ये पर्वतों के दायरें, नैनीताल.

 In Association with.
A & M Media.
Pratham Media.
कृण्वन्तो विश्वमार्यम. 
©️®️ M.S.Media.
Blog Address : msmedia4you.blogspot.com
Theme address : https://msmedia4you.blogspot.com/2020/09/blog-post.html
--------------------------------------
email : addresses.
email :  prathammedia2016@gmail.com
email :  m.s.media.presentation@gmail.com
email : anmmedia@gmail.com
----------------------------
e - feature theme blog magazine page, around our Social Cultural tourism.
under the aegis of EDRF.New Delhi  
----------------------------
Ye Parvaton Ke Dayrein. 
A Complete Cultural  Social Account over Nainital Travel, Culture & Society.
----------------------------------
Volume 1.Section.A. Page.1.Cover Page.
---------------------------------
१९९८ नैनीताल की यात्रा और मेरी यादें : फोटो भरत 
--------------
Credit. Page. 
------------
 

Custodian.
Chiranjeev Nath Sinha. A.D.S.P Lucknow.
Captain Ajay Swaroop ( Retd. Indian Navy). Dehradoon.

---------------------------------
Section.B.Page.2. About the Page.
----------------------------------

Editors.
in Hindi.
Dr. Shailendra Singh. Raipur.
Neelam Pandey. Varanasi. 
Rita Rani. Jamshedpur.
Dr. Ranjana. Nalanda.
Dr. Prashant. Health Officer. Gujarat.
Anupam Chauhan. Lucknow.


Ravi Shankar Sharma. Haldwani. Nainital
Dr.Naveen Joshi. Nainital
Dr. Roopkala Prasad. Prof. Department of English.
Dr. R.K. Dubey.

------------------------


Guest Editor.
Mansi Pant. 
Kanchan Pant.
Nainital.
------------------------
Photo Editor.

Ashok Karan. Ex. Photo Editor ( Public Agenda )
Ex. HT Staff Photographer.
------------------------
ये पर्वतों के दायरें, नैनीताल.
यात्रा वृतांत . डॉ.मधुप रमण .


ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक. अंक १.

जितनी खुली बंद आंखों से मैंने नैनीताल को समझा है,देखा है ,महसूस किया है शायद इतनी बारीकियां, नजदीकियां,और  ऐसे ताल्लुकात यहां के रहने वाले भी इतना नहीं रखते होंगे। वाकई नैनीताल एक दिलकश सैरग़ाह हैं जिससे हमारा जन्मों का नाता है। 
मेरे जीने का शहर है नैनीताल. यह सही है कि मैं उत्तराखंड में जन्मा तो नहीं हूं मगर न जाने क्यों लगता है जैसे मेरा पूर्व जन्म का इस शहर से नाता रहा है। नैनीताल से असीम लगाव होने की बजह से मैं कभी कभी कल्पना शील हो जाता हूँ कि शायद सौ बार  जन्म लेने के क्रम में एक जन्म  मैंने इन कुमायूं की पहाड़ियों में भी लिया होगा। हिन्दू रीति रिवाजों ,धर्म आस्थां  के अनुसार हमें चौरासी लाख योनियों  से गुजरना होता हैं न। तब जाकर मनुष्य योनि हमें मिलती हैं। इस विश्वास के साथ ही तो हम पुनर्जन्म में भरोसा रखते हैं न । ऐसा प्रतीत होता है मेरी अंतरात्मा जैसे नैनीताल की सुरम्य पहाड़ियों में ही रचती बसती है। परदेशी ही सही,लेकिन आज मैं यायावरी के दिनों में नैनीताल प्रवास के दरमियाँ उन दिनों के यादगार क्षणों  के पिटारें यक ब यक ही खुल जाते हैं,और उनसे निकली अनमोल यादों की हिस्सेदारी में आपकी भागीदारी सुनिश्चित करता हूं  जिसमें इतिहास पर्यटन,सभ्यता ,संस्कृति सम्यक अत्यंत उपयोगी  व रोचक जानकारियां  छिपी होती है  जो कभी आपको मुफ़ीद भी लगती है । ऐसी उम्मीद करता हूँ।


१९९८ नैनीताल की यात्रा और मेरी यादें : फोटो भरत 


शहर में फैली दूर तलक पहाड़ी से जैसे कोई  सुरीली आवाज अक्सर गूंजती रहती हैं,और मुझे  बुलाती रहती हैं ....आज रे परदेशी। परदेशी ही सही, लेकिन आज मैं यायावरी के दिनों में नैनीताल प्रवास के दरमियाँ उन यादगार क्षणों  के पिटारें को खोलूंगा और उनसे निकली अनमोल यादों की हिस्सेदारी में आपकी भागीदारी सुनिश्चित करूँगा जिसमें इतिहास पर्यटन, सभ्यता ,संस्कृति सम्यक अत्यंत उपयोगी  व रोचक जानकारियां  छिपी होंगी जो कभी आपको मुफ़ीद लगे। ऐसी उम्मीद करता हूँ। 
न जाने क्यूँ  वर्ष १९६३ साल के ठीक करीब बारह तेरह साल बाद  से ही नैनीताल की अनदेखी, धुंधली यादें तस्वीरें मेरी जेहन में आने लगी थी। बंद आंखों से ही तसव्वुर में मैं  नैनीताल को देखने लगा था। और जानने की तनिक कोशिश करने लगा था कि इसका इतिहास क्या रहा होगा ? नैनी झील कैसी दिखती होगी , तल्ली ताल कहाँ होगा, मल्लीताल के बाज़ार कैसे होंगे,बजरी वाला मैदान की शक्ल पता नहीं कैसा दिखती  होगी  ...आदि आदि ? और भी बहुत कुछ। 
१९७८ का साल  :  यही कोई सन १९७८ का साल रहा था ना ? साप्ताहिक हिंदुस्तान में हिमांशु जोशी लिखित तुम्हारे लिए धारावाहिक उपन्यास  का प्रकाशन हो रहा था। प्रत्येक सप्ताह बड़ी बेसब्री से उस पत्रिका का इंतजार करता रहता था। 
नैनीताल के परिदृश्य में लिखी मन को छूने वाली यह एक उत्कृष्ट प्रेम कहानी थी जिसे मैं आज तक नहीं भूला पाया । इस  कहानी को बचपन से ही पढ़ते हुए हनुमान गढ़ी ,माल रोड ,नैनीताल बोट हाउस क्लब ,चील चक्कर ,नैनी ताल  का तल्लीताल ,मल्लीताल ,सूखा ताल ,स्नो व्ह्यू पॉइंट,नैना देवी, ठंढी सड़क,गोलू देवता मंदिर,खुरपा ताल ,क्लाउड्स एन्ड ,लैंड्स एन्ड ,भोटिया बाज़ार ,बजरी वाला मैदान,अय्यार पाटा एवं नीम करौली बाबा  को मैं देखता, सुनता, जानता  और पढ़ता आया हूँ। आप भी सुन , देख और स्मृत कर लीजिये। 
अपने एकाकीपन में ही मैदानी इलाक़े में दूर कहीं नालंदा, बिहारशरीफ़ में बैठे मैं कुमायूं की उजली पहाड़ियों के बारें में क्या सोचता रहा ,क्या देखता रहा आपके सामने ही अपनी उस यात्रा वृतांत की सुनहरी यादों के पन्नों को परत दर परत खोलता हूं मैं ।
सन १९९८, २००८ तथा २०१५  में कुल जमा तीन दफ़ा नैनीताल, जिम कार्वेट पार्क, रानीखेत, अल्मोड़ा तथा कौसानी आदि जगहों की यात्रा की ,अपने इस अनोखे सफ़र में मैंने , लोगों के साथ समय व्यतीत किया, उनसे काफ़ी  बातचीत भी की । सभ्यता देखी ,संस्कृति को बड़ी बारीकियों से अनुभूत किया। इस यात्रा के अपूर्व अनुभवों की  पूरी स्मृति है  मेरे अनुभवों के पिटारे में। मेरे साथ यात्रा भ्रमण का पूरा इतिहास बयां है इसमें । कभी साथ न छोड़ने वाले  हमसफ़र के साथ बिताएं गए यादों के न भूलने पल मेरी विरासत हैं , इस यात्रा वृतांत में । पूरी उम्मीद के साथ इस घुमक्कड़ी में आप मेरे साथ बने रहेंगे, यादों के सफ़र की अनोखी शुरुआत करता हूँ। 

-------------------------
ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक. अंक २ .
--------------------------

आंग्ल गुरखा युद्ध : चित्र साभार 

१८१४ का वर्ष था  यह जब ब्रिटिशर्स ने आंग्ल गुरखा युद्ध जीती थी ,सुगौली संधि के जरिए नेपालियों से कुमायूं हिल्स जीत कर अपना कब्जा जमा लिया था।  हम ब्रितानी सरकार के लिए आभार प्रकट करते हैं जिनकी वजह से हमें नैनीताल जैसे खूबसूरत पर्वतीय स्थल हमारे अधिकार के अंतर्गत आए। हालाँकि यह भी सच है कि इंग्लैंड की अपेक्षा उन्हें यहाँ की जलवायुं विषम लगती थी इसलिए गर्मियों में राहत पाने के लिए अपनी पूरी प्रशासनिक व्यवस्था के साथ भारतीय पहाड़ी क्षेत्रों में वे स्थानांतरित हो जाते थे। 
१९११ का वर्ष  :  सर्वप्रथम सन  में जब ब्रिटिश सरकार ने राजधानी कलकत्ता से दिल्ली  बदली थी तब ग्रीष्म कालीन हमारी राजधानी शिमला हुआ करती थी। उस ज़माने में भी सरकारी कार्यालय का पूरा काम काज गर्मियों में शिमला से ही हुआ करता था। कालका मेल की शुरुआत  भी इसी उद्देश्य से की गयी थी कलकत्ता से सरकारी ऑफिसर्स ,बाबू  अपने काम काज के लिए गर्मियों में अक्सर कालका से शिमला जाते थे।  इसलिए ही प्रत्येक राज्यों में उन्होंने अपनी सुविधा के लिए ही ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन राजधानी बना रखी थी। तब से ही कुल्लू मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, लैंड्सडाउन ,देहरादून, कसौली, रांची, पंचमढ़ी, पंचगनी, महाबलेश्वर, श्रीनगर, कोडाईकेनाल, ऊटी, सिक्किम, कलिम्पोंग तथा दार्जलिंग जैसे पसंदीदा पर्वतीय सैरग़ाह अस्तित्व में आये थे ।

नैनीताल की सुबह अपर लोअर मॉल रोड .छाया चित्र डॉ मधुप 


१८४१ नैनीताल की ख़ोज : यह वर्ष था जब ब्रितानी सरकार ने गोरखा युद्ध में की गयी  संधि के उपरांत नेपाल से नैनीताल या कहें गोरखा हिल्स कहें जाने वाले प्रदेश अधिकृत कर यूनाइटेड प्रोविंस में मिला लिया था। इसके बाद ब्रिटिश कैप्टन पी बैरन जो १८४१ ईसवी में नैनीताल की वादियों में आए जिन्होंने नैनीताल की खोज की और वहां सबसे पहली पिल ग्रीम कॉटेज का निर्माण किया गया। इसके बाद निरंतर पर्यटकों की आवाजाही निरंतर लगी रही और नैनीताल नगरी पर्यटकों  की मन पसंदीदा जगहों में से एक बन गयी। हम आपको यह भी बताना चाहते हैं कि ब्रितानी सरकार ने सबसे पहले यूनाइटेड प्रोविंस के लिए राज भवन का निर्माण नैनीताल में ही  किया था जो आज अभी भी ये पर्वतों के दायरें में अवस्थित नैनीताल में वर्तमान हैं। उत्तराखंड की राजधानी ना होते हुए भी हाई कोर्ट जैसे महत्वपूर्ण स्थल को अपने भीतर समाहित किए हुए रहता है। यह ब्रिटिश कालीन यूनाइटेड प्रोविंस की राजधानी की हैसियत रखता था।

-------------------------
ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक. अंक ३.
--------------------------

reading an epistolary Nainital based story being published in 1978 in Hindi Dainik 'Hindustan'

माल रोड पर : सुबह की सैर   मेरा मानना है कभी भी देर सुबह तक सोने वाले पहाड़ी सैरगाहों की बेमिसाल खूबसूरती का लुफ़्त नहीं उठा पाएंगे। अगर पहाड़ी सभ्यता संस्कृति को महसूस करना हो तो आप अलसुबह उठ कर ज़रूर टहलें। शांत पड़ी सडकों पर इक्का दुक्का पहाड़ी लोग मिल जायेंगे। इससे आपको पहाड़ी जन जीवन से भी वास्तां मिल जायेगा। 
नैनी झील  नयन जैसी आकार वाली यह पवित्र सरोवर ही तो शहर की आत्मा है। झील नहीं तो नैनीताल का क्या अस्तित्व रह जाएगा ? इस झील के किनारे चहलक़दमी करते हुए ही तो हमें पहाड़ी संस्कृति का  संकलित समस्त ज्ञान उपलब्ध हो जाता है। ठंढी ठंढी दीर्घ सांसें लें शुद्ध और ताज़ी हवा के झोकें से आप तरोताज़ा हो जाएंगे। हम अक़्सर सुबह शाम तल्ली ताल ,ठंढ़ी सड़क ,नैना देवी मंदिर से होते हुए मल्ली ताल के बजरी मैदान के पास आकर ठहर जाते थे ,ना । सुस्ताने के लिए। 
सुबह झील की सतह पर आकर मछलियां कितनी तादाद में तैरती हुई दिख जाती थी। अनगिनत ।  सबेरे घूमना कितना मुफ़ीद होता है अनु ?


मल्लीताल : नैनी झील के उपरी भाग को ही मल्ली ताल कहते है ना। शहर का मुख्य और व्यस्ततम इलाका है यह । इस भाग में घनी आबादी मिलती है। यहां सुबह से ही चहल पहल शुरू हो जाती है। स्थानीय लोगों के लिए थोक व खुदरा बड़ा बाज़ार भी तो मल्ली ताल में ही है। पास में ही बने नैना मंदिर से बजते भजन ,गुरूद्वारे से होते शबद कीर्तन और  मस्जिद से गूंजती अजान से  गंगा यमुनी तहज़ीब की सहिष्णु संस्कृति दिखनी और मिलनी शुरू हो जाती है। कितनी दफ़ा हमने इन गुरुद्वारे में माथा टेका था , तुम्हें शायद याद होगा। मुझें तो याद नहीं है। बड़ा भरोसे का शहर है यह नैनीताल।
भुटिया बाज़ार  मल्ली ताल स्थित नैना देवी के पास में ही एक छोटा सा नेपाली शरणार्थियों  का बाज़ार है भोटिया ,नेपालियों और तिब्बतियों का शरण स्थल भी । अब छोटे मोटे जरूरत के पहनने के सभी सामान  यहां मिल ही जाते है। जब भी नैनीताल आता यहां एक बार घूम ही लेता हूं। वहां अब भी नेपाली तिब्बती मूल के बच्चें खेलते हुए  मिल जाते है। कुछ पसंद की चीजें शॉल ,स्वेटर ,जैकेट या खिलौने आदि खरीद ही लेता हूँ।  बाज़ार  पहुंच कर न जाने क्यों मुझे तुम याद आ जाती थी ?  हम दूसरी दफ़ा यहीं मिले थे ना शायद तुम तब शॉल या स्वेटर ख़रीदने यहां आयी थी 
आसमानी रंग की शॉल जो तुम पर बहुत खिलती है तुमने वहीं से ख़रीदी थी ना ?  और याद है तुमने मेरे लिए भी तुमने बॉटल ग्रीन कलर की जैकेट पसंद की थी जिसे मैंने अभी तक़ सहेज़ कर रखी हैं। 

नैना देवी मंदिर का परिसर नैनी ताल : छाया चित्र डॉ. मधुप 

नैना देवी का मंदिर : शाम होते ही हम  सैर के लिए निकले,सोचा पहले नैना देवी के नयन का दर्शन कर लेते है । नैना देवी  मंदिर जो झील के किनारें ही अवस्थित हैं उनका आशीर्वाद प्राप्त करना भी नितांत ही  आवश्यक समझा जाता है। हम भी तो माता का आशीर्वाद लेने ही  निकले थे। माँ के सामने मौन रहकर हमने मन ही मन यहीं सौ बार जन्म लेने मरने की दुआएं मांगी थी। आख़िर नैनीताल से इतना लगाव क्यों हैं अनु ?
मैंने जब तुमसे पूछा, ...तुमने क्या माँगा तो ...?
तुमने हंस कर बातें टाल दी थी , क्या करेंगे जानकर....? और थोड़ी दूर ठंढी सड़क पर चलते हुए पास पड़ी पाषाण पर ही ठहर कर  सुस्ताने के लिए बैठ गये थे। इस तरफ़ से माल रोड की तरफ़ देखना कितना अच्छा लगता है ? है ना। यहाँ सदैव चिर शांति फैली मिलती है।     
पिछली दफ़ा जितनी बार भी नैनीताल आया सालों बाद भी तल्ली ताल ,मल्ली ताल ,अय्यार पाटा घूमते हुए तुम्हें ही तलाशता रहा था ,अनु । तुम्हारे लिए, तुम्हारी तलाश में पहाड़ियों में चिर निरंतर से भटकती हुई आत्मा ही बन गया हूं ना मैं ? हैं ना। 
तुम्हें याद हैं ना ,अनु इसी झील के किनारे तुमने मेरी खुरदुरी हाथों को अपनी बर्फ़ जैसी कनकनी देने वाली नर्म हथेली से स्पर्श कर कहा था , ' ....ऐसा करते है नाव किराये पर ले लेते है ...और यहीं से तल्ली ताल चलते है।' 

-------------------------
ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक. अंक ४ .
--------------------------


: था झील का किनारा. नैना देवी से दिखती नैनी झील. १९९८ : छाया चित्र डॉ. मधुप


झील के उस पार,तल्लीताल :ऐसा कह कर तुम अपनी बच्चों वाली ज़िद ले कर बोट में बैठ गयी थी,है ना ? 
क्या करता,मुझे भी तुम्हारा साथ देने के लिए तुम्हारे लिए नाव में बैठना पड़ा था। नाव वाले से तुमने चप्पू भी ले लिए थे या कहें छीन ही लिया था और हम सभी नाव खेते हुए झील के बीचोबीच पहुंच गए थे। पानी से कितना डर लग रहा था। हमदोनों में से कोई भी तैरना नहीं जानता था। सामने ठंढी सड़क पर स्थानीय लोग आ जा रहें थे। बाहर वाले शायद कम ही होंगे। 
गोलू देवता मंदिर की तरफ़ देखते हुए न जाने तुम इतना भावुक क्यों हो गयी थी ..' इस झील में मैं डूब कर मर जाऊं ...और आप मेरी आँखों के सामने हो तो समझूंगी जीना सार्थक हो गया है ... भला  तुम कैसी बहकी बहकी बातें कर रही थी ,अनु । 
भगवान न करें ऐसा हो जाए। गोलू देवता का आशीर्वाद सब के ऊपर हो। सभी लोग सुखी रहें और निरोग भी। पहाड़ी लोगों के आराध्य देव है गोलू देवता। तुम भी तो अतीव विश्वास करती हो ना। अभी आरती का वक़्त हो रहा था। 

तुम्हारे लिए मैं और मेरी तन्हाई.नैनीताल  : १९९८ छाया चित्र मधुप  

ठंढी सड़क ढलती शाम तल्ली ताल  बोट क्लब में नाव किनारे पर लगा कर हम फ़िर से ठंढी सड़क पर टहलने निकल गये थे। शाम होने को थी। ठंढी सड़क पर घूमना जैसी हमदोनों की दिनचर्या बन गयी थी।राह चलते ही तुम मुझे नैनीताल के इतिहास भूगोल के बारें में बतलाती , कितना ज्ञान भरा है तुम्हारे पास ? झील के उस पार का दृश्य बड़ा ही अनुपम होता ,अति मनभावन। 
माल रोड पर बने होटल , रिहायशी मकानों के लाल ,पिले बल्ब जल चुके होते थे। झील की सतह पर कोहरें में डूबती थरथराती लाल ,पिले बल्बों की रोशनी कितनी मनभावन लगती  थी। 
यह जग़ह कितनी शांत और सुरम्य है ? कोई भीड़ भाड़ नहीं। इस दिशा में  फैली नीरवता के मध्य सिर्फ़  पक्षियों की चहचहाटें और पत्तों का डोलना ही सुनाई देता हैं।  
हमदोनों यहीं पर आकर घंटों जीवन के फ़लसफ़ा में कहीं खो जाते थे । प्रकृति , प्रेम, अध्यात्म ,सन्यास और पुनर्जन्म न जाने कितनी बातें ?
तुम अक्सर कहती .....आपको तो साहित्य का प्रोफ़ेसर होना चाहिए था ...आपके अधीन शोध करने में कितना आनंद आएगा , है ना ?
तन्द्रा तो तब टूटती जब रात के नौ बजते। ठंढ़ी कहीं अधिक बढ़ गयी होती और तब तुम यह कहती ,  .....घर नहीं जायेंगे क्या,सर्दी लग जाएगी  ? तब कहीं रात गए हम लौट रहें होते थे यहीं कोई आठ नौ बजे तक । 
मॉल रोड पर तब भी भीड़ रहती थी। 
ठंढी सड़क पर टहलते हुए अक़्सर कई फिल्मों के गाने याद आ जाते।  यहीं पर न जाने कितने फिल्मों और उनके मशहूर गानों की शूटिंग हुई है ना। कुछ तो मेरी जेहन में अबतक़ हैं जैसे ...इन हवाओं में इन फिज़ाओं में ...फ़िल्म गुमराह , दिन है बहार के , फ़िल्म वक़्त , ...पर्वतों के पेड़ों पर ...फिल्म शगुन, ...जिस गली में तेरा घर न हो ..फ़िल्म कटी पतंग ,..तू लाली हैं सवेरे वाली ..फ़िल्म अभी तो जी लें, पहली पहली बार मुहब्बत की है फ़िल्म सिर्फ़ तुम  आदि । 


फिल्म  शगुन १९६४ .ठंडी सड़क नैनीताल  : कमलजीत व् वहीदा रहमान 

-------------------------
ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक. अंक ५  .
--------------------------

तल्ली ताल और पहली मुलाकात : तल्ली ताल आते ही मैं फिर से वापस स्मृतियों के कोहरे में  खो जाता था। सब कुछ जैसे फिल्मों की तरह फ़्लैश बैक होने लगता  था। क्रमशः सब कुछ याद आने लगता। 
साल १९९८ मुझे याद है जब  मैं मुरादाबाद से पहली बार बस पकड़ कर नैनीताल आया था भाई के साथ । बड़ी ज़िद कर दी थी कि अभी रात में ही नैनीताल चलेंगे। भाई ने कहा था इतनी रात गए नैनीताल की सर्दी में जा कर क्या करेंगे ? सबेरे चलते हैं ना। 
मैंने जोर दे कर कहा था , नहीं अभी ही चलेंगे। 
यह कैसा पागलपन था , तब हल्द्वानी ,काठगोदाम ,ज्योलिकोट के रास्ते चलते हुए हम रात्रि एक बजे नैनीताल पहुंच चुके थे। रास्ते में कुछ भी नहीं दिखा था। धुंध ही पसरी मिली थी। किसी भी हाल में रात्रि में पहाड़ी सफ़र सुरक्षित नहीं होते है। जब तल्ली ताल उतरे थे तो बाहर हड्डी कंपाने वाली सर्दी थी। सारे होटल बंद पड़े थे। सुबह तक अब खुले आसमां के नीचे ही शेष क्षण बिताने थे। सामने की पहाड़ी के पीछे मरियल चाँद टंगा हुआ दिख रहा था। शायद अब की चाइना पीक ही थी ना ? 

नैनीताल की पहली सुबह.

गुरखा की अंगीठी  के पास खड़े होकर हम रह रह कर  थोड़ी ऊष्मा ग्रहण कर रहें  थे।  क़रीब काफ़ी इंतजार के बाद धुंधलका हटा था। सबेरे वाली लाली तनिक दिखी थी। तल्ली ताल के पास ही सरकारी बस स्टैंड में  हलचल शुरू हो गयी थी। ड्राइवर मुसाफिरों से दिल्ली चलने की आवाज़ लगा रहा था। 
तभी मैंने तुम्हें  पहली बार देखा था  मल्लीताल से चलते हुए बस स्टैंड की तरफ़ आ रहीं थी। आसमानी सलवार कुरता पहन रखा था, तुमने। कितनी  दिव्य दिख रहीं थी, तुम अनु । यह नाम तो मैंने बाद में ही जाना था ना । शीघ्रता से तुमने दिल्ली जाने वाली बस में प्रवेश कर खिड़की के पास बैठ गयी थी। क्या इत्तिफ़ाक़ था ? मैं दिल्ली से आ रहा था और तुम दिल्ली जा रहीं थी। 
मैं रह रह कर तुम्हारी तरफ़ नजरें चुरा कर देख रहा था। क्या कोई इतना भी दिव्य ख़ूबसूरत हो सकता है ?  एकदम अनजाने थे हमदोनों। हमारी कोई पहले की जान पहचान नहीं थी । लेकिन न जाने क्यों ऐसा लग रहा था तुम्हारे जाने के बाद  यहाँ जैसे कुछ रिक्त रह गया था ? कोई गुम हो गया हो । 
यह अनदेखा मौन आकर्षण ही था जो मुझे तेरी ओर खींच रहा था। 
बस कब की चली गयी थी। थोड़ी देर शून्य में ताक़ते हुए हम भी तल्ली ताल बस स्टैंड से मल्ली ताल आर्य समाज धर्मशाला की तरफ़ बढ़ गए थे ? पैसे कहां थे हमारे पास जो कहीं महंगे होटल में ठहरते। जाते हुए चर्च दिख गया। सब कुछ पुराना याद आ गया। 
याद है इसी  तल्लीताल स्थित हमने  कैथोलिक चर्च में न जाने कितने घंटे बिताये थे। नैनीताल के दो चर्च पुराने चर्च यहीं आस पास ही हैं न ? गज़ब की शांति पसरी हुई मिलती थी वहां जो हमें अच्छा लगता था।  
चाइना पीक : तल्ली ताल में प्रवेश करते ही आपको भी नैनी लेक से सटी चाइना पीक दिखेगी। इस पहाड़ी के ढलानों की दूरी को अपने कदमों से ज़रूर तय कर लीजिये। वहां पहुंच कर इत्मीनान करें और नीचे वादियों का ख़ूबसूरत दृश्यों का नज़ारा लें। यहाँ पर कई अविस्मरणीय ,लोकप्रिय गानें फिल्माएं गए हैं। कहते है  चाइना यहां से दिखता है। 
दूसरे दिन न चाहते हुए भी कदम चाइना पीक  की तरफ़ बढ़ गए थे । कभी हम यहाँ आये थे न ? मुझे आज भी याद है थोड़ी दूर तेज़ से दौड़ते हुए तुम किसी फासले पर किसी पत्थर पर सुस्ताते हुए मिल जाती थी। मेरी सांसे फूलने की बीमारी की बजह से  धीरे धीरे चलने के लिए मैं विवश था। 
याद है अनु उपर पहुँचने के बाद तुमने गाना गाने की भी ज़िद कर दी थी। तब मैंने तुम्हारा दिल रखने के लिए ही सुनील दत्त  माला सिन्हा अभिनीत फ़िल्म ग़ुमराह का गाना ...' इन हवाओं में,, इन फिज़ाओं में ..गुनगुना दिया था। हम बहुत देर तलक साथ रहे थे। उपर से झील में तिरती ढेर सारी लाल पिली ब्लू पट्टी बाली नौकाएं किस तरह ठहरी हुई रुकी लग रहीं थीं। बजरी बाला तिकोना विशाल मैदान भी कितना छोटा होकर सिमट गया था। 
दूर तल्ली ताल में बादल का एक बड़ा सा टुकड़ा  उतर गया था। तब हम उपर से कुछ भी देखने में क़ामयाब नहीं थे। 
वहां से न जाने क्यों ऐसा लग रहा था शहर में फैली दूर तलक पहाड़ी से जैसे कोई  सुरीली आवाज अक्सर गूंजती हुई नीचे उतर रही थी। कुछ और भी सुनी अनसुनी आवाजें तिरती हुए जैसे मुझे  बुलाती रहती हैं ....आज रे परदेशी..। 

बोट हाउस क्लब नैनीताल. मेरे जीने का शहर. १९९८ छाया चित्र डॉ मधुप 


-------------------------
ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक. अंक ६ .
--------------------------


पिलग्रिम कॉटेज 
: चाइना पीक से उतरते समय ही तुमने ज़िद कर दी थी चलिए हम आपको  पिलग्रिम कॉटेज भी दिखला  देते है । 
दो क़दम आगे चलते हुए तुम कह रही थी , ....जानते है ! यह नैनीताल का सबसे पहला व पुराना  कॉटेज है।  आप तो इतिहास में दिलचस्पी रखते हैं ना ? जब १८४१ में अंग्रेज पी बरैन  आए थे तो उन्होंने अपने रहने के लिए यहाँ एक  कॉटेज  बनावाया था। बाद में इसी के चारों ओर आबादी बसने लगी और नैनीताल अस्तित्व में आया।  
मुझे याद आ गयी  मेरे लेखक मित्र नवीन की कही बातें। मैंने पूछा ..अनु ! अभी कोई उसमें स्वतंत्रता सेनानी का परिवार रह रहा है ना ? 
' शायद... ' तुमने  धीरे से हामी भरी । 
नैनीताल क्लब  के रास्तें लौटते समय देखा वहां ढ़ेर सारी गाड़ियां खड़ी थी। यहां अक्सर भीड़ ही रहती है ,शायद किसी अंग्रेजी दा लोगों की पार्टी चल रही थी ,तभी तो  बहुत ही गहमा गहमी थी। सोचता हूं अपने भीतर सवाल भी पूछता हूं क्या सही में अंग्रेज चले गए ? नहीं ना ? हम अभी भी आदतन इंग्लिश ही है। 
नैनीताल क्लब से फिल्म कटी पतंग का वो सुना हुआ गाना ....ये जो मुहब्बत है ये उनका है काम ....याद आ गया  जिसे फ़िल्म के सीन के मुताबिक़ नैनीताल क्लब में फिल्माया गया था और जिसे सिने अभिनेता राजेश खन्ना ने परदे पर बख़ूबी गाया था । सच्चाई क्या है यह तो नवीन दा ही जाने । 
 
                                               पिलग्रिम कॉटेज और नैनीताल क्लब : फ़ोटो डॉ. नवीन जोशी. 


लेकिन इस बात के लिए तो हम अंग्रेजों के आभारी जरूर है कि उन्होंने हमें कई हिल स्टेशन मसूरी , लैंड्सडॉउन ,दार्जलिंग ख़ोज कर दिए जहां अंग्रेजी सभ्यता ,रहन सहन के तौर तरीक़े, भवन निर्माण शैली के ख़ूबसूरत नमूने दिखने को मिलते हैं। 
हाई कोर्ट  की भवन निर्माण शैली भी कितनी खूबसूरत है। दूर से ही आती जाती दिख जाती है। कभी कभी हाई कोर्ट के पार्श्व के दृश्य देखने मात्र से ऐसा लगने लगता है जैसे विलियम वर्ड्सवर्थ के स्कॉटलैंड में आ गए हैं। सोचता हूँ रिटायरमेंट के बाद यहीं वक़ालत करूंगा। आख़िर  नवीन दा कब काम आएंगे ? कहीं न कहीं किसी सीनियर वक़ील के अधीन रखवा देंगे ही। फिर हमारे मल्ली ताल के परम स्नेही भाई तेजपाल सिंह जी की भी कम जान पहचान थोड़ी ही है ? ले  दे  के तुम्हारे और उन दोनों के सिवा मेरा इस नैनीताल में है ही कौन ? 


                                                                                नैनीताल हाई कोर्ट का परिसर और स्कॉटलैंड की कल्पना.

लौटने के बाद हम झील के पास ही विश्रामित होने के लिए थोड़े देर के लिए रुक गए थे। पास के बजरी वाले मैदान में कोई आर्मी वाले का म्यूजिक प्रोग्राम चल रहा था। हमने  शाम के वक़्त झील के पास ही २० रुपये की चिनियाबादाम ख़रीदी थी। मॉल रोड पर काफी भीड़ थी जैसे जन सैलाब उतर आया था। इसलिए थोड़ी शांति की तलाश में झील से सटी बोट हाउस क्लब के अहाते में बैठ कर हम मूंगफली खाने लगे थे। लैंप पोस्ट के नीचे  धीरे धीरे हल्का हल्का धुंधलका उतरता दिख रहा था। रात गहरा रही थी। 




-------------------------
ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक. अंक ७.
--------------------------

उस दिन दोपहर को न जाने क्यों मन उचाट सा लग रहा था। घर की याद सता रही थी। शोध तथा क़िताब 

लिखने के सन्दर्भ में नैनीताल में रहते हुए अरसा हो गया था। सोचता हूँ अनु ,अगर तुम न होती तो क्या हम यहाँ इतने दिनों तक़ रह पाते, क़िताब लिख पाते क्या ? नहीं न ? किताबों को लिखने मात्र के लिए लगन,प्रेरणा, विषय वस्तु और अच्छे संसाधन चाहिए। तुम तो मेरे लिए फिलॉस्फर,गाइड, लेखक सभी कुछ रही थी। कभी भी घर की कमी महसूस नहीं होने दी। मैं आभारी हूँ प्रोफ़ेसर तेजपाल का और नवीन दा का जिन्होंने मेरी यात्रा वृतांत क़िताब लिखने में मेरी यथा संभव मदद की। शोध तो अभी जारी ही है। लिखने का सिलसिला भी। 

बोट हाउस क्लब नैनीताल 

नैनीताल बोट हाउस क्लब : जितनी  देर तक तुम साथ रहती खालीपन नहीं लगता था। तुम्हारे जाने के बाद फिर वही तन्हाई। सुबह सबेरे आर्य समाज मंदिर से नीचे उतर कर बोट हाउस क्लब की सीढ़ियों पर बैठे रहने की जैसी आदत हो गयी थी। अनमने ढंग से न जाने क्यों नैना देवी की तरफ़ सूनेपन में निहार रहा था। 
बोट हाउस अभी नहीं खुला था। शायद ९ या १०  बजे के आस पास खुलता है। सबेरे कुछ ही लोग वहां जमा थे मुझे मिला के चार पांच । यह इमारत हमें ब्रितानी काल की याद दिला देती है। इसे यहां लोग हेरिटेज हाउस के नाम से भी जानते  है। सच में हमारे भारत के लिए यह एक अनमोल विरासत ही है। किसी ब्रिटिश ने इस बोट हाउस क्लब की स्थापना की थी , जिससे इस नैनी झील बोटिंग करने का लुफ़्त उठाया जा सके। यह १९१० में बना था ,ना तुमने तो मुझे यही बतलाया था ।  
कितनी आश्चर्य की बात है जिस क्लब की चारदीवारी के मध्य  हम बैठे थे यह भारत का दूसरा प्राचीन क्लब था। शायद सम्पूर्ण विश्व में २०८४ मीटर की सबसे ऊंचाई  पर स्थित पहला नौकायन क्लब। भारत में पहला तो है ही। तुमने कहा था यहाँ के मेम्बर्स को इंडोर गेम्स , किताबें पढ़ने ,पाल वाली नौकाएं ( याट )  चलाने  की सुविधाएं हासिल हैं। पाल वाली नौकाएं  चलाने के लिए भी दीर्घ अनुभव भी चाहिए। 

बोट हाउस क्लब ,नैनीताल .साल १९१० 

याद है एक बार झील में बोटिंग करते समय तुमने पाल वाली नौका की डोर तुमने ज़िद करके थाम ली थी 
तेज़ हवा के विपरीत बमुश्किल नाव उलटते उलटते बची थी। हम डूब ही गए होते। यह तो पाषाण देवी की कृपा ही थी कि हम बच गए थे। 
ब्रितानी काल की सबसे राजसी क्लब रही है यह। सामने से नैना देवी का मंदिर एकदम साफ़ ही दिखता है। सच में मंदिर में बजते घंटे की आवाज़ साफ़ ही तो सुनाई दे रही थी।   
नैना देवी  की तरफ़ देखते हुए न जाने क्यों फ़िल्म कटी  पतंग का वो गाना भी  .... जिस गली में तेरा न घर न हो बालमा ....याद आ रहा था । नैनीताल के प्रति आसक्ति इसी गाने से ना हुई थी ? नैनीताल कितना खूबसूरत दिखता है इस गाने में ? 

नैना देवी मंदिर और फ़िल्म कटी पतंग का दृश्य .

इसी नैना देवी मंदिर से उतरते हुए कमल या कहें राजेश खन्ना और माधवी अर्थात आशा पारेख एक नाव से तल्लीताल की तरफ़ जाते हुए दिखते है ,न । मुकेश के गाये इस गाने में गज़ब की कशिश है। याद है तब से ही ना माधवी नाम भी अच्छा लगने लगा था। इस गाने के देखने के बाद से ही तो नैनीताल से न जाने क्यों जैसे असीम लगाव  हो गया था । दृश्य में यही मंदिर से पूजा करते  हुए राजेश खन्ना और आशा पारेख तल्लीताल की तरफ़ बोट से जा रहें होते हैं। 
नवीन दा बतला रहे थे कटी पतंग का वो  गाना भी ....ये जो मुहब्बत है ये उनका है काम नैनीताल बोट हाउस क्लब में ही शूट हुआ था। 

जिस गली में तेरा घर न हो बालमा : गाना कटी पतंग। नैनी झील 

-------------------------
ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक. अंक ८ .
--------------------------


                                             सेंट जॉन इन द बिल्देर्नेस चर्च :  फ़ोटो डॉ नवीन जोशी . नैनीताल 

२० दिसम्बर का दिन ही था ,ना । २००८ के  क्रिसमस के चार पांच दिन पहले सर्दी ने नैनीताल में दस्तक़ देनी शुरू कर  दी थी । चाइना पीक ,लैंड्स एन्ड और डोर्थी सीट की पहाड़ी पर यदा कदा हल्की बर्फ़ भी गिरने  लगी  थी। 
हम तल्लीताल के कैथोलिक चर्च में बैठे हुए अंग्रेजी विरासत के बारे में ही चर्चा कर रहे  थे। क्रिसमस की छुट्टियों को लेकर सैलानियों की भीड़ दिल्ली ,मुंबई ,कोलकत्ता से उमड़ने लगी थी। माल रोड पर लम्बे जाम का सिलसिला आम हो गया था। 
मल्लीताल स्टैंड से साथ चलते हुए तुम हमें किसी अनुभवी गाइड की तरह ही नैनीताल के इतिहास से अवगत भी करवा रहीं थी , 
'.....हम और आप जान ही गए है कि ब्रिटिश कैप्टन पी बैरन जो १८४१ ईसवी में नैनीताल की वादियों में आए थे , उन्होंने नैनीताल की खोज की , और यहां सबसे पहले  पिल ग्रीम कॉटेज का निर्माण किया था । इसके बाद निरंतर पर्यटकों की आवाजाही निरंतर लगी रही और नैनीताल नगरी पर्यटकों  की मन पसंदीदा जगहों में से एक बन गयी थी ।  
........हम ब्रितानी सरकार के लिए आभार प्रकट करते हैं ,न , जिनकी वजह से हमें नैनीताल जैसे खूबसूरत पर्वतीय स्थल हमारे अधिकार के अंतर्गत आए। हालाँकि यह भी सच है कि इंग्लैंड की अपेक्षा उन्हें यहाँ की जलवायुं विषम लगती थी इसलिए गर्मियों में राहत पाने के लिए अपनी पूरी प्रशासनिक व्यवस्था के साथ भारतीय पहाड़ी क्षेत्रों में वे स्थानांतरित हो जाते थे। 
ब्रितानी सरकार ने सबसे पहले यूनाइटेड प्रोविंस के लिए राज भवन का निर्माण नैनीताल में ही  किया था जो आज  भी  नैनीताल में वर्तमान हैं। उत्तराखंड की राजधानी ना होते हुए भी हाई कोर्ट जैसे महत्वपूर्ण स्थल को अपने भीतर समाहित किए हुए रहता है। ब्रिटिश कालीन यूनाइटेड प्रोविंस, जिसका निर्माण अंग्रेजों ने १९२१ में किया था ,इस प्रदेश की राजधानी की हैसियत रखता था.......नैनीताल ।'
सुबह के आठ बज रहे थे। अभी चर्च खुला नहीं था। हम  तल्ली ताल में झील के पास रेलिंग के पास ही क़रीब खड़े होकर चर्च के खुलने का इंतजार करने लगे थे , तब इक्का दुक्का लोग ही थे वहां पर । तुमने पास से ही दो कॉफ़ी मंगा ली थी। इस सर्दी में कॉफ़ी पीना काफी अच्छा लगता हैं। 
क्रिसमस के साथ ही अंग्रेजों की याद आ गयी थी । लाज़मी ही था। अंग्रेजों ने  नैनीताल में अपनी विरासत के रूप में अनेक भवन तथा चर्च बना रखें हैं जो निसंदेह ये देखने लायक़ हैं। अंग्रेजी शासन में  नैनीताल में कुछ पाश्चात्य शैली में बनी  कई चर्च जैसे सेंट जॉन इन द बिल्देर्नेस चर्च , मेथोडिस्ट चर्च , सेंट फ्रांसिस चर्च ,सेंट निकोलस चर्च  तथा कैथोलिक चर्च  भी शामिल हैं।   
तुम नैनीताल के सम्पूर्ण इतिहास के बारे में पूरी तन्मयता से बतला रही थी।  ' .....जानते है,  .....१८१४ का वर्ष था  यह जब ब्रिटिशर्स ने आंग्ल गुरखा युद्ध जीती थी सुगौली संधि के जरिए नेपालियों से कुमायूं हिल्स जीत कर इसपर अपना कब्जा जमा लिया था......।  १८१५  के  वर्ष ही गोरखा हिल्स कहें जाने वाले प्रदेश अधिकृत कर यूनाइटेड प्रोविंस में मिला लिया था....'  तुमने एक सांस में जैसे पूरा इतिहास ही बतला दिया था ' .....कभी हम आपको डोर्थी सीट ले चलेंगे तो राजभवन भी दिखलाएंगे ,सेंट जोन्स  और शेरवुड स्कूल भी  । चलेंगे ना ? '
न जाने क्यूँ  सच कहें अनु , साल  १९७८ से ही नैनीताल की अनदेखी, धुंधली यादें , तुम्हारी तस्वीरें मेरी जेहन में आने लगी थी। बंद आंखों से ही तसव्वुर में मैं  नैनीताल को देखने लगा था। और जानने की तनिक कोशिश करने लगा था कि इसका इतिहास क्या रहा होगा ? नैनी झील कैसी दिखती होगी ,तल्ली ताल कहाँ होगा, मल्लीताल के बाज़ार कैसे होंगे, बजरी वाला मैदान , पाषाण देवी की मूरत  पता नहीं कैसी  दिखती  होगी  ...आदि आदि। अपने एकाकीपन में ही मैदानी इलाक़े में दूर कहीं  बैठे मैं कुमायूं की उजली पहाड़ियों के बारें में क्या सोचता रहा ,क्या देखता रहा था ? यहीं कि तुम कहां रहती हो ? हम कहां मिलेंगे ?
तन्द्रा टूटी जब तुमने कुछ पूछा था , ' ....इतना सब कुछ मैं आपको बतला रही हूँ ,आप मेरे बारे में भी  लिखेंगे ना अपनी क़िताब में ....... बोलिए ....? 
' क्यों नहीं ...?, जवाब था जैसे ....'  मैं यह सब तुम्हारे लिए ही तो लिख रहा हूं ,अनु ....तुम्हारी अनदेखी कल्पना ही तो मेरे लिखने मात्र के लिए प्रेरणा रही है ........, 
कहकर एकटक जब तुम्हें देखने लगा था, तुम कहीं और देखने लगी थी। पार्श्व से सुबह की नरम धूप में तुम्हारा चेहरा कितना ख़ूबसूरत ,पाक और नम लग रहा था ? ओस में खिले गुलाब की भांति।  
तब की मेरी हल्की मुस्कराहट में  तुम्हारे लिए ढ़ेर सारा बेशुमार प्यार और सम्पूर्ण समर्पण था। 
.....सेंट जॉन इन द बिल्देर्नेस चर्च के बारे में मैंने बहुत सुना है , क्या हमें वहां नहीं ले चलोगी , ...देखना चाहता हूं। 
तुमने बड़ी सरलता से मेरे पूछने पर कहा , ....क्यों नहीं ? .....जब आप चाहे ....चलेंगे.....आज चलेंगे ?
मैंने कहा ,' नहीं ...नहीं ....आज नहीं .... अगले दिन ..चलते है ....'

-------------------------
ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक. अंक ९.
-------------------------

सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस : ‘ जंगल के बीच ईश्वर का घर. ’ नैनीताल का सबसे पुराना चर्च.


आर्य समाज मंदिर में उस दिन मैं बहुत पहले ही उठ गया था। मंदिर में भजन कीर्तन का कार्यक्रम पहले की तरह चल ही रहा था। नित्य क्रिया से फ़राग़त होने के बाद नीचे बजरी वाले मैदान में उतर गया था। वही गोरखे से एक प्याली गर्म चाय ली और फूंक फूँक कर गर्म ही पीने लगा था। तब कोई यही दिन के आठ बज रहें थे। हम हाई कोर्ट के पास के रास्ते से ही सूखा ताल जाने वाले थे ना ? रात में भी हमने  नवीन दा से इस
सन्दर्भ में ढ़ेर सारी बातें की थी। उन्होंने इसके इतिहास पर व्यापक प्रकाश भी डाला था। बस हमें वहां जाना और देखना मात्र था।   
सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस चर्च : हमने सुन रखा था नैनीताल का सबसे पुराना सूखाताल क्षेत्र में स्थित चर्च है। मैं बजरी बाले मैदान के मस्जिद के पास खड़ा तुम्हारी राह देख रहा था। 
कुछ देर में ही तुम आ गयी थी। हम पैदल ही हाई कोर्ट के रास्तें चढ़ाई के लिए निकल पड़े थे । 
साथ चलते हुए तुमने पूछा भी , ' ....थकेंगे तो नहीं ना .... ? ...चलना पड़ेगा..'
' देखता हूँ .... '
राह चलते चलते तुमने पुरानी बातें बतलानी शुरू कर दी थी,  '....इतिहास साक्षी है साल  १८४१ से ही  नैनीताल में बाहरी लोगों के बसने की प्रक्रिया आरम्भ हो गयी थी। अंग्रेज जहाँ कहीं भी गए उन्होंने अपने लिए चर्च बनवाए।  आबादी के बसने की  शुरूआत के साथ ही इस सरोवर नगरी  में अंग्रेजों के पूजास्थल के रूप में स्थान ढूंढना शुरू कर दिया था ...'
इस चर्च की स्थापना के लिए अंग्रेज अधिकारी प्रयासरत हो गए थे। 
अंत में इस कार्य हेतु कुमाऊं के वरिष्ठ सहायक कमिश्नर जॉन हैलिट बैटन ने काफी सोच विचार करने के बाद चर्च बनाने के लिए सूखाताल के पास इस स्थान को बेहतर समझते हुए चुना था । 
थोड़े देर सुस्ताने के लिए मैं सड़क के किनारे ही पत्थर पर बैठ गया था। तुमने थोड़ी देर ठहरते हुए फिर चर्च की कहानी दुहरानी शुरू कर दी थी , '...मार्च १८४४ में कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन एक पादरी के साथ नैनीताल भ्रमण के लिए आए। अथिति विशप को चर्च के लिए चुनी गई इस जगह पर ले जाया गया तो उन्हें पहली नजर में यह जगह इतनी पसंद आ गई कि उन्हें यह जगह जन्नत जैसी लगी। इसलिए बिशप ने इस चर्च को नाम दिया ‘ सेंट जॉन इन द विल्डरनेस , यानी ‘ जंगल के बीच ईश्वर का घर ’ 
टहलते हुए हमलोग चर्च के एकदम नजदीक पहुंच चुके थे। आस पास लगभग सन्नाटा पसरा हुआ था। पेड़ों की कतारें आसमान जैसे क्षितिज को छू रहीं थी। पूजा के लिए तो शांति की अतीव आवश्यकता होती है न । शांति हो तो मनन चिंतन में मन लगता है। है ना ,अनु  ? 
' कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर जीटी लूसिंगटन के आदेश पर अधिशासी अभियंता कैप्टन यंग ने चर्च की इमारत का एक मुकम्मल नक्शा बनाया। अक्टूबर १८४६ में चर्च का नक्शा पास हुआ और आगे चल कर विशप के कार्यकाल के १३ वर्ष पूरे होने के मौके पर १३  अक्टूबर १८४६ को चर्च की इमारत का शिलान्यास हुआ। और इसके बाद निर्माण कार्य शुरू हो गया ......' तुम अपने धुन में बोले जा रहीं थी। 

सेंट जॉन इन द विल्डरनेस : फोटो नवीन जोशी 

जानते है एक अनोखी बात ...?  
क्या .....? 
तुमने कहा , ' ...इस चर्च के शिलान्यास की पूरी दिलचस्प कहानी एक कांच की बोतल में लिखकर बोतल को इमारत की बुनियाद में रख दिया गया था। पता नहीं क्या सोच रही होगी। 
आगे चर्च की इमारत तो दिसंबर १८५६ में बन कर तैयार हुई, परंतु इससे पहले ही २ अप्रैल १८४८  को निर्माणाधीन चर्च को पहले ही आम अवाम के प्रार्थना के लिए खोल दिया गया। चर्च के निर्माण में उस समय लगभग १५ हजार रुपए खर्च हुए थे । यह धनराशि १८०७ में चंदे के रूप में जुटाई गई थी। इसके लिए  वहां मौजूद कमरों को  किराए पर लगाया गया भी था। याद रखने योग्य यह है कि  चंदे से जुटाए गए ३६० रुपए से रुड़की के कैनाल फाउंड्री से चर्च के लिए पीतल का घंटा भी बनवाया गया जिसे यहाँ स्थापित किया गया, जिसमें यह लिखा गया था - एक आवाज - शून्य में चिल्लाना। ' 
साल १८  सितंबर १८८० को नैनीताल में हुए प्रलयंकारी भूस्खलन हुआ जिसमें ४३ यूरोपियन सहित १५१ लोग मारे गए। इनमें से कुछ को चर्च में लगे कब्रिस्तान में दफनाया गया और इस भूस्खलन में मौत के मुंह में समा गए यूरोपियन नागरिकों की याद में चर्च मे एक पीतल की पट्टी पर सभी यूरोपियन मृतकों के नामों का उल्लेख किया गया, जिसे आज भी यहां देखा जा सकता है। '

गतांक से आगे : ९ / १ 
मैं और सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस.



मैं ,तुम ,मेरी तन्हाई और चर्च सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस . फोटो. डॉ.मधुप.नैनीताल  

इस बार भी गर्मियों में जब मैं नैनीताल गया था तो आप विदेश के दौरे पर थी। मैं तुम्हारे बिना ही सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस ‘ जंगल के बीच ईश्वर का घर  देखने अकेले ही चला गया था। हाई कोर्ट के पास ही मैंने किसी मोटर साइकिल वाले से लिफ्ट ले ली थी। सहर्ष तैयार हो गए थे। शायद वह भी चर्च ही जा रहे थे। जल्द ही हम वहाँ पहुंच गए थे। 
वहाँ कितनी चिर शांति पसरी पड़ी थी अनु...? चर्च खाली पड़ा था। पादरी भी नहीं थे।  सुबह ही तो हुई थी अभी। इतनी सुबह इतनी जल्दी लोग थोड़े ही आते हैं ?मैं कुछ पहले ही आ गया था। 
कुछ लोग दिखे जो सुबह सबेरे चहल कदमी करने आए थे। उनमें से ही किसी ने बताया चर्च अब प्रेयर टाइम में ही खुलता है ...रविवार के दिन...
निराशा हुई थी। चर्च खुला होता तो एक कैंडल भी जलाता अपनी तुम्हारी सुख समृद्धि के साथ साथ समस्त जगत के कल्याण के लिए। आज भी जब कभी कहीं भी मैं पहाड़ों पर दार्जलिंग ,कलिम्पोंग , गंगटोक,शिमला,डलहौज़ीचम्बा, मसूरी,कसौलीनैनीतालऊटी,तथा कोडाईकैनाल की यात्रा पर गया मैंने आपके,सब के कल्याण लिए कैंडिल जलायी है,..आप इस बात को जानती भी है । 
सूरज की किरणें पेड़ों से छन कर चर्च की दीवारों पर गिर रहीं थी। सच में कोई भी यहाँ नहीं था। लेकिन मन की रिक्तता में भी तुम कहीं न कहीं वर्तमान ही थी न अनु। मेरे जीवन के हरेक क्षण में अणु बन कर तुम शामिल हो ... ऐसा लग रहा था जैसे आज भी मैं और मेरी तन्हाई में तुम इस चर्च के बारें में सब कुछ बतला रही थी ....
अब यहीं एकाकीपन और खालीपन जो मेरी आदत ही बन गयी है। मेरे एकांत को लेकर याद है तुमने कभी मुझसे सवाल भी किया था, " आप इतना अलग थलग क्यों रहना चाहते हैं ..भीड़ से हटकर.... ...सामाजिकता भी तो कोई चीज है न ..थोड़ा बदल क्यों नहीं लेते अपने आप को ...?
तब भी मैंने इतना ही कहा था , "... बदल नहीं सकता ...मेरे लिए समाज नहीं ...व्यक्ति महत्वपूर्ण है ..मैं भीड़ का हिस्सा नहीं बन सकता ...और फिर सच कहें अनु ! फिर समाज में अच्छें लोग हैं ही कहाँ ....? ...फिर ऐसे में उनलोगों के साथ उठने बैठने ,बातचीत करने में घुटन ही होगी न... इसलिए अलग थलग ही रहता हूँ ..."
"..अगर मैं इस भीड़ में शामिल हो गयी तो..क्या करेंगे आप ..? ", जैसे आप ने मुझसे जानना चाहा था।  ...बड़ी उत्सुकता से पूछते हुए आप मेरी तरफ देखने लगी थी। थोड़ी हँसी भी थी आपके चेहरे पर। 
"... तय है ..तब भी शायद  मैं आपके पीछे भागूंगा नहीं ..अपने पूरे धैर्य संयम के साथ ही भीड़ से हटकर आपके अकेले होने का इंतिजार ही करूँगा ...शायद अगले जनम तक .."
"..सच्ची ...अगले जनम तक ...प्रतीक्षा करेंगे..., " बड़ी भावुक हो गयी थी ...अपने दोनों हाथों की हथेलियों से चेहरा छुपाते हुए आप मुस्कुराने लगी थी...। ठंढ में निकलती धुआं होती मेरी नर्म सांसें आपके चेहरे को  रह रह कर छू रहीं थी। थोड़ी उष्णता प्रदान कर रही थी। 
चेहरे से हथेलियाँ हटाते हुए आपकी आँखों में देखते हुए मैंने कहा था, "... जी ..सोलह आने सच ...", 
मेरी इस तसदीक पर आपने स्मित मुस्कराहट के बीच ही कहा ," ... चलिए..ठीक है ...आप नहीं बदलते हैं तो मैं ही बदल लेती हूँ ...अपने आप को ..आपके लिए ...आपकी मीरा जो ठहरी ...अपने और आपके  लिए तो करना ही पड़ेगा न ...?
यह था मेरे जीवन के एकाकीपन का गीत संगीत जो सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस ‘ जंगल के बीच ईश्वर का घर  के माहौल में इसके नाम के साथ ही सार्थक हो रहा था। 
मैं अकेला था भी ...नहीं भी .. आप तो हमसाया बन कर ही साथ रहती है न ..? कब मैं रिक़्त हुआ ..शायद नहीं ...
मैं ,तुम और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं ..एकाध घंटे रहने के बाद जब मैं पैदल नीचे उतरा तो माल रोड पर टहलते हुए कैथोलिक चर्च तक़ चला गया था। अभी चर्च का आँगन सूना पड़ा था ..लोग नहीं के बराबर थे ..
चर्च की बेंच पर बैठते ही दस साल पहले का क्रिसमस सेलेब्रेशन याद आ गया जब मैं वीकेंड पर दिल्ली से नैनीताल के क्रिसमस पर मैं रिपोर्टिंग करने आया था तब आपभी मेरे साथ थी.... 

-------------
गतांक से आगे :९ / २.
-------------
क्रिसमस की पूर्व संध्या : अयार पाटा बंगले की सजावट. 

क्रिसमस के एक दो दिन पहले से ही नैनीताल में अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी थी। दुकानें सज गयी थी। गिफ्ट शॉप में क्रिसमस ट्री भरे पड़े थे। चर्च के रंग रोगन का काम सप्ताह पूर्व ही हो जाता है और ऐसा हो भी गया था। न जाने क्यूँ सैलानियों की आवाजाही इन दिनों पहाड़ों पर इतनी ठंढ के बाबजूद क्यों अधिक बढ़ जाती हैं। शायद क्रिसमस की शुरुआत के साथ नए साल की छुटियाँ मनाने के लिए  लोग पहाड़ की ओर रुख कर लेते हैं।  
सर्वधर्म की अच्छाई के प्रति प्रीत के भाव अपनाने का पाठ शायद आपने मुझसे ही सीखा था, यह भी कभी आपने बात चीत के दरमियाँ मुझे ही बतलाया था। आपको क्रिश्चियनिटी के प्रति झुकाव शायद मेरी लगाव की बजह से हुआ था मुझे ऐसा बार बार क्यों लगता है ,अनु ...। 

नैनीताल की पहाड़ियां : अयारपाटा का बंगला.

मुझे याद है क्रिसमस के लिए अपने अयारपाटा के बंगले को आपने बड़े सलीके से सजाया था। पूरे बंगले सहित फर्न के पौधे को आपने नीली कलर वाले चाइनीज बल्ब से सवार दिया था। एक बड़ा सा तारा जिसमें एक नीला बल्ब जल रहा होता है, आपने दरबाजें पर भी लगा रखा था।
भीतर बैठक खाने में मदर मरियम, पिता युसूफ ,शिशु इशू एकदम नवजात लग रहें थे, उनकी बड़ी प्यारी सी प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की मूर्ति रखी हुई थी। इसके पार्श्व में गुलाबी रोशनी बिखर रही थी। इसकी हल्की किरण मदर मरियम की आँखों पर पड़ रही थी। इसके ठीक पीछे में सांता क्लाज की प्रतिमूर्ति लगी होती थी जिसमें जिंगल बेल जिंगल बेल की ट्यून लगातार बज रही थी । 
ठीक इसके पीछे ही तो आपने हरे रंग की क्रिसमस ट्री रख दी थी जिसमें लगा नीली रौशनी बाले बल्ब जगमगा कर टिमटिमा  रहें  होते थे । याद है कभी मैंने आपको बतलाया था कि इस हरे भरे 
क्रिसमस ट्री के पीछे बस इतनी सी ही मान्यता है कि यह खुशहाली का प्रतीक होता है। इसके घर में लाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है जो हमारी जिंदगी के लिए बेहतर है ।
२५ दिसंबर को ईसा के जन्म की खुशी में स्वर्ग के दूतों ने फर्न के पेड़ों को रोशनी, फूलों और सितारों से सजा दिया था। उन्हीं की याद में आज भी क्रिसमस के दिन क्रिसमस ट्री को सफेद रूई ,लाइट, टॉफियों,घंटियों और छोटे-छोटे उपहारों  से सजाया जाता है। 
वनीला के स्वाद वाला केक  हमलोगों ने दो तीन पाउंड का मॉल रोड से पहले  ही मंगा रखा था। जिस तरह हिंदू धर्म के त्योहारों में लोग एक दूसरे को मिठाई बांटते हैं उसी तरह क्रिसमस पर केक खाने और बांटने की परंपरा है। लोग एक दूसरे के साथ अपनी खुशियां बांटते हैं और इसके पीछे मानना है कि  केक बांटने  और साथ खाने से मैत्री बढ़ती है आपस के तनाव और अवसाद भी खत्म होते हैं । अच्छी सोच है न अनु !
मोज़े : आपने खिड़कियों में रंग बिरंगे कई मोज़े भी टांग रखें थे। आपने यह भी याद रखा था कि मैंने कभी शायद आपको यह बतलाया था कि मोजें में सेंटा ढ़ेर सारी खुशियां लेकर आते हैं ,इसलिए इन्हें खिड़कियों पर लगाना चाहिए । सांता बच्चों और बड़ों के लिए भी गिफ्ट लेकर आते  हैं यह भी हमने आपको ही बताया था ,इसके पीछे सोची गई वजह यह है कि इन मोजों को घर में टांगने से आर्थिक तंगी दूर होगी और धन वृद्धि भी होगी । 
घंटियों की बाबत आप मुझे ही बतला रही थी , " जानते हैं  क्रिसमस ट्री में लगी घंटी की मधुर ध्वनि से लोग फेंगशुई के अनुसार मानते हैं  कि घंटियां बजने पर निकलने वाली ध्वनि से पूरे घर की नकारात्मक उर्जा बाहर हो जाती है...इसलिए मैं भी लगाती हूँ ।
मोमबत्ती :  जिस तरह हिंदू धर्म में आस्था के दीपक लगाकर इष्ट देवी देवताओं की आराधना की जाती है उसी तरह से क्रिसमस में मोमबत्ती जला कर लोग प्रभु यीशु से प्रार्थना करते हैं कि आम जीवन से दुख के अंधकार को दूर हो तथा सुख शांति का प्रकाश सभी के जीवन में सर्वत्र फैले। रंग बिरंगी मोमबत्तियां जलाने का भी अपना अलग ही महत्व है...।  
-------------
गतांक से आगे : ९ / ३ .
-------------
क्रिसमस की सुबह नैनीताल और मॉल रोड का कैथोलिक चर्च. 

क्रिसमस की सुबह : नैनीताल : फोटो : एम. एस. मिडिया.
 
२५ दिसंबर। बड़ा दिन। हम जानते ही है इस दिन से ही उत्तरी गोलार्ध में रातें छोटी होने लगती हैं और दिन बड़े होने लगते हैं। नैनीताल में सुबह होने को थी। सुबह भी पूरब की अपेक्षा थोड़ी देर से ही होती है। 
मैंने तय कर लिया था सुबह आठ बजे चर्च खुलने के साथ ही हमदोनों चर्च में कैंडिल जला आयेंगे। तब ज्यादा भीड़ नहीं होगी। और हमें मॉल रोड तल्ली ताल स्थित कैथोलिक चर्च पैदल ही जाना था। मार्निंग वॉक के लिए आप जल्दी उठ गयी थी। आप भी मेरी तरह समय ,शब्द और संस्कार की बेहद पाबंद है यह देखना समझना मुझे हमेशा से अच्छा लगा है और लगता भी रहेगा । इसलिए तो मुझे आप से असीम लगाव है ,अनु। 
अभी सात बज रहें थे। अयारपाटा के बंगले के आस पास बैसी ही चिर परिचित ख़ामोशी फैली थी जैसी पहले  होती है। जंगल का इलाका है,पेड़ पौधे अधिक है । इसलिए यहाँ कुछ ठंढ अधिक ही होती है। 
सुबह की लेमन टी लेकर हम नीचे चर्च की तरफ वॉक के लिए निकल पड़े थे। 
नीले सलवार समीज, बादामी कलर की जैकेट तथा स्पोर्ट्स शू में आप के व्यक्तित्व में इजाफ़ा हो रहा था। आप बेहद शांत ,संयमित और खूबसूरत दिख रही थी। 
रास्ते चलते पूछा था आप ने , " ...आप बताएंगे कि इस धर्म में कब से लगाव रखने लगे थे ...? "  
"..बचपन से ही ..जब से मैंने विलियम वर्ड्सवर्थ को पढ़ा है ..पहाड़ों के सपनें देखने लगा हूँ .. कोनिफर्स के पेड़ देखें हैं  ...चर्च गया हूँ  ..कैंडिलें जलाई हैं ..कई दफ़ा सोचा है ..कई बार विचार किया है ..तब से ही मैं इस धर्म में विश्वास करने लगा हूँ, ..अनु। "
"...यहाँ शांति ही शांति हैं ...दिखावा नहीं के बराबर है ..पाखंड नहीं के बराबर है .. ..लोगों के चित में शांति है ,आचार व्यवहार में शांति है...सहिष्णुता है ...मन में शांति है। मैं तो सम्यक धर्म सम्यक साथ को ही एक ही  मानता हूँ ..क्योंकि अच्छें जन अच्छें विचार ..." 
मैं कई एक इसाईओं से इंटरव्यू के सिलसिले में मिला हूँ। उनके साथ बातें की हैं। 
मैं देख रहा था आपके बढ़ते हुए कदम थोड़े सुस्त थे। मैं जानता हूँ आप पहाड़ी है आप तेज चल सकती थी ,लेकिन आप धीरे ही चल रही थी क्योंकि मेरे कदम धीरे थे ..और आपको मेरी जिंदगी में हर क्षण का  साथ जो निभाना था... । 
आप भली भांति जानती है कि मैं मैदानी इलाके से हूँ ,मैं इतना तेज़ नहीं चल सकता ..सांसे फूलने लगेंगी। इसलिए धीरे धीरे बाजू में  चलते हुए आप ने मेरी बाहें पकड़ रखी थी। ..कितना ख़्याल और असीम लगाव रखती हैं आप....हमारे लिए... 
इसलिए मैंने भी तो एक कसम उठाई हैं कि इस जीवन में अपने जीते जी आपको कोई तक़लीफ़ नहीं होने दूंगा ..आपकी इच्छाएं ही मेरा धर्म मेरा ईमान होंगी .. ऐसी मेरी कोशिश होगी। 
हम चर्च पहुँच चुके थे। आज के दिन दरवाज़ा कुछ पहले ही खुल गया था। हल्की भीड़ भी वहां थी। हमने कैंडिल का पैकेट्स पहले ही रख लिया था। 
प्रेयर का समय अभी नहीं हुआ था। कुछ बच्चें आनंदित होकर आपस में ही केरोल गा रहें थे। दूर कहीं उपर से ही जिंगल बेल ..जिंगल बेल का अपना दीर्घ परिचित केरोल सुनाई दे रहा था .. 
हम दोनों चर्च के भीतर बीच वाली बेंच पर बैठ गए थे एक दूसरे के करीब..आपने तब भी मेरा हाथ नहीं छोड़ा था...लगातार मोबाइल में बज रहें रिंग टोन्स से यह प्रतीत हो रहा था क्रिसमस के मैसेज हम तक आ रहें थे। हमारे मध्य मौन पसरा हुआ था। 
हमने लाई हुई अपनी कैंडिलें जला ली थी..इसे सैंड ट्रे में रख दिया था। वहां और भी मोमबत्तियां पहले से जल रही थी। किसी ने जलाई होगी। जब मैं मोमबत्तियां जला रहा था तो आपने अपनी उंगलियों से मेरे हांथों को स्पर्श कर रखा था..
मैंने जब पूछा आप भी एक कैंडिल जला लो तो प्रत्युत्तर में आपने कहा था .." देख लीजिए ...आपके साथ ही तो जला रही हूँ..". यह कहते हुए दिखलाने के लिए आपने मेरी हाथों को ज़ोर से दवा दिया था। 
आप  कह रही थी , "..मैं अपने आपके हर धरम करम में आपके साथ हूँ ..मैं प्रभु से प्रार्थना करती हूँ कि हर जन्म में मुझे आपका साथ ही मिले .. बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए..आप होंगे ..तो आपके सम्यक साथ से मेरा जीवन ऐसे ही कष्ट मुक्त और प्रकाश मय हो जाएगा। ...होगा न ..?..आप ही मेरे धरम है आप ही मेरे करम .., सुन रहें है न ? ..."
मैं नजरें उठा कर कभी कभी आपको ही देख ही रहा था। पलकें  उठा कर एक बार भगवान की तरफ़ भी मैंने देखा जैसे पूछना चाह रहा था  ..." हे भगवान ! जीवन क्या है ..धर्म क्या है ..समझायेंगे ? स्वयं का धर्म क्या होना चाहिए ..? "
जवाब भी अपने साथ अपने अन्तःमन में ही था ..सब के साथ प्रेम पूर्ण ,सहनशील व्यवहार ही तो जीवन का सार है। क्या यहीं प्यार है ..किसी की इच्छा पर समर्पित होना ..उसका ख्याल रखना ..किसी को चोट नहीं पहुँचाना ही तो हमारा सर्वश्रेष्ठ मानव धर्म होना चाहिए न। "
चीफ प्रीस्ट वहां पहुंच चुके थे। प्रेयर की घड़ी समीप थी। थोड़े ही समय में प्रेयर शुरू भी हो गया था । मुख्य प्रार्थना सभा में शामिल होने के बाद हमने रोटी का एक टुकड़ा ,चैलिस में रखे वाइन जैसे तरल पदार्थ की कुछेक बुँदें प्रसाद के रूप में ग्रहण की और बाहर निकल आए। 
बाहर धुप अच्छी खिली हुई थी। आप चाय कॉफी की शौक़ीन हैं मैं यह जानता था। यह सोच कर हम मॉल रोड पर लगने वाले टी स्टॉल की तरफ बढ़े थे। सच कहें तो यह शौक भी आपको मेरी बजह से ही लगा था। अब तो आप बेहतर चाय और कॉफ़ी भी बनाना जान गयी थी। 
यह भी सच है कि आपके हाथों की बनी चाय और कॉफ़ी का कोई जवाब नहीं। इलायची,आदि वाली थोड़ी दूध ..थोड़ी ज्यादा शक्कर वाली चाय ..मेरी कमजोरी रही है। इसके साथ ब्रिटानिया का ब्रिस्क बिस्किट्स मिल जाए तो क्या कहना ? आप इस सन्दर्भ में मेरी पसंद का बहुत ख्याल भी रखती हैं यह भी मैं जानता हूँ।  
मेरे लिए आपके हाथों की बनी चाय और कॉफ़ी पीना अमृत के सामान ही हैं न..?  दिव्य प्रसाद जैसा। ..पास के स्टॉल से हमने दो कॉफ़ी की प्याली ले ली थी और साथ में ब्रिटानिया ब्रिस्क बिस्किट्स का एक पैकेट भी। थोड़ी दूर चलते हुए अपर मॉल रोड में रखी बेंच पर बड़ी इत्मीनान के साथ बैठ गए थे ..हमदोनों ..और कॉफ़ी की चुस्कियां लेने लगे थे। 
हमारे सामने झील थी। दायी तरफ थोड़ी दूर हटकर गवर्नर वोट हाउस क्लब था। झील में एक दो पाल वाली नौकाएं तिरती हुई दिख रही थी। लोअर मॉल रोड पर गाड़ियों की आवाजाही बढ़ गयी थी। पर्यटक नए साल मनाने चले आ रहें थे। 
घर वापस लौटते हुए हमने चॉकलेट्स, स्वीट्स, गिफ्ट्स और कैंडिल्स की खरीददारी भी की क्योंकि आपने अपने बंगले पर शाम को क्रिसमस सेलेब्रेशन को लेकर जान पहचान वाले बच्चों को बुलाया भी था।
शायद एक छोटा सा इवेंट होना था यही कोई शाम के ६ -७ बजे। इसकी तैयारी भी करनी थी। पैदल चलते हुए हमें लगभग दो घंटे लग ही गए थे १२ - १ बजे तक़ हम अपने बंगले में थे।  

संपादन : 
रंजीता.वीरगंज.नेपाल.  
पृष्ठ सज्जा : प्रिया. दार्जलिंग. 
क्रमशः जारी : 

-------------------------
ये पर्वतों के दायरें, नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक.अंक १०.
--------------------------

बारा पत्थर से डोर्थी सीट तक़ की एक मनपसंद चहलकदमी. 
हम तुम एक जंगल से गुजरे..

नैनीताल के पास की वादियों में बादल : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

हम अक्सर माल रोड पर टहलते हुए या झील के किनारे बैठे हुए राज भवन की ओर जाने वाली सड़क को देखते रहते थे। अक्सर वहाँ उस सड़क पर गाड़ियां सरकती रेंगती नज़र आती ही रहती थी। सोचता था कब उस ओर चलेंगे ? उसी के आस पास ही तो डोरोथी सीट है ना ? तुमने बताया था, बड़ी अच्छी जग़ह है। 
घूमने लायक। पहले बारा पत्थर ,पहुंचना होता है इसके बाद, लवर्स पॉइंट, खुरपा ताल, लैंड्स एन्ड, डोर्थी सीट, ये सभी दर्शनीय चीजें उधर ही देखने को मिलती है,न अनु। 
२२९२ मीटर ऊंचाई वाली इस पहाड़ की चोटी से आसपास की सुन्दर फैली पर्वत श्रृंखलाएं और हरी भरी वादियां का अत्यंत सुंदर नजारा दिखाई देता है। यहां की सबसे ऊंची चोटी है इसलिए यहाँ  के लोग इसे टिफिन टॉप भी कहते हैं । बजरी वाले मैदान से बारा पत्थर तक़ हमलोग पैदल ही चले गए थे। 
पाश्चात्य शैली में बनी हाई कोर्ट की बिल्डिंग भी रास्तें में मिली थी । मुझे याद है हाई कोर्ट के रास्ते पोनी स्टैंड तक़ तथा इसके बाद लैंड्स एन्ड तक़ हमने ट्रैकिंग करने की सोची थी।
क़रीब आधे घंटे के बाद हम बारा पत्थर के पोनी स्टैंड तक पहुंच चुके थे। घोड़ों वालों की वहां भीड़ लगी थी। शायद यह जग़ह किसी बड़े पत्थर और उस पर की जाने वाली क्लाइम्बिंग की बजह से प्रसिद्ध रही होंगी। देखा भी था कुछ पर्यटक चिकने समतल पत्थर पर चढ़ने उतरने का प्रयास कर रहें थे। 
लवर्स पॉइंट : इसके पास ही लवर्स पॉइंट है । वहां पर्यटकों का हुजूम लगा था। लेकिन बड़ी जोख़िम वाली जग़ह थी यह। कुछ नहीं बस एक नुकीली चट्टान निकली हुई थी लोग वहां फोटो खिचा रहें थे। पता नहीं कैसे यह लवर्स पॉइंट बनी ,समझ नहीं पा रहा था । और उसके पीछे एक गहरी खाई नज़र आती है। थोड़ा चुके नहीं कि जान गयी। 


 लवर्स पॉइंट  के पास  लगा वहां पर्यटकों का हुजूम : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

नवीन दा बतला रहें थे इसलिए अब तो यह जग़ह लवर्स पॉइंट कहां ? अब तो यह सुसाइड पॉइंट हो गयी हैं याद है हमने भी स्मृति वश एक दो फोटो खिचाई थी। अभी भी तुमने बड़ी जतन से किताबों के पन्नों के बीच सहेज कर रखा है। 
कहा था , '.. मेरे जीवन भर की पूंजी है। गवाऊंगी नहीं। ' 
मुझे याद है राह चलते तुमने लवर्स पॉइंट के बारे और भी कुछ बातें  कही थी,  
' ...जानते है प्रेम में असफ़ल हुए हताश लोग यहीं से कूद कर जान दे देते थे। ...न जाने कितने लोगों ने आशिक़ी में जान गवाएं है आप को बतला नहीं सकती ....'
मुझे याद है वहीं किसी गाइड ने दाहिनी तरफ़ एक दूर दिख रहें पहाड़ी पर एक बंगला दिख रहा था जिसके बारे में उसने बतलाया था कि यह बंगला फिल्म अभिनेत्री नेपाल की निवासिनी मनीषा कोइराला का है। सच्चाई क्या है यह तो नवीन दा ही बतलायेंगे। 
खुरपा ताल पॉइंट : लैंड्स एन्ड, के रास्तें में ही खुर्पा ताल पॉइंट मिलता है ,स्वच्छ पानी की झील घोड़े के खुरपे की आकार में दिखती है । हमें याद है लैंड्स एन्ड से भी यह खुरपा ताल दिखती है लेकिन थोड़ी दूर से ।
बारा पत्थर से थोड़ी दूर आगे बढ़ते ही फिर से एकदम से जमीन यहीं ख़त्म हो जाती है। तभी तुमने नीचे की तरफ़ इशारा करते हुए बतलाया था, ' देखिए ! घोड़े के खुरपा आकार की नीली झील है ना ? ...'
एकदम से सामने एक झील दिखने लगती है एकदम पास में ही। 

खुरपा ताल पॉइंट : बारा पत्थर :फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

मुझे याद है मैंने अपने कैमरे से तुम्हारी एक सुन्दर तस्वीर खींची थी। 
यहां बादलों से भरी गहरी खाई के किनारे खड़े होकर ऐसा आभास होता है मानो हम धरती का अंतिम छोर हो। इसलिए तो इसे लैंड्स एन्ड की संज्ञा दी गयी। यहां पहुंचने के लिए मात्र थोड़ी दूर ही चलना पड़ा था । नीचे दिखती सांप जैसी सड़क कई बार चक्कर खाते हुए  गुम हो गयी थी। 
उपर से काफ़ी गति से दौड़ती हुई गाड़ियां खिलौने की भांति प्रतीत हो रहीं थी। शायद यह रास्तां दिल्ली को जाता है। 
बारा पत्थर : से ही हम लोग लैंड्स एन्ड तथा डोर्थी सीट के लिए जाते है। घोड़े वाले बोल भाव में चतुर है खूब मोल भाव करते रहते है। इसलिए इनसे रेट तय कर ही बारा पत्थर से लैंड्स एन्ड, जाने के लिए  आगे के लिए घोड़े किराए पर लिया जा सकते हैं। लेकिन हमने तय कर लिया था कि पैदल ही लैंड्स एन्ड होते हुए डोर्थी सीट के लिए जाएंगे। घुड़ सबारी के शौकीनों के लिए करने के लिए यह सर्वोत्तम जग़ह है। थोड़े दूर घने जंगलों में चलने मात्र से राकेश रौशन निर्देशित कोई मिल गया फिल्म की शूटिंग और लोकेशंस की याद आ गयी, जिसमें इस फिल्म के मशहूर गाने कोई मिल गया की कुछेक सीन शूट्स हुए है। 
याद है हम तुम एक घने जंगल से गुजर रहें थे। बहुत देर तक कोई नहीं मिलता तो घबड़ाहट भी होती कही हम घने जंगल में गुम न हो जाए। गुलदारों का भी कभी कभी डर सताने लगता।
निर्माता निर्देशक राकेश रोशन ने नैनीताल के बैक ग्राउंड में कुछेक दृश्यों की शूटिंग कर कनाडा की खूबसूरत वादियों को अपने कैमरे में क़ैद किया था। जिसमें मल्लीताल , लेक व्यू , सेंट जोन्स स्कूल , राजभवन तथा लैंड एन्ड के रास्ते में आने वाले ब्रिटिश कालीन इमारतों को उन्होंने ख़ूबसूरती से फ़िल्माया था। सर्वाधिक शूट्स सेंट जोन्स स्कूल में किये गए थे।

गतांक से आगे १.

लैंड्स एन्ड से : दिखता खुरपा ताल  फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

लैंड्स एन्ड : हमलोग पौन घंटा लगा था जब हम लैंड्स एन्ड पहुंच चुके थे। बड़ी खूबसूरत जगह थी। सामने ऊपर से बादल का एक टुकड़ा नीचे उतर रहा था। यहाँ से भी खुरपा ताल दिख रहा था। समतल जग़ह थी किनारे में पत्थर भी थे जहाँ हमलोग काफ़ी देर तक बैठे भी थे,ना ?
नैनीताल की दिलक़श जग़ह है। यहाँ से वादियों का अद्भुत  सौंदर्य दिखता है। बारह पत्थर से कुछ दूर आगे चलते हुए आप को एक समतल जग़ह मिलेगी जहां जमीन ख़त्म होती प्रतीत होगी। यहां से भी खुरपा ताल दिखता है बादलों के झुण्ड अक्सर यहाँ नीचे घाटियों में डेरा जमाए रहते हैं। पहाड़ों से उतरती रोशनी की  छाया प्रति छाया में शौकिया फोटोग्राफर के लिए  लैंडस एन्ड एक पसंदीदा पड़ाव हैं। बारह पत्थर में आपको घोड़े वाले भी मिल जायेंगे ,लेकिन चहलक़दमी का लुफ्त ही कुछ अलग़ है। 
यही हमारी मुलाक़ात अमित से हुई थी जो एक शौकिया फोटोग्राफर है उनकी एक छोटी दूकान भी है। फोटोग्राफी से लगाव रखने वाले उनसे अपनी स्मृति बतौर खिचवाई फ़ोटो  रख सकते है। आज भी अमित हमसे जुड़े हुए हैं। 

डोर्थी सीट से दिखता नैनीताल का दृश्य : फोटो डॉ.नवीन जोशी. 

डोर्थी सीट : लैंड्स एन्ड  में थोड़े समय व्यतीत करने के पश्चात हम डोर्थी सीट के लिए पैदल ही बढ़ गए जबकि हमारे साथ के कुछ और लोग घोड़े पर थे। 
मुझे १९९८ वर्ष की एक रोचक बातचीत याद आ गयी जब हम पहली दफ़ा नैनीताल आये थे। नीचे से उपर चढ़ाई के लिए चढ़ते हुए ही हमारे साथ कुछ स्थानीय भी हो लिए थे। कुछ दूर चलने के बाद ही उन्होंने मेरा ध्यान आकृष्ट किया ,  ' ...सर , झील दिख रही है ..? '
मैने कहा ,'...हा ...दिख रही है .एकदम पास में ही तो है '
सही , क्या आप झील में पत्थर फेंक सकते है ..?  उसने पूछा तो मैंने कहा ...' हां .. क्यों नहीं ..झील में पत्थर तो पहुंचा ही सकता हूं। ' 
' कोशिश कर के देख लीजिए ..'
मैने एक छोटा सा पत्थर उठा कर बड़ी वेग से झील की तरफ़ फेंका ,लेकिन वह झील में न गिरकर न जाने कहाँ हवा में गोल गोल घूमता हुआ गुम हो गया। एकाध बार मैंने कोशिश और भी की लेकिन नाकामयाब रहा । 
तब न जाने वे साथ चलते हुए गुरु बन कर मुझे विज्ञान की बातें समझाते रहे। तब हम लोग डोर्थी सीट के लिए ही जा रहे थे ना ? अयारपाटा के जंगल से ऊपर हमलोग जब टिफ़िन टॉप पर पहुंचे थे तब हमें वहां से नैनीताल का ३६० डिग्री तक़ देखने का  व्यू मिला था। पहली दफ़ा पूरे शहर को देखना कितना अच्छा लगा था। 

गतांक से आगे २ .

  नैनीताल के अयारपाटा हिल्स  की सबसे ऊंची चोटी टिफिन टॉप, हम और तुम : फोटो डॉ. नवीन जोशी.

टिफिन टॉप  नैनीताल के अयारपाटा हिल्स  की सबसे ऊंची चोटी ही टिफिन टॉप कहलाती है जिसे डोर्थी  सीट के नाम से भी जाना जाता है। शहर से मात्र किलोमीटर की दूरी पर २२९२ मीटर की ऊंचाई स्थित इस टिफिन टॉप  का नाम कैसे पड़ा यह भी हमने जानकारी हासिल करने की कोशिश की। 
हमें  यहाँ के स्थानीय महेश सुनाथा जो डोर्थी सीट के बाजू में ही यहाँ चाय कॉफी की स्टॉल लगाते है से ढ़ेर सारी बातें की। ' उन्होंने बतलाया कि शायद टिफिन टॉप  नाम इसलिए पड़ा कि डोर्थी सीट  की ढलानों पर यहां के लोग अक्सर आकर सुस्ताते थे अपना टिफिन खाते थे इसलिए यह नाम प्रचलन में आ गया होगा । ' 
चेरी, ओक, देवदारों  से घिरे इस टिफ़िन टॉप की शोभा अप्रतिम है ,आप भी न भुला पाए। हवा एकदम से आपको छूते रहेगी। नीचे माल रोड तक़ पसरी झील दिखेगी। 
आगे तुमने बताया था , ' डोर्थी  सीट नाम क्यों पड़ा यह नहीं जानेंगे क्या ?
क्यों नहीं ,अनु ! आप बताए ....
'...जानते है इस जगह का नाम डोर्थी सीट इसलिए भी पड़ा  कि यहाँ के आर्मी ऑफिसर कर्नल जे पी केलेट ने  अपनी पत्नी डोर्थी केलेट को १९३६ के  वायुयान दुर्घटना में खो दिया था उनके साथ उनके बच्चें भी थे। तो अपनी अजीज पत्नी की स्मृति में ग़मज़दा कर्नल साहेब ने सीट का निर्माण किया था। लोग उन्हें याद भी करने यहाँ आते है। .....'
...एक बात मैं आपसे पूछू  ? आप अपनी पत्नी की स्मृति में  उनके  लिए क्या कुछ  बनाएंगे ? 
यह कैसा सवाल था ,अनु ? ...अभी तो जिंदगी शुरु भी नहीं हुई थी ...अभी से मरने की बात ...क्यों ..अभी तो पूरी जिंदगी पड़ी है .....'
मैंने हँसते हुए कहा , '..हम तो मरने के बाद नहीं ...जीते जी ही ...नैनीताल में घर बनाने की बात करते है..यदि भगवान ने चाहा तो '
सच ...' तुमने हँसते हुए मेरी तरफ़ देखा ...मैं कहीं और देख रहा था। 
' ...सच,....अनु ! ....प्रभु की कृपा रही तो तेरे घर के सामने ही एक घर बनाऊंगा... '
शायद तुम कह रही थी , ' ..जब मेरा घर है ही ..तो मेरे घर के सामने ही दूसरे घर बनाने की क्या जरुरत ?
अनुत्तरित होता हुए मैं नीचे उतरने लगा था। नीचे कहीं घाटियों में फिल्म कटी पतंग का गाना ये  शाम मस्तानी बज रहा था जो  ऊपर तक सुनाई भी दे रहा था। 
पास ही में महेश सुनाथा जी का टी काफ़ी का स्टॉल था। और हम कैसे भूल सकते हैं कि हमने वहां बहुत ही स्वादिष्ट चाय और कॉफी भी पी थी। और जो कुछ भी तुमने टिफ़िन में लाया था शायद गाजर का हलवा और मूली के पराठे वह भी हमदोनों ने  साथ ही खाए थे। है ना ,अनु तुम तो पाक कला में भी निपुण हो । 
अभी भी महेश सुनाथा जी से बातें होती रहती है। बहुत देर तक वहां रहने के बाद हम अयारपाटा के जंगल वाले रास्तें से नीचे उतर गए थे। 

डॉ.मधुप रमण.

------------------------
ये पर्वतों के दायरें, नैनीताल. 
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक.अंक १४
--------------------
.तल्ली ताल,ठंडी सड़क और पाषाण देवी का दर्शन

  यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.  
डॉ. मधुप रमण.
©️®️ M.S.Media.
साभार फोटो नेट से. 

२०२१ नवरात्रि के दिन थे। आश्चिन महीने शुक्ल पक्ष षष्टी की तिथि थी।  तब मैं अपनी यात्रा संस्मरण किताब ' ये पर्वतों के दायरें ' प्रकाशन के सिलसिले में प्रकाशक से मिलने हेतू  नई दिल्ली आया हुआ था। छतरपुर में मनीष दा के यहाँ हम ठहरे हुए थे। तब यही कोई रात्रि सबा नौ बजे के आस पास तुम्हारा फ़ोन आ गया था....अनु। 
' कहाँ हैं ...आप  ? वही चिर परिचित सवाल अधिकार वश। 
' दिल्ली में ...'
'किस लिए ...क्यों ,सब कुछ ठीक है ना , ?  कितनी आधिकारिक पूछताछ थी तुम्हारी ?
हा, सब ठीक है , किताब के प्रकाशन के लिए आया हूँ ...कहिए .....! जितनी मिठास मेरी वाणी में हो सकती थी उतनी मैंने लाने की कोशिश की थी। 
' एक शुभ समाचार देना था ,..आपको ?
' क्या ...बोलिए ,  ? 
'..सालों से नैनीताल में एक घर खरीदने की अभिलाषा थी न आपको । '
'...थी तो ....! ....मेरी जिज्ञासा थोड़ी बढ़ गयी थी. 
'..अब मैं पूरी कर दे रही हूँ ..अयारपाटा,नैनीताल में घर ख़रीद रही हूँ ।' आपने कहा , '  मेरे परिचित का ही है। विजयादशमी को ही गृह प्रवेश करना हैं। इस शुभ मुहूर्त में आपका उपस्थिति निहायत ही जरुरी है। अधिकार के साथ निमंत्रण भेज रही हूं ....आएंगे ना ...?  

नैनीताल की पहाड़ियां 

' वही अयार पाटा न , तल्ली ताल से एक सड़क जो उपर जंगलों के लिए जाती है ...शायद उधर से ही तो राज भवन जाते है ...न ', मुझे कुछ याद आ रहा था 
हा ...' कितने आत्मीय लगाव के शब्द थे तुम्हारे .. अनु ?  कोई भला कैसे टाल सकता था। सुनना तत्क्षण बहुत ही अच्छा लग रहा था । शहद की मिठास होती है तुम्हारी बातों में। 
ह्रदय के भावों की  गहराई से निकलते  हुए .., मैंने कहा था , ' बधाई  हो ! ...अद्भुत  ... प्रसन्नता हुई ! जरूर आऊंगा ...!
सुन कर ही जैसे मुझे असीम ख़ुशी हुई थी ।  बरसों की उसकी नहीं मेरी तमन्ना पूरी हो गयी थी  जैसे। लगा जीवन के कैनवास पर तेरे मेरे सपने अब एक रंग के हो गए थे । 
तुम आगे कह रही थी ,' अब  किसी होटल ..किसी नवीन दा ..के यहाँ आपको नहीं ठहरना है..आप मेरे घर में रुकेंगे। सुन रहें हैं ना ...? 
'..ठीक हैं ...पेइंग गेस्ट बन कर रहेंगे... 
'.....देख लेंगे ...आप आए  तो सही ....नैनीताल की नवरात्रि भी देख लेंगे। अष्टमी के दिन आपको माँ पाषण देवी मंदिर के दर्शन भी करा देंगे और आशीर्वाद भी ले लेंगे । '
'...वही पाषाण देवी ना ? जो तल्ली ताल से ठंढी सड़क जाने वाले रास्ते में है .... '
'...हा ...हा ...वही .पाषाण देवी ..शायद आप नहीं गए हैं । 
तुम्हें हर दिन सुनना बड़ा अच्छा लगता है । तय कर लिया एक दो दिनों के लिए जरूर जाएंगे। यह खुशी तुमसे मिलने की थी, अपने लिए ,तुम्हारे लिए। निश्चित हो गया दिल्ली से नैनीताल कार से ही चल दिए । ३२४ किलोमीटर की दूरी कोई ज्यादा तो नहीं थी ?

--------------------------------

गतांक से आगे.१ 
वापसी 

अयारपाटा नैनीताल के घर में 

सप्तमी की शाम हल्द्वानी, काठगोदाम,ज्योलीकोट,हनुमानगढ़ी होते हुए हम नैनीताल यही कोई पांच बजे पहुंच चुके थे। अकेले और नए होने की बजह से हमने मुरादाबाद,पंत नगर वाले पुराने व परिचित रास्तें का ही प्रयोग किया। 
दिल्ली की उमस वाली गर्मी से ज्योलीकोट से उपर चढ़ते ही राहत मिल गयी थी। चीड़ - देवदारों के अंतहीन सिलसिले से गुजरते हुए एक शरणार्थी की मानो घर वापसी ही हो रही थी। 
गाड़ियों की लम्बी कतारें : शहर प्रवेश करने से पहले गाड़ियों की लम्बी कतारें लगी हुई थी।  शाम के समय तिराहे पर आदतन जाम लगना स्वाभाविक ही था,न ? याद आया हनुमान गढ़ी से लौटते समय अमूमन हम जाम में फंस ही जाते थे। तल्ली ताल प्रवेश करते ही सामने चाइना पीक दिख गयी। झील की सतह पर मल्लीताल से कई पाल वाली नौकाएं तल्ली ताल की तरफ़ आ रही थी। या मध्य में रुकी थी। भीड़ पहले जैसे ही बौराई हुई भागती दिख रही थी। 
बाई तरफ़ मुड़ते ही थोड़ी दूर पर ही चर्च के आगे तुम मुझे इंतजार करते हुए मिल गयी। मेरे मन को भाने  वाली  आसमानी साड़ी में। तुमने शॉल भी ओढ़ रखा था ....सुर्ख लाल रंग का ... शायद मेरा दिया  हुआ ही। क्यों लोग इतना किसी की जिंदगी में शामिल होते है ,अनु !
दिखते मिलते ही प्यार भरे अभिवादन के शिकायत भरी तुमने झिड़की देनी शुरू कर दी थी। 
' यह क्या ..बहुत देर लगा दी ...पता है दो घंटे से प्रतीक्षा कर रही हूँ..
इस प्यार भरी झिड़की के साथ तुम्हारी स्मित मुस्कुराहट को भी मैं देख रहा था। मैंने कहा,धर्मशाला के पास से भंयकर जाम लगा था। 
' ...घर पर माँ बाबूजी कब से इंतजार कर रहें हैं..? 'आगे  तुम  कुछ ही कह रही थी, ...अगर आप इजाज़त दे तो ...अब गाड़ी मैं चलाऊंगी ...पहाड़ी रास्तें हैं न ...? आप से बेहतर  कार ड्राइव करुँगी ... मुझे चलाने दे..
'..अच्छा ! गाड़ी कब से चलाना सीखा ?
' ..आपने ही तो सिखलाया था ...गुरु जी ...दिल्ली में ...भुल गए ...'
'...अरे हा .! . सही में भुल गया था ' , यह कहते हुए मैं थोड़ा सरक गया था। ड्राइविंग वाली सीट पर तुम बैठ गयी थी। और बायीं हांथों से विंड स्क्रीन पर लगे प्रेस वाले स्टीकर को तुमने अपने नर्म हाथों से हल्के से साफ़ किया था और गाड़ी स्टार्ट कर दी थी। पल भर में गाड़ी ने थोड़ी रफ़्तार पकड़ी और हम नैनी झील की सतह से उपर पहुंच गए थे।
सिर्फ तुम : शाम ढल ही रहीं थी। पीली रोशनी अब ऊपर चोटियों  पर स्थिर हो गयी थी। पहाड़ भी अब पहले जैसे नहीं रहें थे। इनका भी दोहन होना शुरू हो गया है। पेड़ कटते गए,मकान बनते गए । मॉल रोड से लगे होटल्स,लॉज,टिन वाले तिरछे मकान ऊपर से दिखने में स्याह लग रहें थें । उधर छाया की माया जो थी। 
सोच रहा था तुम मेरे लिए क्या हो ? माया या छाया।  सच कहें तो मेरे मन की छाया जिसने कभी भी अंधेरें में भी मेरा साथ नहीं छोड़ा....! 
चाइना पीक से सटी पहाड़ियों  के पीछे सूरज कहीं छुप रहा था। वादियों में नीचे रोशनी भी कहीं डूब ही रही थी। ठंढी हवाएं अब कहीं अधिक शोख हो गयी थी। 

नैनीताल की ख़ूबसूरत वादियां : क्लिप.महेश सुनाथा.नैनीताल 

अकस्मात् कभी आए बादलों के टुकड़ें में झील कहीं ओझल हो रही थी। सामने ड्राइविंग सीट वाली खिड़की से बहती हवा के झोंकों  से तुम्हारे  चेहरें पर बिखरी लटों से रह रह कर तुम्हें परेशानी हो रही थी। तुम्हें बार बार उन बिखरी जुल्फों को धैर्य पूर्वक समेटना पड़ रहा था। 
तुमने जिस कुशलता से गाड़ी चलाई मैं तो मुरीद हो गया। कुछेक पल में ही हम अयारपाटा के बंगले में पहुंच चुके थे। इधर कुछ अतिरिक्त शांति थी। ठंड भी ज्यादा। चीड़ देवदार के पेड़ जो  अधिक थे। 
अतिथि  देवो भवः सीट से उतरते ही कार का दरवाजा खोलते हुए आपने दिल से  स्वागत करते हुए हमारी अगवानी की , ' शुभ स्वागतम ,आप का ...जो पधारे ...! यहाँ आकर आप ने  मुझ पर ढ़ेर सारी इनायत की ..इसके लिए शुक्रिया ... आपके अपने ही घर में आप  का मैं  स्वागत करती हूँ। 
सच में दो मंजिला कॉटेज नुमा बंगला बहुत ही खूबसूरत था। धीरे से मेरा हाथ पकड़े हुए  बरामदे की तरफ़ ले जाते हुए तुमने मुझसे कहा , ' आपके लिए मैंने ऊपर वादियों  की तरफ़ खुलने वाली खिड़की वाले कमरे
में रहने का इंतजाम किया है ..लेखक है ना ...कहानी ,कविताएं , ब्लॉग जो चाहे लिख़ते रहें .... !
इतना ख्याल ,इतना प्यार।  इतना अंतहीन समर्पण से भरा समर्थन सिर्फ प्यार में ही हो सकता है ,न । सम्मोहन में जैसे  वशीभूत हो गया था ,मैं। 
क्या कभी ऐसा नहीं लगता ,अनु कि भावनाओं के सैलाब आने से शब्दों के बांध  जैसे कब के टूट जाते हैं ? हम मौन टकटकी लगा कर शून्य में कुछ खोजने की कोशिश करने लगते है। 
कैसे संभाल पाएंगे हम इतना सब कुछ ? अतिथि देवो भवः के अनमोल भाव ,यह सभी पहाड़ की अनमोल धरोहर है ,न । कितने भावुक है आप लोग ,कहीं भी किसी की  कल्पना से परे ? मैं मौन होकर यहीं सोच रहा था पहाड़ी संस्कृति में रचे बसे लोग इतने देव तुल्य कैसे हो गए ? 
--------------------------------

गतांक से आगे. २.
माँ पाषाण देवी मंदिर की ओर.  


माँ पाषाण देवी मंदिर, नैनीताल : फोटो डॉ.नवीन जोशी 
 
महाष्टमी : कल नवरात्रि अष्टमी महागौरी की तिथि थी। आपने सुबह सबेरे चाय की प्याली देते समय यह बतला दिया था कि आज हमें माँ पाषाण देवी के दर्शन करने हेतु जाना है। आप अष्टमी का व्रत भी रखेंगी।
मां पाषाण देवी के दर्शन के बाद ही कुछ फल का आहार लेंगी। दिन भर उपवास में बीतेगा। 
मैंने यह तय कर लिया था कि मैं नहा धोकर पूरी तरह से तैयार मिलूंगा ताकि आप की पूजा,आराधना में तनिक भी विलंब ना हो सके और आप नियमित समय से पूजा कर सके । 
संस्कारों,परंपराओं के नियंता : मैंने ऐसा कहीं सुन रखा था कि कुमाउनी ब्राह्मण उत्तर भारत के श्रेष्ठ ब्राह्मणों में आते हैं। उनके संपर्क,संसर्ग तथा संस्कारों के अनुयायी होने मात्र से ही इस जन्म के विकार नष्ट हो जाते हैं। इसलिए तो मैंने 
आप को अपने जीवन के संस्कारों,परंपराओं का नियंता बना दिया था। किंचित आप के सानिध्य में आने मात्र से ही स्वयं के जाने अनजाने में किए गए पाप कर्मों से मुक्ति पा सके, और कुछ तो अपने जीवन का विकार धूल जाए। जीवन का लक्ष्य फलीभूत हो सके,इसलिए आपकी बातों का अक्षरशः पालन करता हूँ ।
समृद्ध,उदार और महानतम  हिन्दी संस्कृति : आप भी इतने दिनों मेरे साथ रहते हुए जान गई थी कि मैं समृद्ध,उदार और महानतम हिन्दी संस्कृति का समर्थक हूँ। 
साथ ही साथ कबीरपंथी विचारधारा का अनुयायी भी,मानवीय मूल्यों वाले सभ्यता,संस्कृति धर्म का पोषक हूँ। किसी भी धर्म की कट्टरता का हिमायती नहीं हूँ। हम समयबद्ध थे। प्रातः ८ बजे तक हम तैयार भी हो गए थे। 
आपने कभी भी अपनी विचार धाराएं थोपी नहीं और मैंने कभी अपने मन की की नहीं। 
यहीं तो शाश्वत प्रेम हैं न,अनु.....? बिन बोले सम्यक मार्ग की ओर हम सभी प्रवृत हो। है ना ....! 
शक्ति स्वरूपा लाल सुर्ख साड़ी,पैरों में आलता लगाए,पीली चुनरी और हल्के आभूषण के श्रृंगार में आप दिव्य रूप में जैसे मां की शक्ति का प्रतीक ही दिख रही थी।
पूजा की थाली,चढ़ाई जाने वाली दूध की बनी आवश्यक सामग्री आदि लेकर घर से चलते हुए हम तल्लीताल स्टैंड तक पहुंच गए थे। और वहां तक मैंने खुद ही गाड़ी चलाई थी। तल्लीताल के बस स्टैंड में कार को खड़ी करते हुए हम ठंडी सड़क की तरफ पैदल ही बढ़ गए थे। मुझे मालूम था पाषाण देवी का मंदिर यही कहीं झील के मध्य में ही स्थित है। 

पत्थरों में उभरी माँ पाषाण देवी की प्रतिमा : फोटो डॉ.नवीन जोशी  

आगे बढ़ते हुए तुम कह रही थी, '..जानते हैं ...तल्लीताल मल्लीताल में इन दिनों नवरात्रि के अवसर पर रामलीला का जबरदस्त आयोजन होता है जिसे देखने के लिए स्थानीय लोगों की काफी भीड़ जमा होती है...' 
मुझे भी थोड़ी जानकारी अपने मित्र संपादक नवीन दा के अखबारों, पोर्टल न्यूज़ के जरिए मिल ही जाती है।यह हम सभी पत्रकारों,लेखकों,संपादक बंधुओं के बीच एक अच्छी बात है कि अपनी सभ्यता और संस्कृति गत जानकारी रखने निमित हम कहानियां ,लेखों और आलेखों का आदान प्रदान कर,अपनी समझ  की साझेदारी करते है एवं बुद्धिजीवी होने का संकेत देते हैं। 
प्रत्यक्ष था कि ५०० मीटर की दूरी तक हमें पैदल ही चलना था क्योंकि इधर ठंडी सड़क पर कोई रिक्शा आदि नहीं चलता है । हम बड़े आराम से कदम बढ़ा रहे थे,ताकि बातें भी होती रहें,कहानी भी बयां होती रहे। 
हाथ में पूजा की थाली लिए ठंडी  सड़क पर चलते हुए आपने माता पाषाण देवी के बारे में बतलाना शुरू कर दिया था। मैं जिज्ञासु बना आपकी बातों को बड़ा एकाग्रता से ध्यान पूर्वक सुन रहा था। 
मां पाषाण देवी : शक्ति पीठें  '..माता  की भक्ति में ही अपरंपार शक्ति है। मां तो सती का रूप ही है। आपको भी ज्ञात है कि माँ पार्वती की देह से अलग होकर उनके अंग जहाँ - जहां गिरे वहां शक्तिपीठें निर्मित होती चली गईं। प्रतीत होता है माता पार्वती के नयन नैनीताल में गिरे थे और उनसे निःसृत होती आंसुओं की धारा से नैनी झील का निर्माण हुआ था । .....क्योंकि दिखने इस झील की आकृति ही आँख जैसी ही हैं। '
'.....याद है आपको ...जब हम चाइना पीक गए थे तो वहां से नीचे झील देखी थी ,तो यह झील माँ की आँखों जैसी दिख रही थी । .....दिख रही थी  न ?' 
मैंने हा में सर हिला कर अपनी सहमति जताई थी ,' ...सच में '
' ...इस झील के किनारे ही मल्लीताल में माता नैना देवी का मंदिर है जो आपने देखा ही है। और ठीक उस जगह से ही तल्लीताल की तरफ जाने के लिए ठंडी सड़क आरम्भ होती है। ...हमलोग तो मंदिर कितनी दफ़ा गए है,गए है न ? ' 

ठंडी  सड़क, मैं और नैनीताल की मेरी यादें : कोलाज विदिशा 

मैंने याद करने की कोशिश कि,... ' यही कोई तीन चार बार। '  
'...हम उस तरफ़ मल्ली ताल से भी आ सकते है और तल्लीताल से भी जा सकते है ...'
' ....आपको बताए यहां के लोग कहते है कि इस अयारपाटा की पहाड़ी के दक्षिण - पूर्वी तल पर ही माता क़े अंग से ह्रदय और अन्य हिस्से यथा पाषाण आदि भी गिरे थे जिससे उस स्थान पर पाषाणदेवी का मंदिर बना है.....। '
'....पाषाणदेवी के इस मंदिर में देवी माँ की पूजा शिला में उभरी एक आकृति के रूप में की जाती है। ..आकार में विशाल इस शिला में आप ध्यान से देखेंगे तो देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों के  दर्शन भी होंगे...।'
हम झील के किनारे थे। कुछ पाल वाली नौकाएं एकदम क़रीब से गुजर रही थी।   
' ... सच में यह एक अद्वितीय,अनोखी चट्टान है,अपने मन की आस्था की। माना जाता कि इस चट्टान पर माँ का मुख दिखाई देता है तो उनके पैर नीचे झील में डूबे हुए हैं। हम कह सकते है कि पाषाण देवी का मंदिर नैनीताल का सबसे पुराना मंदिर था। '
जन आस्था : '.....इस मंदिर में आसपास के गाँवों के पशुपालक लोग माँ को दूध से बने पदार्थ और मट्ठा चढ़ाया करते थे।ग्रामीणों में पाषाण देवी का आज भी वही स्वरुप पूज्यनीय माना जाता है। मान्यता है कि पाषाण देवी के मुख को स्पर्श किये हुए जल को लगाने से त्वचा रोगों से तो मुक्ति मिलती ही है, प्रेतात्माओं के पाश से निकलने की राह भी खुलती है।'
'....अगर मैं भी आपसे प्रेम की बाधा में पागल हो गयी,प्रेत बन गयी तो मुझे भी मुक्ति के लिए पाषाण देवी के पास ही ले आइएगा, सुन रहें है, न ...? '
सोचने लगा...' पता नहीं हमदोनों में से पहले कौन पागल होगा,कौन जानता है ? 
तुम्हारे इस सवाल का भला मैं क्या जवाब देता ? भावनाओं के शिखर पर समाज और बंदिशों के थपेड़े में बमुश्किल संभलते हुए किसकी स्मृति दोष में चली जाएंगी...किसे पता .....! 

पाषाण देवी , नैनी झील का दृश्य : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

--------------------------------

गतांक से आगे.३.
माँ का दर्शन.


पाषाण देवी के परिसर में श्रद्धालू : फोटो डॉ.नवीन जोशी .
 
एक अखंड दिव्य ज्योति : आप कह रही थी, '... नव दुर्गा रूपी शिला के नीचे एक गुफा है कहते है इसके अंदर नागों का वास है। मंदिर की स्थापना के काल  से ही यहाँ एक अखंड दिव्य ज्योति प्रज्जवलित रहती है। मैं आपको दिखलाऊंगी भी। देवी को चढ़ाए जाने वाले श्रृंगार को उनके वस्त्रों की भी प्रचलित मान्यता है। 
जन श्रुति यह भी है कि  माता दुर्गा को चढ़ाए जाने वाले अभिमंत्रित जल को प्रत्येक दस दिन में एक बार निकाला जाता है और उसे प्रयोग में लाने से हकलाहट दूर होती है। और अन्य ऐसी ही व्याधियों के रोगियों को औषधि के रूप में यह जल सेवन के लिए दिया जाता है। 
  
किसी शोधार्थी  की तरह आप मंदिर के इतिहास और उससे जुड़ी आस्था के बारे में बतला रही थी। आखिर ...तुम्हें इतनी जानकारी कहाँ से हासिल हुई, अनु ,?'
तो तुमने हँसते हुए कहा ,'  ... आपकी शिष्या जो हूँ ...आखिर आपके शोध ,लेख ,कहानियों  के लिए मुझे जानकारियां तो इकट्ठी करनी ही होंगी ,न। '
तभी अचानक तुम्हारे पैरों के नीचे न जाने कहाँ से एक बजरी आ गया। या तुमने मेरी तरफ बात करते हुए नीचे देखा नहीं। तुम लड़खड़ाने लगी थी,असुंतलित होकर कहीं गिर न जाओ, इसके पहले ही मैंने तुम्हारी बाँहें पकड़ ली थी,और आप संभल गयी थी । 
मैंने पूछा , ' कंकड़ था ...गिर ही जाती ....कहीं चोट तो नहीं लगी...?
'...नहीं ..आप है न ..! ...गिरने थोड़े ही देंगे ? '
'...इतना विश्वास मुझ पर ! क्या यह ठीक है ? ' मैं सोचने लगा था।
'...सच कहूं ...भगवान से भी ज्यादा ....' , तुमने धीरे से कहा था । 
पाषाण देवी के दर्शन :
 थोड़े क्षण उपरांत हम मंदिर परिसर में थे। यही कोई नौ बज रहा था। पहाड़ों के लिए यह सुबह ही थी। यहाँ लोग देर से ही उठते है। 
कुछेक लोग ही थे। शायद दिन ढ़लते भीड़ बढ़नी शुरू हो जाए। हमें मिलाकर यही कोई दस बारह लोग ही थे। 
मंदिर के पुरोहित ने पाषाण देवी माँ का दर्शन करवाया। भीतर सब कुछ वैसा ही मिला जैसा आपने बतलाया था ..नवदुर्गा ..अखंड ज्योति ...नाग ..प्रतिध्वनि उत्पन्न करने वाली गुफाएं। सब कुछ वैसा ही था,आपने बताया था और अभी हम सामने देख रहें थे। दर्शन के पश्चात हमने पुजारी से प्रसाद ग्रहण किया। मैंने देखा आपने अभिमंत्रित जल मंदिर भी सहेज कर एक शीशी में रख ली थी। शायद कभी किसी की व्याधि में ही काम आ जाए। 
मंदिर से निकलते हुए आपने बताया, '...जानते है परिसर में निर्मित हनुमान प्रतिमा और शिवलिंग बाद में स्थापित किया गया है । यही बात मंदिर के समीप स्थित गोलू देवता के बारे में भी सत्य मानी जाती है। लोकमान्यता के अलावा यदि आप पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्यों की मानते है  तो नैनीताल का पाषाण देवी मंदिर उत्तराखण्ड के सबसे पुराने शिला - शक्तिपीठों में से एक है. 

ये दिल और उनकी निगाहों के साए : ठंडी  सड़क नैनीताल की मेरी यादें :  फोटो भरत 

घर वापसी के लिए हम तल्ली ताल की तरफ़ बढ़ गए थे। आप थक चुकी थी और मेरे सहारे वश चल पा रही थी। जब किसी जाने अनजाने सफर की मंजिल में हमसफ़र कोई मेरे अपने शामिल हो तो वक़्त का गुमान ही नहीं होता है। उनकी निगाहों के साएं में राहें लम्बी होती जाए तो बेहतर ...!
दूर कहीं वहीदा रहमान और कमल जीत अभिनीत फिल्म शगुन फिल्म  का बजता हुआ यह गाना ...पर्वतों के पेड़ों पर शाम का वसेरा है हमें सुनाई दे रहा था। और मैं कहीं अपनी तुम्हारी सुनहरी यादों में खो गया था। 
'..गाना सुन रहें हैं ,ना ? '...तुमने जैसे जानने की कोशिश की। 
'..हा ..सुन रहा हूँ 
'....इसी ठंडी सड़क पर ही यह गाना फिल्माया गया था। ....जानते हैं न ?'
' हा ..!' ...मैं गाने की धुन और इसके दृश्य में खो गया था..और आप मेरे पहलू में ...थोड़ी और भी करीब आ गयी थी ....झील से सरकते पल भर के लिए आए धुएं के बादल में  हम दोनों खो गए थे....। 

फिल्म शगुन में ठंडी सड़क से दिखते मॉल रोड नैनीताल के नजारें 

नैनीताल ,ठंडी सड़क की तरफ से नज़ारे देखने के लिए नीचे दिए गए फिल्म के गाने का लिंक 

--------------------------------

गतांक से आगे.४.
विजयादशमी की तिथि और  गृह प्रवेश. 

 : एक बंगला बने न्यारा : कोलाज विदिशा 

विजयादशमी की तिथि : शारदीय नवरात्र में  विजयादशमी की तिथि थी। कहते है यह दिन अति शुभ होता है किसी भी शुभ कार्य को किया जा सकता है। आपने इस दिन ही गृह प्रवेश का  शुभ मुहूर्त रखा था। आपकी आग्रह पर मैंने हल्द्वानी - नैनीताल में रहने वाले अपने कुछ परिचितों को,यथा  प्रेस से जुड़े अख़बार नवीसों,छायाकारों,मित्रों को निमंत्रण भेज दिया था। ले दे के कुछेक दो तीन ही लोग थे। नवीन समाचार के संपादक नवीन दा, शौकिया छायाकार अमित कुमार, हल्द्वानी के स्तंभकार रवि शर्मा, और मनोज पांडे। इतने लोग ही न मेरी जान पहचान के थे ? लेकिन गृह प्रवेश की पूजा में सिर्फ नवीन दा ही आए थे। 
मल्लीताल आर्य समाज मंदिर के कुछ लोग भी मेरी जान पहचान के थे अतः मैंने उन्हें भी बुलावा भेज दिया था। 
पूजा के विधि विधान : प्रातः काल आठ बजे से ही विधि विधान आरम्भ हो गए। आर्य समाज की वैदिक रीति से गायत्री मंत्रोंच्चारण के साथ हवन आदि का कार्य एकाध घंटे में संपन्न हो गया। हम सभी उसमें शामिल हुए। हरे रंग की बॉडर वाली पीले रंग की साड़ी में हवन आदि कर्म करते हुए एक सही गृह स्वामिनी लग रही थी। माथे की लाल बिंदी हवन की प्रज्जवलित अग्नि में और भी सुर्ख लग रही थी। शायद बंगाल में सेवा के सिलसिले में बहुत दिनों तक रहने की बजह से आपके परिधान और श्रृंगार में बंगाल का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। अमूमन ऐसे मौके पर आप परिधान में साड़ी पहनना अधिक पसंद करती है।   
गृह प्रवेश की रस्में : यह बड़ी शुभ घड़ी थी जब गृह प्रवेश के क्षण चावल के कणों वाले भरे कलश को जैसे ही आपने अपने नर्म पैरों से मात्र धकेला तो तंदुल के नन्हें असंख्य कण फ़र्श पर बिखर गए थे। अपने परिजनों से आशीर्वाद लेने के बाद आहिस्ता कदमों से चलते हुए सबके हार्दिक अभिवादन के बीच आपने गृह स्वामिनी होने के अधिकार को हासिल किया था ।  
सबों के लिए प्रीति भोज का भी आयोजन था। अपराह्न चार बजे तक हम इन सभी चीजों से फ़राग़त पा चुके थे। 
गृह प्रवेश की रस्में : 

शाम की तफ़रीह और डोर्थी सीट : सुस्ता लेने के बाद आपने कहा, ' ... चलिए डोर्थी सीट से घूम आते है। शाम की तफ़रीह भी हो जाएंगी।' चूँकि अयारपाटा की पहाड़ी के साथ ही डोर्थी सीट थी इसलिए शाम बिताने हेतु हम चल दिए।
रास्ते तय करते समय मैंने धीरे से कहा,तुमसे , ' अगर इजाजत हो तो कुछ बोलूं  ...'
' बोलिये...' 
' कल वापस जाना चाहता हूँ ..दिल्ली ...अनुमति है...  !'
जैसे मैंने  खुशी के मौके पर तुम्हें गम का फ़साना सुना  दिया था ! 
' कल ..! कल तो कदापि नहीं ...एक अति आवश्यक काम है ...उसे पूरा करना है ..?
' क्या काम है,अनु ....?
' बतलाऊँगी ...' यह कह कर तुमने अकस्मात् ही अपना चेहरा दूसरी तरफ़ घुमा लिया था । शायद कुछ छुपाने के लिए। अंतर्मन की फैली उदासी,या फिर आँखों की नमी..या फिर कुछ और भी  जिससे शायद मैं आपके भावों को  पढ़ न सकूं ? 
' क्या थोड़े दिन और रुक नहीं  सकते ...? ' तुमने फिर कहा ,मुझसे।  
' आप बताएं ...क्या ऐसे ही बिना काम के यहां रुकना लाजमी है  ?...वहां काम भी शेष तो पड़ा है ,है न ?'
' हूँ ..वो तो हैं। ' तुमने भी सहमति में अपना सर हिलाया।  
इसके बाद जितनी देर हम डोर्थी सीट पर रहें तुम  खामोश ही रहीं। मन बहलाने के लिए मैं न जाने क्या क्या कहता रहा ,बोलता रहा। लेकिन तुम कहीं  अपने ख्यालों में गुम ही रही। धीरे से मेरे कंधे पर अपने सर टिकाएं आप केवल हा हूँ ही करती रहीं। 
मैंने डोर्थी सीट के पास की महेश सुनाथा टी स्टाल के यहाँ से चाय लाकर भी दी थी, तुमने चाय ली तो सही लेकिन कितने अनमने ढंग से पी ,मैंने देखा था । तुम तो कुछ और ही ,कहीं और ही सोच रही थी। 
उस दिन डोर्थी सीट की पहाड़ियों के पीछे से निकलता हुआ चाँद कितना उदास था, अनु। फीका फीका सा,अपनी आभा खोए हुए। 

टिफिन टॉप से निकलता चाँद और डोर्थी सीट की मेरी यादें : फोटो डॉ.नवीन जोशी 

तुम एक पहेली : हम देर शाम तक वही थे। जैसे आज की रात  तुम चाँद को डूबने की इजाजत ही देना नहीं चाहती थी। लेकिन क्या कभी ऐसा हो सका है ..समय तो गतिमान है न  ...? घर लौटे रात के नौ बज चुके थे। 
 '..मैं बस अभी आती हूँ। आप अपने कमरे में जाए...., '  यह कह कर आप जीने से उपर जाने लगी।  
कमरे में जाकर लाइट ऑन करने के पश्चात मैं खिड़की के पास चला आया था। बिखरे सामानों को देखने लगा। कल मुझे जाना था। बाहर बरामदे  में चाँद की उदास फीकी रोशनी बिखरी पड़ी थी। 
तभी एक फाइल लेकर आप कमरे में दाखिल हुई.. और कोने में लगे गोल मेज पर आपने एक ब्लू रंग की फाइल रख दी। फाइल से फिर ढ़ेर सारे कागज़ात निकाल कर टेबल पर रख दिए। 
' क्या हैं..., ?'  मैंने पूछा।   
' कुछ है ... जरुरी कागजात ...आपको ..दिखाना है । ' 
अभी तक सबकुछ मेरी समझ से परे था पहेली जैसा ही । 
आपने कहा , .' कुछ कागज़ात है .. आप खुद ही पढ़ लीजिये ..शायद आपके काम की ..है ! ' यह कहते हुए तुमने ब्लू रंग की पूरी फाइल ही मुझे दे दी थी। 
मैं ध्यान से पन्नें पलट कर देखने लगा पढ़ भी रहा था।  ...किसी घर की रजिस्ट्री के काग़जात थे। शायद इस घर के ही ...  बतौर क्रेता ख़रीददारी  में आपने मेरा और अपना नाम डाल  रखा था ...यह सब क्या है  ? ...एकदम मेरी कल्पना से कोसों दूर। शायद इस जनम में तो मैं सोच भी नहीं सकता था। कभी न सोची  गयी किसी पहेली के हल की तरह।  
तुम कह रही थी , ' ...मैंने यह घर हमदोनों के नाम ली है...,..कल रजिस्ट्री होनी है ...इसलिए आपका रुकना जरुरी है,इसलिए मैंने आपको कल के लिए रोका है । 
आप कह रही थी आगे भी.... 
'....बहुत दिन से सोच रही थी मुझे कुछ देना है आपको। ...आप मेरे गुरु जो ठहरे .. यह आपकी मेहनत ही है न ? जो  ...मैं इस मुकाम पर हूँ  ...आपने तो ही मुझे इस लायक बनाया है।  ठीक कह रही हूँ न ?
....याद आ गए वे दिन जब मैं दिल्ली  में रह कर मैं मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई भी कर रहा था  साथ ही साथ सिविल सेवा सर्विसेज़ प्रतियोगिता के लिए तैयारी भी कर रहा था। हमने इसके लिए कोचिंग में दाखिला भी ले रखा था। उन दिनों आप भी  दिल्ली में ही रह कर लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी कर रही थी। तब  हम कोचिंग के क्लासेज में ही मिले थे पहली पहली बार। आप नैनीताल से थी । हमने बड़ी मेहनत की थी।  साथ की पढ़ाई में दिन रात एक कर दिया था ...और आपने एक दो प्रयास में ही तब  लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठा मूलक परीक्षा निकाल ली थी। ऊँचे पद पर स्थापित हो गयी थी। आप हमसे कहीं ज्यादा जहीन निकली थी।   
आप कह रही थी , ' .सच्ची ..आप न होते तो मैं परीक्षा में क्या सफल होती ..... कदापि नहीं ... इस नाते तो
मेरा हक़  बनता है न ....कि आपको कुछ भेंट करूँ ....बतौर गुरु दक्षिणा ही सही ...इस  रूप में ही समझ कर मेरी भेंट को स्वीकार कर लीजियेगा  ... करेंगे न ? ,..सुन रहें है न ?
सुन तो मैं रहा ही था। ह्रदय के बने अंतरंग संबंधों का इतना बड़ा दायित्व ? भावनाओं का इतना विशाल  ऋण .. भला मैं कैसे चुका पाऊंगा ताउम्र । आसमान के तमाम तारें जैसे जमीं पर आ गए थे। सपनों के महल की तामीर जो बन रही थी। 
मैंने पूछा, ' ..कितना लगा ? ' मेरा तात्पर्य इस घर को खरीदने में लगी राशि से था। 
' छोड़िए उसे ...' आपने कह कर टाल दिया था। 
' फिर भी...यूँ ही जानने के लिए ... आप बताए ...तो सही ...मैं भी अपने हिस्से की राशि कुछ देना चाहता हूँ...।'
' कुछ देना ही चाहते है ..न ....कुछ भी  ...?  तो हो सके  मुझे आप अपना अनमोल समय ही दे दीजिये... ...मुझे बस आपका साथ चाहिए  ..और कुछ भी नहीं ....देंगे आप ...? ....बहुत अकेली रह चुकी हूँ ...मैं ..अब नहीं रह सकती। ' जैसे कुछ मांगने के लिए आपने मेरी दोनों हथेलियां अपने हाथों में ले ली थी।   
और मैं अनुत्तरित हो गया था । भला इस भावुक सवाल का क्या जवाब हो सकता था ,अनु ? हा ही न ?
न तो कहीं था भी नहीं मेरे भीतर,कभी रहा ही नहीं । तुम्हारे लिए तो इस जनम में क्या सौ जन्म में भी सिर्फ हा ही होगा न।  यही चिर सत्य है ,था और रहेगा भी। 

नैनीताल से दिखती हिमालय की चोटियां : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 


चौदहवीं का चाँद : ...सामने देवदार के पेड़ से छिपा दशमी का चाँद फिर से निकल आया था। प्रकाश कुछ ज्यादा हुआ तो बाहर खिड़की से आती छिजती रोशनी तुम्हारे चेहरे पर उतरने लगी थी । तुम मेरे साथ खड़ी थी मेरे कंधे से अपना सर टिका कर। खूबसूरत सा छोटा चेहरा, हथेलियों में समाने लायक ,घनी जुल्फें, झील सी गहरी आँखें ...मगर थोड़ी उदास ...नींद से बोझिल ....
बाहर भले ही दशमी का चाँद निकला था मगर तुम तो मेरे लिए चौदहवीं का चाँद ही थी ....अनु ...! एकदम से सफ़ेद ...पाक ,..बेदाग...। 
मेरी सांसें, मेरी आस मेरे जीवन की डोर ...सब कुछ तो मैंने तुम्हें ही सौप रखा था ...न ? हर जनम के लिए ..सिर्फ तुम्हारे लिए ....! 
 
पल भर में बदलते हैं मौसम के नजारें : डोर्थी सीट.महेश सुनाथा 


©️®️ M.S.Media.
इति शुभ 
------------------
सुबह और शाम .पृष्ठ ०. 
------------------- 
यात्रा संस्मरण. 

शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन. 

यात्रा वृतांत ये पर्वतों के दायरें से साभार.  

डॉ. मधुप रमण.
©️®️ M.S.Media.

नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी थी। दिल्ली से हमारी पत्रिका के  प्रधान संपादक मनीष दा ने फ़िर से मुझे आग्रह किया कि इस साल भी  नैनीताल से दशहरे की कवरेज मुझे ही करनी होगी।  क्योंकि मैं नैनीताल से प्रारंभ से ही जुड़ा हुआ हूँ वहां के पत्रकारों के संपर्क में हूँ ,और लिखता रहा हूँ इसलिए उन्होंने यह दायित्व मुझे ही सौप दिया। 
डॉ. मधुप 

हालांकि इस बार मैं पश्चिम बंगाल में किसी पहाड़ी जगह सिलीगुड़ी , मिरिककलिम्पोंगकुर्सियांग  या दार्जलिंग जैसे इलाक़े से दशहरे की कवरेज करना चाहता था। 
पश्चिम बंगाल के  दशहरे के बारे में मैंने काफ़ी कुछ सुन रखा था। सोचा था इस बार अपनी आँखों से वहां की धार्मिक ,सांस्कृतिक,आस्थां से परिचित हूँगा  लेकिन मुझसे कहा गया वहां से  प्रिया नवरात्रि की कवरेज कर रहीं हैं या करेंगी इसलिए मुझे  अपनी मन पसंदीदा जग़ह  नैनीताल से ही नवरात्री की कहानी लिखनी होगी। 
अतः इसके लिए मुझे तैयार होना होगा। सच कहें बात तो दरअसल में कुछ और थी। 
आप इन दिनों प्रशासकीय कार्यों के निमित यूरोप में हो रहे सम्मलेन में शिरक़त करने  के लिए दस दिनों के लिए स्विट्ज़र लैंड के दौरे पर थी। और आपकी अनुपस्थिति में नैनीताल में रहना ,भ्रमण करना फिर लिखने जैसे दायित्व को पूरा करना एक बड़ा ही मुश्किल कार्य प्रतीत हो रहा था। 
सच ही है ना ? तुम्हारे बिना नैनीताल में कुछेक दिन गुजार लेना कितना मुश्क़िल होगा ,अनु। शायद मैं ही जानता हूँ। संभवतः प्रेत योनि में भटकने जैसा ही मात्र। 
लेखन कार्य के लिए शक्ति व परिश्रम चाहिए । मानसिक शांति भी तो जो निहायत ही जरुरी है। मेरी मानसिक शांति ,मेरी शक्ति सब कुछ तुममें तो निहित है ,न। शायद निहित रहता है और युग - युगांतर तक तुम में ही केंद्रित रहेगा। और फिल वक़्त तुम मेरे साथ हो नहीं तो इस कार्य को सफलता पूर्वक कैसे कर पाऊंगा, मैं वही सोच रहा था ? मैं दुविधा की स्थिति में था। लेकिन पत्रकारिता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया था इसलिए इसे भी मुकम्मल करना ही था, इसलिए दृढ़ होना पड़ा । जाने की तैयारी करनी ही पड़ी। 
रिपोर्ट,फोटो  और कवरेज के लिए इधर उधर भटकना,वो भी आपके सहयोग के बिना कितना दुष्कर कार्य होगा, हैं न अनु ? रात - दिन तुम्हारी यादों की घनी धुंध अपने मनो मस्तिष्क पर छाई  रहेंगी। बाक़ी की कल्पनाएं धुंधली धुंधली सी दिखेंगी , ऐसे में मैं लिखने जैसे गुरुतर भार के साथ कितना न्याय कर पाऊंगा यह तो गोलू देवता ही जानेंगे। सच तो यही है न जो कुछ भी मैं लिखता हूँ, वह अंतर्मन के प्रभाव में रहता है।  इधर हाल फिलहाल जो भी लिखता रहा ,उसके पीछे की छिपी प्रेरणा शक्ति तो आप ही रहीं   हैं  न ! शायद एक बजह भी। 
आपने फ़ोन पर मुझे सख़्त हिदायत दे दी थी कि मुझे अयारपाटा वाले बंगले में ही ठहरना है,आपके नए बंगले में। लेकिन मैंने मन ही मन में निश्चित कर लिया था कि मैं वहां नहीं ठहरूंगा। मल्ली ताल के आर्य समाज मंदिर में ही रुकूंगा क्योंकि शायद थोड़े पल के लिए आपकी यादों के घने सायों से बाहर निकलने की नाकामयाब कोशिश क़ामयाब हो जाए.....और मन चित शांत कर लिख सकें। इस सन्दर्भ में मैंने अपने संपादक मित्र  नवीन दा से बातें कर भी ली थी। वह जाकर वहां कमरा ठीक कर देंगे। मैं यह भी भली भांति जानता था इस लिए गए आत्म निर्णय से आप हमसे बेहद नाराज़ होंगी। लेकिन कुछ कहेंगी भी नहीं यह भी मैं जानता ही हूँ। 
कोई अपने घर के रहते मंदिर ,धर्मशाला और गुरुद्धारे में भला रुकता है क्या ,नहीं न ? पागल पंथी ही है, सब यही कहेंगे न ?

-----------------
शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
गतांक से आगे : १.

सप्तमी
 की देर रात ही हमें अपने गंतव्य स्थान के लिए निकलना पड़ा। पत्रकारों ,कहानीकारों का जीवन ऐसे ही जोख़िम भरा होता है। कब हमें रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़े ,कहाँ जाना पड़े ,कोई सुनिश्चित नहीं होता । हम आदेश के पालक होते हैं। पल में हम कहाँ होंगे हम भी नहीं जानते है। कैमरा , लैप टॉप , मोबाइल ,बैटरीवाई फाई ,चार्जर,आई कार्ड, डेविड कार्ड  बगैरह आदि सब मैंने अपने बैग में सुबह रख लिया था। देर दोपहर तक़ ९०२ किलोमीटर की दूरी तय कर हमें नैनीताल पहुंच ही जाना था । 
सुबह नौ के आस पास मैं बरेली पहुंच चुका था। मेरी सुविधा के लिए ही  मेरे बड़े भाई जैसे हल्द्वानी के संपादक रवि शर्मा ने अपनी कार भिजवा दी थी जिससे मैं शीघ्र अति शीघ्र नैनीताल पहुंच सकूँ । कितना ख़्याल रखा था भैया ने ? कैसे मैं आपका आभार प्रगट करूँ। 
सच अनु कभी कभी ख़ुद से मन के बनाए गए  रिश्तें कितने संवेदनशील होते है । स्थायी भी , है ना। कभी कुछ कहना नहीं पड़ता है। हम बेजुबान होते हुए भी सब समझ जाते है। जरुरत के हिसाब से एक दूसरे के चुपचाप काम आ जाते हैं।  इसी आस्था का नाम ही तो पूजा है ना, ..किंचित समर्पण भी । 
अपराहन तीन बजे तक़ मैं नैनीताल में पहुंच चुका था। थोड़ी ठंढ मेरे एहसास में थी। नीचे तो मैदानों में अभी भी उमस वाली गर्मी ही थी। 
तल्ली ताल बस स्टैंड से गुजरते हुए जब लोअर माल रोड के लिए मेरी गाड़ी मुड़ी तो अनायास ही तुम्हारा सलोना चेहरा मेरे सामने आ गया था। यहीं कोई पिछले साल की ही तो बात थी न ? दशहरे का समय भी था। आपके गृह प्रवेश के सिलसिले मैं आया हुआ था। आपने अयारपाटा में एक पुराना ही मकान ख़रीदा था। 
सामने वायी तरफ़ माँ पाषाण देवी का मंदिर दिखा तो सबकुछ देखा अनदेखा दृश्य चल चित्र की भांति अतीत से निकल कर मेरी आखों के समक्ष आने लगा था । एक बड़ा सा चट्टान का टुकड़ा न जाने कब पहाड़ से टूट कर झील में समा गया था। शायद पिछले साल ही अगस्त के महीने में । लेकिन माँ पाषाण देवी को रत्ती भर नुकसान नहीं हुआ था। अभी भी इस तरफ़ से बड़े बड़े बोल्डर गिरे पड़े दिख रहें  थें । तुमने कभी कहा था माँ पाषाण देवी ही नैनीताल की रक्षा करती है। 
मुझे याद है ........मैं आपके अयारपाटा के बंगले में ठहरा हुआ था ,ऊपर वाली बालकनी से सटे रूम में जिसकी खिड़कियां बाहर खुलती थी । एक इकलौता कम पत्तों वाला पेड़ शायद अभी भी हो वहां पर। 

अयारपाटा के डोर्थी सीट से दिखती नैनीताल की पहाड़ियां : फोटो महेश.

महाष्टमी : आज की तरह ही एक साल पूर्व भी  नवरात्रि अष्टमी महागौरी की तिथि थी। आपने सुबह  सबेरे चाय की प्याली देते समय यह बतला दिया था कि आज हमें माँ पाषाण देवी के दर्शन करने हेतु जाना है। आप अष्टमी का व्रत भी रखेंगी।
मां पाषाण देवी के दर्शन के बाद ही कुछ फल का आहार लेंगी। दिन भर उपवास में बीतेगा। 
मैंने यह तय कर लिया था कि मैं नहा धोकर पूरी तरह से तैयार मिलूंगा ताकि आप की पूजा,आराधना में तनिक भी विलंब ना हो सके और आप नियमित समय से पूजा कर सके । 
याद है अनु  हम कितना समयबद्ध थे। प्रातः ८ बजे तक हम तैयार भी हो गए थे।
यहीं तो शाश्वत प्रेम हैं न, अनु.....? बिन बोले सम्यक मार्ग ,सम्यक कर्म की ओर हम सभी प्रवृत हो। है ना ....! 
माल रोड पर लम्बा जाम लगा हुआ था, और मेरी गाड़ी कतार में खड़ी थी। मुझे शायद इसकी तनिक फ़िक्र भी नहीं थी ,मैं तो कहीं और खोया हुआ था । अतीत में ,ये वही पल दो पल की हमारी तुम्हारी यादें हैं जो मेरे जीवन भर की अर्जित सम्पत्ति है। 
महाष्टमी के दिन मैं कैसे भूल सकता हूँ ? शक्ति स्वरूपा लाल सुर्ख साड़ी,पैरों में आलता लगाए, पीली चुनरी और हल्के आभूषण के श्रृंगार में आप दिव्य रूप में जैसे मां की शक्ति का प्रतीक ही दिख रही थी। शांति  स्वरूपा भी। 
सच कहें तो मुझे शांति और शक्ति दोनों अधिकाधिक चाहिए था ,है न। शांति लिखने मात्र के लिए और शक्ति स्वास्थ्य के लिए। ये दोनों चीजें ही अहम हैं हमारे लिए। मन अशांत हो तो लिख नहीं पाता हूँ। सब ख़ुशी व्यर्थ रहती है । शक्ति नहीं है तो जीवन आश्रित और निरर्थक हो जाता है ,किसी शरणार्थी की भांति । 

नैनी झील ,ठंढी सड़क और माँ पाषाण देवी मंदिर : फोटो विदिशा 

पूजा की थाली,चढ़ाई जाने वाली दूध की बनी आवश्यक सामग्री आदि लेकर घर से चलते हुए हम 
तल्लीताल स्टैंड तक पहुंच गए थे। और वहां तक मैंने खुद ही गाड़ी चलाई थी। तल्लीताल के बस स्टैंड में कार को खड़ी करते हुए हम ठंडी सड़क की तरफ पैदल ही बढ़ गए थे। मुझे मालूम था पाषाण देवी का मंदिर यही कहीं झील के मध्य में ही स्थित है। 
आगे बढ़ते हुए तुम कह रही थी, '..जानते हैं ...तल्लीताल मल्लीताल में इन दिनों नवरात्रि के अवसर पर रामलीला का जबरदस्त आयोजन होता है जिसे देखने के लिए स्थानीय लोगों की काफी भीड़ जमा होती है...' 
सच में मुझे रामलीला की भीड़ भी दिखी थी मल्ली ताल में। निर्माण कार्य प्रगति पर था इसलिए आम लोगों को काफ़ी परेशानी हो रही थी। 
मुझे याद आया प्रत्यक्ष था कि ५०० मीटर की दूरी तक हमें पैदल ही चलना था क्योंकि इधर ठंडी सड़क पर कोई रिक्शा आदि नहीं चलता है । हम बड़े आराम से कदम बढ़ा रहे थे,ताकि बातें भी होती रहें, कहानी भी बयां होती रहे। 
हाथ में पूजा की थाली लिए ठंडी  सड़क पर चलते हुए आपने माता पाषाण देवी के बारे में बतलाना शुरू कर दिया था। मैं जिज्ञासु बना आपकी बातों को बड़ा एकाग्रता से ध्यान पूर्वक सुन रहा था।

ठंढी सड़क और माँ पाषाण देवी प्रवेश द्वार : फोटो साभार 

मां पाषाण देवी : शक्ति पीठें  '..माता  की भक्ति में ही अपरंपार शक्ति है। मां तो सती का रूप ही है। आपको भी ज्ञात है कि माँ पार्वती की देह से अलग होकर उनके अंग जहाँ - जहां गिरे वहां शक्तिपीठें निर्मित होती चली गईं। प्रतीत होता है माता पार्वती के नयन नैनीताल में गिरे थे और उनसे निःसृत होती आंसुओं की धारा से नैनी झील का निर्माण हुआ था । .....क्योंकि दिखने इस झील की आकृति ही आँख जैसी ही हैं। '
'.....याद है आपको ...जब हम चाइना पीक गए थे तो वहां से नीचे झील देखी थी ,तो यह झील माँ की आँखों जैसी दिख रही थी । .....दिख रही थी  न ?' 
' ...इस झील के किनारे ही मल्लीताल में माता नैना देवी का मंदिर है जो आपने देखा ही है। और ठीक उस जगह से ही तल्लीताल की तरफ जाने के लिए ठंडी सड़क आरम्भ होती है। ...हमलोग तो मंदिर कितनी दफ़ा गए है,गए है न ?
------------------

शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
 गतांक से आगे : २.


नैनीताल का नैसर्गिक सौंदर्य : फोटो दीप्ती बोरा. नैनीताल. 

तभी ड्राइवर ने आवाज़ दी , ....' सर ! आर्य समाज मंदिर आ गया है,उतरेंगे नहीं क्या ..?  ...आप  यही उतर जाइए मैं बजरी वाले मैदान में गाड़ी पार्क कर आता हूँ....। '
ठीक है ....' यह कहते हुए  मैं अपना बैग बाहर निकाल कर आर्य समाज मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगा था। प्रधान जी कार्यालय में ही थे और हमारे आने का इंतजार ही कर रहें थे। औपचारिकता पूरी कर उन्होंने हमें चाबी दे दी ।  कमरे की चाबी लेकर मैंने अपना सभी सामान रखा। नवीन दा को मैंने सकुशल आने की सूचना भी दे दी थी। यह माँ नैना देवी , पाषाण देवी की कृपा ही हम सबों पर होती है कि हम पहाड़ों पर सुरक्षित होते हैं । 
फ़िर न जाने क्यों टहलते हुए बाहर बरामदें की तरफ़ आ गया था । सामने  झील ,बजरी वाला मैदान , कैपिटल सिनेमा , नैना देवी मंदिर तथा सिंह गुरुद्वारा सब कुछ दिख रहा था। 
दिख नहीं रहीं थी तो सिर्फ़ तुम थी ,अनु । बादल का छोटा सा टुकड़ा न जाने कहाँ से राजभवन वाली पहाड़ी से उतर कर नीचे झील के बीचो बीच आकर ठहर गया था। उस बादल के नन्हें टुकड़े में भी मुझे तुम्हारा अक़्स ही नज़र आ रहा था। मगर तुम तो नहीं थी न ? 
बोट हाउस क्लब की एक दो पाल वाली नौकाएं उस किनारे में तिरती हुई दिख रही थी तल्ली ताल की तरफ़,बाहर से आए सैलानी ही होंगे  । 
हर शय में मेरी आंखें तुम्हें क्यों तलाश कर रहीं थी ,अनु ... ? अक्सर ऐसे सवाल मन में क्यों व किसलिए उठते है ,....? ... कौन महत्वपूर्ण है , और कौन अहम है , ?  इंसान,भगवान  या स्थान.... ?
भगवान तो दिखते नहीं ,एक आस्थां  है,जो मन में है । शायद इंसान ही न जो हमारे पास हैं ,मदद के लिए जीते जी आगे आ सकते हैं । फ़िर साथ के बिना तो स्वर्ग का क्या भी बजूद ? है ना ...?
नैनीताल मेरी पसंदीदा जग़ह रही है, यह सच है । लेकिन इस स्थान से इतना लगाव के पीछे का सच भी अब तुम्हारे इर्द गिर्द ही केंद्रित हो चुका था ।  शायद आज कल तुम ही एक मात्र अहम बजह रही हो, नैनीताल को पसंद करते  रहने के पीछे। सच है ना ...?
आज तुम यहाँ नहीं हो ...तो यही झील कितनी उदास और सूनी लग रही है ,है न अनु । ...और अब जब तुम यहाँ से  सैकड़ों मील दूर हो..यही जानी - पहचानी जगह अपरिचित सी लग रही है ,न जाने क्यूँ ?  
झील के उस पार ही ......तो पाषाण देवी का मंदिर है ना ? मानस पटल पर बिताए गए दिन बेतरह याद आ रहें थे। तुम नैना देवी के बारे में बतला रही थी ......न ? 

ठंडी  सड़क, मैं और नैनीताल की मेरी यादें : कोलाज विदिशा 

मैंने याद करने की कोशिश की थी ,... ' यही कोई तीन चार बार नैना देवी हम आए थे । '  
'...हम उस तरफ़ मल्ली ताल से भी आ सकते है और तल्लीताल से भी जा सकते है ...'
' ....आपको बताए यहां के लोग कहते है कि इस अयारपाटा की पहाड़ी के दक्षिण - पूर्वी तल पर ही माता क़े अंग से ह्रदय और अन्य हिस्से यथा पाषाण आदि भी गिरे थे जिससे उस स्थान पर पाषाणदेवी का मंदिर बना है.....। '
'....पाषाणदेवी के इस मंदिर में देवी माँ की पूजा शिला में उभरी एक आकृति के रूप में की जाती है। ..आकार में विशाल इस शिला में आप ध्यान से देखेंगे तो देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों के  दर्शन भी होंगे...।'
हम झील के किनारे थे। कुछ पाल वाली नौकाएं एकदम क़रीब से गुजर रही थी।   
' ... सच में यह एक अद्वितीय,अनोखी चट्टान है,अपने मन की आस्था की। माना जाता कि इस चट्टान पर माँ का मुख दिखाई देता है तो उनके पैर नीचे झील में डूबे हुए हैं। हम कह सकते है कि पाषाण देवी का मंदिर नैनीताल का सबसे पुराना मंदिर था। '
जन आस्था : '.....इस मंदिर में आसपास के गाँवों के पशुपालक लोग माँ को दूध से बने पदार्थ और मट्ठा चढ़ाया करते थे।ग्रामीणों में पाषाण देवी का आज भी वही स्वरुप पूज्यनीय माना जाता है। मान्यता है कि पाषाण देवी के मुख को स्पर्श किये हुए जल को लगाने से त्वचा रोगों से तो मुक्ति मिलती ही है, प्रेतात्माओं के पाश से निकलने की राह भी खुलती है।'
'....अगर मैं भी आपसे प्रेम की बाधा में पागल हो गयी, प्रेत बन गयी न तो मुझे भी मुक्ति के लिए पाषाण देवी के पास ही यहीं ले आइएगा, सुन रहें है, न ...? '
तब मैं सोचने लगा...' पता नहीं हमदोनों में से पहले कौन पागल होगा, कौन जानता है ? कौन किसको यहाँ किस अवस्था में लाएगा ,माँ ही जाने। ऐसी नकारात्मक बातें क्यों ,अनु ..?
तुम्हारे इस सवाल का भला मैं क्या जवाब देता ? भावनाओं के शिखर पर समाज और बंदिशों के थपेड़े में बमुश्किल संभलते हुए किसकी स्मृति दोष में चली जाएंगी...किसे पता .....! भगवान ही जाने। 

पाषाण देवी , नैनी झील का दृश्य : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

--------------------------------

शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
गतांक से आगे. ३. माँ का दर्शन. पुनः सम्पादित 

पाषाण देवी के परिसर में श्रद्धालू , और माँ पाषाण देवी का दर्शन  : फोटो डॉ. मधुप  .

शाम होने को थी। अपना कैमराराइटिंग पैड , रिकॉर्डर ,माइक तथा रेनकोट आदि लेकर मैं माल रोड की तरफ़ निकल गया। गोविन्द बल्लभ पंत की मूर्ति से आगे चाय वाले से मैंने अदरक वाली चाय पी। बिस्किट का एक पैक लेकर तल्ली ताल की तरफ़ अकेले ही पैदल ही बढ़ गया। 
यहाँ की स्थानीय पत्रकार दीप्ती बोरा को मैंने कह रखा था कि दशहरे की थीम को लेकर वह मेरे साथ रिपोर्टिंग कर सकती है यदि वह चाहे तो। सोचा पहले पाषाण देवी के दर्शन कर लेता हूँ उसके बाद नैना देवी मंदिर का दर्शन कर लूंगा। दशहरे को लेकर अपर मॉल रोड में काफ़ी भीड़ थी। स्थानीय और सैलानी काफ़ी संख्या में  दशहरे को लेकर खरीददारी के लिए निकले हुए थे। 
चालीस पैंतालीस मिनट लगे होंगे मैं तल्ली ताल ठंढी सड़क पहुँच गया था। मैं वर्त्तमान से उलट सबकुछ अतीत में चला जा रहा था। 
यही आस पास ही न किसी परिचित के घर में अपनी गाड़ी पार्क की थी न ,अनु ....फिर यहाँ से पैदल ही पाषाण देवी तक गए थे। है न ....? हम साथ साथ ही चल रहें थे  ..और पाषाण देवी के बारे में ही आप कुछ बतला रही थी ...!
एक अखंड दिव्य ज्योति : आप कह रही थी, '... नव दुर्गा रूपी शिला के नीचे एक गुफा है कहते है इसके अंदर नागों का वास है। मंदिर की स्थापना के काल  से ही यहाँ एक अखंड दिव्य ज्योति प्रज्जवलित रहती है। मैं आपको दिखलाऊंगी भी। देवी को चढ़ाए जाने वाले श्रृंगार को उनके वस्त्रों की भी प्रचलित मान्यता है। 
जन श्रुति यह भी है कि  माता दुर्गा को चढ़ाए जाने वाले अभिमंत्रित जल को प्रत्येक दस दिन में एक बार निकाला जाता है और उसे प्रयोग में लाने से हकलाहट दूर होती है। और अन्य ऐसी ही व्याधियों के रोगियों को औषधि के रूप में यह जल सेवन के लिए दिया जाता है। 
  
किसी शोधार्थी  की तरह आप मंदिर के इतिहास और उससे जुड़ी आस्था के बारे में बतला रही थी। आखिर ...तुम्हें इतनी जानकारी कहाँ से हासिल हुई, अनु ,?'
तो तुमने हँसते हुए कहा ,'  ... आपकी शिष्या जो हूँ ...आखिर आपके शोध ,लेख ,कहानियों  के लिए मुझे जानकारियां तो इकट्ठी करनी ही होंगी ,न। '
तभी अचानक तुम्हारे पैरों के नीचे न जाने कहाँ से एक बजरी आ गया था । या तुमने मेरी तरफ बात करते हुए नीचे देखा नहीं। तुम लड़खड़ाने लगी थी,असुंतलित होकर कहीं गिर न जाओ, इसके पहले ही मैंने तुम्हारी बाँहें पकड़ ली थी, .....और आप संभल गयी थी । 
मैंने पूछा , ' कंकड़ था ...गिर जाती ....कहीं चोट तो नहीं लगी...?
'...नहीं ..आप है न ..! ...गिरने थोड़े ही देंगे ... ? '
'...इतना विश्वास मुझ पर ! क्या यह ठीक है ? ' मैं सोचने लगा था कुछ रिश्तें कितने बेमिसाल होते है । सामाजिक परम्पराओं से हट कर। इस सम्यक साथ के लिए थोड़ा सम्यक कर्म भी करना होता है न ?
अपने भीतर सत्यता और निर्भीकता भी रखनी होती है। 
'...सच कहूं ...भगवान से भी ज्यादा ....' , तुमने धीरे से कहा था और मैं सिर्फ़ तुम्हें  देख रहा था । 
यह थी विश्वास की कड़ी ...मन पर विजय की परिभाषा  ...विचारों की शुद्धता का सार । ..फिर इस समर्पण में भौतिक रूप से शरीर तो साथ ही होता है न ,अनु ....! 
हम अपने लिए जीने का अधिकार तो रखते ही है ,न ...? जीवन का सार आख़िर है....ही क्या ? रिश्तें तो आपसी असीम विश्वास, प्यार भरी देख रेख ,पारस्परिक लगाव से ही पनपते और गहरे होते है। हमें इसके लिए अपनी वाणी और व्यवहार में संयम और नियंत्रण भी रखना होता है ,है न ...? निरंतर संवाद भी रखने होते है। 

माँ पाषाण देवी ,ठंढी सड़क नैनीताल : फोटो डॉ.नवीन जोशी 


पाषाण देवी के दर्शन :
 थोड़े क्षण उपरांत हम मंदिर परिसर में थे। यही कोई आठ के आसपास बज रहा था। पहाड़ों के लिए यहां चिर शांति फैली हुई थी। यहाँ लोग देर से ही सोते है।
कुछेक लोग ही थे। शायद दिन ढ़लते भीड़ कमनी शुरू हो जाती है । हमें मिलाकर यही कोई दस बारह लोग ही थे। 
मंदिर के पुरोहित ने पाषाण देवी माँ का दर्शन करवाया। भीतर सब कुछ वैसा ही मिला जैसा आपने बतलाया था ..नवदुर्गा ..अखंड ज्योति ...नाग ..प्रतिध्वनि उत्पन्न करने वाली गुफाएं। सब कुछ वैसा ही था,आपने बताया था और अभी हम सामने देख रहें थे। दर्शन के पश्चात हमने पुजारी से प्रसाद ग्रहण किया। 
मुझे अभी भी याद है जब मैंने आपको देखा था आपने यहीं मंदिर से अभिमंत्रित जल भी सहेज कर एक शीशी में रख ली थी। शायद कभी किसी की व्याधि में ही काम आ जाए। 
मंदिर से निकलते हुए आपने बताया, '...जानते है परिसर में निर्मित हनुमान प्रतिमा और शिवलिंग बाद में स्थापित किया गया है । यही बात मंदिर के समीप स्थित गोलू देवता के बारे में भी सत्य मानी जाती है। लोकमान्यता के अलावा यदि आप पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्यों की मानते है  तो नैनीताल का पाषाण देवी मंदिर उत्तराखण्ड के सबसे पुराने शिला - शक्तिपीठों में से एक है. 

ये दिल और उनकी निगाहों के साए : ठंडी  सड़क ,नैनीताल और तेरी  मेरी यादें :  फोटो डॉ. मधुप 

घर वापसी : मैं याद करने की कोशिश कर रहा था उस दिन घर वापसी के लिए हम तल्ली ताल की तरफ़ बढ़ गए थे। आप थक चुकी थी और मेरे सहारे वश चल पा रही थी। जब किसी जाने अनजाने सफर की मंजिल में हमसफ़र कोई मेरे अपने शामिल हो तो वक़्त का गुमान ही नहीं होता है। उनकी निगाहों के साएं में राहें लम्बी होती जाए तो बेहतर ...!
दूर कहीं वहीदा रहमान और कमल जीत अभिनीत फिल्म शगुन फिल्म  का बजता हुआ यह गाना ...पर्वतों के पेड़ों पर शाम का वसेरा है हमें सुनाई दे रहा था। और मैं कहीं अपनी तुम्हारी सुनहरी यादों में खो गया था। 
'..गाना सुन रहें हैं ,ना ? '...तुमने जैसे जानने की कोशिश की। 
'..हा ..सुन रहा हूँ 
'....इसी ठंडी सड़क पर ही यह गाना फिल्माया गया था। ....जानते हैं न ?'
' हा ..!' ...मैं गाने की धुन और इसके दृश्य में खो गया था..और आप मेरे पहलू में ...थोड़ी और भी करीब आ गयी थी ....झील से सरकते पल भर के लिए आए धुएं के बादल में  हम दोनों खो गए थे....। 

फिल्म शगुन में ठंडी सड़क से दिखते मॉल रोड नैनीताल के नजारें 

मगर न आज धुंध थी। न कोहरा ही । सिर्फ़ मैं था ,मेरी तन्हाई थी .....और कभी भी साथ न छोड़ने वाला तुम्हारी यादों का सिलसिला ....मैं और मेरी तन्हाई में अक़्सर ऐसे हालात होते है जब मैं शून्य में तकने लगता हूँ.....शायद तुम्हें ढूंढ़ने की कोशिश करता हूँ ...
आर्य समाज मंदिर लौटा तब तक़ काफ़ी समय हो चुका था ....

--------------------
शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
गतांक से आगे. ४ . माँ नैना देवी का दर्शन. 


माँ नैना देवी का दर्शन.नैनी झील और तुम : फोटो डॉ. मधुप 

आज आश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी की तिथि थी। सिद्धिदात्री  का दिन था। आर्य समाज मंदिर से सुबह सबेरे ही मैं नहा धो कर माता के दर्शन के लिए निकल गया था। सोचा पहले माता के दर्शन के बाद कुछ काम करूँगा। 
इस मंदिर परिसर में तो हम कितनी बार आ चुके थे अनु ..? ...है ना ! यही कोई चार पांच बार ..
माँ  नैना देवी मंदिर : सबेरे के आठ बज रहे थे। धूप अभी तीखी नहीं हुई थी। मंदिर में सैलानी थे ही नहीं। ले दे के स्थानीय लोग ही थे। मैंने चढ़ावे के लिए कुछ प्रसाद ले लिया था। मंदिर में प्रवेश करते ही हनुमान जी दिख गए। 
नैनीताल में नैनी झील के ठीक उत्तरी किनारे पर जन आस्था का मंदिर नैना देवी मंदिर स्थित है। सन १८८० में जब भयंकर भूस्खलन  नैनीताल में आया था तब यह मंदिर उस प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था। बाद में भक्त जनों और श्रद्धालुओं ने इसे दोबारा बनाया था । यहाँ सती या कहें माता पार्वती की शक्ति के रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर में उनके दो नेत्र वर्त्तमान हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। 
नैनी झील के बारे में माना जाता है जब शिव सती  की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहें  थें  तब जहां जहां उनके शरीर के खंडित अंग गिरे  वहां वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इसी धार्मिक भावना से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गयी थी। 
माँ नयना देवी के मंदिर के देखभाल का जिम्मा अमर उदय ट्रस्ट करती है। 
पौराणिक गाथा : वही है जो हमने कई बार सुनी है। जब शिव सती के जले अंग को लेकर की कैलाश पर्वत की तरफ जा रहें थे तो उनके भीतर बैराग्य भाव  उमड़ पड़ा था। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कंधे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया था तो देव गण चिंतित हो गए थे। ऐसी स्थिति में सती के शरीर को खंडित किया गया। अतएव जहां जहां पर सती के शरीर के विभिन्न अंग गिरे वहां वहां पर शक्तिपीठों के निर्माण हो गए। यहां पर नैनीताल में सती  के नयन  गिरे थे इसलिए यह स्थान नैनीताल हो गया। वहीं पर नैना देवी के रूप में उमा अर्थात नंदा देवी का स्थान हो गया आज का नैनीताल वही स्थान है जहां पर उस देवी के नयन  गिरे थे। नैनों  से बहते अश्रुधार ने यहाँ ताल का रूप ले लिया था इसलिए यह ताल नैनीताल कहलाया। तब से निरंतर यहां पर शिव - पार्वती की पूजा नैना देवी के रूप में की जाती है। 
अन्य मंदिर : नैना देवी जो मुख्य मंदिर है इसके अलावह यहाँ भैरव ,माँ संतोषी ,नवग्रह ,राधा कृष्ण ,भगवान शिवबजरंग वली का मंदिर तथा, दशावतार कक्ष भी बने हुए हैं । मंदिर से सटे नैना देवी का धर्मशाला भी हैं जहाँ भक्त गण ठहर भी सकते हैं। 
इसके लाल टिन वाली छत देखते ही मुझे राजेश खन्ना ,तथा आशा पारेख अभिनीत  फ़िल्म कटी पतंग याद आ गयी थी जिसमें पूजा करने के लिए दोनों यहाँ आते हैं। तब उसी फ़िल्म में मैंने नैना देवी मंदिर को पहली बार सिल्वर स्क्रीन में देखा था। इसके बाद तो न जाने कितनी बार देखा। जब कभी भी मैं नैनीताल आता आप मुझे यहाँ दर्शन के लिए ले ही आती थी। 
पंडित जी ने कुछ फूल दे कर प्रसाद मुझे वापस कर दिया था। नैना देवी के दर्शन के बाद मैंने परिसर में अन्य देवी देवताओं के भी दर्शन किए। लेकिन न जाने क्यों मुझे यह बार बार लगता रहा जैसे तुम मेरे साथ हो ...और  मंदिर की परिक्रमा साथ कर रही हो ...
मंदिर परिसर में कई धागें और कई चुनरियाँ बंधी मिली थी जो लोगों ने अपने मन्नतों के लिए बाँधी थी । अरमानों के धागें, मनोकामनाओं की अनगिनित चुनरियाँ ,है न ,अनु । इनमें से दो तीन तो आपकी भी होंगी ही न ?
याद है ,मैंने एक बार इन धागों के बारें में आपसे पूछा भी था तो आप हंस कर टाल गयी थी... ' क्या करेंगे जान कर ? ,...जिस दिन आपकी हमारी मनोकामना पूरी होगी आप भी जान ही लेंगे ......। 
फ़िर एक बार बिना पूछे ही बतला दिया था ... ' ..कुछ नहीं ...बस आपके साथ जनम जनम का साथ चाहती हूँ ....'
तब मैंने कहा भी था ...' आख़िर मुझमें क्या है ,अनु ...मैं तो बस एक साधारण इंसान हूँ ...तुच्छ प्राणी मात्र हूँ ...
'.... साधारण नहीं ..बहुत कुछ है आप में ..! ..कितना ख़्याल रखते है ,मेरा ...सब का.. ! ..सच कहें ... तो लोग ठीक से समझ ही न पाए आपको ....!
'..सही तो है ... क्या लोग समझ पाए मुझे ...नहीं न ..? ' , स्वयं की तरह व्यक्तिवादी होने की बजह से मैं अन्य से अपने लिए शांति ,धैर्य और सत्य के अन्वेषण की ही बात करता हूँ न ...? 
तुमसे ही तो मैंने जीने की कला सीखी  है , तुम अक़्सर मुझे समझाते रहती थी,  ' ...किसी नतीजें पर पहुँचने से पहले ....रुक जाओ ,ठहर जाओ ,समझ लो ..सत्य जान लो ,अपनों से संवाद कर लो ..सारी समस्याएं निराकृत हो जाएंगी ..शीघ्रता मत करो ..। 

था झील का किनारा. नैना देवी से दिखती नैनी झील : छाया चित्र डॉ. मधुप

सच में तुम्हारे बिना कितना अकेला हूँ , मैं ..भाव से ...संवाद से ..अस्तित्व से ..व्यक्तित्व से। एकदम सा अधूरा ..अपूर्ण...। 
तुम्हारी अनुपस्थिति में आज उदासी के बादल फ़िर से मेरे मन में घनीभूत हो गए थे। जैसे मेरी ऑंखें कब की बरस जाएंगी। 
उदास होते हुए मैं मंदिर से सटे रेलिंग के किनारे झील को देखने सरक आया था कि झील के मध्य में तैरती हुई नौकाओं को देख कर मुझे फिर से कुछ याद आ गया.....  
सच कहें तो झील के बीच में तुम्हें ही तलाश कर रहा था ,अनु । तुम्हारे लिए, तुम्हारी तलाश में पहाड़ियों में चिर निरंतर से भटकती हुई आत्मा ही बन गया हूं ना मैं ? हैं ना। 
तुम्हें याद हैं ना ,अनु इसी झील के किनारे इसी मंदिर परिसर में वापस लौटने के क्रम में तुमने मेरी सूखी हाथों को अपनी बर्फ़ जैसी कनकनी देने वाली नर्म हथेली से स्पर्श कर कहा था , ' ....ऐसा करते है नाव किराये पर ले लेते है ...और यही से तल्ली ताल चलते है...।' 
झील के उस पार,तल्लीताल :ऐसा कह कर तुम अपनी बच्चों वाली ज़िद ले कर बोट में बैठ गयी थी,है ना ? 
क्या करता,मुझे भी तुम्हारा साथ देने के लिए तुम्हारे लिए नाव में बैठना पड़ा था। नाव वाले से तुमने चप्पू भी ले लिए थे या कहें छीन ही लिया था और हम सभी नाव खेते हुए झील के बीचोबीच पहुंच गए थे। पानी से कितना डर लग रहा था। हमदोनों में से कोई भी तैरना नहीं जानता था। सामने ठंढी सड़क पर स्थानीय लोग आ जा रहें थे। बाहर वाले शायद कम ही होंगे। 
गोलू देवता मंदिर की तरफ़ देखते हुए न जाने तुम इतना भावुक क्यों हो गयी थी ..' इस झील में मैं डूब कर मर जाऊं ...और आप मेरी आँखों के सामने हो तो समझूंगी जीना सार्थक हो गया है ... भला  तुम कैसी बहकी बहकी बातें कर रही थी ,अनु । 
भगवान न करें ऐसा हो जाए। गोलू देवता का आशीर्वाद सब के ऊपर हो। सभी लोग सुखी रहें और निरोग भी। पहाड़ी लोगों के आराध्य देव है गोलू देवता। तुम भी तो अतीव विश्वास करती हो ना। तब संध्या  आरती का वक़्त हो रहा था ...न ? 
 
--------------------
शक्ति पीठ नैनीताल और  माँ  नैना देवी मंदिर,का दर्शन.
आखिरी क़िस्त .गतांक से आगे.५ .विजयादशमी

विजयादशमी. और जलते रावण के पुतले : फोटो महेश 

आज विजयादशमी की तिथि थी। महानवमी के बाद पूरे देश में असत्य पर सत्य की विजय का पर्व दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है। इसी​ दिन भगवान श्रीराम ने दशानन रावण का वध किया था ,तभी से इस दिवस को समस्त भारत में विजयादशमी के पर्व बतौर मनाया जाता है। 
नवरात्रि समाप्त हो चुकी थी। आज दशमी का पर्व था। लोगों से मिलकर उनके साथ की गई बातचीत के आधार पर ख़ास कर आज की विशेष रिपोर्टिंग कर मुझे लौटना भी था।  सामान बगैरह मैंने पूर्व में ही बांध लिया था। मल्लीताल के फ्लैटस एवं तल्लीताल बस स्टैंड के पास में रावण तथा उसके कुल के पुतले दहन की तैयारी की जा चुकी थी। तल्लीताल में चूंकि जगह ज्यादा नहीं थी इसलिए रावण के पुतले को छोटा आकार ही दिया गया था। 
मल्लीताल के बजरी वाले मैदान में इसकी पूरी तैयारी प्रशासन ने कर ली थी। चूँकि यह मैदान बड़ा था मेरे आर्य समाज मंदिर के समीप था तो शाम सवा सात बजे की रिपोर्टिंग कर लौट भी सकता था। हल्द्वानी लौटने के लिए कार का इंतजाम हो चुका था। इसलिए कोई हड़बड़ी या चिंता वाली बात नहीं थी। हमें महज़ समयबद्ध रहना था। 
हम विजयादशमी पर्व के निहित संदेश पर अब भी हम गौर कर ले। इस त्योहार का यह संदेश हमारे समक्ष है ,इसे देने का प्रयास इसके निमित इसलिए किया गया है कि व्यक्ति के द्वारा किए गए हज़ार महान कर्मों के उपर उसके पाप भारी पड़ जाते हैं। और उसका पतन आरम्भ हो जाता है। इसलिए हमें अधर्म से बचना चाहिए। और धर्म के रास्ते में आने वाली हर रुकावट व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा है, पर उस संघर्ष के आगे जीत भी है जैसे राम की हुई थी ।
हर युग में राम और रावण जैसे लोग होते हैं। सतयुग में थे कलयुग में तो भरे पड़े हैं। यहाँ सीता भी बदनाम हो जाती हैं।  सीता पर उंगली उठाने वाले लोग भी बहुतेरे हैं । कल्पना कीजिए सीता पर भी प्रश्न  उठ गए तो हम और आप कहाँ है । कैकई  - मंथराशबरी - केवट , विभीषण ,जटायु , सूर्पनखा जैसे लोग हमारे आस पास ही मौजूद रहते  हैं। हमारा जीवन एक रंगमंच के समान है जहां हर मानव को अपना किरदार मिला हुआ है।  ईमानदारी से अच्छें क़िरदार निभाने का अवसर मिला है जिसे बड़ी शिद्दत से निभाने का प्रयास कीजिए। सच के लिए खड़े हो जाए। 
रावण दहन : शाम होते ही लोगों की भीड़ जमा होने लगी थी। सैकड़ों की तादाद में लोग आ रहें थे। उनमें से कुछ रावणत्व वाले भी लोग होंगे ही जो विद्वान लंकेश को भस्म करने पहुंचे थे। समय के साथ ही राम ने पुतले में आग लगा दिया गया और रावण जलने लगा इस सवाल के साथ कि हर साल तुम लोग तो मुझे जला रहें हो लेकिन मुझे सिर्फ़ इतना बता दो कि रामराज कब ला रहें हो...। 
धीरे धीरे भीड़ हटने लगी थी। मैं भी आर्य समाज मंदिर लौट चुका था। अब लौटने की बारी थी। मैंने नवीन दा को दिल से आभार प्रगट करते हुए घर लौटने की सूचना दे दी थी। 
वहाँ से वापसी का सफ़र : समय गतिशील था। आठ बजे के आस पास मेरी गाड़ी काठ गोदाम लौट रही थी। नौ बजे वहाँ से वापसी की ट्रेन थी। तुम्हारी यादों के साथ ही इस भागमभागी में मैंने अपना कार्य मैंने भलीभांति पूरा कर लिया था।
अब सिर्फ़ तुम : मेरे मानस पटल के एक कोने में जैसे तुम शक्ति स्वरूपा हो कर हर समय उपस्थित रही थी, और मुझे जैसे निर्देशित कर रही थी । ...इतना सब कुछ तुम्हारे बिना , लेकिन बिना किसी बाधा के  समस्त कार्य क्यों कर संपन्न हो गया था ,अनु .. आश्चर्य ही था न। बोलो न ...? प्रतीत हो रहा था जैसे कोई दिव्य शक्ति काम कर रही हो ...
आप हरदिन अपनी प्रशासकीय व्यस्तता के बाबजूद  भी स्विट्जरलैंड से नित्य दिन टेलीफ़ोन,मोबाइल  से मेरे बारें में पूछती रहीं थी ,स्वास्थ्य के बारें में जानकारी लेती रही। हिदायत देती रहीं।  
इस भावना के लिए मैं तुम्हारे लिए क्या कहूं ...कौन से शब्द दूँ ,समझ नहीं पाता हूँ। ..शून्य में खो जाता हूँ। सोचता हूँ ...आभार प्रगट करूँ ..या आँखें बंद कर मान लूँ कि यही शाश्वत  प्रेम है। 
समय पर मैं काठ गोदाम पहुँच चुका था। ...ट्रेन खुल चुकी थी, समय पर ही। अब आगे का सफ़र था वापसी का .... इति शुभ। 



नैनीताल से रावण दहन की डॉ. मधुप तथा डॉ.नवीन जोशी की वीडियो न्यूज़ रिपोर्ट खोले  

-----------------
चल चलें ....झील के उस पार. 
-----------------------------------

नैनीताल : तल्ली ताल से मल्लीताल : कोलाज विदिशा

देवभूमि : २०२२ जून का महीना था। दो साल की बंदी के बाद पूरी भीड़ जैसे नैनीताल में उमड़ आई थी। तमाम रास्तें जैसे नैनीताल को ही आ रहें थे । शहर के तमाम टैक्सी स्टैंड भर चुके थे। बजरी वाले मैदान में पार्किंग के लिए जग़ह नहीं बची थी। माल रोड़ पर जाम का सिलसिला तो जैसे आम हो गया था। आज के  दिन हमें रिपोर्टिंग  के लिए मल्लीताल जाना था। एक पंथ दो काज थे। मल्लीताल के स्टैंड में पर्यटकों के मनोरंजन के लिए रूद्र पूर से पुलिस बैंड पार्टी टीम आई हुई थी जिसे मल्ली ताल स्टैंड में गाना बजाना था। और हमें इसके बाबत लिखना भी था। 
फूलों ,फलों का उपवन है हमारा कुमाऊँ :  बसन्त की बहार के साथ साथ  इसी माह फूल खिलने लगते हैं।पेड़ों पर फल लगने लगते हैं। जहाँ आप इन फलों को ख़रीदते हैं वहीं हम इन्हें सरे राह चलते पेड़ों से तोड़ कर जी भर खाते हैं। हम पहाड़ियों के लिए वरदान ही हैं। 
 


फ़ोटो साभार : नेट से 

सैलानियों का आना जाना : अप्रैल माह से ही अमूमन  चैत्र मास की शुरुआत हो जाती है। सैलानियों का आना जाना शुरू हो जाता है।  तल्ली ताल के पास आस पास आती जाती गाड़ियां ही बतला देती हैं कि परदेशी आने लगे हैं ।  हमारी इष्ट देवी नैना देवी की कृपा हम सभी पहाड़ियों पर बरसती हैं जो झील के उस पार मल्ली ताल में बिराजती हैं।
उस दिन हमें रिपोर्टिंग के लिए तल्लीताल बोट स्टैंड से मल्ली ताल जाना था। माल रोड में अच्छी खासी भीड़ जमा थी । लगभग जाम ही लगा था। सोची नाव ही किराए पर ले लेते हैं। यहीं से  मल्लीताल बोट स्टैंड तक चले जाएंगे। हालाँकि नाव वाले पर्यटकों को झील की आधी दूरी तक़ ही ले जाते हैं। फ़िर आधी झील मल्ली ताल बोट स्टैंड के हिस्सें में पड़ती हैं। आम टूरिस्ट के लिए पूरे झील का चक्कर  इस पार से उस पार महंगा पड़ ही जाता है।  
तल्लीताल बोट स्टैंड : हम सायं चार बजे तल्ली ताल बोट स्टैंड पहुंच चुके थे। हमने तल्ली ताल से ही हमने किराए पर बोट ले ली थी। ......




गतांक से आगे. १ 

तल्ली ताल पाषाण देवी और नैनी झील : कोलाज विदिशा. 

हम तल्लीताल से नाव  लेकर मल्लीताल स्टैंड को ओर जाने  लगे थे । हमें एक लम्बी दूरी तय करनी थी। लोअर माल  रोड में आती जाती गाड़ियों का शोर जैसे हमें बहरा ही कर दे रहा था। 
हमारी दायी तरफ़ माल रोड से सटे पास का वीपिंग विल्लो का पेड़ नीचे भार युक्त हो कर जैसे पानी के भीतर ही समा गया था। अभी भी ढ़ेर सारे पर्यटक लाइफ जैकेट पहन कर तल्ली ताल स्टैंड में खड़े हो कर अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहें थे। फिर दूर कहीं किनारे पर ढ़ेर सारी नौकाओं में एकाध दो पाल वाली नैनीताल बोट हाउस क्लब की हरी, पीली, एवं ब्लू रंग की नौकाएं झील की सतह पर फिसलती दिख रहीं थीं। 
बाहर से आने वाले पर्यटक ज़्यादातर झील में नौकायन के लिए साधारणतया तल्लीताल वोट स्टैंड का ही ज्यादा प्रयोग करते हैं। जो पर्यटक मल्ली ताल ,बजरी वाले मैदान,सूखा ताल, बड़ा बाज़ार के पास ठहरते हैं उनके लिए मल्ली ताल बोट स्टैंड के पास आना ही सुविधा जनक होता है। 
हालाँकि तल्ली ताल से थोड़ा आगे बढ़ते ही ठंढी सड़क स्थित माँ पाषाण देवी का मंदिर नजदीक ही दिखता है। वही पाषाण देवी के पास ही थोड़ा आगे हट कर न जाने क्यों ढ़ेर सारे पहाड़ दरक कर नीचे आ गए थे। पिछले साल ही तो अगस्त के महीने में ही बारिश की बजह से पाषाण देवी मंदिर के समीप भारी मात्रा में भूस्खलन हुआ था। बड़े बड़े पत्थर और बोल्डर्स नीचे गिरते हुए न जाने कितनी मात्रा में झील में समा गए थे,पता नहीं। ठीक उसके उपर स्थित हॉस्टल के भी ढह के गिर जाने का ख़तरा बना हुआ था। तब मालूम हुआ था ठंढी सड़क की ओर जाने वाला रास्ता आम जनों की आवाजाही के लिए महीनों तक बंद कर दिया गया था। यहीं कोई साल २०२२ के जून के महीने में खोला गया था । अक्सर ठंढी सड़क के पहाड़ दरकते ही रहते हैं। 
लेकिन हमारी नाव झील के मध्य में पहुंच चुकी थी और हमें अपनी बायीं तरफ़ देवी का मंदिर तो दायी तरफ़ माल रोड के ढ़ेर सारे होटल्स, सेंट फ्रांसिस कैथोलिक चर्च  दिख रहें थे। 
आगे बढ़ते ही हमें झील की बायीं तरफ़ ठंढी सड़क से सटे कई एक मंदिर मिलते हैं यथा शनिदेव का मंदिर, इष्ट देवता गोलजू का मंदिर ,भगवान शिव का मंदिर। और अंत में माता नैना देवी के मंदिर के  दर्शन होते हैं जो मल्लीताल ठंढी सड़क के किनारे स्थित है । फिर नैना देवी मंदिर के पार्श्व में ही तो गुरुद्वारा जुड़ा हैं।  रात में नैना देवी मंदिर के पीले नन्हें बल्बों की सजावट हमें दूर से ही दिख जाती हैं, झील में प्रतिबिंबित नैना देवी मंदिर की छाया सुबह सुबह भी देखी जा सकती है । हम दायी ओर माल रोड के मध्य दुर्गा लाल शाह लाइब्रेरी तक़ पहुंच चुके थे। यह झील का मध्य भाग ही था। 

नैनीताल की सुबह अपर लोअर मॉल रोड .छाया चित्र डॉ मधुप 

पता नहीं क्यों दुर्गा लाल शाह लाइब्रेरी की लाल रंग की  टिन वाली ढलवां छत की बिल्डिंग बहुत अच्छी लगती है। जब भी हम अपर मॉल रोड पर टहलते थे तो इसके पास के इकलौता पेड़ की छाया इसे और खुबसूरत बना देती  है। लेकिन इस बार उसका रंग हरे से मिट्टी के रंग में बदल दिया गया था शायद। 

गतांक से आगे. २ 
 
नैनीताल बोट हाउस क्लब , मल्ली ताल बोट स्टैंड : कोलाज विदिशा 

यहीं आस पास अपर माल रोड से सटे नैनीताल का सबसे पुराना मेथोडिस्ट चर्च भी दिखता है ,जिसे हमें अपनी जानकारी में जरूर शुमार करना चाहिए। देखने और जानने लायक है। 
मुझे याद हैं जब हमने अपने बचपन में लोअर मॉल रोड से सटे दो बिल्डिंग्स सीतापुर आँख के अस्पताल ,तथा गवर्नरस बोट हाउस के आस पास बहुत सारी तस्वीरें खिचवाई थी। जिसे आज भी सहेज कर मैंने अपनी यादों के पिटारे में अक्षुण्ण रखी है। नैनीताल की बड़ी पुरानी इमारतें हैं ये सब। ये दोनों इमारतें झील से सटी होती हैं ,झील से दिखती भी हैं इसलिए फोटोग्राफर्स की पसंद में होती हैं। 
अब रह रह कर नैना देवी के मंदिर के घंटे की आबाजें स्पष्ट सुनाई देने लगी थी। हम मंदिर के समीप पहुँच रहें थे। लाल रंग में रंगी नैना देवी मंदिर की दीवारें दूर से ही पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेती हैं। 
हम गवर्नरस बोट हाउस तक़ पहुंच चुके थे।  फ़िर गवर्नरस बोट हाउस से सटे ही तो नैनीताल का बोट हाउस क्लब हैं, जिसकी स्थापना अंग्रेजों ने की थी। इस नैनीताल बोट हाउस क्लब में सिर्फ़ यहाँ के सदस्य ही प्रवेश कर सकते  हैं और पाल वाली नौकाओं जो नैनीताल की पहचान है ,में झील का विहार कर सकते हैं। 
नैना देवी मंदिर परिसर : कोलाज विदिशा 

और ठीक इसी नैनीताल का बोट हाउस क्लब से सटे मल्ली ताल का बोट स्टैंड आता हैं जहाँ सुबह से शाम तलक भीड़ ही भीड़ लगी होती हैं। आपको यहाँ के स्थानीय शौकिया फोटोग्राफर्स ढ़ेर सारे मिल जाएंगे जिनसे आप फोटोज खिचवा सकते हैं। 
शीघ्र ही बोट मल्लीताल बोट स्टैंड में किनारे आ कर लग गयी। और सामने ही टूरिस्ट शेड स्टैंड थी जहाँ से झील का विस्तृत नजारा देखा जा सकता था । वहीं पुलिस वाले बैंड बजा रहें थे। उनकी धुनें अब हम तक सुनाई दे रही थी। ठीक उसके  सामने बजरी वाला मैदान पसरा हुआ था। और उससे सटी नैना पीक की पहाड़ियां बिखरी पड़ी थी। हम झील के उस पार पहुंच चुके थे। रास्तें में हद से ज्यादा भीड़ थी। स्टैंड में पहले से ही लोग जमा थे। पुलिस बाले प्रोग्राम की तैयारी शुरू ही करने वाले थे। स्टैंड के पास ही कैपिटल सिनेमा और उससे हटकर माँ नैना देवी का पवित्र मंदिर था। 


संपादन / लेखन. विदिशा.
मिडिया फीचर डेस्क.नई दिल्ली.

-------------------------
ये पर्वतों के दायरें, नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक.अंक ११ .
--------------------------
सेंट जोन्स स्कूल तथा कोई मिल गया की यादें. 

-------------------------
ये पर्वतों के दायरें, नैनीताल.
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक.अंक १२  .
--------------------------
स्नो व्यू से विरला मंदिर तक. 
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक.अंक १३   .
-----------------------

--------------------------
तल्लीताल ,ठंडी सड़क ,नैनीताल और पाषाण देवी 
उत्तराखंड यात्रा वृतांत ३.धारावाहिक.अंक १४    .
-----------------------

--------------
Credits.Page.9 
------------
Patron.
D.S.P. ( Retd.) Raj Kumar Karan.
D.S.P. ( Retd.) Vijay Shankar
Dr. Shibli Nomani . D.S.P. Biharsharif.
Vinod Kumar. D.S.P. Biharsharif.
Dr. Raj Kishore Prasad. Sr. Consultant Orthopaedician.
Col. Satish Kumar Sinha. Retd. Hyderabad.
Anoop Kumar Sinha. Entrepreneur. New Delhi.
Dr. Prashant. Health Officer Gujrat.
Dr. Bhwana. Prof. Department of Geography.
Dr. Suniti Sinha. M.B.B.S. M.S.( OBS Gyn.)
------------------------
Legal Umbrella.
Sarsij Naynam (Advocate. High Court New Delhi)
Rajnish Kumar (Advocate. Patna High Court)
Ravi Raman ( Advocate)
Dinesh Kumar ( Advocate)
Sushil Kumar ( Advocate)
Seema Kumari ( Advocate)
------------------------
Clips Editors. 
Manvendra Kumar. Live India News 24.
Kumar Saurabh. Public Vibe
Er. Shiv Kumar. Reporter. India TV 
------------------------
Stringers. Abroad
 Shilpi Lal.USA.
Rishi Kishore. Canada.
Kunal Sinha. Kubait.
------------------------
Visitors.
Kumar Aashish. S.P. Kishanganj
Satya Prakash Mishra. S.P
Anil Kumar Jain. Colummnist. Ajmer
Anshima Singh. Educationist.
Dr. Shyam Narayan. MD. Physician
Dr. Ajay Kumar. Eye Specialist.
Dr. Faizal. M.B.B.S. Health Officer.
Dr. Arvind Kumar. Prof. HOD Botany. TNV Bhagalpur.
Dr. Tejpal Singh. Prof. Nainital.
------------------------

----------------------------------
पर्यटन. हरिद्वार.पृष्ठ ५ / २ / २  
 ---------------------------------

आस्था की नगरी , हरिद्वार.

हरिद्वार,बद्रीनाथ धाम की यात्रा के समय की तस्वीर. कोलाज़ विदिशा 

हरिद्वार : हरिद्वार  हरि  के गृह  तक  पहुंचने  का द्वार है। साधु, संतों सन्यासियों  की जमातों के चलते हमें यह बारबार प्रतीत होगा कि कहीं हम मठों के शहर में  तो नहीं आ गए है ? यह चारों धामों  की प्रवेश नगरी है अतः इस नगरी की सांस्कृतिक तथा धार्मिक महत्ता अत्यंत है । यही से  हम चार धाम यथा गंगोत्री ,यमनोत्री ,बद्रीनाथ तथा केदारनाथ  की यात्रा के लिए अपनी यात्रा शुरू कर सकते है शायद इसलिए हरिद्वार में सालों भर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है।
सन १९९८ का वर्ष था। मेरी तत्कालीन  उत्तर प्रदेश राज्य की पहली यात्रा थी। हम एक समूह में हरिद्वार जा रहें  थे जब हरिद्वार जाने के लिए हमने  वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से वाराणसी - देहरादून ट्रेन पकड़ी थी। 
हमारी सभ्यता और संस्कृति : हरिद्वार की इस पहली यात्रा के लिए मैं विशेषतः अत्यंत आहलादित था। मुझे याद है जब मैंने  पहली बार गंगा की दुग्ध धवल मचलती हुई धारा को हर की पौड़ी में स्पर्श किया था , तब  न जाने कौन कौन से भाव हृदय में तरंगित हो रहें  थे। वो प्रातःकालीन वेला थी जिसे  मैं कदापि नहीं भूल सकता हूं। तुरंत छू कर हाथ हटाना पड़ा था क्योंकि पानी हद से ज़्यादा ठंढा था। सोचता हूँ माँ गंगे हमारी आर्यावर्त की सभ्यता की पोषक  रही गंगा यमुनी तहजीब की साक्षी रही। 
भागती हुई भीड़ में  सरकते हुए लोगों का वहां अम्बार था। मैं अकेला यायावर हर की पौड़ी पर खड़ा हो कर 
कवि विद्यापति
यही सोच रहा था कि यदि यह देवसरिता नहीं होती तो हमारी सभ्यता और संस्कृति ही नहीं होती। हरिद्वार के प्रति मेरा लगाव इस तरह असीमित है कि मेरे शब्द कम होंगे इसके विवरण के लिए । कवि विद्यापति की तरह हमें भी कभी कभी निर्मल गंगे को शुद्ध और पवित्र बनाए नहीं रखने का अपराध बोध भी सताता है। 
मुझे वहां के साधु ,संत , भिखमंगे भी अत्यंत भाग्यशाली प्रतीत होते है  कि वे यहाँ रहते हैं। इसके बाद तो मेरी हरिद्वार यात्रा सदैव होती ही रही। हर हर गंगे, मैं  तुम्हें नमन करता हूं कि तू अपनी इस अतुलनीय भारतीय संस्कृति की जननी है। पालने पोषने वाली है । तू नहीं होती तो यह आर्यावर्त नहीं होता।
 मुक्ति दायिनी ,पतित पावनी गंगा के दर्शन : सन २०१० का साल। तब उत्तराखंड का निर्माण हुए भी आठ साल बीत चुके थे। १९९८ के बारह साल बाद फिर हम हरिद्वार आये थे। २९  मई को हरिद्वार पहुंचते ही हमने वही चिरपरिचित धर्मशाला नरसिंह भवन में जहां हम ठहरा करते थे ,जो हर की पौड़ी के समीप ही है , एक रात के लिए आश्रय ले  लिया था  । यह भवन दरअसल एक धर्मशाला है जहां होटल से भी रहने खाने की अच्छी और सस्ती व्यवस्था है। आप इसे आज़मा सकते है। शाम होते ही गंगा दर्शन के लिए हम सभी प्रस्थित हो गए।
और शाम होते ही हर की पौड़ी में मुक्ति दायिनी , पतित पावनी गंगा के दर्शन के लिए विभिन्न प्रांतों से आये असंख्य लोग वहां  पहुंचे चुके थें । और उनलोगों ने मूलतः घाट की सीढ़ियों पर ही डेरा जमा लिया था। स्नान घाट के रूप में प्रसिद्ध रहे हर की पौड़ी हरिद्वार का अति प्रमुख  स्थल है जहां प्रति बारह साल के बाद कुम्भ के मेले तथा छह साल के बाद अर्धकुम्भ के मेले लगते हैं।

हर की पौड़ी ,हरिद्वार। संध्या आरती के समय श्रद्धालुओं की भीड़। छायाचित्र डॉ सुनीता 

डॉ. मधुप
हर की पौड़ी - हरिद्वार के सबसे महत्वपूर्ण घाटों में से एक है हर की पौड़ी। सभ्यता संस्कृति के संरक्षण के लिए जरुरत के अनुसार इन घाटों से गंगा की कृत्रिम धाराएं इस तरफ मोड़ी गयी है। अन्यथा मानों तो मैं गंगा माँ हूं की मूल नील धाराएं तो थोड़ा हट कर शहर से बहती हैं । यहाँ की संध्या गंगा आरती की शोभा अप्रतिम है। देखने योग्य है।  वर्णनातीत है। सम्पूर्ण भारत के  विभिन्न प्रदेशों की सभ्यता संस्कृति की एकतागत झलक देखनी हो यहाँ आ जायें। शाम होते ही जय गंगे माँ की आरती की स्वरलहरी पर्यटकों को अनायास ही गंगा घाटों की तरफ़ खींच लेती हैं। पूरा घाट स्थानीय ,बाहरी श्रद्धालुओं,पर्यटकों,से पट जाता है। अन्यथा संध्या काल में देर होने के पश्चात तो यहाँ तिल रखने मात्र की भी जग़ह नहीं मिल पाती है। जय गंगे माँ की आरती की घड़ी आ जाती हैं। लोगों की नियंत्रित भीड़ घाटों में जमा होने लगती हैं। घड़ी ,घंट ,शंख आदि बजने लगते हैं। पंडितों के आरती के स्वर वातावरण में गूंजने लगते है। दोनों में असंख्य दियें जला कर पूजा की सामग्री साथ नदी की जल धाराओं में छोड़ दिए जाते हैं। विश्वास के ये अनगिनत दिए  अवशिष्ट बन कर नदियों में प्रवाहित कर दिए जाते हैं। हममें से हर किसी की कोशिश होती हैं कि इन नदियों के किनारे ही पंच तत्त्वों में विलीन हो जाते तो मुक्ति मिल जाती । काश हम इससे बच  सकते तो हमारी नदियां भी लन्दन के टेम्स जैसी साफ़ सुथरी होती। लेकिन कर्मकांड में अतीव विश्वास रखने बाले लोग यहाँ के साधु,संतों और पंडों से ज़रा  होशियार ही रहें ,नहीं तो इस जन्म मरण ,इहलोक परलोक ,पाप पुण्य के जटिल प्रश्नों और उनकी समस्याओं के  निवारण  के चक्कर में आप अपनी आर्थिक हानि ही कर बैठेंगे। याद रहें  सम्यक सोच ,सम्यक दर्शन व सम्यक कर्म ही सम्यक धर्म है। 
सनातनी वैदिक संस्कृति बाले इस पौराणिक शहर में निरामिष लोगों के लिए खाने पीने की कहीं भी कमी महसूस नहीं होगी। फल फूल ,दूध दही ,से परिपूर्ण इस नगरी में लस्सी शर्वत ,मेवे, मिठाईयां खाने के शौक़ीन लोग यहाँ घाटों के पास मौज़ूद ढ़ेर सारे रेस्टुरेंट ,ढाबों  ,होटल ,खोमचे वालों से अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी नाश्ता ,लंच, डिनर आदि ले सकतें हैं। 
----------------------------------

आस्था की नगरी हरिद्वार। गतांक से आगे १.

हर की पौड़ी स्नान घाट में गंगा का मंदिर ,मानसिंह की छतरी , बिरला टावर दर्शनीय है। सच कहें तो मुझे हरिद्वार घाटों, मंदिरों का शहर ही लगता है तथा यहाँ के रहने वाले अधिकाधिक लोग पण्डें ही जान पड़ते हैं 

संध्या गंगा आरती के समय विभिन्न संस्कृतियों का हर की पौड़ी में समागम। कोलाज विदिशा। 

मनसा देवी मंदिर :  बिलवा पर्वत पर स्थित हरिद्वार का यह मंदिर सबसे प्रमुख मंदिर  है जहाँ हम रोपवे के जरिए पहुंच सकते है। पैदल मार्ग भी बना है। हरिद्वार आने वाले अधिकाधिक पर्यटक देवी माँ मनसा का आशीर्वाद पाने हेतू यहाँ अवश्य जाते  हैं । इस मंदिर परिसर के पास से ही पूरे हरिद्वार शहर का मनोहारी व प्राकृतिक दृश्य दिखता है। यही से गंगा नदी की बल खाती पतली धाराएं नहर की शक्ल में मुड़ती हुई हर की पौड़ी की तरफ भी दिखतीं हैं जो आगे चल कर गंगा की मुख्य धारा में समाहित हो जाती हैं। हरिद्वार की प्राकृतिक सुषमा निहारनी हो तो मनसा देवी ज़रूर जाएं।
ब्यूटी पॉइंट : मनसा देवी मार्ग में ही ब्यूटी पॉइंट है जहाँ से पूरे शहर का अवलोकन किया जा सकता है। 
दक्ष महादेव मंदिर : हरिद्वार का  अत्यंत प्राचीन मंदिर है जहाँ धार्मिक प्रवृति के लोग जाना अत्यधिक पसंद करते है। मैने वहां बहुत सारे भक्तों एवं श्रद्धालुओं को बकरें की आवाज़ निकाल कर  भगवान भोले को प्रसन्न करते हुए तथा दक्ष प्रजापति को चिढ़ाते हुए देखा।
कनखल में माँ सती का अग्निकुंड भी है. जहां उन्होंने अपने  पिता के घर में अपने स्वामी त्रिपुरारि,भोले का अपमान  सहन न करने  की स्थिति में स्वयं को अग्निकुंड  के हवाले कर भस्म कर लिया था।
चंडी देवी : गंगा के दुसरे किनारे नील पर्वत के शीर्ष पर माँ चंडी को समर्पित यह दूसरा मंदिर है जहाँ पर्यटक रोपवे के जरिये जाना पसंद करते है।  इतिहास यह है कि इसका निर्माण जम्मू काश्मीर के नृप सुचात सिंह ने सन १९२९ में करवाया था।
नील धारा :   हरिद्वार में बहने बाली गंगा की समझी हुई यह अबिरल,शुद्ध  एवं पारदर्शी धारा है जो शहर के पार्श्व में बहती है। हालांकि पूरी शुद्धता की बात अब हम नहीं करते हैं, किसी ज़माने में शुद्धता ही वो पैमाना रही होगी जिसकी  वजह से इसे नील धारा का नाम दिया गया होगा। नील धारा एक पक्षी विहार भी है जहाँ मौसम के रूख को बदलते ही  यहाँ  बेशुमार प्रवासी पंछियों का डेरा भी देखा जा सकता है।
गुरु कुल कांगड़ी :  मुख्य शहर हरिद्वार  से लगभग ३ किलोमीटर दूर  विश्वविद्यालय  की स्थापना आर्य समाज के जनक, स्वामी दयानन्द के परम शिष्य स्वामी श्रद्धानन्द ने  मुंशी राम के सहयोग से की थी। उनका यह प्रयास दृष्टव्य  है ,सराहनीय है  कि हम अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति पर आधारित वैदिक व हिंदी शिक्षा को कैसे संरक्षित व प्रचारित करें।  नगर से ढाई किलोमीटर दूर आप यह भी स्थान देख सकते है।
पतंजलि योग पीठ :  आज योग गुरु बाबा रामदेव के अथक प्रयासों से भारतीय योग तथा आयुर्वेद का डंका समस्त विश्व में बज रहा है। सम्पूर्ण देश विदेश  में पतंजलि के विभिन्न स्वदेशी उत्पादों  की अत्यधिक बिक्री व लोकप्रियता की वज़ह से यहाँ आने बाले  पर्यटकों  की संख्या भी बढ़ी है जो  पतंजलि पीठ जाना भी पसंद करतें है।
भारत माता मंदिर :  एक अनोखी जग़ह है इस मंदिर में विभिन्न धर्मों के संतों एवं देश के प्रमुख लोगों की मूर्तियां स्थापित है।
शांति कुंज :   हरिद्वार से ६ किलोमीटर दूर हरिद्वार -ऋषिकेश मार्ग  में गायत्री परिवार से सम्बंधित लोगों के लिए यह जगह स्वयं सिद्ध पवित्र मंदिर स्थल है जहाँ एकाध दो घंटा व्यतीत करना आनंददायी होगा।
राजाजी नेशनल पार्क : जो लोग जंगल सफारी के शौक़ीन हैं उनके लिए ८२० किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले देहरादून, पौड़ी गढ़वाल और हरिद्वार जिले की  शिवालिक पहाड़ियों की तराई में स्थित  भारत की एक प्रसिद्ध  सैंचुरी - पार्क है जिसे भारत सरकार ने टाइगर संरक्षित वन घोषित कर रखा है। यह पार्क शहर से १० किलोमीटर की दूरी रखता है।  यहां लोग मोगली बन कर वन में घूमने का अतिरेक आनंद उठा सकते है । जहाँ चीला जैसे रमणीक स्थल  भी है  । 

----------------------------------

आस्था की नगरी हरिद्वार। गतांक से आगे २ .
ऋषिकेश से गुजरती हुई गंगा की अनुपम छटा। कोलाज विदिशा। 

चीला  : राजाजी सैंचुरी में ही प्रकृति प्रेमियों के लिए एक मनोरम  पिकनिक स्थल है जो शहर से ८ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। 
मसूरी  : यदि आप हरिद्वार में रहते हुए एक दिवसीय पर्यटन के लिए १०० किलोमीटर की परिधि में घूमने का मन बना रहे है तो आप पहाड़ों की रानी मसूरी भी देख सकते है। 
ऋषिकेश : भी  इसी तरह हरिद्वार का जुड़वाँ शहर ही है। पार्श्व में है।  जहां से आप गंगा को उतरते हुए आप  मैदानी इलाके में देखेंगे। 
बंदरों के आतंक 
हरिद्वार और बंदर :  
हरिद्वार घूमते समय हमने यह बात जेहन में ताज़ी रखी थी कि  यहाँ बंदरों की तादाद अत्यधिक है। संभल कर रहना होगा। खिड़कियों में जालियाँ लगी हुई है। कपड़े तथा खाने पीने का सामान 
भूल कर भी खुले में मत छोड़ें नहीं तो माता जानकी के दूत कब आपको असहाय कर देंगे पता भी नहीं चलेगा। हरिद्वार स्टेशन पर ही हमने इन समझदार बंदरों को नलके की टोटी से पानी पी कर नल को बंद करतें हुए भी देखा था। सच ही है आदमी से जानवर ज़्यादा समझदार है। आसपास की जगहों को घूमने के पश्चात शाम के समय हम पुनः हर की पौड़ी में थे। सोचा कल हमें सुबह ही बद्रीनाथधाम  के लिए निकलना था तो क्यों नहीं माँ गंगे का पुनः दर्शन कर ले ।वही पगलाती हुई भीड़। मेरी समझ में सदैव से हरिद्वार पुलिस प्रशासन के लिए प्रत्येक दिन हर की पौड़ी में होने वाली गंगा आरती के वक्त  भीड़ की व्यवस्था और उसे  संभालना एक चुनौती सिद्ध होती होगी। प्राचीन श्री गंगा मंदिर स्थल से पंड़ितों -पुरोहितों के 'जय गंगे माँ ' भजन के मंत्रोंच्चारण  के साथ ही  शाम की आरती शुरू हो चुकी थी। 

जय गंगे माँ ' भजन के मंत्रोंच्चारण  के साथ ही  शाम की आरती :  कोलाज विदिशा  

जलते हुए आस्था के असंख्य दियें  और फिर से मन में उठते कई अनुतरित सवाल : गंगा आरती के समय से  ही आस्था के कई जलते हुए असंख्य  दीप पत्तों से बने  दोनों में रख कर गंगा में प्रवाहित कियें  जा रहें थे। तेज़ बहते हुए  दियों से गंगा की लहरें पटी पड़ी थी। रोजाना न जाने हम अपनी आस्थावश कितना मनों टन कूड़ा कचड़ा गंगा में प्रवाहित कर देतें हैं, हमें मालूम भी नहीं होता है। कभी दियों की शक्ल में तो कभी यज्ञ आहूति आदि कार्यों में प्रयुक्त नाना विविध सामग्रियों के रुप में।हम कभी भी व्यक्तिगत तौर से प्रवाहित  किये गए दियों एवं  फेंके गये अवशिष्ठों  को सामूहिक रूप में नहीं समझ पाते हैं।  हर की पौड़ी में शाम के वक्त गंगा आरती में भाग लेना कितना पावन व मनभावन होता यहाँ  भाग लेने वाला हर दर्शनार्थी श्रद्धालु भक्त ही जानता है । गंगा हमारे लिए सभ्यता संस्कृति दायिनी रही है। एकदम माँ के समान मोक्षदायिनी और सुख देने वाली यह भी हम अच्छी तरह से जानते हैं । काश हमने उनके रखरखाव में थोड़ी सचेतता  बरती होती तथा  उनके अस्तित्व के लिए  यथोचित सम्मान दिया होता तो अबतक गंगा कितनी निर्मल हो गयी होती। मंगल कामना के लिए लोगों द्वारा गंगा में प्रवाहित किए जाने वाले असंख्य दीपदानों को लेकर मेरा सुविचारित मत है ,अच्छा होता यदि हम गंगा सफाई अभियान के प्रति आस्थावान हो कर टनों कूड़ा कचड़ा बहाने से बचते , तो अब तक गंगा कितनी स्वच्छ  हो गयी होती । मेरी समझ में झिलमिलाते हुए ये दीप किंचित काल्पनिक हों ,मन में जलें तो अच्छा हो। कम से कम नमामि गंगे के लिए हम अपनी श्रद्धा रखते हुए गंगा को शुद्ध रख कर अनावश्यक प्रदूषित होने से तो बचा सकते है। सब की अपनी अपनी समझदारी है। सामने पार्श्व में खड़ी मनसा देवी की पहाड़ी स्थित ब्यूटी पाइंट से हरिद्वार एवं सदानीरा गंगा नदी की विभाजित धाराओं के बहने के मनोहारी दृश्यों का अवलोकन करना सदैव ही अच्छा लगा  है न। थोड़े घंटे हर की पौड़ी मैं  व्यतीत कर के बाद बाहर ही कुछ खाकर हम नरसिंह धर्मशाला लौट 
नेशनल पार्क
आये थे। 
कब जाए : प्रायोजित टुअर्स की यदि हम बात करें तो मेरी समझ में  हरिद्वार घूमने के लिए सब से अच्छा समय अप्रैल से जून तक व सितंबर व अक्तूबर तक का है। नवंबर से मार्च तक यहां पर ठंड होती है,अप्रैल से जून का महीना सर्वश्रेष्ठ है  क्योंकि इस समय आप अपनी इच्छा अनुसार बद्रीनाथ , केदारनाथ ,गंगोत्री  तथा यमनोत्री की भी यात्रा आप सुरक्षित व  सुगमता पूर्वक कर सकते है। 
कैसे पहुंचे : 
रेल मार्ग यहां के लिए दिल्ली ,मुंबई,लखनऊ,वाराणसी,कलकत्ता,चंडीगढ़,अमृतसर,पटना आदि बहुत से स्थानों से सीधी रेल सेवाएं उपलब्ध हैं। मुंबई देहरादून एक्सप्रेस ,उज्जैन दिल्ली एक्सप्रेस, नई दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस , दिल्ली  देहरादून ( मसूरी ) एक्सप्रेस,वाराणसी देहरादून एक्सप्रेस, हावड़ा देहरादून एक्सप्रेस , श्री गंगानगर हरिद्वार  लिंक एक्सप्रेस,उपासना एक्सप्रेस आदि कुछ  प्रमुख रेल सेवाएं हैं जो भारत के महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ती हैं। 
सड़क मार्ग हरिद्वार सड़क मार्ग द्वारा देश के प्रायः सभी नगरों से जुड़ा है . दिल्ली , चंडीगढ़ , जयपुर , जोधपुर , अजमेर,आगरा ,शिमला ,देहरादून , ऋषिकेश , मुरादाबाद ,नैनीताल ,मसूरी ,मथुरा ,अलीगढ़ व देश के अन्य नगरों के लिए सीधी बस सेवाएं उपलब्ध हैं।  मसूरी ,केदारनाथ ,बदरीनाथ व दिल्ली के लिए  यहां से सीधी टैक्सी सुविधायें भी उपलब्ध हैं। 
वायु मार्ग के लिए आपको देहरादून के जॉली ग्रांट के हवाई अडडे का ही प्रयोग करना होगा। शहरों से हरिद्वार की  दूरी कि जहाँ तक बात करें तो हरिद्वार से प्रमुख नगरों यथा नैनीताल से ३८६  किलोमीटर ,मसूरी से  ९० किलोमीटर ,ऋषिकेश से  २४ किलोमीटर, आगरा से  ३८६  किलोमीटर, बदरीनाथ से  ३२१  किलोमीटर, जयपुर से  ४८० किलोमीटर ,केदारनाथ से  २५०  किलोमीटर,  चेन्नई से २३६८ किलोमीटर,अहमदाबाद से  ११८४ .८ ,बेंगलुरु से २३३५.८ किलोमीटर ,मुम्बई से १६६०.८ किलोमीटर ,दिल्ली से २०० किलोमीटर,लखनऊ से ५००.७ किलोमीटर तथा पटना से १०४१.८ किलोमीटर  की दूरी अनुमानित हैं। 
कहा रुकें : हरिद्वार में ढ़ेर सारे होटल्स हैं  जिनमें उत्तम  क्लासिक रेजीडेंसी ज्वालापुर रोड, मानसरोवर  अपर रोड , तीर्थ  सुभाष घाट, सुविधा डीलक्स श्रवण नाथ नगर, विनायक डीलक्स सूर्या कॉप्लेक्स रानीपुर मोड़, मध्यम हिमगिरी ज्वालापुर रोड , मिडटाउन अपर रोड,आरती रेलवे रोड , विष्णु घाट,अशोक जस्सा राम रोड, कैलाश डीलक्स शिव मूर्ति के पास , शिवा  बाईपास रोड, गंगा  निहार जस्सा राम रोड,अजंता  श्रवणनाथ नगर,  साधारण आकाश कोतवाली के सामने, मद्रास श्रवणनाथ नगर ,मयूर सब्जी मंडी ,पनामा  जस्सा राम रोड, होलीडे इन श्रवणनाथ नगर, आदि आपकी जानकारी के लिए दे रहा हूं जिनका आप लाभ उठा सकते हैं।  
साधारण धर्मशालाएं जयपुरिया,रामघाट।राम कुमार सेवा सदन ,भोमगौडा।जयराम आश्रम ,भीमगौडा।गुजराती ,श्रवणनाथ नगर।  गुजरांवाला भवन, श्रवणनाथ नगर। पंजाब सिंध ,भीमगौडा के पास ,नरसिंह भवन अपर रोड,  , कर्नाटक भल्ला रोड ,सिंध पंचायती, रेलवे रोड, सेठ खुशीराम अपर रोड, देवी बाई सिंधी भोलागिरी रोड,बिरला हाउस विरला रोड आदि स्थानों में आपको मिल जाएंगी जिनका किराया ३०० से ५०० रुपे के आस पास होगा ।
खानेपीने के प्रमुख स्थल  : हरिद्वार में खानेपीने के प्रमुख स्थल सर्वत्र बिखरे पड़े हैं। चिंता की कोई बात नहीं है। आप जहाँ कहीं भी जायेंगे आपको अच्छे रेस्टोरेंट तथा होटल मिल ही जायेंगे। तथापि आप कुछेक  पते जैसे  होटल स्वाद ,सूर्या कांप्लेक्स ,मथुरा वाला मोती बाजार, चोटी वाला रेलवे रोड ,मोहन पूरी वाला हर को पैड्डी, शिवालिक ललता राव,जैन चाट भंडार गली चाट वाली, आहार पुल रेलवे रोड , महेश टिक्की वाला चित्रा टाकीज के  सामने ,गुरुनानक रेलवे स्टेशन के सामने ,बीकानेर मिष्ठान ज्वालापुर रोड आदि को अपने दिमाग में स्मृत कर सकतें हैं।  कितना दिन रुकें  मेरे हिसाब से हरिद्वार दो से तीन दिनों में अच्छी तरह से घूमा जा सकता है। इसके अतिरिक्त आप एक दो पृथक दिन ऋषिकेश तथा मसूरी के लिए निकाल सकते हैं।  

डॉ. मधुप रमण 
जरूर देखें। जरूरी लिंक
हरिद्वार। मानो तो गंगा माँ हूँ वीडियो  देखने के लिए नीचे दिए गए  लिंक को दबाएं।

----------------------------------
उत्तराखंड. ट्रेकिंगपृष्ठ ५ / ३ .
---------------------------------

अलसुबह दिखते केदारकंठ के हिम शिखर : फ़ोटो डॉ.प्रशांत  


ट्रेकिंग की शुरुआत करें केदारकंठ शिखर से.


केदारकंठ / डॉ. प्रशांत. मुझे याद है यह मेरी पहली ट्रेकिंग थी ।  हमने जाड़े का समय ही चुना था क्योंकि हम ठंढ, बर्फवारी तथा अतिरेक रोमांच का एहसास करना चाहते थे । जीवन में ट्रेकिंग का जुनून मुझमें 
डॉ .प्रशांत
बचपन से रहा। मैं बहुत रोमांचित था। हम सभी भारत के विभिन्न जगहों से देहरादून पहुंच चुके थे। पटना से नरेंद्र , रायपुर से शैलेन्द्र सिंह  मेरे  साथ थे।  ट्रेकिंग बेहतर तरीक़े से हो आरामदायक हो इसलिए हमलोगों ने इंडिया हाईक की सेवाएं लेने की सोच ली थी। मैं एक पेशे से डॉक्टर हूँ इसलिए मेरे साथी कहीं ज़्यादा इत्मीनान में थे क्योंकि उन्हें चिकित्सक की सेवा मुफ़्त में ही मिल रहीं थी । 
देहरादून रेलवे स्टेशन पर इंडिया हाईक ने अपनी टैक्सी उपलब्ध कर रखी थी। हमें मसूरी होते हुए सांकरी बेस कैम्प तक पहुंचना था। बता दें कम खर्चें पसंद करने वाले उत्तराखंड परिवहन की सेवाएं भी ले सकते है। केदार कंठ पहुंचने के लिए पर्यटकों को सबसे पहले राज्य की राजधानी देहरादून पहुंचना होता है , रेल मार्ग या हवाई मार्ग  से  देहरादून तक पहुंचने की सुविधा  है। 
देहरादून के बाद सांकरी गांव पहुंचने के लिए मात्र मोटर मार्ग से ही लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है।  देहरादून से बेस कैंप  सांकरी तक मोटर मार्ग की दूरी लगभग १९०  किलोमीटर की है। देहरादून से सांकरी  तक पहुंचने के लिए पर्याप्त मात्रा में टैक्सी और सार्वजनिक गाड़ियां उपलब्ध रहती है । केदार कंठ का ट्रैक लगभग १८  किलोमीटर का है जिसे तय करने में सामान्य ट्रैकर को लगभग    से ५  दिन लग ही जाते हैं। केदार का ट्रेक सांकरी  गांव से शुरू होता है सामान्यतः  नए ट्रैकर्स के लिए केदार कंठ का ट्रैक शुरूआती और आसान भी माना जाता है , फिर भी  ट्रैकर्स को पूरी , उचित सुरक्षा सामग्री के साथ इस ट्रैक पर आना चाहिए। सांकरी  गांव से केदारकंठ  की ओर बढ़ने पर यह ट्रेक और भी  मुश्किल हो जाता है। लेकिन मुश्किल होने के साथ ही नए - नए दृश्य और पर्वत श्रृंखलाओं का नजारा ट्रैक में रोमांच का जबरदस्त अहसास करवाता ही रहता है। बताते चलें कि केदारकंठ से  हिमालय की चोटियों को स्पष्ट देखा जा सकता है जिसमें यमुनोत्री ,गंगोत्री ,स्वर्गारोहिणी और हिमालय की अन्य चोटियां शामिल है।

सांकरी  : केदारकंठ शिखर बेस कैम्प फ़ोटो इंटरनेट से साभार.

सांकरी बेस कैम्प : हम शाम तक सांकरी पहुंच चुके थे। पहले कभी यह छोटा गांव था। आज यहाँ तमाम सारी सुख सुविधा मौजूद है। ढ़ेर सारे रिसोर्ट्स , होटल, लॉज , गेस्ट रूम्स दिखते है। 
क्रमशः जारी .......

सह लेखक 
डॉ.मधुप रमण
डॉ.शैलेन्द्र सिंह  
  ----------------------------------
Art Gallery. Page 6. Uttrakhand.
---------------------------------
----------------------------------
Photo Gallery. Page 7. Uttrakhand.
---------------------------------
supported by.



enjoying boating in the Nainilake, Nainital : photo Puneet Sharma. 

a tree house in Mukteshwar,Nainital : photo Puneet Sharma.Mumbai.

above the clouds , Bhowali, Nainital : photo Dr. Sunita Sinha

scenic beauty of Ranikhet : collage Dr. Sunita Sinha.

Clouds at Auli : photo Puneet Sharma. Mumbai.

resting under the cloud shades at Auli : photo Puneet Sharma. Mumbai.

----------------------------------
Video Gallery. Page 8.Uttrakhand.
---------------------------------


साभार स्वदेश : डॉ.नवीन जोशीनैनीताल.  

----------------------------------
You Said It. Page 9.
---------------------------------




पाश्चात्य शैली में बनी  हाई कोर्ट की इमारत : फोटो डॉ. नवीन जोशी. 

Comments

  1. I will like to visit Nanital once in my life.

    ReplyDelete
  2. I was highly desirous to visit this place. But I could not go to that distination. I would like to visit this beautiful place in coming days

    ReplyDelete

Post a Comment

Don't put any spam comment over the blog.

Popular posts from this blog

Talk of the Day : Our Town Education.

Home Assignment : Vacation. Class 9

Home Assignment : Vacation. Class 10.