Diye Jalte Hain : Deepawali 3

 

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आवरण पृष्ठ. ०

दिए जलतें हैं : दीपवाली  : फोटो विदिशा 
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दिए जलते हैं : दीपावली ३. 
 

Diye jalte Hain. Deepawali. 3
A Complete Heritage  Account over Culture  & Festival.
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पृष्ठ. ० आवरण पृष्ठ.मंगलकामनाएं.  
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मीडिया परिवार 
की तरफ़ से. 

धनतेरस.


दीपावली.

  

गोवर्धन पूजा, 
भैया दूज : चित्रगुप्त पूजा
तथा सूर्योपासना छठ पर्व  
की मंगलकामनाएं  
 

अनुक्रम.

आवरण : पृष्ठ ०. सुबह और शाम 
आज का सुविचार . 
आज की : कृति :  तस्वीर :  पाती : 
सम्पादकीय : पृष्ठ १. पृष्ठ २. 
  पृष्ठ ३ .फोटो दीर्घा. आज कल. 
पृष्ठ ४. फोटो दीर्घा.दीपावली  २०२१ बीते दिनों की
पृष्ठ ५. भजन. यूट्यूब लिंक्स   
पृष्ठ ६.आपने कहा 
पृष्ठ ७. कला दीर्घा :
पृष्ठ ८.संस्मरण 
पृष्ठ ९.में देखें 
पृष्ठ १०. व्यंग्य चित्र  आज कल : मधुप 
  पृष्ठ ११.सीपियाँ :
 पृष्ठ १२. न्यूज़ रिपोर्टिंग : दीपावली : कल आज और कल 
पृष्ठ १३ . मंजूषा : दिल से तुमने कहा.

सहयोग. 

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देखें सुबह और शाम .पृष्ठ ०.
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कहते हैं ना सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां  हमारा ,यू ए ई. की दिवाली .
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कुणाल / यू ए ई. 
  
कुणाल / यू ए ई. कहते हैं ना सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां  हमारा ।   यू ए ई में मैं विगत   सालों से रह रहा हूं ,व्यस्तता इतनी है कि दम मारने की भी फुर्सत नहीं मिलती है। लेकिन त्योहारों में अपने वतन की याद बहुत आती है। आखिर हम हिंदुस्तानियों  के  लिए तो मानना पड़ेगा कि हम हिंदुस्तानी बड़े  सजीव  होते हैं। हमारे दिलों में हमारी परम्पराएं धड़कती हैं। हम दिल से हिदुस्तानी होते है। मैं भारत में झारखण्ड से हूँ। रांची मेरा आशियाना है। अपने घर से बाहर हूँ। परदेश  में रहते हुए अपने लोगों की याद बहुत आती है ख़ासकर त्योहारों में तो एक अजीब सा ख़ालीपन घर कर जाता है। घर से बाहर आप अपने वतन की याद करेंगे यह स्वाभाविक ही होगा। 
भारत से समय में ढाई घंटा पीछे चलने वाले यू. ए. ई. में दिवाली की शाम कुछ ज्यादा नहीं होती है । दिवाली की शाम भी आम दिनों की तरह ही होती हैं। उन जगहों पर सजावट दिखेगी जहाँ भारतीय रहते हैं। 
शाम में ऑफिस से लौटने के पश्चात मैंने अपने पुश्तैनी घर की दिवाली की परंपरा को याद किया ,लक्ष्मी जी की आराधना की , धूपबत्ती दिखाई खुद मिठाई भी खा ली। और आस - पड़ोस में दीपावली की रौनक को देखने के लिए निकल पड़ा जो देखा , मैंने आपको बताला रहा हूँ । 
बालकनी में आप लड़ियों की सजावट भी देख सकते हैं , उनकी बालकनी से सजावट देखने के क्रम में ही आप अनुमान लगा सकते हैं कि वहां कोई न कोई हिंदुस्तानी रहता ही है जो अपनी सभ्यता और संस्कृति से असीम लगाव रखता हैं ,और परदेश में अपनी विरासत को महफ़ूज रखना चाहता है । 

यू ए ई में दिवाली की शाम : फोटो कुणाल 

ज्यादा पटाखों के शोर और रौशनी तो नहीं देखी जा सकती है लेकिन हा माल और दुकानों में हैप्पी दिवाली के बोर्डिंग और होर्डिंग्स दिख जाएंगे और वहां पर से आप अपनों के लिए चॉकलेट और स्वीट्स खरीद सकते हैं और गिफ़्ट दे सकते हैं । 

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Special Correspondent.


Aviral. Tokiyo.
Diye Jalte Hain in Japan 🪔 

Japanese inclined too much for Indian Culture : photo Aviral.

It was 10:30 AM morning and it’s a usual, a normal day in Japan.
In land of rising sun, all I could hope for jalte diya le🪔. Every time  I  recall this , shine of my face got more brighter than maximum brightness of my computer screen.
Today’s my fingers are rolling at much faster speed , typing on keyboard for office work and wishing “Happy Diwali “ to n number of messages popping on my phone.
Fingers, eyes, mind , heart.. umm … I guess I was divided into 2 parts , 2 worlds…
And all of sudden we got a broadcast message from my manager “Please plan Finish off work and leave by 2-3 PM JST”.
And all of sudden everything just got changed.
We have  3 hours before sun sets, and it was enough for engineers like us to make a day worth to remember, isn’t it!!!
While going back , plans were running our mind, much faster than japan renowned bullet train.
Plan was simple, to go clean your house, do a bit of shopping, be in Full Tradition Indian attire, gather at a common place , and cook(all  delicious we can eat.( all thanks to Youtube)
Lighting diyas with all and saying “Happy Diwali”.. aah I felt each letter.. 
Also got to know that there is 2 Days diwali celebration planned by Japan called Indo-Japan diwali fest.
We all rushed next day there. 

Japanese showing lots of interest in the Indian Culture : photo Aviral.

And ..and couldn’t believe how a country, which is far far from our mother India, is not only carrying but infact living our culture with such a grace. Most of Japanese people were in full kurta/saree.
“I have been learning Kathak from past 17 years“ said Masako Sato san who made everyone in awe with her charismatic kathak dancing skills .
Later,  as it is said, we Indians breathe Bollywood..
A Japanese girls group set stage on fire with their 1  hour uninterrupted energetic dance , made whole Yokohama go bleeding Bollywood..
Aah!!! what a day it was when I recall it midnight, sitting in balcony of my always empty apartment. 
I lit a diya and said “Happy Diwali “ to myself and to universe, saw whole japan with eyes of that diya and believe me ,that moment,  I didn’t feel alone!!! 
I don’t recall when my eyes got heavy and when did I fall sleep in arms of Jalta diya 🪔.“ Diye Jalte Hain ”

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डॉ. मधुप रमण . 
यात्रा वृतांत.  

पावापुरी की दीपावली : जैनियों के लिए महावीर स्वामी के निर्वाण का उत्सव .नालन्दा   
 

पावापुरी का जल मंदिर तथा इसके पहुंचने का रास्तां  : फोटो विदिशा. 

डॉ. मधुप रमण / पावापुरी. पिछले दिनों  की  बात है। महीना अक्टूबर का ही । महीना के मध्य के 
दिनों में  हमलोग यू हीं  बुद्ध की ज्ञान स्थली नालंदा के स्थानीय ऐतिहासिक जगहों  के भ्रमण  पर  थे। हमारे  साथ मेरे  मित्र  इलाहाबाद बैंक के मैनेजर श्याम थे जो गाड़ी चला  रहे थे। सुबह  की वेला में अचानक हमलोगों का मन कर गया कि कि दीपावली के पहले पावापुरी चलते हैं। इन दिनों पावापुरी में जैनियों की खूब  आवाजाही लगी रहती है। न जाने कहाँ कहाँ से जैनी पावापुरी में जमा होने लगते हैं। आख़िर 
नालन्दा स्थित पावापुरी में जैनियों की दीपावली  महावीर स्वामी के निर्वाण का उत्सव के रूप में मनाई जो जाती है। नौ किलोमीटर के फासले तय करने के लिए हमने अपनी गाड़ी  पटना - रांची राष्ट्रीय मार्ग की तरफ़ मोड़ दी । बिहारशरीफ़ से आठ, नौ किलोमीटर की दूरी पर ही तो हैं पावापुरी। महावीर स्वामी का निर्वाणस्थल। दीपावली में ही तो देश विदेश के जैनियों की भीड़ हमारे पावापुरी में लगती हैं ना।
हम एकाध घंटे के भीतर ही जल मंदिर पहुंच चुके थे। वहां वैसी ही चिर शांति फैली हुई थी जैसी पूर्व में हमें मिलती है। बौद्ध तथा जैन तीर्थ स्थलों के भ्रमण करने यह बात तो दीगर है कि हमें अध्यात्म के लिए सही व माकूल वातावरण मिल जाता है। आप घंटों वहां बैठ कर मनन चिंतन कर सकते है। सुबह सुबह ही पर कुछेक पर्यटक राजस्थान के दिख ही गए । पूछने पर पता चला जैनी ही थे। 
झील  की  सतह  पर तिरोहित  होते  हुए सूरज की किरणें तिर रहीं थी । पानी  की  सतह  पर लालिमा बिखर कर लगभग मिल  गयी  थी। या  कहें पसर गई थी हमलोग  नालन्दा  अवस्थित कुण्डलपुर  से महावीर  की जन्म तीर्थ भूमि देख कर लौट रहें  थे। और अब २४ वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के निर्वाण स्थल के समीप थे। 
तालाब   कुछ  सौंदर्य  विहीन, वीरान ,उजड़ा दिख रहा था । पानी नहीं  के बराबर था । घांस पतवार से जल मंदिर का तालाब भरा पड़ा था। कमल की डंटलें  पानी से ऊपर दिख रहीं थी। मछलियां तिरती नहीं दिख रहीं थी। अन्यथा बरसात के दिनों में जब तालाब में पानी होता था तो ढ़ेर सारी मछलियां सतह पर दिख जाती थी। बहुत दिनों बाद हम जल मंदिर आए थे।  
इतिहास : जैन धर्म मानने वालों के अनुसार २४ वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने इसी स्थल पर निर्वाण प्राप्त
किया था।  जैन धर्म के मतालम्बियों के अनुसार २४ वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण स्थल इसी पुरी गांव में हुआ था ।  ऐसा प्रतीत होता है इस निर्वाण स्थल के मुख्य स्थान से जैन श्रद्धालुओं  द्वारा चारों तरफ  मिट्टी उठाने का क्रम निरंतर जारी ही रहा जिससे  कालांतर में एक तालाब का निर्माण हो गया था। बाद में  बीच में छोटा सा मगर आकर्षक मंदिर का निर्माण हो गया। स्वर्ण मंदिर की तरह   जल के मध्य बने इस मंदिर को जल मंदिर कहा जाता है। प्रवेश द्वार से ही एक पैदल मार्ग बना हुआ हैं जो तालाब के मध्य में बने एक चबूतरें से जुड़ता  हैं। और इसी समतल, आयताकार 
चबूतरें पर सफ़ेद संगमरमर से बना है महावीर स्वामी का मंदिर। 
दिगम्बर जैन मतावादियों के अनुसार इस स्थल पर ही महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था परंतु श्वेतांबर जैन मतावादी  पुरी गांव के मंदिर को ही महावीर स्वामी का स्वर्ग आरोहण का स्थल मानते हैं।  जल मंदिर के गर्भगृह में ही भगवान महावीर स्वामी के पैर संगमरमर पर अंकित है जो जैन तीर्थयात्रियों के लिए बड़ा ही पूज्य है। 

गतांक से आगे : १ 
महावीर स्वामी : त्रिरत्न : पांच अणुव्रत 

जल मंदिर : पावापुरी : फोटो डॉ.मधुप 

त्रिरत्न : मंदिर के चारों तरफ़ परिक्रमा करते हुए महावीर स्वामी के बारे में ही सोच रहा था। क्या था ? राजपुत्र थे महावीर स्वामी । भोग विलास की जिंदगी व्यतीत कर सकते थे। लेकिन नहीं किया। जीवन के दर्शन में कष्टों का निवारण खोजने में लग गये।  त्रिरत्नों की ख़ोज की। महावीर स्वामी के त्रिरत्न क्या थे ? इनका तुम्हारे हमारे जीवन से क्या सम्बन्ध हो सकता है। 
सच कहें तो अपने जीवन के भीतर भी इस आपधापी में  बुद्ध तथा महावीर स्वामी की अनमोल बातों पर थोड़ा ध्यान दे ही देना चाहिए। मनन चिंतन कर लें। कुछ बातें अपने लिए भी अच्छी लगेंगी। बुद्ध मेरे प्रिय है। उन्के अष्टांगिक मार्ग में ही मैं अपने जीवन के हल ढूँढता हूँ। उनकी कही गयी  अनमोल बातों में तो मैं सम्यक् साथ के लिए सदैव प्रयासरत रहता हूँ। मेरी समझ में वह व्यक्ति सबसे अधिक भाग्यशाली है जिसे बेहतर साथ मिला। हमें इसके लिए सदैव दृढ़ रहना सीखना होगा। महावीर स्वामी ने कर्म के बन्धनों के विनाश और कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के लिए तीन साधनों के अनुकरण का उपदेश दिया था , जिसे जैन धर्म में त्रिरत्न कहते हैं। क्या ये त्रिरत्न मनुष्य को निर्वाण की अवस्था तक पहुँचने में मदद दे सकते हैं तथा सन्मार्ग की ओर ले जाते है ?

दीपावली से पूर्व जैन श्रद्धालुओं की आवा जाही : फोटो डॉ.मधुप

सम्यक् ज्ञान : सम्यक् ज्ञान से तात्पर्य है सच्चा और सम्पूर्ण ज्ञान, जो तीर्थंकरों के उपदेशों से प्राप्त होता है।
मेरी समझ में अच्छे ज्ञान प्राप्ति के हमें सदैव क्रिया शील रहना चाहिए। 
सम्यक् दर्शन :  सम्यक् दर्शन का अर्थ है, तीर्थंकरों में पूरी श्रद्धा और अखण्ड विश्वास तथा सत्य के प्रति श्रद्धा रखना। साधारण अपने जीवन के संदर्भ में अपने आस पास बेहतर और भला देखने के लिए तत्पर होना चाहिए। अपने आस पास अच्छा देखने की कोशिश आपको सकारात्मक रखेंगी ।  
सम्यक् चरित्र :  इसे सम्यक् व्यवहार भी कहते हैं। इसका अर्थ है सदाचार पूर्ण जीवन व्यतीत करना। जब मनुष्य अपनी इन्द्रियों तथा कर्मों पर पूरा नियंत्रण कर लेता है तथा इन्द्रियों की विषय वासना में नहीं फँसता तो उसका आचरण शुद्ध हो जाता है। अमूमन हमें सभी के साथ मानवीय व्यवहार करना चाहिए। 
पांच अणुव्रतों : के पालन करने की बात महावीर ने कही। महावीर के पांच अणुव्रतों अहिंसा ,सत्य ,अस्तेय ,ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह में हम अपने आम जीवन में कम से कम अहिंसा ,सत्य का पालन तो कर ही सकते है न ? मेरे अनुभव के आधार पर यह तो जरूर कहा जा सकता है कि यदि हम सत्य की ख़ोज के लिए दृढ़ हो जाए तो हमारे जीवन की तमाम समस्याएं निराकृत हो सकती हैं । मैंने अपने जीवन के अनुभवों से बार बार कहा है ,रुक जाओ ,ठहर जाओ, एकांत में एक दूसरे की सुन लो ,सत्य को परख लो। 


क्रमशः जारी : 

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आज का आभार / सहयोग .पृष्ठ ०. 
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निर्माण / संरक्षण. 


डॉ. अविनाश सत्यम.
 
स्त्री रोग विशेषज्ञ. नालंदा.  

डॉ.अजय कुमार. नेत्र रोग विशेषज्ञ.
 डॉ.सुनील कुमार. शिशु रोग विशेषज्ञ.
 डॉ.राजीव रंजन. शिशु रोग विशेषज्ञ. 
 डॉ.इंद्रजीत कुमार.एम.डी.हृदय रोग विशेषज्ञ.    
 डॉ.अमरदीप नारायण. हड्डी,नस रोग विशेषज्ञ. 
उमाकांत गुप्ता. तनिष्क ज्वेलर्स.
अतुल रस्तोगी .मुन्ना लाल महेश लाल आर्य ज्वेलर्स.   
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आज की बात . जीवन सुरभि. पृष्ठ ०. 
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संकलन.
 

 सीमा धवन : पश्चिम बंगाल.

Light for your brightful future.
Crackers for your demolish  of your failure.
Rangoli for your colourful life.
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आगाज़ - ए - बाब. :  अध्याय की शुरुआत 

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"...अपने डर को कभी भी अपना भविष्य तय न करने दें .."

" ...आप आज जो करते हैं वह आपके सभी कल को सुधार सकता है..."
"....अच्छी बातें मुक़म्मल होने में बाज़िब समय लेती हैं.." 
"...आपके सीखने की सबसे अच्छी बात यह है 
कि कोई भी इसे आपसे नहीं ले सकता...." 
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जीवन सुरभि पृष्ठ ०.


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पृष्ठ.०  आज की : कृति 
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संपादन 
प्रिया. दार्जलिंग.

विघ्नहर्ता गणेश की वंदना  के साथ : कृति नेहा सुमन 
आदि शक्ति द्वारा असुर शक्ति का मर्दन : कृति : नेहा सुमन 

supported by .
Dr. Indrajeet  & Dr. Trishla wishing u a very happy Deepawali & Chhath Puja 

दूर गगन के छाँव में : कृति : मयंक 

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आज का गीत : जीवन संगीत.पृष्ठ ०. 
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संपादन.


अनुभूति सिन्हा.
शिमला.
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आकाश दीप.
 

जलाए मैंने तुम्हारी याद में, 
 तुम्हारे लिए, 
हां, सिर्फ तुम्हारे लिए
उम्मीदों के कई आकाश दीये 
इस दिवाली,
तुम तक सन्देश पहुंचाने के लिए ही ,  
कुछ तो तुम तक़ पहुंचे ही होंगे,न ? 
इस उम्मीद में, 
इस घने अँधेरे में भी, 
 हो सके तो बस एक दीया,  
प्रेम से विश्वास का जला लो,
अगर जीना है तो,
लोग क्या कहेंगे ?
इस डर, और बहम 
अपने भीतर से हटा लो, 
कितना बेहतर हो, 
जो तुम अपने दृढ़ विश्वास से ही, 
अपने रस्मों  और रिवाज़ से ही, 
खुद को ही नहीं, 
समाज को भी बदल डालो. 
...अपने भीतर के डर, और बहम 
 के अंधकार को 
हमेशा के लिए मिटा डालो ... 
मेरी मानो तो, 
बस आज एक दिन नहीं, 
इस तरह हर दिन 
हां, इस तरह ही ,अपनी 
शुभ दीपावली मना लो. 


     डॉ.मधुप.     
©️®️ M.S.Media. 
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भावनाओं की बाती.


जला लो इस दिवाली 
अपने अन्तःमन में शाश्वत प्रेम का 
एक ऐसा दीया,
इस तरह कि,
कष्टों के तिमिर दूर हो जाए,
 अंधेरों की लाख आंधियों में भी,
भावनाओं की बाती न बुझने पाए,

त्रि - शक्ति : साभार फोटो 

संरक्षित हो दिव्य शक्तियों से 
 आप - हम सभी,
 और आप त्रि - शक्तियों की तरह, 
मेरे सात  जन्मों में, 
मेरी रक्षा कवच बन जाए.
सर्वकालिक 
उन्नति के सन्मार्ग स्वतः 
त्रि - शक्तियों की कृपा से, 
मेरे आप सबों के, 
जीवन की सभी दिशाओं में,
आप ही प्रशस्त हो जाए.

डॉ.मधुप     
©️®️ M.S.Media. 
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अपना जहाँ रोशन करते हैं. 


फोटो : साभार 

अंतर्मन में दीप जला,
सारे शौक ताक़ पर रख 
स्वहित को छोड़, 
पर हित में जीवन लगाते हैं,
आओ दीवाली कुछ इस तरह मनाते हैं.
सबके जीवन में नवल ज्योति ,
नव प्रकाश ला 
नव जीवन से परिचय करा 
जीवन सबका महकाते हैं 
आओ दीवाली कुछ इस तरह मनाते हैं.
भूखे ,नंगे ,कोढ़ी ,लाचार को, 
मनचाहे उपहार दे, 
उनकी आँखों की मृदुल चमक से 
चल रेन अपना जहाँ रोशन करते हैं 
चलो  दीवाली कुछ इस तरह मनाते हैं.
भटके हुए है राही जीवन - पथ में जो 
नैराश्य के गर्त में फूंक रहे हैं 
उनमें नए अरमान ,
आशा,नव सोच जागृत कर 
नई उमंग के मीठे पकवान खिला 
जीवन उनका रसमय बनाते है, 
आओ दीवाली कुछ इस तरह मनाते हैं.

फोटो : साभार 

आपस के मन - मुटाव मिटा क्रोध अनल ,
लालच विष से मुक्त करा सबको, 
प्रेम से गले लगा पावन त्योहार मनाते है,
चल  दीवाली कुछ इस तरह मनाते हैं. 
देश को खोखला करने वाले तत्वों को, 
जड़ से मिटाने का प्रण ले, 
प्रकाश अभिनन्दन से नाता जोड़, 
चल फ़िर से और खुशियों के दीप जला 
वसुधैव कुटुंबकम की संस्कृति का 
परचम फहराते हैं 
आओ रेनू कुछ इस तरह 
दिवाली मनाते हैं 
प्रेम से सबको गले लगाते हैं. 
सहायक संपादक. 
 रेनू शब्दमुखर. जयपुर.

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ये जो  दीए जल रहे  हैं.


अनेक अंतहीन इच्छाओं - प्रतीक्षाओं के बीच,
ये जो दिए जल रहे  हैं ,
अमावस की  घोर अंधियारी रात्रि में,
दीपकों के ज्योत विहस उठें ।

टिमटिमाती लौ में,
हो रहे हैं प्रदीप्त,
आधे - अधूरे स्वप्न उन हाथों के,
जिनका स्पर्श पा ये सांचे में ढले थे।
मलिन स्मित उन अधरों की भी,
जीवनाचाक ने मुस्कान जिनकी ,
अपनी चकरी में घूमा डाली।

इनकी टिमटिमाती लौ में,
प्रदीप्त हो रही है,
द्वार पर बनाई हुई रंगोली की आभा,
जिसमें रमणी ने अपने नेह रंग,
चुटकियों के पोरों से बिखेर दिया,
रंग- आकृति के सौन्दर्य धरा पर।


इनकी टिमटिमाती लौ में,
प्रदीप्त हो रहे हैं,
आस्था के वो बीज,
जिसे माटी की मूरतों में बोकर ,
डगमगाते विश्वास को भी हल के नोक तले दबाकर,
बद्ध करों ने फुसफुसाए हैं प्रार्थना के  दो बोल।

इनकी टिमटिमाती लौ में,
प्रदीप्त हो रही हैं,
गौरवपूर्ण अश्रुजल से सींचित,
अमर प्रतीक्षाएँ वीर-वधुओं की।
तो अनेक अंतहीन प्रतीक्षाएं भी,
जो कई बार छली जाती हैं,
जैसे अभिशप्त हो, 
अपूर्णता के लिए,
पर फिर भी खुद को जीवंत रखती हैं,
किसी छद्‌म विश्वास के साथ।


टिमटिमाते लौ ने समो लिया
उल्लास - हर्ष के प्रकाश को,
तो विषाद - उच्छावास के अंधेरे को भी।
पूर्णता, प्रसन्नता, आमोद ही नहीं,
संघर्ष, व्यथा के भी मौन गीत गाती हैं ये।
विविध जीवनाराग की बाती,
अलग - अलग देहरी पर,
टिमटिमाने का धर्म,
निभा रही हैैं।


रीता रानी.
जमशेदपुर, झारखण्ड.

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हर दिन करवा चौथ.


डॉ.सत्यवान सौरभ.
हिसार. हरियाणा  

जिनके सच्चे प्यार ने, भर दी मन की थोथ
उनके जीवन में रहा, हर दिन करवा चौथ ।।

हम ये सीखें चाँद से, होता है क्या प्यार
कुछ कमियों के दाग से, टूटे न ऐतबार ।।


मन ने तेरा व्रत लिया, हुई चाँदनी शाम ।
साथी मैंने कर दिया, सब कुछ तेरे नाम ।।

मन में तेरा प्यार है, आँखों में तस्वीर
हर लम्हे में है छुपी, बस तेरी तासीर ।।

अब तो मेरी कलम भी, करती तुमसे प्यार
नाम तुम्हारा ही लिखे, कागज़ पर हर बार ।।

मन चातक ने है रखा, साथी यूँ उपवास
बुझे न तेरे बिन परी, अब ‘ सौरभ ’ की प्यास ।।

तुम राधा, मेरी बनो, मुझको कान्हा जान ।
दुनियां  सारी छोड़कर, धर लें बस ये ध्यान ।।

मेरे गीतों में बसी , बनकर तुम संगीत
टूटा हुआ सितार हूँ, बिना तुम्हारे मीत ।।

माने कब हैं प्यार ने, ऊँच -नीच के पाश
झुकता सदा ज़मीन पर, सज़दे में आकाश ।। 

संपादन : अनुपम चौहान .संपादक। समर सलिल 
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पृष्ठ.० आज की : तस्वीर 
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हल्द्वानी नैनीताल दिवाली की मस्ती : फोटो : मानसी पंत : नैनीताल.  
आओ खुशियों के दीप मिल कर जलाए : फोटो मीरा : अमेरिका. 
भैया दूज के मौके पर भाईओं के लिए दीर्घ आयु होने के लिए की गयी कामना : कोलाज : विदिशा 
अमेरिका में मनी भैया दूज की परंपरा : फोटो : मीरा. 
इस दिवाली गणपति का निर्माण विजयबाड़ा में छात्र समूह द्वारा : फोटो रावी वत्स. 

आतिश बाज़ी का मज़ा अमेरिका में : फोटो : मीरा 

दिवाली अमेरिका की : फोटो : मीरा.
 
दीये : रंगोली और दिवाली : फोटो : सुमन : नई दिल्ली. 

एक भारतीय की दिवाली मस्ती जापान में : फोटो : अविरल 

ग्रेटर नॉएडा की दीपावली : फोटो सुमन 

दीपावली में दिए व रंगोली : फोटो मंजीता : बंगलोर 

 लक्ष्मी पूजा कोलाज : मेरे घर की : फोटो डॉ. मधुप.  

मधुर मधुर मेरे दीपक जल : फोटो रेनू शब्दमुखर.जयपुर. 

धनतेरस की तैयारी तनिष्क के साथ : फोटो : डॉ.मधुप .
 
 परंपरा सोने चांदी के गहनों की ख़रीददारी की धन तेरस में डॉ.मधुप . 

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सम्पादकीय : पृष्ठ १.



पृष्ठ निर्माण सहयोग : आभार. 


 

प्रधान संपादक. 
डॉ. मनीष कुमार सिन्हा. 
नई दिल्ली. 


डॉ. आर. के. दुबे.



सहायक संपादक 
 रेनू शब्दमुखर. जयपुर.
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हर पल, तुम्हारे ही साथ.

फोटो : साभार 

सुनो 
मैं नहीं चाहती कि,
तुम्हारे लिए, 
कुछ भी अनकहा छोड़ दूं, 
इसलिए आज मैं कहती हूं, 
कि मेरे पास तुम्हें देने के लिए, 
सिर्फ़ प्रेम ,प्यार ,समर्पण ,विश्वास, 
पाक दिल से तुम्हारे लिए है, 
जो विश्वास करते हो मुझ पर, 
उस विश्वास का, 
आकाश का सा विस्तार है , तुम्हारे लिए, 
हां, मेरे सपने जो मैं तुम्हारे साथ मिलकर, 
प्राप्ति का मार्ग खोजती हूं,
उन सपनों की अटूट उम्मीद हो तुम, 
क्योंकि मेरे अमोल सपने में, 
तुम ही तुम हो, 
पल - पल , हर पल ,
मैं तुम्हारे ही साथ हूँ .

फोटो : डॉ.मधुप  

तुम्हारी बंसी में 
राधा की आँखों में,
उसकी प्यारी बातों में ,
मैं तुम्हारे ही आस पास हूँ ,
और हाँ , हम ना मिले, 
कोई बात नहीं, 
पर मैं कविता की पाक संवेदना में ,
तेरा एहसास लिए, 
तुझ तक ,तेरी रूह तक़ 
पहुँच ही जाउंगी, 
यह भी सच है 
कुछ भी अनकहा छोड़कर नहीं जाउंगी. 
भावनाओं का सैलाब लुटा कर, 
मैं अपने भरोसे की पोटली, 
ख्वाहिशों का पुलिंदा, 
तेरे नाम कर जाउंगी ,
अब तो नहीं कहोगे की, 
कुछ अनकहा ही छोड़ जाओगी.  


सहायक संपादक. 
 रेनू शब्दमुखर. जयपुर.

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फोटो एडिटर. 


अशोक कर्ण.  
भूत पूर्व फोटोग्राफर. हिंदुस्तान दैनिक. पटना - रांची.
भूत पूर्व फोटो एडिटर 
पब्लिक एजेंडा .नई दिल्ली. 
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 संवाददाता विशेष.


    शिल्पी. अमेरिका.
     ऋषि किशोर. कनाडा. 
      कुणाल. यू. ए. इ.     
  अविरल. जापान. 
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संयोजिका 


नीलम पांडेय. 

दीया और बाती
 

दीया - बाती और अंधेरे का 
ये कैसा नाता है ?
एक जब जलता है 
तो दूसरा गुम हो जाता है.
 सदियों से, दरवाज़े पर एकटक, 
अंधेरे घर में बैठा दीया,
उस व्यक्ति को खोजता है,
आकर पास जो जला दे फिर से उसे,
और रौशन कर के दीया, अंधेरे घर को।
स्नेह के तेल में डूबी बाती रात भर,


ख़ुद को ही तिल - तिल जलाती, 
अंधेरे को समझाती है.
दूसरे को रौशन करने की खुशी ,
इतनी बड़ी होती है जिसके आगे, 
 जी उठता है दीया,
 ख़ुद की हस्ती मिटा के भी.

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बरसात.
               
अभी कुछ दिन पहले ही की तो बात है,
तेज़ धूप में चलकर मैं पहुंची थी,
तुम्हारे काम करने वाली जगह पर.
तब काम छोड़कर देखने लगे थे ,
तुम कुछ यूं कि जैसे पहली बार मिले हो.

फोटो : साभार 

मैंने देखा था तब जा के, ख़ुद को दर्पण में,
मेरे चश्मे के शीशे का रंग, गहरा हो गया था.
मेरे सुर्ख लाल गालों की तरह.
जाने कब पीछे से आकर,
 तुमने छू लिए थे,मेरे कपोलों को ,
 और, तुम्हारे प्यार की बरसात में
 मैं भींगती रही थी,
न जाने कब तक.

नीलम पांडेय.
वाराणसी. 

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साथ. 

फोटो : डॉ.मधुप  

गाड़ी की तेज़ रफ़्तार के संग में ही ,
निकलता जा रहा है यादों का सिलसिला.
काश ! कि तुम मिली होती,
 जीवन के पच्चीसवें बसंत में.
आज जबकि देख रहा हूं मैं,
मेहंदी से रंगे तुम्हारे बाल ,
और चेहरे पर ढेर सारी रेखाओं को.
चश्मे में से झांक रही प्यारी आंखों को ,
आंखों के नीचे के फैले गहरे रंग को.

फोटो : साभार 

शून्य में कुछ ढूंढती -सी,
होठों पर आते शब्दों को छुपाती -सी 
जिम्मेदारियों तले दबे तुम्हारे व्यक्तित्व को.
और आज फिर से मैंने,
 जीना शुरू कर दिया है यह सोच कर ,
जीवन के हर लम्हों को,
जैसे कि तुम सदियों से मेरे पास हो.      
       
नीलम पांडेय.
वाराणसी.   
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पृष्ठ निर्माण सहयोग : आभार. तनिष्क 


अतिथि संपादक.


रीता रानी. जमशेदपुर. 
रंजना. नई दिल्ली.  
अनुभूति सिन्हा. शिमला. 
प्रियादार्जलिंग. 
रंजीता.बीरगंज.नेपाल. 
कंचन पंत.नैनीताल.
डॉ.अनुपम अंजलि. रांची.
मधुलिका कर्ण.बंगलोर
वनिता स्मिता. पटना       
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संपादक. मंडल 


डॉ. रंजना.
डॉ. रूप कला प्रसाद 
डॉ. अर्चना.कोलकोता  
रवि शंकर शर्मा .संपादक, नैनीताल. 
डॉ. नवीन जोशी,संपादक, नैनीताल.
मनोज पांडे, संपादक, नैनीताल.  
अनुपम चौहान. संपादक. समर सलिल. लखनऊ.   
डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह, रायपुर. 
डॉ. प्रशांत, बड़ौदा. गुजरात.  
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विधि सलाहकार.
सरसिज नयनम अधिवक्ता,उच्च न्यायालय ) नई दिल्ली. 
रजनीश कुमार ( अधिवक्ता,उच्च न्यायालय ) पटना. 
सुशील कुमार ( विशेष लोक अभियोजक. पाक्सो. )
रवि रमण  ( वरिष्ठ अधिवक्ता )


सीमा कुमारी (अधिवक्ता )
दिनेश कुमार (वरिष्ठ अधिवक्ता )
विदिशा. 
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संरक्षण. 
 चिरंजीव नाथ सिन्हा, ए.डी.सी.पी. लखनऊ.  
राज कुमार कर्ण, डी. एस. पी. ( सेवानिवृत  ).पटना
विजय शंकर,  डी. एस. पी. ( सेवानिवृत  ).पटना 
डॉ. मो. शिब्ली नोमानी. डी. एस. पी. नालंदा 
कर्नल  सतीश कुमार सिन्हा ( सेवानिवृत ) हैदराबाद.
कैप्टन अजय  स्वरुप, देहरादून , इंडियन नेवी सेवानिवृत ).
डॉ. आर. के. प्रसाद , ( ऑर्थोपेडिशयन ) पटना.
अनूप कुमार सिन्हा, ( उद्योगपति ) नई  दिल्ली.
डॉ. प्रशांत. बड़ोदा  
डॉ. तेज़ पाल सिंह ,नैनीताल ( व्याख्याता ) 
डॉ. भावना, ( व्याख्याता )

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पृष्ठ का निर्माण आज से ही :  दीपावली विशेषांक .एक बेहतरीन शुरुआत
कृप्या स्नेह बनाए रखें. 
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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ० 
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supporting
लेख.अनुभाग,
संपादक.
 
राजेश रंजन वर्मा 
स्वतंत्र लेखक, हिंदुस्तान. 
©️®️ M.S.Media.
Bizeal wishes you a very happy Deepawali. call us at 9262277938.
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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ /० 
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पर्व एवं त्योहारों का पावन मास कार्तिक.

बनारस के घाटों पर मनती है देव दीपावली : फोटो रश्मि 
 
व्रत,पर्व एवं त्योहारों की दृष्टि से कार्तिक का महीना हिन्दुओं के लिए सबसे पावन महीना माना जाता है।  ऐसा कहा जाता है कि इस मास में देवी- देवताओं का स्वर्गलोक से धरती पर अवतरण हुआ था। इस महीने में अनेक व्रत, पर्व एवं त्योहारों की एक श्रृंखला- सी प्रतीत होती है।  इनमें करवा चौथ, धनतेरस या  धंवन्तरि जयंती, दीपावली, काली पूजा, धन -लक्ष्मी कुबेर पूजा , गोवर्धन पूजा, भैया दूज ( यम द्वितीया ) चित्रगुप्त पूजा, प्रसिद्ध लोकव्रत छठ, गोपाष्टमी, अक्षय नवमीदेवोत्थान एकादशी, देव दीपावली, नरक चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा स्नान, गुरु नानक जयंती इत्यादि आते हैं। 
सम्पूर्ण पावन मास शुद्धता एवं पवित्रता से भर जाता है।  यह मास पवित्रता एवं ब्रह्मचर्य का प्रतीक है। सम्पूर्ण मास व्रता एवं व्रती पूर्ण शुद्धता के साथ ब्रह्मचर्य के नियमों का कठोरता के साथ पालन करते हैं। इस माह मांस - मदिरा, यहाँ तक कि लहसून , प्याज, सादा नमक इत्यादि का भी त्याग करते हैं। 
ऐसी भी मान्यता है कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु मतस्य रूप धारण कर जल में विराजमान रहते हैं और कार्तिक पूर्णिमा के दिन वापस स्वर्गारोहण करते हैं। 
शैव मतावलम्बियों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर तीनों लोकों में पुनः धर्म की स्थापना करते हैं। 
महाभारत कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल अष्टमी से कार्तिक पूर्णिमा तक पांडवों ने गढ़ मुक्तेश्वर में तर्पण एवं दीप दान किया था। 

दीपावली के दीप : फोटो विदिशा. 

दान और स्नान का मास है कार्तिक : सनातन धर्म में इस मास दान और स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर अन्न, वस्त्र्, धन और दीप का दान कर परम-पुण्य के भागीदार बनते महसूस करते हैं।  ऐसा माना जाता है कि इस मास कार्तिक पूर्णिमा के दिन पावन नदियों में स्नान करने मात्र से ही कई तीर्थों का पुण्य प्राप्त हो जाता है। सनातन धर्म में स्नान, यम-नियम पूजा-पाठ, दान-धर्म का महत्व सदियों से रहा है। 
करवा चौथ : शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाले पर्वों के महाउल्लास में सर्वप्रथम 'करवा चौथ' आता है जिसमें सुहागिनें अपने सुहाग की रक्षा एवं दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखती हैं।
दिवाली : दिवाली के दिन असत्य से सत्य की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की कामना ईश्वर से करते हैं।  माँ लक्ष्मी और कुबेर पूजा में धन और यश प्राप्ति की कामना करते हैं। काली पूजा में शत्रुओं से रक्षा की कामना ईश्वर से करते हैं। गोवर्धन पूजा में हम अपने पालतू पशुओं के प्रति आस्था प्रकट करते हैं।  गोपाष्टमी में भी भगवान कृष्ण की लीला का गुणगान करते हुए पालतू पशुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। 

.भगवान महावीर का पावापुरी स्थित निर्वाण -स्थल : फोटो : डॉ.मधुप  

भगवान महावीर की पुण्यतिथि : जैन धर्म के २४  वें तीर्थंकर भगवान महावीर की पुण्यतिथि भी दिवाली की रात्रि ही मनाया जाता है।  इस अवसर पर बिहार राज्य के पावापुरी स्थित निर्वाण-स्थल को भव्य रूप से दीपों से सजाया जाता है। 
तुलसी  विवाह : सम्पूर्ण मास तुलसी में  दीप- दान किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को देवी तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के अवतारी शालिग्रामी रूप से हुआ था जबकि पूर्णिमा के दिन बैकुंठ लोक गमन हुआ था।  इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित कर भोग लगाया जाता है। इस मास पीपल एवं ऑंवला के वृक्ष में भी पूजन एवं दीप - दान एवं आरती का विशेष विधान है। 
अक्षय नवमी : अक्षय नवमी को ऑंवला वृक्ष के नीचे प्रसाद के रूप में ' खिचड़ी ' पकवान देवताओं को अर्पित करने एवं प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करने का विधान है। 
छठ  लोक आस्था का महापर्व : छठ  लोक आस्था का महापर्व है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में सूर्य☀ देव को अर्ध अर्पित किया जाता है | इस अवसर पर व्रतधारियों में शुद्धता एवं पवित्रता पूरी पराकाष्ठा पर होती है। 

छठ पर्व वर्जिनिआ ,अमेरिका में : फोटो : सुनीता उपाध्याय

गुरु नानक देव जी का जन्म : सिख धर्म में भी इस महीने नाम, दान, स्नान का विशेष महत्व है। ' नाम ' का प्रतीकात्मक अर्थ प्रतिष्ठा,मान-सम्मान  'दान' का अर्थ दूसरों का कल्याण एवं स्नान का अर्थ आचरण में पवित्रता से है| इसी महीने में कार्तिक पूर्णिमा को सिख धर्म के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था।  इसे सिख श्रद्धालु 'प्रकाश पर्व' के रूप में मनाते हैं। इस अवसर पर गुरुद्वारों को प्रकाश से सजाकर शबद गायन ,कीर्तन एवं गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ आदि कार्यक्रम विशेष रूप से आयोजित किया जाता है। 
सोनपुर मेला : कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर कई धार्मिक क्षेत्रों में वृहत् मेले का आयोजन होता है।  इनमें हरिहर क्षेत्र ( सोनपुर, बिहार ), भृगु क्षेत्र ( बलिया, उत्तर प्रदेश ), वराह क्षेत्र ( नेपाल ), पुष्कर क्षेत्र ( राजस्थान ) का विशेष महत्व है।  यहाँ आध्यात्मिक मेले के साथ-साथ विशेष  मेले का भी आयोजन होता है। हरि ( विष्णु ) और हर  ( शिव ) के संगम स्थल हरिहर क्षेत्र में भगवान विष्णु ने गज की रक्षा ग्राह  से की थी। यहाँ मौर्य काल से ही आध्यात्मिक मेले के साथ- साथ वृहत पशु मेले का भी आयोजन होता है जिसमें अनेक प्रकार के पशुओं, जीवों की प्रर्दशनी एवं प्रतियोगिता भी होती है।  इसी प्रकार पुष्कर क्षेत्र ( राजस्थान ) में भी धार्मिक मेले के साथ- साथ वृहत पशु मेले का आयोजन होता है जिसे देखने के लिए देश- विदेश से सैलानी आते हैं।  
आलेख : राजेश रंजन वर्मा.

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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ /१  
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दीपों का त्योहार ' दीपावली ' एवं अन्य सम्प्रदायों में इसका महत्व.


निशि वर्मा . 
हजारीबाग 

जोत से जोत जागते चलो : फोटो डॉ.मधुप 

दीपों का त्योहार ' दीपावली ' एवं अन्य सम्प्रदायों में इसका महत्व.

"ओउम् असतो मा सद्गगमय, तमसो मा ज्योतिर्मय।  " हे ईश्वर, मुझे असत्य से सत्य की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, 'बृहदारण्यक' उपनिषद से उद्धृत यह पंक्ति जीवन के उस सत्य की कामना करती है जो मनुष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर गमन करने के लिए प्रेरित करता है | इन्हीं कामनाओं एवं भावनाओं का साक्षात दर्शन है दीपावली का पर्व। 
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का अयोध्या आगमन : कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व हिन्दुओं के अलावे जैनियों एवं सिखों के  लिए भी विशेष महत्व रखता है। सनातन धर्म में दीपों का महत्व सदियों से रहा है। परम्परा के रूप में त्रेता युग से यह त्योहार निरंतर मनाया जा रहा है | ऐसा माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के चौदह वर्षों के वनवास के पश्चात वापस अयोध्या आगमन पर  अयोध्या नगरी को घी के दीपों से सजाकर प्रकाश से उनका भव्य स्वागत किया गया था।  तब से हिन्दूओं में यह परम्परा चली आ रही है। 
धन्वंतरि की जयंती : दिवाली के दो दिन पूर्व धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की जयंती मनायी जाती है।  इन्हें आयुर्वेद का जनक भी कहा जाता है और इनकी जयंती मनाकर स्वास्थ्य - लाभ की कामना की जाती है। 
देव दिवाली : दिवाली से एक दिन पूर्व देव दिवाली मनायी जाती है जिसमें देव - मंदिरों को दीपों से सजाकर रौशन किया जाता है और श्रद्धा अर्पित की जाती है। दिवाली के दिन धन की देवी माँ लक्ष्मी एवं धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है और धन प्राप्ति की कामना की जाती है। 
शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इसी दिन कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को माता लक्ष्मी समुद्र मंथन के पश्चात प्रकट हुई थीं।  
महाभारत की कथा : ऐसा भी माना जाता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से माता लक्ष्मी को मुक्त किया था।  महाभारत की कथा के अनुसार तो ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध कर १६  हजार नारियों को मुक्ति प्रदान की थी।  ऐसा भी माना जाता है कि पांडव जब वनवास के पश्चात लौटे थे तो उनकी वापसी की खुशी में भी घी के दीये जलाये गए थे। 
जैन तीर्थंकर  महावीर  का निर्वाण दिवस : २४  वें जैन तीर्थंकर  महावीर ने इसी दिन पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया था इसलिए जैन धर्मावलंबी इसे प्रकाश के त्योहार के रूप में मनाते हैं।  इस अवसर पर पावापुरी निर्वाण स्थल  एवं  देश के सभी जैन मंदिरों को दीपों से सजाया जाता है।  
कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रकाश - पर्व  : सिख धर्मावलंबी सिख धर्म के प्रर्वतक एवं प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी की जयंती के उपलक्ष्य में कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रकाश - पर्व मनाते हैं। इस अवसर पर गुरूद्वारों को प्रकाश -पुंज से भव्यता प्रदान की जाती है। सिख धर्मावलंबियों के अनुसार अमृतसर के हरमंदिर साहिब का शिलान्यास दीपावली के दिन ही हुआ था। सिख गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को भी इसी दिन जेल से रिहा किया गया था। 
स्वामी दयानंद सरस्वती का निर्वाण दिवस : आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का निर्वाण दिवस भी इसी दिन मनाया जाता है।  यह स्वच्छता एवं प्रकाश का पर्व है। जीवन में सुंदर परिवर्तन एवं सुखद अहसास का दिन है।  यह दिन अज्ञानता रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर बढ़ने का त्यौहार है। 

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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ /२  
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हर साल करवा चौथ के चाँद में करें अपने प्रिय का दीदार. 


 पुनः सम्पादित : अनुपम चौहान,
संपादक. समर सलिल  
डॉ. मधुप.

फोटो : साभार 

हर साल करवा चौथ के चाँद में करें अपने प्रिय का दीदार. 

मूल आलेख : प्रियंका सौरभहिसार. हरियाणा  


प्रेम का प्रतीक है चाँद : आज करवा चौथ है। देर शाम उगने वाले चाँद का इंतजार आज सभी को होगा। अमर प्रेम में विश्वास है तो आज चाँद का दीदार जरूर कर लें। यूँ तो सालों भर चकोर चाँद को टकटकी लगा कर देखता रहता है। यह सच है चांदनी की नीली ,शीतल , ठंढी रोशनी तो सभी के मन को भाती है। चाँद और उसकी चांदनी में निहित सन्देश हैं प्रेम का ही है कि हम प्रेम पूर्ण हो, शांतचित वाले  हो ,अपने हर दिल अजीज प्रिय जनों के लिए संवेदनशीलता रखने की कोशिश भी करें तथा क्रोध से परे हो । हम सभी कल्पनाशील हो जाते हैं शायरी में तराने गाने लगते है कि चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो। शायद चाँद के पार ही कोई ख्यालों की दुनियाँ है जहाँ अपने मिलते हैं । मगर हम तो जीते जी इसी दुनियाँ की बात करते है जहाँ आपके अपने है। उनका ख़्याल दिल से रखें। 
फ़िर करवा चौथ के चाँद में अतिरेक प्रेम ही प्रेम ही है, सपने ही सपने हैं । सपने किसी भी अपने प्रिय जन के लिए हो सकते है। चाँद के दीदार के साथ अपने द्वैत सम्बन्धों के बीच अमर प्रेम , विश्वास ,शीतलता , सम्बन्धों की मधुरिमा ,धैर्य ,स्थायीपन की कामना की जा सकती है। सच कहें तो कोई भी अपनी निष्कलुष भावना को अपने भीतर पाक चाँदनी की तरह अख़्तियार कर  सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह त्यौहार अविवाहित महिलाओंया प्रेमिकाओं द्वारा भी मनाया जाता है जो मनचाहा जीवनसाथी, हमख्याल पाने की आशा में प्रार्थना करती हैं
बदलते समय में खासकर नवविवाहितों के बीच पतियों ने भी अपनी पत्नियों के लिए व्रत रखना शुरू कर दिया है।  वे दिन भी हमारी हद में ही होगा जब कोई अपने महबूब के लिए इस चौथ में आस्थां रखेगा और उपवास कर अपने आप को शमित कर सकता है। इस प्रकार अब, एक पुराना त्योहार ग्रामीण और शहरी सामाजिक परिवेश दोनों में अपने पुनर्निमाण के माध्यम से लोकप्रिय बना हुआ है।
मूलतः करवा चौथ :  विवाहित हिंदू महिलाओं द्वारा प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक त्योहार है जिसमें वे सूर्योदय से चंद्रोदय तक उपवास रखकर पति की भलाई और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं। 
यह हिंदू चंद्र कैलेंडर के कार्तिक महीने में अंधेरे पखवाड़े ( कृष्ण पक्ष या चंद्रमा के घटते चरण ) के चौथे दिन पड़ता है। तारीख मोटे तौर पर मध्य से अक्टूबर के अंत के बीच कभी भी हो सकती है। 
यह मुख्य रूप से उत्तरी भारत के राज्यों जैसे पंजाबहरियाणाहिमाचल प्रदेशउत्तर प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है।
करवा चौथ का शाब्दिक अर्थ : करवा चौथ शब्द दो शब्दों ‘ करवा ’ से बना है, जिसका अर्थ है टोंटी वाला मिट्टी का बर्तन और ‘ चौथ ’ जिसका अर्थ है चौथा। मिट्टी के बर्तन का बहुत महत्व है क्योंकि इसका उपयोग महिलाओं द्वारा त्योहार की रस्मों के हिस्से के रूप में चंद्रमा को जल चढ़ाने के लिए किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत तब हुई जब महिलाएं अपने पति की सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना करने लगीं, जो दूर देशों में युद्ध लड़ने गए थे। यह भी माना जाता है कि यह फसल के मौसम के अंत को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है। मूल जो भी हो, त्योहार पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।
करवा चौथ की रस्में :  त्योहार में एक ‘ निर्जला ’ व्रत रखना शामिल है जिसमें महिलाएं दिन भर न तो खाती हैं और न ही पानी की एक बूंद लेती हैं और पार्वती के अवतार देवी गौरी की पूजा की जाती है, जो लंबे और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए आशीर्वाद देती हैं। करवा चौथ से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। सबसे लोकप्रिय सावित्री और सत्यवान से संबंधित है जिसमें सावित्री ने अपने पति को अपनी प्रार्थना और दृढ़ संकल्प के साथ मृत्यु के चंगुल से वापस लाया। जब भगवान यम सत्यवान की आत्मा को प्राप्त करने आए, तो सावित्री ने उन्हें जीवन प्रदान करने की भीख मांगी।

गतांक से आगे : १. 

फिल्मों में करवा चौथ की रस्म अदायगी 

देश में करवा चौथ से संबंधित उत्सव सुबह जल्दी शुरू होते हैं जहां विवाहित महिलाएं सूरज उगने से पहले उठती हैं और तैयार हो जाती हैं। करवा चौथ से एक रात पहले, महिला की मां बया भेजती है जिसमें उसकी बेटी के लिए कपड़ेनारियलमिठाईफल और सिंदूर ( सिंदूर ) और सास के लिए उपहार होते हैं। तब बहू को अपनी सास द्वारा दी गई सरगी ( करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले खाया गया भोजन ) खाना चाहिए। इसमें ताजे फल , सूखे मेवेमिठाईचपाती और सब्जियां शामिल हैं। जैसे ही दोपहर आती है, महिलाएं अपनी - अपनी थालियों ( एक बड़ी प्लेट ) के साथ आ जाती हैं।
इसमें नारियल, फल, मेवा, एक दीया, एक गिलास कच्ची लस्सी ( दूध और पानी से बना पेय ), मीठी मठरी और सास को दिए जाने वाले उपहार शामिल हैं। थाली को कपड़े से ढक दिया जाता है। तब महिलाएं एक साथ आती हैं और गौरा मां ( देवी पार्वती ) की मूर्ति की परिक्रमा करती हैं और करवा चौथ की कहानी एक बुद्धिमान बुजुर्ग महिला द्वारा सुनाई जाती है जो यह सुनिश्चित करती है कि पूजा सही तरीके से हो। इसके बाद महिलाएं थालियों को घेरे में घुमाना शुरू कर देती हैं। इसे थाली बटाना कहते हैं। यह अनुष्ठान सात बार किया जाता है। पूजा के बाद, महिलाएं अपनी सास के पैर छूती हैं और उन्हें सम्मान के प्रतीक के रूप में सूखे मेवे भेंट करती हैं।
करवा चौथ की रस्में : व्रत तोड़ा तब होता है जब चंद्रमा अंधेरे आकाश में चमकता है। वे एक चन्नी ( छलनी ) और एक पूजा थाली ले जाते हैं जिसमें एक दीया ( गेहूं के आटे से बना ), मिठाई और एक गिलास पानी होता है। वे ऐसी जगह जाते हैं जहां चांद साफ दिखाई देता है, आमतौर पर छत। वे चलनी से चाँद को देखती हैं और चाँद को कच्ची लस्सी चढ़ाती हैं और अपने पति के लिए प्रार्थना करती हैं। अब पति वही कच्ची लस्सी और पत्नी को मिठाई खिलाता है और वह अपने पति के पैर छूती है। दोनों अपने बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हैं और ऐसे ही व्रत तोड़ा जाता है।
करवा चौथ के दिन पंजाबियों के बीच रात के खाने में कोई भी साबूत दाल जैसे लाल बीन्स, हरी दालें, पूरी 
( तली हुई भारतीय फ्लैटब्रेड ), चावल और बया की मिठाइयाँ शामिल होती हैं। वर्तमान समय में बॉलीवुड फिल्मों और टेलीविजन शो में इसके चित्रण के कारण इस त्योहार से जुड़े अनुष्ठानों में समय के साथ बदलाव आया है। इसने इस त्यौहार को भारत के ऐसे हिस्सों में लोकप्रिय बनाने में भी मदद की है जहाँ इसे पारंपरिक रूप से नहीं मनाया जाता था। 

करवा चौथ के चाँद के दीदार की रस्में.फोटो : दीक्षा राजीव : बंगलोर.

अब बदलते समय में खासकर नवविवाहितों के बीच पतियों ने भी अपनी पत्नियों के लिए व्रत रखना शुरू कर दिया है। अगर आप स्वप्नदर्शी व्यक्तिवादी है तो अपनी चाँद की कल्पना में भी सृजनात्मक हो सकते हैं। सिनेमा के सुनहरे पर्दें में कई प्रचलित गानें करवा चौथ पर फिल्माए गए हैं। देखा देखी में यह रिवाज़ धीरे धीरे भारत के अन्य प्रदेशों में भी अपना लोकप्रियता हासिल कर रहा है।  इस प्रकार, एक पुराना त्योहार ग्रामीण और शहरी सामाजिक परिवेश दोनों में अपने पुनर्निमाण के माध्यम से लोकप्रिय बना हुआ है। प्रीत बनी रहें। हम आर्य हो हमारा सद्प्रयास यही होना चाहिए। 



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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ३   
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डॉ. नवीन जोशी.
संपादक नवीन समाचार.नैनीताल.

बिन पटाखे , कुमाऊं में ' च्यूड़ा बग्वाल ' के रूप में मनाई जाती थी परंपरागत दीपावली.

बिन पटाखे कुमायूं की पहाड़ियों, में च्यूड़ा बग्वाल  के रूप में बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाई जाती थी परंपरागत दिवाली. कुछ दशक पूर्व से ही पटाखों का प्रयोग प्राचीन लोककला ऐपण  से होता है माता लक्ष्मी का स्वागत. डिगारा शैली में बनती है महालक्ष्मी. 

दिवाली , नैनीताल की : फोटो डॉ नवीन जोशी. 

नैनीताल / डॉक्टर नवीन जोशी. वक्त के साथ हमारे परंपरा का त्योहार अपना स्वरूप बदलते रहते हैं उनका परंपरागत स्वरूप याद भी नहीं रहता है। आज जहां दीपावली का अर्थ रंग बिरंगी चाइनीस बल्ब की लड़ियों से घरों प्रतिष्ठानों  को सजाना है महँगी से महँगी आसमानी कानफोड़ू  ध्वनि युक्त आतिशबाजी से अपनी आर्थिक स्थिति का प्रदर्शन करना और अनेक जगह सामाजिक बुराई जुवे को खेल बता कर खेलने और दीपावली से पूर्व धनतेरस पर आभूषणों और गृहस्थी की महँगी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को खरीदने के अवसर रूप में जाना जाता है,ऐसा अतीत में नहीं था। 
कुमायूं अंचल में खासकर दीपावली का पर्व मौसमी बदलाव के दौर में बरसात के बाद घरों को साफ सफाई कर गंदगी से मुक्त करने घरों को परंपरागत रंगोली जैसे लोककला ऐपण  से सजाने तथा तेल अथवा घी के दीपक को से प्रकाशित करने का अवसर था। मूलत च्यूड़ा बग्वाल  के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार पर कुमायूं में बड़ी-बूढ़ी  महिलाएं नई पीढ़ी को सिर में नए धान  से बने  च्यूड़े रखकर आकाश की तरह ऊंची और धरती की तरह चौड़े होने जैसी शुभाशीष देती थी 

गोवर्धन पूजा ,नैनीताल : फोटो डॉ नवीन जोशी 

विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद प्रकृति एवं पर्यावरण से जुड़ी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाला पूरा उत्तराखंड प्रदेश और इसका कुमायूं अंचल अतीत में धन-धान्य की दृष्टि से कमतर ही रहा है। यह आजादी के बाद तक अधिसंख्य आबादी दीपावली पर खील बताशे मोमबत्ती और तक से अनजान थी।  पटाखे भी यहां बहुत देर से आए बड़े बुजुर्गों के अनुसार गांवों में दीपावली के दीए जलाने के लिए कपास की रूई भी नहीं होती थी अलबत्ता लोग नए खद्दर का कपड़ा लाते थे और उसकी कतरनों को बांटकर दीपक की बत्तियां बनाते थे.
दीपावली से पहले घरों को आज की तरह आधुनिक रंगो एक्रेलिक पेंट या डिस्टेंपर से नहीं कहीं दूर दराज के स्थानों पर मिलने वाली सफेद मिट्टी कमेट से गांवों में ही मिलने वाली बाबीला नाम की घास से बनी झाड़ू से पोता जाता था। इसे घरों को उछीटना  कहते थे। 

सजावटी कला कृति 

घरों के पाल फर्श गोबर युक्त लाल मिट्टी से दीवारों  रोज घिसने का रिवाज़  था।  दीपावली पर यह कार्य अधिक वृहद स्तर पर होता था। गैरू  की जगह इसी लाल मिट्टी से दीवारों को भी नीचे से करीब आधा फीट की ऊंचाई तक रंगकर बाद में उसे सूखने पर भिगोए चावलों से पीसकर बने सफेद रंग (विस्वार ) से अंगुलियों के पोरों यानी नींबू ,नारंगी आदि की पत्तियों से बसुधारे  निकाले जाते थे। 
फर्श  तथा खासकर द्वारों पर तथा चौकियों पर अलग-अलग विशिष्ट प्रकार के लेखनों  से लक्ष्मी चौकी व अन्य आकृतियां अपन के रूप में उकेरी जाती थी जो कि अब प्रिंटेड स्वरूप में विश्व भर में पहचानी जाने लगी है। 
द्वार के बाहर आंगन तक विस्वार में हाथों की मुट्ठी बांधकर छाप लगाते हुए माता लक्ष्मी के घर की ओर आते हुए पदचिन्ह इस विश्वास के साथ उकेरे  जाते थे कि माता इन्हीं पद चिन्हों पर कदम रखती हुई भीतर को आएगी। 
दीपावली के ही महीने कार्तिक मास में द्वितीय बग्वाल मनाने की परंपरा भी थी। इसके तहत इसी दौरान पककर तैयार होने वाले नए धान को भिगोकर एवं भूनकर तक तत्काल घर की ओखल में उठकर च्यूड़े  बनाए जाते थे और इन च्यूड़े  को बड़ी बुजुर्ग महिलाएं अपनी नई पीढ़ी के पांव छूकर शुरू करते हुए घुटनों एवं कंधों से होते हुए सिर में रखते थे। 
साथ में आकाश की तरह ऊंचे और धरती की तरह चौड़े होने तथा इस दिन को हर वर्ष सुख पूर्व जीने की शुभ आशीष देते हुए कहती थी , ' लाख हरयाव  लाख  बग्वाल अगाश जस उच्च   धरती जस  चौड़  जी रिया जागि रया यो दिन यो मास भेटने रया 
इसी दौरान गोवर्धन पड़वा पर घरेलू पशुओं को नहला धुला कर उस पर गोलाकार गिलास जैसी वस्तुओं से सफेद बिस्वार के गोल ठप्पे  लगाए जाते थे। उनके सींघों  को घर के सदस्यों की तरह सम्मान देते हुए तेल से मला जाता था। छोटी दीवाली से बूढ़ी दिवाली तक तीन स्तर पर मनाई जाती है.....

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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ४    
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नीलम पांडेय.
वाराणसी.  


राम की नगरी अयोध्या की दीपावली : फोटो साभार 


तमसो मा ज्योतिर्गमय.

तमसो मा ज्योतिर्गमय...दिवाली, दीपावली,दीपोत्सव, प्रकाशपर्व चाहे जिस नाम से पुकारिए भाव एक ही ओर संकेत करते हैं ' तमसो मा ज्योतिर्गमय..। ' इक तरफ़ अज्ञान की घनघोर रात्रि दूसरी तरफ ज्ञान के प्रकाश से आलोकित ज्योतिर्मय पथ। 
कारण चाहे जितने भी हों,प्रतिकार्थ बस एक ही है - 'आलोकित पथ करो हमारा, हे जग के अंतर्यामी। '  प्रकाश 'लक्ष्मी' का प्रतीक है और लक्ष्मी सुख, सौभाग्य और समृद्धि का। इसीलिए इस दिन धनदात्री लक्ष्मी और अन्नदाता गणेश की पूजा का विधान है। दिवाली पर्व में सारी रात दीप जलाकर अंधकार को जीतना, लक्ष्मी के साथ गणेश का आवाहन करना, अगले दिन दरिद्रता को दूर भगाना , इक दूसरे को मोदक प्रसाद के रूप में बांटना आदि किए जाने की परंपरा है। उत्तर भारत में विशेषतः इसी प्रकार दिवाली मनाते हैं। आतिशबाजी भी की जाती है पर पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर अब इस पर काफी हद तक रोक लगा दिया गया है। 
जनश्रुति, लोकगाथा, कथा के विभिन्न स्रोत कई बातों को इस प्रकाशोत्सव से जोड़ कर देखते हैं जिनमें से कुछ इस तरह से हैं :- सबसे बड़ा कारण भगवान राम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौट आने की खुशी में सारी अयोध्या का दीपों से जगमगाया जाना था। 
पौराणिक गाथाएं : कहा जाता है,दिवाली के ठीक एक दिन पहले श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। 
ऐसा भी मानते हैं कि राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया और उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। कहीं-कहीं इस रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है। 
महावीर का निर्वाण दिवस : दिवाली भगवान महावीर का निर्वाण दिवस भी है। ऐसा भी माना जाता है कि गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने गौतम बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। 
इस बात की पुष्टि की जाती है कि दिवाली के दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था।विक्रमादित्य का राजतिलक : इसी तरह दिवाली के दिन ही गुप्तवंशीय राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने 'विक्रम संवत' की स्थापना करने के लिए धर्म, गणित तथा ज्योतिष के दिग्गज विद्वानों को आमन्त्रित कर मुहूर्त निकलवाया था। 
हरगोबिन्द सिंह जी को कारागार से रिहाई : अमृतसर में १५७७ में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। दिवाली ही के दिन सिक्खों के छ्टे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को कारागार से रिहा किया गया था। 
महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण दिवस : दिवालीआर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण दिवस भी है।
नेपाल में ' नया वर्ष ' की शुरुआत दीवाली से  : नेपाल में ' नया वर्ष ' दीवाली से आरम्भ होता है। 
भगवान विष्णु से जुड़ी गाथाएं : कहते हैं कार्तिक अमावस को ही राजा महाबली को भगवान विष्णु ने पाताल लोक का स्वामी बनाया और तब इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीपावली मनाई थी। इस दिन ने नरसिंह रुपधारी भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया था। दीवाली के दिन ही समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए थे।
 उक्त सभी कारणों को हम दिवाली से जोड़कर देखते हैं और  दीपावली का त्योहार मनाते हैं। दिवाली से पहले 'होलिका-दहन'किये जाने की परंपरा है, जो 'अधर्म ' पर ' धर्म 'की जय का प्रतीक है।
    
supporting.
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फोटो दीर्घा. पृष्ठ ३ .दीपावली .आज कल. 
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संपादन. 


दीक्षा
राजीव. बंगलोर. 

दिल्ली में दीपावली के रंग : फोटो सुषमा. 

नालंदा की दीपावली सजावट : फोटो डॉ.मधुप.
  
ज्वेलरी शॉप में धनतेरस की ख़रीददारी   : फोटो डॉ.मधुप.  
शरद पूर्णिमा में वाराणसी की गंगा आरती : फोटो निवेदिता. 


supporting.

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 देखें फोटो दीर्घा. पृष्ठ ३ .दीपावली .बीते दिनों की. 
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संपादन.


रंजीता. बीरगंजनेपाल. 
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Deepawali in  Abroad. Last Years.

An Eveninng at UAE Diwali : photo Kunal.
a couple celebrating Dipawali in Central America Dallas,Texas : USA. photo Abhidha.
a kid's family lighting a sparkle at Bakersfield in California. West America. : photo Shilpi.
Kids enjoying crackers in Deepawali. Australia. : photo Sunny.

festival of light Deepawali being celebrated at USA : collage Vidisha.
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supporting.
Deepawali in India. Last Years.
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diye jalte hain phool khilte hain : Deepawali : photo Vidisha.

Dhanteras buying at branded Showroom : photo : Dr.Madhup.

Deepawali at Nainital : photo Dr. Navin Joshi.

children enjoying their Deepwali : Thane : Photo Shaily

decorating Rangoli in Deepawali Mumbai. Photo Bhavini.

Dashshvmegh Ghat Varanasi Deepawali : photo Nivedita.

Deepawali view from tandhi Sadak Nainital : photo Dr Navin Joshi.
a Diwali pic of Ranchi in a Photo Editor's eye : photo Ashok Karan.
Kalbeliya a folk tribe of Rajasthan celebrating Deepawali  : Jodhpur : photo Sua Devi.
Dipawali celebration at Nalanda : photo Dr. Madhup.
Varanasi Dev Deepawali Ganga Aarti : photo Dr. Madhup.
a family celebrating Deepawali in Dehradun : photo Damini.
a glimpses of  Diwali  RenukootSonebhadra UP : photo Riddhi Raj.
Solanki family lighting the deeps on 
twinkling Darjeeling at Deepawali night with decorative lights : photo Dev.


deeps shaping  Depawali at Thane in Maharashtra : photo Ram Krishna

supporting
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पृष्ठ ११सीपियाँ. 
संपादन. 

कंचन पंत , नैनीताल.
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आदि शक्ति

आप हो,
आदि शक्ति, 
मेरे जीवन में  
आत्म शक्ति के  लिए, 



शक्ति स्वरूपा,
 सरस्वती स्वरूपा,
लक्ष्मी स्वरूपा, 
जानी अनजानी शक्ति से, 
रक्षित हो हम,
 सृजन, रचना 
कल्पना, 
और नव निर्माण, 
के लिए  
सरस्वती सिद्ध हो जाए,

 
विघ्न रहित, 
प्रसन्न चित  
ज्ञान,विज्ञान सहित 
हो हम, 
तो लक्ष्मी अपने गृह भाग्य 
में स्वतः आ जाए.

  
डॉ. मधुप 
©️®️ M.S.Media.





supporting.

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पृष्ठ १२. समाचार अनुभाग . 
खबरें   दीपावली कल आज और कल की 
संपादन : स्मिता : न्यूज़ एंकर   
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समाचार अनुभाग . विश्व / भैया दूज . १२/२.

कायस्थों के द्वारा आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की पूजा. 
  
बहनों कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीय तिथि को बहनों ने  
अपने भाई की उन्नति और दीर्घ आयु के लिए भाई दूज को मनाया.

भाई की दीर्घायु होने की कामना के लिए बहन ने मनाया भाई दूज : फोटो मीरा 

संवाद सूत्र / एक तरफ़ बहनों कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीय तिथि को ने अपने भाई की उन्नति और दीर्घ आयु के लिए भाई दूज को मनाया। कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीय तिथि को यम द्वितीया भी कहा जाता है। ज्ञात हो कि इस दिन यमराज ने यमुना में स्नान कर अपनी बहन यमुना के यहाँ भोजन ग्रहण किया था। विदित हो कि इससे भाई की उम्र बढ़ती है। भाई दूज का पर्व भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित पर्व है, जिसे बड़ी श्रद्धा और परस्पर प्रेम के साथ मनाया जाता है। रक्षाबंधन के बाद, भाई दूज ऐसा दूसरा त्योहार है, जो भाई-बहन के अगाध प्रेम को समर्पित है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह पर्व कार्तिक मास में मनाया जाता है।
कायस्थों के द्वारा आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की पूजा : फोटो विदिशा 

दूसरी तरफ़ कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीय तिथि को विश्व के तमाम कायस्थों के द्वारा आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की पूजा पूरे भारत वर्ष  में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में धूमधाम से की गयी। विभिन्न शहरों  में कायस्थों के द्वारा श्री चित्रगुप्त भगवान के मंदिर में  पूजा वैदिक मंत्रोच्चारण से संपन्न हुआ। इस अवसर पर कायस्थ परिवारों ने बढ़-चढ़कर भाग लेते हुए भगवान चित्रगुप्त की पूजा अर्चना की तथा साल भर का आय व्यय का हिसाब रखा । आज  पूरी दुनिया में भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जा रही है। कायस्थ जाति में उत्पन्न  लोग ही नहीं अन्य भी कलम दवात की पूजा में शामिल हो कर कर अपने आप को शिक्षित व जागरूक कर रहें हैं। भगवान चित्रगुप्त से भक्तों की विनती होती है कि राज्य में अमन चैन ,शांति  भाईचारा कायम रहे।  तमाम लोग तरक्की करें। ऐसी मान्यता है कि भगवान चित्रगुप्त मनुष्यों के कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं और मृत्यु उपरांत मनुष्य के किए गए कर्मों के अनुसार ही स्वर्ग और नरक निर्धारित होता है । इस दिन कायस्थ परिवारों ने कलम और दवात की पूजा की। चित्रगुप्त भगवान को यमराज का सहयोगी माना जाता है।


समाचार अनुभाग . बिहार/ दीपावली. १२/१  

 धनतेरस के शुभ दिन : बिहारशरीफ के ज्वेलरी  शोरूम में हुई ख़रीददारी 
 
 बिहारशरीफ के भराव पर एम जी रोड स्थित तनिष्क शोरूम  फोटो :  डॉ. मधुप. 

नालन्दा / संवाद सूत्र . धन तेरस का दिन समीप है। शनिवार व रविवार दोनों दिन धनतेरस की खरीदारी होनी है । दोनों दिनों  का शुभ मुहूर्त होने से तनिष्क बिहारशरीफ आपके लिए अपने शुद्ध व आकर्षक गहनों के रेंज के साथ  पूरी तरह तैयार है। धन्वन्तरि जयंती के अवसर पर  बजे से ही सुन्दर आतंरिक साज सज्जा वाले तनिष्क का भव्य शोरूम ग्राहकों के लिए खुला। 
तनिष्क, भारत के सबसे बड़े रिटेल ब्रांड और टाटा परिवार का हिस्सा। शुद्धता, पारदर्शिता, कलात्मकता और ग्राहक की संतुष्टि ही तनिष्क की प्राथमिकता है। 
शहर के भराव पर, महात्मा गाँधी  रोड स्थित तनिष्क शोरूम के मैनेजर अमित कुमार हमसे खास बात चीत के सिलसिले में बतलाया कि  इस धनतेरस खास आप ग्राहकों के लिए नई अलेख्या कलेक्शन की पूरी रेंज को प्रस्तुत किया है। गले के हार, कान की बालियां, हाथों से बने कलात्मक आभूषण सैकड़ों साल पुरानी लोककला एवं राजस्थान की पिचवाई और मिनिएचर पेंटिंग से प्रेरित है जिसकी अद्भुत आभा बेमिसाल है । इसका हर गहना अपने उजले दमकते रूप रंग में खिलखिलाता है। 
साथ उन्होंने यह भी कहा कि हमारे यहाँ आप अपने पुराने गहनों  पर चाहे वे किसी भी ज्वेलर से ख़रीदे गए हो सौ प्रतिशत एक्सचेंज मूल्य का ऑफर भी पा सकते है। 
संचालक गुप्ता ब्रदर्स ने बताया कि धनतेरस पर ग्राहक को गोल्ड ज्वेलरी के मेकिंग पर व  डायमंड ज्वेलरी के मूल्य पर २० फीसदी तक की छूट दी जा रही है। उन्होंने बताया कि भीड़ से बचने के लिए लोग अभी से अग्रिम बुकिंग करा रहें  हैं। वेडिंग कलेक्शन की हैवीवेट व लाइटवेट  की कलात्मक श्रृंखला इस बार
धनतेरस में आपको काफी पसंद आएगी।
मुन्ना लाल महेश लाल आर्य का मशहूर शो रूम : दूसरी तरफ़ धनतेरस के शुभ अवसर पर  बिहारशरीफ़ की एक अन्य ज्वेलरी  मुन्ना लाल महेश लाल आर्य का मशहूर शो रूम भी अपनी पूरी तैयारी के साथ ग्राहकों का स्वागत करने हेतू तैयार है। सोने ,चांदी, हीरे व जवाहरात  के निर्मित ढ़ेर सारे खूबसूरत आभूषण इस वर्ष लाए गए हैं जिसमें कलात्मकता के साथ साथ ग्राहकों के पसंद का भी पूरा ख्याल रखा गया है। ज्ञात हो मुन्ना लाल महेश लाल आर्य की ज्वेलरी शॉप नालंदा जिला मुख्यालय बिहारशरीफ़ शहर की प्राचीन व प्रतिष्ठित शो रूम  रही है। 
मुन्ना लाल महेश लाल आर्य ज्वेलरी के प्रोपराइटर अतुल रस्तोगी ने हमसे बात चीत के सिलसिले में बतलाया कि हमने गहनों के कुछ विभिन्न आइटम्स में यथा गोल्ड ज्वेलरी की  मेकिंग चार्जेज में ३५  प्रतिशत तक़ छूट ,२५  प्रतिशत की छूट डायमंड वैल्यू पर तथा ५०  प्रतिशत की छूट सिल्वर ज्वेलरी एवं वर्तन मेकिंग में सुनिश्चित की है जो निःसंदेह कस्टमर्स के लिए आकर्षण का विषय होगा ।



 
धनतेरस में हुई जमकर ज्वेलरी की ख़रीददारी : फोटो डॉ.मधुप 

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समाचार अनुभाग . उत्तराखंड  / दीपावली. १२/०  
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हल्द्वानी नैनीताल में रही धनतेरस की चहल पहल. 
रवि शंकर शर्मा. / हल्द्वानी. नैनीताल.



लडियों से सजा माँ नैना देवी का मंदिर 

नैनीताल  / संवाद सूत्र .प्रकाश पर्व दीपावली की आहट के साथ ही लोगों के मन मस्तिष्क तरंगित हो उठते  हैं। आज धनतेरस है। धन्वन्तरि जयंती भी।  बाज़ार में गहमा गहमी है। साल हुए हमने कोरोना के डर पर हमने विजय प्राप्त कर ली है। हल्द्वानी से लेकर रामनगर तथा लालकुआं से लेकर कालाढूंगी क्षेत्र तक के बच्चों, युवा और बुजुर्गों में अभी से विशेष उत्साह देखा जा रहा है। इस बार लोग जम के इस धनतेरस की ख़रीददारी करेंगे ऐसा कुछ प्रतीत हो रहा हैं। झीलों की नगरी नैनीताल में माँ नैना देवी की सजावट देखी जा सकती है। मॉल रोड की दुकानों में सजी लड़ियाँ और झालरें नैनी झील में प्रतिबिम्बित हो रही थी।
दीपावली के लिए इलेक्ट्रॉनिक अप्लायंसेज तथा ज्वेलर्स की दुकानें झालरों की विशेष साज-सज्जा के साथ खरीदारों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। सभी ने डिस्काउंट के बड़े-बड़े होर्डिंग के साथ ही अपने प्रतिष्ठानों के समक्ष बड़े-बड़े बोर्ड लगाकर उन पर ३० से  ५० प्रतिशत  तक की छूट का प्रचार करना शुरू कर दिया है। वहीं कार डीलरों तथा गारमेंट्स उद्योग ने भी विशेष छूट के आफर ग्राहकों के लिए प्रस्तुत किए हैं। 
दीयों के साथ ही लक्ष्मी - गणेश समेत अन्य मूर्तियों का बाजार भी शहर के बाहरी क्षेत्रों में पूरी तरह शबाब पर है। वहीं से फुटकर विक्रेता दीपक व मूर्ति आदि लेकर ठेलों के माध्यम से गली- मोहल्लों में चक्कर लगा रहे हैं। पिछले वर्ष कोरोना की महामारी के बाद मिट्टी के सामान के विक्रेताओं में विशेष उत्साह है तथा उन्हें लगता है कि इस बार उनकी दीपावली भी खूब रौनक वाली होगी। 


हल्द्वानी में धनतेरस के अवसर पर धातुओं का कारोबार : फोटो साभार.

प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों ने भी बैठक कर पटाखा विक्रेताओं को विशेष निर्देश दिए हैं। पटाखों की बिक्री रामलीला ग्राउंड में तीन दिन तक होगी तथा सख्त नियम-कानूनों का पालन करना होगा। इसी प्रकार दीपावली के दिन भी पटाखे छुड़ाने के लिए समय निर्धारित कर दिया गया है। पर्वों पर शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अमन कमेटियों का गठन किया गया है, जो कि नागरिकों के साथ बैठक कर विशेष हिदायतें दे रहे हैं।
अभी हाल ही में करवाचौथअहोई अष्टमी पर्व बड़े धूमधाम और आस्था के साथ मनाने के बाद महिलाएं भी उत्साह से दीपावली का इंतजार कर रही हैं। महिलाएं घरों की सफाई के साथ ही ड्राइंग रूम को भी विशेष रूप से सजाने में लगी हैं। खाने-पीने के सामान की भी तैयारी चल रही है। इस बार कोरोना संक्रमण में कमी होने के कारण मेहमानों की किस प्रकार अगवानी करनी है, इस पर भी डिस्कशन चल रहा है। 
झालरों व फूलों की मालाओं से घरों की सजावट धनतेरस से शुरू होनी है। धनतेरस पर कौन सी ज्वेलरी अथवा सिक्के खरीदने हैं, इसकी चर्चा महिलाओं में खास है। लोगों के उत्साह को देखते हुए बर्तन बाजार भी मुख्य बाजारों में सज चुके हैं और वहां भी कई प्रकार की छूट देने की घोषणा की गई है। बड़े मॉल व मेगा मार्ट में तो तमाम उत्पादों पर एक सामान फ्री देने के पेम्फलेट वितरित किए जा रहे हैं। तमाम तरह की छूट के मैसेज भी लोगों के मोबाइल पर प्रतिदिन आ रहे हैं।
फल एवं सब्जी बाजार में भी दीपावली निकट आने के साथ ही तेजी देखी जा रही है। फल व सब्जियों के दाम दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। इससे उपभोक्ताओं में मायूसी देखी जा रही है। फिर भी बाजार में तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद लोगों में खास उत्साह और उल्लास देखने में आ रहा है। 

रवि शंकर शर्मा. / हल्द्वानी. नैनीताल


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नालंदा की प्रसिद्ध दिवाली : न्यूज़ रिपोर्टिंग : डॉ.मधुप
 
नालंदा की प्रसिद्ध दिवाली : न्यूज़ रिपोर्टिंग : डॉ.मधुप 

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पृष्ठ १३ . मंजूषा : शुभकामनाएं. 
दिल से तुमने कहा.
संपादन : वनिता.   
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supporting.

दिल से तुमने कहा.
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wishing you a very Happy Diwali and Chhath.

wishing you a very Happy Diwali and Chhath.

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दिल से तुमने कहा.
ग़जल : डॉ.आर.के.दुबे 

Comments

  1. Picture gallery is awesome. Nice collection and Nice editing, Mam . Collection is too good . Loved it

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  2. करवा चौथ पर प्रियंका सौरभ का आलेख एवं मधुप रमन का सम्पादन- सह- लेखन प्रशंसनीय है |

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  3. Photo gallery of Deepawali is just wow... Waiting for more such photos

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  4. Wow! Superb news reporting. A big round of applause for u...

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  5. अति मनमोहक तस्वीर, सुन्दर आवरण अच्छी प्रस्तुति

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  6. भाषा शैली अत्यंत ही सुंदर है और साथ ही में जैन मंदिर का वर्णन इतने अच्छे रूप से किया गया है कि ऐसा लगता है कि हम आंखों के सामने पावापुरी जल मंदिर को देख रहे हैं

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  7. एक मोहक प्रस्तुति , पावापुरी और इसकी दिवाली को बिम्बों के सहारे शानदार उकेरा है आपने।लगता है उन सारे रंगों को अपनी बाहों में लेकर हमें सौंप दिया है।

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