सहायक.कार्यकारी.
शक्ति.संपादिका.
शक्ति.डॉ.अर्चना सीमा वाणी अनीता.
कोलकोता डेस्क.
संस्थापना वर्ष : १९९९.महीना : जून. दिवस :२.
⭐
सम्पादिका.विशेष.
यमुनोत्री गंगोत्री डेस्क.उत्तरकाशी.
संस्थापना वर्ष : २०२५.महीना : जून.दिवस : ५.
*
शक्ति.डॉ.श्वेता हिमानी.
नैना श्रद्धा.
*
---------
स्थानीय शक्ति संपादिका.
----------
⭐
शक्ति. बीना मीना भारती कंचन.
नैनीताल.
*
--------
कला : दृश्यम : सम्पादिका.
--------
शक्ति. मंजिता सोनी स्मिता शबनम.*
 |
*
लीवर. पेट. आंत. रोग विशेषज्ञ.
शक्ति. डॉ.कृतिका. आर्य. डॉ.वैभव राज :किवा गैस्ट्रो सेंटर : पटना : बिहारशरीफ : समर्थित.
|
----------
आकाश दीप : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
-----------
⭐
संपादन
शिमला डेस्क.
शक्ति. रेनू अनुभूति शालिनी मानसी.
⭐
कजरी.
घुमड़ी के आई रे बदरिया,
विधा : लोकगीत.
कि हरे राम...
घुमड़ी के आई रे बदरिया,
सँवरिया अइले ना सखी।
सोलह श्रृंगार कर जोहिला बटिया,
नींद नाही आवे अब पलंग अ खटिया
कि हरे राम...
विरह में तड़पे ई जियरा,
सँवरिया अइले ना सखी।
कि हरे राम...
घुमड़ी के आई रे बदरिया,
सँवरिया अइले ना सखी।।१ ।।
रहिया निरेखत हमरा नैन पथराइल,
पियवा के तनिखो तरस नाही आइल,
कि हरे राम...
सइयाँ की मिली ना खबरिया,
सँवरिया अइले ना सखी।
कि हरे राम...
घुमड़ी के आई रे बदरिया,
सँवरिया अइले ना सखी।।२ ।।
घर-आँगन हम दीपक जलवली,
फूलवा से आपन सेजरिया सजवली,
कि हरे राम...
सुनी पड़ी रही रे सेजरिया,
सँवरिया अइले ना सखी।
कि हरे राम...
घुमड़ी के आई रे बदरिया,
सँवरिया अइले ना सखी।।३ ।।
अंश
सच ही भईल सखी मोर सपनवा,
विरही ई मनवा देखलै सपनवा,
रण में मारल गइलै सजनवा,
कि हरे राम...
जोगन भईल ई गुजरिया,
सँवरिया अइले ना सखी।
कि हरे राम...
घुमड़ी के आई रे बदरिया,
सँवरिया अइले ना सखी।।४ ।।
फोटो : शक्ति. सीमा सुनीता.
सच ही भईल सखी मोर सपनवा,
सइयाँ जी अइलै आज अंगनवा,
कि हरे राम...
ओढ़ी तिरंगा मोर सँवरिया,
कि आज घरे अइले ए सखी।
कि हरे राम...
घुमड़ी के आई रे बदरिया,
सँवरिया अइले ए सखी।।५ ।।
*
स्वरचित व मौलिक
कवयित्री- शालिनी राय 'डिम्पल',
आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश।
*
शक्ति. शालिनी
प्रधान सम्पादिका. कवयित्री
*
संपादन सज्जा : शक्ति.मंजिता प्रिया
*
भाविकाएँ.
*
हार नहीं मानती.
फोटो : शक्ति : रेनू
मैं रेत की लहरों पर
चलता एक दीप हूं,
आंधियों से कह चुकी हूं...
मैं बुझने वाली नहीं!
मैं हर गिरावट के बाद,
अपने ही टूटे हिस्सों से
एक नई मूर्ति गढ़ती हूं...
मुझमें एक मूरत
रोज़ जन्म लेती है।
कभी मैं एक जड़ से टूटी शाख हूं....
जो फिर से पत्तियों का गीत रचती है,
तो कभी
चट्टान से फूटता झरना,
जो कठिनाई की छाती
चीरकर भी
अपनी राह बना लेता है. *
शक्ति रेनू शब्दमुखर
*
संपादन सज्जा : शक्ति.सीमा प्रिया अनुभूति
--------
भाविकाएँ.
*
रिमझिम गिरे सावन
डॉ.मधुप
*
अंश : बजता है जलतरंग
वो भींगी तेज हवाएं
बजता है जलतरंग
वो कागज़ की कश्ती,
वो बारिश का पानी.
इस भींगी भींगी बारिश,
में एक बस हम और तुम
वारिस
अपनी यादों का.
*
कोलाज : शक्ति* प्रिया
*
बारिश : हम और तुम :
याद है न ?
सावन का वो
महीना,
बादल, बिजली ,
चन्दन पानी
काली घटाएं,बारिश
और
घना अँधेरा.
एक ही छतरी
बूंदों से भींगने,
बचने की जतन
याद है न
कितने करीब
थे हम है ?
*
अति लघु कविता
परवाह.
बरस गयी थी न
वो सावन की
बैरन झड़ी,
तब की बारिश में,
बूंदें यादों की,
जल तरंग में
तुम्हारा वो निरंतर भीगना,
और मुझे तुम्हारे लिए
सर्दी ,ठंडी की चिंता.
डॉ.मधुप
*
संपादन सज्जा : शक्ति.प्रिया अनुभूति
⭐
परिभाषा प्रेम की.
फोटो : शक्ति. मीना
प्रेम की परिभाषा गढ़ने के लिए ,
आवश्यक नहीं ,
कि आपकी हथेलियों में ,
आबद्ध हों प्रिय की हथेलियाँ.
जब धेनु शिशु के ,
कजरारे बोलते नयन ,
जब खग कलरव ,
जब नभविस्तृत अरुणिम डोरियाँ ,
जब चटख रंग प्रसून के ,
जब उड़ती तितली के पांखों का सौंदर्य ,
जब थिरकते लहलहाते फसल ,
जब बेतरतीब फैली हरियाली ,
की भाषा को ,
पढ़ने के लिए ,
तैयार हो उठें ,
तो आप तैयार हैं ,
गढ़ने को ,
प्रेम की परिभाषा.
जब किसी अनजान रमणी ,
की गोद में भी ,
बालक की मासूम उपस्थिति,
बिखेर दे आपके होठों पर,
स्वत: स्फूर्त मुस्कान.
जब झंकृत तार ,
किसी वाद्य यंत्र के ,
झंकार उत्पन्न कर दे ,
आपके हृदय में भी...
गढ़ने को ,
प्रेम की परिभाषा.
जब समानुभूति से भर दे ,
किसी जीवन बटोही की ,
अवसाद, थकान ,
आपको भी
जब ईश्वर की मनोहारी छवि की ,
आनंदमयता की भाषा को ,
अपने अंतः स्थल में ,
पढ़ने को तैयार हो उठें ,
तो आप तैयार हैं ,
गढ़ने को ,
प्रेम की परिभाषा .
जब फड़कने लगे ,
राष्ट्र गौरव की बातें ,
आपकी नसों में भी.
जब आपके रोम - रोम को ,
स्पंदित कर दे ,
लहराता राष्ट्रध्वज.
जब कृशकाय , लुप्त होती नदियाँ ,
जब बंजर जमीन ,
जब प्रदूषित होता पर्यावरण ,
आने वाली संततियों के लिए ,
व्यथित बेचैन कर दे आपको ,
जब भविष्य के बढ़ते
तमस की भाषा को ,
पढ़ने को तैयार हो उठें ,
तो आप तैयार हैं ,
गढ़ने को ,
प्रेम की परिभाषा.
*
शक्ति.रीता रानी.
जमशेदपुर
राधिका कृष्ण : दर्शन
प्रधान सम्पादिका
*
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा
*
अग्निपरीक्षा.
*
*
तुम घर छोड़ के
बुद्ध कहलाते हो
मैं जो छोडूं तो
कलंकिनी कहलाऊं.
खीर खिलाई सुजाता ने तो
जान चक्षु थे तुम्हारे खुले
गर कोई सुजीत मुझे गुड भी चटा दे
तो सिर्फ यातना ही यातना मिले.
तुम वनवासी,मैं वनवासी
शूर्पणखा हुई सौंदर्य पिपासी
परिणय निवेदन ही तो किया था
फिर नाक उसने क्यों गंवा दी.
रावण बलशाली था
फिर भी तुमसे रार न ठान सका
छल से बल से फिर उसने मुझे
अगवा ही तो किया.
विरह में तुम भी जीते थे
विरह में मैं भी जीती थी
फिर पता नहीं क्यों
उस अग्नि कुंड में,
चरित्र परीक्षा लिए
मैं अकेली ही बैठी थी.
*
*
शक्ति.प्रियंका वर्मा.
कवयित्री.
पृष्ठ सज्जा : डॉ.
सुनीता शक्ति प्रिया अनुभूति
*
गूलर का फूल.
फोटो : साभार
कुछ लोगों की किस्मत ऐसी,
होती है जैसे पारिजात,
कोई गले लगाकर ठुकरा दे,
कर दे जब यूँ ही परित्याग।
हो जाए हृदय जब भावशून्य,
मन में न रहे, जब प्रीति कोई,
कोई भूल गया, सुधि रही नही,
ना शेष रही अनुभूति कोई।
गर अश्रु बहे जलधारा सी,
और फिर पथराई चक्षु बने,
तो प्रेम भाव को मौन रखो,
यह हृदय नही अब भिक्षु बने।
इस चकाचौंध की दुनिया में,
खो जाए जब कोई अपना,
बन जाये निष्ठुर हृदय अगर,
और तुम्हें समझ ले इक सपना।
इस विरह-वेदना में जब भी,
तुम गर पलास सी बन जाओ,
तो सुनो, 'गूलर की फूल' बनो,
और इक तलाश सी बन जाओ।
शक्ति. शालिनी
सम्पादिका. कवयित्री
* पृष्ठ सज्जा : डॉ सुनीता शक्ति प्रिया अनुभूति
-------
वादा साँवरे का.
जब कहना चाहती हूँ कुछ भी
ख़ामोश हो जाती हूँ
भीतर की तिजोरी का
ताला खुलता नहीं क्या करूँ ?
डरता है मन...
कहीं फिर से गम की खाई न हो
पर सच है ये
मिलने की लंबी पगडंडी पर
तेरा पहाड़ सा इंतजार
एक नई सोच देता है
तेरा संबल भरा प्रेम
आकाश का विस्तार देता है,
कि आजकल खुद के लिए
सोचना खुशनुमा अहसास देता है
खुद के लिए जीना अच्छा लगता है
वो क्या है साँवरे तूने
ताउम्र साथ देना का वादा किया है
इक तारीख तय है...मुकम्मल होगी कभी
या हर बार की तरह फिर से रूठ जाएगी
पर जुदा न होने का ...ये वादा किया है उसने
वादा तोड़ना फ़ितरत नहीं ये जानती हूँ मैं.
*
शक्ति. रेनू शब्दमुखर.
प्रधान सम्पादिका. जयपुर
*
पृष्ठ सज्जा : डॉ सुनीता शक्ति प्रिया अनुभूति
*
भाविकाएं
*
नदी और नारी.
फोटो : डॉ. सुनीता शक्ति* प्रिया
और नदियों की तरह
जीवन्त होकर बहना चाहती हैं ,
नारी
तलाश करना चाहती है,
एक मजबूत कंधा ,
जिसपर सर रखकर
वो शान्त,स्थिर और
खुद को जीवित
महसूस कर सके.
सुरक्षित अस्तित्व
बना रह सके,
पर ऐसा नहीं हो पाता
कि हम पुरुष ही उसे
इतनी आजादी नहीं
देते कि,
अनन्त व्योम में
अपने अरमानों के
पंखों पर
वह उन्मुक्त होकर उड़
सके और
शिव ने जिस अर्द्धनारीश्वर की
अवधारणा को मूर्त
रुप दिया
वह भी इसकी अनुभूति करते हुए
जी सके और
खूंटें से बंधी गाय
की तरह
वह निरीह न लग सके.
*
अंश : लोक लिहाज़
स्त्रियों को
आदिम जमाने से
बांधकर रखा गया है,
जैसे वह कोई पशु हो,
और छीनी जाती रही है,
उसकी पुरी आजादी,
पुरी उन्मुक्तता,
उड़ने का आसमान
चलने को धरती
और ये सब आज भी
बदस्तूर जारी है.
कभी मर्यादा के नाम पर
तो कभी कुल वंश
नारियोचित गुणधर्म
के नाम पर, तो कभी
लोक लाज
सभ्यता संस्कृति
के नाम पर.
*
फोटो : शक्ति. शबनम.
*
ये सारी वर्जनाएं
हम पुरुषों ने ही अपने सुख
और झूठे रस्मों
रिवाजों के नाम पर ऐसा
आजतक करते रहे हैं
उसपर इसी अविश्वास ने
उसके चरित्र व्यवहार और आचरण को
विद्रूप करने का काम
किया है
हम भूल जाते हैं कि
उनके सीने में एक
कोमल संवेदनशील
हृदय होता है
जहां कोमल, स्निग्ध,
भावपूर्ण संवेदनाएं
जीवित रहती हैं.
*
शक्ति.आरती अरुण
झारखण्ड.
*
पृष्ठ सज्जा : शक्ति. मंजिता सीमा अनुभूति
शिमला डेस्क
 |
शक्ति. डॉ. रत्नशिला. आर्य डॉ. ब्रज भूषण सिन्हा: शिवलोक हॉस्पिटल : बिहारशरीफ : समर्थित. |
--------
तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : शक्ति : सम्पादकीय : प्रस्तुति. पृष्ठ :४.
-------
*
शक्ति नीलम अनुभूति शालिनी प्रीति.
*
--------
सावन : शिव : और सत्य : शक्ति आलेख : ४ / ०
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शिव ही सत्य हैं, शिव ही सुन्दर हैं
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शक्ति. आरती अरुण
झारखण्ड
 |
सावन : शिव : और सत्य : फोटो : परमार्थ निकेतन : ऋषिकेश : डॉ सुनीता शक्ति * प्रिया
|
शिव ही सत्य हैं, शिव ही सुन्दर हैं : सावन : शिव : और सत्य : परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में शिव दूर से ही दिख जाते हैं। जल के महाप्रलय में वे स्थिर चित दिखें।
समस्त ब्रह्माण्ड में शिव की सत्ता को सर्वोपरि क्यों माना जाता है, इसके तर्क ही नहीं आध्यात्मिक और
वैज्ञानिक प्रमाण भी हैं। जिस बिग बैंग सिद्धान्त पर आज आधुनिक खगोल भौतिकी शोध कर रहा है,उस बिन्दु के विस्फोट के केन्द्र में जो ऊर्जा है,वह शिव ऊर्जा ही है कि सृष्टि निर्माण के पीछे जीव मात्र के शुभ और कल्याण की भावना का नाम ही शिव है जिसकी उत्पत्ति शब्द विन्यास की दृष्टि से * शिं धातु से हुयी है जिसका अर्थ ही शुभ और कल्याणकारी होता है। शिं करोति शुभं भवति शुभं करोति शिवम् भवति
शुभ और कल्याणकारी है,शिव : हर वो लौकिक अलौकिक सत्ता जो शुभ और कल्याणकारी है,शिव है और जो कल्याणकारी तत्व हैं,वे शिव तत्व ही हैं। जब मनुष्य की चेतना विकसित हो रही थी तो प्राकृतिक सत्ताओं में विनाशकारी शक्तियों से वह सबसे ज्यादा भयाक्रांत हुआ और प्रभावित हुआ और उसे ही भारतीय आध्यात्मिक और तात्विक व्याख्या और चिन्तन में रुद्र कहा गया है जो तैंतीस कोटि में से ग्यारह रुद्र ही हैं जो वैश्विक स्तर पर प्राचीन मानव समुदाय में सर्वाधिक महान और पूज्य मानकर पूजित हुए।
प्राचीन नदी घाटियों में जो सभ्यताएं पनपी उनमें सैंधव सभ्यता सर्वाधिक विकसित और महत्वपूर्ण थी और उसके सबसे महत्वपूर्ण और पूज्य देवता पाशुपत शिव ही थे।
शिव ही अद्वितीय ब्रह्म हैं, परमेश्वर हैं : जब हिन्दू आध्यात्मिक दर्शन में ब्रह्म की अवधारणा पर चर्चा होती है तो वेदान्त दर्शन में भगवान शिव को * तुरीय ब्रह्म कहा गया है,यही एकमात्र सत्य हैं शेष इनके परावर्तित रुप हैं,इनके अतिरिक्त जो भी है कार्य प्रकृति के आधार पर संज्ञानात्मक सत्ता ही हैं। इसलिए शिव ही अद्वितीय ब्रह्म हैं, परमेश्वर हैं,आदि अनन्त और स्वंयभू हैं। इसलिए कहा भी जाता है * शिवम् अद्वितीयं तुरीयं ब्रह्म इत्युच्येत।
ऋग्वेद में शिव : यह जगत सत् असत् का सम्मिश्रण है और सत् चित् आनन्द भी है। वैश्विक स्तर पर भी सारे मत,पंथ, विचार, विश्वास, सम्प्रदाय आदि में भी माना गया है कि सृष्टि के पूर्व कुछ नहीं था। ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में भी ऐसा ही वर्णित है कि, सृष्टि के पूर्व में न तो सत् था,न असत् था,न तम था , प्रकाश भी नहीं था,न जल न वायु और कुछ नहीं था, परन्तु जो कुछ नहीं था,वह शिव था, एकमात्र एक बिन्दु के रुप में शिव ऊर्जा अवस्थित थी और जैसा कि इस वेद वाक्य से पता चलता है कि, न सन्न चासच्छिव एवं केवल:
इससे स्पष्ट हो जाता है कि जिसकी सत्ता सृष्टि के पूर्व से रही हो वही समस्त सृजन का मूल है।वही सत् असत् का मूल और सच्चिदानन्द है, वही सृजन,लय और प्रलय का कारण है।
समस्त स्थूल, सूक्ष्म और कारणिक सत्ता का कारण भी शिव ही हैं और यही कारण है कि शिव देव,दानव,यक्ष, गंधर्व, प्रेत, पिशाच आदि सबके पूज्य हैं। इनके समस्त गुणों को समेकित करते हुए एक कविता के माध्यम से इनकी व्याख्या करने की हमने एक कोशिश भर की है जो सादर अवलोकनार्थ समर्पित है।
शिवोहम् शिवोहम् शिवोहम् शिवोहम् शिवोहम्।
स्तंभ संपादन : शक्ति शालिनी नीलम अनुभूति प्रीति
पृष्ठ सज्जा : शक्ति मंजिता सीमा शक्ति प्रिया
*
मुझे भी कुछ कहना है
सम्पादकीय : आलेख : संवाद : क़ायम रहें
संवाद संबंधों की अहम कड़ी : दिल से संवाद क़ायम रखें.
शक्ति. रेनू शब्द मुखर. जयपुर.
*
ये जीवन है इस जीवन का
*
बड़ा बनने की शुरुआत, छोटे और असमझे क़दमों से होती है शक्ति. रेनू शब्द मुखर.
असली उड़ान,डर से बाहर है : दूसरों की निगाहें हमारे लिए जेल बन जाती हैं,और उनके विचार हमारे लिए पिंजरा ! कभी सोचा है…हम कितनी बार वो नहीं करते जो दिल कहता है, सिर्फ इसलिए कि लोग क्या कहेंगे ? हर बार जब हम अपने मन की जगह समाज की सोच चुनते हैं। - हम अपने ही पंख काट देते हैं।
अब वक़्त है.सोच की सलाखें तोड़ने का,अपनी पहचान को अपनाने का,और खुलकर जीने का। खुद को आज़ाद करो... क्योंकि असली उड़ान, डर से बाहर है !
परिवर्तन को स्वीकार कर शुरुआत करो,चाहे जैसे भी हो ! ' समय सबका मूल्यांकन करता है। चाहे कितनी भी बड़ी सत्ता हो, यदि उसमें विनम्रता और दूरदर्शिता नहीं है, तो उसका पतन निश्चित है। इतिहास का हर खंड हमें यही सिखाता है कि अमर वही होता है जो परिवर्तन को स्वीकार कर विनम्रता से जीता है।
अक्सर हम इंतज़ार करते हैं एक अच्छी योजना का, सही समय का, पूरी तैयारी का… लेकिन सच्चाई ये है कि सफर की शुरुआत सही नहीं, बस सच्ची होनी चाहिए। शुरुआत करो चाहे मन डरा हो, चाहे रास्ता धुंधला हो, चाहे अनुभव कम हो। क्योंकि स्पष्टता रास्ते में मिलती है, कदम बढ़ाने से मिलती है। हर प्रयास आपको थोड़ा और नज़दीक लाता है उस मंज़िल के, जो अभी दूर लग रही है। अगर आप शुरुआत नहीं करेंगे, तो कुछ भी नहीं बदलेगा। क्योंकि पूर्णता की प्रतीक्षा अक्सर केवल समय बर्बाद करती है। आज से, अभी से, एक छोटा कदम उठाओ। याद रखो - बड़ा बनने की शुरुआत, छोटे और असमझे क़दमों से होती है। प्रेरणा रख कर शुरुआत करो कदम_बढ़ाओ सोचो_मत_करो
*
हमें उनकी दृष्टि से दुनिया को देखने की कोशिश करनी चाहिए : शक्ति. रेनू शब्द मुखर.
 |
मेरा मन क्यों तुझे चाहे मेरा मन : शक्ति : कोलाज |
सब समझता है : मेरा मन : सवेरे की अंतरात्मा से बात। हर सुबह जब सूरज उगता है, वह हमसे एक सवाल पूछता है आज तुम किसके लिए आवाज़ बनोगे ? हम रोज़ राह चलते हैं, कुछ अनदेखा कर जाते हैं। कभी किसी मासूम बच्चे की खामोशी, कभी किसी जानवर की पीड़ा, कभी किसी महिला की अनसुनी पुकार। हम समाज की नज़रों से डरते हैं, पर भूल जाते हैं कि हमारी आत्मा हर चुप्पी को दर्ज कर रही है।
जो घाव समाज नहीं देता, वो हमारी अपनी चुप्पी दे देती है...इसलिए आज, इस नई सुबह पर खुद से एक सही के साथ खड़े हों कम से अपनों के लिए तो : वादा करें - किसी भी परिस्थिति में सही के साथ खड़े होंगे। किसी की भलाई के लिए अगर बोलना पड़े, तो बोलेंगे। और अगर कोई दुख में है, तो उसके लिए एक उजाले की किरण बनेंगे। क्योंकि अंत में, समाज की सज़ाएँ बीत जाती हैं, पर आत्मा पर लगे ज़ख्म... हमेशा चुप रह जाते हैं। आज का दिन सच्चाई के साथ जिएं। सही कम से अपनों के लिए तो के साथ खड़े हों जाए।
उनकी दृष्टि से दुनिया को देखने की कोशिश : किसी को समझने के लिए हमें उनकी दृष्टि से दुनिया को देखने की कोशिश करनी चाहिए,न कि केवल अपनी धारणाओं और पूर्वाग्रहों के आधार पर उन्हें आंकना चाहिए। क्योंकि किसी के लिए बनाई गई पूर्वाग्रह और धारणा हमेशा सही नहीं होती है। विवेकपूर्ण व्यवहार दृष्टव्य होना चाहिए।
--------
डर : संघर्ष : पलायन : डॉ. सुनीता शक्ति * प्रिया
---------
डर : संघर्ष : पलायन : सबके भीतर व्याप्त है। स्वयं के जीवन में ही इतनी परेशानियां होती हैं कि आम दूसरी की जनित परेशानियों से दूर हो जाना चाहता है।
डर एक अंतर्निहित भावना है जो मनुष्यों और जानवरों दोनों में पाई जाती है। यह एक सुरक्षा तंत्र है जो हमें खतरे से आगाह करता है और हमें उससे बचने के लिए प्रेरित करता है।
डर, संघर्ष और पलायन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। डर एक भावना है जो संघर्ष को जन्म दे सकती है, किसी कारणवश प्रतिकूल हो सकते है। और संघर्ष के परिणामस्वरूप लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। बच के निकलना चाहता है सब।
संघर्ष : संघर्ष एक ऐसी स्थिति है जिसमें दो या दो से अधिक पक्ष एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं या एक-दूसरे के खिलाफ होते हैं। संघर्ष कई रूपों में हो सकता है, जैसे कि शारीरिक, भावनात्मक, या वैचारिक।
पलायन : पलायन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। पलायन अक्सर संघर्ष, डर, या अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण होता है।
*
मुझे भी कुछ कहना है
जीवन जैसा है वैसा ही है : शक्ति आरती अरुण :
जीवन न तो उगता है और ना ही डूबता है,यह तो संसार चक्र के साथ अबाध अनवरत,चलता रहता है। समय कभी ठहरता नहीं तो जीवन कैसे ठहरेगा जैसे किसी लम्बी यात्रा में अनेक पड़ाव या ठहराव आते हैं वैसे ही जीवन की यात्रा है जिसमें हर पड़ाव पर हमें कुछ पल मिलते हैं जिसमें एक अवसर मिलता है कि पीछे की यात्रा पर विचार करें,मंथन करें, विश्लेषण करें कि क्या खोया क्या पाया और अन्तिम बिन्दु अर्थात् अपने लक्ष्य पर पहुंच कर जो शेष रह जाता है वह समस्त यात्रा का सारांश या निष्कर्ष होता है।
यात्रा की प्रकृति दुखद या सुखद या मिश्रित दोनों हो सकती है। आमतौर पर यात्रा की अपनी अपनी अनुभूतियां होती हैं पर सच तो यह है कि यह मिश्रित अनुभूति ही देती है,एक संभावना बन सकती है कि दुःख या सुख दोनों में से किसी एक की मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है पर एकपक्षीय नहीं हो सकती है।
जो सम्मुख है, जीवन्त है,उस पल को जी लेना ही जीवन है : शान्ति कहां से मिलेगी, इतनी भाग-दौड़ में विश्राम के पल भी खोज की यात्रा बन जाती है। ठहरना होगा, विश्राम में मन को अवस्थित करना होगा तभी तो हम अतीत और वर्तमान का अवलोकन कर सकते हैं, ध्यान देना है पर हम ध्यान नहीं दे पाते हैं,अतीत तो लौटेगा नहीं, भविष्य भी अनिश्चित है तो जीना किस पल में है,इसकी फिक्र हम नहीं कर पाते हैं, जीवन तो ऐसे हर पल अतीत ही होता चला जाता है तो जो सम्मुख है, जीवन्त है,उस पल को जी लेना ही जीवन है।
आँख भर आई किसी से जो मुलाक़ात हुई ख़ुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई
दिन भी डूबा कि नहीं ये मुझे मालूम नहीं जिस जगह बुझ गए आँखों के दिए रात हुई
आँख भर आई किसी से जो मुलाक़ात हुई : रेनू : मंज़र भोपाली का ये शेर आज याद आ गया जब लंबे अरसे बाद प्रिय सखी रेनू शब्द मुखर महासचिव संपर्क साहित्य संस्थान से हिमाद्री वर्मा के पुस्तक विमोचन समारोह में मिलना हुआ
मिलनसार, मृदुभाषी, सरल सहज हृदय रेनू ने संपर्क के सभी सूत्रों को एक धागे में पिरोए रखने में अथक मेहनत की है .बहुत समय से मेरा किसी साहित्यक कार्यक्रम में जाना नही हो पा रहा है जिसका कारण मेरी व्यस्तता है आज जैसे ही रेनू को बांहों में भरा आत्मीय ऊष्मा से उनकी आंखो में स्नेह अश्रु भर आए मन द्रवित हो गया.... उलाहना भी दिया नही मिलने का... कार्यक्रम में न आने का.....ऐसा लगा जैसे निकिता कहीं खो गई है.....उनके इन शब्दो से मेरा मन भीग गया
रेनू जी बहुत व्यस्त रहती है हिंदी विभागाध्यक्ष का पद, साहित्य सृजन, साहित्यकारों को मंच देना, पुस्तकों का संपादन, विभिन्न पुरस्कारों के लिए देश विदेश की यात्रा फिर भी सब पर यूं ही प्यार लुटाती है, परवाह करती है।
सचमुच आप ईश्वर का दिया एक अनमोल तोहफ़ा हो, अद्भुत हो आपके आसुंओ के लिए मैं क्षमा चाहती हूं आप जब बुलायेंगी मैं चली आऊंगी।
तुम्हारे प्यार के काबिल खुद को बनाएंगे
आज से वादा है ,वादा निभाएंगे
इन खूबसूरत आंखो को भिगोया न करो
कैसे इन मोतियों का मोल चुकाएंगे
स्वस्थ संबंधों की नींव संवाद और परामर्श पर आधारित होती है। यह दो व्यक्तियों के बीच की गहरी समझ और सम्मान को बढ़ावा देने का सबसे महत्वपूर्ण सान है। जब हम अपने विचारों, भावनाओं और चिंताओं को खुलकर साझा करते हैं, तो यह न केवल हमें समझने में मदद करता है, बल्कि हमारे साथी को भी यह एहसास दिलाता है कि वे सुने जा रहे हैं और उनकी भावनाओं का महत्व है। ढेर सारा प्यार प्रिय।
बातें जो मन के अंदर बसीं,जैसे हो कोई सुगंध,
स्वस्थ संबंधों के लिए संवाद,है जैसे जीवन का आनंद.
मन की गहराई से निकलें शब्द,बांधे रिश्तों की डोर,
भावना का करें आदान-प्रदान,
दिलों और जीवन में लाये प्रगाढ़ स्नेह और उमंग.
न रहे कोई भ्रांतियाँ,न हो कोई संशय,
सत्य और प्रेम के संग,रिश्ते बनें और गहरे.
संवाद से जुड़ें हर दिल,कहें अपनी हर बात,
स्वस्थ संबंधों का यही मंत्र,दिल से दिल की मुलाकात.
स्तंभ संपादन : शक्ति नीलम अनुभूति शालिनी प्रीति
पृष्ठ सज्जा : शक्ति मंजिता सीमा शक्ति प्रिया
रेनू शब्दमुखर
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कहानी : साभार : इंस्टा ग्राम से
दृश्यम : कहानी : मैं एक ऐसी लिखूंगा : चयन *
प्रथम मीडिया प्रस्तुति : नर्मदा डेस्क : पृष्ठ : ५
*
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शक्ति डॉ. रश्मि आर्य डॉ. अमरदीप नारायण : नालन्दा हड्डी एवं रीढ़ सेंटर. बिहार शरीफ समर्थित |
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शक्ति. रूप कला.आर्य. डॉ.आर. के. प्रसाद.आर. के. पारा. मेडिकल कॉलेज : दरभंगा : समर्थित |
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सावन : शिव : शक्ति : संस्मरण : आलेख : धारावाहिक आलेख : पृष्ठ : ५
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नैनीताल डेस्क.
संपादन.
शक्ति.शालिनी मानसी कंचन प्रीति.
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ओम नमो शिवाय : पंच केदार : उत्तराखंड के पृष्ठ : ५
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पंच केदार यात्रा संस्मरण : पृष्ठ :५ / १.
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केदार नाथ : जहाँ भोले ही बोले.
डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह.
रायपुर.
भा. व. से.
लेखक : उत्तराखंड विशेष
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ओम नमो शिवाय : केदार घाटी : शिव के दर्शन : हमारी यादें : साभार फोटो कोलाज : शक्ति * देव भूमि में भोले अधिक लोकप्रिय हैं प्रारब्ध : डॉ.सुनीता मधुप. :
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भोले ही बोले : हिमाचल, गढ़वाल, काशी ,उत्तरकाशी ,गुप्तकाशी जहाँ भी हम गए हमसे तो भोले ही बोले। बम बम भोले। ओम नमो शिवाय :हरिद्वार कनखल, हर की पौड़ी में शक्ति के साथ शिव दिख ही जाते हैं। इन दिनों झारखण्ड स्थित बैजनाथ धाम में शिव लिंग पर जलाभिषेक ,अमरनाथ में बम बम भोले का नारा लगाते पहलगाम ,बालटाल से भक्तों की बर्फानी बाबा की यात्रा भी शुरू हो चुकी है। कैलाश मानसरोवर शिव का आदि स्थान है। ओम पर्वत भी उत्तराखंड में ही है।
शिव शक्ति की अनेक कहानियाँ ,हिमाचल उत्तराखंड , देव भूमि में प्रचलित है। राजा भागीरथ की कठिन तपस्या से लोक हित में स्वर्ग लोक से उतर कर बेगमयी प्रवल देवसरिता प्रथमतः शिव की जटाओं में समायी बाद में कहते है उनकी जटा से ही शक्ति ही शमित गंगा के रूप में अवतरित हुई।
श्रावण के महीने को भगवान शिव का प्रिय मास माना जाता है। यही कारण है, कि इस महीने में महादेव की पूजा, आराधना का विशेष महत्व होता है। कांवड़ यात्रा श्रावण मास में होती है जो कि भगवान शिव जी को समर्पित है. इसलिए कांवड़िया गंगा जल को लाकर शिव के द्वादश ज्योतिर लिंगों पर जलाभिषेक करते हैं।
कांवड़िया : शिव भक्त : अपने कंधे में गंगाजल से भरा कांवड़ लेकर शिव मंदिर की ओर जाते हैं और बिभिन्न राज्यों स्थित जहाँ जहाँ ज्योति लिंग है : शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं.
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु सामर्थ्य अनुसार व्रत, उपवास, पूजन, अभिषेक आदि : श्रावण का संबंध भगवान शिव से क्यों है ?
हरिद्वार में आपको रेलवे स्टेशन से शिव से साक्षात हो गए , हर की पौड़ी में दूर से विशाल काय शिव दिख जायेंगे। ऋषिकेश के नीलकंठ में दर्शन के लिए तो अभी और भी भक्तों का ताता लगा होगा।
इस महीने का सीधा संबंध शक्ति पार्वती की कठोर तपस्या से भी जुड़ा है। माना जाता है कि देवी पार्वती ने सावन में ही भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया था और अंत में वह सफल रहीं।
हम कैसे भुला सकते है कि हमने भी इस यात्रा संस्मरण के लेखक के दो सालों के बाद हमने भी केदार नाथ की यात्रा की साल २०१३ में की थी जिस साल केदारनाथ की भयंकर त्रासदी हुई थी जिसमें में बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए थे। यह भोले की कृपा ही थी कि केदारनाथ की त्रासदी जो १६ १७ जून २०१३ को हुई थी कि दो तीन दिन पूर्व हम अपने घर वापस आ गए थे।
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फोटो : डॉ.सुनीता मधुप. |
पंच केदार यात्रा संस्मरण : पृष्ठ : ४ / १.
लेखकीय आलेख : डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह.
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ब्रम्हहत्या तथा गौत्रहत्या का पाप : महाभारत के युद्ध के समय पांडवों को ब्रम्हहत्या तथा गौत्रहत्या का पाप लगा था। पाप मुक्ति हेतु वे भगवान शिव के समक्ष आराधना करने वाराणसी गये। किन्तु वाराणसी में भगवान शिव जी उनसे मिलना नहीं चाहते थे।
वे भैंसे का रूप धारण कर कहीं छुप गये। इसके पश्चात् पांडव गढ़वाल हिमालय की ओर पहुंचकर भगवान शिव की खोज करने लगे। यहां भीम ने दो पहाड़ों के बीच एक भैंसे को चरते हुए देखा। भैंस को देखकर भीम समझ गये कि भगवान शिव ही भैंस का रूप धारण कर छिपे हुए हैं। जिस स्थान पर उन्हें देखा गया वह स्थान गुप्तकाशी के समीप था।
शिव के भैंसे का रूप : पवित्र स्थल : भीम ने भगवान शिव की पूंछ को पकड़ा किन्तु वे पृथ्वी में समा गये। भगवान शिव के भैंसे के रूप के विभिन्न अंग निम्नानुसार स्थानों पर पाया गये जो शिव भक्तों के लिए पवित्र स्थल हो गए।
भैंस का पृष्ठ भाग - केदारनाथ, ऊंचाई, ३५८३ मी. में पाया गया , भुजा - तुंगनाथ ,ऊंचाई, ३८६० मी में पायी गई .मुख का भाग रूद्रनाथ - ऊंचाई २२८६ मी में . नाभी एवं पेट - मध्यमहेश्वर,ऊंचाई ३४९०मी. में और अंत में बाल ( केश ) -कल्पेश्वर ऊंचाई २२०० मी के स्थान पर पाया गया था।
जिन जिन स्थानों पर भगवान शिव के भैंसा स्वरूप के अंग मिले वहां पांडवों ने मंदिर का निर्माण कर भगवान शिव की पूजा की। इस प्रकार उनका पाप धुल गया और वे स्थान शिव तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। गढ़वाल को केदारखंड भी कहा जाता है।
पंचकेदार की पूजा : शरदऋतु में पंचकेदार की पूजा निम्रानुसार स्थानों पर होती है :-केदारनाथ की पूजा - ओंकारेश्वर मंदिर, उखी मठ में होती है। तुंगनाथ की पूजा - भोकूमठ में होती है।रूद्रनाथ की पूजा - गोपेश्वर में होती है। मदमहेश्वर की पूजा - उखी मठ में होती है। कल्पेश्वर मंदिर साल भर खुला रहता है।
हमने पंचकेदार की यात्रा सितम्बर २०११ में पूर्ण की जिसका यात्रा वृतान्त से अंश लिए गए है:.
पहला दिन : हरिद्वार से सीतापुर : हर की पौड़ी पर प्रातः स्नान / पूजा अर्चना पश्चात् भाड़े की वाहन से हम सभी पंच केदार की यात्रा करने के उद्देश्य से निकल पड़े। हम लोगों ने सबसे पहले केदारनाथ जाने का निश्चय कर अपनी यात्रा शुरू की। हरिद्वार से सीतापुर की दूरी २३० कि.मी. है। रास्ते में बारिश हो रही थी। पहाड़ी मार्ग में अत्यधिक बारिश से फिसलन एवं भू-स्खलन का खतरा रहता है। अतः हमें सीतापुर में रात्रि विश्राम करना पड़ा।
दूसरा दिन : सीतापुर से गौरी कुण्ड : अगले दिन प्रातः उठकर वाहनों से सीतापुर से गौरी कुण्ड पहुंचे, यह १४ कि.मी. की दूरी है। यहां पर गर्म पानी के कुण्ड में स्नान पूजा उपरांत पैदल आगे की यात्रा शुरू की। गौरी कुण्ड से केदारनाथ की दूरी १४ कि.मी. है। हम लोग हनुमान चट्टी होते हुए सायं पांच ब केदारनाथ पहुंचे। संध्या में केदारनाथ का दर्शन कर वहां पंडे के निवास पर भोजन व रात्रि विश्राम किया। रात्रि में ठंड बढ़ गई थी।
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शक्ति. यात्रा संस्मरण
२०१३ केदारनाथ त्रासदी से पहले : बाबा केदार के दर्शन :जब सामने थे केदार
डॉ.सुनीता मधुप शक्ति * प्रिया .
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आस्था की डुबकी : हर की पैड़ी : हरिद्वार : गंगा स्नान : फोटो कोलाज : डॉ.सुनीता शक्ति प्रिया. |
बाबा केदार के दर्शन : २०१३ केदारनाथ त्रासदी से पहले : बताते चले हम भी कभी केदार दर्शन के लिए साल २०१३ के जून महीने में ही गए हुए थे। लेखक की यह यात्रा भी २०१३ केदारनाथ त्रासदी से पूर्व २०११ में की गयी थी। तब जिसमें तय की गई दूरी २ किलोमीटर कम होती थी।
रामबाड़ा, गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग पर गौरी कुंड से थोड़ा आगे ट्रेकिंग में कभी एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, जो २०१३ की आपदा में पूरी तरह से नष्ट हो गया था। यह मार्ग आपदा से पहले १४ किलोमीटर का था, लेकिन अब २१ किलोमीटर का है।
पुराने मार्ग को फिर से शुरू करने की कोशिशें की जा रही हैं, ताकि यात्रियों को एक आसान और सुरक्षित विकल्प मिल सके। आपदा से पहले:रामबाड़ा एक आबाद बस्ती थी, जहां गढ़वाल मंडल विकास निगम का होटल, धर्मशालाएं, और दुकानें थीं।
२०१३ की आपदा १६ - १७ जून को आई थी तब आपदा ने मंदाकिनी घाटी को तबाह कर दिया, जिसमें रामबाड़ा भी शामिल था। रामबाड़ा का तब से नामोनिशान ही मिट गया था।
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गुप्तकाशी से दिखती हुई चौखम्भा की चोटियां ,चित्र इंटरनेट से साभार।
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गुप्तकाशी : यह एक प्राचीन शहर है जो केदारनाथ के रास्ते में पड़ता है और यहां कई मंदिर और दर्शनीय स्थल हैं। हम रात भर के लिए यही रुके थे यहाँ से गौरी कुंड की दूरी लगभग ३० किलोमीटर के आस पास है। यहाँ आपको रहने ठहरने के लिए सस्ते होटल्स भी मिल जायेंगे।
सोनप्रयाग : गौरी कुंड से ५ किलोमीटर पीछे सोन प्रयाग पड़ता है जो मंदाकिनी और वासुकी नदियों का संगम स्थल भी है।
गौरीकुंड : हमने वो एक पवित्र कुंड भी देखा जहाँ लोग बाबा के दर्शन के पहले आस्था की डुबकी लगा रहे थे। यह वह स्थान है जहाँ देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या की थी। मूलतः यही से घोड़े ,पालकी,ख़च्चर तथा पैदल यात्रा शुरू होती है। और हमने अपनी सुविधा के लिए ही
खच्चर ले लिए थे कि ज्यादा थकेंगे नहीं। सुनिश्चित यही हुआ के उतराई का रास्ता पैदल ही करेंगे। और हमने इसे पूरा भी किया था।
थकान से बचने के लिए हम भी रामबाड़ा, गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग पर घोड़े से ही गए थे। शाम तक पहुँच भी गए थे। तब हम सभी केदार मंदिर के पार्श्व में बने पुरोहित जी के कमरे में ही रुके थे।
रात भर शिव भक्त साधु ,औघढ़ , ढोंगियों के क्रिया कलाप देखते रहें थे। सुबह सुबह ओम नमो शिवाय के भजन से पूरी केदार मंदाकिनी घाटी गुंजित हो गयी थी। रात ११ बजे के आस पास वी आई पी व्यवस्था के जरिये बाबा केदार के दर्शन हुए थे। लोगों के धैर्य की सराहना करनी होगी कि क्षणिक दर्शन के लिए भक्त कितनी मुश्किलें उठाते हैं।
हम और हमारे साथी संजय और डॉ.प्रशांत भूले नहीं है कि डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह और हम सबों के रहने ठहरने का इंतजाम एक ही पुरोहित जी ने करवाया था। और जिस कमरे में हम रहें थे २०१३ केदारनाथ त्रासदी के बाद भी वह शेष रह गया था। इसे भोले शंकर की कृपा ही मानी जाए। जब कि आस पास कुछ भी नहीं बचा था। तब असंख्य जानें गयी थी। त्रासदी की वो घड़ी उन सैलानियों के लिए काली रात जैसी.ही थी .. जिन्होंने अपनी जानें गवाई थी....कितना ख़ौफ़नाक मंजर था....?
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केदारनाथ मंदिर प्रांगण में मैं और मेरे मित्र डॉ प्रशांत और मेरे सहयात्री : फोटो : शक्ति। डॉ सुनीता मधुप |
मंदाकिनी नदी : वो लोग मेरे तट पर आए : जिनहोंने ऐसे वचन निभाए : केदार घाटी में सदियों से मंदाकिनी बहती हैं। जब तक रहे तबतक सदैव साथ रही। शुद्धता दिखती है। शिव शक्ति की साक्षी रही मंदाकिनी। देव सरिता कलकल बहती मंदाकिनी आस पास की सभ्यता संस्कृति को अपने भीतर समेटते हुए मानो कहती हुई कि मेरी पवित्रता बनाये रखना। वो लोग ही मेरे तट पर आए जो मुझे ,मेरी पवित्रता को जाने,पहचाने संरक्षित करें । सिर्फ अंतर्ज्ञान चाहिए। मंदाकिनी का उद्गम केदारनाथ के पास स्थित चोराबाड़ी ग्लेशियर ही है, जहाँ से कभी मंदाकिनी कुपित हुई थी ।
सोनप्रयाग में वासुकीगंगा नदी से मंदाकिनी नदी भी जलपोषित होती है। यही मंदीकिनी रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में समाहित भी हो जाती है। मानो तो मैं गंगा हूँ न मानो तो बहता पानी.
मंदाकिनी नदी का जल, उत्तराखंड के केदारनाथ और रुद्रप्रयाग क्षेत्र में बहते हुए, अलकनंदा नदी में मिलकर आगे बद्री नाथ से निकलती देव प्रयाग में भागीरथी नदी से मिलती हुई गंगा नदी का निर्माण करता है।
मंदिर का गर्भगृह : मुझे याद है हम दो कमरों से हो कर गुजरे थे। केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह के भीतर, भगवान केदारेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है, जो भगवान शिव के रूप में पूजित है. यह ज्योतिर्लिंग एक नुकीली चट्टान के रूप में है और इसके अग्र भाग पर गणेश जी और शक्ति पार्वती की आकृति है. गर्भगृह में, चार विशाल खंभों के पीछे से ज्योतिर्लिंग की परिक्रमा की जाती है.
गर्भगृह के बारे में कुछ और जानकारी हमने संकलित की तो पता चला यह स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। गर्भगृह में भगवान केदारेश्वर का ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है, यानी कि यह स्वयं प्रकट हुए हैं.
त्रिकोणीय आकार भैसें की ऊपरी पीठ : ज्योतिर्लिंग का आकार त्रिकोणीय है, कही भी शिव लिंग जैसी दिखने वाली आकृति नहीं है . प्रतीत होता है भैसें की ऊपरी पीठ हो।
परिक्रमा : भक्तगण चार खंभों के पीछे से ज्योतिर्लिंग की परिक्रमा करते हैं.अन्य देवी-देवताओं की प्राप्त मूर्तियाँ में गर्भगृह में भगवान शिव के अलावा, शक्ति पार्वती, गणेश, और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं और देखी जाती हैं .गर्भगृह की दीवारों को सोने की परतों से मढ़ा गया है.
मंदिर की वास्तुकला : मंदिर ८५ फीट ऊंचा, १८७ फीट लंबा और ८० फीट चौड़ा है. इसकी दीवारें १२ फीट मोटी हैं और पत्थरों से बनी हैं. मंदिर को ६ फीट के ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है.गर्भगृह केदारनाथ मंदिर का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण स्थान है.
केदारनाथ में देखने लायक अन्य स्थान
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केदारनाथ मंदिर परिसर : आस पास : वासुकी ताल और आस पास खिलते ब्रह्म कमल,चित्र इंटरनेट से साभार |
आदि शंकराचार्य समाधि : यह वह स्थान है जहाँ आदि शंकराचार्य ने समाधि ली थी। याद है मुझे मंदिर परिक्रमा करने के निमित हमलोगों ने वह समाधि स्थल भी देखा था।
चोराबाड़ी ( गांधी ) सरोवर : यह एक ग्लेशियल झील है। केदारनाथ मंदिर परिसर से डेढ़ या २ किलोमीटर दूर यह वही जगह हैं जहाँ बादल फटने से तबाही आई थी। उन दिनों अति वृष्टि के कारण इस झील के किनारा टूटने से ही भयंकर त्रासदी हुई थी। यहाँ मंदिर के पास की पगडंडियों से होकर जाया जा सकता है। हम थोड़ी दूर भी गए थे, लेकिन अकेले होने की बजह से इसके श्रोत तक नहीं पहुँच सके थे ।
चोराबाड़ी (गांधी) सरोवर, जिसे गांधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर के पास स्थित एक हिमनद झील है। यह चोराबाड़ी ग्लेशियर के मुहाने पर स्थित है और मंदाकिनी नदी का उद्गम स्थल है। १९४८ में महात्मा गांधी की कुछ अस्थियां यहां विसर्जित की गई थीं, जिसके बाद इसका नाम बदलकर गांधी सरोवर कर दिया गया था ।
वासुकी ताल : यह एक सुंदर झील है जो केदारनाथ के पास स्थित है और चारों तरफ से पहाड़ों से घिरी हुई है। वासुकी ताल, केदारनाथ से 8 किलोमीटर दूर, 4135 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह झील ऊँचे पहाड़ों से घिरी हुई है और चौखंबा चोटियों का एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करती है। वासुकी ताल ट्रेक केदारनाथ मंदिर से शुरू होता है और एक कठिन चढ़ाई है। यह ट्रेक आमतौर पर दिन में पूरा किया जाता है, क्योंकि रात में यात्रा करना सुरक्षित नहीं है।
भैरवनाथ मंदिर : यह मंदिर केदारनाथ मंदिर के पास स्थित है और इसे भगवान भैरवनाथ का मंदिर माना जाता है।
केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य : यह अभयारण्य विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का घर है, जिनमें हिमालयी भालू, कस्तूरी मृग और मोनाल शामिल हैं।
त्रियुगीनारायण मंदिर : यह मंदिर देवी पार्वती को समर्पित है और माना जाता है कि यहां भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था।
शक्ति.शिव : यात्रा संस्मरण
पंच केदार यात्रा संस्मरण : पृष्ठ :५ / २ .
मद महेश्वर : नहीं भुला पाते हैं उस किसान को
डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह.
रायपुर. भा. व. से.
लेखक : उत्तराखंड विशेष.
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सीतापुर उनियाना : नानू से मदमहेश्वर : फोटो : शक्ति सुजाता शैलेन्द्र सिंह |
चौथा दिन : सीतापुर से उनियाना होते हुए नानू प्रातः हम लोग मद महेश्वर जाने हेतु सीतापुर से उनियाना गांव पहुंचे। उनियाना से आगे की यात्रा पैदल होती है। हम लोग उनियाना ग्राम से चढ़ाई शुरू कर खेतों तथा गांव की पगडंडियों से होते हुए रांझी, गौंधार, लंतोकी ग्राम पार कर नानू पहुंचे। नानू पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई थी। अब हमें यही रुकना था।
पांचवां दिन : नानू से मदमहेश्वर - उनियाना - चोपटा हमें जाना था। अगले दिन प्रातः उस मेजबान ग्रामीण ने हमें शुद्ध घी के पराठे और आलू की सब्जी का स्वादिष्ट नाश्ता कराने उपरांत हमें यात्रा हेतु आगे भेजा। उस किसान के द्वारा जिस आत्मीयता एवं प्रेम से हम लोगों का आदर सत्कार किया गया वह हम आज भी नहीं भुला पाते हैं। नाश्ते के बाद हम लोग नानू से मदमहेश्वर के लिये रवाना हुए।
नानू के आगे थोड़ी चढ़ाई के बाद तकरीबन ४ -५ कि.मी. की यात्रा कर हम लोग मद महेश्वर पहुंचे। रास्ते में जंगल एवं घास के मैदान के खूबसूरत दृश्य का आनंद उठाया। मदमहेश्वर पहुंचकर हम लोगों ने पूजा अर्चना की।
मदमहेश्वर : माना जाता है कि शिव का पेट मदमहेश्वर पर प्रकट हुआ है। मदमहेश्वर का मंदिर समुद्र तल से ३२८९ मीटर की ऊंचाई पर, गुप्तकाशी के २५ कि.मी. दूर, उत्तर पूर्वीय पहाड़ी की ढलान पर स्थित है। मदमहेश्वर का रास्ता जंगली सौंदर्य, प्राकृतिक सुंदरता से प्रतिष्ठित है।
चौखम्बा, केदारनाथ और नीलकंठ की चोटियों से घिरा हुआ है। मदमहेश्वर गंगा और मारकंगा गंगा के संगम पर गौनधार, मदमहेश्वर पहुंचने से पहले की आखरी बस्ती है। यहां पानी इतना पवित्र है कि स्नान के लिए कुछ बूंदें ही पर्याप्त मानी जाती हैं। प्राकृतिक दृश्य नाटकीय रूप से बदलते है। जंगली, गहरी घाटी और घाटियों के साथ, पहाड़ का हिस्सा आसमान की ओर ऊपर उभरा हुआ है। जंगल में यहां सर्दियों में बर्फ की परत मोटी होती है, केवल गर्मियों में हरियाली की कालीन द्वारा ढंकी होती है।
मदमहेश्वर में पूजा अर्चना पश्चात् पैदल उनियाना लौटे। सड़क मार्ग से उनियाना से चोपता पहुंच कर रात्रि विश्राम किया।

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शक्ति.शिव : यात्रा संस्मरण : तुंगनाथ : पंच केदार यात्रा संस्मरण : पृष्ठ :५ / ३ .
तुंगनाथ : जहाँ भगवान शिव के हाथ यहां प्रकट हुए
शक्ति. सुजाता
डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह.
रायपुर. भा. व. से.
लेखक : उत्तराखंड विशेष.
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रावण ने, शिव को संतुष्ट करने के लिए जहाँ इस मंदिर में तपस्या की : फोटो : शक्ति. सुजाता शैलेन्द्र |
रावण ने, शिव को संतुष्ट करने के लिए जहाँ इस मंदिर में तपस्या की : पंचकेदार या पांच शिव मंदिरों में से एक, यह मंदिर, उत्तराखंड क्षेत्र के चमोली जिले में स्थित है। पौराणिक कथा यह है कि महाभारत संग्राम में पांडवों द्वारा अपने भाइयों की हत्या करने के कारण भगवान शिव उनके इस अपराधिक कृत्य से नाराज थे।
शिव की पीड़ा से अवगत् पांडवों ने अपने स्वयं के उद्धार और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मंदिर बनाया। कथा है कि तुंगनाथ में भगवान शिव के हाथ यहां प्रकट हुए है। कहा जाता है कि रामायण काल में रावण ने, शिव को संतुष्ट करने के लिए इस मंदिर में तपस्या की थी। ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में स्वयंभू लिंग या भगवान शिव के अवतार का आसन स्थान है।
दूसरों का दावा है कि इस क्षेत्र की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान आदि शंकराचार्य ने इसे बनाया था। वे मंदिर के गर्भगृह में आदि शंकराचार्य की मूर्ति की उपस्थिति का उल्लेख करते हैं। हालांकि, यहां पांडवों की मूर्तियां भी रखी हुई है।
काला शिवलिंग आकर्षण का केंद्र : इसके अलावा, यहां मूर्तियों के बीच काल भैरव और वेद व्यास की अष्टधातु की मूर्तियां हैं। बाएं झुका हुआ एक फुट ऊंचा काला लिंग आकर्षण का केंद्र है। स्थानीय लोग इसे भगवान शिव की एक भुजा बताते हैं। पत्थर से निर्मित यह मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है।
मंदिर के गेट के सामने नंदी, दिव्य बैल और शिव के वाहन है। वहां एक छोटे से आंगन में पार्वती और व्यास को समर्पित दो छोटे मंदिर हैं। यहां पुजारी एक स्थानीय आदमी, माकू गांव से ब्राह्मण है। हम लोग चंद्रशिला से वापस चोपता पैदल पहुंचे।
चोपता एक आकर्षक पर्यटन स्थल : चोपता एक छोटा-सा गांव है। यह घास के मैदान तथा सदाबहार हरे भरे जंगल के बीच बसा है। यह केदारनाथ वन्यप्राणी अभ्यारण का एक भाग भी है। चीड़, देवदार और रोडो डेन्ड्रान के जंगल, दुर्लभवनस्पतियों और अन्य जीवों से यह क्षेत्र समृद्ध है। यहां दुर्लभ प्रजाति के पक्षी तथा कस्तूरी मृग भी पाया जाता है। चोपता को भारत का स्वीटजरलैंड भी कहा जाता है। चोपता पहुंचकर हम लोगों ने चाय-नाश्ता किया इसके पश्चात् गोपेश्वर तक की यात्रा सड़क मार्ग से कर रात्रि विश्राम गोपेश्वर में किया।

शक्ति.शिव : यात्रा संस्मरण : तुंगनाथ : पंच केदार यात्रा संस्मरण : पृष्ठ :५ / ४ .
शक्ति. सुजाता.
डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह.
रायपुर. भा.व.से.
लेखक : उत्तराखंड विशेष.
रुद्रनाथ : बुग्यालों से गुजरते हुए.
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चमोली : बुग्यालों से गुजरते हुए.रुद्रनाथ : फोटो : शक्ति सुजाता शैलेन्द्र |
चमोली : सागर गांव : रुद्रनाथ : अगले दिन बह उठकर हम लोग गोपेश्वर से सागर के लिये सड़क मार्ग से रवाना हुए। गोपेश्वर से जागर की दूरी ५ कि.मी. है। उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में घने जंगलों के बीच सागर गांव बसा है। रुद्रनाथ तक जाने की पैदल यात्रा इसी गांव से शुरू होती है। सागर में शक्लेश्वर महादेव का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों के द्वारा इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है। सागर से रुद्रनाथ की दूरी १८ किमी है।
सागर में हम लोगों ने घोडे / खच्चर आदि भाडे पर लेकर आगे यात्रा शुरू की। तकरीबन २ कि.मी. पर पंग बुग्याल में एक ढाबे में चाय पीने के बाद लगभग ६ कि.मी. की यात्रा के बाद ल्यूटि बुग्याल पहुंचे। रास्ते में चीड़ एवं रोडोडेंड्रान के जंगल को पार कर घास के मैदान एवं तिरछी चढ़ाई पार कर यहां तक पहुंचे। यहां एक छोटा सा ढाबा था जहां हम लोगों ने दोपहर का भोजन किया। इसके बाद हम लोग पनार बुग्याल पहुंचे।
बुग्यालों से गुजरते हुए.पनार बुग्याल में रंग-बिरंगे फूल देखने को मिले साथ ही हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन हुए। हम लोगों ने इस मैदान में थोड़ा विश्राम किया। खच्चर मालिकों के द्वारा कुछ देर खच्चरों को घास चरने के लिए छोड़ दिया गया।
पनार बुग्याल के आगे पित्राधार नामक स्थान आता है जहां पर रंग - बिरंगे झंडे तथा घंटियां टंगी हुई हैं। यह स्थान ४००० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से सुंदर हरी-भरी घाटी एवं विषम चट्टानों को देखा जा सकता है।
इसके आगे की यात्रा करते हुए हम लोग शाम को रूद्रनाथ पहुंचे। रूद्रनाथ में टीन की छत एवं लकड़ी की फर्श से बने एक भवन में हम लोग रूके। रूद्रनाथ से बर्फीली पर्वत श्रृंखला का दृश्य मन मोह लेता है। रूद्रनाथ मंदिर में संध्या आरती कर पूजा पूर्ण की। गाड़ी के ड्राईवर एवं खच्चर मालिकों के द्वारा रात्रि में भोजन बनाया गया। भोजन उपरांत हम लोगों ने रात्रि विश्राम किया। रुद्रनाथ में ठंड बहुत थी।
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वैतरणी नदी : रूद्रनाथ : भगवान शिव के मुख की पूजा :फोटो : शक्ति सुजाता शैलेन्द्र |
वैतरणी नदी : रूद्रनाथ : भगवान शिव के मुख की पूजा : रूद्रनाथ के नीचे से वैतरणी नदी बहती है। रुद्रनाथ मंदिर पर भगवान शिव के मुख की पूजा होती है, प्राकृतिक पत्थर मंदिर नीलकंठ महादेव के जैसे है। यहां भगवान शिव को नीलकंठ के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर घने जंगलों एवं बुग्याल
( घास के मैदान ) के मध्य ऊंचाई पर स्थित है। गोपेश्वर से सागर गांव तक ४ कि.मी. सड़क उपलब्ध है। यहां से रुद्रनाथ के लिए २० कि.मी की चढ़ाई पैदल चलकर यहां पहुंचा जा सकता है।
रुद्रनाथ मंदिर के पास बहुत से धार्मिक / पवित्र कुण्ड हैं जैसे :- सूर्यकुंड, चन्द्रकुण्ड, ताराकुंड इत्यादि। वैतरणी, दिव्य नदी मंदिर के पीछे बहती है। ३ कि.मी. की अतिरिक्त चढ़ाई के साथ अनुसुईया देवी का मंदिर रुद्रनाथ के रास्ते पर स्थित है।
यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान शिव को उदार, शांत और सुन्दर प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। अपने पूर्वजों के लिए अनुष्ठान पूजा-अर्चना करने के लिए भक्तगण रुद्रनाथ मंदिर आते हैं, यहां वैतरणी नदी ( मोक्ष का पानी ) है जहां मृतकों की आत्मा दुनिया बदलते समय इसे पार करती हैं।
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प्रथम मीडिया शक्ति प्रस्तुति
कल्पेश्वर : पंच केदार के अंतिम केदार. दर्शन
शक्ति.शिव : यात्रा संस्मरण : कल्पेश्वर : पंच केदार यात्रा संस्मरण : पृष्ठ : ५ / ५ .
शक्ति. सुजाता.
डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह.
रायपुर. भा.व.से.
लेखक : उत्तराखंड विशेष.
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पंच केदार : कल्पेश्वर : शिव की जटा की पूजा : फोटो : शक्ति. सुजाता शैलेन्द्र. |
*उत्तराखंड में चमोली जिले के हेलंग से लगभग ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पंचकेदार में पांचवां केदार- कल्पेश्वर ही है । उर्गम घाटी में स्थित कल्पेश्वर मंदिर समुद्र तल से लगभग दो हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है इसलिए पंचकेदार में से एकमात्र केदार है जो श्रद्धालुओं के लिए साल भर खुला रहता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भोलेनाथ ने यहां स्थित कुंड से समुद्र मंथन के लिए जल पात्र में जल दिया, जिससे चौदह रत्नों की उत्पत्ति हुई।
कल्पेश्वर उर्गम घाटी में स्थित है तथा कल्प गंगा नदी जो अलक नंदा में मिलती है, यहां से बहती है।
पर्यटक कल्पेश्वर के लिए यहां से चढ़ाई करते हैं। कल्पेश्वर में भगवान शिव की जटा ( बाल ) और सिर की पूजा जटाधार के रूप में की जाती है, समुद्र तल के ऊपर २१३४ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
ऋषिकेश-बद्रीनाथ मुख्य सड़क मार्ग पर रुद्रनाथ मंदिर से हेलोंग तक १० कि.मी. की आगे की यात्रा है कल्पेश्वर का छोटा रॉक मंदिर है जहां बाल प्रकट हुए। कहा जाता है कि कपिल मुनि ने यहां तपस्या की थी। कथा यह भी है कि ऋषि अर्घ्य ने यहां तपस्या की और अप्सरा उर्वशी को बनाया।
माना जाता है कि ऋषि दुर्वासा ने भी यहां मनोकामना पूर्ण करने वाले वृक्ष कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या की। कल्पेश्वर से सोनार की घाटियां एवं हिमालय के पर्वत श्रृंखलाओं को देखा जा सकता है। पिथौरागढ़ से कल्पेश्वर मंदिर की दूरी ३ कि.मी. है।
कल्पेश्वर में दर्शन पूजा करने के बाद हम वापस पैदल उर्गम पहुंचे। उर्गम से वापस सड़क मार्ग से हरिद्वार पहुंचे। उर्गम से हरिद्वार की दूरी लगभग १३६ कि.मी. है। हरिद्वार में हम लोगों ने रात्रि विश्राम किया। इस प्रकार हमारी पंचकेदार की यात्रा पूर्ण हुई।
स्तंभ संपादन : शक्ति.नैना @ डॉ. सुनीता प्रिया अनुभूति.
सज्जा पृष्ठ : शक्ति. मंजिता सोनी स्मिता शबनम.
फोटो : शक्ति सुजाता शैलेन्द्र. साभार : कैलाश मानसरोवर यात्रा.
पंच केदार यात्रा संस्मरण : पृष्ठ : ५ / १.
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श्रीधि क्रिएशन्स बुटीक : सिटी सेंटर : पटना : समर्थित |
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धारावाहिक : फ़िल्मी : सफरनामा : ये जीवन है : पृष्ठ : ५ / २.
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पर्वत : धुंध : रहस्य : पर्दे के पीछे :
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शक्ति* प्रिया मीना सीमा
दार्जलिंग नैनीताल डेस्क
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ये जीवन है इस जीवन का यही है रंग रूप
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साभार : फिल्म : धुंध : १९७३ : खंड : ०
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साभार : धुंध : रहस्य : राज : हमदर्दी.खंड : ०
अभिनेता : नवीन निष्चल : जीनत अमान *साभार : धुंध : रहस्य : तीसरा कौन : खंड : १
अभिनेता : नवीन निष्चल : जीनत अमान : डैनी * पर्वत : धुंध : रहस्य : पर्दे के पीछे : विकृति खंड : २
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अभिनेता : संजय खान : जीनत अमान. डैनी.
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पर्वत : धुंध : पर्दे के पीछे : सहानुभूति : खंड : ३
अभिनेता : नवीन निष्चल,संजय खान,जीनत अमान, डैनी.
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पहाड़ : धुंध : परदे के पीछे : आरोप : खंड : ४
अभिनेता : नवीन निष्चल : संजय खान : जीनत अमान
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पहाड़ : धुंध : परदे के पीछे : आरोप : खंड : ५
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शक्ति : आर्य अतुल : मुन्नालाल महेश लाल आर्य एंड संस ज्वेलर्स.रांची रोड बिहार शरीफ.समर्थित
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ये मेरा गीत : जीवन संगीत : कल भी कोई दोहराएगा : पृष्ठ : ६.
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संपादन
डॉ.सुनीता मधुप शक्ति * प्रिया.
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मेरी पसंद :
प्रकृति : पहाड़ : धुंध : प्रेम : पुनर्जन्म.
साभार.
फिल्म : दो खिलाड़ी.१९७६.
सितारे : विनोद मेहरा जाहिदा
गाने : झूमता सावन देखो आया
बरखा ने प्यार बरसाया
गीत : गौहर कानपुरी. संगीत : उषा खन्ना. गायक : रफ़ी.
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फिल्म. जैसे को तैसा.१९७३.
सितारे : जीतेन्द्र. रीना रॉय.
गाना : अब के सावन में जी डरे.
गीत : आनंद बख्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : किशोर कुमार. लता.
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शक्ति. प्रिया अनुभूति
फ़िल्म : मेरे सजना १९७५
गाना : मैंने कुछ खोया है मैंने कुछ पाया है
सितारे : नवीन निष्चल. राखी.
गीत : मजरूह सुल्तानपुरी संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारे लाल गायक : किशोर कुमार
गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं
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फिल्म : अनजाना.१९६९.
गाना : रिमझिम के गीत सावन गाए.
हाय, भींगी भींगी रातों में
सितारे : राजेंद्र कुमार. बबीता.
गीत : आनंद बख्शी संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारेलाल गायक : रफ़ी
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फिल्म : मंजिल.१९७९.
गाना : रिमझिम गिरे सावन सुलग सुलग जाए मन
भींगे आज इस मौसम में लगी कैसी ये अगन
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गीत : योगेश संगीत : आर डी वर्मन गायिका : लता मंगेशकर
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फिल्म. अनुरोध.१९७७.
सितारे : राजेश खन्ना. सिंपल कापड़िया.
गाना : मेरे दिल ने तड़प के जब नाम तेरा पुकारा
आ जा..... हो आ जा
गीत : आनंद बख्शी.संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारेलाल.गायक : किशोर कुमार .
गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं
सांग्स लोकेशंस : दार्जलिंग.
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फिल्म ; महबूबा. १९७६.
सितारे : राजेश खन्ना. हेमा मालिनी.
गाना : मेरे नैना सावन भादों बरसो बीत गए
बात पुरानी है एक कहानी है वो सावन के झूले
गीत : आनंद बख्शी संगीत : आर डी वर्मन. गायिका : लता.
गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं
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आर्य.डॉ. श्याम किशोर. मॉडर्न एक्सरे.सी टी स्कैन.अल्ट्रा साउंड. बिहार शरीफ. समर्थित |
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