Ya Devi Sarvabhuteshu. Navratri.2
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या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता : फ़ोटो डॉ मधुप |
Ya Devi Sarvabhuteshu. Navratri. 2
या देवी सर्वभूतेषु : नवरात्रि विशेषांक.
A Complete Heritage Account over Culture & Festival.
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Volume 2 .Section.A.Page.0.Cover Page.
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पृष्ठ. ० आवरण पृष्ठ.
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हमलोगों
की तरफ़ से नवरात्रि तथा विजयादशमी
की हार्दिक मंगल शुभ कामनाएं .
आवरण : पृष्ठ ०. सुबह और शाम
आज का सुविचार .
आज की : कृति : तस्वीर : पाती :
सम्पादकीय : पृष्ठ १.
पृष्ठ २.
पृष्ठ ३ .फोटो दीर्घा.नवरात्रि.आज कल.
पृष्ठ ४. फोटो दीर्घा.नवरात्रि २०२१ बीते दिनों की
पृष्ठ ५. नवरात्रि के भजन.यूट्यूब लिंक्स
पृष्ठ ६. आपने कहा
पृष्ठ ७. कला दीर्घा :
पृष्ठ ८.नवरात्रि संस्मरण
पृष्ठ ९. में देखें
व्यंग्य चित्र आज कल : मधुप
पृष्ठ १० .
पृष्ठ ११.सीपियाँ :
पृष्ठ १२ . मंजूषा :
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देखें सुबह और शाम .पृष्ठ ०. में
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यात्रा संस्मरण.
शक्ति पीठ नैनीताल और माँ नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी थी। दिल्ली से हमारी पत्रिका के प्रधान संपादक मनीष दा ने फ़िर से मुझे आग्रह किया कि इस साल भी नैनीताल से दशहरे की कवरेज मुझे ही करनी होगी। क्योंकि मैं नैनीताल से प्रारंभ से ही जुड़ा हुआ हूँ वहां के पत्रकारों के संपर्क में हूँ ,और लिखता रहा हूँ इसलिए उन्होंने यह दायित्व मुझे ही सौप दिया।
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डॉ. मधुप |
हालांकि इस बार मैं पश्चिम बंगाल में किसी पहाड़ी जगह सिलीगुड़ी , मिरिक, कलिम्पोंग, कुर्सियांग या दार्जलिंग जैसे इलाक़े से दशहरे की कवरेज करना चाहता था।
पश्चिम बंगाल के दशहरे के बारे में मैंने काफ़ी कुछ सुन रखा था। सोचा था इस बार अपनी आँखों से वहां की धार्मिक ,सांस्कृतिक,आस्थां से परिचित हूँगा। लेकिन मुझसे कहा गया वहां से प्रिया नवरात्रि की कवरेज कर रहीं हैं या करेंगी इसलिए मुझे अपनी मन पसंदीदा जग़ह नैनीताल से ही नवरात्री की कहानी लिखनी होगी।
अतः इसके लिए मुझे तैयार होना होगा। सच कहें बात तो दरअसल में कुछ और थी।
आप इन दिनों प्रशासकीय कार्यों के निमित यूरोप में हो रहे सम्मलेन में शिरक़त करने के लिए दस दिनों के लिए स्विट्ज़र लैंड के दौरे पर थी। और आपकी अनुपस्थिति में नैनीताल में रहना ,भ्रमण करना फिर लिखने जैसे दायित्व को पूरा करना एक बड़ा ही मुश्किल कार्य प्रतीत हो रहा था।
सच ही है ना ? तुम्हारे बिना नैनीताल में कुछेक दिन गुजार लेना कितना मुश्क़िल होगा ,अनु। शायद मैं ही जानता हूँ। संभवतः प्रेत योनि में भटकने जैसा ही मात्र।
लेखन कार्य के लिए शक्ति व परिश्रम चाहिए । मानसिक शांति भी तो जो निहायत ही जरुरी है। मेरी मानसिक शांति ,मेरी शक्ति सब कुछ तुममें तो निहित है ,न। शायद निहित रहता है और युग - युगांतर तक तुम में ही केंद्रित रहेगा। और फिल वक़्त तुम मेरे साथ हो नहीं तो इस कार्य को सफलता पूर्वक कैसे कर पाऊंगा, मैं वही सोच रहा था ? मैं दुविधा की स्थिति में था। लेकिन पत्रकारिता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया था इसलिए इसे भी मुकम्मल करना ही था, इसलिए दृढ़ होना पड़ा । जाने की तैयारी करनी ही पड़ी।
रिपोर्ट,फोटो और कवरेज के लिए इधर उधर भटकना,वो भी आपके सहयोग के बिना कितना दुष्कर कार्य होगा, हैं न अनु ? रात - दिन तुम्हारी यादों की घनी धुंध अपने मनो मस्तिष्क पर छाई रहेंगी। बाक़ी की कल्पनाएं धुंधली धुंधली सी दिखेंगी , ऐसे में मैं लिखने जैसे गुरुतर भार के साथ कितना न्याय कर पाऊंगा यह तो गोलू देवता ही जानेंगे। सच तो यही है न जो कुछ भी मैं लिखता हूँ, वह अंतर्मन के प्रभाव में रहता है। इधर हाल फिलहाल जो भी लिखता रहा ,उसके पीछे की छिपी प्रेरणा शक्ति तो आप ही रहीं हैं न ! शायद एक बजह भी।
आपने फ़ोन पर मुझे सख़्त हिदायत दे दी थी कि मुझे अयारपाटा वाले बंगले में ही ठहरना है,आपके नए बंगले में। लेकिन मैंने मन ही मन में निश्चित कर लिया था कि मैं वहां नहीं ठहरूंगा। मल्ली ताल के आर्य समाज मंदिर में ही रुकूंगा क्योंकि शायद थोड़े पल के लिए आपकी यादों के घने सायों से बाहर निकलने की नाकामयाब कोशिश क़ामयाब हो जाए.....और मन चित शांत कर लिख सकें। इस सन्दर्भ में मैंने अपने संपादक मित्र नवीन दा से बातें कर भी ली थी। वह जाकर वहां कमरा ठीक कर देंगे। मैं यह भी भली भांति जानता था इस लिए गए आत्म निर्णय से आप हमसे बेहद नाराज़ होंगी। लेकिन कुछ कहेंगी भी नहीं यह भी मैं जानता ही हूँ।
कोई अपने घर के रहते मंदिर ,धर्मशाला और गुरुद्धारे में भला रुकता है क्या ,नहीं न ? पागल पंथी ही है, सब यही कहेंगे न ?
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शक्ति पीठ नैनीताल और माँ नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
गतांक से आगे : १.
सप्तमी की देर रात ही हमें अपने गंतव्य स्थान के लिए निकलना पड़ा। पत्रकारों ,कहानीकारों का जीवन ऐसे ही जोख़िम भरा होता है। कब हमें रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़े ,कहाँ जाना पड़े ,कोई सुनिश्चित नहीं होता । हम आदेश के पालक होते हैं। पल में हम कहाँ होंगे हम भी नहीं जानते है। कैमरा , लैप टॉप , मोबाइल ,बैटरी, वाई फाई ,चार्जर,आई कार्ड, डेविड कार्ड बगैरह आदि सब मैंने अपने बैग में सुबह रख लिया था। देर दोपहर तक़ ९०२ किलोमीटर की दूरी तय कर हमें नैनीताल पहुंच ही जाना था ।
सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था। मेरी सुविधा के लिए ही मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ।
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं। इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी ।
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी।
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था।
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है।
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर।
महाष्टमी : आज की तरह ही एक साल पूर्व भी नवरात्रि अष्टमी महागौरी की तिथि थी। आपने सुबह सबेरे चाय की प्याली देते समय यह बतला दिया था कि आज हमें माँ पाषाण देवी के दर्शन करने हेतु जाना है। आप अष्टमी का व्रत भी रखेंगी।
मैंने यह तय कर लिया था कि मैं नहा धोकर पूरी तरह से तैयार मिलूंगा ताकि आप की पूजा,आराधना में तनिक भी विलंब ना हो सके और आप नियमित समय से पूजा कर सके ।
याद है अनु हम कितना समयबद्ध थे। प्रातः ८ बजे तक हम तैयार भी हो गए थे।
यहीं तो शाश्वत प्रेम हैं न, अनु.....? बिन बोले सम्यक मार्ग ,सम्यक कर्म की ओर हम सभी प्रवृत हो। है ना ....!
माल रोड पर लम्बा जाम लगा हुआ था, और मेरी गाड़ी कतार में खड़ी थी। मुझे शायद इसकी तनिक फ़िक्र भी नहीं थी ,मैं तो कहीं और खोया हुआ था । अतीत में ,ये वही पल दो पल की हमारी तुम्हारी यादें हैं जो मेरे जीवन भर की अर्जित सम्पत्ति है।
महाष्टमी के दिन मैं कैसे भूल सकता हूँ ? शक्ति स्वरूपा लाल सुर्ख साड़ी,पैरों में आलता लगाए, पीली चुनरी और हल्के आभूषण के श्रृंगार में आप दिव्य रूप में जैसे मां की शक्ति का प्रतीक ही दिख रही थी। शांति स्वरूपा भी।
सच कहें तो मुझे शांति और शक्ति दोनों अधिकाधिक चाहिए था ,है न। शांति लिखने मात्र के लिए और शक्ति स्वास्थ्य के लिए। ये दोनों चीजें ही अहम हैं हमारे लिए। मन अशांत हो तो लिख नहीं पाता हूँ। सब ख़ुशी व्यर्थ रहती है । शक्ति नहीं है तो जीवन आश्रित और निरर्थक हो जाता है ,किसी शरणार्थी की भांति ।
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नैनी झील ,ठंढी सड़क और माँ पाषाण देवी मंदिर : फोटो विदिशा |
आगे बढ़ते हुए तुम कह रही थी, '..जानते हैं ...तल्लीताल मल्लीताल में इन दिनों नवरात्रि के अवसर पर रामलीला का जबरदस्त आयोजन होता है जिसे देखने के लिए स्थानीय लोगों की काफी भीड़ जमा होती है...'
सच में मुझे रामलीला की भीड़ भी दिखी थी मल्ली ताल में। निर्माण कार्य प्रगति पर था इसलिए आम लोगों को काफ़ी परेशानी हो रही थी।
मुझे याद आया प्रत्यक्ष था कि ५०० मीटर की दूरी तक हमें पैदल ही चलना था क्योंकि इधर ठंडी सड़क पर कोई रिक्शा आदि नहीं चलता है । हम बड़े आराम से कदम बढ़ा रहे थे,ताकि बातें भी होती रहें, कहानी भी बयां होती रहे।
हाथ में पूजा की थाली लिए ठंडी सड़क पर चलते हुए आपने माता पाषाण देवी के बारे में बतलाना शुरू कर दिया था। मैं जिज्ञासु बना आपकी बातों को बड़ा एकाग्रता से ध्यान पूर्वक सुन रहा था।
हाथ में पूजा की थाली लिए ठंडी सड़क पर चलते हुए आपने माता पाषाण देवी के बारे में बतलाना शुरू कर दिया था। मैं जिज्ञासु बना आपकी बातों को बड़ा एकाग्रता से ध्यान पूर्वक सुन रहा था।
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ठंढी सड़क और माँ पाषाण देवी प्रवेश द्वार : फोटो साभार |
मां पाषाण देवी : शक्ति पीठें '..माता की भक्ति में ही अपरंपार शक्ति है। मां तो सती का रूप ही है। आपको भी ज्ञात है कि माँ पार्वती की देह से अलग होकर उनके अंग जहाँ - जहां गिरे वहां शक्तिपीठें निर्मित होती चली गईं। प्रतीत होता है माता पार्वती के नयन नैनीताल में गिरे थे और उनसे निःसृत होती आंसुओं की धारा से नैनी झील का निर्माण हुआ था । .....क्योंकि दिखने इस झील की आकृति ही आँख जैसी ही हैं। '
'.....याद है आपको ...जब हम चाइना पीक गए थे तो वहां से नीचे झील देखी थी ,तो यह झील माँ की आँखों जैसी दिख रही थी । .....दिख रही थी न ?'
'.....याद है आपको ...जब हम चाइना पीक गए थे तो वहां से नीचे झील देखी थी ,तो यह झील माँ की आँखों जैसी दिख रही थी । .....दिख रही थी न ?'
' ...इस झील के किनारे ही मल्लीताल में माता नैना देवी का मंदिर है जो आपने देखा ही है। और ठीक उस जगह से ही तल्लीताल की तरफ जाने के लिए ठंडी सड़क आरम्भ होती है। ...हमलोग तो मंदिर कितनी दफ़ा गए है,गए है न ?
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शक्ति पीठ नैनीताल और माँ नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
गतांक से आगे : २.
तभी ड्राइवर ने आवाज़ दी , ....' सर ! आर्य समाज मंदिर आ गया है,उतरेंगे नहीं क्या ..? ...आप यही उतर जाइए मैं बजरी वाले मैदान में गाड़ी पार्क कर आता हूँ....। '
ठीक है ....' यह कहते हुए मैं अपना बैग बाहर निकाल कर आर्य समाज मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगा था। प्रधान जी कार्यालय में ही थे और हमारे आने का इंतजार ही कर रहें थे। औपचारिकता पूरी कर उन्होंने हमें चाबी दे दी । कमरे की चाबी लेकर मैंने अपना सभी सामान रखा। नवीन दा को मैंने सकुशल आने की सूचना भी दे दी थी। यह माँ नैना देवी , पाषाण देवी की कृपा ही हम सबों पर होती है कि हम पहाड़ों पर सुरक्षित होते हैं ।
फ़िर न जाने क्यों टहलते हुए बाहर बरामदें की तरफ़ आ गया था । सामने झील ,बजरी वाला मैदान , कैपिटल सिनेमा , नैना देवी मंदिर तथा सिंह गुरुद्वारा सब कुछ दिख रहा था।
दिख नहीं रहीं थी तो सिर्फ़ तुम थी ,अनु । बादल का छोटा सा टुकड़ा न जाने कहाँ से राजभवन वाली पहाड़ी से उतर कर नीचे झील के बीचो बीच आकर ठहर गया था। उस बादल के नन्हें टुकड़े में भी मुझे तुम्हारा अक़्स ही नज़र आ रहा था। मगर तुम तो नहीं थी न ?
बोट हाउस क्लब की एक दो पाल वाली नौकाएं उस किनारे में तिरती हुई दिख रही थी तल्ली ताल की तरफ़,बाहर से आए सैलानी ही होंगे ।
हर शय में मेरी आंखें तुम्हें क्यों तलाश कर रहीं थी ,अनु ... ? अक्सर ऐसे सवाल मन में क्यों व किसलिए उठते है ,....? ... कौन महत्वपूर्ण है , और कौन अहम है , ? इंसान,भगवान या स्थान.... ?
भगवान तो दिखते नहीं ,एक आस्थां है,जो मन में है । शायद इंसान ही न जो हमारे पास हैं ,मदद के लिए जीते जी आगे आ सकते हैं । फ़िर साथ के बिना तो स्वर्ग का क्या भी बजूद ? है ना ...?
नैनीताल मेरी पसंदीदा जग़ह रही है, यह सच है । लेकिन इस स्थान से इतना लगाव के पीछे का सच भी अब तुम्हारे इर्द गिर्द ही केंद्रित हो चुका था । शायद आज कल तुम ही एक मात्र अहम बजह रही हो, नैनीताल को पसंद करते रहने के पीछे। सच है ना ...?
आज तुम यहाँ नहीं हो ...तो यही झील कितनी उदास और सूनी लग रही है ,है न अनु । ...और अब जब तुम यहाँ से सैकड़ों मील दूर हो..यही जानी - पहचानी जगह अपरिचित सी लग रही है ,न जाने क्यूँ ?
झील के उस पार ही ......तो पाषाण देवी का मंदिर है ना ? मानस पटल पर बिताए गए दिन बेतरह याद आ रहें थे। तुम नैना देवी के बारे में बतला रही थी ......न ?
ठंडी सड़क, मैं और नैनीताल की मेरी यादें : कोलाज विदिशा
मैंने याद करने की कोशिश की थी ,... ' यही कोई तीन चार बार नैना देवी हम आए थे । '
'...हम उस तरफ़ मल्ली ताल से भी आ सकते है और तल्लीताल से भी जा सकते है ...'
' ....आपको बताए यहां के लोग कहते है कि इस अयारपाटा की पहाड़ी के दक्षिण - पूर्वी तल पर ही माता क़े अंग से ह्रदय और अन्य हिस्से यथा पाषाण आदि भी गिरे थे जिससे उस स्थान पर पाषाणदेवी का मंदिर बना है.....। '
'...हम उस तरफ़ मल्ली ताल से भी आ सकते है और तल्लीताल से भी जा सकते है ...'
' ....आपको बताए यहां के लोग कहते है कि इस अयारपाटा की पहाड़ी के दक्षिण - पूर्वी तल पर ही माता क़े अंग से ह्रदय और अन्य हिस्से यथा पाषाण आदि भी गिरे थे जिससे उस स्थान पर पाषाणदेवी का मंदिर बना है.....। '
'....पाषाणदेवी के इस मंदिर में देवी माँ की पूजा शिला में उभरी एक आकृति के रूप में की जाती है। ..आकार में विशाल इस शिला में आप ध्यान से देखेंगे तो देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों के दर्शन भी होंगे...।'
हम झील के किनारे थे। कुछ पाल वाली नौकाएं एकदम क़रीब से गुजर रही थी।
' ... सच में यह एक अद्वितीय,अनोखी चट्टान है,अपने मन की आस्था की। माना जाता कि इस चट्टान पर माँ का मुख दिखाई देता है तो उनके पैर नीचे झील में डूबे हुए हैं। हम कह सकते है कि पाषाण देवी का मंदिर नैनीताल का सबसे पुराना मंदिर था। '
जन आस्था : '.....इस मंदिर में आसपास के गाँवों के पशुपालक लोग माँ को दूध से बने पदार्थ और मट्ठा चढ़ाया करते थे।ग्रामीणों में पाषाण देवी का आज भी वही स्वरुप पूज्यनीय माना जाता है। मान्यता है कि पाषाण देवी के मुख को स्पर्श किये हुए जल को लगाने से त्वचा रोगों से तो मुक्ति मिलती ही है, प्रेतात्माओं के पाश से निकलने की राह भी खुलती है।'
'....अगर मैं भी आपसे प्रेम की बाधा में पागल हो गयी, प्रेत बन गयी न तो मुझे भी मुक्ति के लिए पाषाण देवी के पास ही यहीं ले आइएगा, सुन रहें है, न ...? '
तब मैं सोचने लगा...' पता नहीं हमदोनों में से पहले कौन पागल होगा, कौन जानता है ? कौन किसको यहाँ किस अवस्था में लाएगा ,माँ ही जाने। ऐसी नकारात्मक बातें क्यों ,अनु ..?
तुम्हारे इस सवाल का भला मैं क्या जवाब देता ? भावनाओं के शिखर पर समाज और बंदिशों के थपेड़े में बमुश्किल संभलते हुए किसकी स्मृति दोष में चली जाएंगी...किसे पता .....! भगवान ही जाने।
मगर न आज धुंध थी। न कोहरा ही । सिर्फ़ मैं था ,मेरी तन्हाई थी .....और कभी भी साथ न छोड़ने वाला तुम्हारी यादों का सिलसिला ....मैं और मेरी तन्हाई में अक़्सर ऐसे हालात होते है जब मैं शून्य में तकने लगता हूँ.....शायद तुम्हें ढूंढ़ने की कोशिश करता हूँ ...
आर्य समाज मंदिर लौटा तब तक़ काफ़ी समय हो चुका था ....
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शक्ति पीठ नैनीताल और माँ नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
गतांक से आगे. ४ . माँ नैना देवी का दर्शन.
आज आश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी की तिथि थी। सिद्धिदात्री का दिन था। आर्य समाज मंदिर से सुबह सबेरे ही मैं नहा धो कर माता के दर्शन के लिए निकल गया था। सोचा पहले माता के दर्शन के बाद कुछ काम करूँगा।
इस मंदिर परिसर में तो हम कितनी बार आ चुके थे अनु ..? ...है ना ! यही कोई चार पांच बार ..
माँ नैना देवी मंदिर : सबेरे के आठ बज रहे थे। धूप अभी तीखी नहीं हुई थी। मंदिर में सैलानी थे ही नहीं। ले दे के स्थानीय लोग ही थे। मैंने चढ़ावे के लिए कुछ प्रसाद ले लिया था। मंदिर में प्रवेश करते ही हनुमान जी दिख गए।
नैनीताल में नैनी झील के ठीक उत्तरी किनारे पर जन आस्था का मंदिर नैना देवी मंदिर स्थित है। सन १८८० में जब भयंकर भूस्खलन नैनीताल में आया था तब यह मंदिर उस प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था। बाद में भक्त जनों और श्रद्धालुओं ने इसे दोबारा बनाया था । यहाँ सती या कहें माता पार्वती की शक्ति के रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में उनके दो नेत्र वर्त्तमान हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं।
नैनी झील के बारे में माना जाता है जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहें थें तब जहां जहां उनके शरीर के खंडित अंग गिरे वहां वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इसी धार्मिक भावना से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गयी थी।
माँ नयना देवी के मंदिर के देखभाल का जिम्मा अमर उदय ट्रस्ट करती है।
पौराणिक गाथा : वही है जो हमने कई बार सुनी है। जब शिव सती के जले अंग को लेकर की कैलाश पर्वत की तरफ जा रहें थे तो उनके भीतर बैराग्य भाव उमड़ पड़ा था। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कंधे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया था तो देव गण चिंतित हो गए थे। ऐसी स्थिति में सती के शरीर को खंडित किया गया। अतएव जहां जहां पर सती के शरीर के विभिन्न अंग गिरे वहां वहां पर शक्तिपीठों के निर्माण हो गए। यहां पर नैनीताल में सती के नयन गिरे थे इसलिए यह स्थान नैनीताल हो गया। वहीं पर नैना देवी के रूप में उमा अर्थात नंदा देवी का स्थान हो गया आज का नैनीताल वही स्थान है जहां पर उस देवी के नयन गिरे थे। नैनों से बहते अश्रुधार ने यहाँ ताल का रूप ले लिया था इसलिए यह ताल नैनीताल कहलाया। तब से निरंतर यहां पर शिव - पार्वती की पूजा नैना देवी के रूप में की जाती है।
अन्य मंदिर : नैना देवी जो मुख्य मंदिर है इसके अलावह यहाँ भैरव ,माँ संतोषी ,नवग्रह ,राधा कृष्ण ,भगवान शिव, बजरंग वली का मंदिर तथा, दशावतार कक्ष भी बने हुए हैं । मंदिर से सटे नैना देवी का धर्मशाला भी हैं जहाँ भक्त गण ठहर भी सकते हैं।
इसके लाल टिन वाली छत देखते ही मुझे राजेश खन्ना ,तथा आशा पारेख अभिनीत फ़िल्म कटी पतंग याद आ गयी थी जिसमें पूजा करने के लिए दोनों यहाँ आते हैं। तब उसी फ़िल्म में मैंने नैना देवी मंदिर को पहली बार सिल्वर स्क्रीन में देखा था। इसके बाद तो न जाने कितनी बार देखा। जब कभी भी मैं नैनीताल आता आप मुझे यहाँ दर्शन के लिए ले ही आती थी।
पंडित जी ने कुछ फूल दे कर प्रसाद मुझे वापस कर दिया था। नैना देवी के दर्शन के बाद मैंने परिसर में अन्य देवी देवताओं के भी दर्शन किए। लेकिन न जाने क्यों मुझे यह बार बार लगता रहा जैसे तुम मेरे साथ हो ...और मंदिर की परिक्रमा साथ कर रही हो ...
मंदिर परिसर में कई धागें और कई चुनरियाँ बंधी मिली थी जो लोगों ने अपने मन्नतों के लिए बाँधी थी । अरमानों के धागें, मनोकामनाओं की अनगिनित चुनरियाँ ,है न ,अनु । इनमें से दो तीन तो आपकी भी होंगी ही न ?
याद है ,मैंने एक बार इन धागों के बारें में आपसे पूछा भी था तो आप हंस कर टाल गयी थी... ' क्या करेंगे जान कर ? ,...जिस दिन आपकी हमारी मनोकामना पूरी होगी आप भी जान ही लेंगे ......।
फ़िर एक बार बिना पूछे ही बतला दिया था ... ' ..कुछ नहीं ...बस आपके साथ जनम जनम का साथ चाहती हूँ ....'
तब मैंने कहा भी था ...' आख़िर मुझमें क्या है ,अनु ...मैं तो बस एक साधारण इंसान हूँ ...तुच्छ प्राणी मात्र हूँ ...
'.... साधारण नहीं ..बहुत कुछ है आप में ..! ..कितना ख़्याल रखते है ,मेरा ...सब का.. ! ..सच कहें ... तो लोग ठीक से समझ ही न पाए आपको ....!
'..सही तो है ... क्या लोग समझ पाए मुझे ...नहीं न ..? ' , स्वयं की तरह व्यक्तिवादी होने की बजह से मैं अन्य से अपने लिए शांति ,धैर्य और सत्य के अन्वेषण की ही बात करता हूँ न ...?
तुमसे ही तो मैंने जीने की कला सीखी है , तुम अक़्सर मुझे समझाते रहती थी, ' ...किसी नतीजें पर पहुँचने से पहले ....रुक जाओ ,ठहर जाओ ,समझ लो ..सत्य जान लो ,अपनों से संवाद कर लो ..सारी समस्याएं निराकृत हो जाएंगी ..शीघ्रता मत करो ..।
सच में तुम्हारे बिना कितना अकेला हूँ , मैं ..भाव से ...संवाद से ..अस्तित्व से ..व्यक्तित्व से। एकदम सा अधूरा ..अपूर्ण...।
तुम्हारी अनुपस्थिति में आज उदासी के बादल फ़िर से मेरे मन में घनीभूत हो गए थे। जैसे मेरी ऑंखें कब की बरस जाएंगी।
उदास होते हुए मैं मंदिर से सटे रेलिंग के किनारे झील को देखने सरक आया था कि झील के मध्य में तैरती हुई नौकाओं को देख कर मुझे फिर से कुछ याद आ गया.....
सच कहें तो झील के बीच में तुम्हें ही तलाश कर रहा था ,अनु । तुम्हारे लिए, तुम्हारी तलाश में पहाड़ियों में चिर निरंतर से भटकती हुई आत्मा ही बन गया हूं ना मैं ? हैं ना।
तुम्हें याद हैं ना ,अनु इसी झील के किनारे इसी मंदिर परिसर में वापस लौटने के क्रम में तुमने मेरी सूखी हाथों को अपनी बर्फ़ जैसी कनकनी देने वाली नर्म हथेली से स्पर्श कर कहा था , ' ....ऐसा करते है नाव किराये पर ले लेते है ...और यही से तल्ली ताल चलते है...।'
झील के उस पार,तल्लीताल :ऐसा कह कर तुम अपनी बच्चों वाली ज़िद ले कर बोट में बैठ गयी थी,है ना ?
क्या करता,मुझे भी तुम्हारा साथ देने के लिए तुम्हारे लिए नाव में बैठना पड़ा था। नाव वाले से तुमने चप्पू भी ले लिए थे या कहें छीन ही लिया था और हम सभी नाव खेते हुए झील के बीचोबीच पहुंच गए थे। पानी से कितना डर लग रहा था। हमदोनों में से कोई भी तैरना नहीं जानता था। सामने ठंढी सड़क पर स्थानीय लोग आ जा रहें थे। बाहर वाले शायद कम ही होंगे।
गोलू देवता मंदिर की तरफ़ देखते हुए न जाने तुम इतना भावुक क्यों हो गयी थी ..' इस झील में मैं डूब कर मर जाऊं ...और आप मेरी आँखों के सामने हो तो समझूंगी जीना सार्थक हो गया है ... भला तुम कैसी बहकी बहकी बातें कर रही थी ,अनु ।
भगवान न करें ऐसा हो जाए। गोलू देवता का आशीर्वाद सब के ऊपर हो। सभी लोग सुखी रहें और निरोग भी। पहाड़ी लोगों के आराध्य देव है गोलू देवता। तुम भी तो अतीव विश्वास करती हो ना। तब संध्या आरती का वक़्त हो रहा था ...न ?
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शक्ति पीठ नैनीताल और माँ नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
आखिरी क़िस्त .गतांक से आगे.५ .विजयादशमी.
आज विजयादशमी की तिथि थी। महानवमी के बाद पूरे देश में असत्य पर सत्य की विजय का पर्व दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन भगवान श्रीराम ने दशानन रावण का वध किया था ,तभी से इस दिवस को समस्त भारत में विजयादशमी के पर्व बतौर मनाया जाता है।
नवरात्रि समाप्त हो चुकी थी। आज दशमी का पर्व था। लोगों से मिलकर उनके साथ की गई बातचीत के आधार पर ख़ास कर आज की विशेष रिपोर्टिंग कर मुझे लौटना भी था। सामान बगैरह मैंने पूर्व में ही बांध लिया था। मल्लीताल के फ्लैटस एवं तल्लीताल बस स्टैंड के पास में रावण तथा उसके कुल के पुतले दहन की तैयारी की जा चुकी थी। तल्लीताल में चूंकि जगह ज्यादा नहीं थी इसलिए रावण के पुतले को छोटा आकार ही दिया गया था।
मल्लीताल के बजरी वाले मैदान में इसकी पूरी तैयारी प्रशासन ने कर ली थी। चूँकि यह मैदान बड़ा था मेरे आर्य समाज मंदिर के समीप था तो शाम सवा सात बजे की रिपोर्टिंग कर लौट भी सकता था। हल्द्वानी लौटने के लिए कार का इंतजाम हो चुका था। इसलिए कोई हड़बड़ी या चिंता वाली बात नहीं थी। हमें महज़ समयबद्ध रहना था।
हम विजयादशमी पर्व के निहित संदेश पर अब भी हम गौर कर ले। इस त्योहार का यह संदेश हमारे समक्ष है ,इसे देने का प्रयास इसके निमित इसलिए किया गया है कि व्यक्ति के द्वारा किए गए हज़ार महान कर्मों के उपर उसके पाप भारी पड़ जाते हैं। और उसका पतन आरम्भ हो जाता है। इसलिए हमें अधर्म से बचना चाहिए। और धर्म के रास्ते में आने वाली हर रुकावट व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा है, पर उस संघर्ष के आगे जीत भी है जैसे राम की हुई थी ।
हर युग में राम और रावण जैसे लोग होते हैं। सतयुग में थे कलयुग में तो भरे पड़े हैं। यहाँ सीता भी बदनाम हो जाती हैं। सीता पर उंगली उठाने वाले लोग भी बहुतेरे हैं । कल्पना कीजिए सीता पर भी प्रश्न उठ गए तो हम और आप कहाँ है । कैकई - मंथरा, शबरी - केवट , विभीषण , कुंभकर्ण ,जटायु , सूर्पनखा जैसे लोग हमारे आस पास ही मौजूद रहते हैं। हमारा जीवन एक रंगमंच के समान है जहां हर मानव को अपना किरदार मिला हुआ है। ईमानदारी से अच्छें क़िरदार निभाने का अवसर मिला है जिसे बड़ी शिद्दत से निभाने का प्रयास कीजिए। सच के लिए खड़े हो जाए।
रावण दहन : शाम होते ही लोगों की भीड़ जमा होने लगी थी। सैकड़ों की तादाद में लोग आ रहें थे। उनमें से कुछ रावणत्व वाले भी लोग होंगे ही जो विद्वान लंकेश को भस्म करने पहुंचे थे। समय के साथ ही राम ने पुतले में आग लगा दिया गया और रावण जलने लगा इस सवाल के साथ कि हर साल तुम लोग तो मुझे जला रहें हो लेकिन मुझे सिर्फ़ इतना बता दो कि रामराज कब ला रहें हो...।
धीरे धीरे भीड़ हटने लगी थी। मैं भी आर्य समाज मंदिर लौट चुका था। अब लौटने की बारी थी। मैंने नवीन दा को दिल से आभार प्रगट करते हुए घर लौटने की सूचना दे दी थी।
वहाँ से वापसी का सफ़र : समय गतिशील था। आठ बजे के आस पास मेरी गाड़ी काठ गोदाम लौट रही थी। नौ बजे वहाँ से वापसी की ट्रेन थी। तुम्हारी यादों के साथ ही इस भागमभागी में मैंने अपना कार्य भलीभांति पूरा कर लिया था।
अब सिर्फ़ तुम : मेरे मानस पटल के एक कोने में जैसे तुम शक्ति स्वरूपा हो कर हर समय उपस्थित रही थी, और मुझे जैसे निर्देशित करती रही थी । ...इतना सब कुछ तुम्हारे बिना , लेकिन बिना किसी बाधा के समस्त कार्य का संपन्न हो जाना ,अनु .. आश्चर्य ही था न। बोलो न ... सच कहें ....प्रतीत हो रहा था जैसे कोई दिव्य शक्ति काम कर रही हो ...
आप हरदिन अपनी प्रशासकीय व्यस्तता के बाबजूद भी स्विट्जरलैंड से नित्य दिन टेलीफ़ोन,मोबाइल से मेरे बारें में पूछती रहीं थी ,स्वास्थ्य के बारें में जानकारी लेती रही। हिदायत देती रहीं।
इस भावना के लिए मैं तुम्हारे लिए क्या कहूं ...कौन से शब्द दूँ ,समझ नहीं पाता हूँ। ..शून्य में खो जाता हूँ। सोचता हूँ ...आभार प्रगट करूँ ..या आँखें बंद कर मान लूँ कि यही शाश्वत प्रेम है। एक दूसरे को समझ लेना ,वक़्त बेवक़्त ख़्याल रखना ही तो अमर प्रेम है ....
समय पर मैं काठ गोदाम पहुँच चुका था। ...ट्रेन खुल चुकी थी, समय पर ही। अब आगे का सफ़र जारी था वापसी का .... इति शुभ ।
नैनीताल से रावण दहन की डॉ. मधुप तथा डॉ.नवीन जोशी की वीडियो न्यूज़ रिपोर्ट खोले
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आज का आभार .पृष्ठ ०.
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संरक्षक.
डॉ. अजय.
नेत्र रोग विशेषज्ञ. नालंदा.
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Thought of the Day.
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आज का सुविचार.पृष्ठ ०.
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सन्देश : साभार |
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संकलन
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"......अलग होने से कभी न डरें
हर किसी के समान होने से डरें....."
" ...कभी भी दूसरों को यह विश्वास दिलाने का मौका न दें
कि कुछ भी मुश्किल या असंभव है....."
"..आप जो कुछ भी चाहते हैं ,वह आपके अंदर ही निहित है
.......अपने अंदर देखिए और आप सब कुछ पा सकते हैं..."
जलते हैं केवल पुतलें, रावण बढ़ते ही जा रहें हैं ?
मूल आलेख : प्रियंका सौरभ.लखनऊ

प्रियंका सौरभ
दशहरे पर रावण का दहन एक ट्रेंड बन गया है। जहाँ देखों विजयादशमी को लोग रावण ,मेघनाथ ,कुम्भकर्ण के पुतले जला रहें हैं। लोग इससे सबक नहीं लेते , न ही इसके निहित सदेश के भीतर जाने की चेष्टा करते हैं । रावण दहन की संख्या बढ़ाने से किसी तरह का फायदा नहीं होगा। लोग इसे मनोरंजन का साधन केे तौर पर लेने लगे हैं। खेल तमाशे होते हैं। दहन के पश्चात् सभी लोग आहलादित हो कर अपने अपने घर चले जाते हैं कि उन्होंने सत्य की असत्य पर विजय देखी । लेकिन कभी भी अपने भीतर के रावणत्व को न देखने की कोशिश की ,न समझने के लिए अवसर प्रदान किया। धार्मिक पुराणों से हमें अपने प्रेरणा लेनी चाहिए। रावण दहन के साथ दुर्गुणों को त्यागना चाहिए। रावण दहन दिखाने का अर्थ बुराइयों का अंत दिखाना है। हमें पुतलों की बजाए बुराइयों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। समाज में अपराध, बुराई के रावण लगातार बढ़ रहे हैं। इसमें रिश्तों का खून सबसे अधिक हो रहा है। मां, बाप, भाई, बहन, बच्चों तक की हत्या की जा रही है। दुष्कर्म के मामले भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं।रावणत्व का अंत : रावण दहन दिखाने का अर्थ बुराइयों एवं रावणत्व का अंत दिखाना है। लंकापति रावण महाज्ञानी था, लेकिन अहंकार हो जाने के कारण उसका सर्वनाश हो गया। रावण परम शिव भक्त भी था। तपस्या के बल पर उसने कई शक्तियां अर्जित की थीं। रावण की तरह उसके अन्य भाई और पुत्र भी बलशाली थे। लेकिन स्वेच्छाचारी , हठी होने के कारण उनके अत्याचार लगातार बढ़ते जा रहें थे। जिसके बाद भगवान ने राम के रूप में अवतार लिया और रावण का वध किया और विश्व को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलवाई ।आज का रावण : लेकिन फिर भी कलयुगी दुनिया में बुराइयाँ बढती ही जा रही है तो सन्देश देने के लिए रावण दहन की प्रथा शुरू किया गया था, वो संदेश तो आज कोई लेना ही नही चाहता। तो फिर हर साल रावण दहन करने से क्या फायदा है। बहुत से लोग इस दुनिया में इतने बुरे है की रावण भी उसके सामने देवता लगने लगे। ऐसे बुरे लोग बुराई के नाम पे रावण दहन करे तो ये तो रावण का अपमान ही है। साथ ही अच्छाई का भी।सब कुछ चिंतन और मनन से ही शुरू होता है। आज के लोग इतने शिक्षित और समझदार हो गये है कि सबको पता है, बुराई और अच्छाई क्या होता है और प्रत्येक अपने स्वयं के विवेक का प्रयोग कर सकता है ।सच कहें आज का रावण उस रावण से भी अधिक क्रूर है, खतरनाक है, सर्वव्यापी है। वह महलों में रहता है। गली कुचों में रहता है। गाँव में भी है , शहर में भी है ,आस पास है । वह गँवार भी है । पढ़ा लिखा भी है शातिर भी है । लेकिन अफ़सोस की राम नहीं है जो उसकी समाप्ति कर सके। बस एक आस ही तो है की समाज से रावणपन चला जाएगा खुद ब खुद एक दिन हम परम्पराओं को ढ़ो रहें हैं । रावण के दुख, अपमान और मृत्यु का कारण कोई नहीं था वह स्वयं ही था ।
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दुर्गा
सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ४
' दशहरा - रावण के अहंकार के अंत का जश्न 'निवेदिता .वाराणसी. फोटो पत्रकार.
अपने कक्ष में रावण की बैचनी : फोटो साभार
अपने कक्ष में रावण की बेचैनी और उसका हर घटनाक्रम पर चिंतन ! सच में किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आंखों से नींद उड़ा देने की क्षमता रखता है महापराक्रमी योद्धा, महापंडित लंकेश जिसने कभी हार नहीं मानी थी, सोच रहा है... आखिर क्यों ?
मेरे कानों में गूंज रहा है......यही रात अंतिम यही रात भारी......बस एक रात की,अब कहानी है सारी। नहीं बंधु बांधव, नहीं कोई सहायक,अकेला है लंका में लंका का नायक।
उत्तर देना आसान नहीं क्योंकि बात दशानन जैसे शूरवीर, महा शिवभक्त की हो रही है जिसको चुनौती देने का साहस देवताओं को भी नहीं होता था। शायद ! चुनौती देकर राम भी रावण को परास्त कर पाते या नहीं कहना मुश्किल है।पर रावण ने सीता का हरण कर ख़ुद राम को युद्ध के लिए आमंत्रित किया और फिर जो हुआ वो तो होना ही चाहिए क्योंकि धर्म और अधर्म के बीच छिड़ी जंग में धर्म की जय तय है। विजयादशमी का त्योहार रावणत्व की शिकस्त और रामत्व के प्रभुत्व की कहानी के माध्यम से हमारे बीच संदेश और चेतावनी दोनों लेकर आता है।नवरात्रि की साधना : इस विजयोत्सव के पीछे नौ दिनों तक चलने वाली नवरात्रि की साधना भी है जो महाशक्ति के प्राकट्य के लिए की गई थी। राम जैसे महायोद्धा ने शक्ति का आह्वान कर यह संदेश दिया कि जब सामने महापराक्रमी रावण के जैसा योद्धा शत्रु के रूप में मौजूद हो तो महाशक्ति की कृपा भी अत्यावश्यक है। निहित संदेश : इस त्योहार में यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि व्यक्ति के द्वारा किए गए हज़ार महान कर्मों के उपर उसके पाप भारी पड़ जाते हैं और धर्म के रास्ते में आने वाली हर रुकावट व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा है, पर उस संघर्ष के आगे जीत भी है।एक बात और भी बहुत मायने रखती है कि अहंकारी रावण के द्वारा सीता-हरण किया गया फिर भी शील भंग करने का दुस्साहस नहीं किया गया जो उसके चरित्र का उज्ज्वल पक्ष है। पर ये भी तय है कि अहंकार हमेशा पतन का द्वार खोल देता है चाहे वो रावण जैसे महायोद्धा महापंडित लंकेश की शक्ति, पराक्रम, तेज़ और धन का हो। कहा जाता है कि रावण जैसे महायोद्धा महापंडित को युद्ध का परिणाम ज्ञात था फिर भी उसने समर्पण नहीं किया। कहीं न कहीं उसके मन में भी यह कामना जाग उठी थी कि जब मृत्यु निश्चित ही है तो क्यों न वो राम के हाथों हो।स्वयं का किरदार : रामकथा से यह बात उभर कर सामने आती है कि हर युग में राम और रावण जैसे लोग होते हैं, सीता पर उंगली उठाने वाले, कैकई - मंथरा, शबरी - केवट , विभीषण जैसे लोग मौजूद रहे हैं। जीवन रंगमंच है जहां हर मानव को अपना किरदार ईमानदारी से निभाने का अवसर मिला है जिसे बड़ी शिद्दत से निभाने का प्रयास कीजिए। क्योंकि रावण के पुतला-दहन कर देने मात्र से रामराज्य नहीं लाया जा सकता ना ही कुमारी कन्याओं के पूजन मात्र से हमारी मनोवृति सुधर सकती है। हम सबके भीतर जो अहंकार, रावणत्व शाश्वत रूप में मौजूद है उसका अंत ही रामत्व को पाना है, रामराज्य की नींव है। यह विजयादशमी सभी के लिए शुभ और कल्याणकारी हो।
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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ५
निवेदिता .वाराणसी. फोटो पत्रकार.
आस्था,भक्ति और विश्वास का अभूतपूर्व संगम मां मुंडेश्वरी मंदिर. मां मुंडेश्वरी का मंदिर : भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक मां मुंडेश्वरी का मंदिर कैमूर पर्वत श्रृंखला की पवरा पहाड़ी पर ६०८ फीट ऊंचाई पर है। पुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ से प्राप्त शिलालेख ३८९ ई० के बीच का है जो इसकी पुरानता को दर्शाता है। ऐतिहासिकता : मुण्डेश्वरी भवानी के मंदिर की नक्काशी और मूर्तियां उतर गुप्तकालीन हैं। मां का यह मंदिर पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है। इस मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुण्डेश्वरी की काले पत्थर से बनी भव्य व प्राचीन मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है। माँ वाराही रूप में विराजमान है, जिनका वाहन महिष है। मंदिर में प्रवेश के चार द्वार हैं जिसमे एक को बंद कर दिया गया है। कहते हैं कि औरंगजेब के शासनकाल में इस मंदिर को तोड़वाने का प्रयास किया गया। मजदूरों को मंदिर तोडऩे के काम में भी लगाया गया। लेकिन इस काम में लगे मजदूरों के साथ अनहोनी होने लगी। तब वे काम छोड़ कर भाग गये। भग्न मूर्तियां इस घटना की गवाही देती हैं।इस मंदिर का संबंध मार्केणडेय पुराण से जुड़ा है। मंदिर में चंड - मुंड के वध से जुड़ी कुछ कथाएं भी मिलती हैं। चंड - मुंड, शुंभ - निशुंभ के सेनापति थे जिनका वध इसी भूमि पर हुआ था। माता ने यहां किया था चंड - मुंड का वध : चंड -मुंड नाम के असुर का वध करने के लिए देवी यहां आई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था। यहीं पर माता ने मुंड का वध किया था। इसलिए यह माता ' मुंडेश्वरी देवी ' के नाम से प्रसिद्ध है। पहाड़ी पर बिखरे हुए कई पत्थर और स्तंभ इस बात की पुष्टि करते हैं। यहां बिखरे शिला खंडों देखकर लगता है जैसे उन पर श्रीयंत्र, कई सिद्ध यंत्र-मंत्र उत्कीर्ण हैं।
अलग है बलि देने की प्रक्रिया : मंदिर में हिंदू ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी बलि देने आते हैं और आंखों के सामने चमत्कार होते देखते हैं। मां मुंडेश्वरी के मंदिर में कुछ ऐसा होता है जिस पर किसी को भी विश्वास नहीं होता। श्रृद्धालुओं के अनुसार मंदिर में बकरे की बलि की प्रक्रिया बहुत अनूठी और अलग है। यहां बकरे की बलि दी जाती है लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है की उसकी मौत नहीं होती।इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता पशु बलि की सात्विक परंपरा है। श्रद्धालुओं का कहना है की मां मुंडेश्वरी से सच्चे मन से मांगी हर मनोकामना पूरी होती हैं।शिवलिंग का बदलता है रंग : मां मुंडेश्वरी के मंदिर में गर्भगृह के अंदर पंचमुखी शिवलिंग है। मान्यता है कि इसका रंग सुबह, दोपहर व शाम को अलग-अलग दिखाई देता है। प्रत्येक सोमवार को मन्दिर के पुजारी के द्वारा भोलेनाथ का रुद्राभिषेक किया जाता है।ऐसे पहुंचे मुंडेश्वरी मंदिर : ट्रेन द्वारा : मुंडेश्वरी मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड है जो मुगलसराय - गया रेलखंड लाइन पर स्थित है। रेलवे स्टेशन से मंदिर करीब २५ किलोमीटर की दूरी पर है स्थित है माँ मुंडेश्वरी देवी मंदिर।मोहनिया जिला का एकमात्र प्रमुख रेलवे स्टेशन है जिसे हावड़ा - न्यू दिल्ली ग्रैंड कार्ड पर ' भभुआ रोड ' के नाम से जाना जाता है, जो मुगलसराय क्षेत्र में स्थित है। बड़ी संख्या में ट्रेनें शहर से लगभग सभी राज्यों और देश के महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ती हैं।सड़क के द्वारा : ' कैमूर ' पटना से २०० कि.मी. और वाराणसी से १०० कि.मी.दूर है। राष्ट्रीय राजमार्ग ३० 'कैमूर ' को आरा के माध्यम से राजधानी पटना से जोड़ता है। इसके अलावा, शहर में कुछ राज्य राजमार्ग भी हैं। मोहनिया से सड़क मार्ग से आप आसानी से मुंडेश्वरी धाम पहुंच सकते हैं। पहले मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत कठिन था। लेकिन अब पहाड़ी के शिखर पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर सीढ़ियां व रेलिंग युक्त सड़क बनाई गई है। सड़क से कार, जीप या बाइक से पहाड़ के ऊपर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। जिला प्रशासन के द्वारा दर्शनार्थियों की सुविधा का ध्यान रखा जाता है। जगह जगह पीने के पानी की व्यवस्था है। माता के चढ़ावे के लिए प्रसाद के रुप में विशेष रूप से तंडुल भुने हुए चावल , देशी घी , मेवे आदि से बना लड्डू सरकारी दुकान पर उपलब्ध है। फूल,माला, प्रसाद आदि धाम में तथा मन्दिर परिसर में भी उपलब्ध है। घर बैठे लोग मां मुंडेश्वरी का कर सकते है दर्शन : जब पूरे देश में कोरोना की वजह से सारे मंदिरों को बंद कर दिया गया। ऐसी स्थिति में अपने घर बैठे भक्त मां मुंडेश्वरी का दर्शन कर सकें। इसके लिए ट्रस्ट की ओर से ऑनलाइन दर्शन और पूजा के लिए भक्तों को -www.maamundeshwaritrust.org पर विजिट करने की सुविधा उपलब्ध कराई गई।
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शक्ति पीठों एवं सिद्ध पीठों की भूमि बिहार.
आलेख : राजेश रंजन वर्मा
फोटो साभार : नेट से
हमारा देश भारत तंत्र - मंत्र विद्या साधना और सिद्धि का प्रमुख केंन्द्र रहा है। यहाँ के शक्ति पीठ एवं सिद्ध पीठ श्रद्धालुओं को सदा अपनी ओर आकर्षित करते रहें हैं। देवी पुराण के अनुसार शक्तिपीठ भारतीय उपमहाद्वीप में मान्य हैं। इनमें भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, तिब्बत, नेपाल एवं श्रीलंका में अवस्थित है। शक्ति पीठों की स्थापना के संबंध में प्रसिद्ध पौराणिक कथा : इन शक्ति पीठों की स्थापना के संबंध में प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार ऐसी मान्यता रही है कि एक बार प्रजापति दक्ष ने ' वृहस्पति - सक ' नामक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में भगवान शिव को छोड़ कर सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया। अपने पिता द्वारा आहूत इस यज्ञ में सती भी जाना चाहती थी। शिव की उपेक्षा देखकर वह अत्यंत रुष्ट हुई। शिव के मना करने के बावजूद भी सती आवेश में आकर मायके चली गई | वहाँ प्रजापति दक्ष द्वारा शिव के बारे में अपमान जनक शब्द कहे जाने पर उसने यज्ञ के हवन- कुंड में कूद कर अपना प्राण त्याग दिया। इस घटना से क्रोधित होकर भगवान शिव ने सती के शव को लेकर भयंकर ताण्डव नृत्य आरंभ किया। सृष्टि को भगवान शिव के कोप से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन-चक्र चलाया। फलस्वरूप माता सती का शरीर ५१ हिस्सों में कटकर ५१ स्थानों पर जा गिरा। ऐसी मान्यता है कि इन ५१ स्थानों पर ही शक्तिपीठ की स्थापना की गई। कुछ स्थलों पर शक्ति साधना के साथ-साथ तांत्रिक - क्रिया भी संपन्न किये जाने लगे, ये सिद्ध पीठ कहलाये। मार्कण्डेय पुराण के १३ वें अध्याय दुर्गा सप्तशती के सूरथ नामक राजा एवं समाधि नामक बनिए की आद्ध - साधना की कथा प्राप्त होती है। सूरथ नामक राजा अपने शत्रुओं से पराजित होकर एवं समाधि नामक बनिया पुत्रों द्वारा अपने घर से निष्कासित होकर निर्जन वन में भटकते-भटकते गंगा तट के इसी स्थल पर पहुँचतें हैं। यहाँ सती की मिट्टी की मूर्ति बनाकर वर्षों तक कठोर साधना करते हैं। यह मंदिर इसी रूप में प्रसिद्ध होकर श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है।
बिभिन्न सिद्ध पीठें
दरभंगा महाराज द्वारा दरभंगा ( बिहार ) में स्थापित रमेश्वरी श्यामा मंदिर इसका एक मिसाल रहा है। बिहार राज्य के सारण जिला अन्तर्गत गंगा तट पर आमी ( दिघवारा ) स्थित माँ अम्बिका भवानी मंदिर भी शक्ति - साधना व सिद्धि का केंद्र एवं प्रजापति दक्ष की यज्ञ भूमि के रूप में मान्य एवं लोक प्रसिद्ध है। यहाँ मिट्टी की बनी माता सती की अत्यंत प्राचीन प्रतिमा एवं यज्ञ स्थल है जिसका संबंध पौराणिक कथाओं से जोड़ा गया है। पटना का पटनदेवी मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में ख्यात है। यहाँ माता सती की दाहिनी जंघा का पतन हुआ था। यहाँ की आद्य - शक्ति सर्वानंदकारी एवं भैरव व्योमकेश के रूप में प्रसिद्ध हैं। मधुबनी का प्रसिद्ध मंदिर : इसी प्रकार मधुबनी जिले के उच्चैठ ( नेपाल की सीमा पर अवस्थित ) में स्थित प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर मिथिला का एक प्रसिद्ध देवी मंदिर है जो पशु - बलि के लिए भी जाना जाता है। सहरसा जिले का उग्रतारा मंदिर शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ देवी भगवती का नेत्र गिरा था। यहाँ की शक्ति उमा एवं भैरव महोदर के नाम से जाने जाते हैं। गया स्थित माँ मंगलागौरी मंदिर भी एक प्रसिद्ध प्राचीन देवी मंदिर हैं। दुर्गा अष्टमी -नवमी के अवसर पर इन मंदिरों में श्रद्धालुओं की विशेष गहमागहमी रहती है।
नवरात्र : नव रात्रियों का समाहार.
नवरात्र की साधना : आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से ,भारतीय पौराणिक , धार्मिक एवं अध्यात्मिक दृष्टिकोण से शक्ति सृजन, संरक्षण और संवर्धन तथा शक्ति साधना के महा आयोजन के पर्व ' नवरात्र ' की साधना शुरू होती है। शक्ति सृजन , ऋद्धियों - सिद्धियों की प्राप्ति, स्वयं चैतन्य बोध , अहंकार नाश, बुद्धि और विवेक के जागरण, आध्यात्मिक साधना और शिव ( पुरूष ) और शक्ति ( प्रकृति ) के समाहार को जानने और आत्मसात करने की नौ रात्रियों की अर्थात् नव अहोरात्र की सुमंगल यात्रा है। शक्ति साधना की अवधारणा : वैसे शक्ति साधना की अवधारणा हमारे यहाँ काफी प्राचीन है और प्राचीन वैश्विक स्तर पर भी अन्य रूपों में संधारित होता रहा है। वैदिक काल से लेकर सैंधव सभ्यता में भी पाशुपत शिव और मातृ शक्ति की आराधना- साधना के प्रमाण मिलते है।
माँ दुर्गा : सिद्धि प्राप्ति' का साधन : फोटो रश्मि. कोलकात्ता.
इस नवरात्र में प्रयुक्त ' रात्रि ' शब्द जिससे अंधकार का बोध होता है, हिन्दु आध्यात्मिक दर्शन और चिंतन में ' स्वयं प्रकाश जागरण' ' शिव - शक्ति साधना ' और ' सिद्धि प्राप्ति ' का साधन है।यह अंधकार ( असत् ) से प्रकाश ( सत् ) की और ले जाने वाली साधना की ' नवरात्र ' है न कि नौ दिनों तक चलने वाला कोई त्योहार या मेला। नौ दिवसीय आत्म - शरीर शुद्धिकरण व्रत : भारतीय मनीषियों ने इस नवरात्र की आध्यात्मिक और मानसिक तथा शारीरिक क्षमताओं को बढाने वाली क्रियाओं की अद्भुत व्याख्याएँ भी दी है। यह ' नौ दिवसीय आत्म - शरीर शुद्धिकरण व्रत ' , नौ दिनों तक विभिन्न अलग -अलग विधि - विधानों और क्रियाओं से संचालित होने वाली साधना है जिससे साधक को अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति होती है। आभार तौर पर इस नवरात्र में व्रतधारी सुबह से शाम तक इसके क्रियाओं की समाप्ति कर देते है परन्तु आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसके साधना का समय ब्रह्म मुहूर्त और रात्रि वेला है। यह शुद्ध ध्वनि विज्ञान और ऊर्जा के रूपान्तरण और समावेशीकरण के सिद्धांत पर आधारित है। दिन के समय वातावरण में कोलाहल और कई प्रकार के प्रदूषण होते है परन्तु उन दो वेला में सब कुछ स्थिर और स्वच्छ होता है। हवन कुंड से निकली अग्नि और धुआँ वातावरण को शुद्ध और परिष्कृत कर देते है। मंत्र और वाणी के उच्चारण से ध्वनित ऊर्जा का प्रसारण, वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का सृजन करते है और साधक उसकी ऊर्जा से प्राणवान होते हैं । जहाँ सीधे व्यवहारिक जीवन से जुड़ने का सवाल है तो शारीरिक - मानसिक स्वास्थ्य के सशक्तिकरण से जुड़ा नवरात्र : नवरात्र यह हमारे शारीरिक - मानसिक स्वास्थ्य के सशक्तिकरण से जुड़ा हुआ है। यह ऐसे तो मूलतः चार ॠतुओं के संधिकाल से जुड़े होने के कारण चार बार एक वर्ष मे होते हैं पर दो गुप्त और दो प्रत्यक्ष होते है और यही वासंती नवरात्र और शारदीय नवरात्र के रूप में मनाये जाते हैं । छः - छः माह के अन्तराल में हमारे आहारीय और अन्य प्रदूषणकारी कारकों के कारण हमारा शरीर व्याधियों से प्रभावित होता रहता है और रोग ग्रस्त शरीर मानसिक व्याधियों को भी जन्म देता है। उन्हीं व्याधियों से बचने के लिए यह नवरात्र साधना है। नौ दिन विधि विधान से साधना, दिन चर्या और आहार - विहार की शुद्धि हमारे शरीर के " नवांग आंगिक तंत्र " अर्थात् " Nine Organic System of Human Bidy" को परिष्कृत और पुष्ट कर देती है। शरीर के अंदर जमा विषैले पदार्थ या तो बाहर निकल जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं। यह प्रक्रिया एक वर्ष में दो बार की जा सकती है जो शरीर मन और आत्मा के सहमना सम्बन्ध को बनाये रखने मे सहायक होती है।
यही तो अध्यात्म धर्म कर्मकांड लौकिक जीवन और आत्म शुद्धिकरण का पर्व है। यही कारण है कि इसे " षष्ठ मासिक शुद्धिकरण नवरात्र साधना व़त " भी कहते हैं । पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि चैत्र प्रतिपदा को ही ब्रह्माण्डीय शक्ति, सृजन करने हेतु आद्द शक्ति के रूप में अवतरित हुयी थी जिनका आह्वान इन्हीं चार नवरात्रों में सबके सुख शान्ति आरोग्य समृद्धि और कल्याण के लिए किया जाता है। ऐसा देवी भागवत दुर्गा सप्तशति और अन्य पुराणों में उल्लेखित है। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता : जहाँ तक भारतीय दर्शन और चिंतन तथा धार्मिक , आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर नारी को स्थापित करने का प्रश्न है, कहा गया है कि, "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता" अर्थात् जिस स्थान / घर में नारी को सम्यक् सम्मान मिलता हो या दिया जाता हो ,वहाँ देवता अर्थात् ( सुख शान्ति समृद्धि आरोग्य और विकास) का वास होता है और यही वजह है कि हमनें नारी को मर्यादित स्थान दिया है। हाँ, ये बात अलग है कि इस संस्कार के समावेशन न होने के कारण समाज मे प्रदूषण है जो आए दिन लज्जाजनक और दुखद घटनाओं को सुनने के लिए बाध्य होते है। संस्कृति के उन उच्चतम मूल्यों की स्थापना : नवरात्र वास्तव मे भारतीय सभ्यता और संस्कृति के उन उच्चतम मूल्यों की स्थापना करता है जो अन्यत्र दुर्लभ है। इसे आधुनिक सन्दर्भ और प्रसंग में ज्यादा प्रभावकारी बनाने की जरूरत है। आज घरेलू हिंसा और अमानवीय अत्याचार से हमारा देश अपेक्षाकृत ग्रसित है और नवरात्र का आयोजन इसी देश में व्यापक पैमाने पर होता है। आज का आधुनिक संसार इसे हिन्दु धर्म और सामाजिक परम्पराओं से भले जोड़कर देखे, पर एक समय था जब पुरी दुनियाँ में किसी न किसी रूप में सारे प्राचीन समाज ने ज्ञान की ; सौन्दर्य की, धन- लक्ष्मी की , युद्ध की और सृजन की देवी के रूप मे शक्ति अर्थात् सृजनकारी प्रकृति ( नारी शक्ति ) की पूजा की है जो आज भी साहित्यों मे द्रष्टव्य है। समझने योग्य हैं। अनुकरणीय है। विजयादशमी या दशहरा : यह हमारे यहाँ " दशहरा " से भी प्रसिद्ध है और आमजनों की भाषा में यह विजयादशमी या दशहरा ही है कि नवरात्र का जब दशमी तिथि के साथ समाहार होता है तब यह विजयादशमी या दशहरा कहलाता है और इस दशहरे की पृष्ठभूमि में अनेकानेक कथाएँ हैं । यह सिर्फ त्योहार नहीं धर्म और दर्शन, सामाजिक परम्पराओं, कर्मकांड, अध्यात्म और विज्ञान का मणिकांचन योग से सृजित साधना पर्व है और दशहरा त्योहार है। तो आइए, विश्व मंगलकामना के लिए शक्ति का आह्वान करें और नारी की सृजनात्मकता शक्ति का सम्मान करें ।
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सहयोग.
--------------------फोटो दीर्घा. पृष्ठ ३ .नवरात्रि.आज कल. -------------------संपादन. डॉ.भावना.
Shribhumi Lake Town,Kolkotta Pandal View : photo Rashmi.
New Jalpaiguri Pooja Pandal : photo Palak Sinha.Mahisaurmardani in Pandal : New Jalpaiguri : Photo Palak Sinha.Dwarika Kali Bari Nai Delhi Pooja Pandal : photo Arshiya Sinha.Maa Durga Pooja Pandal Pulpar Biharsharif : photo Dr.Sunita.
Mohiddinagar Biharsharif inside Durga Pooja Pandal : photo Dr. Sunita. Nalanda.
Sec 6. Dwarika Nai Delhi Pooja Pandal : photo Arshiya Sinha. a beautiful Durga Pooja Pandal at Ranchi : photo Ashok Karan.---------------फोटो दीर्घा. पृष्ठ ४.नवरात्रि २०२१ बीते दिनों की---------------
संपादन.
रंजीता. बीरगंज. नेपाल.

Burj Khalifa Kolkotta : photo Subhojeet Ghoshal.

an artistic image of Goddess Durga : photo Sudipto Ghosh

a Decorative pandal at Ranchi 2021 : photo Ashok Karan.

Maa ka Pandal at NJP W.B. : photo Palak Sinha.

Naina Devi , Nainital : Navrat Utsav : photo Dr. Naveen Joshi.

Dhanwad Pooja Pandal : photo Advija.

Maa ka Darshan, Dehradoon : photo Ajay Swaroop.

Biharsharif, Nalanda : Navratri Celebration 2021. photo Vidisha.

Maa Rani ka Darshan ,Patnacity : Photo Manish.
---------------दीर्घा. पृष्ठ ५ .नवरात्रि के भजन.यूट्यूब लिंक्स ---------------संपादन.
तरुण सिंह सोलंकी जोधपुरनवरात्रि के भजन. यूट्यूब लिंक्स १.प्यारी लागे ओ खिवज माता रि चुनरीगायक : मोइनुद्दीन मनचला , तरुण सिंह सोलंकी. नीचे दिए गए लिंक को दबाएं
---------------पृष्ठ ६. आपने कहा ---------------संपादन. न्यूज़ एंकर ---------------
-------------गांधी होना आसान नहीं होता.
किसी की जान ले लेना, किसी समस्या का समाधान नहीं होता। किसी को मांरने के पहले ,अपनी आत्मा को मारना पड़ता है ।जो खुद विचारों की मौत मरा हो, किसी और को क्या दे पाता है ?लड़नी होती है जंग विचारों की, सामने से हो रहे वारों की ,और यह सब कुछ जानना, इतना आसान नहीं होता। गांधी बनना आसान नहीं होता ।। १ हर सिक्के के पहलू दो होते हैं ,किसी एक को देखकर, पूरी कहानी का अंदाजा लगाना, बुद्धिमानों का काम नहीं होता ,क्या खोया क्या पाया हमने ,वक्त सब सामने लाता जाता है ,कर गुजरने के बाद जब होश आता है, तब क्या खोया हमने, इंसान समझ पाता है। सच को पहचानना आसान नहीं होता ।गांधी बनना आसान नहीं होता ।। २ उम्मीदों की कश्ती ,जब डूब रही होती है। इंसान खुद में ही डूबता-उतराता होता है ,लड़ रहा होता है, अपने विचारों की लड़ाई, सामने वाले को फिर, वह कुछ समझा नहीं पाता है। विचारों की बोई फसल ,जब पक कर तैयार हो जाती है, पता चलता है तब उसको, फसल में नई बीज के भी दानें हैं, सोचता है इंसान तब शिद्दत से, बोया था मैंने तो बीज गेहूं का,चना फिर कैसे उग आया है?प्रकृति की तरह इंसान का भी,मस्तिष्क बहुत ही उर्वर है,विचारों की खेती में नित नए फूल खिलते हैं,पर उन्हीं फूलों के बीच,कब शूल पनप आता है?समझ पाता है इंसान जब तक,तूफ़ान आ के लौट भी जाता है।फैसला कर पाना आसान नहीं होता,गांधी बनना आसान नहीं होता ।।३
नीलम पांडेय.----------
-----------------------------पृष्ठ ७ कला दीर्घा . ---------------संपादन
---------------पृष्ठ ८.संस्मरण. नवरात्रि संस्मरण---------------
डॉ. सुनीता सिन्हा नवरात्रि संस्मरण : १ नालंदा की मधुर यादें.
नालंदा की मधुर यादें. बिहार शरीफ की नवरात्रि की यादें जैसे मेरी जिंदगी की अनमोल विरासत हैं जो मेरी यादों के पिटारें में वर्षों से बंद है। जब कभी भी मैं दशहरा के संदर्भ में यादों के सुनहरे पन्नें उलटती हूं तो मैं बीते दिनों की तरफ अनायास ही स्वतः खींचा चला जाती हूं। नालंदा जिला मुख्यालय बिहार शरीफ मेरे जीने का शहर हैं जिसे मैंने १९९६ से जीती आ रहीं हूँ । लेकिन तब से अब तक़ मूर्ति पंडाल देखने की
परंपरा जारी ही हैं। उनदिनों भी पुल पर ,सत्तों बाबू की सुनार गली ,तथा भैंसासुर , मुरारपुर अड्डा की मूर्ति व पंडाल सजावट देखने योग्य होती थी। याद है १९९८ के पहले विजया दशमी की अगली रात मूर्ति विसर्जन के लिए सभी मूर्तियाँ पुल पर इकट्ठी हुआ करती थी। और हम रात ३ बजे वहां विसर्जन देखने जाते थे।
नवरात्र की सप्तमी के दिन : शाम होने को थी। रविवार का दिन था। माँ का दरबार दर्शन के लिए खुल चुका था। माता रानी के पट खुलते ही नवनिर्मित पंडालों और मंदिरों में मां भगवती और उनके रूप के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं, भक़्तजनों की अनवरत भीड़ सड़कों गलियों में उमड़ पड़ी। समय के साथ जैसे जैसे पट अनावृत होता गया , लोग माता की झलक पाने के लिए पंडाल के चल पड़े। इस साल कोरोना वायरस का संकट काफ़ी हद तक़ ख़त्म हो चुका था। लोग भय मुक्त थे। फ़िर प्रशासनिक अनुमति भी मिली हुई थी। लोग पूरे उत्साह से पूजा की रीतिओं में शिरक़त कर रहें थे। कुछेक जगह पर ही पंडाल का अति मनभावन रूप दिया गया था। लेकिन कहीं कहीं प्रतिमा काफी भव्य बनाया गयी है ,दिखता हैं कि पूजा पंडालों के निर्माण में काफ़ी ख़र्च किया गया हैं। माता का एक से एक बढ़कर भव्य रुप देखने को मिल रहा हैं। हम अपने शहर के विशेष चर्चित अम्बेर के मोउद्दी नगर की तरफ़ बढ़ रहें थे। सुन रखा था माँ चंद्रलोक में अवतरित हो रहीं हैं। करीबन रात हो ही चली थी। लाइट्स के इफेक्ट्स में माँ की मूर्ति को देखना बहुत सुखद होगा ऐसा प्रतीत हो रहा था।
गतांक से आगे : १.नवरात्रि संस्मरण : १ नालंदा की मधुर यादें. थीम वाले पंडाल और प्रतिमा
थीम वाले पंडाल और प्रतिमा ,मोहद्दी नगर : शाम होते ही दुर्गा पूजा के सभी रंग दिखने लगे थे । शहर नवराते की भक्ति रस में डूब गया था । सब के कदम उस ओर बढ़ रहें थे जिस ओर मैं जा रही थी। आम सभी मूर्तियों से हटकर थीम वाले पंडाल और प्रतिमा के लिए बिहारशरीफ़ ही नहीं पूरे पूर्वोत्तर भारत में चर्चा थी। चर्चित शहर के अंबेर मोहल्ले स्थित मोहद्दी नगर में इस बार भी काफी हटकर पंडाल एवं प्रतिमा तैयार की गई थी। कुछ वर्षों से कोरोना की बजह से पंडाल निर्माण नहीं किया गया था, लेकिन इस वर्ष यहाँ काफी आकर्षक पंडाल तैयार किया गया था । पूछने पर जानकारी मिली की इस बार कोलकाता से आई १० कारीगरों की टोली द्वारा पंडाल तथा मूर्ति का प्रारूप तैयार किया था तथा पंडाल एवं प्रतिमा निर्माण पर लगभग आठ लाख तक का रकम खर्च किए गए थे । पंडाल देखने के बाद आपको यह निश्चित ही एहसास होगा कि कितनी बारीकी से काम किया गया है। पंडाल का मुख्य द्वार : आप जैसे ही मुख्य द्वार पहुंचेंगे आपको प्रारम्भ से ही आपको पंडाल की कलाकृति दिखनी शुरू हो जाएगी अंदर जाने पर एक अलग ही अनुभूति होगी पूरा काम थर्मोकोल, वाटर पेपर ,फोम आदि से तैयार किया गया था। बच्चों की चाहत में काल्पनिक परी लोक की बहुत ही मनभावन ,आकर्षक एवं भव्य प्रारूप तैयार किया गया था। सपनों को जीवंत करने की एक सार्थक कोशिश थी। देखने मात्र से ही हम लोग परीलोक में विचरण करने लगे थे। पंडाल के अंदर ही चंद्रलोक में दुष्ट महिषासुर का वध दिखाया गया था। आतंरिक साज सज्जा : भीतर प्रवेश करते ही माँ के साथ अन्य शक्तियों के दर्शन होते हैं। चंद्रलोक का अद्भुत अप्रतिम दृश्य था। चंद्रलोक में मां के पास सारी शक्तियां पांडाल के साथ - साथ प्रतिमा को काफी आकर्षक बनाया गया था । यही चंद्रलोक में मां दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया गया था । अर्ध चंद्रमा को दिखाया गया था जहां मां दुर्गा महिषासुर का वध कर रही थी। और उनकी सारी शक्तियां आसपास ही विराजमान थी।
वहां पहुँच कर मैं भी स्वप्नवत हो गयी थी । मानसिक पीड़ा,क्लेश को जैसे माँ ने हर लिया था। लगा यही बैठी रहूं। आज भीड़ ज्यादा नहीं थी। कल और परसों तिल रखने मात्र की भी जग़ह नहीं शेष रहेंगी। प्रतीत हुआ कि सप्तमी की शाम ही हजारों चिड़ियों की चहचहाहट के मध्य परीलोक का दरवाजा खोल दिया गया था और अष्टमी को श्रद्धालु मां की गोद भराई कर सकेंगे।ढ़ेर सारे पक्षियों के होने का एहसास होता हैं। इसके लिए बिल्कुल असली नकली पक्षियों को निर्मित कर आसमान में दिखलाया गया था। इसके अलावा दर्शकों को साउंड इफेक्ट से परी लोक की अनुभूति हो रही थी। शोर बिलकुल नहीं था जैसा कि दूसरे पूजा पंडालों में लॉउडस्पीकर के जरिए शोर प्रदूषण पैदा किया जाता है । पांडाल के अंदर साउंड इफेक्ट के माध्यम से करीब १५० पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। लोगों को बिल्कुल अद्भुत नजारा देखने को मिल रहा था। हम सभी वशीभूत हो गए थे।
भैंसासुर का काली पंडाल : मेरी याद में प्रारम्भ से ही यहाँ माँ काली की प्रतिमा बैठ रही थी जो इस शहर और इस पंडाल की विशेषता थी। और यहाँ पंडाल की सजावट पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। काली का रौद्र रूप देख कर शक्ति के आक्रोश को समझा जा सकता है। थीम वाले पंडाल और प्रतिमा : में रामचंदरपुर की शिव की जटा वाली वाली प्रतिमा भी खूब चर्चित हुई। शिव की जटाओं में गंगा को अवतरित होने के साथ साथ अन्य देवी शक्तियों का दानवों का संघर्ष दिखलाया गया है। माँ महिसासुर का वध कर रही है। हरा ,ब्लू ,बैगनी लाल बदलते लाइट्स के शेड्स में प्रतिमा और भी खूबसूरत जान पड़ती हैं। पंडाल देखने लायक है।
बिहारशरीफ नालंदा के अन्य चार श्रेष्ठ पूजा पंडाल : पूरे शहर की परिक्रमा करने के बाद प्रतीत हुआ स्थानीय बिहारशरीफ़ शहर के मोहल्ला पुल पर , अनुकृति अक्षर धाम ,बड़ी पहाड़ी ,आशा नगर तथा सहोखर के पंडाल की साज सज्जा देखने लायक थी। रंगों और लाइट्स का ख़ूबसूरत समायोजन किया गया था,जिसे हमें देखना सुखद लग रहा था। यह एक विशेष आकर्षण था कि पंडालों की शोभा पर भी अब लोग ध्यान देने लगे थे।
बिहारशरीफ नालंदा के अन्य चार श्रेष्ठ पूजा पंडाल 
बिहारशरीफ नालंदा के चार श्रेष्ठ पूजा पंडाल : फोटो डॉ.सुनीता.
---------------पृष्ठ .९. व्यंग्य चित्र : नवरात्रि संस्मरण---------------
पृष्ठ ११.सीपियाँ :-------------
संपादन कंचन पंत.नैनीताल
आत्मशक्ति.
आप हो सकती, मेरे जीवन की आदि शक्ति, फैले अवसाद की भ्रान्ति में, इच्छित मेरे मन की शांति,या मेरे जीवन दर्शन में, लिखी हुई दो चार पाँति, सम्यक साथ का,सम्यक विकास का, सम्यक आचरण का, सम्यक दर्शन का,
डॉ. मधुप ©️®️---------- साख.
पेड़ के पत्तें जैसी अपनी, तुम्हारी, सब की साख हैं लड़ लो, झगड़ लो, अपनों से, अकेलेपन में, अपनापन में, प्यार से,मर्यादा से, लेकिन उस शाख से ,कभी अलग, होने की भी मत सोचो, क्योंकि उन टूटे पत्तों की कोई साख ( अस्तित्व ) ही नहीं होती हैं , जो अपनी शाख से ही टूट कर जमीं पर गिर करबेजान पड़े , अलग थलग हो जाते हैं.
अगर कभी जिंदगी समझ में न आए ना !तो रहने देना ,कोई कहे अगर पागल तुम्हें ,तो कहने देना ,
जिस ज़िद से कभी ख़ुद के दर्द को समझ लेते हो ना, कभी उस ज़िद से ही दूसरों का दर्द भी समझते रहना, अगर जिंदगी कभी समझ में न आए ना !तो रहने देना ....,
इंस्टा ग्राम से साभार
----------पृष्ठ १२ . मंजूषा : दिल से तुमने कहा. ------------
संपादन वनिता.
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Mohiddinagar Biharsharif inside Durga Pooja Pandal : photo Dr. Sunita. Nalanda.

Sec 6. Dwarika Nai Delhi Pooja Pandal : photo Arshiya Sinha.
a beautiful Durga Pooja Pandal at Ranchi : photo Ashok Karan.
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फोटो दीर्घा. पृष्ठ ४.नवरात्रि २०२१ बीते दिनों की
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संपादन.
रंजीता. बीरगंज. नेपाल.
Burj Khalifa Kolkotta : photo Subhojeet Ghoshal. an artistic image of Goddess Durga : photo Sudipto Ghosh
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Maa ka Pandal at NJP W.B. : photo Palak Sinha.
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Dhanwad Pooja Pandal : photo Advija. |
Maa ka Darshan, Dehradoon : photo Ajay Swaroop. |
Biharsharif, Nalanda : Navratri Celebration 2021. photo Vidisha. |
Maa Rani ka Darshan ,Patnacity : Photo Manish. |
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दीर्घा. पृष्ठ ५ .नवरात्रि के भजन.यूट्यूब लिंक्स
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तरुण सिंह सोलंकी
जोधपुर
नवरात्रि के भजन. यूट्यूब लिंक्स १.
प्यारी लागे ओ खिवज माता रि चुनरी
गायक : मोइनुद्दीन मनचला , तरुण सिंह सोलंकी.
नीचे दिए गए लिंक को दबाएं
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पृष्ठ ६. आपने कहा
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संपादन.
न्यूज़ एंकर
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गांधी होना आसान नहीं होता.
किसी की जान ले लेना,
किसी समस्या का समाधान नहीं होता।
किसी को मांरने के पहले ,
अपनी आत्मा को मारना पड़ता है ।
जो खुद विचारों की मौत मरा हो,
किसी और को क्या दे पाता है ?
लड़नी होती है जंग विचारों की,
सामने से हो रहे वारों की ,
और यह सब कुछ जानना,
इतना आसान नहीं होता।
गांधी बनना आसान नहीं होता ।। १
हर सिक्के के पहलू दो होते हैं ,
किसी एक को देखकर,
पूरी कहानी का अंदाजा लगाना,
बुद्धिमानों का काम नहीं होता ,
क्या खोया क्या पाया हमने ,
वक्त सब सामने लाता जाता है ,
कर गुजरने के बाद जब होश आता है,
तब क्या खोया हमने,
इंसान समझ पाता है।
सच को पहचानना आसान नहीं होता ।
गांधी बनना आसान नहीं होता ।। २
उम्मीदों की कश्ती ,
जब डूब रही होती है।
इंसान खुद में ही डूबता-उतराता होता है ,
लड़ रहा होता है,
अपने विचारों की लड़ाई,
सामने वाले को फिर,
वह कुछ समझा नहीं पाता है।
विचारों की बोई फसल ,
जब पक कर तैयार हो जाती है,
पता चलता है तब उसको,
फसल में नई बीज के भी दानें हैं,
सोचता है इंसान तब शिद्दत से,
बोया था मैंने तो बीज गेहूं का,
चना फिर कैसे उग आया है?
प्रकृति की तरह इंसान का भी,
मस्तिष्क बहुत ही उर्वर है,
विचारों की खेती में
नित नए फूल खिलते हैं,
पर उन्हीं फूलों के बीच,
कब शूल पनप आता है?
समझ पाता है इंसान जब तक,
तूफ़ान आ के लौट भी जाता है।
फैसला कर पाना आसान नहीं होता,
गांधी बनना आसान नहीं होता ।।३
नीलम पांडेय.
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पृष्ठ ७ कला दीर्घा .
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संपादन
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पृष्ठ ८.संस्मरण. नवरात्रि संस्मरण
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डॉ. सुनीता सिन्हा
नवरात्रि संस्मरण : १ नालंदा की मधुर यादें.
परंपरा जारी ही हैं। उनदिनों भी पुल पर ,सत्तों बाबू की सुनार गली ,तथा भैंसासुर , मुरारपुर अड्डा की मूर्ति व पंडाल सजावट देखने योग्य होती थी। याद है १९९८ के पहले विजया दशमी की अगली रात मूर्ति विसर्जन के लिए सभी मूर्तियाँ पुल पर इकट्ठी हुआ करती थी। और हम रात ३ बजे वहां विसर्जन देखने जाते थे।
नवरात्र की सप्तमी के दिन : शाम होने को थी। रविवार का दिन था। माँ का दरबार दर्शन के लिए खुल चुका था। माता रानी के पट खुलते ही नवनिर्मित पंडालों और मंदिरों में मां भगवती और उनके रूप के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं, भक़्तजनों की अनवरत भीड़ सड़कों गलियों में उमड़ पड़ी। समय के साथ जैसे जैसे पट अनावृत होता गया , लोग माता की झलक पाने के लिए पंडाल के चल पड़े। इस साल कोरोना वायरस का संकट काफ़ी हद तक़ ख़त्म हो चुका था। लोग भय मुक्त थे। फ़िर प्रशासनिक अनुमति भी मिली हुई थी। लोग पूरे उत्साह से पूजा की रीतिओं में शिरक़त कर रहें थे। कुछेक जगह पर ही पंडाल का अति मनभावन रूप दिया गया था। लेकिन कहीं कहीं प्रतिमा काफी भव्य बनाया गयी है ,दिखता हैं कि पूजा पंडालों के निर्माण में काफ़ी ख़र्च किया गया हैं। माता का एक से एक बढ़कर भव्य रुप देखने को मिल रहा हैं।
हम अपने शहर के विशेष चर्चित अम्बेर के मोउद्दी नगर की तरफ़ बढ़ रहें थे। सुन रखा था माँ चंद्रलोक में अवतरित हो रहीं हैं। करीबन रात हो ही चली थी। लाइट्स के इफेक्ट्स में माँ की मूर्ति को देखना बहुत सुखद होगा ऐसा प्रतीत हो रहा था।
गतांक से आगे : १.
नवरात्रि संस्मरण : १ नालंदा की मधुर यादें.
थीम वाले पंडाल और प्रतिमा
थीम वाले पंडाल और प्रतिमा ,मोहद्दी नगर : शाम होते ही दुर्गा पूजा के सभी रंग दिखने लगे थे । शहर नवराते की भक्ति रस में डूब गया था । सब के कदम उस ओर बढ़ रहें थे जिस ओर मैं जा रही थी। आम सभी मूर्तियों से हटकर थीम वाले पंडाल और प्रतिमा के लिए बिहारशरीफ़ ही नहीं पूरे पूर्वोत्तर भारत में चर्चा थी। चर्चित शहर के अंबेर मोहल्ले स्थित मोहद्दी नगर में इस बार भी काफी हटकर पंडाल एवं प्रतिमा तैयार की गई थी।
कुछ वर्षों से कोरोना की बजह से पंडाल निर्माण नहीं किया गया था, लेकिन इस वर्ष यहाँ काफी आकर्षक पंडाल तैयार किया गया था । पूछने पर जानकारी मिली की इस बार कोलकाता से आई १० कारीगरों की टोली द्वारा पंडाल तथा मूर्ति का प्रारूप तैयार किया था तथा पंडाल एवं प्रतिमा निर्माण पर लगभग आठ लाख तक का रकम खर्च किए गए थे । पंडाल देखने के बाद आपको यह निश्चित ही एहसास होगा कि कितनी बारीकी से काम किया गया है।
पंडाल का मुख्य द्वार : आप जैसे ही मुख्य द्वार पहुंचेंगे आपको प्रारम्भ से ही आपको पंडाल की कलाकृति दिखनी शुरू हो जाएगी अंदर जाने पर एक अलग ही अनुभूति होगी पूरा काम थर्मोकोल, वाटर पेपर ,फोम आदि से तैयार किया गया था।
बच्चों की चाहत में काल्पनिक परी लोक की बहुत ही मनभावन ,आकर्षक एवं भव्य प्रारूप तैयार किया गया था। सपनों को जीवंत करने की एक सार्थक कोशिश थी। देखने मात्र से ही हम लोग परीलोक में विचरण करने लगे थे। पंडाल के अंदर ही चंद्रलोक में दुष्ट महिषासुर का वध दिखाया गया था।
आतंरिक साज सज्जा : भीतर प्रवेश करते ही माँ के साथ अन्य शक्तियों के दर्शन होते हैं। चंद्रलोक का अद्भुत अप्रतिम दृश्य था। चंद्रलोक में मां के पास सारी शक्तियां पांडाल के साथ - साथ प्रतिमा को काफी आकर्षक बनाया गया था । यही चंद्रलोक में मां दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया गया था । अर्ध चंद्रमा को दिखाया गया था जहां मां दुर्गा महिषासुर का वध कर रही थी। और उनकी सारी शक्तियां आसपास ही विराजमान थी।
वहां पहुँच कर मैं भी स्वप्नवत हो गयी थी । मानसिक पीड़ा,क्लेश को जैसे माँ ने हर लिया था। लगा यही बैठी रहूं। आज भीड़ ज्यादा नहीं थी। कल और परसों तिल रखने मात्र की भी जग़ह नहीं शेष रहेंगी। प्रतीत हुआ कि सप्तमी की शाम ही हजारों चिड़ियों की चहचहाहट के मध्य परीलोक का दरवाजा खोल दिया गया था और अष्टमी को श्रद्धालु मां की गोद भराई कर सकेंगे।
ढ़ेर सारे पक्षियों के होने का एहसास होता हैं। इसके लिए बिल्कुल असली नकली पक्षियों को निर्मित कर आसमान में दिखलाया गया था। इसके अलावा दर्शकों को साउंड इफेक्ट से परी लोक की अनुभूति हो रही थी। शोर बिलकुल नहीं था जैसा कि दूसरे पूजा पंडालों में लॉउडस्पीकर के जरिए शोर प्रदूषण पैदा किया जाता है । पांडाल के अंदर साउंड इफेक्ट के माध्यम से करीब १५० पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। लोगों को बिल्कुल अद्भुत नजारा देखने को मिल रहा था। हम सभी वशीभूत हो गए थे।
भैंसासुर का काली पंडाल : मेरी याद में प्रारम्भ से ही यहाँ माँ काली की प्रतिमा बैठ रही थी जो इस शहर और इस पंडाल की विशेषता थी। और यहाँ पंडाल की सजावट पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। काली का रौद्र रूप देख कर शक्ति के आक्रोश को समझा जा सकता है।
थीम वाले पंडाल और प्रतिमा : में रामचंदरपुर की शिव की जटा वाली वाली प्रतिमा भी खूब चर्चित हुई।
शिव की जटाओं में गंगा को अवतरित होने के साथ साथ अन्य देवी शक्तियों का दानवों का संघर्ष दिखलाया गया है। माँ महिसासुर का वध कर रही है। हरा ,ब्लू ,बैगनी लाल बदलते लाइट्स के शेड्स में प्रतिमा और भी खूबसूरत जान पड़ती हैं। पंडाल देखने लायक है।
बिहारशरीफ नालंदा के अन्य चार श्रेष्ठ पूजा पंडाल : पूरे शहर की परिक्रमा करने के बाद प्रतीत हुआ स्थानीय बिहारशरीफ़ शहर के मोहल्ला पुल पर , अनुकृति अक्षर धाम ,बड़ी पहाड़ी ,आशा नगर तथा सहोखर के पंडाल की साज सज्जा देखने लायक थी। रंगों और लाइट्स का ख़ूबसूरत समायोजन किया गया था,जिसे हमें देखना सुखद लग रहा था। यह एक विशेष आकर्षण था कि पंडालों की शोभा पर भी अब लोग ध्यान देने लगे थे।
बिहारशरीफ नालंदा के अन्य चार श्रेष्ठ पूजा पंडाल
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बिहारशरीफ नालंदा के चार श्रेष्ठ पूजा पंडाल : फोटो डॉ.सुनीता. |
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पृष्ठ .९. व्यंग्य चित्र : नवरात्रि संस्मरण
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पृष्ठ ११.सीपियाँ :
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कंचन पंत.नैनीताल
आत्मशक्ति.
आप हो सकती,
मेरे जीवन की आदि शक्ति,
फैले अवसाद की भ्रान्ति में,
इच्छित मेरे मन की शांति,
या मेरे जीवन दर्शन में,
लिखी हुई दो चार पाँति,
सम्यक साथ का,
सम्यक विकास का,
सम्यक आचरण का,
सम्यक दर्शन का,
डॉ. मधुप
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साख.
पेड़ के पत्तें जैसी
अपनी, तुम्हारी, सब की साख हैं
लड़ लो,
झगड़ लो,
अपनों से,
अकेलेपन में,
अपनापन में,
प्यार से,
मर्यादा से,
लेकिन उस शाख से ,
कभी अलग,
होने की भी मत सोचो,
क्योंकि उन टूटे पत्तों की
कोई साख ( अस्तित्व ) ही नहीं होती हैं ,
जो अपनी शाख से ही टूट कर
जमीं पर गिर कर
बेजान पड़े ,
अलग थलग हो जाते हैं.
अगर कभी जिंदगी समझ में न आए ना !
तो रहने देना ,
कोई कहे अगर पागल तुम्हें ,
तो कहने देना ,
जिस ज़िद से कभी ख़ुद के दर्द को समझ लेते हो ना,
कभी उस ज़िद से ही दूसरों का दर्द भी समझते रहना,
अगर जिंदगी कभी समझ में न आए ना !
तो रहने देना ....,
इंस्टा ग्राम से साभार
पृष्ठ १२ . मंजूषा : दिल से तुमने कहा.
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वनिता.
Incredible work done🙏🏻 hatts off to you... Keep updating us by the help of ur blogs... It's awesome to read ur posts every morning and evening 😊😊
ReplyDeleteIt is really appreciable blog.
ReplyDeleteThese types of blog helps us to remind our rich culture and heritage 🙏
Awesome content 👌👌
ReplyDeleteIt's really amazing sir.
ReplyDeleteIt is one of the best blogs I have ever read.
-Hursh
जीवन यात्रा के विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुए, प्रिय के साथ बिताए स्मृतियों को समेटे हर मानव की मंजिल मां के स्नेहिल गोद में चिर विश्राम ही है आज भी....👍🙏
ReplyDeleteIt is a nice blog magazine page.
ReplyDeleteThanks to the editorial team that do a lot for this magazine.
A very good ,informative,spiritual and sensitive theme article over Nainital Pashandevi travelogue based on love and passion
ReplyDeleteThanks 😊 a lot Dr.Madhup
Nice photo's of Godess Maan Durga & wonderful Sweet memories of Nainital , good poetics & Other things.
ReplyDeleteवाह, अपनी अनुभूतियों को अपनी लेखनी द्वारा हमें भी एक कोमल अहसास कराया आपने। प्रेम और भक्ति की दो सुंदर भावनायों से नहला दिया आपने।आपने हमारे उन सुप्त चेतना को सिंचित कर दिया।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेखन। मन खुश हो गया ।
ReplyDeleteमधुप जी आपकी कविता बहुत अच्छी लगी ।
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