Apne Hi Rang Main Rang Le Mujhko : Yaad Rahegi Holi Re
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Apne Hi Rang Main Rang Le Mujhko:Yaad Rahegi Holi Re.
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होली विशेषांक.
अपने ही रंग में रंग ले मुझको : याद रहेगी होली रे:
सांस्कृतिक पत्रिका.
महा.शक्ति.मीडिया.प्रेजेंटेशन@जीमेल.कॉम
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हिंदी अनुभाग.
आवरण पृष्ठ : ०.
समर्थित आवरण पृष्ठ : मीडिया पार्टनर : सहयोग व शुभ कामनाएं .पृष्ठ : ०
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रुस्तम आज़ाद. शाखा प्रबंधक. यूको बैंक. की तरफ से शिवरात्रि और होली की शुभकामनाएं |
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उत्तम कुमार.शाखा प्रबंधक,पंजाब नेशनल बैंक की तरफ से शिवरात्रि और होली की मंगल कामनाएं. |
तुम्हारे लिए : दैनिक : हिंदी अनुभाग ० में देखें. संक्षिप्त.
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तुम्हारे लिए : पत्रिका : अनुभाग पृष्ठ : ० में देखें. विस्तृत.
तुम्हारे लिए : दैनिक : हिंदी अनुभाग ० में देखें. संक्षिप्त.
आज की पोस्ट.
सुबह और शाम : प्रारब्ध : पृष्ठ ०.
दैनिक अनुभाग. अपने ही रंग में रंग दे मुझको : याद रहेगी होली रे.
महिला सशक्ति करण की एकमात्र ब्लॉग मैगज़ीन.
परमार्थ के लिए देश हित में.
महाशक्ति निर्मित,विकसित, त्रि - शक्ति अधिकृत और नवशक्ति समर्थित.
भगवान श्री कृष्ण के धर्म : अध्यात्म : कर्म. नीति और जीवन दर्शन की अनुयायी पत्रिका
धर्म : अध्यात्म : कर्म. और जीवन दर्शन सार .
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आज / कल का दिवस. पृष्ठ ०.
महा ' शक्ति ' : त्रि ' शक्ति ' : नव ' शक्ति ' समर्थित.
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२३ मार्च.
आज का दिवस : शहीद दिवस.
आज का दिवस : शहीद दिवस.
२३ मार्च शहीदी दिवस पर
शहीद राजगुरु,सुखदेव,शहीद - ए- आजम भगत सिंह,को नमन
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा.
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२९ मार्च. २०२४.
गुड फ्राइडे. की शुभ कामनाएं.
' प्यार ' और अपनी ' कृपा ' बनाए रखें.
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महाशक्ति विचार. पृष्ठ : ० / १.
संपादन.
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डॉ.सुनीता ' शक्ति ' प्रिया.
नैना देवी डेस्क.नैनीताल.
' शिवरात्रि ' और ' होली ' की हार्दिक शुभकामनाएं.
महाशक्ति : दिव्य विचार.
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम्
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अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमोदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते ।
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि शम्भुविलासिनि विष्णुनुते।
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि शम्भुविलासिनि विष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि [१] शैलसुते ॥१॥
अर्थ
हे हिमालायराज की कन्या,विश्व को आनंद देने वाली,नंदी गणों के द्वारा नमस्कृत,गिरिवर विन्ध्याचल के शिरो (शिखर) पर निवास करने वाली,भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने वाली,इन्द्रदेव के द्वारा नमस्कृत,भगवान् नीलकंठ की पत्नी,विश्व में विशाल कुटुंब वाली और विश्व को संपन्नता देने वाली है महिषासुर का मर्दन करने वाली भगवती ! अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो,जय हो,जय हो।
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् सुनने के लिए यूट्यूब लिंक उपलब्ध है
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ऋग्वेद सूक्त
हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम.
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम.
अर्थ.
जो जगत में विद्यमान हैं सब सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों का आधार बनें
उसका आधार परमात्मा जगत की उत्पत्ति के पूर्व विद्य़मान था.
जिसने पृथ्वी और सूर्य - तारों का सृजन किया उस देव की प्रेम भक्ति किया करें.
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महाशक्ति : दृश्यम : विचार.
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भगवान पुण्डरीकाक्ष : श्री हरि.
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
इस मंत्र का अर्थ.
कोई भी मनुष्य जो पवित्र हो, अपवित्र हो या किसी भी स्थिति को प्राप्त क्यों न हो,
जो भगवान पुण्डरीकाक्ष श्री हरि का स्मरण करता है, वह बाहर-भीतर से पवित्र हो जाता है।
भगवान पुण्डरीकाक्ष पवित्र करें।
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शिव स्तुति.
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् .
अर्थ
इस मंत्र का हिंदी अर्थ है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं,
जिनके तीन नेत्र हैं, जो सुगंधित हैं और हमारा पोषण करते हैं।
जैसे फल शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है
वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।
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देवों के देव महादेव की उक्ति
शिव : कृष्ण तो सम्पूर्ण है.
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महाशक्ति : रक्षा सूत्र विचार
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
भावार्थ.
जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था,
उसी सूत्र मैं तुम्हें बांधती हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा, हे रक्षा तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना.
⭐
गीता : अध्याय : २
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।
भावार्थ.
तुम्हें केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फल पर कभी नहीं।
आपकी प्रेरणा कर्म फल की नहीं होनी चाहिए
और न ही आपको निष्क्रियता से आसक्त होना चाहिए।
⭐
महाशक्ति : सदविचार.
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' रिश्ता ' दो ' 'आर्य जनों ' के मध्य चाहे जो कुछ भी हो
' सम्यक विचारों ' का ' सम्यक मिलन ' ही ' सम्यक सम्बन्धों ' का ' सम्यक आधार ' होता है
⭐
महाशक्ति : सूफ़ी विचार धारा.
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अमीर ख़ुसरो.
गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस.
चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस.
भावार्थ
ख़ुसरो कहते हैं कि आत्मा रूपी गोरी सेज पर सो रही है, उसने अपने मुख पर केश डाल लिए हैं,
अर्थात वह दिखाई नहीं दे रही है। तब ख़ुसरो ने मन में निश्चय किया कि अब चारों ओर अँधेरा हो गया है,
रात्रि की व्याप्ति दिखाई दे रही है। अतः उसे भी अपने घर अर्थात परमात्मा के घर चलना चाहिए।
⭐
रहीम.
जो बड़ेन को लघु कहें, नहिं रहीम घटि जाँहि।
गिरधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नाहिं॥
भावार्थ.
बड़े लोगों को अगर छोटा भी कह दिया जाए तो भी वे बुरा नहीं मानते.
जैसे गिरधर ( गिरि को धारण करने वाले कृष्ण ) को मुरलीधर भी कहा जाता है
लेकिन कृष्ण की महानता पर इसका कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
⭐
रहीम.
रहिमन निज मन की व्यथा,मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
भावार्थ.
अपने दु:ख को अपने मन में ही रखनी चाहिए।
दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दु:ख को कोई बांटता नहीं है।
⭐
कबीरदास.
लकड़ी जल कोयला भई कोयला जलकर राख.
मैं पापिन ऐसी जली कोयला भई न राख !
--------------- राधिका : महाशक्ति : डेस्क : वृन्दावन : पृष्ठ : ० / २. -------------- संपादन. ⭐ अनु ' राधा ' इस्कॉन डेस्क. नैनीताल.. ------- ⭐ शॉर्ट रील : होली धुन. ------------ दृश्यम : ० : दिव्य होली : राधिका कृष्ण की. दृश्यम :१. मारी भर भर पिचकारी, वृन्दावन की होली दृश्यम :२. वृन्दावन : प्रेम भरी होली की झलक. दृश्यम : ३ . राधा : कृष्ण : वृज की होली ⭐ शॉर्ट रील : राधिका धुन. दृश्यम ० : हमें तो नाराज़ होना भी नहीं आता. ------- दृश्यम : १ : रुक्मणि : राधा : कृष्ण. संवाद. ------- दृश्यम : २ : साध्वी : कृष्ण कहते है : ईश्वर संतुष्ट हो. साभार : रितु : शॉर्ट रील. दृश्यम : ४ : मैं तो भूल गयी कुछ भी कहना. दृश्यम : ५ : राधा : सब कुछ सरकार तुम्ही से है. दृश्यम : ६ : कृष्ण का सम्मान राधा का मान दृश्यम : ७ : राधा कृष्ण और बांसुरी : साध्वी. दृश्यम : ८ : अपनी ठकुरानी तो श्री राधिका रानी. --------- दृश्यम : लघु कविता : छटा छवि निहार ले. ---------- गीता सार : कुरुक्षेत्र : महाभारत : हस्तिनापुर : डेस्क. पृष्ठ : ० / ३ . ----------- संपादन. ⭐ राधिका कृष्ण. इस्कॉन डेस्क / नैनीताल. ⭐ गीता श्लोक. स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ इस श्लोक का अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। ⭐ यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ⭐ -------- दृश्यम : विचार : ० ⭐ कृष्ण : शकुनि : संवाद अधर्म की मदद अपराध है दृश्यम : १ : अपना धर्मयुक्त कर्म करो ,सखी. ⭐ दृश्यम : २ : माधव : क्रोध से प्रतिशोध जन्मता है. ⭐ दृश्यम : ३ .पार्थ : माधव ! समर्पण क्या है. दृश्यम : ४ . कृष्ण का सम्मान राधा का मान. दृश्यम :५ : कुमार विश्वास,विनाश काले विपरीत बुद्धि दृश्यम : ६ : कृष्ण : जिस पक्ष में जीत उधर ही है. दृश्यम :७: अर्जुन, जिसकी चिंता स्वयं माधव करते हो. दृश्यम : ८ : गोविन्द : द्रौपदी . संवाद. जब जब तुम्हें आवश्यकता होगी : सखी. गोविन्द : शिव ही तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देंगे सखी ⭐ ------------- त्रिशक्ति : विचार धारा : सम्यक वाणी : सम्यक दृष्टि : सम्यक आचरण : ---------------- सम्यक वाणी : मुझे भी कुछ कहना है : त्रिशक्ति : महालक्ष्मी : डेस्क : कोलकोता : पृष्ठ : १ / १ . -------------- संपादन. ⭐ लक्ष्मी : महालक्ष्मी डेस्क : कोलकोत्ता. ⭐ महालक्ष्मी वंदना. या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै-नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम :। ⭐ शुभ सन्देश : होली का सूर्य संवेदना पुष्पे, दीप्ति कारुण्यगंधने। लब्ध्वा शुभं होलिकापर्वेऽस्मिन कुर्यात्सर्वस्य मंगलम्।। अर्थ. जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा को जन्म देती है, पुष्प सदैव महकता रहता है, ठीक उसी तरह यह होली का पर्व आपके लिए हर दिन, हर पल खुशियों की बहार ले कर आए और इंद्रधनुष के रंगो कि तरह सभी खुशी के रंगो से आप के जीवन को रंग दे..... पत्रिका संरक्षक मुकेश कुमार (भा.पु.से.) समादेष्टा झा.स.पु. / रा.औ.सु.बल बोकारो. ⭐ त्रि शक्ति : सदविचार. ⭐ क़दर करिए ऐसे ' लोगों ' की जो पैसे और तोहफ़े नहीं बल्कि आपकी ख़ुशी के लिए ' ख़ुद को ख़र्च ' करते हैं ऐसे लोग दुकानों में नहीं ' बमुश्किल नसीब ' से ही मिलते हैं. ⭐ रक्षा सूत्र : विचार. मेरी अभिलाषा. ' नव शक्ति ' सिद्ध ' त्रि शक्ति ' अभिमंत्रित ' महाशक्ति ' द्वारा संरक्षित दिव्य ' सुरक्षा ' के लाल कच्चे सूत का अटूट रक्षा सूत्र मेरी दाहिनी कलाई पर ऐसी बंधी रहें कि आसन्न ' विपदा ' से मैं सदैव सुरक्षित रहूं ⭐ शुभ सन्देश : दृश्यम साभार : जाने माने पत्रकार : सुधीर चौधरी छल करने वाले की मात साभार : अमिताभ बच्चन : अभिनेता. ⭐ साभार : अंजना ओम कश्यप : जानी मानी पत्रकार. उस शख्स को कोई गिरा नहीं सकता जिसने चलना ही ठोकरों से सीखा है ⭐ मुझे ' आज़माने ' के लिए तेरा शुक्रिया ' जिंदगी ' मेरी ' क़ाबलियत ' ही निखरी है तेरी हर ' आजमाइश ' के बाद रेनू शब्द मुखर ⭐ ' भय ' के उपर ' विजय ' है , ' अधर्म ' के उपर ' धर्म ' स्थित है , अफवाहों से सचेत रहें अपनों से अपनों के लिए विश्वस्त रहें आज का सबसे कीमती दोस्त वही है जो संकट में भी आपके ' विश्वास ', ' प्रेम ' , ' निजता ', ' साथ ' और ' सम्मान ' को अक्षुण्ण रखता है डॉ. सुनीता ' शक्ति ' प्रिया . ⭐ धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपद काल परिखि अहिं चारी, भावार्थ. अनुसुइया ने सीता को बताया धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परख आपत्ति के समय होती है तुलसी : श्रीरामचरित मानस. ⭐ इस जगत में आर्य वे जन हैं जो दूसरों में सिर्फ़ अच्छाई ही देखते हैं और इस जगत को कृण्वन्तो विश्वमार्यम के लिए सदैव प्रयास रत होते हैं.
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तुम्हारे लिए : पत्रिका : अनुभाग पृष्ठ : में देखें. विस्तृत.
⭐
आज का दिवस. पृष्ठ ०.
महा शक्ति : त्रि शक्ति : नव शक्ति समर्थित.
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२३ मार्च.
आज का दिवस : शहीद दिवस.
आज का दिवस : शहीद दिवस.
२३ मार्च शहीदी दिवस पर
शहीद राजगुरु,सुखदेव,शहीद - ए- आजम भगत सिंह,को नमन
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महाशक्ति. डेस्क प्रस्तुति / नैनीताल. पृष्ठ : ०
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धर्म : अध्यात्म : कर्म. और जीवन दर्शन
⭐
महाशक्ति विचार. पृष्ठ : ० / १.
संपादन.
डॉ.सुनीता ' शक्ति ' प्रिया.
नैना देवी डेस्क. नैनीताल.
नैना देवी डेस्क. नैनीताल.
शिवरात्रि और होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
⭐
महाशक्ति प्रस्तुति.
⭐
जाकी रही ' भावना ' जैसी, प्रभु ' मूरत ' देखी तिन तैसी
तुलसी. रामचरित मानस.
⭐
रक्षा सूत्र : विचार.
मेरी अभिलाषा.
' नव शक्ति ' सिद्ध ' त्रि शक्ति ' अभिमंत्रित ' महाशक्ति ' द्वारा
संरक्षित दिव्य ' सुरक्षा ' के लाल कच्चे सूत का अटूट रक्षा सूत्र
मेरी दाहिनी कलाई पर ऐसी बंधी रहें कि आसन्न ' विपदा ' से मैं सदैव सुरक्षित रहूं
⭐
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
भावार्थ.
जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था,
उसी सूत्र मैं तुम्हें बांधती हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा, हे रक्षा तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना।
प्रेरक प्रसंग : माखन चोर.
⭐
दुर्योधन ने श्री कृष्ण की पूरी नारायणी सेना मांग ली थी
और अर्जुन ने केवल श्री कृष्ण को मांगा था
उस समय भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन की चुटकी लेते हुए कहा, ' तेरी हार निश्चित है, पार्थ
हरदम रहेगा उदास...
माखन दुर्योधन ले गया
केवल छाछ बची है तेरे पास...'
तब अर्जुन ने कहा,
' हे प्रभु ! जीत निश्चित है मेरी
दास हो नहीं सकता उदास
माखन लेकर मैं क्या करूं
जब माखन चोर है मेरे पास...'
⭐
रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून
भावार्थ
रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयुक्त किया है।
पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में 'विनम्रता' से है। मनुष्य में हमेशा विनम्रता ( पानी ) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं।
तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है।
रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे के बिना संसार का अस्तित्व नहीं हो सकता, मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है उसी तरह विनम्रता के बिना व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं हो सकता। मनुष्य को अपने व्यवहार में हमेशा विनम्रता रखनी चाहिए।
⭐
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
तुलसी.
⭐
ख़ुदा.
नुक़्स निकालते है लोग कुछ इस तरह मुझमें
कि जैसे उन्हें ख़ुदा चाहिए था हम तो इंसान निकले
⭐
समय.
' समय ' के ' अर्थ ' को समझ कर इसकी ' महत्ता ' को जानते हुए
सदैव समय के ' साथ ' चलना, संभलना, पालन करना
इसे ' शेष ' रखना और इसका ' सम्मान ' करना ही
हमारे ' जीवन ' की परम ' नियति ' होनी चाहिए...तो सफलता सिद्ध है...
⭐
कस्तूरी
कस्तूरी ' कुंडल ' बसे मृग ढूंढ़े ' वन ' माही
मेरा ' साहिब ' मुझमें बसे ये ' दुनियाँ ' जाने नाही
⭐
न हमारे भीतर ' रावणत्व ' हो न पास में हो ' विभीषण '
न ' श्रीराम ' लंका आयेंगे न ' लंका ' का सर्वनाश ही होगा
⭐
दृश्य माध्यम : शॉर्ट रील.
⭐
कोलाज : शिव - शक्ति : डॉ. सुनीता ' शक्ति ' प्रिया.
महशिवरात्रि की हमारी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं. : शॉर्ट रील
⭐
मुखो पवित्रं यदि रामनामं ह्रदय पवित्रं यदि ब्रह्म ज्ञानं
चरणों पवित्रं यदि तीर्थ गमनं हस्तौ पवित्रं यदि पुण्य दानं
भावार्थ
राम नाम से मुँह पवित्र होता है, ब्रह्मज्ञान से ह्रदय पवित्र होता है,
तीर्थ गमन से चरण पवित्र होते है, और दान से हाथ पवित्र होते हैं .
⭐
जिंदगी एक शतरंज की बिसात है.
जिंदगी एक शतरंज की बिसात है। इस खेल में विपक्ष की गहरी चाल होती है
कि विरोधी के मोहरों यथा हाथी,घोड़े, प्यादा से ही
उसके राजा और बजीर को ही मार गिराया जाए... और जीत हासिल की जाए।
समझना तो हमें हैं कि हमारे मोहरें हमारी सुरक्षा के लिए तैनात हो न की स्वयं के हार के लिए
चाल समझें ...विचार करें ...अपनों की सुरक्षा के लिए बुद्धि, विवेक, और धैर्य अपनाए रखें
डॉ. मधुप.
⭐
तुलसी : रामचरितमानस.
विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब भय बिन ना होए प्रीत.
भावार्थ.
समुद्र इतना कठोर हो गया है कि वह रामचंद्र जी के निरंतर मार्ग देने के
विनय तथा प्रार्थना नहीं मान रहा था. प्रार्थना करते करते भगवान को तीन दिन बीत गए
जब वह किसी भी प्रकार की अनुनय विनय नहीं मान रहा था तो रामचंद जी नाराज हुए और
उन्होंने कहा, कि बिना भय के प्रीति अब नहीं हो सकता है .
⭐
तुलसी इह संसार में भाँति -भाँति के लोग
सबसों हिल मिल चलिए, नदी-नाव संजोग.
सबसों हिल मिल चलिए, नदी-नाव संजोग.
भावार्थ.
तुलसीदास कहते हैं कि इस संसार में अलग - अलग तरह तरह के लोग रहते हैं। इसलिए आप सब से हँसकर मिलकर रहो, और विनम्रता से पेश आओ। बिल्कुल उसी तरह जैसे नाव नदी के साथ सहयोग करके ही पार लगती है। वैसे ही आप इस संसार में सब लोगों के साथ मिलजुलकर इस भवसागर को पार कर लो.
⭐
' धीरज ', ' धर्म ', ' मित्र ' अरु ' नारी ' ,
आपद काल परखि आहिं चारी...
तुलसीदास.
तुलसीदास.
भावार्थ.
विपत्ति काल में ही ' धीरज ' अर्थात धैर्य , ' धर्म ' , ' मित्र ' तथा ' नारी ' की परीक्षा होती है कि
वो आपके लिए आपदा में कितना सम्यक साथ निभाती हैं
वो आपके लिए आपदा में कितना सम्यक साथ निभाती हैं
और सम्यक वाणी के साथ साथ क्यों कर सम्यक कर्म करती हैं
---------------
राधिका : महाशक्ति : डेस्क : वृन्दावन : . पृष्ठ : ० / २.
--------------
संपादन.
⭐
अनु ' राधा '
इस्कॉन. नैनीताल.
-------
सूरदास.
मेरे मन इतनी सूल रही
ये बतियाँ छतियाँ लिखि राखी ,जे नन्दलाल कही.
एक धौंस मेरे गृह आए, हौ ही महत दही
रति माँगत मैं मान कियो सखि हरि गुसा गही.
भावार्थ.
एक दिन भगवान श्री कृष्ण मेरे पास आए
एक दिन भगवान श्री कृष्ण मेरे पास आए
मैंने उनका मान नहीं किया, मैं दही मथती रही
कही इसलिए तो नहीं वो नाराज़ हो कर चले गए.
राधिका कृष्ण : दृश्यम.
शॉर्ट रील : धुन.
राधा : कृष्ण और बांसुरी : साध्वी.
' प्रेम ' में कितनी ' बाधा ' देखी
फिर भी हमने ' कृष्ण ' के संग ' राधा ' ही देखी.
⭐
सूरदास.
मेरे मन इतनी सूल रही
ये बतियाँ छतियाँ लिखि राखी,जे नन्दलाल कही.
एक धौंस मेरे गृह आए, हौ ही महत दही
रति माँगत मैं मान कियो सखि हरि गुसा गही.
भावार्थ.
एक दिन भगवान श्री कृष्ण मेरे पास आए
मैंने उनका मान नहीं किया , मैं दही मथती रही
कही इसलिए तो नहीं वो नाराज़ हो कर चले गए.
⭐
दुर्योधन ने श्री कृष्ण की पूरी नारायणी सेवा मांग ली थी
और अर्जुन ने केवल श्री कृष्ण को मांगा था
उस समय भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन की चुटकी लेते हुए कहा, ' तेरी हार निश्चित है पार्थ
हरदम रहेगा उदास
माखन दुर्योधन ले गया केवल छाछ बची है तेरे पास
अर्जुन ने कहा,
हे प्रभु जीत निश्चित है मेरी दास हो नहीं सकता उदास
माखन लेकर क्या करूं जब माखन चोर है मेरे पास
⭐
अत्यधिक ' सोचना ' भी ' श्रेष्यकर ' नहीं होता,
ये उन ' समस्याओं ' का भी जन्म देता है,
जो वास्तव में है ही नहीं.
ये उन ' समस्याओं ' का भी जन्म देता है,
जो वास्तव में है ही नहीं.
⭐
शॉर्ट रील : धुन.
वृन्दावन : प्रेम पूर्ण होली की झलक.
ब्रज की होली.
गोविन्द : मैं हूँ तोरी अब लाज बलम रखयो मोरी.
आत्मीय संबंध तो ईश्वर की दैविक देन है सिर्फ रीति रिवाज में थोड़ा बहुत फर्क है
कोई प्रेम निस्वार्थ भाव से बिना बंधन के पूरी जिंदगी निभाता है ...तो कोई अपने स्वार्थ से
⭐
मेरी अभिलाषा.
मैं किसी देव के शिव ( कल्याणकारी ),
' मन ', ' वचन ', ' कर्म ' से बनी सृष्टि की शक्ति बनूँ
⭐
धागा हो तोड़ दूँ प्रीत न तोड़ी जाए
जिन नैनों में तुम बसे दूजा कौन समाए
⭐
मानव जीवन में शब्दों के पड़ने वाले प्रभाव को देखना व समझना होगा
जिस प्रकार से मिट्टी की नमी पेडों की जड़ों को बांधे रखता हैं
ठीक उसी भांति शब्दों की मिठास आपस के रिश्तों को बड़ी मजबूती से जोड़े रखता है
⭐
कृष्ण की कितनी शादियां.
रुक्मिणी. सत्यभामा. जाम्वती. : साध्वी
' राधा - कृष्ण ' के मध्य अध्यात्मिक व आत्मीय प्रेम सिर्फ
' सूरदास ', ' बिहारी ', ' रसखान ' और ' मीरा ' ही समझ सकते हैं.
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गीता सार : कुरुक्षेत्र : हस्तिनापुर : डेस्क. पृष्ठ : ० / ३ .
गीता सार : कुरुक्षेत्र : हस्तिनापुर : डेस्क. पृष्ठ : ० / ३ .
--------------
संपादन.
⭐
राधिका कृष्ण.
इस्कॉन डेस्क / नैनीताल.
⭐
जीवन : गीता : सार.
पार्थ : एक प्रश्न था..आपके लिए केशव...
आप तो अपने आप को धर्म शक्ति का संरक्षित मानते हैं,
स्वयं शक्ति के संरक्षक भी हैं, तो आप के उपर इतने चारित्रिक हमले हो रहें हैं... कटु शब्दों के वाण चल रहें हैं। ..आप स्वयं की रक्षा कैसे कर सकेंगे ..कहाँ हैं आपकी शक्तियां .. ? '
माधव : धैर्य पार्थ। यह मेरा उनका धरम करम है। ..नियति क्या है ?
मानव मात्र को बिना फल की चिंता किए हुए कर्म का निष्पादन करना चाहिए । ..आतंरिक आत्मिक शक्तियां तो इस विषम परिस्थितियों में भी धर्म, न्याय, सत्य,और मानवता के रक्षार्थ क्रिया शील थी,रहीं हैं.. और सर्वदा ही रहेंगी
डॉ. मधुप.
उसे भय कैसा : शॉर्ट रील.
अर्जुन : जिसकी चिंता स्वयं माधव करते हो.
कृष्ण दर्शन :
हमेशा धर्म के साथ अन्याय के विरुद्ध खड़े हो.
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त्रि शक्ति. डेस्क प्रस्तुति : नैनीताल : जीवन सार : पृष्ठ : १.
त्रि शक्ति. डेस्क प्रस्तुति : नैनीताल : जीवन सार : पृष्ठ : १.
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नैनीताल .
संपादन.
लक्ष्मी शक्ति सरस्वती.
नैनीताल डेस्क.
⭐
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सम्यक वाणी : मुझे भी कुछ कहना है : त्रिशक्ति : महालक्ष्मी : डेस्क : पृष्ठ : १ / १ .
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संपादन.
⭐
लक्ष्मी
महालक्ष्मी डेस्क.कोलकोता.
⭐
धीरज धर्म मित्र अरु नारी,
आपद काल परिखि अहिं चारी,
⭐
भावार्थ.
अनुसुइया ने सीता को बताया धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परख आपत्ति के समय होती है
तुलसी : श्रीरामचरित मानस.
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अस्मिन संसारे भवतः सदृशः न द्वितीयः
अर्थ : इस संसार में आपके जैसा कोई दूसरा नहीं हैं
अर्थ : इस संसार में आपके जैसा कोई दूसरा नहीं हैं
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इस जगत में आर्य वे जन हैं जो दूसरों में सिर्फ़ अच्छाई ही देखते हैं
और कृण्वन्तो विश्वमार्यम के लिए प्रयास रत होते हैं.
और कृण्वन्तो विश्वमार्यम के लिए प्रयास रत होते हैं.
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मेरी अभिलाषा.
' नव शक्ति ' सिद्ध ' त्रि शक्ति ' अभिमंत्रित ' महाशक्ति ' द्वारा
संरक्षित दिव्य ' सुरक्षा ' के लाल कच्चे सूत का अटूट रक्षा सूत्र
मेरी दाहिनी कलाई पर ऐसी बंधी रहें कि आसन्न ' विपदा ' से मैं सदैव सुरक्षित रहूं
डॉ. मधुप.
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नज़र से नजरिए का.. स्पर्श से नीयत का..
भाषा से भाव का..बहस से ज्ञान का..और व्यवहार से संस्कार का पता चल ही जाता है
भाषा से भाव का..बहस से ज्ञान का..और व्यवहार से संस्कार का पता चल ही जाता है
बुरा ' व्यक्ति ' उस वक्त और बुरा लगता है,
जब वह ' अच्छे ' होने का ढोंग करता है.
शक्ति : विचार.
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व्यर्थ का चिंतन : मनन.
अत्यधिक ' सोचना ' भी ' ' मानव जीवन ' के लिए ' श्रेष्यकर ' नहीं होता,
ये उन ' समस्याओं ' का भी जन्म देता है,
जो वास्तव में है ही नहीं.
⭐
द्वैत दिव्य प्रयास.
किसी से आपसी मधुर सम्बन्धों में कारण वश नाराजगी उत्पन्न हो जाए तो इसे
अगर कुछ दिन चुप रह कर माफ़ीनामे से दूर कर लिया जाना चाहिए
....तो रिश्तों में खटास कम आती हैं...लेकिन यह प्रयास द्वैत होना चाहिए
शक्ति : विचार : नैना देवी डेस्क : नैनीताल.
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मेरी अभिलाषा.
मैं सर्वदा तुम्हारे लिए ' ध्रुव ' तारे की तरह ' अटल ', 'अपरिवर्तनशील '
सम्मान का कारण, ' आशा पूर्ण ', ' सकारात्मक ', ' पूर्णतः ' ' हाँ ' ही रहूंगा.
सम्मान का कारण, ' आशा पूर्ण ', ' सकारात्मक ', ' पूर्णतः ' ' हाँ ' ही रहूंगा.
' सहिष्णु ' , ' धैर्यवान ', ' सृजनात्मक ' बन कर
तुम्हारे सर्वकालिक विकास के लिए प्रतिबद्ध और विश्वस्त, यदि मैं ऐसा समझा जाऊं तो
⭐
' नव शक्ति ' सिद्ध ' त्रि शक्ति ' अभिमंत्रित महाशक्ति ' राधिका ' द्वारा
संरक्षित दिव्य ' सुरक्षात्मक प्रेम ' के लाल कच्चे धागे का रक्षा सूत्र
मेरी दाहिनी कलाई पर ऐसी बंधी रहें कि मैं सदैव आसन्न ' विपदा ' से सुरक्षित रहूं.
डॉ.मधुप.
⭐
कभी ख़ुशी कभी गम
तेरी ख़ुशी मेरा गम.
बहुत प्यार करते है तुमको सनम
माना कि जिन्दगी गुजर रही है तकलीफ़ में है आजकल ,
मगर इस तरह चेहरे पर उदासी न ओढ़िये यूँ बे हिसाब
देख कर बस मुझे एक बार मुतमईन हो जाइए ख़ुद में ,
अपनी जिंदगी का रंजो - गम मुझे देकर एक बार तो मुस्कुरा दीजिये जनाब
डॉ.सुनीता शक्ति प्रिया .
नैनी ताल
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राम - कृष्ण.
राम की ' मर्यादा '
अपनों के लिए अक्षुण्ण रखा गया ' कृष्ण ' का ' प्यार '
न भूले कभी भी गीता का अपने जीवन में ' कर्म ' सार
करें ' राम ' की तरह ' गुरु ', ' माता - पिता', ' पत्नी ' भाई, ' का ' सम्मान '
कृष्ण की तरह सदैव रखें ' न्याय ',' धर्म ', ' सुकर्म ', ' स्वजन ' का मान
स्मरण रहें ' धृतराष्ट्र '' दुर्योधन ' सजग रहें
' कौरवों ' के छल - प्रपंच का करके नित दिन अपमान ध्यान.
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हम समस्त शक्ति बहनें एकत्रित हो कर उन देवों के लिए महाशक्ति बनेगी जो
एक आर्य जगत के नव निर्माण लिए संकल्पित व प्रयत्नशील हैं
नव शक्ति : त्रि शक्ति : महा शक्ति
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जिंदगी एक शतरंज की बिसात है। इस खेल में विपक्ष की गहरी चाल होती है
कि विरोधी के मोहरों यथा हाथी घोड़े प्यादा से ही
उसके राजा और बजीर को ही मार गिराया जाए और जीत हासिल की जाए।
समझना तो हमें हैं कि हमारे मोहरें हमारी सुरक्षा के लिए तैनात हो न की स्वयं के हार के लिए
चाल समझें ...विचार करें ...अपनों की सुरक्षा के लिए बुद्धि विवेक धैर्य अपनाए रखें
डॉ. मधुप
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' शिव ' में ' शक्ति ' निहित हो और ' शक्ति ' ' शिव ' में समाहित हो जाए.
त्रिशक्ति
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तेरी ख़ुशी मेरा गम.
माना कि जिन्दगी गुजर रही है तकलीफ़ में है आजकल ,
मगर इस तरह यूँ चेहरे पर उदासी न ओढ़िये जनाब
मुस्कुरा कर बस एक बार मुतमईन हो जाइए ख़ुद में ,
अपनी जिंदगी का रंजो - गम मुझको देकर एक बार तो ख़ुश हो लीजिए बे हिसाब
डॉ.सुनीता मधुप.
⭐
एक दूसरे के विश्वास भरे रिश्तों की जमापूंजी है हम
विषम परिस्थितियों और कष्ट में भी हमेशा सहिष्णु हो कर
विषम परिस्थितियों और कष्ट में भी हमेशा सहिष्णु हो कर
तुम्हारे लिए सहृदय बन कर मुस्कुराते ही रहेंगे
कभी ' तुम्हारे लिए ' तो कभी मेरे ' अपनों ' के लिए..
डॉ. मधुप
⭐
शक्ति.
अहंकार बताता है कि आप अकेले ही काफी हैं,
वक्त समझाता है कि कभी भी, कहीं भी, किसी की भी ज़रूरत पड़ सकती है.
⭐
सत्य के परीक्षण के लिए ' समय ', ' सद्बुद्धि , ' मानसिक संतुलन ' और ' संयम ' चाहिए
क्योंकि सत्य को सदैव तीन चरणों से गुजरना होता है, ' उपहास ', ' विरोध ' अंततः ' स्वीकृति '
⭐
....' समय 'और ' साथ ' को ही साबित करने दें कि
किसने कितना अपनों के लिए ' समर्पण ' ,' संस्कार ', ' संयम ' , ' सहिष्णुता ' ,
किसने कितना अपनों के लिए ' समर्पण ' ,' संस्कार ', ' संयम ' , ' सहिष्णुता ' ,
अगाध ' विश्वास ' , असीम ' प्रेम ', और ' वाणी ' पर नियंत्रण रखा...? ,
.....सुख दुःख में सम भाव रखते हुए आपसी सम्बन्धों का निर्वाह किया.. "
त्रि शक्ति समर्थित नव शक्ति विचार.
डॉ. मधुप.
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सम्यक दृष्टि : जीवन सुरभि : त्रिशक्ति : शक्ति डेस्क : पृष्ठ : १ / २.
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संपादन.
⭐
शक्ति.
नैना देवी डेस्क / नैनीताल.
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यह जरूरी नहीं कि बोले गये शब्दों का ही पश्चाताप हो
कभी - कभी समय पर नहीं बोलने का पश्चाताप भी जीवन भर रहता है
⭐
' ज़िंदगी ' में कभी कभी,अपनों से ' हारना ' भी सीख लीजिए ....
देख लेना अपनी इस ' हार ' में भी उनसे सदैव ' जीत ' जायेंगे ...
देख लेना अपनी इस ' हार ' में भी उनसे सदैव ' जीत ' जायेंगे ...
⭐
स्पर्श से ' नीयत ' का..भाषा से ' भाव ' का..
बहस से ' ज्ञान ' का..और व्यवहार से ' संस्कार ' का पता चल ही जाता है.
⭐
विचार करें.
लहरें प्रेरणादायक हैं,
इसलिए नहीं कि वे उठती और गिरती हैं..
क्योंकि वे दोबारा उठने में कभी असफल नहीं होती है..
इसलिए सकारात्मक रहें और अपना सर्वश्रेष्ठ करें
कठिन समय जल्द ही बीत जाएगा.
⭐
' भवतः अपेक्षया उत्तमः भगीदारः नास्ति.'
अर्थ : स्वयं से बढ़कर कोई हमसफ़र नहीं.
अर्थ : स्वयं से बढ़कर कोई हमसफ़र नहीं.
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पवित्र रिश्ता.
जीवन का वही ' रिश्ता ' सच्चा है,
जो पीठ पीछे भी आपको ' सम्मान ' दे ...सही है
मेरी समझ में रिश्ता वही सच्चा व पवित्र है
जो कभी भी, गलती से अपनों को किसी के समक्ष किसी काल में
' सार्वजानिक ' रूप से अपमानित होने का
अवसर ही न प्रदान करें
⭐
नीम ' कड़वी ' क्यों
गलती ' नीम ' की नहीं कि वो कड़वी है.
खुदगर्जी ' जीभ ' की है जिसे बस ' मीठा ' पसंद है.. सही है...
खुदगर्जी ' जीभ ' की है जिसे बस ' मीठा ' पसंद है.. सही है...
लेकिन उसी नीम को ' मिठास ' के साथ ' अकेलेपन में विश्वास ' और ' अपनेपन ' के साथ
दवा बतौर पिलाई जाए तो सबके लिए ' आरोग्यकारी ' सिद्ध होगी
विचार करें.
⭐
बुरा ' व्यक्ति ' उस वक्त और बुरा लगता है,
जब वह ' अच्छे ' होने का ढोंग करता है.
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' सम्मान ' हमारे ' व्यक्तित्व ' का सबसे अहम अंश है वे एक ' निवेश ' की तरह है
जितना हम दूसरों को देंगे वो हमें ' ब्याज़ ' समेत वापस मिलेगा
⭐
एक ' पुष्प ', एक ' बेलपत्र ', और एक लोटा ' गंगा जल ' की धार
' शिव - शक्ति ' कर दें ' आप ' - सभी का ' उद्धार '
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं आपके लिए. महादेव शिव की कृपा आप पर
सदा बनी रहें
⭐
' खुशी ' के लिये बहुत कुछ इकट्ठा करना पड़ता है ऐसा हम समझते है.
किन्तु हकीकत में ' खुशी ' के लिए बहुत कुछ छोड़ना पड़ता हैं,
ऐसा जीवन का ' अनुभव ' कहता है
⭐
अपने अपनों की शक्ति होते है ...उन्हें बदलना नहीं चाहिए
लेकिन जिसने भी अपनों को बदलते देखा है...
वह ज़िन्दगी में हर परिस्थिति का सामना कर सकता है
⭐
अपने ' स्वभाव ' को हमेशा ' सूरज ' की तरह रखें,
न उगने का ' अभिमान ' और न ही ' डूबने ' का डर.
⭐
सोच का ही फर्क होता है न , वरना ' समस्याएं ' तो हमें कमजोर करने नहीं,
बल्कि ' मजबूत ' बनाने ही आती हैं.
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' नकारात्मक ' लोगों से सदैव दूर रहना चाहिए,
क्योंकि उन्हें ' समाधान ' में भी समस्या ही नज़र आती है.
⭐
जीतने का मजा तभी आता है, जब सभी आपके हारने का इंतजार कर रहे हों
आप जीत ही रहें हो और दूर दूर तक़ हारने की कोई संभावना नहीं दिखती हो
⭐
' बोलना ' और ' प्रतिक्रिया ' देना जरूरी है लेकिन विकट परिस्थितियों में भी
जो व्यक्ति, ' वाणी ', ' व्यवहार ' में ' संयम ' और ' सभ्यता ' का दामन नहीं छोड़ता
जो व्यक्ति, ' वाणी ', ' व्यवहार ' में ' संयम ' और ' सभ्यता ' का दामन नहीं छोड़ता
वही सच्चा देवतुल्य इंसान है.
![]() |
डॉ. अजय कुमार. नालन्दा. जाह्नवी ऑय केयर रिसर्च सेंटर समर्थित : |
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सम्यक आचरण : जीवन सुरभि : त्रिशक्ति : सरस्वती : डेस्क : पृष्ठ : १ / २.
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संपादन.
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सरस्वती.
नर्मदा डेस्क : जब्बलपुर.
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हे परम पिता मुझे इतनी आत्म शक्ति देना कि विषम से विषम परिस्थितियों में भी अपनी
' सहिष्णुता ',' शब्दों ' की मर्यादा ' ' संस्कार ' और अपने सम्यक आचरण का साथ कभी न छूटे
' सहिष्णुता ',' शब्दों ' की मर्यादा ' ' संस्कार ' और अपने सम्यक आचरण का साथ कभी न छूटे
⭐
' ठीक हूं ' हम किसी से भी कह सकते हैं,
पर ' परेशान हूं ' कहने के लिए हमें कोई अपना बहुत खास ' निजता ' का ख़्याल रखने वाला,
बुद्धिमान ' अजीज ', ' वफ़ादार ',' हमराज ' ही चाहिए.
⭐
जिंदगी में कभी ऐसी ' निरर्थक ' खुली सार्वजानिक बहस मत करना
जिससे बहस तो जीत जाओ लेकिन अपने मधुर रिश्ते का ' अर्थ ' ही हार जाओ.
⭐
अपनों के लिए कड़वा पन क्यों
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वाणी में भी अजीब शक्ति होती है...
कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता ...और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है
विचार करें:
⭐
जिस ' क्षण ' तुम अपने जीवन में चारों तरफ़ से ढ़ेर सारी ' समस्याओं ' से घिर जाओ
उसी क्षण समझ लेना तुम्हारे जीवन का सबसे ' बड़ा परिवर्तन ' आने वाला है
बस धैर्य के साथ अपनी ईश्वरीय ' शक्तियों ' पर विश्वास रखना...
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' अन्य ' को उसके जीवन में ' ख़ुशी ' देना ही ' स्वयं ' के ' जीवन में ख़ुशी ' पाने का सिद्ध दैविक अधिकार है ' नव शक्ति : त्रिशक्ति : महाशक्ति
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आपस के मधुर संबंधों में ' संवादहीनता ' अफवाहों और दुरी को जन्म देती है
कम से कम सभ्य तरीक़े से आवश्यक सवालों के जवाब देने के क्रम का स्वागत होना ही चाहिए
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कदर करें ऐसे लोगों की जो पैसे और तोहफ़े नहीं ख़ुद को आप के लिए ख़र्च करते हैं
ख़ुद से ज़्यादा महफूज़ ऐसे लोगों को ये दुकानों में नहीं बड़ी नसीब से मिलते हैं
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हमें उस ' शिव ' की ' शक्ति ' सर्वदा बननी चाहिए
जो ' देव पुरुष ' इस ' आर्य जगत ' को ' कृण्वन्तो विश्वमार्यम ' बनाने
के लिए निरंतर प्रयत्न शील व संघर्ष शील है .
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अपने सम्यक जीवन में कल के लिए चिंता नहीं
उत्सुकता पूर्ण ' नूतन कार्य ' व ' नव निर्माण ' के लिए ' शक्ति ', ' उन्नति ' और ' जागृति ' होनी चाहिए
⭐
रहीम.
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय,
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय.
भावार्थ.
अपने दु:ख को अपने मन में ही रखनी चाहिए.
दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दु:ख को कोई बांटता नहीं है.
⭐
जिसकी मीठी बोली उसके संग सारी दुनियाँ हो ली
जिसकी कड़वी बोली उसने जीत कर भी दुनियाँ खो ली
⭐
' इंसान ' की सबसे बुरी आदत यह है,
कि उसे कुछ ना मिले तो वह ' सब्र ' नहीं करता..
कि उसे कुछ ना मिले तो वह ' सब्र ' नहीं करता..
और अगर ' मिल ' जाए तो उसकी ' कद्र ' नहीं करता.
⭐
' मेरे अपनों ' के मध्य असीम
' सहयोग ',' साथ ', ' स्वइच्छा ', ' स्नेह ', ' समर्पण ' ' सम्मान ' व ' सहिष्णुता ' की ' महाशक्ति '
' सहयोग ',' साथ ', ' स्वइच्छा ', ' स्नेह ', ' समर्पण ' ' सम्मान ' व ' सहिष्णुता ' की ' महाशक्ति '
सदैव बनी रहें.... हम सभी को इसके अनुरूप ही ' सम्यक आचरण ' करना चाहिए.
⭐
कभी कभी आपकी सहज उपलब्धता की उपयोगिता समझ में नहीं आती है
जैसे गंगा के निर्मल तट पर रहने वाले अक्सर लोग देव सरिता पुण्य सलिला
गंगा को प्रणाम करना ही भूल जाते है
: डॉ मधुप.
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औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए.
कबीर.
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![]() |
डॉ. दीना नाथ वर्मा दृष्टि क्लिनिक नालंदा : समर्थित नव शक्ति. विचार शिमला डेस्क |
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नव शक्ति. विचार प्रस्तुति. शिमला डेस्क : पृष्ठ : २.
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संपादन.
रेनू ' अनुभूति ' नीलम
शिमला.
⭐
विचार करें
यह कितना श्रेष्यकर हो कि अपने ' प्रिय ' ही अपने ' प्रिय ' स्वजनों के लिए सुनिश्चित करें
यह कितना श्रेष्यकर हो कि अपने ' प्रिय ' ही अपने ' प्रिय ' स्वजनों के लिए सुनिश्चित करें
कि उनका ' मान ' , ' सम्मान ', ' अरमान ' और ' स्वाभिमान ' क्या होना चाहिए
डॉ. सुनीता ' शक्ति ' प्रिया.
⭐
अजीब पहेली है ये जिंदगी भी
कहीं पर रिश्तों के नाम ही नहीं होते तो कहीं पर सिर्फ़ नाम के ही रिश्ते होते
⭐
दृश्यम / संपादन
जया सोलंकी / जोधपुर.राजस्थान.
⭐
कुमार विश्वास : कलयुग में कृष्ण को गा गयी मीरा
यू टूब लिक : भजन : राम आयेंगे...
गायक : भाभी सा : जया सोलंकी / भाई सा : तरुण सोलंकी.
भजन सुंनने व देखने के लिए नीचे दिए गए यू टूब लिंक को दवाएं.
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नव शक्ति. प्रस्तुति : सम्पादकीय
नव शक्ति. प्रस्तुति : सम्पादकीय
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शिमला डेस्क.
रेनू शब्द मुखर : जयपुर.
अनुभूति सिन्हा : शिमला.
अनुभूति सिन्हा : शिमला.
नीलम पांडेय : वाराणसी.
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डॉ.सुनीता ' शक्ति ' प्रिया.
नैना देवी / नैनीताल डेस्क.
नैना देवी / नैनीताल डेस्क.
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सहायक
कार्यकारी संपादक
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सरस्वती लक्ष्मी.
नर्मदा डेस्क : जब्बलपुर.
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फोटो संपादक.
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बी. गुप्ता / देहरादून.
अनुभूति शक्ति.
शिमला.
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संयोजिका.
वनिता / शिमला.
चिरंजीव नाथ सिन्हा.
ए.एस.पी. लखनऊ.
ए.एस.पी. लखनऊ.
रश्मि श्रीवास्तवा.
ए.एस.पी.
कर्नल सतीश कुमार सिन्हा.
सेवा निवृत.हैदराबाद.
अनूप कुमार सिन्हा.
व्यवसायी. नई दिल्ली.
मुकेश कुमार. पुलिस.उपाधीक्षक.रांची
राज कुमार कर्ण.
सेवा निवृत वरिष्ठ पुलिस. उपाधीक्षक.पटना
विजय शंकर.
सेवा निवृत वरिष्ठ पुलिस. उपाधीक्षक.पटना
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दिग्दर्शक / मंडल.
रवि शंकर शर्मा. संपादक. दैनिक भास्कर.नैनीताल.
डॉ. नवीन जोशी.संपादक. नवीन समाचार .नैनीताल.
मनोज कुमार पांडेय.संपादक.ख़बर सच है.नैनीताल.
अनुपम चौहान.संपादक.समर सलिल.लख़नऊ.
अनिल लढ़ा .संपादक. टूलिप टुडे.राजस्थान.
डॉ.आर. के. दुबे. लेखक ,संपादक.नई दिल्ली.
रंजना : स्तंभ कार स्वतंत्र लेखिका. हिंदुस्तान :नई दिल्ली.
अशोक कर्ण : फोटो संपादक. पब्लिक एजेंडा. नई दिल्ली.
डॉ. मीरा श्रीवास्तवा / पूना.
रीता रानी : जमशेदपुर.
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आकाश दीप : पद्य संग्रह : तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं : सम्पादकीय : पृष्ठ : ३
आकाश दीप : पद्य संग्रह : तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं : सम्पादकीय : पृष्ठ : ३
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संपादन.
रेनू शब्द मुखर ' शक्ति '.
जयपुर.
जयपुर.
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लघु कविता.
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होली के रंग
होली आई, होली आई,
आई और आकर चली गई.
पिचकारी की बौछारो से,
छोड़ गई है सबके बीच.
प्यार-दुलार के लाल रंग,
उमंग भरी बसंती बयार के संग.
हंसी-खुशी के जाने कितने रंग?
किसी ने तन भिगोया होगा,
लगाए होंगे, किसी ने गुलाल.
लाल,गुलाबी, हरा,बसंती,
पीले ,नीले हो गए होंगे गाल.
इन रंगों से सराबोर मेरा मन,
सोच रहा है, शिद्दत से अब,
होली के रंग उतर जाते हैं जैसे!
प्रीत का रंग भी, वैसे ही क्या?
छोड़ के रंग,अपना दिलों पर,
उतर जाते हैं, आहिस्ता -आहिस्ता.
नीलम पांडेय
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शॉर्ट रील : धुन.
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दृश्यम : लघु कविता : छटा छवि निहार ले
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दृश्यम : लघु कविता : कृष्ण जरूर आयेंगे
साभार : मनु वैशाली.
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नीला धागा मैंने बांध लिया
रचना श्रीवास्तवा.
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ईश्वर : आरती
रचना श्रीवास्तवा.
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होली विशेष : कविता
होली के बहाने ही सही.
सुनो ,
इस होली तुम खूब हंसना गाना
मन में आए वो गुनगुनाना,
मस्त हो जो चाहे वो करना
सुख के घोड़े चहुँ ओर दौड़ना,
सुनो साथ मुझे भी लेना,
होली के बहाने ही सही,
अपने व्यस्तम जीवन से
कुछ फुरसत के पल चुरा कर
मस्ती का आलम चारों ओर बिखराना,
होली के बहाने ही सही
सुनो इस होली खूब हंसना गाना.
फोटो : रश्मि.
होली के बहाने ही सही
अपने दुखों को तिलांजलि दे,
कण कण में अबीर गुलाल की
महक उड़ाना ,कहना होली आई रे.
उड़ा रे गुलाल,
मस्ती छाई रे बिखरा रे गुलाल,
जर्रे - जर्रे में प्रेम का रंग बिखराना,
मन को अपने मधुबन बना खूब महकाना.
सुनो इस होली खूब हंसना गाना,
मस्ती से प्रिय जन को गले लगा
सारे कटु भाव भुला,
द्वेष को मन से निकाल,
जीवन की लय अबीर उड़ा,
अपने जीवन को मधुमय बनाना,
सुनो इस होली तुम
खूब हंसना गाना.
रेनू शब्दमुखर.
जयपुर.
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खेले हैं मैंने होली के रंग.
मैंने देखा है अपने आँगन में
तेरे दादा और परदादा को भी,
तुतलाते, अलमस्त बचपन बिताते,
तख्ती पे घोटा घिसते, कलम बनाते...
मुस्कराते, गुनगुनाते और खिलखिलाते,
फिर जब 'अ से अनार' सीखते थे तेरे बूबू..
मैं तब भी थी, मैं आज भी हूँ,
मैं बाखली हूँ....
खेले हैं मैंने होली के रंग, तेरे पुरखों के संग ,
ना जाने कितनी दिवालियों में सजी हूँ,
सुनी है मैंने वो “काले-कव्वा काले” की पुकार
जब घूघूते की माला ले के दौड़ते थे तेरे बौज्यू...
मैं तब भी थी, मैं आज भी हूँ,
मैं बाखली हूँ...
गवाह हूँ मैं कितनी डोलियों की याद नहीं,
कितनी बेटियों की विदाई में बहे आंसू मेरे
कितनी बहुओं की द्वारपूजा की साक्षी हूँ..
जब चाँद सी सजके आई थी तेरी ईजा...
मैं तब भी थी ,मैं आज भी हूँ,
मैं बाखली हूँ...
फिर तेरे नामकरण की वो दावत
कितनी लम्बी पंगतों को जिमाया मैंने...
तेरा बचपन, तेरी शिक्षा,तेरा संघर्ष,
कितना फूला था मेरा सीना ,जब आया तू
पहली बार मेरे आँगन में 'ठुल स्यैप' बनके
मैं तब भी थी, मैं आज भी हूं..
मैं बाखली हूँ...
पर शायद मेरा आँगन छोटा हो गया ,
तेरे सपनो के लम्बे सफर के लिए..
तुझे पूरा हक है, जीने का नई जिंदगी।
शायद समय की दौड़ में, मैं ही पिछड़ गई हूँ...
याद है वो भी जब आखिरी बार कांपते हाथों से
सांकल चड़ाई थी तूने....
मैं तब भी थी, मैं आज भी हूँ,
मैं बाखली हूँ...
पर अब शायद और ना झेल पाऊं वक्त की मार,
अकेलेपन ने हिला दिया है मेरी बुनियादों को..
अब तो दरवाजों पे लगे तालों पे भी जंक आ गया
पर मेरा रिश्ता तुझसे आज भी वही है।
लेके खड़ी मीठी यादें, ढेरों आशीर्वाद...
मैं तब भी थी, मैं आज भी हूँ,
मैं बाखली हूँ..
तेरे दादा और परदादा को भी,
तुतलाते, अलमस्त बचपन बिताते,
तख्ती पे घोटा घिसते, कलम बनाते...
मुस्कराते, गुनगुनाते और खिलखिलाते,
फिर जब 'अ से अनार' सीखते थे तेरे बूबू..
मैं तब भी थी, मैं आज भी हूँ,
मैं बाखली हूँ....
खेले हैं मैंने होली के रंग, तेरे पुरखों के संग ,
ना जाने कितनी दिवालियों में सजी हूँ,
सुनी है मैंने वो “काले-कव्वा काले” की पुकार
जब घूघूते की माला ले के दौड़ते थे तेरे बौज्यू...
मैं तब भी थी, मैं आज भी हूँ,
मैं बाखली हूँ...
गवाह हूँ मैं कितनी डोलियों की याद नहीं,
कितनी बेटियों की विदाई में बहे आंसू मेरे
कितनी बहुओं की द्वारपूजा की साक्षी हूँ..
जब चाँद सी सजके आई थी तेरी ईजा...
मैं तब भी थी ,मैं आज भी हूँ,
मैं बाखली हूँ...
फिर तेरे नामकरण की वो दावत
कितनी लम्बी पंगतों को जिमाया मैंने...
तेरा बचपन, तेरी शिक्षा,तेरा संघर्ष,
कितना फूला था मेरा सीना ,जब आया तू
पहली बार मेरे आँगन में 'ठुल स्यैप' बनके
मैं तब भी थी, मैं आज भी हूं..
मैं बाखली हूँ...
पर शायद मेरा आँगन छोटा हो गया ,
तेरे सपनो के लम्बे सफर के लिए..
तुझे पूरा हक है, जीने का नई जिंदगी।
शायद समय की दौड़ में, मैं ही पिछड़ गई हूँ...
याद है वो भी जब आखिरी बार कांपते हाथों से
सांकल चड़ाई थी तूने....
मैं तब भी थी, मैं आज भी हूँ,
मैं बाखली हूँ...
पर अब शायद और ना झेल पाऊं वक्त की मार,
अकेलेपन ने हिला दिया है मेरी बुनियादों को..
अब तो दरवाजों पे लगे तालों पे भी जंक आ गया
पर मेरा रिश्ता तुझसे आज भी वही है।
लेके खड़ी मीठी यादें, ढेरों आशीर्वाद...
मैं तब भी थी, मैं आज भी हूँ,
मैं बाखली हूँ..
डॉ. नवीन जोशी.
नैनीताल.
नैनीताल.
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लघु कविता.
मैं तुम्हारी एक पवित्र नदी.
रचना श्रीवास्तवा.
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८ मार्च महिला दिवस
के अवसर पर प्रस्तुति
आज की नारी.
तितलियों के पीछे,भागता मन.
नारी के हौसलों की उड़ान,
छूने लगी है आसमान.
शायद ! अब उसको तुम भी,
मुश्किल से पाओगे पहचान.
कि कल तक जो डरती थी,
सास ननद के आये दिन के तानों से,
सुनसान राहों को देख,
कहीं भी अकेले जाने से.
लगाई जा रही पाबंदियों और,
रोज़ रोज़ के नए फरमानों से.
दफना के अरमानों को अपने,
थी झुक जाती,केवल समझाने से.
था भागता मन तितलियों के पीछे,
और डरती थीं सखियों के संग जाने से.
आज की यह नारी का हर रूप,
है अलग,और बिल्कुल निराला है.
चूल्हे चौके से निकल के बाहर ,
घर की देहरी को करके पार.
पहुंच चुकी हैं स्कूलों में अब वो,
मिल गया उनको किताबों का साथ.
कलम की ताकत का बल पाकर,
करती है अब वो भी सपने साकार.
बहू,बेटी, बहन, बीबी बन अब तक,
सिमटा हुआ था जिनका किरदार.
ऑफिस है अब दूसरा घर उनका ,
सहकर्मी को वो समझती परिवार.
गिला नहीं है उसे किसी से,
रखती है बस कामों से दरकार.
कोर्ट कचहरी हो या फिर,
स्कूल हो, या कि अस्पताल.
रेल चलाती, जहाज़ उड़ाती,
सड़कों पर कारें दौड़ाती.
वक्त आने पर बनके फौजी ,
हर मोर्चे पर लड़ वो जाती.
जलाती है दीया मंदिर का कभी,
कभी तो खुद रौशनी बन जाती.
हर चुनौती अब,आमंत्रण है,
नहीं मानती ,वो अपनी हार.
जननी बन सृजती जगत को,
पालती बन के पालनहार.
लेती है बदला हर अन्याय का,
जीवन को समझती अब उपहार.
अबला नहीं रही आज की नारी,
बनाती वो ख़ुद की पहचान.
आंचल में भरा है प्यार उसके,
आंखों में छुपे सपने हजार.
नीलम पाण्डेय.
वाराणसी.
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तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : सम्पादकीय लेख : आलेख : संग्रह. पृष्ठ : ४.
तारे जमीन पर : गद्य संग्रह : सम्पादकीय लेख : आलेख : संग्रह. पृष्ठ : ४.
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संपादन.
नीलम पांडेय.' शक्ति '.
वाराणसी.
वाराणसी.
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आलेख : महा शिवरात्रि. पृष्ठ : ४ /१
शिव का वैदिक अर्थ है - 'कल्याणकारी
शिव का वैदिक अर्थ है - 'कल्याणकारी '। ईश्वर के अतिरिक्त संसार का कल्याण, रक्षा एवं पालन-पोषण करने वाला अन्य कोई नहीं हो सकता। इसलिए यजुर्वेद १६ /४१ में कहा–" नमः शम्भवाय च शङ्कराय च"
शांति उत्पन्न करने वाले परमेश्वर को नमन करते हैं। 'च'और 'नमः शिवाय' मंगलकारी 'च' और 'शिवतराय नमः'अत्यंत मंगल स्वरूप परमेश्वर को नमन करते हैं और कल्याण को प्राप्त करते हैं।
ईश्वर से उत्पन्न अनादि एवं अविनाशी वैदिक संस्कृति के अनुसार इस संपूर्ण ब्रह्मांड में जो एक पूजनीय देव है- वह निराकार, सृष्टि रचयिता, सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही है। इसके समान अन्य कोई देवता नहीं है। इस विषय में अनेक वैदिक एवं शास्त्रीय प्रमाण हैं जैसे कि ऋग्वेद मंत्र १ /८१ / ५ में कहा-
‘इंद्र कश्चन त्वावान् न जातः न जनिष्यते’
अर्थात हे ईश्वर! तेरे समान न कोई हुआ और न कोई होगा। मंत्र में आगे उपदेश है कि जिसने आकाश, सूर्य आदि सब जगत को रच के रक्षित किया है, जो कण-कण में व्यापक है और जो जन्म तथा मृत्यु से परे है, उस एक परमेश्वर से अधिक कोई अन्य या कुछ और कैसे हो सकता है। अतः इस परमेश्वर की उपासना को छोड़कर अन्य किसी की उपासना ग्रहण मत करो।
हिरण्यगर्भः योगस्य वक्ता : अर्थात ज्योतिस्वरूप परमेश्वर ही योग विद्या का उपदेशक है, अन्य कोई नहीं। ऋषियों, मुनियों ने तो वेदों से ही इस विद्या को सीखकर किया आगे अपने शिष्यों को उपदेश किया, जो आज तक चला आ रहा है। दुख की बात है कि आजकल के तथाकथित योग गुरु आदि इस वैदिक कटु सत्य का प्रचार नहीं करते और स्वयं को योग का गुरु घोषित कर देते हैं।
उक्त मंत्र में और पतंजलि ऋषि कृत योग शास्त्र सूत्र २ /२९में योग विद्या के इन आठ अंगों का उपदेश है - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। महाभारत काल तक तो सब कुछ ठीक था और प्रत्येक ऋषि- मुनि, योगी इस ईश्वर से उत्पन्न योग विद्या का परंपरागत अभ्यास करके ईश्वर की उपासना करते हुए शब्द ब्रह्म (वेद) और परब्रह्म (ईश्वर) को प्राप्त करते रहे, परंतु किसी कारणवश महाभारत युद्ध के पश्चात वेद विद्या का सूर्य अस्त हो गया और मनुष्यों ने वेद विरुद्ध अपनी सुविधानुसार पूजा पाठ के स्वयं अनेक - अनेक रास्ते बना लिए।
महाशिवरात्रि का महत्व.
महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।
आधुनिक विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और शून्य में ही विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव यानी विशाल रिक्तता या शून्यता को ही महादेव के रूप में जाना जाता है। इस ग्रह के प्रत्येक धर्म व संस्कृति में, सदा दिव्यता की सर्वव्यापी प्रकृति की बात की जाती रही है। यदि हम इसे देखें, तो ऐसी एकमात्र चीज़ जो सही मायनों में सर्वव्यापी हो सकती है, ऐसी वस्तु जो हर स्थान पर उपस्थित हो सकती है, वह केवल अंधकार, शून्यता या रिक्तता ही है।
प्रकाश आपके मन की एक छोटी सी घटना है। प्रकाश शाश्वत नहीं है, यह सदा से एक सीमित संभावना है क्योंकि यह घट कर समाप्त हो जाती है। हम जानते हैं कि इस ग्रह पर सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्त्रोत है।
परंतु अंधकार सर्वव्यापी है, यह हर जगह उपस्थित है। संसार के अपरिपक्व मस्तिष्कों ने सदा अंधकार को एक शैतान के रूप में चित्रित किया है। पर जब आप दिव्य शक्ति को सर्वव्यापी कहते हैं, तो आप स्पष्ट रूप से इसे अंधकार कह रहे होते हैं, क्योंकि सिर्फ अंधकार सर्वव्यापी है। यह हर ओर है। इसे किसी के भी सहारे की आवश्यकता नहीं है। प्रकाश सदा किसी ऐसे स्त्रोत से आता है, जो स्वयं को जला रहा हो। इसका एक आरंभ व अंत होता है। यह सदा सीमित स्त्रोत से आता है। अंधकार का कोई स्त्रोत नहीं है। यह अपने-आप में एक स्त्रोत है। यह सर्वत्र उपस्थित है। तो जब हम शिव कहते हैं, तब हमारा संकेत अस्तित्व की उस असीम रिक्तता की ओर होता है। इसी रिक्तता की गोद में सारा सृजन घटता है। रिक्तता की इसी गोद को हम शिव कहते हैं। भारतीय संस्कृति में, सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ केवल आपको बचाने या आपकी बेहतरी के संदर्भ में नहीं थीं। सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ कहती हैं, “ हे ईश्वर, मुझे नष्ट कर दो ताकि मैं आपके समान हो जाऊँ।“ तो जब हम शिवरात्रि कहते हैं जो कि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिन है, तो यह एक ऐसा अवसर होता है कि व्यक्ति अपनी सीमितता को विसर्जित कर के, सृजन के उस असीम स्त्रोत का अनुभव करे, जो प्रत्येक मनुष्य में बीज रूप में उपस्थित है।
यह महा शिवरात्रि हमें मोह और अज्ञान की महारात्रि से दिव्य ज्ञानज्योति की ओर अग्रसर करने वाली हो
"तमसो मा ज्योतिर्गमय "
आलेख : नीलम पाण्डेय.
पृष्ठ सज्जा : डॉ. सुनीता ' शक्ति ' प्रिया.
नैनीताल.
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आलेख : महिला दिवस. पृष्ठ : ४ /२
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कामकाजी महिलाएं और सामाजिक दायित्व का निर्वहन -दोहरी भूमिका.
रीता रानी / जमशेदपुर.
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फोटो : साभार. |
समय के घूमते चक्र के साथ बदलती हैं परिस्थितियां , रूपांतरित परिस्थितियां बदल डालती हैं -सामाजिक बुनावट या संरचनाएं । परिवर्तित सामाजिक बुनावट के साथ नवाकार लेती हैं भूमिकाएँ और इन्हीं बदली भूमिकाओं के साथ अंगड़ाई लेते हुए जी उठते हैं नवस्वप्न ।परिवर्त सामाजिक संरचनाओं ने महिलाओं की भूमिका , उनकी आकांक्षाएँ , उनके स्वपनों को एक नई दिशा में गति प्रदान कर दी है और विद्यालय - महाविद्यालय के दायरे लाँघतीं महिलाएँ आर्थिक स्वावलंबन के मोड़ पर आकर खड़ी हो रही हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के परिसर से लेकर सैन्य क्षेत्र, अंतरिक्ष अनुसंधान से राष्ट्रीय - अन्तराष्ट्रीय खेल मैदानों तक, आँगनबाड़ी सेविका दीदी से भारत के प्रथम नागरिक तक-- विस्तृत आयाम सिमट आया है महिला उत्कर्ष की गति में।
किसी भी समाज की सहज स्वाभाविक विकास प्रक्रिया है यह और इस गतिशील प्रक्रिया का ही एक अभिन्न स्वरूप यह भी है कि शिक्षित तो क्या अर्धशिक्षित या अशिक्षित महिलाएं भी आर्थिक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सशक्त उत्तरदायित्व निभा रही हैं। इन अर्द्धशिक्षित या अशिक्षित महिलाओं की तस्वीर नगरों में घरेलू सहायिकाओं के तौर पर आजीविका ढूँढने के अलावा पेट्रोल पंप से लेकर विभिन्न दुकानों में कार्यरत , ऑटो चलाने से लेकर छोटे-मोटे ठेलों पर भोजनादि सामाग्री बेचती हुई , सब्जी हाटों में सब्जियों की ढेर के पीछे ग्राहकों का इंतजार करती , विभिन्न औद्योगिक ईकाईयों में ठेकेदारों के अन्तर्गत नियमित श्रमिक के रूप में अपना योगदान देतीं या निर्माण कार्यों में सिर पर सीमेंट - बालू, ईंट ढोती अंकित होती हैं तो ग्रामीण क्षेत्रों में अन्यान्य के अलावा खेतिहर मजदूरी में अपना अर्थतंत्र ढूँढती स्त्रियाँ इसकी मिसाल हैं-- संगठित से लेकर असंगठित क्षेत्र, निजी से लेकर सार्वजनिक क्षेत्र - सभी महिला श्रमों का राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में अहम् योगदान है।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा अपनी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट २०२२ -२०२३ में जारी आंकड़ों के अनुसार देश में महिला श्रम बल भागीदारी दर बढ़कर ३७ हो गई है, जो ४.२ प्रतिशत अंक की महत्वपूर्ण वृद्धि लिए हुए है।
शोध के अनुसार भारतीय महिलाएं सकल घरेलू उत्पाद में १८ योगदान करती हैं और आने वाले समय में महिला सशक्तिकरण के कारण भारत की जीडीपी २०५० तक ७७० बिलियन डॉलर तक बढ़ सकती है। “किसी राष्ट्र के विकास में सबसे अच्छा थर्मामीटर वहां महिलाओं का प्रबंधन है। जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा तब तक विश्व कल्याण की कोई संभावना नहीं है।" -स्वामी विवेकानंद का चिंतन आज भी कितना समीचीन है।
आजादी के ७५ वर्षों में महिलाओं में शिक्षा का बढ़ता स्तर ; आर्थिक तंगी के कारण विकल्प ढूँढने की विवशता ;परिवार के आर्थिक - सामाजिक उन्नयन हेतु आय अर्जित करने में साझेदारी की भावना का विकास ; विशिष्ट उत्तरदायित्व बोध ; अपने माता -पिता , भाई-बहन अथवा निजसंतान या पति के प्रति ममत्वपूर्ण समर्पण के कारण उन्हें आर्थिक लाभ और बेहतर जीवन उपलब्ध कराने के लिए अधिक चेतनायुक्त होना ; नगरीकरण और भौतिकता का बढ़ता प्रभाव ; जीवन - स्तर को उन्नत करने की चाह;उपेक्षा , तिरस्कार तथा पारिवारिक हिंसा को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए स्वयं को सशक्त करने की कोशिश ; अपने मान -सम्मान के प्रति सजगता; स्वयं के व्यक्तित्व निर्माण के प्रति जागरूकता ; अपनी प्राप्त शिक्षा एवं अर्जित कौशल के सदुपयोग की चाह ; निज लक्ष्य व स्वप्नों को मंजिल तक पहुँचाने की लिप्सा ;एक जीवंत जीवन के रूप में सार्थकता प्राप्ति की कामना ; सामाजिक इकाई के रूप में स्वयं को एक स्वीकृत उत्पादक घटक के रूप में देखने की अभिलाषा ; स्त्री जीवन, उसकी स्वतंत्रता, उसकी सृजनात्मकता की नई परिभाषाएँ गढ़ने की कोशिश - अनेकानेक ऐसे प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष प्रेरक कारण हैं जिन्होंने महिलाओं को गृहअंगना से बाहर निकालकर रोजगार के चौराहे पर ला खड़ा कर दिया है।
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आलेख : महिला दिवस. गतांक से आगे : १
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महिला : और उनके बढ़ते दायित्व
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नई मंजिलें : नई मंजिलें हैं, नूतन कल्पनायें हैं, नव राह है , विशिष्ट उपलब्धियाँ हैं तो भला चुनौतियाँ नव्य कैसे न होंगी? अभिनव उड़ान है तो पाँखों की क्षमता की वर्त्तमान परीक्षा भी है। पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था में महिलाएँ घरेलू और श्रमसाध्य कार्यों के हेतु ही ज्यादा समर्पित रही हैं।
पितृसत्तात्मक समाज : आज भी कुल महिला श्रम का ७२.८ % कृषिकार्यों में संलग्न है। वर्तमान में महिलाओं ने इसके इतर अपने लिए अनेक नए कार्य क्षेत्र तो चुन लिए हैं परंतु सामाजिक व्यवस्था तो वही है, पितृसत्तात्मक --इसलिए बदले हुए कार्यपरिवेश में भी कार्यस्थल के कार्यों के साथ-साथ घरेलू कार्यों का भी बोझ महिलाओं के कंधों पर ही है - दोहरा बोझ।
निम्न और मध्यमवर्गीय परिवारों की महिलाएं : विशेषकर निम्न और मध्यमवर्गीय परिवारों में महिलाएं इन दो पाटों में पीस रही हैं --जहाँ पुरुष अपनी कामकाजी पारिवारिक स्त्री के प्रति या तो संवेदनहीन है या उसका पुरुष वाला अहम्,घरेलू कार्यों को संपन्न कराने में अपनी पारिवारिक महिला सदस्य का सहयोग करना अपने मान - अभिमान के खिलाफ समझता है ।पुरुष ही अकेले प्रश्नों के घेरे में नहीं , स्त्रियाँ भी इसी गुलाम मानसिकता की आदी हैं और इस कारण उसी घर की या समाज की अन्य महिलाएँ किसी पुरुष को घरेलू कार्यों में संलग्न देखकर उसका माखौल उड़ानें से बाज नहीं आतीं ।घरेलू दायित्वों के निर्वहन में समावेशी सोच अभी भी हमारे भारतीय समाज का हिस्सा नहीं बन पाई है। महिलाओं ने उदारता दिखाते हुए अर्थतंत्र के बोझ को अपने कंधे पर उठा तो लिया परंतु पुरुष, चाहे कारण जो भी हो ,अब तक पूर्णता के साथ गृह कार्य की साझेदारी में अपना दूसरा कंधा लगा नहीं पाता। छोटे ही अंश में सही ,संतोषप्रद यह है कि सहयोगात्मक पुरुष प्रवृत्ति का प्रतिशत शून्य के आंकड़े पर स्थित नहीं है और उम्मीद की जाती है कि जैसे-जैसे पितृसत्तात्मक समाज के ताबूत में कीलें ठोकी जाएंगी, वैसे-वैसे इस मनोवृत्ति में बदलाव होता नजर आएगा।
उच्चवर्गीय महिलाओं का जीवन : इस दृष्टिकोण से उच्चवर्गीय महिलाओं का जीवन ज्यादा सरल और अपेक्षाकृत कम समस्यायुक्त है क्योंकि उनकी आर्थिक सुदृढ़ता उन्हें घरेलू सहायिकाओं , एक या एकाधिक संख्या में , से घरेलू काम करा लेने की परिस्थिति बना देती है। वैसे मध्यमवर्गीय घरों में भी घरेलू कार्यों के निष्पादन के लिए कामकाजी महिलाएँ सहायिकाएँ रखती हैं ,परंतु यहां भी सहायिकाओं और घरेलू कार्यों के बीच , रोज की भागती - दौड़ती जिंदगी में सामंजस्य बनाना उनके लिए एक चुनौती ही होती है ।यह भाग- दौड़, कार्य का दोहरा दबाव,समय की पाबंदी की चुनौती, अत्यधिक दबाव से उत्पन्न तनाव--सभी कारक कहीं न कहीं योगात्मक हो कामकाजी महिलाओं के मानसिक और शारीरिक , दोनों ही स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डालते हैं। अगर घर से कार्यस्थल की दूरी अधिक हो,महिला स्वयं वाहन चलाने में दक्ष न हो ,गंतव्य तक पहुँचाने के लिए केवल सार्वजनिक वाहनों पर निर्भरता हो और अगर गंतव्य इतने दुर्गम स्थान पर स्थित हो कि सार्वजनिक वाहन भी न जाते हो --तो इन विसंगतियों को झेलते हुए सामाजिक और पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन कितना कठिन होगा ,कल्पना की जा सकती है।
कामकाजी महिला : कामकाजी महिलाओं के बच्चें अगर अबोध हों,घर में किसी जिम्मेदार सदस्य की उपस्थिति न हो ,अगर बुजुर्ग या अन्य कोई घर में हो भी तो वे शिशु देखरेख की जिम्मेदारी हेतु प्रस्तुत होंगे या नहीं - ऐसे अनिश्चित हालातों में कामकाजी महिला की समस्या की सघनता के माप का उत्तर भी किसी निश्चित परिमाप में नहीं हो सकता।अगर किसी बुजुर्ग सदस्य की घर में उपस्थिति है भी परंतु यदि वे स्वयं ही अस्वस्थ हों तो इन सारी परिस्थितियों में एक मां की,जो एक कामकाजी महिला भी है,की दयनीय मनःस्थिति को सहज ही समझा जा सकता है।हर कामकाजी महिला की आर्थिक स्थिति अपने बच्चों के लिए केयरटेकर रखने की अनुमति देगी ही ,ऐसा तो सोचना भी उचित नहीं।ऐसे में अगर उनकी कार्यस्थली अपने साथ बच्चों को ले आने की इजाजत देती है तो थोड़ा संतोषप्रद हो सकता है लेकिन वहां महिला की उत्पादकता प्रभावित हो सकती है ।साथ ही ,बच्चों का स्वास्थ्य और उसके आराम की अवस्था भी।
एक कामकाजी महिला का ममत्व हमेशा ही सलीब पर लटकी एक आकृति है क्योंकि उसकी अनुपस्थिति में बच्चों के प्रति उसके दायित्व निर्वहन में कमी तो होगी,बच्चों के पालन - पोषण की गुणवत्ता कई बार गहरे स्तर तक प्रभावित होती है। बढ़ते बचपन और युवा होते किशोर को भले ही माँ की अनुपस्थिति में भोजन प्राप्त हो जाये, परंतु माँ की अनुपस्थिति का प्रत्यक्ष - परोक्ष दुष्प्रभाव बच्चों के शैक्षिक प्रदर्शन पर गंभीर गिरावट के रूप में भी देखा गया है। बच्चों द्वारा स्वअध्ययन का समय माता -पिता की अनुपस्थिति में टी०वी०, मोबाईल या अन्य अनुत्पादक कार्यों को समर्पित हो जाता है।
पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन : पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन को लेकर , विशेषकर बच्चों के प्रति, कामकाजी महिलाएं अपने कर्त्तव्य बोध के प्रति कई बार अपराध बोध से भी भर उठती हैं । इस मनोवैज्ञानिक ग्रंथि से तबतक उबर नहीं पातीं, जबतक वे स्वयं के उत्पादक स्वरूप एवं एक जिम्मेदार माँ -अपने व्यक्तित्व के इन दोनों पहलुओं के बीच स्वस्थ - संतुलित पुल तैयार न कर लें। ऐसी भी मनोवृति विकसित होने लगती है कि बच्चों के पालन -पोषण के क्रम में स्वयं की अनुपलब्धता की क्षतिपूर्ति भौतिक सुविधाओं की उपलब्धता को बढ़ाकर करने की कोशिश की जाती है , हाँलाकि कई अर्थों में यह पैरेंटिंग के लिए प्रश्नचिन्ह भी है।समय और संगत की गुणवत्ता का कोई विकल्प नहीं और इसलिए इसका दुष्प्रभाव बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण पर पड़ने का भय सदैव रहता है।परंतु इसका एक दूसरा मजबूत पक्ष यह भी है कि आत्मनिर्भर माताओं के बच्चे अधिक आत्मविश्वासी, स्वावलंबी ,अपने भविष्य के प्रति अधिक संजीदा और जागरूक भी हो सकते हैं।
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आलेख : महिला दिवस. गतांक से आगे : २
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कामकाजी महिलायें : और उनके बढ़ते दायित्व
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पी वी सिंधु, गीता गोपीनाथ, टेसी थॉमस, शकुंतला देवी : साभार : फोटो. |
संगठित तथा असंगठित दोनों ही क्षेत्र में , यहां पर सरकार की ओर भी बड़ी जवाबदेही बनती है कि नवजात व अबोध बच्चों के लिए लिए कार्य स्थल पर उचित व्यवस्था का सृजन करें ताकि महिलाएँ अपने मातृत्व की इस चुनौती का सामना कर आगे बढ़ सकें । अभिभावक विहिन घरों में किशोर वय संतानों के सुरक्षात्मक संरक्षण हेतु भी विकल्पों पर विचार करना - समाज व सरकार दोनों का कर्तव्य है । जरूरत इस बात की भी है कि यह भी समझा जाए कि बच्चों का पालन-पोषण और उनके प्रति दायित्वों का निर्वहन पिता के साथ-साथ अन्य पारिवारिक सदस्यों की साझा व नैतिक जिम्मेदारी है।
बच्चों के अलावा,घर के बुजुर्गों या बीमार सदस्यों की देखरेख में भी महिलाओं का कामकाजी होना प्रभाव डालता है क्योंकि भारतीय समाज की जैसी संरचना है, उसके अनुसार इस २० वीं शताब्दी में भी इन कार्यों की प्राथमिकता एक परम्परावादी परिवार में औरतों के हिस्से में ही आती है। अगर स्त्री - पुरुष दोनों ही कार्य स्थल के लिए निकल रहे हों और घर में अचानक इस तरह का कोई संकट उत्पन्न हो जाए तो पहली दृष्टि महिला की ओर ही उठती है कि वह अपने कार्य स्थल से अवकाश ग्रहण कर ले।इन स्थितियों में महिलाओं से ही यह अपेक्षा रखी जाती है कि वह अपने कार्यस्थली से पहले घर लौटें। परंतु ध्यान रखना होगा कि इस तरह की हर पारिवारिक और सामाजिक समस्या का समाधान परिवार के सदस्यों के बीच आपसी समझ और वैचारिक संतुलन की धरा पर ही खड़ा है। यहाँ भी उच्च आर्थिक स्थितिवाले परिवारों में कामकाजी महिलाएँ अधिक सरल स्थिति में होती हैं क्योंकि उनका अर्थतंत्र नर्स की वैकल्पिक व्यवस्था कर पाता है
घरेलू क्षेत्र के अतिरिक्त महिलाओं का बाहर जाकर काम करना उनके पारिवारिक और सामाजिक संबंधों के निर्वहन में,पारिवारिक और सामाजिक उत्सव में सम्मिलित होने के संबंध में, अनेक सामाजिक दायित्वों को पूर्ण करने में--कई बार आशानुरूप कार्य करने नहीं देता क्योंकि इन सभी के बीच समय ,श्रम ,आराम, अनुकूलता - आदि तत्वों के मध्य संतुलन साधना दुष्कर तो है।अपने कार्यों और दायित्वों तथा अपनी सामाजिक - पारिवारिक छवि दोनों को साधने में कामकाजी महिलाएँ प्रायः उलझ कर रह जाती हैं। उनका भावनात्मक संतुलन कई बार हिंडोले पर सवार अस्थिर हो उठता है। कभी कुछ छूटा तो कभी कुछ ।
स्वयं महिलाएं भी अभी तक परंपरागत छवि से खुद को मुक्त नहीं कर पाई है और इसलिए कई बार मानसिक क्षोभ और असंतुष्टि का शिकार रहती हैं। यह मानसिक स्थिति उन्हें अपनी नौकरी छोड़ने के लिए प्रेरित तक कर देती है।कई नौकरियाँ भी बहुत तनावपूर्ण होती हैं और कई बार महिलाएँ काम से संबंधित उच्च स्तर के तनाव को संभाल नहीं पाती हैं। उनका स्वभाव पुरुषों की तुलना में उन्हें चिंता और अवसाद की ओर अधिक प्रवृत्त करता है।
इन पारिवारिक - सामाजिक दायित्वों को पूरा करने के क्षेत्र में अधिक संकट और भी तब पैदा हो जाता है जब कार्यस्थल पर अनुकूल वातावरण की उपस्थिति न हो । यथा- काम के अधिक घंटे, उचित पारिश्रमिक का अभाव, शौचालय का उचित प्रबन्ध न होना, बच्चों को स्तनपान कराने जैसे कार्यों के लिए निजता का अभाव, लिंङ्गभेद , यौनशोषण , मानसिक प्रताड़ना , सुरक्षा का अभाव आदि। असंगठित क्षेत्रों में तो मातृत्व अवकाश जैसी मूलभूत सुविधा भी नहीं मिलती। प्रजनन जैसे मौलिक कार्य से महिलाएँ खुद को दूर कैसे करे?ऐसे में शारीरिक - मानसिक दंश झेलती कामकाजी स्त्री अपने कार्यस्थल पर सर्वोत्तम उत्पादकता कैसे दे सकती है? ऐसी संकटपूर्ण विषमताओं में सर्वोच्च उत्पादकता तो दूर की बात है, स्वयं उसका अपना जीवन ही मानवाधिकारों के लिए माँग करता और संघर्ष करता दिखाई देता रहेगा। दो पैसा कमाने की चाह, अपनी पहचान बनाने की चाह तो दूर रही -- अपनी एक विशिष्ट सम्मानित छवि के लिए ही सर्वप्रथम उसे युद्ध लड़ना होगा।
महिला रोजगार और महिलाओं की सामाजिक - पारिवारिक दायित्व के बीच संतुलन साधना कितना दुष्कर है ,यह इस बात से समझा जा सकता है कि वर्तमान समाज में मध्यमवर्गीय और विशेष कर उच्चमध्यम वर्गीय परिवारों में नौकरीपेशा कन्याओं में एक विशेष प्रवृत्ति उभर कर सामने आ रही है - वे अपने करियर के आगे वैवाहिक संबंधों में स्वयं को बांधना लम्बे समय तक टाल रही हैं। विविध क्षेत्रों में, बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करती ये कन्याएँ,जहां लुभावने आय स्तर का उपभोग करती हुईं महत्वपूर्ण कार्यालयी दायित्वों को तो बखूबी संभाल रही हैं परंतु वैवाहिक दायित्वों का भार उठाने से घबराती हैं।
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आलेख : महिला दिवस. गतांक से आगे : ३.
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स्वामी विवेकानंद : ' पूर्ण नारीत्व की अवधारणा पूर्ण '
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शक्तियां विस्मृत कैसे की जा सकती है ..? |
इस संदर्भ में सबसे अधिक संकट इस कारण भी है कि स्वयं महिलाएं अपने अधिकारों की लड़ाई में सहायक संवैधानिक अधिकारों व कानूनों के बारे में अत्यंत अल्प ज्ञान रखती हैं।महिला रोजगार के क्षेत्र में यह भी उल्लेखनीय है कि जिन भी क्षेत्रों में कठोर शारीरिक बल और लौह जैसी दृढ़ इच्छाशक्ति की अनिवार्यता हो, वहाँ पर कई बार उनकी क्षमता को कम करके आंका गया है, प्रदर्शन पर सवाल उठ खड़े हुए हैं-- ऐसे में इन क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं को अपने श्रेष्ठ प्रदर्शन की उद्देश्यपूर्ति में मानसिक -भावनात्मक द्वंद्वों से भी गुजरना पड़ा है। खेल, रक्षा आदि क्षेत्रों में यह विशिष्ट प्रवृति दिख जाती है। समाज के दोहरे सोच का ही उदाहरण है कि जिस क्रिकेट की दुनिया दीवानी है,वही दीवानी दुनिया महिला क्रिकेट के बारे में कितना सोचती है?महिला क्रिकेट खिलाड़ी अब तक कहाँ नायकों की भाँति जनता के माथे पर बैठ पाए हैं ?यह सामाजिक व्यवस्था इन महिलाओं के मनोबल को प्रतिक्षण चुनौती देती होगी, अगरचे वर्तमान सरकार और आधुनिक बन रही परम्पराओं का महिला शक्ति पर गहरा विश्वास दिख रहा है, जो श्वेत प्रकाश को विस्तृत कर रहा है।
इस विषय की चर्चा तब तक अपूर्ण रहेगी , जब तक केवल कामकाजी महिलाओं पर पड़ने वाले दोहरे दबाब पर तो चर्चा हो परंतु दोहरे सामाजिक मानदंडों से अभिशप्त महिला श्रम के उस पक्ष पर बात न की जाए जो उपेक्षित है, अनादृत है ।अतिआवश्यक है कि महिला रोजगार के आभासित महल के उस कमरे में भी दीप रखने की कोशिश की जाए, जिसकी दीवारें सामाजिक मूल्यों के दोहरेपन की कालिख से रंगी हुई हैं । देहव्यापार से जुड़ी महिलाएँ, जिनके जीवन में अनादर है, तिरस्कार है, घोर पीड़ा एवं शोषण है, अमानवीय अत्याचार है, शारीरिक- मानसिक - भावनात्मक रुग्णता की अँधेरी छाया है और इन सबके बावजूद यह कटु सत्य भी कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार के आंकड़े के अनुसार देश में लगभग ३० लाख से भी अधिक महिलाएं देह व्यापार से जुड़ी हैं।ह्यूमन राइट्स वॉच की गणना के अनुसार तो लगभग दो करोड़ महिलाएं भारत में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस कार्य से जुड़ी हैं और यह लगभग ६६ हजार करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार है। इस क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं का अस्तित्व ही स्वयं में सामाजिक स्वीकृति को एक चुनौती है क्योंकि समाज का एक वर्ग इनका दोहन करता है - अनादर, अन्याय और कभी-कभी तो क्रूरता के साथ और अपने अस्तित्व को तलाशती ये महिलाएँ व्यवस्था के दोहरेपन के कारण बद से बदतर जिंदगी जीने को बाध्य होती हैं। इन महिलाओं को व्यक्तिगत एवं सामाजिक - दोनों स्तर पर जीवन में अनेक विद्रूपताओं का सामना करना पड़ता है ।सबसे बड़ा संकट इनकी संतानों के अनिश्चित , असम्मानित भविष्य के संदर्भ में है। यहाँ जन्में बच्चें अधिकांशत: शिक्षा के मौलिक अधिकार से भी वंचित होते हैं और बालिका संतान के लिए तो प्रबल आशंका होती है कि कहीं वे इसी क्रूर प्रथा की शिकार न हो जाएँ ।इन महिलाओं के सामाजिक अधिकार, इनकी संतानों के मौलिक अधिकार के प्रति चेतनशील होना सरकार का ही नहीं ,समाज का भी कर्तव्य है। यद्यपि १९ मई, २०२२ को उच्चतम न्यायालय ने भारत के संविधान के आर्टिकल २१ के तहत अन्य सभी भारतीय नागरिकों की तरह ही यौनकर्मियों को भी इज़्ज़त पाने और जीवन जीने का अधिकार होने की बात कही है । परंतु कानून से अलहदा भी हम - आप, सबको, इनकी सामाजिक भूमिका , व्यक्तिगत समस्याओं , पुनर्वास को विशेष संजीदा दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है ताकि लिङ्ग भेद के दोहरेपन की मकड़जाल में ग्रस्त इन जीवनों में भी आशा व सम्मान का उजाला हो ।
अनेक नकारात्मक पक्षों के बीच कामकाजी महिलाओं के सन्दर्भ में एक बहुत महत्वपूर्ण सकारात्मक पहलू यह है कि आर्थिक श्रेणी में उन्नत हर महिला ,अपने से निम्न श्रेणी में स्थित महिलाओं के लिए रोजगार का अवसर बन रही हैं; उनसे अनेक घरेलू कार्यों में सहयोग लेने के रूप में - घरेलू सहायिका , नर्स, ट्यूशन शिक्षिका, रसोईया, कपड़े इस्त्री करने वाली , बच्चों की देखभाल करनेवाली-- अनेकानेक कार्यरूपों में ।खूबसूरत बात यह भी कि महिलाओं का कामकाजी होना न केवल उनके आर्थिक स्वायत्तता को प्रोत्साहित करता है अपितु आधी जनसंख्या को स्वतंत्र , सबल ,आत्मनिर्भर, जागरूक , आत्मस्वाभिमानी ,अन्याय का प्रतिकार करने योग्य, विचारवान बनाकर सृजन के एक नए अध्याय पर उनके हस्ताक्षर अंकित कर रहा है।
ध्यान देनेयोग्य बात यह भी, भारत जो स्टार्टअप और यूनिकॉर्न कम्युनिटी के क्षेत्र में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है , के क्षेत्र में भी महिलाएँ उद्यमिता के साथ आगे आ रही हैं, हालाँकि इनका प्रतिशत अभी मात्र १० % है , जिसे प्रोत्साहित करने की जरूरत है। बजट २०२३ - २४ में ' राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ' के तहत ८१ लाख ग्रामीण महिलाओं को सेल्फ हेल्फ ग्रुप के जरिए सशक्त करने की योजना है। केरल में ' कुटुम्ब श्री योजना ' , बिहार में 'रसोईदीदी ' जैसे उद्यम इसी श्रेणी के प्रयास है, जहाँ महिलाएँ अपने जीवन में दोहरे दबाब के बावजूद आर्थिक उन्नति का चयन करती हैं। मतलब छोटे से छोटे स्तर पर भी महिलाएँ मौका मिलते ही खुद पर काम का दोहरा दबाब डालकर भी आर्थिक आत्मनिर्भरता की राह चुन रही हैं। इस दबाब में उन्हें अपने शरीर, मन , भावनाओं पर दाब स्वीकार्य है, अग्रसारिता को न कहना स्वीकार्य नहीं।
युद्धक विमानों की महिला लड़ाका अवनि चतुर्वेदी से लेकर सियाचीन ग्लेश्यिर पर तैनात ITBP की महिला सिपहसलार तक, रॉकेटरमणी ऋतु करिधाल से लेकर किसी गाँव के पंचायत की वार्ड सदस्या तक , पर्यावरणविद् तुलसीगौड़ा से लेकर धान रोपती महिला खेतिहर मजदूर तक , क्रिकेट की पीच पर अपनी धाक जमानेवाली हरमनप्रीत कौर से लेकर दो पैरालंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला अवनी लेखरा तक-- सभी का योगदान नारी विकास की कथा का आकर्षक अध्याय है तो सभी की घरेलू और सामाजिक जीवन के बीच संतुलन कायम करने के क्रम में उत्पन्न समस्याओं से लड़ाई भी पृथक-पृथक है जो इन सभी के अपने -अपने पारिवारिक -सामाजिक परिवेश से बँधी हुई है। परंतु इतना तो सर्वमान्य सत्य है कि परिवार, समाज और सरकार का सहयोग, संतुलित सोच , प्रदत प्रोत्साहन --- कामकाजी महिलाओं के लिए सुगम और सुगमतर जीवन परिस्थितियों के निर्माण में सहायक होगा। आवश्यक है कि एक माँ के तौर पर हम स्त्रियाँ स्वयं अपने पुत्रों में , एक भगिनी के तौर पर अपने भ्राता में स्त्रीसमावेशी सोच के विकास की परम्परा का शुभारंभ करें। आवश्यक यह भी कि स्वयं महिलाएँ भी शिक्षित, जागरूक , कौशलयुक्त तथा अपने ही महिलावर्ग के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त, उदार व सहिष्णु हों; सफलता प्राप्ति हेतु अपनी मर्यादा और शुचिता से समझौता न करें। आर्थिक स्वतंत्रता व आत्मनिर्भरता की अवधारणा पुष्ट वैचारिक -मानसिक शक्ति का गहन करती दिखे --- सशक्त नारीशक्ति की परिभाषा गढ़ती हुई विचारधारा।
इस सन्दर्भ में स्वामी विवेकानंद जी की ये पंक्तियाँ मार्गदर्शिका हैं - "पूर्ण नारीत्व की अवधारणा पूर्ण स्वतंत्रता है। उस परिवार या देश के उत्थान की कोई आशा नहीं है जहां महिलाओं की कोई बराबरी नहीं है, जहाँ वे दुख में रहती हैं।"
इसलिए ग्लोरिया स्टीनम, अमेरिकी पत्रकार एवं नारीवादी नेत्री का कहना यहाँ विचारणीय बन पड़ता है -"महिलाओं को दुनिया के लायक बनाने के बारे में मत सोचो । दुनिया को महिलाओं के लायक बनाने के बारे में सोचो।"
रीता रानी
जमशेदपुर, झारखंड
स्तंभ संपादन : पृष्ठ सज्जा
डॉ. सुनीता ' शक्ति ' प्रिया. नैना देवी डेस्क/ नैनीताल.
प्रधान कार्यकारी ⭐ संपादक.
समर्थित.
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धारावाहिक. यात्रा संस्मरण. पृष्ठ : ४ / ३
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नैनीताल की होली : न जाने कब मैं तेरे साथ हो ली.
ये पर्वतों के दायरे : यात्रा संस्मरण से साभार
डॉ. मधुप रमण.
©️®️ M.S.Media.
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दिल्ली की होली : यादें और छतरपुर वाली आंटी
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यही कोई दो तीन दिन होली की छुट्टी होने वाली थी। वैसे भी दिल्ली की होली कोई खास नहीं होती है जैसे यू पी बिहार में होती है।
यही कोई साल २००० पहले की बात है न..अनु..? तब बिहार यू पी का विभाजन नहीं हुआ था। न उत्तराखंड बना था न झारखण्ड का निर्माण हुआ था। यही कोई १९९८ के आस-पास का समय रहा होगा ।
तब दिल्ली में पत्रकारिता के सिलसिले में अपनी पढ़ाई कर रहा था और आप दिल्ली में ही रह कर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही थीं ।
हमें मिले हुए चार-पांच महीने हो भी चुके थे। अपने आपसी रिश्ते को लेकर काफ़ी संजीदा भी हो चुके थे। पी.जी. में मेस वाले ने कह दिया था ,साब दो - तीन दिन मेस बंद ही रहेगा ...खुद का इंतजाम कर लेना।
मुझे याद है तब तुमने भी कुछ ऐसा ही कहा था अनु, " मेरे हॉस्टल में भी छुट्टी हो गयी है..मैं छतरपुर वाली आंटी के यहाँ जाना नहीं चाहती हूँ ..."
फिर तनिक रुक कर तुमने कहा था, " होली में अपने घर नैनीताल जाना चाहती हूँ ..अकेले जाने में थोड़ी घबराहट हो रही है ...यदि आप मेरे साथ चलें तो वहां से हो आऊं...आप चलेंगे मेरे साथ !
कह कर तुम अपलक मेरी तरफ़ देखने लगी थी।
लगा जैसे पलाश के अनगिनत लाल फूल यकायक खिल गये हों मेरे मन में । अचानक साथ जाने के निर्णय तक भी पहुँच गया ! फिर दूसरी तरफ सोचने लगा अम्मा - बाबूजी को कैसे बताएंगे, क्या कहेंगे..?
शायद पहले पहले प्यार के जन्में अहसास में अर्ध्य सत्य बोलने की भी तैयारी मन ही मन कर चुका था। सोच लिया कि अम्मा - बाबूजी को कह देंगे कि वाराणसी जा रहे हैं अपनी बहन के यहाँ।
निश्चित कर लिया था कि तुम्हें नैनीताल छोड़ने के बाद वाराणसी भी चले जायेंगे...तब शायद ज़िंदगी में पहली बार झूठ बोलने की भी तैयारी हो चुकी थी। मन में लगा नैनीताल की सभ्यता - संस्कृति को लेकर पत्रकारिता का एक प्रोजेक्ट भी पूरा हो जाएगा और आपका साथ भी दो - तीन दिनों के लिए मिल जाएगा जो किसी की प्रेम कहानी से कम नहीं होगी ...
पूछने पर पता चला तब दिल्ली अंतर राज्यीय बस अड्डे से सुबह पांच बजे एक दो बस ही नैनीताल ,अल्मोड़ा के लिए जाती थी। निश्चित कर लिया था कि सुबह की बस पकड़ेंगे शायद चलते हुए हम सभी शाम पांच- छ बजे तक नैनीताल पहुंच भी जायेंगे।

दूसरे दिन बस अड्डे से हमने सुबह की बस के लिए नैनीताल की दो टिकटें ले ली थी। मुझे याद है यात्रा के मध्य में पढ़ने मात्र के लिए हमने तब बगल वाले स्टॉल से साप्ताहिक हिंदुस्तान की होली विशेषांक वाली पत्रिका खरीद ली थी। खाने के लिए कुछ संतरें,सेव,पानी का बॉटल भी खरीद लिए थे। इसकी जरुरत हो सकती थी।
मुझे याद है ड्राइवर की सीट की तरफ़ से पीछे एक दो छोड़ कर तीसरी वाली सीट पर हम दोनों साथ बैठ गए थे। उपर लाल से लिखा था महिला के लिए आरक्षित सीट।
तुम्हारी वजह से मैं इत्मीनान में था कोई हमें इस सीट से नहीं उठा पाएगा। बस नियमित समय से खुल गयी थी।
तुम बहुत ही प्रसन्न दिख रही थी , अनु .. है ना ...?...घर जाने की खुशी थी या कहें ...मेरे साथ बिताए जाने वाले पल दो पल के साथ का अहसास ...ठीक से बता नहीं सकता था।
तुम एकदम से मुझसे सिमट कर बैठी हुई थी, मेरी बायी बाजू को अपने दोनों हाथों से पकड़े हुए। तुम्हारा सर मेरे कंधे पर टिका हुआ था ..तुम अर्धनिद्रा में भी थी...
बगल वाली सीट पर बैठा बुजुर्ग हमदोनों को किस तरह घूर रहा था अनु ..? तुम्हें याद भी होगा शायद मैंने तुम्हें इस बाबत यात्रा के बीच में बतलाया भी था। ..शायद वो हमारे अनाम रिश्ते को जानने समझने की कोशिश मात्र कर रहा था। हैं ना...? कुछेक घंटे उपरांत बस गाजियाबाद से गुजर रही थी .. मेरी आखें बाहर की भीड़ - भाड़ और बाजार पर टिकी हुई थी ...
यात्रा गीत : मेरा जीवन संगीत : नैनीताल की मेरी यादें.
फिल्म : मधुमती : १९५८
सितारें : दिलीप कुमार वैजयंती माला.
गाना : आ जा रे परदेशी
गीत : शैलेन्द्र. संगीत : सलिल चौधरी. गायक : लता.
संगीत सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं.
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गतांक से आगे : १.
तितलियों के शहर ज्योलिकोट से उपर नैनीताल के आस पास.
मुरादाबाद बस स्टैंड में गाड़ी तक़रीबन १५ से २० मिनट के लिए रुकी थी। थोड़ी देर के लिए मैं
स्टैंड में बस से यही कोई बिस्किट - केक लेने के लिए उतरा था तब कहीं दूरदर्शन पर नेशनल न्यूज़ में बिहार के जहानाबाद में हुए नरसंहार की बुरी खबरें प्रसारित हो रही थी। सुनना अच्छा नहीं लगा।
शाम होने जा रही थी। हमलोग पंत नगर ,लाल कुआँ के बाद हल्द्वानी नैनीताल पहुँचने वाले ही थे। यही कोई चार बजने जा रहा था। हमलोग हल्द्वानी बस स्टैंड पहुंच चुके थे। अब थोड़ी सिहरन भी बढ़ने लगी थी। ठण्ड का अहसास भी होने लगा था।
आपने मुझसे कहा था, " अब आगे नैनीताल की पहाड़ियां शुरू होने वाली हैं ...ठण्ड बढ़ जाएगी ..आपको सर्दी लग जाएगी। ....विंड चीटर निकाल कर पहन लीजिए .."
मैंने आपकी तरफ देखा, जैसे पूछना चाह रहा था , " ..आप क्या पहनेगी ...शॉल लाई है ना...? "
कैसे तुमने मेरे अनकहे भाव पढ़ लिए थे ,अनु ! मैंने तो तुमसे कुछ कहा भी नहीं था ..
तुम कह रही थी , ".. हम पहाड़ी लोग है .. ठण्ड सह सकते है। हमलोगों के जीवन की रोजमर्रा की बातें है ..मुझे आपकी चिंता है ...आप लोग तो मैदानी इलाक़े से आते है ना ...?
इसके पहले मैं कुछ कहता आपने मेरे बैग से कसौली में ख़रीदा हुआ हरे रंग का विंड चीटर निकाल कर दे भी दिया। मैंने आज्ञाकारी अनुयायी होने के नाते शीघ्र ही उस विंड चीटर को पहन लिया।
मैं आपके ख़्याल जो मेरी चिंता ध्यान के लिए थी को सोच कर काफी अभिभूत हो गया था..आँखें जो देख रही थी... ..अंतर मन.. जो आपके प्यार के अहसास को महसूस कर रहा था।
बाहर हिमाचली टोपी पहने बहुत सारे पहाड़ी लोग दिखने लगे थे। कोई कुमाऊं पहाड़ी होली गाना बजा रहा था।
बस थोड़े समय के बाद काठ गोदाम पार कर रही थी। अब चढ़ाई प्रारम्भ होने वाली थी।
कुमाऊं की होली के बारे में तुम बतला रही थी , " ..जानते है सम्पूर्ण उतराखंड में होली की दो रीत है। एक कुमाऊं की होली है तो दूसरी तरफ होली की गढ़वाली परम्पराएं सम्पूर्ण उतराखंड में विशेषतः प्रचलित है। ...कुमाऊं की होली नैनीताल के आस पास मनाई जाती है तो दूसरी तरफ गढ़वाली परम्पराएं देहरादून,मसूरी तथा गढ़वाल इलाके में प्रचलित है....। '
मैं ध्यान से आपकी बातें सुन रहा था, आगे आप कह रही थी ... " यूं कुमाऊं में भी होली के दो प्रमुख रूप मिलते हैं, बैठकी व खड़ी होली, परन्तु अब दोनों के मिश्रण के रूप में तीसरा रूप भी उभर कर आ रहा है। इसे धूम की होली कहा जाता है। इनके साथ ही महिला होलियां भी अपना अलग स्वरूप बनाऐ हुऐ हैं।
देवभूमि उत्तराखंड प्रदेश के कुमाऊं अंचल में रामलीलाओं की तरह राग व फाग का त्योहार होली भी अलग वैशिष्ट्य के साथ मनाई जाती हैं...। "
काठगोदाम के बाद जोली कोट आने वाला था। वही तितलियों का पहाड़ी शहर ..क्षितिज में डूबता हुआ सूरज अब धीरे धीरे शीतल होने लगा था।
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यात्रा गीत : मेरा जीवन संगीत : नैनीताल की मेरी यादें.
यात्रा गीत : मेरा जीवन संगीत : नैनीताल की मेरी यादें.
फिल्म : कटी पतंग.१९७०
सितारे : राजेश खन्ना. आशा पारेख.
गाना : खेलेंगे हम होली.
गीत : आंनद बख़्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : किशोर कुमार ,लता.
सितारे : राजेश खन्ना. आशा पारेख.
गाना : खेलेंगे हम होली.
गीत : आंनद बख़्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : किशोर कुमार ,लता.
गाना देखने व सुनने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं
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गतांक से आगे : २.
प्रेम केवल अधिकार नहीं सेवा,लगाव और परित्याग के धर्म का नाम भी है.
अब चीड़ और देवदारों के पेड़ दिखने लगे थे। ऊंचाई पर चढ़ते ही उनके घने साए धीरे धीरे बढ़ने लगे थे। बस रह रह कर एकदम से तीखे मोड़ पर घुम जाती थी जिससे मुझे तीव्र घुमाव पर चक्कर भी आने लगा था। लगा था उलटी हो जाएगी।
मैंने कहा भी था , "...मन ठीक नहीं लग रहा है..चक्कर सा आ रहा है ..."
आपने तुरंत अपनी चिंता जाहिर की थी ...बड़े परवाह के साथ कहा था, ...आप इन पहाड़ी रास्तों के आदि नहीं है ..ना ..इसलिए ऐसा हो रहा है ? ... ऐसा करें ...थोड़ा लेट जाए.."
यह कह कर आप खिड़की वाली सीट से एकदम सिमट कर बैठ गयी थी...जगह देने के लिए...
मैंने लेटने की कोशिश भी की लेकिन जगह बहुत कम थी ..इसलिए ठीक से सो नहीं पा रहा था। दिक्कत हो रही थी...
यह देखते हुए आपने कितने अधिकार वश प्यार से मेरे सर को अपने दोनों पैरों के ऊपर रख लिया था अपनी गोद में , ".. इत्मीनान से अब आप अपनी आँखें बंद कर ले...कुछ ही देर में हम नैनीताल पहुंचने ही वाले है... शायद आपको बेहतर लगेगा ...
सच में ही आपकी गोद में सर रखने .. ...पल भर के लिए आँखें बंद कर लेने ...आपके स्पर्श मात्र से ही जन्म जन्मांतर की पीड़ा से मुक्ति मिल चुकी थी।
कब,कैसे और कितना अमर प्रेम पनप गया था हमारे - तुम्हारे बीच अनु ?..यह तो हमदोनों को भी अहसास था ही ..धीरे धीरे और ही प्रगाढ़ होता चला गया था ..है ना ..! ...सोचता हूं तो तेरे - मेरे सपने जैसा ही लगता है।
तब प्रेम की परिभाषा भी मैंने आप से ही तो सीखी था ना ,अनु ..? जाना था ...प्रेम केवल अधिकार सिद्ध नहीं सेवा और परित्याग के धर्म का नाम है ...
तब से ही लेकर यह संकल्प मेरे जीवन के फलसफे के साथ ही है कि आपसी प्रेम के बंधन में दूसरे की ख़ुशी ही मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। इसे शायद मैं पूरी शिद्दत और ख़ामोशी के साथ अभी तक निभाता भी आ रहा हूँ...
यही कोई आधे घंटे के बाद जब आपने मेरे सर पर हाथ रखते हुए कहा था, " ..उठिए ..नैनीताल आ गया है .." तो मेरी तन्द्रा टूटी।
बस की खिड़की से देखा तब यही कोई नैनीताल की दक्षिणी पश्चिमी पहाड़ी के पीछे सूरज डूबने ही वाला था। थोड़ी ही देर में रात होने वाली थी ।
नीचे तल्ली ताल बस स्टैंड में उतरते ही ..झील की तरफ से आती हुई ठंढी सर्द हवा मुझे छूने लगी थी ..सर दर्द कब का गायब हो चुका था। ताजगी का अहसास पल प्रति पल हो रहा था।
नैनीताल में ठहरने मात्र को लेकर मुझमें काफी झिझक थी कि कहाँ रहूँगा, कहाँ ठहरूंगा ? लेकिन आपने पहले ही निर्भीकता से कह दिया था कि हमें अयारपाटा वाली सोनल जिज्जी के बंगले में ही रहना है...एक दो दिन की ही तो बात है।
सोनल जिज्जी आपके नजदीक के रिश्ते में ही बहन लगती थी। और आप उसी बंगले की उपरी मंजिल में माँ बाबूजी के साथ रहती थी। जिज्जी ने हमें लाने के लिए बस स्टैंड गाड़ी भिजवा दी थी।
रात में तुम्हारे - उनके द्वारा दिए गए सम्मान,लगाव,सादगी और प्यार को देखते हुए बस यही सोचता रहा था ,अनु...कि हे भगवान ! इनलोगों को हमारी नज़र न लग जाए ...क्या कोई मैदानी इलाक़े में किसी अनजाने व्यक्ति पर इतनी सरलता से विश्वास कर सकता है ,..नहीं ना ?
हमारी मित्रता से जन्मे प्रेम के आखिर कितने दिन ही हुए थे ..यही कोई चार पांच महीना ही ना ...?
न जाने कब सोचते सोचते दीवान पर आंखें लग गयी थी पता ही नहीं चला...
अगली सुबह नींद तब खुली जब आपने चाय पीने के लिए मीठी आवाज़ लगाई ..,.." उठिए ...चाय ठंढी हो जाएगी..
आप आगे कुछ और भी कह रही थी , "...पता है आपको...रात दस बजे मैं आपको देखने आयी थी कि..आपकी तबीयत ठीक तो है ना ...? ..आप तो गहरी निद्रा में सो गए थे ...बहुत थक गए थे ना ?..शायद इसलिए नींद जल्दी आ गयी ..ठीक से सोए ना.. ठंढी तो नहीं लगी ना ..?
मैंने सर नहीं में हिलाया। टेबल पर रखी केतली की चाय से धुआं बाहर निकल रहा था ...और आप मेरा विस्तर की चादर,कंबल ठीक करने में लग गयी थी ... और मैं अपने भीतर ही खो गया था ...
यात्रा गीत : मेरा जीवन संगीत : नैनीताल की मेरी यादें.
इस गाने के साथ नैनीताल की प्रकृति, खूबसूरती के साथ मेरा पहला लगाव
साल : १९९० का दशक
फिल्म : कटी पतंग.१९७०.
सितारे : राजेश खन्ना. आशा पारेख.
गाना : जिस गली में तेरा घर न हो बालमा .
गीत : आंनद बख़्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : मुकेश.
सितारे : राजेश खन्ना. आशा पारेख.
गाना : जिस गली में तेरा घर न हो बालमा .
गीत : आंनद बख़्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : मुकेश.
https://www.youtube.com/watch?v=cCbErvTrZJg
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गतांक से आगे : ३.
नैनीताल की होली और तेरे - मेरे प्यार का पहला पहला रंग.
डॉ. मधुप रमण.
चाय की प्याली बढ़ाते हुए आपने धीरे से खिड़की से पर्दा हटा दिया था...सामने हल्की रौशनी दिख रही थी।
सुबह हो गयी थी। उस तरफ कोने में लाली दिखने भी लगी थी।
आपके हाथों की बनी दार्जलिंग की लीफ से बनी चाय मेरी पसंदीदा पेय रही है। इसकी खुशबू मन को बहुत ही भाती है। और सच कहें, आप बेहतर,स्वादिष्ट ,थोड़ी अधिक शक्कर वाली चाय बनाती है जो मुझे पीना पसंद है ।
आज होलिका दहन का दिन था। नवीन दा ने ही बतलाया था कि मल्ली ताल बड़ा बाज़ार, तल्ली ताल के एकाध दो जगहों पर होलिका दहन जैसे कार्यक्रम होते हैं जहां से हम भी फोटो तथा समाचार संकलन कर सकते हैं। डॉ.नवीन जोशी से बातें हो गयी थी उनके आमंत्रण पर ही आज हमें मल्ली ताल होली मिलन समारोह में भाग लेने जाना था।
मुझे याद है उन दिनों भी दिल्ली तथा आस पास के सैलानी कुमाउनी होली का लुफ़्त उठाने के लिए नैनीताल, अल्मोड़ा और रानीखेत के पर्यटन के लिए निकल पड़ते थे। उन दिनों भी कुछेक पर्यटकों की होली फेस्टिवल का डिस्टिनेशन नैनीताल हुआ करता था। लोग मौज मस्ती के लिए पहाड़ी सैरगाहों के लिए निकल पड़ते थे। आज कल तो इनकी संख्या अधिकाधिक ही हो गयी है।
...जानते है ....' , आप कुछ उत्तराखंड की लोक संस्कृति के बारे में ही बतला रही थी , "...उत्तराखंड की सामाजिक, सांस्कृतिक लोक विरासत शोध के लायक है, जिसे मैं आपको बतलाना चाह रही हूँ, जिससे आप भी उत्तराखंड के कुमाऊँ की संस्कृति के बारे में जान सकेंगे और इस सन्दर्भ में सही लिख सकेंगे । यहाँ की लोक संस्कृति बेहतर ढ़ंग से समझने के लिए ,यहाँ के स्थानीय लोग किस तरह से होली का पर्व मनाते हैं हम इसके बारे में जानकारी रख सकेंगे ?
"....आज शहरीकरण के कारण लोग असामाजिक तथा आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। लेकिन त्योहारों का सही अर्थ यह है, सामाजिक हो कर हम समाज को उन्नत व प्रगतिशील बनाए। कुमाऊँ की होली की सामाजिक विशेषता यह है कि यहां के लोग अभी भी अपनी लोक संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं ...। "
" ...कुमाऊँ की होली की उत्पत्ति कब हुई ...यदि आपको मैं बतलाऊँ तो मालूम हो ... यहाँ की होली की चर्चा भी मथुरा व ब्रज की होली के साथ बराबर की जाती है।
विशेषकर बैठकी होली संगीत की शुरुआत १५ वी शताब्दी में चंपावत के चंद राजाओं के महल में तथा आसपास स्थित काली कुमाऊँ के क्षेत्र में हुई। आगे यह गुरुदेव क्षेत्र में ऐसे ही मनाई जाती थी। बाद में चंद राजवंश के प्रयत्न और निरंतर किए गए प्रचार के साथ यह संपूर्ण कुमाऊँ क्षेत्र तक फैल गई।
सांस्कृतिक नगर अल्मोड़ा में तो इस पर्व पर होली गाने के लिए दूर - दूर से गायक आते थे । देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊँ अंचल में रामलीला की तरह राग और फाग का त्योहार होली भी विशेष स्थान रखता है....। "
मैं सम्मोहन की अवस्था में आपको बड़े ध्यान से सुन रहा था ... निरंतर घूरता हुआ। आपके चेहरे की नैसर्गिक खूबसूरती, दिलकश, सलीके वाली मधुर आवाज़ में बला का जादू था। कोई भी आपकी धीमी, मीठी आवाज़ का चाहने वाला हो सकता था, तथा मात्र सुन लेने से ही आपकी तरफ़ खींचा चला आता।
आप आगे कह रही थी , " ...कुमाऊँ क्षेत्र के अल्मोड़ा ,नैनीताल, पिथौरागढ़, चंपावत और बागेश्वर के पहाड़ी जिले आते हैं, जिनमें यह त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है ।
इसकी शुरुआत बैठकी होली से की जाती है, जिसमें प्रथमतः गणेश ,कृष्ण ,राम ,शिव इत्यादि देवी - देवताओं के आराधना ,गीत से की जाती है । यह त्यौहार शरद ऋतु के अंत और फसल बोने के मौसम के आगमन की सही व जरुरी सूचना देता है ....। "
मेरे हिस्से की चाय कब की ख़त्म हो गयी थी। आपने थोड़ी और दे दी थी।
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नैनीताल की होली और तेरे - मेरे प्यार का पहला रंग.कोलाज : विदिशा. |
...केतली , प्याली समेटते हुए आपने धीरे से कहा, "... आप नहा धो कर तैयार हो जाए ...दस बजे हम नाश्ता कर लेंगे ..आपकी पसंदीदा चीजें ऑमलेट, पराठें, चने आलू की फ्राइड सब्जी बना लेती हूँ ...मैं जानती हूँ आपको सन्डे हो या मंडे... अण्डे बहुत पसंद हैं....
"....हम बारह बजे होली मिलन समारोह में भाग लेने मल्ली ताल जाएंगे ... सुन रहें हैं ना ...? '
आप की ही तो मैं सुन रहा था। भला आपके सामने होते ही ...आपकी आँखों में अपना बजूद क्यों खो देता हूँ , अनु ! मैं स्वयं नहीं जानता हूँ।
... १२ बजने वाला ही था। मैं नहा धो कर तैयार ही बैठा हुआ था। मैंने ब्लू डेनिम की शर्ट और बादामी रंग की पैंट पहन रखी थी।
१२ बजने से ठीक पन्दरह बीस मिनट पहले आप एक तस्तरी में कुछ ग़ुलाल ले कर कमरे में दाखिल हुई थी । कोने में रखी राउंड टेबल पर तस्तरी रखते हुए आपने बड़े प्यार से मेरी तरफ देखते हुए कहा , "... दूसरे अन्य जगह के होली मिलन समारोह में भाग लेने से पहले .. मैं आप से ही होली मिलन समारोह कर लेती हूँ.....मुझसे रंग लगायेंगे न ...?
मेरे भीतर का अनुत्तरित जवाब था ...क्यों नहीं..हम तो कब से आपके प्रेम के रंग में रंग गए हैं ? ....आप एक बार नहीं मुझे हजार बार रंग लगाए.... ।
"....आपको मैं अपने जीवन के सात रंग और ढ़ेर सारे गुलाल समर्पित करती हूँ ...भेंट कबूल करें...। " ..यह कहते हुए आपने थोड़ा सा गुलाबी रंग का गुलाल मेरे गालों पर ..लगा दिया था...याद हैं न आपको .........? "
फिर भाल पर टीका लगाते हुए क्षत्राणियों की तरह कहा था, "..यशस्वी भवः ..! " आज भी मैं नहीं भूला हूँ।आपकी उँगलियों के हल्के स्पर्श ..मेरे गालों पर ... वो न भूलने वाले अहसास ही तो .. मेरी अनमोल यादों की विरासत है,अनु । "
मेरी याद में शायद यह पहली या दूसरी दफ़ा होली का प्रसंग था जब किसी मेरे अपने ने इतने प्यार और अधिकार के साथ रंग लगाया था... अभी भी ग़ुलाल वही लगे हुए प्रतीत होते है, जैसे ।
आपको उम्मीद थी मैं भी शायद आपको गुलाल लगाता ...लेकिन संकोच वश मैंने आपको रंग नहीं लगाया।
मैं समझता था आप जन्म जन्मांतर के लिए मेरी सोच ,भावनाओं के अमिट रंग में रंग जाए....जब मन ही सदा के लिए लाल रंग में रंग गया है तो इस भौतिक रंग की क्या आवश्यकता है ?
और शायद अब तो यही हो रहा है न ,अनु ! ...मैं जो बोलूं न तो ना मैं जो बोलूं हाँ तो हाँ वाली बातें ही तो अब तेरे - मेरे जीवन के बीच में चरितार्थ हो रही है। ....हो रही है , ना ,अनु !
मैं तो तब से ही आपके प्रेम के कभी न फीके होने वाले रंग में डूब गया हूँ ...ना ...!
कैसे भूल सकता हूँ ,अनु ? वो रंग ही तो मेरे जीने आस की प्रेरणा मात्र है .. वह अनमोल घड़ी मेरी-तुम्हारी यादों की ही सुनहरी कड़ी है ....जिससे हम-तुम आजतक जुड़ें हैं।
आपके माँ बाबूजी के चरणों में गुलाल रख कर उनसे आशीर्वाद लेते हुए हमने १२ बजने में ठीक पांच - छ मिनट पहले नाश्ता खत्म कर लिया था।
अब चलने की बारी थी। सुबह के नाश्ते में ही दिखा था कि आप एक कुशल गृहिणी भी है एक अच्छी कुक भी । खाने में स्वाद जो इतना अच्छा था ..और फिर कितने प्यार से आपने नाश्ता करवाया था...कैसे भुला जाऊं ..क्या यह हो सकता है..? ...नहीं ना !
हम दोनों तल्ली ताल रिक्शा स्टैंड से रिक्शा लेते हुए करीब १२ बजे मल्ली ताल स्थित बजरी वाले मैदान पहुंच चुके थे। नवीन दा पहले से ही हमारा इंतजार कर रहे थे.....।
यात्रा गीत : मेरा जीवन संगीत : नैनीताल की मेरी यादें.
इस गाने के साथ नैनीताल की प्रकृति, खूबसूरती और होली
फिल्म : कटी पतंग.१९७०
सितारे : राजेश खन्ना. आशा पारेख.
गाना : खेलेंगे हम होली.
गीत : आंनद बख़्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : किशोर कुमार ,लता.
गाना देखने के लिए दिए गए लिंक को दवाएं
https://www.youtube.com/watch?v=VGQRMUqya3s
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गतांक से आगे : ४.
उत्तराखंड में होली की विभिन्न दिलचस्प परम्पराएं... और सिर्फ तुम.
उतराखंड होली के विभिन्न रूप : फोटो डॉ.नवीन जोशी. |
हम सभी उस स्थल तक पहुंच चुके थे जहाँ एन. यू. जे. की तरफ़ से होली मिलन कार्यक्रम का शुभारम्भ होना था। मुख्य अतिथि बतौर कुमांऊ के वरिष्ठ अधिकारी के साथ साथ स्थानीय विधायक, पूर्व विधायक, महापौर, नगर आयुक्त नगर निगम, प्रधान संपादक, अखवारों से जुड़े कई कलम नवीस उस होली मिलन समारोह में उपस्थित थे।
मुख्य अतिथि जो शायद नगर आयुक्त थे जैसा नवीन दा ने बतलाया उनके कर कमलों के द्वारा उद्घाटन की प्रक्रिया दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। समारोह के थोड़े बाद जब गायन वादन का कार्यक्रम भी प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम किसी शीर्षस्थ अधिकारी द्वारा मधुर पहाड़ी गीत सुनाया गया तो वहां उपस्थित तमाम जन झूमने पर मजबूर हो गए थे।
आप उन तमाम पहाड़ी स्थानीय शब्दों को हमें समझा रही थी जो मेरे लिए नए थे, और मैं इसका अर्थ कदापि नहीं समझ पा रहा था । वहीं कोई विधायक मंच से कह रहे थे कि एन.यू.जे.-आई का यह पहला मंच है जहां मैं गीत गुनगुनाने को मजबूर हो गया हूँ । मैं अपनी समझ के हिसाब से फोटो ले रहा था।
मुख्य अतिथि जो शायद नगर आयुक्त थे जैसा नवीन दा ने बतलाया उनके कर कमलों के द्वारा उद्घाटन की प्रक्रिया दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। समारोह के थोड़े बाद जब गायन वादन का कार्यक्रम भी प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम किसी शीर्षस्थ अधिकारी द्वारा मधुर पहाड़ी गीत सुनाया गया तो वहां उपस्थित तमाम जन झूमने पर मजबूर हो गए थे।
आप उन तमाम पहाड़ी स्थानीय शब्दों को हमें समझा रही थी जो मेरे लिए नए थे, और मैं इसका अर्थ कदापि नहीं समझ पा रहा था । वहीं कोई विधायक मंच से कह रहे थे कि एन.यू.जे.-आई का यह पहला मंच है जहां मैं गीत गुनगुनाने को मजबूर हो गया हूँ । मैं अपनी समझ के हिसाब से फोटो ले रहा था।
".....आप बतला रही थी बैठकी होली के बाद यहां पर दूसरे चरण में खड़ी होली का आगमन होता है ,जिसका अभ्यास मुखिया के आंगन में होता है,लोग गोल घेरा बनाकर अर्ध शास्त्रीय संगीत का मुखड़ा गाते हैं,और लोग उसे दोहराते हैं, ढोल ,नगाड़े,नरसिंह उसमें संगत देते हैं,और सभी पुरुष मिलकर घेरों में कदम मिलाकर नृत्य करते हैं....."
कुमाऊँनी होली : बैठकी होली, की परंपरा.फोटो : डॉ. नवीन जोशी. |
".....आंवला एकादशी के दिन प्रधान के आंगन से होते हुए द्वादशी और त्रयोदशी को होली के दिन गांव के बड़े बुजुर्ग घर - आंगन में जाकर लोगों को आशीष देते हैं। लोगों का स्वागत गुड, आलू और मिष्ठान से किया जाता है। चतुर्दशी के दिन क्षेत्र के मंदिरों में होली पहुंचती है, अगले दिन छलडी यानी गीले रंगों और पानी की होली खेली जाती है ....।"
इस बीच मंच पर शास्त्रीय होली गायन के लिए स्थानीय पुरुष कलाकारों के साथ महिला कलाकारों के द्वारा होली की खूबसूरत रंगारंग प्रस्तुति की जा रही थी जो अति मनभावन थी । इसके साथ ही बाद में अतिथि कलाकार के द्वारा पर्वतीय एवं तराई से जुड़ी होली गायन किया गया जो लोगों को बहुत अच्छा लगा । मंच का संचालन कोई प्रदेश संगठन मंत्री एवं नगर अध्यक्ष कर रहे थे ।" आप को बतला दें .. उत्तराखंड के कुमाऊँ में महिला होली का देवभूमि में अलग ही महत्व है। यह महिलाएं अपनी संस्कृति को जिंदा रखने तथा अपने मनोरंजन के लिए घर-घर जाकर वाद्य यंत्रों के साथ होली गीत का गायन करते हुए नाचती हैं ...। "
मैं यही सोच रहा था कि अनु... आप कितनी जहीन है...? तभी तो एक दो प्रयास में ही आपने सिविल सर्विसेज परीक्षा निकाल ली थी। आप आगे बतला रही थी ...
" ...यहाँ की स्वांग और ठहर होली कुमाऊँ की एक जागृत होली है, जिसके बिना होली अधूरी है । यह खासकर महिलाओं की बैठकी में ज्यादा प्रचलित है जिसे समाज के अलग-अलग किरदारों के रूप में दर्शाया जाता है।
मुख्य रूप से अल्मोड़ा,द्वारहाट,बागेश्वर,गंगोलीहाट,पिथौरागढ़,चंपावत,नैनीताल,कुमाऊँ की संस्कृति के केंद्र हैं। आज मैंने आप के सामने कुमाऊँ की होली के प्रकारों का व्योरा दिया .. ।"
यहाँचीरहरण की परम्परा भी होली के मुख्य रूप में वर्तमान है। वह है ,चीर को चुराना,आप लोग समझेंगे कि यह चीर को चुराना क्या है ? लेकिन यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है। होली का फाल्गुन पूर्णिमा से पहले एकादशी से कपड़े में रंग डाल कर इसकी शुरुआत होती है,और इसमें चीर जलाने की भी प्रथा है, जिसे भगवती का रूप माना जाता है ।
लोग चीर को कपड़े में बांध कर रखते हैं, और उसकी सुरक्षा करते हैं ,ताकि लोग चीर चुरा ना सके। क्योंकि चीर के चुराने के बाद लोग उस गांव में फिर चीर जला नहीं सकते है , जिसे होलिका दहन का रूप माना जाता है । इस तरह से हम देखते हैं कि हर जगह की अपनी एक सांस्कृतिक धरोहर होती है...।"
आपकी मधुर आवाज़ मेरे कानों में गूंज रही थी। मैं बस तुम्हारे लिए इतना ही सोच रहा था, " ...इतना ज्ञान ..! कहाँ से अर्जित किया अनु ? ...आप तो ज्ञान की अथाह सागर निकली। शायद आपके ज्ञान आपकी बुद्धि का भी मैं कायल रहा हूँ। है ना ...?"
यात्रा गीत : मेरा जीवन संगीत : नैनीताल की मेरी यादें.
इस गाने के साथ नैनीताल की प्रकृति, प्रेम और खूबसूरती
⭐
फिल्म : सिर्फ तुम.१९९९
गाना : पहली पहली बार मुहब्बत की है
सितारे : संजय कपूर. प्रिया गिल.
गीत : समीर. संगीत : नदीम श्रवण गायक : अलका याग्निक. कुमार सानू.
गीत सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं
पृष्ठ सज्जा : धारावाहिक संपादन
शक्ति प्रिया./ नैनीताल डेस्क
क्रमशः जारी....
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अपने ही रंग में रंग ले मुझको : याद रहेगी होली रे : फोटो दीर्घा : २०२४.पृष्ठ : ५ .
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संपादन.
बी ' शक्ति ' : देहरादून.
होली विशेष.
बी ' शक्ति ' : देहरादून.
बच्चे बूढ़े युवा की नेपाल में बीते साल होली की मस्ती : भारत नेपाल सीमा : फोटो : प्रिया .
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काठमांडू नेपाल में होली की मस्ती में डूबे लोग : बीते साल : फोटो : प्रिया . भारत नेपाल सीमा. |
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सहयोग : रवि रंजन. समाज सेवी. मनीषा रंजन. शिक्षा विद.
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दिल ने फिर याद किया : याद रहेगी होली रे : आपबीती : फिल्म : कोलाज : संग्रह : पृष्ठ : ६ .
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संपादन.
![]() |
आज न छोड़ेंगे.. बस हमजोली खेलेंगे हम होली : कोलाज : डॉ सुनीता ' शक्ति ' प्रिया. नैनीताल. |
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बरसे गुलाल रंग मोरे अंगनवा अपने ही रंग में रंग दे मोहे सजनवां : डॉ.सुनीता शक्ति प्रिया. |
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होली रे होली....आई तेरे घर पर मस्तों की टोली : कोलाज : डॉ. सुनीता शक्ति प्रिया. नैनीताल. |
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अपने ही रंग में रंग ले मुझको.. याद रहेगी होली रे : कोलाज : डॉ सुनीता शक्ति प्रिया. नैनीताल. |

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कला के सात रंग : ये कौन चित्रकार है : कला दीर्घा : २०२४.पृष्ठ : ७
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संपादन.
⭐
अनुभूति शक्ति.
शिमला. डेस्क.
![]() |
गोविन्द बोलो हरि गोपाल बोलो राधा रमण हरि गोपाल बोलो : कला : अज्ञात. |
![]() |
आधे मन में बसे हो राधा आधे में हो कान्हा प्रीत में होली खेल के देखें सात रंगों का मेल : कला : अज्ञात |
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रंग बरसे : कही अनकही : होली मस्ती : छेड़छाड़ : पृष्ठ : ८.
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संपादन.
स्मिता . शक्ति / न्यूज़ एंकर / पटना.
नैनीताल डेस्क.
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शॉर्ट रील तराने : फिल्मी गाने :
व्लॉगर : पारुल : लखनऊ की छेड़छाड़
रंग रंग के फूल खिले भाए कोई रंग न
तेरी मेरी बात अब आगे चली
तेरी मेरी बात अब आगे चली
तेरे कारण तेरे कारण तेरे कारण मेरे साजन
तेरे कारण ..सपनों में खो गयी : पारुल.
तुम्हें दिल दिया है तुम्हें जान भी देंगे : पारुल
देखेंगे : देख लेना : प्यार में जीते प्यार में मरते
आधी सच्ची आधी झूठी तेरी प्रेम कहानी
जिसके सपने हमें रोज आते रहें : साभार : पारुल
तू मेरे नयनों का काजल : पलकों बीच सजाया
पहले तेरी आँखों ने लूट लिया दूर से
चाहे रहो दूर चाहे रहो पास : पारुल
सारे शहर में आप सा कोई नहीं : पारुल
मगर कैसे एतवार करूँ : झूठा है तेरा वादा
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आज कल : होली है. व्यंग्य चित्र. मधुप : पृष्ठ ९ .
आज कल : होली है. व्यंग्य चित्र. मधुप : पृष्ठ ९ .
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संपादन

अनु ' शक्ति '
नैनीताल.
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अपने ही रंग में रंग ले मुझको : याद रहेगी होली रे : तराने : फिल्मी गाने : पृष्ठ : १०.
अपने ही रंग में रंग ले मुझको : याद रहेगी होली रे : तराने : फिल्मी गाने : पृष्ठ : १०.
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संपादन. प्रस्तुति.
प्रिया शक्ति./ दार्जलिंग.
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शीर्षक गीत.
फिल्म : आख़िर क्यों. १९८५
गाना : सात रंग में खेल रही है
सितारे : राकेश रौशन. स्मिता पाटिल. टीना मुनीम.
गीत : इंदीवर. गाना : राजेश रौशन. गायक : अमित कुमार. अनुराधा पोडवाल.
गाना सुनने व देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दवाएं.
⭐
होली विशेष गीत
मेरी पसंद
फिल्म : सुहाना सफ़र.१९७०.
सितारे : शशि कपूर. शर्मिला टैगोर.
गाना : चूड़ियाँ बाज़ार से मंगवा दे पहले सइयां
गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारे लाल. गायक : आशा भोसले. रफ़ी.
गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
⭐
फिल्म : ज़ख्मी. १९७५.
सितारे : सुनील दत्त आशा पारेख
गाना : जख्मी दिलों का बदला चुकाने
गीत : गौहर कानपुरी. संगीत : भप्पी लाहिड़ी. गायक : किशोर कुमार.

गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
https://www.youtube.com/watch?v=PHfrL8V6FJY
सितारे : सुनील दत्त आशा पारेख
गाना : जख्मी दिलों का बदला चुकाने
गीत : गौहर कानपुरी. संगीत : भप्पी लाहिड़ी. गायक : किशोर कुमार.

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https://www.youtube.com/watch?v=PHfrL8V6FJY
होली के गीत.
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फिल्म : नवरंग. १९५९.
सितारे : महिपाल. संध्या.
गाना : आ जा रे हट नटखट..
गीत : भरत व्यास. संगीत : रामचंद्र नरहर. गायक : महेंद्र कपूर. आशा भोसले.
गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
https://www.youtube.com/watch?v=ZtHrIba9JJw
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फिल्म : नवरंग. १९५९.
सितारे : महिपाल. संध्या.
गाना : आ जा रे हट नटखट..
गीत : भरत व्यास. संगीत : रामचंद्र नरहर. गायक : महेंद्र कपूर. आशा भोसले.
गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
https://www.youtube.com/watch?v=ZtHrIba9JJw
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फिल्म : कोहिनूर.१९६०.
सितारे : दिलीप कुमार मीना कुमारी
गाना : तन रंग लो जी आज मन रंग लो.
गीत : शकील बदायूनी . संगीत : नौशाद गायक : रफ़ी.

गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
https://www.youtube.com/watch?v=fOM1pJRrK8c
सितारे : दिलीप कुमार मीना कुमारी
गाना : तन रंग लो जी आज मन रंग लो.
गीत : शकील बदायूनी . संगीत : नौशाद गायक : रफ़ी.

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https://www.youtube.com/watch?v=fOM1pJRrK8c
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फिल्म : नमक हराम. १९७३.
सितारे : राजेश खन्ना. रेखा. अमिताभ बच्चन.
गाना : नदियां से दरियां.
गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : राहुल देव वर्मन. गायक : किशोर कुमार.
गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
https://www.youtube.com/watch?v=Q9LuHTUvA0A
फिल्म : नमक हराम. १९७३.
सितारे : राजेश खन्ना. रेखा. अमिताभ बच्चन.
गाना : नदियां से दरियां.
गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : राहुल देव वर्मन. गायक : किशोर कुमार.
गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
https://www.youtube.com/watch?v=Q9LuHTUvA0A
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मेरी पसंद : शिवरात्रि का गाना.
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फिल्म : आपकी कसम.१९७४.
गाना : जय जय शिव शंकर
सितारे : राजेश खन्ना मुमताज संजीव कुमार
गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : लता. किशोर कुमार.
गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं
फिल्म : मस्ताना. १९७०.
सितारे : विनोद खन्ना. भारती. महमूद. पद्मिनी.
गाना : होली खेले नन्द लाला
गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारेलाल.गायक : रफ़ी. मुकेश. आशा.
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गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
https://www.youtube.com/watch?v=zcaWbulK2Nw
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फिल्म : मदर इंडिया.१९५७.
गाना :
होली आई रे कन्हाई होली आई रे.
सितारे : नरगिस. राज कुमार.सुनील दत्त. राजेंद्र कुमार.
गीत : शकील बदायूनी. संगीत : नौशाद. गायक : लता. शमशाद वेगम.

गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
https://www.youtube.com/watch?v=gdz78BW7pKU
गाना :
होली आई रे कन्हाई होली आई रे.
सितारे : नरगिस. राज कुमार.सुनील दत्त. राजेंद्र कुमार.
गीत : शकील बदायूनी. संगीत : नौशाद. गायक : लता. शमशाद वेगम.

गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
https://www.youtube.com/watch?v=gdz78BW7pKU
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मेरी पसंद :
हिमाचल में फिल्मांकित होली का संगीत
फ़िल्म : पराया धन. १९७१.
सितारे : राकेश रोशन हेमा मालिनी.
गाना : होली रे होली रे मुख न छिपा
आगे आगे राधा दौड़े पीछे नन्दलाल.
गीत : आनंद बख्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : मन्ना डे. आशा भोसले.
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चलते चलते : दिल जो न कह सका : दिल की पाँति : हिंदी अनुभाग : पृष्ठ : १२ .
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संपादन.
डॉ. सुनीता शक्ति.
नैनीताल डेस्क.
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' भवतः अपेक्षया उत्तमः भगीदारः नास्ति.'
अर्थ : स्वयं से बढ़कर कोई हमसफ़र नहीं.
चित्रात्मक : होली विचार : एम एस मीडिया.
किसी को रुलाकर आज तक़ कोई हँस नहीं पाया
ये वो सच है जिसे अब तक कोई समझ नहीं पाया
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' तुम ' जो पकड़ लो हाथ ' मेरा ' दुनियाँ ' बदल ' सकता हूँ मैं....
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न जाने किस तरह का ' सूफियाना ' इश्क़ कर रहे है हम
जिसके ' हो ' नहीं सकते उसी के हो रहें है हम
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तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है...
जहाँ भी जाऊं तेरी महफिल है
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शक्ति चित्र विश्लेषण : मेरे जीवन दर्शन में शक्ति के माथे पर
चाँदनी की शीतलता क्यों :
मेरी समझ में शक्ति जो क्रोध की पर्याय होती हैं क्रोध अंतिम परिनीति है आरंभिक नहीं
उनमें बुद्धि ,विवेक,धैर्य की चांदनी की शीतलता की परम आवश्यकता होती हैं
इसलिए मैंने उस शक्ति स्वरूपा की कल्पना की है जो ' बुद्धि ',' विवेक ',' धैर्य ' की प्रतीक भी बनें
नैनीताल डेस्क.
⭐
क्षणिका
सात अजूबे इस दुनियाँ में ....आठवीं अपनी जोड़ी....
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डर के आगे जीत है सावधान रहें ,सचेत रहें
अपनों से अपनों के लिए विश्वस्त रहें आज का सबसे कीमती दोस्त वही है
जो संकट में भी आपके ' विश्वास ', ' प्रेम ' और ' निजता ', ' सम्मान ' को अक्षुण्ण रखता है
डॉ. सुनीता मधुप.
धागा हो तोड़ दूँ प्रीत न तोड़ी जाए
जिन नैनों में तुम बसे दूजा कौन समाए
दोस्त तो बहुत मिले हैं पर
मेरे कौन हो : मुखड़े
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चलते चलते : दिल जो न कह सका : मुखड़े / शार्ट रील / हिंदी अनुभाग : पृष्ठ : १३.
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संपादन.
शक्ति प्रिया.
नैनीताल डेस्क.
आवाज़ दे कहाँ है : मधुर संगीत.
दिल ले ले दिल दे कर : पारुल
खुली पलक में झूठा गुस्सा : व्लॉगर : पारुल
जिसके सपने हमें रोज आते रहें : साभार : पारुल
सारे शहर में आप सा कोई नहीं : पारुल
मेरी बड़ी बदनामी होगी : साभार
मेरी बड़ी बदनामी होगी : साभार
अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ न
तेरे सुर और मेरे गीत
ख़ुशी के पल : शॉर्ट रील.
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Editorial : Thought for the Day : English : Page 1 /
Editorial : Thought for the Day : English : Page 1 /
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Festival of colours.
Smile on the faces painted red and blue
Smile on the faces painted red and blue
Decorated everyone with colourful crew
Patches over the bright, clear and white sheds
Filled my joy with rich and colourful grades.
Dazzled with a sense to approach with friends,
Filled my way with colours to shower with trends
Over the hundreds and thousands of faces
Overwhelmed with bliss to cherish with laces
A glimpse of moment awaited for long
Has finally approached with a bond of crown
Sheds of water painted with dye
Made me profound to enjoy with the sky
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Positive Vibes : Only : Thought for the Day : English : Page 2 / 2.
Positive Vibes : Only : Thought for the Day : English : Page 2 / 2.
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Editor :
Dr. Madhup Raman's Effect
Be personalised in your life you may coup all sorts of problems
in a very comfortable and friendly way
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You Said It : Wishes / Days : English : Page 3.
You Said It : Wishes / Days : English : Page 3.
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Editor.
Media Coordinator.
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Vanita.Shakti.
Shimla.
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Wishes : International Women's Day
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Mother, Sister, Daughter, Wife, Friend and Beloved One
in each and every role women are always the guiding forces in all avtars.
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Birthday Wishes.
Many Many Happy Returns of the Day.
7.3.2024.
Bharat : Business Head of MS Media
महा.शक्ति.मिडिया.प्रेजेंटेशन@जीमेल.कॉम
It is a nice blog magazine page. Thanks to Editorial team
ReplyDeleteI feel mesmerized when I go through the content of this blog platform.Every iota of diction and thought catapult me to a next level of erudite arena along with humble enlightenment.I am actually privileged to add a word to this blog.
ReplyDeleteReally informative and well-written. Insightful reading!
ReplyDeleteBeautiful captures! The way you've intertwined with stunning visuals adds a whole new dimension to your blog. Truly captivating."
ReplyDeleteशानदार होली का शानदार अंक। बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। भगवान आपको दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की दे।
ReplyDeleteExcellent pages on colorful Holi.
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