Ya Devi Sarvabhuteshu. Navratri.2

 

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कृण्वन्तो विश्वमार्यम.
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या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता : फ़ोटो डॉ मधुप 

Ya Devi Sarvabhuteshu. Navratri. 2
या देवी सर्वभूतेषु : नवरात्रि विशेषांक. 
A Complete Heritage  Account over Culture  & Festival.
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Volume 2 .Section.A.Page.0.Cover Page.
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पृष्ठ. ० आवरण पृष्ठ.
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हमलोगों 
 की तरफ़ से नवरात्रि तथा विजयादशमी 
की हार्दिक मंगल शुभ कामनाएं .


आवरण : पृष्ठ ०. सुबह और शाम 
आज का सुविचार . 
आज की : कृति :  तस्वीर :  पाती : 
सम्पादकीय : पृष्ठ १.
पृष्ठ २. 
  पृष्ठ ३ .फोटो दीर्घा.नवरात्रि.आज कल. 
पृष्ठ ४. फोटो दीर्घा.नवरात्रि २०२१ बीते दिनों की
पृष्ठ ५. नवरात्रि के भजन.यूट्यूब लिंक्स   
पृष्ठ ६. आपने कहा 
पृष्ठ ७. कला दीर्घा :
पृष्ठ ८.नवरात्रि  संस्मरण 
पृष्ठ ९. में देखें 


व्यंग्य चित्र  आज कल : मधुप 
पृष्ठ १० . 
  पृष्ठ ११.सीपियाँ :
 पृष्ठ १२  . मंजूषा  :
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देखें सुबह और शाम .पृष्ठ ०. में 
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यात्रा संस्मरण. 

शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन. 

यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.  

डॉ. मधुप रमण.
©️®️ M.S.Media.

नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी थी। दिल्ली से हमारी पत्रिका के  प्रधान संपादक मनीष दा ने फ़िर से मुझे आग्रह किया कि इस साल भी  नैनीताल से दशहरे की कवरेज मुझे ही करनी होगी।  क्योंकि मैं नैनीताल से प्रारंभ से ही जुड़ा हुआ हूँ वहां के पत्रकारों के संपर्क में हूँ ,और लिखता रहा हूँ इसलिए उन्होंने यह दायित्व मुझे ही सौप दिया। 
डॉ. मधुप 

हालांकि इस बार मैं पश्चिम बंगाल में किसी पहाड़ी जगह सिलीगुड़ी , मिरिक, कलिम्पोंग, कुर्सियांग  या दार्जलिंग जैसे इलाक़े से दशहरे की कवरेज करना चाहता था। 
पश्चिम बंगाल के  दशहरे के बारे में मैंने काफ़ी कुछ सुन रखा था। सोचा था इस बार अपनी आँखों से वहां की धार्मिक ,सांस्कृतिक,आस्थां से परिचित हूँगा। लेकिन मुझसे कहा गया वहां से  प्रिया नवरात्रि की कवरेज कर रहीं हैं या करेंगी इसलिए मुझे  अपनी मन पसंदीदा जग़ह  नैनीताल से ही नवरात्री की कहानी लिखनी होगी। 
अतः इसके लिए मुझे तैयार होना होगा। सच कहें बात तो दरअसल में कुछ और थी। 
आप इन दिनों प्रशासकीय कार्यों के निमित यूरोप में हो रहे सम्मलेन में शिरक़त करने  के लिए दस दिनों के लिए स्विट्ज़र लैंड के दौरे पर थी। और आपकी अनुपस्थिति में नैनीताल में रहना ,भ्रमण करना फिर लिखने जैसे दायित्व को पूरा करना एक बड़ा ही मुश्किल कार्य प्रतीत हो रहा था। 
सच ही है ना ? तुम्हारे बिना नैनीताल में कुछेक दिन गुजार लेना कितना मुश्क़िल होगा ,अनु। शायद मैं ही जानता हूँ। संभवतः प्रेत योनि में भटकने जैसा ही मात्र। 
लेखन कार्य के लिए शक्ति व परिश्रम चाहिए । मानसिक शांति भी तो जो निहायत ही जरुरी है। मेरी मानसिक शांति ,मेरी शक्ति सब कुछ तुममें तो निहित है ,न। शायद निहित रहता है और युग - युगांतर तक तुम में ही केंद्रित रहेगा। और फिल वक़्त तुम मेरे साथ हो नहीं तो इस कार्य को सफलता पूर्वक कैसे कर पाऊंगा, मैं वही सोच रहा था ? मैं दुविधा की स्थिति में था। लेकिन पत्रकारिता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया था इसलिए इसे भी मुकम्मल करना ही था, इसलिए दृढ़ होना पड़ा । जाने की तैयारी करनी ही पड़ी। 
रिपोर्ट,फोटो  और कवरेज के लिए इधर उधर भटकना,वो भी आपके सहयोग के बिना कितना दुष्कर कार्य होगा, हैं न अनु ? रात - दिन तुम्हारी यादों की घनी धुंध अपने मनो मस्तिष्क पर छाई  रहेंगी। बाक़ी की कल्पनाएं धुंधली धुंधली सी दिखेंगी , ऐसे में मैं लिखने जैसे गुरुतर भार के साथ कितना न्याय कर पाऊंगा यह तो गोलू देवता ही जानेंगे। सच तो यही है न जो कुछ भी मैं लिखता हूँ, वह अंतर्मन के प्रभाव में रहता है।  इधर हाल फिलहाल जो भी लिखता रहा ,उसके पीछे की छिपी प्रेरणा शक्ति तो आप ही रहीं   हैं  न ! शायद एक बजह भी। 
आपने फ़ोन पर मुझे सख़्त हिदायत दे दी थी कि मुझे अयारपाटा वाले बंगले में ही ठहरना है,आपके नए बंगले में। लेकिन मैंने मन ही मन में निश्चित कर लिया था कि मैं वहां नहीं ठहरूंगा। मल्ली ताल के आर्य समाज मंदिर में ही रुकूंगा क्योंकि शायद थोड़े पल के लिए आपकी यादों के घने सायों से बाहर निकलने की नाकामयाब कोशिश क़ामयाब हो जाए.....और मन चित शांत कर लिख सकें। इस सन्दर्भ में मैंने अपने संपादक मित्र  नवीन दा से बातें कर भी ली थी। वह जाकर वहां कमरा ठीक कर देंगे। मैं यह भी भली भांति जानता था इस लिए गए आत्म निर्णय से आप हमसे बेहद नाराज़ होंगी। लेकिन कुछ कहेंगी भी नहीं यह भी मैं जानता ही हूँ। 
कोई अपने घर के रहते मंदिर ,धर्मशाला और गुरुद्धारे में भला रुकता है क्या ,नहीं न ? पागल पंथी ही है, सब यही कहेंगे न ?

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शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
गतांक से आगे : १.

सप्तमी
की देर रात ही हमें अपने गंतव्य स्थान के लिए निकलना पड़ा। पत्रकारों ,कहानीकारों का जीवन ऐसे ही जोख़िम भरा होता है। कब हमें रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़े ,कहाँ जाना पड़े ,कोई सुनिश्चित नहीं होता । हम आदेश के पालक होते हैं। पल में हम कहाँ होंगे हम भी नहीं जानते है। कैमरा , लैप टॉप , मोबाइल ,बैटरी, वाई फाई ,चार्जर,आई कार्ड, डेविड कार्ड  बगैरह आदि सब मैंने अपने बैग में सुबह रख लिया था। देर दोपहर तक़ ९०२ किलोमीटर की दूरी तय कर हमें नैनीताल पहुंच ही जाना था । 
सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था। मेरी सुविधा के लिए ही  मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ। 
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए  रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं।  इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी । 
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी। 
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था। 
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें  थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है। 
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर। 

अयारपाटा के डोर्थी सीट से दिखती नैनीताल की पहाड़ियां : फोटो महेश.

महाष्टमी : आज की तरह ही एक साल पूर्व भी  नवरात्रि अष्टमी महागौरी की तिथि थी। आपने सुबह  सबेरे चाय की प्याली देते समय यह बतला दिया था कि आज हमें माँ पाषाण देवी के दर्शन करने हेतु जाना है। आप अष्टमी का व्रत भी रखेंगी।
मां पाषाण देवी के दर्शन के बाद ही कुछ फल का आहार लेंगी। दिन भर उपवास में बीतेगा। 
मैंने यह तय कर लिया था कि मैं नहा धोकर पूरी तरह से तैयार मिलूंगा ताकि आप की पूजा,आराधना में तनिक भी विलंब ना हो सके और आप नियमित समय से पूजा कर सके । 
याद है अनु  हम कितना समयबद्ध थे। प्रातः ८ बजे तक हम तैयार भी हो गए थे।
यहीं तो शाश्वत प्रेम हैं न, अनु.....? बिन बोले सम्यक मार्ग ,सम्यक कर्म की ओर हम सभी प्रवृत हो। है ना ....! 
माल रोड पर लम्बा जाम लगा हुआ था, और मेरी गाड़ी कतार में खड़ी थी। मुझे शायद इसकी तनिक फ़िक्र भी नहीं थी ,मैं तो कहीं और खोया हुआ था । अतीत में ,ये वही पल दो पल की हमारी तुम्हारी यादें हैं जो मेरे जीवन भर की अर्जित सम्पत्ति है। 
महाष्टमी के दिन मैं कैसे भूल सकता हूँ ? शक्ति स्वरूपा लाल सुर्ख साड़ी,पैरों में आलता लगाए, पीली चुनरी और हल्के आभूषण के श्रृंगार में आप दिव्य रूप में जैसे मां की शक्ति का प्रतीक ही दिख रही थी। शांति  स्वरूपा भी। 
सच कहें तो मुझे शांति और शक्ति दोनों अधिकाधिक चाहिए था ,है न। शांति लिखने मात्र के लिए और शक्ति स्वास्थ्य के लिए। ये दोनों चीजें ही अहम हैं हमारे लिए। मन अशांत हो तो लिख नहीं पाता हूँ। सब ख़ुशी व्यर्थ रहती है । शक्ति नहीं है तो जीवन आश्रित और निरर्थक हो जाता है ,किसी शरणार्थी की भांति । 

नैनी झील ,ठंढी सड़क और माँ पाषाण देवी मंदिर : फोटो विदिशा 

पूजा की थाली,चढ़ाई जाने वाली दूध की बनी आवश्यक सामग्री आदि लेकर घर से चलते हुए हम
तल्लीताल स्टैंड तक पहुंच गए थे। और वहां तक मैंने खुद ही गाड़ी चलाई थी। तल्लीताल के बस स्टैंड में कार को खड़ी करते हुए हम ठंडी सड़क की तरफ पैदल ही बढ़ गए थे। मुझे मालूम था पाषाण देवी का मंदिर यही कहीं झील के मध्य में ही स्थित है। 
आगे बढ़ते हुए तुम कह रही थी, '..जानते हैं ...तल्लीताल मल्लीताल में इन दिनों नवरात्रि के अवसर पर रामलीला का जबरदस्त आयोजन होता है जिसे देखने के लिए स्थानीय लोगों की काफी भीड़ जमा होती है...' 
सच में मुझे रामलीला की भीड़ भी दिखी थी मल्ली ताल में। निर्माण कार्य प्रगति पर था इसलिए आम लोगों को काफ़ी परेशानी हो रही थी। 
मुझे याद आया प्रत्यक्ष था कि ५०० मीटर की दूरी तक हमें पैदल ही चलना था क्योंकि इधर ठंडी सड़क पर कोई रिक्शा आदि नहीं चलता है । हम बड़े आराम से कदम बढ़ा रहे थे,ताकि बातें भी होती रहें, कहानी भी बयां होती रहे। 
हाथ में पूजा की थाली लिए ठंडी  सड़क पर चलते हुए आपने माता पाषाण देवी के बारे में बतलाना शुरू कर दिया था। मैं जिज्ञासु बना आपकी बातों को बड़ा एकाग्रता से ध्यान पूर्वक सुन रहा था।

ठंढी सड़क और माँ पाषाण देवी प्रवेश द्वार : फोटो साभार 

मां पाषाण देवी : शक्ति पीठें  '..माता  की भक्ति में ही अपरंपार शक्ति है। मां तो सती का रूप ही है। आपको भी ज्ञात है कि माँ पार्वती की देह से अलग होकर उनके अंग जहाँ - जहां गिरे वहां शक्तिपीठें निर्मित होती चली गईं। प्रतीत होता है माता पार्वती के नयन नैनीताल में गिरे थे और उनसे निःसृत होती आंसुओं की धारा से नैनी झील का निर्माण हुआ था । .....क्योंकि दिखने इस झील की आकृति ही आँख जैसी ही हैं। '
'.....याद है आपको ...जब हम चाइना पीक गए थे तो वहां से नीचे झील देखी थी ,तो यह झील माँ की आँखों जैसी दिख रही थी । .....दिख रही थी  न ?' 
' ...इस झील के किनारे ही मल्लीताल में माता नैना देवी का मंदिर है जो आपने देखा ही है। और ठीक उस जगह से ही तल्लीताल की तरफ जाने के लिए ठंडी सड़क आरम्भ होती है। ...हमलोग तो मंदिर कितनी दफ़ा गए है,गए है न ?
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शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
 गतांक से आगे : २.


नैनीताल का नैसर्गिक सौंदर्य : फोटो दीप्ती बोरा. नैनीताल. 

तभी ड्राइवर ने आवाज़ दी , ....' सर ! आर्य समाज मंदिर आ गया है,उतरेंगे नहीं क्या ..?  ...आप  यही उतर जाइए मैं बजरी वाले मैदान में गाड़ी पार्क कर आता हूँ....। '
ठीक है ....' यह कहते हुए  मैं अपना बैग बाहर निकाल कर आर्य समाज मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगा था। प्रधान जी कार्यालय में ही थे और हमारे आने का इंतजार ही कर रहें थे। औपचारिकता पूरी कर उन्होंने हमें चाबी दे दी ।  कमरे की चाबी लेकर मैंने अपना सभी सामान रखा। नवीन दा को मैंने सकुशल आने की सूचना भी दे दी थी। यह माँ नैना देवी , पाषाण देवी की कृपा ही हम सबों पर होती है कि हम पहाड़ों पर सुरक्षित होते हैं । 
फ़िर न जाने क्यों टहलते हुए बाहर बरामदें की तरफ़ आ गया था । सामने  झील ,बजरी वाला मैदान , कैपिटल सिनेमा , नैना देवी मंदिर तथा सिंह गुरुद्वारा सब कुछ दिख रहा था। 
दिख नहीं रहीं थी तो सिर्फ़ तुम थी ,अनु । बादल का छोटा सा टुकड़ा न जाने कहाँ से राजभवन वाली पहाड़ी से उतर कर नीचे झील के बीचो बीच आकर ठहर गया था। उस बादल के नन्हें टुकड़े में भी मुझे तुम्हारा अक़्स ही नज़र आ रहा था। मगर तुम तो नहीं थी न ? 
बोट हाउस क्लब की एक दो पाल वाली नौकाएं उस किनारे में तिरती हुई दिख रही थी तल्ली ताल की तरफ़,बाहर से आए सैलानी ही होंगे  । 
हर शय में मेरी आंखें तुम्हें क्यों तलाश कर रहीं थी ,अनु ... ? अक्सर ऐसे सवाल मन में क्यों व किसलिए उठते है ,....? ... कौन महत्वपूर्ण है , और कौन अहम है , ?  इंसान,भगवान  या स्थान.... ?
भगवान तो दिखते नहीं ,एक आस्थां  है,जो मन में है । शायद इंसान ही न जो हमारे पास हैं ,मदद के लिए जीते जी आगे आ सकते हैं । फ़िर साथ के बिना तो स्वर्ग का क्या भी बजूद ? है ना ...?
नैनीताल मेरी पसंदीदा जग़ह रही है, यह सच है । लेकिन इस स्थान से इतना लगाव के पीछे का सच भी अब तुम्हारे इर्द गिर्द ही केंद्रित हो चुका था ।  शायद आज कल तुम ही एक मात्र अहम बजह रही हो, नैनीताल को पसंद करते  रहने के पीछे। सच है ना ...?
आज तुम यहाँ नहीं हो ...तो यही झील कितनी उदास और सूनी लग रही है ,है न अनु । ...और अब जब तुम यहाँ से  सैकड़ों मील दूर हो..यही जानी - पहचानी जगह अपरिचित सी लग रही है ,न जाने क्यूँ ?  
झील के उस पार ही ......तो पाषाण देवी का मंदिर है ना ? मानस पटल पर बिताए गए दिन बेतरह याद आ रहें थे। तुम नैना देवी के बारे में बतला रही थी ......न ? 

ठंडी  सड़क, मैं और नैनीताल की मेरी यादें : कोलाज विदिशा 

मैंने याद करने की कोशिश की थी ,... ' यही कोई तीन चार बार नैना देवी हम आए थे । '  
'...हम उस तरफ़ मल्ली ताल से भी आ सकते है और तल्लीताल से भी जा सकते है ...'
' ....आपको बताए यहां के लोग कहते है कि इस अयारपाटा की पहाड़ी के दक्षिण - पूर्वी तल पर ही माता क़े अंग से ह्रदय और अन्य हिस्से यथा पाषाण आदि भी गिरे थे जिससे उस स्थान पर पाषाणदेवी का मंदिर बना है.....। '
'....पाषाणदेवी के इस मंदिर में देवी माँ की पूजा शिला में उभरी एक आकृति के रूप में की जाती है। ..आकार में विशाल इस शिला में आप ध्यान से देखेंगे तो देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों के  दर्शन भी होंगे...।'
हम झील के किनारे थे। कुछ पाल वाली नौकाएं एकदम क़रीब से गुजर रही थी।   
' ... सच में यह एक अद्वितीय,अनोखी चट्टान है,अपने मन की आस्था की। माना जाता कि इस चट्टान पर माँ का मुख दिखाई देता है तो उनके पैर नीचे झील में डूबे हुए हैं। हम कह सकते है कि पाषाण देवी का मंदिर नैनीताल का सबसे पुराना मंदिर था। '
जन आस्था : '.....इस मंदिर में आसपास के गाँवों के पशुपालक लोग माँ को दूध से बने पदार्थ और मट्ठा चढ़ाया करते थे।ग्रामीणों में पाषाण देवी का आज भी वही स्वरुप पूज्यनीय माना जाता है। मान्यता है कि पाषाण देवी के मुख को स्पर्श किये हुए जल को लगाने से त्वचा रोगों से तो मुक्ति मिलती ही है, प्रेतात्माओं के पाश से निकलने की राह भी खुलती है।'
'....अगर मैं भी आपसे प्रेम की बाधा में पागल हो गयी, प्रेत बन गयी न तो मुझे भी मुक्ति के लिए पाषाण देवी के पास ही यहीं ले आइएगा, सुन रहें है, न ...? '
तब मैं सोचने लगा...' पता नहीं हमदोनों में से पहले कौन पागल होगा, कौन जानता है ? कौन किसको यहाँ किस अवस्था में लाएगा ,माँ ही जाने। ऐसी नकारात्मक बातें क्यों ,अनु ..?
तुम्हारे इस सवाल का भला मैं क्या जवाब देता ? भावनाओं के शिखर पर समाज और बंदिशों के थपेड़े में बमुश्किल संभलते हुए किसकी स्मृति दोष में चली जाएंगी...किसे पता .....! भगवान ही जाने। 

पाषाण देवी , नैनी झील का दृश्य : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

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शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
गतांक से आगे. ३. माँ का दर्शन. पुनः सम्पादित 

पाषाण देवी के परिसर में श्रद्धालू , और माँ पाषाण देवी का दर्शन  : फोटो डॉ. मधुप  .

शाम होने को थी। अपना कैमरा, राइटिंग पैड , रिकॉर्डर ,माइक तथा रेनकोट आदि लेकर मैं माल रोड की तरफ़ निकल गया। गोविन्द बल्लभ पंत की मूर्ति से आगे चाय वाले से मैंने अदरक वाली चाय पी। बिस्किट का एक पैक लेकर तल्ली ताल की तरफ़ अकेले ही पैदल ही बढ़ गया। 
यहाँ की स्थानीय पत्रकार दीप्ती बोरा को मैंने कह रखा था कि दशहरे की थीम को लेकर वह मेरे साथ रिपोर्टिंग कर सकती है यदि वह चाहे तो। सोचा पहले पाषाण देवी के दर्शन कर लेता हूँ उसके बाद नैना देवी मंदिर का दर्शन कर लूंगा। दशहरे को लेकर अपर मॉल रोड में काफ़ी भीड़ थी। स्थानीय और सैलानी काफ़ी संख्या में  दशहरे को लेकर खरीददारी के लिए निकले हुए थे। 
चालीस पैंतालीस मिनट लगे होंगे मैं तल्ली ताल ठंढी सड़क पहुँच गया था। मैं वर्त्तमान से उलट सबकुछ अतीत में चला जा रहा था। 
यही आस पास ही न किसी परिचित के घर में अपनी गाड़ी पार्क की थी न ,अनु ....फिर यहाँ से पैदल ही पाषाण देवी तक गए थे। है न ....? हम साथ साथ ही चल रहें थे  ..और पाषाण देवी के बारे में ही आप कुछ बतला रही थी ...!
एक अखंड दिव्य ज्योति : आप कह रही थी, '... नव दुर्गा रूपी शिला के नीचे एक गुफा है कहते है इसके अंदर नागों का वास है। मंदिर की स्थापना के काल  से ही यहाँ एक अखंड दिव्य ज्योति प्रज्जवलित रहती है। मैं आपको दिखलाऊंगी भी। देवी को चढ़ाए जाने वाले श्रृंगार को उनके वस्त्रों की भी प्रचलित मान्यता है। 
जन श्रुति यह भी है कि  माता दुर्गा को चढ़ाए जाने वाले अभिमंत्रित जल को प्रत्येक दस दिन में एक बार निकाला जाता है और उसे प्रयोग में लाने से हकलाहट दूर होती है। और अन्य ऐसी ही व्याधियों के रोगियों को औषधि के रूप में यह जल सेवन के लिए दिया जाता है। 
  
किसी शोधार्थी  की तरह आप मंदिर के इतिहास और उससे जुड़ी आस्था के बारे में बतला रही थी। आखिर ...तुम्हें इतनी जानकारी कहाँ से हासिल हुई, अनु ,?'
तो तुमने हँसते हुए कहा ,'  ... आपकी शिष्या जो हूँ ...आखिर आपके शोध ,लेख ,कहानियों  के लिए मुझे जानकारियां तो इकट्ठी करनी ही होंगी ,न। '
तभी अचानक तुम्हारे पैरों के नीचे न जाने कहाँ से एक बजरी आ गया था । या तुमने मेरी तरफ बात करते हुए नीचे देखा नहीं। तुम लड़खड़ाने लगी थी,असुंतलित होकर कहीं गिर न जाओ, इसके पहले ही मैंने तुम्हारी बाँहें पकड़ ली थी, .....और आप संभल गयी थी । 
मैंने पूछा , ' कंकड़ था ...गिर जाती ....कहीं चोट तो नहीं लगी...?
'...नहीं ..आप है न ..! ...गिरने थोड़े ही देंगे ... ? '
'...इतना विश्वास मुझ पर ! क्या यह ठीक है ? ' मैं सोचने लगा था कुछ रिश्तें कितने बेमिसाल होते हैसामाजिक परम्पराओं से हट कर। इस सम्यक साथ के लिए थोड़ा सम्यक कर्म भी करना होता है न ?
अपने भीतर सत्यता और निर्भीकता भी रखनी होती है। 
'...सच कहूं ...भगवान से भी ज्यादा ....' , तुमने धीरे से कहा था और मैं सिर्फ़ तुम्हें  देख रहा था । 
यह थी विश्वास की कड़ी ...मन पर विजय की परिभाषा  ...विचारों की शुद्धता का सार । ..फिर इस समर्पण में भौतिक रूप से शरीर तो साथ ही होता है न ,अनु ....! 
हम अपने लिए जीने का अधिकार तो रखते ही है ,न ...? जीवन का सार आख़िर है....ही क्या ? रिश्तें तो आपसी असीम विश्वास, प्यार भरी देख रेख ,पारस्परिक लगाव से ही पनपते और गहरे होते है। हमें इसके लिए अपनी वाणी और व्यवहार में संयम और नियंत्रण भी रखना होता है ,है न ...? निरंतर संवाद भी रखने होते है। 

माँ पाषाण देवी ,ठंढी सड़क नैनीताल : फोटो डॉ.नवीन जोशी 


पाषाण देवी के दर्शन :
 थोड़े क्षण उपरांत हम मंदिर परिसर में थे। यही कोई आठ के आसपास बज रहा था। पहाड़ों के लिए यहां चिर शांति फैली हुई थी। यहाँ लोग देर से ही सोते है।
कुछेक लोग ही थे। शायद दिन ढ़लते भीड़ कमनी शुरू हो जाती है । हमें मिलाकर यही कोई दस बारह लोग ही थे। 
मंदिर के पुरोहित ने पाषाण देवी माँ का दर्शन करवाया। भीतर सब कुछ वैसा ही मिला जैसा आपने बतलाया था ..नवदुर्गा ..अखंड ज्योति ...नाग ..प्रतिध्वनि उत्पन्न करने वाली गुफाएं। सब कुछ वैसा ही था,आपने बताया था और अभी हम सामने देख रहें थे। दर्शन के पश्चात हमने पुजारी से प्रसाद ग्रहण किया। 
मुझे अभी भी याद है जब मैंने आपको देखा था आपने यहीं मंदिर से अभिमंत्रित जल भी सहेज कर एक शीशी में रख ली थी। शायद कभी किसी की व्याधि में ही काम आ जाए। 
मंदिर से निकलते हुए आपने बताया, '...जानते है परिसर में निर्मित हनुमान प्रतिमा और शिवलिंग बाद में स्थापित किया गया है । यही बात मंदिर के समीप स्थित गोलू देवता के बारे में भी सत्य मानी जाती है। लोकमान्यता के अलावा यदि आप पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्यों की मानते है  तो नैनीताल का पाषाण देवी मंदिर उत्तराखण्ड के सबसे पुराने शिला - शक्तिपीठों में से एक है. 

ये दिल और उनकी निगाहों के साए : ठंडी  सड़क ,नैनीताल और तेरी  मेरी यादें :  फोटो डॉ. मधुप 

घर वापसी : मैं याद करने की कोशिश कर रहा था उस दिन घर वापसी के लिए हम तल्ली ताल की तरफ़ बढ़ गए थे। आप थक चुकी थी और मेरे सहारे वश चल पा रही थी। जब किसी जाने अनजाने सफर की मंजिल में हमसफ़र कोई मेरे अपने शामिल हो तो वक़्त का गुमान ही नहीं होता है। उनकी निगाहों के साएं में राहें लम्बी होती जाए तो बेहतर ...!
दूर कहीं वहीदा रहमान और कमल जीत अभिनीत फिल्म शगुन फिल्म  का बजता हुआ यह गाना ...पर्वतों के पेड़ों पर शाम का वसेरा है हमें सुनाई दे रहा था। और मैं कहीं अपनी तुम्हारी सुनहरी यादों में खो गया था। 
'..गाना सुन रहें हैं ,ना ? '...तुमने जैसे जानने की कोशिश की। 
'..हा ..सुन रहा हूँ 
'....इसी ठंडी सड़क पर ही यह गाना फिल्माया गया था। ....जानते हैं न ?'
' हा ..!' ...मैं गाने की धुन और इसके दृश्य में खो गया था..और आप मेरे पहलू में ...थोड़ी और भी करीब आ गयी थी ....झील से सरकते पल भर के लिए आए धुएं के बादल में  हम दोनों खो गए थे....। 

फिल्म शगुन में ठंडी सड़क से दिखते मॉल रोड नैनीताल के नजारें 

मगर न आज धुंध थी। न कोहरा ही । सिर्फ़ मैं था ,मेरी तन्हाई थी .....और कभी भी साथ न छोड़ने वाला तुम्हारी यादों का सिलसिला ....मैं और मेरी तन्हाई में अक़्सर ऐसे हालात होते है जब मैं शून्य में तकने लगता हूँ.....शायद तुम्हें ढूंढ़ने की कोशिश करता हूँ ...
आर्य समाज मंदिर लौटा तब तक़ काफ़ी समय हो चुका था ....

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शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
गतांक से आगे. ४ . माँ नैना देवी का दर्शन. 


माँ नैना देवी का दर्शन.नैनी झील और तुम : फोटो डॉ. मधुप 

आज आश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी की तिथि थी। सिद्धिदात्री  का दिन था। आर्य समाज मंदिर से सुबह सबेरे ही मैं नहा धो कर माता के दर्शन के लिए निकल गया था। सोचा पहले माता के दर्शन के बाद कुछ काम करूँगा। 
इस मंदिर परिसर में तो हम कितनी बार आ चुके थे अनु ..? ...है ना ! यही कोई चार पांच बार ..
माँ  नैना देवी मंदिर : सबेरे के आठ बज रहे थे। धूप अभी तीखी नहीं हुई थी। मंदिर में सैलानी थे ही नहीं। ले दे के स्थानीय लोग ही थे। मैंने चढ़ावे के लिए कुछ प्रसाद ले लिया था। मंदिर में प्रवेश करते ही हनुमान जी दिख गए। 
नैनीताल में नैनी झील के ठीक उत्तरी किनारे पर जन आस्था का मंदिर नैना देवी मंदिर स्थित है। सन १८८० में जब भयंकर भूस्खलन  नैनीताल में आया था तब यह मंदिर उस प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था। बाद में भक्त जनों और श्रद्धालुओं ने इसे दोबारा बनाया था । यहाँ सती या कहें माता पार्वती की शक्ति के रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में उनके दो नेत्र वर्त्तमान हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। 
नैनी झील के बारे में माना जाता है जब शिव सती  की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहें  थें  तब जहां जहां उनके शरीर के खंडित अंग गिरे  वहां वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इसी धार्मिक भावना से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गयी थी। 
माँ नयना देवी के मंदिर के देखभाल का जिम्मा अमर उदय ट्रस्ट करती है। 
पौराणिक गाथा : वही है जो हमने कई बार सुनी है। जब शिव सती के जले अंग को लेकर की कैलाश पर्वत की तरफ जा रहें थे तो उनके भीतर बैराग्य भाव  उमड़ पड़ा था। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कंधे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया था तो देव गण चिंतित हो गए थे। ऐसी स्थिति में सती के शरीर को खंडित किया गया। अतएव जहां जहां पर सती के शरीर के विभिन्न अंग गिरे वहां वहां पर शक्तिपीठों के निर्माण हो गए। यहां पर नैनीताल में सती  के नयन  गिरे थे इसलिए यह स्थान नैनीताल हो गया। वहीं पर नैना देवी के रूप में उमा अर्थात नंदा देवी का स्थान हो गया आज का नैनीताल वही स्थान है जहां पर उस देवी के नयन  गिरे थे। नैनों  से बहते अश्रुधार ने यहाँ ताल का रूप ले लिया था इसलिए यह ताल नैनीताल कहलाया। तब से निरंतर यहां पर शिव - पार्वती की पूजा नैना देवी के रूप में की जाती है। 
अन्य मंदिर : नैना देवी जो मुख्य मंदिर है इसके अलावह यहाँ भैरव ,माँ संतोषी ,नवग्रह ,राधा कृष्ण ,भगवान शिव, बजरंग वली का मंदिर तथा, दशावतार कक्ष भी बने हुए हैं । मंदिर से सटे नैना देवी का धर्मशाला भी हैं जहाँ भक्त गण ठहर भी सकते हैं। 
इसके लाल टिन वाली छत देखते ही मुझे राजेश खन्ना ,तथा आशा पारेख अभिनीत  फ़िल्म कटी पतंग याद आ गयी थी जिसमें पूजा करने के लिए दोनों यहाँ आते हैं। तब उसी फ़िल्म में मैंने नैना देवी मंदिर को पहली बार सिल्वर स्क्रीन में देखा था। इसके बाद तो न जाने कितनी बार देखा। जब कभी भी मैं नैनीताल आता आप मुझे यहाँ दर्शन के लिए ले ही आती थी। 
पंडित जी ने कुछ फूल दे कर प्रसाद मुझे वापस कर दिया था। नैना देवी के दर्शन के बाद मैंने परिसर में अन्य देवी देवताओं के भी दर्शन किए। लेकिन न जाने क्यों मुझे यह बार बार लगता रहा जैसे तुम मेरे साथ हो ...और  मंदिर की परिक्रमा साथ कर रही हो ...
मंदिर परिसर में कई धागें और कई चुनरियाँ बंधी मिली थी जो लोगों ने अपने मन्नतों के लिए बाँधी थी । अरमानों के धागें, मनोकामनाओं की अनगिनित चुनरियाँ ,है न ,अनु । इनमें से दो तीन तो आपकी भी होंगी ही न ?
याद है ,मैंने एक बार इन धागों के बारें में आपसे पूछा भी था तो आप हंस कर टाल गयी थी... ' क्या करेंगे जान कर ? ,...जिस दिन आपकी हमारी मनोकामना पूरी होगी आप भी जान ही लेंगे ......। 
फ़िर एक बार बिना पूछे ही बतला दिया था ... ' ..कुछ नहीं ...बस आपके साथ जनम जनम का साथ चाहती हूँ ....'
तब मैंने कहा भी था ...' आख़िर मुझमें क्या है ,अनु ...मैं तो बस एक साधारण इंसान हूँ ...तुच्छ प्राणी मात्र हूँ ...
'.... साधारण नहीं ..बहुत कुछ है आप में ..! ..कितना ख़्याल रखते है ,मेरा ...सब का.. ! ..सच कहें ... तो लोग ठीक से समझ ही न पाए आपको ....!
'..सही तो है ... क्या लोग समझ पाए मुझे ...नहीं न ..? ' , स्वयं की तरह व्यक्तिवादी होने की बजह से मैं अन्य से अपने लिए शांति ,धैर्य और सत्य के अन्वेषण की ही बात करता हूँ न ...? 
तुमसे ही तो मैंने जीने की कला सीखी  है , तुम अक़्सर मुझे समझाते रहती थी,  ' ...किसी नतीजें पर पहुँचने से पहले ....रुक जाओ ,ठहर जाओ ,समझ लो ..सत्य जान लो ,अपनों से संवाद कर लो ..सारी समस्याएं निराकृत हो जाएंगी ..शीघ्रता मत करो ..। 

था झील का किनारा. नैना देवी से दिखती नैनी झील : छाया चित्र डॉ. मधुप

सच में तुम्हारे बिना कितना अकेला हूँ , मैं ..भाव से ...संवाद से ..अस्तित्व से ..व्यक्तित्व से। एकदम सा अधूरा ..अपूर्ण...। 
तुम्हारी अनुपस्थिति में आज उदासी के बादल फ़िर से मेरे मन में घनीभूत हो गए थे। जैसे मेरी ऑंखें कब की बरस जाएंगी। 
उदास होते हुए मैं मंदिर से सटे रेलिंग के किनारे झील को देखने सरक आया था कि झील के मध्य में तैरती हुई नौकाओं को देख कर मुझे फिर से कुछ याद आ गया.....  
सच कहें तो झील के बीच में तुम्हें ही तलाश कर रहा था ,अनु । तुम्हारे लिए, तुम्हारी तलाश में पहाड़ियों में चिर निरंतर से भटकती हुई आत्मा ही बन गया हूं ना मैं ? हैं ना। 
तुम्हें याद हैं ना ,अनु इसी झील के किनारे इसी मंदिर परिसर में वापस लौटने के क्रम में तुमने मेरी सूखी हाथों को अपनी बर्फ़ जैसी कनकनी देने वाली नर्म हथेली से स्पर्श कर कहा था , ' ....ऐसा करते है नाव किराये पर ले लेते है ...और यही से तल्ली ताल चलते है...।' 
झील के उस पार,तल्लीताल :ऐसा कह कर तुम अपनी बच्चों वाली ज़िद ले कर बोट में बैठ गयी थी,है ना ? 
क्या करता,मुझे भी तुम्हारा साथ देने के लिए तुम्हारे लिए नाव में बैठना पड़ा था। नाव वाले से तुमने चप्पू भी ले लिए थे या कहें छीन ही लिया था और हम सभी नाव खेते हुए झील के बीचोबीच पहुंच गए थे। पानी से कितना डर लग रहा था। हमदोनों में से कोई भी तैरना नहीं जानता था। सामने ठंढी सड़क पर स्थानीय लोग आ जा रहें थे। बाहर वाले शायद कम ही होंगे। 
गोलू देवता मंदिर की तरफ़ देखते हुए न जाने तुम इतना भावुक क्यों हो गयी थी ..' इस झील में मैं डूब कर मर जाऊं ...और आप मेरी आँखों के सामने हो तो समझूंगी जीना सार्थक हो गया है ... भला  तुम कैसी बहकी बहकी बातें कर रही थी ,अनु । 
भगवान न करें ऐसा हो जाए। गोलू देवता का आशीर्वाद सब के ऊपर हो। सभी लोग सुखी रहें और निरोग भी। पहाड़ी लोगों के आराध्य देव है गोलू देवता। तुम भी तो अतीव विश्वास करती हो ना। तब संध्या  आरती का वक़्त हो रहा था ...न ? 
 
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शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
आखिरी क़िस्त .गतांक से आगे.५ .विजयादशमी

विजयादशमी. और जलते रावण के पुतले : फोटो महेश 

आज विजयादशमी की तिथि थी। महानवमी के बाद पूरे देश में असत्य पर सत्य की विजय का पर्व दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है। इसी​ दिन भगवान श्रीराम ने दशानन रावण का वध किया था ,तभी से इस दिवस को समस्त भारत में विजयादशमी के पर्व बतौर मनाया जाता है। 
नवरात्रि समाप्त हो चुकी थी। आज दशमी का पर्व था। लोगों से मिलकर उनके साथ की गई बातचीत के आधार पर ख़ास कर आज की विशेष रिपोर्टिंग कर मुझे लौटना भी था।  सामान बगैरह मैंने पूर्व में ही बांध लिया था। मल्लीताल के फ्लैटस एवं तल्लीताल बस स्टैंड के पास में रावण तथा उसके कुल के पुतले दहन की तैयारी की जा चुकी थी। तल्लीताल में चूंकि जगह ज्यादा नहीं थी इसलिए रावण के पुतले को छोटा आकार ही दिया गया था। 
मल्लीताल के बजरी वाले मैदान में इसकी पूरी तैयारी प्रशासन ने कर ली थी। चूँकि यह मैदान बड़ा था मेरे आर्य समाज मंदिर के समीप था तो शाम सवा सात बजे की रिपोर्टिंग कर लौट भी सकता था। हल्द्वानी लौटने के लिए कार का इंतजाम हो चुका था। इसलिए कोई हड़बड़ी या चिंता वाली बात नहीं थी। हमें महज़ समयबद्ध रहना था। 
हम विजयादशमी पर्व के निहित संदेश पर अब भी हम गौर कर ले। इस त्योहार का यह संदेश हमारे समक्ष है ,इसे देने का प्रयास इसके निमित इसलिए किया गया है कि व्यक्ति के द्वारा किए गए हज़ार महान कर्मों के उपर उसके पाप भारी पड़ जाते हैं। और उसका पतन आरम्भ हो जाता है। इसलिए हमें अधर्म से बचना चाहिए। और धर्म के रास्ते में आने वाली हर रुकावट व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा है, पर उस संघर्ष के आगे जीत भी है जैसे राम की हुई थी ।
हर युग में राम और रावण जैसे लोग होते हैं। सतयुग में थे कलयुग में तो भरे पड़े हैं। यहाँ सीता भी बदनाम हो जाती हैं।  सीता पर उंगली उठाने वाले लोग भी बहुतेरे हैं । कल्पना कीजिए सीता पर भी प्रश्न  उठ गए तो हम और आप कहाँ है । कैकई मंथरा, शबरी केवट , विभीषण , कुंभकर्ण ,जटायु , सूर्पनखा जैसे लोग हमारे आस पास ही मौजूद रहते  हैं। हमारा जीवन एक रंगमंच के समान है जहां हर मानव को अपना किरदार मिला हुआ है।  ईमानदारी से अच्छें क़िरदार निभाने का अवसर मिला है जिसे बड़ी शिद्दत से निभाने का प्रयास कीजिए। सच के लिए खड़े हो जाए। 
रावण दहन : शाम होते ही लोगों की भीड़ जमा होने लगी थी। सैकड़ों की तादाद में लोग आ रहें थे। उनमें से कुछ रावणत्व वाले भी लोग होंगे ही जो विद्वान लंकेश को भस्म करने पहुंचे थे। समय के साथ ही राम ने पुतले में आग लगा दिया गया और रावण जलने लगा इस सवाल के साथ कि हर साल तुम लोग तो मुझे जला रहें हो लेकिन मुझे सिर्फ़ इतना बता दो कि रामराज कब ला रहें हो...। 
धीरे धीरे भीड़ हटने लगी थी। मैं भी आर्य समाज मंदिर लौट चुका था। अब लौटने की बारी थी। मैंने नवीन दा को दिल से आभार प्रगट करते हुए घर लौटने की सूचना दे दी थी। 
वहाँ से वापसी का सफ़र : समय गतिशील था। आठ बजे के आस पास मेरी गाड़ी काठ गोदाम लौट रही थी। नौ बजे वहाँ से वापसी की ट्रेन थी। तुम्हारी यादों के साथ ही इस भागमभागी में मैंने अपना कार्य  भलीभांति पूरा कर लिया था।
अब सिर्फ़ तुम : मेरे मानस पटल के एक कोने में जैसे तुम शक्ति स्वरूपा हो कर हर समय उपस्थित रही थी, और मुझे जैसे निर्देशित करती  रही थी । ...इतना सब कुछ तुम्हारे बिना , लेकिन बिना किसी बाधा के  समस्त कार्य का संपन्न हो जाना  ,अनु .. आश्चर्य ही था न। बोलो न ... सच कहें ....प्रतीत हो रहा था जैसे कोई दिव्य शक्ति काम कर रही हो ...
आप हरदिन अपनी प्रशासकीय व्यस्तता के बाबजूद  भी स्विट्जरलैंड से नित्य दिन टेलीफ़ोन,मोबाइल  से मेरे बारें में पूछती रहीं थी ,स्वास्थ्य के बारें में जानकारी लेती रही। हिदायत देती रहीं।  
इस भावना के लिए मैं तुम्हारे लिए क्या कहूं ...कौन से शब्द दूँ ,समझ नहीं पाता हूँ। ..शून्य में खो जाता हूँ। सोचता हूँ ...आभार प्रगट करूँ ..या आँखें बंद कर मान लूँ कि यही शाश्वत  प्रेम है। एक दूसरे को समझ लेना ,वक़्त बेवक़्त ख़्याल रखना ही तो अमर प्रेम है ....
समय पर मैं काठ गोदाम पहुँच चुका था। ...ट्रेन खुल चुकी थी, समय पर ही। अब आगे का सफ़र जारी था वापसी का .... इति शुभ । 



नैनीताल से रावण दहन की डॉ. मधुप तथा डॉ.नवीन जोशी की वीडियो न्यूज़ रिपोर्ट खोले  

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आज का आभार .पृष्ठ ०. 
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संरक्षक. 
डॉ. अजय. 
नेत्र रोग विशेषज्ञ. नालंदा.
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Thought of the Day.
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आज का सुविचार.पृष्ठ ०. 
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सन्देश  : साभार 
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संकलन 


सीमा धवन :
पश्चिम बंगाल.
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"......अलग होने से कभी न डरें  
हर किसी के समान होने से डरें....." 

" ...कभी भी दूसरों को यह विश्वास दिलाने का मौका न दें  
कि कुछ भी मुश्किल या असंभव है....." 

"..आप जो कुछ भी चाहते हैं ,वह आपके अंदर ही निहित है 
.......अपने अंदर देखिए और आप सब कुछ पा सकते हैं...



supporting.

आपकी सुविधा के लिए  

देखें सुबह और शाम 
की पोस्ट में भी उपलब्ध  
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पृष्ठ.० आज की : कृति 
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संपादन. 
अनुभूति सिन्हा
शिमला. 

आज की : कला कृति : दर्पण मंडल : शुभ विजयादशमी  
आज की : कला कृति : बंगाल की नवरात्रि : साभार 

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आज की पाँती  : छोटी सी बात .पृष्ठ ०. 
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प्यारी बातें : संकलन. 


प्रिया 
दार्जलिंग. 

पुछता है दशानन.
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अरूण सिन्हा, कवि. 
रसिकपुर, दुमका, झारखण्ड .

सवाल  वाजिब है कि नहीं है,
यह तो बाद का सवाल है,
पर सवाल तो लोग पुछते ही हैं,
सवाल रावण भी पुछता है कि
हर साल धर्म - अधर्म ,न्याय - अन्याय,
के नाम पर मेरा पुतला दहन किया
जाता है,
मेरे पुतले को जलाने के लिए बड़े 
बड़े लोग सजधज के आते हैं,
बड़े से मैदान में बड़ा सा आयोजन 
होता है,


आज मेरे पुतले को जलाकर शायद
मानवता ,अधर्म ,अन्याय अनाचार 
कदाचार, छद्म व्यवहार , हिंसा 
आदि से मुक्त हो जाएगी,
समाज ,समष्टिमूलक ,समतामूलक 
धर्म और न्याय आधारित हो जाएगा,
लेकिन विडम्बना तो यह है कि जितना 
मुझे फूँका जलाया जाता है,
रावणत्व उतना ही फलता फुलता
फैलता जाता है,
जलाओ फूँको तापो,
दहन का जश्न मनाओ,
पर एक बात तो बताते जाओ,
आखिर कब तक मेरा पुतला दहन करते रहोगे,
कब तक ये छद्म आचरण और व्यवहार किया जाएगा,
कोई तो बताए कि जिसे स्थापित करने के लिए 
मुझे जलाया जा रहा है,
वो  राम राज , वो सुराज कब आएगा,
वो राम राज कब आएगा ?

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पृष्ठ.० आज की : तस्वीर 
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लखनऊ : राम रावण का युद्ध : फोटो अनुपम चौहान
शिव की जटा से अवतरित गंगा और शक्ति : फ़ोटो : डॉ सुनीता. 
या देवी सर्वभूतेषु शांति  रूपेण संस्थिता : फ़ोटो : बिहार शरीफ़ ,नालंदा. डॉ सुनीता. 

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सम्पादकीय : पृष्ठ १.

 

प्रधान संपादक. 
डॉ. मनीष कुमार सिन्हा. 
नई दिल्ली. 


सहायक संपादक 
 रेनू शब्दमुखर. जयपुर.
डॉ. आर. के. दुबे.


संयोजिका 
नीलम पांडेय.
वाराणसी. 

 
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अतिथि संपादक.


रीता रानी. जमशेदपुर. 
रंजना. नई दिल्ली.  
अनुभूति सिन्हा. शिमला. 
प्रिया. दार्जलिंग. 
रंजीता.बीरगंज. नेपाल. 
कंचन पंत.नैनीताल.
डॉ.अनुपम अंजलि. रांची.
मधुलिका कर्ण.बंगलोर
वनिता स्मिता. पटना       
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संपादक. मंडल 


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रवि शंकर शर्मा .संपादक, नैनीताल. 
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सीमा कुमारी (अधिवक्ता )
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राज कुमार कर्ण, डी. एस. पी. ( सेवानिवृत  ).पटना
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डॉ.अजय. 
डॉ.अविनाश सत्यम.
 डॉ.अमरदीप नारायण. 
डॉ. प्रशांत. बड़ोदा  
डॉ. तेज़ पाल सिंह ,नैनीताल ( व्याख्याता ) 
डॉ. भावना, ( व्याख्याता )
अनूप कुमार सिन्हा, ( उद्योगपति ) नई  दिल्ली.
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पृष्ठ का निर्माण आज से ही : नवरात्रि विशेषांक .एक बेहतरीन शुरुआत
कृप्या स्नेह बनाए रखें. 
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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ /० 


   डॉ. नवीन जोशी.
संपादक. नवीन समाचार , नैनीताल,

पाषाण देवी शक्तिपीठ : नैनीताल जहां घी, दूध का भोग करती हैं सिंदूर सजीं मां वैष्णवी.

उत्तराखंड को देवभूमि इसीलिए कहा जाता है, कि यहां के कण-कण में देवों का वास है।बदरीकेदार सहित चार धामों और गंगायमुना की इसी धरती में शिव के धाम कैलाश का द्वार है, और यहीं शिवा यानी माता पार्वती का मायका हिमालय भी है। यहां के हर पुराने शहर और गांव देवी देवताऑ  के प्रसंगों से जुड़े हैं और वहां आज भी श्रद्धालु साक्षात दर्शन कर दिव्य अनुभूतियां प्राप्त करते हैं।
मां पाषाण देवी : प्रदेश के कुमाऊं मंडल के मुख्यालय मां नयना की नगरी का शास्त्रों में त्रिऋषि  सरोवर के रूप में वृतांत मिलता है। यहीं नगर का प्राचीनतम बताया जाने वाला मां पाषाण देवी के एक विशाल शिला खंड पर नवदुर्गा स्वरूप में दर्शन होते हैं, जबकि मां के चरण नैनी झील में बताये जाते हैं। कई बार मां का वाहन शेर यहां दिन में भी घूमता मिल जाता है, और बिना किसी को नुकसान पहुंचाये अचानक आंखों से ओझल भी हो जाता है।

पाषाण देवी शक्तिपीठ : नैनीताल सिंदूर सजीं मां वैष्णवी.

मां का श्रृंगार  यहां महाबली हनुमान की तरह सिंदूर से होता है, और उन्हें वैष्णवी स्वरूप में दुग्ध उत्पादों व फल फूलों का भोग लगाया जाता है।  माना जाता है कि पिता दक्ष प्रजापति द्वारा पति का अनादर करने पर माता पार्वती अग्रि में कूदकर सती हो गई थीं। उनके दग्ध शरीर को देवाधिदेव महादेव आकाश मार्ग से कैलाश की ओर लेकर चले। इस बीच माता के दग्ध अंग जहां जहां गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गये। 
नयना ताल या कहें नैनीताल : मां  के नयनों के गिरने के कारण और सरोवर यानी ताल होने से यह स्थान नयना ताल तथा कालांतर में अपभ्रंस होता हुआ नैनीताल कहलाया। एक अन्य मान्यता के अनुसार मां के नयनों के नीर से नैनी सरोवर बना और दक्षिण पूर्वी अयारपाटा पहाड़ी पर हृदय सहित अन्य शरीर यानी ‘ पाषाण ’ गिरा, तथा मां पाषाण देवी के प्राकृतिक मंदिर की स्थापना अनादि काल में ही हो गई थी। 
मंदिर का इतिहास : बताते हैं कि १८४१  में नगर की स्थापना से पूर्व से ही इस स्थान पर नजदीकी गांवों के लोग गायों और पशुओं के चारण के लिए आते थे, और धार्मिक मान्यता के कारण शाम होने से पहले वापस भी लौट जाते थे। पहाड़ों में खासकर गायों के नई संतति देने पर नये दूध से देवों का अभिषेक करने की परंपरा है। ऐसे देवता ‘ बौधांण देवता ’ कहे जाते हैं।लेकिन नैनीताल संभवतया अकेला ऐसा स्थान होगा जहां नया दूध एवं घी, दही, मक्खन व छांस जैसे दुग्ध उत्पाद बौधांण देवता के बजाय बौधांण देवी के रूप में पाषाण देवी को चढ़ाये जाते थे, और आज भी ग्रामीण पाषाण देवी की इसी रूप में पूजा करते हैं।

नैना देवी मंदिर , गोलू देवता ,पाषाण देवी मंदिर और नैनी झील : फोटो विदिशा. 


मान्यता है कि मां का चेहरा धुले पानी से समस्त त्वचा रोगों के साथ ही अतृप्त व बुरी आत्माओं  के प्रकोप भी समाप्त हो जाते हैं। बताते हैं कि नगर की स्थापना के बाद एक अंग्रेज अफसर इस स्थान से होता हुआ घोड़े पर निकला था, किंतु उसका घोड़ा यहां से लाख प्रयासों के बावजूद आगे नहीं बढ़ पाया। इस पर नाराज हो उसने मां की मूर्ति पर कालिख पोत दी थी। हालांकि बाद में उसे गलती का अहसास हुआ और स्थानीय महिलाऑ ने कालिख के स्थान पर मां का सिंदूर से क्षृंगार किया। इस प्रकार यहां देवी का सिंदूर से श्रृंगार  किये जाने की अनूठी मान्यता है। 

गतांक से आगे - १.
 
पत्थर की शिला : इस स्थान पर पाषाण देवी नवदुर्गा के रूप में पत्थर की शिला पर प्राकृतिक रूप से विराजमान हैं, जो स्पष्ट दिखाई देती हैं। मां के नवदुर्गा स्वरूप चेहरे के नीचे गले वाला भाग हालांकि अब ढक दिया गया है, लेकिन अभी हाल तक इसके नीचे गुफा बताई जाती है, जिसमें पानी चढ़ाने पर इस तरह ‘घट घट’ की आवाज आती थी, मानो मां पानी पी रही हों। 
कई बार झील का पानी मंदिर तक चढ़ आता था। इसके नीचे गुफा अब भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका अन्य द्वार हरिद्वार में खुलता है। मंदिर की जिम्मेदारी शुरू से स्थानीय भट्ट परिवार के जिम्मे है। सर्वप्रथम चंद्रमणि भट्ट मंदिर के पुजारी थे, बाद में उनके पुत्र भैरव दत्त भट्ट और वर्तमान में उनके पौत्र जगदीश चंद्र भट्ट मंदिर के पुजारी हैं। इस मंदिर के सदस्य बारी बारी से मंदिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाते हैं। नीचे की गुफा में केवल हरीश चंद्र भट्ट ही जा पाते हैं। 

माँ पाषाण देवी की स्थापना काल १८२३ : फोटो डॉ.नवीन जोशी 

नागों की उपस्थिति : गुफा में नागों की उपस्थिति बताई जाती है, जो कई बार श्रद्धालुओं  द्वारा अशुद्धता बरतने पर बाहर निकल आते हैं। मां को दुग्ध उत्पाद व फल फूल ही चढ़ते हैं, इस प्रकार यहां मां नवदुर्गा वैष्णवीस्वरूप में पूजी जाती हैं। 
नगर को सर्वप्रथम खोजने वाले कुमाऊं के पहले कमिश्नर जीडब्ल्यू ट्रेल द्वारा वर्णित और नगर को १९४१  में बसाने वाले अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन की बहुचर्चित पुस्तक ‘ वंडरिंग इन हिमालया ’ में वर्णित नगर का प्राचीनतम मंदिर भी इसी प्राकृतिक मंदिर को बताया जाता है। 
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी सहित न जाने कितने श्रद्धालु होंगे जो अपने प्रत्येक कार्य के लिए आशीर्वाद लेने यहां निरंतर आते रहते हैं। 
अंग्रेजी दौर में बसासत से पूर्व इस स्थान पर वर्तमान पाषाण देवी का मंदिर था, जिसकी पशुओं की नई संतति होने पर पहले दूध एवं दुग्ध उत्पादों से पूजी जाने वाली बौधांण देवी के रूप में पूजा की जाती थी। यहां वर्ष में एक बार मेला लगता था, जिसमें निकटवर्ती गांवों के लोग शामिल होते थे। इस मंदिर की स्थापना १८२३ में नैनीताल आए पहले अंग्रेज अधिकारी जॉर्ज विलियम ट्रेल ने ही की थी। अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी इस स्थान की धार्मिक मान्यताओं को सुरक्षित नहीं रख पाएंगे, यह सोचकर उन्होंने इस स्थान के बारे में किसी को नहीं बताया था।

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सहयोग 

सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / २ 



लेखिका. 
संयोजिका : नीलम पांडेय.
वाराणसी. 

तप, त्याग, साधना, शक्ति की आराधाना...
आस्था, प्रेम और समर्पण का अद्भुत संगम नवरात्रि...

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नवरात्रि के प्रथम  दिवस 
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प्रथमं शैलपुत्री.......... तप,त्याग, साधना, शक्ति की आराधाना का अनुष्ठान पर्व नवरात्रि ! आस्था, प्रेम और समर्पण का अद्भुत संगम नवरात्रि......मां के नव रूपों में समाये अष्ट सिद्धियों और नव निधियों समेत शक्ति के हर रूपों में जागृत करने और पाने का पर्व है। सृष्टि के आरंभ से चली आ रही भारतीय
आध्यात्मिक परंपरा - '
यत्र नार्येस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता ' की अद्भुत कड़ी के रुप में नवरात्रि पर्व हमारे बीच मौजूद है। जीवन में हर प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करने के हमारे प्रयास का जीता जागता उदाहरण है।  
गर्भ में पल रहा शिशु मां से अपार संभावनाएं ले कर इस दुनिया में आता है। मानव के अंदर बीज रूप में हर प्रकार की शक्ति मौजूद है और उसी शक्ति को जागृत करने का अनूठा पर्व है ' नवरात्रि '। 
धरती को रावण के रावणत्व से मुक्ति : मर्यादा पुरुषोत्तम राम के द्वारा धरती को रावण के रावणत्व से मुक्ति दिलाने के लिए शक्तिस्वरूपा मां की आराधना करना इस बात का अनूठा उदाहरण है। जब भी हमारी चुनौती बड़ी हो, मानव कल्याण हमारा लक्ष्य हो, हमें शक्ति की आराधाना करनी चाहिए, ताकि हम विजयी हों। नवरात्रि के प्रथम दिन ' शैलसुता पार्वती ' की आराधना की जाती है। मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ  ' शैलपुत्री '। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी ' वृषारूढ़ा ' के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है। 
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। 
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव था। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। 
वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। 
पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। इनकी  कृपा से भक्तों का भय दूर होता है, शांति और उत्साह मिलता है। 
मां यश, ज्ञान, मोक्ष, सुख, समृद्धि प्रदान करती हैं. नव दिनों तक चलने वाला यह पर्व तीन अक्टूबर तक चलेगा औरचार अक्टूबर को विजयादशमी या दशहरा का त्योहार मनाया जाएगा। जय माता दी। 

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नवरात्रि के द्वितीय दिवस 
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ब्रह्मचारिणी  : नवरात्रि के द्वितीय दिवस देवी भक्तों के द्वारा मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की आराधना की जाती है। " दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।  देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ "
मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप
ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। नारद मुनि की प्रेरणा से शैलसुता ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व बताते हुए सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ।  देवी ब्रह्मचारिणी की तपस्या से आशुतोष शिव ने प्रसन्न होकर तथास्तु कहकर उन्हें अपना आधा अंग भी प्रदान किया।  देवी ब्रह्मचारिणी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, शुचिता और दृढ़ संकल्प से किया हर कार्य सफल होता है। मां सबकी मनोकामना पूर्ण करें....

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नवरात्रि के तृतीय दिवस 
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तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।


मां चंद्रघंटा : पीड़ा क्लेश को हरने वाली देवी .जय माता चंद्रघंटा .नवरात्रि की नौ देवियों में तीसरे रूप में माता चंद्रघंटा के रुप में आराध्य मां, असुरों के विनाश हेतु अवतरित हुई थीं। असुरों की शक्ति को क्षीण करके, देवताओं का हक दिलाने वाली देवी चंद्रघंटा शक्ति का दिव्य रूप हैं। शास्त्रों के ज्ञान से परिपूर्ण, मेधा शक्ति धारण करने वाली देवी चंद्रघंटा संपूर्ण जगत की पीड़ा को मिटाने वाली हैं। भयंकर दानवों को मारने वाली  देवी का मुख मंद मुस्कान से कान्तिवान, निर्मल, अलौकिक तथा चंद्रमा-सा उज्ज्वल है महिषासुर ने देवी के ऐसे दिव्य,अलौकिक स्वरूप पर प्रहार किया। तब उनके प्रेम, स्नेह का रूप  भयंकर ज्वालामुखी की भांति लाल होने लगा, यह क्षण आश्चर्य से भरा हुआ था। उनके इस रूप का दर्शन करते ही महिषासुर भय से कांप उठा। दानव महिषासुर  माता के सामने टिक नहीं सका, उसके प्राण निकल गये। आखिर यमराज के समान विकराल स्वरूप वाली माता को देखकर भला कौन जीवित रह सकता है ? देवी चंद्रघंटा अद्भुत शक्ति स्वरूपा हैं। 
परमात्मस्वरूपा देवी चंद्रघंटा के प्रसन्न होने पर जगत का अभ्युदय होता है। जगत का समस्त क्षेत्र हरा - भरा, पावन हो जाता है, परंतु देवी चंद्रघंटा के क्रोध में आ जाने पर तत्काल ही असंख्य कुलों का सर्वनाश हो जाता है। माता चंद्रघंटा की उपासना साधक को आध्यात्मिक एवं आत्मिक शक्ति प्रदान करती है।अपने मस्तक पर घंटे के आकार के अर्धचन्द्र को धारण करने के कारण माँ चंद्रघंटा नाम से पुकारी जाती हैं। भक्तवत्सल मां चंद्रघंटा सबकी रक्षा करने वाली है। हे जग जननी सांसारिक बंधनों में बंधे हम सबकी रक्षा करो। हमें शक्ति प्रदान करो ताकि हम सब अपने जीवन पथ पर अग्रसर हो सकें। 

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नवरात्रि के चतुर्थ  दिवस 
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सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।  
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे। 

नवरात्रि के चौथे दिन देवी को कूष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी की कूष्मांडा के नाम पूजा - अर्चना की जाती है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कूष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है। इनके सात हाथों में क्रमशः  कमण्डलधनुष, बाणकमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलशचक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इनके ही दिव्य तेज़ से दसों दिशाएं आलोकित है। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज़ व्याप्त है। पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा - आराधना करने से भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु ,यश ,वल और आरोग्य प्राप्त होता है। अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होने वाली माँ का आशीर्वाद सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों को सुगमता से प्राप्त हो जाता है। जग जननी कुष्मांडा माता की जय हो।

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नवरात्रि के पांचवें  दिवस 
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सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। 
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी

स्कंदमाता : नवरात्रि के पांचवें दिन माता के श्रीविग्रह की स्कंदमाता नाम से पूजा अर्चना की जाती है ।
स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं।स्कंद शिव और पार्वती के पुत्र षडानन  कार्तिकेय का एक नाम है। स्कंद की मां होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। 
भक्तों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति : माना जाता है कि मां दुर्गा का यह रूप अपने भक्तों की सभी
मनोकामनाओं की पूर्ति करता है और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाता है। 
मान्यता है कि स्कंदमाता की कथा पढ़ने या सुनने वाले भक्तों को मां संतान सुख और सुख-संपत्ति प्राप्त होने का वरदान देती हैं। मां का यह स्वरूप भक्तों को मोक्ष प्राप्त कराने वाला है।माता का यह स्वरूप मातृ शक्ति को परिभाषित करता है और बच्चों के प्रति मां की ममता को दर्शाता है। सिंहासन पर विराजमान, अपने दोनों हाथों में कमल पुष्प धारण करने वाली मां शुभदा और अतिशीघ्र प्रसन्न होने वाली है। जय मां। 
पौराणिक कथा : एक पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि तारकासुर नामक राक्षस था। जिसने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा को प्रसन्न किया और यह वर मांगा कि शिव पुत्र के अलावा कोई अन्य उसका वध ना कर सके। उसने ऐसा यह सोच के कहा कि शिव का ना तो विवाह होगा ना पुत्र। उसके उत्पात से मुक्ति दिलाने के लिए शिव ने माता पार्वती से विवाह किया। वरदान प्राप्त होने के कारण उसका अंत केवल शिव पुत्र के हाथों की संभव था। तब मां पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंद माता का रूप लिया था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के बाद भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। 
स्कंदमाता, हिमालय पुत्री पार्वती हैं। इन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है। पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण पार्वती कही जाती हैं। इसके अलावा महादेव की पत्नी होने के कारण इन्हें माहेश्वरी नाम दिया गया और अपने गौर वर्ण के कारण गौरी कही जाती हैं। माता को अपने पुत्र से अत्यधिक प्रेम है। यही कारण है कि मां को अपने पुत्र के नाम से पुकारा जाना प्रिय है। 

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नवरात्रि के छठवें  दिवस 
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षष्ठं कात्यायनीति च 
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

मां कात्यायनी : नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है। मां कात्यायनी अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती हैं। मां का यह स्वरूप बेहद शांत और हृदय को सुख देने वाला है। उत्तम वर प्राप्ति हेतु मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करने का भी उल्लेख मिलता है। गोपियों के द्वारा श्रीकृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए कात्यायनी की पूजा अर्चना की गई थी। देवी आदिशक्ति होने के बावजूद मां दुर्गा को कात्यायनी का रूप क्यों लेना पड़ा आइए जानते हैं। 
जब दानव
महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं। 
पौराणिक कथा : इसके अलावा पौराणिक कथा के अनुसार जब महर्षि कात्यायन ने मां नवदुर्गा की घोर तपस्या की। तब माता उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी पुत्री के रूप में उनके घर में जन्म लेने का वरदान दिया था। देवी दुर्गा का जन्म महर्षि कात्यायन के आश्रम में हुआ था। मां का पालन-पोषण ऋषि कात्यायन ने किया था। देवी दुर्गा ने ऋषि कात्यायन के यहां आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन जन्म लिया था। माता के जन्म के बाद ऋषि कात्यायन ने अपनी पुत्री मां दुर्गा का तीन दिनों तक पूजन भी किया था। महिषासुर राक्षस का अत्याचार बढ़ जाने के कारण देवताओं ने आदिशक्ति मां कात्यायनी से विनती की कि वे ही उन्हें इस दानव से मुक्ति दिला सकती हैं। मां कात्यायनी ने उसका वध कर देवताओं की कामना पूरी की थी। 
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनी॥‘ 
इस मंत्र से देवी का ध्यान करके नवरात्र के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए। मां की शरण में जाने वाले को सुगमता से धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति  होती है। जय माता आदिशक्ति। 

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नवरात्रि के सातवें दिवस 
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एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥


सप्तमं कालरात्रीति...उत्तर भारत के तकरीबन हर गांव में मां काली का मंदिर स्थापित करने के पीछे ज़रूर ही कोई ख़ास वजह है। वर्ष में एक बार गांव के पुजारी के द्वारा सार्वजनिक रूप से मां की पूजा अर्चना और ग्रामवासियों के सुख सौभाग्य की कामना करना इस बात का द्योतक है कि मां का यह रुप भक्तों की आस्था और विश्वास का केन्द्र है। कई घरों में आज भी विवाह के अवसर पर वर-वधू को पहनाए जाने वाले वस्त्र सबसे पहले मां काली को चढ़ाए जाते हैं। 
सदैव शुभफल देनेवाली  माँ कालरात्रि का स्वरुप भयानक है।  माँ कालरात्रि के स्मरण मात्र से नवग्रह बाधाएं शांत हो जाती है, इनकी उपासना से अग्निभय ,शत्रुभय , जलभय ,संकट सब खत्म हो जाते है। नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि को समर्पित है। मां कालरात्रि ने दुष्टों का संहार कर घने काले कोहरे में लिप्टी सृष्टि को प्रकाशमय बनाया था। 
दुर्गा देवी  का सातवां स्वरूप कालरात्रि
अत्यंत भयंकर है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहते हैं। असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। इनके शरीर का रंग  घने अंधकार की तरह एकदम काला है, सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है। इनका रूप भले ही भयंकर हो, लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं और इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत, आतंकित होने या डरने की जरूरत नहीं है। ये अपने भक्तों को हमेशा शुभ फल देती है। माता कालरात्रि का रूप यह दर्शाता है कि एक करूणामयी माँ अपनी सन्तान की सुरक्षा के लिए आवश्यकता होने पर अत्यंत हिंसक और उग्र भी हो सकती है। जगत जननी मां कालरात्रि मां दुर्गा की तीन महाशक्तियों में से एक हैं। नवरात्रि के सातवें दिन से मां का पट भक्तों के दर्शन करने के लिए खोल दिए जाते हैं । शीघ्र प्रसन्न होने वाली मां कालरात्रि सभी को शुभ फल देने वाली हों.... जय मां अम्बे।

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नवरात्रि का आठवां  दिवस 
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महागौरीति चाष्टमम्

श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः। 
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

महागौरी की  पूजा : मधु - कैटभ, महिषासुर, शुंभ - निशुंभ के वध की कथा अत्यंत लोकप्रिय हैं। लेकिन क्या हम को उनका वास्तविक अर्थ पता है ? पौराणिक कहानियाँ में गहरे अर्थ छिपे हैं, जिन्हें यदि नहीं समझा गया तो आप कथा के पूर्ण लाभ से वंचित रह जाते हैं। 
नवरात्रि में आठवें दिन
महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। माता की चार भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको।
पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी वजह से इनका शरीर काला पड़ गया लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए ये महागौरी कहलाईं।
फलदायिनी माता : ये अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी की  पूजा-अर्चना, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। 
इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं। 
महाअष्टमी के दिन कुमारी कन्याओं का पूजन कर आशीर्वाद लिया जाता है। महाअष्टमी मां दुर्गा का महाशक्तिशाली स्वरूप है जो समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। मां की कृपा सभी को प्राप्त हो। जय माता महागौरी 
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नवरात्रि का नवां  दिवस 
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नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता: '.......

नवम शक्ति : मां दुर्गा का सिद्धिदात्री स्वरुप.... तप, त्याग, साधना के सोपानों से गुजरते हुए मां की कृपा प्राप्त करने, उस चरम-सुख, सौभाग्य को प्राप्त करने का अवसर है, जहां मानव की कोई कामना शेष नहीं रहती है । 
अष्ट सिद्धियों और नव निधियों को देनेवाली मां दुर्गा की नवम शक्ति का नाम है ' सिद्धिदात्री ' । नवरात्रि
पर्व के नवें दिन माता सिद्धिदात्री सुख-समृद्धि प्रदायिनी रूप में भक्तों के बीच होती हैं।
सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। मां भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती।

' या देवी सर्वभू‍तेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। '

मां सिद्धिदात्री का रूप कमल पर विराजमान चार भुजाओं वाली मां सिद्धिदात्री लाल साड़ी में होती हैं। इनके चारों हाथों में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा और कमल रहता है। सिर पर ऊंचा सा मुकुट  और चेहरे पर मंद मुस्कान .... 'मां सिद्धिदात्री' की पहचान है।
जिस प्रकार भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही अष्ट सिद्धियों को प्राप्त किया था ,भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर नाम मिला, मान्यता है कि ठीक उसी तरह इनकी उपासना करने से अष्ट सिद्धि और नव निधि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है। 
हिमाचल का नंदा पर्वत इनका प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। निम्न मंत्र से मां की आराधना कीजिए और मन वांछित कामनाओं  का आशीर्वाद पाने का जो अवसर  मिला है, उसका लाभ उठाइए। जय माता दी  :-
सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्। 
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥ 
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्। 
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥

मां दुर्गा के हर रूपों में खोई हुई- सी जिस पथ पर अग्रसर हूं, दुर्लभ अनुभूति है। मां अपने में उलझा के रखें और सांसारिक बंधनों में बंधे हम सबका मार्गदर्शन करें... सदा-सर्वदा।
'ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।'

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 सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ३ 


 
पुनः सम्पादित : अनुपम चौहान,संपादक. समर सलिल  
डॉ. मधुप.

जलते हैं केवल पुतलें, रावण बढ़ते ही जा रहें हैं ?

मूल आलेख : प्रियंका सौरभ.लखनऊ 

प्रियंका सौरभ 
दशहरे पर रावण का दहन एक ट्रेंड बन गया है। जहाँ  देखों विजयादशमी को लोग रावण ,मेघनाथ ,कुम्भकर्ण के पुतले जला रहें हैं। लोग इससे सबक नहीं लेते , न ही इसके  निहित सदेश के भीतर जाने की चेष्टा करते हैं । रावण दहन की संख्या बढ़ाने से किसी तरह का फायदा नहीं होगा। लोग इसे मनोरंजन का साधन केे तौर पर लेने लगे हैं। खेल तमाशे होते हैं। दहन के पश्चात् सभी लोग आहलादित हो कर अपने अपने घर चले जाते हैं कि उन्होंने सत्य की असत्य पर विजय देखी । लेकिन कभी भी अपने भीतर के रावणत्व को न देखने की कोशिश की ,न समझने के लिए अवसर प्रदान किया। 
धार्मिक पुराणों  से हमें अपने   प्रेरणा लेनी चाहिए। रावण दहन के साथ दुर्गुणों को त्यागना चाहिए। रावण दहन दिखाने का अर्थ बुराइयों का अंत दिखाना है। हमें पुतलों की बजाए बुराइयों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। समाज में अपराध, बुराई के रावण लगातार बढ़ रहे हैं। इसमें रिश्तों का खून सबसे अधिक हो रहा है। मां, बाप, भाई, बहन, बच्चों तक की हत्या की जा रही है। दुष्कर्म के मामले भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
रावणत्व का अंत : रावण दहन दिखाने का अर्थ बुराइयों एवं रावणत्व का अंत दिखाना है। लंकापति रावण महाज्ञानी था, लेकिन अहंकार हो जाने के कारण उसका सर्वनाश हो गया। रावण परम शिव भक्त भी था। तपस्या के बल पर उसने कई शक्तियां अर्जित की थीं। रावण की तरह उसके अन्य भाई और पुत्र भी बलशाली थे। लेकिन स्वेच्छाचारी , हठी होने के कारण उनके अत्याचार लगातार बढ़ते जा रहें  थे। जिसके बाद भगवान ने राम के रूप में अवतार लिया और रावण का वध किया और विश्व को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलवाई ।
आज का रावण : लेकिन फिर भी कलयुगी दुनिया में बुराइयाँ बढती ही जा रही है तो सन्देश देने के लिए रावण दहन की प्रथा शुरू किया गया था, वो संदेश तो आज कोई लेना ही नही चाहता। तो फिर हर साल रावण दहन करने से क्या फायदा है। बहुत से लोग इस दुनिया में इतने बुरे है की रावण भी उसके सामने देवता लगने लगे। ऐसे बुरे लोग बुराई के नाम पे रावण दहन करे तो ये तो रावण का अपमान ही है। साथ ही अच्छाई का भी।
सब कुछ चिंतन और मनन से ही शुरू होता है। आज के लोग इतने शिक्षित और समझदार हो गये है कि  सबको पता है, बुराई और अच्छाई क्या होता है और प्रत्येक अपने स्वयं के विवेक का प्रयोग कर सकता है ।
सच कहें आज का रावण उस रावण से भी अधिक क्रूर है, खतरनाक है, सर्वव्यापी है। वह महलों में रहता है। गली कुचों  में रहता है। गाँव में भी है , शहर में भी है ,आस पास है । वह गँवार  भी है । पढ़ा लिखा भी है शातिर भी है । लेकिन अफ़सोस की राम नहीं है जो  उसकी समाप्ति कर सके। बस एक आस ही तो है की समाज से रावणपन चला जाएगा खुद ब खुद एक दिन हम परम्पराओं को ढ़ो रहें हैं । रावण के दुख, अपमान और मृत्यु का कारण कोई नहीं था वह स्वयं ही था ।

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दुर्गा 
सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ४  

' दशहरा - रावण के अहंकार के अंत का जश्न '

निवेदिता .वाराणसी. 
फोटो पत्रकार. 

अपने कक्ष में रावण की बैचनी : फोटो साभार 

अपने कक्ष में रावण की बेचैनी और उसका हर घटनाक्रम पर चिंतन ! सच में किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आंखों से नींद उड़ा देने की क्षमता रखता है  महापराक्रमी योद्धा, महापंडित लंकेश जिसने कभी हार नहीं मानी थी, सोच रहा है... आखिर क्यों ?

मेरे कानों में गूंज रहा है......
यही रात अंतिम यही रात भारी......
बस एक रात की,अब कहानी है सारी। 
नहीं बंधु बांधव, नहीं कोई सहायक,
अकेला है लंका में लंका का नायक।

उत्तर देना आसान नहीं क्योंकि बात दशानन जैसे शूरवीर, महा शिवभक्त की हो रही है जिसको चुनौती देने का साहस देवताओं को भी नहीं होता था। शायद ! चुनौती देकर राम भी रावण को परास्त कर पाते या नहीं कहना मुश्किल है।
पर रावण ने सीता का हरण कर ख़ुद राम को युद्ध के लिए आमंत्रित किया और फिर जो हुआ वो तो होना ही चाहिए क्योंकि धर्म और अधर्म के बीच छिड़ी जंग में धर्म की जय तय है। विजयादशमी का त्योहार रावणत्व की शिकस्त और रामत्व के प्रभुत्व की कहानी के माध्यम से हमारे बीच संदेश और चेतावनी दोनों लेकर आता है।
नवरात्रि की साधना : इस विजयोत्सव के पीछे नौ दिनों तक चलने वाली नवरात्रि की साधना भी है जो महाशक्ति के प्राकट्य के लिए की गई थी। राम जैसे महायोद्धा ने शक्ति का आह्वान कर यह संदेश दिया कि जब सामने महापराक्रमी रावण के जैसा योद्धा शत्रु के रूप में मौजूद हो तो महाशक्ति की कृपा भी अत्यावश्यक है। 
निहित संदेश : इस त्योहार में यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि व्यक्ति के द्वारा किए गए हज़ार महान कर्मों के उपर उसके पाप भारी पड़ जाते हैं और धर्म के रास्ते में आने वाली हर रुकावट व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा है, पर उस संघर्ष के आगे जीत भी है।
एक बात और भी बहुत मायने रखती है कि अहंकारी रावण के द्वारा सीता-हरण किया गया फिर भी शील भंग करने का दुस्साहस नहीं किया गया जो उसके चरित्र का उज्ज्वल पक्ष है। पर ये भी तय है कि अहंकार हमेशा पतन का द्वार खोल देता है चाहे वो रावण जैसे महायोद्धा महापंडित लंकेश की शक्ति, पराक्रम, तेज़ और धन का हो। कहा जाता है कि रावण जैसे महायोद्धा महापंडित को युद्ध का परिणाम ज्ञात था फिर भी उसने समर्पण नहीं किया। कहीं न कहीं उसके मन में भी यह कामना जाग उठी थी कि जब मृत्यु निश्चित ही है तो क्यों न वो राम के हाथों हो।
स्वयं का किरदार : रामकथा से यह बात उभर कर सामने आती है कि हर युग में राम और रावण जैसे लोग होते हैं, सीता पर उंगली उठाने वाले, कैकई - मंथरा, शबरी - केवट , विभीषण जैसे लोग मौजूद रहे हैं। 
जीवन रंगमंच है जहां हर मानव को अपना किरदार ईमानदारी से निभाने का अवसर मिला है जिसे बड़ी शिद्दत से निभाने का प्रयास कीजिए। क्योंकि रावण के पुतला-दहन कर देने मात्र से रामराज्य नहीं लाया जा सकता ना ही कुमारी कन्याओं के पूजन मात्र से हमारी मनोवृति सुधर सकती है। 
हम सबके भीतर जो अहंकार, रावणत्व शाश्वत रूप में मौजूद है उसका अंत ही रामत्व को पाना है, रामराज्य की नींव है। यह विजयादशमी सभी के लिए शुभ और कल्याणकारी हो।

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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ५ 

निवेदिता .वाराणसी. 
फोटो पत्रकार. 

आस्था,भक्ति और विश्वास का अभूतपूर्व संगम मां मुंडेश्वरी मंदिर.
 
मां मुंडेश्वरी का मंदिर : भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक मां मुंडेश्वरी का मंदिर कैमूर पर्वत श्रृंखला की पवरा पहाड़ी पर  ६०८  फीट ऊंचाई पर है। पुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ से प्राप्त शिलालेख ३८९ ई०   के बीच का है जो इसकी पुरानता को दर्शाता है। 
ऐतिहासिकता : मुण्डेश्वरी भवानी के मंदिर की नक्काशी और मूर्तियां उतर गुप्तकालीन हैं।  मां का यह मंदिर पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है।  इस मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुण्डेश्वरी की काले पत्थर से बनी भव्य व प्राचीन मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है।  माँ वाराही रूप में विराजमान है, जिनका वाहन महिष है।  मंदिर में प्रवेश के चार द्वार हैं जिसमे एक को बंद कर दिया गया है। 
कहते हैं कि औरंगजेब के शासनकाल में इस मंदिर को तोड़वाने का प्रयास किया गया। मजदूरों को मंदिर तोडऩे के काम में भी लगाया गया। लेकिन इस काम में लगे मजदूरों के साथ अनहोनी होने लगी। तब वे काम छोड़ कर भाग गये। भग्न मूर्तियां इस घटना की गवाही देती हैं।
इस मंदिर का संबंध मार्केणडेय पुराण से जुड़ा है। मंदिर में चंड मुंड के वध से जुड़ी कुछ कथाएं भी मिलती हैं। चंड मुंड, शुंभ निशुंभ के सेनापति थे जिनका वध इसी भूमि पर हुआ था। 
माता ने यहां किया था चंड मुंड का वध :  चंड -मुंड नाम के असुर का वध करने के लिए देवी यहां आई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था। यहीं पर माता ने मुंड का वध किया था। इसलिए यह माता ' मुंडेश्वरी देवी ' के नाम से प्रसिद्ध है। पहाड़ी पर बिखरे हुए कई पत्थर और स्तंभ इस बात की पुष्टि करते हैं। यहां बिखरे शिला खंडों देखकर लगता है जैसे उन पर श्रीयंत्र, कई सिद्ध यंत्र-मंत्र उत्कीर्ण हैं।



भक्ति और विश्वास का अभूतपूर्व संगम मां मुंडेश्वरी मंदिर.

अलग है बलि देने की प्रक्रिया : मंदिर में हिंदू ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी बलि देने आते हैं और आंखों के सामने चमत्कार होते देखते हैं। मां मुंडेश्वरी के मंदिर में कुछ ऐसा होता है जिस पर किसी को भी विश्वास नहीं होता। श्रृद्धालुओं के अनुसार मंदिर में बकरे की बलि की प्रक्रिया बहुत अनूठी और अलग है। यहां बकरे की बलि दी जाती है लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है की उसकी मौत नहीं होती।
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता पशु बलि की सात्विक परंपरा है। श्रद्धालुओं का कहना है की मां मुंडेश्वरी से सच्चे मन से मांगी हर मनोकामना पूरी होती हैं।
शिवलिंग का बदलता है रंग :  मां मुंडेश्वरी के मंदिर में गर्भगृह के अंदर पंचमुखी शिवलिंग है। मान्यता है कि इसका रंग सुबह, दोपहर व शाम को अलग-अलग दिखाई देता है। प्रत्येक सोमवार को मन्दिर के पुजारी के द्वारा भोलेनाथ का रुद्राभिषेक किया जाता है।
ऐसे पहुंचे मुंडेश्वरी मंदिर :  ट्रेन द्वारा :  मुंडेश्वरी मंदिर पहुंचने के लिए  सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड है जो मुगलसराय गया रेलखंड लाइन पर स्थित है।  रेलवे स्टेशन से मंदिर करीब २५  किलोमीटर की दूरी पर है स्थित है माँ मुंडेश्वरी देवी मंदिर
मोहनिया जिला का एकमात्र प्रमुख रेलवे स्टेशन है जिसे हावड़ा - न्यू दिल्ली ग्रैंड कार्ड पर ' भभुआ रोड ' के नाम से जाना जाता है, जो मुगलसराय क्षेत्र में स्थित है। बड़ी संख्या में ट्रेनें शहर से लगभग सभी राज्यों और देश के महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ती हैं।
सड़क के द्वारा  :  ' कैमूर ' पटना से २००  कि.मी. और वाराणसी से १०० कि.मी.दूर है। राष्ट्रीय राजमार्ग ३०  'कैमूर ' को आरा के माध्यम से राजधानी पटना से जोड़ता है। इसके अलावा, शहर में कुछ राज्य राजमार्ग भी हैं। मोहनिया से सड़क मार्ग से आप आसानी से मुंडेश्वरी धाम पहुंच सकते हैं। 
पहले मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत कठिन था। लेकिन अब पहाड़ी के शिखर पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर सीढ़ियां व रेलिंग युक्त सड़क बनाई गई है। सड़क से कार, जीप या बाइक से पहाड़ के ऊपर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। जिला प्रशासन के द्वारा दर्शनार्थियों की सुविधा का ध्यान रखा जाता है। जगह जगह पीने के पानी की व्यवस्था है। 
माता के चढ़ावे के लिए प्रसाद के रुप में विशेष रूप से तंडुल भुने हुए चावल , देशी घी , मेवे आदि से बना लड्डू  सरकारी दुकान पर उपलब्ध है। फूल,माला, प्रसाद आदि धाम में तथा मन्दिर परिसर में भी उपलब्ध है। 
घर बैठे लोग मां मुंडेश्वरी का कर सकते है दर्शन :  जब पूरे देश में कोरोना की वजह से सारे मंदिरों को बंद कर दिया गया। ऐसी स्थिति में अपने घर बैठे भक्त मां मुंडेश्वरी का दर्शन कर सकें। इसके लिए  ट्रस्ट की ओर से ऑनलाइन दर्शन और पूजा के लिए भक्तों को -www.maamundeshwaritrust.org पर विजिट करने की सुविधा उपलब्ध कराई गई।  

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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ६ 
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शक्ति पीठों एवं सिद्ध पीठों की भूमि बिहार.

आलेख : राजेश रंजन वर्मा 

फोटो साभार : नेट से 

हमारा देश भारत तंत्र - मंत्र विद्या साधना और सिद्धि का प्रमुख केंन्द्र रहा है। यहाँ के शक्ति पीठ एवं सिद्ध पीठ श्रद्धालुओं को सदा अपनी ओर आकर्षित करते रहें  हैं। देवी पुराण के अनुसार  शक्तिपीठ भारतीय उपमहाद्वीप में मान्य हैं।  इनमें भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेशतिब्बत, नेपाल एवं श्रीलंका में अवस्थित है। 
शक्ति पीठों की स्थापना के संबंध में प्रसिद्ध पौराणिक कथा : इन शक्ति पीठों की स्थापना के संबंध में प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार ऐसी मान्यता रही है कि एक बार प्रजापति दक्ष ने ' वृहस्पति सक ' नामक यज्ञ का आयोजन किया था।  इस यज्ञ में भगवान शिव को छोड़ कर सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया।  अपने पिता द्वारा आहूत इस यज्ञ में सती भी जाना चाहती थी। शिव की उपेक्षा देखकर वह अत्यंत रुष्ट हुई।  शिव के मना करने के बावजूद भी सती आवेश में आकर मायके  चली गई | वहाँ प्रजापति दक्ष द्वारा शिव के बारे में अपमान जनक शब्द कहे जाने पर उसने यज्ञ के हवन- कुंड में कूद कर अपना प्राण त्याग दिया। इस घटना से क्रोधित होकर भगवान शिव ने सती के शव को लेकर भयंकर ताण्डव नृत्य आरंभ  किया।  सृष्टि को भगवान शिव के कोप से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन-चक्र चलाया।  फलस्वरूप माता सती का शरीर ५१ हिस्सों में कटकर ५१  स्थानों पर जा गिरा। 
ऐसी मान्यता है कि इन ५१  स्थानों पर ही शक्तिपीठ की स्थापना की गई।  कुछ स्थलों पर शक्ति साधना के साथ-साथ तांत्रिक - क्रिया भी संपन्न किये जाने लगे, ये सिद्ध पीठ कहलाये।  
मार्कण्डेय पुराण के १३  वें अध्याय दुर्गा सप्तशती के सूरथ नामक राजा एवं समाधि नामक बनिए की आद्ध - साधना की कथा प्राप्त होती है।  सूरथ नामक राजा अपने शत्रुओं से पराजित होकर एवं समाधि नामक बनिया पुत्रों द्वारा अपने घर से निष्कासित होकर निर्जन वन में भटकते-भटकते गंगा तट के इसी स्थल पर पहुँचतें हैं। यहाँ सती की मिट्टी की मूर्ति बनाकर वर्षों तक कठोर साधना करते हैं। यह मंदिर इसी रूप में  प्रसिद्ध होकर श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। 

बिभिन्न सिद्ध पीठें 

दरभंगा महाराज द्वारा दरभंगा ( बिहार ) में स्थापित रमेश्वरी श्यामा मंदिर इसका एक मिसाल रहा है। बिहार राज्य के सारण जिला अन्तर्गत गंगा तट पर आमी ( दिघवारा ) स्थित माँ अम्बिका भवानी मंदिर भी शक्ति - साधना व सिद्धि का केंद्र एवं प्रजापति दक्ष की यज्ञ भूमि के रूप में मान्य एवं लोक प्रसिद्ध है।  यहाँ मिट्टी की बनी माता सती की अत्यंत प्राचीन प्रतिमा एवं यज्ञ स्थल है  जिसका संबंध पौराणिक कथाओं से जोड़ा गया है।  
पटना का पटनदेवी मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में ख्यात है। यहाँ माता सती की दाहिनी जंघा का पतन हुआ था। यहाँ की आद्य - शक्ति सर्वानंदकारी एवं भैरव व्योमकेश के रूप में प्रसिद्ध हैं। 
मधुबनी का प्रसिद्ध मंदिर : इसी प्रकार मधुबनी जिले के उच्चैठ ( नेपाल की सीमा पर अवस्थित ) में स्थित प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर मिथिला का एक प्रसिद्ध देवी मंदिर है जो पशु - बलि के लिए भी जाना जाता है। 
सहरसा जिले का उग्रतारा मंदिर   शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है।  ऐसी मान्यता है कि यहाँ देवी भगवती का नेत्र गिरा था।  यहाँ की शक्ति उमा एवं भैरव महोदर के नाम से जाने जाते हैं। 
गया स्थित माँ मंगलागौरी  मंदिर भी एक प्रसिद्ध प्राचीन देवी मंदिर हैं।  दुर्गा अष्टमी -नवमी के अवसर पर इन मंदिरों में श्रद्धालुओं की विशेष गहमागहमी रहती है। 

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सम्पादकीय लेख. पृष्ठ १ / ७  
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आलेख : अरुण अनीश . 
झारखण्ड

नवरात्र  : नव रात्रियों का समाहार. 

नवरात्र  की साधना : आश्विन शुक्ल पक्ष  की प्रथम तिथि से ,भारतीय पौराणिक , धार्मिक एवं अध्यात्मिक दृष्टिकोण से शक्ति सृजन, संरक्षण और संवर्धन तथा शक्ति साधना के महा आयोजन के पर्व  ' नवरात्र ' की साधना शुरू होती है। शक्ति सृजन , ऋद्धियों - सिद्धियों की प्राप्ति, स्वयं चैतन्य बोध , अहंकार नाशबुद्धि और विवेक के जागरण, आध्यात्मिक साधना और शिव ( पुरूष ) और शक्ति ( प्रकृति ) के समाहार को जानने और आत्मसात करने की नौ रात्रियों की अर्थात् नव अहोरात्र की सुमंगल यात्रा है। 
शक्ति साधना की अवधारणा : वैसे शक्ति साधना की अवधारणा हमारे यहाँ काफी प्राचीन है और प्राचीन वैश्विक स्तर पर भी अन्य रूपों में संधारित होता रहा है। वैदिक काल से लेकर सैंधव सभ्यता में भी पाशुपत शिव और मातृ शक्ति की आराधना- साधना के प्रमाण मिलते है। 

माँ दुर्गा : सिद्धि प्राप्ति' का साधन : फोटो रश्मि. कोलकात्ता. 

इस नवरात्र में प्रयुक्त ' रात्रि ' शब्द जिससे अंधकार का बोध होता है, हिन्दु आध्यात्मिक दर्शन और चिंतन में ' स्वयं प्रकाश जागरण' ' शिव - शक्ति साधना ' और ' सिद्धि प्राप्ति ' का साधन है।यह अंधकार ( असत् ) से प्रकाश ( सत् ) की और ले जाने वाली साधना की ' नवरात्रहै न कि नौ दिनों तक चलने वाला कोई त्योहार या मेला। 
नौ दिवसीय आत्म - शरीर शुद्धिकरण व्रत : भारतीय मनीषियों ने इस नवरात्र की आध्यात्मिक और मानसिक तथा शारीरिक क्षमताओं को बढाने वाली क्रियाओं की अद्भुत व्याख्याएँ भी दी है। यह ' नौ दिवसीय आत्म - शरीर शुद्धिकरण व्रत ' , नौ दिनों तक विभिन्न अलग -अलग विधि - विधानों और क्रियाओं से संचालित होने वाली साधना है जिससे साधक को अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति होती है। आभार तौर पर इस नवरात्र में व्रतधारी सुबह से शाम तक इसके क्रियाओं की समाप्ति कर देते है परन्तु आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसके साधना का समय ब्रह्म मुहूर्त और रात्रि वेला है। 
यह शुद्ध ध्वनि विज्ञान और ऊर्जा के रूपान्तरण और  समावेशीकरण के सिद्धांत पर आधारित है। दिन के समय  वातावरण में कोलाहल और कई प्रकार के प्रदूषण होते है परन्तु उन दो वेला में  सब कुछ स्थिर और स्वच्छ होता है। हवन कुंड से निकली अग्नि और धुआँ  वातावरण को शुद्ध और परिष्कृत कर देते है। मंत्र और वाणी के उच्चारण से ध्वनित ऊर्जा का प्रसारण,  वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का सृजन करते है और साधक उसकी ऊर्जा से प्राणवान होते हैं । जहाँ सीधे व्यवहारिक जीवन से जुड़ने का सवाल है तो शारीरिक - मानसिक स्वास्थ्य के सशक्तिकरण से जुड़ा नवरात्र : नवरात्र यह हमारे शारीरिक - मानसिक स्वास्थ्य के सशक्तिकरण से जुड़ा हुआ है। यह ऐसे तो मूलतः चार ॠतुओं के संधिकाल से जुड़े होने के कारण चार बार एक वर्ष मे होते हैं पर दो गुप्त और दो प्रत्यक्ष होते है और यही वासंती नवरात्र और शारदीय नवरात्र के रूप में मनाये जाते हैं । 
छः - छः माह के अन्तराल में हमारे आहारीय और अन्य प्रदूषणकारी कारकों के कारण हमारा शरीर व्याधियों से प्रभावित होता रहता है और रोग ग्रस्त शरीर मानसिक व्याधियों को भी जन्म देता है। उन्हीं व्याधियों से बचने के लिए यह नवरात्र साधना है। 
नौ दिन विधि विधान से साधना, दिन चर्या और आहार - विहार की शुद्धि हमारे शरीर के " नवांग आंगिक तंत्र " अर्थात् " Nine Organic System of Human Bidy" को परिष्कृत और पुष्ट कर देती है। शरीर के अंदर जमा विषैले पदार्थ या तो बाहर निकल जाते हैं  या नष्ट हो जाते हैं। यह प्रक्रिया एक वर्ष में दो बार की जा सकती है जो शरीर मन और आत्मा के सहमना सम्बन्ध को बनाये रखने मे सहायक होती है। 
यही तो अध्यात्म धर्म कर्मकांड लौकिक जीवन और आत्म शुद्धिकरण का पर्व है। यही कारण है कि इसे " षष्ठ मासिक शुद्धिकरण नवरात्र साधना व़त " भी कहते हैं । पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि चैत्र प्रतिपदा को ही ब्रह्माण्डीय शक्ति, सृजन करने हेतु आद्द शक्ति के रूप में  अवतरित हुयी थी जिनका आह्वान इन्हीं  चार नवरात्रों में सबके सुख शान्ति आरोग्य समृद्धि और कल्याण के लिए किया जाता है। ऐसा देवी भागवत  दुर्गा सप्तशति और अन्य पुराणों में उल्लेखित है। 
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता : जहाँ तक भारतीय दर्शन और चिंतन तथा धार्मिक , आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर नारी को स्थापित करने का प्रश्न है, कहा गया है कि, "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता" अर्थात् जिस स्थान / घर में नारी को सम्यक् सम्मान मिलता हो या दिया जाता हो ,वहाँ देवता अर्थात् ( सुख शान्ति समृद्धि आरोग्य और विकास) का वास होता है और यही वजह है कि हमनें नारी को मर्यादित स्थान दिया है। हाँ, ये बात अलग है कि इस संस्कार के  समावेशन न होने के कारण समाज मे प्रदूषण है जो आए दिन लज्जाजनक और दुखद घटनाओं को सुनने के लिए बाध्य होते है। 
संस्कृति के उन उच्चतम मूल्यों की स्थापना : 
नवरात्र वास्तव मे भारतीय सभ्यता और संस्कृति के उन उच्चतम मूल्यों की स्थापना करता है जो अन्यत्र दुर्लभ है। इसे आधुनिक सन्दर्भ और प्रसंग में ज्यादा प्रभावकारी बनाने की जरूरत है। आज घरेलू हिंसा और अमानवीय अत्याचार से हमारा देश अपेक्षाकृत ग्रसित है और नवरात्र का आयोजन इसी देश में व्यापक पैमाने पर होता है। आज का आधुनिक संसार इसे हिन्दु धर्म और सामाजिक परम्पराओं से भले जोड़कर देखे, पर एक समय था जब पुरी दुनियाँ में किसी न किसी रूप में सारे प्राचीन समाज ने ज्ञान की ; सौन्दर्य की, धन- लक्ष्मी की , युद्ध की और सृजन की देवी के रूप मे शक्ति अर्थात् सृजनकारी प्रकृति ( नारी शक्ति ) की पूजा की है जो आज भी साहित्यों मे द्रष्टव्य है। समझने योग्य हैं।  अनुकरणीय है। 
विजयादशमी या दशहरा : यह हमारे यहाँ " दशहरा " से भी प्रसिद्ध है और आमजनों की भाषा में यह विजयादशमी या दशहरा ही है कि नवरात्र का जब दशमी तिथि के साथ समाहार होता है तब यह विजयादशमी या दशहरा कहलाता है और इस दशहरे की पृष्ठभूमि में अनेकानेक कथाएँ हैं । यह सिर्फ त्योहार नहीं धर्म और दर्शन, सामाजिक परम्पराओं, कर्मकांड, अध्यात्म और विज्ञान का मणिकांचन योग से सृजित साधना पर्व है और दशहरा त्योहार है। तो आइए, विश्व मंगलकामना के लिए शक्ति का आह्वान करें और नारी की सृजनात्मकता शक्ति का सम्मान करें ।
 

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सहयोग.

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फोटो दीर्घा. पृष्ठ ३ .नवरात्रि.आज कल. 
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संपादन. 
 
 
डॉ.भावना. 

Shribhumi Lake Town,Kolkotta Pandal View : photo Rashmi.

New Jalpaiguri Pooja Pandal : photo Palak Sinha.

Kumartoli Park Kolkotta : photo Rashmi.
Mahisaurmardani in Pandal : New Jalpaiguri : Photo Palak Sinha.
Dwarika Kali Bari Nai Delhi Pooja Pandal : photo Arshiya Sinha.

Shimla Kali Badi Durga Puja : photo Anubhuti. Shimla.
Maa Durga Pooja Pandal Pulpar Biharsharif : photo Dr.Sunita.

Devotees visiting Durga Pooja Pandal : photo Dr. Sunita. Nalanda
Mohiddinagar Biharsharif inside  Durga Pooja Pandal : photo Dr. Sunita. Nalanda.

Sec 6. Dwarika Nai Delhi Pooja Pandal : photo Arshiya Sinha.
Sec 4. Dwarika Nai Delhi Pooja Pandal : photo Arshiya Sinha.
 a beautiful Durga Pooja Pandal at Ranchi : photo Ashok Karan.
an image  of Goddess Durga Hajipoor: : Photo Nishi Sinha.

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फोटो दीर्घा. पृष्ठ ४.नवरात्रि २०२१ बीते दिनों की
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संपादन.


रंजीता. बीरगंज. नेपाल.  

Burj Khalifa Kolkotta : photo Subhojeet Ghoshal.

an artistic image of Goddess Durga : photo Sudipto Ghosh
a Decorative pandal at Ranchi 2021 : photo Ashok Karan.
Maa ka Pandal at NJP W.B. : photo Palak Sinha.
Naina Devi , Nainital : Navrat Utsav : photo Dr. Naveen Joshi.
Maa ki Murti : Phoolbagan Kolkotta : photo Kamlendu
Dhanwad Pooja Pandal : photo Advija.
Maa ka Darshan, Dehradoon : photo Ajay Swaroop.
 Biharsharif, Nalanda : Navratri Celebration 2021. photo Vidisha.
Maa Rani ka Darshan ,Patnacity : Photo Manish.

सहयोग. 

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दीर्घा. पृष्ठ ५ .नवरात्रि के भजन.यूट्यूब लिंक्स   
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संपादन.


तरुण सिंह सोलंकी 
जोधपुर
नवरात्रि के भजन. यूट्यूब लिंक्स  १.
प्यारी लागे ओ खिवज माता रि चुनरी
गायक : मोइनुद्दीन मनचला , तरुण सिंह सोलंकी.   
नीचे दिए गए लिंक को दबाएं 


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पृष्ठ ६. आपने कहा   
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संपादन.
 
स्मिता.
न्यूज़ एंकर 
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गांधी होना आसान नहीं होता. 

 
किसी की जान ले लेना,
 किसी समस्या का समाधान नहीं होता।
 किसी को  मांरने के पहले ,
अपनी आत्मा को मारना पड़ता है ।
जो खुद विचारों की मौत मरा हो,
 किसी और को क्या दे पाता है ?
लड़नी होती है जंग विचारों की,
 सामने से हो रहे वारों की ,
और यह सब कुछ जानना,
 इतना आसान नहीं होता।
 गांधी बनना आसान नहीं होता  ।। १ 
हर सिक्के के पहलू दो होते हैं ,
किसी एक को देखकर,
 पूरी कहानी का अंदाजा लगाना,
 बुद्धिमानों का काम नहीं होता ,
क्या खोया क्या पाया हमने ,
वक्त  सब सामने लाता जाता है ,
कर गुजरने के बाद जब होश आता है,
 तब क्या खोया हमने,
 इंसान समझ पाता है।
 सच को पहचानना आसान नहीं होता ।
गांधी बनना आसान नहीं होता  ।। २ 
उम्मीदों की कश्ती ,
जब डूब रही होती है।
 इंसान खुद में ही डूबता-उतराता होता है ,
लड़ रहा होता है,
 अपने  विचारों की लड़ाई,
 सामने वाले को फिर,
 वह कुछ समझा नहीं पाता है। 
विचारों की बोई फसल ,
जब पक कर तैयार हो जाती है,
 पता चलता है तब उसको,
 फसल में नई बीज के भी दानें हैं, 
सोचता है इंसान तब शिद्दत से,
 बोया था मैंने  तो बीज गेहूं का,
चना फिर कैसे उग आया है?
प्रकृति की तरह इंसान का भी,
मस्तिष्क बहुत ही उर्वर है,
विचारों की खेती में 
नित नए फूल खिलते हैं,
पर उन्हीं फूलों के बीच,
कब शूल पनप आता है?
समझ पाता है इंसान जब तक,
तूफ़ान आ के लौट भी जाता है।
फैसला कर पाना आसान नहीं होता,
गांधी बनना आसान नहीं होता ।।३ 

नीलम पांडेय.
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पृष्ठ ७ कला दीर्घा .   
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संपादन 


मंजीत कौर.
नई दिल्ली.

माँ दुर्गा की कला कृति : कृति : दर्पण मंडल.कोलकोता 

माँ शक्ति की एक कृति  : मंजीत कौर .नई दिल्ली 

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पृष्ठ ८.संस्मरण. नवरात्रि संस्मरण
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डॉ. सुनीता सिन्हा 
नवरात्रि संस्मरण : १  नालंदा की मधुर यादें.  


नालंदा की मधुर यादें. बिहार शरीफ की नवरात्रि की यादें जैसे मेरी जिंदगी की अनमोल विरासत हैं जो मेरी यादों के पिटारें में वर्षों से बंद है। जब कभी भी मैं दशहरा के संदर्भ में यादों के सुनहरे पन्नें उलटती हूं तो मैं बीते दिनों की तरफ अनायास ही स्वतः खींचा चला जाती  हूं। नालंदा जिला मुख्यालय  बिहार शरीफ मेरे जीने का शहर हैं जिसे मैंने १९९६  से जीती आ रहीं हूँ । लेकिन तब से अब तक़ मूर्ति पंडाल देखने की
परंपरा जारी ही हैं। उनदिनों भी पुल पर ,सत्तों बाबू की सुनार गली ,तथा भैंसासुर , मुरारपुर अड्डा की मूर्ति व पंडाल सजावट देखने योग्य होती थी। याद है १९९८ के पहले विजया दशमी की अगली रात मूर्ति विसर्जन के लिए सभी मूर्तियाँ पुल पर इकट्ठी हुआ करती थी। और हम रात बजे वहां विसर्जन देखने जाते थे।

नवरात्रि का त्यौहार की मधुर यादें : कोलाज विदिशा 

मुझे यहां की  सभी चीजें जैसे स्मृत  हैं होली , दिवाली , दशहरा ,छठ आदि सभी चीजें। 
नवरात्र की सप्तमी के दिन : शाम होने को थी। रविवार का दिन था। माँ का दरबार दर्शन के लिए खुल चुका था।  माता रानी के पट खुलते ही नवनिर्मित पंडालों और मंदिरों में मां भगवती और उनके रूप के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं, भक़्तजनों  की अनवरत भीड़ सड़कों गलियों में उमड़ पड़ी। समय के साथ जैसे जैसे पट अनावृत होता  गया , लोग माता की झलक पाने के लिए पंडाल के चल पड़े। इस साल  कोरोना वायरस  का संकट काफ़ी हद तक़ ख़त्म हो चुका था।  लोग भय मुक्त थे। फ़िर प्रशासनिक अनुमति भी मिली हुई थी। लोग पूरे उत्साह से पूजा की रीतिओं में शिरक़त कर रहें थे। कुछेक  जगह पर ही पंडाल का अति मनभावन रूप दिया गया था। लेकिन कहीं कहीं  प्रतिमा काफी भव्य बनाया गयी  है ,दिखता हैं कि पूजा पंडालों के निर्माण में काफ़ी ख़र्च किया गया हैं। माता का एक से एक बढ़कर भव्य रुप देखने को मिल रहा हैं। 
हम अपने शहर के विशेष चर्चित अम्बेर के मोउद्दी नगर की तरफ़ बढ़ रहें थे। सुन रखा था माँ चंद्रलोक में अवतरित हो रहीं हैं। करीबन रात हो ही चली थी। लाइट्स के इफेक्ट्स में माँ की मूर्ति को देखना बहुत सुखद होगा ऐसा प्रतीत हो रहा था।

गतांक से आगे : १.
नवरात्रि संस्मरण : १  नालंदा की मधुर यादें.  
थीम वाले पंडाल और प्रतिमा 

थीम वाले पंडाल और प्रतिमा ,मोहद्दी नगर : बिहारशरीफ़ की सजावट : फोटो डॉ.सुनीता 

थीम वाले पंडाल और प्रतिमा ,मोहद्दी नगर : शाम होते ही दुर्गा पूजा के सभी रंग दिखने लगे थे । शहर नवराते की  भक्ति रस में डूब गया था । सब के कदम उस ओर बढ़ रहें थे जिस ओर मैं जा रही थी। आम सभी मूर्तियों से हटकर थीम वाले पंडाल और प्रतिमा के लिए बिहारशरीफ़ ही नहीं पूरे पूर्वोत्तर भारत में चर्चा थी। चर्चित शहर के अंबेर मोहल्ले स्थित मोहद्दी नगर में इस बार भी काफी हटकर पंडाल एवं प्रतिमा तैयार की गई थी। 
कुछ वर्षों से कोरोना की बजह से  पंडाल निर्माण नहीं किया गया था, लेकिन इस वर्ष यहाँ काफी आकर्षक पंडाल तैयार किया गया था । पूछने पर जानकारी मिली की  इस बार कोलकाता से आई १० कारीगरों की टोली द्वारा पंडाल तथा मूर्ति का प्रारूप तैयार किया था  तथा पंडाल एवं प्रतिमा निर्माण पर लगभग आठ लाख तक का रकम  खर्च किए गए थे । पंडाल देखने के बाद आपको यह निश्चित ही एहसास होगा कि कितनी बारीकी से काम किया गया है। 
पंडाल  का मुख्य द्वार : आप जैसे ही मुख्य द्वार पहुंचेंगे आपको प्रारम्भ से ही आपको पंडाल की कलाकृति दिखनी शुरू हो जाएगी अंदर जाने पर एक अलग ही अनुभूति होगी पूरा काम थर्मोकोल, वाटर पेपर ,फोम  आदि  से तैयार किया गया था। 
बच्चों की चाहत में काल्पनिक परी लोक की बहुत ही मनभावन ,आकर्षक एवं भव्य प्रारूप तैयार किया गया था। सपनों को जीवंत करने की एक सार्थक कोशिश थी। देखने मात्र से ही हम लोग परीलोक में विचरण करने लगे थे।  पंडाल के अंदर ही चंद्रलोक में दुष्ट महिषासुर का वध दिखाया गया था। 
आतंरिक साज सज्जा : भीतर प्रवेश करते ही माँ के साथ अन्य शक्तियों के दर्शन होते हैं। चंद्रलोक का अद्भुत अप्रतिम दृश्य था। चंद्रलोक में मां के पास सारी शक्तियां पांडाल के साथ - साथ प्रतिमा को काफी आकर्षक बनाया गया था । यही  चंद्रलोक में मां दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया गया था । अर्ध चंद्रमा को दिखाया गया था जहां मां दुर्गा महिषासुर का वध कर रही थी। और उनकी सारी शक्तियां आसपास ही विराजमान थी।  

पंडाल  का मुख्य द्वार : आतंरिक साज सज्जा : फोटो डॉ.सुनीता 

वहां पहुँच कर मैं भी स्वप्नवत हो गयी थी । मानसिक पीड़ा,क्लेश  को जैसे माँ ने हर लिया था। लगा यही बैठी रहूं। आज भीड़ ज्यादा नहीं थी। कल और परसों तिल रखने मात्र की भी जग़ह नहीं शेष रहेंगी। प्रतीत हुआ कि सप्तमी की शाम ही  हजारों चिड़ियों की चहचहाहट के मध्य  परीलोक का दरवाजा खोल दिया गया था और अष्टमी को श्रद्धालु मां की गोद भराई कर सकेंगे
ढ़ेर सारे पक्षियों के होने का एहसास होता हैं। इसके लिए बिल्कुल असली नकली पक्षियों को निर्मित कर  आसमान में दिखलाया गया था।  इसके अलावा दर्शकों को साउंड इफेक्ट से परी लोक की अनुभूति हो रही थी। शोर बिलकुल नहीं था जैसा कि दूसरे पूजा पंडालों में लॉउडस्पीकर के जरिए शोर प्रदूषण पैदा किया जाता है ।  पांडाल के अंदर साउंड इफेक्ट के माध्यम से करीब १५०  पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी।  लोगों को बिल्कुल अद्भुत नजारा देखने को मिल रहा था। हम सभी वशीभूत हो गए थे। 

भैंसासुर का काली पंडाल : फोटो डॉ.सुनीता 

भैंसासुर का काली पंडाल : मेरी याद में प्रारम्भ से ही यहाँ माँ काली की प्रतिमा बैठ रही थी जो इस शहर और इस पंडाल की विशेषता थी। और यहाँ पंडाल की सजावट पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। काली का रौद्र रूप देख कर शक्ति के आक्रोश को समझा जा सकता है। 
थीम वाले पंडाल और प्रतिमा : में रामचंदरपुर की शिव की जटा वाली वाली प्रतिमा भी खूब चर्चित हुई। 
शिव की जटाओं में गंगा को अवतरित होने के साथ साथ अन्य देवी शक्तियों का दानवों का संघर्ष दिखलाया गया है। माँ महिसासुर का वध कर रही है। हरा ,ब्लू ,बैगनी लाल बदलते लाइट्स के शेड्स में प्रतिमा और भी खूबसूरत जान पड़ती हैं। पंडाल देखने लायक है। 

शिव की जटा से अवतरित गंगा और अन्य शक्तियां : फोटो डॉ. सुनीता 

बिहारशरीफ नालंदा के अन्य चार श्रेष्ठ पूजा पंडाल : पूरे शहर की परिक्रमा करने के बाद प्रतीत हुआ स्थानीय बिहारशरीफ़ शहर के मोहल्ला पुल पर , अनुकृति अक्षर धाम ,बड़ी पहाड़ी ,आशा नगर तथा सहोखर के पंडाल की साज सज्जा देखने लायक थी। रंगों और लाइट्स का ख़ूबसूरत समायोजन किया गया था,जिसे हमें देखना सुखद लग रहा था। यह एक विशेष आकर्षण था कि पंडालों की शोभा पर भी अब लोग ध्यान देने लगे थे।

बिहारशरीफ नालंदा के अन्य चार श्रेष्ठ पूजा पंडाल 
 
बिहारशरीफ नालंदा के चार श्रेष्ठ पूजा पंडाल : फोटो डॉ.सुनीता. 

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पृष्ठ .९. व्यंग्य चित्र  : नवरात्रि संस्मरण
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पृष्ठ ११.सीपियाँ :
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संपादन 
कंचन पंत.नैनीताल  

आत्मशक्ति. 



आप हो सकती, 
मेरे जीवन की आदि शक्ति, 
फैले अवसाद की भ्रान्ति में, 
 इच्छित  मेरे मन की शांति,
या मेरे जीवन दर्शन में, 
लिखी हुई दो चार पाँति, 
सम्यक साथ का,
सम्यक विकास का, 
सम्यक आचरण का, 
सम्यक दर्शन का,   

डॉ. मधुप 
©️®️
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 साख.

फोटो : साभार 

पेड़ के पत्तें जैसी 
 अपनीतुम्हारी, सब की साख हैं 
लड़ लो, 
झगड़ लो, 
अपनों से, 
अकेलेपन  में, 
अपनापन में, 
प्यार से,
मर्यादा से, 
लेकिन उस शाख से ,
कभी अलग
होने की भी मत सोचो,  
क्योंकि उन टूटे पत्तों की 
कोई साख ( अस्तित्व  ) ही नहीं होती हैं , 
जो अपनी शाख से ही  टूट कर 
  जमीं पर गिर कर
बेजान पड़े , 
अलग थलग हो जाते हैं.
 

अगर कभी जिंदगी समझ में न आए ना !
तो रहने देना ,
कोई कहे अगर पागल तुम्हें ,
तो कहने देना ,

फ़ोटो : साभार 

जिस ज़िद से कभी ख़ुद के दर्द को समझ लेते हो ना, 
कभी उस ज़िद से ही  दूसरों का  दर्द भी समझते  रहना, 
 अगर  जिंदगी कभी समझ में न आए ना !
तो रहने देना ....,

इंस्टा ग्राम से साभार 

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पृष्ठ १२ . मंजूषा : दिल से तुमने कहा.  
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संपादन 
वनिता.

Comments

  1. Incredible work done🙏🏻 hatts off to you... Keep updating us by the help of ur blogs... It's awesome to read ur posts every morning and evening 😊😊

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  2. It is really appreciable blog.
    These types of blog helps us to remind our rich culture and heritage 🙏

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  3. It's really amazing sir.
    It is one of the best blogs I have ever read.
    -Hursh

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  4. जीवन यात्रा के विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुए, प्रिय के साथ बिताए स्मृतियों को समेटे हर मानव की मंजिल मां के स्नेहिल गोद में चिर विश्राम ही है आज भी....👍🙏

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  5. It is a nice blog magazine page.
    Thanks to the editorial team that do a lot for this magazine.

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  6. A very good ,informative,spiritual and sensitive theme article over Nainital Pashandevi travelogue based on love and passion
    Thanks 😊 a lot Dr.Madhup

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  7. Nice photo's of Godess Maan Durga & wonderful Sweet memories of Nainital , good poetics & Other things.

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  8. वाह, अपनी अनुभूतियों को अपनी लेखनी द्वारा हमें भी एक कोमल अहसास कराया आपने। प्रेम और भक्ति की दो सुंदर भावनायों से नहला दिया आपने।आपने हमारे उन सुप्त चेतना को सिंचित कर दिया।

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  9. बहुत बढ़िया लेखन। मन खुश हो गया ।

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  10. मधुप जी आपकी कविता बहुत अच्छी लगी ।

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