Vande Matram : 15 August

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Vande Matram. 
15 August.   
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A Live / Archive  Blog Magazine Page.
बन्दे मातरम.  
Volume 1.Series 2.
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वन्दे मातरम. 
संस्कृति पर्यटन सभ्यता विशेषांक.३. 
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.आवरण पृष्ठ :०.


बन्दे मातरम : सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम् : फोटो : 
शक्ति. प्रिया 
डॉ.सुनीता सीमा. 
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सम्पादकीय. 
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सम्पादकीय : पृष्ठ : २.
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संपादकीय शक्ति समूह.
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प्रधान शक्ति संपादिका.


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शक्ति : शालिनी रेनू  नीलम 'अनुभूति '
नव शक्ति. श्यामली डेस्क.शिमला.
संस्थापना वर्ष : १९९९. महीना : जनवरी. दिवस : ५.


शक्ति. कार्यकारी सम्पादिका.


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शक्ति. डॉ.सुनीता शक्ति* प्रिया.
नैना देवी.नैनीताल डेस्क.
प्रादुर्भाव वर्ष :१९७०.
संस्थापना वर्ष : १९९६. महीना : जनवरी : दिवस : ६.

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शक्ति. डॉ. रत्नशिला. आर्य डॉ. ब्रज भूषण सिन्हा: शिवलोक हॉस्पिटल : बिहारशरीफ : समर्थित. 

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तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : शक्ति : सम्पादकीय :प्रस्तुति. पृष्ठ :४.
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वन्दे मातरम : स्वतंत्रता दिवस..
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वाराणसी डेस्क.
शक्ति नीलम अनुभूति शालिनी प्रीति.

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ए एंड एम मीडिया शक्ति प्रस्तुति.
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शक्ति आलेख : ४ / ०
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ऑपरेशन सिंदूर को देखने, समझने देखने की कोशिश.
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शक्ति. क्षमा कौल.

शरणार्थी कवयित्री लेखिका. जम्मू.
लेखिका स्वयं प्रत्यक्ष दर्शी है कश्मीरी हिन्दुओं के पलायन की
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हिंदू का शरणार्थी शिविर में रहना और : हिंदुस्तान में हिंदू का जिनोसाइड : इससे बड़ी कौन त्रासदी हो सकती है ? इसमें भविष्य के भारत के लिए, हिंदुओं के लिए, भारत के मूल धर्म सनातन के लिए, भारतीयता के लिए तथा सर्वोपरि भारत की क्षेत्रीय अखंडता के लिए बड़ी अशुभ सूचना थी।एक समुदाय का सफ़ाया।
धर्म के नाम पर सेक्युलर भारत में यह विराट त्रासदी सम्भव हुई। इस त्रासदी में से जो हिंदू समुदाय के, मुझ जैसे कुछ विधाता की इच्छा से बच गए लोगों के लिए यह सारा महाविनाश का प्रकरण, और राज्य द्वारा इसे होने देने का दृश्य देखना एक गहरे शोध, चिंतन, मनन, और बोध का गहन विषय था। क्योंकि यह बहुत सी उन व्यवस्था - पद्धतियों पर प्रश्न चिन्ह लगाता है जिनको भारत में ठीक तथाकथित स्वतंत्रता के बाद लागू किया गया था। उनका भयावह दुष्परिणाम था / है।

ऑपरेशन सिंदूर को देखने,समझने देखने की हमारी नन्ही कोशिश : फोटो शक्ति डॉ. सुनीता सीमा प्रिया .
जिहाद की भयावहता : यादें कश्मीरी हिंदू होने के कारण एवं जिहाद की भयावहता का शिकार होने के कारण साफ है कि 'ऑपरेशन सिंदूर को देखने, समझने एवं उस पर टिप्पणी करने की मेरी दृष्टि भिन्न होगी। कि १९ जनवरी १९९० की उस भयावह रात को ही रात्रि के डेढ़ बजे से पहले पहले पाकिस्तान पर आक्रमण हो गया होना चाहिए था, यह जिनोसाइड न हुआ होता। एक श्रेष्ठ मानवता, एक प्राचीनतम भव्य समुदाय जो भारत की मानव संसाधन सम्पदा है, नष्ट न होती। भारत के भीतर खतरे न बढ़ते । हम सब : अपने देश में ही शरणार्थी कश्मीरी हिंदू समुदाय तब भारत सरकार की ओर निरीह, कातर दृष्टि से देख रहे थे, प्रतीक्षा कर रहे थे कि किसी भी क्षण वह पाकिस्तान पर एक भयानक आक्रमण करेगा और हमारा बेघर होना रुकेगा और भारत की न सिर्फ क्षेत्रीय अपितु साभ्यतिक, सांस्कृतिक अखण्डता भी अक्षुण्ण रहेगी।
खैर हमें मानवता न माना गया, न अमूल्य मानव संसाधन ही। देश पर इसका भयंकर दुष्प्रभाव यह पड़ा कि जिहाद बड़े मज़े से पलता रहा, फैलता रहा।
विदेशी ताक़तें भारत में मज़े करती रहीं और अपने कार्यक्रम निर्बाध चलाती रहीं। धडाधड घुसपैठ बढ़ गई और उन खूंखारों को भारत में खादपानी मिलता रहा कि समाधान और और जटिल और कठिन होते गए। जब हम दर दर भटक रहे थे, तब हमें ही दोषी बताया गया, जिसका अर्थ यही प्रचारित हो गया कि हिंदू होना महापाप है।
हिंदू होने के इस महापाप का फल हम जिहादी उपक्रमों के बाद राज्य और देश के लोगों की सोच और समझ के हाथों भोग रहे थे। भोग तो देश के अन्य हिंदू भी रहे थे, पर हम सचेत और सजग होकर भोग रहे थे, देश के अन्य सामान्य हिंदू घर में भोग रहे थे और हम दर दर भटक कर बेघर हुए भोग रहे थे। हमें उनके अबोध और अचेत पर दुख था पर उन्हें अपने विराट, विशाल और अपने धर्म को न समझने के अबोध का आनंद था।
युद्ध तो उसी दिन से घोषित हो गया था जिस रात हमारे जिनोसाइड का कार्यक्रम आरंभ किया गया और हमें धर्म के आधार पर साफ किया गया था । गीलानी, जिसे भारत सरकार सभी सुविधाएँ और पेंशन देती थी विशिष्ट सम्मान देती थी, देश विदेश में अपनी भारत-भंजन की बात रखने की उदारता प्रस्तुत करती थी वह भी लोकतंत्र के नाम पर।जो दिल्ली के हृदय स्थलों पर कहा करता कि..... कश्मीर बनेगा पाकिस्तान। और तीन स्थान अल्लाह ने जिहाद और गजवाए हिंद के लिए तय रखे हैं, वह हैं, कश्मीर, पाकिस्तान और टर्की । दुख यह था कि इन्हें बोलने की स्वतंत्रता थी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, यही लोकतंत्र था, यही सेक्युलरज्मि था। यदि हम दोनों तरफ़ से मारे गए लोग अर्थात् भारत के शत्रु जिहादी से निष्कासित तथा राज्य से प्रताड़ित, उत्पीडित और उपेक्षित, कुछ कहते तो उसे घृणा फैलाना कहा जाता, उसे धार्मिक उन्माद कहा जाता, उसे असत्य कहा जाता।



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महाशक्ति मीडिया प्रस्तुति 
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शक्ति. आलेख ऑपरेशन सिंदूर
गतांक से आगे : १.
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जब परिवर्तन अस्तित्व में आने लगा
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शक्ति. क्षमा कौल.जम्मू

हमारे निष्कासन के बाद जिहाद ने तेज़ी से पैर फैलाए। स्थान स्थान पर आतंकी आक्रमण किए। हिंदुओं का खून बहाया। मुम्बई, दिल्ली, बनारस, भारतीय संसद, उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान इत्यादि में हौलनाक घटनाएँ हुई। राजनेताओं का इस पर विचित्र विचित्र विचार था। इससे हमने समझ लिया कि समूचा भारत कश्मीर बन चुका है और इसमें राजनीति की सहमति है और शत्रु ही भारत पर राज्य कर रहा है। क्योंकि प्रथम बृहद् चरण में जिहाद कश्मीर में हिंदुओं का सफल और निर्वाध जिनोसाइड करने में परम सफल हो गया था।
अमरनाथ श्राइन बोर्ड को बालटल में अन - उपजाऊ भूमि : ००८ ईस्वी में एक भयानक स्थिति उत्पन्न हुई पुनः, जब श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को बालटल में अन - उपजाऊ भूमि, श्री अमरनाथ यात्रा के प्रबंध कार्य हेतु जो आवंटित की गयी थी, उस आबंटन को राज्यपाल एन एन वोहरा ने जिहादियों के और जिहादी नेताओं जैसे गीलानी, महबूबा मुफ्ती, तथा उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला इत्यादि के दबाव में आकर, देश और हिंदुओं के स्वाभिमान और अधिकारों को ताक पर रख कर रद्द किया।
तब दो मास तक जम्मू के लोगों ने तीव्र किंतु अत्यंत शांति पूर्ण एवं अनुशासित आंदोलन किया। तब संसद के एक आपातकालीन सत्र में जो परमाणु निरस्त्रीकरण पर चर्चा से सम्बन्धित था, में उमर अब्दुल्ला ने कहा था, " मैं मुसलमान हूँ पर फ़िरकापरस्त नहीं हूँ, श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को एक इंच जमीन नहीं दूँगा।"
सेक्युलरिज्म, लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था : इस पर कांग्रेसियों ने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने कुछ ज्यादा ही बढ़ चढ़ कर मेजें ऐसे थपथपाई थीं कि मानो जैसे भारत एक इस्लामी देश हो। कि विपक्ष अवाक रह गया था।
और जम्मू के हिंदू घायल, आहत, अपमानित, दुखी इस हद तक कि कइयों ने जहर खाकर जान दे दी। इस जान देने ने इन आहत दुखी लोगों को इस आंदोलन को और तीव्र बनाने को प्रेरित किया। यहाँ अच्छे से समझ लिया हमने कि भारत में भारतीय मन को किस प्रकार विगलित किया गया है। इस भयंकर धीमे और मीठे राजनीतिक जहर से, जिसमें कार्य कर रहा सेक्युलरिज्म, लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था की भयंकर सम्मति है। इस सब में मीडिया का इतना भयानक तंत्र है जो सफल बना रहा है हर अभारतीय और असत्य के नैरेटिव को।
यह अघोषित युद्ध चलता रहा। संसद में लोग और विचार बदलते गये । धीमे धीमे सामान्य हिंदू बदल गया। पर शासन प्रणाली,पद्धति और विधियां नहीं बदलीं। मानवाधिकारों की परिभाषा न बदली। बड़े हुए साहस की आदत ने जिहादी एजेंडा चलाने वालों को जो निर्भीकता दी थी उसके चलते वे अपना काम जारी रखने के चक्कर में सक्रिय रहे। किंतु अब मन बदल गया था शासक का, भले ही शासन की विधियाँ न बदली हों और सर्वोपरि मन बदल गया था हिंदू का।
हिंदू का भारत बोध, स्थान बोध और धर्म में स्वाभिमान को देखने की भावना प्रबल होने लगी और फैलने लगी। हिंदू की खण्डित चेतना कुछ कुछ जुड़ने लगी। यह हमारी प्रार्थनाओं, तपस्या का फल जैसा था चाहे कम कम ही सही।
गोधरा जैसी भयानक महात्रासदी : और परिवर्तन अस्तित्व में आने लगा ठीक गोधरा नरसंहार के बाद । गोधरा जैसी भयानक महात्रासदी में हुए हिंदुओं के बलिदान का एक अच्छा परिणाम यह हुआ कि यकायक हिंदू जागृत हुआ और उसे कश्मीर के जिहाद के शिकार हम कश्मीरी हिंदुओं की सी पीड़ा अनुभव होने लगी। मुझे गुजरात से कितने ही लोगों के पत्र मिलने लगे जो कि मुझसे मेरी पीड़ा उन्हें समझाने की इच्छा व्यक्त करने लगे।
लेखकों कलाकारों में तहलका मच गया। वामपंथी लेखकों में दो फाड़ हो गए। सत्य को समझना और बोलना कुछ लेखकों ने आरंभ किया। कट्टर लोगों के कुतर्क ध्वस्त होने लगे। देश विरोधी राजनीति का खेल और उसका विरोध करने का साहस सामान्य भारतीय में आने लगा। साफ़ साफ यह बात मानने लगे और बोलने लगे कि युद्ध होना चाहिए और स्थिति को एक बार ही सुधार देना चाहिए। मन को जैसे कुछ कुछ अच्छा और जीवन में जीवन की वापसी की आशा जैसा भी लग रहा था। क्योंकि कोई तारक उदय हो गया हो जैसे, यह तारक था हिंदू का सामूहिक मन जो जग मग करता टिमटिमा भी रहा था। इस क्षीण प्रकाश में हमने देखा देश के भीतर देश द्रोह को देश प्रेम बताने वाले बौद्धिकों का हास्यास्पद और घृणित नैरेटिव निर्माण का उद्योग, जो हमें बराबर दिख रहा था वह देश की सामान्य जनता को भी दिख रहा है। आवरण धीमे धीमे हट रहा है।
ऊडी सर्जिकल स्ट्राइक : २०१४ के बाद आशा निराशा की छुपन छुपाई के खेल में पाकिस्तान और जिहाद को यह समझाने का प्रयास भारत राज्य की ओर से होना शुरू किया गया कि भारत, भारतीयता एवं हिंदू का स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ अब नहीं चलेगा।
आतंकी आक्रमणों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाना राज्य की नीति बनना आरंभ हुई, इस बीच भीतर का वातावरण देश विरोधी जिहादी तत्व एवं उनका समर्थन करने वालों ने सुलगाहट, उकसाव उत्पन्न करना जारी रखा। सोथल मीडिया का उदय भी भारत उदय के लिए सशक्त अस्त्र की तरह बन गया।
शत्रु भारत में परिवर्तित इस राज्य तंत्र से पगलाया, बौखलाया।
ऊडी में सीआर पी एफ पर भीषण आक्रमण किया। किंतु उसके उत्तर में सर्जिकल स्ट्राइक ने उसकी हवा निकाल दी। भीतर बाहर शत्रु समझने लगा कि भारत बदल रहा है। कुछ समय बाद पुनः पाकिस्तान ने 'पुलवामा ' का दुस्साहस कर भारत और भारत की बदलती परिस्थितियों को चुनौती दी किंतु.....


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महाशक्ति मीडिया प्रस्तुति 
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शक्ति. आलेख : पहलगाम : ऑपरेशन सिंदूर
गतांक से आगे : २.
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शक्ति. क्षमा कौल.जम्मू


पहलगाम के 
बाइसरण  की यादें :  बर्बर हत्याकांड : शक्ति. डॉ. सुनीता मधुप : फाइल फोटो 

ऑपरेशन बालाकोट  : ऑपरेशन बालाकोट तथा उस समय की सभी कार्यवाहियों से पुनः पाकिस्तान की कमर टूट गई। अपनी अचूक कूटनीति से अभिनन्दन को वापस प्राप्त किया गया। पहले की पार्टियाँ जिस प्रकार की राजनीति करती थी उसमें कायापलट होने से सिर फिर गया दुश्मन का। जिस भयानक पराजय की उसे ठीक १९९० ईस्वी से आदत न थी वहीं ध्वंस उसे परिणामों में अब मिलना आरंभ हुआ ।
भारत का हर व्यक्ति अब पूर्ण रूप से पाकिस्तान के साथ युद्ध के पक्ष में खड़ा हो गया खुलकर । 
'आर पार का युद्ध' । मैंने बहुत ही अधिक संक्षेप में उपर एक क्रमिक इतिवृत्त बताया अपने जिनोसाइड के बाद के घटनाक्रम का। 
ऑपरेशन सिंदूर तक पहुँचने की नौबत : इससे 'ऑपरेशन सिंदूर तक पहुँचने की नौबत का कारण और महत्व समझने के लिये सम्भवतः सहायता मिलेगी । जब जीवन मृत्यु से भी भयावह हो उठे तब युद्ध में ही साफ सुथरा, चिरकालिक और प्रतिभूति सम्पन्न जीवन की सम्भावना बनती है, और युद्ध ही एक विकल्प बचता है। विकल्पहीन विकल्प ।
हम समझते हैं कि पाकिस्तान का हौसला इसलिए बना और बढ़ता रहा क्योंकि भारत ने उसे क्षमा दान ? दिया, विशाल हृदय ? दिखाया जिसका दुरुपयोग वह बराबर करता रहा ।
पहलगाम के पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलीबारी  : २२ अप्रैल २०२५ का काला दिन, पहलगाम के पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलीबारी और नरसंहार, वह भी धर्म पूछ पूछ कर । इस आक्रमण में इतना बड़ा दुस्साहस और क्रूरतापूर्ण संदेश था राष्ट्र के लिए, राष्ट्र-जीवन के सभी अवयवों के लिए, कि जिसका उत्तर युद्ध के इतर कुछ नहीं हो सकता। 
इस त्रासदी ने पूरे संसार को अवाक् कर दिया और देश को अकथनीय रूप से व्यथित । इस पर्यटन स्थल पर देश के लगभग हर प्रांत, प्रदेश तथा कुछ एक विदेशी पर्यटक भी उस नरसंहार का शिकार हो गए। इस भयावह वैश्विक त्रासदी ने हम जैसों को और बेबसी और निरीहता के हवाले कर दिया, राज्य और राष्ट्र में भयावह क्रोधाग्नि भड़का दी। 
हममें निरीहता और बेबसी मैंने इसलिए कहा क्योंकि हम एक मात्र भारतीयों का ऐसा एक झुंड है जो इस तरह की भीषणतम आक्रामकों के मन, संदेश और मनोविज्ञान समझते हुए यह गहराई से समझता और राष्ट्र को समझाता रहा कि इस शत्रु का युद्ध के अतिरिक्त किसी अन्य उपाय से नाश नहीं किया जा सकता। किंतु सदा ही यह शत्रु हमारी और युद्ध जैसे आक्रमण से किसी न किसी भीतरी, बाहरी, अंतरराष्ट्रीय भारत राज्य पर दबाव के कारण बच गया। और हम थे जो जानते थे पानी सिर के ऊपर से जाने देने से पूर्व इस शत्रु का युद्ध से ध्वंस किया जाए।
धन्यवाद ईश्वर का कि अब के वे लोग सत्ता में नहीं जिन्होंने इस राष्ट्र को उत्तरोत्तर नीचे किया, स्वाभिमान-विहीन कर दिया । कारण- स्वरूप 'ऑपरेशन सिंदूर' की घोषणा हुई।
बाइसरण' के बर्बर हत्याकांड : २२ अप्रैल से छः मई तक भारतीय जन मन आकुल व्याकुल रहा, पर अब के राज्य में लोगों के विश्वास और आशा के साथ कार्यवाही की प्रतीक्षा करता रहा। मीडिया और सोशल मीडिया ने स्पष्ट कर दिया कि वास्तव में बाइसरण, पहलगाम में क्या क्या हुआ। 
कितना अमानवीय हत्याकांड। हमने जिहादी मानसिकता वाले अधिकतर कश्मीरी मुसलमानों को हंसते और विजेता की मुखमुद्रा के साथ देखा और पहचाना, क्योंकि हम उनके मन को जितना समझ सकते हैं, संसार में कोई ही समझ सकता।  
मगर हमने यह भी देखा कि शेष देश के लोगों ने भी उनके इस विजय भाव को समझा। जो बेहद घातक और अपमानपूर्ण था । पहलगाम, बाइसरण' के बर्बर हत्याकांड में हत्यारे ने उस. स्त्री को, जिसने उसे क्रूरता से विधवा कर दिया था, 
बड़ी ऊँची आवाज़ में कहा था कि,' जाओ मोदी से कहो !'; जब उस युवा स्त्री ने उसे कहा था,' मुझे भी मारो', जब उस स्त्री ने उस जिहादी आतंकी से अपने लिए भी मृत्यु माँगी थी। हाय! इस संसार में इससे अधिक हृदय विदारक क्या हो सकता है?
पर्यटकों के आने का अर्थ हालात का सामान्य होना न  माना जाता : इतने विकास, इतने मानवीय व्यवहार, इतने लाड- प्यार, इतनी स्पेस, के बावजूद इस प्रकार की क्रूरता, यह राक्षसत्व, इस प्रकार की घृणा ! कृतघ्नता की पराकाष्ठा। एक हज़ार वर्षों से निरंतर चलती सदाशयता और सद्भावना का उतर निरंतर कृतघ्नता । हाय! यह कितना पीड़ादायक है? 
ऐसा न होता तो करोड़ों पर्यटकों के आने का अर्थ हालात का सामान्य होना न माना जाता।' एक हज़ार साल से अब जिहादी ने समझ लिया है कि उसे संसार समझ तो रहा है पर ऐसा नाटक कर रहा है कि मैं वास्तव में तुम्हें नहीं समझ रहा, मैं तुम्हें समझ कर भी तुम्हें नहीं जता सकता कि मैं तुम्हें समझ गया हूँ। रहा हूँ। मैं तुम्हें असली तरीके से उत्तर नहीं दे सकता ।'
अतः इसका उत्तर है निरंकुश युद्ध। बर्बर हत्याकांडों के विरुद्ध एक घोषित युद्ध। पूर्ण युद्ध। यदि भारत को भारत के रूप में, मानवता के स्त्रोत के रूप में, पृथ्वी के सिरमौर और आदिभूमि के रूप में, इस पृथ्वी को अंततः दुर्दातों की दुर्दातता से बचाने के लिए बचना है तो युद्ध और युद्ध ही अब अंतिम समाधान है। इस बीच जब पाकिस्तान गिड़गिड़ाने लगा कि 'युद्ध न करें कृपया, हम नष्ट हो जाएँगे तब इस बात की और पुष्टि हो गई कि हाँ शत्रु अब काँप रहा है। हमारी ओर से युद्ध से वह कॉपता है, हमारी ओर से युद्ध से वह काँपता है ,अत: अबिलंब  युद्ध घोषित  हो ।


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महाशक्ति मीडिया प्रस्तुति 
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शक्ति. आलेख : पहलगाम : ऑपरेशन सिंदूर
गतांक से आगे : ३ .
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जब युद्ध विकल्पहीन विकल्प हो :
शक्ति. क्षमा कौल.जम्मू
प्रधान सम्पादिका
राधिका कृष्ण रुक्मिणी ब्लॉग मैगज़ीन


पहल गाम : बर्फ़ से  लदी घाटियां  और साथ बहती लिद्दर नदी : वीरानगी : फोटो : डॉ. मधुप. 

जब युद्ध विकल्पहीन विकल्प हो : मानवता के स्त्रोत के रूप में, पृथ्वी के सिरमौर और आदिभूमि के रूप में, इस पृथ्वी को अंततः दुर्दातों की दुर्दातता से बचाने के लिए बचना है तो युद्ध और युद्ध ही अब अंतिम समाधान है। इस बीच जब पाकिस्तान गिड़गिड़ाने लगा कि 'युद्ध न करें कृपया, हम नष्ट हो जाएँगे ' तब इस बात की और पुष्टि हो गई कि हाँ शत्रु अब काँप रहा है। हमारी ओर से युद्ध से वह काँपता है, अतः अविलंब युद्ध घोषित हो ।
इस व्यापक आशा और समझ बनने से एक स्वाभिमान- सिक्त वातावरण बन गया पर देश के सेक्युलरिस्टों, देशद्रोहियों ने युद्ध के विरोध में क़सीदे पढ़ने आरंभ किए, शांति के पाठ पढ़ने और उपदेश देने, सलाह देने आरंभ किए।
यह भी बताया कि किसी मुसलमान घोड़े वाले की भी मृत्यु इसमें हो गई है, यही गाते बजाते रहे कि मुसलमान भी मर गया ... यही मुख्य स्वर बनने लगा,
धर्म पूछकर, कलमा पढ़ाकर, पेंट खोलकर देखने के बाद मृत्यु के घाट उतारना, इस बर्बरता के सत्य को वे अपनी आदत से पीछे धकेलने लगे।
महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला इत्यादि सब युद्ध को खराब कहने लगे पर इस बर्बर आतंकी जनसंहार पर मौन रहे। फिर राग अलापने लगे कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता है।
अब सुख और सुकून की बातें आरंभ हुई। मैं ऊपर कह चुकी हूँ कि जब युद्ध विकल्पहीन विकल्प हो तो युद्ध ही जीवन की प्रतिभूति है, चाहे उसमें बलिदान ही क्यों न हो व्यक्ति। यही अंतिम निष्कर्ष १९ जनवरी १९९० की उस कालरात्रि को निकला था और उसके बाद की सटीक उतर देने की रात ६ अप्रैल की रात को आई थी।
ऑपरेशन सिंदूर : इस रात्रि डेढ़ बजे अजीब संयोग है कि उस रात के एक बजे प्रलयंकारी गर्जनाएँ हुई थीं और नरसंहार का आरंभ, उसका उतर इस रात्रि डेढ़ बजे हो गया ऑपरेशन सिंदूर ' की घोषणा के साथ। काल पुरुष की गणना अपने ढंग से विचित्र और अबूझ होती है, कि कभी कभी किसी एक युगांतकारी रात अथवा उतर देने वाला दिने अथवा रात कई कई दशकों, शताब्दियों के बाद आता है।
प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी, गृहमंत्री श्री अमित शाह, रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह ने बैठकों पर बैठकें की, बैठकें जारी थीं, विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर, सुरक्षा सलाहकार श्री अजित डोवाल इन सब की अहर्निश सक्रियता राष्ट्र को आश्वस्त किए जा रही थी।
राष्ट्र इस कदर एक हो गया था कि जितने भी विरोधी स्वरं थे, जो भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कहने के लिए आ जाता,उसे राष्ट्रीय एकता के हाथों आड़े हाथों लिया जाता। अतः बाइसरण के बलिदान ने एकता का वरदान दिया ही था। एकमत होने का भी ।
कुछ न कुछ तो होना था। शत्रु का मुँह तोड़ना था। सब की संवेदनाएँ, आशीर्वाद, आकांक्षाएँ एकत्रित होकर एक महा- इच्छा बन गई थी। मीडिया से संकेत मिल रहे थे कि राष्ट्र के सभी सेना अनुषंग सटीक तैयारी कर रहे हैं, अतः प्रतीक्षा अब बुरी नहीं लग रही थी।
कुछ निर्देश जारी हुए, जिनका अनुपालन हमने किया। हर क्षण यों भी पिछले साढ़े तीन दशक से हमारे हृदय में भारत की चिंता सुलगती जा रही थी। तब उस निरंतर की अग्नि के शांत होने, उसमें पूर्णाहुति का क्षण समीप आ रहा था, ऐसी आशा हमें होने लगी ।
युद्ध की तैयारियां लिए गए अच्छे निर्णय : युद्ध की तैयारियों की अवधि में बहुत सी अच्छे अच्छे निर्णय हुए, जिनसे इस राष्ट्र के खोए स्वाभिमान में नव जीवन का संचार सा होता लगा। ये निर्णय निम्नलिखित हैं: -
१. सिंधु जल- सन्धि का निरस्त करना, भारतीय स्वतंत्रता के बाद पहली बार। इस सम्बन्ध में हम ( मैं और मेरे पतिदेव आपस में विशेष प्रसन्नता को व्यक्त करते, क्योंकि हमें महबूबा मुफ्ती की वह दलील याद आती जब वह भारत सरकार : अटल बिहारी वाजपेयी के सत्ता काल में से अपनी अनर्गल माँगें रखते हुए यह विचित्र माँग भी रखती कि जो जल वह सिंधु का पाकिस्तान में जाने देते हैं उस जल की मूल्य राशि भारत सरकार उन्हें : कश्मीरी मुसलमानों : को दें, क्योंकि वह उनका पानी है।
इस माँग को सुनकर हम हंसते भी थे और दुखी और कुद्ध भी होते कि किस सीमा तक भारत राज्य और राष्ट्र को इन कश्मीरी मुसलमान नेताओं ने मूर्ख समझ रखा है। ये बातें शेष देश की समझ में कहाँ से आती। पर हम ये माँगें सुन सुन कर दुख भरे आश्चर्य से भर जाते ।
२. घूमने आए माकिस्तानियों का वीज़ा रद्द ।
३. पाकिस्तानी उच्चायोग बंद इत्यादि ।
४. आतंकियों के नागरिक समर्थकों को कारागार देना, उनके घर ध्वस्त करना।
हमने राजस्थान के तीर्थ स्थान पर जाने के लिए सात अप्रैल को रेवाडी तक जाने हेतु ...पूजा एक्सप्रेस से बहुत पहले ही टिकट बनवा लिए थे, कि छः अप्रैल को रात को एक बज कर उनतीस मिनट पर भारत ने पाकिस्तान के नौ ऐसे ठिकानों पर सटीक आक्रमण किया है कि उसके प्रमुख आतंकी अड्डे और आतंकी कमांडर नष्ट हो गए। आक्रमण बेहद सटीक थे। और सब कुछ अचूक और क्षणों में सम्पन्न हो गया है। यह सुनना बहुत अनिर्वचनीय रूप से आह्लादित करने वाला था, अधिकांश इस कारण.....अधिकांश  इस कारण कि  हमारे वायु सेना का शौर्य अद्भुत और विश्व का सवर्श्रेष्ठ सिद्ध  हो गया था। आँखों में अश्रु आ गये प्रेम और कृतज्ञता के। आज हमें : मुझे और मेरे पतिदेव  को आज यात्रा पर निकलना है ।


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महाशक्ति मीडिया प्रस्तुति 
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शक्ति. आलेख : पहलगाम : ऑपरेशन सिंदूर
गतांक से आगे : ४ .
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भय : संशय : आक्रमण निष्फल : 
शक्ति. क्षमा कौल.जम्मू
प्रधान सम्पादिका
राधिका कृष्ण रुक्मिणी ब्लॉग मैगज़ीन


कर दिए गए उनके आक्रमण निष्फल : फोटो : साभार 
 


संशय और मेरी यात्रा : " तो युद्ध घोषित हुआ है, हमें आज सायं निकलना है......?" मैं समझ गई कि वह निर्णय लेने को कह रहे हैं.... घर में बिटिया के दो छोटे शिशु और उनके पिता छोटे दादू के पास छोड़ कर, दर्शन कर कल सायं को हमारा लौट आने का कार्यक्रम है। पतिदेव के प्रश्न के प्रति मैं प्रकृत्या अविचल रही और बोली, "हम जाएँगे......." हमने समय पर गाड़ी पकड़ी। मार्ग में देखा यह अध्यात्म और माता के भजनों से घर घर धड़कता, थिरकता जम्मू शांत और आनंदित लग रहा है। सब' ऑपरेशन सिंदूर' को देर से ही सही पर एक सबसे सही उपयुक्त कदम बता रहे थे। युद्ध का भय दूर दूर तक कहीं नहीं दिख रहा था। हम भी निर्भय थे जगदम्बा की कृपा से। किंतु भीतर भीतर बिटिया जो स्वयं पूने की विश्वविद्यालय में नाटक-कार्यशाला में व्यस्त थी, बच्चे और पति हमारे यहाँ थे, उनकी चिंता हो रही थी। हमने जम्मू से निर्विघ्न यात्रा की और वापसी पर देखा कि दिल्ली में कुछ कुछ वातावरण में तनाव है, या क्या पता हमें ही ऐसा लगा हो। उस ट्रेन में लगभग पचानवे प्रतिशत श्री माता वैष्णव देवी के यात्री थे। स्त्रियाँ, पुरुष, कुछ वृद्ध और काफ़ी सारे शिशु भी । ट्रेन दिल्ली से लगभग डेढ़ घंटे के विलंब से चली थी अतः विलम्ब से घर पहुँचना तय हो गया था, पर गाड़ी आई थी, यह ग़नीमत था कि घर तो पहुँच ही जाएँगे। मेरे प्राण बच्चों में थे। दाहिने खेतों में गिरते हुए एक आग का गोला : पठानकोट पहुँचते ही कुछ व्याकुलता सी हमने सब यात्रियों में भाँप ली, और बगल वाले यात्री ने धीमे से मेरे पति के कान में कहा कि, "कहते हैं कि जम्मू के रेलवे स्टेशन पर आक्रमण हुआ है.. ." एक भय की लहर हमारे भीतर भी उठ गई।
पर मैंने मन में सोचा कि अगर ऐसा है तो ट्रेन में हम कहाँ जा रहे हैं। अब ट्रेन में भय और तनाव बढ़ने लगा। खबरें फैलने लगी कि एयर पोर्ट, कठुआ, साम्बा में आक्रमण चल रहे हैं। हमे अब कठुआ पहुँच गए और अकस्मात् समीप ही दाहिने खेतों में एक आग का गोला गिरते हुए सबने देखा। और उसके बाद गाड़ी में भय का भयंकर संचार हुआ । पर सब ओर से इस युद्ध के साथ खड़े दिखने के स्वर भी सुनाई दिए। ट्रेन के पर्दे गिरा दिए गए ताकि बाहर कुछ न दिखे ।
हम रात्रि के डेढ बजे घर पहुँच गए। हमारी गाड़ी में बहुत से किशोर जैसे युवा सैनिक जिनकी छुट्टियाँ रद्द कर मोर्चे पर बुलाया गया था, भी थे।
कर दिए गए उनके आक्रमण निष्फल : जम्मू में अंधेरा ही अंधेरा था। इस तमस् में एक युवा ऑटोरिक्शा वाला सवारियों को स्टेशन लेकर आ रहा था। हम ने मन में सोचा कि यह घर तक एक हज़ार रुपये से कम न माँगेगा और हम तैयार हो गए यह देने के लिए। उसके ऑटो से जो सवारियाँ उतरीं वे सैनिक थे जिन्हें २३ पारगमन शिविर में आक्रमणों की आशंका से प्रवेश करने नहीं दिया गया अतः स्टेशन पर ही रात गुजारने के लिए कहा गया
हम इसी ऑटो में बैठ गए और राहत की साँस ली। घुप्प अंधेरे में कहीं कहीं कोई कोई बिजली जल रही थी।" आप को क्या बताएँ एक घंटे पूर्व क्या हाल था जम्मू का। अब जाकर हमले रुक गए हैं। कहाँ कहाँ हमले नहीं हुए। एयरपोर्ट तो बंद था ही छः मई से ही। पर एक भी हमला उनका सफल न रहा। बीच में ही उनके आक्रमण निष्फल कर दिए गए। माता वैष्णोदेवी पर भी आक्रमण का प्रयास किया गया...."
पाकिस्तान की हद में है अखनूर, साम्बा, सुचेतगढ, कठुआ, आर एस पुरा  : पुंछ में तो भारी नरसंहार कर ही डाला था। यहाँ से प्रायः घुसपैठ भी होती रहती है। इन स्थानों पर पाकिस्तानी सेना के आक्रमण यों भी प्रायः होते रहते हैं। इसके पीछे यह भी सोच है कि कश्मीर तो उन्होंने खाली करा ही लिया है अब जम्मू उनकी बाधा है। कश्मीर में मुसलमान लोगों के होने से पाकिस्तान कभी कश्मीर के नागरिकों पर आक्रमण नहीं करेगा, केवल और केवल सेना के स्थलों को वह निशाना बनाएगा। पर जम्मू में वह अंधाधुंध मचाएगा यह सभी जानते हैं।
अस्तु, हम रात्रि के डेढ बजे घर पहुँच गए।अंधकार ही अंधकार हर ओर से था। बच्चे सोए थे। उनका पिता और मेरे देवर जी बैठे हमारी प्रतीक्षा में भय सिक्त थे। रात भर अखनूर में युद्ध की आवाजें आती रही थी। प्रातः ५ बजे मेरे देवर जी को हैदराबाद की गाड़ी पकड़नी थी... उन्हें छोड़ने के लिए मेरे पतिदेव एवं बिटिया के पति गए। ज्यों ही वे निकले, भयंकर आवाजें आने लगी। अखनूर से ही।
मेरे देवर जी गाडी में सकुशल बैठ गए थे जो एक अच्छी बात थी कि कल हमारे आने के बाद रेलें सम्भवतः रद्द  नहीं हुई थी।

*
महाशक्ति मीडिया प्रस्तुति 
*
शक्ति. आलेख : पहलगाम : ऑपरेशन सिंदूर
गतांक से आगे : ५ .
*
अंतिम क़िस्त
परिजनों की चिंता : आशंकाओं के बादल : युद्ध विराम : 
शक्ति. क्षमा कौल.जम्मू
प्रधान सम्पादिका
राधिका कृष्ण रुक्मिणी ब्लॉग मैगज़ीन.

ड्रोन के कुछ टुकड़े : क़यामत की रात :: युद्ध विराम : फोटो : साभार : नेट 

परिजनों की चिंता : आशंकाओं के बादल : दिन भर धड़कनें बढ़ती रही, समाचार युद्ध में विजय और शत्रु की पराजय से भरे थे। शाम होते ही आक्रमण ताबड़तोड़ होने लगे । देवर जी ने दिल्ली पार कर ली थी, यह राहत की बात थी, पर हमारे पास छोटे छोटे बिटिया के बच्चे हैं, यह बहुत ही चिंतित कर रहा था हमें। 
उनकी माँ जो पुणे में काम कर रही थी, बहुत ही चिंता कर रही थी बच्चों, पति एवं माता पिता के बारे में । लगातार जम्मू से कुछ दिन बाहर जाने की सलाह दे रही थी। पर अब उसके पास मुंबई जाने की टिकटें भी नहीं मिल रही थीं । हितैषी साहित्यकारों के फ़ोन आ रहे थे, वे सब उन के पास कुछ दिन आने का निमंत्रण दे रे थे, पर पहुँचा कैसे जाए ?
ड्रोन के कुछ टुकड़े : क़यामत की रात : वह रात क़यामत की रात थी। आप शंभु का मंदिर, बेबी केटरर, बख्शी नगर, जानीपुर हमारा पड़ोस, रूपनगर सब जगह तबाही मच गई थी, किंतु जान की कोई क्षति नहीं हुई थी। यह सुख की बात थी ।
हमारे पड़ोस की पार्क में ड्रोन के कुछ टुकड़े गिरे थे।
अब चिंता आसमान छूने लगी। पतिदेव बोले गाड़ी में आवश्यक चीजें बच्चों के रखो और अभी चलो। पर दामाद जी को पता चला कि रात को चूँकि गाड़ी में बिजली जलानी पड़ेगी अतः खतरा है, इसलिए बिलकुल प्रातः निकलेंगे । 
समझ न आया यह क्या हुआ : युद्ध विराम :  त्यों ही समाचार आया कि युद्ध विराम हो गया है। हम दंग रह गए। कुछ समझ न आया यह क्या हुआ है। देखा तो हर ओर अवसाद, शत्रु में आह्लाद । हम समझ न पाए क्या करना है हमें। हमने घर की बिजलियाँ जलाई। और सामान्य सा अनुभव करने के प्रयास में लग गए । त्योही एक पड़ोसी तेज तेज आवाजें लगाने लगा, उससे पूर्व हमें आक्रमणों की आवाजें आ रहीं थीं, पर हम आश्चर्य और भय में थे कि यह क्या हो रहा है।
*
पृष्ठ संपादन :शक्ति.शालिनी प्रीति रेनू नीलम.
पृष्ठ सज्जा :शक्ति.अनीता प्रिया सीमा अनुभूति. 
*

* लीवर. पेट. आंत. रोग विशेषज्ञ. शक्ति. डॉ.कृतिका. आर्य. डॉ.वैभव राज :किवा गैस्ट्रो सेंटर : पटना : बिहारशरीफ : समर्थित.
*
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आकाश दीप : पद्य संग्रह : सम्पादकीय : प्रस्तुति : पृष्ठ : ३.
-----------
संपादन
*
संपादन
शिमला डेस्क.

शक्ति. रेनू अनुभूति शालिनी मानसी.
*
भाविकाएँ
* पानी : पुल और किनारा *
*
१४ अगस्त विभाजन ' विभीषिका ' स्मृति दिवस.

अलग होने का दर्द भला वो क्या जाने जिनके अपने झेलम चनाब के इस पार रह गए नीचे बहते दरिया पर बने पुल भी टूटे कुछ इस पार तो कुछ उस पार तकते पानी पुल और किनारे को अपने कितने बेवश लाचार हो गए *

डॉ.मधुप. पृष्ठ सज्जा : संपादन शक्ति नैना प्रिया @ डॉ सुनीता सीमा *

पृष्ठ सज्जा : संपादन 
शक्ति. प्रिया डॉ.सुनीता अनुभूति.   
*
सीपिकाएँ
रखो हिम्मत अपने सीने में-
*
शक्ति. तनु सर्वाधिकारी.

कवयित्री.लेखिका. 
सम्पादिका. 


बंगलोर. 
रखो हिम्मत अपने सीने में-


अब भारत बंट ना जाए, अब भारत कट ना पाए, रखो हिम्मत अपने सीने में- दुश्मन सीमा पर जुट ना जाय। हम वतन के ताक़त हैं, सेवा में हम नित रत हैं, सरहद सुरक्षित अविरत है, सत्य के हम पथ में हैं । जीवन निछावर करना है, ऋण आकंठ उतारना है, कोटि-कोटि की प्रार्थना है-- देश उजागर करना है। मातृभूमि है तो हम हैं-- इस में निहित अपना दम है, निछावर प्राण यह भी कम है, सबकुछ वतन का धन तन मन है।

*
भाविकाएँ
*
शरणार्थी


फोटो : साभार 

एक युवक छीनता है एक बूढ़े से चादर
बूढ़ा ज़ोर लगाकर पकड़ता है उसे
फिर जवान भी
ज़ोर लगाकर छीनना चाहता है
आसपास के लोग अपनी अपनी चादरों को कसकर पकड़ते हैं
या उनके ऊपर बैठ अपने नीचे छिपाते हैं और इस
बूढ़े और जवान की
छीना झपटी का आनंद लेते हैं.
कुछ लोग बैठे बैठे जवान को कोसते हैं
और जवान लोग बूढ़े के सामने चादर उसकी होने का
प्रमाण प्रस्तुत करते हैं
तटस्थ प्रेक्षक तय करते हैंकि
युद्ध कितना ज़रूरी है.


शक्ति. क्षमा कौल
कवयित्री.
जम्मू


शक्ति.डॉ. रत्नशिला.स्त्री रोग. आर्य.डॉ.ब्रज भूषण सिन्हा.फिजिशियन : बिहार शरीफ : समर्थित

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वन्दे मातरम : फोटो दीर्घा : पृष्ठ : ६ .
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संपादन.
शक्ति प्रिया अनीता मीना सीमा 
*
हम जियेंगे हम मरेंगे ए वतन तेरे लिए :  फोटो : शक्ति शालिनी :प्रधानाचार्या के जज़्बे देश भक्ति के 

हर घर तिरंगे अभियान में शामिल हमारी सम्पादिकाएँ : फोटो : शक्ति डॉ.सुनीता नीलम रेनू सीमा. 

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समाचार : चित्र : विशेष : दृश्य माध्यम : न्यूज़ शॉर्ट रील : पृष्ठ : ११.
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संपादन.


शक्ति.नैना प्रिया.डॉ.सुनीता सीमा.
पृष्ठ सज्जा : शक्ति.डॉ. अनीता तनु अनुभूति.

*

समाचार : आजादी का जश्न : १५ अगस्त सोल्लास मनाया गया

राष्ट्रीय एकता और गर्व : १५  अगस्त, १९४७ : फोटो :शक्ति प्रिया सीमा अनीता अनुभूति
स्वतंत्रता दिवस हर साल १५ अगस्त को मनाया जाता है, जो भारत के ब्रिटिश शासन से आजादी मिलने के दिन को याद दिलाता है. इस दिन, भारतीय प्रधानमंत्री दिल्ली के लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं. यह दिन एकता, बलिदान और देशभक्ति का प्रतीक है, और देशभर में इसे ध्वजारोहण, परेड और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से उत्साहपूर्वक मनाया जाता है. 
यह दिन महत्वपूर्ण क्यों है?
ऐतिहासिक महत्व : यह दिन १५  अगस्त, १९४७ को भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने की याद दिलाता है, जब  २०० से अधिक वर्षों के ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से देश को मुक्ति मिली थी. 
राष्ट्रीय एकता और गर्व : यह दिन भारत की एकता, बलिदान और देशभक्ति को सलाम करता है, जब स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया. सांस्कृतिक उत्सव:
स्वतंत्रता दिवस पर देशभर में सांस्कृतिक कार्यक्रम, परेड और अन्य आयोजन होते हैं, जो भारत की विविधता और उपलब्धियों को दर्शाते हैं. 
प्रधानमंत्री का भाषण : प्रधानमंत्री दिल्ली के लाल किले से ध्वज फहराते हैं और राष्ट्र को संबोधित करते हैं. 
सांस्कृतिक कार्यक्रम : देशभक्ति से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम और अन्य आयोजनों का आयोजन किया जाता है. 
स्वतंत्रता सेनानियों को नमन : देशवासी स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के साहस और बलिदान को याद करते हैं. 
ध्वजारोहण : यह दिन कैसे मनाया जाता है ? सरकारी संस्थानों, स्कूलों और कॉलेजों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है. 


डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल, संस्थानों में परंपरा गत तरीक़े से मनाया गया ७९ वां स्वतंत्रता दिवस. 
*
एस पी आर्य डी ए वी परिसर से 
*
हम कभी भी आतंकवाद के समक्ष घुटने नहीं टेकेंगे 


श्याम आन बसो : मेरे मन में :आर्य डी ए वी स्कूल :
शक्ति प्रिया 
अल्पना डॉ.सुनीता अंशिमा सिंह. 


आतंकवाद के समक्ष घुटने नहीं टेकेंगे : भारत ने लम्बे स्वतंत्रता संग्राम के बाद स्वतंत्रता प्राप्त की, महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा के जरिए। १५ अगस्त १९४७ को, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर धीरे धीरे उपर ले जाते हुए भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया,और हरेक भारतीय की भयरहित स्वतंत्रता की बातें की।
भारत के विभिन्न राज्यों यथा बिहार झारखण्ड स्थित डी.ए.वी पब्लिक स्कूल, संस्थानों परंपरा गत तरीक़े से ७९ वां स्वतंत्रता दिवस समारोह हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। ज्ञात सूत्रों के अनुसार डी.ए.वी पब्लिक स्कूल ,कैंट एरिया , शक्ति प्राचार्या अंजलि, मानपुर प्राचार्य गोविन्दजी , सत्य प्रकाश आर्य शक्ति प्राचार्या अंशिमा सिंह ,पीजीसी, प्राचार्य डी ए वी विहारशरीफ की देख रेख में हर्षोल्लास के साथ संपन्न होने के समाचार मिले हैं। 

फहराये गए.राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा का साक्षी बने सत्य प्रकाश डी.ए.वी पब्लिक स्कूल के
परिवार गण 
शक्ति. प्रिया डॉ. सुनीता अंशिमा सिंह 

सूत्रों की माने तो कही कही प्राचार्य, सह मुख्य अतिथि के करकमलों से  राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया गया.
एस पी आर्या डी.ए.वी पब्लिक स्कूल की शक्ति प्राचार्या अंशिमा सिंह राष्ट्र प्रेम ध्वजारोहण करते हुए हमारे माध्यम से यह सन्देश दिया कि हमें  आप्रेशन सिंदूर याद रखना  चाहिए। वलिदान व्यर्थ न जाने पाए। हम कभी भी पहलगाम के आतंकवाद को भूला नहीं पायेंगे।  एकता की शक्ति में बंधे हम कभी भी आतंकवाद के समक्ष घुटने नहीं टेकेंगे।

फोटो : शक्ति अंशिमा : तिरंगा 
लहेरी बिहारशरीफ में ७९ वे स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य पर छात्र-छाआत्रों ने देश भक्ति से ओत-प्रोत कई मनभावन रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन हुआ । सत्य प्रकाश आर्य डी.ए.वी पब्लिक स्कूल, लहेरी में ७९  वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत समस्त डी.ए.वी परिवार,शक्ति प्राचार्या की उपस्थिति में  विद्यालय परिसर में तिरंगे को फहराने के साक्षी बने। तदुपरांत नृत्य गायन वादन में छात्र-छात्राओं ने विविध सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ देकर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत ध्वजारोहण और राष्ट्रगान के साथ हुई। विद्यालय की प्राचार्या महोदया ने इस अवसर पर उपस्थित छात्रों, शिक्षकों एवं अभिभावकों को संबोधित करते हुए स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को याद किया और बच्चों को राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने के लिए प्रेरित किया।
बच्चों द्वारा प्रस्तुत किए गये कार्यक्रमों में देशभक्ति गीत, नृत्य नाट्य प्रस्तुति, कविता पठान एवं भाषण शामिल थे कार्यक्रम के अंत में पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया गया।
विद्यालय की शक्ति  संगीत की आचार्या अल्पना ने इस अवसर पर उपस्थित छात्रों, शिक्षिकों , अभिभावकों  एवं प्रतिभागियों को इस सफल आयोजन के लिए बधाई दी एवं सभी का धन्यवाद किया।
विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमति अंशिमा सिंह ने इस सफल आयोजन हुए कहा, कि हमारा उद्देश्य छात्रों में देशप्रेम की भावना का विकास करना, ताकि वे एक जिम्मेदार नागरिक बन सकें।


*
राष्ट्र भक्ति : दृश्यम : शक्ति. प्राचार्या अंशिमा सिंह. 
*

हम कभी भी आतंकवाद के समक्ष घुटने नहीं टेकेंगे।
*
समाचार : फोटो : संकलन : शक्ति श्वेता अल्पना.नितीश

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' जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.
डी ए वी पावर ग्रीड.
*
 फोटो संकलन : शक्ति. डॉ.सुनीता मधुप 
समाचार संकलन पल्लवी .आर्य.मुकेश.

*

वन्दे मातरम जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी : फोटो : शक्ति. प्रिया डॉ.सुनीता मधुप.  


फोटो शक्ति नैना प्रिया डॉ. सुनीता सीमा 
संवाद सूत्र : नालन्दा : डी ए वी पावरग्रिड, स्कूल विहारशरीफ में कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि मोहम्मद माज़ आलम, उप महाप्रबंधक  एवं विद्यालय के प्राचार्य श्री मनोज कुमार दुबे द्वारा झंडोत्तोलन कर किया गया। 
राष्ट्रगान समाप्त होते ही विद्यालय के चारों हाउस की टुकड़ियों द्वारा मार्च पास्ट एवं परेड कर तिरंगे झंडे को सलामी दी गई। कक्षा नवमी के छात्रों द्वारा पिरामिड बनाकर अद्‌भुत कलाबाजियों की प्रस्तुति निःसंदेह प्रशंसनीय रहा।
विद्यालय के प्राचार्य श्री मनोज कुमार दुबे ने अपने उद्बोधन भाषण में माननीय अतिथियों, अभिभावकों एवं छात्रों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ दी। ' जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी का संदेश छात्र - छात्राओं को देते हुए उन्होंने विद्यालय की उपलब्धियों एवं विशेषताओं से सभी को अवगत कराया।
मुख्य अतिथि : प्राचार्य 
 डी.ए.वी. के स्वर्णिम इतिहास के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि विद्यालय में अध्ययनरत सभी छात्र अत्यंत प्रतिभाशाली एवं सुयोग्य है। भविष्य में ये सभी बच्चे देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपना उत्कृष्ट योगदान देंगे।
एलकेजी एवं यूकेजी के छोटे छोटे बच्चों द्वारा प्रस्तुत नृत्य ' नन्हा मुन्हा राही हूँ ' एवं ' संदेशे आते हैं ने सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वहीं पहली कक्षा के बच्चों द्वारा ' एकता में बल ' का संदेश देते हुए नृत्य की प्रस्तुति की गई। 
रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बीच बच्चों ने हिंदी, अंग्रेजी एवं संस्कृत भाषा में देश के प्रति अपने भावोद्वार व्यक्त किया। मुख्य अतिथि मोहम्मद माज आलम, उप महाप्रबंधक पावरग्रिड, बिहारशरीफ ने अपने संभाषण में कहा कि भारत अनेकता में एकता वाला देश है। 
यहाँ विभिन्न मजहब, धर्म, जाति एवं भाषा के लोग रहते हैं। जब देश हित की बात होती है तो हम सभी एक हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि देश को संसार का सिरमौर बनाना है तो हमें नैतिक मूल्यों के साथ -साथ आधुनिक मानदंडों को भी अपनाना होगा। 
आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में भारत पूरे विश्व का नेतृत्व कर रहा है। इस विद्यालय में अध्ययनरत सभी बच्चे आने वाले समय में डिजिटल भारत के निर्माता बनेंगे एवं पूरे विश्व का मार्गदर्शन करेंगे। कक्षा दसवीं एवं बारहवीं ,सत्र २४- २५ के उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छात्र - छात्राओं एवं उनके अभिभावकों को पुष्प गुच्छ और अंग वस्त्र देकर मुख्य अतिथि द्वारा सम्मानित किया गया। 
*

बन्दे मातरम : सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम् : फोटो : 
शक्ति.प्रिया डॉ.सुनीता सीमा. 
*
रंगारंग कार्यक्रम का निर्देशन विद्यालय के संगीत आचार्य श्री शुभम पाण्डेय एवं आचार्या अल्पना
अनिता, कोमल एवं प्रीती के द्वारा किया गया। 
कार्यक्रम का समापन व निरीक्षण विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य विनोद कुमार रॉय की देख रेख में तथा धन्यवाद ज्ञापन पंकज कुमार सिन्हा, द्वारा  हुआ। अन्य की भूमिका में यथा आचार्य नित्यानंद लाल दास ,प्रभा कांत चौधरी, ज्ञान रंजन, संतोष कुमार, सौरभ तथा ओम प्रकाश राय  एवं शक्ति आचार्या सुदीप्ता, कोमल ,व तनु श्री का सहयोग सराहनीय रहा।  
अंग्रेजी शिक्षक श्री अजय प्रसाद की देख रेख में कक्षा नौवीं की छात्रा इना किरण एवं अदीबा सिददृकी द्वारा मंच संचालन किया गया।

शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्, 
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम् ! 
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्

*
दृश्यम : समाचार : १५ अगस्त 
*

 प्राचार्य : 
आर्य  मनोज : रहें वहाँ जहाँ मन भयमुक्त हो. 

समाचार संकलन : शक्ति. पल्ल्वी.आर्य.मुकेश ठाकुर. 

--------
समसामयिकी : समाचार : दृश्यम : यूट्यूब लिंक्स पृष्ठ : ११ / २ .
-----------
१५ अगस्त
सम्पादन.
डॉ.अनीता सीमा तनु सर्वाधिकारी.
*

१५ अगस्त : समाचार : देखने पढ़ने के लिए नीचे दिए गए महाशक्ति मीडिया लिंक को दवाएं.

*
१५ अगस्त: दृश्यम समाचार : पी जी सी बिहार शरीफ
देखने पढ़ने के लिए नीचे दिए गए
सहयोगी नालंदा न्यूज़ चैनल के लिंक को दवाएं.

*
१५ अगस्त: दृश्यम समाचार: सत्य प्रकाश आर्य
डी.ए.वी पब्लिक स्कूल के
देखने पढ़ने के लिए नीचे दिए गए
सहयोगी नालंदा न्यूज़ चैनल के लिंक को दवाएं

*

 आर्य. डॉ. दीनानाथ वर्मा
: दृष्टि क्लिनिक : बिहार शरीफ. समर्थित 
-----------
चलते चलते :  आपने कहा : दिन विशेष : शॉर्ट रील : पृष्ठ : ९    
-----------
पृष्ठ सज्जा : संपादन 
शक्ति नैना प्रिया @ डॉ सुनीता सीमा 

*
Shakti.Dr. Rashi : Gynecologist : Muzaffarpur. Bihar
*
supporting

Shakti Dr.Ratnika.Dermatologist Skin Specialist.Lucknow.Supporting 

*
Editorial : English : Page : 2
Shakti Editor.
*
*
Shakti. Priya Seema Tanu Sarvadhikari. 
Darjeeling Desk.
*
A day of pride renowned for unity.
Sare Jahan Se Achchha Hindustan Hamara : Editorial Write up. 
Our Feelings : Dr. Sunita Seema Shakti* Priya 
*

*
We shaktis always remain very proud to be an Indian. We always keep safeguarding the principles of preamble of the constitution.We always make other understand Integrity Nationalism is not a recognized single term but can be understood as a concept where national identity and loyalty are intertwined with the principles of integrity, such as ethical conduct, honesty, and commitment to upholding a nation's laws and constitution.
This vision of nationalism emphasizes a nation built on reliable and just governance, safeguarding citizens' rights, and fostering a society where people can depend on each other to do the right thing, in contrast to purely ethnocentric or power-based nationalisms

Shakti Lines
*
A day of pride renowned for unity
A day of sacrifice for the pride of unity
A day of joy celebrated for freedom 
And a day of smiles to cheer for independence
Let us bow down to show reverence
Let us hold up hosting the flag with deference
Let us sing the national anthem with pride 
And let’s enjoy the day with our rights

Bharat which is known as India as the name originates with the Independent Nation Declared in August,  is remembered over the world after lot of struggles made by our brave leaders who have not only brought the independent but had also made us realize that our country is our pride and to gain this pride, unity is the best policy with the nonviolent resistance which has been a  strong power led by Mahatma Gandhi.
Let us remember this day and respect our freedom fighters who lauded the nation’s democratic ethos. So once again we al together wishing you a very Happy 79th Independence Day and urging upon to be united .
*
Shakti.Dr. Rashi : Gynecologist : Muzaffarpur. Bihar
*

supporting : Vande Matram.
*
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Photo Gallery : 15th August : Vande Matram : English Page  : 2
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Editor.
Shakti. Priya Madhvee Seema Shahina
*
proud to be an Indian realising love for Nationality :  Integrity : Shakti.Shahina.
instilling patriotism and love among the kids for the nation : Collage Shakti Madhavi Seema Priya
15 th of August Celebration : Principal going for the encouragement : Photo : Shakti.Shahina.

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Comments

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