Diye Jalte Hai : Phool Khilte Hai


©️®️MS.Media.
  Shakti Project.
Diye Jalte Hai : Phool Khilte Hai.
कृण्वन्तो विश्वमार्यम. 
In association with.
A & M Media.
Pratham Media.
Times Media.
Presentation.
Blog Address : msmedia4you.blogspot.com.
email : m.s.media.presentation@gmail.com.
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 Theme Address.
*
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*
a Social Media. 
Cultural - e Blog Magazine.Page 
Cover Page. 
 
दिए जलते है : फूल खिलते हैं. 
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आवरण पृष्ठ. 
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दिए जलते है : फूल खिलते हैं : फोटो कोलाज : शक्ति.प्रिया डॉ.सुनीता सीमा. 

फोर स्क्वायर होटल : रांची :समर्थित : आवरण पृष्ठ : मार्स मिडिया ऐड : नई दिल्ली.
*
 दैनिक अनुभाग.आज.
विक्रम संवत : २०८२ शक संवत : १९४७.
२०.१०.२५. 
दिन.सोमवार. 
नव  शक्ति.दिवस.मूलांक:२.     
कार्तिक  : कृष्ण  पक्ष : चतुर्दशी .अमावस्या.   


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दिव्य अनंत शिव शक्ति.


श्री गणेशाय नमः 
*
दैनिक / पत्रिका / अनुभाग..
ब्लॉग मैगज़ीन पेज. 
*
 राम के अयोध्या लौटने: दीपोत्सव पर्व : की मंगल अनंत  शिव शक्ति शुभकामनाओं के साथ. 

*
डॉ.कुमार सौरभ.प्राचार्य.मगध होमियोपैथिक चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल.बिहार शरीफ समर्थित.
 

वायरलेस प्राइवेट लिमिटेड : मार्केट रिसर्च : मुंबई : 
शक्ति. ज्योति.आर्य. नरेंद्र.समर्थित. 

*
शक्ति महालक्ष्मी : पूजन.
विजयी दीप ज्योति प्रज्वलन मुहूर्त
*
दिए जलते है फूल खिलते है
ज्योति कलश छलके
*
जी आई एफ : डेकोरेटिव.
*
हरि अनंत हरि कथा अनंता
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श्री राम शक्ति सीता का अयोध्या आगमन
*
दिए जलते है : फूल खिलते हैं.
*


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देव शक्ति दिव्य सन्देश
*
' राम ' को समझो ' कृष्ण ' को जानो
' हरि ' अवतरित ' राम - कृष्ण ' की मर्यादा को अन्तर्मन से परीक्षित
करते हुए ' राम - कृष्ण ' के रावणत्व पर विजय की
गाथा को अपने जीवन में पुनः दोहराते हुए
' राम - कृष्ण ', ' सीता ' , ' राधा - रुक्मिणी ', ' मीरा ' बनने की दिव्य शक्ति शपथ लेते हुए
इस दीपावली अपने भीतर ' महालक्ष्मी ' ,' महाशक्ति ' , ' महासरस्वती '
की दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाए
अपने भीतर के ' तमस ' को हटाए.... शुभ दीपावली मनाए
*
शक्ति. सम्पादिका समूह
*
शक्ति..नैना शालिनी मीना प्रिया
डॉ सुनीता सीमा रेनू नीलम अनुभूति.

*

मुन्ना लाल महेश लाल आर्य एंड संस ज्वेलर्स. समर्थित

*
विषय सूची :पृष्ठ :०.
*
महालक्ष्मी वंदना 
*

*
ओम महालक्ष्मी नमो नमः
ओम विष्णु प्रियाय नमो नमः

विषय सूची :पृष्ठ :०.

  राधिका कृष्ण रुक्मिणी  मीरा : दर्शन : पृष्ठ :०.
सम्पादित. डॉ. सुनीता सीमा शक्ति * प्रिया.
आवरण पृष्ठ :०.
हार्दिक आभार प्रदर्शन : पृष्ठ : ०
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : पृष्ठ : ०.
कृष्ण दर्शन. संभवामि युगे युगे : प्रारब्ध : शक्ति लिंक : पृष्ठ : ०.
राधिकाकृष्ण : महाशक्ति : इस्कॉन डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / १.
रुक्मिणीकृष्ण : महाशक्ति : दर्शन दृश्यम : विचार डेस्क : नैनीताल. पृष्ठ : ० / २ .
मीराकृष्ण : महाशक्ति डेस्क : मुक्तेश्वर : नैनीताल. पृष्ठ : ० / ३.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा : पृष्ठ : १.
त्रिशक्ति जीवन दर्शन विचार धारा लिंक : पृष्ठ : १.
त्रि - शक्ति : दर्शन. पृष्ठ : १ / ०.
त्रिशक्ति : विचार : दृश्यम : पृष्ठ : १ / ० .
त्रिशक्ति : लक्ष्मी डेस्क : सम्यक दृष्टि : कोलकोता : पृष्ठ : १ / १.
त्रिशक्ति : शक्ति डेस्क : सम्यक वाणी : नैनीताल : पृष्ठ : १ / २.
त्रिशक्ति : सरस्वती डेस्क :सम्यक कर्म : जब्बलपुर : पृष्ठ : १ / ३.
महाशक्ति : जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ४.
नव जीवन विचार धारा : पृष्ठ : १ / ५.
सम्पादकीय : पृष्ठ : २.
सम्पादकीय शक्ति लिंक : पृष्ठ : २ / ०.
आकाश दीप : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : शक्ति : सम्पादकीय : प्रस्तुति. पृष्ठ :४.
 विशेषांक : आलेख : धारावाहिक आलेख : पृष्ठ : ५. 
ये मेरा गीत : जीवन संगीत : कल भी कोई दोहराएगा : पृष्ठ : ६.
दिए जलते है  : फ़िल्मी कोलाज : पृष्ठ : ७.
दिए जलते है : कला दीर्घा : रंग बरसे : पृष्ठ : ९.
समाचार : चित्र : विशेष : दृश्य माध्यम : न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११.
दिए जलते है : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : १२.
चलते चलते : शुभकामनाएं : दिल जो न कह सका : पृष्ठ : १३.
आपने कहा : मुझे भी कुछ कहना है : पृष्ठ : १४.
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हार्दिक आभार प्रदर्शन : पृष्ठ : ०
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*
शक्ति पूजा 
सह  
आर्य.डॉ. राजीव रंजन शिशु रोग विशेषज्ञ 
बिहार शरीफ. जिला नालंदा. 
को 


⭐ पत्रिका के निर्माण / संरक्षण के लिए हार्दिक आभार.
*
संयोजन. शिमल.डेस्क. नैनीताल स्क. इन्द्रप्रस्थ डेस्क.
पाटलिपुत्र डेस्क.

शक्ति.शालिनी.स्मिता.वनिता. शवनम .
संयोजिका / मीडिया हाउस ,हम मीडिया शक्ति परिवार की तरफ़ से आपके लिए हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन *
समर्थित
*
स्वर्णिका ज्वेलर्स : ज्योति पर्व के शुभ अवसर पर : भारी छूट का लाभ उठाए
*



 


a
* स्वर्णिका ज्वेलर्स.निदेशिका.शक्ति तनु.आर्य रजत.सोहसराय.बिहार शरीफ.समर्थित.
*
राधिका : कृष्ण : रुक्मिणी : सदा सहायते. 
*
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 राधिका कृष्ण रुक्मिणी  मीरा : दर्शन : पृष्ठ : ०.
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 नैनीताल डेस्क. मुक्तेश्वर.
*
संपादन.
 शक्ति* नैना.डॉ.सुनीता मीना प्रिया. 
*
हम चार 
*
राधिका : कृष्ण : रुक्मिणी : मीरा : दर्शन : लिंक : पृष्ठ : ०. 
कल आज और कल अद्यतन देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवायें.
https://drmadhuptravel.blogspot.com/2025/10/radhika-krishna-rukmini-darshan4.html
अद्यतन 
*

मित्रता या शत्रुता 
*
कोई भी व्यक्ति किसी का मित्र या शत्रु बनकर संसार में नहीं आता, प्रिय 
उसकी सोच वाणी व  उसके व्यवहार, कर्म और शब्द ही  उसे  मित्र या  शत्रु बनाते  हैं  
*
कृत्य 
*
कभी भी उस ' कृत्य ' को दूसरों के लिए न करें 
जिसे कभी ' अपने ' लिए सोचा नहीं हो 
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दुःख है : दुःख का कारण भी है 
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जीवन के ' सार ' को वही समझ सकते है , प्रिय !  
जिन्होंने अपने ' अंतर्मन ' में झाँका हैं 
जिन्होंने ' अनुभूत ' किया है अपने दिल से जानिए ' पराए ' दिल का हाल 
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 ©️®️ शक्ति.शालिनी प्रिया डॉ.सुनीता सीमा 
*
आ रहे प्रकाश पर्व : दीपोत्सव : की अनंत शिव शक्ति शुभकामनाओं के साथ. 
आज धनतेरस के उपलक्ष्य पर भारी छूट का लाभ उठाए 
*
शक्ति.नेहा.आर्य.अतुल.मुन्नालाल महेश लाल आर्य एंड संस ज्वेलर्स.रांची रोड.बिहार शरीफ.समर्थित. *
त्रिशक्ति : विचार : दृश्यम : पृष्ठ : १ / ० .
*


टाइम्स मीडिया. शक्ति.प्रस्तुति.
दिव्य अनंत शिव शक्तियां .
*
शक्ति : महालक्ष्मी दर्शन : आज : पृष्ठ : १ / १.
*
महालक्ष्मी डेस्क.कोलकोता.


*
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता 
नमस्तस्य नमस्तस्य नमस्तस्य नमो नमः 
*
शक्ति : महालक्ष्मी : डेकोरेटिव : जी आई एफ 
*

*
टाइम्स मीडिया एडवरटाइजिंग : शक्ति.
*
*
महालक्ष्मी डेस्क.कोलकोता.
प्रादुर्भाव वर्ष. १९७९.
संस्थापना वर्ष : १९९९.महीना : जून. दिवस :२.
सम्पादित.
शक्ति. नैना @ डॉ.सुनीता सीमा प्रिया.
*
तमसो मा ज्योतिर्गमय : दीपावली : प्रकाश पर्व : भाई दूज : की शुभ कामनाओं के साथ
*

दृष्टि क्लिनिक:आर्य डॉ दीनानाथ वर्मा. फिजिसियन. किसान बाग बिहार शरीफ. समर्थित
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शक्ति : महालक्ष्मी जीवन दर्शन : आज : पृष्ठ : १ / १.
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*
महालक्ष्मी डेस्क.कोलकोता
सम्पादित.
शक्ति. नैना @ डॉ.सुनीता सीमा प्रिया.
*
अप्रिय सत्य.
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम्
*

*
' सत्य ' बोलो प्रिय बोलो ' अप्रिय ' सत्य मत बोलो
*
सबसे प्रिय 

जो प्यार से गंभीरता में स्वयं समझे भी और हमें समझाए भी
वहीं जीवन में सबसे प्रिय होता है
*
मधुर मधुर दीपक मेरे जल
*
बस दिए की तरह जलते रहिए
किसका पथ आलोकित हो रहा है, फ़िक्र नहीं

स्वयं का शत्रु
*
मानव अन्तःमन में छिपे, अधैर्य, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष,संकीर्णता
ही स्वयं के सिद्ध चिर शत्रु है, इसे सदैव अपने वश में रखना चाहिए

*
बुरी है बुराई मेरे दोस्तों
*
बुरा होना उतना बुरा नहीं
जितना अपने भीतर की ' बुराई ' को अच्छाई में ' तब्दील ' न होने देना
*

आलोचनाएं : सत्कर्म : सर्वोत्तम
*
' उत्तम ' से ' सर्वोत्तम ' वही हुआ है, प्रिय !
जिसने अपने जीवन में अपनी ' आलोचनाओं ' को धैर्य पूर्वक ' सुना ' और ' सहा ' है 
और सदैव सत्कर्म करता रहा है 
*
मेरे अपने 
*
अपनों के लिए सदैव व्यक्तिगत ' संवेदनशील ' , ' सहज ', व ' सरल ' रहें  
चिंतित रहें , शांत, संयमित  व रक्षित दिखे 
*
जीवन के विविध रंगों.
*
जीवन के विविध ' सुगंध ' का ' आनंद ' वही ले सकता है
जो ' खिलने ' और ' बिखरने ' वाले क्षणों के बीच महक जाने की ' काबिलियत ' रखता हो
*
कारज धीरे होत है
काहे होत अधीर
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कार्य तो ' धीरे ' ही होते हैं जीवन में ' प्रगति ' सुनिश्चित है
' अधैर्य ' और ' शीघ्रता ' तो व्यक्ति को ' पतन ' की तरफ़ ही ' अभिमुख ' करता है
*

सम्यक साथ और समर्पण
*
किसी के लिए ' समर्पण ' करना मुश्किल नहीं है मुश्किल है उस सम्यक ' व्यक्ति ' को ढूंढना जो आप के ' समर्पण ' की कद्र करे

*
शून्यता और अपेक्षाएं
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धीरे धीरे शून्य होती जीवन की अपेक्षाएं
मन में गहरी शांति का अनुभव कराती हैं
*
मानो तो ' पत्थर ' नहीं तो ' ईश्वर '
*
जिंदगी में अगर किसी में विश्वास है
तो उसमें ही आस्था है शक्ति भी उसमें ही निहित है तथा उसमें ही संसार है
शक्ति नैना @ डॉ.सुनीता सीमा प्रिया.
©️®️
*
धनतेरस की आकर्षक छूट के साथ
*
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 प्रकाश पर्व : दीपोत्सव : भाई दूज : की अनंत शिव शक्ति शुभकामनाओं के साथ 
शक्ति.नेहा.आर्य.अतुल.मुन्नालाल महेश लाल आर्य एंड संस ज्वेलर्स.रांची रोड.बिहार शरीफ.समर्थित.
*
स्वर्णिका ज्वेलर्स : इस दिवाली : धनतेरस के शुभ अवसर पर : भारी छूट का लाभ उठाए
*
* स्वर्णिका ज्वेलर्स : निदेशिका..शक्ति. तनु.आर्य. रजत.सोहसराय.बिहार शरीफ.समर्थित. *
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शक्ति : महाशक्ति दर्शन : पृष्ठ : १ / २.
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शक्ति  रूपेण संस्थिता नमस्तस्य 
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शक्ति : महाशक्ति : डेकोरेटिव : जी आई एफ. 
*

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महाशक्ति मीडिया एडवरटाइजिंग : शक्ति.
*
*
महाशक्ति. नैना देवी डेस्क. 
नैनीताल. प्रादुर्भाव वर्ष :१९७६. 
संस्थापना वर्ष : १९९८.महीना :जुलाई. दिवस :४.
*
सम्पादित. 
शक्ति नैना डॉ..सुनीता शक्ति* प्रिया.
*
शक्ति. शब्द चित्र विचार
*
कर्म : कल्पनाएं और फल 
*
जीवन का अंतहीन सफर कल भी था सफर आज भी जारी है
माना कुछ उम्मीदें टूटी हैं
लेकिन कुछ करम, कल्पनाएं और इच्छाएं अभी भी शेष  हैं

तारीख तवारीख़ की 
*
इस क्षण भंगुर संसार में आप सदा बने  नहीं रहेंगे इसलिए 
सम्यक साथ, वाणी के सत्कर्म कर सदैव बने रहने का प्रयत्न करते रहें 
ऐसा करें कि किसी तवारीख़ की तारीख बन जाए 

*
 शिव : शक्ति : कालिके : चरण 
*
क्रोध में , असुरों के संहार के पश्चात शक्ति कालिके के चरण 
जब शिव पर पड़ेंगे तो परिस्थिति वश सही गलत की अनुभूति होगी 
 *
धन्वंतरि दिवस
*
नमामि धन्वन्तरिमादिदेवं सुरासुरंर्वन्दितपादपद्मम्। 
लोके जरारुग्भयमृत्युनाशं धातारमीशं विविधौषधीनाम्॥
*
भावार्थ 
*
उस आदिदेव भगवान धन्वंतरि को नमस्कार करता हूँ,
जिनके चरण कमलों की देवता और दानव दोनों पूजा करते हैं।
वे सभी लोकों में बुढ़ापे, रोग, भय और मृत्यु का नाश करने वाले हैं
और विभिन्न औषधियों के स्वामी हैं
*
जय पराजय 
*
 कब, कहाँ,  कैसे और किसके लिए 
*
प्रथमतः किसी के जीवन में जय पराजय  शब्दशः ही तय होता हैं 
कि हम कब, कहाँ, और कैसे कौन और किसके लिए बोल रहें हैं 

मन,मंदिर, ईश्वर और रास्ता 

*
मंदिर तक पहुँचना ' तन ' का विषय है, प्रिय 
किंतु ' ईश्वर ' तक पहुँचना ' मन ' का विषय है
*
मायने लकीरों की  
*
लकीरों को कभी मामूली ना समझे
ये माथे पर ' चिंता ', ' हथेली ' पर तकदीर,
जमीन पर ' बंटवारा ' और अंतिम में 
रिश्तों में ' दरार ' भी बन जाती है यदि आप मान लें तो 
*
साधना और भावना.

संदर्भित : फोटो : शक्ति मीना 
*
मनुष्य साधन से नहीं साधना से महान बनता है
भवन से नहीं भावना से महान बनता है
उच्चारण से नहीं उच्च आचरण से महान बनता है।

सूरज : अँधेरा : आशा 
*
किरण चाहे सूर्य की हों या आशा की,
जीवन के सभी अंधकार को मिटा देती है
*
समभाव प्रकाश 
*

महान पुरुष उदित और अस्त होते समय 
एक लालिमा दिखलाने वाले सूरज की भांति ही 
समभाव प्रकाश रखते है 
*
शांति : अंतर्मन 
*
जीवन में अगर खुश रहना है तो स्वयं को वह ' शांत ' सरोवर बनाएं,
जिसमें कोई ' अंगार ' भी फेंके तो, खुद ब खुद बुझ जाए.
*
प्रथम मिडिया शक्ति.प्रस्तुति : 
*
 
--------
शक्ति. महासरस्वती : दर्शन  पृष्ठ : १ / ३.
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बुद्धि रूपेण संस्थिता नमस्तस्य. 


*
शक्ति : महासरस्वती : डेकोरेटिव : जी आई एफ. 
*
शक्ति महासरस्वती.


*
नर्मदा  डेस्क. जब्बलपुर 
प्रादुर्भाव वर्ष : १९८२.
संस्थापना वर्ष : १९८९. महीना:सितम्बर. दिवस : ९.
*
संपादन
शक्ति.नैना @ प्रिया. श्रद्धा अनीता
*
मनुष्य : ईश्वर : रिश्ते.
*

संदर्भित : फोटो : शक्ति : जबा सेन 


समझ सहन शक्ति
*
शक्ति की तरफ़ से पहल, उनकी समझ सहन शक्ति , 
तथा निरंतर के  शिव संवाद की स्पष्ट क्रियाशीलता 
ही पुनः निर्माण का कारण होगा 

*

मानवीय ' रिश्ते ' तो  ' ईश्वर ' प्रदत होते  हैं  पर 
इसे परखता ' निभाता '  ' बचाता ' तो ' मनुष्य ' ही है, प्रिय
अपनी सहन व समझ शक्ति का प्रयोग कर 
 
*
*
शक्ति.विचार 
*
काश ये होता 
*
सब कुछ ' हासिल ' नहीं होता जिंदगी में , हर किसी को 
यहाँ किसी का ' काश ' तो किसी का ' अगर ' रह ही जाता है 
*
हरिद्वार 
भावनाओं का कहाँ द्वार होता है 
जहाँ हरि मिले वही हरिद्वार होता है 
*

ए एंड एम मीडिया शक्ति प्रस्तुति 
*

*
नवशक्ति : दर्शन : पृष्ठ : १ / ४
*

नवशक्ति  रूपेण संस्थिता नमस्तस्य. 

 नवशक्ति रूपेण संस्थिता  
*
श्यामली : डेस्क : शिमला.
प्रादुर्भाव वर्ष : १९९९. 
संस्थापना वर्ष : २०००. महीना : जनवरी. दिवस :५ 
*
सम्पादन
शक्ति शालिनी रेनू अनुभूति नीलम

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नवशक्ति : शब्द चित्र विचार : पृष्ठ : १ / ४
-------------
शिमला डेस्क


*
जीवन शिक्षण.
नवशक्ति नव जीवन विचार
*
रिश्ते नाते 
*
रिश्तों  की ' मधुरता ' बनाये रखें 
और कभी रिश्ते बनाये रखने के लिए आपको ' झुकना ' पड़ें तो झुक जाइए 
लेकिन हमेशा आपको ही ' झुकना ' पड़ें  तो ' रुक ' जाइए 

*
शक्ति शालिनी रेनू अनुभूति नीलम

*
रिश्ते मायने 

घड़ी की सुइयों की तरह अपने ' रिश्तों ' को बनाए रखें,
कोई ' फर्क ' नहीं पड़ता कि कोई तेज है और कोई धीमा
कोई बड़ा है,कोई छोटा ' मायने ' रखता है बस ' जुड़े ' रहना..
*
@ शक्ति शालिनी रेनू अनुभूति नीलम  
*
संस्कार : परिवर्तन : मनुष्य :  ' नेतृत्व ' 
*
जो लोग ' बदलाव ' के ' बाद ' बदलते हैं, वे ' जीवित ' रहते हैं,
जो लोग ' बदलाव ' के साथ बदलते हैं, वे ' सफल ' होते हैं, 
लेकिन जो लोग ' बदलाव ' लाते हैं, वे ' नेतृत्व ' करते हैं
*
नए अंदाज के साथ ,नए युग की नई शुरुआत
आ रहे इस धनतेरस, दिवाली की हार्दिक अनंत शिव शक्ति शुभकामनाओं के साथ
*
मुन्ना लाल महेश लाल आर्य एंड संस ज्वेलर्स. समर्थित


*
ज्योति कलश छलके : प्रकाश पर्व की अनंत शिव शक्ति शुभकामनाओं के साथ

ममता हॉस्पिटल बिहार शरीफ : शक्ति डॉ.ममता आर्य डॉ.सुनील कुमार: समर्थित 
*

*
-----------
सम्पादकीय : पृष्ठ : २.
----------
लक्ष्मी रूपेण संस्थिता.
संरक्षण शक्ति
*

शक्ति. रश्मि श्रीवास्तवा.भा.पु.से. शक्ति. अपूर्वा.भा.प्र.से.
शक्ति.साक्षी कुमारी.भा.पु.से.
शक्ति.जसिका सिंह. अधिवक्ता.उच्च न्यायलय. प्रयाग राज
---------
संपादकीय शक्ति समूह.
----------
प्रधान शक्ति संपादिका.
नव शक्ति. 
श्यामली : डेस्क : शिमला.
प्रादुर्भाव वर्ष : १९९९. 
संस्थापना वर्ष : २०००. महीना : जनवरी. दिवस :५. 


*
शक्ति : शालिनी रेनू नीलम 'अनुभूति '

*
शक्ति. कार्यकारी सम्पादिका.


*
शक्ति. डॉ.सुनीता शक्ति*प्रिया.
नैना देवी.नैनीताल डेस्क.
प्रादुर्भाव वर्ष : १९७०..
संस्थापना वर्ष : १९९६. महीना : जनवरी : दिवस : ६.

सहायक.कार्यकारी.
शक्ति.संपादिका.
*

*
शक्ति.डॉ.अर्चना सीमा वाणी अनीता.
कोलकोता डेस्क.
प्रादुर्भाव वर्ष : १९७९.
संस्थापना वर्ष : १९९९.महीना : जून. दिवस :२.
*
दृश्यम :फोटो. 
सम्पादिका 
*

शक्ति. डॉ.अनु मीना नैना श्रद्धा.
नैनीताल डेस्क.
कला सम्पादिका


चंडीगढ़ डेस्क.
शक्ति मंजिता सोनी स्वाति शबनम
*
विशेषांक सम्पादिका
*

नैनीताल डेस्क.
शक्ति. तनु बीना मानसी कंचन सर्वाधिकारी.
*
ज्योति कलश छलके प्रकाश पर्व : लोक पर्व छठ की शुभकामनाओं के साथ

*
ममता हॉस्पिटल बिहार शरीफ : शक्ति डॉ. ममता आर्य डॉ.सुनील कुमार  : समर्थित 
*
----------
आकाश दीप : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
----------
संपादन.
*
संपादन
शिमला डेस्क.


शक्ति. रेनू अनुभूति शालिनी मानसी.
*
*
तुम्हारे लिए
भाविकाएँ : पृष्ठ : ३./१
*
शक्ति.प्रिया मधुप.
कार्यकारी सम्पादिका.
दार्जलिंग.
*

 आकाश दीप.
 

फोटो : शक्ति अनु 

जलाए मैंने तुम्हारी याद में, 
 तुम्हारे लिए, 
हां, सिर्फ तुम्हारे लिए
उम्मीदों के कई आकाश दीये 
इस दिवाली,
तुम तक सन्देश पहुंचाने के लिए ही,  उड़ाये 
कुछ तो तुम तक़ पहुंचे ही होंगे,न ? 
इस उम्मीद में, 
इस घने अँधेरे में भी, 
 हो सके तो बस एक दीया,  
प्रेम से विश्वास का जला लो,
अगर जीना है तो,
लोग क्या कहेंगे ?
इस डर, और बहम 
अपने भीतर से हटा लो, 
कितना बेहतर हो, 


     डॉ.मधुप. : फोटो      
©️®️ M.S.Media. 
जो तुम अपने दृढ़ विश्वास से ही, 
अपने रस्मों  और रिवाज़ से ही, 
खुद को ही नहीं, 
समाज को भी बदल डालो. 
...अपने भीतर के डर, और बहम 
 के अंधकार को 
हमेशा के लिए मिटा डालो ... 
मेरी मानो तो, 
बस आज एक दिन नहीं, 
इस तरह हर दिन 
हां, इस तरह ही ,अपनी 
शुभ दीपावली मना लो. 

*
वो किस किस से वफ़ा करते
*
*
फोटो : शक्ति प्रिया : दिवाली रंगोली
*

उनकी क्या गलती थी
वो भी भला क्या करते
चाहने वाले थे उनके हज़ार
वो किस किस से वफ़ा करते
वो कहते हैं
कर लेते दिलों जान से मुहब्बत
सबसे
जो लोग उन्हें
दिल से
जान लेते
सही फलसफा
मुहब्बत का
समझ लेते

*
कब लौट पाऊँगी ?


शक्ति : फोटो

सोचा नहीं था कभी ऐसा भी दिन आएगा, सोचा नहीं था कभी, हमें इतना रुलाएगा. सोचा नहीं था, जो पल संभाल के रखे थे इस सफ़र में, वो तूफ़ान बनकर आएगा और सब ख़त्म कर जाएगा. हर पल ये डर सताने लगा है, कब क्या हो जाए, ये जताने लगा है. जब देखती हूँ अपने आप को आइने में, तो आँखों से आँसू टपकने लगे हैं. कब लौट पाऊँगी और ख़ुशी दे पाऊँगी अपने माँ-बाप को, कब मुस्कान की लहर ले पाऊँगी अपने भाई-बहन के लिए . हर वक़्त ये चिंता बढ़ने लगी है, कब ख़ुशी की बहार दे पाऊँगी उनको। मजबूरी सबकी होती है, ये समझती हूँ मैं, बेचैनी सबको आती है, ये जानती हूँ मैं. ख़ुद की परेशानी से झूलते-झूलते कब ख़त्म हो जाए ये सफ़र, ये सोचकर हर पल घबराने लगी हूँ मैं.
*
पृष्ठ संपादन शक्ति शालिनी डॉ.सुनीता अनुभूति
*
पृष्ठ सज्जा : नैना माधवी मंजिता सीमा.
*
प्रथम मीडिया : समर्थित
*

भाविकाएँ अनुभाग : पृष्ठ : ३ / २.
सिर्फ तुम
*
शक्ति. रेनू शब्द मुखर.
प्रधान सम्पादिका.
जयपुर .
*
भाविकाएँ
*
सुनते है जब प्यार
हो तो दिए जल उठते है
*

फोटो : शक्ति रेनू.
*
प्रेम वो है ❤️ जो नज़रों के समंदर में सिर्फ एक चेहरा तलाश ले जो दिल की धड़कनों के बीच चुपके से अपना नाम बसा ले। जिसे छुआ नहीं कभी फिर भी हर सांस में महसूस हो प्रेम वो है जो कमियों को भी गले लगा ले नाराज़ियों में भी मुस्कान ढूँढ लाए सर्द सुबह में हथेलियों की गरमाहट बने और तपती दोपहर में छाँव बन जाए। प्रेम वो है जहाँ शब्द छोटे पड़ जाएँ पर जुड़ाव अटूट खड़ा रहे जो दूरी में भी पास हो स्पर्श से आगे बढ़कर सिर्फ विश्वास बन जाए। क्योंकि तुम हो तो हर दिन उत्सव है तुम हो तो हर मौसम बहार है और यही सबसे बड़ा सच है प्रेम… जिसे तुम समझते हो उसी विश्वास पर मैं हर शब्द रचती हूँ। * रेनू शब्द मुखर
लिखे जो ख़त तुझे *

फोटो : सन्दर्भ : अनु
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दीवाली की सफाई में... अलमारी के कोने से निकला एक डिब्बा - जिसमें बंद थे सालों पुराने मौसम,
कुछ पीले खत,
कुछ अधूरी मुस्कानें और रेशमी गंध किसी बीते वक्त की. धूल झाड़ी तो
उड़ गए कुछ पछतावे भी साथ,
साँसों में घुल गई पुराने दिनों की मिट्टी की खुशबू.
एक चूड़ी टूटी हुई मिली,
जैसे कोई वादा अधूरा रह गया हो,
एक रिबन,
जो किसी बालपन की हँसी समेटे था.
हाथ काँपे, मन ठहरा, और लगा हर चीज़ बोल उठी हो !
कपड़ों के नीचे दबे कुछ शब्द मिले
शायद कोई कविता जो मैंने कभी पूरी नहीं की थी।
अब उसकी अधूरी पंक्तियों में
दीपक सी लौ जल उठी...
सोचा, फेंक दूँ सब पुराना, फिर ठहर गई मैं,
क्योंकि हर कागज, हर टुकड़ा मेरे किसी रूप का आईना था।
दीवाली की सफाई में धूल झाड़ी मैंने चीज़ों की नहीं,
अपने भीतर की भी-
और पाया कि बल्कि पुराना था
जो सबसे चमकदार था,
वो नया नहीं,पुराना था
जिसमें अब भी
दिल धड़कता था...
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रेनू शब्दमुखर, जयपुर
कीजिए ‘ इश्क़ ’


©️®️MS.Media.
फोटो : शक्ति मीना सिंह ज़रूर कीजिए ‘इश्क़’ किसी चेहरे से नहीं, किसी रूह से, किसी मौसम से, किसी ख़्वाब से, या बस,अपने ही भीतर बसे उस अजनबी से हर इश्क़ का अंजाम मिलन नहीं होता, कुछ इश्क़ सिर्फ़ एहसास बनकर जीते हैं - जो हमें पूरा कर जाते हैं, भले कोई और अधूरा रह जाए। कभी किसी शाम को, किसी राग में, किसी कविता की पंक्ति में, खुद से ही बातें कीजिए... वही असली इश्क़ है जो टूटकर भी जोड़ देता है. इश्क़ ज़रूरी नहीं कि किसी के साथ हो, कभी-कभी वो बस आपके भीतर के उजाले से होता है. हर इश्क़ का मतलब किसी का होना नहीं, कभी-कभी इश्क़ बस खुद को महसूस करना होता है
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स्तंभ सज्जा / संपादन :
शक्ति.प्रिया डॉ.अनु सीमा.

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फोटो : शक्ति : मसूरी नैना. 
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आज तो बादलों ने चाँद की देहरी ढँक ली है, पर भीतर कुछ उजला-सा बह रहा है जैसे बारिश की हर बूँद उसका प्रतिबिंब लेकर आई हो। आज की रात आकाश ने अपना मन खोला है, दूधिया उजाले में जैसे किसी ने आत्मा धो दी हो…
रात का मौन एक प्रार्थना बन गया है, जहाँ प्रेम दीप नहीं, मन का प्रकाश बन जाता है। बाहर तो बारिश की परतों ने चाँद का चेहरा छुपा लिया है, पर भीतर अब भी उजाला बह रहा है शायद वही शरद का चाँद मेरे मन में उतर आया है। *
चाँद उतरा है
करवा चौथ : भाविकाएँ
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*शक्ति रेनू शब्द मुखर
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शक्ति : फोटो : साभार
शरद की श्वेत नीरवता में नहीं, मेरे अंतर्मन में, जहाँ तुम्हारा नाम अब भी अधूरी कविता बनकर सांस ले रहा है। ओस की बूंदों में तुम्हारी हँसी की चमक है, और हवा में तुम्हारी आवाज़ की कोमल छुअन। मैंने सोचा था चाँद सिर्फ आसमान में होगा, पर वह तो तुम्हारी आँखों में भी उगा है, जहाँ उजाला और धड़कन एक साथ झिलमिलाते हैं।
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शक्ति रेनू शब्द मुखर
प्रधान सम्पादिका
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लघु कविता
जीवन के रास्ते में

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जीवन एक रास्ता है, जिस पर अकेले चलना पड़ता है, कई लोग आते हैं, कई छूट जाते हैं, कंकड़ पत्थर से बच- बचाकर, चलना इस पर पड़ता है, पर न जाने क्यों, एक- दो तो चूभ ही जाते है, खेलते- खेलाते, हंसते- हंसाते, जीवन चलते रहता है, ज्यादा धूप लगने लगती तो, मां के आंचल से सिर ढक लिया करते हैं , अगर कंकड़ आने लगें ज्यादा रास्ते पे, तो पिता का हाथ पकड़ लिया करते हैं, पर आखिरी में तो, सफर अकेले ही खत्म करना पड़ता है.
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पृष्ठ सज्जा : शक्ति. प्रिया डॉ.अनु सीमा

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सम्पादित शक्ति.नीलम रेनू अनुभूति
*
टाइम्स मीडिया शक्ति प्रस्तुति

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भाविकाएँ
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अनुगूँज.

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शक्ति. शालिनी
कवयित्री लेखिका 
प्रधान सम्पादिका 
*
दीपावली.
रोला. साभार 
दीपावली : जी आई एफ. 
*
भाविकाएँ 

शक्ति : देव  विजयी भवः 
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फोटो : शक्ति रेनू : जयपुर. 
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गणेश जी से मिले,
बुद्धि का वरदान,
महालक्ष्मी शक्ति  से मिले
धन-संपदा ऐश्वर्य का दान।
यही कामना है हमारी, 
इस दिवाली पर्व पर,
कर ले देव विश्व विजय आप 
पाएं सुख-समृद्धि 
प्यार  मान और- सम्मान।।
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शक्ति.शालिनी प्रिया डॉ सुनीता 
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रहो सदा खुशहाल, प्रेम के दीप जलाओ।
मिटें द्वेष जंजाल, दीपिका पर्व मनाओ।
फैले पुंज प्रकाश, रूप की चौदस पाओ।
राग द्वेष से दूर मनीषा सी बन जाओ।।
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ज्योति पर्व है आज, तुम्हें हो ये फलदाई।
रखो हमेशा लाज, रूप श्री तुमने पायी।
सुखद शुभम आलोक, दिखाई दे खुशहाली।
दूर रहें दुख शोक, हो पावन पर्व दीवाली।।

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ग़ज़ल
*
हर जज़्बात को दिल में दबाना सीखेंगे.
*

फोटो : डॉ.मधुप.
शक्ति. नैना.

हर जज़्बात को दिल में दबाना सीखेंगे, ग़म-ए-हालात में भी मुस्कुराना सीखेंगे। अब ना रोकेंगे ये आँधी और तूफान हमें, हम समुंदर से भी मोती चुराना सीखेंगे। ज़ुल्म ढाओगे उम्र भर तो भी सहेंगे हम, नैन के कोरों में आँसू छिपाना सीखेंगे। सीख लेंगे अंधेरों से लड़कर निकलना, बीच भँवर से हम निकल जाना सीखेंगे। ख़ुश रहो तुम हमेशा बस ये दुआं है मेरी, हम भी तन्हाइयों से दिल लगाना सीखेंगे।

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सवैया छंद .शरदपूर्णिमा.
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आज हुआ है क्षीर मंथन और लक्ष्मी भाग्य जगाय रही है.
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क्षीर मंथन लक्ष्मी : शरद पूर्णिमा : कोलाज. शक्ति प्रिया सीमा

षोडश कला से शशि है चमके ज्योत्स्ना आज लुभाय रही है। दशों दिशा फैली है शुभ्रता हृदय को अतिशय भाय रही है।। रजनी यह आई शरद पूर्णिमा की अमिय रस बरसाय रही है। शशांक आया धरा पर कि वसुधा आज शशिधाम जाय रही है। चन्द्र निहारत कृष्ण को चाँदनी धवल धरा दमकाय रही है। मोहन ने व्रज में जो रास रचायो व्रजबाला आनंद पाय रही है।। राधा भी सुध बुध खो बैठी जब वेणु मधुर धुन लाय रही है। भेष बदल देव नृत्य निरेखें सुरबाला सब हरषाय रही हैं।। आज हुआ है क्षीर मंथन और लक्ष्मी भाग्य जगाय रही है। पायस बनाकर व्योम तले रख प्रभु को भोग लगाय रही है।। पायस प्रसाद बना जब चन्द्रिका स्नेह सुधा बरसाय रही है। लक्ष्मी पूजन में मिष्ठान्न, मोदक, फल के भोग लगाय रही है।। रात्रि सुहानी शरद पूर्णिमा की श्वेत प्रभा फैलाय रही है। तारों की संगत जैसे कि पंगत हर्षोल्लास मनाय रही है।।
शान्त, सुकोमल, शीतल, सुन्दर, मलय पवन बलखाय रही है। तरु, पल्लव पर ओस की बूंदें, मुक्ता सी झलकाय रही है।

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शक्ति शालिनी.
कवयित्री लेखिका 
प्रधान सम्पादिका 
*
पृष्ठ सज्जा : शक्ति प्रिया मंजिता सीमा
*
*
ए एंड एम मीडिया शक्ति प्रस्तुति
*

नीलम पांडेय. 
प्रधान सम्पादिका 
वाराणसी 

दीया कब तक जलेगा ?



हर बार आती है जब दिवाली,
लगता है मिट जाएगी रात काली.
होगा ना तम का निशानअब कहीं पर,
चांद उतर के आ जाएगा जमीं पर.
रौशन होंगे अब घर हर किसी के,
सजी होगी आंगन में सुंदर रंगोली.
सोचा ना एक पल को भी किसी ने,
दीपक तले है क्यूं रहता अंधेरा ?
डाला हो मन में जब तम ने डेरा,
दीया से कैसे मिटेगा अंधेरा ?
सोते जग को देख के कबीरा,
अपनी हंसी को ना रोक सका,
अपने भीतर के साईं को कैसे ?
जो अब तक ना खोज सका.
जैसे नभ का हर एक कोना,
चांदनी से जगमग,रौशन है,
अंतस के भी हर कोने में,
एक दीया जलाना पड़ता है.
मत रोक,ख़ुद जला के देख जरा,
माटी का दीया कब तक जलेगा ?

जीवन के सफ़र में *
प्रणव राज.
*
लघु कविता
*

फोटो : संदर्भित : डॉ. मधुप
जीवन एक रास्ता है, जिस पर अकेले चलना पड़ता है, कई लोग आते हैं, कई छूट जाते हैं, कंकड़ पत्थर से बच- बचाकर, चलना इस पर पड़ता है, पर न जाने क्यों, एक- दो तो चूभ ही जाते है, खेलते- खेलाते, हंसते- हंसाते, जीवन चलते रहता है, ज्यादा धूप लगने लगती तो, मां के आंचल से सिर ढक लिया करते है , अगर कंकड़ आने लगें ज्यादा रास्ते पे, तो पिता का हाथ पकड़ लिया करते हैं, पर आखिरी में तो, सफर अकेले ही खत्म करना पड़ता है.
* प्रणव राज.
*
संपादन सज्जा : शक्ति शालिनी नीलम रेनू अनुभूति.
*
मुन्ना लाल महेश लाल आर्य एंड संस ज्वेलर्स. समर्थित


*

* लीवर. पेट. आंत. रोग विशेषज्ञ. शक्ति. डॉ.कृतिका. आर्य. डॉ.वैभव राज :किवा गैस्ट्रो सेंटर : पटना : बिहारशरीफ : समर्थित.
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तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : शक्ति : सम्पादकीय : प्रस्तुति. पृष्ठ :४.
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संपादन
शक्ति
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वाराणसी डेस्क.
शक्ति नीलम अनुभूति शालिनी प्रीति.

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शक्ति महालक्ष्मी : आलेख : पृष्ठ :४ /१
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प्रकाश 'लक्ष्मी' का प्रतीक है : अर्थात्, शुभ, आरोग्य और ऐश्वर्य देने वाली. 
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शक्ति.प्रिया डॉ सुनीता सीमा

शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा।
  शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते॥


प्रकाश 'लक्ष्मी' का प्रतीक है : अर्थात्, शुभ, आरोग्य और ऐश्वर्य देने वाली. शक्ति कोलाज

प्रकाश 'लक्ष्मी' का प्रतीक है  : अर्थात्, शुभ, आरोग्य और ऐश्वर्य देने वाले, वैमनस्य भावों का नाश करने वाले, दीप के प्रकाश को नमस्कार है। दिवाली, दीपावली,दीपोत्सव, प्रकाशपर्व चाहे जिस नाम से पुकारिए भाव एक ही ओर संकेत करते हैं 'तमसो मा ज्योतिर्गमय...........।'
इक तरफ़ अज्ञान की घनघोर रात्रि दूसरी तरफ ज्ञान के प्रकाश से आलोकित ज्योतिर्मय पथ। कारण चाहे जितने भी हों,प्रतिकार्थ बस एक ही है - 'आलोकित पथ करो हमारा, हे जग के अंतर्यामी।'
प्रकाश 'लक्ष्मी' का प्रतीक है और लक्ष्मी सुख, सौभाग्य और समृद्धि का। इसीलिए इस दिन धनदात्री लक्ष्मी और अन्नदाता गणेश की पूजा का विधान है। दिवाली पर्व में सारी रात दीप जलाकर अंधकार को जीतना, लक्ष्मी के साथ गणेश का आवाहन करना, अगले दिन दरिद्रता को दूर भगाना ,  इक दूसरे को मोदक प्रसाद के रूप में बांटना आदि किए जाने की परंपरा है। उत्तर भारत में विशेषतः इसी प्रकार दिवाली मनाते हैं। आतिशबाजी भी की जाती है पर पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर अब इस पर काफी हद तक रोक लगा दिया गया है। 
जनश्रुति, लोकगाथा :  जनश्रुति, लोकगाथा, कथा के विभिन्न स्रोत कई बातों को इस प्रकाशोत्सव से जोड़ कर देखते हैं जिनमें से कुछ इस तरह से हैं :-
भगवान राम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौट आने की खुशी : सबसे बड़ा कारण भगवान राम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौट आने की खुशी में सारी अयोध्या का दीपों से जगमगाया जाना था। आज एक बार फिर से अयोध्या दीपों से जगमग है। ' जय श्री राम ' के उद्घोष से गूंज उठा है। राम और अयोध्या की चर्चा देश की सीमा को पार कर विश्व में हो रही है। हर भारतवासी को राम की धरती पर जन्म लेने पर गर्व का अनुभव हो रहा है। रामलला के दर्शन को आतुर हर देशवासी मर्यादा पुरुषोत्तम की जीवन गाथा से सम्मोहित और अनुप्राणित है। यूं कहें यह दिवाली सबके लिए ख़ास हो गई है।
श्रीकृष्ण  : नरकासुर। पौराणिक कथाएं : यह भी कहा जाता है,दिवाली के ठीक एक दिन पहले श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। 
महाकाली : लक्ष्मी की पूजा   ऐसा भी मानते हैं कि राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया और उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई।
कहीं-कहीं इस रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है। 
इस बात की पुष्टि की जाती है कि दिवाली के दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। इसी तरह दिवाली के दिन ही गुप्तवंशीय राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने 'विक्रम संवत' की स्थापना करने के लिए धर्म, गणित तथा ज्योतिष के दिग्गज विद्वानों को आमन्त्रित कर मुहूर्त निकलवाया था। 
महावीर का निर्वाण दिवस : दिवाली भगवान महावीर का निर्वाण दिवस भी है। ऐसा भी माना जाता है कि गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने गौतम बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। 
अमृतसर में १५७७  में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। दिवाली ही के दिन सिक्खों के छ्टे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को कारागार से रिहा किया गया था। दिवालीआर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण दिवस भी है। हमारे पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में 'नया वर्ष' दीवाली से आरम्भ होता है। 
कहते हैं कार्तिक अमावस को ही राजा महाबली को भगवान विष्णु ने पाताल लोक का स्वामी बनाया और तब इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीपावली मनाई थी। इस दिन ने नरसिंह रुपधारी भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया था। दीवाली के दिन ही समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए थे।
 उक्त सभी कारणों को हम दिवाली से जोड़कर देखते हैं और  दीपावली का त्योहार मनाते हैं। सनातन संस्कृति में प्रातः एवं सायं की आराधना का विशेष महत्व है। प्रातः-सायं दीपक प्रज्वलित कर मंत्र का जाप करने से भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं। सायं के समय दीप प्रज्वलित कर मंत्र जाप करने का विशेष लाभ होता है, जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है, और घर में सुख-समृद्धि आती है। तमसो मा ज्योतिर्गमय...
' कह दो अंधेरों से कहीं और घर बना लें ,
           मेरे मुल्क में रोशनी का त्योहार आया है ...' ❤️

स्तंभ संपादन : शक्ति नैना माधवी कंचन बीना 
स्तंभ सज्जा : शक्ति डॉ. अनु एंजेल मंजिता अनुभूति 
क्रमशः जारी  


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शक्ति महालक्ष्मी :आलेख : पृष्ठ :४ / २
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दीये जलते हैं : दीप बनाने की कला : राँची में परंपराओं अभी भी  जीवित है 
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अशोक करण
 भूतपूर्व प्रेस फोटोग्राफर. हिंदुस्तान. पटना रांची.
भूतपूर्व फोटो संपादक : पब्लिक एजेंडा नई दिल्ली. 
 महाशक्ति मीडिया ब्लॉग मैगज़ीन पेज : फोटो संपादक : वर्तमान. 
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राँची की मिट्टी कला : परंपरा और आधुनिकता का संगम : फोटो : अशोक करण 
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जैसे जैसे दीपावली करीब आती है, राँची के कुम्हार सुंदर मिट्टी की कृतियों को आकार देने में व्यस्त हो जाते हैं।  पारंपरिक दीयों और लालटेनों से लेकर माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की मिट्टी की छोटी मूर्तियों तक। इन हस्तनिर्मित रचनाओं से सजे बाज़ार अब उजाला, समृद्धि और श्रद्धा के प्रतीक के रूप में जगमगाने लगे हैं।
हालाँकि, इस वर्ष मौसम ने कुम्हारों के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कीं। लगातार वर्षा और नमी के कारण मिट्टी के दीयों को सूखाने और पकाने में कठिनाइयाँ आईं। फिर भी राँची के कुम्हारों का उत्साह और समर्पण कम नहीं हुआ।
राँची की मिट्टी कला : परंपरा और आधुनिकता का संगम : राँची में कई मिट्टी उत्पादक और व्यापारी हैं, जो पारंपरिक टेराकोटा और आधुनिक सिरेमिक डिज़ाइन दोनों में निपुण हैं। हैप्पी मट्टी, रौनक आर्ट्स और राज सिरेमिक्स जैसे प्रसिद्ध नाम पुरातन कला को सहेजते हुए आधुनिक ग्राहकों की पसंद के अनुसार काम कर रहे हैं।
यहाँ की मिट्टी कला केवल सजावटी नहीं, बल्कि उपयोगी भी है घर की सजावट, बागवानी और रसोई के बर्तनों तक। कई कलाकार अब पर्यावरण-अनुकूल विधियाँ अपनाकर और ऑनलाइन बिक्री मंचों से जुड़कर अपने काम को अधिक लोगों तक पहुँचा रहे हैं। 
राँची के प्रमुख मिट्टी कला केंद्र: ये संस्थान न केवल सांस्कृतिक विरासत को सहेजते हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाते हुए कई लोगों को रोजगार भी प्रदान करते हैं।
हैप्पी मट्टी : हस्तनिर्मित मिट्टी कला और डेकोर के क्षेत्र में अग्रणी नाम।
रौनक आर्ट्स : अपने अनोखे टेराकोटा और सिरेमिक कला कार्यों के लिए प्रसिद्ध। 
क्ले पॉट डीलर्स : हरमू रोड और कांके रोड पर स्थित, जो मिट्टी के बर्तन और पौधों के गमले बेचते हैं।
राज सिरेमिक्स : पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रकार के डिज़ाइनर दीयों में विशेषज्ञ। 
प्रजापति मट्टी मेगा मार्ट : रंग-बिरंगे और आकर्षक त्योहारों के दीयों के लिए प्रसिद्ध।

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गतांक से आगे. १ 
पारंपरिक कौशल और वैज्ञानिक सोच का सुंदर संगम : इलेक्ट्रिक चाक.
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अशोक करण
 भूतपूर्व प्रेस फोटोग्राफर. हिंदुस्तान. पटना रांची.
भूतपूर्व फोटो संपादक : पब्लिक एजेंडा नई दिल्ली. 
 महाशक्ति मीडिया ब्लॉग मैगज़ीन पेज : फोटो संपादक : वर्तमान. 
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अपने परिवारों की आजीविका के लिए दीया निर्माण करते हुए : फोटो : अशोक कर्ण 

पारंपरिक दीया निर्माताओं की चुनौतियाँ : कला और मेहनत के बावजूद ग्रामीण कुम्हार अनेक कठिनाइयों से जूझ रहे हैं: बाज़ार में सस्ते इलेक्ट्रिक लैंप और प्लास्टिक लाइटों की भरमार से मिट्टी के दीयों की माँग घटी है। एक दीये को तैयार करने में लगभग ४८ घंटे लगते हैं, परंतु उसकी कीमत बहुत कम मिलती है।
कच्चे माल की बढ़ती लागत और आर्थिक सहयोग की कमी से जीविका कठिन हो गई है।
पारंपरिक भट्ठों से उठने वाला धुआँ कलाकारों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। युवा पीढ़ी कम आय और कठिन कार्य परिस्थितियों के कारण इस पेशे में रुचि नहीं दिखा रही। दीपावली के समय बड़े उद्योगों को अधिक लाभ मिलता है, जिससे ग्रामीण कारीगर पीछे रह जाते हैं।
पारंपरिक कौशल और वैज्ञानिक सोच का सुंदर संगम : इलेक्ट्रिक चाक : स्थानीय कुम्हार करण कुमार प्रजापति बताते हैं कि वे १०० दीयों का सेट १५० रुपये में बेचते थे, पर इस वर्ष भारी वर्षा के कारण कीमत ₹ २०० करनी पड़ी। वे लक्ष्मी-गणेश की मिट्टी की मूर्तियाँ और रंगीन आकृतियाँ भी बनाते हैं, जिनमें कुछ डिज़ाइन बंगाल और असम से प्रेरित हैं।
आज कई कुम्हार पारंपरिक हाथ से चलने वाले चाक की जगह इलेक्ट्रिक चाक का उपयोग करने लगे हैं, जिससे कार्य की गति बढ़ी है, पर हस्तकला की आत्मा अब भी जीवित है। नवाचार और आशा उजाले की नई राह कठिनाइयों के बीच नवाचार और उम्मीद की किरणें भी दिखती हैं: छत्तीसगढ़ के अशोक चक्रधारी ने ऐसा दीया बनाया है जो लगातार २४ घंटे जलता है। पारंपरिक कौशल और वैज्ञानिक सोच का सुंदर संगम।
मुंबई : पश्चिम बंगाल के रायदीघी गाँव : उत्तर प्रदेश की माटी कला बोर्ड : मुंबई के धारावी के कुम्हारवाड़ा में गुजरात से आए कुम्हारों ने एक समृद्ध समुदाय बनाया है, जो हर दीपावली हजारों हस्तनिर्मित दीये तैयार करता है।
पश्चिम बंगाल के रायदीघी गाँव की महिलाएँ आज अपने परिवारों की आजीविका के लिए दीया निर्माण कर रही हैं।
उत्तर प्रदेश की माटी कला बोर्ड कुम्हारों को इलेक्ट्रिक चाक,मशीनें और बैंक ऋण उपलब्ध कराकर इस कला को टिकाऊ बना रही है। कई संगठन और जागरूक उपभोक्ता अब स्थानीय हस्तनिर्मित दीयों को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे कारीगरों की आजीविका सुरक्षित हो और भारत की सांस्कृतिक धरोहर सहेजी जा सके। स्वयं हमारे प्रधानमंत्री भी स्थानीय और हस्तनिर्मित उत्पाद खरीदने का संदेश दे चुके हैं, ताकि मेहनती कारीगरों के घरों में भी उजाला फैले। चित्रों में राँची की सड़कों के किनारे मिट्टी के दीये बनाए, रंगे और सुखाए जा रहे हैं। 
आइए, इस दीपावली हम हस्तनिर्मित दीयों को अपनाएँ  ताकि रोशनी सिर्फ़ हमारे घरों में नहीं, बल्कि उन कारीगरों के जीवन में भी फैले जिन्होंने इन्हें प्रेम से बनाया है।
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स्तंभ संपादन : शक्ति. नैना माधवी कंचन बीना 
स्तंभ सज्जा : शक्ति. डॉ. अनु एंजेल मंजिता अनुभूति 

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शक्ति महालक्ष्मी :आलेख : पृष्ठ :४ / ३
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ऊॅं असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय
प्रकाश पर्व और दीपोत्सव 
शक्ति.आरती अरुण. 
रांची. डेस्क 
एक चिराग तो उम्मीद के जलाओ बहुत अँधेरा है : फोटो : शक्ति अनु सिमरन ज्योति सिद्धांत :जयपुर 

भारत तीज, त्योहार और व्रतों की भूमि है जहां ऋतु आधारित, पौराणिक गाथाओं से अभिप्राणित और लोक जीवन और संस्कृति तथा आध्यात्मिक भावों से परिपूर्ण उत्सवों के आयोजन होते रहते हैं।
उन पर्व त्योहारों में से दीपावली या दीपोत्सव या दीवाली भी एक है जिसके आयोजन के पीछे भी सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक, पौराणिक और आध्यात्मिक कारण और गाथाएं जुड़ी हुई हैं जिनमें निजी तौर पर हमें यह अंधकार के विरुद्ध प्रकाश की विजय का संदेश लगता है जो समाज के हर वर्ग और समुदाय के लिए सम्यक् और प्रासंगिक है। 
एक चिराग तो उम्मीद के जलाओ : ऐसे तो इसके कई अन्य कारण भी हैं जो सबके लिए ज्ञात है। कार्तिक मास की अमावस्या,स्यामवर्णा रात्रि, वायुमंडल में हल्की हल्की सिहरन, सामर्थ्यानुसार हर घर में रौशनी,रह रह कर फूटते पटाखे और चमकती फूलझड़ियां, खील बताशे मीठाईयां,सजे धजे दरवाजे और सदैव प्रकाशित रहने और करने का संदेश,एक अद्भुत संयोजन और समन्वय  दिखाई पड़ता है जो सदैव हमें प्रेरित करता रहता है और सीखाता है कि अंधेरा चाहे कितना भी घना क्यों न हो,उसे हम एक छोटे से दीपक से पराजित कर सकते हैं और अंधकार भी वास्तव में हमें जगाने आता है कि उठो,जागो और हमें कोसने के बजाय एक चिराग जलाओ,हमारा अस्तित्व खत्म हो जाएगा,यह छोटी सी उक्ति बहुत कुछ कह जाती है कि हमें हर प्रतिकूल ता में आशा की उम्मीद की एक किरण खोजनी चाहिए जिसके सहारे हम आगे बढ़कर उस परिस्थिति का सामना कर सकें। 
प्रकाश पर्व का  संदेश : यह प्रकाश पर्व हमें यही संदेश देता है और कहता है, ऊॅं असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मा आमृतम् गमय असत् से सत् की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चल, इसका अभिप्राय सिर्फ बाह्य अंधकार नहीं बल्कि हमारे आन्तरिक अंधकार से भी है जो हमारे भीतर अज्ञान,अविद्या,और पंचमाकारों के रूप में बैठा हुआ है। इस प्रकाश पर्व की हार्दिक बधाईयां एवं मंगलकामनाऍं।
यही प्रार्थना हम असीम अगोचर परमात्मा से सबके लिए करते हैं और इस दीपोत्सव की यही मंगलकामनाऍं,यही शुभकामनाऍं हम आपके लिए सपरिवार करते हैं कि यह दीपोत्सव आपके जीवन से हर अंधकार और संघर्षों को दूर कर जीवन को जगमग  बनावे और आप स्वस्थ, प्रसन्न और समृद्ध हों।

संपादन : शक्ति रेनू दीप्ती कंचन भारती 
सज्जा : शक्ति मंजिता सीमा गरिमा अनुभूति 
नैनीताल डेस्क 

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शक्ति महालक्ष्मी : आलेख : पृष्ठ :४ / ४
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श्री हरि : नाभि : कमल : ब्रह्मा : काया : कायस्थ 
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संकलन : प्रस्तुति : संपादन : सज्जा 
 शक्ति* प्रिया डॉ सुनीता सीमा प्रीति सहाय 
* चित्रगुप्त नमोऽस्तु ते *

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मसीभाजनसंयुक्तश्चरसि त्वं महीतले। लेखनी-कटिनीहस्ते चित्रगुप्त नमोऽस्तु ते।
चित्रगुप्त! नमस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायक कायस्थ जातिमासाद्य चित्रगुप्त! नमोऽस्तुते.

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श्री हरि : नाभि : कमल : चित्रगुप्त जी की जन्म कथा : पुराणों में वर्णित है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरुष आसीन था- ये ब्रह्मा कहलाए। इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया। इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ। इस पुरुष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा।

कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीय तिथि को भगवान चित्र गुप्त की पूजा करते कायस्थ : फोटो शक्ति ज्योति विदिशा. 

ब्रह्मा : काया : कायस्थ : कायस्थ का जन्म मुंह से नहीं ब्रह्मा जी की काया से हुआ है। 
चित्रगुप्त एक प्रमुख हिन्दू देवता हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार श्री धर्मराज / चित्रगुप्त मनुष्यों एवं समस्त जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले न्यायब्रह्म हैं। आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रुप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते हैं अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं एवं इन्हीं के आधार पर जीवों के परलोक व पुनर्जन्म का निर्णय भगवान चित्रगुप्त जी के करते हैं। 
विज्ञान ने यह भी सिद्ध किया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं । इसे ही हजारों बर्षों पूर्व हमारे वेदों में लिखा गया हैंं। भगवान चित्रगुप्त जी ही सृष्टि के प्रथम न्यायब्रह्म हैं। मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक अथवा पुनर्जन्म का निर्णय लेने का अधिकार भगवान चित्रगुप्त जी के पास है। अर्थात किस को स्वर्ग मिलेगा और कौन नर्क मेंं जाएगा ? इस बात का निर्धारण भगवान धर्मराज/ चित्रगुप्त जी के द्वारा जीवात्मा द्वारा किए गए कर्मों के आधार पर ही किया जाता है। श्री चित्रगुप्त जी संपूर्ण विश्व के प्रमुख देवता हैं। चित्रगुप्त जी सभी के ह्रदय में वास करते है। मान्यताओं के अनुसार चित्रगुप्त को कायस्थों का इष्टदेव बताया जाता हैंं। 
चित्रगुप्त : उनकी दो जीवन संगिनी : सूर्यदक्षिणा व इरावती : ग्रंथों में चित्रगुप्त को महाशक्तिमान राजा के नाम से सम्बोधित किया गया है। ब्रह्मदेव के १७ मानस पुत्र होने के कारण वश यह ब्राह्मण माने जाते हैं इनकी दो शादियाँ  हुई, पहली पत्नी मनु की पुत्री  सूर्यदक्षिणा /नंदनी जो ब्राह्मण कन्या थी, इनसे ४ पुत्र हुए जो भानू, विभानू, विश्वभानू और वीर्यभानू कहलाए। 
दूसरी पत्नी इरावती / शोभावति  ऋषि सुशर्मा की पुत्री  कन्या थी, इनसे ८ पुत्र हुए जो चारु, चितचारु, मतिभान, सुचारु, चारुण, हिमवान, चित्र और अतिन्द्रिय कहलाए।
चित्रगुप्त : संगिनी : उनकी संतति : भगवान चित्रगुप्त के ये सभी १२ पुत्र पृथ्वी लोक पर बसे। इनके नाम चारु, सुचारु, चित्र, मतिमान, हिमवान, चित्रचारु अरुण,अतीन्द्रिय,भानु, विभानु, विश्वभानु और वीर्य्यावान हैं। 
चारु मथुराजी गए इसलिए वह माथुर कहलाए। सुचारु गौड़ बंगाले गए इसलिए वह गौड़ कहलाए। 
चित्र ने भट्ट नदी के किनारे वास किया इसलिए वह भटनागर कह लाए।  भानु श्रीवास नगर में बसे इसलिए श्रीवास्तव कहलाए। 
इस प्रकार भगवान चित्रगुप्त के जिस पुत्र ने जिस जगह निवास किया, उनके नाम के साथ जगह का नाम जुड़ गया और इसी तरह कायस्थ समाज की उत्पत्ति हुई।
ऋगवेद : भगवान चित्रगुप्त :  वैदिक पाठ में चित्र नामक राजा का जिक्र आया है जिसका सम्बन्ध चित्रगुप्त से माना जाता है। यह पंक्ति निम्नवत है: चित्र इद राजा राजका इदन्यके यके सरस्वतीमनु। 
पर्जन्य इव ततनद धि वर्ष्ट्या सहस्रमयुता ददत ॥ ऋगवेद ८/२१/१८ 

गरुण पुराण में चित्रगुप्त जि को कहा गया हैः
"चित्रगुप्त नमस्तुभ्याम वेदाक्सरदत्रे" 
(चित्रगुप्त हैं,(स्वर्ग/नरक) पात्रता के दाता)

ब्रह्मा की काया से उत्पन्न कायस्थ : कार्य : पाप पुण्य का लेखा जोखा :  परमसत्ता के आदेश पर सृष्टि की रचना के बाद ब्रह्माजी ने धर्मराज यमराज को आदेश दिया कि वह जीवों को उनके कर्म के आधार पर फल प्रदान करें। इस पर यमराज ने ब्रह्माजी से विनती की कि 
‘हे भगवान आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, मैं अपनी क्षमता के अनुसार इसका पालन करूंगा। लेकिन पूरी सृष्टि में जीव और उनकी देह अनंत हैं। देशकाल ज्ञात-अज्ञात आदि भेदों से कर्म भी अनंत हैं। 
उनमें कर्ता ने कितने किए, कितने भोगे, कितने शेष हैं और कैसा उनका भोग है तथा इन कर्मों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं। 
साथ ही कर्ता ने कैसे किया, स्वयं किया या दूसरे की प्रेरणा से किया आदि कर्म चक्र महागहन हैं। अतः मैं अकेला किस प्रकार इस भार को उठा सकूंगा। 
इसलिए आप मुझे कोई ऐसा सहायक दीजिए जो शीघ्रकारी, धार्मिक, न्यायकर्ता, बुद्धिमान, लेख कर्म में अग्रणी, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो।’ 
धर्म राज के सहायक : चित्र गुप्त : धर्मराज की बात सुनकर ब्रह्माजी ने उनकी आवश्यकता को समझते हुए उन्हें ऐसा सहयोगी देने की बात कही। इसके बाद ब्रह्माजी तपस्या में लीन हो गए। 
जब १  हजार साल की तपस्या के बाद उन्होंने आंखें खोलीं तो सामने एक दैवीय आभामंडल से युक्त एक पुरुष को देखा, जिनके हाथ में कलम और दबात थी। ब्रह्माजी ने उनसे पूछा कि आप कौन हैं ? इस पर वह दैवीय पुरुष बोले ‘हे देव! मैं आपके शरीर से प्रकट हुआ हूं। इसलिए आप ही मुझे कोई नाम दीजिए। साथ ही मुझे आदेश दें कि मुझे क्या करना है।’ 
इस पर ब्रह्माजी मुस्कुराए और बोले कि तुम मेरे शरीर से प्रकटे हो इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। तुम प्राणीमात्र के कर्मों का लेखा-जोखा रखने में धर्मराज यमराज का सहयोग करोगे। 
ब्रह्माजी की आज्ञा से चित्रगुप्त, यमलोक के राजा यमराज के प्रमुख सहायक बने। 
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात : भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है। चित्रगुप्त महाराज यमराज-धर्मराज जी के लेखाकार-मुंशी हैं, जो कि सभी प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले माने जाते हैं। हर साल भाई दूज के दिन ही चित्रगुप्त पूजा मनाई जाती है। इस दिन को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। चित्रगुप्त जी का जन्म ब्रह्माजी के अंश से हुआ है। वह उनकी काया से उत्पन्न हुए थे, इसलिए कायस्थ कहलाए। इसी तरह उनकी संतानों के जरिए जो वंश आगे बढ़ा और जो जाति बनी वह कायस्थ कहलाई।
चित्रगुप्त भगवान की पूजा का महत्व ? भाई दूज पर भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है। कई व्यवसाय से जुड़े हुए लोग चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। इस दिन कई लोग अपने नए व्यवसाय को भी आरंभ करते हैं। मान्यताओं के अनुसार कई कारोबारी इस दिन भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा करने के बाद अपने कारोबार के कागज उनके चरणों में रखते हैं। भगवान चित्रगुप्त की पूजा से व्यापार में आर्थिक उन्नति के साथ-साथ घर में सुख शांति बनी रहती है।
भगवान चित्रगुप्त की पूजन विधि :  सबसे पहले पूजा स्थान को साफ कर एक चौकी बनाएं। उस पर एक कपड़ा विछा कर चित्रगुप्त का चित्र रखें।
दीपक जला कर गणपति जी को चंदन, हल्दी,रोली अक्षत, दूब ,पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें।
फल ,मिठाई और विशेष रूप से इस दिन के लिए बनाया गया पंचामृत (दूध ,घी कुचला अदरक ,गुड़ और गंगाजल )और पान सुपारी का भोग लगाएं।
परिवार के सभी सदस्य अपनी किताब, कलम,दवात आदि की पूजा करें और चित्रगुप्त जी के सामने रखें।
सभी सदस्य एक सफेद कागज पर चावल का आटा, हल्दी,घी, पानी व रोली से स्वस्तिक बनाएं। उसके नीचे पांच देवी देवताओं  के नाम लिखें , 
जैसे : श्री गणेशाय नमः, श्री दुर्गाय नमः , श्री शिवाय नमः , श्रीं महालक्ष्म्यै नमः , श्री विष्णवे नमः, श्री सरस्वत्यै  नमः श्री चित्रगुप्ताय नमः आदि ।

फिर दिए गए मन्त्र को लिखें : जो भगवान चित्रगुप्त को समर्पित है

मसीभाजनसंयुक्तश्चरसि त्वं महीतले। लेखनी-कटिनीहस्ते चित्रगुप्त नमोऽस्तु ते।
चित्रगुप्त! नमस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायक कायस्थ जातिमासाद्य चित्रगुप्त! नमोऽस्तुते.
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भावार्थ
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हे चित्रगुप्त! आप स्याही और पात्र : कलम-दवात को साथ लेकर पृथ्वी पर चलते हैं। आपके हाथ में लेखनी और कटोरा ( दवात ) है, हम आपको नमन करते हैं। हे चित्रगुप्त! आप अक्षरों ( लेख ) के दाता हैं। कायस्थ जाति जो 'अक्षर' को अपना व्यवसाय मानती है, के इष्ट देव आप ही हैं, इसलिए हम आपको नमन करते हैं"। यह श्लोक चित्रगुप्त पूजा के दौरान भगवान चित्रगुप्त के महत्व और उनकी भूमिका को दर्शाता है, जो जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं और कायस्थ जाति के आराध्य देव हैं.
इसके नीचे एक तरफ अपना नाम पता व दिनांक लिखें और दूसरी तरफ अपनी आय व्यय का विवरण दें, इसके साथ ही अगले साल के लिए आवश्यक धन हेतु निवेदन करें। अब अपने हस्ताक्षर करें। और इसे पवित्र नदी में विसर्जित करें।
भगवान चित्रगुप्त मात्र अब कायस्थ जाति के लिए ही नहीं ही नहीं उन समस्त प्राणियों लिए भी आराध्य देव हैं जो समय : शब्द : संस्कार के साथ साथ अपने जीवन में सम्यक वाणी, सोच, कलम और कर्म
का सार्थक प्रयोग रखते व करते हैं



श्री चित्रगुप्त आरती
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ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे॥

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,
सन्तनसुखदायी ।
भक्तों के प्रतिपालक,
त्रिभुवनयश छायी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत,
पीताम्बरराजै ।
मातु इरावती, दक्षिणा,
वामअंग साजै ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक,
प्रभुअंतर्यामी ।
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन,
प्रकटभये स्वामी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

कलम, दवात, शंख, पत्रिका,
करमें अति सोहै ।
वैजयन्ती वनमाला,
त्रिभुवनमन मोहै ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

विश्व न्याय का कार्य सम्भाला,
ब्रम्हाहर्षाये ।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे,
चरणनमें धाये ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

नृप सुदास अरू भीष्म पितामह,
यादतुम्हें कीन्हा ।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं,
इच्छितफल दीन्हा ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

दारा, सुत, भगिनी,
सबअपने स्वास्थ के कर्ता ।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,
तुमतज मैं भर्ता ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

बन्धु, पिता तुम स्वामी,
शरणगहूँ किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
आसकरूँ जिसकी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,
प्रेम सहित गावैं ।
चौरासी से निश्चित छूटैं,
इच्छित फल पावैं ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी,
पापपुण्य लिखते ।
'नानक' शरण तिहारे,
आसन दूजी करते ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे ॥
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स्तंभ : सज्जा संपादन शक्ति 
शक्ति* शालिनी रेनू नीलम अनुभूति 

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शक्ति : सम्पादकीय : भैया दूज : बहन और भाई के प्रेम का प्रतीक  :  शक्ति आलेख : : ४ / ५
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शक्ति निवेदिता पाण्डे.
वाराणसी.
स्वतंत्र लेखिका छायाकार  

मेरे भैया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन : कोलाज : शक्ति : निवेदिता विदिशा 

बहन और भाई के प्रेम का प्रतीक : आज भैया दूज है. बहन और भाई के प्रेम का प्रतीक माना जाता है भाई दूज। भाई दूज दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक शुक्‍ल द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन बहनें आदर के साथ अपने भाई को घर बुलाकर उनका आदर सत्‍कार करती हैं। चौक बनाकर पूजा करती हैं और कथा का पाठ करती हैं। उसके बाद भाई के माथे पर टीका करके उनको अपने हाथ से भोजन करवाती हैं। अलग अलग रूपों में मनाते हैं लोग इसे। कहीं घरिया में धान का लावा, मिठाई और चने को प्रसाद के रूप में बहनें भाई को खिलाती हैं। भाई दूज की व्रत कथा:
कथाएं भैया दूज की : सूर्य भगवान की पत्‍नी का नाम संज्ञादेवी था, इनकी दो संतानें, पुत्र यमराज था कन्या यमुना थी। संज्ञा रानी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर रहने लगी। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से अश्विनी कुमारों का भी जन्म बताया जाता है जो देवताओं के वैद्य (भेषज) माने जाते हैं। 
इधर छाया का यम तथा यमुना से व्यवहार खराब होने लगा। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसाई, यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का काम संपादित करते भाई को देखकर यमुनाजी गौ लोक चली आई तो उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना को बहुत खोजवाया, मगर मिल न सकीं। फिर स्वयं ही गोलोक गए जहां विश्राम घाट पर यमुनाजी से भेंट हुई। भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष विभोर हो स्वागत सत्कार के साथ भोजन करवाया।
यम द्वितीया : यमुना स्नान : इससे प्रसन्न हो यम ने वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा- 'हे भैया ! मैं आपसे यह वरदान मांगना चाहती हूं कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जाएं? प्रश्न बड़ा कठिन था यम के ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त जाता अतः भाई को असमंजस में देखकर यमुना बोली- आप चिन्ता न करें मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करके, इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करें वह तुम्हारे लोक न जाएं।' 
इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया इस तरह हर साल भैया दूज मनाया जाने लगा. यह भाई बहन के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भाई बहन को साथ-साथ यमुना स्नान करना, तिलक लगवाना तथा बहन के घर भोजन करना अति फलदायी होता है। इस दिन बहन-भाई की पूजा कर उसके दीर्घायु तथा अपने सुहाग की कामना कर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती है। इसी दिन युमना जी ने अपने भाई यमराज को भोजन कराया था। इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन श्रद्धा भाव से, स्वर्ण वस्त्र, मुद्रा आदि बहन को देने की भी परंपरा है। 
भैया दूज : बहन और भाई के प्रेम का प्रतीक  : भाई बहन का रिश्ता अटूट विश्वास और पवित्र प्रेम के सूत्र से बंधा हुआ है। इन दो शब्दों में किसी को भी बांधने की क्षमता है ।आप दुनिया के किसी भी कोने में इस रिश्ते की मर्यादा को निभानेवाले आपको मिल जाएंगे। एक भाई और बहन के रूप में हमें इस अटूट बंधन का मान रखना चाहिए। भाई दूज की हार्दिक शुभकामनाएं

 
स्तंभ संपादन :  शक्ति डॉ. राशि रत्निका अंजलि रश्मि  
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. शिल्पी रत्ना. सिमरन . निवेदिता

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 आकाश दीप : गद्य संग्रह  : धारावाहिक विशेषांक : पृष्ठ ५  /०  .
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संपादन 
नैनीताल डेस्क


शक्ति : मानसी शालिनी
डॉ. अनु कंचन
नैनीताल.
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दिए जलते है  : नैनीताल : दिवाली हम और तुम : आप बीती : प्रसंग.
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हिंदी धारावाहिक : यात्रा संस्मरण : ये पर्वतों के दायरे से साभार : डॉ. मधुप.
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डॉ. मधुप.
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सह 
शक्ति प्रिया डॉ. अनु 
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दिए जलते है  : दिल्ली : दिवाली और स्कीट. 


नैनीताल की दिवाली यादें : फोटो : मानसी : कोलाज : मानसी : डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया.

पता नहीं इस बार कार्तिक मास में २ अमावस्या पड़ रही है । २० या २१ अक्टूबर, दो दिनों तक़ अमावस्या...पता नहीं जानें कब मनाई जाएगी दिवाली। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक सोमवार,२०अक्टूबर को दोपहर ०३.४५ शुरू होगी, जो अगले दिन यानी मंगलवार,२१अक्टूबर को शाम ०५ .५० बजे तक रहेगी... यानि इस बार दो दिनों तक दीपोत्सव होने की संभावना है। 
उन दिनों हॉस्टल की छुटियाँ हो रही थी। यही अक्टूबर नवम्बर का महीना रहा था। अभी नई दिल्ली में ठंढ़ पड़नी शुरू नहीं हुई थी। हमलोग को तब दिल्ली में रहते हुए एकाध दो साल हो गए थे। शायद तब मेरी तुम्हारी मुलाक़ात थोड़ी पुरानी हो गयी थी। हमलोग वीक एन्ड में मिल लिया ही करते थे यही कही आस पास भीड़ भाड़ वाले इलाके से दूर मन की शांति की तलाश में। जीवन के प्रारम्भ से ही शोर गुल,भीड़ भाड़, तेज़ आवाजें कभी भी नहीं भाती रही है ... शुरू से ही एकाकी रहने की आदत सी बन गयी है मेरी । 
सच कहें तब हमलोग ख़ामोशी में ही एक दूसरे के मन की भाषा पढ़ने और समझने लगे थे। तुम मेरे अस्तित्व, देख भाल को लेकर प्रारम्भ से ही अत्यधिक संवेदन शील रही थी, अनु ! कितना अधिकृत रही थी अनु, यह तो शुरू से दिखता था,...हैं ना ? 
तुम्हें स्वयं के अतिरिक्त दूसरी ओर तनिक भी ध्यान देने, उनसे अधिक बात करने मात्र से ही नाराजगी हो जाती है .. यह भी मैं भली भांति जानता हूँ ...आज भी आपकी नाराज़गी मेरे पेशे, मेरे लिखने की अधिक व्यस्तता को लेकर यदा कदा सामने आ ही जाती है। तब भी, और अब भी मेरे लिए असीम धैर्य रखने के सिवा और कुछ भी शेष नहीं रह जाता था... न है..और आगे भी नहीं रहेगा ...। 
लेकिन मैं कर भी क्या सकता हूँ पत्रकारिता के पेशे में घंटों कम्प्यूटर पर लिखते रहने, डिज़ाइन करने,  पेज मेकिंग करते रहने ,अपने महिला सम्पादक सहकर्मियों के साथ घंटों बातें करने, उन्हें कोआर्डिनेट करने की कार्य शैली चौबीस घंटे की हो गयी है। मेरे पत्रिका के संपादक, लेखक व संयोजक ,होने की बजह से  कई कार्य के साथ साथ  मूलतः विज्ञापन  इकट्ठी करना जैसे कठिन कार्य व्यवसाय,  का एक अहम हिस्सा बन चुका है ...जिसे मैं चाह कर भी नहीं टाल सकता हूँ ...यह तुम भी समझती हो। इन दिनों त्यौहार में पत्रिका संपादन इसके प्रमोशन को लेकर व्यस्तता काफ़ी ही बढ़ गयी है...।   
मैं तो शुरू से ही आपको लेकर संकोची व गंभीर रहा हूँ, घोर व्यक्ति वादी रहा हूँ यह तुमसे भला और कौन जान सकता है ? 
जब भी मैं तुम्हारे अपने द्वैत संबंधों लिए सोचता हूँ तो उपर वाले को आभार ही प्रगट करता हूँ।  
हॉस्टल का मेस वाला बिहारी था इसलिए उसने पहले ही कह दिया था वह दस पन्दरह दिनों के लिए गायब हो जायेगा। गर्ल्स हॉस्टल में भी यही दशा थी। वाडर्न नहीं रहने वाली थी। इसलिए ले दे के बॉयज तथा गर्ल्स हॉस्टल में कुछेक लोग ही रहने वाले थे। तुमने भी शायद मुझसे यही कहा था वह भी दिवाली में अपने घर नैनीताल जाएगी। लम्बी छुटियाँ जो दशहरे के बाद दिवाली छठ को लेकर हो रही थी। त्यौहार में तो सब को अपने अपने घर जाने की जल्दी होती है न। 
तब तक मुझे याद है मैं निश्चित नहीं कर पाया था कि मैं कहाँ जाऊंगा अपने घर या यहीं कही ठहरूंगा। पता नहीं मुझे क्यों उदासीन लगती है दुनियां, यहाँ के लोग भी...।  
उस दिन जब हम लोग एकाकी पन की तलाश में तुम्हारी ज़िद पर ही हुमायूँ टॉम्ब देखने गए थे तब तुमने यही कोई तुमने गुलाबी रंग की सलवार समीज पहन रखी थी।  तुम्हारे उपर कोई भी हल्का गहरा रंग हो बहुत ही जचता है ,अनु ! गुलाबी हो या आसमानी या फिर गहरी मेहंदी या सुर्ख लाल रंग तुम जो भी पहनो  मन को बहुत भाता है। बड़ा अच्छा लगता है .. 
याद है अनु ,  तुमने मुझसे कहा था आपने जो शोर प्रदुषण के लिए कभी स्क्रिप्ट लिख कर दिया था न ..उसी पर इस बार दीपावली में मैं अपने कॉलेज के कल्चरल मीट में वही स्कीट कर रही हूँ... ' अच्छा ! ...थीम अच्छा है ..लोग पसंद करेंगे ...और आप बेहतर ही करेंगी ..मुझे आप पर पूरा विश्वास है...' फिर तुमने कहा , ' ....शो करने से पहले मैं आपको रिहर्सल दिखलाना चाहती हूँ ताकि कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो वो कर सकूँ। ..आप देखेंगे ना...? ...आप ही तो चाहते है न मैं इस तरह की कल्चरल थीम के लिए काम करती रहूं ...देखने आएंगे न ?मैं चुप रहा... मन में कहीं भी शंका थी ही नहीं। मैंने धीरे से कहा , ' ....जरूर आयेंगे..'यह सोचते हुए कि कब मैंने आपकी बात टाली है...कभी टाली हो तो बताएं ... मैं तो आपको धैर्य पूर्वक ही सुनता रहता हूँ ..आप बोलती रही थी ... 
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गतांक से आगे.१.
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 जोत से जोत जागते चलो : दिल्ली : दिवाली और स्कीट . 


दिल्ली : दिवाली और स्कीट. फोटो : कोलाज : शक्ति डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया 

दूसरे दिन ही आपके कॉलेज के कैंपस में आपकी हौसला अफजाई के लिए मैं गया था। ओपेन थियटर में आप अपनी साथियों के साथ अभ्यास कर रही थी। थीम वही था। 
आज की ज्वलंत समस्या बढ़ते शोर, और वायु प्रदुषण  जिसे लेकर हम सभी चिंतित होते है। शायद तब आपने उनमें से कुछेक करीबी दोस्तों से मेरा परिचय भी करवाया था। यही कोई लक्ष्मी सहगल , सरस्वती भारद्वाज थी ...न ? संभवतः ..आपने यही नाम बतलाया था ,...? वे शायद कोलकोता ,जब्बलपुर से रही थी। उनका यही पता था न ..अनु ? 
आपने बतलाया था वो आपकी सबसे अच्छी क़रीबी दोस्तों में हैं ...सर्वदा साथ देती हैं। बुरे भले किसी भी परिस्थितियों में साथ नहीं छोड़ती हैं। ईमानदार दोस्त किसी की जिंदगी के अनमोल विरासत होते है।    
हमारे बीच परिचय करवाते हुए कितनी ईमानदारी से आपने अपने दोस्तों से कहा था, ' ...इनसे मिलो ...मेरे गुरु ...है ..मेरे मेंटर है ... ये मेरे सब कुछ हैं ,....फ्रेंड ,फिलोसोफर ....राइटर ..गाइड..जो भी कह लो...। ....मैं इनकी शिष्या हूँ।
आगे की बातों में आपका कितना प्यार,कितना स्नेहऔर  अपनापन झलक रहा था,.. अनु ...? है ना ?  
जब आपने बड़ी सहजता से उनलोगों से कह दिया था , ' ...लक्ष्मी ,...फिल्म गाइड देखी हैं न , वही देव आंनद ,वहीदा वाली ...समझो मेरे लिए ये देव ही हैं ...मैं इनकी पुजारन..' 
मैं आपके इसी प्यार और सहजता का तो पक्षधर रहा हूँ ... ' इतने अपनापन में वो दोनों हँसने लगी थी।   
रिहल्सल ठीक ही था। भाव भंगिमा, निर्देशन, अभिनय सब कुछ ठीक ही लग रहा था। आशा थी लोगों को यह अर्थ पूर्ण प्रहसन अच्छा ही लगेगा। 
लौटते हुए आप मुझे छोड़ने कॉलेज के गेट तक आ गयी थी।  साथ चलते हुए आपने आग्रह किया था , ' आप तो मिडिया से है ...हमारे इस थीम को प्रकाशित करेंगे न ?...आपकी पहचान तो कई संपादक से है ..अख़बारों में इसे छपवा दीजिये ...? ...सुन रहें हैं न ...?
मैं क्या बतलाता तुम्हें ...कि मैंने तो पहले ही अपने संपादक मित्र से इस बाबत बात कर रखी थी। आप की कोई रचनात्मक संलग्नता हो ...और अखबार में न आए...ऐसा कभी हो सकता है ,अनु .. नहीं न... 
उस कल्चरल मीट वाले दिन में स्किट..अच्छा ही रहा।  ऑडोटोरियम भरा पड़ा था।  लोगों में काफी प्रशंसा हुई। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच आप खुश दिखी ...आपको खुश होता देख कर मुझे दुगनी ख़ुशी हुई । 
और शायद आप मुझे वहां देख कर अत्यधिक उत्साहित थी ...शायद सब कुछ अच्छा लगना ही तो प्यार है....  
उसी दिन ही चलते चलते आप ने बतलाया था, जैसे आप मुझसे कुछ कह रही थी   ' ..परसो धनतेरस के दिन ... घर जाना चाहती हूँ  ..नैनीताल ..दिवाली में ...वही घर पर रहना चाहती हूँ  ..आपकी अनुमति है न..? ...आप मुझे  यहाँ बस स्टैंड तक  ..छोड़ देंगे न ..?
मैंने हंस कर तुम्हारी तरफ देखा ...क्या  होगा जब आप इतने दिनों तक दिल्ली में न रहेगी ..फिर तुम्हारे बिना दिल्ली में मेरे रहने की सार्थकता क्या होगी..अनु ।...आप ही बतलाए ... अभी से ही कुछ खाली खाली सा लगने लगा था ....हमारे साथ रहने का एक दिन ही शेष बचा था मात्र । इसके बाद फिर सात से आठ दिनों की न मिलने की परिस्थितिवश उम्रकैद जैसी सजा के कभी न खत्म होते लम्बे दिनों  ..का प्रारम्भ होना था  ..कैसे बीतेंगे ..? तुम्हें ही सोचते सोचते मैं कब का हॉस्टल आ चुका था,... पता ही नहीं चला। प्रशांत दा कब के सो चुके थे। उनके खर्राटें की आवाज़ पुरे बरामदे में गूंज रहीं थी। अब मेरे लिए सोना मुश्किल था। मेरी नींद शुरू से तुनक रही है। तनिक सी भी आवाज़ में नींद आती  ही नहीं है । बिस्तर पर लेटे लेटे ऑंखें बंद करने की कोशिश की तो मन के पटल  में तुम्हारा  ही चेहरा याद आने लगा  । वो तुमसे जुड़ी बातें अनायस ही याद  आने लगी  थी...कल हमलोग पुराने किला जाने वाले थे ..तुमने यही कहा था ....शायद....इसके बाद तुम्हारा नैनीताल जाना तय था।   
दूसरे दिन जान पहचान वाली सभ्यता संस्कृति वाले पृष्ठ पर तुम्हारी ख़बर छप गयी थी। सुबह ही मैंने अखबारें खरीद ली थी ...तुम्हें देना जो था , अनु..। 

*
गतांक से आगे. ३.
दिल्ली :  दिवाली : धन तेरस : महालक्ष्मी : तुम और हम. 


पल बीत रहे थे। सूरज का गोला बड़ी तेज़ी से दूसरी छोर की तरफ़ जा रहा था। दोपहर कब का भी हो चुका था। परछाई अब लम्बी होने लगी थी। हमें आए हुए भी चार पांच घंटे हो रहे थे। खाने पीने की सभी वस्तुएं ख़त्म हो गयी थी। ..सोच ही रहा था अब चलना चाहिए था। भूख लग गयी थी ...कहीं रेस्टोरेंट में खाने के लिए  भी सोच रहा था। 
"...जानते है हमारे यहाँ दीपावली के ही महीने कार्तिक मास में द्वितीय बग्वाल मनाने की परंपरा भी है । इसके तहत इसी दौरान पककर तैयार होने वाले नए धान को भिगोकर एवं भूनकर तक तत्काल घर की ओखल में उठकर च्यूड़े  बनाए जाते है जो हमारा प्रमुख खाद्य पदार्थ होता है  । ' 
'...और इन च्यूड़े  को बड़ी बुजुर्ग महिलाएं अपनी नई पीढ़ी के पांव छूकर शुरू करते हुए घुटनों एवं कंधों से होते हुए सिर में रखते है और आशीर्वाद देते हुए कहती है  लाख हरयाव  लाख  बग्वाल अगाश जस उच्च धरती जस  चौड़ जी रिया जागि रया यो दिन यो मास भेटने रया ' आकाश की तरह ऊंचे और धरती की तरह चौड़े होने तथा इस दिन को हर वर्ष सुख पूर्व जीने की घड़ी शुभ हो, ' 
हमें याद आया शेष भारत वर्ष में भी तो धनतेरस ,छोटी दिवाली, दिवाली ,गोवर्धन पूजा भैया दूज का त्यौहार आते है। कमोवेश थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ दिवाली का वैसा ही स्वरुप उत्तराखण्ड में है जैसा अन्य राज्यों में है । प्रथाएं वैसी ही हैं ...  
'...इसी दौरान गोवर्धन पड़वा पर घरेलू पशुओं को नहला धुला कर उस पर गोलाकार गिलास जैसी वस्तुओं से सफेद बिस्वार के गोल ठप्पे  लगाए जाते है । उनके सींघों  को घर के सदस्यों की तरह सम्मान देते हुए तेल से मला जाता है । हमारे यहाँ छोटी दीवाली से बूढ़ी दिवाली तक तीन स्तर पर मनाई जाती है....'
इधर मैं सोच रहा था हम सभी भी तो दिवाली वैसे ही मनाते है, न ...? दिवाली के दूसरे दिन हमारे यहाँ भी तो गोवर्धन पूजा होती है। फिर तीसरे दिन बहनें भइआ दूज मनाती हैं तो कायस्थ जाति के लोग चित्र गुप्त पूजा मनाते हैं। मुझे याद है मेरे मित्र संपादक भैया दूज की खबरें मुझ तक भेजते रहते थे ...  
यही कोई तीन चार बजने को होंगे जब हमलोगों ने पुराने किले का परिसर छोड़ा था। किसी रेस्टोरेंट में नाश्ते के बाद... आपने पता नहीं क्यों किसी ज्वेलरी की दूकान के सामने मुझे आपने ऑटो को छोड़ने को कहा।  
मैंने आपकी बातें बिना किसी तर्क़ के मान लिया। आपके मन में क्या था मुझे मालूम नहीं था। क्षण भर के बाद ही समझ सका था मैं।
जब उतरते हुए आपने बस इतना ही कहा था कि , ' कुछ धनतेरस के लिए सामान खरीदना है...घर के लिए..। सोचती हूँ आपकी पसंद की ही ...चांदी की कोई चीज ही ख़रीद लूँ ...।'
दूकान के भीतर आपने हमने चांदी की कलात्मक वस्तुएं देखनी चाही ...जैसे  गणेश - लक्ष्मी, ,राम - कृष्ण,सीता - राम ,राधे - कृष्ण , सरस्वती महालक्ष्मी की कलात्मक मूर्तियां... हाथी, कछुआ, तुलसी चौरा, चांदी के दिए ,सिक्के या कुछ और भी ... वहाँ ढ़ेर सारी अत्यंत खूबसूरत वस्तुएं शो केस में लगायी गयी थी ...सभी एक से बढ़ एक थी..पसंद आने वाली...  
तभी आपने बहुत सारी चीजें देखने के लिए मंगा ली थी ,उनमें से  एक चांदी की कलात्मक कलम भी थी जिसे आपने पसंद कर ली थी...बहुत ही ख़ूबसूरत दिख रही थी ...लिख कर देख भी लिया..आपने। ..बेहतर लिख भी रही थी, 
....मेरी तरफ़ दिखाते हुए आपने कहा था , ' अच्छी लग रही है न ..? ...आप के लिए ले रही हूँ ..आप तो लिखने पढ़ने के बड़े शौक़ीन है न ?...आपको तो यह कलम बहुत पसंद आएगी...सही कह रही हूँ न ...? .
' ..आप लिखेंगे तो शब्द  और भी अनमोल हो जाएँगे। ...कुछ मेरे लिए भी लिख दीजिएगा ...' ,सुन रहे है ना ? 
मैं चुपचाप आपकी भावनाओं को पढ़ने,समझने की कोशिश कर रहा था। ..आप और हम सभी जानते है कि हम किस के लिए लिखते है ..
...मेरे  समस्त जीवन चक्र के अभिकेंद्र में तो आप ही है न ..तुम्हारे लिए....महाभिनिष्क्रमण भी किया तुम्हारे लिए ही..सम्यक ज्ञान की प्राप्ति भी की ... तुम्हारे लिए ही की ...सम्यक साथ भी ढूंढा तो तुम्हें ही पाया। ...अब आगे महा परिनिर्वाण भी करूँगा तो मेरी इच्छा है कि तुम्हारे समक्ष ही हो ..आप मेरे सामने हो ....
मेरा सब कुछ तो तुम में ही तो निहित है... तुम्हारा ही अधिकृत है ..ठीक कह रहा हूँ न, अनु .. तुम्हारे लिए ही तो प्रथमतः सभी कार्य सुनिश्चित होते है ..है न ...?   
आप मुझसे ही कह रही थी , ' ..कहानी,कविता, संस्मरण..प्रेम कहानी ... जो भी आप लिखना चाहे ..लिखते रहे ...आपको यह कलम पसंद है न ..आपके लिए ही ले रही हूँ..मन से लिखियेगा ...'
... यह सिद्ध हो गया थी साथ रहते हुए हमदोनों एक दूसरे की सभ्यता संस्कृति के बारे में कुछ अधिक ही जान गए थे ...
..ऐसा भी क्या था हमदोनों के बीच कि जो भी चीजें हमें पसंद आती थी वो हम दोनों को एक साथ पसंद आ ही जाती थी...अच्छी लगती ही थी...नापसंदगी जैसी की कोई बात ही हमदोनों के मध्य  होती थी नहीं थी  ..है न, अनु ! 
जैसे हमदोनों ने यह कसम ले रखी थी जो तुमको हो पसंद ....वही बात कहेंगे ...
मैंने कहा, ' अच्छी हैं..! , गणेश लक्ष्मी की मूर्ति भी खूबसूरत है ...उसे भी ले लीजिये..
आपने सभी वस्तुएँ ख़रीद ली जो हमारी पसंद की थी। यही कोई पांच छ हज़ार का बिल आया था । जब मैंने पैसे देना चाहा तो आपने बड़ी सलाहियत से मना कर दिया , ' ये मैं थोड़े ही दे रही हूँ ..ये पैसे तो आपके ही है बस खरच करने का माध्यम मात्र मैं हूँ...फिर पैसे मैं दूँ या आप बात  तो एक ही है..ना ? कब ,कितना और कैसे  ध्यान रखना है, सीखना है तो कोई आपसे सीखे । वाणी भी कितनी संयमित है ? क्या बोलना है बोलने से पहले ही आपकी जिह्वा पर सरस्वती विराज जाती है .. मैं कुछ सोच रहा था तभी आपने मेरी बाहें पकड़ ली, ' चलिएगा नहीं ....मेरी धनतेरस की ख़रीददारी पूरी हो गयी है ...अब हॉस्टल चलते है ' कहते हुए हम बाहर निकल आए थे..। आपको हॉस्टल  छोड़ कर आते हुए हमें सात बज गए थे ..कल मुझे आपको नैनीताल  जाने के लिए अंतरराज्यीय बस अड्डे तक छोड़ने जाना था...आपको नैनीताल जाना था ..कल के बाद हमें दस बारह दिनों बाद ही मिलना था ...न ? ..कैसे कटेंगे ये दिन मैं तब से यही सोच रहा था ...पता नहीं इन दिनों आपके उपर मेरी निर्भरता बढ़ती ही जा रही थी...
किसी काम की शुरुआत के पहले मैं आपकी ही सोचने लगता हूँ....। 

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गतांक से आगे.४.

दिल्ली :  दिवाली : धन तेरस : नैनीताल और  तुम्हारा जाना . 



दिल्ली :  दिवाली : धन तेरस :  नैनीताल और तुम्हारा जाना . 

धनतेरस के दिन थे। दिल्ली की सुबह। अभी अँधेरा ही था। आपको आज के ही दिन नैनीताल जाना था। मैंने पता कर लिया था पहली बस नैनीताल के लिए सुबह सात बजे जाती थी दूसरी बस आठ बजे के आस पास। मैंने तय कर लिया था। आप सात बजे वाली बस से ही जाएँगी 
जिससे आप शाम होने के पहले तक नैनीताल सुरक्षित पहुँच जाए। क्योंकि आपके अकेली की यात्रा मेरे लिए चिंता का विषय का था जब तक आप पहुँच न जाए। आपने भी इसमें हामी भरी थी। 
छह बजे हमें आपके हॉस्टल से निकलना था यह हमदोनों को मालूम था। मुझे याद है उन दिनों सेल फ़ोन नहीं ही आए थे। एक दो अच्छे रसूख वालों के पास ही दिखते थे। वो भी बहुत महेंगे होते थे। तब उन दिनों बी एस एन एल के लैंड्स लाइन नम्बर ही हम सभी के उपयोग में होते थे। यह सच है कि हम दोनों एक दूसरे की बात मानते है, समझते हैं । हम में से कोई भी सही फैसला लेता तो हमदोनों हाँ ही करते है। यदि कुछ बेहतर होने की कुछ सम्भावनाएं होती है तो हमारी संक्षिप्त संयुक्त टिप्पणी होती है , '...देख लीजिए , सही है ना ? ज़्यादा बोलना तो हमें कभी भी नहीं अच्छा लगा ,अनु ? 'सुबह ही नहा धो कर समय पर तैयार हो गया था। ऑटो वाले  को सुबह हॉस्टल आने की बात भी कर ली थी। वह समय पर आ भी गया था। अपने हॉस्टल से ऑटो लेते हुए आपके हॉस्टल की तरफ मैं जब जा रहा था तब यही सोच रहा था कि आप भी समय पर मौजूद होगी ही। 
और सच में आप हॉस्टल की गेट पर ही मिल गयी थी एक बैग और एक छोटी सी अटैची लिए हुए ही सामान कम मात्र ही था।  
गहरे हरे रंग की मेहंदी वाली सूट में आप थी। सदैव अच्छा लगा आपको समय की पाबंदगी को पालन करता हुआ देख कर। आप सच में समय और शब्द दोनों की पाबंद हैं,ठीक मेरी तरह। वर्ताव में संतुलनात्मक स्थिरता है,धैर्य है । समय का साथ देती है। और जो शब्द आपने कहा या किसी से वादा किया तो उसे ताउम्र पूर्णतः निभाती भी है। ठीक कह रहे है न ,अनु ...?
जल्दी से सामान रख कर आप एकदम करीब से बैठ गयी। एकाध घंटे के ही साथ का सफर था। सड़कें सूनी थी ऑटो की गति सामान्य ही थी। रास्ते के लैंप पोस्ट मरी हुई पीली धुंधली रौशनी दे रहा था। कुहरे बाले प्रदूषण युक्त हलके बादल सड़कों पर दूर दूर तक बिखरे पड़ें थे। दिल्ली जाग ही रही थी। 
मैं कहीं उदास स्वयं में खोया हुआ ही था ..शायद आपकी अनुपस्थिति के बारे में ही सोचते हुए।   
तभी आपने बातों का सिलसिला जारी रखा ,क्या बात है ,बहुत चुप चुप से है ...बोलेंगे नहीं  ?
' ऐसे ही ..आप जानती ही है ...कम बोलता हूँ ...बहुत सोचता हूँ ...तभी बोलता हूँ...न जाने क्यों अनजाना डर सा मनो मस्तिष्क में घर कर गया है ,अनु ..? ' 
' भला ऐसा  क्यों ..? मुझसे ...कम क्यों ..बोलते है... मैंने तो कभी भी अपनी याद में आपको न नहीं कहा है..तो फिर.... '  
' बस ...आदत सी हो गयी है ..ऐसे ही डर लगता है ...कुछ भी कहने बोलने में ..बहुत संकोची हो गया हूँ '  मैंने हँसते हुए ही कहा ,...सोचता हूँ कभी आपसे हाँ की उम्मीद की और ना हो जाए .... तो..क्या होगा ..?' मैंने कभी ...ना  कहा है...आपको ....अगर कहा  है तो याद दिलाएं.. ' आपने जोर देते हुए कहा था। कितना अपनापन था तुम्हारी बातों में ...? कितना ख्याल ...?' आपकी बात नहीं हैं ..अन्य की ही है....। .. साधारण साधारण सी बात पर न सुनता आया  हूँ ..न होता आया है न ...तो यह छिपा डर हर अपनों के लिए थोड़ा कही अधिक सा हो गया है ...क्यूँ हो गया है ..पता नहीं ...?  'सच्ची ! आप तो कम से कम मेरे लिए ऐसा न सोचें ...' , आपने फिर कहा ..
और मैं तो कहीं और सोच रहा था। हर वक़्त अपनों से गलत समझे जाने का डर...सार्वजनिक तीखी प्रतिक्रिया के स्वर का डर...तेज़ नकारात्मक ...झुंझलाती सत्य से परे आवाजें ..बिना सच जाने विरोध के स्वर..न जाने और कितनी और ऐसी बातें है, अनु ..जिसने मुझे स्वभाव से पलायनवादी बना दिया है...।' 
'...अपनों से ...छोटी छोटी बातें ...जहाँ हाँ हो सकती थी ..वहां न हुई ...इन सभी बातों ने मुझे और भी  एकाकी ,मौन, दुनियाँ से कटा कटा हुआ ,काल्पनिक और भय युक्त इंसान बना दिया है, अनु ...क्यों कर रह लेते हैं लोग ऐसी दुनियाँ में। अपने भीतर तो यह सोच कर ही घुटन सी होती है ....'
'हा यह भी सच है कि... मेरे इस अंतर्मन के डर बढ़ाने में तुम कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं हो ..लेकिन यह भी सच है कि अंतरमन के किसी कोने में ठहरा यह मनोवैज्ञानिक भय मेरी सोच के साथ निरंतर कई दिनों से ही चलता हुआ स्थिर बना हुआ है...रहा है...और कितने दिनों तक रहेगा मालूम नहीं....      
कब का अंतरराज्यीय बस अड्डा आ गया था मुझे मालूम ही नहीं हुआ। जब आपने टोकते हुए कहा था , उतरेंगे..नहीं '...तब ऑटो भी रुक गयी थी ,मैंने जाना बस अड्डा आ चुका है । 
मैंने ऑटो वाले को पैसे दिए थे,तब तक आपने सामान उतार कर किनारे के बस वाले शेड में रख लिया था। सुबह हो चुकी थी। लोग काम में लग चुके थे। 
मैंने जल्दी से जा कर एक डीलक्स बस की टिकट नैनीताल के लिए ले ली थी । बस में खिड़की वाली आगे की सीट छोड़ कर दूसरी सीट भी मिल गयी थी । यह मेरे हिसाब से सुरक्षित सीट थी। ..अभी भी बस खुलने में दस पद्रह मिनट की देरी थी ,हमारे पास समय शेष था तो मैंने आपकी आवश्यकता को देखते हुए कहा, ' अभी थोड़ी देर है अनु ... क्यों नहीं ...चाय पी लेते है...'मेरे इतने मात्र कह लेने से आपके होंठों पर वही चिर परचित मुस्कान दिखी ..जिसकी जरुरत मुझे सदैव से रही है ...मैं तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपको ख़ुश देखना ही चाहता हूँ न ,अनु ....
'मैं जानता था आप सुबह सबेरे चाय की शौक़ीन हैं ... '
हमदोनों बस से  नीचे उतर आए । टी स्टॉल के पास ही हम बढ़ गए ...तभी चलते हुए एक बड़े पैकेट को मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए आपने कहा , ' ...रख लीजिये ..आज धनतेरस है न.... कुछ खाने पीने का सामान है ..मिठाई भी है..खा लीजिएगा...नारियल की आपकी पसंद वाली वर्फी है...मैं जानती हूँ आपको बहुत पसंद है..छोटी दिवाली को दिए जला लीजियेगा ...अँधेरा नहीं रहना चाहिए ...'
'और हाँ चांदी की लक्ष्मी गणेश की मूर्ति भी है .इसमें .दीपावली में पूजा कर लीजिएगा ...सुन रहें हैं न..चित्र गुप्त पूजा में उस चांदी की कलम से कुछ भी ...आय व्यय भी लिख लेंगे..इतनी हिदायतें ...इतना ध्यान ...अंतर मन फिर से धुआं धुआं होने लगा था तुम्हारा इतना ही अंतहीन प्रेम तो मुझे पंगु बना गया है अनु..?  बस जब हॉर्न देने लगी तो हमारी तन्द्रा टूटी ..हम बस की तरफ भागे ...तो चलते चलते आपने एक कागज़ का टुकड़ा बढ़ा दिया था ..आप कह रही थी एक टेलीफ़ोन नंबर है ...काका का है ..समय मिले तो हाल चाल पूछ लीजियेगा ..ठीक है ना ...?
भरोसे का एक टुकड़ा..जो आप मेरे हाँथों में थमा गयी थी ...बस अब खुल चुकी थी ...धीरे धीरे आप मेरी आँखों से दूर होने लगी थी ...टूटते हुए सपनों की तरह
आपका कहा एक एक शब्द मेरे लिए कृष्ण के द्वारा अर्जुन को कही गयी गीता की अमर वाणी हो गयी थी ..अपना ख्याल रखेंगे ...अपना ध्यान रखेंगे..अपने लिए नहीं ..तो कम से कम ..मेरे लिए ..सुन रहें हैं न वे शब्द गूंजते ही रहे थे ...अनु ..न जाने ..कितने दिनों तक...आखिर इतने दिनों तक हम जीते भी रहे तो किसके लिए .....तुम्हारे लिए तो ही ..   और तुम तो कब का मेरी नजरों से कहीं और ..ओझल हो चुकी थी... लौटा तो तुम्हारे साथ के एहसास का वही टुकड़ा मेरी अमानत बन कर मेरी जेब में था जिसपर तुम्हारा दिया हुआ टेलीफ़ोन नम्बर लिखा मिला था ..कोई तुम्हारे काका का ...हमारे शाश्वत द्वैत संबधों का प्रतीक ..हमारी तुम्हारी भावनाओं की ज़मानत..कितना असहाय और दुर्बल महसूस कर रहा था मैं ,अनु ....।
बाहर प्रकाश ही प्रकाश मात्र ..लेकिन भीतर घुप्प अँधेरा क़ायम था....। 


गतांक से आगे.५ .

दिल्ली :  छोटी दिवाली : बड़ी दिवाली और मुरादाबाद .

 
दूसरे दिन छोटी दीवाली थी। पार्श्व के घरों में कई दिन पहले से ही रंग बिरंगी लड़ियां सजी हुई थी। लोगों का उत्साह चरम पर था। दिल्ली दिल वालों की है। रही मेरी खुशी तो ..तुम अंदाजा लगा ही सकती हो। इस भीड़ में भी  शामिल हो कर मैं  तुम्हारे बिना अकेला ही रह गया था ...
मेरे सीनियर बिजनेस फ्रेंड सतीश धवन दिल्ली से ही है, वह भी अक्सर कहा करते है ,' जानते है ..देश का दिल है दिल्ली, यहाँ कॉर्पोरेट जगत के लोगों की भरमार है।
... इसलिए लाज़िमी है यहां दिल खोल कर खर्च करने वाले भी लोग मिल यत्र तत्र मिल ही जाते हैं। दिल्ली की दिवाली कॉर्पोरेट जगत की दिल खोल कर खर्च करने वाली होती  है। '
'दीपावली के त्यौहार का ही वो मौका होता है जब कार्पोरेट जगत के मालिक व सारे कर्मचारी सपरिवार एक जगह इकट्ठा हो कर मस्ती करते हैं। अंत में दिवाली गिफ्ट देने और पाने  का ..... सिलसिला चलता है। हर साल उन कर्मचारियों को दिवाली का इंतजार रहता है... दिवाली पार्टी का और दिवाली गिफ्ट का । जितनी बड़ी कंपनी होती है उतनी बड़ी पार्टी होती है और वैसा ही गिफ्ट मिलता हैं । ' 
यह बात हमने दिल्ली के ही अपने परिचित व्यवसायी अनूप कुमार सिन्हा से भी सुनी थी।
यह भी तयशुदा बात ही है कि दिल्ली में कार्पोरेट जगत वालों की भरमार है। यहां हर घर में दिवाली के दिनों में गिफ्टों का खुल कर आदान - प्रदान होता है। 
कर्मचारियों को दिवाली की प्रतीक्षा साल भर से होती है। कंपनी से बोनस गिफ्ट आदि मिलने की आशा जो उन्हें बनी रहती है। इन दिनों खरीददारी के लिए दुकानों के आगे बड़ी लंबी लंबी लाइनें लगी होती हैं ।
ड्राई फ्रूट्स, बिस्किट नमकीन, मिठाई, गिफ्ट आइटम चादर कपड़े ,चांदी के सिक्के कुछ भी हो सकतें हैं जो भेंट स्वरुप दिए जा सकते हैं, लोगों की  खरीददारी में शामिल होता है । 
धनतेरस की देर रात्रि तक आपके पहुंचने का कोई भी समाचार मुझ तक नहीं पहुंचा था। न जाने कौन कौन से ख्याल आ रहें थे। चिंता लगी हुई थी। मन एकदम सा विचलित था, अनु। कही भी किसी काम में मन लग ही नहीं रहा था। पल पल आपके समाचार जानने की बैचनी लगी हुई थी। 
दिवाली में दिल्ली पूरी सज चुकी थी। बाजारों की रौनक लौट चुकी थी। करवा चौथ से ही दिल्ली में जो मार्केट सजता है वो भाईदूज तक वैसे ही जमा रहता है। बड़ी बड़ी कंपनियां बड़े बड़े आफर के साथ सामान सेल करते हैं। 
जिसके साथ जैसे रिश्ते होते हैं उन्हें वैसे स्तर पर गिफ्ट और मिठाई के डब्बे दिए जाते हैं, हां कुछ भी लेने देने का कल्चर दिल्ली वालों में है । दिल खोलकर कर दिवाली में ख़र्च करने का कल्चर दिल्ली में ही है।    
मुझे याद है उस दिन धनतेरस की पूरी रात तो नींद आयी ही नहीं। शंकाओं के बादल अनायास ही क्षितिज़ पटल पर रह रह कर उमड़ते घुमड़ते रहे थे । ऑंखें बंद हो कर भी खुली रहीं थी ..और नींद जैसे कोसों दूर थी । बार बार हॉस्टल के केयर टेकर से अपने किसी के टेलीफ़ोन आने की बात मैं पूछता रहा था ...। 
मन में शंकाएं उमड़ती रहीं '..तुम ठीक तो हो न ...? .. रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई न ..आदि ..न जाने ऐसे कितने सवाल कितने बार आते रहें ...कह नहीं सकता..बतला नहीं सकता ,अनु ... ?
हॉस्टल का केयर टेकर भी अचम्भें में था कि हर आखिर पन्दरह मिनट में मैं उससे किसी टेलीफ़ोन के आने के बारे में क्यों पूछता रहा हूँ ...?
एकाध बार उसने पूछा भी तो उसे भला मैं क्या जबाव देता , अनु ..तुम ही बतलाओ..


नैनीताल की पहाड़ियां : यादों के बादल : और सिर्फ तुम 
: फोटो : शक्ति प्रिया 

और मैं चाह कर भी तुम्हारे दिए गए नंबर पर इतनी रात्रि गए फ़ोन नहीं कर सकता था क्योंकि ..आपने बतलाया था कि यह लैंड्स लाइन का नंबर है ..शायद पड़ोस वाले काका के घर का है। 
इतनी बीती रात्रि किसी अपरिचित के यहाँ फ़ोन करना तो  ठीक नहीं ही न था। प्रतीक्षा ही मात्र की जा सकती थी .. 
मुझे याद है आप अक्सर कहा करती थी, ' पहाड़ों पर नेटवर्क की अच्छी ख़ासी समस्या है ..बी एस एन एल छोड़ कर और दूसरा लगता भी नहीं है ..'
याद आया फिर यदि मैंने किया भी और किसी ने भूल वश उत्तर नहीं दिया...या फ़ोन रिसीव नहीं किया .. तो शायद मेरी परेशानी और भी बढ़ सकती थी। 
बेइंतेहां हो सकती थी, शायद हालात मेरे लिए और भी मुश्किल हो सकते थे।
फिर यह बात तो आपसे जुड़ी थी..किसी अन्य से नहीं...न.! मैं आपको लेकर बेहद संवेदनशील रहा हूँ ना ?
याद है इसी तरह एक बार आप लखनऊ मामी के यहाँ चार पांच दिनों के लिए गयी थी ...और आपने सकुशल पहुँचने की खबर नहीं दी थी ..तो उस समय आपके लिए लौटने के साथ ही मेरी नाराजगी चरम पर थी। 
मुझे याद है तब लौटने के दो तीन दिनों तक मैं आपसे मिला नहीं था। आपसे बात करने की पहल भी नहीं की थी। तब आपको कुछ गलत होने का एहसास हुआ था।  
'आपको अपने सकुशल पहुंचने की ख़बर देनी चाहिए थी...' तब इतना मात्र बोलने से ही आपको मेरे गुस्से की जानकारी हो चुकी थी। नाराजगी की बजह भी बाद में बात चीत के दरमियाँ पता ही चल गया था।  
तब आपने मामले की नज़ाकत को समझते हुए बड़ी मासूमियत से अपने दोनों कानों को स्पर्श करते हुए कहा था, '..यह मेरे जीवन की पहली और आखिरी गलती है...सच्ची ! दोबारा नहीं करुँगी ..विश्वास करेंगे ना ? '  
याद है ना ? ...कभी आपने ही कहा था, ' जिससे प्यार होता है उसी से तो गुस्सा भी होता है ...है ना ? 
सच में फिर कभी भी आपने भविष्य में इस सन्दर्भ में शिकायत का मौका नहीं दिया। उम्मीद थी आपका कॉल आएगा ही। लेकिन इतनी सुबह आ जाएगा ,.. जब मैं मार्निंग वॉक के निकला हूँगा,सोचा भी नहीं था।
जैसे तैसे सुबह जब बगल के पार्क से मार्निंग वॉक से लौटा ही तो था कि हॉस्टल के केयर टेकर ने आपके बारे में शुभ समाचार की सूचना दे दी ,... ' डॉ. साहब...आपका फोन आया था..नैनीताल से..कोई अनु का..आपके बारे में ही पूछ रही थी...कह रहीं थी ..वह नैनीताल सकुशल पहुँच गयी है..डॉ. साहब आए ...तो कह देना..।  
नैनीताल की दिखती पहाड़ियां : मैं और तुम : फोटो : शक्ति प्रिया 

मन तब जा के हल्का हो चुका था कि ...आप नैनीताल सकुशल पहुँच गयी थी ,लेकिन बात न कर सकने की..आपकी आवाज़ नहीं सुनंने की पीड़ा ...कही टूटती सांसों की तरह दिल की आस को छू कर मन की गहराई में उतर गयी थी । फिर भी आपके सही पहुंच जाने ...यह  सोच कर... एक दीर्घ साँस लेने से तसल्ली जैसी आधी अधूरी ख़ुशी फिर से हासिल हो सकी थी। 
आज जब सेल फ़ोन आ गए है.. तो कोई समस्याएं होती ही नहीं  है। इतनी सतर्कता तो अपने इस रिश्ते निभाते वक़्त होनी ही चाहिए न ..अपने लोगों के मध्य ? 
सच में पता नहीं कौन किस जरूरत से अपनों को  याद कर रहा हो। फिर ले दे के प्यार होता ही क्या है अनु ...? यहीं न की हम एक दूसरे के लिए हर बड़ी से बड़ी,छोटी छोटी बातों का ख्याल रखें..बिना बोले बिना सुने ...बिना कहें ...एक दूसरे की जरूरतों को जाने ...बुझे ...जाने  
आप नियमित रूप से..निर्धारित समय पर बातें कर ही लेती है। कभी कोई कॉल मिस्ड नहीं होता। कभी कोई जवाब अधूरा नहीं होता है। इन सभी अच्छी आदतों के लिए मैं आपकी सराहना भी करता हूँ।
दिन ढ़लते ही हॉस्टल में ही मैंने आपके कहा अनुसार एक दो दीप जला लिए थे। आप ने कहा था,'अँधेरा नहीं रहना चाहिए था । इसलिए साँझ ढ़ले ही मैंने एक दो दीप जला लिए थे। लेकिन सच कहें भीतर के पसरे एकाकीपन और उदासी के अँधेरे को मैं कुछ भी नहीं हटा सका था ,अनु ...!लेश मात्र भी चाह कर मन यहाँ नहीं लग रहा था। बार बार मन अपनी सीमा रेखा को लांघते हुए नैनीताल की पहाड़ियों में ही भटक रहा था।...स्नो व्यू , हनुमान गढ़ी, नैनी झील ...नैना देवी ...अयारपाटा.. और न जाने कहाँ कहाँ ..आँखें तुम्हें उन पहाड़ियों में ही ढूंढ रहीं थी...इस समय तुम कहाँ रही होगी अनु ...! मैं तब नैनीताल एक दो दफ़े ही गया था न ,अनु... मैं नहीं जानता था कि नैनीताल में आपका घर कहाँ है शायद यही कोई अयारपाटा में ...। 
बेचैनी इतनी बढ़ी कि मैंने अकस्मात यह फ़ैसला कर लिया कि दिवाली के दिन कल अपने फुफेरे भाई भरत से मिलने मुरादाबाद चला जाऊंगा ...और वही से समय निकाल कर आपसे मिलने नैनीताल मिलने भी चला जाऊंगा ..शायद आपसे नैनीताल में अकस्मात् मिलना ही इस दिवाली का तुम्हारे लिए सबसे शुभ तोहफ़ा होगा। 
तय हो गया था ..मुरादाबाद के लिए सुबह में कोई ट्रेन ही पकड़नी है। यही कोई चार पांच घंटे का समय लगता है ..और वहां से रामपुर...पंत नगर ..हल्द्वानी..फिर नैनीताल। 
मुरादाबाद से ही पीतल चांदी के कुछ कलात्मक सजावटी सामान आपके लिए कुछ ले लेंगे...फिर नैनीताल के लिए चल देंगे... चूँकि मुझे यह आपको बताना नहीं था इसलिए मैंने आपको इस बात को  लेकर कोई सूचना नहीं दी। सोचा अचानक ही मिलूंगा तो आपकी खुशी दुगनी तिगनी हो जाएगी...  ऑफिस में दिवाली की एक दिन की छुट्टी भी हो रही थी ही। दोपहर तक दूसरे दिन वापस दिल्ली आ ही जायेगे। जब मैंने मनीष दा,संपादक को यह बतलाया कि मैं दिवाली समाचार की कवरेज के लिए नैनीताल जा रहा हूँ ...तो वे खुश भी हो गए यह सोच कर कि न्यूज़ के लिए एक अच्छा थीम मिल जायेगा..उनसे कुछ पैसे एडवांस में मिल भी गए थे।  
हॉस्टल में भी मैंने प्रशांत दा से पांच छ हज़ार रुपये अतिरिक्त  ले लिए थे ..सफर की जो बात थी ..   

*
गतांक से आगे.६  .
बड़ी दिवाली : सिर्फ तुम और नैनीताल .
डॉ. मधुप. 

दूसरे दिन दिवाली की सुबह थी। त्यौहार में कहीं बाहर निकलना कितना अजीब लगता है,अनु ? लेकिन तुमसे अकस्मात मिलने की ख़ुशी मुझे मीलों फासलें तय करने के लिए उत्साहित कर रही थी। मैं तुमसे मिलने के लिए इतना कुछ कष्ट 
तुम्हारे लिए तो सह ही सकता था,न ...जीवन के इस अंतराल में
सबेरे की ही कोई ट्रेन थी नई दिल्ली स्टेशन से। दस बजे सुबह तक मैं मुरादाबाद पहुंच भी चुका था। 
स्टेशन से जल्दी ऑटो लेकर भाई भरत के घर तक पहुंच चुका था। वो मेरा इंतजार ही कर रहें थे। हल्का फुल्का नाश्ता कर लेने के बाद मैंने शीघ्र ही अपने भाई से इच्छा जाहिर की मुझे पीतल,कांसे,चांदी के बाज़ार ले चले जहां से मैं कुछ कलात्मक सजावटी सामान ले सकूँ। 
भाई स्नेहिल है, हमसे उम्र में थोड़े ही छोटे है। समकक्ष है पर बहुत मानते है। उन दिनों किसी प्राइवेट टेलीफ़ोन कंपनी में काम कर रहे थे। बिना बिलम्ब किए हमदोनों स्कूटर से सर्राफा बाज़ार की तरफ़ चल पड़ें। 
हमने बहुत कुछ सोच समझ कर आपके लिए कुछ चांदी की महालक्ष्मी आकृति वाले कुछ सिक्कें खरीद लिए थे। कुछ कांसे के सजावटी भी सामान घर के लिए पसंद कर लिया था ,जिन्हें दीवारों पर टांगा जा सकता था। खरीदते समय एक ख्याल यह भी आया कि अगर आप चाहे तो उनमें से एक दो सिक्कें अपनी प्रिय सहेली सरस्वती और लक्ष्मी को दीपावली के शुभ अवसर पर भेंट कर सकती है। 
मुझे याद है जितनी देर ही उनदोनों से मिला, कुछ भी बातें हुई, दोनों स्वभाव से शांत,सयंमित और सौम्य दिखी। इस दुनियां में अच्छे लोग दिखते ही कहाँ है,अनु ? और मिलने  की तो बात ही छोड़ दे। उन्हें अपनी जान की क़ीमत पर बचा कर रखना चाहिए। सच में वो हमारी जिन्दगी के अनमोल विरासत होते हैं। वैसे लोगों को कभी भी खोना नहीं चाहिए। आप भी मेरी इस बात से वाक़िफ  ही है। 
दोपहर मैंने मुरादाबाद सरकारी बस स्टैंड से नैनीताल के लिए बस पकड़ ली थी। हालांकि भाई नहीं चाहते थे कि मैं दिवाली के दिन घर से बाहर जाऊ। 
उसने कहा भी, ' भैया ! , आज मत जाओ... कल चले जाना ...'
मैंने कहा था,' नहीं, मुझे जाना ही होगा...भाई..दिवाली का असाइनमेंट है ..ऑफिस का ...पूरा करना है. '  
उसने बहुत आग्रह किया लेकिन मैं किसी हाल में रुक नहीं सकता था। मेरी मंजिल तो कहीं और थी मुझे आपसे मिलना था। तुम्हारे लिए...जन्म जन्मांतर के कष्ट जो सहने थे अनु ...?  
साँझ होने को आयी थी। रामपुर, पंत नगर,हल्द्वानी फिर काठगोदाम ...यही कोई चार बजने में दस मिनट शेष रहे होंगे ..हम हल्द्वानी पहुंच चुके थे। 
तक़रीबन चार बजे हल्द्वानी से नैनीताल के लिए मैनें शेयर वाली टैक्सी ले भी ली थी। धीरे धीरे आपके समीप आने की ख़ुशी मुझे किसी दूसरी दुनियां की तरफ ले जा रही थी। तेरे मेरे सपनों की दुनियाँ तक।  
रास्तें में कारों का अच्छा खासा लम्बा काफिला नैनीताल की तरफ जा रहा था। काफी लोग अपनी दीवाली की छुट्टियां किसी मनोरम सी जगह सरोवर नगरी नैनीताल में मनाने के ख्याल से जा रहें थे। 
दिल्ली के आस पास रहने वाले लोगों के लिए का ऐसे भी उत्तराखंड का नैनीताल  कोमनपसंदीदा स्थान बन  जाता है। और यहां प्रत्येक साल लाखों की संख्या में पर्यटक आते है। साल के इन आखिरी दो महीनों में तो प्रकृति प्रेमी सैलानी की अधिकाधिक संख्या नैनीताल की ओर रुख करती है।  
दीवाली पर पड़ने वाले लॉन्ग वीकेंड को लेकर मेरा कयास सही ही था कि यहां पर्यटकों की खासा भीड़ देखने को मिलेगी। और यह सही साबित भी हुआ। शहर से थोड़ा पीछे हनुमानगढ़ी  से चार किलोमीटरआगे ही जैसे कारों का सिलसिला लगभग रेंगने ही लगा था। मेरी बेचैनी शैनेः शैनः बढ़ने ही लगी थी। लग रहा था क्यों कर मैं तुम्हारे पास पहुंच जाऊँ..? 
मेरे पास आपसे संपर्क करने का एक ही माध्यम शेष था। वह था आपका दिया हुआ लैंड लाइन का नंबर। भगवान जाने नेट वर्क की स्थिति क्या होगी ..यह तो पब्लिक बूथ से ही पता चलेगा..? 
सच में बात करने के बाद ही ...मैं जान पाता, कि नैनीताल में मुझे आखिर कहाँ जाना है ? जाना भी है....तो किस रास्ते से जाना है ?
तब उन दिनों मेरे पास नैनीताल की विशेष जानकारी भी नहीं थी न, अनु। दिशा का भी कोई विशेष ज्ञान नहीं था। शोध अभी बाकी ही था। 
पता नहीं कितनी और देर लगेगी बार बार मैं घड़ी की तरफ़ ही देख रहा था ? सब्र का यह इम्तेहां ही था तो था,मेरे लिए अनु। है ना ? 
शायद अभी कुछ देर और लगना था ...तल्ली ताल बस स्टैंड पहुंचने में। भीड़ बढ़ती ही चली जा रही थी।  पहुंचने के बाद ही मुझे आगे उस नंबर पर बात करने के बाद ही जानकारी मिलती कि मुझे नैनीताल शहर में किस मार्ग में  जाना है  ? 
तब सच में मुझे आपके नैनीताल के निवास स्थान या आपके रहने के लोकेशन के बारे में अधिक जानकारी कहाँ थी,..? आपने यही कोई बतलाया था कि राज भवन वाले रास्ते से उपर जाना था ...यहीं कोई शेरवुड कॉलेज के आस पास...किसी जोशी जी के चेरी ब्लॉसम बंगलो के इर्द गिर्द  ही ..थोड़ी दूर,शायद आप किसी किराये के मकान में रहती है । बस इतना तो ही आधा अधूरा पता था न ...मेरे पास ,...आपके पास पहुंचने के लिए  !
जानते थे नैनीताल के मॉल रोड जिसमें शाम ६ बजे से ८ बजे तक गाड़ियों का आवागमन प्रतिबंधित रहता है और मॉल रोड पर काफ़ी भीड़ होती है। तल्ली ताल स्टैंड से तब मुझे फिर किसी अन्य माध्यम से ही आपके घर तक पहुंचना होगा। बस इतना ही सोच रहा था ..कैसे जाना होगा...?
यह तो पहुंचने के बाद ही वहां किसी रहने वाले से पूछने पर ही मालूम होता। फिर मेरे पास पता भी तो सही होना चाहिए था..ना ..। 


थोड़े देर बाद ही तल्ली ताल स्टैंड के पास ही गाड़ी रुक गयी थी। ड्राइवर ने उतरने को कहा तो शीघ्र ही पता चल गया कि हम स्टैंड आ गए हैं। मेरे पास अपने सामान में यही कोई बैग ही था ...उसमें कुछ कपड़ें थे.. एक कीमती कैमरा ..और कुछ फ़िल्टर करने वाले लेंस। मैं .. अपना बैग लेकर उतर गया था। 
शीघ्र ही लोगों से पब्लिक बूथ की जानकारी ली तो पता चला थोड़ी दूर आगे ही कैथोलिक चर्च के पास एक बूथ है। थोड़ी दूर चलने के बाद एक बूथ भी दिख गया।  
भीतर जा कर मैंने शीघ्रता से आपके दिए गए नंबर पर डायल किया ...एक बार ही नहीं ...दो बार ..करीब पूरा रिंग बजा था न ,अनु। ..लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं मिला। शायद कोई सुन ही नहीं रहा था। 
पहली दफा तो शायद लगा मैं ग़लत नंबर डायल कर रहा हूँ ...लेकिन मैंने फिर से नंबर देखा ....बार बार देखा ...तो लगा नंबर तो सही ही है  ...मैं तो सही नंबर ही डायल कर रहा था...। 
कई बार तो लगा कि नेट वर्क का प्रॉब्लम रहा होगा ...लेकिन यह भी गलत साबित हुआ था। भला यह कैसे हो सकता था..?..रिंग तो सही ही जा रहा था .. न ? बूथ वाले ने तस्दीक़ कर दिया था  कि नेटवर्क का कोई प्रॉब्लम नहीं था। आती जाती गाड़ियों का शोर ...उनके हॉर्न की आवाजें फिर ...रह रह कर बजती पटाखों की कान फोड़ने वाली आवाज़ें..आसमान तारों का ऊपर जाने से उठते शोर में ..न जाने .. मेरे द्वारा डायल किए गए कितने कॉल्स ...दूसरे ...तीसरे ...चौथे ...डायल ...कब के अनसुने रह चुके थे। उधर से कोई जबाव नहीं था...बैसी ही ख़ामोशी...किसी के भी फ़ोन नहीं उठाने जैसी...पता नहीं उस तरफ कोई था भी.. या नहीं ...जवाब न मिलने से मैं एकदंम से हताश होने लगा था...किसी घने जंगल में बिना किसी गाइड और दिशा सूचक कम्पास के भटकने जैसा ...सच में मैं और कर भी क्या सकता था ..? ...सिर्फ निरंतर कॉल्स के प्रयास करने ..या फिर इस अनजाने शहर में भटकते रहने ..लोगों से पता पूछते हुए ...आपको ढूंढने की कोशिश करने के अलावा मेरे पास कोई  विकल्प भी तो नहीं बचा था अनु ..मैं सन्देश भेजूं भी तो कैसे...इस अनजाने शहर में। तब मैं दूसरी दफा ही तो नैनीताल आया था न ? विशेष जानकारी भी थी ही कहाँ ...? तब नवीन समाचार के संपादक नवीन दा भी तो अपने मित्र नहीं बने थे। न यही कोई १९९२.. का साल रहा होगा.. 
बूथ वाले ने तब कहा था , ' सर नेट वर्क का कोई प्रॉब्लम नहीं है..कोई उधर से उठा ही नहीं रहा है...थोड़ी देर बाद फिर से कोशिश कीजियेगा। ' दिशा विहीन हो चुका था मैं ..परिणाम रहित  हो चुके थे मेरे सारे प्रयास ..लग रहा था.. अब करें तो भी क्या करें ...? जाए तो कहाँ... जाए ? कहाँ खोजे..कैसे ढूंढ़े  आपको ..इस अनजाने से शहर में जहाँ कोई भी अपना परिचित भी नहीं था ..बिना किसी सही पते के कहाँ कहाँ भटके ..? किससे पूछे ? स्थानीय लोगों से पूछने पर पता चला यहाँ से कोई राज भवन की दूरी चार पांच किलोमीटर की होगी ...आपके घर के आस पास की। दीप जल रहें थे। पूरे नैनीताल में जगमगाते दीपों की रौशनी जैसे झील में उतर गयी थी। शहर लक्ष्मी पूजा की तैयारी कर रहा था ...
मेरे लिए तो यह दीपवाली तुम्हारे बिना जैसे सिर्फ अमावस की गहन अँधेरी रात ही थी। मात्र ..निराशा की फैली घुप्प अँधेरी रात की तरह  ...आशा की एक किरण  के बिना। 
यह कार्तिक मास की अमावस ही तो थी हमारे सामने .. घने काले बादल जैसे मन के भीतर अँधियारे बन कर उतर आए हो।  
..सामने नैनी झील में ही... तब कोई तेजी से टूटता सितारा डुबकी लगाता हुआ दिखा था ..अनु ? डूबती जा रही थी आशा की हरेक किरण। ..दूर तलक कोई भी नजर नहीं आ रहा था .
.एकदम असहाय हो गया था ..  अभी तुम कहाँ होगी ..मन यही सोच रहा था...
*

गतांक से आगे.७.
आखिरी कोशिश  : सिर्फ तुम और नैनीताल .


छूने को निकला था सूरज आया हाथ अँधेरा : संसार की हर शय में : फोटो डॉ. मधुप नवीन 

भीतर मन में बड़ी बैचनी सी थी अनु।  बार बार लग रहा था कहीं तुम्हें पहले नहीं बता के बहुत बड़ी ग़लती तो नहीं की थी।
कितना व्यर्थ लग रहा था आना  तुम्हारे बिना... ?
तल्ली ताल के पास से ही चर्च के रास्ते से उपर चढ़ने लगा था। किसी ने बताया था इस रास्ते से आगे भी बढ़ते हुए हम राज भवन शायद शेरवुड कॉलेज के आस पास बढ़ते हुए आपके घर के इर्द गिर्द हो सकते थे। 
बढ़ने से पहले मैंने एक बार फिर किसी दूसरे टेलीफ़ोन बूथ से नंबर लगाने की कोशिश की। शायद बात हो जाए ..लेकिन नहीं फिर वही ..बिना किसी जबाव के घंटियां लगातार बजती ही रही। अनुत्तरित होने से ऐसा लग रहा था कि जैसे सदियों से उस घर में नहीं रह रहा हो। 
अनयास ही आँखें दीवार पर लगी पाषाण देवी की  तस्वीर  से घूरती हुई पूछती रही पता नहीं इस वक़्त तुम कहाँ हो अनु .. आज तुमसे मिलना लिखा है या नहीं ...पता नहीं ...इस दीपावली की सार्थकता मेरे हिस्से में क्या लिखा है। 
अनमने ढंग से बूथ से निकल कर मैं  उपर की चढ़ाई पर बढ़ता रहा था । रह रह कर आस पास के घरों से आसमान के तारे  के छूटने की आवाज़ से अपने मन में व्याप्त चुप्पी भंग हो रही थी।थोड़े बीस तीस मिनट चलने के बाद हम राज भवन के पास पहुंच चुके थे। यही कोई आस पास ही न आपका घर रहा होगा अनु ? राह चलते कुछेक लोग से जोशी जी के चेरी ब्लॉसम बंगलो के बारे में जानकारी लेने की कोशिश भी की थी ...लेकिन सफलता नहीं मिली। अब केवल हताशा ही मेरे साथ थी। एक ही प्रश्न था मन में हे ! ईश्वर अब मैं क्या करूँ ..? आपसे मिलना निश्चित है या नहीं ? नीचे वापसी के अतिरिक्त कोई चारा ही नहीं बचा था। भरे मन से नीचे की ओर कदम बढ़ने लगे थे। रात भी तो गहराने लगी थी। 
उपर शीर्ष से मैंने पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए नीचे झील के आस पास की तस्वीरें ली। उपर से नीचे की दीपावली की तस्वीर बड़ी ही मनभावन लग रही थी।   
उतरते समय टी स्टॉल से मैंने ठंढ़ जान कर चाय और बिस्किट भी ली थी। वापस तल्लीताल लौटते हुए करीब रात्रि के पौने दस बज रहे थे। पटाखों का शोर अब धीरे धीरे थमने लगा था।  
सोचा अब तो लौटना ही तो क्यों न एक बार फिर से कोशिश कर लूँ।  संयोग से वही एक बूथ खुला ही मिला था। ऑपरेटर को मैंने नंबर दिया तो उसने लगा दिया ...थोड़ी  देर घंटी बजने के बाद उसने चोंगा बढ़ाते हुए कहा ...लीजिए सर ! ...लग गया है...
लगा जैसे पाषाण देवी ने मेरी प्रार्थना सुन ली हो..
उधर से आवाज़ थी, हेलो !
जी आप जोशी...बोल रहे है 
जी ...बोल रहा हूँ ...आप कौन ?
मैं डॉ. रमण बोल रहा हूँ...ब्लॉगर , कहानीकार पत्रकार हूँ। आप के घर के पास कोई पंत जी की लड़की अनुराधा पंत रहती है क्या ....? उनका दोस्त हूँ  ..जी उन्होंने ही मुझे आपका नंबर दिया है..
वो अनु ...न ? जो दिल्ली में रह कर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रही है .. ..?
'जी...आपने सही पहचाना।  मैं नैनीताल आया हुआ हूँ ..रिपोर्टिंग के लिए ..उनसे मिलना चाहता हूँ  ..क्या  आप उन्हें मेरे आने की ख़बर भिजवा देंगे अंकल .. ?
 ' बेटा ! ....बड़ी देर कर दी .....वो लोग तो आज अपने गांव अल्मोड़ा जाने वाले थे...अभी जाकर देखता हूँ ..' जैसा हो अंकल ..आप उन्हें मेरी आने की ख़बर भिजवा दे। आपसे मैं दस मिनट बाद बात करूँ ..'' हाँ बेटा !..'  इतना कह कर उन्होंने फोन रख दिया था। शायद उनसे मिलने गए हो। ये दस मिनट कैसे गुजरे मैं ही जानता हूँ..एक पल के लिए लगा तुमसे मुलाकात हो जाएगी..दूसरे ही पल इस सोच पर ही आशंका के बादल मंडराने लगे थे...क्या पता ?दस मिनट बाद मैंने जब फ़ोन लगाया तो उधर का जबाव था '..सही...बेटा...मेरा अंदेशा सही था ... वो लोग तो शाम आठ बजे के आस पास ही अपने गांव चले गए है..'  ' अंकल ! मैं तो आपके पास आठ बजे से ही आपको फोन लगा रहा था...आप ने नहीं उठाया था... 
' हाँ बेटा !...नीचे तल्लीताल चला गया था पूजा का सामान लेने।...क्या क्या अंकल बोल रहें थे..सुन भी नहीं पा रहा था। '   
उस रात की पूरी अमावस मेरे दिल में उतर चुकी थी आँखों के आगे घुप्प अँधेरा जैसा छा गया था। आगे अंकल पता नहीं क्या क्या कह रहे थे...?...शायद...घर पर बुलाने की बात कर रहें थे..लेकिन मैं सुन कहाँ  रहा था , अनु ? 
याद करने लगा था आज जब मैं शाम नैनीताल पहुंचा था तब तक तो तुम थी न अनु..काश यदि जोशी अंकल ने फोन उठा लिया होता ..तो कुछ और बात होती ... 
'....लेकिन अब मेरे लिए तुम्हारे बिना वहां जाने का क्या अर्थ रह गया था ,..अनु ? ' 
लगा लगातार कई सितारें आसमां से टूट कर झील में समा गए थे। मेरे लिए सही में अमावस थी। दिए जल तो रहें थे लेकिन मन के निराशा के घुप्प अँधेरे थे ..... 
हताश मन से  बस स्टैंड की तरफ़ बढ़ गया था ...  

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गतांक से आगे.८. आखिरी क़िस्त. 
वापसी : समय : साथ और संकल्प 
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डॉ. मधुप.

'....लेकिन अब मेरे लिए तुम्हारे बिना वहां जाने का क्या अर्थ रह गया था ,..अनु ? ' 
लगा लगातार कई सितारें आसमां से टूट कर झील में समा गए थे। मेरे लिए सही में अमावस थी। दिए जल तो रहें थे लेकिन मन के निराशा के घुप्प अँधेरे थे ..... 
आगे हताश मन से  बस स्टैंड की तरफ़ बढ़ गया था ...वापसी की जो गाड़ी पकड़नी थी।   
तल्ली ताल बस स्टैंड पर पहुंच कर वापसी की गाड़ी पूछी तो दिल्ली की गाड़ी सुबह सात बजे की थी। 
और अभी तीन बज रहें थे। चार घंटे अभी भी शेष थे। कितना मुश्किल लग रहा था वक़्त का कटना ? बीते न बिताये रैना जैसी घड़ी लग रही थी। कोई भी शहर अपनों से ही अच्छा लगता है न ,अनु ? सामने गोरखा ने एक ठेला लगा रखा था। ठंढ़ी और समय काटने के लिए  उससे कुल्हड़ की चाय पीता रहा। ले दे के हम दोनों ही तो थे। रह रह कर सन्नाटें को चीरते कुत्तें भोंक लगा जाते थे। झील के उस पार नैना देवी की सजी चायनीज़ बल्बों की लड़ी थरथराती प्रतिबिम्बों में दिख जाती थी।झील एकदम से रात के अंधेरे में स्थिर दिख़ रही थी।  सर्द हवाएं अब हमें रह रह कर सताने लगी थी। उन रास्तों पर बार बार नजरें जा रही थी जिन रास्तों से भवाली, कैची धाम , खरना से गुजरते हुए तुम अल्मोड़ा गयी होगी। क्यों फिर वही तलाश जारी थी , अनु ? मन में काश से कई जुडें प्रश्न उठते रहें काश मैंने आने की..... सूचना पहले दे दी होती .....अचानक आने  और तुम्हें अप्रत्याशित देने की ख़ुशी में  अपनी ख़ुशी में ही जैसे चंद्रग्रहण लग गया था। 
काश ऐसा नहीं होता। 
मेरा मन क्यों घबरा रहा था यह तो मेरा मन ही जाने । थके थके से कदम रुक के बार बार टैक्सी स्टैंड की तरफ चल या कहें घसीट रहें थे। मेरा मन निरंतर यह सोच रहा था जीवन में दुःख आने के कई कारण होते हैं, जैसे उम्मीदों का पूरा न होना,अकेलापन, और ऐसे में प्रियजन की अनुपस्थिति ।
दुःख को दूर करने के लिए मन की स्थिति को बदलना, वर्तमान को स्वीकार करना, और जीवन की अनिश्चितता के लिए तैयार रहना ज़रूरी है, कितना असहाय लग रहा था अनु....


अमावस की रात : मन में : झील में जलते  बुझते  दिए की रौशनी : फोटो : शक्ति अनु 

देर दोपहर तक़ दिल्ली पहुँच सका बस अब छुटियाँ ख़त्म होने का ही इंतिजार था जब तुमसे बातें होती कितने बेसब्र थी वो घड़िया ...
 *
आख़री किश्त : आगे भी क्रमशः जारी :

*
फोटो संदर्भ  : डॉ. अनु.मानसी. डॉ.मधुप  
संपादन : शक्ति नैना डॉ.सुनीता प्रिया. 
पृष्ठ सज्जा : मंजिता सीमा अनुभूति तनु सर्वाधिकारी. 
दार्जलिंग / शिमला डेस्क. 
क्रमशः जारी 
*
ज्योति कलश छलके : प्रकाश पर्व की शुभकामनाओं के साथ.

* लीवर. पेट. आंत. रोग विशेषज्ञ. शक्ति. डॉ.कृतिका. आर्य. डॉ.वैभव राज :किवा गैस्ट्रो सेंटर : पटना : बिहारशरीफ : समर्थित.
*
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दिए जलते है : जीवन संगीत : कल भी कोई दोहराएगा : पृष्ठ : ६.
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संपादन
शक्ति. प्रिया श्रद्धा अनुभूति मीना
शिमला डेस्क
*

फिल्म : नमक हराम.१९७३.
सितारे : राजेश खन्ना रेखा अमिताभ बच्चन
गाना : दिए जलते है फूल खिलते हैं
बड़ी मुश्किल से मगर दुनियाँ में दोस्त मिलते हैं


गीत : आनंद बख्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : किशोर कुमार
गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं

फिल्म : प्रेम रतन धन पायो.२०१५.
सितारे : सलमान खान. सोनम.
गाना : सुनते है जब प्यार हो तो दिए जल उठते हैं
गीत : इरशाद कामिल. संगीत : हिमेश रेशमिया गायक : अन्वेषा. विनीत सिंह.

गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं
फिल्म : खूबसूरत. १९९९.
सितारे : संजय दत्त. उर्मिला मांतोडकर.
गाना : घूँघट में चाँद होगा
आंचल में चांदनी.
*
*
गीत : संजय छैल संगीत : जतिन ललित : गायक : कुमार सानू. कविता कृष्णमूर्ति.
गाना देखने व सुनने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं
*

दृष्टि क्लिनिक : डॉ दीनानाथ वर्मा : किसान बाग : बिहार शरीफ समर्थित
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दिए जलते है : फूल खिलते हैं : फ़िल्मी कोलाज : पृष्ठ : ७.
-------------
संपादन
शक्ति. प्रिया डॉ.सुनीता सीमा अनुभूति
दार्जलिंग डेस्क.


तन में मन में और नयन में दिए जल उठते हैं : कोलाज : साभार : डॉ.सुनीता शक्ति  प्रिया अनुभूति 
घूँघट में चाँद होगा आंचल में चांदनी : चुपके से देखेगी साजन को सजनी शक्ति.नैना प्रिया डॉ. सुनीता सीमा.  

उम्र भर साथ लेकिन दोस्त चलते हैं... दिए जलते हैं : 
कोलाज : शक्ति. 
प्रिया डॉ. सुनीता सीमा.  
*
ज्योति कलश छलके : प्रकाश पर्व की शुभकामनाओं के साथ.

*
ममता हॉस्पिटल बिहार शरीफ:शक्ति डॉ. ममता आर्य डॉ.सुनील कुमार:समर्थित 
*
दीपोत्सव : प्रकाश पर्व पर अनंत शिव शक्ति शुभकामनाओं के साथ. 


साहिल : केशव ज्वेलर्स : चौक बाजार : बिहार शरीफ़ समर्थित. 
--------
समाचार : चित्र : दिन विशेष : दृश्य माध्यम : न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११.
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संपादन
शक्ति. शालिनी रेनू स्मिता अनुभूति
शिमला डेस्क
*
दिन विशेष :
संपादन
शक्ति.नैना डॉ. सुनीता प्रिया सीमा
नैनीताल डेस्क
*

ॐ असतो मा सद्गमय,
तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय
*
विचार : शक्ति तनु मीना बीना जोशी. श्रद्धा
बंगलोर डेस्क
*
सज्जा : शक्ति माधवी स्मिता मंजिता वनिता
चंडी गढ़ डेस्क
*
श्री कृष्ण के नरकासुर वध : दास नारियों की मुक्ति
की स्मृति में नरक चतुर्दशी : छोटी दीवाली.

*

*
की अनंत शिव शक्ति मंगल कामनाएं
*
धनवंतरी दिवस जी आई एफ


*
समुद्र मंथन से आयुर्वेद अमृत कलश लिये
प्रकट हुये चौदहवें रत्न भगवान् धनवंतरी
आपको, आपके पूरे परिवार को उत्तम स्वास्थ्य,
दीर्घायु व उत्कृष्ट रोग-प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करें

*
हम सभी देव शक्ति मीडिया परिवार की तरफ़ से
आप समस्त को अनंत शिव शक्ति शुभकामनायें
*
न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११.
संपादन
शक्ति. शालिनी रेनू स्मिता अनुभूति
शिमला डेस्क
*
*
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे,
विष्णु पत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्
*
*
सागर किनारे : मेरिन ड्राइव : मुंबई : मेरी यादें
न्यूज़ : शॉर्ट रील : यात्रा वृतांत : डॉ. मधुप
*
चयन : शक्ति प्रिया सीमा जबा सेन
*
आर्य अभिषेक शाखा प्रबंधक.आई डी वी आई बिहारशरीफ.

 दीपावली,भाई दूज, चित्रगुप्त पूजा, शक्ति षष्ठी आदित्य देव की अनंत शिव शक्ति कामनाओं के साथ  

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दिए जलते है : फूल खिलते है : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : १२.
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संपादन
शक्ति. प्रिया शालिनी तनु अनुभूति
दार्जलिंग डेस्क
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नहाय खाय खरना के साथ लोक पर्व छठ की शुरुआत : थीम फोटो : शक्ति प्रिया रितु स्मिता सीमा
कर दूँ मैं पथ आलोकित प्रियतम अपने नयन दीप जला के:शक्ति प्रिया मीना कंचन मानसी.नैनीताल
जब दीप जले आना संकेत जब शाम ढ़ले जाना:फोटो:शक्ति.प्रिया रेनू सुनीता अनुभूति:जयपुर
 महालक्ष्मी : शुभ स्वागतम : रंगोली : ठाणे : मुंबई : फोटो : शक्ति शैली कृष्णा अम्बा गुंजन. 
दीप: दिल:और दिवाली:जलते है जब आकाश दीप:शक्ति सुनीता रेनू रितु श्वेता श्रीवास्तवा 
ज्योति  कलश छलके ऐ गुलाबी लाल सुनहले रंग दल बादल के : फोटो : ' शक्ति ' शालिनी : 
दिए जलते है फूल खिलते है : दीपोत्सव की तैयारी : फोटो थीम : शक्ति प्रिया डॉ.सुनीता सीमा.
कहीं चाँद दिखा कहीं नहीं धैर्य समर्पण की घड़ी.करवा चौथ.संपादन. शक्ति प्रिया डॉ.सुनीता रितु

चाँद का इंतजारतेरा मेरा साथ रहे.थीम फोटो संपादन.
 शक्ति.रितु 
मीना जबा अनुभूति : नैनीताल. 
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आ रहे प्रकाश पर्व : दीपावली की हमारी हार्दिक अनंत शिव शक्ति शुभकामनायें.
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रिश्तों की जमापूंजी : बैंक ऑफ़ इंडिया : प्रबंधक. शक्ति. नेहा : समर्थित.
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शुभकामनाएं : दिल जो न कह सका : चलते चलते : पृष्ठ : १३.
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*
संपादन 
डॉ. सुनीता सीमा शक्ति प्रिया
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शुभकामनाएं : जन्म दिन : पृष्ठ : १३.
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संपादन
*
शक्ति डॉ.अनु भावना माधवी शालिनी
*
शुभकामनाएं : जन्म दिन की.
१४.अक्टूबर.
शक्ति अवतरण दिवस.


*
शक्ति.मंजीत कौर.
चंडीगढ़ .
*
कला शक्ति सम्पादिका.
वेब ब्लॉग मैगज़ीन पेज महाशक्ति मीडिया.

*
को उनके जन्म दिन: शक्ति अवतरण दिवस १४ अक्टूबर मूलांक ५
के मनभावन पावन अवसर पर
' हम ' एकीकृत देव शक्ति ' मीडिया ' परिवार की तरफ़ से ढ़ेर सारी प्यार भरी
'अनंत ' ' शिव शक्ति ' शुभकामनाएं '
*

दृश्यम : हमारी उमर भी लग जाए. 
शुभकामनाएं : जन्म दिन की.
६. अक्टूबर
शक्ति अवतरण दिवस.


*
शक्ति.मीना सिंह
मुक्तेश्वर .नैनीताल
*
कृष्ण की मीरा
मीरा डेस्क की सम्पादिका
वेब ब्लॉग मैगज़ीन पेज महाशक्ति मीडिया
फोटो. शॉर्ट रील सम्पादिका.
*
को उनके जन्म दिन : शक्ति अवतरण दिवस ६ अक्टूबर मूलांक ६ के मनभावन पावन अवसर पर
' हम ' एकीकृत देव शक्ति ' मीडिया ' परिवार की तरफ़ से ढ़ेर सारी प्यार भरी
'अनंत ' ' शिव शक्ति ' शुभकामनाएं '


व अप्रतिम भेंट 
*
शक्ति प्रिया डॉ.सुनीता मधुप
दार्जलिंग डेस्क
*

प्रकाश पर्व : दीपावली, चित्रगुप्त पूजा : की हमारी हार्दिक अनंत शिव शक्ति शुभकामनायें.


आर्य. अरुण कुमार वर्मा. जीवन बीमा. विकास अधिकारी बिहार शरीफ समर्थित
---------
दिल जो न कह सका : दिए जलते है : चलते चलते : पृष्ठ : १३.
----------
संपादन
शक्ति. प्रिया डॉ.अनु.शालिनी


तराने : दिल के 
हैप्पी बर्थडे टू यू.
*
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दिए जलते है : फूल खिलते हैं : तराने. पृष्ठ : १३.
--------
संपादन. 
शक्ति. प्रिया. डॉ.अनु मीना
नैनीताल डेस्क
*
तुम्हारे लिए
*
तराने दिल के
*
प्रकृति : पहाड़ : प्रेम : प्रेयसी : प्रस्तुति : प्रिया.
*
*
साभार : शक्ति रेखा : अल्मोड़ा : शॉर्ट रील
सजन निंदिया ले लेगी मेरी बिंदिया


*
साभार : शक्ति : रेखा : अल्मोड़ा.


शॉर्ट : रील सुनते है जब प्यार हो तो दिए जल उठते है 
*
यादों की बारात निकली हैं आज दिल के द्वारे
सपनों की शहनाई बीते दिनों को पुकारे
*

साभार : शक्ति रेखा : अल्मोड़ा : शॉर्ट रील
सारा प्यार तुम्हारा मैंने बांध लिया है आंचल में


साभार : शॉर्ट रील : फिल्म : कभी कभी.१९७६
सितारे : अमिताभ बच्चन. राखी. शशि कपूर. .
कि जैसे तुमको बनाया गया है मेरे लिए
*

*
साभार : शॉर्ट रील : फिल्म : नैना. १९७३
सितारे : मौसमी चटर्जी. शशि कपूर. राजश्री.
हमको जान से प्यारी है तुम्हारी आँखें


*
साभार : शॉर्ट रील : फिल्म : हँसते ज़ख्म. १९७३
तराने : तुम जो मिल गए हो तो ये लगता है कि जहाँ मिल गया है
सितारे : नवीन निश्चल. प्रिया राजवंश
*

मुंबई / बारिश / मेरिन ड्राइव और मेरी यादें
*
चयन : शक्ति प्रिया मीना श्रद्धा अनुभूति
*
English Section.

Shakti.Pooja. Arya.Dr.Rajeev Ranjan. Child Specialist.Biharsharif. supporting 

*
*
Diye Jalte Hai : Phool Khilte Hain :
Blog Magazine Page
English Section.

*
Contents Page : English.
Cover Page : 0.
Contents Page : 1.
Shakti Editorial Page : 2.
Shakti Vibes English Page : 3
Shakti Editorial Writeups : 4. 
Short Reel : News : Special : English : Page : 5.
Shakti Photo Gallery : English : Page : 6.
 Shakti : Kriti Art  Link :  English :  Page : 7
 Days Special : English : Page : 8.
You Said It : Page : 9

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Shakti Editorial : English Page : 2.
---------
*
*
---------
Shakti Editorial : Page : 2
------------
Chief Editor.
Baroda * Desk.


*
Shakti : Prof. Dr. Roop Kala Prasad.
Shakti : Prof. Dr. Bhwana
Shakti : Madhvee.
Shakti : Baisakhi.
*
Executive Editor 
*

*
Editor :
Shakti. Manjita Seema Priya Tanu Sarvadhikari.
Darjeeling Desk.
*

Shakti Dr.Ratnika.Dermatologist Skin Specialist.Lucknow.Supporting 
*
----------------
Editorial : Poem Section   Page : 2 / 
---------------------
Shakti Editor.


Shakti Priya 
Dr Sunita Seema..

A short poem
The lights are filled with colours 
Our moments with love and laughter.



let the light be inside. us photo : Shakti Dr.Sunita Priya Seema. 

The lights are filled with colours
The houses are filled with flowers
The roads are filled with crowds
And my heart is filled with doubts

Why once a year comes this festival?
Why it stays for a short duration with credible?
Why it spreads the joy of power?
And leaves us scattered and chowder?

May it last the whole year filled with color
May it shower every morning with smile to flutter
May it spend our moments with love and laughter
And may it be the never-ending journey of our culture.

With the acceptance to follow the generations,
May this beautiful light fill your life with creations
May every colour of light surprises you with new motivations
Any may you prosper and achieve the goals of your destination.


rangoli at our dream home. 
photo : Shakti Priya Seema Anubhuti 
Darjleeng 
----------
Editing & Decoration 
Dr.Sunita Manjita Seema Jawa Sen.. 
*
Shakti.Dr. Rashi : Gynecologist : Muzaffarpur. Bihar
*
supporting
----------------
Editorial : Prose  Section   Page : 3 
---------------------
 Editor.
Shakti Priya Seema Tanu Anubhuti 

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Villagers celebrating Deepawali in a very unique way Bhella.

Report : Damini Rana. Dehradun.



Dehradun Report Damini Rana.
*
Dehradun / CR.This is an exclusive part of diwali celebration in Uttarakhand Garhwal region villages known as 'Bhella'. In this unique tradition villagers used to gather at the common place and tie the bunch of small pine wood sticks at one end  of a climber and burn them. And  holding it from another side and they play with it.
As it is known to us that there are some exotic dances of Garhwal and Kumaaon as Choliya, Langvir Nirtya, Pandav Nirtya, Jhora and Jagars. Like other states the locals of Uttrakhand people express their joys and sorrows through dance.
This was celebrated specially in villages as there were no electricity and access to resources like candles, diya, etc to celebrate diwali. And that time people used to celebrate their own way to welcoming the returning back of Lord Rama in Ayodhya in such a way.
As we all know that there has been a tale amongst us that we light the candles and diya for welcoming the coming of Lord Rama,Sita and Laxmana after the victory over Lanka King Ravan.

Column Editing : Shakti Priya Garima Kanchan Bhagwanti.
Decoratives : Shakti Priya Seema Swati Anubhuti. 



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Feelings for the long awaited moon  Karva Chauth. Page.  3 / 0. 
for love and togetherness
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Shakti Priya Dr. Sunita.Meena 
Nainital Desk.

The moon peeping inside me : Karva Chauth : Courtesy Photo Net.

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Festival. Talk of the Day. 
Page.3 / 1Karva Chauth
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A Jharkhand -Bihar based lady celebrating Karwa Chauth at Delhi : Photo Rimmi. ( file Photo )

It was an expected dusk converting into tonight. Just four days earlier it was the Sharad Poornima and we were having a photo session over the rising yellow moon for our file shots.
I tonight came to east side and I found a sick ,yellowish and a de shaped moon was coming out. Realising that today's moon has its own significance. On this day, married women follow a certain set of rituals like fasting and dressing up as newly-wed as they pray to the almighty for a longer and happier married life. 
Karva Chauth is celebrated every year on a full-moon day. The day, which falls on the fourth day of the full moon in the month of Kartik, also celebrates the union of Lord Shiva and Goddess Parvati. The festival holds much significance in the northern and north-western parts of the country. Women break their fast, which begins before sunrise, once the moon is sighted in the evening. This year it had to be  celebrated on ist  of November
Although it is greatly celebrated in Delhi and Punjab adjoining area rarely in Bihar. However  the residents from Bihar and Jharkhand settled in Delhi and Punjab have started celebrating this festival. Really it is a matter of my happiness knowing that now it is taking its root in some of us. I don't know why this celebration fascinates me too much. 
I always think that this festival should be celebrated more in UP, Bihar and Jharkhand too. Probably the earth, the rising and setting of the moon, and sun and altogether the nature whispers something to me .If anybody of you celebrate this festival in Bihar, Jharkhand and UP you can share your photos with me for my photo blog gallery to our media mail.
On this Karwa Chauth, may your love be as strong as your devotion. May the Almighty  bond you share continue to be a symbol of love and togetherness.

Bade Achche Lagate Hai..... Ye Dharti Ye Nadiya.... Ye Raina  aur Tum..... 

Editing : Shakti : Dr Anu Madhvee Seema Tanu
Decorative :  Shakti : Swati Manjita Seema Anubhuti.

*
Song of Love & Togetherness.
*

Photo Shakti : Model Jawa Sen
New Delhi.Our Choice : 
Jawa Sen Vanita : Shakti Priya
*
Film : Aap to aise na the. 1980.
Tu is tarah se meri zindagi main Shamil hai.
Starring : Raj Babbar Ranjita. Deepak Parashar.
Lyrics : Nida Fazli Music : Usha Khanna Singer : Manhar Udhas
*

Press the given below link for enjoying the song.

*
With Dhanteras Offer

*
This Diwali Munna Lal Mahesh Lal Arya
& Sons Supporting
* 
-------
Shakti Positive : Vibes : English Page : 4
---------
*
Shakti Editor
Shakti. Madhvee Seema Soni Jaba Sen.
Kolkotta Desk.
*
It is better to lit a candle than to curse the darkness.

Coming Together.
*
Coming together is a Beginning
Keeping together is a Process
Working together is a Success.
*
Start to be great.
*
You don't have to be great to start ,
but you have to start to be great.
*
Today's : Future.
*
Education is the passport to the Future,
for tomorrow belongs to those who prepare for today.
*

This week is yours to conquer
*
Believe in your strength
this week is yours to conquer

A Small Effort towards a Big Progress.
*
Be proud of the ' progress '
You are making no ' matter ' how ' small ' it is
*
Belief in Yourself
*
If you believe in yourself
Anything is possible then in your life
*
You ' do ' first
*
Nothing will work unless you do first
*
Uniqueness.
*
Don't compare yourself to others
Indeed you have your unique journey in your life and for others
*
*
Shakti.Dr. Rashi : Gynecologist : Muzaffarpur. Bihar
*
supporting
*
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Short Reel : News : Special : English : Page : 5.
----------
Editor 
Shakti Priya Manjita Seema Tanu Sarvadhikari.
Darjeeling Desk.
*
We Shakti Editorial Team observing  Deepawali : Chitragupta Pooja  with Entire country.
News Status : Shakti Priya Dr.Sunita Seema.

 

Nainital Desk. Today is October 24, 2025. Based on the Hindu lunisolar calendar, Diwali (the main day of the festival for the year 2025 was already observed earlier this week throughout India. The full five-day celebration, widely observed across India, concluded yesterday that was observed by our all Editorial community .
Diwali 2025 was celebrated in full swing.
The five-day festival of Diwali began on Saturday, October 18, 2025, with Dhanteras and two days ahead the main day of Deepotsav , was mostly and widely celebrated. Usually it occurred on Monday, October 20, 2025.
The five days of celebration concluded with Bhai Dooj on Thursday, October 23, 2025.
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Beginning of Pushpa Seva Sansthan : a gentle step in Social Services :   Shakti Ritu 

*
DAV Public Schools Event Highlights.
RUN FOR DAV a - 2 KM Run for Fun.
*
Today at different DAV Public Schools, we organized the 'RUN FOR DAV' 2 KM (Run for Fun) event for both teachers and students, as directed by DAVCMC and under the guidance of our worthy AROs. The Davians participated with great enthusiasm, completing the 2 KM or more run with determination.

*

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Shakti Photo Gallery : English : Page : 6.
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Editor.
Shakti.Priya.Dr.Anu  Meena Garima  

Shakti worshipping Mahalakshmi : this Diwali : Nalanda : Shakti Priya Dr.Sunita Seema Anita
Karwa Chauth is a reflection of the patience and dedication in marriage : Shakti Shweta
*
You Said It : English : Page : 9
Nainital Desk.
*
Editor 
Shakti Priya Dr Anu Meena Beena Joshi
Diwali Wishes


Wishing you a bright and joyous Diwali.
May the light of Diyas bring you peace, prosperity, and happiness this Diwali.
Dr.Anu.
*





Comments

  1. It is a nice beginning. The Shakti Editorial Team.... keep going on....

    ReplyDelete
  2. Shakti team M.S. Media congratulations 💐 Keep it up👍

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  3. Really our Indian culture has been very great and fabulous..
    Shakti. Seema

    ReplyDelete

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