Yaad Rahegi Holi Re : Rang Barse
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कृण्वन्तो विश्वमार्यम.
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Yaad Rahegi Holi Re : Rang Barse.
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A Live / Archive Blog Magzine Page.
Yaad Rahegi Holi Re : Festival Page.
Volume 1.Series 3.
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याद रहेगी होली रे.
रंग बरसे .
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आवरण पृष्ठ : ०
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नव वर्ष विक्रम संवत, नव रात्रि, रामनवमी तथा बिहार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
हिंदी अनुभाग. |
त्रि - शक्ति अधिकृत और प्रायोजित.
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नव वर्ष
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विषय सूची : पृष्ठ ०.
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आवरण पृष्ठ : ०.
विषय फोटो : संपादन.अशोक कर्ण.रांची.पृष्ठ : ०
विषय : सुविचार. संपादन. डॉ.रतनिका.आगरा .पृष्ठ : ०
शुभकामनायें : आभार पृष्ठ : संपादन.स्मिता.पटना.पृष्ठ : ० .
मॉर्निंग पोस्ट : संपादन.डॉ.नूतन स्मृति.देहरादून.पृष्ठ : १.
नैनीताल की होली : ये पर्वतों के दायरे : डॉ. मधुप. पृष्ठ : १.
यात्रा संस्मरण से साभार. संपादन: रंजीता.प्रिया.वीरगंज.नेपाल.दार्जलिंग.
जीने की राह : संपादन.रश्मि.कोलकोता.पृष्ठ : १.
आज का गीत : संपादन. प्रिया.दार्जलिंग.पृष्ठ : १.
याद रहेगी होली रे : संपादन.रंजीता.नेपाल.पृष्ठ : १.
आज की पाती : संपादन.मानसी.नैनीताल.पृष्ठ : १.
सम्पादकीय : होलिया में उड़े रे गुलाल. संपादन.नीलम पांडेय.वाराणसी.पृष्ठ : २.
थीम पृष्ठ : होली विशेषांक.लेख.अनुभाग.संपादन.राजेश.पृष्ठ ३.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस :संपादन.रीता रानी.जमशेदपुर. पृष्ठ ३ / १.
आलेख : चैत्र नवराते : संपादन.रंजना.नई दिल्ली. पृष्ठ ३ / २.
कही अनकही : रंग दे गुलाल मोहे.संपादन. डॉ.सुनीता रंजीता.नैनीताल.पृष्ठ : ४.
फोटो दीर्घा : रंग बरसे : यादें होली विदेश की. संपादन.शिल्पी लाल.यू.एस.ए.पृष्ठ : ५ / ० .
फोटो दीर्घा : रंग बरसे : यादें होली देश की. संपादन.डॉ. भावना .उज्जैन.पृष्ठ : ५ / १.
कला दीर्घा. कलाकारों के रंगों की होली. संपादन.अनुभूति सिन्हा.शिमला. पृष्ठ : ६.
सीपियाँ : मैं का से कहूं : संपादन.कंचन.नैनीताल.पृष्ठ : ७.
व्यंग्य चित्र. आज कल : संपादन.तनुश्री सान्याल.नैनीताल.पृष्ठ : ८.
कतरनें : विदेश की : ख़बरों की.संपादन.रंजना. नई दिल्ली.पृष्ठ : ९.
कतरनें : देश की : ख़बरों की. संपादन.अनीता.जब्बलपुर. मध्यप्रदेश.पृष्ठ ९ .
आपने कहा. संपादन. सुमन.नई दिल्ली. पृष्ठ : १०.
अंग्रेजी अनुभाग : संपादन. प्रिया.दार्जलिंग. पृष्ठ : ११.
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विषय फोटो : पृष्ठ : ०.
संपादन.
अशोक कर्ण.
पूर्व हिंदुस्तान टाइम्स स्टाफ फोटोग्राफर.
विषय फोटो.
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गढ़वाली होली में रंगों उत्सव के लिए जमा होते स्थानीय : फोटो : ख़ुशी : जोशी मठ |
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दिल्ली होलिका दहन की घड़ी : फोटो : रावी वत्स. नई दिल्ली. |
होली में उड़ते गुलाल संस्कृति के रंग डूबा नैनीताल : फोटो डॉ. नवीन जोशी. |
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विषय : सुविचार. पृष्ठ : ०
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संपादन / संकलन.
डॉ. रतनिका.
आगरा.
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संरक्षक.
डॉ. अजय.
नेत्र रोग विशेषज्ञ. नालंदा.
मेरी तरफ से आप सभी को होली की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं
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हम आपके सहयोग के लिए आपका
हार्दिक आभार प्रगट करते हैं.
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वनिता.
एम. एस. मीडिआ. को - ऑर्डिनेटर.
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सुबह और शाम की पोस्ट : पृष्ठ ०.
आलेख.
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संपादन / संकलन.
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यात्रा संस्मरण.
नैनीताल की होली : न जाने कब मैं तेरे साथ हो ली.
ये पर्वतों के दायरे : यात्रा संस्मरण से साभार
डॉ. मधुप रमण.
©️®️ M.S.Media.
यही कोई दो तीन दिन होली की छुट्टी होने वाली थी। वैसे भी दिल्ली की होली कोई खास नहीं होती है जैसे यू पी बिहार में होती है।
यही कोई साल २००० पहले की बात है न..अनु..? तब बिहार यू पी का विभाजन नहीं हुआ था। न उत्तराखंड बना था न झारखण्ड का निर्माण हुआ था। यही कोई १९९८ के आस-पास का समय रहा होगा ।
तब दिल्ली में पत्रकारिता के सिलसिले में अपनी पढ़ाई कर रहा था और आप दिल्ली में ही रह कर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही थीं ।
हमें मिले हुए चार-पांच महीने हो भी चुके थे। अपने आपसी रिश्ते को लेकर काफ़ी संजीदा भी हो चुके थे। पी.जी. में मेस वाले ने कह दिया था ,साब दो - तीन दिन मेस बंद ही रहेगा ...खुद का इंतजाम कर लेना।
मुझे याद है तब तुमने भी कुछ ऐसा ही कहा था अनु, " मेरे हॉस्टल में भी छुट्टी हो गयी है..मैं छतरपुर वाली आंटी के यहाँ जाना नहीं चाहती हूँ ..."
फिर तनिक रुक कर तुमने कहा था, " होली में अपने घर नैनीताल जाना चाहती हूँ ..अकेले जाने में थोड़ी घबराहट हो रही है ...यदि आप मेरे साथ चलें तो वहां से हो आऊं...आप चलेंगे मेरे साथ !
कह कर तुम अपलक मेरी तरफ़ देखने लगी थी।
लगा जैसे पलाश के अनगिनत लाल फूल यकायक खिल गये हों मेरे मन में । अचानक साथ जाने के निर्णय तक भी पहुँच गया ! फिर दूसरी तरफ सोचने लगा अम्मा - बाबूजी को कैसे बताएंगे, क्या कहेंगे..?
शायद पहले पहले प्यार के जन्में अहसास में अर्ध्य सत्य बोलने की भी तैयारी मन ही मन कर चुका था। सोच लिया कि अम्मा - बाबूजी को कह देंगे कि वाराणसी जा रहे हैं अपनी बहन के यहाँ।
निश्चित कर लिया था कि तुम्हें नैनीताल छोड़ने के बाद वाराणसी भी चले जायेंगे...तब शायद ज़िंदगी में पहली बार झूठ बोलने की भी तैयारी हो चुकी थी। मन में लगा नैनीताल की सभ्यता - संस्कृति को लेकर पत्रकारिता का एक प्रोजेक्ट भी पूरा हो जाएगा और आपका साथ भी दो - तीन दिनों के लिए मिल जाएगा जो किसी की प्रेम कहानी से कम नहीं होगी ...
पूछने पर पता चला तब दिल्ली अंतर राज्यीय बस अड्डे से सुबह पांच बजे एक दो बस ही नैनीताल ,अल्मोड़ा के लिए जाती थी। निश्चित कर लिया था कि सुबह की बस पकड़ेंगे शायद चलते हुए हम सभी शाम पांच- छ बजे तक नैनीताल पहुंच भी जायेंगे।

दूसरे दिन बस अड्डे से हमने सुबह की बस के लिए नैनीताल की दो टिकटें ले ली थी। मुझे याद है यात्रा के मध्य में पढ़ने मात्र के लिए हमने तब बगल वाले स्टॉल से साप्ताहिक हिंदुस्तान की होली विशेषांक वाली पत्रिका खरीद ली थी। खाने के लिए कुछ संतरें,सेव,पानी का बॉटल भी खरीद लिए थे। इसकी जरुरत हो सकती थी।
मुझे याद है ड्राइवर की सीट की तरफ़ से पीछे एक दो छोड़ कर तीसरी वाली सीट पर हम दोनों साथ बैठ गए थे। उपर लाल से लिखा था महिला के लिए आरक्षित सीट।
तुम्हारी वजह से मैं इत्मीनान में था कोई हमें इस सीट से नहीं उठा पाएगा। बस नियमित समय से खुल गयी थी।
तुम बहुत ही प्रसन्न दिख रही थी , अनु .. है ना ...?...घर जाने की खुशी थी या कहें ...मेरे साथ बिताए जाने वाले पल दो पल के साथ का अहसास ...ठीक से बता नहीं सकता था।
तुम एकदम से मुझसे सिमट कर बैठी हुई थी, मेरी बायी बाजू को अपने दोनों हाथों से पकड़े हुए। तुम्हारा सर मेरे कंधे पर टिका हुआ था ..तुम अर्धनिद्रा में भी थी...
बगल वाली सीट पर बैठा बुजुर्ग हमदोनों को किस तरह घूर रहा था अनु ..? तुम्हें याद भी होगा शायद मैंने तुम्हें इस बाबत यात्रा के बीच में बतलाया भी था। ..शायद वो हमारे अनाम रिश्ते को जानने समझने की कोशिश मात्र कर रहा था। हैं ना...? कुछेक घंटे उपरांत बस गाजियाबाद से गुजर रही थी .. मेरी आखें बाहर की भीड़ - भाड़ और बाजार पर टिकी हुई थी ...
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गतांक से आगे : १.
तितलियों के शहर ज्योलिकोट से उपर नैनीताल के आस पास.
मुरादाबाद बस स्टैंड में गाड़ी तक़रीबन १५ से २० मिनट के लिए रुकी थी। थोड़ी देर के लिए मैं
स्टैंड में बस से यही कोई बिस्किट - केक लेने के लिए उतरा था तब कहीं दूरदर्शन पर नेशनल न्यूज़ में बिहार के जहानाबाद में हुए नरसंहार की बुरी खबरें प्रसारित हो रही थी। सुनना अच्छा नहीं लगा।
शाम होने जा रही थी। हमलोग पंत नगर ,लाल कुआँ के बाद हल्द्वानी नैनीताल पहुँचने वाले ही थे। यही कोई चार बजने जा रहा था। हमलोग हल्द्वानी बस स्टैंड पहुंच चुके थे। अब थोड़ी सिहरन भी बढ़ने लगी थी। ठण्ड का अहसास भी होने लगा था।
आपने मुझसे कहा था, " अब आगे नैनीताल की पहाड़ियां शुरू होने वाली हैं ...ठण्ड बढ़ जाएगी ..आपको सर्दी लग जाएगी। ....विंड चीटर निकाल कर पहन लीजिए .."
मैंने आपकी तरफ देखा, जैसे पूछना चाह रहा था , " ..आप क्या पहनेगी ...शॉल लाई है ना...? "
कैसे तुमने मेरे अनकहे भाव पढ़ लिए थे ,अनु ! मैंने तो तुमसे कुछ कहा भी नहीं था ..
तुम कह रही थी , ".. हम पहाड़ी लोग है .. ठण्ड सह सकते है। हमलोगों के जीवन की रोजमर्रा की बातें है ..मुझे आपकी चिंता है ...आप लोग तो मैदानी इलाक़े से आते है ना ...?
इसके पहले मैं कुछ कहता आपने मेरे बैग से कसौली में ख़रीदा हुआ हरे रंग का विंड चीटर निकाल कर दे भी दिया। मैंने आज्ञाकारी अनुयायी होने के नाते शीघ्र ही उस विंड चीटर को पहन लिया।
मैं आपके ख़्याल जो मेरी चिंता ध्यान के लिए थी को सोच कर काफी अभिभूत हो गया था..आँखें जो देख रही थी... ..अंतर मन.. जो आपके प्यार के अहसास को महसूस कर रहा था।
बाहर हिमाचली टोपी पहने बहुत सारे पहाड़ी लोग दिखने लगे थे। कोई कुमाऊं पहाड़ी होली गाना बजा रहा था।
बस थोड़े समय के बाद काठ गोदाम पार कर रही थी। अब चढ़ाई प्रारम्भ होने वाली थी।
कुमाऊं की होली के बारे में तुम बतला रही थी , " ..जानते है सम्पूर्ण उतराखंड में होली की दो रीत है। एक कुमाऊं की होली है तो दूसरी तरफ होली की गढ़वाली परम्पराएं सम्पूर्ण उतराखंड में विशेषतः प्रचलित है। ...कुमाऊं की होली नैनीताल के आस पास मनाई जाती है तो दूसरी तरफ गढ़वाली परम्पराएं देहरादून,मसूरी तथा गढ़वाल इलाके में प्रचलित है....। '
मैं ध्यान से आपकी बातें सुन रहा था, आगे आप कह रही थी ... " यूं कुमाऊं में भी होली के दो प्रमुख रूप मिलते हैं, बैठकी व खड़ी होली, परन्तु अब दोनों के मिश्रण के रूप में तीसरा रूप भी उभर कर आ रहा है। इसे धूम की होली कहा जाता है। इनके साथ ही महिला होलियां भी अपना अलग स्वरूप बनाऐ हुऐ हैं।
देवभूमि उत्तराखंड प्रदेश के कुमाऊं अंचल में रामलीलाओं की तरह राग व फाग का त्योहार होली भी अलग वैशिष्ट्य के साथ मनाई जाती हैं...। "
काठगोदाम के बाद जोली कोट आने वाला था। वही तितलियों का पहाड़ी शहर ..क्षितिज में डूबता हुआ सूरज अब धीरे धीरे शीतल होने लगा था।
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गतांक से आगे : २.
प्रेम केवल अधिकार नहीं सेवा,लगाव और परित्याग के धर्म का नाम भी है.
अब चीड़ और देवदारों के पेड़ दिखने लगे थे। ऊंचाई पर चढ़ते ही उनके घने साए धीरे धीरे बढ़ने लगे थे। बस रह रह कर एकदम से तीखे मोड़ पर घुम जाती थी जिससे मुझे तीव्र घुमाव पर चक्कर भी आने लगा था। लगा था उलटी हो जाएगी।
मैंने कहा भी था , "...मन ठीक नहीं लग रहा है..चक्कर सा आ रहा है ..."
आपने तुरंत अपनी चिंता जाहिर की थी ...बड़े परवाह के साथ कहा था, ...आप इन पहाड़ी रास्तों के आदि नहीं है ..ना ..इसलिए ऐसा हो रहा है ? ... ऐसा करें ...थोड़ा लेट जाए.."
यह कह कर आप खिड़की वाली सीट से एकदम सिमट कर बैठ गयी थी...जगह देने के लिए...
मैंने लेटने की कोशिश भी की लेकिन जगह बहुत कम थी ..इसलिए ठीक से सो नहीं पा रहा था। दिक्कत हो रही थी...
यह देखते हुए आपने कितने अधिकार वश प्यार से मेरे सर को अपने दोनों पैरों के ऊपर रख लिया था अपनी गोद में , ".. इत्मीनान से अब आप अपनी आँखें बंद कर ले...कुछ ही देर में हम नैनीताल पहुंचने ही वाले है... शायद आपको बेहतर लगेगा ...
सच में ही आपकी गोद में सर रखने .. ...पल भर के लिए आँखें बंद कर लेने ...आपके स्पर्श मात्र से ही जन्म जन्मांतर की पीड़ा से मुक्ति मिल चुकी थी।
कब,कैसे और कितना अमर प्रेम पनप गया था हमारे - तुम्हारे बीच अनु ?..यह तो हमदोनों को भी अहसास था ही ..धीरे धीरे और ही प्रगाढ़ होता चला गया था ..है ना ..! ...सोचता हूं तो तेरे - मेरे सपने जैसा ही लगता है।
तब प्रेम की परिभाषा भी मैंने आप से ही तो सीखी था ना ,अनु ..? जाना था ...प्रेम केवल अधिकार सिद्ध नहीं सेवा और परित्याग के धर्म का नाम है ...
तब से ही लेकर यह संकल्प मेरे जीवन के फलसफे के साथ ही है कि आपसी प्रेम के बंधन में दूसरे की ख़ुशी ही मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। इसे शायद मैं पूरी शिद्दत और ख़ामोशी के साथ अभी तक निभाता भी आ रहा हूँ...
यही कोई आधे घंटे के बाद जब आपने मेरे सर पर हाथ रखते हुए कहा था, " ..उठिए ..नैनीताल आ गया है .." तो मेरी तन्द्रा टूटी।
बस की खिड़की से देखा तब यही कोई नैनीताल की दक्षिणी पश्चिमी पहाड़ी के पीछे सूरज डूबने ही वाला था। थोड़ी ही देर में रात होने वाली थी ।
नीचे तल्ली ताल बस स्टैंड में उतरते ही ..झील की तरफ से आती हुई ठंढी सर्द हवा मुझे छूने लगी थी ..सर दर्द कब का गायब हो चुका था। ताजगी का अहसास पल प्रति पल हो रहा था।
नैनीताल में ठहरने मात्र को लेकर मुझमें काफी झिझक थी कि कहाँ रहूँगा, कहाँ ठहरूंगा ? लेकिन आपने पहले ही निर्भीकता से कह दिया था कि हमें अयारपाटा वाली सोनल जिज्जी के बंगले में ही रहना है...एक दो दिन की ही तो बात है।
सोनल जिज्जी आपके नजदीक के रिश्ते में ही बहन लगती थी। और आप उसी बंगले की उपरी मंजिल में माँ बाबूजी के साथ रहती थी। जिज्जी ने हमें लाने के लिए बस स्टैंड गाड़ी भिजवा दी थी।
रात में तुम्हारे - उनके द्वारा दिए गए सम्मान,लगाव,सादगी और प्यार को देखते हुए बस यही सोचता रहा था ,अनु...कि हे भगवान ! इनलोगों को हमारी नज़र न लग जाए ...क्या कोई मैदानी इलाक़े में किसी अनजाने व्यक्ति पर इतनी सरलता से विश्वास कर सकता है ,..नहीं ना ?
हमारी मित्रता से जन्मे प्रेम के आखिर कितने दिन ही हुए थे ..यही कोई चार पांच महीना ही ना ...?
न जाने कब सोचते सोचते दीवान पर आंखें लग गयी थी पता ही नहीं चला...
अगली सुबह नींद तब खुली जब आपने चाय पीने के लिए मीठी आवाज़ लगाई ..,.." उठिए ...चाय ठंढी हो जाएगी..
आप आगे कुछ और भी कह रही थी , "...पता है आपको...रात दस बजे मैं आपको देखने आयी थी कि..आपकी तबीयत ठीक तो है ना ...? ..आप तो गहरी निद्रा में सो गए थे ...बहुत थक गए थे ना ?..शायद इसलिए नींद जल्दी आ गयी ..ठीक से सोए ना.. ठंढी तो नहीं लगी ना ..?
मैंने सर नहीं में हिलाया। टेबल पर रखी केतली की चाय से धुआं बाहर निकल रहा था ...और आप मेरा विस्तर की चादर,कंबल ठीक करने में लग गयी थी ... और मैं अपने भीतर ही खो गया था ...
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गतांक से आगे : ३.
नैनीताल की होली और तेरे - मेरे प्यार का पहला पहला रंग.
चाय की प्याली बढ़ाते हुए आपने धीरे से खिड़की से पर्दा हटा दिया था...सामने हल्की रौशनी दिख रही थी।
सुबह हो गयी थी। उस तरफ कोने में लाली दिखने भी लगी थी।
आपके हाथों की बनी दार्जलिंग की लीफ से बनी चाय मेरी पसंदीदा पेय रही है। इसकी खुशबू मन को बहुत ही भाती है। और सच कहें, आप बेहतर,स्वादिष्ट ,थोड़ी अधिक शक्कर वाली चाय बनाती है जो मुझे पीना पसंद है ।
आज होलिका दहन का दिन था। नवीन दा ने ही बतलाया था कि मल्ली ताल बड़ा बाज़ार, तल्ली ताल के एकाध दो जगहों पर होलिका दहन जैसे कार्यक्रम होते हैं जहां से हम भी फोटो तथा समाचार संकलन कर सकते हैं। डॉ.नवीन जोशी से बातें हो गयी थी उनके आमंत्रण पर ही आज हमें मल्ली ताल होली मिलन समारोह में भाग लेने जाना था।
मुझे याद है उन दिनों भी दिल्ली तथा आस पास के सैलानी कुमाउनी होली का लुफ़्त उठाने के लिए नैनीताल, अल्मोड़ा और रानीखेत के पर्यटन के लिए निकल पड़ते थे। उन दिनों भी कुछेक पर्यटकों की होली फेस्टिवल का डिस्टिनेशन नैनीताल हुआ करता था। लोग मौज मस्ती के लिए पहाड़ी सैरगाहों के लिए निकल पड़ते थे। आज कल तो इनकी संख्या अधिकाधिक ही हो गयी है।
...जानते है ....' , आप कुछ उत्तराखंड की लोक संस्कृति के बारे में ही बतला रही थी , "...उत्तराखंड की सामाजिक, सांस्कृतिक लोक विरासत शोध के लायक है, जिसे मैं आपको बतलाना चाह रही हूँ, जिससे आप भी उत्तराखंड के कुमाऊँ की संस्कृति के बारे में जान सकेंगे और इस सन्दर्भ में सही लिख सकेंगे । यहाँ की लोक संस्कृति बेहतर ढ़ंग से समझने के लिए ,यहाँ के स्थानीय लोग किस तरह से होली का पर्व मनाते हैं हम इसके बारे में जानकारी रख सकेंगे ?
"....आज शहरीकरण के कारण लोग असामाजिक तथा आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। लेकिन त्योहारों का सही अर्थ यह है, सामाजिक हो कर हम समाज को उन्नत व प्रगतिशील बनाए। कुमाऊँ की होली की सामाजिक विशेषता यह है कि यहां के लोग अभी भी अपनी लोक संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं ...। "
" ...कुमाऊँ की होली की उत्पत्ति कब हुई ...यदि आपको मैं बतलाऊँ तो मालूम हो ... यहाँ की होली की चर्चा भी मथुरा व ब्रज की होली के साथ बराबर की जाती है।
विशेषकर बैठकी होली संगीत की शुरुआत १५ वी शताब्दी में चंपावत के चंद राजाओं के महल में तथा आसपास स्थित काली कुमाऊँ के क्षेत्र में हुई। आगे यह गुरुदेव क्षेत्र में ऐसे ही मनाई जाती थी। बाद में चंद राजवंश के प्रयत्न और निरंतर किए गए प्रचार के साथ यह संपूर्ण कुमाऊँ क्षेत्र तक फैल गई।
सांस्कृतिक नगर अल्मोड़ा में तो इस पर्व पर होली गाने के लिए दूर - दूर से गायक आते थे । देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊँ अंचल में रामलीला की तरह राग और फाग का त्योहार होली भी विशेष स्थान रखता है....। "
मैं सम्मोहन की अवस्था में आपको बड़े ध्यान से सुन रहा था ... निरंतर घूरता हुआ। आपके चेहरे की नैसर्गिक खूबसूरती, दिलकश, सलीके वाली मधुर आवाज़ में बला का जादू था। कोई भी आपकी धीमी, मीठी आवाज़ का चाहने वाला हो सकता था, तथा मात्र सुन लेने से ही आपकी तरफ़ खींचा चला आता।
आप आगे कह रही थी , " ...कुमाऊँ क्षेत्र के अल्मोड़ा ,नैनीताल, पिथौरागढ़, चंपावत और बागेश्वर के पहाड़ी जिले आते हैं, जिनमें यह त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है ।
इसकी शुरुआत बैठकी होली से की जाती है, जिसमें प्रथमतः गणेश ,कृष्ण ,राम ,शिव इत्यादि देवी - देवताओं के आराधना ,गीत से की जाती है । यह त्यौहार शरद ऋतु के अंत और फसल बोने के मौसम के आगमन की सही व जरुरी सूचना देता है ....। "
मेरे हिस्से की चाय कब की ख़त्म हो गयी थी। आपने थोड़ी और दे दी थी।
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नैनीताल की होली और तेरे - मेरे प्यार का पहला रंग.कोलाज : विदिशा. |
...केतली , प्याली समेटते हुए आपने धीरे से कहा, "... आप नहा धो कर तैयार हो जाए ...दस बजे हम नाश्ता कर लेंगे ..आपकी पसंदीदा चीजें ऑमलेट, पराठें, चने आलू की फ्राइड सब्जी बना लेती हूँ ...मैं जानती हूँ आपको सन्डे हो या मंडे... अण्डे बहुत पसंद हैं....
"....हम बारह बजे होली मिलन समारोह में भाग लेने मल्ली ताल जाएंगे ... सुन रहें हैं ना ...? '
आप की ही तो मैं सुन रहा था। भला आपके सामने होते ही ...आपकी आँखों में अपना बजूद क्यों खो देता हूँ , अनु ! मैं स्वयं नहीं जानता हूँ।
... १२ बजने वाला ही था। मैं नहा धो कर तैयार ही बैठा हुआ था। मैंने ब्लू डेनिम की शर्ट और बादामी रंग की पैंट पहन रखी थी।
१२ बजने से ठीक पन्दरह बीस मिनट पहले आप एक तस्तरी में कुछ ग़ुलाल ले कर कमरे में दाखिल हुई थी । कोने में रखी राउंड टेबल पर तस्तरी रखते हुए आपने बड़े प्यार से मेरी तरफ देखते हुए कहा , "... दूसरे अन्य जगह के होली मिलन समारोह में भाग लेने से पहले .. मैं आप से ही होली मिलन समारोह कर लेती हूँ.....मुझसे रंग लगायेंगे न ...?
मेरे भीतर का अनुत्तरित जवाब था ...क्यों नहीं..हम तो कब से आपके प्रेम के रंग में रंग गए हैं ? ....आप एक बार नहीं मुझे हजार बार रंग लगाए.... ।
"....आपको मैं अपने जीवन के सात रंग और ढ़ेर सारे गुलाल समर्पित करती हूँ ...भेंट कबूल करें...। " ..यह कहते हुए आपने थोड़ा सा गुलाबी रंग का गुलाल मेरे गालों पर ..लगा दिया था...याद हैं न आपको .........? "
फिर भाल पर टीका लगाते हुए क्षत्राणियों की तरह कहा था, "..यशस्वी भवः ..! " आज भी मैं नहीं भूला हूँ।आपकी उँगलियों के हल्के स्पर्श ..मेरे गालों पर ... वो न भूलने वाले अहसास ही तो .. मेरी अनमोल यादों की विरासत है,अनु । "
मेरी याद में शायद यह पहली या दूसरी दफ़ा होली का प्रसंग था जब किसी मेरे अपने ने इतने प्यार और अधिकार के साथ रंग लगाया था... अभी भी ग़ुलाल वही लगे हुए प्रतीत होते है, जैसे ।
आपको उम्मीद थी मैं भी शायद आपको गुलाल लगाता ...लेकिन संकोच वश मैंने आपको रंग नहीं लगाया।
मैं समझता था आप जन्म जन्मांतर के लिए मेरी सोच ,भावनाओं के अमिट रंग में रंग जाए....जब मन ही सदा के लिए लाल रंग में रंग गया है तो इस भौतिक रंग की क्या आवश्यकता है ?
और शायद अब तो यही हो रहा है न ,अनु ! ...मैं जो बोलूं न तो ना मैं जो बोलूं हाँ तो हाँ वाली बातें ही तो अब तेरे - मेरे जीवन के बीच में चरितार्थ हो रही है। ....हो रही है , ना ,अनु !
मैं तो तब से ही आपके प्रेम के कभी न फीके होने वाले रंग में डूब गया हूँ ...ना ...!
कैसे भूल सकता हूँ ,अनु ? वो रंग ही तो मेरे जीने आस की प्रेरणा मात्र है .. वह अनमोल घड़ी मेरी-तुम्हारी यादों की ही सुनहरी कड़ी है ....जिससे हम-तुम आजतक जुड़ें हैं।
आपके माँ बाबूजी के चरणों में गुलाल रख कर उनसे आशीर्वाद लेते हुए हमने १२ बजने में ठीक पांच - छ मिनट पहले नाश्ता खत्म कर लिया था।
अब चलने की बारी थी। सुबह के नाश्ते में ही दिखा था कि आप एक कुशल गृहिणी भी है एक अच्छी कुक भी । खाने में स्वाद जो इतना अच्छा था ..और फिर कितने प्यार से आपने नाश्ता करवाया था...कैसे भुला जाऊं ..क्या यह हो सकता है..? ...नहीं ना !
हम दोनों तल्ली ताल रिक्शा स्टैंड से रिक्शा लेते हुए करीब १२ बजे मल्ली ताल स्थित बजरी वाले मैदान पहुंच चुके थे। नवीन दा पहले से ही हमारा इंतजार कर रहे थे.....।
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गतांक से आगे : ४.
उत्तराखंड में होली की विभिन्न दिलचस्प परम्पराएं... और सिर्फ तुम.
उतराखंड होली के विभिन्न रूप : फोटो डॉ.नवीन जोशी. |
हम सभी उस स्थल तक पहुंच चुके थे जहाँ एन. यू. जे. की तरफ़ से होली मिलन कार्यक्रम का शुभारम्भ होना था। मुख्य अतिथि बतौर कुमांऊ के वरिष्ठ अधिकारी के साथ साथ स्थानीय विधायक, पूर्व विधायक, महापौर, नगर आयुक्त नगर निगम, प्रधान संपादक, अखवारों से जुड़े कई कलम नवीस उस होली मिलन समारोह में उपस्थित थे।
मुख्य अतिथि जो शायद नगर आयुक्त थे जैसा नवीन दा ने बतलाया उनके कर कमलों के द्वारा उद्घाटन की प्रक्रिया दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। समारोह के थोड़े बाद जब गायन वादन का कार्यक्रम भी प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम किसी शीर्षस्थ अधिकारी द्वारा मधुर पहाड़ी गीत सुनाया गया तो वहां उपस्थित तमाम जन झूमने पर मजबूर हो गए थे।
आप उन तमाम पहाड़ी स्थानीय शब्दों को हमें समझा रही थी जो मेरे लिए नए थे, और मैं इसका अर्थ कदापि नहीं समझ पा रहा था । वहीं कोई विधायक मंच से कह रहे थे कि एन.यू.जे.-आई का यह पहला मंच है जहां मैं गीत गुनगुनाने को मजबूर हो गया हूँ । मैं अपनी समझ के हिसाब से फोटो ले रहा था।
मुख्य अतिथि जो शायद नगर आयुक्त थे जैसा नवीन दा ने बतलाया उनके कर कमलों के द्वारा उद्घाटन की प्रक्रिया दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। समारोह के थोड़े बाद जब गायन वादन का कार्यक्रम भी प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम किसी शीर्षस्थ अधिकारी द्वारा मधुर पहाड़ी गीत सुनाया गया तो वहां उपस्थित तमाम जन झूमने पर मजबूर हो गए थे।
आप उन तमाम पहाड़ी स्थानीय शब्दों को हमें समझा रही थी जो मेरे लिए नए थे, और मैं इसका अर्थ कदापि नहीं समझ पा रहा था । वहीं कोई विधायक मंच से कह रहे थे कि एन.यू.जे.-आई का यह पहला मंच है जहां मैं गीत गुनगुनाने को मजबूर हो गया हूँ । मैं अपनी समझ के हिसाब से फोटो ले रहा था।
".....आप बतला रही थी बैठकी होली के बाद यहां पर दूसरे चरण में खड़ी होली का आगमन होता है ,जिसका अभ्यास मुखिया के आंगन में होता है,लोग गोल घेरा बनाकर अर्ध शास्त्रीय संगीत का मुखड़ा गाते हैं,और लोग उसे दोहराते हैं, ढोल ,नगाड़े,नरसिंह उसमें संगत देते हैं,और सभी पुरुष मिलकर घेरों में कदम मिलाकर नृत्य करते हैं....."
कुमाऊँनी होली : बैठकी होली, की परंपरा.फोटो : डॉ. नवीन जोशी. |
".....आंवला एकादशी के दिन प्रधान के आंगन से होते हुए द्वादशी और त्रयोदशी को होली के दिन गांव के बड़े बुजुर्ग घर - आंगन में जाकर लोगों को आशीष देते हैं। लोगों का स्वागत गुड, आलू और मिष्ठान से किया जाता है। चतुर्दशी के दिन क्षेत्र के मंदिरों में होली पहुंचती है, अगले दिन छलडी यानी गीले रंगों और पानी की होली खेली जाती है ....।"
इस बीच मंच पर शास्त्रीय होली गायन के लिए स्थानीय पुरुष कलाकारों के साथ महिला कलाकारों के द्वारा होली की खूबसूरत रंगारंग प्रस्तुति की जा रही थी जो अति मनभावन थी । इसके साथ ही बाद में अतिथि कलाकार के द्वारा पर्वतीय एवं तराई से जुड़ी होली गायन किया गया जो लोगों को बहुत अच्छा लगा । मंच का संचालन कोई प्रदेश संगठन मंत्री एवं नगर अध्यक्ष कर रहे थे ।
" आप को बतला दें .. उत्तराखंड के कुमाऊँ में महिला होली का देवभूमि में अलग ही महत्व है। यह महिलाएं अपनी संस्कृति को जिंदा रखने तथा अपने मनोरंजन के लिए घर-घर जाकर वाद्य यंत्रों के साथ होली गीत का गायन करते हुए नाचती हैं ...। "
मैं यही सोच रहा था कि अनु... आप कितनी जहीन है...? तभी तो एक दो प्रयास में ही आपने सिविल सर्विसेज परीक्षा निकाल ली थी। आप आगे बतला रही थी ...
" ...यहाँ की स्वांग और ठहर होली कुमाऊँ की एक जागृत होली है, जिसके बिना होली अधूरी है । यह खासकर महिलाओं की बैठकी में ज्यादा प्रचलित है जिसे समाज के अलग-अलग किरदारों के रूप में दर्शाया जाता है।
मुख्य रूप से अल्मोड़ा,द्वारहाट,बागेश्वर,गंगोलीहाट,पिथौरागढ़,चंपावत,नैनीताल,कुमाऊँ की संस्कृति के केंद्र हैं। आज मैंने आप के सामने कुमाऊँ की होली के प्रकारों का व्योरा दिया .. ।"
यहाँ चीरहरण की परम्परा भी होली के मुख्य रूप में वर्तमान है। वह है ,चीर को चुराना,आप लोग समझेंगे कि यह चीर को चुराना क्या है ? लेकिन यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है। होली का फाल्गुन पूर्णिमा से पहले एकादशी से कपड़े में रंग डाल कर इसकी शुरुआत होती है,और इसमें चीर जलाने की भी प्रथा है, जिसे भगवती का रूप माना जाता है ।
लोग चीर को कपड़े में बांध कर रखते हैं, और उसकी सुरक्षा करते हैं ,ताकि लोग चीर चुरा ना सके। क्योंकि चीर के चुराने के बाद लोग उस गांव में फिर चीर जला नहीं सकते है , जिसे होलिका दहन का रूप माना जाता है । इस तरह से हम देखते हैं कि हर जगह की अपनी एक सांस्कृतिक धरोहर होती है...।"
आपकी मधुर आवाज़ मेरे कानों में गूंज रही थी। मैं बस तुम्हारे लिए इतना ही सोच रहा था, " ...इतना ज्ञान ..! कहाँ से अर्जित किया अनु ? ...आप तो ज्ञान की अथाह सागर निकली। शायद आपके ज्ञान आपकी बुद्धि का भी मैं कायल रहा हूँ। है ना ...?"
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गतांक से आगे : ५ .
बजरी वाला मैदान, ठंढी सड़क और ढ़लती शाम .
"....बहुत गर्व है मुझे आप पर ..इतना कि आप मेरी जीवन गाथा की एक महत्वपूर्ण अध्याय सिद्ध होंगी। आपके बिना मैं अधूरा ही रहूँगा ..शायद निरर्थक। सच कहें तो हमें आप से इस ज्ञान, विशेष ज्ञान ,आपके शांत,संयमित व्यवहार से ही तो असीम प्यार है ..। शायद जन्म जन्मांतर के लिए ..कई सदियों तक रहेगा .. यह सच है ना ...?
अच्छा खासा हम लोगों ने वहां समय व्यतीत कर लिया था। नवीन दा वही से आगे कुछ लिखने के लिए हल्द्वानी निकल चुके थे।
और हम कुछ खाने के लिए मल्ली ताल में बजरी वाले मैदान की तरफ बढ़ गए थे। शाम होने वाली ही थी। सैलानियों की आवा जाही अधिक होने लगी थी। स्नो व्यू वाली पहाड़ी के शीर्ष पर एक दो झोपड़ियों में मरियल बल्ब जलने लगे थे।
शाम के वक़्त नैना देवी मंदिर के आस पास ढ़ेर सारे ठेलें और खोमचें वाले अपनी दूकानें लगा लेते हैं और उनकी बिक्री भी अच्छी खासी हो ही जाती है। हम पानी पूरी वाले ठेले के पास जैसे ही पहुंचे यह जानते हुए कि आपको पानी पूरी बहुत ही पसंद है मैंने अपने हाथों से ठेले वाले की तरफ़ इशारा करते हुए कहा , "....कुछ खा ले। "
आपने हंसते हुए धीरे से कहा, " ...यदि आप अनुमति दे तो ..."
"...जरूर ..लेकिन दस से ज्यादा नहीं ...नहीं तो एसिडिटी बढ़ जाएगी ..सुन रही हैं ,ना ...?"
बड़ी प्यारी मोहनी सूरत पर आपकी सहमति की हंसी बिखर गयी ..थी
हम दोनों तो एक दूसरे के मन की भाषा, पसंदगी ,नापसंदगी का तो ख्याल रखते है, ना ...? ..और फिर प्रेम क्या है अनु ..एक दूसरे की चाहत के अनुसार ही अपने आप को ढाल लेना, अपनी जीवन शैली को बदल लेना ही तो शाश्वत प्रेम की परिभाषा है।
पानी पूरी खाने के बाद आपने खोमचे वाले को आलू टिक्की की चाट बनाने के लिए कह दिया जो मेरी पसंद थी। चाट खा लेने के बाद आपने मेरे पर्स से पैसे निकाल कर ठेले वाले को दे दिए.. फिर आगे हम एकांत में बैठने के लिए ठंढ़ी सड़क की तरफ बढ़ गए थे।
मुझे याद है मैं तब से ही आप पर पूरी तरह से आश्रित होने लगा था। कभी भी किसी सफ़र में आपके साथ होने से मैं निश्चिन्त हो जाता था ...
...सारा दायित्व आपके हवाले कर देता हूँ ...आप ही सब संभालती है ..और मेरा सिर्फ एक ही काम होता है ..फोटो ग्राफी करना, इंटरव्यू लेना और लिखना ..यह तो आप ही है ...जिसकी बजह से मैं लिख रहा हूँ ...
याद है ,अनु मैं अक्सर तुमसे ये बातें करता हूँ , " ..तुम ही मेरे जीवन की रेखा हो ..मेरे कर्मों की लेखा जोखा हो ..तुम नहीं तो हम नहीं .. पहले सिर्फ तुम हो उसके बाद ही मेरा अस्तित्व कहीं शुरू होता है...
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ठंढी सड़क से दिखती बादलों में ढकी नैनीताल की पहाड़ियां : मैं और सिर्फ तुम. |
सामने से कोई वोट वाला पहाड़ी लोक गीत गाते अपनी मस्ती में नाव को खेते हुए तल्ली ताल की ओर जा रहा था। आपने अर्थ बतलाया कि परदेश कमाने गए पति को पत्नी इस बसंत रितु की विरह वेदना में याद कर रही है ...
बोलते हुए आपने मेरी तरफ देखते हुए जैसे कहा था , " ...आप तो मुझे नहीं छोड़ेगे ना...? "
जवाब क्या हो सकता हैं ,अनु ?..अर्ध नारीश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करने वालों के लिए पार्वती के बिना शिव का कहाँ कल्याण हो सकता है ...? नहीं ना। शिव वही है जहाँ शक्ति है।
कुछ शाम अधिक हो गयी थी ..लौटते समय हम मल्ली ताल के बड़ा बाजार के आस पास होलिका दहन को भी देखने चले गए ..नियमित निर्धारित समय में वहां इकट्ठी की गयी घास पतवार ,लकड़ी,कागज़ रद्दी में आग लगाई गयी ..स्थानीय उस निकलती अग्नि की ज्वाला के फेरे लेने लगे थे...शायद कुछ लोग मस्ती में होली का ही कोई पहाड़ी लोक गीत गाने लगे थे ...हम अपने भीतर की बुराई की होलिका जला रहें थे
घर लौटे तो रात का यही कोई दस बजने वाला था ....
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गतांक से आगे : ६. अंतिम क़िस्त.
वो ठंडी सुबह और गुलालों रंगों वाली सूखी होली.
दूसरे दिन होली थी। वैसे तो होली की तैयारी आपने होलिका दहन वाले दिन ही कर ली थी। बाजार से जो खाने - पीने की चीजें , रंग - गुलाल आदि लाना था आपने बड़ा बाज़ार से उस दिन ही खरीद लिया था।
शाम होते ही बादल आसमान में घिर आए थे। रात में थोड़ी बूंदा बांदी भी हो गयी थी जिससे हवा में थोड़ी नमी आ गयी थी। पहाड़ की चोटियों पर हल्की - हल्की बर्फ जमी रहती है इसलिए ठंड के कारण लोग ज्यादा गीली या यूं कहें रंगों वाली होली नहीं खेल पाते हैं। परंतु उनका उल्लास किसी से भी कम नहीं होता है । सच कहें तो अपनी परंपरा को कभी न छोड़ने का दर्शन कराती है कुमाउनी होली।
आप कह रही थी चाइना पीक, डोर्थी सीट में कहीं न कहीं कल की रात बर्फ़ के फाहे जरूर पड़े होंगे। चाइना पीक की पहाड़ी तो नैनीताल की सबसे ऊँची पहाड़ी है ना ?
थोड़ी सर्दी भी अधिक बढ़ गयी थी। दिन चढ़ते ही नीचे ढ़लानों में बच्चें शोर गुल मचाने लगे थे। रंग लगाने के लिए आपस में आपाधापी शुरू हो चुकी थी। होली के उत्साह में बच्चों को ठंडी की भला कहाँ फ़िक्र होती है ..? वे कहाँ मानने वाले होते हैं ?
कुमाऊंनी होली में चीर बांधने के साथ ही होल्यारों के द्वारा घर-घर जाकर खड़ी होली गीत गायन शुरू हो गया था। नीचे पहाड़ी ढ़लानों से होली के गीतों की स्वर लहरी तिरती हुई हमारे कानों तक पहुंचने लगी थी। शायद कोई होल्यारों की टोली नीचे की तराई वाले गांव में गा रही थी। और हवाओं में उड़ते लाल ,पीले ,हरे ,गुलाबी शोख रंगों से पहाड़ का वातावरण होलीमय बना हुआ था। लोग मस्ती में थे।
मुझे याद आ गया अपना बचपन। जब हम बड़े हुए थे तो हम भी अपने साथियों के साथ खूब उधम मचाया करते थे। लेकिन बाद में न जाने क्यों धीरे -धीरे रंगों के प्रति मेरा उत्साह कमता गया। चेहरे पर कई रंगों की परत लगाने, फिर उसे मशक्कत से साबुन घिस घिस कर छुड़ाने में जो वक़्त जाया होता था उससे मैं परहेज करने लगा था ।
ले दे के अपनी होली गुलालों की सूखी होली तक ही सिमट गयी थी। रस्म निभाने मात्र के लिए थोड़ा बहुत लगा देता था या थोड़ा सी लगवा लेता था। अपने लिए बस इतनी ही तो होली की रस्म रह गयी थी न, अनु।
याद करता हूँ आपके यहाँ भी माँ - बाबूजी ने होली का पहला रंग भगवान जी को चढ़ाया था। आपके कहे अनुसार ही फिर मैंने भी उनके चरणों पर गुलाल रख कर ढ़ेर सारा आशीर्वाद लिया था ।
होली के व्यंजनों में अभी तक आपके हाथों की बनी गुझिया, नारियल की बर्फी, और मैदे - आटे की पतली निमकी के स्वाद को अभी तक नहीं भुला हूँ। आपने ज़िक्र किया था , ' गुझिया उत्तर भारत की एक पारंपरिक मिठाई है जिसे मैदे के खोल में खोए की भरावन भर कर फिर उसे शुद्ध देशी घी में तल कर बनाया जाता है। '

मैं तो हमेशा ही सोचता रहा हूँ कि कितना सौभाग्यशाली हूँ मैं ..? .जो आप जैसे संतुलित व्यक्तित्व का साथ मिला है । यूँ कहें तो हमने एक - दूसरे से ही तो जीने की कलाएं सीखी हैं न ? सच माने तो एक दूसरे के बिना अधूरे ही हैं।
दोपहर नीचे के घरों से कुछ लोग होली खेलने आ गए थे। मैं उपर की बालकनी से ही देख रहा था। आपने सबका दिल खोल कर स्वागत किया था। सबकी असली होली यहीं दिखी थी ,जहां सब ने एक दूसरे को पूरी तरह से रंग डाला था । उनलोगों ने जम कर सूखे - गीले रंगों का भी प्रयोग किया था। चेहरे रंग डाले थे। सबके चेहरे देखने लायक थे। आपका सुर्ख़ गुलाबी चेहरा भी कितना भा रहा था ..?
जब आप गुसलखाने जा रही थी तो अपने चेहरे पर लगे ढ़ेर सारे रंगों में से कुछ रंग आपने मेरे गालों पर भी लगा दिया था, यह कहते हुए ,' ...बुरा नहीं मानेंगे न ...प्रीत का रंग लगा रही हूँ ... लगाए रखिएगा ..'
अब मैं क्या कहूं ,अनु। यही तो वो जीवन के सात रंग थे जो आज तक मेरे अंतर मन के पटल में बिखरे तो हटे ही नहीं। फीके भी नहीं हुए। भला कैसे छूट भी सकते हैं ? नहीं न , ....अनु !
रात को हम सब लोग डाइनिंग हाल में इकट्ठा हुए तो माँ बाबूजी के साथ बैठकर रात का भोजन किया। जिसमें आपके द्वारा बनाए हुए पकवान एक साथ परोसे गए थे। अगली सुबह हमें दिल्ली भी लौटना था।
उस दिन की होली की लाली जो आपके चेहरे पर बिखरी पड़ी थी और कुछ रंग जो आपने मुझे लगा दिया था उसकी रंगत कभी भी फ़ीकी न पड़ी। कब की वो होली की रंगत मेरे जीवन में सुबह की लाली बन कर छिटक चुकी थी। वैसी सुबह की लाली जिसकी आज तक कोई शाम ही न हुई। समय के अंतराल में वो रंग पक्के ही होते चले गए।
आज भी जब होली आती है और आप साथ नहीं होती हैं तो खुली आँखों में ही वो होली की खूबसूरत यादें मन के पिटारे में स्मृत हो जाती हैं । उसके बाद तेरे मेरे सपनों के रंग एक ही हो जाते हैं ...।
और सच माने तो इसके बिना हमदोनों की जिंदगी कैनबास पर बनी एक श्वेत श्याम तस्वीर की भांति हो जाती है जिसमें चटख रंगों की जरुरत सदैव रहेगी। उन रंगों के बिना जीवन आकर्षण हीन हो जायेगा ...एकदम से बेमतलब ...और बेमानी ...।
इति शुभ
संस्मरण : संपादन.
रंजीता. वीरगंज.नेपाल.
पृष्ठ सज्जा : प्रिया.दार्जलिंग.
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आपबीती : ट्वीट ऑफ़ द डे.
एम.एस.मिडिया. पेज : १
संपादन / संकलन.

रश्मि.
कोलकोता.
तुम्हारे लिए.
जीने की राह .पेज : १
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लघु कथा : परवाह .
डॉ. मधुप.
संदर्भित गाना.
फिल्म : दोस्ती.१९६४.
गाना : राही मनवा ...
सितारे : सुधीर कुमार. सुशील कुमार. संजय खान.
गीत : मजरूह सुल्तानपुरी. संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारे लाल.गायक : रफ़ी.
गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
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दो ज़िगरी दोस्त थे। दोनों एक - दूसरे का बेहद ख़्याल रखते थे। एक - दूसरे पर जान छिड़कते थे। एक दिन एक ने बड़े प्यार से दूसरे से कहा , ... मुझे बुरा लगता हैं ..मैं तुम्हें किसी काम के लिए न जाने कितनी बार ना कह देता हूँ .. क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता...?
दूसरे के चेहरे पर फ़ीकी हंसी निखर पड़ी थी, उसने कहा , " ना सुनना किसे नहीं बुरा लगता... ?
छोटी - छोटी बातों का तुमने ध्यान रखा है। तुमने मेरे लिए कभी भी आज तक़ ना नहीं कहा है ...सदैव हाँ ही बन कर रहे। ....मैं तुम्हारे स्थान पर होता तो इस दोस्ती के रिश्ते से कब का अलग हो गया होता ...?
दूसरे ने बड़े प्यार से उसकी तरफ़ देखते हुए कहा , " जब तुम ना बोलते हो न... तो मैं तुम्हारे उस समय कहे गए कुछेक हाँ को ही याद रखता हूँ ..और सकारात्मक हो जाता हूँ। ...फिर तुम्हारे कहे गए ना से अपने भीतर की उपजी पीड़ा को भी याद करता हूँ।
सोचता हूँ ....जिस घनीभूत पीड़ा की अनुभूति से मैं गुजर रहा होता हूँ..मैं उसे तुम्हें कैसे दूँ..?
तुम्हारी ख़ुशी...तुम्हारा ख़्याल ही तो तेरी मेरी मैत्री के लिए सबसे बड़ा मेरा ईमान - धरम है ......"
अब नमी के बादल फ़िजा में छा गए थे... रौशनी मध्यम हो गयी थी।
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जीने की राह .पेज : १ / २. शोर .
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डॉ. मधुप.
आज कल शोर-गुल के प्रति बड़ी संवेदनशीलता हो गयी है। चिर शांति चाहता हूँ। अपने देश और हिमालय की गोद में बसे गांव याद आते है। शहर की भीड़ -भाड़, हॉर्न बजाती गाड़ियों का आना -जाना, तेज आवाज़ें और इससे जनित शोर से मुझे उम्र के इस पड़ाव में अब परेशानी होने लगी है। यह भी एक प्रकार का प्रदूषण ही है। मुझे मनोज कुमार की १९७२ में निर्मित फिल्म शोर की याद आने लगती है जिसमें शोर की बजह से नायक के बच्चें की श्रवण शक्ति चली जाती है ।
मुझे लगता है तेज बोलना और उसे सुनना भी परेशानी को ही जन्म ही देता है। न जाने क्यों ऐसा लगता है कुछ आवाज़ तीखी हो कर हम तक पहुंच रही हैं। आवाजें कुछ तेज़ होती हुई कानों तक पहुँचती है,कोई तेज से बोल रहा होता है तो बड़ी घड़बड़ाहट सी होती है। अनुभूति ठीक नहीं होती। हालात ऐसे है कि बात करने से बचने लगा हूँ। बमुश्किल किसी से बातें हो पाती है।
वार्तालाप की शैली : हमारी शैली क्या हो ? हमारे तौर तरीक़े कैसे हो ? हम उस पहाड़ी सलीके की बात करते है जिसमें दो पहाड़ी के बीच होते हुए वार्तालाप को भी मैनें सुना है आवाज़ें बहुत ही मध्यम होती है। इस तरह की पार्श्व से गुजरता व्यक्ति भी तनिक सुन नहीं पाता है। सुनना अच्छा भी लगता है। यह शिष्ट प्रतीत होता है। अतः भीड़ - भाड़, समूह में बात करने से बचे।
मेरी आवाज़ भी थोड़ी तेज ही है लेकिन मैंने अपने इजाद किए गए नए तरीक़े से दो या तीन से ही बात करने का माध्यम ढूंढ निकाला है। अहसास ठीक ही है। फिर अकस्मात दो के मध्य होने वाले विवाद , मतान्तर से उपजे नकारात्मक भावों का मनो मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ने पाता है। फिर वाणी तो संयमित होनी ही चाहिए ,सम्यक साथ के लिए तो प्रयत्न शील होना ही चाहिए ।
व्यक्तिवादी होने की शैली : एक बेहतर विकल्प है। व्यक्तिवादी होने की वज़ह से अधिक से अधिक दो या तीन से ही ,थोड़ा भीड़ से अलग हट कर मैनें बात करने की एक नयी पृथक सहज शैली खोज निकाली है। इससे बात की निजता के गोपनीयता भी होती है। जिससे आप बात करना चाहते है उसके लिए आप दोनों एक दूसरे के प्रति केंद्रित भी होते है। सबसे महत्वपूर्ण स्वर भी मध्यम होता है। तथा सामने वाला आपकी बात को ध्यान पूर्वक सुनता भी है। शायद यहां शिष्टता भी होती है। अपना कर देखें अच्छा लगेगा। विवाद हो तो तुरंत वहां से हट कर अपनी तरफ से मौन हो जाए। एक अच्छे, विवेक शील श्रोता बनने की चेष्टा करें। संदर्भित गाना है।
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संदर्भित गाना.
फिल्म : सीमा.१९७१.
गाना : जब भी यह दिल उदास होता है.
सितारे : कबीर वेदी. सिम्मी ग्रेवाल.राकेश रोशन.भारती
गीत : गुलज़ार. संगीत : शंकर जयकिशन.गायक : रफ़ी. शारदा.
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जीने की राह .पेज : १ / ३ . व्यक्ति और समाज .
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डॉ. मधुप.
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फ़िल्म : प्रेम पुजारी.१९७०.
सितारे : देव आनंद ,वहीदा रहमान
गाना : लेना होगा जनम हमें कई कई बार.
गीत : नीरज. संगीत : एस. डी. वर्मन. गायक : किशोर कुमार.
गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
आज मैं अपनों से दूर हूँ। अपनी यथा त्रि शक्ति से हट कर जब जीवन में कुछ अलग हो कर काम करना पड़ रहा हो, अधिक भाग दौड़ हो रही है, काम का बोझ सर चढ़ कर बोल रहा है, तो मन थकने लगता है। मैं इस तरह से काम का आदि नहीं हूँ,लेकिन करना पड़ रहा हैं। मज़बूरी जो है। रोज ५४ किलोमीटर की यात्रा तय करनी पड़ती है, मन को केंद्रित कर काम करना पड़ता है।

रास्तें चलते किसी कुशलता के लिए पूछे जाने वाले फ़ोन का इंतजार अक्सर होता है...लेकिन कॉल्स नहीं आते हैं। आएंगे भी तो कैसे ? उधर से कॉल आ नहीं ही सकते। और आप कॉल कर नहीं सकते क्योंकि आप बाधित होते है किसी न किसी कारणवश ।सब के अपने अपने बंधन है, अपनी सीमाएं हैं। कुछ हमने ही ज्यादातर बनाई हैं। कुछ समाज ने। समाज रूढ़िवादी है विशेष हट कर पसंद नहीं करता। और फिर कुछ हट कर हम लोग भी नहीं चाहते हैं। क्या सम्यक होना चाहिए विचारणीय है ....? और हमें ही विचार करना होगा।
फिर सब हमारी तरह घोर व्यक्तिवादी नहीं हो सकते है। मैं समाज के लिए नहीं सिर्फ अपने लिए, तुम्हारे लिए और फक़त अपनों के लिए जीता हूँ।
क्योंकि जरूरत होने पर सिर्फ और सिर्फ़ अपने ही काम आते हैं गैर नहीं। इसलिए पूरी आत्म शक्ति के साथ उनके लिए जिए जो आपके लिए जीते हो। जिसे हम देख सकें, महसूस कर सकें। सच के धर्म सही सोच को लेकर साथ सच्चे व्यक्ति के साथ निर्भीकता पूर्वक खड़े हो।
सोचता हूँ व्यक्ति में समाज है या समाज में व्यक्ति। प्रधान कौन है व्यक्ति या समाज। मेरी समझ में व्यक्ति ही अधिक प्रधान होना चाहिए। जब चुने श्रेष्ठ व्यक्तियों से ही श्रेष्ठ समाज का निर्माण हो सकता है तो क्यों नहीं हम व्यक्ति प्रधान हो। मैं ऐसे समाज की परिकल्पना ही नहीं कर सकता जिसमें खल लोग हो। हाँ व्यक्ति विशेष के चुनाव में खूब सावधानी बरतें,उसे भली भांति परख ले तब अपने कल्पित,निर्मित समाज का हिस्सा बनाएं। इस सन्दर्भ में पूर्व प्रचलित कहानी किस्सों के बजाय अपनी आँखों देखी अपने कानों सुनी स्वयं से देखी परखी बातों पर भरोसा किया जा सकता है।
भावनात्मक शक्ति चाहिए, मन के लिए, कार्य सिद्धि के लिए। आप सिर्फ कल्पना ही कर सकते है। यदि विश्वास है तो प्रतीकात्मक शक्तियां मिल जाएंगी। मन की शक्तियां किसी न किसी रूप में साथ होती ही हैं। आज भी है....
कुछ एक दिन का सफर नया, सम्मानजनक ,आरामदायक तथा याद करने योग्य भी होता है। आज हिंदी के चैत मास के अनुसार महाष्टमी शक्ति महागौरी का दिन है शायद यहाँ पर भी अपनी शक्ति की ही मर्जी मान सकते हैं। फिर दिवस रामनवमी का आया। दोनों दिन बेहतर गुजरे,दिन कष्ट रहित ही रहा। सुविधायें मिलती रही। रास्तें आसान होते गए। स्वयं के बनाए गए निर्मित मानवीय सम्बन्ध से ही।
आज रामनवमी का जुलूस निकलेगा ..आने जाने का सफ़र आसान नहीं होगा। जय श्री राम के कोलाहल में ...सरकते जन सैलाब में वापसी का सफर कैसा होगा शक्ति ही जाने .....या फिर राम जाने....
शाम हो गयी थी। मैं उसी रास्तें से लौट रहा था। रामनवमी का जुलूस उसी मार्ग से होकर गुजर रहा था। सड़कों पर जन सैलाब उमड़ पड़ा था। लोग राम ,सीता ,हनुमान के दर्शन हेतू लालायित थे। मैंने उनकी शोभा यात्रा की तस्वीरें भी खींची। बहुत ही मनभावन लग रहें थे। अभी घर वापसी हुई नहीं थी कि उपद्रव की खबरें आने लगी थी। उपद्रवियों ने फिर से शहर की शांति को गिरवी रख दिया था। राम की महिमा कहें या शक्ति की रक्षा कवच मैं सकुशल अपने घर में था।
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होली विशेष.
आज का गीत : जीवन संगीत. पृष्ठ १.
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सहयोग.
जाह्नवी आई केयर & रिसर्च सेंटर
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की तरफ़ से होली की ढ़ेर सारी शुभकामनायें. इस पत्रिका की अंतिम गीत प्रस्तुति . फिल्म : गाइड.१९६५. सितारे : देव आनन्द वहीदा रहमान. गाना : आई होली आई पिया तोसे नैना लागी रे . गीत : शैलेन्द्र. संगीत : एस डी वर्मन.गायिका : लता. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=_lgACMqCpus ----------- फिल्म : क्रांतिवीर.१९९४. सितारे : नाना पाटेकर डिंपल कपाडिया गाना : झंकारों झंकारों बड़ा प्यारा गीत :समीर संगीत : आनंद श्रीवास्तवा. गायक : उदित नारायण, कल्पना अवस्थी ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=xgun8yObrr4 -------- फिल्म : दयावान.१९८८ सितारे : विनोद खन्ना. फ़िरोज खान. माधुरी दीक्षित. गाना : दीवानी तुम जवानों की टोली. गीत : इंदीवर. संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारे लाल. गायक : जॉली मुखर्जी मोहम्मद अजीज. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=Nebd8jqwc5w --------- फिल्म : ये जवानी ये दीवानी.२०१३. सितारे : रणवीर कपूर दीपिका गाना : बलम पिचकारी जो तूने मारी गीत : अमिताभ भट्टाचार्या. संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती. गायक : विशाल ददलानी. शाल्मली खोलगड़े ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=0WtRNGubWGA ---------- फिल्म : गोपाल कृष्ण.१९७९. सितारे : सचिन,ज़रीना बहाव. गाना : आयो फागुन हठीलो गीत: संगीत : रविंद्र जैन. गायक : जसपाल सिंह, हेमलता ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=tjiA5lxbPXQ --------- फिल्म : कोहिनूर.१९६०. सितारे : दिलीप कुमार मीना कुमारी गाना : तन रंग लो जी आज मन रंग लो. गीत : शकील बदायूनी . संगीत : नौशाद गायक : रफ़ी. ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=fOM1pJRrK8c ------ फिल्म : सौतन.१९८३ सितारे : राजेश खन्ना टीना मुनीम गाना : रंग लाल पीला हरा नीला नीला. गीत : सावन. संगीत : उषा खन्ना. गायक : किशोर कुमार. अनुराधा पौंडवाल. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=BPKZS2zURDc ------ फिल्म : आन.१९६०. सितारे : दिलीप कुमार.निम्मी.नादिरा. गाना : खेलो रंग हमारे संग. गीत : शकील बदायूंनी. संगीत : नौशाद. गायक : लता. शमशाद वेगम. ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=nScWseU2o2Q ------- फिल्म : राजपूत. १९८२. सितारे : धर्मेंद्र. हेमा मालिनी. विनोद खन्ना. रंजीता. गाना : भागी रे भागी बृज बाला. गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारे लाल . गायक : महेंद्र कपूर.धीरज कौर.आशा भोसले. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=eQuxkIs8jbs ---------- फिल्म : नदियां के पार. १९८२. सितारे : सचिन. साधना सिंह गाना : जोगी जी धीरे धीरे. गीत : संगीत : रविंद्र जैन.गायक : हेमलता. जसपाल सिंह. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=D7j5ugRDXfQ ----------- फिल्म : सिलसिला.१९८१. सितारे : अमिताभ बच्चन. रेखा. संजीव कुमार. जया भादुड़ी. गाना : रंग बरसे भींगे चुनर वाली गीत : हरिवंश राय बच्चन. संगीत : शिव हरि. गायक : अमिताभ बच्चन. ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=Jf92MOkrbEw --------- फिल्म : फूल और पत्थर.१९६६. सितारे : धर्मेंद्र. मीना कुमारी. गाना : लाई है हजारों होली. गीत : शकील बदायूंनी. संगीत : रवि. गायिका : आशा भोसले. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=ma0YG6n3Hf0 ---------- फिल्म : नमक हराम. १९७३. सितारे : राजेश खन्ना. रेखा. अमिताभ बच्चन. गाना : नदियां से दरियां. गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : राहुल देव वर्मन. गायक : किशोर कुमार. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=Q9LuHTUvA0A --------- फिल्म : ज़ख्मी. १९७५. सितारे : सुनील दत्त आशा पारेख गाना : जख्मी दिलों का बदला चुकाने गीत : गौहर कानपुरी. संगीत : भप्पी लाहिड़ी. गायक : किशोर कुमार. ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=PHfrL8V6FJY ---------- फिल्म : मस्ताना. १९७०. सितारे : विनोद खन्ना. भारती. महमूद. पद्मिनी. गाना : होली खेले नन्द लाला गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारेलाल.गायक : रफ़ी. मुकेश. आशा. ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=zcaWbulK2Nw ------------ फिल्म : शोले.१९७५. सितारे : धर्मेंद्र.हेमा मालिनी.अमिताभ बच्चन. गाना : होली के दिन खिल जाते है. गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : किशोर कुमार.लता. ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=ny4ULrtIkUQ --------- फिल्म : आपबीती.१९७६ सितारे : हेमा मालिनी. प्रेम नाथ. गाना : नीला पीला हरा गुलाबी गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारे लाल. गायक : लता. मन्ना दे. महेंद्र कपूर. ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=PReNRpLUTJw ----------- फिल्म : फागुन.१९७३. गाना : पिया संग खेलो होली. सितारे : वहीदा रहमान. धर्मेंद्र. गीत : मजरूह सुल्तानपुरी.संगीत : एस डी वर्मन गायिका : लता. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=Vjg1W9NfPzQ फिल्म : डर.१९९३. गाना : अंग से अंग लगाना. सितारे : सनी देओल. जूही चावला. शाहरुख़ खान. गीत : आंनद बख़्शी. संगीत : शिव हरि.गायक : अलका याग्निक. विनोद राठौड़. ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=bue7fClXlkI --------- फिल्म : पराया धन.१९७१. गाना : होली रे होली मस्तों की टोली. सितारे : हेमा मालिनी. राकेश रोशन.ओम प्रकाश.जयश्री टी. गीत : आनंद बख़्शी. संगीत : राहुल देव वर्मन.गायक : मन्ना डे. ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=Z6BfzvM124Q -------------- फिल्म : मदर इंडिया.१९५७. गाना : होली आई रे कन्हाई होली आई रे. सितारे : नरगिस. राज कुमार.सुनील दत्त. राजेंद्र कुमार. गीत : शकील बदायूनी. संगीत : नौशाद. गायक : लता. शमशाद वेगम. ![]() गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=gdz78BW7pKU -------------- फिल्म : नवरंग. १९५९. सितारे : महिपाल. संध्या. गाना : आ जा रे हट नटखट.. गीत : भरत व्यास. संगीत : रामचंद्र नरहर. गायक : महेंद्र कपूर. आशा भोसले. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=ZtHrIba9JJw ---------- फिल्म : कटी पतंग.१९७० सितारे : राजेश खन्ना. आशा पारेख. गाना : खेलेंगे हम होली. गीत : आंनद बख़्शी. संगीत : आर डी वर्मन. गायक : किशोर कुमार ,लता. simply press the given video link. https://www.youtube.com/watch?v=VGQRMUqya3s ---------- फिल्म : मशाल.१९८४. सितारे : अनिल कपूर.रति अग्निहोत्री. गाना : ओ होली आई होली आई. गीत : जावेद अख़्तर. संगीत : ह्रदय नाथ मंगेशकर. गायक : किशोर.लता. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=6MNxrueCOCg ---------- ![]() फिल्म : बागबान. २००३. सितारे : अमिताभ बच्चन. हेमा मालिनी. गाना : होली खेले रघुवीरा अवध में गीत : समीर. संगीत : आदेश श्रीवास्तवा. गायक : अमिताभ बच्चन, अलका याग्निक. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=XAU8RpG3ybI |
------------- ![]() फिल्म : आखिर क्यों.१९८५. गाना : सात रंग में खेल रही है. सितारे : राकेश रोशन. स्मिता पाटिल. टीना मुनीम. गीत : इंदीवर. संगीत : राजेश रोशन.गायक : किशोर कुमार,लता. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं. https://www.youtube.com/watch?v=nXapE0TPPNs ----------- संकलन / संपादन. प्रिया. दार्जलिंग. ---------------- ----------- याद रहेगी होली रे : कोलाज : पृष्ठ १. ----------- संपादन / संकलन. रंजीता. वीरगंज, नेपाल.
-------------------------------------- आज की पाती. पृष्ठ : १. संकलन / संपादन. मानसी पंत. नैनीताल. ---------------- वक़्त सीखा रहा है. सुगंध देता ही रहेगा. पृष्ठ : २. सम्पादकीय.
सम्पादकीय. पृष्ठ : २. मुख्य संपादक. डॉ.मनीष कुमार सिन्हा. नई दिल्ली. --------------- संपादक मंडल. रवि शंकर शर्मा. संपादक.नैनीताल. डॉ.नवीन जोशी.संपादक.नैनीताल. मनोज पांडेय.संपादक.नैनीताल. अनुपम चौहान.संपादक.लखनऊ . डॉ.शैलेन्द्र कुमार सिंह.लेखक.रायपुर. ----------- सह संपादक. ----------- विशेष संपादक. नीलम पांडेय. वाराणसी. रीता रानी.जमशेदपुर. ----------------- कार्यकारी संपादक. नैनीताल. -------------- कृण्वन्तो विश्वमार्यम. हम सभी टीम मीडिया सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाने चले.गर्व से कहें कि हम भारतीय हैं. होली की हार्दिक शुभकामनायें ---------- सम्पादकीय. नीलम पांडेय. वाराणसी. होलिया में उड़े रे गुलाल... होलिया में उड़े रे गुलाल.....जाने कब होली खेले रघुबीरा अवध में .....जाने कब राधा ने कृष्ण के संग होली खेली होगी,पर जिंदगी की रेस में तेज़ रफ्तार से दौड़ता-भागता हुआ मानव आज भी होली के रंगों में एक-दूसरे को सराबोर कर जी उठता है। यूं कहें, जिंदगी जब सारी खुशियों को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना मांगती है तब प्रकृति मनुष्य को 'होली' जैसा त्योहार देती है। मुक्त स्वच्छंद हास-परिहास का पर्व होली संपूर्ण भारत का मंगलोत्सव है। बसंत पंचमी को शारदा के आवाहन के साथ ही होली के रंग लोगों के मन में उतर जाते हैं। रंग-बिरंगे फूलों से सजी-संवरी धरती सम्मोहित करती जान पड़ती है, तो नीला गगन खुला आमंत्रण देता- सा लगता है। मौसम खुशनुमा हो जाता है गांव की चौपाल पर संगीत के सात स्वर फाग के रुप में गूंज उठते हैं। जोगीरा सा..रा..रा..रा.... की आवाज के साथ जब ढोलक और मंजीरे की धुन गली-गली में गूंजती है तो हर आदमी फगुआ के रंग में रंग जाता है। फगुआ सिर्फ गीत नहीं है बल्कि हमारी परंपरा और विरासत है।आधुनिकता के साथ-साथ हमारी परंपरा और विरासत गायब होती जा रही है। अब तो न ही वे गीत रहे और न ही उनको गाने वाले। एक दौर था जब हर कोई फाल्गुन महीने का इंतजार करता था। वसंत पंचमी के दिन से होलिका का डांढ़ा ( लकड़ी का टुकड़ा, जिसके आसपास होलिका सजाई जाती है ) लगाते ही युवाओं का अल्हड़पन शुरू हो जाता था। घर घर जाकर लकड़ी-गोयठा मांग कर लाते.... जय हो यजमान.. तोहार सोने के किवाड़... पांच गो गोयठा द...... लकड़ी गोयठा जमा करने का इतना प्यारा अंदाज़ हमारी संस्कृति को विशिष्ट बना देता है। हर शाम दुश्मन को भी दोस्त बनाकर घर-घर फगुआ गाया जाता था। ' फगुआ ' दरअसल होली में गाया जाने वाला पारंपरिक गीत है। मूलरूप से यह उत्तर प्रदेश और बिहार में गाया जाने वाला लोकगीत हैं। इन गीतों को लोग टोली बनाकर ढोलक और मंजीरे की धुन पर गाते हैं। मुझे लगता है कि लोग अभी भी ' नदिया के पार' की गुंजा और चंदन को भूले नहीं हैं ,ना ही ..जोगी जी वाह! ...जोगी जी वाह !....होली गीत को। होली का जो पारंपरिक रूप इस फिल्म में दिखा है उसी में होली पर्व की सारी खूबसूरती छुपी हुई है। दिन में रंग खेलकर शाम को लोगों की टोली घर-घर जाकर फगुआ गीत गाती थी। तब दरवाजे पर आने वाली इस टोली का घर की महिलाएं स्वागत करती थीं और उनको होली पर बने व्यंजन खिलाती थीं। फगुआ का मुख्य पकवान गुझिया माना जाता है। यूपी बिहार में फगुआ गाए बिना आज भी होली अधूरी मानी जाती है। ------------- गतांक से आगे. १ मणिकर्णिका घाट और मसाने की होली...
मणिकर्णिका घाट और मसाने की होली ! खेले मसाने में होली दिगंबर, भूत पिशाच बटोरी दिगंबर। ' श्मशान ' जीनवयात्रा की थकान के बाद की अंतिम विश्रामस्थली है। अंतिम यात्रा के दौरान रंग,रोली तो शव को लगाया जाता है लेकिन नीलकंठ महादेव के चरित्र में रंग गुलाल नहीं है, जली हुई चिताओं की राख है, जिससे वो होली खेलते हैं। एक तरफ बृज में कृष्ण और राधा की होली है जो प्रेम का प्रतीक है, लेकिन भगवान शिव की होली उनसे अलग है, उनकी जगह श्मशान है। शंकर जी के होली को देखकर गोपिकाओं का मन भी प्रसन्न हो जाता है। भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाए बिरिज की गोरी, धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर, खेलैं मसाने में होरी। देश और विदेश से लोग इस अजब होली का आनंद लेने के लिए बाबा विश्वनाथ की नगरी में एकत्रित होते हैं। यहां मणिकर्णिका घाट और हरिश्चन्द्र घाट पर रंगभरी एकादशी के ठीक अगले दिन जलती हुई चिताओं के बीच जमकर होली खेली जाती है। मसाने की होली की पौराणिक कथा : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब भोलेनाथ माता पार्वती को गौना करा कर वापस ले जा रहे थे। तब भगवान शिव के गण और देवता फूल और रंगों से होली खेल रहे थे। लेकिन श्मशान में बाबा के परम भक्त अर्थात भूत-प्रेत और अघोरी इस खुशी से वंचित रह गए। जब इस बात की भनक भगवान शिव को पड़ी तो अगले दिन गाजे-बाजे के साथ शिव उनका दुख दूर करने के लिए श्मशान पहुंच गए और जलती चिताओं के बीच राख से होली खेली। आज भी ये परंपरा हर्षोल्लास के साथ पूरी की जाती है। मणिकर्णिका घाट पर लोग आमतौर परअपने परिजन को अंतिम विदाई देते हुए नजर आते हैं। लेकिन आज के दिन इस घाट का अलग ही नजारा देखने को मिलता है। यहां भगवान शिव के भक्त चिताओं के बीच झूमते हुए और नाचते-गाते चिता की भस्म से होली खेलते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां चिता की राख से खेली गई होली से मृत्यु का भय दूर हो जाता है। साथ ही मसाने की होली खेलने से बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव बना रहता है और सभी प्रकार की तांत्रिक बाधाएं दूर हो जाती है। धन्य है काशी विश्वनाथ की नगरी! काशी का हर रूप और अंदाज़ अनोखा और अद्वितीय है। हर काशीवासी के जीवन का हर लम्हा जीने के जज़्बा से भरा हुआ है।जो यहां पहुंच गया वह सत्य से रूबरू हो जाएगा, जिसका आभास करने के लिए गौतम बुद्ध ने गृह का परित्याग किया मनीषियों ने लाखों वर्षों तक घोर तपस्या की। ------------------ प्रसंग / पृष्ठ : ३.
©️®️ M.S.Media. ---------------- आलेख : / महिला दिवस. पृष्ठ ३ / १. जमशेदपुर. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : महिला के अधिकारों का सफरनामा. सफरनामा आधी आबादी ८ मार्च को पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया,बधाई आधी आबादी आपको। कुछ तस्वीरें साझा करती हूं। ईरान की तस्वीर : २२ वर्षीय महसा अमीनी , ईरान की नैतिक पुलिस ने १३ सितम्बर को हिरासत में लिया था। महसा अपने परिवार के साथ तेहरान आई थी। जब उसकी गिरफ्तारी हुई, कारण बताया गया था उसका ‘हिजाब को सही तरीके से नहीं पहनना’। हिरासत में लिए जाने के तीन दिनों के भीतर १६ सितंबर, २०२२ को महसा की हिरासत में मौत हो गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस कस्टडी में उसे काफी टॉर्चर किया गया था।हिरासत में मौत के बाद ईरान में औरतें सड़क पर उतर आई थीं।औरतें अपने हिजाब उतार फेंक रही हैं, उन्हें जला रही हैं, अपने बालों को काटते हुए उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर डाल रही थीं। बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी महिलाएं जेलों में बंद है हालांकि सरकार ने झुकने के संकेत दिए हैं। बता दें कि एक वक्त था जब पश्चिमी देशों की तरह ईरान में भी महिलाएं खुलेपन के माहौल में जीती थीं लेकिन १९७९ में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद सबकुछ बदल गया जब अयातुल्लाह खोमैनी ने गद्दी संभाली और सबसे पहले शरिया कानून को लागू किया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस समर्पित है - दुनिया की आधी आबादी के सम्मान में,शायद इसलिए भी कि अब तक इस दुनिया में उन्हें जो सम्मान,जो अधिकार प्राप्त हो जाना चाहिए था, अद्यतन अभेद्ध है। सभ्यता के क्रम में काफी आगे बढ़ चुकी यह दुनिया आज भी महिलाओं को कार की ड्राइविंग सीट पर बैठने देने के लिए आंदोलन करने को बाध्य करती है,आज भी पोशाक का निर्धारण समाज अपने अधिकार गत रखना चाहता है। सऊदी : जून, २०१८ में सऊदी में महिलाओं को ड्राइविंग लाइसेंस मिलने की शुरुआत हुई। दुनियाभर में इसे एक बड़े फैसले के तौर पर देखा गया।इस अधिकार को पाने के लिए कई सालों तक यहां संघर्ष भी चलता रहा । सऊदी दुनिया का अकेला ऐसा देश था जहां महिलाओं को गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं थी। अफ्रीकी : अफ्रीकी देशों में वैसे तो महिलाओं की स्थिति खराब है,लेकिन उन्हें तेजी से सुधारने की पहल हो ही रही है।बीते दस सालों में अफ्रीकी देशों में ७५ से ज्यादा ऐसे कानून बने हैं, जिनसे महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए ,नौकरियों में अवसर और वर्कप्लेस पर शोषण से बचाने को लेकर कानून बनाए गए हैं। ९ दिसंबर, २०२२ को एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों की फिर से जांच करने के लिए कहा, जो एक आदिवासी महिला को उसके पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित करता है। एक महिला को "जीवित रहने के अधिकार" से वंचित करने का कोई औचित्य नहीं है। संविधान के अस्तित्व में आने के ७० साल बाद भी आदिवासी महिलाएं पिता की संपत्ति पर समान अधिकार से वंचित था। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा २ (२ ) अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं होती है। ------------ गतांक से आगे : १ असीम गर्व है हमें इन भारतीय नारी शक्तियों पर. विश्व और भारत के इन तस्वीरों की पृष्ठभूमि में ८ मार्च को हम पूरी दुनिया में इंटरनेशनल वूमंस डे के तौर पर मनाते हैं। पिछले दिनों एक रिसर्च की गई,वर्ल्ड बैंक ने कुछ समय पहले दुनिया के प्रमुख १८७ देशों में कुल ३५ पैमानों के आधार पर एक सूची तैयार की. इसमें संपत्ति के अधिकार, नौकरी की सुरक्षा व पेंशन पॉलिसी, विरासत में मिलने में वाली चीजों, शादी संबंधित नियम, यात्रा के दौरान सुरक्षा, निजी सुरक्षा, कमाई आदि आधार पर जब आंकड़े जुटाए तो पता लगा कि दुनिया में केवल ०६ देश ही ऐसे हैं, जहां वाकई महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार हासिल हैं। बराबरी के ३५ मानदंडों पर खरा उतरने वाले ये ०६ देश हैं - बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, लातविया, लक्समबर्ग और स्वीडन । खास बात यह है कि यह सभी ०६ देश यूरोप महाद्वीप के हैं । कुछ और देशों में बराबरी का दर्जा को लेकर बेहतर काम हो रहे हैं । उनमें से कुछ देश लगता है कि वाकई महिलाओं और पुरुषों को असल बराबरी की स्थिति में ला पाएंगे । इसमें आइलैंड, नॉर्वे, फिनलैंड, रवांडा, स्लोवेनिया, न्यूजीलैंड, फीलिपींस, आयरलैंड, निकारगुआ आदि शामिल हैं। भारत में पितृसत्तात्मक मानदंड भारतीय महिलाओं के शिक्षा एवं रोज़गार विकल्पों को - जिनमें शिक्षा प्राप्त करने के विकल्प से लेकर कार्यबल में प्रवेश और कार्य की प्रकृति तक सब शामिल हैं, को सीमित या प्रतिबंधित करते हैं। इस परिदृश्य में देश की लगभग आधी आबादी और नागरिकता की हिस्सेदार महिलाओं की स्थिति पर विचार करना प्रासंगिक होगा कि वर्तमान में स्वतंत्रता, गरिमा, समानता और प्रतिनिधित्व के संघर्ष में वे कहाँ खड़ी हैं। राजनीतिक भागीदारी, शिक्षा का स्तर, स्वास्थ्य की स्थिति, निर्णयकारी निकायों में प्रतिनिधित्व, संपत्ति तक पहुँच आदि कुछ प्रासंगिक संकेतक हैं, जो समाज में व्यक्तिगत सदस्यों की स्थिति को प्रकट करते हैं। हालाँकि समाज के सभी सदस्यों की, विशेष रूप से महिलाओं की उन कारकों तक एकसमान पहुँच नहीं रही है, जो स्थिति के इन संकेतकों का गठन करते हैं। भारत में वे कौन-से क्षेत्र हैं जहाँ महिलाओं ने असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है ? वर्षों से महिलाओं ने समाज के अन्याय और पूर्वाग्रह को झेला है। लेकिन आज बदलते समय के साथ उन्होंने अपनी एक पहचान बना ली है, उन्होंने लैंगिक रूढ़ियों की बेड़ियों को तोड़ दिया है और अपने सपनों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये मज़बूती से खड़ी हैं। उदाहरण के लिए , सामाजिक कार्यकर्त्ता : सिंधुताई सपकाल ( पद्म श्री २०२१ ) अनाथ बच्चों की परवरिश, पर्यावरणविद् : तुलसी गौड़ा ( पद्म श्री २०२१ ) , रक्षा क्षेत्र : अवनी चतुर्वेदी , एकल रूप से लड़ाकू विमान ( मिग -२१ बाइसन) का उड़ान भरने वाली पहली भारतीय महिला खेल क्षेत्र : मैरी कॉम , ओलिंपिक में बॉक्सिंग में मेडल जीतने वाली देश की पहली महिला।
खेल क्षेत्र : पीवी सिंधु , दो ओलंपिक पदक ( कांस्य- टोक्यो २०२० ) और ( रजत- रियो २०१६ ) जीतने वाली पहली भारतीय महिला , अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष : गीता गोपीनाथ,अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ( IMF) में पहली महिला मुख्य अर्थशास्त्री ,अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी : टेसी थॉमस , ‘मिसाइल वुमन ऑफ इंडिया’ के रूप में प्रतिष्ठित ( अग्नि-V मिसाइल परियोजना से संबद्ध) , शिक्षा क्षेत्र : शकुंतला देवी, सबसे तेज़ मानव संगणना का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी : शानन ढाका राष्ट्रीय रक्षा अकादमी प्रवेश परीक्षा ( NDA का पहला महिला बैच ) में AIR 1,भारत बायोटेक : बायोटेक की संयुक्त एमडी सुचित्रा एला को स्वदेशी कोविड -१९ वैक्सीन कोवैक्सिन विकसित करने में उनकी शानदार भूमिका के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। इस तरह लंबी फेहरिस्त है। ------------ गतांक से आगे : २. महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव : महिलाओं की सामाजिक सोच महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव : लेकिन भारत में महिलाओं की यह स्वर्णिम उपलब्धि और एक शक्तिहीन महिला की कटु स्थिति के बीच वैसा ही अंतर है जैसा कि गौतम अदानी, मुकेश अंबानी जैसे उद्योगपति और सड़क किनारे गड्ढे खोदने वाला एक सामान्य ठेकेदार मजदूर के बीच। उपलब्धियां है परंतु चुनौतियां गहरी खाई बनकर खड़ी है। पुरुष महिला साक्षरता दर में अंतर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अभी भी बदतर है। कन्या भ्रूण हत्या, दहेज और बाल विवाह जैसी पारंपरिक प्रथाओं ने भी समस्या में योगदान दिया है। लैंगिक भूमिका के संबंध में रुढ़िग्रस्तता ने आमतौर पर महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव को जन्म दिया है। समाजीकरण प्रक्रिया में अंतर : भारत के कई भागों में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पुरुषों और महिलाओं के लिये अभी भी समाजीकरण के मानदंड अलग-अलग हैं। महिलाओं से मृदुभाषी, शांत और चुप रहने की अपेक्षा की जाती है। उनसे निश्चित तरीके से चलने, बात करने, बैठने और व्यवहार करने की अपेक्षा होती है। इसकी तुलना में पुरुष अपनी इच्छानुसार कैसा भी व्यवहार प्रदर्शित कर सकता है। पूरे भारत में विभिन्न विधायी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम रहा है। अंतर-संसदीय संघ और संयुक्त राष्ट्र- महिला की एक रिपोर्ट के अनुसार, संसद में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या के मामले भारत १९३ देशों के बीच १४८ वें स्थान पर था। महिलाओं की सामाजिक सोच : भारत में सुरक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रयासों के बावजूद महिलाओं को भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार, तस्करी , जबरन वेश्यावृत्ति, ऑनर किलिंग, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न जैसी विभिन्न स्थितियों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं की सामाजिक सोच उनकी प्रगति में बाधक है,कई महिलाएं इस बात से सहमत हो जाती हैं कि उनके पति द्वारा उनकी पिटाई जायज है और वे हिंसा को विवाह होने के नियमित भाग के रूप में लेती हैं। २०२२ में भारत की जेंडर गैप रेटिंग्स १४६ देशों में १३५ रैंक के साथ ०.६२९ थी। पीरियड पॉवर्टी विश्व के कई देशों, विशेष रूप से भारत में गंभीर चिंता का विषय है । पीरियड पॉवर्टी मासिक धर्म को ठीक से प्रबंधित करने के लिये आवश्यक स्वच्छता उत्पादों, मासिक धर्म शिक्षा और स्वच्छता एवं साफ़-सफ़ाई सुविधाओं तक पहुँच की कमी को इंगित करती है। भारत के साथ विश्व भर में महिलाओं को एक सामाजिक बाधा का सामना करना पड़ता है जो उन्हें प्रबंधन क्षेत्र में शीर्ष नौकरियों तक पदोन्नत होने से रोकता है। ------------ गतांक से आगे : ३. महिला सशक्तीकरण पूरे पुरजोर तरीके से लागू किया जाए. भारत की अर्थव्यवस्था महिला केन्द्रित : भारत में एक प्रमुख समस्या महिला क्षेत्र में उनके घरेलू कार्यों को अनुत्पादक कार्यों के रूप में देखना भी है। जबकि भारत में बचत दर सकल घरेलू उत्पाद का ३३ प्रतिशत है, जिसमें ७० प्रतिशत घरेलू बचत है। बचत, उपभोग- अभिवृत्ति और पुनर्चक्रण - प्रवृत्ति के मामले में कोई संदेह नहीं है कि भारत की अर्थव्यवस्था महिला केन्द्रित है। कृषि उत्पादन में महिलाओं की औसत भागीदारी का अनुमान कुल श्रम का ५५ पतिशत से ६६ प्रतिशत तक है। डेयरी उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी कुल रोजगार का ९४ प्रतिशत है। वन-आधारित लघु-स्तरीय उद्यमों में महिलाओं की संख्या कुल कार्यरत श्रमिकों का ५४ प्रतिशत है। महिला सशक्तीकरण : भारत में महिला सशक्तीकरण हेतु आवश्यक है सरकारी सशक्तिकरण की योजनाओं को पूरे पुरजोर तरीके से लागू किया जाए । बालिकाओं और महिलाओं के प्रति शिक्षा के दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव आए।कौशल निर्माण या स्किलिंग और सूक्ष्म वित्तपोषण या माइक्रो फाइनेंसिंग से महिलाएँ आर्थिक रूप से स्थिर बन सकती हैं और इस प्रकार वे समाज के दूसरे लोगों पर निर्भर नहीं बनी रहेंगी। देश भर में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये वर्तमान सरकार की पहल और तंत्र के बारे में महिलाओं के बीच जागरूकता बढ़ाने हेतु एक बहु-क्षेत्रीय रणनीति तैयार की जानी चाहिये। खुद महिलाएं महिलाओं के प्रति संवेदनशील हो यह बहुत आवश्यक है। एसिड अटैक की कई घटनाओं में महिलाएं सहभागी रही है पुरुषों की दूसरी महिला पर एसिड डालने में। शासन में अधिक समावेशीता लाने और भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिये शासन के निम्नतम स्तर पर परियोजनाओं को तैयार करने, समर्थन करने और बढ़ावा देने की आवश्यकता है। नन्हे चिन्ह : जैसे कि , "नन्हे चिन्ह ( पंचकुला, हरियाणा )"- आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा प्रोत्साहित इस कार्यक्रम के तहत बच्चियों को उनके परिवारों द्वारा स्थानीय आंगनवाड़ी केंद्रों में लाया जाता है। उनके पैरों के निशान एक चार्ट पेपर पर अंकित किये जाते हैं और आंगनवाड़ी केंद्र की दीवार पर माँ और बच्चियों के नाम के साथ लगाए जाते हैं। शिक्षा, सूचना और संचार अभियानों के माध्यम से समान बाल लिंगानुपात प्राप्त करने में सक्षम होने वाले ग्रामों/ज़िलों को पुरस्कृत किया जाना चाहिये।ग्रामीण स्तर पर बुनियादी सुविधाओं में सुधार से बुनियादी ढाँचे में सुधार से घरेलू कार्य का बोझ कम हो सकता है। राजनीतिक भागीदारी, शिक्षा का स्तर, स्वास्थ्य की स्थिति, निर्णयकारी निकायों में प्रतिनिधित्व,संपत्ति तक पहुँच आदि कुछ प्रासंगिक संकेतक हैं, जो समाज में व्यक्तिगत सदस्यों की स्थिति को प्रकट करते हैं। हालाँकि समाज के सभी सदस्यों की, विशेष रूप से महिलाओं की उन कारकों तक एकसमान पहुँच नहीं रही है, जो स्थिति के इन संकेतकों का गठन करते हैं। रीता रानी. जमशेदपुर, झारखंड. ------------- आलेख : चैत्र नवराते / पृष्ठ ३ / २ . चैत्र नवराते महाष्टमी में याद आ गई महाशक्तियां . महिलाएं माँ के समक्ष ढ़ोल बाजे के साथ कीर्तन कर रहीं थी। मुझे अपनी आत्म - शक्तियां याद आ ही गयी। मुझमें शक्तियां हैं या कहें शक्तियों में मैं हूँ। एक ही बात है। पर्याय खल - दुष्टों के दलन से ही है। प्रतीत ही है कि समस्त देश में अभी चैत्र नवरात्रि चल रहा है। शक्तियां विस्मृत कैसे की जा सकती है। शक्ति सर्वत्र है। इनके कई नाम हैं। कल रामनवमी का पर्व भी है, मर्यादा पुरुषोत्तम राम का दिन । उनका नाम ' दुर्गा ' कैसे पड़ा : दुर्गा शक्ति की उत्पत्ति के पीछे भी बहुत से कारण हैं तथापि मुख्यतः जगत जननी माँ जगदम्बा द्वारा दुर्गम नामक असुर का नाश करने के कारण ही उनका नाम ' दुर्गा ' पड़ा। दुर्गम अर्थात जिस तक पहुंचना आसान काम नहीं अथवा जिसका नाश करना हमारी सामर्थ्य से बाहर हो। मनुष्य के भीतर छुपे यह काम, क्रोध , लोभ , मोह और अहंकार जैसे दुर्गुण ही तो दुर्गम असुर हैं जिसका नाश करना आसान तो नहीं मगर माँ की कृपा से इनको जीत पाना कठिन भी नही। नारी के भीतर छुपे स्वाभिमान व सामर्थ्य का प्राकट्य ही ' दुर्गा ' है। परम शक्ति सम्पन व परम वन्दनीय होने पर भी जब जब समाज में नारी के प्रति एक तिरस्कृत भाव रखा जाएगा, तब - तब नारी द्वारा अपना शक्ति प्रदर्शन का नाम ही 'दुर्गा' है। अम्बे -जगदम्बे से आखिर माँ को काली क्यों बनना पड़ा ? समाज पर, राष्ट्र पर, धर्म पर, संस्कृति पर जब घोर अत्याचार होने लगा, राजसत्ता असहाय बन गई। आसुरी शक्तियाँ हावी हो गई तब माँ ने परिस्थिति अनुसार स्वयं शस्त्र धारण कर आसुरी शक्तियों का ना केवल नाश किया अपितु नारी के भीतर छिपी हुईं शक्तियों से समाज को परिचित भी कराया। अन्याय से, अत्याचार से, सामाजिक कुरीतियों से, विषमताओं से लड़ने में नारी शक्ति के जागरण की बहुत बड़ी आवश्यकता है। अभिमन्यु तभी मरता है जब कोई सुभद्रा सो जाती है। एक नए भारत के निर्माण में नारी शक्ति की बड़ी भूमिका है। भक्तों के हित साधन हेतु ममतामय रूप से काली बने माँ के स्वरूप को कोटि-कोटि प्रणाम। मां प्रकृति है ,मां सृष्टि है मां शक्ति है मां तृष्णा है मां दुर्गा है मां दुर्गपारा है सृष्टि की रचना करते वक्त मां सकारात्मक है तो प्रलयकाल में संहारक भी है । मां मतलब स्त्री । स्त्री का हर वो रुप जो सकारात्मक है ।ममतमयी माता महागौरी है तो विकराल रूप महाकाली भी है । जयंती काली मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा सभी मां ही है । चण्ड मुण्ड,शुम्भ निशुंभ , महिषासुर मर्दन यह सब सिर्फ कथा कहानी नहीं है बल्कि जीवन की कड़ियों को जोड़ा जाए तो प्रकृति में व्याप्त है सब कुछ ।बस समझने के लिए ही साधना की आवश्यकता है । जिसे आज हम मेडिटेशन कह कर दुनिया में प्रचारित कर रहे हैं । नवरात्र का अंतिम दिन सिद्धिदात्री मां : आज नौ दिवसीय नवरात्र का अंतिम दिन सिद्धिदात्री मां की पूजा अर्चना ,हवन , कुंवारी कन्या पूजन के साथ हो जाएगा । देश के अलग अलग हिस्सों में । समापन का तरीका थोड़ा अलग है बिहार में नौवीं को हवन से समापन होता है तो दिल्ली में अष्टमी से ही व्रत संपन्न । नौवी को सिद्धिदात्री यानि माता लक्ष्मी की दिन सुनिश्चित है और कहा जाता है कि माता लक्ष्मी की पूजा के लिए कष्टकर व्रत से नहीं पकवान और भोग से ,कर्म करने से खुश होती है ।यह संयोग नहीं है बल्कि सृष्टि की रचना है ,जिस दिन माता ने समूल असूरों को नष्ट किया उसी दिन भगवान विष्णु एक नए अवतार में धरती पर प्रकट हुए । मार्कण्डेय पुराण में वर्णन है कि ब्रह्मा,विष्णु , महेश तीनों के आह्वान पर ही असुरों के नाश के लिए और देवताओं को बचाने कै लिए मां प्रकट हुई थी । इन देवताओं की शक्तियां थीं मां के पास । यदि साधारण शब्दों में समझें तब बिना विद्या यानि ज्ञान के मनुष्य और पत्थर में अंतर नहीं इसलिए विद्या यानि ज्ञान को ही पूजते हैं। मुर्ति सांकेतिक है वास्तव में हमारे भीतर का ज्ञान ही सरस्वती का वरदान है तो धन बिन कुछ न होत । यह लक्ष्मी है इन सब को मान। त्रि शक्ति का स्वरुप क्या हैं ? सन्दर्भ क्या है ? फोटो : साभार त्रि शक्ति का स्वरुप क्या हैं ? अर्थ के अनुसार तीन शक्तियों का समूह होता है। सन्दर्भ क्या है ? वास्तविकता में एक ही शक्ति में लक्ष्मी ,सरस्वती और पार्वती समाहित है। ज्ञान को देने वाली मां सरस्वती हैं जो हम सभी प्राणी मात्र के लिए अत्यंत आवश्यक है। तो दूसरी तरफ समस्त सांसारिक सुखों को देने वाली धन और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी है। हम इनसबों की आराधना करते ही है। और इन सब को जीने के लिए हमें शक्ति चाहिए ही तो दुर्गा शक्ति की देवी है जो हमारे लिए नितांत आवश्यक है । प्रकृति हैं तीनों रुप। नौवीं के लिए मंदिरों में अच्छी खासी भीड़ रहती है । चैत मास में एक तरफ मां सिद्धिदात्री का पूजन होता रहता है तो दुसरी तरफ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का अवतरण दिवस हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है । सुबह से ही मंदिरों में मंत्रोच्चारण आरंभ हो जाता है । दिल्ली के मंदिरों में सबसे अच्छी बात यह होती है कि कितनी भी भीड़ हो बेकाबू नहीं होती हैं। मंदिरों में दर्शन करने के लिए कोई टिकट की जरूरत नहीं है । यहां पर पंडा या कहें पंडित जी के संभावित दक्षिणा जैसी कोई बात नहीं होती है। देना न देना स्वेच्छा है । माता झंडेवालान ,कालिका माई या छतरपुर वाली माता के दरवार में दर्शन के लिए घंटों कतारबद्ध होकर भी मन शांतचित रहता है। माता के दरवार में न तेरा है न मेरा है देने वाली तो दातिए एक ही है और हम मांगने वाली हज़ार .. हाथ हैं अपने भीतर की शक्ति को समेटने की क्षमता यही से बढ़ती है घंटों कतारबद्ध होकर हम उफ़ तक नहीं करते । भगवान है या नहीं यह बहस का विषय हो सकता है किन्तु मां है या नहीं यह ज्ञान है ... सह संपादन. डॉ.सुनीता.प्रिया. रंजीता. नैनीताल. रामनवमी हमारी भारतीय संस्कृति के शिखर पुरुषों में से एक श्रीराम का जन्मदिन है इस बात पर बहस होती रही कि राम मिथक थे अथवा इतिहास। लेकिन हमारी हजारों साल लंबी सांस्कृतिक परंपरा में ऐसे पहले व्यक्ति जरूर थे जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहां गया। वे प्रखर योद्धा भी थे ,अप्रतिम शासक भी और एक शालीन व्यक्तित्व के स्वामी भी थे। वे ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन पर अपने समय के उच्चतम जीवन मूल्यों के आचरण के लिए देवत्व आरोपित किया गया। जिन पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों को उन्होंने जिया वह उनकी मिसाले आज भी दी जाती है। उनकी शासन व्यवस्था रामराज्य को आज भी शासन का आदर्श माना जाता है। राम ऐसे पहले व्यक्ति थे जिनके जीवन पर महर्षि वाल्मीकि की रामायण और तुलसीदास के राम चरित्र मानस के अलावा देश और विदेश की कई भाषाओं में महाकाव्य रचे गए। राम भारत में ही नहीं नेपाल, थाईलैंड, इंडोनेशिया, सहित विश्व के कई देशों में आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं। आधुनिक समय में उनकी कुछ कृत्यों के लिए राम को कटघरे में भी खड़ा किया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि राम का मूल्यांकन हम आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों की कसौटी पर कस कर करते हैं। राम की जो सीमाएं दिखती है वे सीमाएं राम की नहीं, तत्कालीन जीवन मूल्यों, परंपरा और स्थापित शासकीय आदर्शों की थी। अपनी तमाम करुणा, प्रेम और मानवीयता के बावजूद राम परंपराओं और राजकीय मर्यादाओं के पार नहीं जा सके। समय बदला तो द्वापर युग में कृष्ण ने अपने समय के धार्मिक ,नैतिक और सामाजिक मूल्यों का बार-बार अतिक्रमण भी किया और समाज द्वारा अपनी नई स्थापनाओं को मान्यता भी दिलाई। तथापि किसी ऐतिहासिक पौराणिक व्यक्तित्व का मूल्यांकन उसके समय के सापेक्ष ही किया जाना चाहिए। राम जी की निकली सवारी राम जी की लीला है प्यारी. आज कहीं कहीं विभिन्न शहरों में राम लल्ला की शोभा यात्रा निकलेगी। गली गली में जय श्री राम के नारें गूंजेगे। कहीं कहीं तो कई कई शहरों में अयोध्या जैसा ही परिदृश्य होगा। अपनी दिल्ली में भी रामनवमी को लेकर उत्साह होता है। दिल्ली उत्सवधर्मिता का शहर है बड़े ही जोश खरगोश से यहां मिलजुलकर त्योहार मनाया जाता है ।इधर के कुछ सालों में मर्यादा पुरुषोत्तम राम को लेकर खासा उत्साह रहा है। हर मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ, शनिवार को हनुमान चालीसा और अब रामनवमी से पहले हर दिन रामायण का पाठ तकरीबन हर बड़े मंदिरों में चलता है । इन आयोजनों का सबसे बेहतरीन समाजिक लाभ बुजुर्ग महिलाओं को मिलता है । भक्ति के बहाने वे घर से बाहर निकलती है । समूह बनाकर आपस में पाठ करतीं हैं भजन करती हैं । सुख - दुख बांटती हुई एक दुसरे की मदद करतीं हैं । कुल जमा बात यह है कि अकेले पन से बच कर वो जीवन को जीने की कोशिश करती हैं । आज दिल्ली में दस दिवसीय रामायण पाठ का समापन आज सुबह के शोभा यात्रा से हुआ। सुबह आठ बजे शोभा यात्रा ,ग्यारह बजे मंदिर में पूजन ,राम जन्मोत्सव और फिर खुल्ला भंडारा ।मर्यादा में रहते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्मोत्सव मनाया गया । हालांकि रामनवमी का धार्मिक एकता का सबसे बेहतर उदाहरण पटना के महावीर मंदिर में देखा जा सकता है । स्टेशन स्थित महावीर मंदिर और उसके सटे मस्जिद दोनों के परिसर में आपसी सामंजस्य इस तरह है कि आजतक कितने भी राजनैतिक विवाद देश भर में होता रहे लेकिन पटना स्तिथ महावीर मंदिर और मस्जिद के आपसी भाईचारे तथा सामंजस्य में कोई फर्क नहीं पड़ता है । रामनवमी की पांच किलोमीटर दूर से लगनी वाली पंक्तियों को मस्जिद वाले भी सहेजते व संभालते हैं । उस दिन पटरी पर अपनी दूकान लगाने वाले दुकानदार खुद की दुकान समेट लेते हैं। उससे भी अधिक हुआ तो पंक्तिबद्ध राम के भक्तों को मुस्लिम युवक पानी या शरबत तक पिलाते हैं । कभी कभी रमजान के महीने में मंदिर की तरफ से सारी सुविधाएं नमाजियों को दी जाती है। यदि ऐसा भाई चारा पूरे देश में चले तब ही सार्थक होगा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का रामराज्य जो कभी पहले था। सह संपादन. डॉ.सुनीता.प्रिया. रंजीता. नैनीताल. ------------- संदर्भित गाना. फिल्म : सरगम. १९७९. सितारे : ऋषि कपूर. जया प्रदा. गाना : राम जी की निकली सवारी राम जी की. गीत : आनंद बख्शी. संगीत : लक्ष्मी कांत प्यारे लाल. गायक : रफ़ी. गाना देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाएं.
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हमारी तात्कालिक सामाजिक भावनाओं,विचारों और संस्कृति को दर्शाता हुआ बहुत ही सुन्दर संकलन।
ReplyDeleteCollage from different movies are worth seeing
ReplyDeleteIt's a worth reading. Good one 👍
ReplyDeleteकाशी की होली पर आधारित लेख एवं होली गीत अच्छे एवं मनभावन लगे |
ReplyDeleteहोली का शानदार और जीवन्त वर्णन किया है आपने। विभिन्न झांकियों के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteहोली पर लेख एवं गीत और फ़ोटो काफी अच्छा लगा। ऐसा प्रयास आगे भी देखने को मिलेगा।ऐसी आशा है।
ReplyDeleteThe photo gallery of this blog magazine page is too attractive and worth seeing.The storytelling part is engrossing.It displays the deep rooted faith in Indian culture.and society.
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