अभिनेता राज कपूर के साथ अभिनय करने से बनी थी । बताते चले वे राजकपूर के सहपाठी और अज़ीम दोस्त रहे है । स्वभाव से अत्यंत शर्मीले रहे दिलीप कुमार कभी इस सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के प्रेरणाश्रोत भी बने । अविभाजित भारत अद्यतन पाकिस्तान के पेशावर में जन्मे युसूफ खान जिन्हें दिलीप कुमार का सिनेमाई नाम उस ज़माने की मशहूर अभिनेत्री देविका रानी ने दिया था ।
पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशाने इम्तियाज़, से नवाजे गए दिलीप कुमार के हिस्से में दादा साहेब फाल्के अवार्ड के अतिरिक्त न जाने कितने अवार्ड और सम्मान है। अपने जीवन काल में एक शानदार अभिनेता होने के साथ साथ उन्होंने राज्य सभा के माननीय सदस्य होने की गरिमा भी निभाई थी । वे बम्बई के शेरिफ भी बने थे ।
वह अपने ज़माने में सर्वाधिक एक लाख फीस लेने वाले एकमात्र अभिनेता रहे थे। उनकी कई फिल्में सदाबहार और हिट साबित हुई जैसे आदमी, यहूदी , मुगले आज़म, राम और श्याम, नया दौर,संघर्ष ,शक्ति ,कर्मा ,क्रांति आदि मैंने भी देखी है। हालांकि उन्होंने पचास के आस पास कम ही फिल्में की लेकिन जितनी भी की बेहतरीन फिल्में ही की। १९७६ के दशक में कुछेक फिल्मों के बेहतर प्रदर्शन नहीं करने की बजह से पांच छह सालों के लिए सन्यास भी लिया। लेकिन शीघ्र ही उन्होंने निर्माता निर्देशक अभिनेता मनोज कुमार की फिल्म क्रांति से शानदार वापसी भी की। उनकी फिल्मों के कुछेक लोकप्रिय गाने अभी भी बहुत याद आते है।
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दिलीप कुमार ( १९२२ - १९२१ ) |
७० - ८० का दशक था। मुझे याद है अस्सी के दशक में मैंने पटना के वीणा सिनेमा में अभिनेता दिलीप कुमार और अभिनेत्री बैजंती माला अभिनीत फ़िल्म मधुमती देखी थी। अकेले ही। हालांकि विमल रॉय की यह फ़िल्म मेरे जन्म से पहले १९५८ में रिलीज़ हुई थी और एक हिट फिल्म साबित हुई थी । उस फ़िल्म में कई मशहूर गाने थे। जैसे आजा रे परदेशी ..., डस गयो पापी बिछुवा.... उनमें से एक लोकप्रिय गायक मुकेश का गाया हुआ प्रसिद्ध गाना भी था ....सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीन......। संगीत सलिल चौधरी ने दी थी।
एकाकी रहना , एकाकी फिल्में देखना ,समय व्यतीत करना मुझे बचपन से अच्छा लगता है। शायद यह मेरा शगल है मेरी आदत भी । ना जाने मैंने कितनी फिल्में अकेले ही देखी है। प्रकृति ,खूबसूरती , एकाकीपन से मेरा जन्मों का नाता रहा है। न जाने क्यों पहाड़ , झील ,वादियां, धुंध, चीड़ ,देवदार की कल्पनाशीलता मेरे जीवनचित्र के कैनवास के विषय तथा उनमें भरे जाने वाले शोख़ व चटकीले रंग रहें है। यह फ़िल्म पुनर्जन्म पर आधारित थी इसलिए मुझे यह फ़िल्म देखनी थी । काफ़ी अच्छी लगी थी। क्योंकि मैं भी सौ बार जन्म लेने में विश्वास करता हूं।
नैनीताल ,कुमायूं की पहाड़ियां और यह गाना : सुहाना सफ़र और ये मौसम ....मेरा यह बहुत ही पसंदीदा गाना रहा हैं क्योंकि यह घूमने के दरमियाँ गाया गया है। दिलक़श खूबसूरत अंदाज में फिल्माया गया यह एक गाना है । इस गाने में दिलीप कुमार एक मुसाफ़िर की तरह पहाड़ी वादियों में देवदारों चीड़ के मध्य गाना गाते हुए नज़र आते है। उनकी आवाज़ पहाड़ियों से टकरा कर प्रतिध्वनित होती रहती है। वह बल खाती नदियों , चीड़ और देवदारों से भरे पहाड़ों के मध्य गाने के अंतरा को पूरा करते है।
पता नहीं मुझे बार बार ऐसा क्यों लगता था कि ये पहाड़ी वादियां नैनीताल के आस पास की होनी चाहिए थी । और यह मेरे दिल की कही थी मेरे दिल में कभी कभी यह ख्याल रह रह न जाने क्यों आ रहा था। क्योंकि दृश्य ही ऐसा कुछ मनभावन था, देखा हुआ, समझा हुआ । बचपन से ही न जाने क्यों नैनीताल और कुमायूं की पहाड़ियां से मेरी आसक्ति इतनी क्यों है ? मैं नैनीताल तीन चार दफ़ा आ चुका हूँ। मैंने बड़ी बारीकी से नैनीताल की पहाड़ियां देखी है। भ्रमण किया है। आज इतने दिनों बाद जब मेरे नैनीताल के नवीन समाचार के संपादक मित्र डॉ . नवीन जोशी ने अभिनेता दिलीप साहेब के इंतेक़ाल पर उनकी नैनीताल से जुड़ी यादों को अपने समाचार नवीन समाचार में प्रकाशित किया तो मैं सहज़ ही आहलादित हो गया। मेरी पूर्व की अवधारणाएं सच्ची साबित हो गयी थी। अपने लेख में लिखते हुए कहते है कि दिलीप कुमार दो दफ़ा नैनीताल आए थे जब फ़िल्म मधुमती की शूटिंग हो रहीं थी। शायद दूसरी बार जब वह चुनाव प्रचार के लिए आए थे। उम्मीद करता हूँ जब विमल दा नैनीताल आये होंगे तो उन्हें यहाँ की नैसर्गिक खूबसूरती अत्यंत भायी होगी। तब ही उन्होंने नैनीताल की पहाड़ियों के आस पास इस फिल्म के निर्माण करने की बात सोची होगी। और ऐसा उन्होंने किया भी।
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विमल रॉय ,सलिल चौधरी और मुकेश |
स्मृतियाँ : मैं उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि नैनीताल की उन खूबसूरत उन वादियों में फिल्माए गए उनके उस गाने को याद कर पूरी कर रहा हूं और आपके लिए भी प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसे कि आप भी सुने और देखे। मेरी याद समर्पित है अभिनेता दिलीप कुमार, अभिनेत्री बैजंती माला , ख़लनायक प्राण, हास्य अभिनेता जानी वाकर , साथ ही साथ निर्माता निर्देशक विमल रॉय, संगीतकार सलिल चौधरी ,गीतकार शैलेन्द्र और गायक-गायिका मुकेश ,लता जी के लिए भी जो उस फिल्म मधुमती के अहम सदस्य रहे। जिनके सहयोग से यह फिल्म बनी भी ,खूब चली भी। इसके कर्णप्रिय गाने भी खूब लोकप्रिय बन पड़े । इससे इतर मेरे नैनीताल की यादों के पिटारे में कुछेक बातें और भी जुड़ गयी। यह मेरे लिए अहम और खास थी।
गाना : फ़िल्म मधुमती.
सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीन....
डॉ मधुप रमण.
लेखक, फ़िल्म समीक्षक.
क्रमशः जारी......
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अब पढ़े हिंदी अनुभाग. फ़िल्म ,गाना : रजत पर्दा . पृष्ठ २.खंड २ .
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के सौजन्य से |
यहीं नैनीताल की वादियों में फिल्माए गए थे मधुमती फिल्म के तीन गाने.
' सुहाना सफर और ये मौसम हसीं ', ' चढ़ गयो पापी बिछुवा ', और ' जंगल में मोर नाचा किसी ने ना देखा ' .
देश से पहले विदेश में लांच होने वाली पहली फिल्म थी मधुमती, नैनीताल जनपद के भवाली-घोड़ाखाल के बीच हुई थी मधुमती फिल्म की अधिकांश शूटिंग.
०७ जुलाई २०२१. बुधवार को दिवंगत हुए हिंदी फिल्मों के ‘ट्रेजडी किंग’ दिलीप कुमार के बारे में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने कहा, हिंदी फिल्मी दुनिया के दो ही दौर हैं, दिलीप कुमार से पहले और दिलीप कुमार के बाद।
दो बार नैनीताल आए थे दिलीप कुमार : दिवंगत सिने अभिनेता दिलीप कुमार हालांकि मधुमती फिल्म की शूटिंग के लिए निकटवर्ती भवाली में रहे थे और फिल्म की अधिकांश शूटिंग यहीं भवाली से घोड़ाखाल के बीच वर्तमान उजाला, उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी आदि क्षेत्रों एवं कुछ रानीखेत में हुई थी, लेकिन इस बीच दिलीप कुमार एक बार इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक बिमल रॉय के साथ नैनीताल आए थे और यहां हरि संकीर्तन सभा में आयोजित शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे। इस कार्यक्रम में शामिल रहे तथा ‘भारतीय सिनेमा के १०० वर्ष और नैनीताल’ आलेख लिखने वाले नगर के वरिष्ठ रंगकर्मी के अनुसार इस दौरान दिलीप साहब ने एक शास्त्रीय गीत भी गाया था। बिमल रॉय व दिलीप कुमार द्वारा इस दौरान रजिस्टर में किए गए हस्ताक्षर अभी भी यहां सुरक्षित हैं।
श्री गुरुरानी बताते हैं इसके अलावा दिलीप साथ १९६० -७० के दशक में पंडित नारायण दत्त तिवारी के चुनाव प्रचार के लिए नगर के मल्लीताल स्थित रामलीला मैदान में मधुमती फिल्म के अपने साथी कलाकार जॉनी वॉकर के साथ आए थे। अलबत्ता इसी दौरान उनका स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया था। इस कारण उन्हें यहां से भाषण दिए बिना लौटना पड़ा था। गौरतलब है कि दिलीप कुमार ने पं. तिवारी के लिए १९९१ के चुनाव में नैनीताल लोकसभा का हिस्सा रहे बहेड़ी में चुनावी सभा में भाषण दिया था। पं. तिवारी यह चुनाव हार गए थे। बाद में पंडित तिवारी ने इन पंक्तियों के लेखक के समक्ष अपनी टीस व्यक्त की थी कि दिलीप साहब के संबोधन से हुई एक गलतफहमी के कारण वह यह चुनाव हार गए थे। |
नैनीताल की वादियों में अभिनेता दिलीप कुमार . |
नैनीताल और फिल्में : उत्तराखंड व खासकर नैनीताल के पर्वतीय क्षेत्र भी कह सकते हैं कि यहां के लिए भी फिल्मों के लिहाज से दो ही दौर हैं, एक दिलीप कुमार से पहले और दूसरा दिलीप कुमार के बाद। वास्तव में दिलीप कुमार से पहले का कोई दौर ही नहीं है, क्योंकि इससे पहले यहां किसी भी फिल्म की शूटिंग नहीं हुई थी। लेकिन जैसे ही १९५८ में यहां दिलीप कुमार-वैजयंती माला अभिनीत बिमल रॉय के निर्देशन में मधुमती फिल्म की लगातार छह माह तक शूटिंग हुई, यहां इस फिल्म के तीन गीत- सुहाना सफर और ये मौसम हसीं, चढ़ गयो पापी बिछुवा और जंगल में मोर नाचा किसी ने ना देखा फिल्माए गए और पूरी दुनिया के सामने यहां के पहाड़ों की खूबसूरती सामने आई, यहां फिल्मों की शूटिंग की लाइन ही लग गई और अब तक सौ से अधिक बड़़ी और हजारों छोटी-बड़ी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।
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सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीन. |
पहाड़ी परिवेश, संस्कृति : मधुमती फिल्म न केवल यहां फिल्माई गई थी, बल्कि यह कहना भी गलत न होगा कि यह फिल्म यहीं के परिवेश, संस्कृति में रच बस गई थी। इस फिल्म का पूरे परिवेश, नायिका वैजयंती माला के वस्त्र विन्यास, पहाड़ी घाघरा-पिछौड़ा व गले में हंसुली, जॉनी वॉकर सहित फिल्म में अन्य पुरुषों-महिलाओं का पहनावा आदि बहुत कुछ तत्कालीन कुमाउनी व पर्वतीय लोक संस्कृति से ओत-प्रोत थे।
यही नहीं फिल्म का पार्श्व संगीत गीत एवं नाटक प्रभाग में कार्यरत रहे सत्य नारायण ने तैयार किया था और इसके गीतों में संगीत देने में प्रसिद्ध कुमाउनी गीत ‘बेड़ू पाको बारों मासा’ के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से प्रशंसा प्राप्त कर चुके मोहन उप्रेती और उनकी धर्मपत्नी नईमा खान उप्रेती का भी सहयोग रहा था। फिल्म का गीत ‘ चढ़ गयो पापी बिछुवा ’ तो पूरी तरह से कुमाउनी लोक शैली में भी गाया व फिल्माया गया था। गौरतलब है कि पुर्नजन्म पर आधारित इस फिल्म की पूरी कहानी भवाली में मौजूदा टीआरएच के शीर्ष की पहाड़ी पर बने मिस्टर रे के बंगले के इर्द-गिर्द घूमती है, जहां नायक दिलीप कुमार बारिश के कारण एक रात के लिए फंस जाते हैं, वहां उन्हें अपने पूर्व जन्म की प्रेमिका वैजयंतीमाला की स्मृतियां हो आती हैं, जिसकी हत्या कर दी गई होती है। दिलीप को इस जन्म में भी वैजयंती माला मिल जाती हैं, उसकी मदद से वह पूर्व जन्म में की गई हत्या का बदला लेते हैं। यही कहानी बाद में दीपिका पादुकोण की बॉलीवुड में पदार्पण करने वाली फिल्म ओम शांति ओम में भी दोहराई गई। मिस्टर रे के इस बंगले को वर्ष २०१७ में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने फिल्म संग्रहालय के रूप में विकसित करने का आश्वासन बिमल रॉय की पुत्री रिंकी रॉय भट्टाचार्य को दिया।
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‘ चढ़ गयो पापी बिछुवा ’ गाने में झलकती दिखती कुमाउनी व पर्वतीय लोक संस्कृति. |
कारलोव वैरी अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गयी मधुमती : फिल्म के बारे में यह भी खास रहा कि यह देश में रिलीज होने से पहले चेक गणराज्य के प्राग में आयोजित हुए कारलोव वैरी अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में लांच हुई थी और इसके कुछ माह बाद मुंबई में इसका प्रीमियर हुआ। इस तरह विदेश में लांच वाली देश की पहली फिल्म का रिकॉर्ड भी मधुमती के नाम पर ही है। इस तरह पहली फिल्म में ही नैनीताल और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की खूबसूरती देश से पहले विदेश में देखी गई। साथ ही मधुमती अपने समय की इतनी बड़ी हिट फिल्म साबित हुई कि इसने ९ फिल्म फेयर अवार्ड जीते थे और उसका यह रिकॉर्ड ३७ साल बाद दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे फिल्म १९९५ में ११ फिल्म फेयर जीतकर तोड़ पाई थी।
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जंगल में मोर नाचा किसी ने ना देखा : हास्य अभिनेता जानी वाकर. |
डॉ.नवीन जोशी.संपादक.
नवीन समाचार, नैनीताल.
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अब पढ़े हिंदी अनुभाग. फ़िल्म , गाना : रजत पर्दा . पृष्ठ २.खंड ३ .
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------------------------- के सौजन्य से.
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पहाड़ी के शीर्ष पर मिस्टर रे के बंगले की तलाश.
आख़िर कहाँ है यह बंगला और किस हाल में है ?
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फिल्म में वर्णित हवेली : पहाड़ी के शीर्ष पर बना मिस्टर रे का बंगले का दृश्य. |
गौरतलब है कि पुर्नजन्म पर आधारित इस फिल्म की पूरी कहानी भवाली में मौजूदा टीआरएच के शीर्ष की पहाड़ी पर बने मिस्टर रे के बंगले के इर्द-गिर्द घूमती है,जैसा कि मेरे साथी संपादक डॉ . नवीन जोशी ने अपने समाचार में कहा था। हमने कोशिश कि मिस्टर रे के बंगले की तलाश की जाए आख़िर यह कहाँ और किस हाल में है ? आइए फ़िल्म के घटना क्रम की तरफ़ चलते है एकबारगी कहानी को फिर से याद करते है।
बेहद तूफ़ानी सर्द रात थी वो। बारिश हो रही थी। पहाड़ी रास्ते में धुंध भी छायी हुई थी। बड़ी सावधानी से एक कार सन्नाटे को चीरते हुए अपनी मंजिल की तरफ़ जा रही थी। उस कार में देवेंद्र ( दिलीप कुमार ) अपने साथी के साथ सफ़र कर रहे थे।
अचानक पेड़ गिरने के कारण मार्ग बाधित हो जाता है। और उन्हें पास की हवेली ( मिस्टर रे के बंगले ) में रात्रि कालीन विश्राम के लिए शरण लेना पड़ता है। वह बारिश के कारण एक रात के लिए उस बंगले में फंस जाते हैं, वहां उन्हें अपने पूर्व जन्म की प्रेमिका मधुमती ( वैजयंतीमाला ) की स्मृतियां ताजी हो आती हैं। जहां कभी उस बंगले में उन्हें अपने पूर्व जन्म में नायक आनंद ( दिलीप कुमार ) होने की बात याद आती है कि कभी यहां वो मैनेजर बन कर आये थे ।
कहीं इसी बंगले में उन्होंने दुष्ट राजा उग्र नारायण ( प्राण ) की तस्वीर बनाई थी। उन्हें लगता है यहीं वो वादियां है , यहीं वो जग़ह है जहां वो मधुमती से आकर मिले थे जिसकी हत्या राजा उग्र नारायण ( प्राण ) ने कर दी थी ।
इसी मिस्टर रे के बंगले या कहे मधुमती फिल्म में वर्णित हवेली का मालिक राजा उग्र नारायण ( प्राण ) होता है,जहाँ पूर्व जन्म में आनंद ( दिलीप कुमार ) उनके स्टेट के देख भाल के लिए वह मैनेजर नियुक्त होते है। राजा उग्र नारायण ( प्राण ) की कुदृष्टि मधुमती पर होती है वह धोखे से आनंद को काम के बहाने बाहर भेज कर मधुमती को इस हवेली में बुलाता है और वहीं अपनी इज्जत बचाने के निमित्त हवेली के शीर्ष से कूद कर मधुमती अपनी जान दे देती है।
आनंद ( दिलीप ) को इस पूर्व जन्म में ही दूसरी हमशक्ल माधवी ( वैजयंती माला ) मिल जाती हैं, जिसे वो मधुमती समझ लेते है। और उसकी मदद से वह उस जन्म में ही मधुमती की गई हत्या का बदला राजा उग्र नारायण ( प्राण ) से लेते हैं।
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इसी हवेली के शीर्ष से कूद कर मधुमती अपनी जान दे देती है : फिल्म मधुमती |
बाद में आनंद ( दिलीप कुमार ) राजा उग्र नारायण ( प्राण ) को उसके कुकृत्य की सज़ा पुलिस से दिलवाकर कर स्वयं ( आनंद ) भी उसी हवेली से मधुमती के भ्रमित बुलावे पर दुर्घटना वश शीर्ष से गिर कर अपनी जान दे देते है। ध्यान देने योग्य यह है कि इस काम में भी मधुमती ( वैजयंतीमाला ) दूसरी भूमिका माधवी के रूप में ही उनकी यथेष्ट मदद करती है जब राजा उग्र नारायण मृत्य मधुमती के भय से अपने सारे जुल्म कबूल लेता है ।
राजा उग्र नारायण ( प्राण ) की गिरफ़्तारी भी बड़ी नाटकीय ढंग से उसी हवेली में ही होती है।
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आनंद भी उसी हवेली से मधुमती के बुलावे पर दुर्घटना वश अपनी जान दे देते है
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अभिनेत्री वैजयंतीमाला तिहरी भूमिका में : मधुमती , माधवी और राधा.
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अभिनेत्री वैजयंतीमाला की तिहरी भूमिका : गौर तलब हो , सबसे रोचक तथ्य इस फ़िल्म का यह है कि इस फ़िल्म में अभिनेत्री वैजयंतीमाला तिहरी भूमिका में नज़र आती है। पूर्व जन्म के एक क़िरदार आनंद की प्रेमिका में वह मधुमती , होती है तो दूसरी उसी जन्म में एक सैलानी की भूमिका में माधवी के रूप में परदे पर दिखती है जो राजा उग्र नारायण ( प्राण ) की गिरफ़्तारी में आनंद की मदद मानवता के आधार पर करती है । तीसरी भूमिका में वह इस जन्म में देवेंद्र ( दिलीप कुमार ) की पत्नी के रूप में वह राधा होती है जिसे लाने के लिए देवेंद्र ( दिलीप कुमार ) रेलवे स्टेशन शायद काठ गोदाम जा रहे होते है। डॉ. मधुप रमण
लेखक, फ़िल्म समीक्षक.
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आख़िर कहाँ है यह बंगला.गतांक से आगे १.
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नैनीताल में उतरे बादल और पसरी धुंध : छाया चित्र डॉ . नवीन जोशी |
भुवाली / डॉ. मधुप रमण. / डॉ. नवीन जोशी. / दिवंगत सिने अभिनेता दिलीप कुमार अभिनीत एवं उत्तराखंड में फिल्माई गई पहली फिल्म मधुमती के बारे में जैसे-जैसे जिज्ञासा बढ़ रही थी , यादों के पिटारे भी खुलते जा रहे थे । हम बंगले की तलाश में नैनीताल से आगे भुवाली - घोड़ाखाल जाने वाले थे जो नैनीताल से मात्र नौ दस किलोमीटर की दूरी पर ही था। हमारे साथ थे हमारे परम स्नेही मित्र स्थानीय नवीन समाचार के संपादक नैनीताल के कथा शिल्पी डॉ. नवीन जोशी ।
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डॉ. मधुप रमण. डॉ. नवीन जोशी |
उन्होंने ही हमें बतलाया था १९५८ में यहां दिलीप कुमार - वैजयंती माला अभिनीत बिमल रॉय के निर्देशन में मधुमती फिल्म की लगातार छह माह तक शूटिंग हुई, यहां इस फिल्म के गाने फिल्माए गए थे। और इसी क्रम में दिवंगत सिने अभिनेता दिलीप कुमार मधुमती फिल्म की शूटिंग के लिए निकटवर्ती भवाली में रहे थे हालांकि फिल्म और इसके लोकप्रिय कई एक गानों की अधिकांश शूटिंग यहीं भवाली से घोड़ाखाल के बीच वर्तमान उजाला, उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी आदि क्षेत्रों एवं कुछ रानीखेत में हुई थी। अतःएव हमारी मंजिल थी भवाली से घोड़ाखाल और इसके बाद रानीखेत हमें उन जगहों को देखने परखने की तीव्र आकांक्षा थी। सफ़र की शुरुआत : सुबह का वक़्त था। बादल आकाश में छाए हुए थे। कई दिनों से बारिश हो रही थी। बूंदे जैसी हवा में तिर रही थी। आगे भी इस बरसते भींगते मौसम में कोहरे की बजह से मौसम धुआं धुआं ही हो रहा था। नैनीताल से अल्मोड़ा जाने के रास्ते भुवाली - घोड़ाखाल का हमने रुख किया। २००० मीटर की ऊंचाई पर चीड़ और देवदारों के साथ गुजरते हुए हमने उन एहसास को भी अपने भीतर जिन्दा रखने की भरसक कोशिश की जिसे सन १९५८ में कभी सिने अभिनेता दिलीप कुमार ने इन पहाड़ी रास्तों से गुजरते हुए किया होगा।
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वादियों के दिलक़श नज़ारे |
वाकई खूबसूरत दृश्य था। घाटियों में दिलक़श नज़ारे थे। ठंढ अधिक थी। हवा तीव्र थी। बादलों का आना जाना लगा ही था। जैसे संसार की हर शय में धुंध ही धुंध थी। एकाध घंटे से कम समय में हम भवाली पहुंच चुके थे। सर्वप्रथम आपको बता दे मैं भवाली कम से कम दो बार भ्रमण कर चुका हूं। नैनीताल के पास ही छोटा से पहाड़ी कस्बाई शहर जो फल की विभिन्न मंडियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। खूब जी भरके हमने सबसे पहले फलों के जूस पिए । यहां की भारत प्रसिद्ध टीवी सेनेटोरियम को देखा जिसके बारे मैंने काफी कुछ सुन रखा था ,जहां कभी नेता जी सुभास चंद्र बोस और कमला नेहरू ने टीवी से रुग्णावस्था में अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए अच्छे दिन व समय व्यतीत किए थे । बड़ी शांत व मनोरम जग़ह है यह
भवाली।
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१९५८ के फ़िल्म में दिखती की शिप्रा की धाराएं और मधुमती : आ जा रे परदेशी |
उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी : अल्मोड़ा जाने वाले मार्ग पर हम थोड़ी दूर आगे गए। देखा एक नाला बह रहा था। प्रतीत हुआ यही वो शिप्रा नदी थी या कहे है जहां वैजयंती माला या मधुमती ने आ जा रे परदेशी का गाना गाया था, और आनंद उनकी तरफ़ खीचे चले गए थे। वर्तमान में यह नदी नाले में तब्दील हो चुकी थी , अलबत्ता अब इसे पुर्नजीवित करने के प्रयास भी शुरू हो गए हैं। भवाली के नगरपालिका अध्यक्ष संजय वर्मा की दी गई जानकारी के अनुसार ने फिल्म का काफी हिस्सा, खासकर सुहाना सफर.... गीत भवाली के पास अल्मोड़ा जाने वाले मार्ग पर अपनी तरह की खास उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी के किनारे डाकारौली नाम के स्थान पर फिल्माया गया था। उस जमाने में शायद शिप्रा नदी में काफी पानी होता था या कहे होगा । इस पर एक दर्जन पहाड़ी घराट कही जाने वाली पनचक्कियां भी चला करती थीं। बच्चे इसमें नहाते थे। लेकिन अभी शिप्रा नदी सूखी मिली थी।
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भुवाली तथा नैनीताल के आस पास के बंगले का चित्र : इंटरनेट से साभार . |
बंगले के पीछे : हमने शहर का रुख किया। आस पास ढ़ेर सारे बंगले मिलते है। न जाने क्यों हमें हर एक बंगले में रे के बंगले का गुमान हो जाता है। यह बड़ा ही मुश्किल काम था उस बंगले को खोजना। तभी नवीन ने सलाह दी कि हम भवाली के नगर पालिका अध्यक्ष संजय वर्मा से मिलते है शायद उनसे हमे सारी महत्वपूर्ण जानकारी मिल जाए और सच कहें मिल भी जाती है। उन्होंने हमे बतलाया कि मधुमती फिल्म की अधिकांश शूटिंग नगर में स्थित ‘ मिस्टर रे के बंगले ’ में हुई थी। यह बंगला टूरिस्ट रेस्ट हाउस के ठीक उपर पहाड़ी के शीर्ष पर बना है। फिल्म मधुमती में दिखने वाला यह बंगला करीब १० - १२ बड़े भव्य कमरों वाला है जिसे अंग्रेजी दौर में अंग्रेज सैन्य अधिकारी जनरल वीलर ने बनवाया था। वर्तमान में यहां उनके वंशज रे परिवार के लोग रहते हैं। परिवार के प्रमुख बॉबी रे का कुछ ही समय पूर्व निधन हुआ। उनके बाद उनके दो पुत्र लेस्ली रे व डेनिस रे तथा वेरोनिका ग्रेवाल व मिसेज मेडिली सहित तीन बेटियां इस बंगले के स्वामी हैं। बंगले का कुछ हिस्सा इधर हाल में बिकने की भी अपुष्ट खबर है।
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फ़िल्म में दिखाए गए रे के बंगले के भीतर के दृश्य : मधुमती |
हालांकि विमल राय की पुत्री रिंकी भट्टाचार्य की अभी तक़ की वर्त्तमान कोशिश है कि इस बंगले को मधुमती की याद में म्यूजियम में परिणत कर दिया जाए। इसके लिए भारत के वर्तमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद चिठ्ठी पाती भी लिखी गई है। यदि ऐसा होता है तो हम फ़िल्म के जरिए जो हमारे सामाजिक परिवेश का आइना होता है विरासत को सहेजने का क़ामयाब कोशिश कर सकेंगे। बाद में आने वाली पीढ़ियां , देशी विदेशी पर्यटक भी इस इतिहास के गवाह होंगे।
डॉ. मधुप रमण
लेखक, फ़िल्म समीक्षक.
डॉ. नवीन जोशी
संपादक, नवीन समाचार .
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दिलीप की पहली नैनीताल की यात्रा. खंड ४
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नैनीताल की वादियां और दिखती नैनी झील : छाया चित्र डॉ. नवीन जोशी. |
‘ द सबस्टैंडस एंड द शैडो , मधुमती से पहले भी नैनीताल आ चुके थे दिलीप कुमार.
नैनीताल / डॉ. नवीन जोशी . मधुमती फ़िल्म की १९५८ शूटिंग के पूर्व भी पहले सेब के व्यापारी के रूप में नैनीताल आ चुके थे दिलीप कुमार । दिलीप कुमार की आत्मकथा ‘ द सबस्टैंडस एंड द शैडो ’ में स्वर्गीय दिलीप कुमार ने बताया है कि वह फ़िल्म मधुमती से
भी पहले नैनीताल बतौर एक फल कारोबारी के रूप में आ चुके थे। उनका जन्म पाकिस्तान के पेशावर शहर में हुआ था। उनके पिता लाला गुलाम सरवर खान फलों के बड़े कारोबारी थे। वह और उनका परिवार मुंबई में रहता था।
मुंबई से ही वह फलों का कारोबार करते थे। दिलीप कुमार भी अपने पिता के कारोबार उनका हाथ बंटाते थे। पिता को लगता था कि एक दिन उनका बेटा कारोबार संभालेगा। वह अपने बेटे यूसुफ को धंधे में निपुण बनाना चाहते थे। पहले तो वह मुंबई में उन्हें अपने कारोबार का छोटा-मोटा काम सौंपते थे, लेकिन बाद में उन्होंने नैनीताल में एक सेब के बागीचे को लीज का अनुबंध करने की जिम्मेदारी यूसुफ को सौंपी। यह उनके लिए बतौर कारोबारी पहली परीक्षा थी। इसी सिलसिले में अभिनेता दिलीप कुमार को नैनीताल आना पड़ा था।
अपने पिता द्वारा दी गई जिम्मेदारी को उन्होंने बखूबी निभाया और नैनीताल में एक सेब के बागीचे के लीज का अनुंबध भी हासिल किया। इस डील के लिए उन्होंने अग्रिम भुगतान के तौर पर रुपये भी मिले थे। इस सफलता पर पिता ने उन्हें सराहा भी था। शायद सेब के कारोबार के लिए दिलीप कुमार यूसुफ रामगढ़ - मुक्तेश्वर ही आए होंगे.
इसके बाद ही १९४४ के दौर में उन्होंने दिलीप कुमार के नाम से सिनेमा जगत में दस्तक दे दी। और १४ साल बाद वह १९५८ में एक अभिनेता के तौर पर दुबारा नैनीताल पहुंचे थे। उस समय आलम यह था कि उनकी एक झलक पाने के लिए लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर मधुमती की शूटिंग देखने लोग पहुंचे थे।
डॉ. नवीन जोशी
संपादक , नवीन समाचार
नैनीताल.
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के सौजन्य से. |
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घोडा खाल, रामगढ़, मुक्तेश्वर. खंड ५
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मैं , मेरे हमसफ़र , घोड़ाखाल का मंदिर, ख़ूबसूरत नज़ारे : और मधुमती की तलाश. छाया चित्र संजय |
घोड़ाखाल / डॉ. मधुप रमण. हमने घोड़ाखाल ,रामगढ़ ,मुक्तेश्वर की गलियों की खाक़ छानने की भी सोची क्योंकि इन जगहों की चर्चा फिल्म में हुई थी और हमें जग़ह देखनी थी। सेट्स देखना था।सभ्यता समझनी थी ,और मंदिर आदि की भी तलाश करनी थी। |
डॉ. मधुप रमण. |
घोड़ाखाल : भवाली से पांच किलोमीटर दूर एक छोटा सा सुन्दर पहाड़ी गांव है जो उत्तराखंड में न्यायी देवता गोलू देवता के लिए जाना जाता है । महिलाएं ठीक वैसी वेशभूषा पहाड़ी घाघरा-पिछौड़ा व गले में हंसुली, पहनी हुई दिखी जैसे फिल्म मधुमती में मधुमती दिखी थी।
मंदिर की ख़ोज हुई तो यहां हमें गोलू देवता के मंदिर ही मिले जहाँ घंटियों ही घंटियां बंधी थी। शायद मनोकामना पूर्ण होने के लिए लोगों ने बांधी थी। इसलिए इसे घंटियों के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
नीचे घाटियों में देखने पर सभी जग़ह फिल्म के ही लोकेशंस और सेट्स नज़र आ रहे थे लेकिन वह पूजा स्थल नहीं दिखा जहां वैजयंती माला या मधुमती अपनी मन्नत मांगने आई थी । जहां उनके चढ़ाए गए फूल जमीन पर गिर गए थे।
देखते देखते घोड़ाखाल का प्रसिद्ध सैनिक स्कूल भी मिल गया था।
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मुक्तेश्वर की वादियां और चौली की जाली का दृश्य : फोटो संजय : मैं और मेरे साथी : मधुमती की तलाश में |
रामगढ़ - मुक्तेश्वर : हम आगे की तरफ़ बढ़े रामगढ़ - मुक्तेश्वर की ओर । जहां तक मुझे याद है उन दिनों रामगढ़ तथा मुक्तेश्वर के मध्य में ढ़ेर सारे फलों के बागान तब भी होते थे अभी भी है। जब मैं सन २००८-२०१५ में रामगढ़ आया था तो एक दफ़ा हमने रामगढ़ तथा मुक्तेश्वर का भी भ्रमण किया था। सेबों की लदी ख़ूब सारी डालियाँ देखी थी। कुछ ताजे फल तोड़ कर भी खाए थे । बड़ा मनोरम लगा था रामगढ़ - मुक्तेश्वर। कभी भी सैलानी नैनीताल पर्यटन के लिए आते है , तो स्थानीय टूरिस्ट गाइड पर्यटकों को रामगढ़ मुक्तेश्वर की ओर जरूर ले जाते है तो उन्हें सेबों के अनगिनत बागान दिख जाते है आप भी जब कभी नैनीताल आए तो रामगढ़ - मुक्तेश्वर अवश्य जाए।
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रामगढ़ मुक्तेश्वर के बीच सेब के बागान : चित्र इंटरनेट से साभार. |
रामगढ़ : नैनीताल मुक्तेश्वर मार्ग में ही भवाली से १४ किलोमीटर दूर १७८९ मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है रामगढ़ जो फलों के बागीचे के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसने अपनी खूबसूरती से कभी प्रकृति प्रेमी कवि गुरु रविंद्रनाथ तथा महादेवी वर्मा को प्रभावित किया था।
मुक्तेश्वर : कभी फिल्म निर्माता विमल रॉय मुक्तेश्वर आए थे। आज हम आ गए। रामगढ़ से आगे २५ किलोमीटर दूर २२८६ मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है उत्तराखंड के नैनीताल जिले का सर्वाधिक, शांत ,भीड़ भाड़ से परे एक मनभावन मनोरम स्थल है जहां से हिमालय की हिमाच्छादित सफ़ेद चोटियां भली भांति देखी जा सकती है। जहां सेब ,बेर ,आडू तथा खुबानी के पेड़ बेशुमार पाए जाते है।
मुक्तेश्वर मंदिर : यहां पहाड़ी के शीर्ष पर भगवान शिव के नाम पर बने मंदिर से ही मुक्तेश्वर शहर का नाम मिला। कहते है यहां भोले से मन की मांगी गई मुरादें पूरी होती है। शिव के मंदिर से नयनाभिराम प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन किया जा सकता है।
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मुक्तेश्वर मंदिर और चौली की जाली का दृश्य : फोटो इंटरनेट से साभार |
चौली की जाली : मुक्तेश्वर मंदिर के ठीक पीछे चट्टानों के मध्य ही चौली की जाली जैसी भूआकृति है जो मूलतः हवाओं के नरम चट्टानों के अपरदन से ही बनी है। लेकिन यही आकृति पर्यटकों , निःसंतान दंपत्ति एवं महिलाओं के लिए सर्वाधिक आस्था और कामना का विषय रहा है। ऐसा विश्वास है कि इस जाली को पार कर लेने में संतान सुख निश्चित है। इसलिए हमने यह भी देखा कि बिना किसी सुरक्षा के इंतेज़ामत के
महिलाएं जाली को पार कर रही थी।
भारतीय पशु अनुसन्धान केंद्र : घने देवदारों के जंगल के दरमियाँ इस स्थान को अंग्रेजों ने अनुसंधान शिक्षा संस्थान के रूप में विकसित किया था जो अद्यतन भारतीय पशु अनुसन्धान केंद्र के रूप में जाना जाता है। कभी ब्रिटिश ज़माने में ब्रितानी फौजें रहा करती थी।
मुक्तेश्वर नैनीताल से ५० किलोमीटर , भवाली से ४० किलोमीटर तथा रामगढ़ से २५ किलोमीटर दूर स्थित है इसका निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है।
डॉ. मधुप रमण
फ़िल्म समीक्षक.
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नैनीताल और बिमल रॉय .खंड ६
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इस तरह शूटिंग के लिए नैनीताल आया बिमल रॉय की नजर में.
मुक्तेश्वर / डॉ. नवीन जोशी. बिमल रॉय अक्सर मुक्तेश्वर आते थे। यहां उनके जीजा भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान ( आइवीआरआइ ) मुक्तेश्वर में नौकरी करते थे। इसलिए बिमल अपनी दीदी के परिवार से मिलने के यहां आते रहते थे।
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बिमल रॉय |
इस दौरान व अक्सर नैनीताल भी घूमने आते थे। उन्हें इस क्षेत्र का सौंदर्य एक नजर में भा गया था। इसीलिए बंगाल के सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार विमल राय ने यह लगभग तय कर लिया था कि नैनीताल की पृष्ठभूमि पर कोई फिल्म बनायेंगे। वह बाद में पूरी यूनिट लेकर मधुमती की शूटिंग के लिए नैनीताल आए थे।
भवाली ,घोड़ाखाल ,भीमताल तथा रानीखेत के आस पास के नैसर्गिक सौंदर्य को उन्होंने अपने फ़िल्म में दिखाने की अपनी कल्पना को साकार किया। और एक बेहद सफ़ल फ़िल्म बना डाली। इस फ़िल्म ने सफलता के कई रिकॉर्ड बना डाले। इस फिल्म की कमाई से ही बिमल रॉय अपनी पहले बनी फ्लॉप फ़िल्म देवदास के घाटे से उबर सके। बिमल रॉय की फिल्म मधुमती के बाद ही नैनीताल की ख़ूबसूरती कई फिल्मकारों को दिखी और उन्होंने नैनीताल को दर्शाना शुरू किया।
हालाँकि नैनीताल में छह महीने की शूटिंग के उपरांत जब बम्बई के लैब में शूट की गई रील की निगेटिव देखी गई तो अधिकांश हिस्सा कोहरे एवं धुंध की बजह से स्पष्ट नहीं थी। फ़िल्म की आउटडोर शूटिंग में इतना ख़र्च ही हो गया था कि विमल राय फ़िर से नैनीताल जाकर शूटिंग करने की सोच नहीं सके। लिहाज़ा बाद में नैनीताल के परिदृश्य जैसे फ़िल्म के सेट्स का निर्माण बम्बई के आस पास नासिक के इलाके में किया गया और शेष फ़िल्म की शूटिंग वहीं पूरी की गई।
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नैनीताल में मेरा प्रवास : भवाली का नैसर्गिक सौंदर्य : छाया चित्र डॉ. सुनीता |
मैंने जब कभी भी नैनीताल में सन १९९८ ,२००८ ,२०१५ के सालों में कुछेक दिनों के लिए प्रवास किया तो पाया नैनीताल सही में पर्यटकों , कवि ,लेखक ,चित्रकारों एवं फिल्म निर्माताओं के लिए एक पसंदीदा पर्वतीय सैरगाह है।
नैनीताल में चहलक़दमी करते हुए तो कई एक फिल्मों यथा ,गुमराह ( १९६३ ) , कौन अपना कौन पराया
( १९६३ ) गाना ,जरा सुन हसीना ये नाजनीन , शगुन ( १९६४ ), वक़्त ( १९६५ ) , भींगी रात ( १९६५ ), कटी पतंग ( १९७१ ) ,अभी तो जी ले ( १९७७ ) ,कोई मिल गया ( २००३ ), सिर्फ़ तुम ( १९९९ ) के गाने की शूटिंग के लोकेशंस तो मुझे सामने ही दिख गए थे।
यहीं पर न जाने कितने फिल्मों और उनके मशहूर गानों की शूटिंग हुई है । कुछ तो मेरी जेहन में अबतक़ हैं जैसे ...इन हवाओं में इन फिज़ाओं में ...फ़िल्म गुमराह, दिन है बहार के , फ़िल्म वक़्त, ...पर्वतों के पेड़ों पर ...फिल्म शगुन, ...जिस गली में तेरा घर न हो ..फ़िल्म कटी पतंग ,..तू लाली हैं सवेरे वाली ..फ़िल्म अभी तो जी लें, पहली पहली बार मुहब्बत की है फ़िल्म सिर्फ़ तुम आदि।
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देवदारों से घिरे रानीखेत का नयनाभिराम दृश्य : सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं : छाया चित्र डॉ. सुनीता |
सह लेखक डॉ. मधुप रमण
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बिमल रॉय और यशोदा आर्या. वो कौन थी . खंड ७
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जब गेठिया की बेटी बनीं दिलीप कुमार की हीरोइन.
भुवाली की चीड़ भरी वादियों में उतरे बादल : डॉ.सुनीता
भवाली / डॉ. नवीन जोशी . फ़िल्म निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है। यहां फ़िल्मकार की कल्पना ,संपादन और आपकी आँखों के भ्रम का जबरदस्त इस्तेमाल होता है। जब आप फिल्में बनती देखेंगे तो आप ऊब
जायेंगे लेकिन जो कुछ भी आपके सामने अंत में रजत परदे पर प्रस्तुत किया जाता है आप ३ घंटे के लिए ही सही किसी दूसरी मायावी दुनियां में खो जाते है।
जब आप किसी फ़िल्म निर्माण के बारे में जानेंगे तो आपको दिखेगा स्टंट तथा जोख़िम भरे सीन को निर्माता निर्देशक डुप्लीकेट पर आज़माते है। ऐसा कुछ फ़िल्म मधुमती में भी हुआ।
स्थानीय निवासी और भीमताल के ब्लॉक प्रमुख डॉ. हरीश बिष्ट ने भी पुराने लोगों से सुनी बातों के आधार पर बताया कि यहां के गांव गेठिया की एक लड़की को कुछ दृश्यों के लिए ही सही, दिलीप कुमार की हीरोइन बनने का मौका मिला था। यह लड़की थी यशोदा आर्या। हुआ यह कि गेठिया सैनिटोरियम के पास चीड़धार में शूटिंग के दौरान एक दृश्य में अभिनेत्री वैजयंती माला को पहाड़ पर दौड़ना था।
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इन्हीं लोगों में से एक है यशोदा आर्या : मध्य में दिलीप कुमार |
लेकिन वैजयंती माला दृश्य के लिए जरूरी तरीके से पहाड़ पर दौड़ नहीं पा रही थी। इस दौरान निर्देशक बिमल रॉय की निगाह पास खड़ी गेठिया गांव की एक बेटी यशोदा आर्या पर पड़ी, जिसे उन्होंने वैजयंती माला की जगह दौड़ाकर सीन शूट किया। पल भर के लिए ही सही जब गेठिया की बेटी यशोदा आर्या को दिलीप कुमार की हीरोइन बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस दौरान दिलीप कुमार ने गांव वालों के साथ फोटो भी खिंचवाई थी, इस फोटो में यशोदा आर्या मौजूद बताई जाती हैं। इसलिए इस फोटो कुछ लोगों ने आज भी सहेज कर रखा है।
हमने गेठिया सैनिटोरियम की बात सुनी थी। चीड़धार जैसी जगह का ज़िक्र था। बड़ी बारीकी से मैंने भवाली देखी थी। दो दफ़ा मैं यहाँ आ चुका हूं। सोचा भवाली के सैनिटोरियम के क़रीब जाकर वहां चीड़धार का मुआयना किया जाए। हमें एक सैनिटोरियम मिला था जो शांत और अत्यंत रमणीक जगह में था। जहां टीवी के रोगियों का इलाज ब्रिटिश ज़माने में होता था। वहां चीड़ और देवदार के अनगिनत पेड़ भी दिखे थे। प्राकृतिक खूबसूरती भी अप्रतिम थी। शायद इसी सैनिटोरियम के आस पास की शूटिंग की जगह रही होगी।
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ब्रिटिश काल में निर्मित भुवाली का टीवी सैनिटोरियम : देवदार : छाया चित्र डॉ सुनीता |
सह लेखक. डॉ मधुप रमण.
लेखक, फ़िल्म समीक्षक.
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सौजन्य से. |
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फ़िल्म में वर्णित बायीं तरफ़ कोई झील : भीम ताल . खंड ८
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भीम ताल / डॉ मधुप रमण. फ़िल्म मधुमती के प्रारम्भ में ही जब दिलीप कुमार बारिश की रात में रात भर के आसरे के लिए रे के बंगले में ठहरते है , तो उस तूफानी रात में अपने पूर्व जन्म की बात याद करते हुए अपने साथी से बायीं तरफ़ किसी झील के दिखने की बात करते है। कहीं वो भीमताल तो नहीं थी । क्योंकि मुझे भी याद है जब हम घोड़ाखाल के गोलू देवता के मंदिर के दर्शन कर रहे थे तो वहां हमें आस पास बायीं तरफ़ एक झील दिखी भी थी।
स्थानीय पंडित ने उस तो इशारा करते हुए बतलाया था भीम ताल है। जहां तक हमारा दिशा ज्ञान था घोड़ाखाल से कम कम नैनी झील तो नहीं दिख सकती है। क्योंकि दिशा उलटी पड़ जाती है।
फिर हमारे समक्ष स्थानीय निवासी और भीमताल के ब्लॉक प्रमुख डॉ. हरीश बिष्ट के द्वारा कही कुछेक बातें भी हुई थी जिसमें वह गेठिया की यशोदा आर्या की बात कर रहे थे । सोचा उस ताल को भी देख लेते है। भीमताल एक ताल है जो भवाली ,नैनीताल में ही है। इसलिए हमने भीम ताल के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी इकठ्ठी करने के लिए झील की तरफ़ रुख किया।
शीघ्र ही हम भीम ताल के नजदीक थे। १३७० मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित इस झील के पास उमस थी थोड़ी गर्मी भी। नैनीताल की ऊंचाई थोड़ी ज्यादा है इसलिए वहां ठंढ का एहसास कहीं अधिक होता है ।
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फ़िल्म में वर्णित बायीं तरफ़ कोई झील : भीम ताल . छाया चित्र डॉ. नवीन जोशी |
नैनीताल से २२ किलोमीटर पूर्व या काठगोदाम से १० किलोमीटर उत्तर में तीनों तरफ़ से पर्वतों से घिरी हमें कुमाऊं की सबसे बड़ी झील मिलती है जिसे लोग नाम से भीम ताल के नाम से जानते है। कहते है अज्ञात वास में जब पांडव यहां आए थे तो उन्होंने यहां कुछेक दिवस व्यतीत किए थे। पाण्डु पुत्र भीम ने यहाँ भगवान शिव की तपस्या भी की थी। शायद इसलिए इस ताल का नाम भीमताल पड़ा। जिसकी आकृति त्रिभुज जैसी है ।
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झील के उस पार : भीम ताल . चित्र इंटरनेट से साभार |
भीमताल : १६७४ मीटर लम्बाई ,४४७ मीटर चौड़ाई, तथा २६ मीटर की गहराई वाली यह झील बाकई विशाल काय झील है , जिसका जल गहरे नीले रंग में दिखता है। तथा मध्य भाग में प्राप्त एक टापू पर एक रेस्टूरेंट बना हुआ है जहां सैलानी नौका के जरिए जा सकते है । पर्यटकों के लिए नौका विहार की सुविधा उपलब्ध है। यहां खिलते हुए आप कमल के फूल देख सकते है।
मैंने देखा भीम ताल के पास भी अच्छी ख़ासी आबादी हो गयी थी धीरे धीरे छोटा कस्वां नैनीताल के एक उपनगर में तब्दील हो गया था ।
भीमेश्वर महादेव मंदिर : कुमाऊं क्षेत्र में आने के पश्चात अल्मोड़ा के राजा बाज बहादुर चंद ने सत्रहवीं शताब्दी में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर का निर्माण करवाया था जो आज भी दर्शनीय है। आप भी जब कभी नैनीताल आए तो भीमताल जरूर जाए। आने जाने ,खाने पीने ,रहने सहने में आपको कहीं भी दिक्कत महसूस नहीं होगी।
डॉ मधुप रमण.
लेखक, फ़िल्म समीक्षक.
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के सौजन्य से. |
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फ़िल्म मधुमती के रोचक तथ्य : पर्दे के पीछे. खंड ९
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दिलीप कुमार , बैजंती माला , प्राण, तिवारी ,जानी वाकर ,जयंत जैसे सितारों से बनी निर्माता निर्देशक विमल रॉय की फिल्म मधुमती एक सुपरहिट संगीतमय फ़िल्म साबित हुई थी। यह फिल्म १२ सितम्बर १९५८ को सबसे पहले बम्बई में ओपेरा हाउस के निकट रॉक्सी सिनेमा में दिखलाई गई बाद में देश के सिनेमा घरों में रिलीज़ की गयी थी। ४४ लाख की लागत में बनी इस फ़िल्म ने कुल देश विदेश में लगभग ४ करोड़ की कमाई की थी। यहां तक इस फ़िल्म की अभूतपपूर्व सफलता , रिकार्ड तोड़ कमाई ने विमल रॉय की पुरानी दिलीप कुमार अभिनीत फ़िल्म देवदास जो एक बुरी तरह फ्लॉप फ़िल्म साबित हुई थी न केवल असफलता के दाग धो दिए थे बल्कि बेहतर कमाई करते हुए उन्हें नुकसान से नफ़ा के कगार पर पहुँचा दिया था।
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विमल रॉय ,सलिल चौधरी ,रीतिविक घटक एवं राजेंद्र सिंह वेदी |
चर्चित सितारों से सजी इस फिल्म में अभिनेता दिलीप कुमार ,वैजयंती माला , प्राण ( राजा उग्र नारायण ),जॉनी वॉकर ( चरणदास ) , तिवारी ( वीर सिंह ) , जयंत ( पान राजा ) ,जगदीश राज ( पुलिस कप्तान ) ने अपनी अपनी भूमिका को जीवंत किया था। जहां अभिनेत्री , वैजयंती माला ने तिहरी भूमिका यथा ( मधुमती ,माधवी ) तथा राधा के नाम से निभाई थी तो दिलीप कुमार दोहरी भूमिका आनन्द तथा देवेंद्र बतौर इस फिल्म में दिखे। सबसे बड़ी दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म में ने वैजयंती माला ने अपनी असली ज्वेलरी पहनी थी और इस फ़िल्म की कॉस्टयूम ( पोशाक ) अभिनेत्री वैजयंती माला की दादी यदु गिरी देवी ने निश्चित किया था जिसमें कला निर्देशक शुभेंदु रॉय ने भी अपनी सहमति दी थी।
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दिलीप कुमार ,वैजयंती माला , प्राण ,जॉनी वॉकर , तिवारी, जयंत, जगदीश राज : मधुमती के सितारें |
इस फ़िल्म की स्क्रीन प्ले तथा कहानी ऋतिक घटक ने लिखी थी और इसके संवाद मशहूर कथाकार राजेंद्र सिंह वेदी ने उर्दू में ही लिखी थी। जिसमें संगीत दिया था सलिल चौधरी ने ,गीतकार थे शैलेन्द्र और पार्श्व गायन मुकेश ,रफ़ी , लता, मन्ना डे ,तथा मुबारक़ बेगम ने किया था। हालांकि सलिल चौधरी के पहले संगीत देने के लिए सर्वप्रथम मनोहर सिंह को चुना गया था लेकिन बाद में किसी कारणवश वे अपने दायित्व को पूरा नहीं कर सके।
इस फिल्म में ४० मिनट ३० सेकंड तक के कुल ११ गाने थे जिनमें कुछ गाने अति लोकप्रिय और मधुर बने थे। जैसे सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं ( मुकेश ) , आ जा रे परदेशी ( लता ), जुल्मी संग आँख लड़ी ( लता ) , चढ़ गयो पापी बिछुवा ( लता ) , घड़ी घड़ी मोरा दिल धड़के ( लता ) , दिल तड़प तड़प के कह रहा है ये सदा ( लता मुकेश ) ,टूटे हुए ख्वाबों ने ( रफ़ी ),जंगल में मोर नाचा ( रफ़ी ), तुम्हारा दिल हमारे दिल के बरावर हो नहीं सकता ( मुबारक़ बेगम ) आदि गाने अभी भी गुनगुनाये जाते है।
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मुकेश ,रफ़ी मन्नाडे ,लता और मुबारक बेगम : इंटरनेट से साभार |
विमल रॉय चूंकि मुक्तेश्वर आते जाते रहते थे ,उन्हें यहां नैनीताल ,भुवाली ,रानीखेत की प्राकृतिक छटा भा गयी थी इसलिए मधुमती फिल्म की शूटिंग के लिए भवाली निकटवर्ती घोड़ाखाल के बीच स्थित वर्तमान
उजाला, उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी आदि क्षेत्रों एवं कुछ रानीखेत को चुना था । हालांकि नैनीताल तथा आस पास में ६ महीने की शूटिंग के बाद फ़िल्म के कुछ हिस्से को सही न पाते हुए नासिक के आस पास इगतपुरी में पुनः शूट किया गया था। क्योंकि नैनीताल की आउटडोर शूटिंग में ही इतना ख़र्च हो गया था कि विमल रॉय फिर से नैनीताल जाकर दुवारा शूटिंग की बात सोच नहीं सके। इसलिए पहाड़ों से मिलते जुलते सेट्स आर्ट डायरेक्टर शुभेंदु रॉय की देखरेख में नासिक तथा वैतरणा डैम में ही बनाये गए थे। देवदार जैसे नकली पेड़ भी खड़े किये गए थे जिससे ऐसा प्रतीत हो कि हम नैनीताल की वादियों में हो।
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नैनीताल , भवाली , भीम ताल , रानीखेत का सौंदर्य |
यदि हम इस फ़िल्म के इन लोकप्रिय गाने , सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं ( मुकेश ) , आ जा रे परदेशी ( लता ), जुल्मी संग आँख लड़ी ( लता ) , चढ़ गयो पापी बिछुवा ( लता ) , घड़ी घड़ी मोरा दिल धड़के ( लता ) , दिल तड़प तड़प के कह रहा है ये सदा ( लता मुकेश ) को पर्दे पर बार बार देखे तो नैनीताल , भवाली , भीम ताल , रानीखेत का सौंदर्य ही बैकड्रॉप में नज़र आएगा।
इस फ़िल्म के स्टार्स पहले से ही तय थे। दिलीप कुमार ने इस फ़िल्म में काम करने की ख़ुशी पहले ही जाहिर कर दी थी क्योंकि विमल राय की फिल्म देवदास में बतौर अभिनेता वह पहले भी काम कर चुके थे । हालांकि वैजयंती माला ने यह फ़िल्म तभी स्वीकारी जब तक विमल रॉय ने राजा उग्र नारायण के किरदार के लिए प्राण को नहीं चुन लिया।
उल्लेखनीयतः इस फिल्म ने फिल्म फेयर के ९ अवार्ड हासिल किए थे जिसे ३७ साल बाद सन १९९५ में यश चोपड़ा की फिल्म दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे ने सर्वाधिक १० अवार्ड ले कर इसका रिकॉर्ड तोड़ा था।
डॉ. मधुप रमण.
लेखक, फ़िल्म समीक्षक.
क्रमशः जारी ....
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फ़िल्म मधुमती के अंतिम पड़ाव में : रानीखेत . खंड १०
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रास्तें में पहाड़ी ढलानों पर चीड़ और देवदार के घने जंगल छाया चित्र डॉ. सुनीता
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रानीखेत / डॉ. मधुप रमण. रानीखेत की दृश्यावली अब हमें बुला रही थी। इस सुहाने फ़िल्मी सफ़र में हम बढ़ चले रानीखेत की ओर क्योंकि रानीखेत ही हमारा आख़िर पड़ाव था । नैनीताल रानीखेत अल्मोड़ा भ्रमण करने का एक विशिष्ट त्रिकोणीय आकर्षण है आप जब कभी भी जाये तो इन तीन सैरगाहों को अवश्य देख ले। एकदम पास में ही है।
अल्मोड़ा जनपद में १८६९ मीटर की ऊंचाई पर रानीखेत मूलतः एक फौजी छावनी है जिसे अंग्रेजों ने साल १९०९ में स्थापित किया था। बाद में यह कुमाऊं रेजिमेंट का मुख्यालय बन गया। सर्वत्र देवदारों से घिरे रहने ,हिमच्छादित हिमालय चोटियों के दिखने की बजह से यह उत्तराखंड का शांत रमणीक व पसंदीदा बन गया। हम कुछ घंटे के उपरांत रानीखेत पहुंच चुके थे।
स्थानीय लोकगाथा के अनुसार रानीखेत अप्रतिम सुन्दर स्थल है कम से कम एक बार घूमने लायक अवश्य है ,यह वो शांत, सुन्दर स्थल है , जो बरबस ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती रही है ।यहां की खूबसूरती ने स्थानीय कत्यूरी राजा सुधरदेव की रानी , पद्मिनी का मन मोह लिया था। उनको यह जगह इतनी अच्छी लगने लगी कि वह यहाँ आकर अक्सर ठहरने लगी । इसलिए रानी के पसंदीदा स्थल होने के निमित इस का नाम रानीखेत हो गया।तभी से इसे क्वींसलैंड यानी रानीखेत कहा जाने लगा हालाँकि यहाँ राजघराने से जुड़े कोई महल नहीं है ।लगाव वश इस स्थान को रानी के पड़ाव के रूप में विकसित कर कत्यूरी राजा सुघर देव ने अपनी रानी का दिल जीत लिया था।
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रानीखेत शहर व खड़ी बाज़ार : छाया चित्र डॉ मधुप |
यहाँ से नैनीताल ,अल्मोड़ा ,बिनसर ,कौसानी , पिंडारी ग्लेशियर आदि भी जाया जा सकता है । नैनीताल से मात्र ५६ किलोमीटर दूर है रानीखेत जिसे हमने इत्मीनान से डेढ़ से दो घंटे में मुकम्मल किया । पहाड़ी ढलानों पर चीड़ और देवदार बिखरे पड़े थे। कई बार हमने अपनी गाड़ी रोकी ,नीचे उतरे, तनिक रुक गए ,घाटियां देखी , कल्पना के बादल में जैसे खो गए । आम खास को तो सभी पहाड़ियां एक जैसी ही दिखती है ना । वही चुप्पी वही चिर शांति । हर जग़ह मुझे जैसे मधुमती थी आनन्द और राजा उग्रनारायण दिखते थे । रानीखेत पहुंचते ही हमने रेस्टुरेंट में पहले खाना खाया और निकल पड़े दृश्यम की तलाश में।
खड़ी बाजार : रानीखेत का स्थानीय बाजार छोटा और सीमित है जो खड़ी बाजार के नाम से जाना जाता है दरअसल भौगोलिक दशा में एक ओर से उठे रहने के कारण है इसका नाम खड़ी बाजार पड़ा। इस बाजार के दोनों और दुकानें सजी मिलती है जो सैलानियों को अपनी तरफ खींचती है , तथा जहां से आप काष्ठ कला के निर्मल सुंदर कलात्मक वस्तुएं खरीद सकते हैं।
रानीखेत के प्रमुख दर्शनीय स्थलों यथा चौबटियां , सेबों के बागीचे ,मनोकामना मंदिर ,रानी झील, बिनसर महादेव , सेंट ब्रिजेन्ट चर्च , कुमाऊं रेजिमेंटल सेंटर ,को हमने बड़ी बारीक़ी से देखा
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रानीखेत की दृश्यावली अब हमें बुला रही थी : छाया चित्र डॉ. सुनीता
गतांक से आगे रानीखेत १.
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दर्शनीय स्थल गोल्फ का मैदान ( उपट ) : अब हम सभी रानीखेत में अंतरराष्ट्रीय गोल्फ मैदान के करीब थे रानीखेत शहर से ६ किलोमीटर दूर है ,९ छिद्रों वाला गोल्फ का विशाल मैदान, जो पर्यटकों के प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। पहुंचने पर मालूम हुआ बड़ी मनोरम जग़ह है।
चारों ओर देवदारों ,चीड़ के फैले पेड़ आकर्षण का प्रमुख केंद्र थे ,बीच से शांत मगर सुनी सड़क गुजर रही थी। ट्रैफिक की आवाजाही न्यून थी। यहाँ आकर सच में अपनी आँखों को यकीन हुआ कि फिल्म के निर्माता निर्देशक ने यहाँ की सुन्दर दृश्यावली कैमरे में जरूर कैद किया होगा। पार्श्व में बना कॉटेज नुमा घर अत्यंत मनभावन लग रहा था। आस पास का नजारा दिलक़श था ।
चौबटिया : जैसा कि नाम से जाहिर है यहां फलों के चार बगीचे है। खास तौर पर यह स्वादिष्ट सेब के बगीचे के लिए जाना जाता है। मैंने भी इसे देखा , इस बगीचे में सेबों की बेहतरीन किस्में उगाई जाती हैं यहां उत्तराखंड सरकार का उद्यान एवं फल अनुसंधान केंद्र भी देखने योग्य है। पास में जलप्रपात भी है। सैर सपाटे तथा पिकनिक के लिए।
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रानीखेत चारगाहों के मध्य से गुजरती सड़क : छायाचित्र डॉ. मधुप |
ताड़ी खेत रानीखेत से ८ किलोमीटर की दूरी पर यह स्थान गांधी आश्रम के लिए विशेषतः जाना जाता है जहाँ गांधी जी ने अपना कुछ समय बिताया था।
द्वारहाट : रानीखेत से ३७ किलोमीटर दूर कर्णप्रयाग मार्ग पर द्वारहाट मिला जो एक पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व की जगह है दर्शनीय भी है। कभी यह स्थल अल्मोड़ा में कत्यूरी शासन का केंद्र रहा था यहां स्थापत्य और मूर्तिकला के बेजोड़ उपलब्ध कई एक नमूने प्राप्त है। द्वाराहाट की कुमाऊं होली भी बहुत ही मशहूर है।
शीतला खेत : देश-विदेश के पर्यटक यहां ऊंचाई से आसपास के नजारों का आनंद लेने के लिए यहां ठहरते हैं शायद इसलिए शीतला खेत को लोग पर्यटक गांव भी कहते हैं बाग बगीचे और औषधीय पौधों के सघन वनों से घिरा या क्षेत्र रानीखेत से ३५ किलोमीटर दूर है।
दूना गिरी : द्वाराहाट से लगभग १४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित दून गिरी से आप परिचित होंगे यह एक पौराणिक पर्वत है जो अल्मोड़ा जिले में है।
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मजखली का प्राकृतिक सौंदर्य : चित्र इंटरनेट से साभार |
मजखली : रानीखेत अल्मोड़ा मार्ग पर एक खूबसूरत सैरग़ाह है जहाँ से पर्यटक हरे भरे विस्तृत सीढ़ीदार खेतों , पसरे जंगलातों एवं हिमशिखरों का अनुपम मोहक नजारों का भरपूर आनंद उठा सकते है। उत्तराखंड आये अतुलनीय है।
डॉ.मधुप रमण.
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कुमाऊं का एक अत्यंत प्राचीन शहर अल्मोड़ा : वापसी. खंड ११.
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यहां से हिमालय की हिम से ढ़की चोटियां स्पष्ट दिखती है : चित्र राज किशन अल्मोड़ा |
अल्मोड़ा / डॉ.मधुप रमण. रानीखेत अल्मोड़ा जिले में पड़ता है। रानीखेत से लौटते समय हमने सोचा कि जिला मुख्यालय अल्मोड़ा को भी हम देख लें जो भौगोलिक दशा में नैनीताल से उत्तर दिशा में है ।अल्मोड़ा के देख लेने के बाद ही मधुमती की तलाश पूरी होती।
कुमाऊं का एक अत्यंत ऐतिहासिक प्राचीन शहर है अल्मोड़ा । साल २००८ में जब हम नैनीताल से कौसानी जा रहे थे तो हमारे टैक्सी ड्राइवर ने फिल्म आंधी का एक गाना बजा दिया था एक मोड़ से जाते है..... तब हम अल्मोड़ा नहीं देख पाए थे।
अगली दफ़ा २०१५ में आए तो अल्मोड़ा अवस्थित जागेश्वर के प्राचीन , पुरातात्विक और ऐतिहासिक मंदिर देखने की सोची। देखा भी। उस दरमियाँ ही कुमाऊं के इस प्राचीन ऐतिहासिक शहर अल्मोड़ा का भ्रमण भी किया , इस के बारे में हमने महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी इकट्ठी की। हालांकि हम अल्मोड़ा दो से तीन बार जा चुके हैं और हमने आसपास की प्राकृतिक सुषमा और सौंदर्य का भी अवलोकन किया है।
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अल्मोड़ा की कोशी नदी में शाही स्नान : चित्र विदिशा |
कोशी नदी : अल्मोड़ा से १३ किलोमीटर दूर है। रास्ते में जब कभी भी आप नैनीताल से अल्मोड़ा की तरफ आ रहे होते हैं तो कोशी नदी मिलती है। हमे भी मिली थी। हमने नीम करोली आश्रम के पास ठहर कर ठंढ़े पानी में स्नान भी किया था। कोशी के किनारे का प्राकृतिक सौंदर्य को हमें मंत्रमुग्ध कर रहा था।शहर के शोरगुल से दूर प्राकृतिक परिवेश में कुछ क्षण गुजारने वालों के लिए यह एक उपयुक्त जगह है। यहां केंद्र सरकार का गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान है जो मध्य हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण संबंधित शोध को बढ़ावा देता है।
बताते चलें कुमाऊं के इस अति प्राचीन शहर अल्मोड़ा की जलवायु सम है सालों भर आपको अच्छा लगेगा । यह एक विशुद्धतः देशी भारतीय हिल स्टेशन के रूप में विदित है यहां का माहौल अपने इर्द-गिर्द के प्राकृतिक सौंदर्य से साम्य स्थापित कर सैलानियों को कुछ इस तरह अतिरेक आनंद की अनुभूति देता है जिसे हम सिर्फ बरसों संजो कर रख सकते हैं।
५ किलोमीटर लंबी अर्ध गोलाकार पहाड़ी पर १६०४ मीटर की ऊचांई पर बसे अल्मोड़ा से चीड़ ,देवदार के वृक्षों से ढकी सुंदर पहाड़ियों को आप खुल कर निहार सकते हैं। मौसम हर साल सुहावना ही रहेगा। बता दे यहां से हिमालय की हिम से ढ़की चोटियां स्पष्ट दिखती है जहां से हमारा प्रकृति से सीधा साक्षात्कार होता है।
इतिहास : १५६३ ईस्वी में अल्मोड़ा को बसाने का श्रेय राजा बालों कल्याण चंद को जाता है जहां ९ वी सदी में कत्यूरी वंश के शासक का था १६ वीं शताब्दी के मध्य तक चंद्रवंशी राजाओं का शासन रहा। १७९० में गोरखाओं ने इस पर अपना अधिकार कर लिया था। अंग्रेजों ने देश की अन्य रियासतों की तरह १८१५ में अल्मोड़ा को अपने कब्जा में कर लिया था। और उस दौर की स्मृतियाँ ,यादों को आज भी यह शहर शेष रखे हुए हैं।
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अल्मोड़ा के दर्शनीय स्थल भाग १
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ब्राइट एंड कॉर्नर : जागेश्वर से लौटते समय हमने अल्मोड़ा बस स्टैंड से २ किलोमीटर की दूरी पर यह जगह सूर्योदय और सूर्यास्त के मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध जगह देखी , जहां लोग अमूमन सूर्य का उदय और अस्त होने को देखने आते है।
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ब्राइट एंड कॉर्नर : रामकृष्ण कुटीर. फोटो इंटरनेट से साभार
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रामकृष्ण कुटीर के विवेकानंद पुस्तकालय में उपलब्ध हमने अध्यात्मिक साहित्य व किताबें भी पढ़ी। पास ही में विवेकानंद स्मारक निर्मित है जहां हमें यह संस्मरण हो जाता है कि स्वामी विवेकानंद अपनी यात्रा के दौरान रुके थे।
गोविंद बल्लभ पंत राजकीय संग्रहालय : दर्शनीय स्थलों में अल्मोड़ा के आप राजकीय संग्रहालय को देख सकते हैं। बस स्टैंड के पास में ही अल्मोड़ा का प्रसिद्ध गोविंद बल्लभ पंत राजकीय संग्रहालय है जहां आप विभिन्न स्थानों की खुदाई में प्राप्त प्राचीन प्रतिमाओं तथा स्थानीय लोक कलाओं के नमूनों को देख सकते हैं। संग्रहालय सोमवार व सरकारी छुट्टियों के छोड़ कर हर दिन कार्यालय अवधि तक के लिए खुला रहता है।
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कसार देवी : गोविंद बल्लभ पंत राजकीय संग्रहालय . फोटो इंटरनेट से साभार |
कसार देवी : अल्मोड़ा के आस पास ३ किलोमीटर के दायरें में ही कसार देवी के नजदीक देवदार और चीड़ के मध्य ढ़ेर सारे अंग्रेजों के शानदार बंगले बने हैं। यहां से कालीमठ तक की दूरी यदि आप पैदल तय करते है तो घूमने का सही आनंद ले सकते हैं। देवी की कृपा भी प्राप्त कर ले ,बड़ी शांत जगह है यह और यहां से हिमालय की चोटियों का अद्भुत दृश्य नजर आता है। ठंढ़ी हवा के झोंकें आप का साथ देगी। गोलू देवता, चित्तई तथा नंदा देवी का मंदिर भी दर्शनीय स्थल है।
डियर पार्क : भीड़ भाड़ कोलाहल वाले स्थान से दूर अल्मोड़ा के बस स्टैंड से ३ किलोमीटर की दूरी पर डियर पार्क बना है जिसके देखने का पृथक ही आनंद है।
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डियर पार्क : मार तोला . फोटो इंटरनेट से साभार |
मार तोला : अल्मोड़ा से १० किलोमीटर दूर यह खूबसूरत बाग बगीचों से घिरा लोगों का एक मनपसंदीदा पिकनिक स्थल है। पनुवानौला तक बस या टैक्सी के जाने के बाद कुछ दूर पैदल चलना होता है। मारतोला घूमने आए विदेशी सैलानियों को यहां का प्राकृतिक सौंदर्य ने इस कदर आकर्षित किया कि उन्होंने यहां रहने का फैसला कर लिया। और आज यहां बसे लोगों में ज्यादातर विदेशी हैं।
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अल्मोड़ा का गांव फालसीमा का दृश्य : फोटो राजकिशन
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अल्मोड़ा के दर्शनीय स्थल भाग २
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अल्मोड़ा के मॉल रोड : दुसरे दिन हम संध्या के वक़्त अल्मोड़ा के मॉल रोड स्थित लाला एवं चौक बाजार बाजार की चक्कर लगा रहे थे। यहां की मशहूर बाल मिठाई के बारे में हमने काफी सुन रखा था।माल रोड पर ही बाल मिठाई एवं सिंगोड़ी की काफी दुकानें हैं। हमने खाने भर मिठाई ली चखी भी। अच्छी लगी। आप अल्मोड़ा घूमने आए हैं तो यहां की मशहूर बाल मिठाई और सिंगोड़ी का स्वाद आपने नहीं चखा तो निसंदेह आप की यह यात्रा अधूरी हो जाएगी।
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अल्मोड़ा के मॉल रोड और यहां कि बाल मिठाई : चित्र राज किशन, अल्मोड़ा. |
गरुड़, हिमालय , पंचाचूली एवं कुमायूं माल रोड में मुझे अल्मोड़ा के ढ़ेर सारे शो रूम भी दिखे। ऊनी कपड़ों की भी कई दुकानें थी। अल्मोड़ा अंगोरा खरगोश के लिए उन से बने वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है जिसकी मांग पूरे देश में सर्वाधिक है। यहां की बनी अन्य वस्तुओं में तांबे के बर्तन , वाटर फिल्टर, जग आदि जीवन उपयोगी वस्तुओं की देशभर में खपत है। मॉल रोड पर ढ़ेर सारे होटल बने है रहने की कोई असुविधा नहीं होगी।
कटारमल के सूर्य मंदिर : ऐतिहासिक दृष्टि से अल्मोड़ा के कटारमल का काफी महत्व है ।कटारमल पहुंचने के लिए अल्मोड़ा से कोशी तक १३ किलोमीटर का सफर आप टैक्सी से तय कर सकते हैं फिर आगे का ४ किलोमीटर का रास्ता आपको पैदल ही तय करना पड़ता है।
यहां ८०० साल पुराना एक सूर्य मंदिर वर्तमान है जो उड़ीसा के कोणार्क के बाद देश का दूसरा प्रमुख सूर्य मंदिर है। हालांकि यह काफी जर्जर हालत में है तथापि इस मंदिर की शिल्प कला बेजोड़ व अद्भुत है। मंदिर के द्वार स्तंभ तथा दीवारों पर उकेरी गई आकृतियां उस दौर के शिल्प कला के अनुपम उदाहरण है ।
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कटारमल , अल्मोड़ा के : सूर्य मंदिर फोटो इंटरनेट से साभार. |
बड़ादित्य के नाम से प्रसिद्ध यह पूर्वाभिमुखी सूर्य मंदिर, कुमायूं क्षेत्र के विशालतम और ऊंचे मंदिरों में से एक है। संभवत जिसे मध्यकालीन कत्यूरी नरेश कटारमल द्वारा निर्मित किया गया था जो उस समय मध्य हिमालय क्षेत्र में शासन कर रहे थे। यहां विभिन्न समूहों में लगभग ४५ छोटे बड़े मंदिरों का निर्माण अलगअलग कार्यकाल में किया गया।
मुख्य मंदिर की संरचना त्रिरथ है जो वर्गाकार गर्भ गृह के साथ नागर शैली के बक्ररेखी शिखर सहित निर्मित है जबकि अंतराल व दोनों मंडप बाद में निर्मित किए गए हैं।
वास्तु लक्षण एवं स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों के आधार पर इस मंदिर की तिथि तय हुई १३ वी शती ईसवी रखी जा सकती है।
गर्भ गृह का प्रवेश द्वार उत्कीर्णित काष्ठ द्वारा निर्मित था जो वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली की दीर्घा में प्रदर्शित है
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गणनाथ की प्राकृतिक गुफा फोटो इंटरनेट से साभार |
गणनाथ : अल्मोड़ा से ४७ किलोमीटर की दूरी पर गणनाथ प्राकृतिक गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है,यहाँ एक शिवमंदिर भी है। जहाँ धर्म ,प्राकृतिक सौंदर्य और प्रकृति प्रेमियों की भीड़ जमा होती है। समुद्र तल से २११६ मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है और यह स्थान कार्तिक पूर्णिमा में भक्तों से भरा पड़ा मिलता है जब भक्त यहाँ जमा होकर तालबद्ध भजन गा कर अपने देव भोले शंकर को प्रसन्न करते है।
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बिनसर : जहाँ देवदार के पत्ते सरसराते है : चित्र इंटरनेट से साभार |
बिनसर : जहाँ देवदार के पत्ते सरसराते है ,और आप से बहुत कुछ कहना चाहते है। घने जंगलों के बीच या अल्मोड़ा क्षेत्र की सबसे २४१२ ऊंची चोटी पर स्थित है यह बिनसर। बेमिसाल है अद्भुत भी।
बागेश्वर मार्ग पर अल्मोड़ा से ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध बिनसर जरूर जाए। यहां पहुंचकर पर्यटक - सैलानी शांत प्राकृतिक वातावरण के मध्य हिमालय की प्रमुख चौखंबा, त्रिशूल, नंदाकोट, नंदा देवी जैसी ऊंची चोटियों के एकदम समक्ष स्वयं को पाकर आत्मिक,आध्यात्मिक शांति की व्यापक अनुभति रखते हैं। रहने के लिए यहां कुमायूं मंडल विकास निगम के रेस्ट हाउस में ठहराया जा सकता है।
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वूडेन मेमोरियल मेथोडिस्ट चर्च : चित्र राज किशन, अल्मोड़ा. |
चर्च : मैं जिस किसी भी शहर जहां कहीं भी गया चर्च जरूर जाता हूं। मुझे जानकारी मिल गयी थी कि यहाँ भी एक गिरजाघर है। ईसा के मानव धर्म में मेरा अगाध विश्वास है। शाम के समय अकेले वूडेन मेमोरियल मेथोडिस्ट चर्च में मुझे जाकर मुझे शांति मिली।
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नंदा देवी मंदिर ,अल्मोड़ा : फोटो राज किशन.
------------- अल्मोड़ा के दर्शनीय स्थल भाग ३ ------------
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जागेश्वर : हमने बड़ी इत्मीनान से जागेश्वर देखा था। प्रकृति के कैनवास पर फैली देवदारों की अंतहीन कतारें , नमी वश ठंढ की अनुभूति। कभी भी मेघ बरसने की संभावनाएं। मेरी माने तो शांति ,सुकून और प्रकृति की खूबसूरती का साक्षात्कार करने के लिए अल्मोड़ा में जागेश्वर से सुंदर व उपयुक्त कोई जगह नहीं है , आप भी इसे जरूर देखें । प्रकृति का चमत्कार यहां देखने को मिलता है। ऊचें ऊचें देवदारों के वृक्षों से घिरे जागेश्वर प्रकृति का अनुपम उपहार है। कोहरे में लिपटी जागेश्वर में आप कहीं भी जाइए जटा गंगा की झर झर करती सुमधुर आवाज हर जगह आपको सुनाई देगी। बारिश कभी भी हो जाएंगी इसका ख्याल जरूर रखें। यहां चारों ओर प्रकृति का सौंदर्य बिखरा पड़ा है ,नीरवता बिखरी पड़ी है । इतिहास : जागेश्वर के एक ही परिसर में १२४ मंदिरों के समूह बने हैं, है ना आश्चर्य की बात। सम्भवतः इन मंदिरों के निर्माण ८ से १२ वीं सदी के बीच अल्मोड़ा के कत्यूरी शासकों ने करवाया था। बड़े बड़े प्रस्तरों से निर्मित यह मंदिर स्थापत्य कला के सुंदर नायाब नमूने हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की सूचनाओं के अनुसार इन सभी मंदिरों में जो मूर्तियां थी उन्हें १९३५ में अंग्रेजों ने हटा कर एक सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया था , आज इन मूर्तियों को विभाग के संग्रहालय में देखा जा सकता है।
प्रवेश द्वार पर ही चंद शासक की लगभग साढ़े ४ फुट ऊंची पीतल की एक प्रतिमा मौजूद है जो हमारी दृष्टि को अनयास ही बांध लेती है। जागेश्वर मंदिर समूह के निकट ही कुबेर मंदिर समूह और उससे थोड़ी दूर पर दंडेश्वर मंदिर समूह भी देखे जा सकते हैं यदि आप चाहे तो ।
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जागेश्वर के एक ही परिसर में बने १२४ मंदिरों का समूह : फोटो इंटरनेट से साभार. |
वृद्ध जागेश्वर : जागेश्वर से लगभग १५०० फुट की ऊंचाई पर एक दर्शनीय स्थल वृद्ध जागेश्वर भी है जहां जीप या कार से जाया जा सकता है। किंतु यदि ट्रैकिंग या पहाड़ चढ़ने के आप शौकीन है तो पैदल ही जाए। साथ में पानी खाने पीने का कुछ सामान और एक डंडा ,छड़ी ले लें तो आप ट्रैकिंग का ज्यादा लुफ़्त उठा सकते हैं।
मृतोला आश्रम : जागेश्वर से लगभग ७ से १० किलोमीटर दूर मृतोला आश्रम है इसकी देख भाल १९६३ से ही एक अंग्रेज डेविड कर रहे हैं। लेकिन इनकी वेशभूषा देखकर कहीं से इनके अंग्रेज होने का एहसास नहीं होता है। भारतीय वेश भूषा , लूंगी ,बनियान ,स्वेटर पहने डेविड मूलतः आंग्ल इंडियन बड़ी सुगमता से फर्राटेदार हिंदी और स्थानीय भाषा बोलते हैं। पहाड़ी पर फैले तरह-तरह के फलदार वृक्ष नाना प्रकार के खिले फूलों हमारे मन को अभिभूत कर देगा। -------------
चलते चलते
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चलते चलते : आख़िर में इस तरह मधुमती की तलाश में हमने जो सुहाने सफ़र की यादगार शुरुआत की और मुकम्मल किया। यकीन करता हूं इस घुमक्कड़ी में नए तरीक़े से खेत ,खलिहान ,मंदिर ,गिरजाघर , पहाड़ों ,नदियों के जरिए आपको भारत को जानना बहुत अच्छा लगा होगा ।
नैनीताल ,भवाली ,रानीखेत , अल्मोड़ा में फिल्म के सेट्स और लोकेशंस की ख़ोज करने के साथ साथ हमने बहुत सारी महत्वपूर्ण सांस्कृतिक जानकारियां हासिल की ,अतुलनीय भारत को भी जाना।
१८१४ का वर्ष था यह जब ब्रिटिशर्स ने आंग्ल गुरखा युद्ध जीती थी ,सुगौली संधि के जरिए नेपालियों से कुमायूं हिल्स जीत कर अपना कब्जा जमा लिया था।
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बोट हाउस क्लब नैनीताल १९१०.
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हम ब्रितानी सरकार के लिए आभार प्रकट करते हैं जिनकी वजह से हमें नैनीताल जैसे खूबसूरत पर्वतीय स्थल हमारे अधिकार के अंतर्गत आए। हालाँकि यह भी सच है कि इंग्लैंड की अपेक्षा उन्हें यहाँ की जलवायुं विषम लगती थी इसलिए गर्मियों में राहत पाने के लिए अपनी पूरी प्रशासनिक व्यवस्था के साथ भारतीय पहाड़ी क्षेत्रों में वे स्थानांतरित हो जाते थे।
१९११ का वर्ष : सर्वप्रथम सन में जब ब्रिटिश सरकार ने राजधानी कलकत्ता से दिल्ली बदली थी तब ग्रीष्म कालीन हमारी राजधानी शिमला हुआ करती थी। उस ज़माने में भी सरकारी कार्यालय का पूरा काम काज गर्मियों में शिमला से ही हुआ करता था। ट्रेन कालका मेल की शुरुआत भी इसी उद्देश्य से की गयी थी कलकत्ता से सरकारी ऑफिसर्स ,बाबू अपने काम काज के लिए गर्मियों में अक्सर कालका से शिमला जाते थे। इसलिए ही प्रत्येक राज्यों में उन्होंने अपनी सुविधा के लिए ही ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन राजधानी बना रखी थी।
तब से ही कुल्लू , मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, लैंड्सडाउन, डलहौजी , चम्बा ,देहरादून, कसौली, रांची, पंचमढ़ी, पंचगनी, महाबलेश्वर, श्रीनगर, कोडाईकेनाल, ऊटी, सिक्किम, शिलांग , कलिम्पोंग तथा दार्जलिंग जैसे पसंदीदा पर्वतीय सैरग़ाह अस्तित्व में आये थे ।
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नैनीताल ब्रिटिश काल में : साल १८८३ : फोटो इंटरनेट से साभार
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१८४१ नैनीताल की ख़ोज : यह वर्ष था जब ब्रितानी सरकार ने गोरखा युद्ध में की गयी संधि के उपरांत नेपाल से नैनीताल या कहें गोरखा हिल्स कहें जाने वाले प्रदेश अधिकृत कर यूनाइटेड प्रोविंस में मिला लिया था।
इसके बाद ब्रिटिश कैप्टन पी बैरन जो १८४१ ईसवी में नैनीताल की वादियों में आए जिन्होंने नैनीताल की खोज की और वहां सबसे पहले पिल ग्रीम कॉटेज का निर्माण किया गया। इसके बाद पर्यटकों की आवाजाही निरंतर लगी रही और नैनीताल नगरी पर्यटकों की मन पसंदीदा जगहों में से एक बन गयी।
हम आपको यह भी बताना चाहते हैं कि ब्रितानी सरकार ने सबसे पहले यूनाइटेड प्रोविंस के लिए राज भवन का निर्माण नैनीताल में ही किया था जो आज अभी भी ये पर्वतों के दायरें में अवस्थित नैनीताल में वर्तमान हैं।
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उत्तराखंड हाई कोर्ट : नैनीताल. |
उत्तराखंड की राजधानी ना होते हुए भी हाई कोर्ट जैसे महत्वपूर्ण स्थल को अपने भीतर समाहित किए हुए रहता है। यह ब्रिटिश कालीन यूनाइटेड प्रोविंस की राजधानी की हैसियत रखता था।
न भूलने वाले कई एक क्षण है इस सुहाने फ़िल्मी सफ़र के पन्नों में जिनका एहसास कभी भी कम नहीं होगा। इस घड़ी में साथ देने, हमसफ़र बनने के लिए हम तहे दिल से आपका शुक्रिया अदा करते है , फ़िर मिलते है अगले अंक में।
डॉ.मधुप रमण.
लेखक, फ़िल्म समीक्षक.
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फ़िल्म मधुमती के दृश्य : लिंक . खंड १२ .
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इस फ़िल्म के लोकप्रिय गाने ,इनके लिंक
१. सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं ( मुकेश ) ,
२.आ जा रे परदेशी ( लता ),
जुल्मी संग आँख लड़ी ( लता ) ,
चढ़ गयो पापी बिछुवा ( लता ) ,
घड़ी घड़ी मोरा दिल धड़के ( लता ) ,
दिल तड़प तड़प के कह रहा है ये सदा ( लता मुकेश )
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Blog History of : Film.Song & Silver Screen.
Cinema Cinema.
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Yaadein Na Jayein Beete Dinon Ki.
Volume 1.Series 1.
Actor Dilip Kumar Special.
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A & M Media.
Pratham Media.
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Literally , it is wonderful.
ReplyDeleteस्मृति शेष : दिलीप कुमार के साथ पहली बार फिल्मी परदे पर और देश से पहले विदेश में देखे गए नैनीताल-उत्तराखंड के पहाड़..
ReplyDeleteपढ़ें पूरा समाचार केवल 'नवीन समाचार' के इस लिंक पर क्लिक करके, शेयर भी करें 👉🏻 https://navinsamachar.com/film-news/ #dilipkumr
Big FAN SIR
ReplyDeleteFrom ,,, neo Aryan
DeleteNice
ReplyDeletenice work
ReplyDeleteawesome sir 🙇♂️🙇♂️
ReplyDeleteIt's amazing
ReplyDeleteVery nice sir.
ReplyDeleteThis is very fantastic sir
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteस्मृतियों के प्रदेश में लेखक महोदय ने चहल कदमी करवा हीं दी तो बताऊं कि अब यही लगता है की दिलीप कुमार क्यों इस जहां को छोड़ गये जहां कभी उन्होंने गाया था"छत पर आ जा गोरीए"तो गोरी तो यही है और "चांद बैरी ढल भी गया है"। दिलीप साहब को सलाम के साथ श्रद्धांजलि।लेखक को उनके सजीव लेखन के लिए आकाश भर बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद सर, यदि आपके प्रशंसनीय शब्द मेरे सजीव लेखन के लिए हैं तो विशेष धन्यवाद.. वैसे इसमें चार-चाँद तो डॉ. मधुप जी ने लगाये हैं...
Deleteजोशी सा'ब आपके लिए ही मेरी टिप्पणी थी।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteडॉ मधुप दिलीप साहब का अब सफर जन्नत तक सुहाना हो सकता है कि हो पर हम लोगों के लिए मौसम हसीं के बजाए गमगीन है क्योंकि वो हमलोगों के बीच अब नहीं है। आपके उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई एवं दिलीप साहब को सलाम के साथ श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteThis is very interesting sir
ReplyDeleteSir this is very nice
ReplyDeleteawesome sir
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी चित्रण/लेखन मधुप जी
ReplyDeleteAisa Laga jaisee mein hi un wadiyon mein Khoo Gaya
ReplyDeleteKash Dilip sir ( mr. Handsome)
Aaj v hotee.aur majaa aata.
Khub Sundar lekhan hai sir
Knowledgeable
ReplyDelete👍🏻👍🏻👍🏻👏🏻👏🏻👏🏻
ReplyDeleteYour narration , travelogue, stories brings us in the virtual world, Thanks
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteknowledgeable and Interesting
ReplyDeleteIt's very amazing sir . Continue your work and make a big achivement ☺️🙏🙏
ReplyDeleteIt's very informative sir.
ReplyDeleteVery interesting blog.
ReplyDeleteInformation related to Dilip Kumar touches my heart.
Wonderful
This is very interesting blog. Keep it up sir ☺️
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